वाराणसी: स्वर साम्राज्ञी, क्वीन ऑफ़ मेलोडी पर दुनिया लता मंगेशकर को एक और वजह से भी पहचानती है, और वह वजह है भाषा और व्यहार में उनकी सादगी, सरलता, और सौम्यता। टीवी स्क्रीन पर और मंचों पर देश ने उन्हें देखा और सुना है, लेकिन एक आम आदमी के साथ उनका कैसा व्यवहार रहता है और कैसे कोई उनका मुरीद हो जाता है, यह वाराणसी के एक साधारण साड़ी व्यवसायी अरमान से बेहतर कौन बता सकता है। लता मंगेशकर ने अरमान को दिया अपने बेटे जैसा स्नेह
व्यवहार ऐसा कि अरमान रिजवान ने लता मंगेशकर को अपनी मां का दर्जा दिया, और बदले में लता जी ने भी उन्हें हमेशा अपने बेटे जैसा स्नेह दिया। 2016 में पहली बार अरमान साड़ी दिखाने के लिए मुंबई गए थे। लता जी के विराट व्यक्तित्व होने के बावजूद उनके सरल व्यवहार से अरमान इतने प्रभावित हो गए कि उन्हें अपनी मां का दर्जा दिया। आज तक अरमान ने ‘मां’ के दिए चेक को नहीं कराया कैश
साल में तीन से चार बार साड़ियों को लेकर अरमान लता मां के पास मुंबई जाते थे। वहां से उन्हें लता मां चेक में पेमेंट करती थीं। लेकिन अरमान ने आज तक कभी भी किसी चेक को कैश नहीं कराया, वह लता से मां से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सभी चेक को लैमिनेट कराकर सुरक्षित रखा हुआ है। और अब वह उसे एक यादगार के तौर पर संजोकर रख लिया। इन सात वर्षों में अरमान ने करीब 100 से ज्यादा साड़ियां लता मां को दी हैं।
बनारसी साड़ियों के निर्माता और व्यापारी अरमान और उनका पूरा परिवार लता जी के निधन से शोकाकुल है। भावुक होते हुए अरमान ने बताया कि 2016 में पहली बार वह लता मंगेशकर से मिले और इस मुलाकात का जरिया बने थे उनके भाई हृदयनाथ मंगेशकर। जब वह काशी आए थे, उसी वक्त उन्होंने फोन पर लता मां से उनकी पहली बार बात कराई थी। इसके बाद वह बनारसी साड़ियां लेकर मुंबई उनके प्रभाकुंज स्थित आवास पर गए थे। बनारसी साड़ियों की ऐसी दीवानगी की साल में तीन से चार बार लता मां अरमान से साड़ियां मंगवाती थी। इनमें से कुछ वह खुद पहनती थी और कुछ लोगों को उपहार के तौर पर दिया करती थीं।
अरमान ने एनबीटी ऑनलाइन को वह ऑडियो क्लिप्स भी सुनवाई जब कोरोना के पहली और दूसरी लहर में पूरी दुनिया परेशान थी, लता मां का व्यवहार ऐसा था कि उन्होंने अरमान को फोन करके पूरे परिवार का हाल लिया और साथ ही वो दुआ करती थीं कि जल्द से इस कोरोना से दुनिया को मुक्ति मिले। फोन पर लता मंगेशकर ने योगी सरकार के कोरोना के कार्यों को लेकर योगी आदित्यनाथ के कार्यों की सराहना भी की थी। इतना ही नहीं लता मां ने अरमान के व्यवसाय से जुड़ी दिक्कतों के बारे में भी पूछा। लता मां के अंतिम दर्शन को जाना चाहते थे अरमान
अरमान ने बीते 20 जनवरी को काशी विश्वनाथ धाम में लता मंगेशकर के स्वास्थ्य में सुधार के लिए काशी विश्वनाथ धाम में रुद्राभिषेक भी करवाया था। अरमान भी अपनी लता मां के अंतिम दर्शन के लिए मुंबई जाना चाहते थे, उनके निजी सहायक से बात भी हुई थी तो उन्होंने कहा कि कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए बहुत कम लोगों को बुलाया गया है। इसलिए उनका आना उचित नहीं होगा। अरमान ने अपनी लता मां के लिए शाम को परिवार के साथ फातिहा पढ़ते हुए दुआ ख्वानी भी की।
नयी दिल्ली : प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की कमान पहली बार किसी महिला के हाथ में है। पुणे यूनिवर्सिटी की प्रफेसर शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित को जेएनयू का नया वाइस चांसलर नियुक्त किया गया है। वह जेएनयू की पहली महिला वीसी हैं। निवर्तमान वीसी जगदीश कुमार ने कहा कि वह सोमवार को ही चार्ज प्रफेसर पंडित को सौंप देंगे। पुणे यूनिवर्सिटी में पॉलिटिक्स और पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन पढ़ाने वाली प्रफेसर पंडित की पैदाइश रूस के सेंट पीटर्सबर्ग की है। शुरुआती पढ़ाई मद्रास (अब चेन्नै) में हुई जेएनयू से एम.फिल में टॉप किया। फिर यहीं से पीएचडी भी की। 1996 में उन्होंने स्वीडन की उप्पसला यूनविर्सिटी से डॉक्टोरल डिप्लोमा हासिल किया। हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, तमिल जैसी छह भाषाओं में दक्ष प्रफेसर पंडित कन्नड़, मलयालम और कोंकणी भी समझ लेती हैं।
प्रोफेसर पंडित के पिता सिविल सर्विसिज में थे। मां लेनिनग्राद (अब सेंट पीटर्सबर्ग) ओरियंटल फैकल्टी डिपार्टमेंट में तमिल और तेलगू की प्रोफेसर थीं। शिक्षण में 34 साल से ज्यादा का अनुभव रखने वाली प्रफेसर शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने पुणे यूनिवर्सिटी के अलावा गोवा यूनिवर्सिटी, ओस्मानिया यूनिवर्सिटी, रक्षाशक्ति यूनिवर्सिटी, मद्रास यूनिवर्सिटी में भी बढ़ाया है। इसके अलावा वह केंद्र सरकार की कई अहम समितियों में भी शामिल रही हैं। अंतराष्ट्रीय विषयों पर बेहतरीन पकड़ रखने वाली प्रफेसर ने कई रिसर्च प्रॉजेक्ट्स में महती भूमिका अदा की। दुनिया के कई नामी संस्थानों में उनकी फेलोशिप है। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें कई सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है।
इसके अलावा प्रोफेसर पंडित ने कई बुकलेट्स तैयार की हैं। कई किताबों में उनके चैप्टर्स हैं। प्रफेसर पंडित ने भारत और दुनिया के राजनीतिक परिदृश्यों पर कई रिसर्च पेपर प्रकाशित किए हैं जिनका ब्योरा पुणे यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर मौजूद उनके सीवी में है।
फरवरी का महीना शुरू हो चुका है। वसन्त पंचमी के साथ ही वसन्त का आगमन हो चुका है मगर इस बार माँ सरस्वती अपने साथ अपनी सुर साम्राज्ञी पुत्री और हमारी भारत रत्न लता मंगेशकर को भी ले गयीं। जब यह पँक्तियाँ लिखी जा रही हैं तो मन में विषाद है, दुःख है और गर्व भी है। हम सौभाग्यशाली हैं हम लता जी के युग में जीये, उनके गीत सुनकर बड़े हुए। रफी, मुकेश और किशोर की जुगलबंदी जितनी खूबसूरती से लता जी की आवाज के साथ होती रही, उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती। लता दीदी भारत की आवाज थीं, एक संघर्ष भरा बचपन जीया और जब वह नहीं हैं तो एक ऐसी विरासत छोड़कर गयी हैं जिसे सहेजना औऱ सम्भालना आज के कलाकारों की जिम्मेदारी है मगर इससे भी बड़ी जिम्मेदारी आम जनता की है जो संगीत और शोर के अन्तर को समझे।
एक तरफ लता दीदी की अंतिम यात्रा और दूसरी तरफ अश्लील, फूहड़ और द्विअर्थी गीत की फौज खड़ी है और यही तो माता सरस्वती का अपमान है। तमाम देवियों को पंडाल में रखकर एक से एक भद्दे गीत बजाकर कौन सी पूजा होती है, यह तो समझना किसी के वश की बात नहीं है। सोचने वाली बात है कि जिन गीतों में आप अपनी बहन – बेटियों की कल्पना नहीं कर सकते, वैसे गीत आप किसी और की बेटी के लिए कैसे लिख सकते हैं, गा सकते हैं…आज तो स्थिति यह है कि भोजपुरी छोड़िए…किसी भी भाषा को लें…अश्लीलता का राक्षस हर जगह है,….माता सरस्वती से यही प्रार्थना है कि कि एक बार फिर उतरें और अश्लीलता के महिषासुर का वध करें जिससे सृष्टि की रक्षा हो सके…। लता जी को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि हम संगीत के वास्तविक स्वरूप को समझें, प्रसार करें और संगीत को शोर से मुक्त करें। स्वर कोकिला को नमन।
शुभजिता को मेरी ओर से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। मेरी स्वरचित कविता’ हे देवी! वर ऐसा देना’ प्रेषित कर रही हूँ। शुभजिता यूँ ही आगे उत्तरोत्तर अपने लक्ष्य को पूर्ण करती रहे। इसी आशा- विश्वास और उम्मीद से निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर हो। पुनः शुभकामनाएँ और बधाई –
वीणावादिनी पुस्तकधारिणी वासंती की देवी
गीत – संगीत – कला – संस्कार और संस्कृति की धूरी
हे देवी! वर देना ऐसा
सत्य और ईमान की घुट्टी पिला देना
देश की सोंधी मिट्टी से प्यार सिखा देना
युवाओं को सुमति – सुधर्म और उन्नति के पथ पर चलने देना
हर पल, हर दिन, नये रंगों से प्रतिदिन झोली भर देना
नई सोच, नए विचार और व्यवहार दे देना
हर बच्चे के अभिभावक को आदर और सम्मान दे देना
हे देवी! वर ऐसा देना
रिद्धि-सिद्धि और वृद्धि से भर पूर्णता देना
हर बालक – बूढ़े को अन्न सदैव ही देना
छाया रहे बड़ों की हरदम
बरगद के फैले पत्तों को सहलाते रहना
चिड़ियों के कलरव में वीणा के गीत सुनाना
छल – कपट – अत्याचार – हिंसा को मन से दूर भगाना
हे देवी! वर ऐसा देना
कण कण में देश प्रीत की गंगा ही बह जाए
हर युवा के कण्ठ कण्ठ में सरस्वती बस जाए
नव गति नव ताल छंद नव सब कुछ नया नया हो
हर भाषा के भावों में भारत उन्नत बन जाए
वाक् शक्ति की ही उपासना मानव की ऊर्जा है
चारों ओर दिशाओं में फैला है यही उजास
फेंक दूर तमस को ज्योति के बंधन में बांँध बस देना
हर मानव के मन में नैसर्गिक प्रवृत्ति के बीज बो देना
हे देवी! वर ऐसा देना
हे देवी! वर ऐसा देना
स्नातकोत्तर की परीक्षा के बाद मैंने पहली बार अपने गाँव “खैरड़” जाने की इच्छा व्यक्त की। सबकी सहमति से 1970 के मार्च महीने में हम गांँव के लिए रवाना हुए। मैं, मेरी दीदी, मेरे भाई साहब और मम्मी_हम चारों गांँव पहुंचे।
हम तो पहली बार गए थे लेकिन मम्मी को भी घर पहचानने में कुछ दिक्कत हुई। घर के सामने रौनक थी।मम्मी जब एक घर के सामने रुकीं तो एक व्यक्ति तेजी से हाथ जोड़ता हुआ मम्मी के सामने आया और झट से चरण स्पर्श किए। उसने पूछा-
आप कलकत्ते वाली दीदी हो ना?
मम्मी ने उसे आशीर्वाद दिया और पहचानते हुए कहा तुम बनारसी हो?
हां जी हां जी__कहता हुआ वह ससम्मान सबको भीतर ले गया, खटिया बिछाई ,आवभगत किया।
मम्मी ने कमरे की तरफ इशारा करते हुए पूछा- यह क्या है?
बनारसी और उसकी पत्नी दोनों एक दूसरे की तरफ झांकने लगे। डरते डरते उसने कहा-मैंने यहां हट्टी(दुकान) खोली है। पूरा गांव यहीं से सामान लेता है। मैं शहर से ले आता हूं। गांव वालों को सुविधा हो जाती है।
“हमें बताना तो चाहिए था”
मम्मी ने बनारसीलाल से कहा।
बड़ी विनम्रता से बनारसी लाल ने कहा सारे गांव वालों की सहमति थी और पटवारी जी को भी बता दिया था। आपकी और शर्मा जी की सब ने बहुत तारीफ की। गांव वालों ने कहा वह कुछ नहीं कहेंगे बहुत बड़े दिलवाले हैं।
थोड़ी देर बाद हम तीनो भाई बहन जब कमरे में पहुंचे तो हमने अपनी बातें शुरू कर दीं
मैंने कहा-हमारा घर हमारी जमीन, कैसा कब्जा कर लिया।
दीदी ने कहा_बिना पूछे ,बिना बताए अपना बिजनेस शुरू कर लिया।
भाई साहब ने कहा_गांव वालों को सब सीधे-सीधे कहते हैं पर यह होते बहुत चालाक हैं।
इसी तरह का वार्तालाप हम कर रहे थे कि बाहर से आवाज आई
“खाना तैयार है”बहुत ही आदर भाव से विनम्रता से बहुत ही स्वादिष्ट खाना पति-पत्नी दोनों ने हमें खिलाया।
रात को हम सो गए और नींद भी अच्छी आई। सुबह हमें होशियारपुर के लिए निकलना था । सुबह हम उठे तो देखा कुछ अलग सा ही वातावरण नजर आया। घर बड़ा बड़ा और खाली खाली लग रहा था।जब ध्यान दिया तो पता चला कि जिस कमरे में दुकान थी वह कमरा बिल्कुल खाली था। अचानक पीछे से बनारसी लाल की आवाज सुनाई जी_जी– घर आपका– जमीन आपकी—आप लोगों की लंबी अनुपस्थिति के कारण गांँव वालों की सुविधा के लिए मैंने यह काम किया था। अब आप इसे संभाले।
मुझे ऐसा लग रहा था”काटो तो खून नहीं”शर्मिंदगी से हम तीनो भाई बहन जमीन में गड़े जा रहे थे। महसूस किया गांव वाले ईमानदार भी होते हैं और स्वाभिमानी भी।
उस सीधे-साधे ग्रामीण का स्वाभिमान आज तक मुझे प्रेरणा देता है।
भारतवर्ष पर सैकड़ों वर्षों से ही अनगिनत आक्रमण होते आए हैं परन्तु इसकी अखण्डता को अक्षुण्ण रखने हेतु अनेकों वीर, महात्मा, संत, कवि आदि ने इस भूमि पर जन्म लिया और हर प्रकार से इसकी रक्षा की। ऐसा ही एक दौर था आज से लगभग हजार वर्ष पूर्व, जब भारत की अस्मिता पर आँच आई थी। विदेशी आक्रांताओं के अत्याचार, लूट-पाट और भय से मनुष्य का मन निराशा से भर उठा था। ऐसे में दक्षिण भारत के तमिल नाडु राज्य के श्रीपेरुमबुदुर नामक ग्राम में सन्१०१७ई० में एक ब्राह्मण परिवार में बालक का जन्म होता है। माता कांतिमती तथा पिता केशव उसे लक्ष्मण कहकर पुकारते थे। वह बालक भक्ति का ऐसा बीज बोता है जिससे जनमानस में सांस्कृतिक क्रांति, चेतना और जागृति हो जाती है। छोटी उम्र में पिता को खोने के बाद बालक परिवार सहित कांची जाकर ‘यादव प्रकाश’ से वेदांत की शिक्षा ग्रहण करता है। अपने गुरु की वेद चर्चा और तर्क से असंतुष्ट और असहमत बालक आगे चलकर आलवरसंतश्रीपादयमुनाचार्यजीमहाराज की शरण में चला जाता है और उनका प्रधान शिष्य भी बन जाता है।
समाजकल्याणकेसंकल्पहेतुजीवनसमर्पित
संत यमुनाचार्य जी के वैकुंठ गमन के पश्चात एक अभूतपूर्व घटना घटी, जिससे एक साधारण बालक के असाधारण बनने की प्रक्रिया आरंभ हुई। बालक ने देखा की शरीर त्यागने के पश्चात भी गुरू जी की ३ उंगलियां मुड़ी हुई थी, सभी इस भेद को जानने के लिए उत्सुक थे। उदासीन बालक यह भांप गया की गुरुवर के तीन इच्छा बाकी थी। अकस्मात ही वह बोल पड़ा, “मैंब्रह्मसूत्रपरभाष्यलिखूंगा“ और इतना कहते ही गुरु यमुनाचार्य की एक उंगली खुल गई। उसने और ऊँचे स्वर तथा दृढ़ निश्चय के साथ दो और प्रण किए की वह‘श्रीविष्णुसहस्रनाम‘और‘दिव्यप्रबंधम’परभीटीका लिख अपने गुरू की इच्छा और साथ ही समस्त मानव जाति का कल्याण करेंगे। इसके पश्चात ही बाकी दो उंगलियां भी खुल गई। कार्य अत्यंत ही दुष्कर था परन्तु दृढ़ संकल्प, विराट इच्छाशक्ति, आत्म विश्वास और गुरु के आशीर्वाद से यह कार्य पूर्ण हुआ और लक्ष्मण से श्रीपाद स्वामी रामानुजाचार्य तक का सफर भी तय हुआ।
समानताकीदृष्टि
आचार्य रामानुज का कम उम्र में ही थंगाम्मा नामक युवती से विवाह संपन्न हुआ था। कुलीन कन्या होने के कारण उनके मन में तथाकथित निम्न जाति-वर्ग के लोगों के प्रति द्वेष था साथ ही वह उनसे अनुचित व्यवहार भी करती थी। भगवान वरदराज के प्रियभक्त श्री कांचीपूर्ण जी (जो निम्न वर्ग से आते थे) को आचार्य अपना गुरु मानते थे। एक दिन मध्यान भोजन हेतु उन्होंने उन्हें अपने निवास पर आमंत्रित किया। उनके भोजन करके चले जाने के पश्चात थंगाम्मा ने बचे हुए भोजन को बांट दिया, घर को गोबर से लीपा, पुनः स्नान किया और पति के लिए दुबारा भोजन पकाने लग गईं। उनके इस कृत्य से आचार्य जी को बहुत कष्ट हुआ, मन द्रवित हो उठा। उनकी दृष्टि में केवल मनुष्य ही नहीं अपितु प्रत्येक प्राणीमात्र भी ईश्वर के समतुल्य ही था। इस घटना के पश्चात ही उन्होंने गृहस्थाश्रम का त्याग कर सन्यास ग्रहण कर लिया। आगे चलकर उनकी इसी सम दृष्टि से तथाकथित निम्न जाति का उद्धार हुआ, उन्हें मंदिरों में प्रवेश, समाज में सम्मान और प्रभु भक्ति के योग्य भी बनाया।
गुरुभीशिष्यबनगए
मैसूर से कुछ दूर स्थित श्रीरंगम नगरी के श्रीरंगनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में आचार्य जी ने कई वर्षों तक प्रभु की सेवा की। तत्कालीन समय के महान संत श्रीपाद गोष्ठिपूर्ण जी महाराज से महामंत्र सीखने के लिए आचार्य १८ बार मिलते हैं जिसमें से १७ बार निराशा ही हाथ लगती है। अठारहवीं बार की भेंट में गोष्ठिपूर्ण जी महामंत्र “ॐ नमो नारायणाय“ बता देते हैं परन्तु साथ ही दो शर्त भी रखते हैं, पहला यह की मंत्र की गोपनीयता बनाए रखनी होगी और दूसरा, भविष्य में किसी सुपात्र को ही महामंत्र सिखाने का वचन। यह जानने के पश्चात की इस मंत्र के श्रवण मात्र से ही ईश्वर प्राप्ति हो जाती है, आचार्य स्वयं को रोक न सके। उनका संवेदशील हृदय आह्लादित हो उठा और इस चराचर जगत के कल्याण हेतु वे मंदिर की सबसे ऊँची दीवार पर खड़े होकर जोर-जोर से मंत्रोच्चारण करने लगे। जिसने भी इस मंत्र को धारण किया, उन सबका उद्धार हो गया। इस बात पर गोष्ठिपूर्ण अत्यंत क्रोधित होकर अपने शिष्य से कहते हैं, “गुरुद्रोही ! तुझेनरकमिलेगा।“
आचार्य भाव-विभोर हो कह उठते हैं, “यदिएकमेरेनरकचलेजानेसेसमस्तसंसारकाकल्याणहोताहैतोमुझेअपनेकिएपरतनिकभीखेदनहीं।” इस महान विचार, त्याग की भावना और करुणामयी हृदय के आगे गोष्ठिपूर्ण नतमस्तक हो जाते हैं, ग्लानि से भर उठते हैं और रामानुजाचार्य को अपना गुरु स्वीकार कर लेते हैं।
“ब्रह्म सूत्र पर भाष्य लिखने” के अपने पहले संकल्प की पूर्ति हेतु आचार्य को ऋषिबोधायन द्वारा रचित “बोधायनवृत्ति“ के अध्ययन की आवश्यकता थी। आज के आधुनिक दौर में तो हम एक क्लिक में ही दुनिया भर की जानकारी प्राप्त कर लेते हैं परन्तु एक हजार वर्ष पूर्व ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी। उस पुस्तक का पता लगाने हेतु आचार्य ने बड़ा ही संघर्ष किया और पाया कि उस कृति की केवल एक ही प्रति उपलब्ध है, वह भी सुदूर कश्मीर की घाटियों में बने ‘श्री शारदापीठम’ में। अपने मेधावी तथा प्रिय शिष्य कुरेज को साथ लेकर वे कश्मीर पहुंच गए और वहां उन्हें निराशा ही हाथ लगी क्योंकि पंडितों ने वह प्रति देने से मना कर दिया। मान्यता है की उस मंदिर में माता सरस्वती स्वयं प्रगट होकर पुस्तक की प्रति आचार्य को सौंप देती हैं। वे जब दक्षिण भारत के लिए प्रस्थान करते हैं तब जंगल में ही पुजारीगण उनपे हमला करके किताब छीन लेते हैं परन्तु उनके शिष्य गुरेज के पास अद्भुत स्मरणशक्ति थी जिससे वह एक नजर में ही पूरी पुस्तक याद कर लेते हैं। उन्हीं की सहायता से आचार्य “श्रीभाष्यम“ की रचना करते हैं और उनकी इसी महान रचना के कारण उन्हें “श्रीसंप्रदायशिरोमणि” भी कहा जाता है।
हरिकोभजे, सोहरिकाहोय
कावेरी नदी के किनारे बसा पर्वतीय क्षेत्र मेलुकोटे बहुत ही सुंदर क्षेत्र है। अपने जीवनकाल में आचार्य ने लगभग १२ वर्ष तक इस स्थान को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और श्री चेलुव नारायण मंदिर में प्रभु की सेवा की। विभत्स आक्रांताओं ने भारत के अनेकों मंदिर तोड़े, बहुमूल्य रत्न लूटे और साथ ही हमारे अराध्य देवी-देवताओं के विग्रह भी चुरा कर साथ ले गए। इसी में से एक सुंदर विग्रह “रामप्रिया“ भी थी, जो इस मंदिर की ‘उत्सव मूर्ति’ थी और उत्सवों अथवा जात्रा के दौरान इस विग्रह की झाँकी निकलती थी। यह वही दिव्य मूर्ति थी जिसकी पूजा त्रेता युग में प्रभु राम और उनके वंशजों ने की और द्वापर में श्री कृष्ण ने भी की।
आचार्य को जब यह ज्ञात हुआ की वह मूर्ति दिल्ली के मुग़ल दरबार में है तो बिना विलंब वे अपने प्रभु को लेने पहुँच गए। उन्होंने आग्रहपूर्वक जब अपने प्रभु को ले जाने की मांग की तब मुग़ल शासक ने उन्हें मूर्ति लौटा दी। यह देखकर शहजादी अत्यंत द्रवित हो उठी और दीवानों की तरह आचार्य और उनके काफिले का पीछा करते हुए मेलुकोटे शहर जा पहुँची। मुस्लिम कन्या होने के कारण उसका मंदिर में प्रवेश वर्जित था, वह बाहर ही अपने आराध्य श्री हरि विष्णु के ध्यान में लीन हो गई। जब आचार्य को यह ज्ञात हुआ तब उन्होंने उसे मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी और वह महान भक्त प्रभु में ही समा गईं। तत्पश्चात आचार्य ने स्वयं ‘बीबीनाचियार‘ की मूर्ति को मंदिर में स्थापित करवाया। वह मूर्ति आज भी मंदिर परिसर में स्थापित है और भक्तगण प्रभु की अनन्य प्रेमिका को भी पूजते हैं।
निष्कर्षतः हम कह सकते हैं की संत रामानुजाचार्य का जीवन अत्यंत ही प्रेरणादायी है। भारतीय संत परंपरा में आदिगुरु शंकराचार्य जी के पश्चात श्रीपाद रानुजाचार्य जी का ही नाम लिया जाता है। आचार्य शंकर के अद्वैतवाद से भिन्न इन्होंने ‘विशिष्टाद्वैत’ की रचना की। वैष्णव धर्म के प्रचार प्रसार हेतु इन्होंने पूरे भारतवर्ष की यात्रा की और जन जागृति का कार्य किया। अपने जीवनकाल में इन्होंने बहुत सारी रचनाएं की, भाष्य लिखे परन्तु सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाएं ‘श्रीभाष्यम’ और ‘वेदान्तसंग्रहम‘ को माना जाता है।
वेदान्त के अलावा सातवीं-दसवीं शताब्दी के रहस्यवादी एवं भक्तिमार्गी आलवार सन्तों के भक्ति-दर्शन तथा दक्षिण के पंचरात्र परम्परा को इन्होंने अपने विचारों का आधार बनाया। संत रामानुजाचार्यजी की शिष्य परम्परा में ही रामानन्द हुए जिनके शिष्य कबीर, रैदास और सूरदास थे। सन् ११३७ई० में जब यतिराज रामानुजाचार्य १२०वर्ष की अवस्था में पहुँचते हैं तब वह ब्रह्मलीन हो जाते हैं। ऐसे तेजस्वी, समदर्शी दिव्यात्मा की सहस्राब्दी में सम्मान स्वरूप विश्व की दूसरी सबसे बड़ी बैठी हुई मूर्ति, “स्टैच्यूऑफइक्विलिटी” का अनावरण कर प्रधानमंत्री सहित समस्त भारतवर्ष ही नहीं अपितु समस्त संसार के भक्तजन उनके प्रति अपना आभार व्यक्त कर रहे हैं। यह भारतीय सांस्कृतिक क्रांति और चेतना का आगाज़ है।
प्रश्न. ऑनलाइन एग्जाम के मार्क्स के ऊपर सभी यूनिवर्सिटी वालो ने एडमिशन दिया क्यों? क्या ये उचित था क्या इस पर कोई प्रश्न नहीं उठना चाहिए? – राधा ठाकुर
उ. बिल्कुल उठना चाहिए। सभी विश्वविद्यालयों को प्रवेश परीक्षा लेनी चाहिए। मैंने खुद इस सवाल को फेसबुक पर उठाया था। ऑनलाइन परीक्षण पद्धति में बहुत घालमेल हुआ है, दोनों ओर से। विद्यार्थियों ने भी बहुत छूट ली है और अध्यापकों ने भी अतिरिक्त रूप से सदाशयता दिखाई है। जिन लोगों ने ईमानदारी दिखाई उन्हें कहीं प्रवेश नहीं मिला। उनकी कोई गलती नहीं है लेकिन खामियाजा तो भुगतना पड़ा। हालांकि यह स्थिति हर जगह नहीं है लेकिन जहां भी ऐसा हुआ है, गलत हुआ है। इसका विरोध होना चाहिए।
प्र.स्त्रियों की पढ़ाई की सीमा क्यों बंधी जाती है क्यों आधे पर रोक दिया जाता है क्या स्त्रियों की पढ़ाई का कोई महत्व नहीं या उसका पढ़ना जरूरी नहीं है? – राधा ठाकुर
उ. स्त्रियों का पढ़ना तो सबसे जरूरी है। जहां तक बीच में रोक देने की बात है तो अब स्थितियां कमोबेश बदल रही हैं। लड़कियां भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं और नये कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं।
प्र. जो लड़कियाँ आगे बढ़ने की राह में लगातार अपने ही घर से अड़चनों का सामना कर रही हैं, वह क्या करें? खासकर तब जब उनको घर से अकेले निकलने तक नहीं दिया जाये?
(नाम और पहचान गोपनीय)
उ. लड़कियों को स्थितियों का विरोध करना चाहिए। अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए छोटा मोटा काम करने से भी परहेज नहीं करना चाहिए क्योंकि पढ़ाई बंद होने का सबसे बड़ा कारण आर्थिक होता है। कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो लड़कियों के लिए हमेशा से ही आगे बढ़ने की राहें आसान नहीं रही हैं। इस स्थिति में सबसे बड़ी जरूरत है, हौसला बनाए रखने की। उन तमाम लड़कियों से जो अपनी-अपनी जगह पर संघर्षरत हैं, से मेरा एक ही संदेश है कि वे हिम्मत न हारें। कोशिश जारी रखें। प्रतिकूल स्थितियों भी अपनी हिम्मत बनाए रखकर ही वे नया इतिहास लिख सकती हैं।
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कोलकाता । सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में प्राथमिक विभाग की छात्राओं ने गणतंत्र दिवस समारोह मनाया। नर्सरी की छात्राओं ने विभिन्न स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में खुद को प्रस्तुत किया। वीडियो और पावर प्वाइंट प्रस्तुति छात्राओं को दिखायी गयी। भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों, स्वाधीनता सेनानियों और राष्ट्रीय ध्वज को लेकर क्विज भी हुआ। किंडरगार्टन की छात्राओं ने कागज मोड़ने की तकनीक से राष्ट्रीय ध्वज बनाया। गणतंत्र दिवस समारोह के वीडियो इनको दिखाये गये। पहली और दूसरी कक्षा की छात्राओं ने तिरंगे के रंग में खुद को सजाया और भारतीय संविधान के बारे में बताया। तीसरी कक्षा में ‘अनेकता में एकता’ और ‘नागरिकों के अधिकारों’ पर एकांकी का मंचन हुआ। संविधान के महत्व पर चौथी और पाँचवीं कक्षा की छात्राओं ने प्रस्तुति दी। डॉ. बी. आऱ. अम्बेडकर पर एक वीडियो प्रस्तुति दी गयी। राष्ट्रप्रेम से परिपूर्ण कविताओं व गीतों की प्रस्तुति भी की गयी
कोलकाता । बिड़ला हाई स्कूल में गणतंत्र दिवस समारोह उल्लास के साथ मनाया गया। बहुप्रतिक्षित कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए दसवीं के छात्र अनस अली ने समारोह की रूपरेखा रखी। इसके बाद ध्वजारोहण हुआ। नौवीं के छात्र समित दास ने ध्वज फहराते हुए देशभक्ति की भावना को और ऊँचा किया। अंग्रेजी के शिक्षक जोसफ ऑरोकियास्वामी ने भाषण दिया। आर्यन वत्स ने ‘एक और जंजीर तड़कती है’ कविता का पाठ किया। देवांश लोहिया और मयंक पुरस्वनि ने पूर्ण स्वराज के संकल्प की ऐतिहासिक तस्वीरों को सामने रखा। स्कूल की प्रिंसिपल लवलीन सैगल ने छात्राओं को सन्देश दिया कि वे देशभक्ति के भाव को सदैव संजोये रखें। इसके बाद आर्य सरकार ने बांग्ला काव्य पाठ किया। अदित, वेदांश औऱ सौभाग्य ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। बायोलॉजी की शिक्षिका डॉ. अरुंधती चक्रवर्ती ने अनेकता में एकता पर भाषण दिया। इसके बाद वैष्णव श्रीराम ने संस्कृत में काव्य पाठ किया। अन्त में राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम का प्रसारण यूट्यूब और फेसबुक पर किया गया। प्रेषक – रोहिताश्व दास, बिड़ला हाई स्कूल