Sunday, July 20, 2025
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नहीं रहे वरिष्ठ पत्रकार राधा कृष्ण प्रसाद

कोलकाता : कोलकाता में हिन्दी पत्रकारिता के एक स्तम्भ के रूप में गिने जाने वाले वरिष्ठ पत्रकार राधा कृष्ण प्रसाद नहीं रहे। पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे प्रसाद जी ने गत 26 फरवरी की रात कोलकाता के मारवाड़ी रिलीफ़ सोसाइटी में अन्तिम साँस ली। वे 74 वर्ष के थे।

वे ‘सन्मार्ग’ दैनिक में समाचार संपादक समेत विभिन्न पदों पर कई दशकों तक जुड़े रहे। आर.के. प्रसाद ने हिन्दी पत्रकारों की एक पौध खड़ी की। पत्रकारिता की हर विधा पर मजबूत पकड़ रखने वाले प्रसाद जी ने युवा पत्रकारों को तराशने में अहम भूमिका निभायी। वे पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी के सदस्य भी थे। प्रसाद जी के परिवार में पत्नी, ३ पुत्र, दो पुत्रियाँ और पुत्रवधू हैं। शुभजिता की ओर से सादर नमन

फिल्म लेखक और समीक्षक जयप्रकाश चौकसे का निधन

इंदौर । फिल्म लेखक और समीक्षक जयप्रकाश चौकसे का इंदौर में दिल का दौरा पड़ने से 82 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह फेफड़ों के कैंसर से जूझ रहे थे।
चौकसे पिछले सात साल से फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित थे और विगत तीन महीने से उनकी तबीयत ज्यादा खराब चल रही थी।
जयप्रकाश चौकसे ने ‘‘शायद’’ (1979), ‘‘कत्ल’’ (1986) और ‘‘बॉडीगार्ड’’ (2011) सरीखी हिन्दी फिल्मों की पटकथा तथा संवाद लिखे थे। उन्होंने महाभारत पर आधारित एक टीवी धारावाहिक के लेखन विभाग के प्रमुख का जिम्मा भी संभाला था।
चौकसे ने हिन्दी अखबार ‘‘दैनिक भास्कर’’ में लगातार 26 साल ‘‘परदे के पीछे’’ के शीर्षक से रोजाना स्तंभ लिखा जिसमें वह फिल्म संसार के अलग-अलग पहलुओं पर बात करते थे।
खराब सेहत से जूझ रहे फिल्म समीक्षक ने अपनी मृत्यु से पांच दिन पहले ही इस स्तंभ की आखिरी किश्त लिखकर इसे विराम दिया था।
इस बीच, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चौकसे के देहांत पर शोक जताते हुए ट्वीट किया, ‘‘अद्भुत लेखन प्रतिभा के धनी, हिन्दी फिल्म जगत पर लगभग तीन दशक तक लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार जयप्रकाश चौकसे जी के निधन की खबर दुखद है।’’
मुख्यमंत्री ने ट्विटर पर आगे लिखा, ‘‘ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। अपनी रचनाओं से आप (चौकसे) सदैव हमारे बीच बने रहेंगे।’’चौकसे, फिल्म वितरकों के संगठन सेंट्रल सर्किट सिने एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे थे।

फरवरी में जीएसटी संग्रह 18 प्रतिशत बढ़कर 1.33 लाख करोड़ रुपये से अधिक

नयी दिल्ली । वित्त मंत्रालय ने कहा कि फरवरी में जीएसटी संग्रह सालाना आधार पर 18 प्रतिशत बढ़कर 1.33 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा। फरवरी में संग्रह कोविड-19 वायरस की तीसरी लहर से प्रभावित हुआ। गौरतलब है कि जनवरी 2022 में जीएसटी संग्रह 1,40,986 करोड़ रुपये था। इस तरह फरवरी का संग्रह, इससे पिछले महीने के मुकाबले कम रहा।
मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘‘फरवरी 2022 में सकल जीएसटी राजस्व 1,33,026 करोड़ रुपये रहा, जिसमें केंद्रीय जीएसटी 24,435 करोड़ रुपये, राज्य जीएसटी 30,779 करोड़ रुपये, एकीकृत जीएसटी 67,471 करोड़ रुपये (माल के आयात पर एकत्र 33,837 करोड़ रुपये सहित) और उपकर 10,340 करोड़ रुपये (माल के आयात पर एकत्र किए गए 638 करोड़ रुपये सहित) है।’’
फरवरी 2022 का जीएसटी संग्रह इससे पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 18 प्रतिशत अधिक है और फरवरी 2020 के मुकाबले जीएसटी संग्रह 26 प्रतिशत अधिक है।
मंत्रालय ने कहा कि 28 दिन का महीना होने के कारण आम तौर पर फरवरी में जनवरी की तुलना में कम राजस्व मिलता है।

क्षेत्रीय एयरलाइनों, हेलीकॉप्टर परिचालकों के लिए बनेगी सरकारी नीति

नयी दिल्ली । नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि सरकार क्षेत्रीय एयरलाइनों और हेलीकॉप्टर परिचालकों के लिए एक नीति तैयार कर रही है, जिसका मकसद अंतिम छोर तक संपर्क को बढ़ावा देना है।
सिंधिया ने कहा कि भारत में छोटे शहरों के हवाई अड्डों के साथ ही क्षेत्रीय संपर्क पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने उद्योग निकाय एसोचैम द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, ‘‘इसमें कुछ मुद्दे हैं – मांग का स्तर, पट्टे की लागत और मूल्य निर्धारण – इन बातों पर हम विचार कर रहे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम क्षेत्रीय एयरलाइनों और हेलीकॉप्टरों के लिए उन्हें और अधिक किफायती बनाने, अधिक व्यापक बनाने और अंतिम छोर तक संपर्क मुहैया कराने के लिए एक नीति लाने जा रहे हैं, क्योंकि वृद्धि भी इसी क्षेत्र से आने वाली है।’’
मंत्री ने कहा कि वृद्धि के अवसर ओडिशा के झारसुगुडा और असम के रूपसी जैसे छोटे शहरों से आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अंतिम छोर तक संपर्क मुहैया कराना होगा।
सिंधिया ने आगे कहा कि भारत में आज हेलीकॉप्टरों की उपलब्धता नहीं के बराबर है। भारत के पास 130-140 सिविल हेलीकॉप्टर हैं और अगर आप एक विकसित देश को देखें, तो उसके पास हजारों की संख्या में हेलीकॉप्टर हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए हमें एक ऐसी नीति लानी होगी, जो हेलीकॉप्टरों के लिए वृद्धि को गति दे, खासतौर से पूर्वोत्तर और द्वीपीय राज्यों में… मैं इस पर काम कर रहा हूँ।’’ उन्होंने कहा कि भारत में विमानन क्षेत्र वृद्धि के शुरुआती चरण में है और यह क्षेत्र हमारे देश के परिवहन की रीढ़ बनने जा रहा है।

अब रेलवे स्टेशनों पर पेटीएम से कटेंगे जनरल टिकट

नयी दिल्ली । रेल यात्रा करने के लिए टिकट कटाना जरूरी होता है। टिकट कटाने के लिए अब जेब में कैश ले कर चलने की आवश्यकता नहीं रहेगी। क्योंकि अब पेटीएम के जरिए भी चालू टिकट या प्लेटफार्म टिकट कटाया जा सकेगा। इसके लिए पेटीएम ने आइआरसीटीसी के साथ एक समझौता किया है।
पेटीएम ब्रांड चलाने वाली कंपनी वन97 कम्‍युनिकेशंस लिमिटेड (ओसीएल) ने इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्‍म कॉर्पोरेशन (आईआरसीटीसी) से एक समझौता किया है।
यूं तो रेलवे के रिजर्व टिकट की खरीदारी के लिए क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और डिजिटल भुगतान के कुछ अन्य साधनों से हो सकती है। लेकिन जनरल या चालू टिकट खरीदने के लिए लोगों को कैश ही देना पड़ता है। कुछ स्टेशनों पर ऑटोमैटिक टिकट वेंडिंग मशीनों (एटीवीएम) के जरिए डिजिटल टिकटिंग की सेवाएं मुहैया कराई जाती है। लेकिन इसके लिए भुगतान के साधन सीमित थे। अब इस मशीन पर पेटीएम से भी भुगतान हो सकता है। मतलब कि जेब में कैश रखने की कोई आवश्यकता नहीं है।

क्यूआर कोड से होगा भुगतान
जब पैसेंजर एटीवीएम से जनरल टिकट खरीदेंगे तो उन्हें भुगतान के लिए विकल्प आएगा। उस समय स्क्रीन पर आए क्यूआर कोड को स्कैन कर पेटीएम से भुगतान किया जा सकेगा। इससे यात्री ट्रेन से यात्रा करने के लिए बिना रिजर्वेशन वाले टिकट और प्‍लेटफॉर्म टिकट तो खरीद की सकेंगे, वे चाहें तो अपने एमएसटी को भी रिन्यू करा सकेंगे। पेटीएम यात्रियों को भुगतान के विभिन्‍न विकल्‍प जैसेकि पेटीएम यूपीआइ, पेटीएम वॉलेट, पेटीएम पोस्‍टपेड (बाय नाउ, पे लेटर), नेट बैंकिंग, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिये भुगतान करने विकल्प प्रदान करेगा।

लाइव हो गया है सिस्टम
पेटीएम की तरफ से मिली जानकारी के अनुसर नया क्विक रिस्‍पॉन्‍स (क्यू आर) कोड-आधारित डिजिटल भुगतान समाधान देश भर के रेलवे स्‍टेशनों पर लगी सभी एटीवीएम मशीनों पर लाइव हो गया है। मतलब कि अब कोई भी यात्री रेलगाड़ियों के टिकट कटाने के लिए पेटीएम का उपयोग कर सकता है। सबसे पहले अपने नजदीकी रेलवे स्‍टेशन पर स्थित एटीवीएम पर टिकट बुक कराने के लिए रूट चुनें या रिचार्ज के लिए स्‍मार्ट कार्ड का नंबर दर्ज करें।
इसके बाद पेटीएम को भुगतान विकल्‍प के तौर पर चुनें। फिर लेनदेन को आसानी से पूरा करने के लिए एटीवीएम पर प्रदर्शित क्‍यूआर कोड स्‍कैन करें। स्कैन के बाद पेमेंट होते ही चुनाव के आधार पर, फिजिकल टिकट जनरेट हो जाएगा या फिर स्‍मार्ट कार्ड रिचार्ज हो जाएगा।

पटना समेत बिहार के 38 में से 31 जिलों का पानी पीने लायक ही नहीं : रिपोर्ट

पटना: ग्रामीण बिहार के बड़े हिस्से में भूजल में बड़े पैमाने पर रासायनिक प्रदूषण है। यहां पीने के पानी का स्रोत ही ठीक नहीं है। साथ ही ये आबादी के लिए स्वास्थ्य को लेकर गंभीर जोखिम पैदा कर रहा है। बिहार की राज्य आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट (ईएसआर) 2021-22 में इस बात की जानकारी दी गई है। बड़ी बात ये है कि जिन जिलों का पानी पीने के लिए ठीक नहीं है उनमें राजधानी पटना तक शामिल हैं। इन जिलों के पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की मात्रा काफी ज्यादा है।
इन जिलों का पानी पीने लायक नहीं
हाल ही में विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि 38 में से 31 जिलों के ग्रामीण इलाकों में भूजल आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन से प्रभावित है। प्रभावित जिलों में बेगूसराय, भागलपुर, भोजपुर, बक्सर, दरभंगा, कटिहार, खगड़िया, लखीसराय, मुंगेर, समस्तीपुर, सारण , सीतामढ़ी , पटना, वैशाली, औरंगाबाद, बांका, भागलपुर, गया , जमुई, कैमूर, मुंगेर, नालंदा, रोहतास, शेखपुरा, नवादा और अररिया शामिल हैं।
रिेपोर्ट में कहा गया है कि बिहार 38 में से 31 जिलों के ग्रामीण इलाकों में भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की भारी मात्रा स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर रही है। 30,272 ग्रामीण वार्डों में भूजल में रासायनिक संदूषण यानि पानी में है। गंगा के किनारे स्थित 14 जिलों में कुल 4,742 ग्रामीण वार्ड विशेष रूप से आर्सेनिक से प्रभावित हैं। इसी रिपोर्ट के मुताबिक 11 जिलों के 3,791 ग्रामीण वार्डों में पेयजल स्रोत फ्लोराइड संदूषण से प्रभावित हैं। नौ कोसी बेसिन जिलों में और अन्य जिलों में कुछ क्षेत्रों में अतिरिक्त आयरन पाया गया है। दूषित पानी के सेवन से त्वचा, लीवर, किडनी और अन्य जल जनित रोग होते हैं।
रिपोर्ट में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) के जरिए बिहार के जल गुणवत्ता मानचित्रण से संबंधित आंतरिक मूल्यांकन और निष्कर्षों का उल्लेख किया गया है। इन प्रभावित जिलों में लोगों को सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार विभाग ने गहरे पानी के बोरवेल खोदना शुरू कर दिया है। पीएचईडी सचिव जितेंद्र श्रीवास्तव ने पीटीआई से कहा ‘हम स्थिति की गंभीरता को समझते हैं, जिसके कारण विभाग सतही जल और भूजल आधारित योजनाओं के मिश्रण के लिए गया है।’ उन्होंने कहा कि पाइप से जलापूर्ति योजना शुरू करने के अलावा, विभाग ने राज्य स्तरीय परीक्षण और अंशांकन प्रयोगशाला (एनएबीएल) के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड के माध्यम से पानी की गुणवत्ता की निगरानी और निगरानी को भी मजबूत किया है।

रहस्मयी पत्थर का खंभा निकला नटराज की सबसे बड़ी मूर्ति

हजारों साल तक दबा रहा खंडहर में 
विदिशा : एमपी के विदिशा जिले में एक रहस्मयी पत्थर का खंभा लगभग 1500 साल पुरानी भगवान शिव की सबसे मूर्तियों में से एक बन गया है। इसे रहस्मय तरीके से सीधा रखने की जगह जमीन पर छोड़ दिया गया था। महाशिवरात्रि से एक दिन पहले इंटेक के राज्य संयोजक मदन मोहन उपाध्याय ने कहा कि यह दुनिया की सबसे बड़ी नटराज मूर्ति है। उन्होंने कहा कि इन खंडहरों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयर्टन स्थल में बदलने की काफी संभावनाएं हैं।
उपाध्याय ने कहा कि इंटेक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज) प्राचीन स्थल का दस्तावेजीकरण पूरा कर लिया है औऱ जल्द ही अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। यह इलाका गंजबासौदा से 15 किमी और भोपाल से 140 किमी है। इसके साथ ही विदिशा जिला प्रशासन, मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग और राज्य पुरातत्व विभाग भी इस समृद्ध विरासत के संरक्षण के लिए काम कर रहा है।
उन्होंने ने बताया है कि नौ मीटर लंबी और चार मीटर चौड़ी विशाल मूर्ति एक ही चट्टान से बनाई गई थी। इंटेक के संयोजक ने कहा कि यह इतना बड़ा है कि इसकी छवि को एक फ्रेम में तब तक कैद नहीं किया जा सका, जब तक कि इंटेक ने ड्रोन का इस्तेमाल नहीं किया, जिससे पहली बार पता चला कि यह एक नृत्य करने वाला शिव की प्रतिमा है।
दरअसल, पिछले एक-दो साल से इंटेक 1059 ईस्वी के आसपास परमार राजा के बसाए शहर उदयपुर की साइट पर काम कर रहा है। उदयपुर के खंडहरों में इतिहास की कई परतें दफन हैं। नटराज की मूर्ति इन खंडहरों से पहले की है। उपाध्याय ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि गांव, महलों, मंदिरों, जलाशयों, गढ़ों, किलेबंदी की दीवार और शहर के द्वार और असंख्या स्मारकों से जुड़े बुनियादी ढांचे, उदयपुर के बारे में बहुत कुछ कहते हैं।
नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है यह क्षेत्र
उन्होंने कहा कि यह स्थान पूरे मध्यप्रदेश में नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के लिए जाना जाता है, जो एक एएसआई संरक्षित स्मारक है जो विशेष रूप से महाशिवरात्रि पर बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। शिलालेखों में भगवान शिव के नीलकंठेश्वर मंदिर सहित इस स्थान के निर्माण की कथा लिखी गई है, जो अब ग्वालियर संग्रहालय में सुरक्षित है।
कई राज हैं दफन
वहीं, कुछ हजार हेक्टेयर में फैले इस खंडहर में इतिहास की कई परतें हैं जो अलग-अलग समय के दौरान परमार, गोंड और मराठों सहित विभिन्न राजवंशों के वर्चस्व को दर्शाती है। उपाध्याय ने कहा कि यह रहस्य की बात है कि उदयपुर में नटराज को एक खड़ी शिव मूर्ति के रूप में क्यों स्थापित नहीं किया जा सका, इस पर शोध करने की जरूरत है।

67 प्रतिशत लड़कियां लॉकडाउन में ऑनलाइन कक्षाओं में नहीं हुई शामिल: रिपोर्ट

नयी दिल्ली । दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार और तेलंगाना की शहरी झुग्गियों में किये गये एक सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है कि कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में लगाये गये लॉकडाउन के दौरान 67 प्रतिशत लड़कियां ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हुईं। गैर सरकारी संगठन ‘सेव द चिल्ड्रन’ द्वारा पिछले साल फरवरी में किये गये अध्ययन में यह भी पाया गया है कि 10 से 18 वर्ष के बीच की 68 प्रतिशत लड़कियों ने इन राज्यों में स्वास्थ्य और पोषण सुविधाएं पाने में चुनौतियों का सामना किया। दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार और तेलंगाना, देश के चार भोगौलिक क्षेत्रों–पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इन राज्यों का चयन एक समग्र मापदंड के जरिये किया गया, जिनमें कोविड-19 के मामले, बाल लिंगानुपात, 18 वर्ष की आयु से पहले लड़कियों का विवाह, पढ़ाई बीच में छोड़ने का वार्षिक औसत और 15 से 24 वर्ष की आयु की लड़कियों एवं महिलाओं द्वारा स्वच्छता संबंधी सुविधाओं का उपयोग शामिल है। प्रत्येक राज्य में, दो जिलों या शहरों का चयन किया गया। ‘विंग्स 2022 : वर्ल्ड ऑफ इंडियाज गर्ल्स :स्पोटलाइट ऑन एडोलेसेंट गर्ल्स एमिड कोविड-19’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 के लॉकडाउन के दौरान संक्रमण की आशंका, स्कूलों एवं स्वास्थ्य केंद्रों का बंद हो जाना, स्वास्थ्य कर्मियों की अनुपलब्धता ने किशोरियों के लिए स्वास्थ्य तथा पोषण सुविधाओं तक पहुंच को मुश्किल कर दिया था।

इसमें कहा गया है कि लॉकडाउन के बाद 51 प्रतिशत किशोरियों के समक्ष स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने में चुनौतियां बनी रही। रिपोर्ट में कहा गया है, ”चार राज्यों में, प्रत्येक तीन में से एक लड़की ही लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल हुई। चार में तीन माताओं (73 प्रतिशत) ने संकेत दिया कि महामारी ने उनकी बेटी की पढ़ाई को अत्यधिक प्रभावित किया।” इसमें कहा गया है कि स्कूलों के बंद हो जाने के चलते, हर पांच में से दो लड़कियों (42 प्रतिशत) से स्कूल ने संपर्क नहीं किया, जैसा कि माताओं ने दावा किया है।

लॉकडाउन ने खेल-कूद और रचनात्मक गतिविधियों को घटा दिया क्योंकि स्कूल वे जगह हैं जहां लड़कियां अध्ययन से इतर गतिविधियों में शामिल होती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि हर दो में से एक लड़की ने कहा कि उन्हें अपने भाई-बहन और दोस्तों के साथ स्कूल आने-जाने की कमी खली। इसमें यह भी कहा गया है कि महामारी के दौरान नौकरियां चली जाने और परिवार की आय घटने के चलते बाल विवाह की आशंका भी बढ़ी। इसमें कहा गया है, ”हर सात में से एक मां को लगता है कि महामारी ने लड़कियों की निर्धारित उम्र सीमा से पहले विवाह का जोखिम बढ़ा दिया।”

मुद्दा समानता का : 87 प्रतिशत भारतीयों को चाहिए आज्ञाकारी पत्नी

महिला दिवस मनाने से क्या सोच बदल सकती है या बदल रही है। कम से कम भारत में तो ऐसा नहीं लगता, पितृसत्तात्मक सोच वाले समाज में मानसिक तौर पर समानता और सम्मान अभी भी यूटोपिया है और इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि महिलाएँ भी इससे मुक्त नहीं हैं। यह हम नहीं कह रहे बल्कि एक सर्वेक्षण कह रहा है। अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा करवाए गये सर्वेक्षण में यह खुलासा किया गया है।

रिपोर्ट 29,999 भारतीय वयस्कों के बीच 2019 के अंत से लेकर 2020 की शुरूआत तक किये गये अध्ययन पर आधारित है। रिपोर्ट में कहा गया है, भारतीय वयस्कों ने तकरीबन सार्वभौम रूप से कहा कि महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार होना जरूरी है। हर 10 में आठ लोगों ने कहा कि यह बहुत जरूरी है. हालांकि, कुछ ऐसी परिस्थितियों में भारतीयों को लगता है कि पुरुषों को वरीयता मिलनी चाहिए. इसमें कहा गया है, करीब 80 प्रतिशत इस विचार से सहमत हैं जब कुछ ही नौकरियां है तब पुरुषों को महिलाओं की तुलना में नौकरी करने का अधिक अधिकार है।

राजनेता के रूप में भारतीयों को स्वीकार हैं महिलाएं

रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 10 में नौ भारतीय (87 प्रतिशत) पूरी तरह या काफी हद तक इस बात से सहमत हैं कि पत्नी को हमेशा ही अपने पति का कहना मानना चाहिए। इसमें कहा गया है, हर परिस्थिति में पत्नी को पति का कहना मानना चाहिए, इस विचार से ज्यादातर भारतीय महिलाओं ने सहमति जताई। हालांकि, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जैसी नेताओं का जिक्र करते हुए इसमें कहा गया है कि भारतीयों ने राजनेता के तौर पर महिलाओं को व्यापक स्तर पर स्वीकार किया है।

अधिकतर भारतीय एक बेटा और एक बेटी के पक्ष में

अध्ययन के मुताबिक, ज्यादातर पुरुषों ने कहा कि महिलाएं और पुरुष समान रूप से अच्छे नेता होते हैं. वहीं, सिर्फ एक चौथाई भारतीयों ने कहा कि पुरूषों में महिलाओं के तुलना में बेहतर नेता बनने की प्रवृत्ति होती है। रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि ज्यादातर भारतीयों का कहना है कि पुरुष और महिलाओं को कुछ पारिवारिक जिम्मेदारी साझा करनी चाहिए, वहीं कई लोग अब भी परंपरागत लैंगिक भूमिकाओं का समर्थन करते हैं। जहां तक बच्चों की बात है, भारतीय इस बारे में एक राय रखते हैं कि परिवार में कम से एक बेटा (94 प्रतिशत) और, एक बेटी (90 प्रतिशत) होनी चाहिए।

माता-पिता की अंत्येष्टि की जिम्मेदारी बेटों की

ज्यादातर भारतीयों (63 प्रतिशत) का कहना है कि माता-पिता की अंत्येष्टि की जिम्मेदारी प्राथमिक रूप से बेटों की होनी चाहिए। मुस्लिम में 74 प्रतिशत, जैन (67 प्रतिशत) और हिंदू में 63 प्रतिशत लोगों का कहना है कि माता-पिता के अंतिम संस्कार की प्राथमिक जिम्मेदारी बेटों की होनी चाहिए। वहीं, 29 प्रतिशत सिखों, 44 प्रतिशत ईसाइयों और 46 प्रतिशत बौद्ध धर्मावलंबी अपने बेटों से यह उम्मीद करते हैं। साथ ही, उनका यह भी कहना है कि माता-पिता की अंत्येष्टि की जिम्मेदारी बेटे और बेटी, दोनों की होनी चाहिए।

यह है स्वदेशी ब्रांड्स, जिनको आप विदेशी समझते रहे हैं

आपने अक्सर लोगों को कहते सुन होगा कि ब्रांड में क्या रखा है। यानी इसमें ऐसा क्या खास होता है जो इसे दूसरों से अलग बनाता है? इस बात का जवाब यदि एक शब्द में दिया जाए तो वह है ‘भरोसा’। एक ब्रांडेड उत्पाद ग्राहकों को विश्वास की भावना प्रदान करता है। ग्राहक उसे खरीदते और प्रयोग में लाते समय आश्वासन की भावना महसूस करते हैं। उनका मानना होता है कि वे उस सामान के लिए जो कीमत चुका रहे हैं वह इसके लायक है।

वुडलैंड

इस नाम को सुनने के बाद आपको थोड़ी हैरानी अवश्य हो रही होगी। लेकिन, हकीकत यही है। ग्राहकों में बीते कई वर्षों से अपनी पहचान कायम रखने वाले इस ब्रांड की मांग आज भी उतनी ही है जितनी पहले थी। अपने नाम से विदेशी लगने वाले इस ब्रांड की जड़ें वास्तव में स्वदेशी हैं।

वुडलैंड की पैरेंट कंपनी का नाम एको ग्रुप है। इसकी स्थापना 1980 के दशक में कनाडा के क्यूबेक में अवतार सिंह ने की थी। उस समय, एरो ग्रुप ने कनाडा और रूस के लिए शीतकालीन जूतों का निर्माण किया था। अवतार के बेटे हरकीरत सिंह, जो अब वुडलैंड के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, कहते हैं, “मेरे पिता 1970 के दशक से जूतों के व्यवसाय में थे। हमारे पास टेनरियां और कारखाने थे,जहां हम USSR बाजार को पूरा करने के लिए जूते बनाते थे। लेकिन उस समय हमारे पास कोई ब्रांड नहीं हुआ करता था। यह पूरा हुआ 1980 के दशक में, जब हमने कंपनी को लॉन्च किया और एक समृद्ध तरीके से बाजार में प्रवेश किया।” 1990 के दशक तक एरो ग्रुप का कारोबार अपने चरम पर था जब सोवियत संघ के विघटन के साथ रूसी बाजार फिसल गया। हरकीरत याद करते हुए बताते हैं, “यह हमारे लिए एक कठिन दौर था क्योंकि हमारा बड़ा बाजार हिस्सा रूस में था लेकिन इसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। हालांकि हम यूरोप और कनाडा में मौजूद थे, हमें एक और बढ़ते बाजार की तलाश करने की जरूरत थी।” 1992 में, अवतार और हरकीरत ने विकासशील बाजार की स्थिति और विशेष रिटेल आउटलेट के साथ ही मॉल कल्चर में प्रवेश करने के बाद व्यापार भारत में लाने का फैसला किया।  एरो ग्रुप तहत, दोनों ने भारतीय बाजार में हाथ से सिले हुए पहले चमड़े के जूतों में से एक को पेश करके वुडलैंड ब्रांड लॉन्च किया, जो देश में व्यापक रूप से लोकप्रिय हो गया।

हाइडसाइन
पढ़ाई पूरी करने और पुदुचेरी से लौटने के बाद दिलीप ने शौक के तौर पर चमड़े के बैग बनाना शुरू किया। कारखाने में काम करते समय उन्होंने चमड़े के बैग बनाने से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारी प्राप्त की थी। दिलीप ने चेन्नई से चमड़े की सोर्सिंग शुरू की और ऑरोविले में हाथ से तैयार किए गए चमड़े के बैग बनाने लगे।

दिलीप को बताते हैं, “चमड़े के कारखाने में छोटे कार्यकाल ने चमड़े को मेरा आजीवन जुनून बना दिया। हालांकि, लेदर बैग्स को डिजाइन करने और बनाने से मैं बिजनेसमैन नहीं बन पाया। मैं उस समय प्रोफिट एण्ड लॉस स्टेटमेंट को पढ़ना भी नहीं जानता था।” लेकिन वह इससे अपनी आंत्रप्रेन्योरशिप की भावना को कम नहीं होने देने वाले थे। दिलीप ने 25,000 रुपये इकट्ठे किए। एक मोची को काम पर रखा और हाइडसाइन नाम से कंपनी की शुरुआत की। उस समय कारखाने में केवल दो-व्यक्ति ही काम करते थे। वे कहते हैं, “हाइडसाइन का जन्म बड़े पैमाने पर बाजार में चमड़े के बैग की यूनिफॉर्म और सिंथेटिक फ्लेटनेस से अलग होने की आवश्यकता से हुआ था। यह पेंट किए गए चमड़े के प्रति मेरी अरुचि को मजबूत करने जैसा था जो बिल्कुल भी स्वाभाविक नहीं था।”

साल 1984 में हाइडसाइन ने यूके में अपना पहला डिपार्टमेंटल स्टोर जोन लेविस में शुरू किया, जहाँ इसकी पूरी प्रोडक्ट रेंज का स्टॉक किया गया था। जोन लेविस ने ब्रांड के बदलाव को एक वैकल्पिक ब्रांड से एक वाणिज्यिक और मुख्यधारा के ब्रांड में बदलने का संकेत दिया।

1988 तक हाइडसाइन ने चमड़े की जैकेट और लंबी पैंट के साथ कपड़ों में कदम रखा था, क्योंकि ब्रिटेन के बाजार में दिलीप के चमड़े के बैग पर्याप्त नहीं थे। देखते ही देखते हाइडसाइन ने लंदन में 700 स्टोर्स बना लिए थे। दिलीप बताते हैं, “1990 में, हमने पुदुचेरी में एक कारखाना स्थापित किया, लेकिन अभी भी भारतीय बाजार में प्रवेश करने के लिए तैयार नहीं थे। आखिरकार भारत में पहले कुछ हाइडसाइन स्टोर खोलने में नौ साल और लग गए।”

अगले कुछ वर्षों में, दिलीप ने पुदुचेरी और सिक्किम में एक और उत्पादन इकाई खोली। उन्होंने चेन्नई में भी एक टेनरी स्थापित की। 2020 तक दिलीप की कंपनी 170 करोड़ रुपये का सकल वार्षिक राजस्व कमाया और वर्तमान में लगभग 1,400 कर्मचारी काम करते हैं। यह चमड़े के सामान बनाने से लेकर एक लाइफस्टाइल ब्रांड के रूप में विकसित हुआ है, जिसमें एक्सक्लूसिव स्टोर्स, एयरपोर्ट स्टोर्स, शॉप-इन-शॉप्स, मल्टी-ब्रांड आउटलेट्स और ईकॉमर्स प्लेटफॉर्म हैं। यह 102 एक्सक्लूसिव ब्रांड आउटलेट और 112 लार्ज फॉर्मेट डिपार्टमेंटल स्टोर में मौजूद होने का दावा करता है।

हाइडसाइन के प्रोडक्ट पोर्टफोलियो में महिलाओं के बैग, पुरुषों के बैग, पर्स, बेल्ट, जूते, धूप का चश्मा, सामान और जैकेट शामिल हैं। महिलाओं के बैग और पुरुषों के बैग खूब बिकते हैं।

कलरबार
कलरबार, जो भारत में मुख्यत: महिलाओं के ब्यूटी प्रोडक्ट बनाने वाले ब्रांड्स में से एक है। दिल्ली का यह ब्रांड तीन पीढ़ियों पुराने पारिवारिक व्यवसाय मोदी इंटरप्राइजेज के अंतर्गत आता है। कलरबार की फिलॉसफी जेंडर-न्यूट्रल प्रोडक्ट होना और इसके संपर्क में आने वाले सभी लोगों की विविधता का जश्न मनाना है। ब्रांड की क्रूरता मुक्त प्रोडक्ट रेंज इसे पूरा करती है।

मोदी इंटरप्राइजेज के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर समीर मोदी कहते हैं, “हमारा मानना है कि परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर है और इस तरह की सोच ने हमें बहुत ही कम समय में भारत में तीसरा सबसे बड़ा ब्यूटी ब्रांड बना दिया है।” मोदी एंटरप्राइजेज के सफर की शुरुआत 1932 में हुई थी जब गुजरमल मोदी (समीर के दादा जी ) ने वनस्पति ऑयल बनाने का काम शुरू किया, जोकि एक प्रकार से खाना पकाने के काम आता है। हालांकि, चीनी के घरेलू उत्पादन को तेजी से शुरू करने के प्रयास में तत्कालीन सरकार ने आयात शुल्क में बड़ी वृद्धि की घोषणा की। इसलिए उन्होंने एक चीनी मिल शुरु करने के चलते वनस्पति तेल के विचार को छोड़ दिया।

संघर्षों का अनुभव करते हुए और पहले व दूसरे विश्व युद्ध के कठिन समय से गुजरने के बाद, उन्होंने 1933 और 1972 के बीच 27 उद्योगों की स्थापना की। साथ ही लोगों की मदद करने के लिए कई धर्मार्थ ट्रस्ट, अस्पताल, कॉलेज और स्कूल भी खोले। कलर बार मोदी एंटरप्राइजेज का एक हिस्सा है जहां ब्रांड का प्रोडक्शन और पैकेजिंग फ्रांस, जर्मनी, इटली, कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका में यूएस, ईयू, यूके और जापान FDA मानकों के अनुरूप होता है और ISO सर्टिफाइड है।

कलरबार विशेषकर प्रीमियम कैटेगरी के ग्राहकों को लक्षित करता है अर्थात जो लोग फैशनेबल और किफ़ायती चीजों के शौकीन हैं और जिन्हें अच्छे प्रोडक्ट्स की तलाश हमेशा रहती है। इसके प्राइम लोकेशंस में 100 से ज्यादा एक्सक्लूसिव रिटेल आउटलेट हैं। यह 1,200 से अधिक ब्यूटी आउटलेट्स, दुकानों और कॉस्मेटिक स्टोर्स में भी उपलब्ध है। अमेजन, नायका, मिन्त्रा पर इसके उत्पाद उपलब्ध हैं।

मॉन्टे कार्लो
यदि आप उत्तर या पूर्वी भारत में रहते हैं, तो संभवतः आपके पास मॉन्टे कार्लो का जैकेट, स्वेटर या कार्डिगन जरूर होगा। यदि नहीं तो आपने खरीदारी करते समय इसके आउटलेट या विंटर वियर प्रोडक्ट्स के बारे में कभी न कभी देखा या सुना अवश्य होगा। इसके विंटर वियर प्रोडक्ट्स पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और अन्य राज्यों में हजारों स्टोरों पर बेचे जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मॉन्टे कार्लो भारत का पहला संगठित फैशन परिधान ब्रांड था।
इसकी विरासत और वंश, जो स्वतंत्रता के बाद के भारत में बना है, बहुतों को नहीं पता है। इसकी अविश्वसनीय कहानी लुधियाना, पंजाब से शुरू हुई।  लुधियाना में मोंटे कार्लो का इतिहास ओसवाल वुलेन मिल्स के साथ शुरू हुआ, जिसे 1949 में स्वतंत्रता के बाद स्थापित किया गया था। मिल ने विनिर्माण और बिक्री के लिए एक अधिक संगठित दृष्टिकोण बनाने के लिए ऊन उद्योग के हितधारकों को एक साथ लाना शुरू किया। यह अंततः भारत में ऊनी धागों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बन गया।
1984 में, मॉन्टे कार्लो को ओसवाल वुलेन मिल्स के तहत एक ब्रांड के रूप में लॉन्च किया गया था और भारत में पहले संगठित फैशन परिधान ब्रांडों में से एक होने का प्रतिष्ठित खिताब अपने नाम किया।
मॉन्टे कार्लो के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर ऋषभ ओसवाल कहते हैं, “हम पहले से ही ऊनी धागों के व्यवसाय में थे और विभिन्न उद्योगों के लिए प्रोडक्ट्स भी बना रहे थे। यह सब तब था जब हमने उद्योग को संगठित करने की आवश्यकता और मांग को समझा, जिसके बाद भारत को अपना पहला रेडीमेड कपड़ों का ब्रांड दिया।”

मॉन्टे कार्लो के लॉन्च होने के कई साल बाद यह धीरे-धीरे ऑल-सीज़न ब्रांड बन गया जिसे हम सभी जानते हैं। ऋषभ आगे कहते हैं, “भारत में लॉन्च होने के बाद ब्रांडेड कपड़ों के उद्योग के रूप में शुरुआत एक महत्वपूर्ण कदम था। तब से हम कपड़ों और फैशन उद्योग की लगातार बढ़ती मांगों को पूरा कर रहे हैं।” मॉन्टे कार्लो – बर्फी, मैरी कॉम, भाग मिल्खा भाग और स्टूडेंट ऑफ द ईयर जैसी ब्लॉकबस्टर बॉलीवुड फिल्मों के लिए क्लोथिंग पार्टनर भी रह चुका है।

दा मिलानो
निफ्ट दिल्ली से ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद साहिल मलिक ने लंदन में मार्केटिंग कोर्स करने का फैसला किया। वहां, वह प्रीमियम हैंडबैग स्टोर्स से काफी प्रभावित हुए और भारत में इसे शुरु करने का विचार किया।
साहिल  बताते हैं, “तब तक भारत में महिलाओं के लिए कोई प्रीमियम हैंडबैग ब्रांड स्टोर नहीं था और उपभोक्ताओं को लग्जरी हैंडबैग रखने की अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता था।”
तीसरी पीढ़ी के इस उद्यमी की हमेशा से ही फैशन और एक्सेसरीज में गहरी दिलचस्पी थी। इसलिए, उन्होंने भारत में अच्छे ग्राहकों की डिमांड को पूरा करने के लिए एक लक्ज़री हैंडबैग ब्रांड शुरू करने का फैसला किया और 2000 में दा मिलानो लॉन्च किया।
आज दा मिलानो के 75 स्टोर हैं जिनमें 15 एयरपोर्ट स्टोर शामिल हैं और इसने वित्त वर्ष 19-20 में 143 करोड़ रुपये का कारोबार किया। साहिल कहते हैं कि उनके स्टोर पूरे भारत में स्थित हैं, लेकिन उनके ग्राहक मुख्य रूप से उत्तर और पूर्वी भारत से हैं। 2013 में, दा मिलानो ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रवेश किया और वर्तमान में काठमांडू, कतर, बहरीन और दुबई में मौजूद है। पिछले साल इसने दुबई मॉल में एक स्टोर भी खोला था।

पीटर इंग्लैंड

पीटर इंग्लैंड की शुरुआत मथुरा फैशन एंड लाइफ़स्टाइल ने की थी। यह कंपनी आदित्य बिरला फैशन एंड लाइफ़स्टाइल की डिवीजन है। भारत में पुरुषों का प्रधान का जाना पहचाना नाम है। आयरलैंड में स्थापित इस कंपनी का मालिकाना हक भी आदित्य बिरला ग्रुप के पास है. 1997 में इसे मधुरा फैशन एंड लाइफस्टाइल ने शुरू किया था।

(साभार – योर स्टोरी)