Monday, July 21, 2025
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कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र का सहयोग चाहती है राज्य सरकार

कोलकाता । मर्चेन्ट्स चेम्बर ऑफ कॉमर्स द्वारा हाल ही में एग्रीकल्चर कनक्लेव 2022 का आयोजन किया गया। कनक्लेव का उद्घाटन राज्य के कृषि मंत्री शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने किया। अपने वक्तव्य में उन्होंने कृषकों के लिए राज्य द्वारा संचालित गतिविधियों की चर्चा की एवं कृषकों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में लाने की बात कही। उन्होंने कहा कि कृषकों के स्थायी विकास के लिए निजी क्षेत्रों को भी आगे आना चाहिए। तटीय इलाकों में राज्य सरकार ने 6 प्रकार के बीज विकसित किये हैं, साथ ही टिश्यू कल्चर एवं कृषि क्षेत्र में नयी तकनीक लाने पर जोर दे रही है। इसके साथ ही कृषि क्षेत्र में उच्च एवं अत्याधुनिक तकनीक के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है। कृषि क्षेत्र में फसलों की विविधता के सिए 16 जिलों की पहचान की गयी है। राज्य के कृषि विपणन मंत्री विप्लव मित्रा ने कहा कि राज्य सरकार घर – घर तक ताजा सब्जियाँ पहुँचाने का काम सुफल बांग्ला के तहत कर रही है। इस परियोजना के तहत 63 मोबाइल वैन, 3 हब, 500 रिटेल आउटलेट सारे राज्य में स्थापित किये गये हैं। राज्य सरकार ने ई परमिट प्रणाली भी आरम्भ की है। अब तक ई -नाम पोर्टल पर 18 बाजारों का उद्घाटन हो चुका है। कृषि निर्यात क्षेत्र का उद्देश्य कृषकों की आय को दुगना करना है। राजारहाट में ऑरगेनिक हाट, पश्चिम मिदनापुर के एगरा स्थित पानीपारुल में ग्रीन चिली हाट, आसनसोल में टर्मिनल मार्केट योजना की जानकारी भी उन्होंने दी। स्वागत भाषण में एमसीसीआई के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट ललित बेरीवाला राज्य सरकार के प्रयासों की सराहना की। उद्घाटन सत्र को नाबार्ड पश्चिम बंगाल के महाप्रबंधक कमलेश कुमार, कृषि रसायन एक्सपोर्ट के प्रबन्ध निदेशक अतुल चूड़ीवाल ने भी सम्बोधित किया। धन्यवाद एमसीसीआई के कृषि एवं हॉर्टिकल्चर मामलों के चेयरमैन सुरेश अग्रवाल ने दिया।

कोटाक इन्वेस्टमेंट का कोटाक चेरी बाजार में

कोलकाता । कोटक महिंद्रा बैंक की सहायक कंपनी कोटक इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स लिमिटेड ने ‘कोटक चेरी’ – ए क्यूरेटेड टेक लेड इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट प्लेटफॉर्म की घोषणा की। कोटक चेरी को अनुभवी निवेश प्रबंधकों द्वारा समर्थित एक मजबूत डिजिटल ऐप के माध्यम से उपयोगकर्ताओं को समग्र निवेश समाधान प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। कोटक चेरी स्टॉक, बॉन्ड, म्यूचुअल फंड, फिक्स्ड डिपॉजिट और नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) से लेकर एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफ) जैसे प्रगतिशील निवेश के अवसरों के लिए निवेश समाधान प्रदान करता है।
कोटक चेरी के सीईओ डिजाइनेट श्रीकांत सुब्रमणियन ने कहा, “ हमारा मानना ​​है कि निवेश के मामले में गहन डोमेन अनुभव मायने रखता है। यह वन स्टॉप प्लेटफॉर्म है जो लोगों को विशेषज्ञों की तरह निवेश करने में मदद करेगा। चेरी के पास जल्द ही पूर्ण ओपन आर्किटेक्चर होगा, जहां ऐप उपयोगकर्ता जल्द ही अपनी पसंद के प्रदाताओं के साथ अपने बैंकिंग और ब्रोकिंग संबंधों को बनाए रखने में सक्षम होंगे, जबकि अभी भी हमारे डोमेन अनुभव और क्यूरेटेड सेवाओं की पूरी शक्ति से लाभान्वित होंगे।
कोटक चेरी एक ‘डू इट योरसेल्फ’ निष्पादन प्लेटफॉर्म के रूप में सक्षम है। आगे बढ़ते हुए, कोटक चेरी की उच्च प्रदर्शन वाली टीम ग्राहकों को स्टॉक बास्केट, रोबो एडवाइजरी, जीवन, चिकित्सा, सामान्य बीमा जैसे वित्तीय जीवन-स्तरीय समाधान भी प्रदान करेगी और अंतर्राष्ट्रीय निवेश को सक्षम करेगी। कोटक चेरी की तकनीक चपलता और सहयोग के सिद्धांतों पर आधारित है, जो पैमाने और लचीलापन के लिए बनाई गई है।

एमसीसीआई ने आयोजित किया पूँजी बाजार के महत्व पर विशेष ई -सत्र

कोलकाता । मर्चेंट्स चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अनंत बरुआ के साथ लघु और मध्यम उद्यमों और स्टार्ट-अप के वित्तपोषण में पूंजी बाजार के महत्व पर एक विशेष ई-सत्र की मेजबानी की।
चर्चा एमएसएमई और स्टार्टअप को स्थिरता के लिए औपचारिक वित्तीय सहायता की आवश्यकता के आसपास केंद्रित थी। सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अनंत बरुआ ने कहा कि एमएसएमई खंड में नए युग की कंपनियों के लिए धन जुटाने के लिए वेंचर डेट एक अच्छा वित्तीय उपकरण है, जो इक्विटी को कम करने के लिए तैयार नहीं है। उद्यम ऋण का दोहन करने के लिए, एसएमई को उद्यम पूंजी समर्थित कंपनियों की आवश्यकता है और 111 कंपनियों ने पिछले साल उद्यम ऋण के माध्यम से धन जुटाया।
उन्होंने आगे उल्लेख किया कि 10,000 करोड़ रुपये के कोष के साथ केंद्र के फंड ऑफ फंड्स और एसएमई को फंड करने के लिए आत्मनिर्भर भारत फंड को भी डिजाइन किया गया है। हालांकि फंड ऑफ फंड एमएसएमई को सीधे पूंजी नहीं देगा, यह ए और बी वैकल्पिक निवेश फंड (एआईएफ) की श्रेणियों में धन का संचार करेगा जो एसएमई को इक्विटी प्रदान करेगा।
उन्होंने बताया कि सेबी के इश्यू ऑफ कैपिटल एंड डिस्क्लोजर रेगुलेशन ने एसएमई को सीधे जोखिम पूंजी जुटाने और असंगठित से संगठित खिलाड़ियों में बदलने का प्रावधान प्रदान किया।
उन्होंने आगे कहा कि 10 करोड़ रुपये से कम और 25 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाले एसएमई केवल अपने नकद उपार्जन और निवल मूल्य के सकारात्मक होने के साथ ही धन जुटा सकते हैं। सेबी ने लिस्टिंग फीस में भी 25 फीसदी की कटौती की है। 19 एसएमई फंड थे जिन्होंने 1629 करोड़ रुपये का निवेश किया है। बरुआ ने कहा कि कॉरपोरेट गवर्नेंस की प्रयोज्यता में भी छूट दी गई है और अब तक 8000 कंपनियां एसएमई एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो चुकी हैं। हालांकि कोविड की अवधि के दौरान लिस्टिंग में गिरावट आई थी, 33 कंपनियों को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया गया और 413 करोड़ रुपये जुटाए और 31 कंपनियों को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया गया और 2021-2022 में 503.37 करोड़ रुपये जुटाए गए।
बरुआ ने बताया कि मई 2020 में मदर फंड एंड डॉटर फंड के फॉर्मेट में इक्विटी डालने के लिए फंड ऑफ फंड्स की स्थापना की गई थी। एनएसआईसी वेंचर कैपिटल फंड छोटी कंपनियों में निवेश के लिए फंड ऑफ फंड के रूप में कार्य करता है। एसबीआई कैपिटल मार्केट्स फंड का मैनेजर है। आत्मनिर्भर भारत। फंड ने करीब 10,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं। एमएसएमई पर एमसीसीआई काउंसिल के चेयरमैन संजीव कुमार कोठारी ने अपने स्वागत भाषण में अपनी चिंता व्यक्त की कि उच्च लेनदेन लागत और कम मार्जिन, उद्यमों द्वारा उत्पाद नवाचार की कमी और वित्तीय संस्थानों की जोखिम कम लेने की मानसिकता के कारण एमएसएमई को समय पर और पर्याप्त ऋण नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि मध्यम, लघु और स्टार्टअप फर्म आमतौर पर बड़ी फर्मों की तुलना में अधिक अपारदर्शी होती हैं क्योंकि वे सार्वजनिक रूप से कम उपलब्ध जानकारी प्रदान करती हैं। नतीजतन, किसी भी वित्तीय संस्थान के लिए साख का आकलन करना मुश्किल हो जाता है जो उधार को हतोत्साहित कर सकता है और ऋणदाता सूचना की कमी को संपार्श्विक की उच्च आवश्यकता के साथ प्रतिस्थापित कर सकते हैं, श्री कोठारी ने कहा। पूंजी बाजार पर एमसीसीआई परिषद के सह-अध्यक्ष रवि जैन द्वारा प्रस्तावित धन्यवाद प्रस्ताव के साथ सत्र का समापन हुआ।

 

वैली ऑफ फ्लावर्स – फूलों की घाटियों में आपका स्वागत

फूल संभवतः सौंदर्य के सबसे पुराने प्रतीक हैं। सभ्यता के किसी प्राचीन आंगन में जंगल और झाड़ियों के बीच उगे हुए फूल ही होंगे जो इंसान को उस ख़ासे मुश्किल वक़्त में राहत देते होंगे। फूलों से ही पहली बार उसने रंगों को पहचाना होगा। ख़ुशबू को जाना होगा। पहली बार सौंदर्य का अहसास किया होगा। फूलों की अपनी दुनिया है। वो याद दिलाते हैं कि पर्यावरण के असंतुलन से लगातार धुआंती, काली पड़ती, गरम होती इस दुनिया में फूलों को बचाए रखना जरूरी है। उत्तराखंड की फूलों की घाटी अद्भुत, रंगबिरंगी सैंकड़ों प्रजातियों के फूलों का एक अलग संसार है। उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली में मौजूद यूनेस्को की विश्व धरोहर रंग बदलने वाली फूलों की घाटी को हर साल आवाजाही के लिए 1 जून को आम पर्यटकों के लिए खोल दिया जाता है। पर्यटकों 31 अक्तूबर तक फूलों की घाटी में बिखरे पड़े सौंदर्य का आनंद उठा सकते हैं।

उत्तराखंड में पवित्र हेमकुंड साहब मार्ग पर फूलों की घाटी को उसकी प्राकृतिक खूबसूरती और जैविक विविधता के कारण 2005 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया था। 87.5 वर्ग किमी में फैली फूलों की ये घाटी न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। फूलों की घाटी में दुनियाभर में पाए जाने वाले फूलों की 500 से अधिक प्रजातियां मौजूद हैं। हर साल देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। यह घाटी आज भी शोधकर्ताओं के आकर्षण का केंद्र है। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी सम्मिलित रूप से विश्व धरोहर स्थल घोषित हैं।

 पर्वतारोही फ्रेंक स्मिथ ने की थी खोज

फूलों की घाटी को खोजने का श्रेय फ्रैंक स्मिथ को जाता है। जब वह 1931 में कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे तब रास्ता भटकने के बाद 16700 फीट ऊंचे दर्रे को पार कर भ्यूंडार घाटी में पहुंचे। यहां मौजूद असंख्य प्रजातियों के फूलों की सुंदरता को देखकर वो आश्चर्यचकित हो गये। फूलों की घाटी का आकर्षण इतना गहरा था कि वो फ्रैंक स्मिथ को 1937 में दोबारा यहाँ खींच लाया। इस बार उन्होंने यहाँ के फूलों पर गहन अध्ययन व शोध किया और 300 से अधिक फूलों की प्रजातियों के बारे में जानकारी एकत्रित की। अपने इस संपूर्ण अध्य्यन को फ्रैंक स्मिथ नें  1938 में ”वैली ऑफ फ्लावर” नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद दुनिया ने पहली बार फूलों की इस घाटी के बारे में जाना।उसके बाद से आज तक इस घाटी के फूलों का आकर्षण हर किसी को अपनी ओर खींचता है। कहा जाता है कि फ्रैंक स्मिथ यहां से कई किस्म के बीज अपने देश ले गये थे।

 मार्गेट लैगी की कब्र

1938 में विश्व के मानचित्र पर फूलों की घाटी के छा जाने के बाद 1939 में क्यू बोटेनिकल गार्डन लन्दन की ओर  से जाॅन मार्गरेट लैगी, 54 वर्ष की उम्र में फूलों का अध्यन करने के लिए आई थी। अध्य्यन के दौरान दुर्भाग्यवश फूलों को चुनते हुए 4 जुलाई 1939 को पहाड़ी की एक ढाल से गिरने से उनकी मौत हो गई।जॉन मार्गेट लैगी की याद में यहाँ पर एक स्मारक बनाया गया है। यहां आने वाले पर्यटक लैगी के स्मारक पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर उन्हें याद करते है।

पांच सौ प्रजाति से अधिक फूल

फूलों की घाटी में पांच सौ प्रजाति के फूल अलग-अलग समय पर खिलते हैं। यहां जैव विविधता का खजाना है। यहां पर उगने वाले फूलों में पोटोटिला, प्राइमिला, एनिमोन, एरिसीमा, एमोनाइटम, ब्लू पॉपी, मार्स मेरी गोल्ड, ब्रह्म कमल, फैन कमल जैसे कई फूल यहाँ खिले रहते हैं। घाटी मे दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतु, वनस्पति, जड़ी बूटियों का संसार बसता है।

 हर 15 दिन में रंग बदलती है ये घाटी

फूलों की घाटी की खास बात यह है कि हर 15 दिन में यहां अलग-अलग प्रजाति के रंगबिरंगे फूल खिलने से घाटी का रंग भी बदलता रहता है। यह ऐसा सम्मोहन है, जिसमें हर कोई कैद होना चाहता है।

– कैसे पहुंचे और कब आएं  फूलों की घाटी

फूलों की घाटी पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से गोविंदघाट तक पहुंचा जा सकता है। यहां से 14 किमी. की दूरी पर घांघरिया है। समुद्र तल से यहां की  ऊंचाई 3050 मीटर है। यहां लक्ष्मण गंगा पुलिया से बायीं तरफ तीन किमी की दूरी पर फूलों की घाटी है। वैसे तो घाटी पर्यटकों के लिए पहली जून को खुल जाती है लेकिन जुलाई  प्रथम सप्ताह से अक्तूबर तृतीय सप्ताह तक यहां फूलों की छटा सबसे खूबसूरत होती है। यहाँ विभिन्न प्रकार की तितलियां भी पाई जाती हैं। इस घाटी में कस्तूरी मृग, मोनाल, हिमालय का काला भालू, गुलदार, हिम तेंदुआ भी दिखता है।

नयी फिल्म – पंकज त्रिपाठी ‘शेरदिल’ का ट्रेलर जारी

पंकज त्रिपाठी बहुत ही वास्तविक सिनेमा के लिए जाने जाते हैं। हर संवेदना को पकड़ने में उनको महारत है और सच्ची घटनाओं से प्रेरित उनकी नयी फिल्म ‘शेरदिल’ 24 जून को प्रदर्शित होने जा रही है। टी-सीरीज़ और रिलायंस एंटरटेनमेंट ने मैच कट प्रोडक्शंस के साथ, अपनी फिल्म ‘शेरदिल: द पीलीभीत सागा’ का ट्रेलर जारी किया गया है जो डराती भी है और हँसाता भी है।

श्रीजीत मुखर्जी की फिल्म शहरों के बदलते रहन सहन, मानव और पशुओं के भी संघर्ष और गरीबी के बारे में एक अनोखी कहानी पेश करती है जो एक जंगल के किनारे बसे एक गांव में एक विचित्र प्रथा की ओर ले जाती है। ट्रेलर में पंकज त्रिपाठी द्वारा निभाई गई गंगाराम की कहानी को चित्रित करती है, जो एक पुरानी प्रथा का पालन करने और घर की जरुरतों को पूरा करने के लिए एपनी ज़िदगी को दांव पर लगा देता है। पंकज त्रिपाठी का किरदार, एक ऐसा फैसला करता है, जिसमें  सरकार द्वारा बाघ के हमले के शिकार के परिवार को दिए गए पैसे से लाभान्वित हो सके।

मिलिंद गाबा के भारत दौरे की घोषणा, पोस्टर जारी

कोलकाता । कोलकाता की सबसे बड़ी लाइव एंटरटेनमेंट कंपनी ‘सेलेक्ट’ की तरफ से ‘मिलिंद गाबा के इंडिया टूर’ के तहत कोलकाता में होनेवाले ‘लाइव इन कॉन्सर्ट’ की मेजबानी की जाएगी। यह मिलिंद गाबा का पहला ‘लाइव इन कॉन्सर्ट’ इंडिया टूर है, जिसे 2 महीनों के लिए आयोजित किया गया है। जिसमे 8 शहरों में ‘लाइव इन कॉन्सर्ट’ के तहत रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे । लाइव एंटरटेनमेंट कंपनी ‘सेलेक्ट’ की यह पहली और अनोखी पहल है। इस पूरे कंसर्ट को एक अनोखे और नए तरीके से, जिसे पहले कभी न देखा गया हो, इस हिसाब से अत्याधुनिक तरीके से पूरे इवेंट को डिजाइन किया गया है, जहां मिलिंद गाबा फैंस के बीच अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे। इस कार्यक्रम में हर प्रशंसक को अपने चहीते, मिलिंद गाबा के साथ लाइव कंसर्ट में अपने पसंदीदा गाना गाने और झूमने का भरपूर मौका मिलेगा।

मिलिंद गाबा के इंडिया टूर की घोषणा के साथ धमाकेदार पोस्टर लॉन्च के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में बॉलीवुड गायक मिलिंद गाबा, सेलेक्ट के प्रबंध निदेशक रवि अग्रवाल, सेलेक्ट प्रतिनिधि गीतेश शर्मा मौजूद थे। मिलिंद गाबा मशहूर भारतीय गायक, गीतकार, संगीत निर्माता और अभिनेता हैं, जो पंजाबी और बॉलीवुड संगीत से जुड़े हैं। उनके मशहूर  गाने “नजर लग जाएगी”, “शी डोंट नो” और “यार मोड दो” के लिए उन्हें जाना जाता है। उनके अति लोकप्रीय गीतों में, “नजर लग जाएगी”, “शी डोंट नो”, “मैं तेरी हो गई”, “जिंदगी दी पौड़ी”, “पीले पीले”, “सुंदर”, “नचुंगा ऐसे” और “क्या करू” शामिल हैं। उनके गीत “शी डोंट नो” का संगीत वीडियो 8 जनवरी 2019 को टी-सीरीज़ द्वारा यू ट्यूब पर लॉन्च किया गया था। जिस गाने के वीडियो को 500 मिलियन से अधिक बार देखा गया।

मीडिया से बात करते हुए, इस मौके पर बॉलीवुड सिंगर मिलिंद गाबा ने कहा, यह मेरा पहला भारत के अनन्य शहरों का दौरा होगा। देश के विभिन्न शहरों में अपने प्रशंसकों के लिए लाइव प्रदर्शन करने का यह अवसर पाकर मैं मेरे प्रशंसकों और आयोजकों का बहुत आभारी हूं। सेलेक्ट के साथ यह यात्रा निश्चित रूप से मेरे लिए इस जीवन में एक अविश्वसनीय अनुभव होगा। इस मौके पर सेलेक्ट के प्रबंध निदेशक रवि अग्रवाल तथा सेलेक्ट प्रतिनिधि गीतेश शर्मा  ने कहा, सेलेक्ट पूरे देश भर में मौजूद संगीत प्रशंसकों को बेहतरीन लाइव संगीत का अनुभव कराने में एक अहम भूमिका निभा रहा है। हम अपने प्रशंसकों के मनोरंजन के लिए मिलिंद गाबा के पहले मेगा भारत दौरे के साथ काम करने के लिए बेहद उत्साहित हैं। मिलिंद गाबा ने अपनी भावपूर्ण धुनों से पूरे देश में मौजूद लाखों प्रशंसकों के दिलों में अपनी अलग जगह बना ली है। प्रसंशकों के इस प्यार ने उन्हें इस पीढ़ी के दिलों की आवाज बना दिया है। सेलेक्ट द्वारा क्यूरेट किया गया यह इवेंट टूट, कोलकाता के साथ मुंबई, गोवा, बेंगलुरु, हैदराबाद जैसे प्रमुख शहरों के अलावा तीन अन्य शहर में आयोजित किया गया है। उनका विश्वास है कि इस इवेंट में शामिल होनेवाले मिलिंद गाबा के प्रशंसक यहां भरपूर मस्ती कर पाएंगे।

अजहर आलम मेमोरियल फेलोशिप एवं स्कॉलरशिप घोषित

कोलकाता । अजहर आलम मेमोरियल ट्रस्ट, ने अपनी स्थापना के अवसर पर घोषणा की थी कि यह हर वर्ष किसी एक रंगमंचीय व्यक्तित्व को अज़हर आलम मेमोरियल अवार्ड और एक शोधार्थी को रंगमंच पर शोध करने के लिए *फेलोशिप देगा। बाद में ट्रस्ट के सभी सदस्यों की सलाह पर यूपीएससी/ डब्ल्यूबीएससी की परीक्षा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए स्कॉलरशिप की भी घोषणा की गयी है। ट्रस्ट ने लिटिल थेस्पियन द्वारा आयोजित उत्सव जश्न ए अजहर में गत 18 फरवरी 2022 को बंगाल के प्रसिद्ध रंगमंच व्यक्तित्व श्री रुद्रप्रसाद सेनगुप्ता को प्रथम अज़हर आलम मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया। अब एएएमटी की कमेटी ने प्राप्त आवेदनों के आधार पर  2022-2023 के लिए निम्नलिखित का चयन किया है – पार्वती रघुनंदन को पहला अज़हर आलम मेमोरियल फेलोशिप (विषय : इक्कीसवीं सदी के नाटककार और अज़हर आलम) और तान्या चतुर्वेदी को पहला अज़हर आलम मेमोरियल स्कॉलरशिप।

नवीनता लाए, जनमुद्दे उठाए, तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बने मीडिया – हरिवंश

कोलकाता मई का अंतिम सप्ताह हिन्दी पत्रकारिता के उत्स का प्रतीक है। देश में कई बड़े आयोजन होते भी हैं। इस बार ऐसा ही भव्य आयोजन कोलकाता में हुआ और देश के दिग्गज पत्रकार, शिक्षा एवं संस्कृति के प्रतिनिधि जुटे। गत 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस था। इस अवसर पर छपते – छपते हिन्दी दैनिक एवं ताजा टीवी द्वारा कोलकाता प्रेस क्लब के सहयोग से  गत 30 एवं 31 मई को आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मेलन का आयोजन एक सार्थक बहस और समाधान की रूपरेखा का केन्द्र बिन्दु बना। एक नये परिप्रेक्ष्य में पत्रकारिता और उसकी चुनौतियों को देखना और उस पर होने वाली चर्चा निश्चित रूप से ऐतिहासिक और मील का पत्थर है। बात पत्रकारिता की पक्षधरिता, संवेदना, जवाबदेही, इतिहास, भाषा और पत्रकारों की स्थितियों पर हुई। यह बात हुई कि जब समाज के हर क्षेत्र में गिरावट आयी है तो पत्रकारिता में भी गिरावट आना स्वाभाविक है क्योंकि पत्रकारिता के क्षेत्र में जो लोग आते हैं, वे इसी समाज से आते हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वालों की अपनी चुनौतियाँ हैं और उनसे अपेक्षाएँ मिशनरी पत्रकारिता की हैं। बहरहाल आपके लिए इस विचारोत्तेजक सम्मेलन के दिग्गजों के विचार हम प्रस्तुत कर रहे हैं,इस उम्मीद के साथ कि आप जब भी मीडिया की आलोचना करें, उसकी चुनौतियों के प्रति भी थोड़ी संवेदना रखें और अखबार खरीदकर पढ़ें –

भारतीय पत्रकारिता की पहचान उसके भाषायी अखबारों के कारण है
हरिवंश नारायण सिंह (राज्यसभा के उपसभापति )
कोलकाता हमेशा से चेतना, चिंतन और पुर्नजागरण का केंद्र रहा है। स्वाधीनता आन्दोलन के समय भाषायी पत्रकारिता ने नयी दिशा दी। भविष्य में जितनी दूर तक अपनी पहचान बनाना चाहते हैं तो अतीत की ओर देखिए, अतीत से ही ताकत मिलती है पहचान बनाने के लिए। भाषायी पत्रकारिता देश को नयी दिशा देने वालों को समर्पित है। 196 साल पहले 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता आरम्भ हुई थी। 1700 से 2000 का समय है, वह विचारों का समय है। यह प्रेस भी विचारों की देन है। गुटेनबर्ग एक सुनार थे। दुनिया में विचारों का दौर था, अखबार इसी की देन हैं जिन्होंने वैचारिक तौर पर समाज को तैयार किया और वैचारिक क्रांति का नेतृत्व किया। माना जाता था कि गरीबी ईश्वर की देन है मगर मार्क्स ने विरोध किया और उनके विचार का विस्तार हुआ। आज तकनीक का दौर है, हमारी चुनौती प्रिंट मीडिया की जो है, उसे हम पहचान नहीं पा रहे हैं। तकनीक हमें नियंत्रित कर रही है। तकनीक आज हमारे जीवन को विचाररहित कर रही है। चीजें तकनीक पूरी तरह बदल चुकी है। मीडिया के सामने साख का संकट है। मिशन पत्रकारिता के अखबार मुख्यधारा के नहीं थे पर अपने ध्येय को लेकर चलते रहे। इनके संस्थापक पत्रकार उद्यमी भी थे। भारतीय पत्रकारिता की पहचान उसके भाषायी अखबारों के कारण है। उदारीकरण के बाद बाजार, पूंजी और तकनीक दुनिया को नियंत्रित कर रही है और इसमें अधिक से अधिक लाभ चाहिए। पत्रकारिता में वित्तीय असुरक्षा का सवाल है। प्रेस खोलने के लिए करोड़ों चाहिए, वेज बोर्ड चाहिए। अखबारों को मुफ्त पढ़ाने की होड़ है। लोगों को मुफ्त और ईमानदार अखबार चाहिए। पत्रकारिता व्यवसाय़ है तो व्यवसाय़ की तरह ही चलेगी। बाजार और विपणन और टीआरपी से ही यह चलेगा।
खबरों को लिखने की प्रकृति भी मानसिक प्रभाव डाल रही है। यह गम्भीरता से सोचने का विषय है। पहले परम्परा थी कि जब तक सभी की प्रतिक्रिया न मिले, खबर नहीं छापी जाती थी। लोग मुख्यधारा के प्रेस पर विश्वास करते थे, आज खबरों पर विश्वास नहीं किया जा रहा है। दुनिया में क्रांति तकनीक से हुई और तकनीक ही क्रांति के खिलाफ है। इस पर हमें विचार करना चाहिए। अब तो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर बात होनी चाहिए। बड़ी टेक कम्पनियों का आपके दिमाग पर कब्जा है। नये मुद्दों को उठाएंगे तो लोग पढ़ेंगे। टेक कम्पनियों की जवाबदेही क्या हैं, इन पर सोचना होगा। रुस – यूक्रेन युद्ध में वित्तीय तकनीक हथियार इस्तेमाल की जा रही है। क्या हम आर्टिफिशियिल तकनीक के प्रति लोगों को सचेत कर रहे हैं? दिग्गज वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने कहा कि पर्यावरण और तकनीक, अगर इससे हम बच नहीं सके तो एक नयी दुनिया खोज लेनी होगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भविष्य हैं तो एक खतरा भी है। अखबारों को इनका मुकाबला करने के लिए खुद को मजबूत होने की जरूरत है। जागरुक मानसिकता के कारण लोग ओटीटी जैसे माध्यमों से हट रहे हैं। अखबारों को नवीनता के साथ सोचने की जरूरत है। हमें संवेदनशील मुद्दों को उठाना होगा। फेसबुक पर करोड़ी फर्जी खबरें फैल रही हैं, 64 प्रतिशत भारतीय फर्जी खबरों से परेशान हैं मगर सख्त सजा नहीं है। अंग्रेजों के जमाने के कानून से सोशल मीडिया से नहीं लड़ा जा सकता।

सत्ता से दुश्मनी नहीं होनी चाहिए पर सत्ता को आईना दिखाते रहना चाहिए
विनोद अग्निहोत्री (अमर उजाला के सलाहकार सम्पादक)
कोलकाता पहली बार आया हूँ। मैं नहीं मानता कि पत्रकारिता में सब कुछ खराब है पर यह एक लोकतांत्रिक पेशा है इसलिए हम अपनी आलोचना भी करते हैं। मैं जब आया तो वह पत्रकारिता का अच्छा दौर था। मुझे दिग्गज पत्रकारों के साथ काम करने का मौका मिला। उसी दौर में नवभारत टाइम्स में परीक्षा दी, चयन हुआ। मुझे राजेन्द्र माथुर, रामपाल सिंह, उदयन शर्मा, सुरेन्द्र प्रताप सिंह, कन्हैया लाल नंदन, आलोक मेहता समेत कई और लोगों के साथ काम करने का मौका मिला। दरअसल पत्रकारिता और समाज का जल और मछली का रिश्ता है, समाज सड़ेगा तो पत्रकारिता भी सड़ेगी, समाज जीवन्त होगा तो पत्रकारिता भी जीवन्त होगी। आजादी के बाद हिन्दी समेत भाषायी ने पत्रकारिता राष्ट्र निर्माण का रास्ता बनाया। एक समय था जब यह पारिवारिक पत्रकारिता बनी और जयप्रकाश के आन्दोलन के बाद इसने फिर गति बदली। पत्रकारिता को समाज से अलग करके हम नहीं देख सकते, जब हर ओर अवमूल्यन की स्थिति हो तो पत्रकारिता में भी अवमूल्यन होगा क्योंकि यहाँ भी इसी समाज से लोग आते हैं। कोरोना के दौरान 50 प्रतिशत छंटनी हुई, उन चुनौतियों का सामना मिलकर किया गया। पत्रकारिता मिशन भी है, व्यवसाय भी है और बिजनेस भी है और इसमें सन्तुलन हो तो स्वस्थ पत्रकारिता होगी, यह जरूरी है। बदलते परिवेश में कारोबार, तकनीक और मिशन के सटीक मिश्रण की जरूरत है, जिससे इस उद्योग की साख बच सके।
जब हम अखबार सुबह देखते हैं तो खबरें बासी लगती हैं। एक सप्ताह अखबार न पढ़ें तो भी फर्क नहीं पड़ेगा, यह सोचने का विषय है कि क्या नया किया जाये, यह एक चुनौती है। यह चुनौती मैंने महसूस की है। हम नया क्या दें, इस पर विचार हो, यह समस्या हल हुई तो अखबार फिर लोकप्रिय होंगे। बच्चों को लेकर पत्रकारिता नहीं हो रही है, हम जब छोटे थे तो पराग, चंदामामा, जैसी बाल पत्रिकाएं थीं और हम खूब पढ़ते थे। आज तो बच्चों को पत्रकारिता से बाहर कर दिया गया है, उनको कैसे साथ लाया जाए, इस पर विचार हो, महिलाएं, किसानों के मुद्दे हों। गाँवों में हिन्दी अखबार अधिक पढ़े जा रहे हैं। पाठकों की चिट्ठियाँ नहीं आतीं, लोग ट्विटर पर ही सब कुछ लिख दे रहे हैं। प्रिंट मीडिया का स्वरूप बदलना होगा। सम्भव है कि अखबार की जगह पीडीएफ मिले, तकनीक की आदत डालनी होगी। अंग्रेजी की पत्रकारिता शासन और अमीरों की पत्रकारिता थी पर 60 के दशक के बाद उनको चुनौती मिली और आज हम बराबर हैं। हिन्दी और भाषायी पत्रकारिता का अन्योयाश्रित सम्बन्ध है। समस्या यह है कि उर्दू और हिन्दी की पत्रकारिता की बात हो, तो हिन्दी पत्रकारिता हिन्दू और उर्दू पत्रकारिता मुस्लिम पत्रकारिता हो जाती है, इससे बचना चाहिए। पत्रकारिता निष्पक्ष नहीं हो सकती, वह सत्य और तथ्य के साथ होगी, तटस्थ नहीं हो सकती, उसके विचार होंगे पर पार्टी लाइन नहीं होगी। हमारे अपने विचार होंगे। हमें सत्य और तथ्य के साथ गहराई में जाना होगा, जनपक्षधरता के साथ होना चाहिए। सत्ता से दुश्मनी नहीं होनी चाहिए पर सत्ता को आईना दिखाते रहना चाहिए, कमजोरियाँ जरूर बताते रहना चाहिए।
एक समय था जब हम आकाशवाणी, दूरदर्शन और अखबार देखकर भाषा सीखते थे पर आज भाषा बिगड़ जा रही है। अंग्रेजी के शब्द हों मगर उनको ठूंसा न जाये, यह अखरता है क्योंकि यह भाषा को बिगाड़ रहा है। प्रभाष जोशी देशज भाषा के पक्ष में थे। भाषा बाजारू नहीं होनी चाहिए। इस पर गम्भीरता से बात होनी चाहिए। अभी इस पर अखबारों या चैनलों में ध्यान नहीं दिया जा रहा है। दुःख की बात यह है कि आज न्यूज रूम में नयी पीढ़ी को गढ़ने की प्रक्रिया बंद हो गयी है। अखबार, समाज और लोकतंत्र का अन्योयाश्रित सम्बन्ध है और इनके बीच सन्तुलन होना आवश्यक है।

पत्रकार की राजनीतिक लाइन हो सकती है पर उसकी पार्टी लाइन नहीं होनी चाहिए
प्रो. संजय द्विवेदी (भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक)
30 मई को कोलकाता से ही उदन्त मार्तंड निकला था। भाषाएं कैसे जोड़ती हैं, कोलकाता की भूमि इसका उदाहरण है। पत्रकारिता को लेकर आलोचनाओं का दौर गर्म है। दुनिया में हर कोई अपने कार्यक्षेत्र को लेकर आशावादी है। समाज के हर क्षेत्र में जब अवमूल्यन है तो पत्रकारिता में उत्कर्ष की उम्मीद कैसे करते हैं? यह सम्भव नहीं है कि जब हर क्षेत्र में अवमूल्यन हो तो पत्रकारिता में उत्कर्ष हो। आजादी के दौरान मुख्यधारा के मीडिया ने अंग्रेजों का साथ दिया, उनको भी देखा जाना चाहिए। हम आजादी के दिनों की पत्रकारिता को लेकर अधूरा सच बताते हैं। हर अखबार और पत्र – पत्रिकाओं के संकल्प अलग हैं। वह अपनी व्यावसायिक चुनौतियों से अलग नहीं हो सकता। किसी भी व्यवसाय में सुधार की हमेशा सम्भावना रहती है, उसकी गुणवत्ता और जनपक्षधरिता पर भी बात होनी चाहिए। सोशल मीडिया पर जो हो रहा है, उसके लिए पत्रकारिता और पत्रकार जिम्मेदार नहीं ठहराई जा सकती है। पत्रकारिता एक अनुशासन का नाम है। हम जो पत्रकारिता में हैं, हम समाचार के व्यवसाय में हैं, सूचना के व्यवसाय में नहीं हैं। समाज में विभिन्न मंचों से दी जा रहीं सूचनाओं की जिम्मेदारी पत्रकार नहीं ले सकता। लाइक और शेयर के समय को पत्रकारिता पर आरोपित करने का प्रयास हो रहा है। पत्रकार की राजनीतिक लाइन हो सकती है पर उसकी पार्टी लाइन नहीं होनी चाहिए। राजनीतिक आदर्श हो सकते हैं मगर उसे पार्टी लाइन नहीं बनाना चाहिए। पत्रकारिता लोककल्याण के लिए हैं, लोकमंगल के लिए है। जब हम राष्ट्र की बात करते हैं तो व्यक्ति ही केन्द्र में हैं। हमारी जिम्मेदारी है। हमें आत्मपरिष्कार करना होगा। जनभावनाओं को सर्वोच्च रखते हुए राष्ट्र निर्माण के लिए पत्रकारों को काम करना होगा। आने वाले समय को अमृत समय में बदलें। सूचना और समाचार में अंतर होता है। सूचना गलत हो सकती है, लेकिन समाचार गलत नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकार का धर्म आधा सच बताना नहीं है, बल्कि एक भारत और श्रेष्ठ भारत के लिए ईमानदारी से काम करना है।

पाठक सही सूचनाओं के लिए पैसे खर्च करता है, यह याद रखना होगा
सुमन गुप्ता (भारतीय प्रेस परिषद की सदस्य और ‘जनमोर्चा’ की संपादक )
आज हिन्दुस्तानों में अखबारों के जीवन पर भी विचार करना चाहिए। अखबार पंजीकृत तो होते हैं पर संचालित नहीं हो पाते। मिशनरी पत्रकारिता समय के साथ बदलती गयी है। अगर शक्तियाँ कुछ हाथों में सीमित हो गयीं तो क्या लोकतंत्र रह जाएगा? अखबारों के पाठक कम हुए, ग्राहक बढ़ गये हैं, सम्पादकों के नाम पाठकों के पत्र जैसे स्तम्भ सिमट गये हैं। सूचनाओं से वंचित और भ्रमित करने का काम जारी है। अखबारों में खबरों का प्राथमिक स्त्रोत खत्म हो रहा है। फील्ड की रिपोर्टिंग की जगह इंटरनेट की सामग्री का उपयोग बढ़ गयी है जिसका सत्यापन नहीं हो रहा है। एजेंसियों का कथन ही हमारा वर्जन बन गया है। हम ओपिनियन बनाने का काम करते हैं तो एकतरफा ओपिनियन क्यों बना रहे हैं। पाठक सही सूचनाओं के लिए पैसे खर्च करता है। सोशल मीडिया अनगाइडेड मिसाइल है पर बहुत सी चीजें सामने ला रहा है। नागरिकों की आजादी के अधिकार का उपयोग का मीडिया कर रहा है, इस पर भी सोचना चाहिए।

जब भी राजनीति में अन्धेरा हुआ है, मीडिया सूर्योदय लाया है
डॉ. शम्भुनाथ (भारतीय भाषा परिषद के निदेशक एवं वागर्थ के सम्पादक)
– 1826 में प्रकाशित हिन्दी का पहला पत्र उदन्त मार्तंड डेढ़ साल से अधिक नहीं चल सकता। आज कलम की जगह माउस आ गया है, कागज की जगह कम्प्यूटर स्क्रीन आ गया है पर उदन्त मार्तंड के जमाने में अखबार निकालना तोप के सामने खड़ा होना था। जुगल किशोर सुकुल ने खबरों में ‘लूट की छूट’ और ‘दालचीनी के पौधे’ में व्यापारी वर्ग की आलोचना की, यह आलोचना देशप्रेम का संकेत है। सर्पदंश से बचने के लिए औषधि का उपयोग करें..यह एक बुद्धिसम्यक और वैज्ञानिक दृष्टि का विकास था। चुनौतियाँ तब भी थीं, चुनौतियाँ आज भी हैं। सुकुल जी ने जाति, प्रांत के हित नहीं बल्कि हिन्दुस्तानियों के हित लिखा। निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, इसकी चेतना उदन्त मार्तंड के समय विकसित हो रही थी। सबसे बड़ी चुनौती मीडिया की स्वायत्तता है, आज पत्रकार और सम्पादक को दुर्बल बनाया दिया गया है, उसे उसका अस्तित्व वापस चाहिए। संसाधन कम थे तब निम्न तकनीक उच्च विचार थे, आज उच्च तकनीक, निम्न विचार हैं। क्या राजनीति में अन्धेरा हो तो मीडिया ही सूर्योदय ला सकता है। इतिहास है कि जब भी राजनीति में अन्धेरा हुआ है, मीडिया सूर्योदय लाया है। छोटे – छोटे अखबार ही जनता की सच्ची खबरें ला सकते हैं। समय की जरूरत है कि पत्रकार वैज्ञानिक दृष्टि से काम करें और अंधविश्वास फैलाने से बचें। उन्होंने कहा कि पाठकों को सही और सटीक खबर जानने का अधिकार है और जब तक पाठकों के अधिकार की पूर्ति नहीं होगी, तब तब उनकी मांग जारी रहेगी।

जनता की बात छोटे अखबार ही उठाएंगे
नदीमुल हक (राज्यसभा सांसद)
भाषा विचारों को दूसरों तक पहुँचाने का माध्यम है। 27 मार्च 1822 को हरिहर दत्त द्वारा मुंशी सदासुख लाल के सम्पादन में जामे जहाँनुमा प्रकाशित हुआ। इसके प्रिंटर विलियम हॉकिंग्स..यहाँ इसके सम्पादन में कोई मुसलमान नहीं था। समस्या यह है कि आज भाषा को मजहब से जोड़ दिया जाता है। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ अपनी बात पहुँचाने के लिए फारसी में मिरात उल अखबार निकाला क्योंकि अभिजात्य प्रभावी वर्ग फारसी में पढ़ता था। 1857 की क्रांति में उर्दू दैनिक के सम्पादक बाकर साहब को तोप से उड़ा दिया गया। सांसद हसरत मोहानी ने इन्कलाब जिन्दाबाद का नारा दिया और हम इस नारे की उत्पत्ति के बारे में नहीं सोचते। आज कागज के दाम बढ़ रहे हैं, विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं मगर जनता की बात छोटे अखबार ही उठाएंगे।

इस अवसर पर यूको बैंक के जीएम नरेश कुमार बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन ‘छपते-छपते’ के प्रधान संपादक और ‘ताजा टीवी’ के चेयरमैन  विश्वंभर नेवर ने किया।  धन्यवाद ज्ञापन प्रेस क्लब, कोलकाता के अध्यक्ष स्नेहाशीष सूर ने दिया। सम्मेलन के दूसरे दिन महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभागाध्यक्ष डॉ. कृपाशंकर चौबे, प्रभात खबर के स्थानीय सम्पादक कौशल किशोर त्रिवेदी, जनपथ समाचार, सिलिगुड़ी के सम्पादक विवेक बैद, जलते दीप एवं माणक (जोधपुर) के सम्पादक पद्म मेहता, मरु राजस्थान, जयपुर के सम्पादक आर. के. जैन, वैचारिकी के सम्पादक बाबूलाल शर्मा, आलिया विश्वविद्यालय की जनसंचार एवं पत्रकारिता विभागाध्यक्ष गजाला यास्मीन. विद्यासागर विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. संजय जायसवाल समेत अन्य लोगों ने विचार रखे।

भवानीपुर कॉलेज में ‘पत्रकारिता और पाठक’ विषय पर महत्वपूर्ण संगोष्ठी

कोलकाता । भवानीपुर कॉलेज में ‘पत्रकारिता और पाठक’ विषय पर लाइब्रेरी में होने वाले कार्यक्रम की श्रृंखला में इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। छपते छपते हिंदी दैनिक और भवानीपुर कॉलेज के विद्यार्थियों ने अपने विचार को आमंत्रित अतिथि वक्ताओं के साथ साझा किया। पत्रकारिता लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ है जो जनता और सरकार के बीच सामंजस्य बनाने में मदद करता है। समाज में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है। वर्तमान समय में हिंदी पत्रकारिता नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है। विगत 30-31 तारीख को छपते छपते ने हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय सम्मेलन किया। उसी कड़ी में भवानीपुर कॉलेज में पत्रकारिता और पाठक विषय पर तीन विशिष्ट वक्ताओं को आमंत्रित किया गया। काउंसिल ऑफ इंडिया के तीन बार पूर्व सदस्य और भारत सरकार के प्रेस मान्यता समिति पश्चिम बंगाल सरकार के हिंदी अकादमी के पूर्व सदस्य तथा अखिल भारतीय समाचार पत्र संपादक सम्मेलन के महासचिव ताजा टीवी और छपते छपते के निदेशक विश्वम्भर नेवर, जनसंचार विभाग महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के अध्यक्ष और प्रोफेसर डॉ कृपाशंकर चौबे एवं आलिया विश्वविद्यालय पत्रकारिता और मास कम्युनिकेशन की विभागाध्यक्ष डॉ गजाला यासमीन विशिष्ट अतिथि के रुप में आमंत्रित रहे। डॉ कृपाशंकर चौबे जी बर्दमान विश्वविद्यालय से एमए प्रथम श्रेणी में गोल्ड मेडलिस्ट हैं और इन्होंने हिंदी पत्रकारिता परिवर्तन और प्रवृतियां विषय पर पीएचडी की है। जनसत्ता, हिंदुस्तान, सहारासमय, प्रभात खबर, सन्मार्ग आज जैसे समाचार पत्रों में लंबे समय तक काम किया है और पत्रकारिता करने के बाद 2009 से महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र में पूर्णकालिक अध्यापन कार्य कर रहे हैं उनकी 13 से अधिक पुस्तकें हैं, कई संपादन, वृत्त चित्र आदि बहुत से कार्य किए हैं जो पत्रकारिता के आधुनिक चरण के लिए महत्वपूर्ण है। संवाद चलता रहे, मृणाल सेन , मदर टेरेसा,दलित आंदोलन और बांग्ला साहित्य, संपादित ग्रंथ महाश्वेता देवी, हजारीप्रसाद प्रसाद द्विवेदी पर और वृत्तचित्र निर्माण आदि। डॉक्टर चौबे ने अपनी बात रखते हुए पत्रकारिता की कथा यात्रा को प्रोजेक्टर के माध्यम से विद्यार्थियों के सामने रखा जो बहुत ही महत्वपूर्ण थे। बंगाल में फारसी उर्दू हिंदी अंग्रेजी अखबारों की छवि और उनकी अभिव्यक्ति किस प्रकार हमारे देश के लिए उस समय आजादी के लिए अपने आप को अभिव्यक्त कर रहे थे इस पूरी पत्रकारिता इतिहास की कथा यात्रा पर प्रकाश डाला। 17 वीं शती से लेकर आजादी के बाद के समाचार पत्रों एवं रवीन्द्र नाथ ठाकुर रामानंद चटर्जी और विशाल भारत की चर्चा करते हुए पूरे देश के पत्रों के बारे में बताया और उस मुहिम का परिचय दिया। आजादी के बाद की पत्रकारिता के तेवर सिंगूर नंदीग्राम आंदोलन आदि का जिक्र किया और समाचार पत्रों के लिए जेल जब्ती और जुर्माना इन तीनों चुनौतियों को प्रमुख बताया। एबीपी अमृत बाजार पत्रिका का जिक्र देव नागर विशाल भारत का जिक्र किया। आज हमें संवाद की विशेष रूप से आवश्यकता है। विचारों का मरनाअखबार का मरना है। डॉ ग़जा़ला ने आधुनिक युग में होने वाली पत्रकारिता सोशल मीडिया और फेक न्यूज़ इंटरनेट न्यूज़ के मूल्यों की भी बात की। डॉ ग़जा़ला का जेंडर और मीडिया स्टडीज आदि प्रमुख विषय रहे हैं जिस पर वे स्वतंत्र रूप से अनुसंधान और नीतिगत चर्चाओं का नेतृत्व करती हैं। सूचना और सांस्कृतिक मंत्रालय के साथ पैनलबद्ध हैं और लिंग जेंडर और अल्पसंख्यक विषयों पर डॉक्यूमेंट्री बनाती हैं, वैश्विक रूप से जो गलत सूचना जो घटनाएं घटती हैं। और उसको हम सही मान लेते हैं उस पर ग़जा़ला जी का गंभीर अध्ययन है, मीडिया पर छात्रों को सत्यापित करने और उन्हें खारिज करने डेटा विजुलाइजेशन टूल तक पहुंचने के लिए भी कार्य कर रही हैं। विद्यार्थियों के साथ अपनी बातों को साझा करते हुए कहा कि आज ओवरऑल जो पतन हो रहा है उसका कारण है कि हम प्रश्न नहीं करते और प्रश्न जो हमें पूछना चाहिए वह सत्ता से पूछना चाहिए पत्रकारिता संवाद और जागरुक जनता की आवाज है। संवाद और हमारे जो सवाल हैं उसी से हम पत्रकारिता को जोड़ सकते हैं और बड़े मीडिया हाउस और उनकी नीतियों पर चर्चा होनी चाहिए। विश्वंभर नेवर ने कहा कि आज घटनाओं और कंटेंट में कमी आई है जबकि वह समाज में रहकर ही देखा जाता है क्योंकि पत्रकारिता कुछ भी नहीं है बल्कि एक स्ट्रांग कॉमन सेंस है जो हमें किसी भी पुस्तक से नहीं मिल सकती है।। सूचना देना हमारा पहला कार्य है लेकिन कंटेंट से अखबार चलता है साथ ही कटेंट को प्रमुखता देना आवश्यक है यदि उसमें वर्तनी की भी भूल है तो भी लोग उसे पढ़ते हैं। कई उदाहरण देकर नेवर जी ने अपनी बात रखी। इस अवसर पर कई विद्यार्थियों ने प्रश्न भी पूछे जिसमें उज्जवल करमचंदानी और नम्रता चौधरी के प्रश्न अखबार निकालने के लिए किन सिद्धांतों की जरूरत होती है? जैसे महत्वपूर्ण प्रश्न थे। कोआर्डिनेटर प्रोफ़ेसर मीनाक्षी चतुर्वेदी जी ने पूछा कि आज के संदर्भ में महिला पत्रकारों की क्या स्थिति है? अतिथि वक्ताओं ने सभी प्रश्नों के संतोष जनक उत्तर दिए । कार्यक्रम का संचालन किया डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।धन्यवाद नम्रता चौधरी ने दिया। इस अवसर पर कॉलेज के डीन प्रो दिलीप शाह ने सभी अतिथियों को कॉलेज का मोमेंटो प्रदान कर उनका सम्मान किया। प्रोफेसर दिलीप शाह ने डॉ कृपाशंकर चौबे को मोमेंटो प्रदान किया। डॉ गजाला यास्मिन को भवानीपुर कॉलेज के जनसंचार और पत्रकारिता विभाग अध्यक्ष डॉक्टर कपिल भट्टाचार्य ने और विश्वंभर नेवर को मोमेंटो प्रदान किया प्रोफ़ेसर मीनाक्षी चतुर्वेदी और डॉक्टर कृपाशंकर चौबे ने। नम्रता चौधरी और उज्ज्वल करमचंदानी का विशेष योगदान रहा है। कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

भवानीपुर कॉलेज के दीक्षांत समारोह में 3 हजार विद्यार्थियों को डिग्री

कोलकाता । भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के दीक्षांत समारोह 2022 में सर्वोच्च अंक प्राप्त चार हजार विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान की गई ।स्नातक और स्नातकोत्तर श्रेणी जिसमें बीकॉम, बीए, बीएसई, बीबीए, एमए, एमकॉम के विद्यार्थियों को डिग्री और मेडल प्रदान किए गए। कार्यक्रम सत्रह भागों में विभाजित किया गया है और 26-27-28 मई तीन दिनों तक छात्र छात्राओं को सम्मानित किया गया। डीन प्रो दिलीप शाह ने प्रत्येक सत्र के उद्घाटन सत्र को आरंभ करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। वहीं हर सत्र में विभागाध्यक्ष, शिक्षकों और मैनेजमेंट के पदाधिकारियों ने विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान कर विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया। 2019-20-21 के बैच के 3325 विद्यार्थियों को डिग्री दी गई जिनमें स्नातकोत्तर के 276,बीकॉम के 2576, बीबीए के 88,बीएससी के 161, बीए के 224 विद्यार्थी रहे। इस अवसर पर दीक्षांत उद्घाटन समारोह 2022 में प्रमुख में डीन प्रो दिलीप शाह, प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी, मैनेजमेंट के पदाधिकारियों में उमेद ठक्कर, रेणुका शाह आदि कई गणमान्य अतिथियों का योगदान रहा। वर्तमान छात्र – छात्राओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन हुआ। कॉलेज के अध्यक्ष मिराज डी शाह ने सभी विभागों के विद्यार्थियों के साथ शिक्षक गणों और उनके अभिभावकों को बधाई और शुभकामनाएँ दी। इस अवसर पर प्रो दिलीप शाह ने कार्यक्रम के हर सत्र के आरंभ में और अंत में, विद्यार्थियों को एक साथ शुभकामनाएं दीं और कॉलेज में होने वाली सभी गतिविधियों के विषय में बताया। कार्यक्रम की परिकल्पना में सोहिला भाटिया का विशेष योगदान रहा। वर्तमान विद्यार्थियों ने संचालन, वॉलंटियर्स एवं सभी व्यवस्थाओं में भाग लिया है। कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।