पटना । बिहार में रहकर अगर दूसरी शादी करने की तैयारी कर रहे हैं तो राज्य सरकार ने आपके लिए नयी गाइडलाइंस जारी की है। यह गाइडलाइंस खासतौर से बिहार सरकार में नौकरी करने वालों के लिए है। नीतीश सरकार ने तय किया है कि सरकारी नौकरी में रहते हुए अगर दूसरी शादी करते हैं तो आपको इसके लिए पहले अपने विभाग में सूचना देनी होगी। अनुमति मिलने के बाद ही आप दूसरी शादी कर सकते हैं। अगर अनुमति नहीं लेते हैं तो वह शादी अवैध मानी जाएगी।
बिहार सरकार की गाइडलाइंस में कहा गया है कि किसी सरकारी कर्मचारी को भले ही पर्सनल लॉ के तहत दूसरी शादी करने की अनुमति मिल गई होगी, लेकिन जब तक सरकार से इजाजत नहीं लेते हैं तब तक उनकी शादी विभाग में मान्य नहीं होगी
क्यों किया गया नियम में बदलाव
सरकार के सूत्रों का कहना है कि हाल के दिनों में दूसरी शादी के संतान को अनुकंपा नौकरी दिलाने के कई मामले सामने आए थे। कई मामलों में फ्रॉड के मामले भी सामने आए थे। इसके बाद सरकार ने तय किया है कि बिहार सरकार के किसी भी कर्मचारी को दूसरी शादी करने से पहले अपने विभाग में सूचित करना होगा। तभी उनकी असामयिक मौत होने पर दूसरी पत्नी से हुए संतान को अनुकंपा पर नौकरी मिल पाएगी।
दूसरी शादी को लेकर बिहार सरकार की नई गाइडलाइंस के मुताबिक जो भी सरकारी सेवा में रहते हुए दूसरी शादी के इच्छुक कर्मचारियों को सरकार को पहले सूचित करना होगा। अगर सरकार से अनुमित लेने के बाद दूसरी शादी करेंगे तभी सेवा में रहते हुए असामयिक मौत पर जीवित पत्नियों या इनके बच्चे को अनुकंपा का फायदा मिलेगा। हालांकि गुजारा पेंशन या अनुकंपा नौकरी देने में पहली पत्नी को ही प्राथमिकता दी जाएगी। इसको लेकर सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागों के प्रमुखों, डीजीपी, अनुमंडलीय आयुक्त, सभी जिलों के अधिकारियों को आदेश जारी किया है।। सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि दूसरी शादी करने वाले लोगों को इसका रजिस्ट्रेशन कराना भी अनिवार्य है। इसमें बताया गया है कि दूसरी शादी के बाद अनुकंपा के तहत नौकरी का लाभ तभी मिलेगा, जब उन्होंने सरकार से परमिशन ले रखी हो और विधिसम्मत शादी रचाई हो। इस तरह के मामलों में सरकार के स्तर से तय तमाम नियम-कायदों का पालन करना जरूरी माना जाएगा।
इसमें यह भी कहा गया है कि अगर किसी मामले में एक से ज्यादा शादी वैध हो, तब भी सभी जीवित पत्नियों का अनुकंपा के आधार पर बहाली के लिए आश्रितों की श्रेणी में पहला स्थान ही होगा। इसमें भी पहली पत्नी को ही प्राथमिकी दी जाएगी। अन्य पत्नी जब तक अनापत्ति शपथ-पत्र जमा न करें तब तक उनके बहाली पर विचार नहीं किया जाएगा।
बिहार में सरकार को बताकर करनी होगी दूसरी शादी
जब जज साहब ने बच्चों की मिसाल देकर काम जल्दी शुरू करने पर दिया जोर
नयी दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट के अगले चीफ जस्टिस बनने जा रहे जज ने स्कूली बच्चों का उदाहरण देते हुए एक बड़ा संदेश दिया है। जस्टिस यूयू ललित ने कहा कि अगर बच्चे सुबह सात बजे स्कूल जा सकते हैं, तो जज और वकील सुबह 9 बजे अपना काम शुरू क्यों नहीं कर सकते? शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने आम दिनों की तुलना में एक घंटा पहले ही काम शुरू कर दिया। यह उन लोगों के लिए नसीहत भी है जो समय से ऑफिस नहीं पहुंचते या निर्धारित समय से पहले काम करने से बचते हैं। जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस. रविंद्र भट अैर जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने सुबह साढ़े नौ बजे मामलों की सुनवाई शुरू कर दी। हालांकि आमतौर पर यह सुनवाई सुबह साढ़े 10 बजे शुरू होती है।
हमें 9 बजे काम के लिए बैठ जाना चाहिए
जस्टिस ललित अगला चीफ जस्टिस बनने के लिए वरिष्ठता के क्रम में सबसे ऊपर हैं। उन्होंने कहा, ‘मेरे हिसाब से, हमें आदर्श रूप से सुबह 9 बजे (काम के लिए) बैठ जाना चाहिए। मैंने हमेशा कहा है कि अगर बच्चे सुबह 7 बजे स्कूल जा सकते हैं, तो हम सुबह 9 बजे क्यों नहीं आ सकते।’ जमानत के एक मामले में पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने मामले की सुनवाई समाप्त होने पर, सामान्य समय से पहले बैठने के लिए पीठ की सराहना की। इसके बाद जस्टिस ललित ने यह टिप्पणी की।
जल्दी काम शुरू होगा तो शाम को होगा फायदा
जस्टिस ललित ने कहा, ‘मुझे यह कहना होगा कि अदालतों का काम शुरू करने का उपयुक्त समय सुबह साढ़े नौ बजे है।’ उन्होंने कहा कि अगर अदालतों का काम जल्दी शुरू होता है, तो इससे उनका दिन का काम भी जल्दी समाप्त होगा और जजों को अगले दिन के मामलों की फाइल पढ़ने के लिए शाम को और समय मिल जाएगा। उन्होंने आगे कहा, ‘अदालतें सुबह 9 बजे काम करना शुरू कर सकती हैं और सुबह साढ़े 11 बजे एक घंटे के ब्रेक के साथ दोपहर 2 बजे तक दिन का काम खत्म कर सकती हैं। ऐसा करके जजों को शाम में और काम करने का अधिक समय मिल जाएगा।’
उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था तभी काम कर सकती है, जब केवल नए और ऐसे मामलों की सुनवाई होनी हो, जिनके लिए लंबी सुनवाई की आवश्यकता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के जज सप्ताह के कामकाजी दिन में सुबह साढ़े 10 बजे से शाम चार बजे तक मामलों की सुनवाई करते हैं। चीफ जस्टिस एन वी रमण 26 अगस्त को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। ललित उनके बाद यह प्रभार संभालेंगे और इस साल आठ नवंबर तक CJI के पद पर रहेंगे।
पीवी सिंधु ने सिंगापुर ओपन जीत रचा इतिहास
सिंगापुर । दो बार की ओलिंपिक पदक विजेता भारत की पीवी सिंधु ने रविवार को महिला एकल फाइनल में चीन की वैंग झी यी को तीन गेम तक चले कड़े मुकाबले में हराकर सिंगापुर ओपन बैडमिंटन सुपर 500 टूर्नामेंट का खिताब जीता। सिंधु ने महत्वपूर्ण लम्हों पर धैर्य बरकरार रखते हुए कड़े मुकाबले में एशियाई चैंपियनशिप की मौजूदा चैंपियन चीन की 22 साल की खिलाड़ी को 21-9, 11-21, 21-15 से हराया।
इस खिताबी जीत से सिंधु का आत्मविश्वास बढ़ेगा जो बर्मिंघम में 28 जुलाई से होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय चुनौती की अगुआई करेंगी। सिंधु का मौजूदा सत्र का यह तीसरा खिताब है। उन्होंने सैयद मोदी अंतरराष्ट्रीय और स्विस ओपन के रूप में दो सुपर 300 टूर्नामेंट जीते।
सिंधु ओलिंपिक में रजत और कांस्य पदक के अलावा विश्व चैंपियनशिप में एक स्वर्ण, दो रजत और दो कांस्य पदक भी जीत चुकी हैं। इससे पहले सिंधु ने सेमीफाइनल में जापान की साएना कावाकामी को हराकर फाइनल में अपनी जगह पक्की की थी।
सिंधु ने 32 मिनट तक चले मैच में 21-15, 21-7 से जीत दर्ज की। सिंधु का जापानी खिलाड़ी के खिलाफ मैच से पहले जीत का रिकॉर्ड 2-0 था और दोनों के बीच अंतिम मुकाबला 2018 चाइना ओपन में खेला गया था।
देश में बेटियों को गोद लेने वाले बढ़े मगर वजह सोचने वाली भी है
नयी दिल्ली । देश में पिछले कुछ सालों में बच्चा गोद लेने के ट्रेंड में बदलाव देखने को मिल रहा है। अप्रैल 2021 और मार्च 2022 के बीच देश में गोद लिए गए 2,991 बच्चों में से 1,698 लड़कियां थीं। सेंट्रल एडॉप्टेशन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा) की वेबसाइट पर अपलोड किए गए डेटा से इसकी पुष्टि होती है। सीएआरए के 2013-14 के आंकड़ों पर करीब से नज़र डालने से पुष्टि होती है कि भारत में लड़कों की तुलना में लड़कियों को गोद लेने के की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है। वेबसाइट के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि कपल स्वेच्छा से लड़कों की तुलना में लड़कियों को अधिक गोद ले रहे हैं। यह इस फैक्ट को दर्शाता है कि देश में लड़कियों को लेकर देश की मानसिकता में बदलाव आ रहा है। इसके बावजूद एक फैक्ट यह भी है कि गोद लेने वालों में लड़कों की तुलना में लड़कियां अधिक उपलब्ध है। ऐसा जन्म के बाद लड़कियों को अधिक छोड़े जाना भी वजह है। इसके अलावा गोद के लिए उपलब्ध बच्चों की तुलना में गोद लेने वाले लोगों की संख्या अधिक है। इस लिहाज से यह अच्छी खबर नहीं है।
जन्म के बाद लड़कियों अधिक छोड़ रहे लोग
हालांकि, यह इस तथ्य को भी ध्यान में लाता है कि लड़कों की तुलना में जन्म के बाद लोग अधिक संख्या में लड़कियां को छोड़ दे रहे हैं। शायद यह भी एक वजह है कि गोद लेने वालों बच्चों की संख्या में लड़कियां अधिक उपलब्ध होती और गोद भी ली जाती हैं। हालांकि, पिछले 8 से 10 साल में लड़कियों को अधिक गोद लेना लोगों के बदलते माइंडसेट का नतीजा है। समय के साथ यह मजबूत भी होता जा रहा है। CARA के पास उपलब्ध डेटा इस फैक्ट की ओर भी ध्यान आकर्षित करता है कि गोद लेने के पूल में उपलब्ध बच्चों की संख्या हजारों उत्सुक भावी दत्तक माता-पिता (पीएपीएस) की मांग से कम है। यह भी एक वजह हो सकती है कि गोद लेने वाले भावी माता-पिता बच्चों के जेंडर को लेकर ज्यादा जोर नहीं दे रहे हों।
लड़कों की मांग अधिक नहीं
टाइम्स ऑफ इंडिया को विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि बच्चा गोद लेने वाले आवेदक भावी माता-पिता पसंद के कॉलम एक महत्वपूर्ण प्रतिशत बताता है कि वे लड़की या लड़का को गोद लेने के इच्छुक हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि जो लोग किसी लड़की या लड़के को वरीयता देते हैं, उनमें लड़कियों की तुलना में लड़कों की अधिक मांग नहीं दिखती। सूत्रों ने कहा कि यह ट्रेंड पिछले कुछ वर्षों में मजबूत हुआ है। इसे बेटे की पसंद की मानसिकता का मुकाबला करने के लिए एक पॉजिटिव इंडिकेटर के रूप में देखा जाता है।
गोद लेने के लिए सिर्फ 2211 बच्चे ही उपलब्ध
इस बीच, यह फैक्ट है कि 2021-22 में केवल 2,991 बच्चे गोद लिए गए थे। यह इस बात की पुष्टि करता है कि गोद लेने वाले पूल में उपलब्ध बच्चों की संख्या कम है। सूत्रों ने कहा कि महामारी की वजह से गोद लेने की प्रक्रियाओं धीमी हुई है। हालांकि, गोद लिए जाने वाले बच्चों की संख्या बदलती रहतीहैं। इसकी वजह है कि बच्चे पूल में आते रहते हैं और गोद लिए जाते हैं। टीओआई के पास मौजूद लेटेस्ट डेटा से पता चलता है कि विशेष गोद लेने वाली एजेंसियों में 6,800 से अधिक बच्चे दर्ज हैं। इस सप्ताह तक उन्हें गोद लेने के लिए स्वतंत्र घोषित करने की नियत प्रक्रिया पूरी होने के बाद कारा के पास लगभग 2,211 बच्चे गोद लेने के लिए उपलब्ध हैं।
बेन स्टोक्स ने वनडे क्रिकेट को कहा अलविदा
लंदन । इग्लैंड के स्टार आलराउंडर बेन स्टोक्स ने सभी को हैरान करते हुए सोमवार को एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा की। यह 31 वर्षीय खिलाड़ी मंगलवार को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ डरहम के अपने घरेलू मैदान पर अपना अंतिम एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मुकाबला खेलेगा। स्टोक्स के एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय करियर को लार्ड्स में न्यूजीलैंड के खिलाफ 2019 विश्व कप फाइनल में उनके ‘प्लेयर आफ द मैच’ प्रदर्शन के लिए याद किया जाएगा।
उनके नाबाद 84 रन की मदद से इंग्लैंड की टीम अपना पहला 50 ओवर का विश्व खिताब जीतने में सफल रही थी। इंग्लैंड के टेस्ट कप्तान स्टोक्स ने 104 एकदिवसीय मुकाबलों में 2919 रन बनाने के अलावा 74 विकेट भी चटकाए।
इंग्लैंड एवं वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) के बयान में स्टोक्स के हवाले से कहा गया, ‘मैं मंगलवार को डरहम में इंग्लैंड के लिए अपना अंतिम एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेलूंगा। मैंने इस प्रारूप से संन्यास लेने का फैसला किया है।’
उन्होंने कहा, ‘यह बेहद मुश्किल फैसला था। मैंने अपने साथियों के साथ इंग्लैंड की ओर से खेलने के प्रत्येक लम्हे का लुत्फ उठाया। हमारा सफर शानदार रहा।’ बेन स्टोक्स वह शख्स हैं, जिन्होंने वनडे चैंपियन बनाकर इंग्लैंड को क्रिकेट में वह सम्मान दिलाया, जो इंग्लिश इतिहास में कोई भी खिलाड़ी नहीं कर सका था।
गायक भूपिन्दर सिंह का निधन
मुम्बई । दमदार आवाज के गायक भूपिंदर सिंह (6 फरवरी 1940 – 18 जुलाई 2022) हमारे बीच नहीं रहे। 10 दिन पहले अस्पताल में भर्ती होने के बाद हृदयगति रुक जाने से उनका निधन हो गया। ‘करोगे याद तो हर बात याद आएगी’ और ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता…’ जैसे बेहतरीन गानों ने उन्हें एक खास मुकाम दिलवाया।
भूपिंदर का जन्म पंजाब के अमृतसर में 6 फरवरी, 1940 को हुआ था। उनके पिता प्रोफेसर नत्था सिंह खुद अच्छे संगीतकार थे। ‘दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन’ से उन्हें शोहरत मिली। भूपिंदर सिंह का मोहम्मद रफी, तलत महमूद और मन्ना डे के साथ गाया गीत ‘होके मजबूर मुझे, उसने बुलाया होगा’ बेहद लोकप्रिय हुआ था। उनके लोकप्रिय गीतों में दुनिया छूटे यार ना छूटे, थोड़ी सी जमीन थोड़ा आसमान, दिल ढूंढ़ता है, नाम गुम जाएगा जैसे कई गाने शामिल हैं।
यही नहीं उन्होंने अपनी पत्नी मिताली सिंह के साथ दो दीवाने शहर में, कभी किसी को मुकम्मल जहां, एक अकेला इस शहर में जैसे कई हिट गाने भी गाए। उन्होंने सत्ते पे सत्ता, आहिस्ता-आहिस्ता, दूरियां, हकीकत और कई अन्य फिल्मों के यादगार गानों के लिए भी भूपिंदर को खूब याद किया जाता है।
दिल तक पहुंचने वाली आवाज : गुलजार
दिग्गज लेखक और फिल्मकार गुलजार भूपिंदर की आवाज के मुरीद रहे। उनके बारे में गुलजार ने एक बार कहा था, भूपिंदर की आवाज किसी पहाड़ी से टकराने वाली बारिश की बूंदों की तरह है। उनकी मखमली आवाज आत्मा तक सीधे पहुंचती है। भूपिंदर सिंह ने 1980 के दशक में बांग्लादेश की गायिका मिताली मुखर्जी से शादी की थी। एक कार्यक्रम में उन्होंने मिताली को गाते सुना था। उसके बाद दोनों की मुलाकात प्यार में बदल गई। मिताली-भूपिंदर ने एक साथ सैकड़ों लाइव शो किए। उनका एक बेटा निहाल भी संगीतकार है।
मदन मोहन ने मुंबई बुलाया
अपने पिता की सख्त मिजाजी के कारण शुरुआती दौर में भूपिंदर को संगीत से नफरत हो गई थी। लेकिन उनकी आवाज का जादू ज्यादा देर तक इस चिढ़ का बंधक न रह पाया और उनके सुरीले सफर का सिलसिला तेजी से शुरू हो गया। सबसे पहले उनकी गजलें आकाशवाणी में चलीं, इसके बाद दिल्ली दूरदर्शन में अवसर मिला। 1968 में संगीतकार मदन मोहन ने ऑल इंडिया रेडियो पर उनका कार्यक्रम सुनकर उन्हें मुंबई बुला लिया था।
कभी कॉलेज नहीं जा सकीं, आज सबसे धनी महिला हैं सावित्री जिन्दल
पति की मौत के बाद संभाला था पूरा करोबार
2 साल में ही 3 गुना से अधिक हुई संपत्ति
नयी दिल्ली । जिंदल ग्रुप की अध्यक्ष सावित्री जिंदल भारत की सबसे अमीर महिला हैं। फोर्ब्स बिलियनेयर सूची 2022 के अनुसार, सावित्रि जिंदल की कुल संपत्ति 17.7 अरब डॉलर है। सावित्री की संपत्ति में सिर्फ 2 साल में ही 12 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है। वास्तव में उनकी संपत्ति दो साल में तीन गुना से अधिक हो गई। सावित्री जिंदल का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। वे जब 55 साल की थीं, तब उनके पति ओम प्रकाश जिंदल की मौत हो गई थी। ओम प्रकाश जिंदल समूह के संस्थापक थे। ओम प्रकाश की मौत एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुई थी। इसके बाद उन्होंने अपने पति का कारोबार संभाला।
कोरोना में आधी घट गई थी संपत्ति
कोरोना काल के दौरान साल 2019 और 2020 में सावित्री जिंदल की संपत्ति 50 फीसदी तक घट गई थी। इसके बाद केवल दो साल में ही उनकी संपत्ति तीन गुना से अधिक हो गई। साल 2021 में जिंदल की संपत्ति 18 अरब डॉलर तक पहुंच गई थी।
कभी नहीं गई कॉलेज
एक रिपोर्ट के अनुसार, सावित्री जिंदल कभी कॉलेज नहीं गईं। इसके बावजूद पति की आकस्मिक मौत के बाद उन्होंने ही पूरा कारोबार संभाला। सावित्री जिंदल कहती हैं कि जिंदल परिवार में अधिकतर महिलाएं घर की जिम्मेदारी संभालती हैं। जबकि पुरुष बाहर के काम देखते हैं। इसके चलते सावित्री को अपने पति का कारोबार संभालने में काफी मेहनक करनी पड़ी।
असम के तिनसुकिया में बीता बचपन
सावित्री जिंदल लगातार जिंदल ग्रुप को आगे ले जाने की दिशा में काम कर रही हैं। सावित्री का जन्म 20 मार्च 1950 को हुआ था। उनका बचपन असम के तिनसुकिया शहर में बीता। उन्होंने ओम प्रकाश जिंदल से साल 1970 में शादी की थी। उनके पति हरियाणा सरकार में मंत्री और हिसार निर्वाचन क्षेत्र से हरियाणा विधानसभा के भी रहे थेसदस्य थे। सावित्री जिंदल के कुल 9 बच्चे हैं।
भारतीय महिला ने 75 साल बाद देखा रावलपिंडी का अपना पुश्तैनी मकान
लाहौर । विभाजन के समय पाकिस्तान छोड़कर भारत जाने वाली 90 वर्षीय रीना छिब्बर वर्मा का रावलपिंडी में अपने पुश्तैनी मकान को देखने का सपना 75 साल बाद आखिरकार पूरा हो गया। पाकिस्तान ने भारतीय नागरिक वर्मा को वीजा दे दिया और वह वाघा-अटारी सीमा के जरिए शनिवार को यहां पहुंचीं।
पाकिस्तान पहुंचने के तुरंत बाद नम आंखों से वर्मा अपने गृह नगर रावलपिंडी रवाना हो गयीं, जहां वह अपने पुश्तैनी मकान प्रेम निवास एवं अपने स्कूल जाएंगी और अपने बचपन के दोस्तों से मिलेंगी। सोशल मीडिया पर अपलोड एक वीडियो में पुणे की रहने वाली वर्मा ने कहा कि उनका परिवार विभाजन के समय रावलपिंडी के देवी कॉलेज रोड पर रहता था।
उन्होंने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा, ‘‘मैं मॉडर्न स्कूल में पढ़ती थी। मेरे चार भाई-बहन भी उसी स्कूल में पढ़ते थे। मेरे भाई और एक बहन ने मॉडर्न स्कूल के समीप स्थित गोर्डन कॉलेज से भी पढ़ाई की।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरे बड़े भाई-बहनों के मुस्लिम दोस्त थे, जो हमारे घर आते-जाते रहते थे क्योंकि मेरे पिता प्रगतिशील विचारों वाले शख्स थे और उन्हें लड़कों एवं लड़कियों के आपस में मिलने से कोई दिक्कत नहीं थी। विभाजन से पहले हिंदू और मुसलमानों का कोई ऐसा मुद्दा नहीं था। यह सब तो विभाजन के बाद हुआ।’’
वर्मा ने कहा, ‘‘भारत का विभाजन हालांकि गलत था लेकिन जब अब यह हो गया है तो दोनों देशों को हम सभी के लिए वीजा पाबंदियों में ढील देने की दिशा में काम करना चाहिए।’’ भारत में पाकिस्तानी उच्चायोग ने सद्भावना दिखाते हुए वर्मा को तीन महीने का वीजा दे दिया। वर्मा 1947 में विभाजन के दौरान 15 साल की उम्र में भारत आयी थीं।
वर्मा ने 1965 में पाकिस्तानी वीजा के लिए आवेदन दिया था लेकिन युद्ध के कारण दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर होने के कारण उन्हें वीजा नहीं मिला था। जीवन के नब्बे वसंत देख चुकी वर्मा ने कहा कि उन्होंने पिछले साल सोशल मीडिया पर अपने पुश्तैनी घर जाने की इच्छा जतायी थी। इसके बाद पाकिस्तानी नागरिक सज्जाद हैदर ने सोशल मीडिया पर उनसे संपर्क किया और रावलपिंडी में उनके घर की तस्वीरें उन्हें भेजी।
हाल में उन्होंने फिर से पाकिस्तानी वीजा के लिए आवेदन दिया, जिसे ठुकरा दिया गया था। इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान की विदेश मामलों की राज्य मंत्री हीना रब्बानी खार को सोशल मीडिया पर टैग करते हुए अपनी इच्छा व्यक्त की और उन्होंने उनके वीजा की व्यवस्था की।
अनाज, दाल, आटे के 25 किलो से कम वजन के पैक महंगे हुए, पांच प्रतिशत जीएसटी लागू
नयी दिल्ली । पैकेटबंद और लेबल वाले खाद्य पदार्थ मसलन आटा, दालें और अनाज सोमवार से माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में आ गए हैं। इनके 25 किलोग्राम से कम वजन के पैक पर पांच प्रतिशत जीएसटी लागू हो गया है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने अनाज से लेकर दालों और दही से लेकर लस्सी तक खाद्य पदार्थों पर जीएसटी लगाए जाने से संबंधित बार-बार पूछे जाने वाले सवालों पर स्पष्टीकरण जारी किया है। इसमें कहा गया, ‘‘जीएसटी उन उत्पादों पर लगेगा जिनकी आपूर्ति पैकेटबंद सामग्री के रूप में की जा रही है। हालांकि, इन पैकेटबंद सामान का वजन 25 किलोग्राम से कम होना चाहिए।’’
दही और लस्सी जैसे पदार्थों के लिए यह सीमा 25 लीटर है। मंत्रालय ने कहा, ‘‘18 जुलाई, 2022 से प्रावधान में लागू हो गया है और पहले से पैक तथा लेबल वाले उत्पादों की आपूर्ति पर जीएसटी लगेगा।’’
उदाहरण के लिए, चावल, गेहूं जैसे अनाज, दालों और आटे पर पहले पांच प्रतिशत जीएसटी तब लगता था जब ये किसी ब्रांड के होते थे। अब 18 जुलाई से जो भी सामान पैकेटबंद है और जिसपर लेबल लगा है, उन पर जीएसटी लगेगा।
इसके अलावा दही, लस्सी और मुरमुरे जैसी अन्य वस्तुएं यदि पहले से पैक और लेबल वाली होंगी, तो इनपर पांच फीसदी की दर से जीएसटी लगेगा। ‘एफएक्यू’ में कहा गया कि पांच प्रतिशत जीएसटी पहले से पैक उन्हीं वस्तुओं पर लगेगा जिनका वजन 25 किलोग्राम या इससे कम है। हालांकि, खुदरा व्यापारी 25 किलो पैक में सामान लाकर उसे खुले में बेचता है तो इसपर जीएसटी नहीं लगेगा।
पिछले हफ्ते सरकार ने अधिसूचित किया था कि 18 जुलाई से बिना ब्रांड वाले और पैकेटबंद तथा लेबल वाले खाद्य पदार्थों पर पांच प्रतिशत की दर से जीएसटी लगेगा। इससे पहले तक केवल ब्रांडेड सामान पर ही जीएसटी लगाया जाता था। इसमें कहा गया, ‘‘यह स्पष्ट किया जाता है कि अनाज, दालें और आटे के एक-एक पैकेट जिनका वजन 25 किलोग्राम/लीटर से अधिक है वे पहले से पैक एवं लेबल वाली वस्तुओं की श्रेणी में नहीं आएंगे, अत: इनपर जीएसटी नहीं लगेगा।’’
इसमें उदाहरण देते हुए कहा है कि खुदरा बिक्री के लिए पैकेटबंद आटे के 25 किलोग्राम के पैकेट की आूपर्ति पर जीएसटी लगेगा। हालांकि, इस तरह का 30 किलो का पैकेट जीएसटी के दायरे से बाहर होगा। यह भी बताया गया कि उस पैकेज पर जीएसटी लगेगा जिसमें कई खुदरा पैक होंगे। उसने उदाहरण दिया कि 50 किलो वाले चावल के पैकेज को पहले से पैक और लेबल वाला सामान नहीं माना जाएगा और इसपर जीएसटी नहीं लगेगा। एएमआरजी एंड एसोसिएट्स में वरिष्ठ साझेदार रजत मोहन ने कहा कि इस कर से चावल और अनाज जैसी बुनियादी खाद्य वस्तुओं की मूल्य आधारित मुद्रास्फीति आज से ही बढ़ जाएगी।
केंद्र ने दी पांच वर्ष में सात शहरों, नगरों के नाम बदलने की मंजूरी : सरकार
नयी दिल्ली । केंद्र ने विगत पांच वर्षों में सात शहरों और नगरों के नाम बदलने को मंजूरी प्रदान की है जिनमें इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करना भी शामिल है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से प्रदेश का नाम तीनों भाषाओं-बांग्ला, अंग्रेजी और हिंदी में ‘बांग्ला’ करने का प्रस्ताव आया है।
मंत्री ने बताया कि उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने को 15 दिसंबर, 2018 को अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) दिया गया।
उनके अनुसार, आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी शहर का नाम राजा महेंद्रवरम करने, झारखंड में नगर उंटारी का नाम श्री बंशीधर नगर करने को भी मंजूरी दी गई। मंत्री ने बताया कि मध्य प्रदेश के बीरसिंहपुर पाली को मां बिरासिनी धाम, होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम करने और बाबई का नाम माखन नगर करने को स्वीकृति दी गई।