Sunday, July 27, 2025
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जब एक बच्चे ने बचायी पंडित नेहरू की जान

नयी दिल्ली । विजयादशमी पर आज पूरे देश में रावण दहन हो रहा है। बरसों से चली आ रही परंपरा के तहत कई जगहों पर रामलीला का मंचन होता है और आज के दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देते हुए रावण का अंत किया जाता है। कुछ साल पहले तक काफी आतिशबाजी और पटाखे फोड़े जाते थे लेकिन दिल्ली-एनसीआर समेत कई शहरों में प्रदूषण को देखते हुए इसमें काफी कमी करनी पड़ी। लेकिन आज से 70-75 साल पहले दिल्ली की रामलीला में खूब पटाखे फोड़े जाते थे। देश को आजाद हुए तब 10 साल हुए थे और रामलीला में की गई आतिशबाजी के दौरान पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की जान पर बन आई थी। जी हां, आज की पीढ़ी को शायद ही पता हो कि तब एक बच्चे की फुर्ती और सूझबूझ से नेहरू की जान बची थी।

उस पंडाल में नेहरू के साथ विदेशी भी थे। यह सच्ची घटना 1957 की है। 2 अक्टूबर के दिन पुरानी दिल्ली के रामलीला मैदान पर रामलीला देखने के लिए नेहरू आए हुए थे। उनके साथ कुछ विदेशी मेहमान भी थे। आतिशबाजी हो रही थी तभी एक पटाखा उसी शामियाने पर आकर गिरा जिसके नीचे नेहरू और अन्य वीआईपी बैठे हुए थे। सेंकेंडों में आग धधक गई और भगदड़ मच गई। तब आज की तरह सुरक्षा में इतना तामझाम नहीं हुआ करता था। तभी एक किशोर ने नेहरू का हाथ पकड़ा और झट से सुरक्षित स्थान पर ले गया। रामलीला के स्टेज पर उन्हें पहुंचाने के बाद वह शामियाने में भागकर आया और जलते हुए हिस्से को काटकर अलग कर दिया जिससे आग और ज्यादा न फैले।
उस बच्चे की उम्र 14 साल थी और वह स्काउट्स का ट्रूप लीडर था। उसका नाम था हरीश चंद्र मेहरा। नेहरू को बचाने और शामियाने को अलग करने के दौरान वह घायल भी हो गया था। आपको जानकर गर्व होगा कि एक महीने बाद इस बच्चे को बहादुरी का इनाम मिला और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तीन मूर्ति भवन में उसे पुरस्कृत किया था। इसके साथ ही बच्चों के लिए वीरता पुरस्कार देने का ऐलान हुआ।
देश के पहले पीएम की जान बचाने वाले हरीश चंद्र मेहरा ने 2014 में एक इंटरव्यू में बताया था कि पंडित नेहरू जैसी हस्ती से सम्मान मिलना गर्व की बात थी। मुझे घर-परिवार और दूरदराज से बधाइयां आई थीं। मीडिया वाले इंटरव्यू लेते और डॉक्यूमेंट्री भी बनी। उन्होंने कहा था कि वह एक ही रात में आसमान के चमकते हुए सितारे बन गए थे।
नेहरू के साथ हाथ मिलाने वाली, पुरस्कृत करते और साथ में उनकी एक अन्य तस्वीर आज भी उस घटना की याद दिलाती है।

देश में लड़कों और लड़कियों की शिशु मृत्‍यु दर हुई बराबर

नयी दिल्‍ली । दशकों से भारत के दामन पर एक दाग लगा रहा है। यहां बेटों को बेटियों पर तरजीह मिलती है। पैदा होने के बाद बेटियां मार दी जाती हैं, ऐसा महिलाओं से जुड़े हर दूसरे लेख में कहा जाता था। धीरे-धीरे ही सही, यह दाग धुल रहा है। 2020 से यह स्थिति बदली है। अब लड़के और लड़कियों, दोनों में शिशु मृत्‍यु दर (इन्फैन्ट मोर्टेलिटी रेट) बराबर हो गयी है।
13 राज्‍यों में लड़कियों की शिशु मृत्‍यु दर लड़कों से कम या बराबर हो गई है। 16 राज्‍य अब भी ऐसे हैं जहां लड़कियों में आईएमआर लड़कों से ज्‍यादा है, हालांकि अंतर कम हो रहा है। शिशु मृत्‍यु दर का मतलब प्रति 1,000 जन्‍मों पर नवजात मृतकों की संख्‍या से है। ग्रामीण भारत में लड़के और लड़कियों की शिशु मृत्‍यु दर का अंतर कम जरूर हुआ है लेकिन लड़कियों की आईएमआर ज्‍यादा है। शहरी भारत में, लड़के और लड़कियों की आईएमआर में अंतर 2011 में काफी ज्‍यादा था। 2020 में लड़कियों की आईएमआर लड़कों से नीचे गिर गई है।
2011 में उत्‍तराखंड को छोड़कर बाकी सारे राज्‍यों में लड़कियों में शिशु मृत्‍यु दर लड़कों से ज्‍यादा थी। वहां पर दोनों दरें बराबर थीं, लेकिन SRS स्‍टैटिस्टिकल रिपोर्ट 2020 दिखाती है कि पांच राज्‍यों और राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लड़के और लड़कियों में शिशु मृत्‍यु दर बराबर थी। आठ राज्‍यों में लड़कियों की शिशु मृत्‍यु दर लड़कों से कम रही। सभी राज्‍यों में ग्रामीण क्षेत्रों की शिशु मृत्‍यु दर शहरी इलाकों से ज्‍यादा रही।

त्योहारी सीजन में 179 विशेष ट्रेनें चलाएगा रेलवे

नयी दिल्ली । भारतीय रेलवे इस त्योहारी सीजन के दौरान 179 विशेष ट्रेन सेवाएं चलाएगा। रेलवे का कहना है कि प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर भीड़ प्रबंधन को प्राथमिकता दी जा रही है। रेल मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, भारतीय रेलवे इस त्योहारी सीजन में छठ पूजा तक यात्रियों की सुविधा और अतिरिक्त भीड़ को कम करने के लिए 179 विशेष ट्रेनों (जोड़े में) को चला रहा है। दिल्ली-पटना, दिल्ली-भागलपुर, दिल्ली मुजफ्फरपुर, दिल्ली-सहरसा आदि रेल मार्गों को देशभर के प्रमुख गंतव्यों को जोड़ने के विशेष ट्रेनों की योजना बनाई गई है।
प्रमुख स्टेशनों पर अतिरिक्त आरपीएफ कर्मियों की तैनाती
बयान में कहा गया है कि अनारक्षित डिब्बों में यात्रियों के व्यवस्थित प्रवेश के लिए आरपीएफ कर्मियों की देखरेख में टर्मिनस स्टेशनों पर कतार बनाकर भीड़ को नियंत्रित करने के उपाय सुनिश्चित किए जा रहे हैं। यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख स्टेशनों पर अतिरिक्त आरपीएफ कर्मियों की तैनाती की गई है।
आपातकालीन ड्यूटी पर तैनात किए गए अधिकारी
इसके मुताबिक ट्रेनों के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख स्टेशनों पर आपातकालीन ड्यूटी पर अधिकारियों को तैनात किया गया है। प्राथमिकता के आधार पर कर्मचारियों को विभिन्न वर्गों में तैनात किया गया है ताकि यात्रियों की सेवा में किसी भी प्रकार व्यवधान न हो।
बयान के मुताबिक, प्लेटफॉर्म नंबर वाली ट्रेनों के आगमन या प्रस्थान की बार-बार और समय पर घोषणा के लिए उपाय किए गए हैं। इसके अलावा महत्वपूर्ण स्टेशनों पर ‘मे आई हेल्प यू’ बूथ चालू रखे जाएंगे ताकि यात्रियों की उचित सहायता मिल सके। प्रमुख स्टेशनों पर चिकित्सा सहायता के लिए पैरामेडिकल टीम के साथ एंबुलेंस भी उपलब्ध होगी।

 

कर राजस्व से कई गुना अधिक पेंशन देनदारी, एसबीआई की रिपोर्ट में खुलासा

मुफ्त की घोषणाएं अर्थव्यवस्था के लिए घातक
नयी दिल्ली । पिछले कुछ समय से राजनीतिक पार्टियों द्वारा लोगों को फ्री का लालच देने का चलन चल रहा है। विभिन्न पार्टियां मुफ्त वस्तुएं बांटने या फ्री सुविधाएं देने की घोषणाएं करती हैं। आने वाले समय में ये अर्थव्यवस्था के लिये घातक साबित हो सकती हैं। एक रिपोर्ट में इस बारे में आगाह किया गया है। इसमें सुझाव दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ऐसे खर्चों को राज्य की जीडीपी या राज्य के कर संग्रह के एक फीसदी तक सीमित कर दे। राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में दिये जाने वाले उपहारों को लेकर जारी बहस के बीच एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई।
तीन लाख करोड़ रुपये होगी 3 राज्यों की पेंशन देनदारी
यह रिपोर्ट एसबीआई के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष द्वारा लिखी गई है। इस रिपोर्ट में तीन राज्यों का उदाहरण दिया गया है। इसमें कहा गया है कि गरीब राज्यों की श्रेणी में आने वाले छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में सालाना पेंशन देनदारी तीन लाख करोड़ रुपये अनुमानित है। रिपोर्ट के अनुसार, इन राज्यों के कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में अगर पेंशन देनदारी को देखा जाए तो यह काफी ऊंचा है। झारखंड के मामले में यह 217 फीसदी, राजस्थान में 190 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 207 फीसदी है।
कई राज्यों में पुरानी पेंशन व्यवस्था पर हो रहा विचार
जो राज्य पुरानी पेंशन व्यवस्था फिर से लागू करने पर विचार कर रहे हैं, उनमें भी पेंशन देनदारी काफी अधिक हो जाएगी। हिमाचल प्रदेश में कर राजस्व के अनुपात में पेंशन देनदारी 450 फीसदी, गुजरात के मामले में 138 फीसदी और पंजाब में 242 फीसदी हो जाएगी। बता दें कि पुरानी पेंशन व्यवस्था में लाभार्थी कोई योगदान नहीं करते।
बढ़ रहा राज्यों का कर्ज
रिपोर्ट में बताया गया कि उपलब्ध ताजा सूचना के अनुसार, राज्यों का बजट से इतर कर्ज 2022 में करीब 4.5 फीसदी पर पहुंच गया। इसके अंतर्गत वह कर्ज है, जो सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां जुटाती हैं और जिसकी गारंटी राज्य सरकारें देती हैं। विभिन्न राज्यों में इस प्रकार की गारंटी जीडीपी के उल्लेखनीय प्रतिशत पर पहुंच गयी है। तेलंगाना के मामले में इस प्रकार की गारंटी का हिस्सा जीडीपी का 11.7 फीसदी, सिक्किम में 10.8 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 9.8 फीसदी, राजस्थान में 7.1 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 6.3 फीसदी है। इस गारंटी में बिजली क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है। अन्य लाभ वाली योजनओं में सिंचाई, बुनियादी ढांचा विकास, खाद्य और जलापूर्ति शामिल हैं।
दायरा तय करे सुप्रीम कोर्ट
रिपोर्ट में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की समिति मुफ्त में दिये जाने वाले उपहारों के लिये दायरा तय कर सकती है। यह कल्याणकारी योजनाओं के लिये सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) या राज्य के अपने कर संग्रह का एक फीसदी अथवा राज्य के राजस्व व्यय का एक फीसदी हो सकता है।
खूब हो रहे चुनावी वादे लेकिन पैसा कहां से आएगा?
रिपोर्ट के मुताबिक, जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें विभिन्न राजनीतिक दल खूब वादे कर रहे हैं। ये वादे राजस्व प्राप्ति और राज्य के कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में क्रमश: हिमाचल प्रदेश में 1-3 प्रतिशत और 2-10 प्रतिशत है, साथ ही यह गुजरात में 5 से 8 प्रतिशत और 8-13 प्रतिशत है। लाभार्थियों के बिना किसी योगदान वाली पुरानी पेंशन व्यवस्था को अपनाने या उसका वादा करने वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश में यह कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में 450 प्रतिशत, गुजरात में 138 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 207 प्रतिशत, राजस्थान में 190 प्रतिशत, झारखंड में 217 प्रतिशत और पंजाब में 242 प्रतिशत बैठेगा।
जानिए कितना बढ़ जाएगा राज्यों पर बोझ
झारखंड के मामले में यह 6,005 करोड़ रुपये था। यह इसके जीएसडीपी का 1.7 फीसदी है। इसमें 54,000 करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान है। राजस्थान में यह 20,761 करोड़ रुपये था। इसके बढ़कर जीएसडीपी का छह फीसदी हो जाने का अनुमान है। इससे यह बढ़कर 1.87 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। पंजाब में यह 10,294 करोड़ रुपये था और इसके बढ़कर जीएसडीपी के तीन फीसदी पर पहुंचने का अनुमान है। कुल बोझ में 92,000 करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। हिमाचल प्रदेश में यह 5,490 करोड़ रुपये था। इसके जीएसडीपी के 1.6 फीसदी तथा 49,000 करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान है। गुजरात में पेंशन बोझ वित्त वर्ष 2019-20 में 17,663 करोड़ रुपये था। इसके उछलकर राज्य जीडीपी के 5.1 फीसदी पर पहुंचने का अनुमान है। इसमें 1.59 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी होगी।

रिलायंस जियो ने उतारा पहला लैपटॉप ‘जियोबुक’

नयी दिल्ली । रिलायंस जियो ने अपना पहला लैपटॉप ‘जियोबुक’ लॉन्च कर दिया है। सरकार के ई-मार्केटप्लेस (जेम) पोर्टल पर लैपटॉप के स्पेसिफिकेशंस और कीमत रिवील की गई। 2 जीबी रैम वाले इस लैपटॉप की कीमत 19,500 रुपये है।
यहां से खरीद सकेंगे
लैपटॉप सेलिंग के लिए अवेलेबल है, लेकिन इसे हर कोई नहीं खरीद सकता। सरकारी डिपार्टमेंट ही इसे जेम पोर्टल के माध्यम से खरीद सकते हैं। माना जा रहा है कि बाकी जनता दिवाली के बाद से जियोबुक खरीद सकेगी। दिल्ली के प्रगति मैदान में एक से 4 अक्टूबर तक हुई ‘इंडियन मोबाइल कांग्रेस’ में भी जियोबुक को डिस्प्ले के लिए रखा गया था।
32 जीबी की स्टोरेज मिलेगी
जियो लैपटॉप में 2 जीबी की रैम है। इसमें रैम एक्सपांडेबल सपोर्ट नहीं है। इसके अलावा 32GB की स्टोरेज मिलेगी। कंपनी ने इस लो-बजट लैपटॉप में 6 से 8 घंटे की बैटरी बैकअप का दावा किया है। 1.2 किलो के डिवाइस में एक साल की ब्रांड वॉरंटी मिलेगी।
11.6 इंच की एचडी लेड स्क्रीन
जियोबुक में 11.6 इंच की एचडी लेड बैकलिट एंटी-ग्लैयर स्क्रीन मिलेगी। नॉन-टच स्क्रीन डिवाइस में 1366*768 पिक्सल का रेजोल्यूशन है। डिवाइस में यूएसबी 2.0 पोर्ट,यूएसबी 3.0 पोर्ट और एक एचडीएमआई पोर्ट आएगा। इसमें माइक्रो एसडी कार्ड स्लॉट उपलब्ध है, लेकिन टाइप-C पोर्ट नहीं है।
स्नैपड्रैगन 665 प्रोसेसर शामिल
जियोबुक में क्वालकॉम स्नैपड्रैगन 665 ऑक्टा कोर प्रोसेसर इन-बिल्ट है। स्टैंडर्ड फॉर्म फैक्टर से फीचर्ड डिवाइस में मेटलिक हिंज लगी हैं। इसका चैसिस एबीएस प्लास्टिक से बना है। डिवाइस कंपनी के ही जियो ऑपरेटिंग सिस्टम पर वर्क करता है।
वाई – फाई कनेक्टिविटी मिलेगी
डिवाइस में 802.11एसी वाई – फाई कनेक्टिविटी मिलेगी। ब्लूटूथ कनेक्टिविटी फीचर वाले डिवाइस में ब्लूटूथ वर्जन 5.2 शामिल है। डिवाइस 4 जी मोबाइल ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी को भी सपोर्ट कर रहा है। इसमें डुअल इंटरनल स्पीकर और डुअल माइक्रोफोन भी मिलेंगे।
स्टैंडर्ड साइज की-बोर्ड और मल्टी-जेस्चर सपोर्ट करने वाला टचपैड भी आएगा। हालांकि, इसमें किसी भी तरह का फिंगर प्रिंट स्कैनर नहीं है।

 

भरतकूप की राम शैया : जहाँ रहे वनवासी राम, चट्टान पर आज भी दिखते हैं निशान

मान्यता है 20 फीट ऊंची शिला पर करते थे विश्राम
चित्रकूट से भरतकूप जाने पर बीच में चित्रकूट पर्वत पर एक विशाल चट्टान दिखाई देगी। नाम है- राम शैया। मान्यता है कि यहां पर वनवास के दौरान भगवान राम और माता सीता रात्रि विश्राम किया करते थे। चट्‌टान पर दो निशान दिखाई देते हैं। पहले निशान की लंबाई 15 फीट और दूसरे की 11 फीट है। माना जाता है कि यहीं पर भगवान राम और माता सीता लेटते थे, जिसकी वजह से निशान बन गए हैं।
यह जगह कामदगिरि से 2 किमी दूर है। लखनऊ से यह स्थान 300 किमी दूर है। उस शिला के दर्शन किए, जिसे राम-सीता के शयन का स्थान बताया जाता है। यहां के मुख्य पुजारी से बात कर शिला से जुड़ा इतिहास भी जाना। आइए आपको भी वहीं ले चलते हैं…
जहां राम-सीता लेटते थे, वहां की चट्टान उसी आकार की हो गई
राम शैया के मुख्य पुजारी पंडित बढ़कू द्विवेदी ने बताया, “राम मर्यादा बनाए रखने के लिए सीता और अपने बीच तरकश रखा करते थे। माता सीता श्रीराम के दाईं तरफ सोती थीं। ये चट्टान उनके आकार में ही पिघली हुई है। दोनों के बगल में रखे धनुष की छवि आज भी चट्टान पर दिखती है।”पुजारी कहते हैं, “तुलसीदास रचित रामायण में यह कहा गया है कि जब राम के छोटे भाई भरत उनसे मिलने चित्रकूट आए, तब रात में वह राम शैया स्थान पर भी मां सीता और राम से मिले थे। उनसे मिलकर वहीं से वह आगे भरतकूप चले गए थे।”
दिन कामतानाथ पर्वत पर और रात चित्रकूट गिरि में बिताते थे राम
वह बताते हैं, ”चित्रकूट में वनवास के दौरान राम, सीता और लक्ष्मण पूरा दिन कामतानाथ पर्वत पर बिताते थे। वहां उनसे मिलने बड़े-बड़े ऋषि और महात्मा आते थे। मुनियों से मुलाकात करने के बाद रात में राम-सीता कामदगिरि से 2 किमी दूर चित्रकूट गिरि पर मौजूद एक बड़ी चट्टान पर विश्राम करने आ जाते थे। उनके छोटे भाई लक्ष्मण पहाड़ी पर चढ़ जाते थे। वहां से रात भर सीता और राम की सुरक्षा करते थे।”
चित्रकूट पर्वत पर हैं 3 हजार नीम के पेड़
राम शैया पर्वत की रखवाली का जिम्मा यहां से सटी ग्राम पंचायत बिहारा के लोगों पर है। बिहारा के रहने वाले जीतेंद्र ने बताया, “राम शैया की देख-रेख के लिए गांव के सभी लोग सहयोग करते हैं। यहां के परिक्रमा मार्ग के सुधार और साफ-सफाई का ध्यान दिया जाता है।”
जीतेंद्र आगे कहते हैं, “पूरे पर्वत पर 3000 से ज्यादा नीम के पेड़ हैं, जो रात में भी ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इन पेड़ों को यहां किसी ने रोपा नहीं है, खुद ही उगे हैं। राम शैया के पास धर्म-दीन मंदिर है। यहां आने वाले पर्यटक रुककर विश्राम करते हैं। यहां समय-समय पर भजन-कीर्तन भी होते रहते हैं।”दशहरे पर होता है रावण दहन, आते हैं 50 गांव के लोग
दशहरे पर राम शैया स्थान को एक हफ्ते पहले से सजाया जाता है। यहां रावण का विशाल पुतला बनाकर जलाया जाता है। बिहारा गांव के लवकुश कहते हैं, “शारदीय नवरात्र के बाद दशहरे के दिन राम शैया के पास रावण दहन किया जाता है। यहां उसी दिन भंडारा भी होता है, जिसमें शामिल होने आस-पास के 50 गांव के लोग आते हैं।”
(साभार – दैनिक भास्कर)

 

आरएसएस की विजयादशमी में पहली बार महिला मुख्य अतिथि

नयी दिल्ली । नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विजयादशमी इस बार विशे्ष रही। इस दौरान शस्त्र पूजा की गयी। पहली बार महिला मुख्य अतिथि इस कार्यक्रम में शामिल हुईं। पर्वतारोही संतोष यादव दशहरा कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं। संतोष यादव दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली दुनिया की एक मात्र महिला हैं। अपने भाषण में मोहन भागवत ने कहा कि समाज में सभी के लिए मंदिर, पानी और श्मशान एक होने चाहिए। उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों से इसके लिए प्रयास करने की अपील की। मोहन भागवत ने कहा कि ऐसे प्रयास संघ के स्वयंसेवक करेंगे तो समाज में विषमता को दूर किया जा सकेगा।

संघ के दशहरा समारोह में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस, सरसंघचालक डा। मोहन भागवत मौजूद थे। आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे पर अपने भाषण में समाज में एकता की अपील की है। खासतौर पर दलितों के खिलाफ अत्याचार का जिक्र करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि कौन घोड़ी चढ़ सकता है और कौन नहीं, इस तरह की बातें अब समाज से विदा हो जानी चाहिए।

मोहन भागवत ने कहा कि जो सारे काम पुरुष करते हैं, वह महिलाएं भी कर सकती हैं। लेकिन जो काम महिलाएं कर सकती हैं, वो सभी काम पुरुष नहीं कर सकते। महिलाओं को बराबरी का अधिकार, काम करने की आजादी और फैसलों में भागीदारी देना जरूरी है। यह जरूरी है कि महिलाओं को सभी क्षेत्रों में बराबरी का अधिकार और काम करने की आजादी दी जाए। हम इस बदलाव को अपने परिवार से ही शुरू कर रहे हैं। हम अपने संगठन के जरिए समाज में ले जाएंगे। जब तक महिलाओं की बराबरी की भागीदारी निश्चित नहीं की जाएगी, तब तक देश की जिस तरक्की को हासिल करने की हम कोशिशें कर रहे हैं, उसे हासिल नहीं किया जा सकता।

अणुओं पर अनुसंधान के लिये तीन वैज्ञानिकों को मिला रसायन का नोबेल पुरस्कार

स्टाकहोम ।  रसायन विज्ञान में इस वर्ष का नोबेल पुरस्कार कैरोलिन आर बर्टोज्जी, मोर्टन मेल्डल और के. बैरी शार्पलेस को समान भागों में ‘अणुओं के एक साथ विखंडन’ का तरीका विकसित करने के लिए प्रदान किया गया है। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज के महासचिव हैंस एलेग्रेन ने बुधवार को स्वीडन के स्टॉकहोम में करोलिंस्का इंस्टीट्यूट में विजेताओं की घोषणा की। उनके काम को क्लिक रसायन और बायोऑर्थोगोनल प्रतिक्रियाओं के रूप में जाना जाता है। इसका उपयोग कैंसर की दवाएं बनाने, डीएनए मैपिंग करने और एक विशिष्ट उद्देश्य के अनुरूप सामग्री बनाने के लिए किया जाता है। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज के महासचिव हैंस एलेग्रेन ने बुधवार को स्वीडन के स्टॉकहोम में करोलिंस्का इंस्टीट्यूट में विजेताओं की घोषणा की।
उनके काम को क्लिक रसायन और बायोऑर्थोगोनल प्रतिक्रियाओं के रूप में जाना जाता है। इसका उपयोग कैंसर की दवाएं बनाने, डीएनए मैपिंग करने और एक विशिष्ट उद्देश्य के अनुरूप सामग्री बनाने के लिए किया जाता है।
बर्टोज्जी कैलिफोर्निया में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में स्थित हैं, मेल्डल डेनमार्क के कोपेनहेगन विश्वविद्यालय से हैं और शार्पलेस कैलिफोर्निया के स्क्रिप्स रिसर्च से संबद्ध हैं। शार्पलेस ने पहले 2001 में नोबेल पुरस्कार जीता था। वह दो बार पुरस्कार प्राप्त करने वाले पांचवें व्यक्ति हैं।
निएंडरथल डीएनए के रहस्यों को उजागर करने वाले वैज्ञानिक को सम्मानित करने वाले चिकित्सा पुरस्कार के साथ सोमवार को नोबेल पुरस्कार की घोषणाओं का सप्ताह शुरू हो गया। तीन वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से मंगलवार को भौतिकी में यह पुरस्कार जीता कि छोटे कण अलग होने पर भी एक दूसरे के साथ संबंध बनाए रख सकते हैं।

जानिए, क्या है क्लिक केमिस्ट्री
स्वीडन के स्टॉकहोम स्थित नोबेल कमेटी ने बुधवार को रसायन के नोबेल पुरस्कार का एलान कर दिया। अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की कैरोलिन बेरटोजी, स्क्रिप्स रिसर्च के बैरी शार्पलेस और डेनमार्क की यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन के मॉर्टेन मिएलडॉल को साझा तौर पर यह सम्मान दिया गया है। तीनों को केमिस्ट्री की एक अहम खोज- ‘क्लिक केमिस्ट्री’ के लिए इस पुरस्कार के लिए चुना गया। इन वैज्ञानिकों की खोज कितनी अहम है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज दवाओं के निर्माण से लेकर मरीजों के डायग्नोस्टिक और नए पदार्थों के निर्माण में भी क्लिक केमिस्ट्री का अहम योगदान है।

स्वाद से लीजिए विजय के उत्सव का आनन्द

 गुलगुला

सामग्री : 250 ग्राम गेहूं का आटा, पाव कटोरी बेसन, 150 ग्राम शकर, 1 चम्मच इलायची पाउडर, 1 छोटी चम्मच खसखस, तलने के लिए तेल।

विधि : सर्वप्रथम आटे में शकर डालकर उसका गाढ़ा घोल करके आधे घंटे के लिए रख दें। तत्पश्चात उसमें इलायची पाउडर, खसखस के दाने डालकर मिश्रण को एकसार कर लें। एक कड़ाही में तेल गरम कर उसके गोल-गोल पकौड़े तल लें। लीजिए तैयार है क्रंची मीठे गुलगुले। दशहरा पर्व पर इसे बनाएं, खाएं और खिलाएं।

 

चटपटी कुरकुरी कचौरी


सामग्री : 500 ग्राम मैदा, 1/2-1/2 कटोरी उड़द मोगर-मूंग मोगर, 2 चुटकी हींग, 2 चम्मच दरदरी सौंफ, 2 चम्मच धनिया पाउडर, 1 कटोरी दही, गरम मसाला 1/2 चम्मच, लाल मिर्च 1 चम्मच, तेल तलने के लिए।
विधि : सबसे पहले दोनों दालों को कचोरी बनाने के 3-4 घंटे पूर्व भिगो दें। कुछ दाल छोड़ कर बाकी को दरदरा पीस लें। अब कड़ाही में थोड़ा-सा तेल लेकर सौंफ का बघार व हींग डालें, दाल दरदरी एवं खड़ी दोनों को भूनें व सभी मसाले मिलाकर ठंडा कर लें।
मैदे में 1/2 टी स्पून नमक मिलाकर छान लें। डेढ़ बड़ा चम्मच मोयन डालकर रोटी जैसा गूंध लें, छोटी-छोटी लोई बना लें, हथेली को चिकना करके लोई फैलाएं, किनारे पतले करके मसाला भरें व बंद करके कचौरियां तैयार कर लें। तेल गर्म करें फिर गुनगुने तेल में कचौरियां डालें। धीमी आंच पर कचौरियां सुनहरी होने तक तल लें। गर्मा-गर्म कचौरियों को हरी चटनी के साथ सर्व करें और पर्व का आनंद उठाएं।

तो यह है पूजा और त्योहारों में गेंदे का महत्व

त्योहार कोई भी हो, उत्सव कोई भी हो, गेंदे के फूलों का अपना महत्व है। केसरिया और हल्के पीले गेंदे के फूल किसी भी सजावट में रौनक ला देते हैं। जानिए इसके महत्व के बारे में –
गेंदे का रंग केसरिया है। यह रंग विजय, हर्ष और उल्लास का प्रतिनिधित्व करता है। इस फूल का धार्मिक महत्व भी अन्य फूलों से ज्यादा है। यूं तो गुलाब तथा चमेली के साथ और भी अन्य कई प्रकार के सुगंधित फूल धरती पर मौजूद हैं तब भी गेंदे के फूल का रंग शुभ का प्रतीक माना जाता है। इनके चटख रंग देखकर ही मन प्रफुल्लित हो जाता है। केसरिया मिश्रित पीला या लाल मिश्रित पीला दोनों ही रंग पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं अत: प्रकृति प्रदत्त यह उपहार पर्व के प्रति स्नेह, सम्मान और प्रसन्नता दर्शाते हैं।
2. इसका अपना अलग धार्मिक महत्व भी है। अत: विजय पर्व पर गेंदे को सजाने और पूजा में चढ़ाने का महत्व है। इसे सूर्य का प्रतीक भी माना गया है। प्राचीन ग्रंथों में यह फूल सुंदरता और ऊर्जा का प्रतीक भी माना गया है। ये फूल शब्दों के बिना ही विजय पर्व के प्रति प्रसन्नता जाहिर कर देते हैं।

3. यह दिव्य शक्तियों के साथ सत्य का प्रतीक माना गया है। इसके लाल मिश्रित पीले रंग को भगवान के प्रति समर्पण का प्रतीक माना है। इसकी गंध सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों को दूरकर तनाव को कम करती है। यह सामान्यत: वातावरण को शांति प्रदान करने वाला होता है।
4. इसके अंदर कैंसर जैसी घातक बीमारियों से दूर रखने का गुण होते हैं। यह सजावटी फूल प्राकृतिक रूप से कीट-पतंगों के साथ मच्छरों को भी दूर रखने में सहायता प्रदान करता है। रिसर्च से पता चला है कि इसके अंदर कान के संक्रमण को दूर करने की क्षमता होती है। यह प्राकृतिक रूप से एंटीसेप्टिक भी है।

5. दशहरा आते ही गेंदे के भाव आसमान छूने लगते हैं। इसे मेरीगोल्ड भी कहते हैं परंतु संपूर्ण भारत में यह गेंदे के नाम से जाना जाता है। इसे संस्कृत में स्थूलपुष्प के नाम से जाना जाता है।

गेंदे के फूलों को सांगली, सातारा और बैंगलोर से विशेष रूप से मंगवाया जाता है। दशहरे से लेकर दिवाली तक गेंदे की बिक्री करोड़ों में होती है। घर में खुशनुमा माहौल बनाने वाले गेंदे की मांग हर तरफ दिखाई देती है।
(साभार – वेब दुनिया)