Wednesday, August 6, 2025
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भवानीपुर कॉलेज ने नेपथ्य के नायकों का किया पुष्प फागुनी सम्मान

कोलकाता । भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के विद्यार्थियों और शिक्षक गणों ने कॉलेज के गैर शैक्षणिक कर्मचारियों का पुष्पों से फागुनी सम्मान किया। जुबली सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में सुगंधित चंदन से सभी 290 कर्मचारियों को टीका लगाया गया। टीआईसी डॉ शुभब्रत गंगोपाध्याय, प्रिन्सिपल डॉ पिंकी साहा सरदार, डॉ रेखा नारिवाल, डॉ देबजानी गांगुली आदि शिक्षक गणों की उपस्थिति रही। कॉलेज के अध्यक्ष रजनीकांत दानी ने सभी प्रमुख कर्मचारियों में बयालीस साल से कर रहे सिक्यूरिटी हरिसिंह जी, मैनेजमेंट के पदाधिकारियों नरेश धोलिया, सोहिला भाटिया,सिस्टम कंट्रोल निमेश मनियार, एच आर आशीष मैत्रेय , स्पोर्ट्स से रूपेश गांधी, इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रशांत चौधरी, एकाउंट्स से शुभेंदु बैनर्जी और मंटू जोश, अनुराधा दे, गंगा मुखिया,दिलीप कुमार दास, लाइब्रेरी से अनिर्बान सरकार, चित्तजीत भट्टाचार्य, एनसीसी के कैडट और कैप्टन आदित्य राज, संगीतकार सौरभ गोस्वामी का मंच से स्वागत किया गया। डीन प्रो दिलीप शाह ने अपने वक्तव्य में कहा कि किसी भी शिक्षा संस्थान की उन्नति और विकास में गैर शैक्षणिक कर्मचारियों का समपर्ण और कर्तव्य निष्ठा संस्थान के स्तंभ होते हैं। यह कार्यक्रम सभी कर्मचारियों को धन्यवाद देने के लिए किया गया है।
इस अवसर पर भवानीपुर कॉलेज के क्रिसेंडो, इन-एक्ट और फ्लेम कलेक्टिव के विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। हिंदी बंगला के नृत्य, हास्य व्यंग्य नाटिका, और बॉलीवुड के गीत नृत्य फूलों से फागुन खेल कर सभी ने बहुत आनंद उठाया। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि इस कार्यक्रम का संयोजन किया प्रो दिव्या उदेशी, प्रो समीक्षा खंडूरी और डीन ऑफिस की ओर से किया गया।

 

भवानीपुर कॉलेज ने मनाया राष्ट्रीय विज्ञान दिवस

कोलकाता । भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी (बीईएस) कॉलेज में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (एनएसडी) मनाया गया, इस अवसर पर महान भारतीय भौतिक विज्ञानी, सर चंद्रशेखर वेंकट रमन द्वारा 1928 में नामांकित ऑप्टिकल घटना, रमन इफेक्ट की खोज को स्मरण करते हुए विज्ञान उत्सव मनाया गया।
इस प्रस्ताव को नेशनल काउंसिल फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी कम्युनिकेशन के महान सर सी.वी. रमन द्वारा स्वीकृति दी गई । भारत सरकार ने 1987 से इस दिन को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाना अनिवार्य कर दिया है।
बीईएस कॉलेज ने विज्ञान अनुभाग की संगोष्ठी/एफडीपी/कार्यशाला समिति के सहयोग से मनाई गई जिसकी एनएसडी थीम “वैश्विक भलाई के लिए वैश्विक विज्ञान” के आदर्श वाक्य के आधार पर आयोजित की गई। विज्ञान विषयों की निबंध प्रतियोगिता रखी गई जो कुछ प्रतिष्ठित स्कूलों और भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के छात्रों के लिए खुली थी। यह कार्यक्रम प्रतिभागियों के लेखन कौशल को परखने के लिए आयोजित किया गया। बीजीईएस स्कूल के छात्र सुवम श्रीवास्तव को स्कूल श्रेणी में इस दौर का विजेता घोषित किया गया। बीईएस कॉलेज के रसायन विज्ञान विभाग के सग्निक चक्रवर्ती कॉलेज वर्ग में विजयी रहे।
छात्रों के संचार और प्रस्तुति कौशल का आकलन करने के लिए एक अन्य विषय-आधारित कार्यक्रम एक मौखिक प्रस्तुति प्रतियोगिता थी जिसे स्कूल और कॉलेज दो श्रेणियों में विभाजित किया गया था। स्कूल श्रेणी में बीजीईएस स्कूल की सुभाषिनी दास और भक्ति कोठारी विजेता रहीं। हार्टले हाई स्कूल, सिंधुजा सान्याल और समाद्रिता माजी के छात्र विशेष हैं क्योंकि उन्होंने अपने व्यस्त स्कूल पाठ्यक्रम से समय निकालकर अपने साथ आने वाले शिक्षकों से प्रेरित होकर कार्यक्रम में भाग लिया। कॉलेज के छात्रों ने मानसिक विकास के महत्व को भी समझाया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कोई समाज तभी प्रगति कर सकता है जब उसके सदस्य ठोस निर्णय लेने के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ हों। कॉलेज के इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग के छात्र गौरव चौधरी और रुद्र प्रताप नस्कर ने तर्क दिया कि प्रौद्योगिकी मनुष्य को समग्र रूप से प्रगति नहीं दे पाती बल्कि समग्र खुशी से रहित भौतिकवादी आनंद देता है। निर्णायक मंडल ने उनके तर्क को माना और अंततः उन्होंने कॉलेज श्रेणी में इस दौर के विजेता के रूप में उन्होंने स्थान प्राप्त किया ।
सबसे रोमांचक प्रतियोगिता विज्ञान अनुभाग विभागों के बीच प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता रही । जिसमें प्रतिभागियों के बीच बहुत कठिन राउंड रहे। प्रश्नोत्तरी सत्र ने न केवल दिमाग पर जोर डाला बल्कि रोमांचक सवालों और उससे भी ज्यादा रोमांचक जवाबों ने दर्शकों को प्रभावित किया। चार दौर की भीषण पूछताछ के बाद गणित की टीम विजयी रही। इस सत्र ने वैज्ञानिक सोच और सूचना के आधार पर भारत के भविष्य के निवासियों के संज्ञानात्मक कौशल की खोज के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया।
आयोजनों के निर्णायकों ने कहा कि एनएसडी का उत्सव अविश्वास की दरारों को मजबूत करने और आजकल प्रचलित मनगढ़ंत तथ्यों की टूट-फूट को ठीक करने के लिए एक अनुकरणीय पहल है। स्पेन, इटली और जर्मनी के कुछ निर्णायक मंडल और युवा डॉक्टरों ने एनएसडी की पहल की सराहना की। कुल मिलाकर उन्होंने इस तरह के उत्सव के पीछे की मंशा की सराहना की और उनके वक्तव्य ने प्रतियोगियों को प्रेरित किया।
समापन सत्र में विज्ञान, विज्ञान के साथ और विज्ञान के लिए दिन भर चलने वाले इस विशाल अभ्यास के समन्वयक डॉ. उत्सा दास, डॉ यासीन सिकदर, और सुश्री शॉनी दत्ता को सम्मानित किया गया। डॉ. सुमन मुखर्जी, महानिदेशक और प्रो दिलीप शाह, छात्र मामलों के डीन ने उत्सव की प्रशंसा की और स्थिरता के मार्ग के रूप में विज्ञान के पक्ष में बात की। अंत में प्रभारी शिक्षक डॉ शुभब्रत गांगुली, विज्ञान के डीन डॉ. समीर कांति दत्ता, विज्ञान की वाइस प्रिंसिपल डॉ. पिंकी साहा सरदार ने इस कार्यक्रम को स्मरणीय बनाने और इसमें भाग लेने वाले छात्रों के लिए लॉन्चिंग पैड के रूप में कार्य करने के लिए विज्ञान अनुभाग की पूरी इकाई की प्रतिबद्धता की सराहना की। कार्यक्रम की जानकारी देते हुए डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि 28 फरवरी को यह कार्यक्रम जुबली सभागार में संपन्न हुआ ।

पूर्व मंत्री सत्यब्रत मुखर्जी का निधन

कोलकाता । भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्य मंत्री सत्यब्रत मुखर्जी का गत शुक्रवार को उनके आवास पर आयु संबंधी बीमारियों के कारण निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे। मुखर्जी 1999 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में रसायन और उर्वरक और वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री थे। मुखर्जी, जिन्होंने पश्चिम बंगाल में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भी काम किया, सर्वोच्च न्यायालय और कलकत्ता उच्च न्यायालय के साथ एक उच्च-प्रोफाइल अभ्यास वकील थे।
वह 1999 से 2004 तक पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में कृष्णानगर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के लोकसभा सदस्य चुने गए थे। हालांकि, 2004 में उन्हें उसी निर्वाचन क्षेत्र से माकपा उम्मीदवार और एथलीट से नेता बने ज्योतिर्मयी सिकदर से हार मिली थी। मुखर्जी कानूनी और राजनीतिक दोनों हलकों में जोलू बाबू के रूप में लोकप्रिय थे। 2008 में, वह पार्टी के पश्चिम बंगाल प्रमुख बने। हालांकि, अगले ही साल उनकी जगह राहुल सिन्हा ने ले ली।
उनका जन्म 8 मई, 1932 को सिलहट में हुआ था, जो अब बांग्लादेश में है। उन्होंने बहुत कम उम्र में एक कॉर्पोरेट वकील के रूप में अपनी पहचान अर्जित की और चार साल पहले भी अपने पेशे में सक्रिय थे। वह अपने सौहार्दपूर्ण स्वभाव और परोपकारी गतिविधियों के लिए अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच लोकप्रिय थे

 

 

होली के रंग में डूबकर खाना हो गया है ज्यादा तो उपाय यह रहे

होली के मौके पर घरों में गुझिया, पकौड़े, पापड़, दही-बड़े आदि बनाए जाते हैं। ये पकवान खाने में बहुत स्वादिष्ट लगते हैं, इसलिए लोग खूब जमकर खा लेते हैं लेकिन ज्यादा मिठाई और ऑयली फूड खाने की वजह से अक्सर लोगों का पेट खराब हो जाता है। इसके कारण पेट में दर्द, गैस, एसिडिटी, अपच और दस्त आदि समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। अगर आप भी इस तरह की किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो कुछ घरेलू उपाय आपके काम आ सकते हैं। आज इस लेख में हम आपको ऐसे ही कुछ घरेलू नुस्खों के बारे में बता रहे हैं, जो होली पर पाचन संबंधी परेशानियों को दूर करने में असरदार हो सकते हैं –
पेट से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में अदरक काफी कारगर है। इसमें एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जो पेट में दर्द और गैस की समस्या से राहत दिला सकते हैं। अगर होली पर ओवरईटिंग की वजह से पेट में दर्द हो रहा हो, तो अदरक की चाय का सेवन करें। इसे बनाने के लिए एक गिलास पानी में अदरक को डालकर उबाल लें। फिर छान लें और दिन में दो से तीन इसे बार पिएं। इससे आपको जल्द आराम मिलेगा।
अजवाइन
अजवाइन का सेवन पेट के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है। अजवाइन की चाय से पेट में गैस और बदहजमी की समस्या से राहत मिलती है। इसे बनाने के लिए एक गिलास पानी में एक चम्मच अजवाइन डालकर उबाल लें। फिर इसे छानकर पी लें। आप दिन में 2 बार इस चाय का सेवन कर सकते हैं।
हींग
पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए हींग रामबाण उपाय है। पेट में दर्द या एसिडिटी होने पर आप हींग का सेवन कर सकते हैं। इसके लिए आधा चम्मच हींग को एक गिलास गुनगुने पानी में मिलाकर पिएं। इससे आपका पाचन वापस दुरुस्त हो जाएगा।
दही
दही पेट के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। दही में मौजूद प्रीबायोटिक्स पेट के हानिकारक बैक्टीरिया से लड़ने में प्रभावी होते हैं। दही के सेवन से पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है। अगर होली पर ज्यादा खा लेने की वजह से पेट खराब हो जाए, तो आप दिन में दो से तीन बार ठंडे दही का सेवन कर सकते हैं।
केला
अगर होली पर बहुत ज्यादा भोजन करने के कारण लूज मोशन हो रहे हों, तो केले का सेवन करें। केले में पेक्टिन होता है, जो मल को बांधने का काम करता है। इसके लिए आप दिन में दो से तीन केले खा सकते हैं।
होली पर पेट खराब हो जाने की स्थिति में आप इन उपायों अपनाकर जल्द राहत पा सकते हैं। हालांकि, अगर आपकी समस्या ज्यादा बढ़ रही है, तो आपको डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

देसी नुस्खों से छुड़वाएं होली का रंग

रंगों के त्योहार में लोग खूब मस्ती करते हैं. वे एक दूसरे को फेस पेंट से बधाई देते हैं। लेकिन इस दौरान कई लोग केमिकल या तेज रंगों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में चेहरे के इस रंग से छुटकारा पाने में व्यक्ति को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसके लिए लोग अक्सर अपने चेहरे को फेसवॉश से धोते हैं लेकिन इन जिद्दी रंगों से छुटकारा पाने के लिए आप कुछ घरेलू पैक लगा सकती हैं। ये आपकी त्वचा को कोमलता से पोषण देते हुए होली के रंगों से छुटकारा दिलाने में आपकी मदद करेंगे। आइए जानते हैं चेहरे से जिद्दी दाग-धब्बों को दूर करने के कुछ घरेलू उपाय।
दही- दही चेहरे के काले धब्बों से छुटकारा दिलाने में आपकी मदद कर सकता है। इसके लिए प्रभावित जगह पर दही से 3-5 मिनट तक धीरे-धीरे मसाज करें। फिर अपना चेहरा धो लें। इससे होली का रंग धीरे-धीरे फीका पड़ने लगेगा।
नींबू– विटामिन सी से भरपूर नींबू भी होली के रंग को निखारने में मदद कर सकता है। इसके लिए एक कटोरी में 1 चम्मच बेसन, 1 चम्मच शहद और आवश्यकतानुसार नींबू मिलाकर प्रभावित जगह पर लगाएं। फिर इसे 3-5 मिनट तक धीरे-धीरे मलें और फिर पानी से धो लें।
बादाम का तेल- बादाम का तेल होली के रंगों से छुटकारा दिलाने में काफी कारगर माना जाता है। आप इसे सीधे त्वचा पर लगा सकते हैं या मुल्तानी मिट्टी में मिलाकर लगा सकते हैं। इसके लिए 2 चम्मच मुल्तानी मिट्टी में 1 चम्मच गुलाब जल और कुछ बूंदे बादाम के तेल की मिलाएं। फिर इसे प्रभावित जगह पर लगाएं, धीरे से रगड़ें और पानी से धो लें।
केला और खीरा – ये दोनों ही चीजें क्लींजर का काम करती हैं। आप त्वचा पर लगे होली के रंग से छुटकारा पा सकते हैं। इसके लिए एक कटोरी में 2 चम्मच मसला हुआ केला और आवश्यकतानुसार नींबू का रस मिलाएं। तैयार पेस्ट को चेहरे और प्रभावित जगह पर मसाज करते हुए लगाएं। इसे 10 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर इसे पानी से धो लें। इसी तरह खीरे का पेस्ट बनाकर लगाएं। यह आपकी त्वचा से होली के जिद्दी रंगों को हटाने में मदद करेगा। यह त्वचा को गहराई से पोषण देगा और इसे चमकदार बनाएगा। पके पपीते का एक टुकड़ा लेकर चेहरे और रंग वाले हिस्से पर धीरे-धीरे मलें। इससे रंग निकालने में आसानी होगी।
बाल से रंग हटाने का नुस्खा
त्वचा की तरह बालों को भी होली के रंगों से समस्या हो सकती है। ऐसे में आपको रंग छुड़ाने के लिए बार-बार शैंपू करने से बचना चाहिए। बल्कि बालों में फंसे रंग को पानी से ही हटाएं। इसके बाद शैम्पू और कंडीशनर लगाएं। अगर बालों से रंग नहीं निकलता है तो शैम्पू या कंडीशनर का इस्तेमाल न करें। इससे आपके बाल बेजान, रूखे हो सकते हैं। इसके बजाय, सिर की तेल से मालिश करें और इसे रात भर के लिए छोड़ दें। अगली सुबह बालों को धो लें। अगर रंग रह गया है तो उस दिन दोबारा शैम्पू न करें क्योंकि ऐसा करने से आपके बाल रूखे हो जाएंगे। इसके बजाय दोबारा बालों में तेल से अच्छी तरह मसाज करें और अगले दिन बालों को धो लें। इससे आपको रंग छुड़ाने में मदद मिलेगी।

होली के रंग में भरें स्वाद की मिठास

 मालपुआ
सामग्री – आधा कप मैदा, 1 कप सूजी, 1 कप पानी, 5 पिस्ता, आधा चम्मच बेकिंग पाउडर. आधा कप फुल क्रीम दूध, तलने के लिए तेल. 1 कप- चीनी, इलायची पाउडर (स्वाद के लिए), डेढ़ कप- पानी
विधि -मालपुआ बनाने के लिए एक बड़े बर्तन में सूजी, मैदा और बेकिंग सोडा को अच्छे से मिला लें। अब इसमें दूध और पानी डाल दें, और एक पतला मिश्रण तैयार कर लें। अब इस मिश्रण को लगभग 15 मिनट के लिए ढक्कर रेस्ट के लिए छोड़ दें।
जब तक आप मालपुआ के लिए चाशनी बनाकर तैयार कर लें। इसके लिए गैस पर एक बर्तन गर्म करने के लिए रखें। अब इसमें चीनी, पानी और जरूरत अनुसार इलायची डालकर अच्छे से पका लें।
चाशनी को अच्छी तरह से गाढ़ा होने तक उबलनें दें। जब खूशबू आने लगे और उंगली से एक तार बनने लगे तो समझ लें की चाशनी बन गई है। अब मालपुआ भी बना लें, इसके लिए एक कड़ाही में तेल गर्म कर लें।
जब तेल गर्म हो जाए तो किसी चम्मचे की मदद से कढ़ाई में मालपुआ का मिश्रण डालें। ये गोल हों, इसके बाद इन्हें दोनों साइड से ब्राउन होने तक तल लें। जब मालपुआ दोनों तरफ से तैयार जाए तो एक प्लेट में निकाल लें।
इसी तरह सभी मालपुआ तल लें, और फिर सभी को चाशनी में डाल दें और 15 मिनट तक डूबा रहने दें। अब इन सभी में रस अच्छे से चला गया है। आपके मजेदार मालपुआ बनकर तैयार हो गए हैं। इन्हें अपने घर में आने वाले मेहमानों को परोसें । ध्यान रहे कि मालपुआ का घोल बहुत ज्यादा पतला न हो और मालपुआ तलते समय गैस की आंच बहुत तेज न हो।

बेसन बर्फी
सामग्री – 3 कप बेसन, 2 टेबलस्पून सूजी, 1 कप देसी घी , 1 चुटकी केसरिया फूड कलर, 1/2 टी स्पून इलायची पाउडर, पिस्ता की कतरन, चीनी – डेढ़ कप (स्वादानुसार)
विधि – स्वादिष्ट बेसन की बर्फी बनाने के लिए सबसे पहले एक कड़ाही में 1 कप घी डालकर उसे मध्यम आंच पर गर्म करें । जब घी पिघल जाए तो उसमें 3 कप बेसन डाल दें और करछी की मदद से चलाते हुए बेसन और घी को एकसार करें । बेसन को कम से कम 2 मिनट तक चलाते रहें । इसके बाद कड़ाही में 2 टेबलस्पून सूजी डाल दें और अच्छी तरह से मिक्स कर दें । अब गैस की आँच को धीमा कर दें और इस मिश्रण को चलाते हुए तब तक भूनें जब तक कि इसका रंग हल्का गुलाबी न हो जाए ।
बेसन को अच्छी तरह से भुनने में 25 से 30 मिनट तक का वक्त लग सकता है । इसके बाद बेसन घी छोड़ने लग जाएगा । इसके बाद गैस बंद कर दें और बेसन को एक बर्तन में निकाल दें । अब एक बड़ी कड़ाही में डेढ़ कप चीनी और आधा कप पानी डालकर गर्म करें. चीनी को पानी में अच्छी तरह से घोलें और एक तार की चाशनी बनने तक उबालें। इसके बाद चाशनी में एक चुटकी केसरिया फूड कलर मिला दें ।
चाशनी में भुना हुआ बेसन डालकर अच्छी तरह से मिला दें और थोड़ी देर तक और पकाने के बाद गैस बंद कर दें । बेसन को चाशनी के साथ तब तक रहें जब तक कि मिश्रण एकसार न हो जाए । इसके बाद थाली/ट्रे लेकर उस पर थोड़ा सा घी लगाकर चिकना कर लें । तैयार मिश्रण को ट्रे में डालकर चारों ओर समान अनुपात में फैलाएं । ऊपर से पिस्ता कतरन को छिड़क दें । बर्फी को सेट होने के लिए आधा घंटे अलग रख दें । इसके बाद चाकू की मदद से मनपसंद आकार में काट लें । टेस्टी बेसन बर्फी बनकर तैयार हो चुकी है. इसे मेहमानों को खिलाएं ।

एलर्जी भंग न करे होली के रंग..तो आजमाएँ उपाय

होली का मतलब है ढेर सारी मस्ती और गुलाल। होली रंगों का त्योहार है। यूं तो होली का पर्व 8 मार्च को मनाया जाएगा, लेकिन लोगों में होली का उत्साह अभी से देखने को मिल रहा है. लोग होली पार्टी का आयोजन कर रहे हैं या रंग खरीद रहे हैं।
हालांकि, बाजार में मिलने वाले केमिकल वाले रंगों की वजह से अब लोगों को होली के दौरान स्किन एलर्जी होने का डर सताने लगा है। रंगों से त्वचा पर दाने, जलन, खुजली आदि समस्याएं होने लगती हैं। लेकिन इस साल आपको घबराने की जरूरत नहीं है। अगर आप कुछ घरेलू नुस्खों के बारे में जान लें तो आप आसानी से स्किन एलर्जी की समस्या से निजात पा सकते हैं।
दही का प्रयोग करें
अगर आप त्वचा को एलर्जी से बचाना चाहते हैं तो त्वचा पर दही का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह त्वचा को पोषण देने के साथ-साथ एलर्जी से बचाने में भी मदद करेगा। आप इसमें बेसन, दाल पाउडर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. त्वचा में जलन हो तो होली खेलने के बाद पूरे शरीर पर दही लगाएं और कुछ देर सूखने दें फिर पानी से धो लें।
घी लगाएं
होली के दौरान अगर आपकी त्वचा पर किसी तरह की परेशानी या जलन हो तो तुरंत अपनी त्वचा को धोकर उस पर गाय के घी की मालिश करें। कुछ ही समय में त्वचा की समस्या शांत हो जाएगी।
नारियल का तेल
अगर आपकी त्वचा संवेदनशील है तो आप होली खेलने से पहले त्वचा पर नारियल का तेल लगा सकते हैं। इससे रासायनिक रंगों का त्वचा पर असर कम होगा और त्वचा की पहली सतह पर एक परत बन जाएगी। इस तरह एलर्जी होने की संभावना भी कम हो जाएगी।
बेसन का प्रयोग
सबसे पहले आप पानी और बेसन का घोल बना लें और होली खेलने के बाद आप इसका इस्तेमाल त्वचा का रंग छुड़ाने के लिए कर सकते हैं। इसके लिए आप पहले त्वचा को धो लें और फिर इस घोल को क्रीम की तरह पूरे शरीर पर लगाएं। आप इसे एक कटोरी में 4 चम्मच बेसन, एक चम्मच हल्दी और पानी मिलाकर बना सकते हैं। अगर आपकी रूखी त्वचा है तो आप इसे नारियल या सरसों के तेल में मिलाकर लगा सकते हैं। ऐसा करने से रंग बिना किसी नुकसान के आसानी से उतर जाएंगे।
एलोवेरा के उपयोग
एलोवेरा हमें हर तरह की स्किन एलर्जी से बचाता है। एलोवेरा में एंटी-एलर्जी, एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं जो त्वचा को संक्रमण या रैशेज से बचाते हैं। लेकिन अगर एलर्जी कंट्रोल में न आए तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

 

‘युद्ध और शांति : हिंदी साहित्य के परिप्रेक्ष्य में’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

कल्याणी । हिंदी विभाग, कल्याणी विश्वविद्यालय के प्रेमचंद सभागार में हिंदी विभाग और आई. क्यू. ए. सी. के संयुक्त तत्वावधान में ‘युद्ध और शांति : हिंदी साहित्य के परिप्रेक्ष्य में’ विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. मानस कुमार सान्याल ने दीप-ज्वलन कर संगोष्ठी का उद्घाटन किया और कार्यक्रम के आरंभ में विभाग के विद्यार्थियों अंजलि चौधरी, पूर्णिमा हरि, अंजलि यादव, अनुश्री साव, प्रिया सिंह, देविका साहनी, रुंपा तिवारी, वरुण साव और नितेश मांझी ने हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘अंधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है’ का समूह-गायन प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया।
उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. मानस कुमार सान्याल ने सबका अभिवादन करते हुए कहा कि युद्ध और शांति आज के समय का बेहद प्रासंगिक विषय है। डॉ. बी. आर. अंबेडकर इंस्टीट्यूट की कुलपति प्रो. डॉ. सोमा बंद्योपाध्याय ने अपने संदेश में कहा कि वर्तमान में युद्ध आर्थिक उद्देश्यों के लिए लड़ें जाते हैं जो अंततः लड़ाई, भुखमरी और अनियंत्रित महंगाई को बढ़ावा देते हैं। संगोष्ठी में उपस्थित कला और वाणिज्य संकाय के अधिष्ठाता प्रो. डॉ. अमलेंदु भुइयां ने रामायण और महाभारत का संदर्भ देते हुए कहा कि यद्ध शांति और सत्य को स्थापित करने का अंतिम विकल्प होता है। आई. क्यू. ए. सी. के निदेशक प्रो. नंद कुमार घोष ने कहा कि युद्ध विरोधी वातावरण की सृष्टि करना ही किसी भी साहित्य का लक्ष्य होता है। लोक संस्कृति विभाग के अध्यक्ष प्रो. डॉ. सुजय कुमार मंडल ने मानवता को सर्वोच्च मूल्य स्वीकार किया। उद्घाटन सत्र में विभाग के एसोसिएट प्रोफोसर डॉ. हिमांशु कुमार ने विषय प्रस्तावना करते हुए कहा कि युद्ध आज कोमोडिटी हो गया है। युद्ध के प्रभावों पर विचार करने के साथ-साथ हमें युद्ध के कारणों की गहराई से पड़ताल करनी होगी। वैश्विक वर्चस्व की लड़ाई और साम्राज्यवाद के नए रूप को भी हमें युद्ध के आधारों के रूप में समझने की जरूरत है। विभागाध्यक्ष डॉ. विभा कुमारी ने उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य युद्ध के भीषण प्रभावों के कारण उसकी खिलाफत और प्रेम, करुणा, सौहार्द जैसे मानवीय मूल्यों की निरंतर वकालत करता रहा है।

पहले तकनीकी सत्र के अध्यक्ष भारतीय भाषा परिषद के निदेशक, वागर्थ पत्रिका के संपादक और वरिष्ठ आलोचक शंभुनाथ ने कहा कि युद्ध दरअसल करोड़ों लोगों को भूखा रखने का तरीका है। धनांधता, धर्मांधता और राष्ट्रांधता को अब तक के युद्धों का कारण बताते हुए उन्होंने हिंदी साहित्य के युद्ध विरोधी तत्वों की पड़ताल की। पहले तकनीकी सत्र के वक्ता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर महत्वपूर्ण कवि और आलोचक डॉ. आशीष त्रिपाठी ने युद्ध के आधारभूत तत्वों की चर्चा करते हुए कहा कि हत्या मनुष्य का प्रभावशाली आविष्कार है। प्रथम विश्वयुद्ध, द्वितीय विश्वयुद्ध, शीत युद्ध और हाल के रूस-यूक्रेन युद्ध के समानांतर हिंदी कविता की चर्चा करते हुए युद्ध विरोध में लिखी गई दार्शनिक कविताओं के बजाय यथार्थवादी कविताओं को महत्वपूर्ण बताया। इस संदर्भ में उन्होंने हिंदी के समकालीन कवि सोमदत्त की कविता ‘काग्रुएवात्स में पूरे स्कूल के साथ तीसरी क्लास की परीक्षा’ का बार-बार जिक्र किया। विद्यासागर विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. संजय कुमार जायसवाल ने नाट्य साहित्य के संदर्भ में विषय पर बोलते हुए कहा कि पूँजीवादी उभार और साम्राज्यवादी सोच ने एक ओर युद्ध-परिस्थिति निर्मित की, वहीं दूसरी ओर साहित्य ने मानवीय संवेदनाओं को जागृत कर युद्ध विरोधी मानसिकता तैयार की।
दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता हिंदी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रो. अमरनाथ ने की । अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने युद्ध को असभ्यता की निशानी बताते हुए हमारी तथाकथित सभ्यता पर सवाल खड़े किए और कहा कि सरकारें शिक्षा और स्वास्थ्य के बजाय रक्षा के लिए कई गुना अधिक बजट आवंटित कर रही हैं, यह हमारे लिए चिंता का विषय है। दूसरे तकनीकी सत्र के वक्ता प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. वेद रमण पांडेय ने हिंदी कहानी के संदर्भ में विषय पर बोलते हुए कहा कि युद्ध मानव की नियति लिखने का कार्य करते हैं। विस्थापन, अलगाव और अवसाद किसी भी युद्ध की अंतिम परिणति गढ़ते हैं। स्कॉटिश चर्च कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गीता दूबे ने हिंदी एवं अन्य भाषाओं में इस विषय पर लिखे उपन्यासों के हवाले से अपनी बात रखते हुए कहा कि युद्ध अंततः अमानवीयता, बर्बरता और आर्थिक मंदी को बढ़ावा देते हैं। जब तक दुनिया में कट्टरता, नस्लवादी सोच और जातीय घृणा की हिंसक प्रवृत्ति बनी रहेगी, युद्ध होते रहेंगे, इससे बचने का एकमात्र उपाय है, प्रेम की लौ को बचाए रखना। तीसरे सत्र में ‘युद्ध और शांति : हिंदी साहित्य के परिप्रेक्ष्य में’ विषय पर शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने शोध-पत्र वाचन किया।
संगोष्ठी के अंत में विभाग के विद्यार्थियों ने डॉ. इबरार खान के निर्देशन में ‘मूक प्रहार’ लघु नाटक का मंचन किया। संगोष्ठी का संचालन विभागाध्यक्ष डॉ. विभा कुमारी, अनूप कुमार गुप्ता और डॉ. संजय राय ने किया। विभागाध्यक्ष डॉ. विभा कुमारी के धन्यवाद ज्ञापन से कार्यक्रम संपन्न हुआ।

श्रीकृष्ण के पौत्र और बाणासुर की बेटी का जहाँ हुआ विवाह, होगा जीर्णोद्धार

उत्तराखंड के उखीमठ में भगवान श्रीकृष्ण के वंशजों से जुड़ी स्मृतियां मौजूद हैं । यहाँ श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और असुर बाणासुर की बेटी उषा का विवाहस्थल मौजूद है। अब ये विवाह स्थल किस हालत में है और बदरी केदार मंदिर समिति की इसके जीर्णोद्धार के लिए क्या योजना है ।

उत्तराखंड के पौराणिक मंदिरों का होगा सौंदर्यीकरण
उत्तराखंड: उत्तराखंड को इसलिए देवभूमि कहा जाता है क्योंकि यहां पर हिंदू सभ्यता और सनातन धर्म के कई ऐसे पौराणिक स्थल मौजूद हैं जो कि सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए भगवान का सीधा प्रमाण हैं । ऐसा ही एक प्रमाण है भगवान श्री कृष्ण के पोते अनिरुद्ध और दैत्य राज बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह स्थल ये स्थान ऊखीमठ के पास मौजूद है। दुर्भाग्य की बात है कि आज यह पौराणिक धरोहर खंडहर के रूप में है। जल्द ही इसे बदरी केदार मंदिर समिति द्वारा भव्य स्वरूप दिया जाएगा । क्या है इसकी पूरी रूपरेखा आपको बताते हैं ।
उत्तराखंड के पौराणिक मंदिरों का होगा कायाकल्प
हिंदू मान्यता से जुड़े विभिन्न युगों के प्रमाण उत्तराखंड में मौजूद: जैसा कि नाम से ही चरितार्थ होता है कि देवभूमि उत्तराखंड देवों की भूमि रही है। उत्तराखंड में अनगिनत ऐसे प्रमाण हमें देखने को मिलते हैं जो कि सीधे तौर से सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों और हिंदू देवी देवताओं के होने का स्पष्ट प्रमाण माने जाते हैं । देवभूमि उत्तराखंड में मौजूद कई ऐसे पौराणिक स्थल मंदिर और स्मृतियां मौजूद हैं जो कि आदिकाल से संबंध रखती बताई जाती हैं. बात चाहे त्रिजुगीनारायण भगवान शंकर और गौरी माता के विवाह स्थल की हो या केदारनाथ मंदिर की बात हो । बदरीनाथ मंदिर की बात हो या भागीरथ ने जहां पर गंगा को धरती पर बुलाया था, उस गोमुख की बात हो. पाताल भुवनेश्वर और लाखामंडल जैसे असंख्य सक्षम प्रमाण देवभूमि उत्तराखंड में देखने को मिलते हैं । ये पौराणिक स्थल सीधे तौर से हिंदू धर्म ग्रंथों में लिखी बातों को चरितार्थ करते हैं ।
इस तरह दिखेंगे पौराणिक मंदिर
धर्मग्रंथों में वर्णित स्वर्ग को बताते हैं देवभूमि उत्तराखंड: हिंदू धर्म के कई धर्मगुरु इस बात का भी जिक्र करते हैं कि धर्म ग्रंथों में जब स्वर्ग का जिक्र किया जाता है तो उसका संबंध देवभूमि उत्तराखंड से ही है । ऐसे ही प्रमाणों को चरितार्थ करता हुआ एक और पौराणिक स्थल देवभूमि उत्तराखंड के उखीमठ के पास मौजूद है । कहा जाता है कि यहां भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और दैत्यराज बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह हुआ था । आज यह स्थल एक खंडहर के रूप में उखीमठ में मौजूद है । इसके पौराणिक महत्व को हिंदू अनुयायियों के सामने लाने के लिए और देवभूमि उत्तराखंड में देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए उजागर करने के लिए एक बार फिर से इसका जीर्णोद्धार किया जा रहा है ।
ओंकारेश्वर मंदिर का ये है महत्व: ईटीवी से खास बातचीत करते हुए बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि देवभूमि उत्तराखंड के उखीमठ में मौजूद ओंकारेश्वर मंदिर का अपना एक पौराणिक महत्व है । भगवान केदारनाथ के शीतकालीन में जब कपाट बंद हो जाते हैं तो भगवान केदारनाथ की चल विग्रह डोली को उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में रखा जाता है और पूरे शीतकालीन के दौरान भगवान केदारनाथ की पूजा अर्चना उखीमठ की ओंकारेश्वर मंदिर में की जाती है ।
ओंकारेश्वर मंदिर का ब्लू प्रिंट
जोशीमठ में है पंच केदारों का गद्दीस्थल: इसके अलावा जोशीमठ में पंच केदारों का भी गद्दी स्थल है । यही नहीं बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि उखीमठ में एक और पौराणिक स्थल है जो कि आज जीर्णशीर्ण अवस्था में है । इसका पौराणिक महत्व हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए और पूरे सनातन धर्म के लिए बेहद महत्वपूर्ण है । मंदिर समिति के अध्यक्ष ने बताया कि उखीमठ में मौजूद कोठा भवन प्राचीन हिंदू सभ्यता का एक बड़ा प्रमाण है । इसमें भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और दैत्यराज बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह मंडप मौजूद है जो कि काफी जीर्ण शीर्ण अवस्था में है । इसे एक बार फिर से एक भव्य स्वरूप देने के लिए कवायद शुरू की गयी है ।
पौराणिक स्थलों का होगा जीर्णोद्धार : दरअसल उत्तराखंड में केदारनाथ धाम और बदरीनाथ धाम में पुनर्निर्माण के बाद अब उत्तराखंड में मौजूद ऐसे तमाम पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के जीर्णोद्धार की कवायद शुरू की जा रही है जो उपेक्षित हैं । बीकेटीसी अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि उखीमठ में मौजूद इन तमाम पौराणिक धरोहरों के जीर्णोद्धार, विस्तारीकरण और सुंदरीकरण के लिए कार्य योजना तैयार की गई है । तीन अलग-अलग फेस में डीपीआर तैयार की जा रही है । पहले चरण की डीपीआर तैयार की जा चुकी है जो की 5 करोड़ रुपए की है । इसके बाद दूसरे चरण और तीसरे चरण की डीपीआर का काम शुरू होगा । इस पुनर्निर्माण और सौंदर्यीकरण के लिए देश की कई प्रतिष्ठित संस्थाएं आगे आ रही हैं जो कि अपने सीएसआर के माध्यम से इसमें आर्थिक सहयोग कर रही हैं । मंदिर समिति द्वारा इन संस्थाओं के साथ अनुबंध भी किए जा रहे हैं । मंदिर समिति के अनुसार मार्च में उखीमठ स्थित इन पौराणिक मंदिरों के पुनर्निर्माण की नींव रख दी जाएगी और भूमि पूजन किया जाएगा ।

 

रोमांच और शौर्य की कहानियाँ सुनाता बिहार का रोहतास गढ़ किला

रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। किले का घेराव 28 मील तक फैला हुआ है। इसमें कुल 83 दरवाज़े हैं। जिनमें मुख्य घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट है।
इतिहास किस्सों और कहानियों से भरा होता है। कई बातें सच होती हैं तो कई बनावटी लेकिन यही चीज़ें ही तो उसे लोगों में मशहूर करती है। आज हम आपको बिहार जिले के ऐतिहासिक किले के सफ़र पर लेकर जा रहे हैं। बिहार नाम सुनकर आमतौर पर कोई यहां के ऐतिहासिक किले के बारे में नहीं सोचता इसलिए आज हम आपको बिहार के रोहतासगढ़ किले के बारे में गहराई से बताने जा रहे हैं।
रोहतास गढ़ का किला बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि सोन नदी के बहाव वाली दिशा में पहाड़ी पर स्थित इस प्राचीन और मज़बूत किले का निर्माण त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के पौत्र (बेटे का बेटा) व राजा सत्य हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था। इतिहासकारों की मानें तो किले की चारदीवारी का निर्माण शेरशाह ने सुरक्षा को देखते हुए कराया था ताकि किले पर कोई भी हमला न कर सके। बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई (1857) के समय अमर सिंह ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था।
रोहतास गढ़ किले का इतिहास
रोहतास किले का इतिहास बहुत ही लंबा और रोचक है। हालाँकि इस किले से जुड़ी हुई कई बातें अस्पष्ट भी हैं। इस किले का संबंध 7 वीं शताब्दी के राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व से किया जाता है। मध्य काल के भारत में यह किला पृथ्वीराज चौहान ने जीत लिया था। इस किले को ज़्यादा महत्व तब मिला जब इस किले को शेर शाह सूरी ने साल 1539 में एक हिन्दू राजा से जीत लिया था। जब शेर शाह सूरी का शासन था तब इस किले की पहरेदारी करने के लिए 10,000 सैनिक तैनात किए गए थे। जानकारी के अनुसार, शेर शाह सूरी के शासन में उसके एक सैनिक हैबत खान ने किले के परिसर में जामा मस्ज़िद का निर्माण भी करवाया था।
साल 1588 में यह किला अकबर के जनरल मान सिंह के नियंत्रण में आ गया। उसने खुद के लिए इस किले में एक शानदार ‘तख्ते बादशाही’ नाम का महल भी बनवाया था। उसने अपनी पत्नी के लिए आइना महल और किले के द्वार के रूप में हथिया पोल का निर्माण करवाया था। महल के बाहर के परिसर में जामा मस्जिद, हब्श खान का मकबरा और सूफी सुलतान का मकबरा भी बनाया गया। मान सिंह महल के करीब आधे किमी. की दूरी पर पश्चिम दिशा में राजपुताना शैली में बनाया हुआ भगवान गणेश का मंदिर भी है।
बक्सर की लड़ाई के बाद अंग्रेज़ों ने किले पर कब्ज़ा जमा लिया। उन्होंने किले के कई हिस्सों को तबाह कर दिया। अगर सैन्य दृष्टि से देखा जाए तो यह किला पहाड़ के सबसे ऊपरी दिशा में बसा हुआ है। आपको इस किले में हिन्दू और मुस्लिम की बहुत सारी इमारतें देखने को मिलेंगी जो इस किले के इतिहास की याद दिलाती है।
दो हज़ार फीट की उंचाई पर स्थित इस किले के बारे में कहा जाता है कि कभी इस किले की दीवारों से खून टपकता था। फ्रांसीसी इतिहासकार बुकानन ने लगभग दो सौ साल पहले रोहतास की यात्रा की थी। उस समय उन्होंने पत्थर से निकलने वाले खून की चर्चा एक दस्तावेज़ में की थी। उन्होंने कहा था कि इस किले की दीवारों से खून निकलता है। वहीं, आस-पास के रहने वाले लोग भी इसे सच मानते हैं। वे तो ये भी कहते हैं कि बहुत पहले रात में इस किले से आवाज़ भी आती थी। इस आवाज़ को सुनकर हर कोई डर जाता था। हालांकि, किले से आने वाली आवाज़ और दीवारों से खून निकलने की बात अंधविश्वास है या सच- ये रहस्य तो इतिहास में ही छुपा हुआ है। जिसकी चर्चा आज किस्से-कहानियों के रूप में होती है।
रोहतास किले में घूमने के लिए स्थान
रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। किले का घेराव 28 मील तक फैला हुआ है। इसमें कुल 83 दरवाज़े हैं जिनमें मुख्य घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट है। प्रवेश द्वार पर बने हाथी की मूर्ती, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग देखने में बहुत अद्भुत प्रतीत होती है। रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी यहां मौजूद हैं। परिसर में ऐसी ही कई इमारतें हैं जो की काफ़ी सुंदर है जिसका मज़ा आप यहां आकर ही उठा सकते हैं।
1. आइना महल – यह महल मान सिंह की पत्नी के नाम पर है। इस महल को ऐना महल कहा जाता है। यह महल बीच में आता है।
2. रोहतासन मंदिर – महल के करीब एक मील की दूरी पर उत्तर पूर्वी दिशा में दो मंदिरों के अवशेष देखने को मिलते है। एक मंदिर भगवान शिव का है जिसे रोहतासन मंदिर कहते हैं। यहां की सारी सीढ़ियां तोड़ दी गयी हैं। अब यहां सिर्फ 84 सीढ़ियां ही अच्छी हालत में है जिन पर चढ़कर मंदिर तक पंहुचा जा सकता है।
3. जामा मस्जिद और हब्श खान का मकबरा – महल के आजू-बाजू के इलाके में जामा मस्जिद, हब्श खान का मकबरा और सूफी सुलतान का मकबरा है। यहाँ खड़े स्तंभ पर प्लास्टर की शैली में कई सारे गुबंद बनाए गए है जो की राजपुताना शैली की याद दिलाते हैं। यहां पर सभी गुबंद को छत्री भी कहा जाता है।
4. हथिया पोल – इस किले के मुख्य द्वार को हथिया पोल या हथिया द्वार भी कहा जाता है। इस द्वार को हथिया द्वार इसलिए कहा जाता है क्यूंकि द्वार पर हाथी की बहुत सारी प्रतिमा है। उन प्रतिमाओं की वजह से द्वार बहुत ही ज़्यादा सुंदर दिखता है। यह द्वार किले का सबसे बड़ा किला है और इसे साल 1597 में बनाया गया था।
5. गणेश मंदिर – मान सिंह महल के पश्चिम दिशा में आधे किलोमीटर की दूरी पर गणेश मंदिर है। इस मंदिर में जाने के लिए दो तरफ़ से रास्ते बनाए गए हैं।
6. हैंगिंग हाउस – पश्चिम की दिशा में ही गुफा जैसी बनी हुई इमारत दिखती है। लेकिन इस गुफ़ा के कोई सबूत नहीं मिल पाए हैं। यहाँ के लोग इस इमारत जैसी गुफा को हैंगिंग हाउस कहते है। यहाँ से 1500 फीट नीचे की दूरी पर एक बहुत बड़ा झरना भी है। रोहतासगढ़ जलप्रपातों (झरनों) के लिए भी प्रसिद्ध है जो कैमूर की पहाड़ियों से पूर्व की ओर गिरते हैं और सोन नदी में मिल जाते हैं।

चंदौली की कोठी पहाड़ी में मिला सम्राट अशोक काल का स्तूप

 पुरापाषाणिक औजार भी मिले

वाराणसी । बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के शोध छात्र परमदीप पटेल के मुताबिक सर्वेक्षण में चंदौली जिले में कई पुरास्थल मिल रहे हैं। कोठी पहाड़ी में सम्राट अशोक के काल का पाषाण स्तूप, भीखमपुर में बुद्ध व बोधिसत्व और दाउदपुर में पुरापाषाणिक औजार व शैलाश्रय मिले हैं।
यूपी के चंदौली जिले के तीन स्थानों पर पांच हजार से 50 हजार साल पुराने आदम जाति के साक्ष्य मिले हैं। खोदाई व खोज के दौरान कोठी पहाड़ी में सम्राट अशोक के काल का पाषाण स्तूप, भीखमपुर में बुद्ध व बोधिसत्व और दाउदपुर में पुरापाषाणिक औजार व शैलाश्रय मिले हैं।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के शोध छात्र परमदीप पटेल के मुताबिक सर्वेक्षण में चंदौली जिले में कई पुरास्थल मिल रहे हैं। सर्वेक्षण में चंदौली जिले की चकिया तहसील के फिरोजपुर, भीखमपुर और दाउदपुर गांवों में पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से अनेक पुरास्थल मिले हैं।
उत्तर भारत का पहला पाषाण निर्मित स्तूप
इनमें फिरोजपुर ग्राम की कोठी पहाड़ी में मिला पाषाण स्तूप बेहद महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही यहां से बड़ी संख्या में पुरापाषाणिक औजार, मध्यपाषाण काल के उपकरण, मेगालिथिक समाधियां और चित्रित शैलाश्रय मिले हैं। इनका अनुमानित काल क्रम पांच हजार से 50 हजार वर्ष पूर्व तक का माना जा रहा है।
शोध निर्देशक प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार ने बताया कि फिरोजपुर की कोठी पहाड़ी पर मिला स्तूप उत्तर भारत का पहला पाषाण निर्मित स्तूप है। यह मौर्य सम्राट अशोक के समय का बना एक विलक्षण स्तूप है। इस प्रकार के पत्थर के स्तूप सांची और उसके आसपास के क्षेत्र में बहुतायत में मिलते हैं जो अपनी निर्माण शैली और कला सौंदर्य के लिए विख्यात हैं। प्रो. अहिरवार के मुताबिक उत्तर भारत में नये पाषाण स्तूप की खोज ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्तर भारत में अब तक जितने भी स्तूप मिले हैं, वे सभी ईंट या मिट्टी के बने हैं।
शैलाश्रय में लाल रंग से बनाए आदि मानव
सर्वेक्षण के दौरान भीखमपुर गांव की पहाड़ी में भी प्रागैतिहासिक शैलाश्रय मिले हैं। इनमें आदि मानव द्वारा लाल रंग से बनाए गए कई चित्र और पूरी पहाड़ी के विभिन्न भागों में मगध शैली के उत्कीर्ण विशेष चिह्न मिहे हैं। ऐसे चिह्न मगध शैली के आहत सिक्कों में देखे जाते हैं। इस पहाड़ी की एक प्राकृतिक गुफा से बुद्ध मूर्ति और पहाड़ी की चोटी पर बने आधुनिक मंदिर में बोधिसत्व की प्रतिमा इस क्षेत्र के दीर्घकालीन इतिहास को बताती है। पहाड़ी पर स्थित पुराने भवनों के जमींदोज खंडहरों की बिखरी ईंटों से इसकी पुष्टि हो रही है कि ये प्रतिमाएं कुषाण काली की हैं।
पहाड़ी की तलहटी के ठीक नीचे एक विशाल टीला भी मिला है जहां पर कई तरह की पुरावस्तुएं बिखरी हैं। इसमें छठीं शताब्दी से लेकर पूर्व मध्यकालीन मृदभांड के टुकड़े, कृष्ण लोहित मृदभांड, कृष्ण लेपित मृदभांड, मोटे व पतले गढ़न के लाल मृदभांड और पत्थर के सिल-लोढ़े, चक्कियां, पत्थर के बटखरे मिले हैं। भीखमपुर की तरह फिरोजपुर की कोठी पहाड़ी समीपवर्ती दाउदपुर की पहाड़ी में भी आदि मानव के निवास के लिए उपयुक्त दो चित्रित शैलाश्रय मिले हैं और मध्य पाषाण कालीन पत्थर के उपकरण मिले हैं।