‘तेरे नाम’ जैसी सुपरहिट फिल्म का निर्देशन करने वाले अभिनेता-निर्देशक सतीश कौशिक का गत 9 मार्च को निधन हो गया है । वह 66 वर्ष के थे । कौशिक बॉलीवुड में कदम रखने से पहले एक रंगकर्मी थे । कथित तौर पर कौशिक को कार में यात्रा के दौरान हार्ट अटैक आया था जिसके बाद उन्हें फोर्टिस हॉस्पिटल ले जाया गया । जहां डॉक्टरों ने जांच के बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया ।
एक एक्टर के रूप में, उन्हें मिस्टर इंडिया में “कैलेंडर” की भूमिका से की थी। दीवाना मस्ताना में पप्पू पेजर के रूप में उनकी भूमिकाओं के लिए जाना जाता था ।
उन्होंने 1990 में आई सुपरहिट फिल्म ‘राम लखन’ और 1997 में ‘साजन चले ससुराल’ में हास्य भूमिकाओं के लिए फिल्मफेयर अवार्ड जीता था। उन्होंने कुंदन शाह की कॉमेडी क्लासिक ‘जाने भी दो यारों’ (1983) के लिए डायलॉग भी लिखे थे । उन्होंने 2003 में आई रोमांटिक- ट्रेजडी फिल्म तेरे नाम का निर्देशन किया था । इसके अलावा उन्होंने ‘हम आपके दिल में रहते हैं’ फिल्म का भी निर्देशन किया था ।
सतीश का जन्म 13 अप्रैल 1956 को महेंद्रगढ़, हरियाणा में हुआ था । उन्होंने 1972 में किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली से स्नातक किया था । वह नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा और फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के पूर्व छात्र थे । उनके परिवार में उनकी पत्नी शशि और 11 वर्षीय बेटी वंशिका कौशिक हैं ।
अभिनेता – निर्देशक सतीश कौशिक का निधन
उत्सव देता है संघर्ष की शक्ति-प्रतिभा सिंह
गीत-संगीत के साथ वीरांगना होली मिलन उत्सव सम्पन्न
कोलकाता ।अंतरराष्ट्रीय क्षत्रिय वीरांगना फ़ाउडेशन पश्चिम बंगाल की ओर से होली मिलन उत्सव लिलुआ के रॉयल अपार्टमेंट में गीत-संगीत के रंगारंग कार्यक्रम के साथ सम्पन्न हुआ। प्रतिभा सिंह, राकेश पांडेय, कुमार सुरजीत, काजल ने अपने गीतों से लोगों को झूमने-नाचने पर मबजूर कर दिया। भोजपुरी के पारम्परिक होली गीतों का लुत्फ लोगों ने भरपूर उठाया, वहीं फिल्मी गीतों ने भी मन मोहा। समारोह को सम्बोधित करते हुए वीरांगना की प्रदेश अध्यक्ष और विख्यात गायिका प्रतिभा सिंह ने कहा कि जीवन को हर हाल में उत्सवपूर्ण, संगीतमय और खुशहाल बनाये रखना जरूरी है। छोटी-मोटी खुशियां भी जीवन के बड़े संघर्ष से लड़ने की प्रेरणा देती हैं। वीरांगना की प्रदेश इकाई की महासचिव प्रतिमा सिंह, उपाध्यक्ष रीता सिंह, कोषाध्यक्ष पूजा सिंह, संयुक्त महासचिव ममता सिंह व सुमन सिंह, सचिव पूनम सिंह उपस्थित थीं। लिलुआ इकाई की पदाधिकारी लीला सिंह, नीतू सिंह, अनिता सिंह, सुमन सिंह, किरण सिंह, महानगर की महासचिव इंदु सिंह, उपाध्यक्ष ललिता सिंह, कोषाध्यक्ष संचिता सिंह, पदाधिकारी सरोज सिंह, विद्या सिंह, सुमन सिंह, मीरा सिंह, बेबीश्री, बालीगंज की अध्यक्ष रीता सिंह, सोदपुर की अध्यक्ष सुनीता सिंह, महासचिव आशा सिंह, पदाधिकारी जयश्री सिंह, सुलेखा सिंह, कविता सिंह, मंजू सिंह, नारी शक्ति वीरांगना की पदाधिकारी अनीता साव आदि विशेष तौर पर उपस्थित थीं।
हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस में मनाया गया महिला दिवस
कोलकाता । हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस में हाल ही में महिला दिवस मनाया गया । इस अवसर पर इम्ब्रैस इक्वालिटी विषय पर परिचर्चा आयोजित की गयी । परिचर्चा में ब्रिटिश डिप्टी हाई कमिश्नर पीटर कुक, कोलकाता सेंटर फॉर क्रिएटिविटी (केसीसी) की निदेशक एवं क्यूरेटर रीना दीवान, एल टी माइंड ट्री की एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट सोनाली भट्टाचार्य, फोर्टिस हेल्थकेयर लिमिटेड की चीफ (स्ट्रैटिजी एंड ऑपरेशन), मॉपल की निदेशक पायल चोपड़ा ने भाग लिया । परिचर्चा सत्र का संचालन द हेरिटेज अकादमी के मीडिया साइंस विभाग की डीन डॉ. मधुपा बक्सी ने किया । वक्ताओं ने विषय को ध्यान में रखते हुए महिलाओं की उपलब्धियों पर विचार रखे, असमानता के खिलाफ अभियान चलाने की बात की और असमानता को दूर करने पर जोर दिया । ऋचा सिंह देवगुप्त ने कहा कि जब आप बड़े उद्देश्य को लेकर काम कर रहे हैं तो चयन पर ध्यान दें और उसे प्राथमिकता बनाएं । इस अवसर पर द हेरिटेज स्कूल की प्रिंसिपल सीमा सप्रू भी उपस्थित थीं ।
नहीं रहे पद्मश्री डॉ, कृष्ण बिहारी मिश्र
कोलकाता । पद्मश्री से सम्मानित हिंदी के प्रख्यात साहित्यकारडा. कृष्ण बिहारी मिश्र का निधन हो गया है । वे 90 साल के थे । कृष्ण बिहारी मिश्र ने 6 और 7 मार्च की मध्य रात्रि करीब एक बजे अंतिम सांस ली । कृष्ण बिहारी मिश्र के निधन की जानकारी उनके पुत्र कमलेश मिश्र ने दी । पिछले कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे । कृष्ण बिहारी मिश्र के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है ।
बताया जाता है कि पद्मश्री से सम्मानित डा. कृष्ण बिहारी मिश्र पिछले करीब एक महीने से बीमार चल रहे थे । कृष्ण बिहारी मिश्र को बीमारी के कारण करीब एक महीने पहले उपचार के लिए कोलकाता के अस्पताल में भर्ती कराया गया था । कृष्ण बिहारी मिश्र को तबीयत में सुधार होने पर एक दिन पहले ही अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया था ।
अस्पताल से डिस्चार्ज किए जाने के बाद कृष्ण बिहारी मिश्र को परिजन घर लेकर चले आए थे । कृष्ण बिहारी मिश्र को जिस दिन परिजन अस्पताल से घर लेकर आए । उसी रात डा. मिश्र अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गए. वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रहने वाले थे । उनका जन्म बलिया जिले के बलिहार गांव में हुआ था ।
पश्चिम बंगाल के हिंदी जगत के प्रमुख साहित्यकार कृष्ण बिहारी मिश्र को साहित्य में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया था । कृष्ण बिहारी मिश्रा ने रामकृष्ण परमहंस के जीवन पर आत्मकथात्मक शैली में “कल्पतरु की उत्सवलीला” पुस्तक की रचना की थी । कृष्ण बिहारी मिश्र की गिनती हिंदी के अग्रणी ललित निबंधकार, हिन्दी पत्रकारिता के अन्वेषक के रूप में होती है ।
वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक का निधन
नयी दिल्ली । वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक का निधन हो गया है। बताया जा रहा है कि वो बाथरूम में फिसल गए। वैदिक हिंदी के काफी प्रसिद्ध पत्रकारों में से एक हैं। उन्होंने आतंकी हाफिज सईद का इंटरव्यू किया था, जो काफी चर्चा में रहा था। वैदिक वह एक राजनीतिक विश्लेषक और स्वतंत्र स्तंभकार थे। वो नियमित रूप से देशभर में चल रहे मुद्दों पर अपने विचार लिखते थे।
कई मीडिया संस्थानों में कर चुके काम
वेद प्रताप वैदिक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की हिंदी समाचार एजेंसी ‘भाषा’ के संस्थापक-संपादक के रूप में जुड़े हुए थे। इसके अलावा वे नवभारत टाइम्स में संपादक (विचार) थे। वैदिक भारतीय भाषा सम्मेलन के अंतिम अध्यक्ष भी रहे। उनका जन्म 30 दिसंबर 1944 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। उन्होंने इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में जेएनयू से पीएचडी की। वैदिक को दर्शन और राजनीतिशास्त्र में दिलचस्पी थी। वे अक्सर इन मुद्दों पर अपने विचार रखते थे।
50 से ज्यादा देशों की यात्रा की
वेद प्रताप वैदिक न सिर्फ भारत के मुद्दों में दिलचस्पी रखते थे, बल्कि वो विदेशी राजनीति और कूटनीति के विषयों पर भी खूब लिखते थे। उन्होंने लगभग 50 देशों की यात्रा की। वो संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, रूसी और अंग्रेजी के जानकार थे।
हाफिज सईद से मुलाकात रही चर्चा में
साल 2014 में वैदिक ने हाफिज सईद से मुलाकात की थी। उन्होंने सईद के इंटरव्यू को अपने वेबसाइट पर सार्वजनिक भी किया, जिस पर काफी विवाद छिड़ा था। भारत लौटने पर उन्होंने कहा था कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान जाते हैं, तो वहां उनका जोरदार स्वागत नहीं होगा। इस मामले में उनके खिलाफ राजद्रोह का केस भी दर्ज हुआ था ।
देश की पहली महिला संगीतकार थीं नरगिस की मां जद्दनबाई
बनारस के कोठे से निकल इंडस्ट्री में बनाई थी पहचान
सिनेमा की दुनिया में डायरेक्शन से लेकर कैमरा और म्यूजिक के क्षेत्र में हमेशा से ही मर्दों का दबदबा रहा। 100 साल पहले जब सिनेमा की शुरुआत हुई तो उस समय तो महिलाओं को हीरोइन तक के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता था। लेकिन जिस तरह दुर्गाबाई कामत ने भारतीय सिनेमा की पहली महिला हीरोइन बनकर उस बंदिश को तोड़ा, उसी तरह जद्दनबाई हुसैन ने भी हिंदी सिनेमा की पहली महिला म्यूजिक कंपोजर बनकर इतिहास रचा। वह और सरस्वती देवी म्यूजिक की दुनिया में साथ-साथ ही आईं।
कोठे पर जन्म, मां दिलीपा बाई रहीं तवायफ
जद्दनबाई हुसैन का जन्म इलाहाबाद के एक कोठे की मशहूर तवायफ दिलीपा बाई के घर हुआ था। चूंकि जद्दनबाई की परवरिश और लालन-पालन कोठे पर ही हुआ, इसलिए बचपन से उनमें ठुमरी से लेकर गानों तक के प्रति रुझान देखने को मिला। बचपन से ही गानों का रियाज किया। भगवान ने ऐसी आवाज दी थी कि जो भी सुनता जद्दनबाई की ओर खिंचा चला आता। बताया जाता है कि जद्दनबाई की आवाज सुनकर दो ब्राह्मण युवा उनसे शादी को तैयार हो गए थे और इस्लाम तक कबूल कर लिया था। कोठे पर ही जद्दनबाई की चर्चे दूर-दूर तक होने लगे थे। भले ही जद्दनबाई की परवरिश कोठे पर हुई, पर तब वहां सिर्फ ठुमरी और नाच-गाना होता था। जद्दनबाई भी उसमें लीन हो गई थीं। उन्हें गाना और नाचना मां दिलीपा बाई से विरासत में मिला था। मां की इसी विरासत को जद्दनबाई आगे बढ़ाने लगीं।
गाने को बुलाते थे राज्यों के शासक, खूब गाईं ठुमरी
बाद में जद्दनबाई ने सिंगर बनने का फैसला किया और वह कोठे की दुनिया से निकलकर पहले कोलकाता और फिर मुंबई आ गईं। यहां उन्होंने गाने के अलावा फिल्मों में एक्टिंग भी की और डायरेक्शन भी किया। जद्दनबाई ने मुंबई आने के बाद पहले श्रीमंत गणपत राव और फिर उस्ताद मोइनुद्दीन खान, उस्तार छद्दू खान साहेब और उस्ताद लाब खान साहेब से ट्रेनिंग ली। धीरे-धीरे जद्दनबाई अपनी मां से भी ज्यादा मशहूर हो गईं। अब तो उन्हें बीकानेर से लेकर कश्मीर, इंदौर, रामपुर और जोधपुर जैसे शहरों के शासक भी अपने राज्यों में गाने के लिए बुलाने लगे। उन्होंने कई रेडियो स्टेशनों में गजलें गाईं, जिनका जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता था। वो जद्दनबाई की आवाज के दीवाने हो जाते। जद्दनबाई ने कोलंबिया ग्रामोफोन कंपनी के साथ भी गजलें रिकॉर्ड कीं।
प्रोडक्शन कंपनी खोली, नरगिस को किया लॉन्च
साल 1933 में जद्दनबाई ने फिल्म ‘राजा गोपीचंद’ से एक्टिंग डेब्यू किया। इसके बाद उन्होंने एक पाकिस्तानी फिल्म में भी काम किया। कुछेक फिल्मों में एक्टिंग करने के बाद जद्दनबाई ने 1935 में अपना प्रोडक्शन हाउस खोला जिसका नाम ‘संगीत फिल्म्स’ रखा। इसके बैनर तले जद्दनबाई ने पहली फिल्म ‘तलाश-ए-हक’ प्रोड्यूस की। जद्दनबाई ने इस फिल्म में न सिर्फ एक्टिंग की, बल्कि इसका म्यूजिक भी दिया। इस तरह जद्दनबाई भारतीय सिनेमा की पहली महिला संगीतकार बन गईं।
इसलिए बंद हो गई प्रोडक्शन कंपनी
जद्दनबाई ने ‘तलाश-ए-हक’ से ही बेटी नरगिस को बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट लॉन्च किया। लेकिन 1940 तक आते-आते कई बड़े प्रोडक्शन हाउस की एंट्री हो चुकी थी। इस कारण बड़े स्तर पर फिल्मों का प्रोडक्शन शुरू हो गया। नौबत ऐसी आ गई कि जद्दनबाई की प्रोडक्शन कंपनी बंद हो गई और उन्होंने फिल्मी दुनिया से दूरी बना ली। 8 अप्रैल 1949 को जद्दनबाई का निधन हो गया।
(साभार – नवभारत टाइम्स)
‘सहमति से साथ रहने’ और ‘सहमति से सम्बन्ध’ का अंतर समझना होगा – दिल्ली हाई कोर्ट
नयी दिल्ली । दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी महिला की किसी पुरुष के साथ रहने की सहमति का इस्तेमाल यह अनुमान लगाने के लिए नहीं किया जा सकता है कि वह उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए सहमत हुई है। जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने कहा कि, ‘ अगर एक महिला किसी पुरुष के साथ रहने के लिए सहमति देती है, इसका मतलब ये नहीं है कि इस तथ्य को यौन संबंध बनाने का आधार बनाया जा सकता है। कोर्ट ने एक केस के संदर्भ में किसी महिला के किसी पुरुष के साथ रहने के लिए सहमति और यौन संबंध के लिए सहमति के बीच के अंतर को स्पष्ट करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। अदालत ने कहा कि ‘मजबूरी’ के विपरीत शब्द ‘सहमति’ पर अधिक गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
क्या है मामला
अदालत ने आध्यात्मिक गुरु होने का ढोंग करके एक चेक नागरिक के साथ रेप करने के आरोपी शख्स को नियमित जमानत देने से इनकार कर दिया। इस शख्स ने महिला के पति की मौत के बाद की औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए महिला को मदद का भरोसा दिया था। महिला इस शख्स के साथ रह रही थी। आरोप है कि इस शख्स ने 2019 में दिल्ली के एक हॉस्टल में पीड़िता का यौन शोषण किया और बाद में जनवरी व फरवरी 2020 में प्रयागराज और बिहार में उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
इन धाराओं में दर्ज किया मुकदमा
एफआईआर पिछले साल मार्च में भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 354 और 376 के तहत दर्ज की गई थी और आरोप पत्र मई 2022 में दायर किया गया था। याचिकाकर्ता-आरोपी के वकील ने प्रस्तुत किया कि पीड़िता बालिग थी और उसके साथ किसी भी तरह के शारीरिक संबंध पूरी तरह सहमति से बनाए गए थे। यह तर्क दिया गया कि एफआईआर दिल्ली में हुई घटनाओं के बहुत बाद में दर्ज की गई थी और पीड़िता की ओर से न तो कोई शिकायत की गई और न ही किसी अन्य स्थान पर कोई एफआईआर दर्ज करवाने का प्रयास किया गया जहां उसका कथित रूप से यौन उत्पीड़न किया गया था।
एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर जिसने हर राइड के साथ रचा इतिहास!
नयी दिल्ली । सुरेखा यादव। एशिया की पहली महिला लोको पायलट। उनके नाम अब एक और उपलब्धि जुड़ गई है। वह वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन चलाने वाली पहली महिला ड्राइवर भी बन गई हैं। सोमवार को सोलापुर स्टेशन और छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) के बीच उन्होंने इस सेमी-हाई स्पीड ट्रेन को दौड़ाया। सुरेखा यादव किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। उनकी गिनती उन चंद महिलाओं में है जिन्होंने पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। वह लाखों-लाख लड़कियों को इंस्पायर करती हैं। 450 किमी की दूरी तय करने के बाद जब 13 मार्च को प्लेटफॉर्म नंबर 8 पर वह पहली बार वंदे भारत एक्सप्रेस लेकर पहुंचीं तो हर देशवासी का सीना फूल गया। अपनी हर राइड के साथ आज तक सुरेखा ने बेटियों की आस को पंख लगाए हैं। उन्हें उम्मीद दी है कि वे जो चाहें कर सकती हैं। 1988 में जिस दिन वह ट्रेन ड्राइवर बनीं, उसी दिन उन्होंने कई रवायतों को धराशायी कर दिया था। साधारण किसान की इस बेटी ने हमेशा माना कि अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए। जिस काम में हो उसे पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करना चाहिए। रेलवे में अब तक का उनका सफर यादगार रहा है।
सुरेखा का जन्म महाराष्ट्र के सतारा में 2 सितंबर 1965 में हुआ था। सोनाबाई और रामचंद्र भोसले की पांच संतानों में सुरेखा सबसे बड़ी हैं। उनके पिता रामचंद्र अब दुनिया में नहीं हैं। वह किसान थे। सुरेखा की शुरुआती स्कूलिंग सेंट पॉल कॉन्वेंट हाईस्कूल से हुई। स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने वोकेशन ट्रेनिंग में एडमिशन लिया। सतारा जिले के कराड में ही उन्होंने गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। वह मैथ्स में बीएससी पूरी करके बीएड करने के बाद टीचर बनाना चाहती थीं। लेकिन, रेलवे में नौकरी के अवसर ने आगे की पढ़ाई पर ब्रेक लगा दिए।
सुरेखा से पहले ट्रेन ड्राइवर नहीं बनी थी कोई महिला
1988 में सुरेखा सेंट्रल रेलवे से जुड़ गईं। उन्होंने कॅरियर की शुरुआत बतौर ट्रेनी असिस्टेंट ड्राइवर की। उनसे पहले कोई महिला ट्रेन ड्राइवर नहीं बनी थी। यहीं से सुरेखा ने इतिहास रचना शुरू कर दिया था। 1989 में वह रेगुलर असिस्टेंट ड्राइवर बन गईं। सबसे पहली लोकल गुड्स ट्रेन जो उन्होंने चलाई उसका नंबर एल-50 था। 1998 तक वह परिपक्व गुड्स ट्रेन ड्राइवर बन चुकी थीं। अप्रैल 2000 में सुरेखा ने सेंट्रल रेलवे के लिए पहली ‘लेडीज स्पेशल’ लोकल ट्रेन चलाई। तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने चार मेट्रो शहरों में इनकी शुरुआत की थी।8 मार्च 2011 सुरेखा के करियर में सबसे यादगार लम्हों में से एक है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन वह डेक्कन क्वीन चलाने वाली एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बनी थीं। वह ट्रेन को पुणे से सीएसटी तक लेकर गई थीं। सेंट्रल रेलवे के मुख्यालय सीएसटी पहुंचने पर उनका स्वागत मुंबई की तत्कालीन मेयर श्रद्धा जाधव ने किया था। इसके पहले तक यही सुनने में आता था कि महिलाएं रेल नहीं चाहती हैं। 2018 में सुरेखा मुंबई से पुणे पैसेंजर ट्रेन लेकर गई थीं। यह उनके यादगार सफर में से एक है। इस दौरान उनकी ट्रेन मुश्किल मोड़ों से गुजरी थी। यह पूरा रूट भी बेहद मनोरम था। इस ट्रेन में पूरा स्टाफ महिलाओं का था। एक इंटरव्यू में सुरेखा ने कहा था कि उनके लिए सबसे गौरवपूर्ण पल वो था जब उन्होंने ड्राइवर के तौर पर पहली बार ट्रेन चलाई थी। उस दिन उन्हें महिला होने पर फख्र महसूस हुआ था।
कई पुरस्कारों से किया जा चुका है सम्मानित
सुरेखा 1991 में ‘हम भी किसी से कम नहीं’ नाम के सीरियल में भी काम कर चुकी हैं। वुमेन ट्रेन ड्राइवर के तौर पर उनके खास रोल को कई संगठनों ने काफी सराहा था। 2021 में इंटरनेशनल वुमेंस डे के अवसर पर वह मुंबई से लखनऊ स्पेशल ट्रेन चलाकर ले गई थीं। इसमें भी पूरा महिला स्टाफ ही था।
13 मार्च को महज 6.35 घंटों में सुरेखा वंदे भारत ट्रेन को सोलापुर से मुंबई लेकर पहुंचीं। यह दूरी 455 किमी थी। रेलवे के इतिहास में किसी एक दिन में इतनी लंबी दूरी पर ट्रेन चलाने वाली वह पहली महिला थीं। रेलवे में वह सबसे वरिष्ठ महिला ट्रेन ड्राइवर हैं। उनकी देखादेखी कई और महिलाएं भी लोको पायलट बनने की हिम्मत जुटा पाईं।
सुरेखा की शादी 1990 में शंकर यादव से हुई थी। शंकर महाराष्ट्र में पुलिस इंस्पेक्टर हैं। उनके दो बेटे हैं। अजिंक्य और अजितेश। सुरेखा को कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इनमें आरडब्ल्यूसीसी बेस्ट वुमन अवार्ड (2013), वुमन अचीवर्स अवार्ड (2011), प्रेरणा पुरस्कार (2005) शामिल हैं। 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सुरेखा को राष्ट्रपति भवन में प्रतिष्ठित ‘फर्स्ट लेडीज अवार्ड’ से सम्मानित किया था।
स्कूल जहां नहीं लगती है फीस, उलटा बच्चों को मिलता है स्टाइपेंड
नयी दिल्ली । अभिभावकों की एक बड़ी चिंता बच्चों की पढ़ाई होती है। इसके लिए वे बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाते हैं। कई तो अपना पेट काटकर अपने बच्चों का उज्ज्वल भविष्य बनाने की कोशिश करते हैं। हालांकि, प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस के कारण कई बार पैरेंट्स को अपने मन को मसोस कर रह जाना पड़ता है। देश में ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों की यही कहानी है। इनकी अनाप-शनाप फीस अभिभावकों को रुला देती है। यह और बात है कि एक ऐसा भी स्कूल है जहां फीस नहीं ली जाती है। अलबत्ता, बच्चों को स्टाइपेंड दिया जाता है। जरूरतमंदों की जिंदगी बदलने के मकसद से इसकी शुरुआत की गई है। इसे चलाने वाले हैं जोहो कॉरपोरेशन के सीईओ और संस्थापक श्रीधर वेम्बु। उन्हें 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वह भारत के 55वें सबसे अमीर शख्स हैं।
वेम्बु का जन्म 1968 में तमिलनाडु के तंजावुर जिले में हुआ था। परिवार मिडिल क्लास था। 1989 में उन्होंने मद्रास के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया। फिर न्यूजर्सी में प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से एमएस और पीएचडी की डिग्री हासिल की। कैलिफोर्निया में वायरलेस इंजीनियर के तौर पर उन्होंने क्वालकॉम के साथ अपने करियर की शुरुआत की। फिर 1996 में वेम्बु ने अपने भाइयों के साथ एडवेंटनेट नाम की सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट फर्म शुरू की। 2009 में इसी कंपनी का नाम बदलकर जोहो कॉरपोरेशन कर दिया गया। 2019 में वेम्बु स्थायी रूप से भारत लौट आए। तमिलनाडु में तेनकासी जिले के ग्रामीण इलाके में जोहो ने अपने दफ्तर बनाए। वेम्बु को सॉफ्टवेयर और प्रोडक्ट डेवलपमेंट को शहरों से ग्रामीण इलाकों में ले जाने के लिए जाना जाता है। नहीं लगती फीस, मिलता है स्टाइपेंड
2020 में वेम्बु श्रीधर ने रूरल स्कूल स्टार्टअप का ऐलान किया। इसका मकसद फ्री प्राइमरी एजुकेशन देना है। इसके पहले 2005 में ही श्रीधर वेम्बु ने जोहो स्कूल की नींव डाल दी थी। 2004 में जोहो यूनिवर्सिटी शुरू करने के एक साल बाद इसकी शुरुआत हुई थी। जोहो स्कूल में कोई फीस नहीं ली जाती है। बजाय इसके छात्रों को अलग-अलग तरह की स्किल्स सिखाई जाती हैं। स्टूडेंट्स को दो साल के कोर्स के लिए 10,000 रुपये स्टाइपेंड दिया जाता है। जोहो कॉरपोरेशन में काम करने वाले हजारों कर्मचारियों में बड़ी संख्या में इस स्कूल के होते हैं। कभी दो बच्चों से शुरू हुआ था स्कूल
जोहो स्कूल छह बच्चों और दो टीचरों के साथ शुरू हुआ था। अब इन स्टूडेंट की संख्या बढ़कर 800 से ज्यादा हो चुकी है। जोहो स्कूल के प्रेसीडेंट राजेंद्रन दंडपाणी का बेटा भी इसी स्कूल में पढ़ा। फिर उसी कंपनी में कर्मचारी बन गया। राजेंद्रन बताते हैं कि जोहो में 90 फीसदी स्टूडेंट तमिलनाडु के होते हैं। जोहो इंस्टीट्यूट तेनकासी में वहीं है जहां जोहो के दफ्तर बने हैं। इसके कारण स्टूडेंट ऑफिस के माहौल से जल्द ही एक्सपोज्ड हो जाते हैं। जोहो के स्टूडेंट 21 साल की छोटी उम्र से काम पर लग जाते हैं। जोहो स्कूल में पढ़ाई ग्रेड, नंबरों या स्कोर पर नहीं, बल्कि योग्यता पर निर्भर करती है। यहीं से टैलेंट खोजा जाता है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)
गौरव मुंजाल, यूट्यूब वीडियो बनाकर खड़ी कर दी ₹ 25000 करोड़ की कंपनी
नयी दिल्ली । ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म अनएकेडमी दुनिया की बड़ी ईटी टेक कंपनियों में से एक है। साल 2022 में अनएकेडमी का नेटवर्थ 3.4 अरब डॉलर यानी करीब 25,000 करोड़ रुपये था। करोड़ों की कंपनी अनएकेडमी के प्लेटफॉर्म पर 50 मिलियन से अधिक यूजर्स हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस कंपनी की नींव एक यूट्यूब चैनल पर रखी गई है। साल 2010 में गौरव मुंजाल ने अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया था। इसी यूट्यूब चैनल ने आगे चलकर अनअकैडमी कंपनी का रूप लिया। यानी 25,000 करोड़ रुपये की इस कंपनी की नींव एक यूट्यूब चैनल के बेस पर रखी गई है।
कौन हैं गौरव मुंजाल
गौरव मुंजल अनएकेडमी के सीईओ हैं। गौरव ने अपने दोस्त डॉ रोमन सैनी और हिमेश सिंह के साथ मिलकर अपने यूट्यूब चैनल को कंपनी के तौर पर डेवलप किया। गौरव इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। बीटेक की पढ़ाई के दौरान ही गौरव ने अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया। इस चैनल का नाम अनएकेडमी रखा। गौरव इस यूट्यूब चैनल पर कंप्यूटर ग्राफिक्स कैसे बनाए इससे संबंधित वीडियो बनाकर अपलोड करते थे। उनके वीडियोज पर अच्छा रिस्पांस मिल रहा था। साल 2014 में उनकी मुलाकात रोमन सैनी से हुई। रोमन डॉक्टर और आईएएस अधिकारी थे। रोमन, गौरव ने मिलकर अपने यूट्यूब चैनल पर प्रतियोगी परीक्षाओं को कैसे पास करें, कैसे तैयारियां करें इससे संबंधित वीडियो बनाकर डालने लगे। उस वक्त उनके चैनल पर 24,000 सब्सक्राइबर्स थे। साल 2015 में रोमन से नौकरी छोड़ दी और अपना पूरा फोकस इस यूट्यूब चैनल पर लगा दिया। 10 दिसंबर 2015 में गौरव और रोमन ने मिलकर अपने यूट्यूब चैनल अनएकेडमी की शुरुआत कंपनी के तौर पर कर दी।
कैसे बनी देश की बड़ी कंपनी
दोनों ने अपनी नौकरी छोड़कर अपना पूरा फोकस अनएकेडमी को बड़ा करने में लगा दिया। कंपनी को बड़ा करने के लिए निवेश हासिल किया। आज उनकी कंपनी बायजू के बाद देश की सबसे बड़ी लर्निंग ऐप में से एक है। आज हजारों एक्सपर्ट और लाखों स्टूडेट्स अनएकेडमी से जुड़े हैं। अनएकेडमी के यूट्यूब चैनल और मोबाइल एप्लीकेशन, के जरिए ट्यूटोरियल वीडियो तैयार कर अपलोड किए जाते हैं। छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग क्लास दी जाती है। कंपनी के पास बड़े-बड़े निवेशक है।
1.58 करोड़ का वेतन
गौरव मुंजाल ने अनएकेडमी को देश की टॉप कंपनियों में शामिल कर दिया है। खुद गौरव मुंजाल सीरियल इंवेस्टर बन गए हैं। उन्होंने 37 कंपनियों में निवेश किया है। वो फ्लैटचैट के भी फाउंडर हैं। साल 2022 में अनअकैडमी के सीईओ के तौर पर उनकी सैलरी 1.58 करोड़ रुपये थी। आज अनएकेडमी के प्लेटफॉर्म पर 50 मिलियन से अधिक यूजर्स हैं।