Saturday, August 16, 2025
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वन मैन बैंड ग्लैडसन पीटर..जो बजाते हैं एक साथ 14 वाद्ययंत्र

ग्लैडसन पीटर को जो देखता है बस देखता ही रह जाता है। लोग उन्‍हें ‘वन मैन बैंड’ के नाम से जानते हैं। वह एक साथ 14 इंस्‍ट्रूमेंट बजाते हैं। इन वाद्य यंत्रों को बजाने के साथ वह गाना भी गाते हैं। इस खूबी के कारण वह चलता-फिरता बैंड नजर आते हैं। हालांकि, मुंबई में रहने वाले ग्‍लैडसन पीटर को जिंदगी में कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा है। कभी उनके फेफड़े 40 फीसदी तक बेकार हो गए थे। वह गंभीर डिप्रेशन में चले गए थे। उनके मन में आत्‍महत्‍या करने तक के ख्‍याल आने लगे थे। लेकिन, फिर उन्‍हें एहसास हुआ कि ईश्‍वर ने उन्‍हें बहुत बड़ी कला दी है। वह इसे बेकार नहीं जाने देंगे। इस मजबूत इच्‍छाशक्ति के कारण वह डिप्रेशन और फेफड़े की बीमारी से उबर गए। उन्‍होंने आज म्‍यूजीशियन के तौर पर अपनी मुकम्‍मल पहचान बना ली है।
ग्‍लैडसन पीटर कभी किसी म्‍यूजिकल ग्रुप का हिस्‍सा नहीं बने लेकिन, फैसला किया कि खुद एक बैंड बनेंगे। आज वह अपने आप को ‘वन मैन बैंड’ कहते हैं। एक साथ 14 इंस्‍ट्रूमेंट बजा और गाकर पीटर दुनियाभर में हजारों लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं।
इस संगीतज्ञ का जन्‍म तमिलनाडु के तिरुनेलवेली में हुआ था। तीन साल की उम्र से संगीत से पीटर को प्‍यार था। उन्होंने इस छोटी सी उम्र में टॉय कीबोर्ड बजाना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे संगीत के लिए यह प्‍यार बढ़ता गया। वैसे तो पीटर ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली लेकिन, वह चर्च के कॉयर से हमेशा जुड़े रहे। इस दौरान उनकी पढ़ाई भी चलती रही।
जब पीटर की उम्र 21-22 साल की हुई तो पता चला कि उनके फेफड़ों में दो छेद हैं। इससे उनके 40 फीसदी फेफड़ों को नुकसान हो चुका है। वह एक साल से ज्‍यादा समय तक बिस्‍तर से लगे थे। एक समय आत्महत्या का ख्‍याल भी आने लगा था। लेकिन, संगीतज्ञ बनने के उनके सपने ने उन्‍हें अपनी बीमारी से लड़ने की ताकत दी। उनके मन में ‘वन मैन ब्रैंड’ प्रोजेक्‍ट चल रहा था। यह खूबी दुनिया में कुछ गिने-चुने लोगों के पाास है।
ग्‍लैडसन पीटर आज करीब 45 वाद्ययंत्र बजा लेते हैं। उन्‍होंने पिछले तीन साल में 2,000 से ज्‍यादा शो किए हैं। सिर्फ देश में ही नहीं, विदेश जाकर भी उन्‍होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। वह चीन और यूएई जैसे देशों में जाकर शो कर चुके हैं।

21,000 कांच की बोतलों से सजावटी सामान बना चुकी है यह महिला

नयी दिल्‍ली । हममें से ज्‍यादातर लोग पुरानी कांच की बोतलों को कचरा समझकर फेंक देते हैं। लेकिन, रंजिनी थम्‍पी के लिए ये किसी खजाने से कम नहीं हैं। वह पुरानी कांच की बोतलों से घर की सजावट का खूबसूरत सामान बना देती हैं। 35 साल की रंजिनी ने इस हुनर से कमाई का बढ़‍िया जरिया खोज लिया है। वह वापसे नाम की एक स्‍टार्टअप कंपनी की माल‍किन हैं। इसके जरिये रंजिनी 21,000 से ज्‍यादा कांच की बोतलों को घर की सजावट के सामान और आर्ट पीस में बदल चुकी हैं। इनका इस्‍तेमाल टेबल लैंप, साइड टेबल डेकोरेशन, वॉल हैंगिंग जैसे आइटमों को बनाने के लिए किया गया है।
रंजिनी ने दुबई में अपनी पढ़ाई पूरी की। 2015 में शादी के बाद वह कोच्चि आ गईं। भारत आने पर उन्‍होंने काम से छुट्टी ली। उन्‍हें बचपन से आर्ट और क्राफ्ट में बहुत दिलचस्‍पी थी। फुर्सत मिलते ही उन्‍होंने अपनी दिलचस्‍पी के क्षेत्र में काम किया। रंजिनी ने पेंटिंग बनानी शुरू की। लेकिन, वह अपनी कला में कुछ मकसद भी तलाश रही थीं। एक दिन उनका स्‍क्रैप डीलर के यहां जाना हुआ। उन्‍हें अपने पति के साउंड स्‍टूडियो के लिए कुछ पुराने इंस्‍ट्रूमेंट खरीदने थे। वहां पर उन्‍होंने देखा कि बहुत सा सामान ऐसे ही पड़ा हुआ था। इसका कोई इस्‍तेमाल नहीं हो रहा था। वहीं उन्‍हें ग्‍लास वेस्‍ट को इस्‍तेमाल करने का आइडिया आया। और तो और बात करने पर कई स्‍क्रैप डीलरों ने उन्‍हें कांच की बोतलों को मुफ्त में दे दिया। फिर उन्‍होंने टायर के रिम, बकेट, ग्‍लास और टिन कैन जैसी चीजों को जुटाना शुरू किया।
इन जुटाई गई चीजों से रंज‍िनी ने घर की सजावट का सामान बनाया। इसे अपने घर में इस्‍तेमाल करने के साथ दोस्‍तों को भी दिया। देखते ही देखते उन्‍हें दोस्‍तों और परिवार के लोगों से ऑर्डर मिलने लगे। इनमें से कई परिवार तो ऐसे थे जो अपने घर को रीफर्निश करने के लिए उनके उत्पादों को चाहते थे। जब ऑर्डर और ज्‍यादा बढ़ने लगे तो 2021 में उन्‍होंने स्‍टार्टअप शुरू कर दिया। इसका नाम वापसे है। इसके पहले 2020 में क्‍लाइमेट कलेक्टिव नाम के संगठन से वह संपर्क में आई थीं। यह संगठन सस्‍टेनेबल बिजनस को प्रोमोट करता है। बिजनस में बिना किसी अनुभव के रंजिनी इंडिया सेमी फाइनल तक पहुंची थीं।
आईआईएम बेंगलुरु में सीखे व्यवसाय के गुर
रंजिनी के मेंटर ने उन्हें आईआईएम बेंगलुरु के प्रोग्राम में आवेदन करने के लिए कहा था। यह स्‍टार्टअप के लिए था। आवेदन करने पर उनका सेलेक्‍शन हो गया। आईआईएम-बेंगलुरु में उन्‍होंने बिजनस के सभी पहलुओं को सीखा। अपने स्‍टार्टअप वेंचर के जरिये रंजिनी होम डेकोर प्रोडक्‍टों की व्‍यापक रेंज उपलब्ध करवाती हैं। इनमें बाउल्‍स, सेंटरपीस, टेबल, लैंप और आर्टपीस शामिल हैं। वह कहती हैं कि उन्‍होंने 21,000 से ज्‍यादा कांच की बोतलों को घर की सजावट के सामान में बदला है। कांच के अलावा उन्‍होंने 5,000 से ज्‍यादा नारियल के खोलों, 800 किलो से अधिक लकड़ी और 500 किलो मेटल वेस्‍ट को खूबसूरत आइटम्‍स और आर्टपीस में तब्‍दील क‍िया है। अब तक वह ऐसे 5,000 से ज्‍यादा प्रोडक्‍टों की बिक्री कर चुकी हैं।

108 साल की उम्र में तमिलनाडु की अम्मा बनीं टॉपर

तिरुवनंतपुरम । केरल सरकार के साक्षरता कार्यक्रम के तहत आयोजित एक परीक्षा में तमिलनाडु के थेनी की रहने वाली 108 साल की एक महिला ने पहली रैंक हासिल करते हुए इतिहास रचा है। कमलकन्नी नाम की महिला का जन्म 1915 में हुआ था। उन्होंने परीक्षा में 100 में से 97 अंक हासिल किए। कमलाकन्नी एक स्कूल ड्रॉपआउट हैं। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले कई लोगों की तरह, वह अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में असमर्थ थी। कम उम्र में ही महिला परिवार केरल आ गया और यहां के इलायची बागान में काम करने लगा।
उन्होंने अपने जीवन के 80 साल इलायची के खेतों में मेहनत करते हुए बिताए। हालांकि, उनके पोते के अनुसार, गरीबी में रहने और बहुत सी कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद, उन्होंने साक्षर होने की अपनी इच्छा को कभी नहीं छोड़ा।
मेहनत लाई रंग
कमलकन्नी ने अनुरोध किया कि उनका परिवार उन्हें शास्त्र कार्यक्रम में नामांकित करे। उसने अपने लेखन कौशल (मलयालम और तमिल में) पर कड़ी मेहनत की। साक्षरता परीक्षा में अव्वल आने के बाद उनकी मेहनत रंग लाई। उनके पोते ने बताया कि परिवार अगले महीने उनकी दादी का जन्मदिन एक भव्य पार्टी के साथ मनाने की योजना बना रहे हैं। हमें खुशी है कि उसने इतनी बड़ी उम्र में एक मिसाल कायम की है। कार्यक्रम के तहत हाई स्कोर हासिल करने के लिए उन्हें केरल सरकार से भी मान्यता मिली है।
95 प्रतिशत साक्षरता वाला राज्य है केरल
केरल 95 प्रतिशत से अधिक साक्षरता दर के साथ भारत में सबसे ज्यादा साक्षर राज्य होने के लिए जाना जाता है। हाल ही में केरल सरकार ने राज्य के सीनियर सिटीजन को पढ़ना और लिखना सीखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए संपूर्णम शास्त्र साक्षरता कार्यक्रम शुरू किया है। कमलकन्नी की कहानी साबित करती है कि साक्षर होने के लिए उम्र कोई बाधा नहीं है। स्कूल वापस जाने और आपने जो शुरू किया उसे पूरा करने में कभी देर नहीं होती।

नदी के नीचे सुरंग और उसमें दौड़ती मेट्रो, कोलकाता ने रचा इतिहास

नयी दिल्ली । जमीन के ऊपर और जमीन के नीचे मेट्रो चलते तो आपने बहुत देखी होगी। लेकिन क्या आपने नदी के नीचे चलती हुई मेट्रो कभी देखी है? कोलकाता मेट्रो ने यह कमाल कर दिखाया है। देश में पहली बार कोई मेट्रो नदी के नीचे होकर गुजरी है। मेट्रो ने हुगली नदी के नीचे सुरंग बनाई है। इस सुरंग में होकर मेट्रो कोलकाता से हावड़ा पहुंची है। इस अंडरवाटर मेट्रो के ट्रायल रन की एक वीडियो रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने गत शुक्रवार को ट्विटर पर शेयर की है। उन्होंने कहा कि यह इंजीनियरिंग का एक और चमत्कार है। हुगली नदी के नीचे मेट्रो रेल सुरंग स्टेशन बनाया गया है। कोलकाता से हावड़ा के इस रूट पर मेट्रो की सेवाएं इसी साल शुरू होने की उम्मीद है। यह सेवा शुरू होने पर हावड़ा देश का सबसे गहरा मेट्रो स्टेशन बन जाएगा। यह सतह से 33 मीटर नीचे है। नदी के नीचे मेट्रो के लिए दो सुरंगे बनाई गई हैं।
आधा किलोमीटर लंबी है यह सुरंग
हुगली नदी के नीचे बनी यह मेट्रो सुरंग 520 मीटर लंबी है। हावड़ा से एस्प्लेनेड तक का रास्ता कुल 4.8 किलोमीटर लंबा है। इसमें 520 मीटर की अंडरवाटर सुरंग है। सुरंग की पूरी लंबाई की बात करें, तो यह 10.8 किलोमीटर अंडरग्राउंड है। यात्री पानी के नीचे बनी इस आधा किलोमीटर की सुंरग से 1 मिनट से भी कम समय में गुजरेंगे। लंदन और पेरिस के बीच चैनल टनल से गुजरने वाली यूरोस्टार ट्रेनों की तरह ही कोलकाता मेट्रो की इन सुरंगों को बनाया गया है। अप्रैल 2017 में एफकॉन ने सुरंगों की खुदाई शुरू की थी और उसी साल जुलाई में उन्हें पूरा किया गया।
7 महीने तक रोज होगा ट्रायल
कोलकाता मेट्रो के महाप्रबंधक पी. उदय कुमार रेड्डी ने कहा, ‘यह तो बस शुरुआत है। इस रूट पर नियमित अंडरवाटर ट्रायल होगा। अगले सात महीने तक इस रूट पर नियमित ट्रायल रन किया जाएगा। इसके तुरंत बाद आम जनता के लिए नियमित सेवाएं शुरू हो जाएंगी।’
पानी की सतह से 36 मीटर नीचे है सुंरग
इस अंडरवाटर मेट्रो सुरंग का निचला भाग पानी की सतह से 36 मीटर नीचे है। यहां ट्रेनें जमीनी स्तर से 26 मीटर नीचे चलेंगी। यह एक इंजीनियरिंग चमत्कार से कम नहीं है। इसके निर्माण में पानी की जकड़न, वॉटरप्रूफिंग और गास्केट की डिजाइनिंग प्रमुख चुनौतियां थीं। सुरंग के निर्माण के दौरान 24×7 चालक दल की तैनाती की गई। टीबीएम के कटर-हेड हस्तक्षेप नदी के नीचे गिरने से ठीक पहले किए गए थे। जिससे शुरू होने के बाद किसी हस्तक्षेप की जरूरत न हो। टीबीएम रिसाव रोकने वाले तंत्र से लैस थे और खराब मिट्टी की स्थिति के माध्यम से खुदाई कर सकते थे। यहां मजबूत नदी सुरंग प्रोटोकॉल का पालन किया गया था। इन सुरंगों को 120 साल तक सेवा के लिए बनाया गया है। पानी की एक बूंद भी नदी की सुरंगों में नहीं आ सकती है।

लू से बचने के लिए कारगर हैं आयुर्वेदिक उपाय

बढ़ते तापमान और लू के कारण भारत के कई शहरों में लू की चेतावनी ने सभी को चिंता में डाल दिया है । इन दिनों धूप में एक घंटे के लिए भी बाहर जाने से दाने और सनबर्न जैसी समस्या शुरू हो जा रही है ।
ज्यादा देर तक धूप में रहने से घमौरी की दिक्कत भी शुरू हो जाती है । इसका हमें वक्त रहते इलाज कर लेना चाहिए नहीं तो यह आगे जाकर काफी ज्यादा दर्दनाक साबित हो सकती है । हालांकि इन घमौरियों के इलाज के लिए कई मलहम उपलब्ध है जिससे यह तुरंत ठीक हो जाते हैं ।
वहीं कई लोगों का मानना है कि ऐलोपैथी की दवाई में केमिकल काफी ज्यादा होता है । इसकी वजह से हीटवेव से होने वाली घमौरी और फुंसी में आयुर्वेदिक दवाई ही बड़े काम की होती है । आयुर्वेद के जरिए घमौरियों का इलाज करने के लिए आपकी रसोई में कई सामान मौजूद हैं जिससे त्वचा की समस्याओं मसलन सनबर्न और घमौरी में तुरंत आराम मिलेगा । हीट रैशेज और सनबर्न से बचना है तो आप आयुर्वेद के इन उपाय अपना सकते हैं –
एलोवेरा
एलोवेरा त्वचा और बालों के लिए बहुत अच्छा होता है । त्वचा की देखभाल में जहां यह एक पौष्टिक तत्व है, वहीं गर्मियों में भी यह बहुत फायदेमंद होता है क्योंकि यह शरीर को ठंडा रखता है । यह सूर्य के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण होने वाले किसी भी गर्मी के चकत्ते और सनबर्न को भी ठीक करता है ।
मुल्तानी मिट्टी
मुल्तानी मिट्टी में एनाल्जेसिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो त्वचा को हीट रैश से तुरंत राहत दिलाने में मदद करते हैं। इसे लगाना भी आसान है । आधा चम्मच मुल्तानी मिट्टी में पानी मिलाकर पेस्ट बना लें और इसे प्रभावित हिस्से पर लगाएं ।
पेपरमिंट तेल
पेपरमिंट ऑयल जलन का इलाज करता है और गर्मी के दाने से होने वाले जलन को ठीक करता है। इसे प्रभावित क्षेत्र पर क्रीम, तेल, स्प्रे या क्रीम के रूप में लगाया जा सकता है ।
नारियल का तेल
सनबर्न या हीट रैश के मामले में नारियल का तेल त्वचा को आराम देने के लिए अच्छा माना जाता है । यह त्वचा को आराम देने वाले और जीवाणुरोधी गुणों के साथ घमौरियों के लक्षणों को संतुलित करता है ।
ककड़ी का रस
गर्मियों में त्वचा को ठंडक पहुंचाने के लिए ताजा खीरे का रस बहुत मददगार होता है । वास्तव में, विशेषज्ञ खीरे को फ्रीज करके गर्मियों में अपनी त्वचा पर लगाने की सलाह देते हैं ताकि इसे हाइड्रेटेड और ठंडा रखा जा सके ।
घमौरियों का मुख्य कारण हाइपरहाइड्रोसिस है । घमौरियों का मुख्य कारण हाइपरहाइड्रोसिस है जिसका अर्थ अत्यधिक पसीना, गर्म जलवायु, अत्यधिक शारीरिक गतिविधि, तंग कपड़े और लंबे समय तक बिस्तर पर आराम करना है. सुनिश्चित करें कि आप इस स्थिति से बचने के लिए गर्मियों में हाइड्रेटेड और कूल रहें ।

अच्छी सेहत के लिए जरूरी हैं महिलाओं के लिए ये 5 सप्लीमेंट

पुरुष हो या महिला, सभी को पोषक तत्वों की जरूरत होती है। आवश्यक पोषक तत्व उम्र और स्वास्थ्य पर निर्भर करते हैं। अगर महिलाओं के स्वास्थ्य की बात करें तो वे अपने परिवार के सदस्यों की देखभाल करने के चक्कर में अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाती हैं जिससे उन्हें कई बार स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में महिलाओं का स्वस्थ रहना बेहद जरूरी है। आइए जानें कि उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं को कौन से 5 सप्लीमेंट्स की जरूरत होती है।
विटामिन डी
मजबूत हड्डियों के लिए विटामिन डी आवश्यक है, क्योंकि यह शरीर को कैल्शियम को अवशोषित करने में मदद करता है। महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है, खासकर मेनोपॉज के बाद, इसलिए पर्याप्त विटामिन डी प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। आप सूरज की रोशनी से विटामिन डी प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन कई महिलाओं को यह पर्याप्त नहीं मिलता है, इसलिए पूरक आहार लेने की सलाह दी जाती है।
ओमेगा -3 फैटी एसिड
ओमेगा -3 फैटी एसिड हृदय स्वास्थ्य और मस्तिष्क के कार्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। वे सूजन को कम करने और कुछ प्रकार के कैंसर के जोखिम को कम करने में भी मदद कर सकते हैं। महिलाएं मछली से ओमेगा-3 प्राप्त कर सकती हैं, लेकिन पूरक आहार लेना भी एक अच्छा विकल्प है।
कैल्शियम
मजबूत हड्डियों और दांतों के लिए कैल्शियम महत्वपूर्ण है, और यह मांसपेशियों और तंत्रिका कार्यों में भी भूमिका निभाता है। महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक कैल्शियम की आवश्यकता होती है, खासकर गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान। जबकि कैल्शियम डेयरी उत्पादों और कुछ सब्जियों में पाया जा सकता है, कुछ महिलाओं को पूरक लेने की आवश्यकता हो सकती है।
लोहा
आयरन पूरे शरीर में ऑक्सीजन ले जाने और एनीमिया को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है। खासकर गर्भावस्था और पीरियड्स के दौरान महिलाओं में आयरन की कमी अधिक पाई जाती है। मांस, बीन्स और पत्तेदार सब्जियों में आयरन पाया जा सकता है, लेकिन कुछ महिलाओं को पूरक लेने की आवश्यकता हो सकती है।
मैग्नेशियम
मैग्नेशियम शरीर की कई प्रक्रियाओं में शामिल होता है, जिसमें मांसपेशियों और तंत्रिका कार्यों के नियमन, रक्त शर्करा के स्तर और चयापचय शामिल हैं। महिलाओं को अपने आहार से पर्याप्त मात्रा में मैग्नीशियम नहीं मिलता है, इसलिए सप्लीमेंट लेना फायदेमंद हो सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पूरक को संयम में और केवल डॉक्टर की सलाह पर ही लिया जाना चाहिए, क्योंकि कुछ पूरक अधिक मात्रा में हानिकारक हो सकते हैं। संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और अच्छी नींद भी समग्र स्वास्थ्य और तंदुरूस्ती के लिए महत्वपूर्ण हैं।

मधुमेह के मरीजों के लिए मिठास लाने के लिए कारगर हैं शानदार विकल्प

आंकड़ों के मुताबिक भारत में 8 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज के शिकार हैं । 2030 तक भारत में डायबिटीज मरीजों की संख्या 9.8 करोड़ होगी जबकि 2045 तक यह आंकड़ा पार कर 13.5 करोड़ तक पहुंच जाएगा इसलिए भारत को कैपिटल ऑफ डायबिटीज कहा जाने लगा है । मधुमेह होने का प्रमुख कारण लाइफस्टाइल में बदलाव है । मधुमेह में ब्लड शुगर तुरंत में बहुत ज्यादा बढ़ जाता है इसलिए डायबिटीज मरीजों अगर थोड़ी भी मिठाई खा लें तो उसका ब्लड शुगर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है । सच यह है कि डायबिटीज के मरीजों को अक्सर मीठा खाने की क्रेविंग हो जाती है. इस स्थिति से निपटना काफी चुनौतीपूर्ण काम हैं । हेल्थलाइन की खबर के मुताबिक डायबिटीज के मरीज मिठाई खाने के बजाय फाइबर युक्त मीठी चीजें खाकर मीठा खाने की क्रेविंग को कम कर सकते हैं । इसके लिए ऐसी चीजों का सेवन करना चाहिए जिनमें हाई फाइबर, प्रोटीन और हार्ट के लिए हेल्दी फैट हो. इस तरह के कई पोषक तत्वों से भरपूर मीठी चीजें हैं।

मिठाई के बदले इन चीजों को खाएं मधुमेह के मरीज

1. डार्क चॉकलेट-हेल्थलाइन की खबर के मुताबिक अगर मीठा खाने की क्रेविंग बहुत ज्यादा हो रही है तो आप डार्क चॉकलेट खा सकते हैं । डार्क चॉकलेट पौष्टिक और स्वादिष्ट होते हैं ।डार्क चॉकलेट में फ्लेवोनॉयड कंपाउंड होता है जो इंसुलिन को रेजिस्टेंस होने से बचाता है और डायबिटीज के मरीजों को शुगर बढ़ने के कारण जो हार्ट को नुकसान होता है, उससे भी बचाता है ।

2. नाशपाती- नाशपाती फाइबर को बहुत बड़ा स्रोत है । यहखून शुगर के एब्जॉर्ब्शन को धीमा कर देता है । इससे साधारण ब्लडशुगर का लेवल नहीं बढ़ता है।नाशपाती काफी मीठी और स्वादिष्ट होती है. अध्ययन के मुताबिक जो लोग डायबेटिक हैं उनके लिए नाशपाती का सेवन ब्लड शुगर को कंट्रोल रखने में मदद करता है।

3. सेब-कहा जाता है कि रोजाना एक सेब डॉक्टर के पास जाने से बचाता है. सेब में कई तरह के पोषक तत्व होते हैं लेकिन कार्बोहाइड्रेट की मात्रा इसमें कम होता है।वहीं एक मझोले आकार के सेब में 5 ग्राम फाइबर होता है।सेब का ग्लाइसेमिक इंडेक्स बहुत कम है. इसलिए यह खून में शुगर को नहीं बढ़ाता है ।

4. अंगूर-डायबिटीज के मरीजों के लिए मिठाई का अंगूर सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है।अंगूर काफी हेल्दी फ्रूट और फाइबर से भरपूर होता है।लाल अंगूर में कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स और पोलीफिनॉल होता है जो ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और डायबिटीज के कारण होने वाली परेशानियों को कम करता है।

5. बनाना आइस्क्रीम-डायबिटीज मरीजों के लिए बनाना आइस्क्रीम बेहतर विकल्प हो सकती है।बनाना यानी केला में प्रचुर मात्रा में फाइबर होता है जो शुगर के अवशोषण को बहुत धीमा कर देता हैं।यहां तक कि अगर डायबिटीज के मरीज एक केला रोज खाएं तो चार सप्ताह के अंदर ब्लड शुगर के साथ-साथ बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा भी घटने लगती है।

कोलकाता में पहली बार विश्व मनश्चिकित्सीय संघ की क्षेत्रीय कांग्रेस का आयोजन 

कोलकाता । कोलकाता में पहली बार विश्व मनश्चिकित्सीय संघ के लिए क्षेत्रीय कांग्रेस आयोजित हो रही है । यह मेगा शैक्षणिक कार्यक्रम कोलकाता में 4 दिनों के लिए आयोजित किया जा रहा है। सार्क मनोरोग महासंघ के अध्यक्ष डॉ. गौतम साहा जो की इस कांग्रेस के आयोजन अध्यक्ष हैं और डॉ जी प्रसाद राव वैज्ञानिक समिति के अध्यक्ष ने सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया । सम्मेलन में अगले 3 दिनों में 1000 से अधिक प्रतिनिधि 14-16 अप्रैल 2023 तक भाग लेंगे । साथ ही साथ एक पूर्व कांग्रेस कार्यशालाओं का भी आयोजन 13 अप्रैल 2023 को होगा। वर्ल्ड साइकियाट्रिक एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रोफेसर अफजल जावेद जो की व्यक्तिगत रूप से कोलकाता में हो रहे इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं। सम्मेलन का विषय ‘बिल्डिंग अवेयरनेस, बिल्डिंग ट्रीटमेंट गैप’ मनोचिकित्सकों को एक साथ लाने के महत्व पर प्रकाश डालता है और अन्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर को एक मंच प्रदान करते हैं जहां मरीजों की आवाज या अत्यधिक आघात वाले साथी इंसान और उनके परिवारों को सुना जाएगा। इस विषय का चयन विशाल उपचार को ध्यान में रखते हुए किया गया है मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रावधानों में 85 प्रतिशत का अंतर मौलिक है इस चिंताजनक अंतर के तीन मुख्य कारण हैं, जिनमें सबसे पहले रूढ़िवादी सोच आती है, जहा डॉक्टर और रोगी के बीच का अनुपात काफी कम है , हमारे पास मनोचिकित्सकों का अनुपात केवल 1:10000 है और हमारा लक्ष्य इस अंतर को घटा कर 1:2000 मनोचिकित्सकों तक पहुंचना है।
वैज्ञानिक समिति ने 225 घंटे की शैक्षणिक व्यवस्था की है साथ ही कार्यक्रम में लगभग 110 कार्यशालाओं, 86 संगोष्ठियों, 120 फ्री पेपर, 48 पोस्टर, 11 प्री कांग्रेस वर्कशॉप। यह विश्व मनश्चिकित्सीय संघ द्वारा आयोजित सम्मेलन के दुर्लभ अवसरों में से एक है जहां डब्ल्यूपीए के 4 वर्तमान तथा पूर्व अध्यक्षों द्वारा भाग लिया जा रहा है। विभिन्न देशों से 10 से अधिक विभिन्न मनोरोग संघ का प्रतिनिधित्व उनके राष्ट्रीय अध्यक्षों द्वारा किया जा रहा है। हम मोहर कुंज से मेटल हेल्थ अवेयरनेस वॉक का आयोजन कर रहे हैं इस आयोजन में 26 विभिन्न देशों के 1000 से अधिक प्रतिनिधि और 5 महाद्वीप ने भाग लिया । सार्क देशों के सहकर्मियों ने इस कार्यक्रम की योजना बनाने के लिए सक्रिय रूप से सहयोग किया है साथ ही गैर सरकारी संगठनों, देखभालकर्ताओं, स्नातक छात्रों और वरिष्ठ न्यायाधीश ने मानसिक स्वास्थ्य के सभी इंटरफेस पर चर्चा करने के लिए।

भारतीय भाषा परिषद में प्रदान किया गये कर्तृत्व समग्र सम्मान और युवा पुरस्कार 

कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद के सभागार में राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह का आयोजन किया गया| इसमें मराठी और ओड़िया के ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध साहित्यकार भालचंद्र नेमाडे और प्रतिभा राय के अलावा तेलुगु के एन. गोपी और हिंदी की मधु कांकरिया को कर्तृत्व समग्र सम्मान से सम्मानित किया गया| ओम नागर (राजस्थानी), सुमेश कृष्णन (मलयालम), वांग्थोई खुमान (मणिपुरी) और शेखर मल्लिक (हिंदी) युवा पुरस्कार से सम्मानित हुए| राष्ट्रीय सम्मान बांग्ला के शीर्षस्थ साहित्यकार शीर्षेंदु मुखोपाध्याय के हाथों प्रदान किया गया|
दीप प्रज्वलन के बाद परिषद की अध्यक्ष डॉ.कुसुम खेमानी ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि आज न केवल भारतीय भाषा परिषद बल्कि यहाँ की हर ईंट स्वागत को तत्पर है| बांग्ला के प्रसिद्ध लेखक शीर्षेंदु मुखोपाध्याय ने सभी पुरस्कृत विद्वानों को बधाई देते हुए कहा कि साहित्य से हमेशा नाता बनाए रखना चाहिए| साहित्य ही मनुष्यता का निर्माण करता है|
द्वितीय सत्र में सभी पुरस्कृत रचनाकारों ने अपने वक्तव्य रखे| प्रतिभा राय ने रचना के उपादान विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य में कुछ भी वर्जित नहीं है| पापी से भी प्रेम करना पड़ता है कि आखिर उसने पाप क्यों किया| ओम नागर ने वर्तमान समाज की विषम परिस्थितियों पर बात की| मधु कांकरिया ने औरतों की दुर्दशा पर बात करते हुए कहा कि कोई औरत बुरी नहीं होती, बुरी होती है उसकी परिस्थितियां| सुमेश कृष्णन ने अपनी रचनात्मकता पर बात की और अपनी कविता को गायन शैली में व्यक्त किया| एन गोपी ने अपनी कविता के अनुभव पर विचार रखे| बांग्थोई खुमान ने कहा कि कविता समाज की बेहतरी के लिए होती है| शेखर मल्लिक ने रचना प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि हम अपनी दृष्टि समाज से लेते हैं और उसका सार पुनः समाज के सामने प्रस्तुत करते हैं| भालचंद्र नेमाडे ने भारतीय साहित्य पर विहंगम दृष्टि डाली और आज की परिस्थितियों में लेखन की चुनौती पर बात रखी|
अंत में परिषद के निदेशक डॉ.शंभुनाथ ने सबका धन्यवाद प्रकट किया| पूरे समारोह का संचालन परिषद की मंत्री राजश्री शुक्ला ने किया|

पारम्परिक विरासत है पुरुलिया का छऊ मुखौटा हस्तशिल्प

शुभजिता फीचर डेस्क

छऊ मुखौटा भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल में पुरुलिया की एक पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत है । पुरुलिया का छऊ मुखौटा भौगोलिक संकेतकों की सूची में दर्ज है । पुरुलिया छऊ के बुनियादी अंतर के रूप में मुखौटा अद्वितीय और पारंपरिक है। चरीदा के कलाकारों की सहायता के लिए जीनियस फाउंडेशन एवं एसेंसिव एडू स्किल फाउंडेशन साथ आए हैं । मुखौटा बाजार को अन्तरराष्ट्रीय बाजार तक पहुँटाने एवं कारीगरों को निपुण बनाने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किये गये । यह परियोजना कारीगरों के लिए जमीनी स्तर से उद्यमियों को विकसित करने और एक सामूहिक व्यवसाय के रूप में काम करने के विचार को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार लिंकेज के विकास पर केंद्रित होगी। कारीगरों को आधुनिक पैकेजिंग तकनीक के बारे में शिक्षित करने पर विशेष जोर दिया जाएगा। जीनियस फाउंडेशन समझौता ज्ञापन के प्रावधानों के अनुसार एसेंसिव एडू स्किल फाउंडेशन को फंड प्रदान करेगा और एसेंसिव एडू स्किल फाउंडेशन कार्यक्रम को लागू करेगा। समझौते पर , जीनियस कंसल्टेंट्स लिमिटेड अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक आर.पी. यादव, और एसेंसिव ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ के अध्यक्ष अभिजीत चटर्जी ने हस्ताक्षर किये ।पुरुलिया और आसपास के गाँव
मुखौटा बनाने के लिए मिट्टी, मुलायम कागज, पतला गोंद, कपड़ा, मिट्टी, महीन राख पाउडर आदि की जरूरत पड़ती है । यह वह मुखौटा है जो पुरुलिया छऊ को उसकी अन्य दो महत्वपूर्ण शाखाओं से अलग करता है: झारखंड का सरायकेला छऊ और ओडिशा का मयूरभंज छऊ । झारखंड के समकक्षों में मुखौटे शामिल हैं, लेकिन वे पुरुलिया वेरिएंट की धूमधाम के बिना, बल्कि सरल, छोटे और विचार जगाने वाले हैं जबकि मयूरभंज प्रकार एक बेदाग रूप है। यह केवल पुरुलिया रूप है जो विस्तृत वेशभूषा के साथ-साथ बड़े उत्तेजक मुखौटों का उपयोग करता है जो भौतिकीकरण की चुनौतियों के बावजूद ऊर्जावान प्रदर्शन को तेज करता है।
मुखौटा कलाकारों को चरित्र में रूपांतरित होने की अनुमति देता है – जब एक कलाकार एक विशेष मुखौटा पहनता है, तो वह “तुरंत चरित्र में आ जाता है, मधुर कार्तिक, भयंकर रावण, या दुर्गा के क्रूर शेर में बदल जाता है ” । बाघमुंडी के राजा मदन मोहन सिंह देव के शासन के दौरान छऊ मास्क बनाने की परंपरा शुरू हुई । छऊ मुखौटा परंपरागत रूप से पुरुलिया जिले में सदियों पुराने नृत्य रूपों से जुड़ा हुआ है।
बुद्धेश्वर द्वारा मुखौटा बनाने की परंपरा को लोकप्रिय बनाया गया था, जिन्हें चरिदा के पहले मुखौटा निर्माता के रूप में सम्मानित किया जाता है। चरीदा में बुद्धेश्वर की एक मूर्ति भी है। कहा जाता है कि उन्होंने पहले नर और मादा मुखौटों का निर्माण किया, जिन्हें किरात और किरातनी के नाम से जाना जाता है, जो शिव और पार्वती के रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं । यह मुखौटा बनाने के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
पुरुलिया छऊ में महिषासुरमर्दिनी
पुरुलिया छऊ मास्क को 2018 में जीआई टैग मिला था। यह एक स्वागत योग्य कदम है: कलाकार अपने बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में अधिक जागरूक हो गए हैं। प्रदर्शन के लिए इस्तेमाल किए जाने के अलावा, कुछ मुखौटे विशेष रूप से पर्यटकों को उपहार और स्मृति चिन्ह के रूप में बेचे जाते हैं। मुखौटे विभिन्न प्रकार के होते हैं जिनका उपयोग विशेष नृत्य प्रस्तुतियों के लिए किया जाता है। उन्हें बाबू , बीर , भूत , पशु, पक्षी और नारी मुखौटों में वर्गीकृत किया गया है। [3]
बाबू श्रेणी में मुख्य रूप से नर देवताओं जैसे नारायण , गणेश , कार्तिक , कृष्ण , शिव आदि के लिए मुखौटे शामिल हैं। बीर या नायक मुखौटे में वे कलाकार शामिल होंगे जो रावण और महिषासुर जैसे राक्षसों का किरदार निभाते हैं । बाघ, भैंस, महाकाव्य रामायण के बाली और सुग्रीव जैसे वानर नायक पशु मुखौटों की श्रेणी में आते हैं। दुर्गा , पार्वती , सरस्वती और देवी के अवतारों को नारी के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया हैया महिलाओं के मुखौटे, जबकि पक्षियों के मुखौटे जटायु , मोर, हंस आदि के लिए होते हैं ।
कलाकार केवल पूरे चेहरे वाले मुखौटे का उपयोग करते हैं, लेकिन छोटे मुखौटे भी बनाए जाते हैं और कला संग्राहकों को बेचे जाते हैं। मुखौटा बनाने की शैली में कृष्णा नगर स्कूल ऑफ पेंटिंग की समानता है, जिसकी उत्पत्ति 18वीं शताब्दी के दौरान पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में हुई थी।
प्रदर्शन मास्क पूर्ण-चेहरे वाले होते हैं, और लगभग पार्श्विका हड्डी को पीछे की खोपड़ी के आधार पर कवर करते हैं जो एक बेहतर स्थिरता की अनुमति देता है, खासकर जब तार के हेलो को हेडगियर के चारों ओर जोड़ा जाता है। टोपी पर तार के फ्रेम को रंगीन मोतियों, सेक्विन, कंफ़ेद्दी आदि का उपयोग करके अलंकृत किया जाता है, ताकि देवी-देवताओं, भद्दे राक्षसों, या विशिष्ट जानवरों की छवि को उभारा जा सके । कुछ मुखौटों का वजन पांच किलोग्राम तक होता है।

लोकप्रिय छऊ पात्रों के लिए, मानकीकृत दृश्य परंपराएं मौजूद हैं। लक्ष्मण , कार्तिक , अर्जुन , या परशुराम जैसे सुंदर, फिर भी मानव जैसे नायकों को काली मूंछों के साथ गुलाबी रंग में रंगा जाता है। भगवान कृष्ण नीले रंग का मुखौटा पहनते हैं, जबकि राम का हरा मुखौटा है। देवी ज्यादातर गुलाबी रंग की होती हैं, और उनके माथे पर खींचे गए नाक के छल्ले, झुमके और सिंदूर के निशान जैसे प्रमुख स्त्री आभूषण होते हैं। अलग-अलग देवताओं को उनकी बहुत विशिष्ट प्रतिमाओं के साथ चित्रित किया गया है – उदाहरण के लिए नरसिंह (विष्णु का आधा शेर, आधा पुरुष अवतार) की उग्र आँखें हैं, एक बहुत ही भयंकर अभिव्यक्ति और एक अयाल है, पूरे गणेश का एक हाथी का सिर है, औरशिव का मुखौटा एक उलझे हुए बाल और नीले भगवान के प्रतिनिधित्व के लिए एक सर्प को दर्शाता है। दूसरी ओर, एक मोर के सिर वाला सहयोगी, जो एक अन्य नर्तक द्वारा निभाया जाता है, कार्तिक के साथ जाता है ; और दुर्गा के साथ एक कलाकार है जो महिषासुर की भूमिका निभाता हैएक निर्दिष्ट दानव मुखौटा पहने हुए, जबकि एक अन्य नर्तक वास्तविक बैल की भूमिका निभाता है ।उसका वाहन या वाहन, शेर, एक बड़ा मुखौटा और एक बड़े आकार का नारंगी कपड़ा पहने दिखाया गया है जो दो नर्तकियों के आंदोलनों के साथ चलता और स्पंदित होता है जो शेर को बड़ा दिखाते हैं। राक्षसों को आमतौर पर उनकी राक्षसी विशेषताओं के साथ भयंकर आंखों के साथ दिखाया जाता है और उनके चेहरे काले, हरे या अन्य गहरे रंगों में चित्रित किए जाते हैं।
मुखौटा कलाकारों की कलात्मक क्षमता और नवीनता की भावना तब सामने आती है जब असामान्य चरित्रों को बनाना होता है। हाल के दिनों में, ग्रीन गॉब्लिन , सिल्वेस्टर स्टेलोन, या वूल्वरिन जैसे मार्वल कॉमिक पात्रों के मुखौटे कलाकारों द्वारा बनाए गए हैं, और ये गैर-छाऊ खरीदारों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय हैं।
छऊ मुखौटे सूत्रधार समुदाय के कलाकारों द्वारा बनाए जाते हैं। मास्क का निर्माण विभिन्न चरणों से होकर गुजरता है। नरम कागज की 8-10 परतें, पतला गोंद में डूबी हुई, मिट्टी के सांचे को महीन राख के पाउडर से झाड़ने से पहले सांचे पर एक के बाद एक चिपकाई जाती हैं। चेहरे की विशेषताएं मिट्टी से बनी हैं। मिट्टी और कपड़े की एक विशेष परत लगाई जाती है और फिर मास्क को धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद, सांचे को पॉलिश किया जाता है और सांचे से कपड़े और कागज की परतों को अलग करने से पहले धूप में सुखाने का दूसरा दौर किया जाता है। नाक और आंखों के लिए छिद्रों की फिनिशिंग और ड्रिलिंग के बाद, मास्क को रंगा जाता है और सजाया जाता है।

 

मुखौटे का आधार लकड़ी या बेंत से बनाया जाता है, जो अधिकांश मुखौटा निर्माताओं के पास होता है। इसके बाद, मिट्टी को आधार पर लगाया जाता है और एक सांचा बनाया जाता है। सांचे को सूखने के बाद, आधार से अलग किया जाता है और पपीर माचे के साथ स्तरित किया जाता है । मिट्टी की एक और परत डालकर पपीयर माछ को चिकना किया जाता है। कभी-कभी हल्के सूती कपड़ों का भी प्रयोग किया जाता है। आधार बनाने में लगभग तीन दिन लगते हैं, और इस समय का अधिकांश समय धूप में सुखाने में लगता है। हालाँकि, इससे पहले कि पूरा मास्क पूरी तरह से सूख जाए, बाल, आँखें, भौहें आदि जैसे विवरण जोड़े जाते हैं। मुखौटों की सजावट और पेंटिंग के लिए तीन कार्य दिवसों या उससे अधिक के एक और सेट की आवश्यकता होती है। छोटे और सरल मुखौटे, आमतौर पर स्मृति चिन्ह के रूप में लिए और बेचे जाते हैं, एक दिन के भीतर रंगे और सजाए जाते हैं ।
मुखौटा बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली मिट्टी को आस-पास के खेतों से जलोढ़ मिट्टी से प्राप्त किया जाता है, जबकि जूट या एक्रिलिक ऊन का उपयोग करके बाल और पशु अयाल बनाए जाते हैं। पेंट, तार, सेक्विन, चमकदार सितारे, पत्ते और अन्य सजावटी सामान कोलकाता के थोक बाजारों से बड़ी मात्रा में आते हैं। कारीगरों के संग्रह से बेचे जा रहे पुराने मुखौटों को पॉलिशिंग कहा जाता है: यानी कलाकार उन्हें रंगने के लिए रंग मिलाते हैं। जबकि ब्लो ड्रायर्स का उपयोग सुखाने के चरण को तेज करने के लिए किया जाता है ताकि ग्राहकों की समय सीमा को पूरा किया जा सके। चरीदा में, कलाकार न केवल कुशल शिल्पकार हैं, बल्कि बहुत सक्षम सेल्समैन भी हैं।
कई बार, जब समय या वित्त की कमी होती है, तो मुखौटा-निर्माता नृत्य मंडली के साथ मिलकर काम करते हैं, पुराने मुखौटों को संशोधित करते हैं और वर्तमान उत्पादन मांगों को पूरा करने के लिए उन्हें फिर से रंगते हैं। पुरुलिया के बाघमुंडी प्रखंड में स्थित चरीदा छऊ मास्क बनाने का केंद्र है, जहां गली के लगभग हर आवास एक साथ वर्कशॉप बन जाता है. कुछ के नाम मुखोश घर (मुखौटे का घर) भी हैं। इस स्थान को यूनेस्को के सहयोग से बंगाल सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम और कपड़ा विभाग के रूप में नामित किया गया है । चरीदा को मुखोश ग्राम के नाम
मुख्य मुखौटा निर्माता परिवार में मुख्य रूप से महिला लोक द्वारा निष्पादित कार्य का पर्यवेक्षण करता है। विशिष्ट सजावट, जो जीवंतता और विस्तृत प्रभाव जोड़ती है जिसके लिए पुरुलिया मुखौटे जाने जाते हैं, लगभग पूरी तरह से घर की महिलाओं द्वारा की जाती है। फिर भी एक विवाद है कि अब तक चरीदा के सभी पुरस्कार विजेता मुखौटा निर्माता पुरुष रहे हैं, इसलिए बदलाव की आवश्यकता है।
गंभीर सिंह मुरा (1930-2002), जिन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था , ने पहली बार कला के रूप में नाम और पहचान लाई। मुरा जैसे कलाकार मुखौटा बनाने वाले भी हैं। चरीदा में मुरा की मूर्ति मिली है। चरीदा में एक संग्रहालय भी है जो पुरुलिया छऊ मुखौटों की कला और यात्रा का दस्तावेजीकरण करता है। जनवरी-फरवरी के दौरान गांव में एक छऊ मुखौटा उत्सव भी आयोजित किया जाता है।