Sunday, May 25, 2025
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भवानीपुर कॉलेज में यंगोत्सव 2025 टेलेंट शो 

कोलकाता ।  भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज के टर्फ पर होने वाले यंगोत्सव 2025 टेलेंट उत्सव में विद्यार्थियों ने जम कर हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम ताजा टीवी और प्रियागोल्ड स्नेकर ने आयोजित किया। कॉलेज के लिए इस तरह का प्रतिभा अपनी तरह का अनोखा उत्सव है। इसमें कोलकाता के 15 शीर्ष कॉलेजों को लिया गया है। भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज में भी 11 मार्च मंगलवार सुबह साढ़े दस बजे से तीन बजे तक चला। इस अवसर पर विद्यार्थियों ने प्रतियोगिताओं और रोमांचक पुरस्कारों के संगीत गीत, गिटार बजा कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। कई प्रकार के फिटनेस, पंजा लड़ाना और रस्साकशी आदि कई रुचिकर प्रतियोगिता में युवाओं ने भाग लिया और पुरस्कार जीते। भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज का टर्फ पर होने वाले वाले इस कार्यक्रम में रॉयल इनफिल्ड बाइक पर बैठने और फोटो खिंचवाने का आनंद लिया। युवा छात्र छात्राओं ने कविताएं, शायरी, स्टेंडिंग कॉमेडी में भागीदारी की। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि जिन्हें कभी मंच पर जाने का मौका नहीं मिला ऐसे विद्यार्थियों को भी प्रेरित किया गया। कॉलेज के डीन और रेक्टर प्रो दिलीप शाह और प्रातःकालीन कॉमर्स सत्र की वाइस प्रिंसिपल ने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया। सांस्कृतिक कलेक्टिव फ्लेम ने होली पूर्व होली की नृत्य प्रस्तुति दी। ताजा टीवी की डायरेक्टर नम्रता नेवर ने डॉ वसुंधरा मिश्र को उपहार दिए।।

भवानीपुर कॉलेज के विद्यार्थियों ने शोमैन राजकपूर को याद किया

कोलकाता । भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज के कॉन्सेप्ट हॉल में शोमैन राजकपूर को श्रद्धांजलि दी गई। आज भी राजकपूर की फिल्मों के गीत और उनके रोमांटिक अंदाज को याद किया जाता है। वे एक भारतीय अभिनेता फिल्म निर्देशक और निर्माता थे जिन्होंने हिन्दी सिनेमा को नया मुकाम भी दिया। 14 दिसंबर 1924 में पेशावर में जन्म और 2 जून 1988 में मृत्यु को प्राप्त हुए। आज भी फिल्मों में कपूर परिवार संलग्न है।
भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज के बेस्ट कलेक्टिव द्वारा आयोजित’ ट्रिब्यूट टू राजकपूर’ में पद्मभूषण राजकपूर की फिल्मों के कई रंगों का प्रदर्शन किया गया। विद्यार्थियों ने प्रसिद्ध गीतों की प्रस्तुति दी गई जिसमें संगीत और संयोजन दिया संगीतज्ञ सौरभ गोस्वामी ने। राजकपूर की पांच मिनट की पीपीटी भी दिखाई गई जिसे प्रो देवीना गुप्ता ने बनाया। कार्यक्रम का आरंभ सोनाक्षी कर के गाए गीत सत्यम शिवम सुंदरम और सुन साहिबा सुन प्यार की धुन से हुई।क्रिसेंडो कलेक्टिव ने राजकपूर की फिल्मों के कई प्रमुख गीतों को गाया। इन एक्ट कलेक्टिव ने राजकपूर की कहानी अपने मुंह जबानी सुनाई जो बहुत ही प्रभावशाली रही। प्रो दिलीप शाह ने स्वयं सिन्थेसाइजर बजा कर ऐ भाई जरा देख के चलो गाया जिसमें साथ दिया प्रो सीएस नितीन चतुर्वेदी ने। प्रो देवीना गुप्ता ने ये रात भीगी भीगी, रमैया वस्ता वैया, डॉ रेखा नारिवाल ने डम डम डिगा डिगा मौसम भीगा भीगा, डॉ वसुंधरा मिश्र ने चलत मुसाफ़िर मोह लियो रे पिजडे़ वाली मुनिया गाया जिसका आनंद युवा छात्र छात्राओं ने जम कर लिया।कॉलेज की एच आर शिल्पी दास ने भी राजकपूर की कई फिल्मों के गीतों को मिला कर गाया। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि इसके पूर्व भी आर डी बर्मन, साहिर लुधियानवी, गालिब, मजरूह सुल्तानपुरी आदि पर कार्यक्रम हुए हैं जिनकी रचनाधर्मिता और फिल्मों से विद्यार्थियों को रूबरू कराया गया। कार्यक्रम का संचालन वेदांत गुप्ता और ख्याति बंसल ने किया।

भवानीपुर कॉलेज ने किया मैनेजमेंट पदाधिकारीगणों का सम्मान

कोलकाता । भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज की स्थापना 1966 में हुई थी जिसमें तत्कालीन प्रिन्सिपल डॉ नलिन पटेल जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। भवानीपुर स्कूल और कॉलेज के बाद अब भवानीपुर ग्लोबल युनिवर्सिटी बन गया है इस महनीय कार्य में जिन पदाधिकारी एवं ट्रस्टीज का महत्वपूर्ण योगदान रहा उन्हें सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में भवानीपुर गुजराती सोसाइटी, भवानीपुर गुजराती स्कूल, भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज, बीकॉम, बीए, बीएससी, बीबीए, एम कॉम, सिक्युरिटी, एडमिनिस्ट्रेशन, कॉलेज के एच आर, एनसीसी आदि विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुखों की उपस्थिति रही। कॉलेज की वर्तमान प्रबंधकीय समिति ने शिक्षा के क्षेत्र में उनकी दूरदर्शिता को विस्तार दिया और दिसंबर 2024 में भवानीपुर ग्लोबल युनिवर्सिटी के रूप में एक नया कदम रखा है । अपने वक्तव्य में कॉलेज के उपाध्यक्ष श्री मिराज डी शाह ने कहा कि अब अॉटोनोमस युनिवर्सिटी के रूप में हम शैक्षणिक संस्थान का कार्य कर सकेंगे । इसके लिए सभी शिक्षक शिक्षिकाओं को भी अपडेट रहने की आवश्यकता है। वर्तमान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को साथ लेकर चलना होगा तभी हमारे विद्यार्थी समय के साथ चल सकेंगे। मिराज शाह ने शिक्षा के क्षेत्र में आनेवाले पचास वर्ष के भविष्य पर अपने विचार व्यक्त किए। इस कार्यक्रम का आयोजन कॉलेज की ओर से मैनेजमेंट के समस्त पदाधिकारियों को सम्मान देने के लिए किया गया। रेक्टर और डीन प्रो दिलीप शाह ने अपने वक्तव्य में कहा कि भवानीपुर ग्लोबल युनिवर्सिटी की परिकल्पना को साकार रूप देने में कॉलेज के उपाध्यक्ष श्री मिराज डी शाह का महत्वपूर्ण योगदान है, जिनको सम्मानित कर हम गर्व का अनुभव कर रहे हैं। अध्यक्ष श्री रजनीकांत दानी, सचिव श्री प्रदीप सेठ, नलिनी पारेख, रेणुका भट्ट, श्रीमती शिवानी डी शाह और कॉलेज के सभी पदाधिकारी और ट्रस्टीज की उपस्थिति रही जिनका सहयोग और मार्गदर्शन भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी को उत्तरोत्तर आगे बढ़ा रहा है। संचालन किया प्रो उर्वी शुक्ला ने और संयोजन वाइस प्रिंसिपल प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी का रहा। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि कॉन्सेप्ट हॉल में सम्मान समारोह का उद्घाटन मिराज डी शाह, रजनीकांत दानी, डीन और रेक्टर प्रो दिलीप शाह तथा उपस्थित प्रमुख पदाधिकारीगण ने दीप प्रज्वलित कर किया। सभी प्रमुख सपत्नीक पधारे थे। जुबली सभागार में सुस्वादु भोजन की व्यवस्था की गई। इस अवसर पर हुए शास्त्रीय नृत्य और संगीत ने कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए।

 

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फूल फगुआ कार्यक्रम में गैर शैक्षणिक कर्मचारी सम्मानित 

कोलकाता । भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज में आयोजित फागुन 2025 कार्यक्रम में कॉलेज के गैर शैक्षणिक कर्मचारियों को उनके अकथ परिश्रम के लिए सम्मानित किया गया। रेक्टर और डीन प्रो दिलीप शाह द्वारा यह परंपरा को पिछले सात आठ से आरंभ की गई है जो सभी को प्रोत्साहित करती है। विद्यार्थियों द्वारा कई सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए जिसमें फागुन के कई गीतों का आनंद लिया गया। सभी कर्मचारियों के चंदन और गुलाल का टीका लगाया गया। सर्वप्रथम टीआईसी डॉ शुभव्रत गांगुली जी ने 44 वर्ष से कार्य कर रहे श्री हरी सिंह जी को उपहार देकर सम्मानित किया। 85 वर्ष की आयु में अभी भी वे कॉलेज में कार्य कर रहे हैं।एकाउंट्स विभाग, कम्प्युटर विभाग, प्रशासनिक व्यवस्था विभाग, स्वास्थ्य विभाग, सिक्युरिटी विभाग, एच आर, कन्सट्रकशन विभाग, लिफ्ट कर्मचारी, पुस्तकालय विभाग आदि सभी विभागों के कर्मचारियों को सम्मानित किया गया । रेक्टर और डीन प्रो दिलीप शाह ने फूलों से सभी कर्मचारियों का स्वागत किया।संयोजन वाइस प्रिंसिपल प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी का रहा। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि सभी ने ठंडई पीने का आनंद लिया और नाश्ते के डिब्बे वितरित किए गए और उपहार स्वरूप बैग दिया गया।

एमएसएमई के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आईपी यात्रा कार्यक्रम 

कोलकाता । भारत सरकार के अंतर्गत एमएसएमई मंत्रालय के अधीन एमएसएमई-डेवलपमेंट एवं फैसिलिटेशन ऑफिस की ओर से 19 व 20 मार्च, 2025 को कोलकाता के होटल हिंदुस्तान इंटरनेशनल में दो दिवसीय राष्ट्रीय स्तर का आईपी यात्रा कार्यक्रम (आईपी कार्यशाला) का आयोजन किया गया है। भारत सरकार ने एमएसएमई की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने और उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चैंपियन के रूप में बदलने के लिए इनक्यूबेशन, डिजाइन हस्तक्षेप और आईपीआर संरक्षण पहलों के संयोजन के माध्यम से एमएसएमई अभिनव योजना बनाने की कल्पना की। एमएसएमई के लिए राष्ट्रीय स्तर के आईपी यात्रा कार्यक्रम का उद्घाटन विजय भारती (आईएएस, सचिव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार) ने किया। इस मौके पर डॉ. तपस कुमार बंद्योपाध्याय (प्रोफेसर, आईआईटी खड़गपुर), प्रमथेश सेन (पेटेंट और डिजाइन के संयुक्त नियंत्रक, कार्यालय प्रमुख, पेटेंट कार्यालय कोलकाता), एन. बाबू (डिप्टी रजिस्ट्रार, ट्रेड मार्क्स और जी.आई., कार्यालय प्रमुख, ट्रेड मार्क्स कार्यालय, कोलकाता), पी. के. दास (जे.डी. और एच.ओ.ओ., एमएसएमई-डीएफओ, कोलकाता) के साथ समाज की कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां इसमें शामिल थे। इस अवसर पर पी. के. दास (संयुक्त निदेशक और एच.ओ.ओ., एमएसएमई-डीएफओ, कोलकाता) ने पश्चिम बंगाल के लिए एमएसएमई के विशेष लाभ के लिए इस कार्यक्रम के आयोजन पर अपनी संतुष्टि व्यक्त की।  उन्होंने कहा, भारत सरकार ने आईपीआर के माध्यम से एमएसएमई की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं, जो एमएसएमई के लिए एक नई अवधारणा है। जिसमें इनक्यूबेशन, डिजाइन हस्तक्षेप में आयाधुनिकता के बारे में एमएसएमई के बीच जागरूकता पैदा करने और उन्हें एमएसएमई चैंपियन बनने के लिए प्रेरित करने के लिए एकल मोड दृष्टिकोण में आईपीआर की सुरक्षा का संयोजन है। यह अत्याधुनिक गतिविधियों के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करता है, जो विचारों के विकास को व्यवहार्य व्यवसाय प्रस्ताव में सुगम और निर्देशित करता है।

कुचिना फाउंडेशन के दस साल पूरे, 26 कृतिका फेलो सम्मानित

कोलकाता ।  कुचिना फाउंडेशन ने विकास के दशक में महिलाओं को सशक्त बनाने के सफल 10 वर्ष पूरे करने के अवसर पर शानदार जश्न मनाया। इस मौके पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें जिसमें नीति निर्माताओं, जमीनी स्तर के नेताओं और समाज सुधारकों को एक साथ लाया गया। जिससे महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवर्तन का समर्थन करने में फाउंडेशन की यात्रा का सम्मान किया जा सके। यह कार्यक्रम ऑफबीट कोलकाता में आयोजित किया गया था, जिसमें कोलकाता में ब्रिटिश उप उच्चायुक्त डॉ. एंड्रयू फ्लेमिंग, कोलकाता में ऑस्ट्रेलिया के महावाणिज्यदूत श्री ह्यूग बॉयलन, फिल्म निर्माता और पश्चिम बंगाल बाल अधिकार आयोग की सलाहकार  सुदेशना रॉय, प्रसिद्ध समाज सुधारक और कलाकार आलोकानंद रॉय, कुचिना के एमडी नमित बाजोरिया और कुचिना की क्रिएटिव डायरेक्टर नीता बाजोरिया के साथ समाज की कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां इसमें शामिल हुए। इस समारोह का मुख्य आकर्षण 26 कृतिका फेलो का सम्मान था। जिसमें 10 राज्यों की जमीनी स्तर की महिला नेता, जो लैंगिक अधिकार, जलवायु लचीलापन, शिक्षा, आजीविका सृजन और सामाजिक न्याय जैसे प्रमुख क्षेत्रों में परिवर्तन ला रही हैं, इन परिवर्तनकर्ताओं ने ओडिशा और झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों से लेकर कोलकाता के रेड-लाइट जिलों और असम के चाय बागानों तक, विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में एक लाख से अधिक हाशिए पर रहने वाली महिलाओं और लड़कियों को सामूहिक रूप से प्रभावित किया है। कुचिना फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंध ट्रस्टी, नमित बाजोरिया ने कहा, महिलाओं को सशक्त बनाने की हमारी प्रतिबद्धता शब्दों से परे है। यह उनसे एक वादा है, जो हमें समुदायों को बदलने और बाधाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित करता है। अगले दशक में हम एक ऐसे भविष्य की कल्पना करते हैं, जहाँ हर महिला आशा और बदलाव की किरण बन सके। पिछले 10 वर्षों में हमारी कृतिका फेलो परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में उभरी हैं, जिन्होंने सबसे कमजोर समुदायों में सार्थक प्रभाव डाला हैं। हम पूरे भारत में महिला परिवर्तनकर्ताओं के लिए अपने समर्थन का विस्तार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस कार्यक्रम में कई मुख्य आकर्षण शामिल थे, जिसमें कुचिना फाउंडेशन के दशक भर के प्रभाव को दर्शाने वाली एक विशेष डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग और सामाजिक परिवर्तन में उनके योगदान को मान्यता देते हुए 26 कृतिका फेलो का सम्मान शामिल था।

‘नागार्जुन और युद्ध प्रसाद मिश्र के रचना कर्म’ विषय पर संगोष्ठी

कल्याणी । कल्याणी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा प्रेमचंद सभागार में ‘नागार्जुन और युद्ध प्रसाद मिश्र के रचना कर्म’ विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी। उद्घाटन सत्र में उपस्थित विश्वविद्यालय के कला एवं वाणिज्य संकाय की डीन प्रो. सावित्री नंदा चक्रबर्ती, विशिष्ट अतिथि नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान के सदस्य सचिव डॉ. धन प्रसाद सुवेदी, मुख्य अतिथि के रूप में कलकत्ता विश्वविद्यालय की पूर्व प्रो. डॉ. चन्द्रकला पाण्डेय ने दीप-प्रज्वलित कर संगोष्ठी का उद्घाटन किया और कार्यक्रम के आरंभ में विभाग के विद्यार्थी आकाश चौधरी ने नागार्जुन की कविता ‘शासन की बन्दुक’ और शोध छात्रादीपालीओरावं ने युद्ध प्रसाद मिश्र की नेपाली कविता का पाठ किया। स्वागत भाषण विभाग की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. विभा कुमारी ने किया। उद्घाटन सत्र में प्रो. डॉ. सावित्री नंदा चक्रबर्ती जी ने नेपाली और हिन्दी भाषा के सम्मिलन को बेहद महत्वपूर्ण बताया। प्रो. चन्द्रकला पाण्डेय जी ने नागार्जुन और युद्ध प्रसाद मिश्र की कविताओं के तुलनात्मक सन्दर्भों को उद्घाटित किया। तकनीकी सत्र के अध्यक्ष पश्चिम बंगाल राज्य विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. अरुण होता ने नागार्जुन और युद्ध प्रसाद मिश्र की कविताओं में व्यक्त मुक्ति की चेतना को रेखांकित किया। नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो. देवी नेपाल ने दोनों कवियों की कविताओं में वैचारिक समानता, मानवीय चेतना और जागरण का संवाहक बताया है। एस.डी.आई. कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी ने कहा कि नेपाली समाज की संरचना को समझने के लिए युद्ध प्रसाद मिश्र को पढ़ना जरूरी है। डॉ. नवराजलम्साल ने दोनों कवियों को सत्ता का प्रतिरोधी बताया है। इस संगोष्ठी में देश भर के विभिन्न कॉलेजों, विश्वविद्यालयों से आए शिक्षकों और शोधार्थियों ने शोध-पत्र वाचन किया। अध्यक्षता विभाग की प्रोफेसर डॉ. विभा कुमारी ने की संगोष्ठी का संचालन विभाग के शोधार्थी अनूप कुमार गुप्ता और अध्यापक डॉ. इबरार खान ने किया। विभागाध्यक्ष डॉ. हिमांशु कुमारके धन्यवाद ज्ञापन से कार्यक्रम संपन्न हुआ।

पं. भरत व्यास ने बेटे के वियोग में गीत बनाया , बन गया प्रेमगीत

साल था 1957 । फ़िल्म “जनम जनम के फेरे” रिलीज हुई। यह म्यूजिकल हिट साबित हुई । इस फ़िल्म के एक गाने “जरा सामने तो आओ छलिये” ने तो जैसे उस दौर में तहलका मचा दिया। यह गाना इतना सुपरहिट साबित हुआ कि उस साल की ‘बिनाका गीत माला” का यह नम्बर 1 गीत बन गया। इस गाने का अनोखा किस्सा है । इस गाने को लिखा था पंडित भरत व्यास ने । तो हुआ यों था कि पंडित भरत व्यास जी के एक बेटा था श्याम सुंदर व्यास ! श्याम सुंदर बहुत संवेदनशील था। एके दिन भरत जी से किसी बात पर नाराज़ होकर बेटा श्याम सुंदर घर छोड़ कर चला गया।

भरत जी ने उसे लाख ढूंढा। रेडियो और अख़बार में विज्ञापन दिया। गली गली दीवारों पर पोस्टर चिपकाए। धरती, आकाश और पाताल सब एक कर दिया।ज्योतिषियों, नजूमियों से पूछा। मज़ारों, गुरद्वारे, चर्च और मंदिरों में मत्था टेका। लेकिन वो नही मिला। ज़मीन खा गई या आसमां निगल गया। आख़िर हो कहां पुत्र? तेरी सारी इच्छाएं और हसरतें सर आंखों पर। तू लौट तो आ। बहुत निराश हो गए भरत व्यास।

उस समय भरत व्यास जी कॅरियर के बेहतरीन दौर से गुज़र रहे थे। ऐसे में बेटे के अचानक चले जाने से ज़िंदगी ठहर सी गई। किसी काम में मन नहीं लगता। निराशा से भरे ऐसे दौर में एक निर्माता भरत जी से मिलने आया और उन्हें अपनी फिल्म में गाने लिखने के लिए निवेदन किया। भरत जी ने पुत्र वियोग में उस निर्माता को अपने घर से निकल जाने को कह दिया ।लेकिन उसी समय भरत जी की धर्मपत्नी वहां आ गई ।उन्होंने उस निर्माता से क्षमा मांगते हुए यह निवेदन किया कि वह अगले दिन सुबह पुनः भरत जी से मिलने आए ।निर्माता मान गए। इसके पश्चात उनकी धर्मपत्नी में भरत जी से यह  निवेदन किया की पुत्र की याद में ही सही उन्हें इस फिल्म के गीत अवश्य लिखना चाहिए । ना मालूम क्या हुआ कि पंडित भरत व्यास ने अपनी धर्मपत्नी कि इस आग्रह को स्वीकार करते हुए गाने लिखना स्वीकार कर लिया ।

उन्होंने गीत लिखा – “ज़रा सामने तो छलिये, छुप-छुप छलने में क्या राज़ है, यूँ छुप न सकेगा परमात्मा, मेरी आत्मा की यह आवाज़ है.… ” । इसे ‘जन्म जन्म के फेरे’ (1957 ) फ़िल्म में शामिल किया गया। रफ़ी और लता जी ने इसे बड़ी तबियत से , दर्द भरे गले से गाया था। बहुत मशहूर हुआ यह गीत। लेकिन अफ़सोस कि बेटा फिर भी न लौटा।

मगर व्यासजी ने हिम्मत नहीं हारी। फ़िल्म ‘रानी रूपमती’ (1959 ) में उन्होंने एक और दर्द भरा गीत लिखा – “आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं, मेरा सूना पड़ा संगीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं.…”। इस गीत में भी बहुत दर्द था, और कशिश थी। इस बार व्यास जी की दुआ काम कर गई। बेटा घर लौट आया।

लेकिन आश्चर्य देखिये कि वियोग के यह गाने उस दौर के युवा प्रेमियों के सर चढ़कर बोलते थे ।यह पंडित व्यास जी की कलम का ही जादू था ।

पंडित भरत व्यास राजस्थान के चुरू इलाके से 1943 में पहले पूना आये और फिर बंबई। बहुत संघर्ष किया। बेशुमार सुपर हिट गीत लिखे। हिंदी सिनेमा को उनकी देन का कोई मुक़ाबला नहीं। एक से बढ़ कर एक बढ़िया गीत उनकी कलम से निकले। आधा है चंद्रमा रात आधी.… तू छुपी है कहां मैं तपड़ता यहां…(नवरंग)…निर्बल की लड़ाई भगवान से, यह कहानी है दिए और तूफ़ान की.… (तूफ़ान और दिया).…सारंगा तेरी याद में (सारंगा)…तुम गगन के चंद्रमा हो मैं धरा की धूल हूं.… (सती सावित्री)…ज्योत से ज्योत जलाते चलो.…(संत ज्ञानेश्वर)…हरी भरी वसुंधरा पे नीला नीला यह गगन, यह कौन चित्रकार है.…(बूँद जो बन गई मोती)…ऐ मालिक तेरे बंदे हम.…सैयां झूठों का बड़ा सरताज़ निकला…(दो आंखें बारह हाथ)…दीप जल रहा मगर रोशनी कहां…(अंधेर नगरी चौपट राजा)…दिल का खिलौना हाय टूट गया.…कह दो कोई न करे यहां प्यार …तेरे सुर और मेरे गीत.…(गूँज उठी शहनाई)…क़ैद में है बुलबुल, सैय्याद मुस्कुराये…(बेदर्द ज़माना क्या जाने?) आदि। यह अमर नग्मे आज भी गुनगुनाए जाते हैं। गोल्डन इरा के शौकीनों के अल्बम इन गानों के बिना अधूरे हैं।

व्यास जी का यह गीत – ऐ मालिक तेरे बंदे हम.…महाराष्ट्र के कई स्कूलों में सालों तक सुबह की प्रार्थना सभाओं का गीत बना रहा।पचास का दशक भरत व्यास के फ़िल्मी जीवन का सर्वश्रेष्ठ दौर था। 5 जुलाई को भरत व्यास जी की पुण्यतिथि है । पंडित भरत व्यास जी का जन्म 6 जनवरी, 1918 को बीकानेर में हुआ था। वे जाति से पुष्करना ब्राह्मण थे। वे मूल रूप से चूरू के थे। बचपन से ही इनमें कवि प्रतिभा देखने लगी थी । मजबूत कद काठी के धनी भरत व्यास डूंगर कॉलेज बीकानेर में अध्ययन के दौरान वॉलीबॉल टीम के कप्तान भी रह चुके थे।

 

खादी कारीगरों के पारिश्रमिक में एक अप्रैल से होगी 20 प्रतिशत की वृद्धि

नयी दिल्ली ।   खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने होली पर्व के उपलक्ष्य में लाखों कारीगरों को पारिश्रमिक वृद्धि का उपहार दिया है। इनके पारिश्रमिक में एक अप्रैल 2025 से 20 प्रतिशत की वृद्धि की जाएगी। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष मनोज कुमार ने बताया कि वर्तमान में चरखे पर प्रति लच्छा कताई करने पर कत्तिनों को 12.50 रुपये मिलते हैं, जिसमें एक अप्रैल से 2.50 रुपये की वृद्धि की जाएगी। बढ़ी हुई दर के अनुसार, अब उन्हें प्रति लच्छा कताई पर 15 रुपये मिलेंगे। सरकार द्वारा कत्तिनों और बुनकरों की आय में ऐतिहासिक वृद्धि की गई। पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार ने खादी कारीगरों के पारिश्रमिक में 275 प्रतिशत की वृद्धि की है।

उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली स्थित भारत मंडपम में आयोजित भारत टेक्स-2025 के दौरान ‘खादी पुनर्जागरण’ के लिए ‘खादी फॉर फैशन’ का मंत्र दिया है। इस मंत्र को जन-जन तक पहुंचाने और खादी को आधुनिक परिधान के रूप में लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से केवीआईसी ने हाल ही में नागपुर, पुणे, वडोदरा, चेन्नई, जयपुर, प्रयागराज सहित देश के प्रमुख शहरों में भव्य खादी फैशन शो का आयोजन किया। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी की प्रेरणा से आयोजित इन फैशन शो के माध्यम से ‘नये भारत की नई खादी’ को विशेष रूप से युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया गया, जो अत्यंत सफल रहा है। इससे खादी को एक नया आयाम मिला है और यह आधुनिक परिधानों के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर रही है।

केवीआईसी अध्यक्ष ने बताया कि पिछले 10 वर्षों में खादी एवं ग्रामोद्योग उत्पादों की बिक्री में ऐतिहासिक वृद्धि हुई है। खादी एवं ग्रामोद्योग उत्पादों की बिक्री 5 गुना यानी 31,000 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 1,55,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। खादी कपड़ों की बिक्री 6 गुना यानी 1,081 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 6,496 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। वित्त वर्ष 2023-24 में 10.17 लाख नए लोगों को रोजगार मिला। वित्त वर्ष 2024-25 में उत्पादन एवं बिक्री का नया रिकॉर्ड बनेगा।

नहीं रहे वयोवृद्ध कवि आलोक शर्मा

कोलकाता । अग्रज कवि आलोक शर्मा हमारे बीच नहीं रहे । उन्होंने 10 मार्च को उन्होंने अंतिम सांस ली । आलोक जी के कविता संकलनों के फ्लैप की सूचना के अनुसार उनकी पहली रचना सन् 1947 में प्रकाशित हुई थी, और हमारी अपनी जानकारी के अनुसार ,अंत के बीमारी के चंद दिनों को छोड़ दें तो लगभग उम्र की अंतिम घड़ी तक रचनारत रहें । लगभग 75 सालों के इस रचनाशील जीवन के प्राणों की ज्योति आज बुझ गई, इससे अधिक दुखजनक भला और क्या हो सकता है । आलोक जी का जन्म सन् 1936 में कोलकाता में ही हुआ था जबकि परिवार मूलतः उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ का था । कोलकाता विश्वविद्यालय से ही स्नात्तोतकर पढ़ाई के बाद 1963 में उन्होंने पंडितराज जगन्नाथ के जीवन पर शोध किया था । लेखन का संस्कार उन्हें अपनी मां से मिला । 1959 में ही उनका एक उपन्यास ‘उसे क्षमा करना’ प्रकाशित हो गया था । शुरू में उनकी कहानियां धर्मयुग, सारिका, नई कहानियां, कहानी, लहर, तरंगिनी, नई धारा, तथा अणिमा आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ करती थी । उनका पहला कविता संकलन आयाम 1965 में प्रकाशित हुआ, समुद्र का एकान्त 1981 में और आजादी का हलफनामा (लंबी कविता) 1984 में । 1967 में ‘चेहरों का जंगल’ एक संवादहीन नाटक छपा । उन्होंने देश-विदेश की काफी यात्राएँ कीं और उनके यात्रा संस्मरण भी समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं । वे कोलकाता के दूरदर्शन और आकाशवाणी केंद्रों से भी जुड़े रहे । आलोक जी के बारे में उपरोक्त सीमित सूचनाएं हमने हमारे पास उपलब्ध उनके कविता संकलन ‘समुद्र का एकान्त’ और उनकी एक लंबी कविता ‘आजादी का हलफनामा’ से ली है । उनके बाद के संकलनों को तो हमें देखने का मौका नहीं मिला, पर विगत कई सालों से फेसबुक पर उनकी कविताएँ पढ़ा करता था और मैसेंजर पर उनकी कविताओं के संदर्भ में ही उनसे नियमित संपर्क भी बना रहता था । निजी तौर पर आलोक जी की हमारी स्मृतियां लगभग पचास साल से भी पुरानी है । तभी से उनके बात करने के अंदाज का एक बिंब तो हमारे मस्तिष्क पर हमेशा से अटका रहा है । सन् ’70 का वक्त था । हमारे पिता सेंट्रल एवेन्यू के कॉफी हाउस में हर शाम जाया करते थे । वहीं पर आलोक जी भी अपने मित्रों शंकर माहेश्वरी, नवल जी, कृष्णबिहारी मिश्र आदि के साथ एक टेबुल पर नियमित बैठते थे । एक बार इसराइल साहब के साथ हमें भी उनकी टेबुल पर बैठने का मौका मिला । वहां आधुनिक Abstract Art (अमूर्त कला) के बारे में बात चल रही थी । आलोक जी बड़ी गहराई से यथार्थवादी कला में थोथे अलंकरण की आलोचना करते हुए कह रहे थे कि जैसे कमीज में कॉलर की कोई उपयोगिता नहीं होती है, वैसे ही यथार्थवादी कला का अधिकांश निरर्थक और अनुपयोगी कहा जा सकता है । अनुभूति किसी समग्र, अलंकृत आकृति के बजाय रंगों, रेखाओं, आकारों और बनावटों के माध्यम से ही व्यक्त होती है । बाकी सब अनुभूतियों को छिपाते हैं ।
तब हमारी उम्र काफी कम थी । कॉलेज के बाद पार्टी आफिस जाना शुरू ही किया था । हम काफी उत्साहित रहते थे । कॉफी हाउस की उस छोटी सी चर्चा से ही एक प्रखर बुद्धिजीवी के रूप में मन में आलोक जी की जो छवि बनी, वह आज भी कायम है । पिछले कुछ सालों से वे हमें मैसेंजर पर अपनी कविताएं भेजा करते थे । काफी अच्छी लगती थी । बीच-बीच में हम उन पर टिप्पणियां भी करते थे । पांच साल पहले 2020 में उन्होंने अपनी एक बहुचर्चित थोड़ी लंबी कविता ‘संस्कार’ का एक अंश ‘आस्था’ शीर्षक लगा कर भेजा था । यह कविता उनके संकलन ‘समुद्र का एकान्त’ में संकलित है जो हमारे पास मौजूद थी । उसके फ्लैप पर नामवर जी ने ‘संस्कार’ पर टिप्पणी करते हुए लिखा था कि “कविता ‘संस्कार’ के बारे में क्या कहूं ? कहने के लिए बस इस समय सिर्फ इतना ही है कि यह कविता “एक अनुभव है” । मैंने इसे पढ़ा और आज का दिन सार्थक हुआ। बस – एक चित्र आंखों के सामने है “ऐसे वक्त सुबह की हल्की हवा में और ढलती हुई चांदनी में जैसे हमने किसी सफेद फूल को हँसते हुए देख लिया हो”… ” आलोक जी ने हमें ‘आस्था’ शीर्षक के साथ इस कविता का जो अंश भेजा उसमें सहारे की तलाश में बोगनबेलिया की काँटेदार शाखाओं को ही अनायास पकड़ते रहने की जीवन में दोहराव की मजबूरियों, “दिगन्त का सूनापन”, “मसीहा की तलाश”. “थकी हुई साँस”, “नीली रिक्तता” के बिंबों से प्रेषित आंतरिक बेचैनी अंततः यही कहती है कि ‘आस्था’ कोई बाहरी देन नहीं, बल्कि व्यक्ति की अपनी आंतरिक शक्ति और सतत संघर्ष से प्राप्त स्वीकृति है।
इसी प्रकार आलोक जी ने अपनी ‘फाग’ के तीन रंगों, काला, लाल और हरा पर अपनी अद्भुत तीन कविताएं पढ़वाई थी । इन कविताओं में ‘फाग’ के रंगों को पारंपरिक उल्लास से निकालकर संघर्ष, प्रतिरोध और सामाजिक न्याय के संदर्भ में स्थापित किया गया था । काला रंग अनोखे ढंग से सहानुभूति और इतिहासबोध का विस्तार लिए हैं, लाल रंग में विद्रोह और परिवर्तन की आकांक्षा है, तो हरा रंग धैर्य, आशा और भविष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।
प्रसिद्ध विचारक प्रोफेसर पी. लाल ने आलोक जी की कविताओं के बारे में बिल्कुल सही लिखा था कि वे “वेधक प्रतिबिम्बों से भरी हुई हैं।” वे एक कविता पर तो यहां तक लिख जाते हैं कि वह “मेरे सपनों में भी निरन्तर मेरा पीछा करती रहेगी । यह कविताएं, एक प्रयोगवादी मस्तिष्क को उजागर करती हैं…” । यही कवि और लेखक आलोक शर्मा जी का सच था ।
(फेसबुक के सौजन्य से अरुण माहेश्वरी द्वारा रचित)

जानिए कैसे होते हैं विषैले टॉक्सिक रिश्ते और लोग

क्या आप जानते हैं विषैले लोग कौन होते हैं? आपके पास कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो बहुत कुछ साथ में लग रहा है, लेकिन अंदर से, वह धीरे-धीरे आपको नष्ट कर रहा है।

विषैले व्यक्ति की उपस्थिति आपके जीवन में जहर के समान काम करती है। शुरू में, आप इसे महसूस नहीं करते, लेकिन समय के साथ, आपको उसके आसपास का बोझ महसूस होने लगता है, और आपका मन थका हुआ महसूस होने लगता है। एक दिन, आपको यह अहसास होगा कि जिस बोझ को आप ढो रहे थे, वह वास्तव में उसी व्यक्ति ने पैदा किया था।

लेकिन आप यह कैसे पहचान सकते हैं कि कोई व्यक्ति विषैले है? कुछ व्यवहार हैं, जो अगर आप ध्यान से देखें तो यह समझने में मदद करेंगे कि वह व्यक्ति आपके लिए कितना हानिकारक है। चलिए, हम विषैले लोगों के व्यवहार का विश्लेषण करते हैं:

1. सब कुछ की आलोचना करना एक विषैले व्यक्ति इस तरह आलोचना करता है कि आपको लगता है कि आप कुछ नहीं जानते या कुछ नहीं कर सकते। वे आपके अच्छे काम में भी दोष निकालते हैं, और उनकी आलोचना कभी भी रचनात्मक नहीं होती, यह केवल आपको नीचा दिखाने के लिए होती है।

2. शब्दों से आपको बांधना वे इस तरह बोलते या व्यवहार करते हैं कि आप खुद पर विश्वास खो बैठते हैं। वे आपको दोषी ठहराते हैं और परिस्थितियों को अपने फायदे के लिए मोड़ते हैं, जिससे आप खुद को उनके खेल का मोहरा महसूस करते हैं।

3. आपको गलत साबित करने की कोशिश करना वे हमेशा आपके निर्णयों या कार्यों पर शक करते हैं। भले ही आप किसी चीज़ के बारे में निश्चित हों, उनके शब्द आपको अपने फैसले पर सवाल उठाने के लिए मजबूर कर देते हैं।

4. अपने समस्याओं का दोष आप पर डालना वे हमेशा victim होते हैं और कभी अपनी समस्याओं की जिम्मेदारी नहीं लेते। वे कभी अपनी गलतियों को नहीं मानते और इसके बजाय आपको दोषी ठहराते हैं, जिससे आपको अपराधबोध महसूस होता है।

5. लगातार शिकायत करना उनके आसपास सब कुछ गलत लगता है। वे हर चीज़ की शिकायत करते हैं, और यह नकारात्मक मानसिकता धीरे-धीरे आपके जीवन को भी प्रभावित करने लगती है।

6. आपके भावनाओं से खेलना उन्हें आपकी खुशी या दुख से कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे आप दुखी हों या खुश, वे निष्ठुर रहते हैं। जब वे आपको चोट पहुँचाते हैं, तो उन्हें कोई करुणा नहीं होती।

7. आपकी सफलता देख कर असहज महसूस करना जब वे आपकी सफलता देखते हैं, तो वे आपके लिए खुश नहीं होते। इसके बजाय, वे जलते हैं। वे आपकी उपलब्धियों को तुच्छ मानते हैं, मजाक उड़ाते हैं या आपको नीचे गिराने की कोशिश करते हैं।

8. व्यवहार में दोहरे मानक एक दिन वे मीठे होते हैं, और अगले दिन अचानक शत्रुतापूर्ण हो जाते हैं। यह असंगति आपको मानसिक दबाव में रखती है, जिससे यह समझना मुश्किल हो जाता है कि उनके साथ कैसे व्यवहार करें।

9. लेना और देना न जानना एक विषैले व्यक्ति के लिए रिश्ते सिर्फ लेने के बारे में होते हैं। वे आपको इस्तेमाल करते हैं और लाभ उठाते हैं, लेकिन बदले में कुछ नहीं देते।

10. आपके “न” को न मानना वे आपकी व्यक्तिगत सीमाओं का सम्मान नहीं करते। उनका आपके समय, विचारों या आराम से कोई मतलब नहीं होता।

एक विषैले रिश्ते से बाहर निकलना आसान नहीं है, लेकिन यह बेहद महत्वपूर्ण है। आपके जीवन के हर क्षण का मूल्य है। ऐसे लोगों के साथ समय बर्बाद करने के बजाय, अपनी मानसिक शांति और खुशी को प्राथमिकता दें।

याद रखें, जो लोग वास्तव में आपसे प्यार करते हैं, वे आपको मानसिक रूप से दबाव नहीं डालेंगे।

साभार ” पब्लिक ऑथर (सौजन्य – फेसबुक)