Sunday, March 16, 2025
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घर में बनी शाकाहारी थाली दिसंबर में 3 प्रतिशत हुई सस्ती

नयी दिल्ली । घर में बनी शाकाहारी थाली की कीमत में दिसंबर में मासिक आधार पर 3 प्रतिशत की गिरावट हुई है, हालांकि, इस दौरान मांसाहारी थाली की कीमत में भी इतनी ही बढ़ोतरी हुई है। यह जानकारी सोमवार को एक रिपोर्ट में दी गई।

क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस एंड एनालिटिक्स रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से ताजा आपूर्ति के कारण टमाटर की कीमतों में इस महीने के दौरान 12 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि उत्तर में शीत लहर के कारण उत्पादन में कमी के कारण ब्रायलर की कीमतों में इस महीने के दौरान अनुमानित 11 प्रतिशत की वृद्धि के कारण मांसाहारी थाली की लागत में तेज गति से वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट में बताया गया कि त्यौहारी और शादी सीजन में मांग में वृद्धि और चारे की ऊंची लागत ने भी कीमत बढ़ोतरी को हवा दी है। आलू और प्याज की कीमतों में क्रमशः 2 प्रतिशत और 12 प्रतिशत की मासिक गिरावट ने दिसंबर में शाकाहारी थाली की कीमत में गिरावट को सहारा दिया है। हालांकि, वार्षिक आधार पर शाकाहारी थाली की कीमत में बढ़ोतरी की वजह टमाटर और आलू की कीमतों में बढ़ोतरी होना है, जिनकी हिस्सेदारी शाकाहारी थाली की कीमत में 24 प्रतिशत की है। दिसंबर में टमाटर की कीमत सालाना आधार पर 24 प्रतिशत बढ़कर 47 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई, जबकि पिछले साल दिसंबर में यह 38 रुपये प्रति किलोग्राम थी। आलू की कीमत पिछले साल के निचले आधार से 50 प्रतिशत बढ़कर दिसंबर 2024 में 36 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई, जबकि दिसंबर 2023 में यह 24 रुपये प्रति किलोग्राम थी। इसका कारण उत्पादन में अनुमानित 6 प्रतिशत की गिरावट है।

आयात शुल्क में वृद्धि के कारण वेजिटेबल ऑयल की कीमतों में 16 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, साथ ही त्योहारों और शादियों सीजन के चलते इसकी मांग में भी वृद्धि हुई है। शाकाहारी थाली में रोटी, सब्जियां (प्याज, टमाटर और आलू), चावल, दाल, दही और सलाद शामिल हैं। नॉन-वेज थाली में दाल को छोड़कर सभी चीजें समान होती हैं। इसकी जगह चिकन (ब्रायलर) को शामिल किया जाता है।

ओयो अब अविवाहित जोड़ों के लिए नहीं

नयी दिल्ली । यात्रा क्षेत्र की प्रमुख कंपनी ओयो ने मेरठ से शुरुआत करते हुए भागीदार होटलों के लिए एक नयी ‘चेक-इन’ नीति लागू की है। इसके अनुसार, अविवाहित जोड़ों का अब ‘चेक-इन’ की अनुमति नहीं दी जाएगी। यानी सिर्फ पति-पत्नी ही होटल में कमरा ले सकेंगे। संशोधित नीति के तहत, सभी जोड़ों को ‘चेक-इन’ के समय अपने रिश्ते का वैध प्रमाण देने के लिए कहा जाएगा। इसमें ऑनलाइन की गई बुकिंग भी शामिल है। कंपनी ने कहा कि ओयो ने अपने भागीदार होटलों को स्थानीय सामाजिक संवेदनशीलता के साथ तालमेल बिठाते हुए अपने विवेक के आधार पर अविवाहित जोड़ों की बुकिंग को अस्वीकार करने का अधिकार दिया है।

ओयो ने मेरठ में अपने भागीदार होटलों को तत्काल प्रभाव से ऐसा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। नीति में हुए बदलाव से परिचित लोगों ने कहा कि जमीनी प्रतिक्रिया के आधार पर, कंपनी इसे और शहरों में विस्तारित कर सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘ओयो को पहले भी विशेष रूप से मेरठ में सामाजिक समूहों से इस मुद्दे को हल करने के लिए प्रतिक्रिया मिली थी। इसके अलावा, कुछ दूसरे शहरों के निवासियों ने भी अविवाहित जोड़ों को ओयो होटलों में चेक-इन करने की अनुमति न देने की मांग की है।’’

ओयो उत्तर भारत के क्षेत्र प्रमुख पावस शर्मा ने  बताया, ‘‘ओयो सुरक्षित और जिम्मेदार आतिथ्य प्रथाओं को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं, लेकिन साथ ही हम इन बाजारों में कानून प्रवर्तन और नागरिक समाज समूहों की बात सुनने और उनके साथ काम करने की अपनी जिम्मेदारी को भी पहचानते हैं।’’ उन्होंने कहा कि कंपनी समय-समय पर इस नीति और इसके प्रभाव की समीक्षा करती रहेगी।

गुरु गोबिंद सिंह ने की थी खालसा पंथ की स्थापना

हर साल पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सिख धर्म के 10वें गुरु और अंतिम गुरु गोविंद सिंह जयंती मनाई जाती है। इस साल यह दिन 06 जनवरी को पड़ रहा है। ऐसे में 06 जनवरी को गुरु गोविंद सिंह जयंती मनाई जा रही है। यह सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। सिख धर्म के लोग इस पर्व को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। गुरु गोविंद सिंह महज 10 साल की उम्र में गुरु की गद्दी संभाली और सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु बनें। तो आइए जानते हैं उनकी जयंती के मौके पर गुरु गोविंद सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ बातों के बारे में…

जन्म और परिवार

क्रम सम्वत 1723 में पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था। उनके पिता सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी था। इनका मूल नाम गोबिंद राय था। अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी के निधन के बाद गुरु गोबिंद सिंह गद्दी पर बैठे थे। बताया जा रहा है कि कश्मीरी हिंदुओं की रक्षा के लिए वह गद्दी पर बैठे थे। उनको कलगीधर, बाजांवाले और दशमेश आदि कई नामों से जाना जाता है।

गुरु ग्रंथ साहिब

गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को पूरा किया और उनको गुरु का दर्जा दिया। गुरु गोबिंद सिंह ने अन्याय को खत्म करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े थे। वहीं धर्म की रक्षा की खातिर गुरु गोबिंद सिंह ने अपने समस्या परिवार का बलिदान दे दिया था। यही वजह है कि उनको ‘सरबंसदानी’ भी कहा जाता है। जिसका अर्थ होता है कि पूरे परिवार का दान।

खालसा पंथ की स्थापना

गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन आमजन की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए गुजारा था। गुरु गोबिंद सिंह ने बचपन में ही उर्दू, हिंदी, ब्रज, संस्कृत, गुरुमुखी और फारसी जैसी कई भाषाएं सीख ली थीं। बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह ने ‘खालसा पंथ’ में जीवन के पांच सिद्धांत दिए थे। जिनको ‘पंच ककार’ के नाम से जाना जाता है। यह पंच कारक – केश, कृपाण, कड़ा, कंघा और कच्छा। हर खालसा सिख के लिए इनका अनुसरण करना अनिवार्य है।

मृत्यु

बता दें कि 07 अक्तूबर 1708 को नांदेड़, महाराष्ट्र में 42 साल की उम्र में गुरु गोबिंद सिंह का निधन हो गया था। उनके मुगल शासक बहादुरशाह के साथ संबंध मधुर थे। बहादुरशाह और गुरु गोबिंद सिंह के संबंधों से सरहद का नवाब वजीत खां घबराने लगा था। इसलिए उसने दो पठान गुरुजी के पीछे लगा दिए। इसके बाद जमशेद खान और वासिल बेग गुरु की सेना में धोखे से शामिल हो गए। इन दोनों ने धोखे से गुरु गोबिंद सिंह पर धोखे से वार कर दिया। इस दौरान गुरु गोबिंद सिंह अपने कक्ष में आराम कर रहे थे। तभी एक पठान ने गुरु गोबिंद के दिल के नीछे छूरा घोपा। फिर गुरु गोबिंद सिंह ने उस पठान पर कृपाण से वार कर दिया। वहीं 07 अक्तूबर 1708 को गुरु गोबिंद सिंह दिव्य ज्योति में लीन हो गए थे।

नयी शुरुआत के लिए हमेशा तैयार रहिए 

नववर्ष का स्वागत है….2025 ने कदम रख दिया है। नववर्ष का आगमन हो चुका है और हम सब एक नयी शुरुआत के लिए तैयार हैं।  सब कुछ नया..संकल्प नये..विश्वास नया, ऊर्जा नयी…और सपने भी नये..अतीत का एक पन्ना पीछे छोड़कर हम आगे बढ़ रहे हैं। अच्छा या बुरा…अब 2024 स्मृतियों में दर्ज हो चुका है। गुजरा हुआ वर्ष हमें झकझोर गया, कई बार निराश करता रहा और कई बार इसने जश्न मनाने के मौके भी दिए। वैसे देखा जाए तो कैलेंडर का पन्ना पलट देने से सब कुछ कहां बदल जाता है…। सब कुछ वही रहता है मगर हर बार गुजरते समय के साथ हम जो कुछ सीखते हैं, वह बहुत कुछ बदल देता है। हमें बहुत कुछ सीखना है, संरक्षित करना है, अपने इतिहास से सीखना है, भाषा व संस्कृति को संरक्षित करना है। गुजरे साल के साथ कई विभूतियों ने विदा कहा…एक पूरा युग उनके साथ समाप्त हुआ मगर जीवन यही तो है। जब एक युग समाप्त होता है तो एक नए युग की शुरुआत होती है, जहां हम अंत देखते हैं, वहीं शुरुआत होती है। यही प्रकृति है, यही परिवर्तन है और परिवर्तन ही तो सृष्टि का नियम है जो कई बार हमारे हिसाब से नहीं होता तो कई बार हम जैसा चाहते हैं, वैसा ही होता है। हम क्या बोझ उठाते हुए किसी पहाड़ पर चढ़ सकते हैं, अगर नहीं तो मन में अपराध बोध, अहंकार का बोझ उठाकर जीवन की चढ़ाइयों को कैसे पार करेंगे? जीवन एक यात्रा है और यात्रा में बोझ हल्का ही होना चाहिए चाहे वह तन का हो या मन का…चाहे सम्बन्धों का ही क्यों न हो। जिनके साथ आप नाममात्र को हैं या फिर नहीं हैं, वहां होने का कोई मतलब नहीं। रिश्तों को जब ढोना पड़े तो उनके होने का मतलब नहीं है। ऐसे समय में दूरी जरूरी है। कई बार पास रहकर जो डोर उलझ जाती है, वह दूरी से सुलझ भी जाती है और न सुलझे तो समझ लीजिए कि वह कभी आपके लिए थी ही नहीं। जहां भी रहिए….पूरी तरह रहिए वरना मत रहिए…नयी शुरुआत के लिए हमेशा तैयार रहिए । नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।

कवयित्री गगन गिल को साहित्य अकादमी पुरस्कार 2024 सम्मान

नयी दिल्ली । साहित्य अकादेमी ने 21 भाषाओं में अपने वार्षिक साहित्य अकादेमी पुरस्कार-2024 की घोषणा की है। इस वर्ष हिंदी साहित्य के लिए यह पुरस्कार कवयित्री गगन गिल को प्रदान किया जाएगा। गगन गिल को यह पुरस्कार उनकी कृति ”मैं जब तक आयी बाहर” के लिए के लिए प्रदान किया जाएगा।   गगन गिल का जन्म 18 नवंबर 1959 को नई दिल्ली में हुआ। आपने अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया है। सन् 1983 में ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ कविता संग्रह के प्रकाशित होते ही गगन गिल साहित्यिक गलियारे में एक स्थापित और नामचीन कवयित्री बन गईं।  तब से लेकर अब तक वे लगातार सक्रिय हैं। गगन गिल की कविताएं अपनी दृढ़ता और संयम से एक आने वाले परिष्कार का पूर्वबोध कराती हैं। उनकी कविताओं में स्त्री मन का एक अनुशासित लेकिन भव्य संशय और दु:खबोध है, जो अभी तक रूढ़ि नहीं बना। गगन गिल की कविता संग्रह- एक दिन लौटेगी लड़की (1989), अँधेरे में बुद्ध ( 1996), यह आकांक्षा समय नहीं (1998), थपक थपक दिल थपक थपक (2003), मैं जब तक आयी बाहर (2018), ‘मैं जब तक आयी बाहर’ एवं 4 गद्य पुस्तकें: दिल्ली में उनींदे (2000), अवाक् (2008), देह की मुँडेर पर (2018) प्ररकाशित हो चुकी हैं। गगन गिल को साहित्यिक अवदानों के लिए 1984 में भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, 1989 में सर्जनात्मक लेखन के लिए संस्कृति पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।

100 साल का हुआ दमदम हवाई अड्डा

कोलकाता ।  20वीं सदी की शुरुआत में घास के रनवे वाला एक हवाई अड्डा बनाया गया। इस पर 1924 में एक एयरलाइन रुकती थी, उसके बाद यह एक पूर्ण हवाई अड्डा बन गया। इतना ही नहीं, यह उत्तरी अमेरिका और यूरोप से दक्षिण पूर्व एशिया के बीच उड़ान भरने वाली उड़ानों के लिए एक प्रमुख पड़ाव बन गया। इस साल इस एयरपोर्ट के 100 साल पूरे हो गए।  21 दिसंबर को, कोलकाता हवाई अड्डा ने अपने शताब्दी समारोह की शुरुआत कर दी। ये समारोह हवाई अड्डे के उतार-चढ़ाव भरे इतिहास को दर्शाएंगे। इसमें 20वीं सदी के मध्य में एक रोलर कोस्टर की सवारी भी शामिल है। कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय वाहक 1950 के दशक में कोलकाता को बाकी दुनिया से जोड़ते थे। वे 1970 और 80 के दशक में वापस चले गए, जिससे शहर वैश्विक विमानन मानचित्र पर अलग-थलग पड़ गया। हालांकि, तब से हवाई अड्डे का कायापलट हो गया है और अब यह दक्षिण-पूर्व एशिया और खाड़ी के लिए प्रमुख प्रवेश द्वारों में से एक है। हवाई अड्डे की शुरुआत दमदम में रॉयल आर्टिलरी आर्मरी के बगल में एक खुले मैदान के रूप में हुई थी। 2 मई, 1924 को फ्रांसीसी पायलट लेफ्टिनेंट पिलचेट डोइसी ने हवाई अड्डे पर डकोटा 3 विमान उतारा। तीन दिन बाद, आगरा से पेरिस से टोक्यो जाने वाली एक उड़ान हवाई अड्डे पर उतरी। उड़ान के आगमन पर भारी भीड़ उमड़ी। फिर, 11 दिन बाद 16 मई को इलाहाबाद से एक और उड़ान इस हवाई अड्डे पर उतरी।
14 नवंबर, 1924 को, हवाई अड्डे पर पहली बार रात्रि लैंडिंग हुई, जब एम्स्टर्डम से एक विमान ने हवाई क्षेत्र में उड़ान भरी और पायलट के लिए रनवे को चिह्नित करने के लिए मशाल जलाई गई। कोलकाता हवाई अड्डे के निदेशक प्रवत रंजन बेउरिया ने बताया कि 1940 और 1960 के बीच के वर्षों में हवाई अड्डे की लोकप्रियता में एक ठहराव केंद्र के रूप में उछाल आया। हवाई अड्डे ने यूरोप से एशिया के मार्गों पर एरोफ्लोट, एयर फ्रांस, एलीटालिया, कैथे पैसिफिक, जापान एयरलाइंस, फिलीपीन एयरलाइंस, केएलएम, पैन एम, लुफ्थांसा, स्विसएयर और एसएएस की उड़ानों को संभाला। हालांकि, 1960 के दशक में लंबी दूरी के विमानों की शुरूआत के बाद जब ईंधन भरने के लिए रुकने की आवश्यकता समाप्त हो गई, तो हवाई अड्डे पर हवाई-पॉकेट का प्रभाव पड़ा और अशांति का अनुभव हुआ। 1990 के दशक में उदारीकरण के बाद ही कोलकाता हवाई अड्डे ने अपनी प्रमुखता फिर से हासिल की। 1995 में एक नया घरेलू टर्मिनल बनाया गया और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सम्मान में हवाई अड्डे का नाम बदल दिया गया। 2000 के दशक की शुरुआत में कम लागत वाली एयरलाइनों के आगमन के बाद घरेलू यात्री यातायात में वृद्धि हुई। 2005 तक यात्रियों की संख्या को टर्मिनल की क्षमता से अधिक कर दिया। सुविधाओं को बढ़ाने के लिए 2007 में एक आधुनिकीकरण योजना तैयार की गई थी, जिसमें एक नए एकीकृत टर्मिनल का निर्माण, रनवे, टैक्सीवे और एप्रन का विस्तार शामिल था। निर्माण दिसंबर 2008 में शुरू हुआ और नया टर्मिनल मार्च 2013 में खोला गया। हम अब विस्तार के अगले चरण पर काम हो रहा है। जबकि हवाई अड्डे की क्षमता वर्तमान में 2.6 करोड़ यात्रियों प्रति वर्ष से बढ़ाकर 2.8 करोड़ की जा रही है। दो चरणों में एक नया टर्मिनल जोड़ने से क्षमता बढ़कर 3.9 करोड़ प्रति वर्ष हो जाएगी।

भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज का स्नातक सम्मान समारोह 2024 संपन्न –

 कोलकाता ।  भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज (बीईएससी) ने 21 दिसंबर, 2024 को स्नातक सम्मान समारोह आयोजित किया जो एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। प्रतिष्ठित धन धान्य सभागार में आयोजित यह कार्यक्रम अकादमिक उत्कृष्टता, समर्पण और दृढ़ता का एक भव्य उत्सव था। इसमें 1,269 स्नातक छात्रों और 38 स्नातकोत्तर छात्र छात्राओं को डिग्री प्रदान की गई जिनमें से प्रत्येक एक आशाजनक भविष्य की ओर आगे बढ़ रहे हैं।नोरा एफ्रान अमरिकी पत्रकार और लेखिका का मानना है कि आपकी शिक्षा उस जीवन के लिए एक ड्रेस रिहर्सल है जिसे आपको जीना है।   कार्यक्रम के आरंभ में स्नातक छात्रों ने दोपहर 1:30 बजे से पंजीकरण पूरा करने और औपचारिक गाउन और ऑक्सफोर्ड टोपी पहनने के लिए समय दिया गया। अपराह्न 3:00 बजे तक सभागार  भर गया। सभी छात्र, शिक्षक और गणमान्य अतिथि इस महत्वपूर्ण अवसर के लिए एकत्र हो गए ।
समारोह की शुरुआत विशिष्ट अतिथि अमन गुप्ता के नेतृत्व में कॉलेज के प्रतिष्ठित गणमान्य सदस्यों के गरिमामय जुलूस के साथ हुई, और सभागार  “माइंड विदाउट फियर”के नारों से गूंज उठा।
इसके बाद कॉलेज की ऑडियो-विजुअल प्रस्तुति ने संस्थान की विरासत, उपलब्धियों और भविष्य के दृष्टिकोण को प्रदर्शित करते हुए शाम का माहौल तैयार कर दिया। कॉलेज की सांस्कृतिक टीम द्वारा मंत्रमुग्ध कर देने वाले शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति ने शाम के मूड को शानदार ढंग से सेट कर दिया, जिससे इसकी भव्यता और बढ़ गई।
इसके बाद आधिकारिक आरंभ औपचारिक रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया , जो ज्ञान और ज्ञानोदय का प्रतीक है। गणमान्य अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया, जिसमें शक्ति और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करने वाली मां दुर्गा की हस्तनिर्मित सोल मूर्ति भी शामिल थी। डॉ. सुमन के मुखर्जी ने स्नातकों को हार्दिक शपथ दिलाई और उनसे अपने मातृ संस्थान की विरासत का सम्मान करने का आग्रह किया। सभागार में सभी गर्व से भर उठे जब यह घोषणा की गई कि बीईएससी को भवानीपुर ग्लोबल यूनिवर्सिटी के रूप में मंजूरी दे दी गई है। यह संस्थान के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
सम्मानित अतिथि,अमन गुप्ता ने एक प्रेरणादायक भाषण दिया, उद्यमशीलता यात्रा में अंतर्दृष्टि साझा की और स्नातकों को तेजी से बढ़ते भारत में अवसरों का लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया। उनका प्रतिष्ठित उद्धरण, “हम भी बना लेंगे”, हर स्नातक के साथ गूंजता रहा और दर्शकों द्वारा एक स्वर में दोहराया गया , जिससे विश्वास की भावना पैदा हुई कि उनमें से प्रत्येक के पास महानता हासिल करने की शक्ति है। बुद्धि और बुद्धिमत्ता से भरे उनके इंटरैक्टिव प्रश्नोत्तर सत्र ने छात्रों को ऊर्जावान बना दिया और अपने भविष्य को अपनाने के लिए तैयार कर दिया।
सम्मान समारोह टीम वर्क और सटीकता का एक निर्बाध आयोजन था, जिसका नेतृत्व समर्पित आयोजन टीम ने किया और एमसी सृष्टि ने खूबसूरती से संचालन किया। मंच पर प्रत्येक स्नातक का प्रमाण पत्र प्राप्त करने का क्षण, वर्षों की कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प की पराकाष्ठा को दर्शाता है। प्रक्रिया सहजता से आगे बढ़ी, टीम की सावधानीपूर्वक योजना की बदौलत दस छात्रों के समूह ने सही तालमेल के साथ मंच संभाला।
दिन का समापन एक भावनात्मक लेकिन जश्न मनाने वाले भाव के साथ हुआ, जब रेक्टर और छात्र मामलों के डीन, प्रोफेसर दिलीप शाह ने ऑक्सफोर्ड टोपी उछालने का प्रतीकात्मक नेतृत्व किया, यह एक प्रतिष्ठित क्षण था जिसने स्नातकों को भविष्य के लिए साझा खुशी और प्रत्याशा में एकजुट हो कर किया।डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि
इस सम्मान समारोह ने उत्कृष्टता और परंपरा की भावना को प्रदर्शित किया, जो भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज को परिभाषित करता है। यह गर्व, चिंतन और प्रेरणा का दिन था, दुनिया पर अपनी छाप छोड़ने के लिए तैयार स्नातक वर्ग के लिए एक उचित विदाई का दिन भी था।

देश में फिर लौटी पास – फेल नीति

-5वीं और 8वीं कक्षा में फेल होने पर विद्यार्थी अगली क्लास में नहीं जा सकेंगे

 नयी दिल्ली ।  केंद्र सरकार ने बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियमों में संशोधन किया है। नए नियम में अब ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म कर दिया है। इससे अब राज्यों को पांचवीं और आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों को परीक्षा में फेल होने पर भी अगली कक्षा में भेजने की बाध्यता से मुक्ति मिल गई है। संशोधित नियम के तहत 5वीं और 8वीं की वार्षिक परीक्षा में असफल हो जाने वाले विद्यार्थियों को दो महीने के दोबारा परीक्षा देनी होगी। यदि वे दोबारा भी सफल नहीं होते हैं तो उनको अगली कक्षा में प्रमोट नहीं किया जाएगा। शिक्षा मंत्रालय में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव संजय कुमार ने कहा कि मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि पांचवीं और आठवीं कक्षा में सभी प्रयास करने के बाद यदि रोकने की आवश्यकता पड़े तो रोका जाए। इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि आठवीं कक्षा तक किसी भी बच्चे को स्कूल से निष्कासित नहीं किया जाए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत हम यह भी चाहते हैं कि बच्चों का लर्निंग आउट कम बेहतर हो। इसको प्रयास में लाने के लिए पढ़ाई में कमजोर बच्चों पर विशेष ध्यान भी दिया जा सकेगा। नियमों में किये गये बदलावों से यह संभव हो सकेगा।

संक्षिप्त नाम निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024 – केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा विभाग ने इस संबंध में एक अधिसूचना जारी की है। इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार, निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (2009 का 35) की धारा 38 की उपधारा (2) के खंड (च क) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम 2010 का और संशोधन करने के लिए नियम बनाती है। इन नियमों का संक्षिप्त नाम निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024 है। ये सरकारी राजपत्र में उनके प्रकाशन की तारीख से लागू हो गए हैं।

क्या है नियम – संशोधित नियमों के अनुसार, राज्य प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष के अंत में कक्षा 5 और 8 में नियमित परीक्षाएं आयोजित कर सकते हैं और यदि कोई छात्र असफल होता है तो उन्हें अतिरिक्त निर्देश दिया जाएगा और दो महीने बाद परीक्षा में फिर से बैठने का मौका दिया जाएगा। यदि कोई छात्र इस परीक्षा में पदोन्नति की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहता है, तो उन्हें कक्षा 5 या कक्षा 8 में ही रोक दिया जाएगा। हालांकि, आरटीई अधिनियम इस बात पर जोर देता है कि किसी भी बच्चे को कक्षा 8 पूरी करने तक स्कूल से नहीं निकाला जाएगा। प्रधानाचार्यों को अनुत्तीर्ण बच्चों की सूची बनाए रखने, सीखने में अंतराल की पहचान करने और इन कक्षाओं में अनुत्तीर्ण बच्चों के लिए विशेष इनपुट के प्रावधानों की व्यक्तिगत रूप से निगरानी करनी होगी।

कोलकाता एयरपोर्ट पर खुला ‘उड़ान यात्री कैफे’

सस्ती दरों पर चाय और अन्य चीजें उपलब्ध

कोलकाता । अब कोलकाता एयरपोर्ट पर सिर्फ दस रुपये में चाय उपलब्ध है। यह नई पहल यात्रियों के लिए खुशी की वजह बन गई है। जी हां, केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री राममोहन नायडू किंजरापु ने कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के शताब्दी समारोह के उद्घाटन के दौरान उड़ान यात्री कैफे का शुभारंभ किया। दरअसल, संसद के शीतकालीन सत्र में इस बार एयरपोर्ट पर खाने-पीने की चीजों के बढ़े हुए दामों का मुद्दा उठाया गया था जिसके पश्चात एयरपोर्ट्स पर ‘उड़ान यात्री कैफे’ की शुरुआत की गई है। इस कैफे में सस्ती दरों पर चाय और अन्य चीजें उपलब्ध हैं। ऐसे में यात्रियों के लिए यह एक राहत भरी बात है। अब यात्रियों को सस्ते में चाय और पानी उपलब्ध होने से यात्रा का अनुभव और बेहतर हो जाएगा। ज्ञात हो, आम आदमी पार्टी (आआपा) के सांसद राघव चड्ढा ने संसद के शीतकालीन सत्र में एयरपोर्ट पर खाने-पीने की चीजों के बढ़े हुए दामों का मुद्दा उठाया था। उन्होंने सवाल किया था कि क्यों एयरपोर्ट पर पानी की बोतल के लिए 100 रुपये और चाय के लिए 200-250 रुपये देने पड़ते हैं? यह दाम आम जनता की पहुंच से बाहर है। चड्ढा ने सुझाव दिया था कि एयरपोर्ट्स पर सस्ते कैफे या कैंटीन की सुविधा होनी चाहिए। इस मुद्दे को उठाने के कुछ ही दिनों बाद कोलकाता एयरपोर्ट पर ‘उड़ान यात्री कैफे’ शुरू किया गया है, जहां सस्ती दरों पर चाय और अन्य चीजें उपलब्ध हैं। केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय की ओर से इसे एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है।

इस पहल ने कोलकाता हवाई अड्डे की प्रगति और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 1566.3 एकड़ भूमि और 230,000 वर्ग मीटर के निर्मित क्षेत्र में फैला, एनएससीबीआई हवाई अड्डा सालाना 26 मिलियन यात्रियों की सेवा करने के लिए सुसज्जित है और लगभग 49 घरेलू और 15 अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों को सेवा प्रदान करता है। हवाई अड्डा आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देता है, मजबूत एयर-फ्रेट सेवाओं के माध्यम से व्यवसायों का समर्थन करता है, जिसमें एक अत्याधुनिक कार्गो टर्मिनल भी शामिल है जो पूर्वी भारत को दुनिया से जोड़ता है।

रतन टाटा, शारदा सिन्हा से जाकिर हुसैन से श्याम बेनेगल तक, 2024 में कहा अलविदा

साल 2024 को खत्म होने में बस कुछ दिन ही शेष रह गए हैं। नया साल नई ताजगी और नई शुरुआत के साथ दस्तक देने को तैयार है। हालांकि, कई गम हैं, जो कभी भर नहीं पाएंगे। इस साल मनोरंजन जगत की कई हस्तियों ने दुनिया को अलविदा कह दिया। इस सूची में जाकिर हुसैन से लेकर शारदा सिन्हा तक का नाम शामिल है, जिन्हें हमने नम आंखों से अंतिम विदाई दी।
रतन टाटा : रतन टाटा (28 दिसंबर 1937–9 अक्टूबर 2024) भारतीय उद्योगपति थे जो टाटा समूह और टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वे 1991 से 2012 तक टाटा समूह, के अध्यक्ष थे जो भारत की सबसे बड़ी व्यापारिक इकाई है।
जाकिर हुसैन: दुनिया को अलविदा कहने वाले सितारों की लिस्ट में तबला के महान कलाकार और ‘उस्ताद’ जाकिर हुसैन का नाम शामिल है। फेफड़े की खतरनाक बीमारी इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से जंग लड़ रहे उस्ताद ने 73 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। उस्ताद का 15 दिसंबर को निधन हो गया था। हुसैन का सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था।
शारदा सिन्हा: छठ गीतों को एक नया आयाम देने वाली अभिनेत्री शारदा सिन्हा ने 5 नवंबर को आखिरी सांस ली। मल्टीपल मायलोमा (एक प्रकार का ब्लड कैंसर) से जंग लड़ रही बिहार की स्वर कोकिला ने 72 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया था। सिन्हा का नई दिल्ली एम्स में इलाज चल रहा था।
रोहित बल: इस साल दुनिया को अलविदा कह देने वाले सितारों की सूची में फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर फैशन डिजाइनर रोहित बल का नाम शामिल है। बल ने 1 नवंबर को अंतिम सांस ली। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, जिस वजह से उनका निधन हो गया। उन्हें साउथ दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। रोहित बल 63 वर्ष के थे।
बिजली रमेश: तमिल फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर अभिनेता बिजली रमेश का 26 अगस्त को निधन हो गया था। लीवर फेल होने की वजह से उन्होंने 46 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया।
उस्ताद राशिद खान: भारतीय शास्त्रीय गायक उस्ताद राशिद खान का 55 वर्ष की आयु में 9 जनवरी को निधन हो गया था। कैंसर से पीड़ित उस्ताद का कोलकाता के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली।
ऋतुराज सिंह: टीवी जगत के मशहूर अभिनेता ऋतुराज सिंह का 20 फरवरी को 59 साल की उम्र में निधन हो गया था। अभिनेता अपने मुंबई स्थित घर में थे, जहां देर रात उन्हें हार्ट अटैक आया और उन्हें बचाया नहीं जा सका।
गणेशन महादेवन: तमिल फिल्मों और टीवी शोज में बेहतरीन काम कर लोकप्रिय हुए अभिनेता का 9 नवंबर को 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे अभिनेता का चेन्नई स्थित आवास पर इलाज चल रहा था।
पंकज उधास: मशहूर गजल गायक पंकज उधास का 72 साल की उम्र में 26 फरवरी को निधन हो गया। वह पैंक्रियाटिक कैंसर से पीड़ित थे।
अतुल परचुरे: मनोरंजन जगत के लोकप्रिय अभिनेता और कॉमेडियन अतुल परचुरे का 57 वर्ष की आयु में 14 अक्टूबर को निधन हो गया। स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से अभिनेता मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती थे।
विकास सेठी: टीवी इंडस्ट्री के मशहूर अभिनेता विकास सेठी का 8 सितंबर को नासिक में 48 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। अभिनेता को दिल का दौरा पड़ा था।
सुहानी भटनागर: आमिर खान की सुपरहिट फिल्म ‘दंगल’ में बबीता फोगाट का किरदार निभाकर लोकप्रिय हुईं अभिनेत्री सुहानी भटनागर का 19 वर्ष की आयु में 16 फरवरी को निधन हो गया। अभिनेत्री की डर्मेटोमायोसाइटिस से निधन हो गया। (डर्मेटोमायोसाइटिस एक रेयर बीमारी है, जिसमें मांसपेशियों में सूजन पड़ जाती है और त्वचा में चकत्ते पड़ जाते हैं)।
डॉली सोही: सर्वाइकल कैंसर से जंग लड़ रही टीवी इंडस्ट्री की मशहूर अभिनेत्री डॉली सोही का 8 मार्च को 48 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
श्याम बेनेगल : मशहूर फिल्म निर्माता और निर्देशक श्याम बेनेगल का आज 23 दिसंबर को शाम 6.38 बजे निधन हो गया। वह 90 वर्ष के थे । श्याम बेनेगल कथित तौर पर किडनी संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित थे। दो दिन से वे काेमा में थे और सोमवार शाम इलाज के दौरान उन्होंने आखिरी सांस ली। श्याम बेनेगल को अंकुर, मंडी, मंथन आदि जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता था, जिनमें से अधिकांश 70 या 80 के दशक के मध्य में रिलीज हुई थीं। श्याम बेनेगल को भारत सरकार द्वारा 1976 में पद्मश्री और 1991 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उनकी सफल फिल्मों में मंथन, जुबैदा और सरदारी बेगम शामिल हैं। अपने शानदार करियर में श्याम बेनेगल ने ‘भारत एक खोज’ और ‘संविधान’ सहित विभिन्न मुद्दों, डॉक्यूमेंट्री और टेलीविजन धारावाहिकों पर फिल्में बनाईं।