हिन्दी शिक्षण को बेहतर बनाने के लिए प्रयोगशील शिक्षण जरूरी

कोलकाता : इक्कीसवीं सदी में हिन्दी शिक्षण में आमूलचूल परिवर्तन जरूरी है। हिन्दी के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए यदि डिजिटल तकनीक की सुविधाएं नहीं दी गईं तो वे पिछड़ जाएंगे। भारतीय भाषा परिषद के सहयोग से हिन्दी ज्ञान, हिन्दी का कार्य और हिन्दी कारवाँ संस्थाओं द्वारा आयोजित परिसंवाद में यह बात उठी। कार्यक्रम की प्रधान अतिथि पश्चिम बंगाल शिक्षक प्रशिक्षण, शिक्षा योजना विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सोमा बंद्योपाध्याय ने यह कहा कि कक्षा में शिक्षकों को थोड़ा उदार होना होगा, ताकि विद्यार्थियों को प्रश्न करने के अवसर मिलें। विद्यार्थियों में आलोचनात्मक विवेक पैदा करना जरूरी है। 21 वीं सदी में हिन्दी शिक्षण विषय की प्रस्तावना रखते हुए दिल्ली पब्लिक स्कूल के शिक्षक विशाल सिंह ने कहा कि नई चुनौतियों को देखते हुए हिन्दी शिक्षण में नए बदलाव की जरूरत है जो तकनीक के सहारे ही संभव है। दूसरे सत्र की विषय प्रस्तावना द हेरिटेज स्कूल के शिक्षक सौमित्र आनन्द ने रखी। इस सत्र का संचालन कविता अरोड़ा और कामायनी पांडेय ने किया। विषय पर बोलते हुए भाषाविद डॉ. अवधेश प्रसाद सिंह ने कहा हिन्दी सिर्फ साहित्य की भाषा नहीं है। वह वाणिज्य, विज्ञान और तकनीक की भी भाषा है। उन्होंने शिक्षकों से आह्वान किया कि विद्यार्थियों को शुद्ध हिन्दी लिखना और बोलना सिखाएं, जिसका बड़ा अभाव है। प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागध्यक्ष डॉ. वेदरमण ने कहा कि शिक्षण के लिए नई तकनीक एक चुनौती है। अध्यापक कक्षा में जो रस पैदा कर सकता है उसे महज तकनीक से पैदा नहीं किया जा सकता। खिदिरपुर कॉलेज के हिन्दी विभाग की प्रो. इतु सिंह ने कहा कि शिक्षक को खुद भी आज अपडेट रहने की जरूरत है, क्योंकि विद्यार्थी अपडेटेड हैं। शिक्षक आज गुरू से ज्यादा अपने को सहयोगी समझे, तभी बेहतर शिक्षण हो पाएगा। प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के ही प्रो. ऋषिभूषण चौबे ने कहा कि भाषा के प्रश्न को हम भारतीय गम्भीरता से नहीं लेते। भाषा शिक्षण को बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाओं की बहुत जरूरत है। परिसंवाद सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध लेखक डॉ. शंभुनाथ ने कहा, यह आयोजन हिन्दी  शिक्षण में नव आन्दोलन का सूत्रपात है। आज रूढ़िवादी शिक्षण की जगह प्रयोगशील शिक्षण की जरूरत है जो विद्यार्थियों को कक्षा की नोट्स तक सीमित रखने की जगह विद्यार्थियों को जिज्ञासु, कल्पनाशील और निर्णयशील बनाएं। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को आग बताया यह जो उपयोगी मित्र हो सकती है और भस्म करने वाला शत्रु भी।
कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी ने इस कार्यक्रम को हिन्दी शिक्षण के बदलते स्वरूप को एक नई दिशा देने वाला कहा। परिसंवाद सत्र का संचालन द हेरिटेज स्कूल की शिक्षिका ऋतु सिंह ने किया। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन दिल्ली पब्लिक स्कूल की शिक्षिका प्रीति मिश्रा ने दिया।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में की कार्यशाला में विभिन्न सरकारी और गैरसरकारी विद्यालयों के शिक्षकों ने भाग लिया। इस सत्र का स्वागत वक्तव्य लालबाबा कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. संजय कुमार ने दिया। बतौर निर्णायक महेश जायसवाल, सरिता सेठ, डॉ० राजेन्द्र त्रिपाठी, कुमार किसलय तथा सुश्री ममता पाण्डेय उपस्थित थे।
इस सत्र का संचालन कविता अरोड़ा और कामायनी पांडेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन दिल्ली पब्लिक स्कूल,न्यू टाउन के शिक्षक अश्विनी कुमार ने दिया। कार्यक्रम के अंत में मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती के निधन पर श्रद्धांजलि दी गई।

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