विराटता के प्रतीक थे ईश्वरचंद्र विद्यासागर: डॉ. शंभुनाथ

मिदनापुर : विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी और बांग्ला विभाग के संयुक्त तत्वावधान में पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर के जन्म द्विशतवार्षिकी के अवसर पर “जन्म द्विशतवार्षिकी स्मरण : समाज सुधारक, साहित्य स्रष्टा एवं नवजागरण के अग्रदूत विद्यासागर” विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन की शुरुआत स्वागत गीत से हुई जिसे पंकज सिंह ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ शंभुनाथ ने कहा कि विद्यासागर का हृदय बहुत विराट था और विराट हृदय ज्ञान और संवेदना का सागर होता है। उन्होंने कहा कि विद्यासागर और भारतेंदु ने मिलकर हिंदी-बांग्ला के बीच संवाद की परंपरा शुरू की। राजशाही विश्वविद्यालय, बांग्लादेश के प्रो. महफूजूर रहमान ने कहा कि विद्यासागर का जीवन जितना भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रासांगिक है, उतना ही पूर्व बंगाल के लिए भी है। विद्यासागर विश्वविद्यालय के कला एवं वाणिज्य विभाग के डीन प्रो. दामोदर मिश्र ने कहा कि विद्यासागर का जीवन इस अर्थ में अनुकरणीय है कि उन्होंने मानव जाति के हित के लिए अपना सर्वस्व जीवन लगा दिया। रेवेंशा विश्वविद्यालय की प्रो. अंजुमन आरा ने कहा कि विद्यासागर वास्तव में विद्या के सागर थे। खिदिरपुर कॉलेज की प्राध्यापिका डॉ इतु सिंह ने कहा कि विद्यासागर के योगदान को शिक्षा, समाज और धर्म के क्षेत्र में उनके योगदानों से परिचित करवाते हुए उनकी प्रासंगिकता पर अपनी बात रखी। डॉ प्रीति सिंघी (श्री शिक्षायतन कॉलेज) ने उनके जीवन से जुड़े प्रसंगों पर प्रकाश डाला। डॉ मधुलता गुप्ता (सेठ सूरजमल जालान गर्ल्स कॉलेज) ने विद्यासागर से जुड़े तथ्यों को सबके सामने रखते हुए कहा कि विद्यासागर ने सामाजिक कुरीतियों का जमकर विरोध किया। खड़गपुर कॉलेज के प्रो. पंकज साहा ने कहा कि विद्यासागर ज्ञान के साथ-साथ करुणा के भी सागर थे। डॉ. संजय पासवान ने कहा कि विद्यासागर का यह पर्व निश्चित तौर पर एक सामाजिक बदलाव के रूप में देखा जा सकता है। प्रो. रंजीत सिन्हा ने कहा कि विद्यासागर एक समाज सुधारक के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। इस अवसर पर लिली साह, इबरार खान, पंकज उपाध्याय, विक्रम मुखी, हरेंद्र पंडित, प्रियंका गुप्ता, श्रद्धा उपाध्याय आदि ने आलेख पाठ किया। कार्यक्रम का सफल संचालन मधु सिंह एवं राहुल गौड़ ने किया। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए डॉ. श्रीकांत द्विवेदी ने कहा कि विद्यासागर का जीवन और दर्शन आज के समय में ज्यादा प्रासांगिक है।

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