बनें बच्चों की आदर्श अभिभावक

  हर माता-पिता की ये इच्छा होती है कि उनके बच्चे पढ़े-लिखें और उनका नाम रोशन करें। उनमें वह तमाम आदतें हों जो एक अादर्श बच्चे में होती हैं, लेकिन क्या आप जानती हैं कि अपने बच्चे को आदर्श बनाने के लिए आपको भी उतनी ही मेहनत करने की जरूरत है जितनी की आपके बच्चे को।

अपने बच्चों के सामने चिल्लाने या फिर बहस करने से बचें। अपने गुस्से पर नियंत्रण कर अपने बच्चे के आगे एक उदाहरण रखें। बच्चों की अत्यधिक मांगों को पूरा करने या फिर उनपर अधिक प्रतिबंध लगाने से बचें। इन सब के जरिए आप अपने बच्चे को गुस्सैल होने से आसानी से बचा सकती हैं।

माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चों के प्रति अपने प्यार को जाहिर करें। यह भी जरूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों से जिम्मेदाराना उम्मीदें रखें, क्‍यों‍कि जीवन में अनुशासन होना बहुत जरूरी है।

बच्चों को अनुशासन का पालन करना सिखाएं। अनुशासन का मतलब है नियम, सिद्धान्त और आदेशों का ठीक से पालन करना है। अनुशासन का अर्थ है, खुद को वश में रखना। अनुशासन सफलता की वजह भी बनता है। इसलिए अपने बच्चों को अनुशासित जरूर बनाएं।

जब भी बच्चा कुछ कहना या पूछना चाहें, तो उन्हें रोकें या टोकें नहीं। बच्चे को अपने मन की बात कहने दें और उसे प्रोत्साहित करें कि वह अपने मन की बात को बेझिझक होकर कह सके। इससे वह मुखर होगा और आगे अपने जीवन में खुल कर जी सकेगा।

अगर परिवार में कोई ऐसी समस्या है, जिसका संबंध बच्चे से है, तो कोई भी फैसला लेने से पहले बच्चे की सलाह जरूर लें या फिर उस फैसले में बच्चे को भी शामिल करें। बच्चों के सुझावों के लिए खुद को नकारात्मक करने की बजाए उनके सुझावों को गंभीरता से लें।

बच्‍चे के लिए एक अच्छा उदाहरण बनें। अपने बच्चों के सामने चिल्‍लाने या फिर बहस करने से बचें। अपने गुस्से पर नियंत्रण कर अपने बच्चे के आगे एक उदाहरण बनें। बच्चों की हर मांग को पूरा करने या फिर उनपर अधिक प्रतिबंध लगाने से बचें। इन सब के जरिए आप अपने बच्चे को गुस्सैल होने से आसानी से बचा सकती हैं।

माता पिता को चाहिए कि वह बच्चों के प्रति अपने प्‍यार को जाहिर करें। आप उन्हें जितना प्यार और सहारा देंगे वे जीवन में उतने ही मुखर और आत्मविश्वासी बनेंगे।

अपने अनुशासन पर अपनापन हावी न होने दें। ये ध्यान रखें कि आज आपकी थोड़ी-सी कठोरता, बच्चे के जीवन के लिए लाभदायी साबित होगी।

जब भी बच्चा कुछ कहना या पूछना चाहें, तो उन्हें रोके या टोके नहीं। बच्चे को अपने मन की बात कहने दें और उसे प्रोत्साहित करें कि वह अपने मन की बात को बेझिझक होकर कह सके। इससे वह मुखर होगा और आगे अपने जीवन में खुल कर जी सकेगा।

 

शुभजिता

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