Tuesday, September 16, 2025
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दिल्ली की प्रियदर्शनी चटर्जी बनीं फेमिना मिस इंडिया 2016

मुंबई। दिल्ली की प्रियदर्शनी चटर्जी ने फेमिना मिस इंडिया 2016 का खिताब जीत लिया है। शनिवार रात हुए मुकाबले में उन्होंने यह खिताब अपने नाम किया। वहीं सुसृष्टि कृष्णा फर्स्ट रनर-अप रहीं और पांखुड़ी गिडवानी सेकेंड रनर-अप रहीं।

बता दें कि प्रियदर्शनी फिलहाल दिल्‍ली में रहती हैं, लेकिन उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई गुवाहाटी के मारिया पब्लिक स्कूल से पूरी की है। इससे पहले प्रियदर्शिनी ने मिस इंडिया दिल्ली का खिताब जीता था।

मिस वर्ल्ड 2016 में प्रियदर्शनी भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। फर्स्ट रनरअप रहीं सुसृष्टि कृष्णा मिस इंटरनेशनल में भाग लेंगी वहीं सेकंड रनर-अप रहीं पांखुड़ी भारत की ओर से मिस ग्रैंड इंटरनेशनल ब्यूटी पेजंट का हिस्सा होंगी।

प्रियदर्शिनी को खिताब मिलने पर मॉडल व एक्ट्रेस एमी जैक्सन ने ट्वीट कर बधाई भी दी है।

पांखुड़ी का सफरनामा

18 साल की पंखुड़ी लखनऊ की रहने वाली हैं। वो लखनऊ के आईआईएम कॉलेज में 12वीं की छात्रा हैं और इसी कॉलेज की ब्यूटी प्रतियोगिता जीत चुकी हैं। इसके बाद उनका मुम्बई कैम्पस के लिए सेलेक्शन किया गया। जहां से किसी एक प्रतिभागी को सीधे मिस इंडिया के फाइनल में जगह दी जानी थी। पंखुड़ी ने दूसरी सभी प्रतिभागियों को पीछे छोड़ दिया और फेमिना मिस इंडिया 2016 में तीसरा स्थान हासिल किया।

फेमिना मिस इंडिया 2016 के निर्णायक दल में फैशन और बॉलीवुड जगत की नामी गिरामी हस्तियां मौजूद थीं। इनमें संजय दत्त, डिजाइनर मनीष मल्होत्रा, अर्जुन कपूर, निर्देशक कबीर खान, एमी जैक्सन, मिस वर्ल्ड 2015 मिरिया लालागुना, सानिया मिर्जा, अंतर्राष्ट्रीय डिजाइनर शेन पीकॉक और एकता कपूर शामिल थीं।

मिस इंडिया 2016 के कार्यक्रम में बॉलीवुड सितारों ने शिरकत की। इस रंगारंग कार्यक्रम में शाहरुख खान, टाइगर श्रॉफ, सुनिधि चौहान, जैकलीन फर्नांडीज, शाहिद कपूर जैसे कलाकारों ने खूब धमाल मचाया।

 

बीमारी है त्वचा को नोचने की आदत

डर्माटिलोमेनिया स्किन पिकिंग डिसाऑर्डर या एसपीडी है। सामान्य-सी नजर आने वाली यह समस्या कई बार गंभीर परिणाम दे सकती है। इससे ग्रसित व्यक्ति बार-बार अपनी त्वचा को छूता, रगड़ता, खरोंचता, नोचता है और उसे खींचकर बाहर निकालता रहता है। ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति इसे अपनी कमी की हीनभावना से ग्रसित होकर या किन्हीं अन्य कारणों से लगातार इस तरह का व्यवहार करता है। इससे त्वचा की रंगत पर प्रभाव पड़ता है और कई बार त्वचा पर जख्म जैसे भी बन जाते हैं।

खुद को पहुंचा सकते हैं नुकसान

यह एक ऐसा डिसऑर्डर है जिसमें व्यक्ति खुद की त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है। घबराहट, डर, उत्साह और बोरियत जैसी स्थितियों से निपटने के लिए भी लोग इस तरह के व्यवहार का सहारा लेते हैं। यह लगातार और जुनून में किया जाने वाला व्यवहार होता है जिसकी वजह से त्वचा के टिशूज को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। कई शोधों में यह बात सामने आई है कि डर्माटिलोमेनिया ट्रिचोटिलेमेनिया यानी अपने ही बालों को खिंचने की समस्या से मिलती-जुलती है।

इन्फेक्शन का होता है खतरा

लगतार एक ही जगह की स्किन नोचते रहने से रोगी को इन्फेक्शन का खतरा भी रहता है। क्योंकि कई लोग त्वचा को निकालने के लिए चिमटे जैसी या किसी नुकीली चीज का भी प्रयोग करते हैं। इससे स्किन टिशूज के डैमेज होने का खतरा बढ़ जाता है। कई बार समस्या इतनी बढ़ जाती है कि स्किन ग्राफिटग तक करवाने की जरूरत पड़ जाती है। डर्माटिलोमेनिया का प्रभाव मानसिक रूप से भी पड़ता है क्योंकि रोगी असहाय महसूस करता है, उसे खुद के व्यवहार पर शर्मिंदगी महसूस होती है। एक शोध में यह बात सामने आई है कि डर्माटिलोमेनिया से पीड़ित 11.5 प्रतिशत रोगी आत्महत्या करने का प्रयास करते हैं।

बिहेवियरल थैरेपी है कारगर

डर्माटिलोमेनिया के लिए कॉग्नेटिव बिहेवियरल थैरेपी मददगार होती है। इस थैरेपी की मदद से स्किन पिकिंग की आदत को छुड़ाने में मदद मिलती है। ऐसा करने के लिए उत्सुक होने से रोकने के लिए एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं भी रोगी को दी जाती हैं। अपने परिवार या मित्रों के सपोर्ट से भी इस समस्या से निजात पा सकते हैं।

कम उम्र में होती है समस्या की शुरुआत

छोटे बच्चों में अकेलेपन, डर या उत्साह में अपनी ही त्वचा को नोचने की आदत लग जाती है। किशोरावस्था में एक्ने जैसी समस्या होने पर इस तरह का व्यवहार आमतौर पर देखा गया है, जब किशोरवय बच्चों को अपनी त्वचा को कुरेदकर निकालने की आदत हो जाती है।

कई बार सोरायसिस और एक्जिमा जैसी परेशानियों में भी त्वचा को इस तरह नोंचकर या कुरेदकर निकालने की आदत हो जाती है। लेकिन 30 से 45 साल उम्र का दूसरा पड़ाव होता है, जिसमें लोगों में डर्माटिलोमेनिया जैसी परेशानी देखी जाती है। इस दौर में इस समस्या के होने के पीछे तनाव को सबसे बड़ा कारण माना जाता है।

 

नवरात्रि पर बनाएं ये व्यंजन

मेवा खीर

Mewa Kheer Recipe In Hindi - Dry Fruit Kheer Recipe

 सामग्री – एक लीटर फुल क्रीम दूध, एक कप मखाने कटे हुए, 15 से 20 काजू, आधा कप चिरौंजी, आधा कप किशमिश, 15 से 20 बादाम कटे हुए, 5 से 6 इलायची पिसी हुई , आधा कप चीनी।

कटे हुए बादाम और चिरौंजी से मेवे की खीर को सजाकर परोसें।

विधि –  सबसे पहले किशमिश धोकर भिगो दें।  गैस पर एक भगोने में दूध उबलने के लिए रख दें। दूध में उबाल आने के बाद मखाने, काजू, चिरौंजी और बादाम डालकर एक बड़ी चम्मच से चलाकर सारी सामग्री को मिक्स करें। अब धीमी आंच पर 8 से 10 मिनट तक दूध और मेवे पकने दें। बीच-बीच में खीर में चम्मच चलाते रहें। जब दूध गाढ़ा लगने लगे तो खीर में चीनी डालकर मिलाएं और मध्यम आंच पर 5 मिनट तक पकने दें। उसके बाद खीर में किशमिश और इलाइची पाउडर मिलाकर इसे 2 मिनट तक और पकाएं।  अब गैस बंद कर दें। मेवे की खीर तैयार है।

सिंघाड़े की बर्फी

सामग्री —100 ग्राम सिघाड़े आटा, 1 चम्‍मच घी, 100 ग्राम चीनी, 1 चम्‍मच इलाइची पाउडर, 1 चम्मच किशमिश, 1/2 कप कटे हुए मेवे (काजू, बादाम, पिस्ता)।singhara-burfi

विधि – एक पैन में घी डाल कर गरम करें और सिंघाड़े  का आटा डाल कर हल्का गुलाबी होने तक भून लें। भुने हुए आटे में पानी और चीनी डालकर अच्‍छी तरह मिलाएं और उबाल आने के बाद 4-5 मिनट तक पकाएं। सिंघाड़ा जब हलुवे के जैसा बन जाए तो उसमें इलायची पाउडर डालकर चलाएं। एक थाली में घी लगा कर चिकना कर लें और सिघाड़े के हलुवे को थाली में डालकर पतला फैला कर जमा दें। सिंघाड़े की बर्फी पर कटे मेवे और किशमिश डाल दें और ठंडा होने पर चाकू की मदद से इसे मनचाहे टुकड़ों में काट लें। अब चाहे तो इसे व्रत में खाएं या फिर स्वीट डिश में सर्व करें।

 सिर्फ औरतें चलाती हैं यहां पर 4000 दुकानें

मणिपुर में एक ऐसा मार्केट है जिसे सिर्फ महिलाएं चलाती हैं। यहां पर करीब 4000 दुकानें हैं। इनमें एक भी पुरुष काम नहीं करते। इसे एशिया में महिलाओं का सबसे बड़ा मार्केट भी कहा जाता है। 500 साल पुराना है ये बाजार…

यह मणिपुर के इम्फाल में है। इस मार्केट को मदर्स मार्केट भी कहते हैं और यह करीब 4 हजार पुराना है। यहां हजारों की संख्या में कस्टमर्स रोज आते हैं। स्थानीय सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बातचीत करने के लिए भी लोग इस मार्केट में पहुंचते हैं। कहते हैं कि यह मार्केट तब शुरू हुआ था जब यहां पर राजा हुआ करते थे।

तब ‘लैलप’ नाम की एक ऐसी परंपरा थी जिसमें मैती कम्युनिटी के पुरुषों को राजा के दरबार में काम करने के लिए अक्सर बुला लिया जाता था। इस कारण से महिलाओं पर बाकी जिम्मेदारी आ गई। महिलाएं ही खेती भी करने लगीं और दुकानें भी चलाने लगीं। इसके बाद से यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में भी निभाया जाने लगा।

हालांकि, मार्केट की खास बात ये है कि इसमें सिर्फ शादीशुदा महिलाओं को काम करने दिया जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, बाद के सालों में मार्केट की परंपरा को बदलने के लिए कई तरह के दबाव भी बनाए गए, लेकिन इन महिलाओं ने उनका विरोध किया और मार्केट से कब्जा नहीं छोड़ा।

 

इस तरह करें गणगौर की पूजा

गणगौर का यह उत्सव नवरात्र के तीसरे दिन यानी कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को आता है जिसमें को गणगौर माता (मां पार्वती) की पूजा की जाती है।इस दिन पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईसर जी की पूजा की जाती है।

कहते हैं माता पार्वती ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए यह व्रत और तपस्या की थी। तब भगवान शंकर तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा करती हैं।

पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी की शिव जी से शादी हो गई। तभी से कुंवारी कन्याएं इच्छित वर पाने के लिए ईसर यानी भगवान शंकर और माता पार्वती गणगौर की पूजा करती है। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती है।

इस तरह करें गणगौर व्रत

चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए। इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एक समय भोजन करना चाहिए। इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है।

गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है। सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाती हैं, दूब व फूल चुन कर लाती है। दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है।

इस दिन सुहागिन स्त्रियां दोपहर तक व्रत रखती हैं। व्रत धारण से पहले गौरी की स्थापना की जाती है। व्रत धारण करने से पहले देवी गौरी की स्थापना की जाती है। गौरी की इस स्थापना में सुहाग की सारी वस्तुएं जैसे कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेंहदी, टीकी, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाईं जाती है। सुहाग की इस साम्रगी का अर्पण, चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि विधिपूर्वक पूजन करके किया जाता है। फिर भोग लगाने के पश्चात गौरी की कथा कही जाती है।

गणगौर का गीत

गौर गौर गोमती, ईसर पूजे पार्वती,

पार्वती के आला तीला, सोने का टीला।

टीला दे टमका दे, बारह रानी बरत करे,

करते करते आस आयो, मास आयो,छटे चौमास आयो।

खेड़े खांडे लाडू लायो, लाडू बिराएं दियो,

बीरो गुट कयगो, चुनड उड़ायगो,

चुनड म्हारी अब छब, बीरो म्हारो अमर।

साड़ी में सिंगोड़ा, बाड़ी में बिजोरा,

रानियाँ पूजे राज में, मै म्हका सुहाग में।

सुहाग भाग कीड़ीएँ, कीड़ी थारी जात है ,जात पड़े गुजरात है।

गुजरात में पानी आयो, दे दे खूंटियां तानी आयो, आख्यां फूल-कमल की डोरी।

 

कुंदन और पोल्की जूलरी में फर्क जानें

हम भारतीय महिलाओं को जेवरों से बेहद लगाव होता है और इन्हें पहनकर वो इठलाने का शायद ही कोई मौका छोड़ती होंगी। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम खुद के लिए जूलरी खरीदने जाते हैं और यहीं से शुरू होती है परेशानियां।जेवर के बारे में हम बहुत कम जानते हैं – उसकी बनावट, क्वालिटी, टाइप और उसकी खासियत. खासकर अगर वो दुल्हन के जेवर हों। शादियों में हीरे और सोने के साथ कुंदन और पोल्की के गहने काफी पसंद किए जाते हैं। आइए जानते हैं इन दोनों का अंतर –dkpnl181l

कुंदन और पोल्की, दोनो ही इंडिया की भव्य विरासत और शिल्पकारी को दर्शाते हैं. इसीलिए एक परम्परागत भारतीय लुक के लिए इनसे बेहतर कोई विकल्प नहीं होता. कुंदन, शिल्पकारिता का सबसे पुराना रूप है, यहां तक की इसके वर्क पोल्की से भी पुराने हैं, खासकर हमारे देश में.Kundan Jewellery

इनके डिज़ाइन से लेकर इन्हें तैयार करने की पूरी प्रकिया को काफी सावधानी से किया जाता है, क्योंकि इन्हें तैयार करने में काफी समय लगता है और साथ ही इन्हें काफी बारीकी से तैयार किया जाता है.

पोल्की और कुंदन, दोनों ही स्टोन होते हैं – न ही मेटल और ना ही डिज़ाइन। जहां पोल्की में अनकट डायमंड का तो वहीं कुंदन में ग्लास imitations का इस्तेमाल होता है।

पोल्की में अनफिनिश्ड नैचुरल डायमंड – जो नैचुरल शेप्स में मिलते हैं और जिन्हें पॉलिशिंग या फिनिशिंग की ज़रूरत नहीं होती, का इस्तेमाल होता है। इन्हें जमीन से इनके नेचुरल स्टेट में खुदाई करके निकाला जाता है और जेवर में इस्तेमाल किया जाता है।polki_jewellery_0

दूसरी तरफ, कुंदन – प्रेशियस या सेमी-प्रेशियस ग्लास होता है, निर्भर करता है कि किस तरह के स्टोन का इस्तेमाल किया गया है. इसे पॉलिश करके इसके लुक को और भी बारीक बनाया जाता है. इसमें मुख्य काम, गोल्ड जूलरी में पत्थर बिठाने का होता है।

इंडिया में पोल्की मुग़लों द्वारा लाई गई था जिन्हें डायमंड का नैचुरल फॉर्म बेहद पसंद था।

कुंदन, अपनी कारीगरी और डीटेलिंग के साथ, एक ऐसा आर्ट फॉर्म है जो राजस्थानी कारीगरी के लिए मशहूर है।

पोल्की पीछे की तरफ, गोल्ड फॉएल से बना होता है ताकि सारे स्टोन एक जगह पर आ जाए. वहीं, कुंदन जूलरी में पीछे की तरफ, इनैमल वर्क के साथ-साथ स्टोन्स के बीच कई लेयरिंग रहती है।polki-banner

 कुंदन और पोल्की, दोनों ही प्रिशियस और सेमी प्रिशियस स्टोनस जैसे रूबी, नीलम और पन्ना का इस्तमेमाल करके तैयार किया जाता है.

पोल्की को जिस तरह की लाजवाब कारीगरी से तैयार किया जाता है और इसमें डायमंड का इस्तेमाल होने की वजह से ये कुंदन से ज़्यादा कीमती होता है।

 

मेकअप हटाएं मगर ध्यान से

 

 

अक्सर देखा जाता है कि महिलाओं और लड़कियों को मेकअप करना तो बहुत पसंद होता है लेकित वह मेकअप हटाने पर अच्छी तरह ध्यान नहीं देतीं। नतीजा यह निकलता है कि चेहरे की त्वचा खराब होने लगती है।

गलत तरीके से मेकअप हटाने से चेहरे पर कई रैशेज पड़ जाते हैं और जलन का सामना करना पड़ सकता है. ऐसी समस्याओं से बचने के लिए और मेकअप हटाने के झंझट को कम करने के लिए जानें ये सिंपल से टिप्स…

– मेकअप हटाने के लिए काटॅन में कच्‍चा दूध लगाकर हल्के हाथ से चेहरे को साफ करें। इससे आपका मेकअप आसानी से हट जाएगा.।

– अगर आपका मेकअप वॉटरप्रूफ न हो तो मेकअप हटाने के लिए मिनरल वॉटर और बेबी आयॅल का इस्तेमाल करें।
– यदि आपका चेहरा ऑयली है तो रिमूवल के लिए दही का इस्तेमाल करें. इससे मेकअप तो हटेगा ही साथ ही चेहरा भी पहले की तुलना में अधिक मुलायम हो जाएगा।
– चेहरे की त्वचा अगर ड्राई है तो दूध का इस्‍तेमाल करें। इससे आपकी त्‍वचा पर रैशेज नहीं पड़ेंगे।
– क्लिंजिंग के लिए रात को स्क्रब का इस्तेमाल करें। इससे भी मेकअप आसानी से साफ हो जाएगा।
– मेकअप रिमूव करने के लिए आजकल मार्केट मे कुछ खास तरीके के मेकअप रिमूवल प्रॉडक्‍ट आ रहे हैं. आप अपनी त्वचा के हिसाब से इनका इस्तेमाल भी कर सकती हैं।

 

खुद सड़कों पर झाड़ू लगा चुकी हैं ये महिला कलेक्टर

अजमेर. स्वच्छ भारत मिशन कार्यक्रम के तहत अजमेर की जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि ए. मलिक को हाल ही में पूरे देश के जिला कलेक्टर व डिप्टी कमिश्नर को प्रशिक्षण देने के लिए चुना गया। केंद्र सरकार ने उन्हें इसके लिए रिसोर्स पर्सन बनाया। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन नई दिल्ली द्वारा 4 व 5 अप्रैल को देशभर के सभी जिला कलेक्टर व डिप्टी कमिश्नर के लिए कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।arushi 1

– अकेले अजमेर जिले में इस वर्ष 2 लाख 41 हजार शौचालयों का निर्माण हुआ है, जो बड़ी उपलब्धि है।

– स्वच्छ भारत मिशन के तहत जिले में कलेक्टर ने जिले के सभी ब्लाॅक में जिला स्तर के अलग-अलग अधिकारियों को प्रभारी नियुक्त कर उनकी देखरेख में काम करवाया गया था।

– इतना ही नहीं, इन सभी अधिकारियों को संबंधित गांवों में जाकर वहां पर ली जाने वाली ग्रामीणों की बैठकों व शौचालय निर्माण की फोटो भी कलेक्टर को वाट्सएप पर भेजनी होती है, जिससे वास्तविकता सामने आ सके।

– स्वच्छ भारत मिशन के तहत अजमेर जिले में अधिकारी व कर्मचारी सुबह पांच बजे ही गांवों में पहुंच जाते और शौच के लिए पानी का डिब्बा लेकर जंगल जाने वाले लोगों को रोका जाता, उनकी फोटो ली जाती और उन्हें समझाया जाता कि यह गलत है।

– भारत सरकार जब शौचालय निर्माण के लिए जब निश्चित राशि का नकद भुगतान कर रही है तो उन्हें हर सूरत में शौचालय का निर्माण करवाना चाहिए, इसका असर भी हुआ और शौचालय निर्माण में इजाफा हुआ।

– कलेक्टर मलिक की समझाइश का ही असर हुआ कि पुष्कर के पास गनाहेड़ा ग्राम पंचायत की कालबेलिया बस्ती में मदन नाथ कालबेलिया ने सभी परिवारों को समझाते हुए घरों में शौचालयों का निर्माण करवा दिया।

कौन हैं डॉ. आरुषि

अजमेर की कलेक्टर आरुषि पहले भी अपने सफाई अभियान को लेकर सुर्खियां बटोर चुकी हैं ।

– वे अपने कर्मचारियों के साथ मिलकर शहर की सड़कों की सफाई करती हैं। इस दौरान उनका चेहरा भी काला हो गया था।

– वे कई बार पुष्कर और अजमेर की सड़कों की सफाई कर चुकीं हैं।

– कलेक्टर का कहना है कि वे चाहती हैं कि तीर्थ नगरी पुष्कर जिले की सबसे क्लीन सिटी बने।

 

16 से कम उम्र की लड़की से सहमति से बने संबंध भी दुष्कर्म : हाई कोर्ट

चंडीगढ़। दुष्कर्म के कई मामलों में आरोपी दलील देता है कि उनके बीच शारीरिक संबंध ‘आपसी सहमति’ से बने थे। मगर, ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के दौरान पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि 16 साल की कम उम्र की लड़की के साथ बनाए गए संबंध को दुष्कर्म ही माना जाएगा। भले ही यह शारीरिक संबंध सहमति से बने हों।

जस्टिस अनीता चौधरी ने कहा, ‘एक नाबालिग लड़की को झांसा और लालच देकर शारीरिक संबंध बनाने के लिए राजी किया जा सकता है। 16 साल से कम उम्र की लड़की बिना इसका नतीजा समझे संबंधों की सहमति भी दे सकती है। इसलिए तथाकथित सहमति के नाम पर हम किसी को इसका नाजायज फायदा नहीं उठाने दे सकते।

जस्टिस चौधरी ने ये बातें बात गुड़गांव के एक मामले की सुनवाई के दौरान कहीं। इस मामले में आरोपी का दावा था कि पीड़िता के साथ उसके सम्बन्ध आपसी सहमति के आधार बने थे, इसलिए उसे सजा नहीं मिलनी चाहिए। आरोपी ने 22 जनवरी 2010 को पीड़िता का अपहरण किया था। उस वक्त लड़की की उम्र 15 वर्ष थी।

पीड़‍िता के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। उस वक्त उसे नहीं पता था कि उसकी बच्ची के साथ किसने दुष्कर्म किया है। लड़की ने बाद में बताया कि घटना का आरोपी मिस्त्री है, जो पीड़िता के घर में ही काम करता था। वह पहले से ही शादीशुदा था और उसके दो बच्चे भी थे।

उसे गुड़गांव की जिला अदालत में पेश किया गया, जहां उसे नाबालिग लड़की का अपहरण करने और उसके साथ दुष्‍कर्म करने के आरोप में 10 साल की सजा सुनाई गई थी। इस सजा के खिलाफ दोषी ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में अपील की थी।

 

12 साल की उम्र में शादी, 14 साल में हुए 2 बच्चे, अब हैं पहलवान

भिवानी।12 साल की उम्र में शादी, 14 साल में दो बच्चों की मां और 21 साल की उम्र में बनी भारत की कुश्ती टीम की सदस्य। ये कहानी है हरियाणा के भिवानी में जन्मी पहलवान नीतू की, जिसकी शादी महज 12 साल की उम्र में 30 साल के मानसिक रूप से विकलांग से कर दी गई थी।

– नीतू के हौसले ने बंदिशों के पर कतर दिए। सब कुछ मुमकिन बनाकर राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर विदेश के रास्ते खोल लिए।

– नीतू ने बताया कि उसके पांच भाई-बहन हैं। परिवार वालों ने पहली शादी टूटने के बाद दूसरी शादी कर दी। नीतू के पिता प्रेम कुमार ने गरीबी के कारण 2007 में उसकी शादी रोहतक जिले के गांव बेड़वा के संजय कुमार से कर दी।

– शादी के बंधन में बंधी 14 वर्ष की आयु में नीतू ने जुड़वां बच्चों आयुष-प्रिंस को जन्म दिया जो आज आठ वर्ष के हो चुके हैं।

– वर्ष 2010 में दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल में लड़कियों को कुश्ती लड़ते देख नीतू को भी खेलने का शौक चढ़ा।

– नीतू बताती हैं कि उन्होंने अपने पति संजय से बात की तो उन्होंने अपनी माता मरमन देवी से बात कर मुझे अखाड़े में जाने की इजाजत दे दी।

– वर्ष 2011 में उन्होंने रोहतक स्थित छोटूराम ईश्वर अखाड़े में जाना शुरू किया। वजन ज्यादा होने के कारण अखाड़े में उनसे कड़ी मेहनत कराई गई और 53 किलो भार वर्ग में लड़ने के लायक बनाया गया।

– गरीबी के कारण वह फटे जूतों और फटी प्रैक्टिस ड्रेस में अभ्यास करती थी। खाने की खुराक भी उसे पूरी नहीं मिलती थी। कोच व अन्य साथियों ने मदद की।

– कम समय में राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत नीतू ने अपने इरादे जाहिर कर दिए। 2014 में खेली गई सीनियर नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य और 2015 में जूनियर नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में रजत पदक जीता।

– 2015 में केरल में खेले गए राष्ट्रीय खेलों में कांस्य जीता। उन्हें 2015 ब्राजील में खेली गई जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में भारत की तरफ से खेलने का भी मौका मिला।

– नीतू अब ओलिंपिक में पदक लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।