Wednesday, September 17, 2025
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एचपी घोष अस्पताल में “चेस्ट ट्री” सेवा आऱम्भ

कोलकाता ।  महानगर कोलकाता के साल्टलेक में स्थित एचपी घोष अस्पताल ने अपनी नई पहल, “चेस्ट ट्री” के शुभारंभ की घोषणा की। यह प्रयास व्यापक रूप में श्वसन की देखभाल से संबंधित सेवाओं को प्रदर्शित करने का एक अनूठा और अभिनव दृष्टिकोण बन गया है। “चेस्ट ट्री” एक अत्याधुनिक तकनीक और अत्यधिक विशिष्ट डॉक्टरों की एक टीम के साथ श्वसन से संबंधित स्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला को लेकर अस्पताल के समर्पण का प्रतीक है। कार्यक्रम में सोमनाथ भट्टाचार्य (एचपी घोष अस्पताल के सीईओ), डॉ. अंशुमान मुखोपाध्याय (एमबीबीएस, एमडी (टी.बी, श्वसन) डीएनबी, वरिष्ठ सलाहकार), डॉ. सुमित सेनगुप्ता (एमबीबीएस, एमडी (जीएम), एमआरसीपी (यूके), सीईएसटी (यूके) इन रेस्पिरेटरी मेडिसिन एफआरसीपी (लंदन) – वरिष्ठ सलाहकार), डॉ. संघब्रत सूर (एमबीबीएस, डीएनबी, डीटीसीडी (श्वसन चिकित्सा), स्लीप मेडिसिन में फेलो- कंसल्टेंट); डॉक्टर पिनाकी बंदोपाध्याय, मेडिकल सुप्रिटेंडेंट। “चेस्ट ट्री” पहल अस्पताल की ओर से एक अभिनव शुरुआत है, जो यहां इलाज की जाने वाली विभिन्न श्वसन स्थितियों पर प्रकाश डालता है, जिसमें सीओपीडी, अस्थमा, तपेदिक, फेफड़ों का कैंसर, श्वसन एलर्जी, नींद संबंधी विकार, फुफ्फुसीय उच्च रक्तचाप और धूम्रपान बंद करने के प्रयास से संबंधित केयर टीम शामिल है। चेस्ट ट्री की प्रत्येक शाखा विशेषज्ञों की विशेषता के साथ एक विशिष्ट क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है, जिससे रोगियों के लिए उपलब्ध सेवाओं के महत्व को समझना और भी आसान हो जाता है।
इस मौके पर मीडिया से बात करते हुए, एचपी घोष अस्पताल के सीईओ श्री सोमनाथ भट्टाचार्य ने कहा, श्वसन से जुड़ी समस्याओं की देखभाल से जुड़ी नई तकनीक से यह अस्पताल लैस है, जिसमें सीटी स्कैन, ब्रोंकोस्कोपी, एंडोब्रोंकियल अल्ट्रासाउंड, थोरैकोस्कोपी और श्वसन माइक्रोबायोलॉजी के लिए अत्याधुनिक पीसीआर और रैपिड कल्चर सिस्टम मौजूद हैं। अस्पताल में कई विषयों पर विशेषज्ञ क्लीनिक, जिनमें कोलकाता का पहला बहु-विषयक आईएलडी क्लिनिक और शहर का पहला फेफड़े के कैंसर की जांच कार्यक्रम शामिल है। यह मरीजों को व्यापक और विशिष्ट देखभाल प्रदान करते हैं। अस्पताल कंसल्टेंट 24 घंटे श्वसन से जुड़ी समस्याओं की गहन देखभाल करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि रोगियों को दिन के किसी भी समय बेस्ट से बेस्ट लेवल का केयर मिल सके। श्वसन चिकित्सा को लेकर रोजाना ओपीडी विभाग, बुजुर्ग और विकलांग रोगियों के लिए डे केयर असेसमेंट, और आउट-ऑफ-ऑवर्स कंसल्टेंट श्वसन क्लीनिक रोगी देखभाल और सुविधा के लिए एचपी घोष अस्पताल की प्रतिबद्धता को और अधिक प्रदर्शित करते हैं।

टीआरएसएल ने शुरू किया बेंगलुरु मेट्रो की येलो लाइन के लिए ट्रेनसेट का उत्पादन

कोलकाता । प्रमुख भारतीय रोलिंग स्टॉक निर्माता टीटागढ़ रेल सिस्टम्स लिमिटेड (टीआरएसएल) ने बैंगलोर मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड ( बीएमआरसीएल) के चरण 2 येलो लाइन परियोजना के लिए चाइना रेलवे रोलिंग स्टॉक कॉर्पोरेशन ( सीआरआरसी) के साथ अनुबंध के हिस्से के रूप में ट्रेनसेट का उत्पादन शुरू कर दिया है। यह भारत के शहरी परिवहन बुनियादी ढांचे में टीटागढ़ के निरंतर योगदान में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। दिसंबर 2019 में हस्ताक्षरित बीएमआरसीएल और सीआरआरसी नानजिंग पुझेन कंपनी लिमिटेड के बीच अनुबंध समझौते में चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण मूल समय सीमा को पूरा करने में देरी हुई। रोलिंग स्टॉक आपूर्ति में इन देरी को दूर करने के लिए सीआरआरसी ने अतिरिक्त समय मांगा और बाद में टीटागढ़ रेल सिस्टम्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौता ज्ञापन के तहत, टीटागढ़ अपनी अत्याधुनिक सुविधा में ट्रेनसेट का निर्माण करेगा। बीएमआरसीएल के साथ समझौते के तहत, टीटागढ़ अपनी उन्नत विनिर्माण सुविधा में येलो लाइन के लिए आवश्यक 36 ट्रेनसेट में से 34 का उत्पादन करने के लिए जिम्मेदार है। चीन में केवल दो ट्रेनसेट, जिनमें 12 कोच शामिल हैं, का निर्माण किया जाएगा। परियोजना की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, टीटागढ़ ने अपनी सुविधा में एक समर्पित स्टेनलेस स्टील उत्पादन लाइन स्थापित की है। उत्पादन 18 मई, 2024 को शुरू हुआ और पहला ट्रेनसेट अगस्त 2024 में वितरित होने वाला है। आरवी रोड से बोम्मासंद्रा तक फैली 21 किलोमीटर की येलो लाइन, बेंगलुरु में कनेक्टिविटी बढ़ाने और यातायात की भीड़ को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक महत्वपूर्ण मेट्रो कॉरिडोर है। पूरा होने पर, इस लाइन से शहर के निवासियों के लिए शहरी गतिशीलता में काफी सुधार होने की उम्मीद है। इस हाई-प्रोफाइल प्रोजेक्ट में टीटागढ़ की भागीदारी विश्वसनीय परिवहन समाधानों के माध्यम से राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए इसके समर्पण को रेखांकित करती है। विनिर्माण क्षमता की प्रभावशाली रेंज टीटागढ़ को परिवहन आवश्यकताओं की एक विस्तृत श्रृंखला का समर्थन करने की अनुमति देती है, जिससे रेल परिवहन उद्योग में एक नेता के रूप में इसकी स्थिति मजबूत होती है। उन्नत उत्पादन प्रौद्योगिकियों में कंपनी के निरंतर निवेश तथा गुणवत्ता और नवाचार के प्रति इसकी प्रतिबद्धता, इसकी सफलता और राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे में योगदान को बढ़ावा देती रहेगी।

बिस्क फार्म के पौष्टिक ‘ईट फिट डाइजेस्टिव’ और ‘ईट फिट आटा मेरी’ बाजार में

कोलकाता । बिस्क फार्म देश के अग्रणी बिस्किट और बेकरी ब्रांड ने दो नई पेशकश – ‘ईट फिट डाइजेस्टिव’ और ‘ईट फिट आटा मेरी’ लॉन्च कर अपने ‘ईट फिट’ पोर्टफोलियो का विस्तार किया है। ये नए उत्पाद, स्वास्थ्य के प्रति जागरूक शहरी उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं, जो पौष्टिक और अपने लिए सोच-समझकर विकल्प चुनना पसंद करते हैं। बिस्क फार्म प्राकृतिक सामग्री, बिना चीनी और पोषक तत्वों से भरपूर विकल्पों पर ज़ोर देते हुए, बाज़ार में स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों की बढ़ती मांग को पूरा कर रहा है। इन बिस्किट में फाइबर, विटामिन और खनिज होता है, ये पाचन के लिहाज़ से अच्छे होते हैं और ये निरंतर ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं। ‘ईट फिट डाइजेस्टिव’ बिस्किट अपनी उच्च डाइटरी फाइबर सामग्री के लिए जाने जाते हैं और पूरी तरह से 100% आटे (गेहूं के आटे) से बने होते हैं, जिसमें कोई अतिरिक्त चीनी नहीं होती और ट्रांस-फैट बिलकुल नहीं होता है। ये बिस्किट ग्राहकों को संतुष्टि और चिंता-मुक्त होकर खाने का अनुभव प्रदान करते हैं। नए ‘ईट फिट आटा मेरी’ बिस्किट भी गेहूं के आटे से बने हैं, जो कुरकुरे और स्वादिष्ट दोनों हैं। ये बिस्किट हल्के-फुल्के नाश्ते जैसे हैं और उन आधुनिक उपभोक्ताओं के चाय-नाश्ते के लिए उपयुक्त हैं, जो अपने दैनिक आहार में स्वस्थ विकल्पों को प्राथमिकता देते हैं। बिस्क फार्म के प्रबंध निदेशक विजय कुमार सिंह ने कहा कि बिस्क फार्म में, हम अपने उपभोक्ताओं को उनके स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती की आकांक्षाओं के अनुरूप संपूर्ण और पौष्टिक विकल्प प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। ‘ईट फिट डाइजेस्टिव बिस्किट’ और ‘ईट फिट आटा मेरी बिस्किट’ के लॉन्च के साथ, हमारा लक्ष्य है, स्वस्थ नाश्ते के विकल्पों की बढ़ती मांग को पूरा करना और साथ ही वही बढ़िया स्वाद और गुणवत्ता प्रदान करना जिसके लिए बिस्क फार्म मशहूर है। नए ‘ईट फिट आटा मेरी’ बिस्किट 300 ग्राम के पैक में उपलब्ध हैं, जिनकी कीमत 45 रुपये है, जबकि ‘ईट फिट डाइजेस्टिव’ बिस्किट 175 ग्राम और 59 ग्राम के पैक में उपलब्ध हैं, जिनकी कीमत क्रमशः 30 रुपये और 10 रुपये है। ये उत्पाद अब सभी प्रमुख खुदरा स्टोर पर उपलब्ध हैं।

अब भारत का ज्ञान नहीं चुरा पाएंगे पश्चिमी देश, जानिए क्या है बायोपायरेसी

पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के बीच आगे बढ़ रहे ज्ञान का अब बिना सहमति के इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। इसके लिए दुनिया के 190 से अधिक देश एक नई संधि के लिए सहमत हो गए हैं। इस संधि के बाद बायोपाइरेसी पर रोक लगाई जा सकेगीजेनेवा में 13 से 24 मई तक चले एक अहम सम्मेलन में इस पर सहमति बनी है। आइए जानते हैं कि बायोपाइरेसी क्या है और किस तरह से इससे फायदा होगा। पहले समझते हैं कि बायोपाइरेसी है क्या. जर्मन वेबसाइट डी डब्लू की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बायोपाइरेसी उस ज्ञान के सहमति के बिना इस्तेमाल को कहा जाता है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लोगों के बीच लगातार आगे बढ़ता रहता है। उदाहरण के लिए किसी पौधे के औषधीय गुणों की जानकारी और उसका इस्तेमाल भी इसी कैटेगरी में आता है।
अमेरिका ने दे दिया था हल्दी का पेटेंट
बायोपाइरेसी अमेरिका की एक घटना से बेहतर समझ सकते हैं। साल 1994 की बात है. अमेरिका की मिसिसिपी यूनिवर्सिटी के दो रिसर्च स्कॉलर सुमन दास और हरिहर कोहली को अमेरिका के पेटेंट एंड ट्रेडमार्क ऑफिस ने हल्दी के एंटीसेप्टिक गुणों के लिए पेटेंट दे दिया था। जब भारत तक यह खबर पहुंची तो में खूब विवाद हुआ. होता भी क्यों नहीं, हल्दी का इस्तेमाल भारत में सदियों से दवा के रूप में होता आया है, जिसका जिक्र आयुर्वेद में भी है. ऐसे में सवाल उठा कि हल्दी का पेटेंट भला अमेरिका कैसे दे सकता है?
भारत को करना पड़ा था केस
भारत की ओर से अपने इस प्राचीन ज्ञान को बचाए रखने के लिए काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ने हल्दी के मुद्दे पर केस कर दिया इसके बाद जाकर साल 1997 में अमेरिका के पेटेंट एंड ट्रेडमार्क ऑफिस ने दोनों रिसर्च स्कॉलर का पेटेंट रद्द किया।
जेनेवा में हुई चर्चा के बाद मंजूरी
यह तो महज एक उदाहरण था. इसी तरह के मुद्दों और विवादों को सुलझाने के लिए और किसी के भी पारंपरिक ज्ञान या चिकित्सा पद्धति की चोरी पर रोक लगाने के लिए विश्व स्तर पर बायोपाइरेसी समझौते पर जेनेवा में लंबी चर्चा हुई। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र के विश्व बौद्धिक संपदा संगठन ने एक बयान जारी किया कि लंबी बातचीत के बाद सभी देशों के प्रतिनिधियों ने बौद्धिक संपदा, आनुवंशिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के बीच इंटरफेस को संबोधित करने वाली पहली बायोपाइरेसी संधि को मंजूरी दे दी है।
बायोपाइरेसी संधि से क्या बदलेगा?
इसमें 190 से ज़्यादा देशों ने बायोपाइरेसी से निपटने और औषधीय पौधों आदि आनुवंशिक संसाधनों से जुड़े पेटेंट को विनियमित करने के लिए नई संधि पर सहमति जताई है, जिसमें खास तौर पर ऐसे पौधे शामिल हैं, जिनके इस्तेमाल में पारंपरिक ज्ञान शामिल है। बायोपाइरेसी की संधि से कोई व्यक्ति दूसरे समुदाय की सहमति के बिना ऐसी जानकारी का पेटेंट नहीं करा पाएगा, जो उस समुदाय में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी आगे बढ़ा चला आ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, इसे किसी पौधे, फसल के औषधीय गुणों की जानकारी और इस्तेमाल या फिर जानवर की किसी प्रजाति के इस्तेमाल से भी जोड़ा जा सकता है।

पर्यावरण दिवस पर विशेष : सरकारी खजाने पर भारी पड़ रहे चक्रवाती तूफान

रुमेल, तितली, गाजा, बुलबुल और बिपरजॉय भी मचा चुके तबाही
26 मई को ‘रेमल’ ने चक्रवात तूफान और तेज बारिश से तबाही मचाई । इसकी चपेट में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा, असम, नागालैंड और मणिपुर के कुछ हिस्से आए । रेमल चक्रवात का कहर पश्चिम बंगाल के अलावा मिजोरमअसम और मणिपुर में भी देखने को मिल रहा है। आइजोल में पत्थर की खदान खिसकने की वजह से मलबे में दबकर कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई। वहीं लगातार भारी बारिश के कारण मंगलवार को मणिपुर के कई इलाके जलमग्न हो गए जिससे सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ। असम में भी भारी बारिश से 1 की मौत हो गई। खतरनाक चक्रवाती तूफान रेमल रविवार रात पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में 135 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पहुंचा। इस दौरान खतरनाक तूफान ने भारी तबाही मचाई। न केवल पश्चिम बंगाल बल्कि, उत्तर पूर्वी राज्यों में भी इसका कहर बरपा। मिजोरम, मणिपुण और असम में भी भारी बारिश होने से कई लोगों की मौत हुई है। इस भंयकर तूफान से पश्चिम बंगाल में जहां 10 लोगों की जान चली गई तो वहीं मिजोरम के आइजोल में पत्थर की खदान खिसकने की वजह से मलबे में दबकर कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई। मौसम विभाग ने केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे कई दक्षिणी राज्यों में भी 28 मई तक भारी बरसात होने की चेतावनी जारी की है। कोलकाता एयरपोर्ट पर सोमवार सुबह तक उड़ानों का संचालन निलंबित किया गया है। इस तरह के चक्रवाती तूफान में जान-माल का भारी नुकसान होता है। ‘रेमल’ से पहले ‘तौकते’, ‘यास’, ‘फनी’, ‘तितली’, ‘गाजा’, ‘बुलबुल’ व ‘बिपरजॉय’ भारी तबाही मचा चुके हैं। चक्रवाती तूफानों ने सरकार के खजाने में अरबों रुपये की चपत लगाई है। वजह, तूफान से हुई बर्बादी के बाद जीवन को सामान्य करने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को अरबों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। Cyclone Remal: सरकारी खजाने पर भारी पड़ रहे चक्रवाती तूफान; तितली, गाजा, बुलबुल और बिपरजॉय भी मचा चुके तबाही
तीन साल पहले ही ‘तौकते और यास’ चक्रवात ने खूब तबाही मचाई थी। हालांकि इनके गुस्से का अंदाजा, केंद्र सरकार को पहले से हो गया था। सरकार ने समय रहते कुछ उपाय कर दिए। इसके बावजूद दस हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च हो गई।
पश्चिम बंगाल में चक्रवाती तूफान ‘रेमल’ को लेकर हाई अलर्ट है। रविवार को इस तूफान से भारी नुकसान होने की आशंका है। मौसम विभाग ने जो चेतावनी जारी की है, उसके अनुसार 26 मई को ‘रेमल’ चक्रवात तूफान और तेज बारिश से तबाही मचा सकता है। इसकी चपेट में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा, असम, नागालैंड और मणिपुर के कुछ हिस्से आ सकते हैं। मौसम विभाग ने केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे कई दक्षिणी राज्यों में भी 28 मई तक भारी बरसात होने की चेतावनी जारी की है। कोलकाता एयरपोर्ट पर सोमवार सुबह तक उड़ानों का संचालन निलंबित किया गया है। इस तरह के चक्रवाती तूफान में जान-माल का भारी नुकसान होता है। ‘रेमल’ से पहले ‘तौकते’, ‘यास’, ‘फनी’, ‘तितली’, ‘गाजा’, ‘बुलबुल’ व ‘बिपरजॉय’ भारी तबाही मचा चुके हैं। चक्रवाती तूफानों ने सरकार के खजाने में अरबों रुपये की चपत लगाई है। वजह, तूफान से हुई बर्बादी के बाद जीवन को सामान्य करने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को अरबों रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
‘तौकते और यास’ ने सौ से अधिक लोगों की जान ली
तीन साल पहले ‘तौकते और यास’ ने खूब तबाही मचाई थी। हालांकि इनके गुस्से का अंदाजा, केंद्र सरकार को पहले से हो गया था। सरकार ने समय रहते कुछ उपाय कर दिए। इसके बावजूद दस हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च हो गई। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमों ने दिन रात लगकर ‘तौकते और यास’ की तबाही से 24 लाख लोगों को बचा लिया था। चक्रवाती तूफान ‘तौकते और यास’ ने सौ से अधिक लोगों की जान ले ली थी। साढ़े चार लाख से ज्यादा मकानों को नुकसान पहुंचा था। मछली पकड़ने वाली 65 सौ नाव और 41164 जाल पानी में बह गए थे। मई 2020 में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘तौकते और यास’ से प्रभावित राज्यों का दौरा किया। चक्रवाती तूफान ने 367622.38 हैक्टेयर में लगी फसलों को भी तबाह कर दिया था। चक्रवाती तूफान ‘तौकते’ से गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल तथा दादरा एवं नगर हवेली और दमन दीव संघ राज्य क्षेत्र प्रभावित हुए थे। चक्रवात ‘यास’ ने ओडिशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड के हिस्सों को प्रभावित किया था। तौकते का मुकाबला करने के लिए एनडीआरएफ की 71 टीमें गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, राजस्थान, दमन एवं दीव और दादरा एवं नगर हवेली में तैनात की गई थीं। इसी तरह ‘यास’ के मामले में एनडीआरएफ की 113 टीमें ओडिशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु व अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में तैनात की गई। राज्यों को भारी जान माल का नुकसान झेलना पड़ा
पीएम मोदी की घोषणा के तहत एनडीआरएफ से गुजरात को 1000 करोड़ रुपये, ओडिशा को 500 करोड़ रुपये, पश्चिम बंगाल को 300 करोड़ रुपये और झारखंड को 200 करोड़ रुपये की अतिरिक्त वित्तीय सहायता जारी की गई। इसके अलावा केंद्र ने वर्ष 2021 22 के लिए एसडीआरएफ में 8873.60 करोड़ रुपये केंद्रीय अंश की प्रथम किस्त के रूप में जारी किए थे। चक्रवात ‘तौकते’ से गुजरात में 238548, महाराष्ट्र में 13435, दीव में 405 और केरल में 83 लोगों को बचाया गया। इसी तरह चक्रवात ‘यास’ से ओडिशा में 703058, पश्चिम बंगाल में 1504506 और झारखंड में 17165 लोगों को बचा लिया गया। साल 2020 में ‘गाजा’ ‘तितली’ और ‘बुलबुल’, ये तीनों चक्रवाती तूफान भी केंद्र सरकार के खजाने पर भारी पड़ रहे थे। राज्य सरकारों को भी इनके चलते भारी जान-माल का नुकसान झेलना पड़ा। ये चक्रवात अपनी मनमर्जी से आते हैं और भारी नुकसान कर चले जाते हैं। पश्चिम बंगाल में आए चक्रवात ‘बुलबुल’ से हुए नुकसान की भरपाई के लिए राज्य सरकार ने 7317.48 करोड़ रुपये की सहायता राशि मांगी थी। 2019 में ही उड़ीसा में ‘फनी’ चक्रवाती तूफान ने तबाही मचाई थी। इसके लिए राज्य सरकार ने 5227.61 करोड़ रुपये की मांग की थी, जिसकी एवज में एनडीआरएफ के अंतर्गत अतिरिक्त वित्तीय सहायता के रूप में 3114.46 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई थी।
‘ओखी’ व ‘गाजा’ चक्रवात ने मचाई तबाही 
2017-18 के दौरान केरल में ‘ओखी’ चक्रवात आया था। इससे हुए नुकसान के चलते केरल सरकार ने 431.37 करोड़ रुपये की मांग की थी, जबकि एनडीआरएफ द्वारा सिर्फ 133 करोड़ रुपये की सहायता राशि जारी की गई। तमिलनाडु में भी उसी साल यही चक्रवात आया था, जिसके लिए 877.01 करोड़ रुपये की सहायता राशि की मांग की गई थी। एनडीआरएफ ने इस केस में 133.05 करोड़ रुपये जारी किए थे। 2018-19 में तमिलनाडु में चक्रवात ‘गाजा’ ने तबाही मचाई थी। इसके लिए 2715.29 करोड़ रुपये की मांग की गई। एनडीआरएफ की ओर से 900.31 करोड़ रुपये जारी किए गए। उड़ीसा में 2018-19 के दौरान आए ‘तितली’ तूफान से हुए नुकसान की भरपाई के लिए राज्य सरकार ने 2751.72 करोड़ रुपये की राशि मांगी थी। एनडीआरएफ ने 341.72 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मंजूर की थी। 2019-20 में उड़ीसा में ही ‘फनी’ ने खासा नुकसान पहुंचाया था। राज्य सरकार द्वारा 5227.61 करोड़ रुपये मांगे गए, जिसकी एवज में केंद्र से 3114.46 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई।
‘बिपरजय’ चक्रवाती तूफान की चेतावनी जारी की ग
देश में हर साल कोई न कोई प्राकृतिक आपदा दस्तक देती रहती है। ‘गाजा’ और ‘बुलबुल से लेकर ‘बिपरजॉय’ तक कई सारे चक्रवाती तूफानों ने भारी तबाही मचाई है। इस तरह की प्राकृतिक आपदाएं, सरकारी खजाने पर भारी पड़ रही हैं। अगर तीन वर्ष की बात करें तो केंद्र और राज्य सरकारें, ऐसी आपदाओं के दौरान राहत एवं बचाव कार्य पर 140478.16 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि खर्च कर चुकी हैं। गत वर्ष 13 जून से 15 जून तक ‘बिपरजॉय’ चक्रवाती तूफान की चेतावनी जारी की गई थी। किसी भी आपात स्थिति के लिए तटरक्षक बल, सेना और नौसेना के बचाव और राहत दलों के साथ-साथ जहाजों एवं विमानों को स्टैंडबाय पर तैयार रखा गया। ‘बिपरजॉय’ से भी अच्छा खासा नुकसान हुआ था। यह गंभीर चक्रवाती तूफान 125-135 किमी प्रति घंटे की निरंतर हवा की गति से आगे बढ़ा था। गुजरात व दूसरे हिस्सों में 21,000 नावें खड़ी कर दी गई थी।
केंद्रीय टीम ‘आईएमसीटी’ करती है मूल्यांकन
मध्यप्रदेश में केंद्र व राज्य, दोनों का आपदा खर्च मिलाकर लगभग 127112.73 करोड़ रुपये पहुंच गया था। महाराष्ट्र में प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए 21849.96 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। पश्चिम बंगाल में 8611.54 करोड़ रुपये, राजस्थान में 9892.84 करोड़ रुपये, ओडिशा में 11743.9 करोड़ रुपये और उत्तर प्रदेश में तीन वर्ष के दौरान 8886.9 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में बताया था कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति के अनुसार, जमीनी स्तर पर प्रभावित लोगों को राहत के वितरण सहित, आपदा प्रबंधन की प्राथमिक जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों की होती है। राज्य सरकारें, भारत सरकार द्वारा अनुमोदित मदों और मानदंडों के अनुसार, पहले से ही उनके निपटान में रखी गई राज्य आपदा मोचन निधि ‘एसडीआरएफ’ से बाढ़ सहित प्राकृतिक आपदाओं के मद्देनजर राहत के उपाय करती हैं। गंभीर प्रकृति की आपदा के मामले में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, राष्ट्रीय आपदा मोचन निधि ‘एनडीआरएफ’ से अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। केंद्र की एक अंतर मंत्रालयी केंद्रीय टीम ‘आईएमसीटी’ संबंधित राज्य का दौरा कर नुकसान का मूल्यांकन करती है। राज्यों को एसडीआरएफ का आवंटन समय समय पर संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत गठित क्रमिक वित्त आयोगों की सिफारिश पर आधारित है।
प्राकृतिक आपदा से राहत बचाव में खर्च राशि
2019-20 में आपदाओं से निपटने के लिए केंद्र और राज्यों ने एसडीआरएफ के तहत 13465.00 करोड़ रुपये की राशि का आवंटन किया है। 2020-21 में यह राशि 23186.40 करोड़ रुपये जारी की गई थी। साल 2021-22 के लिए भी इस राशि का ग्राफ 23186.40 करोड़ रुपये रहा है। एसडीआरएफ के तहत आवंटन हुई राशि में 2019-20 के दौरान केंद्र का हिस्सा 10937.62 करोड़ रुपये था। 2020-21 के दौरान यह राशि 17825.63 करोड़ रुपये थी, जबकि 2021-22 में केंद्र ने एसडीआरएफ को 17747.20 करोड़ रुपये जारी किए थे। इसके अलावा एनडीआरएफ निधि से सभी आपदाओं के दौरान राहत बचाव कार्य के लिए राशि प्रदान की गई है। 2019-20 में यह राशि 18530.50 करोड़ रुपये थी। 2020-21 में 8257.11 करोड़ रुपये जारी किए गए थे। साल 2021-22 के लिए 7342.30 करोड़ रुपये प्रदान किए गए हैं। साल 2019-20 में एसडीआरएफ के तहत कुल 59837.8 करोड़ रुपये जारी किए गए थे। 2020-21 में कुल 46510.45 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। 2021-22 के दौरान सभी आपदाओं में राहत बचाव कार्य के लिए 34129.91 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है। 2022 में पांच दिसंबर तक प्राकृतिक आपदाओं में 1784 लोग मारे गए थे। 26401 पशुओं की मौत हुई। इसके अलावा 327479 मकान/झौपड़ी, प्राकृतिक आपदा में तबाह हुए। साथ ही 1889582 हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों को नुकसान

पर्यावरण दिवस पर विशेष : धरती बनी आग की भट्टी, दुनिया में 50 करोड़ लोग होंगे प्रभावित 

हर साल 4.5 प्रतिशत गिरेगी भारत की जीडीपी
क्या हो अगर आपके सामने लोहे की सलाखें पिघलकर रिसने लगें, या सड़कों का डामर पिघलकर लिक्विड बन जाए। पेड़ों पर बैठे पक्षी मर कर जमीन पर गिरने लगे। सड़कें इतनी गर्म हो जाएं कि ऑमलेट बनाने के वीडियो आने लगे। पारे से सुलगती रेत पर पापड़ सैंकने के वीडियो सामने आने लगे। हकीकत यह है कि इस गर्मी में यह सब हो रहा है। भारत के राजस्‍थान, महाराष्‍ट्र, दिल्‍ली, मध्‍यप्रदेश, यूपी और बिहार समेत कई राज्‍य धरती की इस भट्टी में झुलस रहे है। कई शहरों में तापमान 45 और 50 डिग्री सेल्‍सियस को पार कर गया है। इस तापमान की भयावहता का आलम यह है कि अब लोग भी गर्मी से मरने लगे हैं। कई राज्‍यों में लोगें के शरीर का टेंपरेचर 100 के पार हो रहा है। राजधानी दिल्‍ली में एक शख्‍स के शरीर का टेंपरेचर 107 डिग्री पहुंचा, जिसके बाद हीट स्ट्रोक से उसकी मौत हो गई। दरसअल, हकीकत यह है कि सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए तापमान एक ‘नया खतरा’ है और धरती ‘आग की भट्टी’ बन रही है। दरअसल, दुनिया के तापमान (वैश्विक तापमान) में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वैज्ञानिक कई बार ये चेतावनी दे चुके हैं कि धरती का पारा बढ़ रहा है। अप्रैल और मई 2024 में कई हफ्तों तक घातक गर्मी की लहर ने एशिया के बड़े क्षेत्रों को जकड़ रखा है। 7 मई को भारत में तापमान 110 डिग्री फ़ारेनहाइट (43.3 सेल्सियस) से अधिक था और इस भीषण गर्मी में बच्‍चों से लेकर बुजुर्गों तक सब को बेहाल कर रखा है।
यूके, यूरोप से लेकर चीन तक के हालात
दुनिया के 40 प्रतिशत हिस्‍से में पिछले 10 साल (2013 से 2023) तक सबसे उच्‍चतम तापमान रिकॉर्ड किया गया। यूनाईटेड किंगडम में जुलाई 2022 में पहली बार 40 डिग्री सेल्‍सियस क्रॉस किया। उत्तर पश्चिम चीन  में पिछले साल 52 डिग्री तापमान पार किया जो सबसे अधिक था। इटली के सिसिली में 2021 में 48.8 डिग्री पार किया जो यूरोप का सबसे ऊँचा तापमान था। जापान से लेकर दक्षिण में फिलीपींस तक लगातार गर्मी ने रोजमर्रा की जिंदगी पर कहर बरपा रही है। कंबोडिया में छात्रों और शिक्षकों को स्कूलों से घर भेजा जा रहा है। थाईलैंड में किसानों के फसलें सूख रही हैं, धूप से हजारों पशुओं की मौत हो गई। 2023 में दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका में एक सप्ताह तक चली गर्मी की लहर को फीनिक्स में ‘पृथ्वी पर नर्क’ के तौर पर दिखाया गया। जहां तापमान लगातार 31 दिनों तक 110 एफ (43.3 सी) या इससे ज्‍यादा रहा। यूरोप भी भभक रहा है। ग्रीस के जंगलों में आ लगी है। बता दें कि कुछ देशों में सिर्फ दो या तीन हफ्ते ज्यादा गर्मी पड़ी। वहीं कोलंबिया, इंडोनेशिया और रवांडा जैसे देशों में 120 दिन से भी ज्यादा गर्मी पड़ी। रिपोर्ट कहती है कि इंसानों ने प्रकृति पर बहुत ज्‍यादा बोझ डाल दिया है। दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में 120 दिनों की अतिरिक्त गर्मी सिर्फ जलवायु परिवर्तन के कारण ही थी।
मानव स्‍वास्‍थ्‍य के लिए खतरा 
48-50 डिग्री सेल्सियस तापमान तो मानव शरीर के लिए झेल पाना ही मुश्किल होता है। मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान के संपर्क में लंबे समय तक रहने से मस्तिष्क को जबरदस्त क्षति हो सकती है, जिससे भ्रम, दौरे और चेतना खत्म हो सकती है। 46-60 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान पर मस्तिष्क कोशिकाएं मरने लगती हैं, क्योंकि मस्तिष्क कोशिकाओं के भीतर प्रोटीन जमना शुरू हो जाता है। 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान विभिन्न प्रकार की मस्तिष्क कोशिकाओं पर विनाशकारी प्रभाव डालता है।39 डिग्री सेल्सियस से अधिक उच्च मस्तिष्क तापमान मस्तिष्क की कई तरह से चोट दे सकता है। मसलन अमीनो एसिड बढ़ना, मस्तिष्क से ब्लीडिंग और न्यूरोनल साइटोस्केलेटन के प्रोटियोलिसिस में वृद्धि।50 डिग्री सेल्सियस ऐसा काफी ज्यादा तापमान है जो मस्तिष्क कोशिकाओं को तेजी से नुकसान पहुंचाता और फिर इस नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती। मस्तिष्क का संतुलन और ऑक्सीजन की खपत को कम कर देता। 50 डिग्री सेल्सियस हृदय और खून का प्रवाह तंत्र के साथ ही मांसपेशियां, त्वचा और श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है।
क्‍या होगा बुजुर्गों का : बता दें कि दुनिया भर में जनसंख्या बूढ़ी हो रही है। 2050 तक 60 साल और उससे ज्‍यादा उम्र के लोगों की संख्या दोगुनी होकर करीब 2.1 अरब हो जाएगी, जो वैश्विक जनसंख्या का 21 प्रतिशत है। रिसर्च बताती है कि 2050 तक 69 वर्ष और उससे अधिक उम्र की दुनिया की 23 प्रतिशत से अधिक आबादी उन क्षेत्रों में रह रही होगी, जहां तापमान नियमित रूप से 99.5 डिग्री फ़ारेनहाइट (37.5 डिग्री सेल्सियस) से ज्‍यादा होता है, जबकि आज यह सिर्फ 14 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि लगभग 25 करोड़ वृद्ध खतरनाक रूप से हाई टेंपरेंचर से हलाकान होंगे।
क्या कहती है आईपीसीसी की रिपोर्ट : इस बढ़ती गर्मी में संयुक्त राष्ट्र की IPCC की रिपोर्ट का जिक्र भी जरूरी है। यह रिपोर्ट लंबे समय की रिसर्च के बाद सामने आई थी। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के साथ ही आईपीसीसी (इंटरगवर्न्मेंटल पैनस ऑन क्लाइमेट चेंज) की जो रिपोर्ट आई थी। रिपोर्ट के मुताबिक उत्सर्जन के आधार पर हम करीब 10 से 20 साल में तापमान के मामले में 1.5 डिग्री की बढ़ोतरी पर पहुंच जाएंगे। यह भारत के लिए खतरनाक है, क्योंकि गर्मी बढ़ने से भारत के 50% हिस्से और ऐसे लोगों पर भारी प्रभाव पड़ेगा, जिनका जीवनयापन सीधेतौर पर पर्यावरण पर निर्भर करता है।
2 हजार साल में पहली बार 
विशेषज्ञों का दावा है कि इस गति से गर्मी बढ़ना मानव जाति के इतिहास में 2000 साल में पहली बार देखा गया है। इससे भारत के लोगों पर भारी असर होगा, खासकर ऐसे 40 करोड़ लोगों पर जिनका रोजगार पर्यावरण या इसी तरह के संसाधनों चलता है। जबकि दुनिया की 90 फीसदी आबादी पर असर होगा। ये आबादी अत्याधिक गर्मी और सूखे से जुड़े खतरों का सामना करेगी। 234 वैज्ञानिकों की रिपोर्ट में क्या है : वैज्ञानिकों ने 3 हजार से ज्‍यादा पन्नों की रिपोर्ट तैयार की है। इसे दुनिया के 234 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। जिसमें कहा गया है कि तापमान से समुद्र स्तर बढ़ रहा है, बर्फ का दायरा सिकुड़ रहा है और प्रचंड लू, सूखा, बाढ़ और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात और मजबूत और बारिश वाले हो रहे हैं, जबकि आर्कटिक समुद्र में गर्मियों में बर्फ पिघल रही है और इस क्षेत्र में हमेशा जमी रहने वाली बर्फ का दायरा घट रहा है। ताजा रिपोर्ट कहती है कि मध्य, पूर्व और उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक लू चलने के आसार हैं। 2023 में भारत ने 1901 में रिकॉर्ड रखना शुरू होने के बाद से फरवरी सबसे गर्म रहा।
क्‍या होगा भारत पर असर : मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि लू की घटनाएं अगर ऐसे ही चलती रही तो 2030 तक देश को अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.5 से 4.5 प्रतिशत प्रति वर्ष का नुकसान हो सकता है। मार्च 2022 अब तक का सबसे गर्म और 121 वर्षों में तीसरा सबसे सूखा वर्ष था। इस वर्ष में 1901 के बाद से देश का तीसरा सबसे गर्म अप्रैल भी रहा। भारत में लगभग 75 प्रतिशत श्रमिक या लगभग 38 करोड़ लोगों को गर्मी की वजह से तनाव हुआ। यह स्‍टडी पीएलओएस क्लाइमेट नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई है।
भारत-पाकिस्तान, बांग्लादेश झेलेगा सबसे ज्‍यादा मार 
डब्ल्यूएमओ की ही रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में हो रहे जलवायु परिवर्तन और बढ़ रहे तापमान का सबसे बुरा असर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश पर होगा। भारत के कई हिस्सों में लू तो पिछले कुछ सालों में बहुत ज्यादा देखी गई है। आबादी के मान से भी भारत पर ज्यादा असर होगा। यहां गर्मी से मरने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। कुल मिलाकर डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का सबसे भारी नुकसान भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश झेलेगा।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के छह मुख्य अंतरराष्ट्रीय तापमान डेटासेट के मुताबिक पिछले 8 साल दुनियाभर के रिकॉर्ड पर सबसे गर्म थे। यह लगातार बढ़ती ग्रीनहाउस गैस की मात्रा और इससे होने वाली गर्मी की वजह से था। इसका मतलब यह है कि 2022 में पृथ्वी 19वीं सदी के अंत के औसत से लगभग 1.11 डिग्री सेल्सियस गर्म थी। यही वजह है कि नासा ने भी दुनिया पर आने वाले इस नए खतरे को लेकर डर जाहिर किया है। वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएमओ)  की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।
200 देश ‘क्लाइमेट चेंज’ से लड़ रहे युद्ध : साल 2015 में पेरिस जलवायु समझौता हुआ था, जिसमें 200 देशों ने इस ऐतिहासिक जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, इस समझौते का मकसद था दुनिया में हो रही तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) से कम रखना। इसके साथ ही यह तय करना कि यह पूर्व औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फारेनहाइट) से ज्यादा न हो। रिपोर्ट में शामिल 200 से ज्यादा लेखक पांच परिदृश्यों पर नजर बनाए हुए हैं और उनका मानना है कि किसी भी स्थिति में दुनिया 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के आंकड़े को पार कर लेगी। यह आशंका पुराने पूर्वानुमानों से काफी पहले है।
(साभार – वेबदुनिया)

पंत की 125वीं जयंती की शुरुआत,  राष्ट्रीय संगोष्ठी और संस्कृति उत्सव संपन्न

कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा परिषद सभागार में आयोजित साहित्यिक समारोह में पंत की 125वीं जयंती की शुरुआत हुई। वक्ताओं ने यह आशा व्यक्त की कि आगे एक वर्ष तक देश भर में  छायावाद के संदर्भ में पंत की महत्ता तथा पंत के संदर्भ में छायावाद की महत्ता पर चर्चा होती रहेगी। पंत पर चर्चा आरंभ करते हुए प्रो. इतु सिंह ने कहा कि पंत ने अध्यात्म को सामाजिक उपयोगिता की दृष्टि से देखा है। उन्होंने  गाँधी, मार्क्स और श्री अरविंद को जोड़ने का काम किया। प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि सुमित्रानंदन पंत के काव्य विकास के कई चरण हैं- छायावादी चरण, प्रगतिवादी चरण और अरविन्द के असर में अध्यात्मवादी चरण। पंत और छायावाद पर विचार करते हुए इनके देशज स्रोतों को खंगालना अधिक उचित होगा।

डॉ. गीता दूबे ने कहा कि आज प्रकृति के विनाश के दौर में पंत की रचनाओं का विशेष महत्व है। वह हमें प्रकृति से प्रेम करने की प्रेरणा देते हैं। वाराणसी के शोधार्थी श्री महेश कुमार ने कहा कि पंत का गद्य  सशक्त है। श्री मृत्युंजय श्रीवास्तव ने बताया कि पंत को अन्य छायावादी कवियों के समान महत्व देना चाहिए। उन्होंने स्त्री पर हो रहे अत्याचारों का अधिक स्पष्टता से विरोध किया। अध्यक्षीय वक्तव्य रखते हुए डा. शंभुनाथ ने कहा कि पंत ने मानव के नूतन मन की बात करते हुए ‘द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र’ का आह्वान किया। वे विश्वप्रेम और परिवर्तन के कवि हैं। एकता हेला, कल्याणी वि. वि., लिली शाह, कलकत्ता वि. वि., शिवप्रकाश दास, वर्द्धमान वि. वि., प्रियंका परमार, प्रेसीडेंसी वि. वि., सुषमा कुमारी, विद्यासागर वि. वि., अनुपमा, विश्वभारती वि. वि. और अमित कु. साव, काजी नजरुल वि. वि. ने शोध पत्र वाचन किया। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. मंजुरानी सिंह ने कहा कि पंत को केवल प्रकृति के सुकुमार कवि तक सीमित न रखकर उनका व्यापक मूल्यांकन करने की जरूरत है। आज यह आयोजन इस दृष्टि से निश्चित रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

इस अवसर पर डॉ. शंभुनाथ जी के काव्य संग्रह ‘ईश्वर का दुख’ से चयनित कविताओं पर मंजु श्रीवास्तव, डॉ. इतु सिंह, डॉ. शिप्रा मिश्रा, प्रणति ठाकुर, नमिता जैन, अमरजीत पण्डित, मनीषा गुप्ता, प्रिया श्रीवास्तव, सिपाली गुप्ता, राजेश साव, पंकज सिंह और पूजा गुप्ता दल, इबरार खान, कामना दीक्षित, मधु सिंह, तृषान्निता बनिक, सूर्य देव रॉय, प्रभात पाण्डेय, सपना खरवार, अदिति दूबे, अंजली यादव और ज्योति गोंड दल तथा सुषमा कुमारी, आदित्य तिवारी, प्रज्ञा झा, आशुतोष कुमार राउत, मधु साव, चंदन भगत, प्रगति दुबे, संजना जायसवाल, कंचन भगत, कुसुम भगत और इशरत जहां दल ने कोलाज प्रस्तुत किया।इस अवसर पर वरिष्ठ कवि राज्यवर्धन, मंजु श्रीवास्तव, सुनील कुमार शर्मा, यतीश कुमार, संजय जायसवाल और आनंद गुप्ता ने काव्य पाठ किया । सुरेश शॉ, पूजा गोंड, काजल रविदास ने शंभुनाथ जी की कविताओं पर काव्य आवृत्ति किया। इसके अलावा ‘मतदान हमारा अधिकार है’ नुक्कड़ नाटक का मंचन हुआ। इसमें रमाशंकर सिंह, विशाल कुमार साव, राजेश सिंह, सुशील सिंह, प्रभाकर साव ने हिस्सा लिया। इस आयोजन को सफल बनाने में सुमिता गुप्ता, राहुल गौंड़, ज्योति चौरसिया, अनुराधा भगत, स्वीटी महतो, सुजाता महतो, पूजा सिंह, विनोद यादव, अनिल शाह, विकास साव, संजय यादव, असित पाण्डेय, संजय दास और सौरभ भगत की सराहनीय भूमिका रही। इस अवसर पर रामनिवास द्विवेदी, सुनंदा रॉय चौधरी, अल्पना नायक, महेश जायसवाल, प्रभात मिश्रा, मनोज मिश्रा, मंटू दास, रेशमी पांडा मुखर्जी सहित सैकड़ों साहित्यप्रेमी मौजूद थे। कार्यक्रम का सफल संचालन आदित्य गिरि, इबरार खान, मधु सिंह, सूर्य देव रॉय और रूपेश कुमार यादव ने किया। विमला पोद्दार ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

त्रिपुरा की जनजातीय भाषा कॉकबरक के उपन्यास “पहाड़ की गोद” पर परिचर्चा

कोलकाता । गत 23 मई 2025 की संध्या को भारतीय भाषा परिषद में साहित्यिकी संस्था द्वारा आयोजित मासिक गोष्ठी में डॉ सुधन्य देव बर्मा द्वारा लिखित उपन्यास ” हाचुक खुरिवो” जिसका हिंदी अनुवाद प्रो. डॉ चन्द्रकला पांडेय एवं मिलन रानी जमातिया ने  “पहाड़ की गोद में” नाम से किया पर सम्यक चर्चा हुई। इस परिचर्चा से वहाँ के आर्थिक व सामाजिक जीवन के बारे में जानने का अवसर मिला। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ सुषमा हंस जी ने बताया कि उपन्यास का नायक नरेंद्र साम्यवादी व समाजवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है।  शिक्षिका कविता कोठारी ने अतिथि वक्ता डॉ पूजा शुक्ला जी की अनुपस्थिति में पुस्तक पर उनके समीक्षात्मक आलेख का प्रभावपूर्ण शैली में वाचन किया। उन्होंने कहा कि चार खण्डों के इस उपन्यास में लेखक ने वहाँ की मुख्य समस्याओं जैसे शिक्षा की कठिन राह, शराबखोरी की समस्या , शरणार्थी समस्या तथा त्रिपुरा की अन्य जनजातीय समस्याओं का गहराई से विश्लेषण किया है। इस उपन्यास में जनजातीय समाज व बंगाली समाज के मध्य अंतर का विशद वर्णन एवं परस्पर प्रभाव को विभिन्न घटनाक्रमों के माध्यम से उकेरा गया है।

डॉ गीता दूबे जी ने परिचर्चा को विस्तार देते हुए कहा कि   ‘पहाड़ की गोद  में’ उपन्यास का नायक नरेंद्र कोई साधारण नायक नहीं है। वह अत्यंत संघर्षशील व प्रगतिशील है । वह अभावग्रस्त लोगों के साथ रह कर पूरे समाज को ही बदल डालना चाहता है । उन्होंने कहा कि विकास की आँधी बदलाव के साथ बहुत सी धूल -मिट्टी भी लेकर आती है ,उसको साफ करने का हौसला होना भी जरूरी है। सिर्फ फैशन के बदल जाने से विकास नहीं आता।उपन्यास में कहीं भी उलझाव नहीं है।

डॉ चन्द्रकला पांडेय जी ने पूर्वोत्तर भारत के अपने हिन्दी अभियान के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि पहले वहाँ हिन्दी का कोई अस्तित्व ही नहीं था । अब उनके तथा उनकी सहयोगी शिक्षिका मिलन रानी जमातिया जी के सामूहिक प्रयासों से वहाँ के बाइस कॉलेजों ने तथा लगभग सभी स्कूलों ने हिन्दी को अपना लिया है। इन सबके लिए पहले उन्होंने वहाँ की मूलभाषा कॉकबरक सीखी तथा वहाँ की संस्कृति को आत्मसात किया। डॉ चन्द्रकला ने कुछ अनुवादित कविताएँ भी सुनायीं । उन्होंने अपने उद्बोधन  में इस बात पर जोर दिया कि हमारी संस्कृति, संपूर्ण भारतीय संस्कृति है। इसको समग्रता में समझने और स्वीकार करने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षा डॉ मंजू रानी गुप्ता ने मूल पुस्तक के अनुवाद की तारीफ करते हुए  हुए पूजा शुक्ला को उद्धृत करते हुए कहा कि अनुवाद उतनी ही जटिल प्रक्रिया है जितना इत्र को एक शीशी से दूसरी शीशी में डालना। क्योंकि लाख सावधानी बरतने के बाद भी इत्र का कुछ न कुछ भाग उड़ ही जाता है, लेकिन यहाँ ऐसा नहीं हुआ है।  विद्या भण्डारी जी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।रिपोर्टिंग मीतू कानोड़िया ने किया और कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

 

एकमत से बढ़ जाता प्यार :अर्चना संस्था की काव्य गोष्ठी सम्पन्न

कोलकाता । साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था अर्चना द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी में सदस्यों ने मौलिक कविताओं, गीत, कुंडलियां, मुक्तक और हाइकु आदि विभिन्न सृजनात्मक रचनाओं द्वारा चुनावी माहौल में अपनी रचनाओं की प्रस्तुति दी।चुनाव पर सुशीला चनानी ने हाइकु सुनाए -कहीं तलाक/कहीं है गंठजोड़ /चुनावी -तोड!,  गाली  का राग/गा  रहे नेतागण /चुनावी फाग!, स्याही का नुक्ता/उंगली पर मुक्ता/पलटें तख्ता और छंद मुक्त कविता ‘कलाकार’ सुनाई जो बहुत पसंद किए गए। मृदुला कोठारी ने लाइब्रेरी की अलमारी में किताबें पड़ी पड़ी सोती हैं /सुबह से इंतजार करती पाठकों का सांझ पड़े उदास होकर रोती हैं,  मीठे मीठे कितने रिश्ते/देते हो पहले भगवान/धीरे-धीरे दूर हो करते/बोलो क्यों भोले भगवान , शशि कंकानी कहती हैं लक्ष्य पर अपने डटे रहो , बाधाओं से लड़ते रहो ।।/वो कौन हैं? जो तरह -तरह के स्वप्न मुझे दिखाता ।। मीना दूगड़ ने अपनी रचना भावों बिन नहीं होती ज्यों शब्दों की औकात।/ना कागज की उपयोगिता ना कलम से मुलाकात।, मुस्कुराहट की आहट/दूर भगाती घबराहट।, हिम्मत चोरड़़िया प्रज्ञा ने मनहरण घनाक्षरी-

सबसे है दवा बड़ी, मानो जादू की ये छड़ी।और गीत-पुकारती हमें धरा,/रखो मुझे हरा-हरा।कुण्डलिया- जीवन की इस साँझ में, मात-पिता लाचार।।सुनाकर अपनी रचनात्मक प्रतिभा का परिचय दिया। उषा श्राफ ने वृक्ष पर फूल खिलते रहे कोई मुझे बता दें उसका पता सुनाई, डॉ शिप्रा मिश्रा  ने चिरइया एक चिरइया गाँव में आई विस्मित, चकित, अचंभित/नन्हीं आँखों से देखे दुनियाहोकर खूब सशंकित और अकिला फुआअब उनकीकोई जरूरत नहीं/पड़ी रहती हैं/एक कोने में/अपनी खटारा मशीन लेकर  कविता के माध्यम से वृद्धों की स्थिति पर प्रकाश डाला।  प्रसन्न चोपड़ा ने अंदर फूल न खिले  हो तो  मधुमास क्या।/भीतर अंधेरा है तो बाहर प्रकाश क्या।सुनाया तो  रीता चन्दा पात्रा ने मैं ख्वाबो में जीना चाहती हूं । ख्वाबो के रहगुज़र में खो जाना चाहती हूं।अपनी रचना सुनाई। इंदू चांडक ने मत में ही है तलवार सी धार/मत में ही छिपी है जीत और हार/एकमत से बढ़ जाता प्यार, बहुमत से बनती सरकार/ कदम कदम मिल साथ चलो भारत माँ के लाडलो, संगीता चौधरी ने दोहा – भावों की बगिया मिली, शब्द खिले भरमार ।/माली सा पोषित करे, प्रभु तेरा उपकार।।/इस रात की सुबह होगी या नहीं /पल-पल मौत की ओर बढ़ रहे हैं सुना कर आशंका जताई है। गोष्ठी का संचालन किया इंदू चांडक ने और धन्यवाद दिया मृदुला कोठारी ने । जूम पर हुए इस कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

भवानीपुर कॉलेज में इंटर कॉलेज प्रथम यूथ कॉन्क्लेव 24 संपन्न

कोलकाता । भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज परिसर के जुबली सभागार में बीईएससी यूथ कॉन्क्लेव का पहला संस्करण आयोजित किया गया । इस छात्र सम्मेलन ने युवा मस्तिष्क को सम्मानित निर्णायकों और अतिथि वक्ताओं के सामने अपनी बौद्धिक राय प्रस्तुत करने के लिए एक मंच प्रदान किया। सम्मेलन एक अंतर-कॉलेज कार्यक्रम था जहां तीन अलग-अलग  पर छात्रों ने पेपर प्रस्तुतियां और तकनीकी सत्र आयोजित किए । दर्शकों में छात्र मॉडरेटर, पेपर प्रस्तुतकर्ता और अन्य कॉलेज संकाय के सदस्य शामिल रहे। 10 मई 2024 को सुबह दस  बजे से शुरू हुए उद्घाटन समारोह में वाणिज्य विभाग (प्रभात) की समन्वयक प्रो मीनाक्षी  चतुर्वेदी ने कार्यक्रम के उद्देश्यों का परिचय दिया। बाद में, रेक्टर और छात्र मामलों के डीन, प्रो दिलीप शाह ने सम्मेलन में संकाय सदस्यों और सम्मानित अतिथि वक्ताओं की उपस्थिति को सम्मान देते हुए अपने वक्तव्य में कहा, “जब युवा वर्ग युवाओं से जुड़ते हैं, तो प्रभाव और पहुँच अधिक प्रभावशाली होता है।” उद्घाटन  सत्र में सम्मानित अतिथि  संजीब संघी , इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के ईआईआरसी और साथ ही “द डिजिटल प्रोफेशनल” के लेखक और सम्मानित अतिथि  अश्विनी बजाज की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम की आयोजक सोफिया परवीन और अभिषेक शॉ के साथ सभी अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया । बाद में, संयोजक सोफिया परवीन ने एक भावपूर्ण वक्तव्य देते हुए घोषणा की कि यह इस सम्मेलन का पहला संस्करण है जिसे भविष्य में कई महत्वपूर्ण संस्करणों के साथ जारी रखा जाएगा।  कॉन्क्लेव के प्रथम सत्र में महत्त्वपूर्ण आलेखों की प्रस्तुतियां दी गई। जिसका विषय “उद्यमिता: युवा मस्तिष्क की उन्नति के लिए मार्ग”, इसकी निर्णायक श्रेयसी घोष थीं। इस विषय पर तीन टीमों ने भाग लिया। तीन उप-विषय  “युवाओं के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देने में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका”; “युवा और व्यवसाय: विकसित भारत के लिए आगे क्या है” और “भारत में उद्यमिता के उछाल पर एक व्यापक विश्लेषण” विषय रहे। सभी प्रतिभागियों ने अपने उप-विषयों पर आंकड़ों के साथ दर्शकों के सामने आंकड़ों और चित्रात्मक प्रतिनिधित्व के रूप में अपने विचार स्पष्ट किए।ये पेपर प्रस्तुतियां सुबह 11:30 बजे शुरू हुई।इसके बाद तकनीकी सत्र रखा गया। पैनलिस्टों में से पहले निपुण कोचर थे, ‘प्लानमायड’ और शार्क टैंक के संस्थापक और दूसरी पैनलिस्ट सुश्री ऐश्वर्या बिस्वास थीं, जो जैन ग्लोबल, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और फैशन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, न्यूयॉर्क से अतिरिक्त डिप्लोमा के साथ; शार्क टैंक इंडिया के उद्घाटन सत्र में कोलकाता की एकमात्र महिला उद्यमी थीं। इस सत्र के प्रतिनिधि मयंक शर्मा, बी.कॉम द्वितीय वर्ष के छात्र रहे।

सत्र में “शार्क टैंक इंडिया ने युवाओं में उद्यमिता को कैसे प्रभावित किया”, “बी2सी बिजनेस कैसे बनाया जाए”, “बिजनेस और स्टार्ट-अप के बीच प्रमुख अंतर”, और “जेनजेड का स्टार्ट-अप की ओर अधिक झुकाव होने के कारण” आदि विषयों पर चर्चा हुई। सत्र के समापन पर प्रो दिलीप शाह ने  छात्रों को आगे आने और अपना उद्यम शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया।  दूसरे आलेखों की प्रस्तुतियां दोपहर करीब 12:30 बजे से शुरू हुई। “जेनज़ेड पर संस्कृति का प्रभाव” विषय पर, जिसमें भाग लेने वाली चार टीमें थीं। इस सत्र की निर्णायक श्रीमती चंपा श्रीनिवासन थीं।  प्रतिभागियों ने अपने पेपर प्रस्तुत करने के लिए जिन उप-विषयों को चुना, वे थे “साड़ियों से परे: घूंघट से स्नातक तक”; “जेनज़ेड पुराने मानकों से अनबाउंड”; “जेनरेशन जेड को समझना: सांस्कृतिक और व्यवहारिक रुझान”; और “लव्स लेबर लॉस्ट: जेन जेड का क्रूसेड टू नॉर्मलाइज एलजीबीटीक्यूआईए और इन इंडियनसंस्कृति”।

तकनीकी सत्र 2 में ”जलवायु परिवर्तन और युवा”  विषय था। सत्र में पर्यावरणविद शीतल बविशी, प्लास्टिक विरोध की कट्टर समर्थक एती बजाज और  गारबेज फ्री इंडिया में मुख्य रणनीति और साझेदारी अधिकारी अरुंधति सेन जैसे सम्मानित पैनल सदस्य उपस्थित थे जिनका छात्रों ने अभिनंदन किया। तकनीकी सत्र 2 के छात्र मॉडरेटर अनिकेत दासगुप्ता थे, जो बी.कॉम द्वितीय वर्ष के छात्र और एक्सप्रेशंस कलेक्टिव रिपोर्टिंग वर्टिकल के प्रतिनिधि थे। इस सत्र की मुख्य चर्चा कार्बन पदचिह्न को कम करने के तरीके और अपशिष्ट उत्पादन के लिए जनसंचार माध्यम कैसे जिम्मेदार है, इस पर चर्चा हुई। मॉडरेटर द्वारा उठाए गए प्रश्नों में से एक यह था कि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जेनरेशन जेड कौन जिम्मेदार है, जिस पर पैनलिस्टों ने युवाओं को शाकाहार अपनाने की सलाह दी क्योंकि पशु पालन प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है, इंटरनेट पर कम सामग्री का उपभोग करें, प्रचार करके पानी बचाएं। बाल्टीस्नान करें और शून्य अपशिष्ट जीवनशैली बनाए रखें।उन्होंने सुझाव दिया कि परिवर्तन घर से शुरू होता है, इस प्रकार खुद को बदलना दुनिया को बदलने के लिए पहला कदम है जो श्रोताओं के लिए आंखें खोलने वाला था। दिन की अंतिम पेपर प्रस्तुति अपराह्न 3:30 बजे शुरू हुई। “युवा और जलवायु परिवर्तन” विषय पर, जिसमें 5 प्रतिभागी टीमें थीं और इसका मूल्यांकन सुश्री कथकली बंद्योपाध्याय ने किया था। प्रस्तुतकर्ताओं ने अपने द्वारा प्रस्तुत 5 उप-विषयों में जलवायु परिवर्तन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला, अर्थात् “आग पर भविष्य: जलवायु परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति पर भारतीय युवाओं की धारणा”; “समुद्री प्रदूषण की संभावनाओं पर विशेष जोर देने के साथ एसडीपी और जलवायु परिवर्तन कैसे परस्पर जुड़े हुए हैं”; “युवा और जलवायु परिवर्तन”; “जलवायु परिवर्तन और युवा”; और “युवा संघर्ष जलवायु आपातकाल”।

आखिरी सत्र, तकनीकी सत्र 3, “जेनजेड पर संस्कृति का प्रभाव” विषय पर पेपर प्रस्तुतियों के बाद शुरू हुआ, वक्ताओं के साथ कला, खेल विपणन और हथकरघा खुदरा क्षेत्र में काम करने वाली उद्यमी मालविका बनर्जी और वरिष्ठ पत्रकार ताजा टीवी के डायरेक्टर  विश्वंभर नेवर थे। पैनल चर्चा के लिए छात्र मॉडरेटर बीएससी अर्थशास्त्र द्वितीय वर्ष की छात्रा प्रियंका बरडिया थीं। सत्र में समाचार पत्रों और दुनिया में सांस्कृतिक परिवर्तनों में उनके योगदान के बारे में बात की गई। पैनलिस्टों ने बताया कि कैसे रोजाना अखबार पढ़ने से हमें सुसंस्कृत व्यक्ति बनने में मदद मिलती है, साथ ही यह हमें केवल जागरूक व्यक्ति के बजाय सूचित व्यक्ति बनाता है और अखबार का कोई विकल्प नहीं है। जब सवाल किया गया, तो पैनलिस्टों ने बताया कि आज व्यक्तियों में जिज्ञासा की कमी है जो कि आज के युवा दिमागों में देखी जाने वाली नवीनतम प्रवृत्ति है। श्री नेवर ने युवाओं को दुनिया के बारे में हर तरह की जानकारी के लिए अपनी खिड़कियाँ खोलने का भी सुझाव दिया। तकनीकी सत्र 3 का समापन के बाद प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी ने सत्र के वक्ताओं को सम्मानित और धन्यवाद दिया। शाम 5:00 बजे, पुरस्कार वितरण समारोह में सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतकर्ताओं, सर्वश्रेष्ठ आलेखों के साथ-साथ उपविजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए गए। ”उद्यमिता: युवा मस्तिष्क की उन्नति के लिए मार्ग” विषय के लिए; सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतकर्ता अरका दास को उनके पेपर “युवा और व्यवसाय: विकसित भारत के लिए आगे क्या है” के लिए मिला, जबकि नोमिक टांटिया के पेपर “भारत में उद्यमिता के उछाल पर एक व्यापक विश्लेषण” को पुरस्कार मिला। सर्वोत्तम पेपर पुरस्कार.”जेनजेड पर संस्कृति का प्रभाव” विषय पर स्तुति अरोरा और वर्षा साहा को उनके पेपर “लव्स लेबर लॉस्ट: जेन जेड्स क्रूसेड टू नॉर्मलाइज एलजीबीटीक्यूआईए+ इन इंडियन कल्चर” के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतकर्ता के रूप में चुना गया था; और सबसे अच्छा पेपर शैका गुहा मजूमदार का “जेनजेड अनबाउंड बाय ओल्ड स्टैंडर्ड्स” था। “जलवायु परिवर्तन और युवा” के तीसरे और अंतिम विषय में अभिनव दास अपने पेपर “युवा और जलवायु परिवर्तन” के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतकर्ता थे, जबकि अभिषेक शॉ अपने पेपर “कैसे एसडीपी और जलवायु परिवर्तन हैं” के लिए उसी श्रेणी में उपविजेता बने जो समुद्री प्रदूषण की संभावनाओं पर विशेष जोर देने के साथ परस्पर जुड़ा हुआ “।अंत में, सर्वश्रेष्ठ पेपर का पुरस्कार अक्षया वेंकटेश्वरन को उनके पेपर “फ्यूचर ऑन फायर: परसेप्शन ऑफ इंडियन यूथ ऑन द फ्रंटलाइन ऑफ क्लाइमेट चेंज” के लिए दिया गया।

अंत में संयोजक सोफिया परवीन और सह-संयोजक अभिषेक शॉ ने यूथ एनक्लेव की अवधारणा को जीवन में लाने के लिए बीईएससी के प्रति अपना आभार किया । कॉलेज अपने छात्रों के ज्ञान को बढ़ावा देने और बढ़ाने के लिए इस तरह के आयोजनों की प्रतीक्षा करता है। रिपोर्टर मौबानी मैती और कासिस शॉ एवं फ़ोटोग्राफ़र सुवम गुहा और सानिका शॉ रहे। जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।