Sunday, June 29, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 99

नहीं रहीं जयपुरिया कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. रेखा सिंह

कोलकाता । जयपुरिया कॉलेज के हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. रेखा सिंह ने तकरीबन डेढ़ साल तक कैंसर का साहस के साथ मुकाबला करते हुए 25 जून 2023 को तकरीबन साढ़े तीन बजे अंतिम सांस ली।
1993 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद तकरीबन 26-27 सालों से जयपुरिया कॉलेज में अध्यापन कर रहीं थीं। छात्र जीवन से ही राजनीति में अत्यंत सक्रिय थीं और छात्र यूनियन की महासचिव के रूप कार्य किया था। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सक्रिय सदस्य के रूप में जोड़ासांकू से 2006 का एसेंबली चुनाव भी लड़ा था। दिवंगत रेखा सिंह एक लोकप्रिय शिक्षिका थीं और अपने विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा स्तंभ थीं। साहस, निर्भीकता और बेबाकी की जीवंत मिसाल रेखा सिंह का इस तरह असमय चले जाना शिक्षा जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। हजारों विद्यार्थियों के हृदय में प्रेरक और स्नेहिल शिक्षक के रूप में उनकी छाप हमेशा बनी रहेगी।
वह आजीवन वाम राजनीति की समर्थक रहीं और हर अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करती हैं। कोलकाता का साहित्य – सांस्कृतिक जगत उन्हें खोकर शोक संतप्त है और अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करता है।

संस्कृतिकर्मी-रंगकर्मी श्रीप्रकाश गुप्ता का आकस्मिक निधन

कोलकाता । कोलकाता के चर्चित संस्कृतिकर्मी-रंगकर्मी श्रीप्रकाश गुप्ता के आकस्मिक निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर छा गई।17 जून की आधी रात को ह्रदयाघात के कारण उनकी मृत्यु हो गई।अगले दिन उनकी अंत्येष्टि संपन्न हुई जिसमें हजारों लोग शामिल थे ।हुगली कोन्नगर के निवासी श्रीप्रकाश गुप्ता का सृजनात्मक क्षेत्र कोलकाता तक फैला था।सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के वरिष्ठ सदस्य होने के साथ वे प्रगति शोध संस्थान के संस्थापक थे ।वे कोलकाता और हावड़ा की कई संस्थाओं में सक्रिय थे।स्टडी मिशन के जरिए वे शिक्षा के क्षेत्र में काफी सक्रिय थे।रंगकर्मी श्रीप्रकाश शुक्ल ने 21 मई को ‘फौज के हवाले शहर’ में अपने आखिरी नाटक में शानदार अभिनय किया।उन्होंने दर्जनों नाटकों एवं कई फिल्मों में अभिनय किया है।उनकी नाटक पर तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।वे 8 जुलाई 2023 को भारतीय भाषा परिषद में ‘समकालीन हिंदी कथा साहित्य में किन्नर विमर्श’ विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं पुस्तक प्रकाशन की योजना की तैयारी में लगे थे।श्रीप्रकाश गुप्ता अपने पीछे मां,भाई सत्यप्रकाश पत्नी पुष्पा गुप्ता , पुत्री शालिनी एवं प्राची और पुत्र साहिल को छोड़ गए।प्रसिद्ध आलोचक शंभुनाथ ने उनकी मृत्यु को पारिवारिक क्षति के साथ एक बड़ी सामाजिक क्षति माना।उनके आकस्मिक निधन पर राज्यभर से सैकड़ों,विद्वानों,कलाकारों एवं लेखकों ने शोक प्रकट किया।

ये वक्त जा रहा है….सुरेंद्र प्रताप सिंह को याद करते हुए

सुधा अरोड़ा

वरिष्ठ साहित्यकार सुधा अरोड़ा का हिन्दी साहित्य जगत का महत्वपूर्ण चेहरा हैं । इनका जन्म 1946  विभाजन पूर्व लाहौर में हुआ । कहानी, आलेख, स्तंभ-लेखन, रेडियो, दूरदर्शन, टी.वी. धारावाहिक, फ़िल्म पटकथा लेखन  द्वारा अपनी सृजनात्मकता का परिचय देते हुए , वे सदैव अपने सामाजिक सरोकारों को लेकर मुखर रही हैं । स्त्री विमर्श को नया आयाम देते हुए महिलाओं से जुड़े प्रत्येक मुद्दे पर वे लिखती हैं और सामाजिक तथा महिला संगठनों  के मंच से उन मुद्दों को अपनी आवाज़ भी देती हैं ।

वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र प्रताप सिंह, हिन्दी पत्रकारिता को धार देने वाले सुरेन्द्र प्रताप सिंह, हिन्दी टीवी पत्रकारिता के प्रति युवाओं में आकर्षण लाने वाले सुरेन्द्र प्रताप सिंह.. पत्रकारिता का स्तम्भ हैं । उनको गये 26 साल हो गये । अपने चाहने वालों के एस. पी. आज भी हर पत्रकार के लिए आदर्श हैं…ये थी खबरें आज तक…ये पँक्तियाँ आज भी कानों में गूंजती हैं । आज 27 जून को पुण्यतिथि है और शुभजिता आभार व्यक्त करती है, वरिष्ठ कथाकार, साहित्यकार सुधा अरोड़ा जी का जिन्होंने यह महत्वपूर्ण आलेख हमें प्रकाशित करने का अवसर दिया… सुरेन्द्र प्रताप सिंह एवं सुधा अरोड़ा जी, दोनों ही कलकत्ता विश्वविद्यालय के विद्यार्थी रहे हैं और यह संस्मरण एक थाती है पत्रकारों के लिए भी, पत्रकारिता जगत में प्रवेश के इच्छुक युवाओं के लिए भी । एक बार फिर लेखिका का आभार व्यक्त करते हुए आज सुरेन्द्र प्रताप सिंह की पुण्यतिथि पर यह आलेख श्रद्धांजलि स्वरूप आपके लिए….

सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया

सम्पादक, शुभजिता

——————————————————————————————

जिंदगी के मकसद को लेकर कृष्णचन्दर ने अपने आप से सवाल पूछा था- ‘अपनी जिंदगी में तुमने क्या किया ? किसी दोस्त को नेक सलाह दी ? किसी से सच्चे दिल से प्यार किया? जहॉं अंधेरा था, वहां रोशनी की किरण ले गए ? जितनी देर तक जिए, इस जीने का मतलब क्या था…..?’ इन सारे सवालों का उत्तर जिस शख़्स ने जिंदगी की
आखिरी सांस तक एक सकारात्मक ’हां’ में दिया, वह शख़्स था सुरेंद्र प्रताप सिंह ।

सुरेंद्र प्रताप सिंह यानी एस पी सिंह ! इतनी कम उम्र की जिंदगी में उसके जीने का एक खास मकसद था। उस मकसद से दाएं-बाएं वह कभी नहीं चला। ’महानगर’ का स्तंभ ’आकलन’ हो या राजनेताओं से साक्षात्कार — अर्जुन के लक्ष्य की तरह वह मछली की आंख को ही निशाना बनाता रहा। वह जिसके न होने की खबर ’आज तक’ में आई सारी खबरों से ज्यादा दर्दनाक और भयावह खबर थी जिसे संजय पुगलिया ने भर्राए गले और सूनी आंखों से ’आज तक’ के करोड़ो दर्शकों तक पहुंचाया। इससे पहले तक कहीं यह उम्मीद बनी हुई थी कि अपने जीवट और इच्छा शक्ति के बूते पर वह यह लड़ाई भी जीत लेगा।

सुरेंद्र प्रताप को याद करते हुए कलकत्ता विश्वविद्यालय के मद्धिम सी रोशनी वाले अंधेरे गलियारे स्मृति में ताज़ा हो रहे हैं। अहिंदी भाषी प्रदेश का बेहद नामी हिंदी विभाग ! तीस (अब पचपन) साल पहले 1967 में जहां से मैंने एम.ए. किया ! मेरे अगले बैच 68 में शंभुनाथ और सुरेंद्र प्रताप थे। खादी के कुरते झोले, घिसी हुई पैंट के साथ हवाई चप्पल चटकाते हुए हिंदी विभाग के छात्र या तो छायावादी प्रेम कविताएं लिखते थे या राजनीति विभाग के मार्क्सवादी युवा नेता कमलेन्दु गांगुली के इर्द-गिर्द घूमते थे। सुरेंद्र प्रताप दूसरी श्रेणी में आते थे।
कलकत्ता वि.वि. के हिंदी विभाग की यह असाधारण खूबी थी कि वहां के छात्र बरसों बाद भी आपस में मिलते तो अंतरंगता की एक डोर जुड़ी हुई महसूस करते थे।

अच्छा लेखक -पत्रकार- कवि एक बहुत अच्छा और नेक इंसान भी हो, यह एक दुर्लभ कॉम्बीनेशन है। सुरेंद्र प्रताप एक सफल पत्रकार बने पर उसके साथ-साथ एक ईमानदार, साफ गो और संवेदनशील इंसान भी बने रहे। हालांकि उनकी ’लुक’ हमेशा एक अक्खड़ और फक्कड़ इंसान की थी जो अक्सर कम बोलता था पर साथ ही मुंहफट भी था और कई बार बड़ी चुभती हुई बात कहकर हर्ट भी कर देता था।

1983 या 84 की बात है — जब सुरेंद्र प्रताप अपने ‘रविवार‘ के सहयोगियों के बीच एस.पी. के नाम से जाने जाते थे। हमें बंबई से कलकत्ता गए साल भर भी नहीं हुआ था, एसपी ने कमलेश्वर की कथायात्रा को लेकर हुए एक विवाद पर ‘रविवार‘ की आमुख कथा के लिए बहुत सारी सामग्री जुटाई थी। उसे लेकर मैं जब एसपी से मिली तो बोले- ‘विश्वास नहीं होता, आप वही सुधा अरोड़ा हैं जो एम.ए. की कक्षा में बैठकर कहानियां लिखती थीं।‘ बात का व्यंग्य मेरी समझ में आ रहा था। मेरा लेखन कुछ सालों से बाधित था।
मैंने कहा – ‘घर में एक ही आदमी कहानियां लिख सकता है।‘
शिशिर गुप्ता (मोहनलाल गुप्त उर्फ भैयाजी बनारसी के छोटे पुत्र) ने मजाक किया- ‘कथाकार से शादी करने का यही हश्र होता है।’
एसपी ने ठहाका लगाया ‘इसीलिए मैंने शादी नहीं की।‘
मैंने अपनी पुरातनपंथी सोच के तहत कहा-‘आपको शादी कर लेनी चाहिए। होमफ्रंट अपने आप संभल जाएगा, आप सिर्फ ‘रविवार‘ संभालिए।‘
एसपी चश्मे के नीचे से झांकती शरारती आंखों से बोले – पर ‘घर’ चलाना तो पड़ेगा । शादी के बाद सारा स्ट्रगल धरा रह जाएगा। पत्रकार तो सारी जिंदगी स्ट्रगल करता है।‘

और सचमुच एसपी ने जिस समर्पित भाव से ‘रविवार‘ निकाला, उसने पत्रकारिता का रुख ही मोड़ दिया। उन दिनों ‘रेणु का भारत‘ से लेकर ‘रविवार‘ की अधिकांश आमुख कथाएं विस्फोटक होती थीं। एसपी ने राजनीति में लड़ाकू और खोजी पत्रकारिता का श्रीगणेश किया। हम लोगों को ‘रविवार‘ से अक्सर शिकायत रहती कि उसने अच्छा साहित्य छापने के बावजूद साहित्य को हाशिए पर डाल रखा है। लेकिन एसपी आश्वस्त थे कि हिंदी के पाठक की किस्सा-कहानी से ज्यादा दिलचस्पी राजनीति के गलियारों की सच्ची खबरों में है। ’रविवार‘ लोकप्रियता के चरम पर था तो एसपी ने उसे छोड़ा, फिर नभाटा से जुड़ गए, पर संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ा। न कभी समझौता किया, न दल बदला। राजनीति के गलियारे में घुसकर भी अपने लिए सुविधाएं नहीं जुटाई। शायद इसीलिए ‘आज तक‘ में उनकी सीधी-सादी, आम आदमी की भाषा ने करोड़ो हिंदी भाषियों को एक सूत्र में जोड़ दिया।

जिन दिनों जी टीवी की खबरों और दूरदर्शन के फिल्मी गीतों के कार्यक्रमों में संचालक हिंदी की जगह एक नई ‘हिंग्रेजी‘ या ‘हिंग्लिश‘ बड़ी शान से इस्तेमाल कर रहे थे और हिंदी वाले लुटे-पिटे अपनी भाषा के अपमान पर सामूहिक विलाप कर रहे थे, ‘आज तक‘ ने बोलचाल की हिंदी भाषा का नया मुहावरा गढ़ा।
एस पी के उस खास अंदाज के मुरीद बच्चे भी थे । ‘आज तक‘ की खबरें खत्म होने के साथ-साथ हमारे बेहद प्रिय वरिष्ठ रचनाकार डॉ धर्मवीर भारती के नाती अंशुमान को वह जाना- पहचाना जुमला अपनी तोतली जबान से दोहराते कई बार मैंने सुना – ‘ये थीं खबरें आज तक, इंतजार कीजिए कलतक।‘

मौत ने एसपी के संघर्ष पर, समर्पित भाव से, डूबकर काम करने के उसके तौर-तरीकों पर पूर्ण विराम लगा दिया। खबरों को ढूंढने -संवारने – सजाने प्रस्तुत करने के उनके जुनून ने उन्हें अपनी ओर झांकने का शायद मौका ही नहीं दिया।

राहुल देव ने कहा -‘शिखर पर पहुंचा हर आदमी अकेला होता है।‘ उसके आसपास भीड़ होती है पर उसके काम का तनाव, उसके व्यक्तिगत दुख को बांटने वाले कम होते जाते हैं।
हर बार किसी परिचित, नजदीकी मित्र की मौत मुझे नए सिरे से जिंदगी की अहमियत का क्रूर अहसास दिला जाती है कि वह, जो उसके पास नहीं रही लेकिन हमारे पास है, इससे पहले कि उस अदृश्य ताकत के पंजे हमें दबोचें, हम इस चार दिन की छोटी-सी जिंदगी में कुछ अर्थपूर्ण कर जाएं न कि जोड़-तोड़, दांव-पेंच, छल-प्रपंच, अपने
लिए सीढ़ियां बनाने और दूसरों की जड़ें काटने में इसे गंवा बैठें।

एसपी ने ठीक ही कहा था-‘जिंदगी तो अपनी रफ्तार से चलती ही रहती है।‘
चाहती हूं कि जिंदगी की तेज रफ्तार मौत के चिरंतन सत्य के न ढांपे और यह सबक देर तक हमारा साथ दे –

किसके लिए रुका है,
किसके लिए रुकेगा
करना है जो भी कर ले,
ये वक्त जा रहा है….. !!

(जनसत्ता : जुलाई 1997 को वामा स्तंभ में प्रकाशित)

वाजा महिला इकाई, कोलकाता द्वारा युवाओं को लेकर वेबिनार

युवाओं के सपने और उम्मीदें था विषय

कोलकाता । राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन महिला इकाई कोलकाता और नई पीढ़ी पत्रिका द्वारा समस्याओं के बीच युवाओं के सपने और उम्मीदें विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। अॉन-लाइन पर हुए इस वेबिनार में डॉ रेखा नारिवाल शिक्षा विभागाध्यक्ष, भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज, कोलकाता, रागिनी शर्मा प्रसाद अधिवक्ता, योग प्रशिक्षक, लेखिका उदयपुर, डॉ दीपाली सिंघी प्रिंसिपल, जे.डी बिरला इंस्टीट्यूट, कोलकाता, डॉ निधी गर्ग मनोविश्लेषक, भुवनेश्वर, ओडिशा ने विशिष्ट वक्ता के रूप में अपना वक्तव्य दिया।
कार्यक्रम के अध्यक्ष छपते छपते हिंदी दैनिक कोलकाता और पश्चिम बंगाल के हिंदी चैनल ताजा टीवी के डायरेक्टर वरिष्ठ संपादक विश्वंभर नेवर रहे। संचालन किया डॉ वसुंधरा मिश्र ने
कार्यक्रम का आरंभ करते हुए राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन इंडिया और नयी पीढ़ी के संस्थापक महासचिव शिवेन्द्र प्रकाश द्विवेदी ने संस्था के उद्देश्यों पर बात रखी। डॉ रेखा नारिवाल ने कहा कि आज भारत में 25 वर्ष के युवाओं की जनसंख्या लगभग 50 प्रतिशत है। महिला सशक्तिकरण और मानसिकता में बदलाव आया है। समाज में नाइट क्लब, ड्रग्स की ओर झुकाव अधिक हो रहा है। आज की समस्याओं में सशक्तीकरण, यौन संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त करते हुए युवाओं को भावनात्मक पोषण देने का सुझाव भी दिया। डॉ दीपाली सिंघी ने मूल रूप से युवाओं की समस्याओं पर अपनी बात रखी। अभिभावकों, शिक्षक, और बच्चों तीनों को इस पर विचार करना चाहिए। आज बच्चों को बिना किसी प्रयास से ही सब कुछ सहज ही मिल जाता है। कोर्पोरेट परिवेश के स्वरूप पर प्रकाश डाला। रागिनी शर्मा प्रसाद ने बच्चों में पनपते हुए अपराधिक मामलों पर चर्चा की। सृजनात्मकता और सकारात्मक दृष्टि अपनाने के साथ साथ अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानने की आवश्यकता है। डॉ निधी गर्ग ने बताया कि आज एक से पांच की संख्या में कोई न कोई युवा पीढ़ी मानसिक रोगी है जिसका परिणाम आत्महत्या, अकेलापन और खराब पारिवारिक वातावरण है। बच्चों पर 90प्रतिशत रिजल्ट लाने का दवाब है और वे तनाव तनावपूर्ण स्थिति में रहते हैं। संवाद खत्म हो गए हैं। प्रेम संबंध भी स्वस्थ नहीं हैं।
डॉ मंजूरानी गुप्ता ने प्रश्न पूछते हुए कहा कि शिक्षा में नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। डॉ सुषमा हंस ने उत्तर देते हुए बच्चों पर दवाब कम से कम देने की मांग की। उषा श्राफ, सुषमा त्रिपाठी, अंजू सेठिया, पूनम त्रिपाठी ने अपनी बात रखी। अध्यक्षीय वक्तव्य में विश्वंभर नेवर ने कहा कि विषय बहुत ही महत्वपूर्ण और समसामयिक है ।आज युवा भारत की गिनती में भारत आता है। यह विविधता का देश है। सरकार के पास युवाओं के लिए कोई योजना नहीं है। प्रशासन से इसकी मांग करना चाहिए जिससे युवाओं की प्रतिभा को सही दिशा मिले। आज लड़कियों का झुकाव भी केवल कोर्पोरेट में रुचि, सीए सीइओ बनने की ओर अधिक है। लड़कियों को अन्य विषय में भी शिक्षा लेनी चाहिए।
आज समाज के बदलते परिवेश में युवा पीढ़ी विभिन्न समस्याओं के बीच किस प्रकार अपने सपनों और उम्मीदों को लेकर चिंतित हैं और उन्हें किस प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है?, क्या वे अपने निर्णय स्वयं लेकर भी संतुष्ट नहीं हैं?,क्या माता पिता का दायित्व केवल आर्थिक मदद तक ही सीमित हो गया है?, क्या भारतीय मूल्यों और आदर्शों के अनुरूप युवाओं को सम्मान मिल रहा है?, युवाओं में अपराध और आत्महत्याओं के बढ़ने का क्या कारण है?, यौनाचार और बलात्कार और हत्या जैसे विषयों को मीडिया में यूट्यूब पर बार बार दिखाते रहते हैं, लुभावने शीर्षकों और मसालेदार चटपटे बयानों को घुमाते रहते हैं, जो ऊबाऊ हो जाते हैं। फिर उस खबर की अहमियत खोने लगती है सुनने वाली जनता दूसरी स्टोरी खोजने लगती है। विभिन्न समस्याओं के बीच युवाओं के सपने और उम्मीदें विषय पर संवाद होने की आवश्यकता को सभी वक्ताओं और सुधी श्रोताओं ने स्वागत किया। साहित्यिकी, अर्चना, भारत जैन महामंडल लेडिज विंग, शुभ सृजन आदि संस्थाओं की महत्वपूर्ण सदस्याओं की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन शिवेंद्र प्रकाश द्विवेदी और डॉ वसुंधरा मिश्र ने संचालन किया ।

भारतीय संस्कृति गुरु – शिष्य परंपरा पर आधारित दिव्य नृत्य संध्या 

कोलकाता । प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। गत 15 जून को कोलकाता के दर्शकों ने ज्ञान मंच सभागार में नृत्य माध्यम से एक दिव्य आध्यात्मिक शाम का आयोजन हुआ।
आचार्य अनुसूया घोष बनर्जी ने अपनी शिष्या श्रीमती संचयिता मुंशी साहा के साथ “एकात्म-सर्वोच्च आनंद की ओर एक यात्रा” शीर्षक से युगल नृत्य प्रस्तुति दी जो आज के युग में एक मिसाल है । कार्यक्रम के आरंभ में आदि शंकराचार्य द्वारा रचित काशी काल भैरव अष्टकम पर आधारित नृत्य से हुआ , इसके पश्चात प्रसिद्ध मराठी अभंग “मन मंदिरा” में साधक और साधना की भूमिका को दर्शाया गया। अगले श्रृंखला का नृत्य वर्णम चारुकेसी राग पर आधारित रहा जो जीवात्मा की परमात्मा के साथ विसर्जन की निरंतर भूमिका का वर्णन करता है। गुरु और शिष्य दोनों ने ही मंच पर अपनी उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन किया। इसके बाद त्यागराज कृति “नीदु चरणमुले” ने आचार्य अनुसूया घोष बनर्जी द्वारा आध्यात्मिक गहराई और दिव्यता के साथ सबरी की कहानी सुनाई। इस मनोहर संध्या की अंतिम प्रस्तुति पलानी थिलाना और टैगोर की “आनंद धारा” थी जो जीवन के शाश्वत प्रवाह को आगे बढ़ाती है।
इस नृत्य प्रस्तुति में श्री सुकुमार जी कुट्टी (गायन), मलय डे (मृदंगम), शाहरुख अहमद (तबला), विशाल जी (वायलिन), शेखर दा (बांसुरी), राजीव खान (नट्टुवंगम), देबज्योति (रवींद्र संगीत) ने संगीतमय सहयोग दिया। यह आयोजन नृत्यक्षेत्र एकेडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स द्वारा नृत्यभाष एकेडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट के सहयोग से किया गया था। कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

आईसीएआई के बोर्ड ऑफ स्टडीज (ऑपरेशंस) द्वारा सीए छात्रों हेतु राष्ट्रीय सम्मेलन

कोलकाता । ईस्टर्न इंडिया रिजनल काउंसिल (ईआईआरसी) और ईस्टर्न इंडिया चार्टर्ड अकाउंटेंट्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन (ईआईसीएएसए) द्वारा संयुक्त रूप से स्टूडेंट्स स्किल इनरिचमेंट बोर्ड, आईसीएआई के तत्वावधान में रिस्किल, रिसॉल्व और रिजॉइस ‘आरआरआर’ विषय पर सीए छात्रों के लिए कोलकाता के साइंस सिटी ऑडिटोरियम में 24 और 25 जून, को दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।

इस क्षेत्र में लंबे समय से सफलता का मुकाम हासिल करनेवाले वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में अपने अनुभवों को शेयर किया। जिसमें अफ्रीका और लद्दाख में विशेष सलाहकार मेड इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड डॉ. दीपक वोहरा, बोट के सीएमओ सीए अमन गुप्ता, प्रेरक वक्ता जया किशोरी, विश्व के सबसे कम उम्र के हेडमास्टर बाबर अली, सबसे कम उम्र में सीए बनने वाली सीए नंदिनी अग्रवाल ने अपने अनुभवों को साझा किया ।

आईसीएआई के उपाध्यक्ष सीए रणजीत कुमार अग्रवाल, सीए (डॉ.) देबाशीष मित्रा (पूर्व अध्यक्ष, आईसीएआई), सीए सुशील कुमार गोयल (कार्यक्रम निदेशक और परिषद सदस्य, आईसीएआई), सीए मंगेश किनारे (स्किल इनरिचमेंट बोर्ड, आईसीएआई के अध्यक्ष, केंद्रीय परिषद सदस्य), सीए दयानिवास शर्मा, सीए विशाल दोशी, सीए चरणजोत सिंह नंदा, सीए अभय कुमार छाजेड़, सीए देबायन पात्रा (आईसीएआई के पूर्वी भारत क्षेत्रीय परिषद, ईआईआरसी के अध्यक्ष), सीए संजीब सांघी (ईआईआरसी के ईआईसीएएसए के वाइस चेयरमैन) के साथ क्षेत्रीय परिषद के पदाधिकारियों और सदस्यों की टीम इस मौके पर मौजूद थी।

इस तरह के सम्मेलन के आयोजन ने देश भर के चार्टर्ड अकाउंटेंसी पाठ्यक्रम के छात्रों को सीए छात्रों के रूप में उनके हित के लिए मिलने और उनके बारे में चर्चा करने का अवसर प्रदान किया। इस मौके पर देशभर से आये पेपर प्रस्तुतकर्ताओं ने अपने पेपर प्रस्तुत किये। विशिष्ट क्षेत्रों के प्रसिद्ध वक्ताओं को लेकर उनके अबतक के अनुभवों को छात्रों के बीच साझा करने के लिए विशेष सत्र का आयोजन किया गया था। इसमें वक्ताओं ने विविध पेशेवर और प्रेरक विषयों पर बातें कर यहां मौजूद छात्रों का मार्ग प्रशस्त किया।

भारतीय भाषा परिषद में कवि पर्व के रूप में मनाई गई नागार्जुन जयंती 

कोलकाता । हिंदी के प्रसिद्ध कवि नागार्जुन की जयंती के अवसर पर भारतीय भाषा परिषद द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में वरिष्ठ और नए कवियों ने कविता पाठ किया और नागार्जुन की कविताओं पर कोलाज प्रस्तुत किया गया। यह दिन राष्ट्रीय स्तर पर कवि पर्व के रूप में मनाया जाता है। परिषद की अध्यक्ष डा. कुसुम खेमानी ने अपने संदेश में कहा कि नागार्जुन हिंदी और मैथिली के बीच एक सेतु की तरह हैं। उनकी स्मृति एक पावन पर्व है। श्रीमती विमला पोद्दार ने अतिथियों का स्वागत किया।
सबसे पहले आकस्मिक रूप से दिवंगत श्रीप्रकाश गुप्त को श्रद्धांजलि दी गई। प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि वे हिंदी अंचल के एक प्रमुख सांस्कृतिक व्यक्तित्व थे। वे प्रगति शोध संस्थान, सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन सहित कई संस्थाओं से जुड़े थे और हुगली में एक स्कूल स्टडी मिशन के प्रधान थे। उनका अचानक न होना हम सभी को काफी रिक्त कर गया है। डॉ. आशुतोष, रामनिवास द्विवेदी, राज्यवर्धन, प्रो. गीता दूबे, डा. राजेश मिश्र, मंजु श्रीवास्तव,विनोद यादव आदि ने इसे अपूरणीय क्षति बताते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।


आयोजन के अध्यक्ष डॉ. शंभुनाथ ने अंत में कहा कि नागार्जुन जून के ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जन्मे थे। उनकी कविताओं में जेठ का ताप और पूर्णिमा का सौंदर्य है। खासकर आपातकाल की स्मृति दिलाने वाले दिन उन्हें याद करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की महत्ता को समझना है।
कवि पर्व पर यशवंत सिंह, सेराज खान बातिश, राजेश मिश्रा, अभिज्ञात, निर्मला तोदी, मनोज मिश्र, शिप्रा मिश्रा, इबरार खान, सूर्य देव रॉय, सुषमा कुमारी, आशुतोष राउत, नमिता जैन, रेशमी सेन शर्मा, नैन्सी पाण्डेय, प्रिया श्रीवास्तव और राज घोष ने कविताओं का पाठ किया तथा सुषमा कुमारी,पूजा गौंड़, ज्योति चौरसिया, अदिति दूबे, कंचन भगत, मधु साव, नंदिनी साहा, आदित्य तिवारी, कुसुम भगत और संजना जायसवाल ने नागार्जुन की कविताओं पर कोलाज प्रस्तुत किया। निर्देशन मनीषा गुप्ता ने किया। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रो. संजय जायसवाल और धन्यवाद ज्ञापन घनश्याम सुगला ने किया।

पुस्तक समीक्षा – साहस और शौर्य की गाथा: दुर्गावती

समीक्षक: डॉ. सीमा शर्मा

इतिहास में जब साहसी, पराक्रमी और शिक्षित महिलाओं की चर्चा की जाती है तो हमारा ज्ञान कुछ नामों तक ही सीमित रह जाता है। जबकि ऐसा नहीं है कि हमारे इतिहास में कुछ गिनी-चुनी महिलाएँ ही अत्यंत महत्वपूर्ण रही हैं, बल्कि यह कि हमें अपनी उस विरासत का ज्ञान ठीक-ठीक नहीं है और हम अपने इतिहास की अनेक महिलाओं के विषय में जानते ही नहीं हैं जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में अद्भुत और अविश्वसनीय कार्य किए हैं और अभूतपूर्व सफलताएँ प्राप्त की हैं। ज्ञान के अभाव में हम कई बार इस तरह की बातें करते हैं कि हमारे इतिहास में महिलाओं को वह स्थान प्राप्त नहीं था जिसकी वे हकदार थी या कि वे अत्यंत पिछड़ी हुई थी और उनमें किसी तरह की क्षमताओं का विकास नहीं हो सका था।

ऐसी अनेक बातें हैं, किंतु जब हम ध्यानपूर्वक अपने इतिहास के पन्नों को टटोलते हैं और उन छुपे हुए साहसी स्त्री चरित्रों को खोजते हैं और बात करते हैं तो आश्चर्यचकित रह जाते हैं।

ऐसा ही एक ऐतिहासिक चरित्र है रानी दुर्गावती का, जिन्होंने अपने समय में पचास से अधिक युद्ध लड़े, जिनसे अकबर को भी भय था क्योंकि रानी दुर्गावती की प्रसिद्धि निरंतर बढ़ती ही जा रही थी  और वे कूटनीतिक दृष्टि से अत्यधिक चतुर थीं। अबुल फज़ल ने रानी दुर्गावती के विषय ‘अकबरनामा’ में लिखा है- “महारानी दुर्गावती गोंडवाना साम्राज्य की अति धीर, वीर, पराक्रमी, विश्व की प्रथम अद्भुत वीरांगना बहादुर महिला थी। उसके समान न पहले कभी हुई न बाद में कोई हो सकी।” रानी दुर्गावती की पहचान भारतीय जनमानस में इतनी व्यापक नहीं है जितनी की होनी चाहिए थी।

राजगोपाल सिंह वर्मा ऐसे लेखक हैं जो इतिहास के उन स्त्री चरित्रों को लेकर शोधपरक लेखन का रहे हैं जिन्हें इतिहास में उतना स्थान प्राप्त नहीं हुआ जितना होना चाहिए था। उनका सद्यः प्रकाशित जीवनीपरक ‘दुर्गावती: गढ़ा की पराक्रमी रानी’ उपन्यास ऐसा ही है। इससे पूर्व भी उनका एक जीवनी परक उपन्यास ‘बेगम समरू’ प्रकाशित हो चुका है जिसने साहित्य जगत में अपनी विशेष पहचान बनाई और इस कृति पर लेखक को कई महत्वपूर्ण सम्मान भी प्राप्त हुए हैं।

वर्मा साहित्य की अन्य गद्य विधाओं में भी बहुत अच्छा लिख रहे हैं लेकिन उनका इतिहासपरक लेखन मुझे अधिक महवपूर्ण दिखाई देता है क्योंकि इस तरह के लेखन का हिंदी साहित्य में अभाव है।

मध्य प्रदेश के गढ़ा की परक्रमी रानी दुर्गावती की कहानी अनोखी है। मात्र चालीस वर्ष के अल्प जीवन में उन्होंने जितने कीर्तिमान स्थापित किये वे अविश्वसनीय है। दुर्गावती का सम्पूर्ण जीवन प्रेरणास्पद है। उन्होंने ऐसे कई कार्य किए जो आज के समाज में भी किसी मिसाल से कम नहीं हैं फिर चाहे अंतर्जातीय विवाह हो या उनका राज्य कौशल। समीक्ष्य उपन्यास दुर्गावती अत्यंत पठनीय है क्योंकि यह इतिहास को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करता है जिससे पाठक को न केवल इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है वरन उसमें व्याप्त तथ्य आत्मगौरव का भाव भी उत्पन्न करते हैं।

उपन्यास: दुर्गावती: गढ़ा की पराक्रमी रानी
लेखक – राजगोपाल सिंह वर्मा
प्रकाशक- शतरंग प्रकाशन, लखनऊ
मूल्य -६५०  रुपये

-डॉ. सीमा शर्मा
L-235,शास्त्रीनगर ,मेरठ
पिन -250004  ( उ.प्र.)
मो  .9457034271
ई-मेल-  [email protected]

स्त्री पर तीन कविताएं

विद्या भंडारी

स्त्री -1

आज घर में सन्नाटा था
शीशे के सामने खङी रही देर तक।
शीशे ने कहा-
देख ले जी भर आज स्वयं को
छोङ दे चूल्हा-चौका ,रोटी,डस्टिंग
जी ले, जी भर।
क्यो दिया है तेरा नाम स्त्री
तू तो व्यक्ति है जीता-जागता।
देखो ना–
तुम्हारे भीतर जल रही है
साहस की लौ।

सच!
नहीं जीया तुमने जीवन
अपने लिए।
कहाँ था समय
शीशे में देखने का,
सोचने का।

शीशे से पलटना
नहीं था गंवारा।
शीशा भी चिपका रहा,
मै भी खङी रही
खङी रही
शीशे के सामने।

………

स्त्री-2

लङकी जब तब्दील
होती है किताबों की
जिंदगी से गृहिणी में,
आटा-दाल से
सम्बंध जोङ कर
बचत का हिसाब लगाना
साङी बांधना,
पल्लू सम्हालते हुए रोटी बेलना
चूडियों और पायल के
बंधनों से बंधना ।
नये सम्बंध और संबोधनों को
दिनचर्या का हिस्सा बनाना ।

कितना मुश्किल है
नये संबंधों को
पल्लू से बांधना
और विसंगतियों में जीना।

किन्तु-
प्यार के रस में
डूबने की आशा में
आँख मूँदकर
करती रहती है समझौते ।

बीते समय का
बहुत कुछ रह जाता है
अनबोला-
जब लङकी
किताबों की जिंदगी से
गृहिणी में तब्दील होतीहै।

…..

 

स्त्री-3

यदि पढना चाहते हो मुझे
तो पढो कोमल आखों से
जैसे पढ़ी जाती है
गीता शुद्ध भावों से ।

छूना चाहते हो मुझे
तो छुओ चिङिया के कोमल बच्चे को पकड़ने की अदा से ।
छुओ जैसे छूती है हवा
धीरे से फूलों को,
जैसे छुआ जाता है तुलसी को
कोमल हाथों से ।

बस,ऐसे ही कोमल हाथों से
कोमल आखों से
कोमल भावों से पढो मुझे ।

मेरा कहा-अनकहा पढो।
पढो मेरे भाव-अभाव।
पढो तल्लीन हो कर ।

 

 

 

जुड़वा बच्चों के कुंवारे पिता बने देश के ‘आखिरी सिंगल डैड’ प्रीतेश

अहमदाबाद । एक ऐसा आदमी जिसकी शादी सिर्फ इसलिए नहीं होती है कि उसकी सरकारी नौकरी नहीं लग पाती है। देश में सरकारी नौकरी का क्रेज किसी से छुपा नहीं है। शादी भले ही नहीं हुई लेकिन पिता बनने की चाहत बनी रही। आखिरकार पिछले साल सरोगेसी वह जुड़वा बच्चों के पिता भी बन गए। जुड़वा बच्चों में एक लड़का और एक लड़की है। ये कहानी सूरत के प्रीतेश दवे की है। प्रीतेश उन आखिरी खुशकिस्मत लोगों में से हैं जिन्हें सरोगेसी के जरिये सिंगल पिता बनने का सौभाग्य मिला है। इसकी वजह है कि देश में अब सरोगेसी के नए नियम लागू हो चुके हैं।
खुद को खुशकिस्मत मानते हैं दवे
इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ. पार्थ बाविशी ने कहा कि दवे उन कुछ अंतिम पुरुषों में से एक हैं जिन्होंने नए सरोगेसी कानून के लागू होने से महीनों पहले यह उपलब्धि हासिल की थी। उन्होंने कहा कि नए नियमों के अनुसार, सिंगल पुरुषों, महिलाओं, लिव-इन और सेम सेक्स कपल के लिए सरोगेसी की अनुमति नहीं है। दवे जानते हैं कि वह कितने भाग्यशाली हैं। उन्होंने कहा कि मैं इस मामले में खुशकिस्मत हूं। दवे का कहना है कि अब मेरे जैसा अविवाहित व्यक्ति सरोगेसी के लिए अर्हता प्राप्त नहीं कर सकता है। दवे सूरत में अपने माता पिता के साथ रहते हैं। वह भावनगर में एक नेशनलाइज्ड बैंक के लिए ग्राहक सेवा केंद्र चलाते हैं। अब बच्चों से ही बदली दुनिया
प्रीतेश दवे का कहना है कि धैर्य और दिव्या के आने से, उसका समय अब पहले से कहीं अधिक हो गया है। उन्होंने कहा कि जब मुझे शादी के लड़की नहीं मिली तो मेरे माता-पिता बहुत निराश हुए। हालांकि, जुड़वा बच्चों के आने के बाद हमारा घर खुशियों से भर गया। दवे ने कहा कि उनकी मां उनके बच्चों को पालने में सहारा रही हैं। उन्होंने कहा कि मेरा कोई जीवन साथी नहीं हो सकता है, लेकिन अब मेरे पास जिंदगी को जीने के लिए के लिए एक परिवार है। उन्होंने कहा कि यह सबसे बड़ा आशीर्वाद है।
सरकारी नौकरी नहीं तो दुल्हन नहीं
दवे ने कहा कि उनके समुदाय में ऐसे कई पुरुष हैं जो दुल्हन नहीं ढूंढ पा रहे हैं। इसकी वजह है कि माता-पिता अपनी बेटियों की शादी सरकारी नौकरी वाले युवाओं से करना पसंद करते हैं। दवे 12वीं के बाद कॉलेज की पढ़ाई नहीं कर पाए थे। उन्होंने कहा कि हमारे पास जमीन और जायदाद है, लेकिन इसका कोई मतलब नहीं है।