Sunday, July 20, 2025
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पुरुषों की फोन चेक करने की आदत से इसलिए चिढ़ती हैं महिलाएं

इसमें कोई शक नहीं कि फोन हमारी जिंदगी का एक जरूरी हिस्सा है, लेकिन परेशानी तब बढ़ जाती है, जब इसके चलते रिलेशनशिप में मिसअंडरस्टैंडिंग के साथ लड़ाई-झगड़े होने लगें। जहां पुरुष आसानी से अपना फोन महिलाओं को दे देते हैं, वहीं महिलाएं ऐसा करने में आनाकानी करने के साथ ही तमाम तरह के बहाने भी बनाती हैं। आखिर क्या वजहें हो सकती हैं, इसके पीछे….जानेंगे।

मॉनिटरिंग

महिलाओं को लगने लगता है कि कोई उनपर नजर रखा है। भले ही उनके फोन में ऐसा-वैसा कुछ न हो लेकिन जब आप उनसे फोन का पासवर्ड पूछते हैं तो ये उनके ऊपर आपके शक को बयां करता है। महिलाएं रिलेशनशिप में स्पेस चाहती हैं और फोन की चेकिंग एक तरह से उनके उस स्पेस को छीनने जैसा होता है।

डर

ये सभी महिलाओं पर लागू नहीं होता लेकिन ज्यादातर महिलाएं अंदर से अलग और बाहर से अलग मिजाज की होती हैं। उन्हें उस पुरुष के हर एक स्टेप के बारे में पता होता है जो उनके साथ रिलेशनशिप में है। अपने इसी नेचर के चलते वो पुरुषों से ज्यादा घुलना-मिलना और किसी तरह की कोई शेयरिंग करना पसंद नहीं करतीं।

हैकिंग

महिलाओं के अंदर ये भी डर होता है कि एक बार पुरुषों के हाथ में फोन जाने का मतलब है वो उसे हैक कर लेंगे और उसके बाद उनकी हर एक बात, हर एक एक्टिविटी पर नजर रखेंगे। जिसे लेकर बहुत सारे सवाल-जवाब होंगे और बेवजह के लड़ाई-झगड़े। इन सबको देखते हुए वो ज्यादातर मिलने पर अपने फोन या तो स्विच ऑफ कर लेती हैं या साइलेंट मोड पर डाल देती हैं।

पर्सनल डिटेल्स

महिलाएं अपनी ज्यादातर डिटेल्स फोन में सेव करके रखती हैं जिसमें उनके बैंक से लेकर कई जरूरी चीजों के पासवर्ड रहते हैं। इसे वो किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहती जब तक आप उनके बहुत करीबी न हों।

 

महिलाओं को अपने फोन के साथ इसलिए भी छेड़खानी पसंद नहीं क्योंकि उनमें उनकी कई तरह की फोटोज होती हैं जिन्हें वो दिखाने से बचती हैं। खासतौर से पुरुषों का उन फोटोज को देखकर उसपर कमेंट करना महिलाओं को नागवार गुजरता है।

गर्ल्स टॉक

महिलाएं आपस में कई सारी बातें शेयर करती हैं वो पर्सनल लाइफ से लेकर प्रोफेशनल तक हो सकती हैं और कभी-कभार शरारत भरी बातें भी। कपड़े, सैंडल्स, लिपस्टिक, काजल और यहां तक कि अंडर गारमेन्ट्स तक का डिस्कशन महिलाएं आपस में करती हैं। इसलिए महिलाओं को बिल्कुल भी नहीं पसंद होता कि पुरुष उनके फोन से किसी तरह की कोई छेड़खानी करे और उनके चैट्स पढ़े।

शिकायतें

पुरुषों की अच्छी और बुरी आदतों को वो अपने किसी एक न एक फ्रेंड के साथ जरूर शेयर करती हैं जिसके बारे में वो चाहती हैं कि आपको भनक तक न लगे। इन बातों में आपके नजदीकी रिश्तों, खर्राटे, गैस, कब्ज जैसे कई टॉपिक्स का भी डिस्कशन हो सकता है।

बचने के लिए

पुरुषों का कोई बेकार सा फ्रेंड हो सकता है उनकी गर्लफ्रेंड या पत्नी का अच्छा फ्रेंड हो और उससे उनकी अच्छी बात होती हो। वो बिल्कुल नहीं चाहती कि इसे लेकर बेकार का कोई इश्यू बने इसलिए भी वो फोन में तमाम तरह के पासवर्ड लगाकर रखना पसंद करती हैं।

 

 

निदा फाजली की दो कविताएं

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ

याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ

बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे

आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी माँ

चिड़ियों के चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली

मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ

बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में

दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई

फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

.indian mother

 

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार
लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत
पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम
सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास
चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान

ग्रामीण महिलाओं ने ढाई साल में खड़ी की करोड़ों की कम्पनी

 धौलपुर. राजस्थान के धौलपुर जिले की 3 महिलाओं ने महज ढ़ाई साल में डेढ़ करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी। कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद तीनों महिलाएं गांव की 800 महिलाओं को रोजगार दे रहीं हैं । उनकी इस पहल से कई महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं।

– ये कंपनी खड़ी की है धौलपुर जिले की रहने वाली अनीता, हरिप्यारी व विजय शर्मा ने।

– तीनों ही आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से हैं।

– वे तीनों दूधियों (दूध खरीदने वाले) से रूपए उधार लेकर भैंस खरीदती थी व दूधियों को दूध बेचकर उधारी चुकाती थी।

– लेकिन दूधिया इनके दूध को बाजार भाव से काफी कम कीमत पर खरीदते थे। इसलिए इन्होंने खुद की कंपनी बनाने की ठान ली।

– रुपए की जरूरत के लिए इन्होंने प्रदान संस्था की सहायता से महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाया और लोन लिया।

– जिससे एक अक्टूबर 2013 को एक लाख की लागत से अपनी सहेली प्रोड्यूसर नाम की उत्पादक कंपनी बना ली।

– मंजली फाउण्डेशन के निदेशक संजय शर्मा की तकनीकी सहायता से करीमपुर गांव में दूध का प्लांट लगाया।

– कंपनी के शेयर ग्रामीण महिलाओं को बेचना शुरू किया।

– वर्तमान में कंपनी की 800 ग्रामीण महिलाएं शेयरधारक हैं व महज ढ़ाई वर्ष में कंपनी डेढ़ करोड़ की हो गई है।

– शेयरधारक महिलाएं कंपनी को दूध भी देती हैं। कंपनी के बोर्ड में फिलहाल कुल 11 महिलाएं हैं। जिनकी 12 हजार रुपए प्रतिमाह आय है।

ऐसे काम करती है सहेली कंपनी

– करीब 18 गांव में कंपनी की शेयरधारक महिलाएं हैं।

– प्रत्येक गांव में महिला के घर पर दूध का कलेक्शन सेन्टर बना रखा है। जहां महिलाएं खुद दूध दे जाती हैं।

– गांवों को 3 क्षेत्रों में विभाजित कर अलग-अलग गाडियां लगा रही हैं। जो कि दूध को करीमपुर में लगे प्लांट तक पहुंचाती हैं।

– प्लांट पर 20 हजार रूपए प्रतिमाह के वेतन पर उच्च शिक्षित ब्रजराज सिंह को मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त कर रखा है।

मिलता है महिलाओं को फायदा
– गांव में दूधियां 20-22 रूपए प्रति लीटर में महिलाओं से दूध खरीदते थे। जबकि कंपनी 30-32 रूपए लीटर में खरीदती है।

– जिससे दूध देने वाली हर महिला को अच्छी आय हो जाती है।

– इसके अलावा शेयर के अनुपात में कंपनी के शुद्ध लाभ में से भी हिस्सा मिलता है।

जिले में घी और पनीर भी बेचती है कंपनी

500 ग्राम पैकिंग की दूध की थैली कंपनी द्वारा धौलपुर शहर में बेची जाती है। जिसके लिए शहर में दो बिक्री केन्द्र बना रखे हैं। बचे हुए दूध का घी, पनीर आदि बनाकर बेचा जाता है। वर्ष 2015 में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने कंपनी के घी का नमूना भी लिया था। जो कि जांच में खरा उतरा तथा अन्य कंपनियों की अपेक्षा इसके उत्पाद सस्ते भी हैं।

खुद इंटरव्यू लेकर करती हैं चयन

जब भी कंपनी में कोई वैकेंसी होती है तो न्यूज़पेपर में विज्ञापन निकाला जाता है व महिलाओं द्वारा इन्टरव्यू लिया जाता है और उसके बाद खुद महिलाएं ही चयन करती हैं। कंपनी के बोर्ड में कुल 11 महिलाएं हैं। जिनकी आय प्रतिमाह 12 हजार रुपए है।

 

दो महीने बाद लॉन्च होगा भारत में बना रोबोट टाटा ब्राबो

मई 2014 में टाटा मोटर्स की टीएएल मेन्‍युफैक्‍चरिंग के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर अनिल भिंगुर्दे ने कंपनी के रोबोटिक वेंचर के बारे में चेयरमैन रविकांत और बोर्ड मेंबर्स के सामने प्रेजेंटेशन दिया था। इस प्रोटोटाइप रोबोट को सभी ने पसंद किया था और अब यह एक रोबोट के रूप में सामने आने वाला है जिसका नाम ब्राबो दिया गया है।

कहा जा रहा है‍ कि अगले दो महीने में इसे लॉन्‍च कर दिया जाएगा। इस रोबो को मुंबई में मेक इन इंडिया वीक में पेश किया जाएगा। ब्राबो को कंपनी की ही 6 इंजीनियर्स की टीम ने बनाया है जिनकी उम्र 24 साल से ज्‍यादा नहीं है। इस रोबोट को बनाने में 10 करोड़ रुपये का खर्च आया है। भिरगुंडे के अनुसार, ‘यह मेड इन इंडिया के, इंडिया के लिए बना है।’

खबरों के अनुसार इस रोबोट की डिजाइन टीएएल द्वारा बनाई गई है वहीं स्‍टाइल टाटा एल्‍क्‍सी में तैयार हुई है। इसके कुछ पार्ट्स टाटा ऑटोकॉम्‍प में बने जबकि टाटा कैपिटल ने इसके लिए धन मुहैया करवाया है।

बताया जा रहा है कि कंपनी का लक्ष्‍य दुनिया की बड़ी कंपनियों से प्रति‍योगिता नहीं बल्कि 3,6 और 10 लख रुपये तक के बजट में माइक्रो, स्‍माल और मीडियम इंडस्‍ट्री के लिए रोबोटिक सॉल्‍यूशन देना है। भारत में छोटी इंटरप्राइजेस द्वारा 5 हजार प्रोडक्‍ट बनाए जाते हैं जिनमें पारंपरिक बिजनेस सॉल्‍युशन के अलावा हाईटेक प्रोडक्‍ट भी बना रहीं है जिन्‍हें इन रोबोट्स की जरूरत पड़ेगी

 

तिरुपति मंदिर के लिए मुसलमान ने किया ट्रक दान

विजयवाड़ा। चेन्नई के एक मुसलमान ने प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर में सब्जियां पहुंचाने के लिए एक रेफिजरेटर ट्रक दान किया है। 35 लाख की कीमत के इस ट्रक को सोमवार को मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडु ने हरी झंडी दिखाई। आठ टन की क्षमता वाला यह ट्रक अब्दुल गनी ने दान किया है। इसका इस्तेमाल मंदिर की भोजन दान करने वाली नित्य आनंदम योजना के लिए किया जाएगा। इस योजना के लिए सब्जियों का दान मांडव कुटुंब राव और उनका परिवार वर्ष 2007 से करता आ रहा है।

 

डेनमार्क की इस मस्जिद का महिलाएं करेंगी नेतृत्व

आमतौर पर किसी मस्जिद में पुरुष इमाम होते हैं, घोषणा करते हैं, अजान देते हैं. लेकिन डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में एक ऐसी मस्जिद बनी है जहां ये सब काम महिलाएं करेंगी।

इस मस्जिद की शुरुआत शेरीन खानकन नाम की महिला ने की है. शेरीन के पिता सीरियाई मुस्लिम हैं वहीं मां इसाई हैं। इस मस्जिद का नाम मरियम रखा गया है.

जुम्मे की नमाज में होंगी सिर्फ महिलाएं
मरियम मस्जिद में शुक्रवार की नमाज में पुरुष हिस्सा नहीं ले सकते हैं. हालांकि इसके अलावा रोज महिलाएं और पुरुष मस्जिद की हर गतिविधि में बराबर हिस्सा ले सकते हैं। मस्जिद में चार इमाम हैं ये चारों ही महिलाएं हैं। इनमें से एक शेरीन भी हैं.

शेरीन डेनमार्क में जानी-मानी लेखिका हैं। शेरीन का मानना है कि इस्लाम ही नहीं बल्कि यहूदी, इसाई और अन्य धर्मों के संस्थानों में भी पितृसत्तात्मकता मौजूद है. इसे दूर करने के लिए ऐसे कदम उठाना जरूरी है. डेनमार्क में पहली बार महिलाओं के नेतृत्व वाले मस्जिद की शुरुआत हुई है. हालांकि अमेरिका, कनाडा, जर्मनी जैसे देशों में भी ऐसे प्रोजेक्ट देखने को मिल चुके हैं.

कहें ईश्वर को धन्यवाद

हम कुछ मांगने के लिए ईश्वर से प्रार्थना तो करते हैं लेकिन हममें से कितने लोग उनका शुक्रिया भी अदा करते हैं? हम इस बात पर ज्यादा ध्यान देते हैं कि ईश्वर ने हमें क्या नहीं दिया, लेकिन इसके कि ईश्वर ने हमें क्या दिया है।

एक कहानी है, जिसमें ईश्वर ने मनुष्यों की प्रार्थनाएं सुनने के लिए दो फरिश्तों को धरती पर भेजा। एक फरिश्ते से कहा गया था कि वह उन प्रार्थनाओं को इकट्ठा करें, जिनमें ईश्वर से कुछ मांगा जा रहा हो। दूसरे से कहा गया कि वह उन प्रार्थनाओं को जमा करें, जिनमें ईश्वर का शुक्रिया अदा किया जा रहा हो और कृतज्ञता प्रकट की जा रही हो।

दोनों फरिश्ते एक-एक विशाल टोकरी लेकर धरती पर उतरे। जो फरिश्ता ईश्वर से कुछ मांगने संबंधी प्रार्थनाएं जमा कर रहा था, वह अत्यधिक व्यस्त हो गया। कई सारे लोग ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि वे उन्हें ज्यादा पैसा दे दें, बेहतर स्वास्थ्य दे दें, नवीनतम डिजिटल उपकरण दे दें, खूबसूरत जेवरात, महंगे कपड़े या फिर नए खिलौने दे दें।

इस बीच दूसरे फरिश्ते ने दूर-दूर की यात्रा की और ऐसी प्रार्थनाओं की तलाश करता रहा, जिनमें ईश्वर का शुक्रिया अदा किया जा रहा हो। कुछ दिन बाद मांग वाली प्रार्थनाओं से तो एक ट्रक भर गया। जबकि शुक्राने वाली प्रार्थनाएं गिनती की ही थीं। जब वे दोनों अपना-अपना ‘कलेक्शन’ लेकर लौटे, तो ईश्वर ने आह भरते हुए कहा, ‘इसमें कोई नई बात नहीं है।

देखा आप लोगों ने, ईश्वर होना कैसा होता है? लोग हमेशा कुछ-न-कुछ मांगने के लिए प्रार्थना करते रहते हैं। यह ठीक भी है क्योंकि इसी बहाने वे मुझे याद तो करते हैं। मगर बहुत कम लोगों को मेरा शुक्रिया अदा करना याद रहता है।’

यह कहानी हम मनुष्यों की स्थिति बयान करती है। लोग दूसरों से कुछ करने की गुजारिश तो करते हैं लेकिन कितने लोग उन्हें शुक्रिया अदा करने के लिए भी समय निकालते हैं? इसी प्रकार, हम कुछ मांगने के लिए ईश्वर से प्रार्थना तो करते हैं लेकिन हममें से कितने लोग उनका शुक्रिया भी अदा करते हैं? हम इस बात पर ज्यादा ध्यान देते हैं कि ईश्वर ने हमें क्या नहीं दिया, बनिस्बत इसके कि ईश्वर ने हमें क्या दिया है।

ईश्वर ने हमें जितना कुछ दिया है, यदि हम उसमें से प्रत्येक चीज के लिए उन्हें एक ‘थैंक यू नोट’ लिखने बैठें, तो हमें अहसास होगा कि उन्होंने हमें कितना कुछ दिया है। शायद हम यह सोचते हैं कि ईश्वर तभी मौजूद होते हैं, जब सब कुछ हमारी मर्जी अनुसार चल रहा होता है।

हो सकता है कि हमारे पास 25 साल से नौकरी थी लेकिन एक बार हमें नौकरी से हाथ धोना पड़े, तो हम कह देते हैं कि ईश्वर नहीं है! हो सकता है कि हमारे पास बरसों से एक स्नेहिल परिवार रहा हो लेकिन एक सदस्य के न रहने पर हम ईश्वर को दोष देने लगते हैं। हो सकता है कि

हम वर्षों तक पूरी तरह स्वस्थ रहे हों लेकिन एक बार कोई गंभीर बीमारी हो जाए, तो हम कहते हैं, ‘यह मुझे क्या हो गया! कोई ईश्वर-बीश्वर नहीं है। जब कुछ गलत हो जाए, तो बहुत कम लोग कहते हैं, ‘कोई बात नहीं भगवान, मैं अब भी आपको मानता हूं और जानता हूं कि आप हो। मेरे साथ जो हुआ, वह शायद मेरे लिए अच्छा ही था और यही आपकी मर्जी थी।

आइए, हम हर उस दिन के लिए ईश्वर को शुक्रिया कहें, जब हम अपना काम कर पाते हैं, अपने परिवार और मित्रों के साथ आनंद के पल गुजार पाते हैं। हम अपने स्वास्थ्य के लिए उनसे धन्यवाद कहें और कृतज्ञता दर्शाएं कि हमारी बीमारी बदतर नहीं हुई।

हम उन सभी उपहारों के लिए खुशी महसूस करें, जो हमें मिले हैं। केवल भौतिक, बौद्धिक या भावनात्मक ही नहीं, बल्कि ईश्वर की ओर से प्राप्त आध्यात्मिक उपहारों के लिए भी। हम प्रार्थना और ध्यान द्वारा तथा दूसरों की निस्वार्थ सेवा द्वारा भी अपने भीतर मौजूद दिव्य शक्ति के साथ संबंध स्थापित कर सकते हैं। इस प्रकार हम शब्दों से ही नहीं, बल्कि कर्मों के माध्यम से भी ईश्वर का शुक्रिया अदा करेंगे।

 

जानें एग फ्रीजिंग के बारे में

आज कई महिलाएं कैरियर या किसी अन्य समस्या के कारण परिवार को देर से आरंभ करने का इरादा रखती हैं। जिस वजह से वे एग फ्रीजिंग की तकनीक को आज़माने की भी इच्छा रखती हैं। हालांकि ये तकनीक महंगी है लेकिन कुछ कंपनी इसका खर्चा उठाने के लिए तैयार हैं। ये एक अच्छी ख़बर है परंतु इस प्रक्रिया से साथ जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानना भी जरूरी है।

एग फ्रीजिंग एक नई तकनीक है जिसमें महिलाओं के अंड़ाणुओं को निकाल कर, फ्रीज करके स्टोर किया जाता है। बाद में, जब वह मां बनने का निर्णय लेती है तब गर्भाधान करने के लिए इन अंड़ाणुओं को गर्म करके भ्रूण के रूप में गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है।

इस नई तकनीक को कौन अपना सकता है?

  • जो महिलाएं व्यक्तिगत कारणों की वजह से परिवार शुरू करने की इच्छा नहीं रखती हैं
  • कैंसर से पीड़ित महिलाएं

हालांकि, एग फ्रीजिंग के लिए अभी तक कोई सही उम्र तय नहीं की गई है, परंतु बेहतर परिणामों के लिए आप इसे जल्द शुरू करें। आमतौर पर महिलाएं 34/35 की उम्र में अंड़ाणुओं को फ्रीज करने की सेवा का चयन कर सकती हैं।

अंड़ाणुओं को कितने समय के लिए फ्रीज किया जा सकता है?
हालांकि अभी तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है जो हमें इस सवाल का सही जवाब दे सकें। लेकिन कहा जाता है कि 20 साल के बाद भी फ्रीज किए गए अंड़ाणु को सफलतापूर्वक भ्रूण के रूप में स्थानांतरित किया जा सकता है।

क्या एग फ्रीजिंग सुरक्षित है?
यूएससी प्रजनन की एक रिपोर्ट के अनुसार, सामान्य बच्चों की तुलना में फ्रीज किए गए अंड़ाणुओं से पैदा हुए 900 से भी अधिक बच्चों में जन्म दोष के कोई खास लक्षण नहीं देखे गए। यह इस विषय पर प्रकाशित सबसे बड़ा अध्ययन था। इसके अलावा, एक अन्य अध्ययन के परिणामों में यह देखा गया कि ताजा अंड़ाणुओं से बने भ्रूण एवं फ्रीज हुए अंड़ाणुओं से बने भ्रूण में गुणसूत्र दोष के कुछ खास लक्षण नहीं थे।

2014 में हुए एक नए अध्ययन से पता चला कि एग फ्रीजिंग से गर्भावस्था में कोई जटिल स्थितियों की वृद्धि नहीं हुई।

 

अगर देने जा रही हैं साक्षात्कार

जब भी हमें कोई साक्षात्कार देने जाना होता है, तो हम बिना किसी प्रिपरेशन के चले जाते है। साक्षात्कार में बहुत सी छोटी-छोटी लेकिन महत्‍वपूर्ण बातों का ख्‍याल रखना जरूरी होता है। आइए जानते हैं कुछ टिप्‍स :

साक्षात्कार में जाने से पहले आपको अक्‍सर पूछे जाने वाले सवालों के जवाब अच्‍छे से पता होने चाहिए। आप जिस संस्‍थान में जा रही हैं, उसके बारे में बेसिक जानकारी बेहद जरूरी है। अपनी सीवी और एप्‍लीकेशन फार्म को एक बार अच्‍छे से चेक कर लें।

साक्षात्कार के लिए जाते समय आपको क्‍या ले जाना है, यह जरूर पता होना चाहिए। आपको आपका सीवी, एक पानी की बोतल, पैसे, पेन और नोट पैड, एक फोटो, ड्राइविंग लाइसेंस और मोबाइल फोन ले जाना चाहिए।

– साक्षात्कार में पूछे गए सवालों के जवाब साफ और छोटे होने चाहिए।

– कोशिश करें कि अपनी पर्सनल प्रॉब्‍लम डिस्‍कस ना करें।

– अपने आपको जोश से भरा हुआ दिखाएं।

– पूरे स्टाफ से अच्‍छे से बर्ताव करें।

– चेहरे पर हल्की सी मु‍स्‍कान और बातों में पॉजिटिविटी दिखाएं।

-जहां पहले काम कर चुके हैं, वहां के बारे में किसी भी प्रकार की कोई बुराई ना करें।

– आपके शूज पॉलिश किए हुए हों और कपड़े साफ-सुथरे होने चाहिए।

 

आठ हजार के खर्च से दिव्यांग अनिल ने कार में किया जुगाड़

 

कोटा. इंद्राविहार स्थित ओपेरा हॉस्पिटल में विकलांग शिविर में आये महावीर नगर में डीजे की दुकाल चलाने वाले अनिल चौहान 35 वर्ष के हैं और बचपन से ही निशक्त हैं। डाॅक्टरों का कहना है कि पैर सीधे तो हो सकते हैं, लेकिन चल नही सकते। सभी जगह गए, लेकिन उनके हाथ निराशा ही लगी।

उसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और जीवन को आगे बढ़ाने के लिए कार में अपनी सहुलियत के अनुसार ब्रेक, क्लच और रेस दबाने के लिए उन्होंने मिस्त्री से करीब 8000 रु का खर्चे से नया तरीके का जुगाड़ करवा लिया। उन्होंने इन पर लोहे की छड़े वैल्ड कर करवाई। इसके बाद से वे आसानी से कार चला पा रहे हैं। उनकी पत्नी भी एक पैर से निशक्त है।