Sunday, July 20, 2025
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निष्ठुर कौन?

– डॉ. ब्रज भूषण सिंह

dr bb singh

पौष की रात थी

ओस और कुहासे के अँधेरे में

थका हुआ मैं चला जा रहा था

फुटपाथ पर, अचानक

एक आलीशान गाड़ी पास से गुजरी

बैठी थी एक सुन्दर नारी

चुम्बन कर पुचकार रही थी

गोद में बैठे स्वान को

सोचा, मैंने – नारी हृदय कितना कोमल!

आगे, एक बालक को देख

हो गया मैं भौचक्का

अर्द्धनग्न बालक।

काँप रहा था ठंड में

भूखा –प्यासा, वह माँग रहा था रोटी

फटकार रही थी सुन्दर नारी

बिलख – बिलख कर रो रहा था

मासूम वह बालक।

टक – टक देख रहा था,

उस स्वान को

जो खा रहा था जलेबी – रोटी

सोचा मैंने – नारी हृदय है निष्ठुर?

या मानव जाति ही निष्ठुर?

(कवि एनसीसी (पश्चिम बंगाल तथा सिक्किम) डायरेक्टरेट के जनसम्पर्क अधिकारी व प्रख्यात हिन्दी माध्यम स्कूल के हेडमास्टर हैं।

जब प्रधानमंत्री ने छुए बकरियाँ बेचकर टॉयलेट बनवाने वाली महिला के पैर

रायपुर. राजनांदगांव के कुर्रूभाठ गांव में रविवार को आयोजित सभा में पीएम मोदी ने 104 साल की कुंवर बाई के पांव छूकर आशीर्वाद लिया। कुंवर ने पीएम के स्वच्छता मिशन से प्रेरित होकर बकरियां बेचकर शौचालय बनवाया था। पीएम नें मंच पर उन्हें सम्मानित किया और मंच पर मिनटों तक उनकी तारीफ करते रहे। कुंवर के बारे में पीएम ने क्या कहा…

– मोदी ने जनसभा में कुंवर बाई का जिक्र करते हुए कहा, “यहां 104 वर्ष की मां कुंवर बाई आशीर्वाद पाने का सौभाग्य मिला।”

– जो लोग अपने आप को नौजवान मानते हैं, वे तय करें कि उनकी सोच भी जवान है क्या ?

– एक सौ चार वर्ष की मां कुंवर बाई न टीवी देखती हैं और न ही पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन उन्हें पता चला के देश के प्रधानमंत्री लोगों को घरों में शौचालय बनवाने के लिए कहते हैं।

– उन्होंने बकरी पालन की राशि से अपने घर में शौचालय बनवाया और गांव वालों को भी शौचालय बनाने के लिए मजबूर किया।

– कुंवर बाई जैसी बुजुर्ग महिला का यह विचार पूरे देश में तेजी से आ रहे बदलाव का प्रतीक है। मैं उन्हें प्रणाम करता हूं।

– मोदी ने मीडिया से आव्हान किया कि वे भले ही उनका भाषण न दिखाए, लेकिन कुंवर बाई के इस प्रेरणादायक कार्य को जरूर जन-जन तक पहुंचाएं।

स्वच्छता छोटी बात नहीं

– मोदी ने दो आदिवासी बहुल विकासखंडों-अम्बागढ़ चौकी और छुरिया को खुले में शौच मुक्त विकासखंड घोषित करते हुए दोनों विकासखंडों के निवासियों को बधाई दी।

– पीएम ने कहा कि इन विकासखंडों के सेवा भावी नौजवानों, माताओं, बहनों ने काम कर दिखाया है, जो सामाजिक जागरूकता का परिचायक है।

– “स्वच्छता छोटी बात नहीं है। शैचाालयों का निर्माण बीमारियों से मुक्ति के लिए जरूरी है, स्वच्छता के लिए जरूरी है, स्वच्छ भारत के लिए जरूरी है।”

– “देश को खुले में शौच की सदियों पुरानी आदत से मुक्ति की जरूरत है।”

– “हमारी माताओं और बहनों का सबसे बड़ा सम्मान यही होगा कि उन्हें हम शौचालय बनवाकर दें।”

पढ़िए, कुंवर की कहानी उन्हीं की जुबानी…

– हम जहां रहते हैं, वहां आप लोग आएंगे, तो देखेंगे कि जिंदगी कितनी मुश्किल है। गंगरेल के बीच टापू की तरह है हमारा बरारी गांव। एक बारिश हो, तो जिंदगी दुनिया से कट गई सी लगती है।

– पचास साल हो गए मुझे यहां रहते। हम लोगों ने कभी टॉयलेट की जरूरत तो महसूस नहीं की, लेकिन जब घर में बहुएं आईं तो ठीक नहीं लगा। घर के पैसे की जरूरत बकरियों से पूरी होती है। मेरे पास आठ-दस बकरियां थीं।

– बहुओं, पोतियों और नातिनों को अच्छी जिंदगी और अच्छी सेहत देने बकरियां बेच दीं। उससे मिले 22 हजार रुपयों से दो टॉयलेट बनाए। जब कोई घर में आता, तो उन्हें बताती। देखो, मेरे घर के लोग अब बाहर नहीं जाते, तुम भी बनवाओ।

– सब लोग पैसों से काबिल नहीं थे, इसलिए टॉयलेट बनाने दूसरों की जो मदद हो सकी, वो भी की। अब हमारे गांव में हर घर में टॉयलेट है।

 

आसन पर बैठकर इसलिए करते हैं धार्मिक कार्य

हम सभी अमूमन धार्मिक कार्य पूजा, हवन, साधना करते समय आसन पर बैठते हैं लेकिन क्यों ? इसके पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक मत दोनों ही हैं। दरअसल आसन पर बैठकर कर्मकांड करने से जहां व्यक्ति के मन में सात्विक विचार उत्पन्न होते हैं तो वहीं आत्मिक शुद्धता मिलती है। यह पूरी तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया है। जो सेहत के लिए भी बेहतर मानी गई है।

जब भी हम आसन पर किसी भी धार्मिक कार्य करने या सामान्य रूप से बैठते हैं तो यह प्रक्रिया हमारे शिष्ठाचार और अनुशासन को इंगित करती है। आसन स्वयं में एक योग है। ऐसा करने से शरीर में स्थित विकार काफी हद तक नष्ट हो जाते हैं।

ब्रह्मांड पुराण के तंत्रसार में उल्लेख है कि, धार्मिक कर्मकांड करते समय यदि जमीन पर बैठते हैं तो मनुष्य का दुःख बढ़ जाता है, यदि पत्थर पर बैठते हैं तो रोग हो जाता है। अगर पत्तों पर बैठते हैं तो चित्त भ्रम की स्थिति में पहुंच जाता है। यदि लकड़ी पर बैठते हैं तो घर में दुर्भाग्य का आगमन होता है। घांस पर बैठकर धार्मिक कर्मकांड करना भी मना है ऐसा करने पर घर में अपयश आता है। इसलिए हमेशा कर्मकांड या कोई भी धार्मिक कार्य करते समय आसन पर बैठकर ही पूजा करनी चाहिए।

प्राचीन काल में ऋषि-मुनि, साधू-संत और तपस्वी जब किसी कार्य की सिद्धि के लिए प्रयत्न करते थे तो मृगछाल( हिरण की खाल), गोबर का चोक, वाघ या चीता की खाल, लाल कंबल का प्रयोग किया करते थे। इस बात के प्रमाण हमारे धर्मग्रंथों में मिलता है।

वर्तमान समय में गोबर के चोक में बैठकर पूजा आदि करने का प्रचलन ग्रामीण अंचलों में है। आसन पर बैठकर पूजा करने से आपकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।

वैज्ञानिक दृष्टि में भी आसन उतना ही महत्वपूर्ण है। आसन पर बैठने से आपके चेहरे की लालिमा बड़ती है। आसन कुचालक( जो विद्युत को समाहित न करे) होना चाहिए। यदि आप प्रतिदिन आसन पर बैठकर पूजा करते हैं तो आपके चेहरे में आध्यात्मिक शक्तियों का समावेश होता है। आपकी आंखे बेहतर रहती हैं।

 

अब एयर होस्टेस की तरह ट्रेन में भी होस्टेस, गुलाबों से करेंगी स्वागत

नई दिल्ली: कल्पना कीजिए कि आप किसी ऐसी ट्रेन में सफर कर रहे हों, जहां धीमे संगीत के बीच कोई होस्टेस आपको गुलाब का फूल दे। यह कल्पना अब सच्चाई में बदलने जा रही है, क्योंकि रेलवे ने जल्द शुरू की जाने वाली दिल्ली-आगरा गतिमान एक्सप्रेस सेवा में ट्रेन होस्टेस तैनात करने का फैसला किया है। यह ट्रेन 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली पहली ट्रेन होगी। ट्रेन में एक उच्च क्षमता वाली आपातकालीन ब्रेक प्रणाली, स्वचालित फायर अलार्म, जीपीएस आधारित यात्री सूचना प्रणाली और डिब्बों में स्लाइडिंग दरवाजे होंगे।train hostes

साथ ही उसमें लाइव टीवी सेवा भी मौजूद होगी। रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हम उड़ान सेवाओं की तर्ज पर गतिमान एक्सप्रेस में सर्वश्रेष्ठ संभव सेवाएं मुहैया कराने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उड़ानों की तरह ट्रेन में होस्टेस होंगी और उनमें कैटरिंग सेवा भी एयरलाइनों के स्तर की होगी। भारतीय रेलवे कानपुर-दिल्ली, चंडीगढ़-दिल्ली, हैदराबाद-चेन्नई, नागपुर-बिलासपुर, गोवा-मुंबई और नागपुर-सिकंदराबाद सहित नौ और मार्गों पर इस तरह की ट्रेनें शुरू करेगा। रेलवे सूत्रों के अनुसार ट्रेन का किराया शताब्दी ट्रेनों के किराये से 25 प्रतिशत अधिक होगा। साथ ही इसमें बेहतर कैटरिंग सेवा भी होगी।

 

दामाद और ससुर का रिश्ता हो प्यारा सा

घर का मुखिया होने के नाते पुरुषों के मन में सदैव अहं का भाव रहता है। यही भाव ससुर-दामाद के सम्माननीय और प्रेम से भरे रिश्ते के आड़े आकर सबकुछ तहस-नहस कर सकता है। लेकिन जिन परिवारों में बेटे नहीं होते वहां दामाद ही ससुर के बाद मुखिया माने जाते हैं और उन्हें ही सारी पारिवारिक जिम्मेदारियां वहन करनी होती हैं।

दामाद युवा इसलिए जिम्मेदारी ज्यादा

अच्छा दामाद बनने के लिए कोई हार्ड रूल्स एंड रेगुलेशन्स नहीं हैं। जब माता पिता बेटी के तौर पर आपको अपनी सबसे खास चीज सौंपते हैं तो यह आपका फर्ज है कि कुछ सामान्य बातों को अपनाकर उन्हें खुश होने के मौके दें। आपका थोड़ा सा प्रयास आपको भावी पीढ़ी के लिए रोल मॉडल बना सकता है।father-in-law-at-wedding

एक-दूसरे का सम्मान बेहद जरूरी

अधिकतर युवा अपने माता-पिता के लिए पत्नी से अपेक्षा रखते हैं कि वह उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार करे, जैसा कि वह स्वयं के माता पिता के साथ करती है। इस हिसाब से एक दामाद को भी इसी धर्म का पालन करना चाहिए। यहां अंग्रेजी के “इन लॉ’ शब्द का परित्याग करें और माता-पिता व पुत्र का रिश्ता बनाएं। सम्मान एक पारस्परिक प्रक्रिया है। अपने सास ससुर को प्यार और सम्मान दें और निश्चित ही वे भी आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे। जब भी कभी कठिन समय आता है तो बच्चे अपने माता पिता की जिम्मेदारी उठाते हैं। अत: अच्छा दामाद बनने के लिए इसी नियम को यहां भी अपनाएं। यदि आपको यह महसूस होता है कि उन्हें सहारे की आवश्यकता है तथा वे सही हैं तो उनके साथ खड़े रहें, भले ही दुनिया विरोध में हो।

प्यार जताना भी है जरूरी

जब तक भावनाएं व्यक्त न हों, महसूस नहीं की जा सकतीं। इसलिए प्रेम का प्रदर्शन बेहद जरूरी है। कुछ दिन उनके साथ रहकर वक्त बिताएं, छुट्टियों पर जाएं, उन्हें फोन करें तथा उन्हें उपहार दें। उन्हें ये सब अच्छा लगेगा तथा उन्हें इन सब बातों से खुशी मिलेगी जो उनके लिए जीवन की अन्य किसी भी खुशी से बढ़कर होगी। कोई आदान प्रदान न रखें पैसा और संपत्ति सभी संबंधों में झगड़े का मूल कारण होते हैं। अच्छा दामाद बनने का अगला सुझाव यही है कि इस बात को हर संबंधों पर लागू करें विशेष रूप से सास-ससुर के साथ। आपकी यह छोटी सी कोशिश आपके लिए हमेशा उनके मन में सम्मान और कृतज्ञता का भाव पैदा कर देगी। इस तरह से आप भी उनके ज्यादा करीब आ सकेंगे।

मर्यादा बनाए रखें

किसी भी रिश्ते को हेल्दी बनाए रखने के लिए हमेशा कुछ सीमाओं और मर्यादाओं का पालन करना जरूरी होता है। इस नाजुक रिश्ते में भी कुछ मर्यादाएं रखें

ससुर रखें इस बात का ध्यान

सामाजिक परिवर्तन एकाएक नहीं होते इसलिए दामाद के मन में पल रहे सम्मान के उस भाव का ख्याल रखें जिसके साथ वह युवा हुआ है।

बेटी और दामाद के बीच अगर किसी विषय काे लेकर मनमुटाव है तो उसे महज बेटी का पिता होने की नजर से न देखें। दोनों पक्षों को समझते हुए निराकरण कराएं।

दामाद का भी स्वयं का परिवार है, इसलिए रह- रहकर उसे अपनी समस्याओं में उलझाने से बचें।

घर के महत्वपूर्ण मसलों पर उसकी राय लें ताकि उसे अपनेपन और महत्ता का एहसास हो।

 

 

सुकन्या जो लाएगी समृद्धि

वो जमाना गया जब बेटियों को लोग पराया धन समझते थे. अब बेटियां अपने माता-पिता को अमीर बना रही हैं. साथ ही टैक्स बचाने में भी मदद कर रही हैं। सुकन्या समृद्धि योजना पर गौर करेंगे, तो आप भी यह जरिया जान जाएंगे…

क्या है योजना?

सुकन्या समृद्धि खाता एक डिपॉजिट योजना है, जिसमें आप बेटी के नाम पर खाता खुलवा सकते हैं.

न्यूनतम निवेशः 1,000 रुपये

अधिकतम निवेशः 1.5 लाख रुपये

ब्याज दरः 9.2% सालाना (हर साल संशोधन)

कितनी अवधि है?

शुरुआती 14 साल के लिए खाते में रकम जमा करानी होती है.बच्ची के 10 साल के होने से पहले ये खाता खोला जा सकता है.

ये योजना 21 साल बाद मैच्योर होती है।Sukanya-Samridhi-Yojana-CAknowledge.in_

टैक्स बचाने का फायदा

इनकम टैक्स एक्ट के सेक्‍शन 80सी के तहत 1.5 लाख रुपये तक टैक्स छूट

डिपॉजिट हुई रकम पर मिलने वाले ब्याज पर कोई टैक्स नहीं लगता

निवेश के फायदे

बाकी सभी योजनाओं की तुलना में इसमें ब्याज दर ज्‍यादा मिलता है

बच्ची की उच्च शिक्षा और शादी-ब्याह के लिए बचत कर सकते हैं

मैच्योरिटी पर जो रकम मिलती है, उस पर टैक्स नहीं लगता

हालांकि, एक पेंच है

50% तक रकम तभी निकाली जा सकती है, जब बच्ची 18 साल की हो जाए

एक बच्ची के नाम पर सिर्फ एक खाता खोला जा सकता है और ज्‍यादा से ज्‍यादा दो खाते खोलने की इजाजत है

अगर जुड़वा या तीन बच्चियां एक साथ होती हैं, तो तीसरे बच्चे को इसका फायदा मिलेगा

वो जमाना गया जब बेटियों को लोग पराया धन समझते थे. अब बेटियां अपने माता-पिता को अमीर बना रही हैं। साथ ही टैक्स बचाने में भी मदद कर रही हैं। सुकन्या समृद्धि योजना पर गौर करेंगे, तो आप भी यह जरिया जान जाएंगे…

क्या है योजना?

सुकन्या समृद्धि खाता एक डिपॉजिट योजना है, जिसमें आप बेटी के नाम पर खाता खुलवा सकते हैं.

न्यूनतम निवेशः 1,000 रुपये

अधिकतम निवेशः 1.5 लाख रुपये

ब्याज दरः 9.2% सालाना (हर साल संशोधन)

कितनी अवधि है?

शुरुआती 14 साल के लिए खाते में रकम जमा करानी होती है.बच्ची के 10 साल के होने से पहले ये खाता खोला जा सकता है.

ये योजना 21 साल बाद मैच्योर होती है.

टैक्स बचाने का फायदा

इनकम टैक्स एक्ट के सेक्‍शन 80सी के तहत 1.5 लाख रुपये तक टैक्स छूट

डिपॉजिट हुई रकम पर मिलने वाले ब्याज पर कोई टैक्स नहीं लगता

निवेश के फायदे

बाकी सभी योजनाओं की तुलना में इसमें ब्याज दर ज्‍यादा मिलता है

बच्ची की उच्च शिक्षा और शादी-ब्याह के लिए बचत कर सकते हैं

मैच्योरिटी पर जो रकम मिलती है, उस पर टैक्स नहीं लगता

हालांकि, एक पेंच है

50% तक रकम तभी निकाली जा सकती है, जब बच्ची 18 साल की हो जाए

एक बच्ची के नाम पर सिर्फ एक खाता खोला जा सकता है और ज्यादा से ज्यादा दो खाते खोलने की इजाजत है

अगर जुड़वा या तीन बच्चियां एक साथ होती हैं, तो तीसरे बच्चे को इसका फायदा मिलेगा

कैसे उठाएं फायदा?

नजदीक के डाकघर या सरकारी बैंकों में जाएं, जहां ये सुविधा आपका इंतजार कर रही है

सौजन्य: Newsflicks

 

और ये रहे सलाद सजाने के अनोखे अंदाज

शेफ शोभा इन्दाणी के किचेन से

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जो बनाएं, प्रेम और लगन से बनाकर परोसें, रिश्ते मजबूत होंगे

shobha indani picखाना बनाना आम महिला की जिंदगी का हिस्सा है मगर खाना बनाना किसी का शौक न रहकर जुनून बन जाए तो वह उसकी पहचान भी बन जाता है। पुणे की प्रसिद्ध शेफ शोभा इन्दाणी को उनके इस शौक न सिर्फ पहचान ही नहीं दी बल्कि वह ताकत दी जिससे वे हजारों युवतियों और लोगों को पाक कला से जोड़ रही हैं। महानगर में भी वे शीघ्र ही अपनी कुकिंग कार्यशाला के सिलसिले में आने वाली हैं। शोभा इन्दाणी जी ने हाल ही में ‘गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में ‘लार्जेस्ट कुकिंग लेसन’ का भी रिकॉर्ड बनाया था जहां उन्होंने ने 4000 लोगों को एक साथ 100  से भी ज़्यादा व्यंजन बनाना सिखाया था इंदौर में। उन्होने पिछले 30  सालो से ट्रेनिंग दे कर आज तक 50,000 लोगों से भी ज़्यादा लोगों को भारत के अनेक शहरों तथा गाँवों में लाखो लड़कियों एवं स्त्रियों को प्रशिक्षण दिया है। कोलकाता में होने वाला यह दो दिवसीय आयोजन मीडिया कनेक्ट की ओर से किया जा रहा है। आगामी 11  और 12  मार्च को सफायर बैंक्वेट में (इ एम बाईपास) यह कार्यशाला आयोजित की जा रही है। अपराजिता आपकी मुलाकात इस बार प्रख्यात शेफ शोभा इन्दाणी से करवाने जा रही है –

प्र. इस क्षेत्र में शुरुआत आपने कैसे की?

उ. पाक कला के क्षेत्र में तो मैं पिछले 30 साल से सक्रिय हूँ। कोशिश हमेशा कुछ नया करने की रहती है।जहाँ तक शुरुआत की बात है तो मेरी शादी 18 साल की उम्र में हो गयी है। मैंने जो भी सीखा है, अपनी माँ और सासू माँ से ही सीखा है मगर खास बात यह है कि मेरा सफर यहीं से आरम्भ हुआ। मैं जो भी बनाती थी, उसमें प्रयोग करती थी और पाक कला को निखारने के लिए मैंने होटल मैनेजमेंट किया।

प्र. तब से लेकर आज तक किस प्रकार का बदलाव आप देखती हैं?

उ. खाना बनाना हमेशा आपको खुशी देता है और बदलाव तो यह है कि खाने का स्वाद बदलता रहता है। लोग हर रेसिपी के साथ प्रयोग करके उसे और बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। पहले यह सोचा भी नहीं जा सकता था कि पुरुष रसोई में जाकर कुछ पकाएं और उनको यह पसंद भी नहीं था। आज यह दिक्कत नहीं है, लड़के न सिर्फ रसोई में जा रहे हैं बल्कि अच्छा खाना पका रहे हैं और यह उनको अच्छा भी लगता है।

प्र. इस बदलाव में रिएलिटी शोज की कुछ भूमिका रही है?

उ. रिएलिटी शोज से पाककला को एक ग्लैमर मिला है और यह इसकी लोकप्रियता का कारण भी बना है। अब शेफ होने पर सम्मान मिलता है औऱ शेफ सेलिब्रिटी भी बन सकते हैं तो यह बदलाव तो ऐसे शोज की वजह से ही हुआ है। आज लोग खासकर युवा पीढ़ी भी पाक कला में रुचि रख रही है और उसे खाना बनाना अच्छा लग रहा है तो यह बदलाव ऐसे शोज के कारण हुआ है।

प्र. आप खुद किस तरह का खाना बनाना पसंद करती हैं?

उ. मैं ऐसा खाना बनाना पसंद करती हूँ जो आसानी से बने, उसमें नयापन हो और वह किफायती भी हो। आज कॉलेजों की लड़कियाँ भी मुझसे सीखने आती हैं। मुझे हर तरह का खाना बनाना पसंद है। भारतीय भोजन के साथ आप कई तरह के प्रयोगग कर सकते हैं। खासकर अंतरराष्ट्रीय व्यंजनों को भारतीय स्वाद में पेश करना मुझे बेहद पसंद है।

प्र. कोलकाता में होने वाली कार्यशाला के बारे में बताएं?

उ. इस कार्यशाला में मॆ २ दिन में 100 से भी ज़्यादा  विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन और कुकिंग टिप्स और तकनीक सिखाने जा रही हूँ। 500  से भी ज़्यादा लड़कियां और गृहणियों को अब तक प्रशिक्षण दे चुकी हूँ। मॉकटेल्स, सौप्स, स्टार्टर्स, सलाद्स, पुड्डिंग्स, डेज़र्ट्स, चाइनीज़ , इतालियन, मेक्सिकन, सब्जियां, रोटिस, मिठाइस, स्नैक्स, कूकीज, केक्स, थाई, कॉन्टिनेंटल, मंगोलियन, सीज़्ज़लेर्स, डिप्स, चॉकलेट्स, आदि. इसके साथ साथ वो केक आइसिंग और सलाद कार्विंग्स भी कार्यशाला में सिखायी जाएगी। खास बात यह है कि हम प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र देंगे और यह कार्यशाला पूरी तरह शाकाहारी होगी।

प्र. आप क्या संदेश देना चाहेंगी?

उ. खाना रिश्ते मजबूत करता है। मैं तो यही कहूँगी कि जो भी बनाएं, उसमें लगन के साथ प्रेम होना चाहिए। इससे उसका स्वाद और अच्छा होगा।shobha indani pic

नीरजा की अभिनव गाथा के अनसुने किस्से

पैन एम 73 फ्लाइट की सीनियर पर्सर रहीं नीरजा भनोट 1986 में आतंकवादियों का मुकाबला करते हुए और विमान में सवार यात्रियों की जान बचाने के दौरान शहीद हो गई थीं। हमले के वक्त विमान में करीब 400 लोग मौजूद थे. नीरजा उस समय सिर्फ 23 साल की थीं। 5 सितंबर को ये हादसा हुआ और 7 सितंबर को नीरजा का जन्मदिन था।

 नीरजा का जन्म पत्रकार हरीश भनोट और रमा भनोट के घर 1963 में हुआ था. उनके माता-पिता ने जन्म से पहले ही तय कर लिया था कि अगर उनके घर बेटी का जन्म हुआ तो वे उसे ‘लाडो’ कहकर बुलाएंगे।

साल 1985 में एक बिजनेसमैन के साथ नीरजा की अरेंज मैरिज हुई. शादी के बाद वो अपने पति के साथ खाड़ी देश चली गईं. जहां उन्हें दहेज के लिए यातनाएं दी जाने लगीं. नीरजा इन सबसे इतना तंग आ गईं कि शादी के दो महीने बाद ही मुंबई वापस आ गईं और फिर वापस नहीं लौटीं।

मुंबई लौटने के बाद उन्होंने कुछ मॉडलिंग कॉन्ट्रेक्ट पूरे किए और उसके बाद पैन एम एयरलाइन्स ज्वाइन किया. इस दौरान उन्होंने एंटी-हाईजैकिंग कोर्स भी किया।

हादसे वाले दिन नीरजा विमान में सीनियर पर्सर के तौर पर तैनात थीं. 5 सितंबर को मुंबई से न्यूयॉर्क के लिए रवाना हुए पैम एम 73 विमान को कराची में चार आतंकियों ने हाइजैक कर लिया था।

. विमान हाइजैक करने के 17 घंटे बाद आतंकवादियों ने विमान में सवार लोगों को मारना शुरू कर दिया था लेकिन नीरजा ने हिम्मत दिखाई और विमान के इमरजेंसी दरवाजे खोलने में कामयाब हुईं।

नीरजा चाहतीं तो इमरजेंसी दरवाजे खोलने के साथ ही सबसे पहले बचकर निकल सकती थीं लेकिन उन्होंने जिम्मेदारी उठाई और पहले यात्रियों को बाहर सुरक्षि‍त निकालने का फैसला किया।

जिस समय वो तीन बच्चों को विमान से बाहर सुरक्षित निकालने की कोशिश कर रही थीं उसी वक्त एक आतंकवादी ने उन पर बंदूक तान दी. मुकाबला करते हुए नीरजा वहीं शहीद हो गईं।

 नीरजा की बहादुरी ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हीरोइन ऑफ हाईजैक के रूप में मशहूर कर दिया।

नीरजा की याद में एक संस्था नीरजा भनोट पैन एम न्यास की स्थापना की गई है. जो महिलाओं को उनके साहस और वीरता के लिए सम्मानित करती है।

नीरजा सबसे युवा और प्रथम महिला थीं, जिन्हें उनकी बहादुरी के लिए अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।

 

स्प्रिंग फैशन कलेक्शन पर एक नजर

डिजाइनर्स के पास हर सीजन के लिए हमेशा कुछ न कुछ नया होता है और तमाम फैशन वीक में उनका क्रिएशन लाजवाब रहता है तो स्प्रिंग कलेक्शन में भी रैम्प पर अपने नये कलेक्शन का जादू इन डिजाइनर्स ने कुछ इस तरह दिखाया1443263326sanjay-garg

रॉ मैंगो के डिजाइनर संजय गर्ग ने अमेजन इंडिया फैशन वीक में पेश किया स्प्रिंग समर 2016samant chaouhan

सामंत चौहान का अमेजन इंडिया फैशन वीक का नया स्प्रिंग समर कलेक्शन

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मैक्स फैशन का नया स्प्रिंग कलेक्शन