Friday, March 14, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 814

प्रेम और ज्ञान का विस्तार हो

फरवरी का महीना, रुमानियत का ही नहीं ज्ञान का भी महीना है। वसंत कदम रख रहा है और ज्ञान की देवी सरस्वती का आगमन भी होने वाला है मगर इसे बाजार का करिश्मा कहिए या कुछ और संत वेलेन्टाइन ने कुछ ऐसी दस्तक दी है कि पूरा हवा में वेलेंटाइन समा गया है। मजे की बात यह है कि क्रिसमस और वेलेंटाइन डे, इन दोनों उत्सवों में लाल रंग पर खास जोर दिया जाता है और भारतीय संस्कृति में भी लाल रंग का विशेष महत्व है। प्रेम हो तो लज्जा की लालिमा और क्रोध हो तो आँखों में अँगारे, सूर्य की सिन्दूरी लालिमा, लाल चूड़ियाँ, लाल जोड़ा, लाल बिन्दी, कितना कुछ लाल है, कहने का मतलब यह है कि जो हम पश्चिम से उधार ले रहे हैं, वह कहीं अधिक विस्तृत रूप में हमारे पास मौजूद है, फर्क यह है कि हम वेलेंटाइन्स डे के अगले दिन एनिमी डे नहीं मनाते। प्रेम में ईश्वर छुपा होता है मगर उस प्रेम का अर्थ प्रिय पर कब्जा जमाना या उसके व्यक्तित्व को छीनना हरगिज नहीं होता। प्रेम औदात्य है और जहाँ औदात्य नहीं, जहाँ प्रिय की न का मतलब उस पर तेजाब फेंकना हो, वहाँ प्रेम कैसा? प्रेम रोमांस ही नहीं बल्कि मातृत्व है, दोस्ती है और इसका स्वरूप तो इतना बड़ा है कि इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती मगर आज तोहफों के इस दौर में जब इश्क को तोहफों की कीमत से तौला जा रहा हो और रिश्ते फायदा देखकर बनाए जाने लगे हों तो वहाँ कबीर, मीरा, तुलसी, निराला और बच्चन और भी प्रासंगिक जान पड़ते हैं। अच्छा लगता कि जब कोई स्त्री की बात करता है मगर तकलीफ तब होती जब उसमें भी सस्ती लोकप्रियता बटोरने की सनक होती है। प्रेम की कोई भाषा नहीं होती, संवेदना की भाषा नहीं होती मगर उसका प्रभाव स्थायी और

इश्क है तो जताना भी जरूरी है

इश्क करना कोई इनसे सीखे…    तू मुझ से दूर कैसी है, मैं तुझसे दूर कैसा हूं, यह तेरा दिल समझता है और.. यह मेरा दिल समझता है … यह लाइनें कवि कुमार विश्वास की हैं जो कि पूर्णत: सच्चाई को बयां करती हैं। वाकई में दो प्यार करने वाले लोग ही दूरियां, तड़प और बेचैनी को समझ सकते हैं। अगर दिल में मोहब्बत हो तो साथी की बुरी बात भी अच्छी लगती है। 14 फरवरी को हम संत वैलेंनटाइन के नाम पर मनाते हैं। वो वैलेंनटाइन जिन्होंने प्यार करने वालों को एक करने के लिए अपनी जान दे दी। प्यार एक खूबसूरत एहसास है, बेहतर यही है कि इसे सिर्फ आप रूह से महसूस करें, तभी आप प्यार का आनंद ले पायेंगे। लेकिन आज की दौड़ती-भागती जिंदगी में आदमी के पास समय छोड़कर बाकी सब कुछ हैं। यूं तो प्यार करने और जताने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं लेकिन भागती हुई जिंदगी के लिए ही आज का दिन मोहब्बत के नाम कर दिया गया। अक्सर पति-पत्नी को कहते हुए सुना जाता है कि शादी के पहले तो तुम्हारे लिए हम ही खास थे लेकिन शादी के बाद हमें छोड़कर बाकी सब खास हो गये हैं। इसलिए वेलेंटाइन डे हो या फिर कुछ और हमें फर्क नहीं पडता है। प्यार-व्यार सब बकवास है। तो दोस्तो जरा सोचिए कि ऐसा क्यों होता है? वो प्यार कहां खो गया, क्या जिम्मेदारियों के बोझ के आगे मुहब्बत कुर्बान हो गयी। आखिर आप जिनके लिए रात-दिन पैसे कमा रहे हैं, व्यस्त हैं वो आपका प्यार ही तो है। माना की प्यार को किसी परिचय और प्रमाण की जरूरत नहीं लेकिन कभी-कभी इसे जताना पड़ता है ताकि अगले को भी एहसास हो कि आप आज भी उन्हीं के हैं। आज के दिन आप अपने मीठे पलों को याद कीजिये। जरा सोचिए अगर आपकी मुहब्बत आपके पास नहीं हैं फिर भी आप उसी के बारे में सोचते हैं, मोबाइल पर ना चाहते हुए भी आप उसी का नंबर डायल कर देते हैं, बिजी होने के बावजूद जिस टाइम वो घर आती है या आता है तो खुद ब खुद घड़ी की सुईयों पर आपकी नजर चली जाती है। तो अगर यह सब वाकई में आपके साथ हो रहा है तो समझिये आपका एहसास कहीं खत्म नहीं हुआ है वो तो आपके जहन में आज भी जवां है। जिसे आप आज के दिन फिर से अपने प्यार के आगे प्रकट कर सकते हैं। यकीन मानिये आपको दोबारा से ‘आईलवयू’ कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी और आपका आज का दिन आपकी जिंदगी का बेस्ट दिन बन जायेगा।

 

शादी में 18 हजार विधवाओं को दिया न्योता

भारत में जहां आज भी रूढ़िवादी विचारधारा के लोग किसी शुभकार्य में विधवा महिलाओं की मौजूदगी को अशुभ मानते हैं, वहीं गुजरात के एक बिजनेसमैन ने इस कुरीति को दरकिनार करते हुए अपने बेटे की शादी में 18,000 विधवाओं को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया।

गुजरात के ‘ग्रीन एंबेस्डर’ के रूप में पहचाने जाने वाले जीतूभाई पटेल ने इस कुरीति को तोड़ने का का निश्चय किया और इसलिए उन्होंने अपने बेटे रवि और नववधू मोनाली पटेल को आशीर्वाद देने के लिए इन महिलाओं को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था। ये महिलाएं गुजरात के बनासकांठा, मेहसाना, साबरकांठा, पाटन और अरावली जिलों से आईं थीं।

जीतूभाई ने कहा, ‘यह मेरी दिली ख्वाहिश थी कि नए जोड़े को विधवा महिलाएं आशीर्वाद दें, जिनकी समाज में अनदेखी की जाती है। शुभ मौके पर उनकी उपस्थिति को अशुभ माना जाता है, लेकिन मैं यह साबित करना चाहता था कि यह मान्यता अंधविश्वास से अधिक कुछ नहीं हैं।’

शादी में आईं इन महिलाओं को एक कंबल और एक पौधा इस वादे के साथ दिया गया कि वे इनका खयाल रखेंगी। इन महिलाओं को जीतूभाई की तरफ से एक एक दुधारू गाय भी भेंट की गई ताकि वे आत्मनिर्भर बन पाएं।

मेहसाना जिले के वीजापुर बस्ती की रहने वाली हंसा ठाकुर ने कहा, ‘अब मैं एक अच्छी जिंदगी जी सकती हूं क्योंकि मेरे पास एक गाय है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक विधवा को भी इतना सम्मान मिलेगा, मैंने कभी भी इसकी उम्मीद नहीं की थी।’

सरस्वती वंदना

कवि  – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

saraswati-DG70_l

वर दे, वीणावादिनि वर दे !

प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव

भारत में भर दे !

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे।

रायपुर के शनिदेव की पूजा करती हैं महिलाएँ

 महाराष्ट्र के प्रसिद्ध शनि शिंगणापुर में स्थित भगवान शनिदेव की प्रतिमा पर जहां महिलाओं को तेल अर्पित करने से रोके जाने का मामला सुर्खियों में है, वहीं राजधानी रायपुर के शनि मंदिरों में महिलाओं को तेल चढ़ाने से कोई मनाही नहीं है। छोटी उम्र की बालिका से लेकर युवतियां और बुजुर्ग महिलाएं तक शनिदेव की प्रतिमा पर श्रद्धा से तेल अर्पित करती हैं।

शनि मंदिरों में पुरुषों से ज्यादा युवतियां व महिलाओं की लाइन लगी रहती है। तेल अर्पित करने आई महिलाओं का कहना है कि किसी भी भगवान की पूजा-अर्चना करने से महिलाओं को रोकना गलत है। भारतीय संस्कृति में जब नारी को देवी तुल्य माना जाता है तो फिर उन्हें पूजा-अर्चना करने से कैसे रोका जा सकता है?

शनिवार को सुबह से ही शनि मंदिरों में भगवान शनिदेव को तेल अर्पित करने के लिए महिलाओं की कतार लगी रही और बारी-बारी से महिलाओं ने विधिवत पूजा-अर्चना करके शनि प्रतिमा पर तेल अर्पित किया। हालांकि चूड़ी लाइन स्थित प्राचीन शनि मंदिर में गर्भ गृह के भीतर किसी भी भक्त के प्रवेश करने की मनाही है और मुख्य प्रतिमा पर तेल अर्पित नहीं किया जा सकता सिर्फ उनके श्रृंगारित रूप का ही दर्शन किया जा सकता है, लेकिन मंदिर परिसर में ही पत्थर के एक और शनि देवता को विराजित किया गया है जहां कोई भी भक्त तेल अर्पित कर सकता है। दोपहर को मंदिर परिसर में अनेक पुरुष व महिलाएं तेल अर्पित करते नजर आईं।

आजाद चौक मुख्य मार्ग पर स्थित शनि मंदिर में दोपहर को बीच सड़क तक महिलाओं की कतार लगी रही। डीडी नगर से अपनी मां के साथ मंदिर पहुंची अनुपमा ठाकुर ने मंदिर के बाहर से पूजन सामग्री व तेल खरीदा और पुरुषों के पीछे लाइन में लग गई। मंदिर के भीतर प्रवेश करने के बाद उन्होंने पहले अगरबत्ती प्रज्ज्वलित कर पूजा की और फिर पॉलिथिन में रखे तेल को शनिदेव की प्रतिमा पर चढ़ाया।

इसके बाद शनिदेव की परिक्रमा की। उनके पीछे अनेक महिलाओं ने भी पूजा का क्रम जारी रखा। पूजा करने के बाद जब वे मंदिर से बाहर निकली तो पूछने पर बताया कि वे कई साल से निरंतर हर शनिवार को मंदिर आकर तेल अर्पित करती हैं, वे शनि शिंगणापुर जाकर भी दर्शन कर चुकी हैं लेकिन वहां महिलाओं को तेल चढ़ाने नहीं दिया जाता सिर्फ दर्शन करने की ही छूट है, इसलिए निराश हुई थी, मगर अपने शहर में जितनी देर तक चाहो शनिदेव के दर्शन कर तेल अर्पण कर मन्न्त मांगने की छूट है। वे कहती हैं कि महिलाओं को शनिदेव पर तेल अर्पण करने से रोकना गलत है।

कॉलेज में पढ़ने वाली युवती आरती ने भी शनि मंदिर में शनिदेव की प्रतिमा पर तेल अर्पित किया और पूछे जाने पर बताया कि किसी भी भगवान को मानना या न मानना अपनी-अपनी आस्था पर निर्भर करता है। हजारों लोग मन में ख्वाहिशें लेकर शनि सिंगनापुर जाते हैं और वहां यदि तेल अर्पण करने से रोका जाए तो यह महिलाओं के साथ अन्याय है, क्योंकि हमारी संस्कृति में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है।

घर-घर मे पूजा-पाठ ज्यादातर महिलाएं ही करती हैं, जिन्होंने भारतीय संस्कृति को जीवित रखा है। पुरुष वर्ग तो महज हाथ जोड़कर व शीश नवाकर चले जाते हैं, मगर विधिवत पूजा महिलाएं ही करती हैं। ऐसे में महिलाओं के साथ भेदभाव करना उचित नहीं है। मंदिर में अनेक युवतियों व महिलाओं ने भी पूजा के बाद खुशी जाहिर की और कहा कि अच्छा है हमारे शहर में कोई प्रतिबंध नहीं है, वरना लोग मंदिरों में जाना ही बंद कर देंगे।

 

पुस्तक मेला – किताबों की खुमारी में घुली संस्कृति की मिठास

पुस्तक मेला बंगाल की संस्कृति ही नहीं एक वैश्विक उत्सव है। लाखों पुस्तक प्रेमी मिलन मेला प्राँगण में उमड़ पड़ते हैं। जब उत्सव होता है तो उसका विस्तार भी होता है, कुछ ऐसा ही विस्तार पुस्तक मेले का भी हुआ है। अब यहाँ सिर्फ साहित्य ही नहीं बल्कि कला, संस्कृति और बाजार पूरी शिद्दत के साथ मौजूद है। नलेन गुड़ का संदेश है तो टैटू भी है और टी शर्ट पर रंग बिखेरती महिलाएं भी हैं। पुस्तक मेले में घूमते हुए एहसास होता है कि कोलकाता को इसकी कितनी सख्त जरूरत है, वैसे ही या कुछ ऑक्सीजन की तरह।

IMG_20160130_162350

पुस्तक मेले में जगह – जगह लगे कियोस्क आपको एहसास दिलाएंगे कि यह शहर अपनी जडें अब भी जूट की संस्कृति में तलाश रहा है। नेशनल जूट बोर्ड में जिस तरह से जूट के थैले और गहने तक बिक रहे हैं, उसे देखकर तो यही एहसास होता है। यहाँ मौजूद दक्षिणापन्न के गौतम दत्त जब पूरे आत्मविश्वास के साथ उम्मीद जताते हैं कि इस साल बिक्री 15 लाख रुपए का आँकड़ा पार कर लेगी तो अच्छा ही लगता है।

IMG_20160130_155045नलेन चंद्र दास एंड सन्स के स्टॉल पर चॉकलेट संदेश, मौसमी और जलभरा जैसी मिठाइयों के लिए लगी भीड़ एहसास दिलाती है कि जहाँ मीठा है, बँगाल वहीं है। अब आते हैं हिन्दी पुस्तकों की तलाश में गलियारे में, इस बार उदासी नहीं है, एक साथ सारे स्टॉल कतार में और इनमें हिन्दी के पाठक, बुद्धिजीवी और लेखकों का जमावड़ा मानो मेला शब्द की साथर्कता साबित कर देता है। फेसबुक लेखन, इस बार एक नयी विधा दिखी और दिखीं इश्क पर लिखीं कई सारी किताबें। हमेशा की तरह आनंद प्रकाशन, प्रभात प्रकाशन, राजकमल प्रकाशन, पूजा बुक हाउस से लेकर साहित्य अकादमी के स्टॉल। अभी और पाठक उमड़ेंगे, व्यवस्था भी अच्छी है, कहते हैं आनंद प्रकाशन के दिनेश त्रिपाठी, फिर भी एक कसक रह जाती है, कभी जन्म लेगी हिन्दी प्रदेश में किताबों से इश्क की संस्कृति, यह भी उम्मीद है, शायद पूरी हो ही जाए, पुस्तक मेला तो साँस लेने की जगह है, भागती जिंदगी में खुद को तलाशने की कोशिश।

बनें बच्चों की आदर्श अभिभावक

  हर माता-पिता की ये इच्छा होती है कि उनके बच्चे पढ़े-लिखें और उनका नाम रोशन करें। उनमें वह तमाम आदतें हों जो एक अादर्श बच्चे में होती हैं, लेकिन क्या आप जानती हैं कि अपने बच्चे को आदर्श बनाने के लिए आपको भी उतनी ही मेहनत करने की जरूरत है जितनी की आपके बच्चे को।

अपने बच्चों के सामने चिल्लाने या फिर बहस करने से बचें। अपने गुस्से पर नियंत्रण कर अपने बच्चे के आगे एक उदाहरण रखें। बच्चों की अत्यधिक मांगों को पूरा करने या फिर उनपर अधिक प्रतिबंध लगाने से बचें। इन सब के जरिए आप अपने बच्चे को गुस्सैल होने से आसानी से बचा सकती हैं।

माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चों के प्रति अपने प्यार को जाहिर करें। यह भी जरूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों से जिम्मेदाराना उम्मीदें रखें, क्‍यों‍कि जीवन में अनुशासन होना बहुत जरूरी है।

बच्चों को अनुशासन का पालन करना सिखाएं। अनुशासन का मतलब है नियम, सिद्धान्त और आदेशों का ठीक से पालन करना है। अनुशासन का अर्थ है, खुद को वश में रखना। अनुशासन सफलता की वजह भी बनता है। इसलिए अपने बच्चों को अनुशासित जरूर बनाएं।

जब भी बच्चा कुछ कहना या पूछना चाहें, तो उन्हें रोकें या टोकें नहीं। बच्चे को अपने मन की बात कहने दें और उसे प्रोत्साहित करें कि वह अपने मन की बात को बेझिझक होकर कह सके। इससे वह मुखर होगा और आगे अपने जीवन में खुल कर जी सकेगा।

अगर परिवार में कोई ऐसी समस्या है, जिसका संबंध बच्चे से है, तो कोई भी फैसला लेने से पहले बच्चे की सलाह जरूर लें या फिर उस फैसले में बच्चे को भी शामिल करें। बच्चों के सुझावों के लिए खुद को नकारात्मक करने की बजाए उनके सुझावों को गंभीरता से लें।

बच्‍चे के लिए एक अच्छा उदाहरण बनें। अपने बच्चों के सामने चिल्‍लाने या फिर बहस करने से बचें। अपने गुस्से पर नियंत्रण कर अपने बच्चे के आगे एक उदाहरण बनें। बच्चों की हर मांग को पूरा करने या फिर उनपर अधिक प्रतिबंध लगाने से बचें। इन सब के जरिए आप अपने बच्चे को गुस्सैल होने से आसानी से बचा सकती हैं।

माता पिता को चाहिए कि वह बच्चों के प्रति अपने प्‍यार को जाहिर करें। आप उन्हें जितना प्यार और सहारा देंगे वे जीवन में उतने ही मुखर और आत्मविश्वासी बनेंगे।

अपने अनुशासन पर अपनापन हावी न होने दें। ये ध्यान रखें कि आज आपकी थोड़ी-सी कठोरता, बच्चे के जीवन के लिए लाभदायी साबित होगी।

जब भी बच्चा कुछ कहना या पूछना चाहें, तो उन्हें रोके या टोके नहीं। बच्चे को अपने मन की बात कहने दें और उसे प्रोत्साहित करें कि वह अपने मन की बात को बेझिझक होकर कह सके। इससे वह मुखर होगा और आगे अपने जीवन में खुल कर जी सकेगा।

 

डार्क सर्कल से इस तरह पाएं छुटकारा

आजकल की हमारी लाइफस्‍टाइल कुछ ऐसी है कि हम घंटों कम्‍प्‍यूटर के आगे अपना समय बिताते हैं, जिसका तनीजा हमारी आंखों के नीचे काले घेरों के रूप में उभरक सामने आते हैं। पके बाल या चेहरे की झुर्रियों से कहीं ज्यादा आंखों के नीचे के काले घेरे आपकी बढ़ी उम्र के परिचायक हैं। आप अगर काले घेरे से परेशान हैं, तो टी बैग या मलाई आजमाएं, यह इन्हें कम करने में मददगार हैं। राजधानी स्थित नेशनल स्किन सेंटर के निदेशक नवीन तनेजा ने आंखों के नीचे के काले घेरों से छुटकारा पाने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं।

टी बैग: रेफ्रिजरेटर में आधे घंटे तक रखे गए दो ब्लैक या ग्रीन टी के बैग का इस्तेमाल करें। उन्हें दोनों आंखों पर रखें और 10-15 मिनट तक वहीं रहने दें। इसके बाद उन्हें हटाएं और अपना मुहं धो लें इस प्रक्रिया को कुछ सप्ताह तक दो बार करें।

ठंडक: ठंडे पानी या दूध में भीगा हुआ साफ कपड़ा लें और कुछ मिनटों के लिए इन्हें अपनी पलकों के पास रखें। मुलायम कपड़े में बर्फ का टुकड़ा लपेटें और कुछ मिनटों तक इसे अपनी आंख के पास रखें।

मलाई: दो चम्मच मलाई और एक चौथाई चम्मच हल्दी मिलाएं। इसे काले घेरों पर लगाएं। इसे 15 से 20 मिनट तक रहने दीजिए, बाद में इसे गुनगुने पानी से धो लें।

पुदीना: पुदीने की पत्तियों को हाथों से पीस लें। पुदीने की पत्तियों में नींबू का रस मिलाएं। इसे 15 से 20 मिनट तक लगाएं। इसके बाद धो लें। इसे रोजाना दो बार करें।

 

किशोरों को सिगरेट देने पर सात साल की हो सकती है सजा

दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के बाद पूरे देश में मचे बवाल के मद्देनजर जब जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट में संशोधन कर किशोर की उम्र सीमा 18 से घटाकर 16 साल की गई तब इसमें एक और प्रावधान किया गया, जो बहुत कम लोगों की नोटिस में गया है।

इस नए प्रावधान के मुताबिक अब किशोरों को सिगरेट या अन्य तंबाकू उत्पाद बेचने या ऑफर करने पर सात साल तक की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। यह नया कानून 15 जनवरी से देश में लागू हुआ है और इससे बिहार में तंबाकू नियंत्रण के क्षेत्र में काम कर रही संस्थाएं उत्साहित हैं।

सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पाद कानून (कोटपा-2003) के तहत अब तक 18 वर्ष से कम उम्र के किशोरों को तंबाकू उत्पाद बेचने पर मात्र 200 रुपये तक के दंड का प्रावधान था। पूर्व में जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट के तहत किशोरों को केवल नारकोटिक ड्रग, जहरीला पेय पदार्थ और उत्तेजित करने वाले पदार्थ देने पर सात साल की सजा और एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान था। अब इसमें तंबाकू उत्पाद को भी शामिल किया गया है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने नए कानून को लेकर गजट जारी कर दिया है। तंबाकू नियंत्रण के क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों से बिहार में काफी सक्रियता देखने को मिली है। पिछले वर्ष स्पेन में हुए वर्ल्ड टोबैको कांफ्रेंस में तंबाकू नियंत्रण के बिहार मॉडल के संबंध में जानकारी देने के लिए सोशियो इकॉनॉमिक एंड एजुकेशनल डेवलपमेंट सोसाइटी (सीड्स) के कार्यपालक निदेशक दीपक मिश्रा को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। सीड्स सूबे में राज्य स्वास्थ्य समिति के साथ मिल कर तंबाकू नियंत्रण के लिए अभियान चला रहा है, जिसके नतीजे में 2013 से लेकर अब तक आठ जिले धूमपान मुक्त घोषित किए जा चुके हैं।

इनमें मुंगेर, लखीसराय, मधेपुरा, कटिहार, समस्तीपुर, दरभंगा, वैशाली एवं पटना शामिल हैं। मिश्रा के मुताबिक नए कानून से तंबाकू नियंत्रण के क्षेत्र में सक्रिय कार्यकर्ता काफी उत्साहित हैं। भारत विश्व का पहला ऐसा देश है जिसने ऐसा सख्त कानून बनाया है। तंबाकू सेवन के चलते होने वाले कैंसर से हर वर्ष देश में करीब पांच लाख लोगों की मौत होती है।

 

असम की रेवती बनीं मिस एशिया

असम की रेवती छेत्री ने चीन में ऑर्गनाइज वर्ल्ड मिस एशिया यूनिवर्सिटी कॉन्टेस्ट में ‘मिस एशिया’ का खिताब जीता है। 22 साल की रेवती, आतिफ असलम की फैन हैं और उन्हें डेट करना चाहती हैं।

रेवती मॉडलिंग के अलावा गुवाहाटी लॉ कॉलेज से वकालत की पढ़ाई भी कर रही हैं और एक म्यूजिक एल्बम में भी काम कर चुकी हैं। इनके मॉडलिंग करियर की शुरुआत नेहा धूपिया के शो के लिए ऑडिशन से हुई थी। रेवती इससे पहले फेमिना मिस इंडिया 2015 में मिस पॉपुलर और मिस मल्टीमीडिया खिताब जीत चुकी हैं। वो अनुष्का और कंगना की तरह टॉप बॉलीवुड एक्ट्रेसेस के साथ 2015 में टाइम्स मैगजीन की मोस्ट डिजायरेबल वुमन की टॉप 50 में जगह पा चुकी हैं। 1986 से हर साल वर्ल्ड मिस एशिया यूनिवर्सिटी कॉन्टेस्ट ऑर्गनाइज किया जा रहा है और इसमें हर साल लगभग 70 कंटेस्टेंट्स हिस्सा लेती हैं। इस साल इस कॉन्टेस्ट में 69 मॉडल्स ने हिस्सा लिया था।