Saturday, March 15, 2025
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हिंदू विवाह अधिनियम पास करने वाला पाकिस्तान का पहला प्रांत बना सिंध

पाकिस्तान की सिंध विधानसभा ने सोमवार को हिंदू विवाह अधिनियम पारित कर दिया. सिंध अपने देश का पहला प्रांत बन गया है जहां अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय अपनी शादियों का रजिस्ट्रेशन करा सकेगा. एक प्रमुख हिंदू संगठन ने इस ऐतिहासिक विधेयक से एक विवादित नियम हटाने की मांग की है। विधानसभा में इस विधेयक को संसदीय कार्य मंत्री निसार खुहरो ने पेश किया. परित हो जाने के बाद यह अधिनियम पूरे सिंध प्रांत में लागू होगा. पाकिस्तान के इस प्रांत में हिंदुओं की अच्छी खासी आबादी है. खुहरो ने कहा, ‘‘पाकिस्तान के गठन के बाद से यह पहला मौका है जब कोई ऐसा कानून पारित किया गया है. यह फैसला सिंध में हिंदू शादियों का औपचारिक रूप से रजिस्ट्रेशन करने के लिए मशीनरी मुहैया करने को लेकर किया गया है.’’एक राष्ट्रीय संसदीय समिति ने इसके ड्राफ्ट को मंजूरी दी थी. इससे पाकिस्तान में हिन्दू समुदाय के विवाह और तलाक के रजिस्ट्रेशन का रास्ता साफ हुआ है. यह विधेयक विवाह की न्यूनतम उम्र 18 साल निर्धारित करता है. विधेयक के मुताबिक यह आवश्यक है कि पुरूष और महिला के बीच सहमति से और कम से कम दो गवाहों की मौजूदगी में विवाह का रजिस्ट्रेशन हो। विधेयक के मुताबिक हर विवाह का अधिनियम के मुताबिक पंजीकरण होगा. हिंदू विवाह कानून के नहीं रहने से विवाह का प्रमाणपत्र हासिल करने और राष्ट्रीय पहचान पत्र हासिल करने के साथ ही जायदाद में हिस्सेदारी लेने में काफी मुश्किल आ रही थी.

पाकिस्तान के एक प्रमुख हिंदू संगठन ने अधिनियम से एक विवादित नियम को हटाने की मांग की है. इस नियम के मुताबिक पति-पत्नी में से किसी के धर्म परिवर्तन करने पर शादी को रद्द करने का प्रावधान है. संगठन ने कहा है कि इससे अल्पसंख्यक समुदाय (हिंदू) की महिलाओं का जबरन धर्म परिवर्तन किया जा सकता है। पाकिस्तान हिन्दू परिषद नामक संगठन के प्रमुख संरक्षक रमेश वांकवाणी ने कहा कि पाकिस्तान में हिंदू समुदाय इस नियम को लेकर चिंतित है.उन्होंने कहा कि हिंदू विवाह आपत्तिजनक उपबंध 12 (3) का इस्तेमाल हिंदू लड़कियों और महिलाओं के लिए किया जा सकता है. यह कहता है कि पति-पत्नी में किसी के धर्म बदलने से शादी खत्म हो सकती है. सत्तारूढ़ पीएमएल (एन) के सांसद वांकवाणी ने कहा कि हमने खासतौर पर सिंध के ग्रामीण इलाकों में हिंदू महिलाओं और लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन के मुद्दे को सरकार के समक्ष उठाया है। वांकवाणी ने कहा कि यह नियम इसके दुरुपयोग को बढ़ा सकता है. उन्होंने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जब हिंदू लड़कियों का अपहरण किया गया और बाद में उनका धर्म बदलवाकर एक मुसलमान व्यक्ति से शादी के प्रमाणपत्र अदालत में पेश कर दिए गए. इस विवाद को खत्म करने के लिए कानून एवं न्याय पर स्थायी समिति की अध्यक्ष नसरीन जलील ने कहा कि उन्होंने इस हफ्ते समिति की एक बैठक बुलाई है, ताकि हिन्दू समुदाय की चिंताओं पर चर्चा की जा सके.

बुंदेलखंड में ‘रोटी बैंक’ के बाद अब ‘स्वच्छता बैंक’ भी

महोबा (उप्र): सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड क्षेत्र के बुंदेली समाज ने ‘स्वच्छता बैंक’ की स्थापना कर आम जन के सामने एक बड़ा संदेश दिया है। ‘स्वच्छता बैंक’ में बुंदेली समाज द्वारा लगाए गए नवयुवक शहर में गंदगी को लेकर चौकन्ने रहेंगे और जगह-जगह स्वच्छता बैंक के कूड़ेदान सार्वजनिक स्थलों पर रखे जाएंगे। ‘स्वच्छता बैंक’ से जुड़े नवयुवक कूड़ेदानों में इकट्ठा हुए कूड़े को शहर के बाहर फिकवाने का इंतजाम भी करेंगे।

बुंदेली समाज के पदाधिकारी व कार्यकर्ता जहां एक ओर ‘रोटी बैंक’ के माध्यम से शहर में असहाय विकलांग और गरीब लोगों को पेटभर खाना देते हैं, वहीं दूसरी ओर बुंदेली समाज ने रविवार को ‘स्वच्छता बैंक’ की स्थापना की। इसकी स्थापना आम जन मानस को जागरुक करने के साथ-साथ शहर को साफ-सुथरा बनाने के उद्देश्य से की गई है।
बुंदेली समाज के तारा पाटकर ने बताया कि ‘स्वच्छता बैंक’ के माध्यम से शहर को साफ करने व स्वच्छ रखने में बड़ा योगदान होगा और सार्वजनिक स्थलों पर स्वच्छता बैंक द्वारा जगह-जगह कूड़ेदान रखे जाएंगे। आम लोगों को इस कूड़ेदान में ही कचरा डालने के लिए प्रेरित किया जाएगा। ‘स्वच्छता बैंक’ में निस्वार्थ भाव से लगे नवयुवकों द्वारा कूड़ेदानों में इकट्ठा कचरे को फिकवाएंगे।

 

प्यार की लालिमा से सजाइए प्यार का दिन

प्यार की जब भी बात चले तो लाल रंग का जिक्र तो जरूर चलना है। लाल गुलाब जोश का नहीं प्यार का प्रतीक है। शुभकामनाओं का प्रतीक हैै और शायद यही वजह है कि बधाई कार्ड और शादी के दौरान भी लाल रंंग बेहद इस्तेमाल भी किया जाता है। लाल शादी का जोड़ा और लाल बिंदी के बगैर तो शायद भारतीय शादियाँ ही लम्बे समय तक अधूरी मानी जाती थीं मगर भारी – भरकम साड़ी में तो आप शायद उन  अनमोल लम्हों का लुत्फ भी नहीं उठा सकती हैं। अगर आप सोच में पड़ी हैैं कि प्यार के नाम से सजी इस खूबसूरत शाम को कैसे खूबसूरत बनाएं  तो जरा एक नजर इधर डालिए

Red Dress upअगर आप पश्चिमी कपड़ों में असहज हैं तो जबरन ट्रेंड के नाम पर कुछ भी असुविधाजनक मत पहनिए क्योंकि यह आपके आत्मविश्वास पर असर डालेगा। आप शानदार भारतीय परिधान से भी प्यार की इस खूबसूरत शाम को और भी यादगार बना सकती हैं। बात सीधी सी है जो भी पहनिए अपने व्यक्तित्व और कार्यक्षेत्र के साथ वातावरण को ध्यान में रखकर पहनिए। साड़ी वैसे भी बेहद स्टाइलिश और फैशन डिजाइनरों की पहली पसंद है और इसके साथ कुंदन, मोती और रूबी या सेमिप्रेशयस स्टोन के जेवर आपके लुक को बेहद खास बना देंगे।saree

कुछ ऐसी है वेलेंटाइन्स डे की दास्तान

वेलेंटाइन्स डे आज सारी दुनिया में मनाया जाता है मगर आज इसका जो स्वरूप है, पहले नहीं था। कई शुरुआती क्रिश्चियन शहीदों के नाम वेलेंटाइन थे। 1969 तक, कैथोलिक चर्च ने औपचारिक रूप से ग्यारह वेलेंटाइन दिनों को मान्यता दी 14 फ़रवरी को सम्मानित वेलेंटाइन हैं रोम के वेलेटाइन वलेंतिनुस प्रेस्ब.म. रोमे) और टेर्नी के वेलेंटाइन (वलेंतिनुस एप. इन्तेराम्नेंसिस म. रोमे). रोम के वेलेंटाइन रोम के एक पादरी थे जिनको लगभग 269 AD में शहादत मिली और वाया फ्लेमिनिया में उन्हें दफनाया गया था। उनके अवशेष रोम के सेंट प्राक्स्ड चर्च में और डब्लिन, आयरलैंड के व्हाइटफ्रियर स्ट्रीट कार्मेलाईट चर्च में हैं। टेरनी के वेलेंटाइन AD 197 में इन्तेरामना (आधुनिक टेरनी) के बिशप बने और कहा जाता है की औरेलियन सम्राट के उत्पीडन के दौरान उनकी हत्या की गयी थी। उन्हें भी वाया फ्लेमिनिया में ही दफनाया गया है, लेकिन दफनाने का स्थान रोम के वेलेंटाइन से अलग है। उसके अवशेष टेर्नी में संत वेलेंटाइन के बेसिलिका (बेसिलिका डी सैन वेलेन्टीनो)] पर हैं।

कैथोलिक विश्वकोश एक तीसरे संत के बारे में भी जिक्र करता है जिनका नाम वेलेंटाइन था और जिनका जिक्र शुरुआती शहादतों में 14 फरवरी की तारीख के अन्दर आता है। उनकी शहादत अफ्रीका में अपने अनेकों साथियों के साथ हुई थी, लेकिन उनके बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं है।

इनमें से किसी भी शहीद की शुरुआती मूल मध्यकालीन जीवनियों में रोमानी तत्वों का कोई जिक्र नहीं है। जिस समय तक एक सेंट वेलेंटाइन का सम्बन्ध चौदहवीं सदी में प्रेम के साथ जुड़ता, रोम के वेलेंटाइन और टेरनी के वेलेंटाइन के बीच के भेद बिलकुल खो गए। वर्तमान संतों के रोमन कैथोलिक कैलेंडर के 1969 के संशोधन में, फ़रवरी 14 पर संत वेलेंटाइन के फीस्टडे को जनरल रोमन कैलेंडर से निकाल कर विशिष्ट कैलेंडरों (स्थानीय या फिर राष्ट्रीय भी) में निम्नलिखित कारणों से डाल दिया गया: हालाँकि सेंट वेलेंटाइन की यादगार प्राचीन है, उसे विशिष्ट कैलेंडरों के लिए छोड़ दिया गया, क्योंकि, उनके नाम के अलावा, सेंट वेलेंटाइन के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है सिवाय इसके की इन्हें वाया फ्लेमिनिया में १४ फरबरी को दफनाया गया था। </ref>फीस्ट डे आज भी बाल्ज़न(माल्टा) में मनाया जाता है जहाँ ऐसा दावा किया जाता है की सेंट के अवशेष मिले हैं और पूरी दुनिया में भी उन परम्परावादी कैथोलिकों के द्वारा मनाया जाता है जो पुराने प्री- वेटिकन II कैलेंडर को मानते हैं।

शुरुआती मध्यकालीन एक्टा का उद्धरण बीड के द्वारा किया गया था और लेगेंडा ओरिया में संक्षेप में व्याख्यान किया गया है। उस संस्करण के अनुसार, सेंट वेलेंटाइन का क्रिश्चियन के नाते उत्पीडन किया गया था और रोम के सम्राट क्लौडीयस II के द्वारा व्यक्तिगत रूप से पूछ ताछ की गयी थी। क्लोडिअस वेलेंटाइन से प्रभावित थे और उनके साथ चर्चा की थी, कोशिश की थी कि रोमन पागानिस्म में उनका धर्मान्तरण हो जाये ताकि उनकी जान बचायी जा सके.वेलेंटाइन से इनकार कर दिया और उल्टा कोशिश की कि क्लोडिअस क्रिस्चियन बन जाये.इस वजह से, उसे मार डाला गया था। ऐसा कहा जाता है कि मारे जाने से पहले उन्होनें जेलर की अंधी बेटी को ठीक करने का चमत्कार किया था।

लेगेंडा ओरिया अभी भी प्रेम के साथ कोई सम्बन्ध नहीं जोड़ पा रही थी, इसलिए दंतकथाओं को आधुनिक समय में जोड़ दिया गया। इनमें वेलेंटाइन को एक ऐसे पादरी के रूप में दिखाया गया जिसने रोमन सम्राट क्लोडिअस II के एक कानून को मानाने से इंकार कर दिया था जिसके अनुसार जवान लड़कों को शादी न करने का हुक्म दिया गया था। सम्राट ने संभवतः ऐसा अपनी सेना बढ़ाने के लिए किया होगा, उसका ये विश्वास रहा होगा की शादीशुदा लड़के अच्छे सिपाही नहीं होते हैं। पादरी वेलेंटाइन इस बीच चुपके से जवान लोगों की शादियाँ करवाया करते थे। जब क्लोडिअस को इस बारे में पता चला, उसने वेलेंटाइन को गिरफ्तार करवाकर जेल में फेंक दिया.इस सुन्दर दंत कथा को और अलंकृत करने के लिए कुछ अन्य किस्से जोड़े गए। मारे जाने से एक शाम पहले, उन्होंने पहला “वेलेंटाइन” स्वयं लिखा, उस युवती के नाम जिसे उनकी प्रेमिका माना जाता था। ये युवती जेलर की पुत्री थी जिसे उन्होंने ठीक किया था और बाद में मित्रता हो गयी थी। ये एक नोट था जिसमें लिखा हुआ था “तुम्हारे वेलेंटाइन के द्वारा”

ऐसा ही एक दिवस प्राचीन फारस में वेलेंटाइन दिवस के भी बहुत पहले से मनाया जाता था। इसे प्रेम और प्रेमियों के दिवस के रूप में जाना जाता था।

सत्रहवीं सदी के आने तक हस्तनिर्मित कार्ड बड़े और विस्तृत होते थे, जबकि दुकान से ख़रीदे गए कार्ड छोटे और मंहगे होते थे। 1797 में एक ब्रिटिश प्रकाशक ने युवकों के वेलेंटाइन लेखक को जारी किया, इसमें उन युवा प्रेमियों के लिए अनेकों भावुक छंदों का सुझाव था जो की अपना खुद का नहीं बना पाते थे। छापाकारों ने छंदों और चित्रों वाले कार्ड, जिन्हें “यांत्रिक वेलेंटाइन” कहा जाता था, का सीमित मात्रा में उत्पादन भी शुरू कर दिया था। और अगली सदी में डाक की दरों में कमी ने वेलेंटाइन को डाक द्वारा भेजने की आसन किन्तु कम निजी प्रथा को जन्म दे दिया.इसने पहली बार गुमनाम रूप से कार्डों के आदान प्रदान को संभव बना दिया. एक ऐसा युग जो की शुद्ध रूप से विक्टोरियन था, उसमें जातिगत छंदों के अचानक प्रकट होने का कारण इसी को माना जाता है।

चूँकि कागज के वेलेंटाइन इंग्लैंड में 1800 में अति प्रचलित थे, इसलिए इनको कारखानों में बनाया जाने लगा.असली फीते और रिबन की सहायता से सुन्दर वेलेंटाइन का निर्माण होने लगा. मध्य 1800 के आसपास कागज के फीतों का प्रचलन शुरू हुआ। 1840 में वेलेंटाइन दिवस की पुनर्खोज को ली एरिक श्मिट द्वारा ट्रेस किया गया है।जैसा की एक लेखक द्वारा ग्राहम्स अमेरिकन मंथली में 1849 लिखा गया है “सेंट वेलेंटाइन दिवस….बन रहा है, बल्कि बन चुका है, एक राष्ट्रीय अवकाश. संयुक्त राज्य में पहली बार उभरे हुए कागज के फीतों वाले वेलेंटाइन का बड़े पैमाने पर उत्पादन हुआ और 1847 के बाद उन्हें वोर्सेस्टर, मैसाचुसेत्ट्स की एस्थर हौलेंड (1828-1904) द्वारा बेंचा गया। उसके पिता एक बड़ी पुस्तक और लेखन सामग्री की दुकान चलते थे, लेकिन हौलेंड को प्रेरणा मिली एक अंग्रेजी वेलेंटाइन से जो उसे मिला था। इससे ये साफ़ है की वेलेंटाइन भेजने की प्रथा उत्तरी अमेरिका में प्रचलित होने से पहले इंग्लेंड में मौजूद थी। वेलेंटाइन भेजने की अंग्रेजी प्रथा का वर्णन एलिजाबेथ गास्केल की ‘मिस्टर हैरिसंस कंफेशंस (1851 में प्रकाशित)’ में भी आता है। सन 2001 से ग्रीटिंग कार्ड एसोसिएशन एक वार्षिक “ग्रीटिंग कार्ड दूरदर्शी के लिए एस्थर हौलेंड पुरस्कार” का वितरण कर रहा है। अमेरिका के ग्रीटिंग कार्ड एसोसिएशन का अनुमान है की लगभग एक अरब वेलेंटाइन पूरी दुनिया में प्रति वर्ष भेजे जाते हैं, जिसकी वजह से इसका नंबर क्रिसमस के बाद ग्रीटिंग कार्ड भेजने वाली दूसरी सबसे बड़ी छुट्टी के रूप में आता है। एसोसिएशन का अनुमान है कि अमेरिका में पुरुष औसतन महिलाओं की अपेक्षा दुगना पैसा खर्चा करते हैं।

19 वीं सदी के बाद से, हस्तलिखित नोट्स कि जगह बड़े पैमाने पर उत्पादित होने वाले ग्रीटिंग कार्ड्स ने ले ली है।उन्नीसवीं सदी के मध्य का वेलेंटाइन का व्यापार अमेरिका में छुट्टियों के और अधिक व्यवसायीकरण का अगुआ बना.

बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में, अमेरिका में कार्डों के आदान प्रदान कि प्रथा लगभग सभी प्रकार के तोहफों में शामिल हो गयी। इन्हें आमतौर पर एक पुरुष द्वारा एक स्त्री को दिया जाता था। इस प्रकार के तोहफों में आमतौर पर शामिल होता है, गुलाब और चॉकलेट को लाल साटन में पैक कर के एक दिल के आकार वाले डिब्बे में देना.1980 के दशक में, हीरा उद्योग ने गहने देने के लिए एक अवसर के रूप में वेलेंटाइन दिवस को बढ़ावा देना शुरू किया। “हैप्पी वेलेंटाइन दिवस” की एक सामान्य अव्यवहार्य शुभकामना के साथ इस दिवस को जोड़ा जाने लगा है। एक मजाक के तौर पर, वेलेंटाइन दिवस को “अकेले लोगों की जागरूकता दिवस” का भी नाम दिया जाता है। उत्तर अमेरिकी के कुछ प्राथमिक स्कूलों में बच्चे कक्षाओं को सजाते हैं, कार्डों का आदान प्रदान करते हैं और मिठाइयां खाते हैं। इन छात्रों के ग्रीटिंग कार्ड्स अक्सर इस बात का उल्लेख करते हैं की उन्हें एक दूसरे के बारे में क्या अच्चा लगता है।

इस सहस्राब्दी की शुरुआत पर इंटरनेट लोकप्रियता की वृद्धि नई परम्पराएँ पैदा कर रही है। हर साल लाखों लोग वेलेंटाइन दिवस की शुभकामना संदेशों को बनाने और भेजने के लिए डिजिटल तरीकों, जैसे की इ-कार्ड, प्रेम कूपन और छपने योग्य ग्रीटिंग कार्ड अदि, का इस्तेमाल करते हैं।

 

 

अज्ञानता से हमें तार दे शारदे माँ

वसंत का आगमन माँ सरस्वती की आराधना के साथ होता है। प्रगति की हर परिभाषा ज्ञान के बगैर अधूरी है मगर सरस्वती पूजा संवेदना से परिपूर्ण ज्ञान को महत्व देने का दिन है क्योंकि माँ वीणापाणी साहित्य और संस्कृति के साथ कला की भी देवी है। ये तीनों ही संवेदना के बगैर अधूरे हैं। संवेदनहीन ज्ञान कोरा किताबी ज्ञान होता है और बगैर संवेदना के सृजन सम्भव ही नहीं है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।

प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।

सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।saraswati puja

वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।

इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे झूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।

आज सरस्वती पूजा के माध्यम से शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच एक समन्वय बनता है मगर इसके लिए दोनों के बीच जिस भावनात्मक लगाव की जरूरत है, वह उसे और भी सहेजने की जरूरत है और इसके लिए अज्ञानता के अँधकार से बाहर निकलने की जरूरत है इसलिए माँ शारदे से यही प्रार्थना है कि वह अंधकार को ज्ञान के प्रकाश में बदले। अपराजिता की ओर से आप सभी को सरस्वती पूजा पर हार्दिक शुभकामनाएं।

 

अदा में समेट लें बसंती बयार

वसंत का मौसम आ रहा है। माँ सरस्वती की पूजा और कोयल की कूक बता देती है कि बसंती बयार बह चलने लगी है। पीली सरसों, पीली सूरजमुखी की तरह हर दिल खिल उठता है।

पीला रंग खुशनुमा ही नहीं ऊर्जा का प्रतीक भी है। इस ऋतु में पीला, बसंती, केसरिया और सफेद रंग भी बहुत जँचते हैं।4-yellow-Indian-Designer-Anarkali-Frock-Online-6

खासकर भारतीय संस्कृति में पूजा और विवाह के समय पीला रंग बेहद महत्व रखता है। आप भी इस बसंती बयार को अपनी अदा में समेट सकती हैं लिबास बनाकर।

पीले रंग के साथ कोई भी गहरा रंग बहुत प्यारा लगता है और आप चाहें तो अपने परिधान में मिक्स – मैच करके इसे आजमा भी सकती हैं।

किसी शादी में जा रही हैं तो यह पीला अनारकली सूट आपके रूप को और निखार देगा।zC7QKUqDfP6oSeadcMRF8Tl72eJkfbmt4t8yenImKBVvK0kTmF0xjctABnaLJIm9आजकल फ्लोरलेंग्थ अनारकली भी बहुत पसंद की जा रही हैं और कई डिजाइनरों को तो यह बेहद पसंद भी है।

इश्क और शादी इंतजार कर सकती है मगर मातृत्व के लिए इंतजार मुमकिन नहीं

फिल्मकार आनिंदिता सर्वाधिकारी उन महिलाओं में हैं जो अपने दम पर चलना जानती हैं। थियेटर के माहौल में पली – बढ़ी आनिंदिता सिंगल मदर्स के लिए एक मिसाल ही नहीं बल्कि अकेले जी रही उन तमाम महिलाओं के लिए एक उम्मीद हैं जिन्होंने अविवाहित जीवन का मतलब एकाकीपन मान लिया है। विश्व सिनेमा में अपनी जगह तेजी से बना रहीं यह युवा फिल्मकार कई फिल्मोत्सवों में बतौर ज्यूरी शामिल हो चुकी है। अपराजिता से आनंदिता सर्वाधिकारी की खास मुलाकात के कुछ लम्हे आपके नाम –

मम्मी – पापा दोनों इप्टा में थे और मैं थियेटर के बीच ही पली – बढ़ी हूँ। महज 3 महीने की उम्र में एक जात्रा से अभिनय का सफर आरम्भ हो गया। मैंने शास्त्रीय नृत्य भी सीखा है और 13 साल की उम्र में दूरदर्शन के लिए एक नृत्य नाटिका बना डाली थी। 17 साल की उम्र में एनएसडी के लिए आवेदन किया मगर पापा को मनाना आसान नहीं था क्योंकि मैं छोटी थी। ऐसे में मम्मी और पापा के दोस्त मेरे साथ खड़े हुए और फिर मैंने निर्देशन में स्पेशिलाइजेशन किया।

1995 में डिप्लोमा कर वापस लौटी और अपना एक थियेटर ग्रुप बनाया और हमनें बंगाल, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में शो किये मगर मैं फिल्मों से जुड़ना चाहती थी तो सीखने के लिए एफटीआईआई पहुँची। इस दौरान मैंने पंकज पराशर को असिस्ट किया। पढ़ाई के दौरान ही शॉर्ट फिल्म बरखा बनायी जिसमें मैंने दिखाने की कोशिश की कि आतंकवाद के नाम पर प्यार को भी इस्तेमाल किया जा सकता है। फिल्म कई फिल्मोत्सवों में सराही गयी और तब मुझे लगा कि सिनेमा की कोई भाषा नहीं होती। मैंने ई टीवी के लिए भी कोनो एक वृष्टि भेजा राते और लवेपीडिया ब्रिटेनिका बनायी। वैसे काम को लेकर तो मैं लगभग सारी दुनिया घूम चुकी हूँ।

फिल्मों में महिला किरदार मजबूत हो रहे हैं मगर इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी अभी भी बहुत कम है। बंगाली सिनेमा में भी मजबूत औरतें नहीं दिखतीं। अभी भी उनको खुद को साबित करने के लिए पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक काम करना पड़ता है। मैंने अपनी फिल्म साधारण मेये में इस स्थिति को दिखाया है कि लड़कियों के लिए अभी भी बहुत कुछ नहीं बदला है। इस फिल्म को यूनाइटेड नेशंस से सम्मानित किया गया था।

मेरे लिए बच्चा होना काफी मायने रखता है और यह निर्णय लेने में मुझे 2 साल लग गए। मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूँ कि कुदरत ने मुझे माँ बनने की ताकत दी है। मैं इसे जाया नहीं होने दे सकती थी। शारीरिक तौर पर माँ बनने के लिए एक समय सीमा है मगर शादी भावनात्मक मामला है और वह बाद में की जा सकती है। प्यार और शादी जैसी बातें इंतजार कर सकती हैं मगर मातृत्व की समय सीमा नहीं। मैंने स्पर्म बैंक से स्पर्म खरीदा मगर मेरा बेटा अग्निसात दूसरी कोशिश के बाद हुआ। डॉक्टर मुझे हैरत से देखते थे मगर मुझे अस्पताल में भी प्यार मिला और अब भी मिल रहा है। मातृत्व का यह सफर काफी खूबसूरत है और अब काम पर भी मुझे जल्दी लौटना है। अब एक बेटी गोद लेना चाहती हूँ। ईश्वर ने हमें एक ही जिन्दगी दी हैं, इसे खुलकर जीना चाहिए।

हाईकोर्ट का फैसला – बड़ी बेटी हो सकेगी घर की कर्ता

 

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि जिस घर में बड़ी बेटी होगी वही घर की कर्ता-धर्ता होगी। हाईकोर्ट ने कहा है कि मुखिया के ना रहने पर जो घर में सबसे बड़ा होगा वही उस घर का कर्ता होगा अब चाहें वो बेटी ही क्यों ना हो। पिता और तीन चाचाओं की मौत के बाद एक लड़की द्वारा अपने चचेरे भाइयों के खिलाफ दर्ज मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। लेडी कांस्टेबिल पर इस कदर फिदा हुए एसओ साहब कि रात में भी लगाने लगे ड्यूटी फैसला जस्टिस नाजमी वजीरी ने सुनाया। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक कोर्ट ने कहा, यदि पहले पैदा होने पर कोई पुरूष मुखिया के कामकाज संभाल सकता है तो ठीक ऎसा ही औरत भी कर सकती है। हिंदू संयुक्त परिवार की किसी महिला को ऐसा करने से रोकने वाला कोई कानून भी नहीं है। पोर्न साइट्स तक पहुंचीं आम लड़कियों की Facebook Profile Pics! फैसला सुनाते वक्त जस्टिस वजीरी ने कहा कि कानून के मुताबिक सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। फिर न जाने अब तक महिलाओं को ‘कर्ता’ बनने लायक क्यों नहीं समझा गया? जबकि आजकल की महिलाएं हर क्षेत्र में कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं और आत्मनिर्भता की मिसाल हैं।

बेटियों के लिए कुछ ऐसा चाहते हैं ओबामा

वाशिंगटन. अमेरिकी प्रेसिडेंट बराक ओबामा ने टाइम मैग्जीन में आर्टिकल लिखा है। इसमें उन्होंने यंग जेनरेशन और अपनी बेटियों के लिए बेहतर संसार की बात की है। मैग्जीन से स्पेशल एग्रीमेंट के तहत दैनिक भास्कर में इसे पब्लिश किया गया है। अमेरिका और अपनी बेटियों को लेकर ओबामा ने क्या लिखा…

– ”आज अमेरिका की जो सबसे बड़ी ताकत है, वह है यंग जेनरेशन। ये हमारे इतिहास की सबसे बड़ी, सबसे एजुकेटेड, सबसे विविध और डिजिटली सबसे तेज पीढ़ी है।”

– ”और एक चीज जो मुझे मेरी बेटियों ने सिखाई है वह यह है कि आज की पीढ़ी एक अच्छे संसार की रचना के लिए किसी का इंतजार नहीं करेगी।”

– ”ये खुद आगे जा रहे हैं और अपने लिए एक बेहतर संसार बना रहे हैं। हम ऐसे हालात बना सकते हैं, जिसमें उन्हें ऐसा करने का हर मौका मिले।”

– ”हमें तय करना होगा कि वे आजाद होकर आगे बढ़ें और अपनी पसंद से जी सकें।”

– ”यही कारण है कि मेरे एडमिनिस्ट्रेशन ने स्टूडेंट लोन पेमेंट को लोन लेने वाले की इनकम के हिसाब से 10 फीसदी कर दिया है। ताकि जो युवा कॉलेजों में पढ़ने जाएं उन्हें इसकी कीमत न चुकानी पड़े।”

हेल्थ-केयर रिफॉर्म को लेकर क्या कहा?

– ”हम अपने हेल्थ-केयर सिस्टम में भी रिफॉर्म लाए हैं, ताकि ये युवा जब नौकरी बदलें, स्कूलों में जाएं, किसी नए विचार से शुरुआत करें, अपने परिवार की शुरुआत करें तो इनके पास हेल्थ कवरेज हो।”

क्लाइमेट चेंज

– ”क्लाइमेट चेंज से बचने के लिए हमने करीब 200 देशों के बीच हुए ऐतिहासिक समझौते का नेतृत्व किया है। लेकिन मेरी बेटियों की पीढ़ी को पेरिस के इस समझौते से कहीं पहले पता था कि अपनी पृथ्वी को बचाना एक ऐसा मुद्दा है जिसके विरोध में कोई तर्क नहीं हो सकता है।”

– ”उन्हें पिछले वर्ष जून में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए मैरिज इक्वैलिटी के निर्णय से कहीं पहले पता था कि सभी प्रकार के प्रेम को समान ही बनाया गया है।”

यंग जेनरेशन को लेकर और क्या कहा?

– ”ये पीढ़ी किसी को पहले, काला या गोरा, एशियन या लैटिनो, गे या स्ट्रेट, माइग्रेंट या देश में जन्मा जैसी बातों से नहीं देखती है। यह अपनी विविधता को एक बड़े तोहफे के रूप में लेती है।”

– ”एक तरह से मेरी बेटियों की पीढ़ी हम सब को एक चेंज की ओर धकेल रही है। इसलिए हमें अपने फ्यूचर के लिए एक चीज यह करनी होगी कि हम यह तय करें कि इस पीढ़ी को यह पता हो कि उनकी आवाज सबके लिए अहम है। और उसे सुना जाएगा।”

जो सत्ता में हैं वे पेश करें उदाहरण

– ”हममें से जो लोग सत्ता में हैं या जिनके पास शक्ति है उन्हें अपने बर्ताव से यह उदाहरण पेश करना होगा।”

– ”हमारे अंदर समझौता करने की इच्छा होनी चाहिए। हमें उन्हें भी सुनना होगा, जिनके साथ हम सहमत नहीं हैं। हमें राजनीति में पैसा का दबदबा कम करना होगा ताकि उन्हें यह न लगे कि यहां सिस्टम ठीक नहीं है। हमें वोटिंग को आसान और आधुनिक करना होगा।”

अमेरिका के रास्ते में सबसे बड़ी समस्या क्या?

– हमें अपने युवाओं को सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहने के लिए प्रेरित करना होगा। हम अपने बच्चों के लिए ऐसा संसार चाहते हैं- जहां सुवअसर हो और हमारे परिवारों के लिए सुरक्षा हो। ऐसा समाज, जहां जीवन स्तर ऊंचा हो, शांति हो। जो उन्नतिशील हो और उनका हृदय बड़ा हो। और हम ऐसा कर सकते हैं।

– अमेरिका के फ्यूचर में सबसे बड़ी समस्या वो चीजें हैं जो हमने अपने ऊपर थोप रखी हैं। यह अमेरिका के साथ हमेशा होता रहा है। इन्हें बदलना होगा।

”हमारा भाग्य हमारे लिए तय नहीं किया गया है बल्कि इसे हमने ही खुद अपने लिए तय किया है। इसलिए हम जैसे-जैसे अपने युवाओं को फ्यूचर तय करने का मौका देंगे, एक अच्छा फ्यूचर भविष्य बनता जाएगा। क्योंकि मेरा उनमें यकीन है।’

 

जॉन अब्राहम ने लॉन्च की यामाहा MT-09, कीमत 10.20 लाख रुपये

ऑटो एक्सपो में बॉलीवुड एक्टर जॉन अब्राहम ने यामाहा एमटी-09 बाइक लॉन्च की है. इस गुड लुकिंग बाइक की कीमत 10.20 लाख रुपये रखी गई है।

ऑटो एक्सपो में लगातार बाइक्स लॉन्च हो रही हैं. इसी क्रम में को यामाहा ने एमटी रेंज की बाइक एमटी-09को इंडियन मार्केट में पेश किया है. भारतीय बाजार में इसकी बिक्री सीबीयू (कम्पलीट बिल्ड यूनिट) के रूप में होगी।

इस बाइक की खासियत यह है कि यह भी दूसरे एमटी रेंज की बाइक्स की तरह स्ट्रीट फाइटर है जिसे आसानी से खराब सड़कों पर भी चलाया जा सकता है यानी इसे ऑफ रोड बाइक भी कह सकते हैं. दो तरह के राइडिंग मोड्स से लैस होने के चलते इसका कंट्रोल सिस्टम बेहतर है।

एमटी सीरीज की एमटी-09 दरअसल यामाहा का फ्लैगशि‍प मॉडल है. इसमें नए तरीके का 847 सीसी इंजन लगा है. इसके अलावा यह बाइक 3 सिलिंडर, लिक्विड कूल्ड, 4 स्ट्रोक इंजन (113बीएचपी की पॉवर) से लैस है।

यह बाइक डायमंड टाइप फ्रेम पर बनी है. इसमें 298 एमएम हॉइड्रोलिक डिस्क ब्रेक फ्रंट में है, तो पिछली डिस्क 245एमएम एबीएस तकनीक से लैस है. आप इस बाइक को मैट ब्लैक और रेस ब्लू कलर में खरीद सकते हैं. भारतीय बाजार में इसका मुकाबला ट्रायम्फ स्ट्रीट ट्रिपल और कावासाकी Z800 से होगा.