कहा – ‘मैं बाकी लोगों से अलग नहीं’,
वेलिंगटन : न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न को गत रविवार को अपनी शादी रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह फैसला उन्होंने देश में ओमीक्रोन वेरिएंट की नई लहर के बाद कोविड प्रतिबंधों को और ज्यादा सख्त करने के चलते लिया है। अर्डर्न ने नए प्रतिबंधों की घोषणा करते हुए पुष्टि की- ‘मेरी शादी फिलहाल नहीं होगी’। न्यूजीलैंड में अब किसी भी समारोह में सिर्फ 100 लोगों को शामिल होने की अनुमति होगी जिन्हें पूरी तरह से वैक्सीन लग चुकी है।
शादी रद्द होने को लेकर अर्डर्न ने कहा कि महामारी के चलते इस तरह का अनुभव करने वाले न्यूजीलैंडवासियों में मैं भी शामिल हो गई हूं। इन हालात में फंसने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए मुझे खेद है। न्यूजीलैंड के एक परिवार में ओमीक्रोन के नौ मामले सामने आए हैं, जो शादी में शामिल होने के लिए शहरों के बीच यात्रा कर रहे थे। परिवार ने जिस विमान से यात्रा की उसकी एक अटेंडेंट भी संक्रमित पाई गई थी जिसके चलते न्यूजीलैंड को गत रविवार मध्यरात्रि से अपनी ‘रेड सेटिंग’ प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
ओमीक्रोन डेल्टा की तुलना में ज्यादा कहीं ज्यादा संक्रामक है लेकिन लोगों के गंभीर रूप से बीमार होने की संभावना कम जताई जा रही है। भीड़ की संख्या को सीमित करने के अलावा, सार्वजनिक परिवहन और दुकानों में अब मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। अर्डर्न और उनके साथी क्लार्क गेफोर्ड ने अपनी शादी की तारीख की घोषणा नहीं की थी। लेकिन माना जा रहा था कि यह अगले कुछ हफ्तों में हो सकती थीं।
‘यही जिंदगी है’
नए प्रतिबंध कम से कम अगले महीने के अंत तक बने रहेंगे। जब अर्डर्न से पूछा गया कि ऐसे प्रतिबंध लगाकर उन्हें कैसा लगा जिसके चलते उनकी खुद की शादी कैंसिल हो गई, उन्होंने कहा, ‘यही जिंदगी है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं न्यूजीलैंड के हजारों अन्य लोगों से अलग नहीं हूं, जिन्होंने महामारी के चलते बहुत अधिक विनाशकारी प्रभावों को झेला है। महामारी शुरू होने के बाद न्यूजीलैंड में 15,104 कोविड मामले और 52 मौतें दर्ज की गई हैं।
न्यूजीलैंड में बढ़ा कोरोना तो पीएम ने रद्द कर दी अपनी शादी
दिन में भी ख्वाब

जब भी बंद करती हूँ आँखों को
ख्वाब चोरी हो जाते हैं
खुली आँखें सपने देख नहीं पातीं
मस्तिष्क मन पर हावी रहता है
चाँद सितारों सी इस झिलमिलाती दुनिया में
मैं भी भावों की नाव पर सवार
ख्वाबों के विशाल कैनवास पर
बड़े-बड़े लक्ष्यों को भेदती रही
कुछ अंधेरे में चल गए
कुछ तो पहुंँचे ही नहीं
ठंडे बस्ते में पड़े रहे
सब कहते हैं
आदमी का काम है ख्वाब देखना
पूरा करना भगवान का
बैठे – बैठे ख्वाबों का पहाड़ बनाया
पुल भी बनाए
कई टूटे, कई पर पानी फिरे
सोचा कुछ, होता कुछ
कभी शेख चिल्ली की कहानी लगती
कुछ करना है तो ख्वाब चुनना
वहाँ भी पुलाव पकाते रहे
एक ख्वाहिश पे दम टूटा
एक पे मन टूटा
हौसला मत हार मेरे प्यारे
नहीं तो कहर टूट पड़ेगा
चुनौतियों का सामना करना है
बहुत हाथ पैर मारे
कान पकड़ उठक बैठक भी किए
एक पैर पर खड़े भी रहे
ख्वाब कब कोई और चुरा कर ले गया
हम भी अडे़ रहे
हमारा ख्वाब हमारा है
पूरी लगन से एकचित्त हो लगे रहे
कई सालों का अनुभव काम आया
मेहनत और अक्ल दोनों पक्षों का हाथ रहा
ख्वाब में सबसे जुड़े रहे
हम जब सबके साथ मिले
सोच के पंखों से उड़ने लगे
अब दिन में भी ख्वाबों के ख्याल में रहते हैं
अपना देश बस अपना ही होता है

देश की ओर आँखें दिखाने वालों की आँखें निकाल ही लेना
ओ मेरे युवा साथी! अपना देश बस अपना ही होता है
परायों के गलत इरादों को लहूलुहान कर देना ही अच्छा होता है
हर घर बंगाल का करता नमन महानायक वीर सुभाष को
कुछ कर गुजरने की इच्छा ही देती जन्म कई सुभाषों को
आजादी की लौ जब – जब जलती तन – मन सुलग – सुलग जाता है
अपनी जन्मभूमि की मिट्टी को माथे पर सदा लगाना
वीर शहीदों की शहादत पर उनको शीश नवाना
अपना देश अपना होता है
प्रकृति भी अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ती
तो मनुष्य क्यों हुआ प्रकृति से दूर
घर की संपत्ति के लिए हम भाई भाई से लड़ते
माता-पिता घर परिवार से लड़ जाते
सुरक्षा कर हम रक्षक बन घर की सुरक्षा करते रहते
कभी कम तो कभी ज्यादा सब कुछ सहते रहते
भारत का हर कोना भी अपनी ही संपत्ति का हिस्सा है
इसे संभालना और देखना अपने ही कर्तव्यों का विस्तार है
बूंद बूंद सागर बन जाता है मिलकर हाथ बढ़ाने से
मुट्ठी में भी आसमान भर आता है
आओ हम सभी संकल्प लें मिलकर, देश की रंगत को कभी न फीका होने देगें
कुछ भी हो जाए तिरंगे की शान को हर पल हर क्षण विकास की ओर ले जाएंगें।
देसी -विदेशी जोड़ों के लिए पसंदीदा विवाह स्थल बना ‘त्रियुगीनारायण’ मंदिर
त्रियुगीनारायण मंदिर में ही हुआ था शिव पार्वती का विवाह
आजकल देश-विदेश में शादियों का डेस्टिनेशन वेडिंग का नया ट्रेंड चल चुका है। समय और लाइफस्टाइल बदलने के साथ अधिकांश कपल डेस्टिनेशन वेडिंग की ओर रुख कर रहे हैं। डेस्टिनेशन वेडिंग में युगल अपनी मर्जी से किसी खास जगह की चुनाव करके अपने वहां अपने अनुसार शादी के बंधन में बंधते हैं। वैडिंग डेस्टिनेशन के लिए देश के साथ विदेशी जोड़ों की ‘शिव व पार्वती’ त्रियुगीनारायण मंदिर पहली पसंद बन रहा है।
क्या आप जानते हैं कि इसी पृथ्वी पर विद्यमान है वह जगह जहां साक्षात भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। उत्तराखंड का त्रियुगीनारायण मंदिर ही वह पवित्र और विशेष पौराणिक मंदिर है। इस मंदिर के अंदर सदियों से अग्नि जल रही है। शिव-पार्वती जी ने इसी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया था। यह स्थान रुद्रप्रयाग जिले का एक भाग है त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में ही कहा जाता है कि यह भगवान शिवजी और माता पार्वती का शुभ विवाह स्थल है। मंदिर के अंदर प्रज्वलित अग्नि कई युगों से जल रही है इसलिए इस स्थल का नाम त्रियुगी हो गया यानी अग्नि जो तीन युर्गों से जल रही है।
त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। यहां शिवपार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था। जब कि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे। उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रह्म शिला कहा जाता है जोकि मंदिर के ठीक सामने स्थित है। इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है।
विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्रकुंड, विष्णुकुंड और ब्रह्माकुंड कहते हैं। इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्रकुंड, विष्णुकुंड और ब्रह्माकुंड कहते हैं और ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतान हीनता से मुक्ति मिल जाती है।
तीन युगों से जल रही है ज्वाला
तीन युगों से जल रही है ज्वाला कहा जाता है कि भारत में मौजूद इस मंदिर में यह ज्वाला तीन युगों से जल रही है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में जल रही अग्नि को साक्षी मानकर भगवान शिव और पार्वती ने विवाह किया था और तब से यह अग्नि इस मंदिर में प्रज्जवलित हो रही है। त्रियुगी नारायण मंदिर में मौजूद अखंड धुनी के चारों ओर भगवान शवि ने पार्वती के संग फेरे लिए थे। आज भी इस कुंड में अग्नि को जीवित है। जो भी श्रद्धालु इस पवित्र स्थान की यात्रा करते हैं वे यहां प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती के आशीष से हमेशा मंगलमय बना रहे। वेदों में उल्लेख है कि यह त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है। जबकि केदारनाथ व बदरीनाथ द्वापर युग में स्थापित हुए। यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर विष्णु भगवान ने वामन देवता का अवतार लिया था।
पौराणिक कथा के अनुसार इंद्रासन पाने के लिए राजा बलि को सौ यज्ञ करने थे, इनमें से बलि 99 यज्ञ पूरे कर चुके थे तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर रोक दिया जिससे कि बलिका यज्ञ भंग हो गया। यहां विष्णु भगवान वामन देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
रुद्रप्रयाग जिले में स्थित शिव और पार्वती का विवाह स्थल त्रियुगीनारायण मंदिर वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में काफी लोकप्रिय हो रहा है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग यहां आकर शादियां कर रहे हैं। बीते एक साल के आंकड़ों पर नजर डाले तो करीब सैकड़ों देशी-विदेशी जोड़े मंदिर में विवाह के बंधन में बंधे। हिमालयी प्रदेश उत्तराखंड आदिकाल से पवित्र रहा है। देश व दुनिया के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री, पर्यटक और मुसाफिर शांति और अध्यात्म के लिए इस सुरम्य प्रदेश के मंदिरों व तीर्थस्थानों पर आते रहे हैं। इन पवित्र स्थानों के प्रति लोगों की भक्ति और विश्वास इतने प्रगाढ़ हैं कि जन्म से लेकर मृत्यु तक तमाम धार्मिक संस्कारों/क्रियाओं के लिए वे उत्तराखंड की धरती पर आते रहते हैं इन अनुष्ठानों में एक और चीज जुड़ गई है और वह है बर्फ से ढके हिमालय के पर्वतों की पृष्ठभूमि में मंदिर के प्रांगण में विवाह की रस्में।
पर्यटन सचिव, दिलीप जावलकर का कहना है कि त्रियुगीनारायण मंदिर प्रदेश के अहम धार्मिक स्थलों में से एक है। यह दर्शाता है कि उत्तराखंड पर भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों का ही आशीर्वाद है। यहां आकर विवाह करने की युवा दंपतियों में बढ़ती दिलचस्पी से साबित होता है कि हमारी नई पीढ़ी पुरातन परम्पराओं में विश्वास रखती है।
त्रियुगीनारायण मंदिर जिसे त्रिजुगी नारायण भी कहते हैं। मंदिर तक रुद्रप्रयाग जिले के सोनप्रयाग से सड़क मार्ग से 12 किलोमीटर का सफर तय करके पहुंचा जा सकता है। 1980 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह प्रकृति मनोहर मंदिर गढ़वाल मंडल के बर्फ से ढके पर्वतों का भव्य मंजर पेश करता है। यहां पहुंचने के लिए एक ट्रैक भी है। सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर लंबे गुट्टूर केदारनाथ पथ पर घने जंगलों के बीच से होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है। केदारनाथ मंदिर से त्रियुगीनारायण तक की ट्रैकिंग दूरी 25 किलोमीटर है।
देखने में त्रियुगी नारायण की बनावट केदारनाथ मंदिर की संरचना जैसे लगती है। मंदिर के भीतर भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ-साथ माता लक्ष्मी व सरस्वती की प्रतिमा भी सुशोभित हैं। मंदिर के समक्ष मौजूद ब्रह्मशिला विवाह के सटीक स्थल की पहचान है। इस मंदिर के भीतर भगवान विष्णु की चांदी की बनी मूर्ति है। उनके साथ में भगवान बद्रीनारायण, माता सीता – भगवान रामचंद्र और कुबेर की भी मूर्तियां स्थित हैं। इस मंदिर परिसर में चार पवित्र कुंड भी हैं- रुद्र कुंड स्नान के लिए, विष्णु कुंड प्रक्षालन हेतु, ब्रह्म कुंड आचमन के लिए और सरस्वती कुंड तर्पण के लिए। मान्यता है कि जो दंपति यहां विवाह संपन्न करते हैं उनका बंधन सात जन्मों के लिए जुड़ जाता है।
देहरादून निवासी सौरभ गुसाईं भी यहां विवाह करने की ख्वाहिश रखते हैं। उनका कहना है कि प्राकृतिक सुदंरता से हमेशा मंत्रमुग्ध हुए हैं। हमने त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में बहुत सुना है और हमारा विश्वास है कि इस दिव्य स्थल पर नए जीवन की शुरुआत करना हमारे लिए बहुत ही कल्याणकारी सिद्ध होगा।’’
वाणी प्रवाह 2022 – बाल मनोविज्ञान पर लिखा बहुचर्चित और कालजयी उपन्यास “आपका बंटी”
स्वामी विवेकानंद को आदर्श मानते थे नेताजी सुभाषचन्द्र बोस
सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस..यह नाम ही हमारी आत्मा में देशभक्ति को जगा देने के लिए काफी है। एक ऐसे राष्ट्र नायक जिन्होंने पराधीन भारत को संघर्ष के लिए तैयार किया और आजादी के सपने को और भी मजबूत कर दिया। आज 23 जनवरी को उन्हीं नेताजी की जयंती है और यह तो 125वाँ वर्ष है। ऐसा वीर जो राष्ट्र के लिए जीता रहा और जिसने आजाद हिन्द फौज जैसी सशक्त सेना तैयार की जिसकी वीरता की गाथा हम आज भी गाते हैं।
नेताजी मानते थे कि सशस्त्र क्रांति ही भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने का एकमात्र मार्ग हो सकता है। 23 जनवरी 1897 को जन्मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती को देश पराक्रम दिवस के रूप में मना रहा है। अब तो सरकार ने भी गणतंत्र दिवस समारोह को 23 जनवरी से आरम्भ करने का निर्णय ले लिया है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के सहपाठी हुआ करते थे पं. क्षेत्रेशचंद्र चट्टोपाध्याय। क्षेत्रेश बाबू को नेताजी पत्र लिखा करते थे। उन पत्रों को क्षेत्रेश बाबू के पुत्र महेश चन्द्र चट्टोपाध्याय, उमेश चन्द्र चट्टोपाध्याय और पुत्री गौरी चट्टोपाध्याय ने सहेज कर रखा और मूल बांग्ला भाषा में लिखे गये इन पत्रों को हिन्दी और अंग्रेजी में अनूदित कर उसे पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित करवाया है।
इन पत्रों में सुभाष बाबू के व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया भी प्रतिबिम्बित है। इन पत्रों को पढ़ते हुए पता चलता है कि सुभाष बाबू कितने सहृदय थे और भारत के आत्मगौरव एवं स्वतन्त्रता के लिए कितने सजग।
इन पत्रों को पढ़ते हुए सुभाष बाबू के व्यक्तित्व को समझना आसान हो जाता है। दोनों मित्रों में ही देशभक्ति की भावना कूट – कूटकर भरी थी। इस पुस्तक में इंदिरा गाँधी नेशनल सेंटर फॉर द आर्ट्स की पूर्व शोध अधिकारी पार्वती बनर्जी ने एक घटना का उल्लेख किया है। क्षेत्रेश के साथ सुभाष बाबू एक ऊनी शॉल खरीदने दुकान गये। वह शाल किसी गरीब छात्र के लिए उन्होंने खरीदी थी। उस विद्यार्थी के आत्मसम्मान को ठेस न पहुँचे,इस बात का ध्यान रखते हुए किसी दूसरे व्यक्ति के माध्यम से शॉल को भेजा और क्षेत्रेश बाबू शॉल को देखकर सारी बात समझ गए। यह था गुप्त दान और थी नेताजी की सदाशयता।
नेताजी पर स्वामी विवेकानंद का प्रभाव था और वे उनके कार्यों की सराहना भी करते थे। एक पत्र में वह लिखते हैं – ‘विवेकानंद के दल ने बहुत सारा कार्य किया है। बहुत सारी शिक्षा भी दी है। बहुत बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया है – अब हम लोग उनके उदाहरण का अनुसरण कर उनकी अपेक्षा से भी अधिक बड़ा बनने की चेष्टा करेंगे। विवेकानंद ने कई सारे आइडिया दिये हैं – अब हम लोग उन्हें कार्यान्वित करेंगे।’
17 मार्च 1920 को वे एक पत्र में कहते हैं – आज देख रहा हूँ कि आयरलैंड एवं मिस्त्र अपने जातीय (राष्ट्रीय) जीवन वापस पाने के लिए जी – जान से चेष्टा कर रहे हैं। आज चीन एवं जापान ने जगत की श्रेष्ठ जातियों में स्थान ग्रहण किया है। फिर भी हमारे देश के चरित्रवान विद्वान एवं बुद्धिमान युवक ग्रीक दर्शन के अध्ययन में जीवन नष्ट करना चाहते हैं। ग्रीक दर्शन का सत्य आविष्कृत हुआ या नहीं, इससे भारतवासियों को क्या अन्तर पड़ता है? यह स्पष्ट है कि नेताजी भारतीय इतिहास को लेकर सचेत थे और चाहते थे कि युवा भी भारत के इतिहास का अध्ययन करें। इसी पत्र में वह भारतीय अध्ययन, इतिहास और दर्शन को लेकर पुस्तकों के अभाव की चर्चा भी करते हैं।
नेताजी मानते थे कि अतीत के इतिहास में गर्व करने योग्य बहुत कुछ है एवं न्याय युक्त गर्व से बहुत शक्ति मिलती है। 2 फरवरी 1921 को लिखे गए इस पत्र में नेताजी दुःख व्यक्त करते हैं कि दुःख का विषय है कि यहाँ स्कूलों में जो इतिहास सिखाया जाता है उसका हर विषय सत्य पर प्रतिष्ठित नहीं है, एवं इसके फलस्वरूप शिक्षित अंग्रेज लोग सीखते हैं कि अंग्रेज जाति अद्वितीय है एवं अन्य यूरोपियन जाति उनकी तुलना में नगण्य है। इतिहास को लेकर सुभाष बाबू का कथन आज भी उतना ही सच है जितना पराधीन भारत में था। नेताजी और क्षेत्रेश बाबू को शत – शत नमन।
(सन्दर्भ – क्षेत्रेश – सुभाष संवाद, डॉ. गौरी चट्टोपाध्याय, लहर प्रकाशन)
स्त्री शिक्षा की राह खोलने वाली भारत की पहली शिक्षिका सावित्री बाई फुले
आज अगर बात शिक्षा के क्षेत्र की हो तो महिला शिक्षिकाओं के बिना शिक्षण संस्थानों की कल्पना करना कठिन है लेकिन एक समय ऐसा भी रहा जब स्त्रियाँ शिक्षा पाने के अधिकार से वंचित थीं। हालाँकि आज भी स्थिति पूरी तरह बदली नहीं है मगर स्थिति पहले की तुलना में बेहतर बहुत हुई है। ऐसे समय में जब स्त्रियों के लिए शिक्षा प्राप्त करना ही बड़ी चुनौती हो, वहाँ पर किसी महिला के शिक्षिका होने की कल्पना भी कठिन लगती है। ऐसी स्थिति में एक महिला ने संघर्ष किया और इस संघर्ष में अपने पति के सहयोग से उन्होंने स्कूल चलाया, लोग उनके इस दुस्साहस पर ताने फेंकते और स्कूल जाते हुए उन पर गोबर फेंकते मगर उन्होंने स्त्री शिक्षा का यज्ञ आरम्भ किया, उसी यज्ञ का प्रतिफलन है कि आज लड़कियाँ पढ़ भी रही हैं और पढ़ा भी रही हैं। शिक्षा की मशाल से समाज को आलोकित करने वाली यह महिला थीं सावित्री बाई फुले जो भारत की पहली शिक्षिका एवं प्रधानाध्यापिका हैं।
3 जनवरी 1831 को सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ था। समाज सुधारक और कवयित्री भी थीं सावित्री बाई, पति ज्योतिबा फुले के प्रोत्साहन से वे बाधाओं की परवाह किये बगैर निरन्तर आगे बढ़ती रहीं। उनको आधुनिक मराठी कविता की अग्रदूत भी कहा जाता है। 1852 में उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल खोला था। सावित्रीबाई के पिता का नाम खन्दोजी और माता का नाम लक्ष्मी थी। उनका विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था। पहले ज्योतिबा को ज्योति राव के नाम से जाना जाता था। वे सावित्रीबाई के संरक्षक और गुरु के साथ मार्गदर्शक भी थे।
सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना था। जब वो स्कूलों में पढ़ाने जाती थीं, तो लोग रास्ते में उन पर कीचड़ और गोबर फेंका करते थे, इसलिए सावित्रीबाई अपने थैले में दूसरी साड़ी लेकर चलती थी और स्कूल में बदल लिया करती थीं। सन 1854 में उनकी पहली पुस्तक ‘काव्य फुले’ प्रकाशित हुई थी। इसके अलावा सावित्रीबाई ने कई कविताओं और भाषणों से वंचित समाज को जगाया, लेकिन अभी भी उनकी कहानी देश की 70 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी से दूर है।
24 सितंबर 1873 को ज्योतिराव फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की, जो दहेज मुक्त और बिना पंडित पुजारियों के विवाह संपन्न कराती थी। सावित्रीबाई इस संस्था की एक सक्रिय कार्यकर्ता बनी। बाद में सावित्रीबाई ने अपने दत्तक पुत्र यशवंत का इसी संस्था के तहत पहला अंतरजातीय विवाह करवाया। भारतीय डाक ने 10 मार्च 1998 को सावित्रीबाई के सम्मान के रूप में डाक टिकट जारी किया। साल 2015 में पुणे विश्वविद्यालय का नाम सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय किया गया। 3 जनवरी 2017 को गूगल ने सावित्रीबाई फुले के 186वीं जयंती पर अपना ‘गूगल डूडल’ बनाया।
28 नवंबर 1890 को अपने पति ज्योतिबा फुले के मरने के बाद, सावित्रीबाई लगातार उनके अधूरे समाज सुधार के कार्यों में लगी रहीं. 1896 में पुणे में आए भीषण अकाल में इस क्रांतिकारी महिला ने पीड़ितों की काफी सहायता की।
इसके साल भर बाद ही पूरा पुणे प्लेग की चपेट में आ गया, जिसमें सैकड़ों बच्चे मर रहे थे। सावित्रीबाई ने बेटे यशवंत को बुलाकर एक अस्पताल खुलवाया, जिसमें वह ख़ुद दिन- रात मरीजों की देखभाल करने लगीं। 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई ख़ुद इस संक्रामक बीमारी की चपेट में आकर उनका निधन हुआ।
( स्त्रोत साभार – न्यूज नेशन्स)
रिश्तों का बीमा नहीं मिलता
– डॉ. वसुंधरा मिश्र
रिश्ते रेशमी बंधन हैं
बंधक बना देते हैं
तोड़ने के लिए मजबूर भी करते हैं
रिश्तों की मिठास
भावों से खेलती है
फिर कड़वे जहर घोलती है
रिश्ते बड़े स्वार्थी हैं
जब जुड़ते तो छूटते नहीं
जब टूटते तो जुड़ते नहीं
मन की अदृश्य सुई से सिले हैं
रिश्तों के अनगिनत नाज़ुक धागे
तार तार होते भी देर नहीं लगाते
माँ से जुड़ी हूँ मैं माँ मुझसे
माँ से भी बिगड़े हैं रिश्ते
प्यार और भावों की खुराक से बनते हैं रिश्ते
त्याग तपस्या बलिदान विश्वास पर टिकते हैं रिश्ते
थोड़ी सी ठसक से मर जाते हैं रिश्ते
फिर तो लाश की तरह ढोए जाते हैं रिश्ते
कितनी ही दुहाई दो
सब पानी में बह जाते हैं रिश्ते
किश्तों में समझौता नहीं होता
मनुष्यों के बीच की धूरी है रिश्ते
रीढ़ की हड्डी हड्डी की तरह सीधे नहीं है रिश्ते
निभाने के तरीके हैं रिश्ते
कश्ती में छेद की तरह हैं रिश्ते
अमूर्त में मूर्त होते हैं रिश्ते
दिखते हैं हौसला बढ़ाते हैं
काश! रिश्तों में स्थिरता होती
हर पल परिवर्तित होते हैं रिश्ते
रिश्तों के मरने के बाद
रिश्तों का बीमा नहीं मिलता
कर्मयोगी ‘दीपक’ तुमको न भुला पाएंगे
– अंजू सेठिया
‘दीपक’ की आलोकित लौ हमेशा “जय हो” का उदघोष करती रहेगी l प्रणाम अंजू दी…………. की कोमल आवाज मेरे कानों में, हृदय के तारों में सदा प्रवाहित होती रहेगी।
याद है मुझे उसके साथ बिताए एक एक पल l बात उन दिनों से शुरू हुई करीब सन् 1996 में वह एक छात्र के रूप में मेरे संपर्क आया थाl बिरला हाई स्कूल से भारतीय भाषा परिषद तक। भारतीय भाषा परिषद मे हम दोनो युवा मंच से जुडे थे। वहां काफी कार्यक्रम सफलता पूर्वक आयोजित किये गये । मै आवाक रह जाती यह छोटा बच्चा और इतने गुण। भगवान का उपहार था। सबके काम आना ,निस्वार्थ काम करना आदि आदि क्या लिखूं क्या छोडूँ, किताबे भर जाएगी
उसने बाल्यकाल से ही ‘होनहार विरवान के होत चिकने पात’ को चरितार्थ कियाl अपने स्कूल -जीवन से ही सामाजिक – सांस्कृतिक गतिविधियों में उसकी गहन रुचि रही l भारत विकास परिषद की कोलकाता शाखा के संयोजन में पश्चिम बंगाल प्रांत में सन् 2000 में भारतीय भाषा परिषद में पहली राष्ट्रीय समूह गान प्रतियोगिता के आयोजन को अल्पायु में प्रिय दीपक ने सफल नेतृत्व और निर्देशन प्रदान किया था l करीब 11-12 विद्यालयों ने हिस्सा लिया था l दीपक में किसी भी सामाजिक – सांस्कृतिक – शैक्षणिक कार्यक्रम को सफलतापूर्वक आयोजन और संचालन करने की अद्भुत बहुमुखी प्रतिभा थी l अग्र युवा संगठन के कर्मठ सदस्य थे l कोलकाता के अग्रवाल सेवा समाज ने उसे अग्र गौरव से सम्मानित करके स्वयम् को सम्मानित महसूस किया था l
अपने लघु जीवन काल में आईसीएसआई में विभिन्न दायित्वों को बखूबी संभाला और आईसीएसआई के परचम को और ऊँचा लहराने में कोई कसर नहीं छोड़ी l मेरा मानना है कि हमारे आईसीएसआई ने इस विवेकानंद समान महान विभूति को खोया है l अन्तिम समय तक आईसीएसआई को उन्होंने अपनी मातृ का दर्जा दिया l कहता था कि ये भी मेरी माँ है, जिसके कारण ही मै आज इस योग्य हुआ हैl
जितना लिखा जाए, जितना कहा जाए, कम ही लगेगा l लोग शायद ठीक कहते हैं कि ईश्वर के घर भी ऐसे व्यक्तिव के धनी की सदा कमी रहती है और इसी कारण जल्दी वापस बुला लेते हैंl समय भला कब रुकता है l विधि का विधान अपनी गति से चलता ही रहता है l रंगमंच के कलाकारों की तरह इस नश्वर संसार में हर व्यक्ति को अपना किरदार निभाकर वापस जाना ही पड़ता है परंतु मेरे प्यारे दीपु को अपने जीवन काल में मात्र 43 बसंत ही देखकर इस मकर संक्रांति, 15 जनवरी, 2022 को संसार त्यागना पड़ेगा, ये तो कभी सोचा न था l
होनहार छात्र से लेकर एक कुशल अध्यापक, मार्गदर्शक, सबों के प्रेरणादायक, कर्तव्यनिष्ठ, धार्मिक आस्थावान, परोपकारी, कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता, सुहृदय, मृदुभाषी आदि बहुमुखी प्रतिभा से ओत प्रोत अपने छोटे भाई सीएस दीपक कुमार खेतान के लिए उपर वाले से प्रार्थना करती हूँ कि उसकी पावन आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें 🙏💐🙏
डार्क एनर्जी टेलीस्कोप ने बनाया ब्रह्मांड का सबसे बड़ा थ्री डी नक्शा
वॉशिंगटन । डार्क एनर्जी टेलिस्कोप ने ब्रह्मांड का सबसे बड़ा और सबसे विस्तृत 3D नक्शा तैयार किया है। इससे डार्क एनर्जी के पीछे के रहस्यों और हमारे ब्रह्मांड को व्यवस्थित करने के तरीकों के बारे में कई खुलासे हो सकते हैं। डार्क एनर्जी टेलीस्कोप को डार्क एनर्जी स्पेक्ट्रोस्कोपिक इंस्ट्रूमेंट (DESI) के नाम से जाना जाता है। यह एक अंतरराष्ट्रीय परियोजना है, जिसे लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (उर्फ बर्कले लैब) चलाता है।
अंतरिक्ष के विकास की समझ बढ़ेगी
डार्क एनर्जी एक अभी तक खोजी जाने वाली रहस्यमयी शक्ति है जो ब्रह्मांड के विस्तार को प्रेरित करती है। डार्क एनर्जी टेलीस्कोप का मिशन इस फोर्स की फिजिक्स की समझ को बेहतर करना है। इसके अलावा यह टेलिस्कोप पता लगा रहा है कि भविष्य में अंतरिक्ष कैसे विकसित हो सकता है। डार्क एनर्जी टेलीस्कोप सिर्फ एक साल से ही ब्रह्मांड का सर्वे कर रहा है, लेकिन वैज्ञानिकों ने इसकी उपलब्धियों को पहले ही प्रभावशाली और रोचक करार दे चुके हैं।
बर्कले लैब ने शेयर किया ब्रह्मांड का मैप
बर्कले लैब ने अपने ट्विटर अकाउंट पर ब्रह्मांड के सबसे बड़े 3डी मानचित्र का एक वर्जन शेयर किया है। बर्कले लैब के वैज्ञानिक जूलियन गोय ने कहा कि यह मैप बहुत सुंदर है। 3डी मैप में आकाशगंगाओं का डिस्ट्रिब्यूशन में क्लस्टर, तारों की लाइनें और निर्वात दिखाई दे रहे हैं। लेकिन उनके भीतर, आप बहुत प्रारंभिक ब्रह्मांड की छाप पाते हैं जो इसके विकास के इतिहास को बताता है। इस मैप से क्या पता चलेगा?
सर्वे का प्राइमरी काम पूरे आकाश के एक तिहाई से अधिक में फैले लाखों आकाशगंगाओं की विस्तृत कलर स्पेक्ट्रम फोटो को इकट्ठा करना है। हर एक आकाशगंगा से अपने रंगों के स्पेक्ट्रम में प्रकाश को तोड़कर डार्क एनर्जी टेलिस्कोप यह निर्धारित कर सकता है कि अरबों वर्षों के दौरान ब्रह्मांड के विस्तार से प्रकाश को कितना ट्रांसफर किया गया है।
75 लाख आकाशगंगाओं की स्थिति की जानकारी मिलेगी
वैज्ञानिकों के पास ब्रह्मांड का 3डी नक्शा होने से वे आकाशगंगाओं के क्लस्टर और सुपरक्लस्टर्स को चार्ट में शामिल करने में सक्षम हैं। इससे आकाशगंगाों के बनने के दिनों के बारे में जानकारी मिल सकती है। मनुष्य इस बारे में अधिक जान सकते हैं कि ब्रह्मांड का निर्माण कैसे हुआ और इसका विकास कैसे जारी रहेगा। लेकिन, ऐसा होने के लिए और अधिक शोध की जरूरत है। अब से नया नक्शा 75 लाख से अधिक आकाशगंगाओं के स्थान की ओर इशारा करेगा।