गुजिया की शुरुआत काफी पुरानी है। यह एक मध्यकालीन व्यंजन है जो मुगल काल से पनपा और कालांतर में त्योहारों की स्पेशल मिठाई बन गई। इसका सबसे पहला जिक्र तेरहवीं शताब्दी में एक ऐसे व्यंजन के रूप में सामने आता है जिसे गुड़ और आटे से तैयार किया गया था। ऐसा माना जाता है कि पहली बार गुजिया को गुड़ और शहद को आटे के पतले खोल में भरकर धूप में सुखाकर बनाया गया था और यह प्राचीन काल की एक स्वादिष्ट मिठाई थी। लेकिन जब आधुनिक गुजिया की बात आती है तब इसे सत्रहवीं सदी में पहली बार बनाया गया। गुजिया के इतिहास में ये बात सामने आती है कि इसे सबसे पहली बार उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बनाया गया था और वहीं से ये राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार और अन्य प्रदेशों में प्रचलित हो गई। कई जगह इस बात का जिक्र भी मिलता है कि भारत में समोसे की शुरुआत के साथ ही गुजिया भी भारत आयी और यहां के ख़ास व्यंजनों में से एक बन गयी। यह भी कहा जाता है कि गुझिया को ब्रज में भगवान कृष्ण को भोग के रूप में चढ़ाया जाता था, और वहीं से यह व्यंजन देश भर में फैल गया।
गुजिया और गुझिया में है अंतर
अक्सर आपने लोगों को इस मिठाई के दो नाम लेते हुए सुना होगा गुजिया और गुझिया, आपमें से ज्यादातर लोग शायद नहीं जानते होंगे कि ये दोनों ही मिठाइयां अलग तरह से बनाई जाती हैं। वैसे तो दोनों ही मिठाइयों में मैदे के अंदर खोए या सूजी और ड्राई फ्रूट्स की फिलिंग होती है लेकिन इनका स्वाद थोड़ा अलग होता है। दरअसल जब आप गुजिया की बात करते हैं तब इसे मैदे के अंदर खोया भरकर बनाया जाता है, लेकिन जब आप गुझिया के बारे में बताते हैं तब इसमें मैदे की कोटिंग के ऊपर चीनी की चाशनी भी डाली जाती है। दोनों ही मिठाइयां अपने -अपने स्वाद के अनुसार पसंद की जाती हैं।
गुजिया के हैं अलग-अलग नाम
इस स्वादिष्ट मिठाई गुजिया को देशभर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जहां महाराष्ट्र में इसे करंजी कहा जाता है वहीं गुजरात में इसे घुघरा कहा जाता है, बिहार में इस मिठाई को पेड़किया नाम दिया गया है वहीं उत्तर भारत में से गुजिया और गुझिया नाम से जानी जाती है।
अलग जगहों में गुजिया के रूप हैं अलग
वैसे तो मुख्य रूप से गुजिया को बनाने के लिए मैदे को मोइन डालकर डो तैयार किया जाता है और इसकी लोई को पूड़ी की तरह से बेलकर उसमें खोया या भुनी हुई सूजी को उसमें चीनी मिलाकर भरा जाता है। फिर इस पूड़ी को मोड़कर किनारों को दबाकर गुजिया वाला आकार दिया जाता है। लेकिन कुछ और जगहों पर इसे अलग ढंग से भी बनाया जाता है। इसके ऊपर चाशनी की परत भी चढ़ाई जाती है और कुछ जगह गुजिया में ऊपर से रबड़ी मिलाकर भी खाई जाती है।
पहले सिर्फ खोया और सूजी की गुझिया ही मिलती थी लेकिन अब चाकलेट से लेकर जैम, सारे ड्रायफू्रट्स तक की ढेरों स्वाद वाली गुझिया मिलने लगी है। आहार विशेषज्ञों की मानें तो भारत में त्योहारों के अवसर पर बनाए जाने वाले व्यंजन लजीज स्वाद के साथ कैलोरी वाले भी होते हैं। गुझिया मिलाए जाने वाले सूखे मेवे, नारियल, गुड़ तथा अन्य सामग्री स्वास्थ्य के लिए पोषक होती है। सूखे मेवे में जो वसा, एंटीआक्सीडेंट्स, विटामिन ई, कैल्शियम, मैग्नेशियम, पोटेशियम से भरपूर होते हैं। वहीं नारियल के अपने ढेरों फायदे हैं। गुड़ तथा घी भी भरपूर कैलोरी वाले होते हैं। अब तो लो कैलोरी गुझिया तथा शुगर फ्री गुझिया, रोस्टेड गुझियज्ञ भी खासतौर पर बनने लगी हैं। कई दुकानदारां ने तो समोसा, मटर शेप, चंद्रकली, लौंग जैसे आकार भी दिए हैं।
बिहार में पिड़ुकिया नाम से मशहूर गुझिया का एक दिलचस्प किस्सा यूं भी है कि जब पुराने समय में 13-14 साल की उम्र में लड़कियों की शादी हो जाया करती थी तब लड़की पाक-कला का परिचय उसके गुझिया बनाने के ढंग से होता था। हांलाकि गुझिया मध्यकाल का पकवान है। गुझिया के बारे में कहा जाता है कि यह मिठाई मुख्य रूप से पश्चिमी देशों में मध्य एशिया होते हुए भारत आइ्र। आज गुझिया बनाने के लिए तरह-तरह के सांचे मिलते हैं, लेकिन मध्यकाल में गुझिया बनाने के लिए महिलाएं होली के कुछ दिनों पूर्व से ही नाखून काटना बंद कर देती थीं। गुझिया को किनारे से मोडऩे के लिए अपने नाखून का ही प्रयोग करती थीं।
कोलकाता । सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा भारतीय भाषा परिषद में होली मिलनोत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर गीत, संगीत और नृत्य की आत्मीय व अभिनव प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मिशन के अध्यक्ष डॉ शम्भुनाथ ने कहा कि प्रेम और उल्लास के इस पर्व को हम अपने जीवन में भरें ताकि सब कुछ चटकदार हो। स्वागत वक्तव्य देते हुए विद्यासागर विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर व संस्कृतिकर्मी डॉ संजय जायसवाल ने कहा कि होली का उत्सव प्रेम, उल्लास और समानता का पर्व है। हमें अपनी सांस्कृतिक-साहित्यिक अभिरुचि एवं प्रस्तुतियों से इस प्राचीन लोकपर्व को ज्यादा व्यापक और मानवीय बना सकते हैं। राजेश मिश्रा, सेराज खान बातिश, स्कोटिश चर्च कॉलेज की प्रोफेसर डॉ गीता दुबे, खिदिरपुर कॉलेज की प्रोफेसर डॉ इतु सिंह, रमाशंकर सिंह, कालीचरण तिवारी, दीपक ठाकुर, मधु सिंह, राजेश सिंह,राजदीप साहा और सूर्यदेव रॉय ने होली की पारंपरिक गीतों से सभी को झुमाया तथा पूजा गुप्ता, रेशमी सेन शर्मा,आदित्य साव, निखिता पाण्डेय और सपना कुमारी ने नृत्य की प्रस्तुति की। कार्यक्रम का सफल संचालन अनीता राय तथा धन्यवाद ज्ञापन मृत्युंजय श्रीवास्तव ने दिया।इस अवसर पर अवधेश प्रसाद सिंह,आदित्य गिरि,सुशील कांति, मंजु श्रीवास्तव सहित बड़ी संख्या में साहित्य और संस्कृति प्रेमी उपस्थित थे।
होली पर्व भगवान विष्णु के चौथे अवतार नृसिंह और भक्त प्रह्लाद से जुड़ा है। अपने भक्त प्रह्लाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने ये अवतार लिया था। आंध्रपदेश के विशाखापट्टनम से महज 16 किमी दूर सिंहाचल पर्वत पर भगवान नृसिंह का एक प्राचीन और विशाल मंदिर है। मान्यता है कि यह मंदिर सबसे पहले भगवान नृसिंह के परमभक्त प्रहलाद ने ही बनवाया था। यहां मौजूद मूर्ति हजारों साल पुरानी मानी जाती है। होली के मौके पर हम आपको इस मंदिर से जुड़ी खास बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…
चंदन के लेप से ढंकी रहती है प्रतिमा
– भगवान नृसिंह के इस मंदिर को सिंहाचलम कहा जाता है। इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां भगवान नृसिंह लक्ष्मी के साथ हैं, लेकिन उनकी मूर्ति पर पूरे समय चंदन का लेप होता है।
– केवल अक्षय तृतीया को ही एक दिन के लिए ये लेप मूर्ति से हटाया जाता है, उसी दिन लोग असली मूर्ति के दर्शन कर पाते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर को हिरण्यकशिपु के भगवान नृसिंह के हाथों मारे जाने के बाद प्रहलाद ने बनवाया था। लेकिन वो मंदिर सदियों बाद धरती में समा गया।
– मान्यता है कि इस मंदिर को प्रहलाद के बाद पुरुरवा नाम के राजा ने फिर से स्थापित किया था। पुरुरवा ने धरती में समाए मंदिर से भगवान नृसिंह की मूर्ति निकालकर उसे फिर से यहां स्थापित किया और उसे चंदन के लेप से ढ़ंक दिया।
– तभी से यहां इसी तरह पूजा की परंपरा है, साल में केवल वैशाख मास के तीसरे दिन अक्षय तृतीया पर ये लेप प्रतिमा से हटाया जाता है। इस दिन यहां सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है। 13वीं शताब्दी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार यहां के राजाओं ने करवाया था।
उड़द दाल की चंदिया सामग्री – उड़द की दाल ढाई सौ ग्राम धुली हुई या छिलके वाली, सरसों का तेल आवश्यकतानुसार, 50 ग्राम राई पीसी हुई, 2 हरी मिर्च, एक टुकड़ा अदरक, दो चुटकी हींग, नमक स्वादानुसार, काली मिर्च।
विधि – रात को उड़द की दाल पानी में भिगोकर रख दें। सुबह इसे पीस लें। पीसते समय इसमें मिर्ची और अदरक शामिल कर दें। ध्यान रहे कि मिक्सचर गाढ़ा हो ताकि आसानी से चंदिया बनाई जा सकें।अब कढ़ाही में तेल को गर्म कर लें। तेल गर्म होने के बाद हथेली पर थोड़ा सा दाल का पेस्ट लें और उसे गोल करते हुए चपटा कर लें। जब तेल खूब तेज गर्म हो जाए, तो गैस को धीमा कर दें और उसमें चंदिया तल कर निकाल लें। ध्यान रहे कि चंदिया का रंग सुनहरा हो जाना चाहिए।अब एक मिट्टी की बर्नी में पानी रखें और उसमें चंदिया, राई का मसाला, नमक, हींग, काली मिर्च डाल कर तैयार कर लें। आधे घंटे रखने के बाद आप देखेगी की पानी अब खट्टा हो चुका है और आपको चंदिया गल चुकी हैं। अब यह परोसने के लिए तैयार है।
अमृतसरी आलू कुलचा सामग्री- भरावन के लिए- 6 उबले हुए आलू, 1/2 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर, 2 हरी मिर्च कटी , 1 टी स्पून चाट मसाला, 1 टेबलस्पून हरा धनिया पत्ती, नमक स्वादानुसार
कुलचा बनाने के लिए सामग्री- 2 कप मैदा, 1/2 कप दही, 1/2 टी स्पून बेकिंग सोडा, 2 टेबलस्पून चीनी का बूरा, सूखा मैदा, नमक स्वादानुसार
विधि- आलू कुलचा बनाने के लिए सबसे पहले आलू को उबालकर उसके छीलके निकालकर उसे एक बर्तन में मैश कर लें। अब मैश किए हुए आलूओं में लाल मिर्च पाउडर, गरम मसाला, चाट मसाला, कटी हरी मिर्च, धनिया पत्ती और नमक डालकर अच्छे से मिक्स कर दें। अब एक दूसरे बर्तन में मैदा डालकर चीनी, बेकिंग सोडा, दही और स्वादानुसार नमक डालकर मिक्स कर लें। अब इस आटे को थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर गूंथते हुए उससे सॉफ्ट आटा तैयार कर लें। आटा गूंथने के बाद उसे 20 मिनट के लिए अलग रख दें। तय समय के बाद आटे में एक चम्मच तेल डालकर उसे एक बार फिर अच्छे से गूंथ लें। अब इस आटे की बड़ी लोइयां तैयार कर लें। अब एक बड़ी लोई लेकर उसे हल्का सा दबाएं। अब इसमें सूखा मैदा लगाकर हल्का मोटा बेल लें।
अब इसमें एक चम्मच आलू का मिश्रण रखकर चारों ओर से पैक कर उसकी लोई बना लें। अब लोई के एक तरफ धनियापत्ती रखकर उसे दबा दें। उसके बाद लोई पलटकर उसमें थोड़ा सा मैदा लगाकर आप जैसा चाहें उस आकार में कुलचा उसे बेल लें। अब मीडियम आंच पर नॉनस्टिक तवा गर्म कर लें। अब बेले हुए कुलचे पर हल्का सा पानी लगाकर तवे पर डालें। ध्यान रखें तवे पर कुलचे की उस साइड को रखें जहां धनिया पत्ती न लगी हुई हो। पानी लगाने से कुलचा तवे पर अच्छी तरह से चिपक जाएगा। जब कुलचा एक तरफ से अच्छे से सिंक जाए तो तवे को गैस की आंच पर उल्टा कर दें। ऐसा करने से धनिया की ओर का कुलचा भी अच्छे से सिक जाएगा। कुलचा जब अच्छे से सिक जाए तो उसे तवे से हटा लें और उस पर मक्खन लगा दें। आपका आलू कुलचा बनकर तैयार हो चुका है। इसे दही या रायते के साथ सर्व करें।
सत्ता प्राप्ति के खेले हैं नित नए निराले खेले हैं
नाच नाच कर करतब अजीब दिखा रहे हैं
लगा कर मुखौटे देशभक्ति जता रहे हैं
ये पंक्तियाँ जोधपुर राजस्थान के रमेश बोराणा की हैं जो स्वयं राजनीति की बारिकियों से रूबरू हैं। राजस्थान मुख्यमंत्री के संस्कृति सलाहकार, राजस्थान कला साहित्य संस्थान जोधपुर के संस्थापक अध्यक्ष के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण पदों पर प्रतिष्ठित हैं।
रमेश बोराणा सबसे पहले एक संवेदनशील व्यक्ति हैं जो राजनीति में रहते हुए भी अपने शब्दों को ईमानदारी से कविता में ढालते हैं। कवि नाट्यकला के पारखी हैं। रंगकर्मी होने के साथ बहुप्रतिभा के धनी हैं। गद्य , पद्य, नाटक, निबंध, समसामयिक आलेख, जैन फिल्मों के गीतकार, स्तवन, स्क्रिप्ट आदि विविध विधाओं पर आपकी लेखनी चलती रही।
हिंदी और राजस्थानी भाषा पर समान अधिकार रखने वाले कवि ने प्रेम, प्यार, मोहब्बत, जीवन दर्शन आदि पर अपनी लेखनी चलाई है। एक रंगकर्मी का यह काव्य संग्रह निश्चित रूप से विविध अनुभवों का संग्रह साबित होगा। राजस्थान के वरिष्ठ रंग अभिनेता, निर्देशक लेखक रंग तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में राष्ट्रीय पहचान हासिल करने वाले कवि रमेश बोराणा ने सौ से अधिक नाटकों में अभिनय, सत्रह का निर्देशन, नौ नाटकों का लेखन, मंचन, प्रसारण किया है, कई पुरस्कार भी मिले हैं। जीवन अनुभवों का टुकड़ा टुकड़ा सच 74 कविताओं की बगिया है जो अँधेरे से उजाले की ओर जाने की यात्रा करवाती है। पहली कविता ‘अंधेरे की ख़ामोशी ‘में महाभारत में फैले षडयंत्र के पासों से उपजा यह संसार अंधेरों की ख़ामोशी को उजागर करती हैं। कवि आपसी विश्वास और आशा के दीपक जलाने का संदेश देता है क्योंकि वह उन्हीं सड़कों से होकर गुजरा है। ‘अनहद नाद’ कबीर दास जी के अनहद नाद की ओर ले जाती है जहाँ कवि’ अहं ब्रह्मास्मि ‘ की गंभीरता को समझाने का प्रयास करता है। वह फटकारता नहीं है बल्कि ज्ञान बघारने वालों पर व्यंग करता है –
जीवन ज्ञान बघारने वालों
अभी खुद से खुद की पहचान बाक़ी है
अभी तो जहांँ सारा बाक़ी है
समझने की समझ अभी बाक़ी है
कुछ ही समझे हैं
बहुत कुछ बाक़ी है (टुकड़ा टुकड़ा सच, पृष्ठ 15)
जीवन इतना आसान नहीं है। मनुष्य सोचता है वह सर्वशक्तिमान है, सबकुछ कर लेगा। अपने इस झूठे अहंकार से निकलना होगा। अहंकार को छोड़ना होगा–
सफ़र ज़िन्दगी का पार नहीं होता मंसूबी घोड़ों से
ये जहाँ अनंत है
जो चलता है अपनी ही फ़ितरत से
ऐ मैं सुन
चल उठ वक्त को पहचान लेते हैं
चल उठ नियति को समझ लेते हैं (पृष्ठ 14)
कवि कहता है – –
दोस्त दूरियांँ बेशक रखना
पर दिल को नजदीक ही रखना (पृष्ठ 15)
वर्तमान समय की विभीषिका से कवि चिंतित है–
पहचानो तुम /लौट आओ /पांवों तले की जमीन /धंसने से पहले (पृष्ठ 16)
अपने अस्तित्व के प्रति कवि आश्वस्त है क्योंकि उसका अस्तित्व सर्वकालिक है – – जंगल में आदमी है या /आदमी में जंगल और अजगर कौन है? जो सबको अपने – अपने सामने सबके अस्तित्व को नकारता है।
कवि बैचेन है वह आदमी को ढूँढता है। उसके अहसास को, उसके चरित्र को, उसके मुखौटों को, उसके दंभीपन को, उसकी निर्दयता को जिसने धर्म – मज़हब को बाज़ारू और मज़ाक बनाकर रख दिया है – –
‘दो मुंँहा हो गया है आदमी ‘और ‘सत्य से भटक गया है’ आदमी /अपने ही साये से /डरने लगा है आदमी यह कैसी विडंबना है (पृष्ठ 19-20)।कवि मनुष्य के इस भयावह जंगल में ‘भयावह अर्थहीन विदूषक सा लगता है’ वह ‘अज़ानों’ व ‘आरतियों’ के बेसुरे सुर से दुखी है लेकिन जानना चाहता है कि आस्था के पर्दे में हाथ डाले कौन है?( पृष्ठ 21) समाज के ऐसे लोगों से दुखी है जो इस तरह के भ्रम फैला रहे हैं। अच्छा इंसान कैसे बनाया जाए, इस पर विचार करता है – नियति अटल /नहीं मिलता इक कुँआ दूजे कुएँ से कभी /ज़िन्दा है इंसानियत तो आओ इंसान से मुलाकात को निकलो( पृष्ठ 22) ‘कविता क़ागजी पहचान का मोहताज़ है आदमी’ कविता में वर्तमान व्यक्ति की पहचान काग़ज़ों तक सिमट कर रह गई है। ‘कोरा कागज’ में प्रतीकात्मक प्रयोग है जहाँ उस ‘मासूम’ पवित्र और निश्छल व्यक्ति को बदरंग बना दिया जाता है। ‘खंडित अक्षर’ में ढाई अक्षर वाले शब्द ‘प्यार’ को अभिशप्त माना है क्योंकि जिसका ‘पहला हर्फ़ ही खंडित है’ तो वह क्या देगा। कवि की यह कल्पना उसकी अनूठी सोच है जो पाठकों के साथ एकमतता दर्शाती है।
वह युद्ध मिलने – बिछुड़ने का मेला, टूटे ख़वाबों का मंजर, बेसुधी, बेखुदी, अरमानों की अर्थी, बर्बादी, विरह का आर्तनाद, मृगतृष्णा का समंदर, भ्रम आदि से वाकिफ़ है लेकिन ‘प्यार’ को जिसने समझा है, उसके लिए सबकुछ है (पृष्ठ 25)।
‘बूंँदे छोटी-छोटी ‘कविता में ‘धरा आंँगन को तृप्ति’ देने वाली छोटी-छोटी बूंँदों के महत्वपूर्ण योगदान को बताया गया है जो जीवन को रंगों से भर देती हैं। बूँदों से ही सागर भरते हैं।
कवि अकेले ही रहना चाहता है क्योंकि उसने दुनिया को अच्छी तरह देख लिया है इसलिए उसे लोगों की संगत से डर लगता है (पृष्ठ 27)’ घुटन’ कविता में जीवन के सत्य को दर्शाया है जहांँ ‘भीतर और बाहर घुटन ही घुटन है’ जिसे कवि ‘सृष्टि का कालचक्र’ मानता है।’चाह की राह’ कविता में जागरण गीत गाता कवि ‘भरोसे का मंगल गीत’ और ‘धोरों पर सोनल दांडी ‘बनाने का आह्वान करता है।उसकी नज़रों में जननायक वही बन सकता है जो’ जन के मन ‘में चढ़ जाए।
दूसरों का कल्याण करना ही ‘सत्य कर्म’ का पालन करना है, मानवता की सेवा करने वाले सेनानी ही सच्चे पुजारी हैं।
देश की आन- बान – शान और गौरव पर लिखी कविता ‘जय जय तिरंगा’ में देश के लिए प्राणों तक को न्योछावर करना हर देशवासी का धर्म माना है क्योंकि ‘जन – मन की धड़कन है तिरंगा’। कवि विश्व गौरव की कामना करता है।उसका मानना है कि मनुष्य जीवन मिला है तो अवसर भी मिला है। अवसर का लाभ उठाने का संदेश देता और अपने देश के लिए लिए हर देशवासी को अपने-अपने क्षेत्र में कार्यों को करते हुए ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना रखनी चाहिए। छोटे-मोटे संघर्षों से घबड़ाना नहीं चाहिए, कवि ऐसी दृष्टि रखता है।
संपूर्ण रूप से कोई भी व्यक्ति सब कुछ न प्राप्त कर सकता है और न ही पूरा कर पाता है। हम जितना ही जीवन और संसार के पास जाते हैं, सोचते हैं, देखते हैं, उससे कहीं और ‘अनंत अथाह पहेली है ‘यह संसार। (पृष्ठ 39)
यह सच है कि हम अलग – अलग धर्म, जन्म – मरण, ईश्वर – अल्लाह, गॉड, धर्म सब अलग – अलग टुकडों में समझते हैं। इंसान के व्यवहार में ‘सबका अपना टुकड़ा टुकड़ा सच है ‘तो सूरज – चाँद एक ही क्यों है?, मनुष्य का खून और उसकी पीड़ा का अहसास एक क्यों है? कवि निष्ठा – भरोसा और समर्पण को हर मनुष्य की पूंँजी उस सत्य को मानता है जो वह टुकड़े टुकड़े में समझता है।
कवि प्रकृति के झरने की बात करता है जो चट्टानों के थपेड़े खाकर भी ऊपर से अविरल गिरता है, अपनी चोटों को सीने में छिपा लेता है। डॉ एस एन सुब्बाराव की राष्ट्र भक्ति का अलख जगाते हैं। कवि का मानना है कि धर्म, मजहब, नैतिक मूल्य, गाँधी का सपना देश धर्म निभाने वाले ही अंँधेरे में उजाले खोज रहे हैं, ऐसे लोग धन्य हैं। तभी भारत स्वराज प्राप्त कर सकता है। (पृष्ठ 40)
गाँधी को शुद्ध विचारों में खोजा जा सकता है – –
मैं मरा नहीं हूँ
न ही कहीं गया हूँ
* * *
सत्य – अहिंसा में
अस्तेय – अपरिग्रह
सत्याग्रह – अनशन में
शुद्ध विचारों में
गाँधी हर एक व्यक्ति के हृदय में शुद्ध विचारों के रूप में विराजित हैं।
झरना, तितली, मोह लिप्सा, धूप, नारीत्व, नियति, परछाइयाँ, पानी, पसीना, समंदर, बेटी की अभिलाषा, माँ, रंग, रिश्ते, घुंँघरू, मुझमें, होली, धूल, हिम्मत आदि कई कविताएँ कवि की विभिन्न संवेदनाओं को नए रंग प्रदान करती हैं जिनमें वह बच्चा बन जाता है। निश्छल और सत्य का संधान करता है। ‘षड्यंत्र हो गया हो जैसे’ , ‘महाभारत’, ‘वक्त का कमाल’ , ‘बाजार’ , ‘यह बहुरूपियों के टोले हैं’ , ‘सुन सके तो सुन वक्त’आदि कविताएँ कवि के विविध तेवर की कविताएँ हैं।
वर्तमान राजनीति की बखिया उधेड़ते दिखाई पड़ता है कवि – –
वाचालता से जन – मन को बहला लेते हैं
कुर्सी भी धड़ल्ले से हथिया लेते हैं (पृष्ठ 78)
वर्तमान परिस्थितियों से कवि दुखी है,’ ख़ुद को इंसान कहते हुए भी शर्म आती है ‘और व़क्त के चेहरे को काग़ज़ पर उतार कर उसे कोसता है (पृष्ठ 86)।
ख़ामोशी भी बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह जाती है – –
चुप्पी से शब्द को औक़ात बता देती हैं
अल्फाज़ कंगूरों की मानिंद जता देते हैं
ख़ामोशियाँ नींव भाँति भार छुपा लेती हैं।( पृष्ठ 90)इस संघर्षों से भरे संसार में वह पीछे नहीं हटता, सभी को प्रोत्साहित करता है। कवि आशावादी है और वह हौसला देता है – –
यह सारा फ़लक तेरा है
हर सफलता तेरे कदमों में है (पृष्ठ 91)
समाज में स्त्री के अस्तित्व को सही स्थान न मिलने पर दुखी और पीड़ा से भरा हुआ है और उसको इस सृष्टि की संवाहिका मानता है।
‘माँ’ कविता में स्त्री कहती है, ‘स्नेह, प्यार और वात्सल्य से पगी /एक स्त्री होती हुई भी /आखिर/जननी ही तो हूँ तुम्हारी’ (पृष्ठ 65)।
माँ से होती हुई एक स्त्री की जीवन यात्रा के सभी रूपों पर चार भागों में लिखी लंबी कविताएँ उसका प्रमाण है।
‘अपेक्षा’ और ‘उपेक्षा’ इन अचूक मंत्रों से कवि मनुष्य मात्र को आश्वासन देता है कि जीवन को सुखद बनाने के ही ये दो मंत्र काफ़ी है।
अंधेरों से उजाले की ओर कवि की रचनात्मक यात्रा है ‘टुकड़ा टुकड़ा सच ‘ मन का उजास की सकारात्मक सोच लिए समाप्त होती है जहाँ वह इसी निष्कर्ष पर पहुँचता है कि – – ‘गर ढूंँढना ही है /किसी को तो /अपने भीतर ढूंँढ वह तो वहीं बैठा है /तेरे इंतजार में /उसके लिए चिराग़ नहीं /मन का उजास चाहिए (पृष्ठ 96)
कवि रमेश बोराणा ने उर्दू और हिंदी के शब्दों का प्रयोग किया है जो बोलचाल में रचे बसे हुए हैं। शिल्प विधान की दृष्टि से कहीं – कहीं शिथिलता दिखाई पड़ती है। कवि ने भारतीय संस्कृति और संस्कार के भावों को प्रमुखता से लिखा है जो रचनाकार की प्रमुख विशेषता है कवि का प्रथम संस्करण 2021 में प्रकाशित काव्य संग्रह ‘टुकड़ा टुकड़ा सच’ का आवरण पद्मश्री शाकिर अली, जयपुर द्वारा रेखाओं का उत्कृष्ट रेखांकन है।मात्र 150 रूपये की यह पुस्तक राजस्थानी ग्रंथागार, प्रथम मंजिल , गणेश मंदिर के सामने, सोजती गेट, जोधपुर – 342001 से प्रकाशित हुई है।
कला और संस्कृति के संरक्षण और विकास के लिए प्रतिबद्ध रंगकर्मी रमेश बोराणा के मित्र उपन्यासकार और शायर ने ‘दो शब्द’में सही लिखा है, ‘सादगी में सौन्दर्य इनकी कविताओं का गुण है जिसे इन्होंने राजनीति में रहते हुए भी बरकरार रखा। – – – किताब के बगैर बात नहीं बनती’।
कौलकाता । भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज के डीन्स ऑफिस और कॉलेज की ओर से गैर शिक्षण कर्मियों को होली के अवसर पर सम्मानित किया। पिछले छह वर्षों से फगुआ कार्यक्रम में यह कार्यक्रम बड़े ही जोरशोर से मनाया जाता है। सिक्युरिटी, मेंटेनेंस, एकाउंट्स, कम्प्यूटर सेंटर, इन्फ्रास्ट्रक्चर, गेम्स एंड स्पोर्ट्स, एनसीसी, लाइब्रेरी, हाउस कीपिंग, आदि सभी विभागों के प्रमुख और अन्य सभी को उपहार स्वरूप डिनर सेट प्रदान किए गए। डीन प्रो दिलीप शाह ने अपने वक्तव्य में कहा कि लगभग 225 से अधिक गैर शिक्षण कर्मी ही कॉलेज को सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, तभी कॉलेज अपनी संपूर्ण गतिविधियों को आसानी से कर लेता है। ये सभी हमारे कॉलेज की रीढ़ हैं। उन्होंने सभी को उपहार प्रदान किए। सबसे पुराने सुरक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी हरि सिंह को प्रो दिलीप शाह ने विशेष रूप से सम्मानित किया ।
कार्यक्रम के आरंभ में विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जिसमें गीत – संगीत और होली उत्सव के नृत्य और हास्य नाटिका की प्रस्तुति दी। कॉलेज के फ्लेम कलेक्टिव ने इस्टर्न और वेस्टर्न नृत्य, इन-एक्ट ने हमारे मंत्री नाटिका और फैशनिस्टा ने श्वेत परिधान और फागुनी लहरिया में फैशन शो किया। क्रिसेंडो ने हिंदी, बांग्ला और अन्य गीतों को वाद्ययंत्रों के साथ फागुन के गीत गाए और सभी को रस से सराबोर कर दिया। फूलों से खोली गई इस होली में कॉलेज के शिक्षकगणों ने भाग लिया। शिक्षक संयोजक प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी, प्रो दिव्या उदेशी, प्रो विवेक पटवारी, प्रो चंदन झा, प्रो दर्शना झा, डॉ वसुंधरा मिश्र, प्रो कृपा शाह रहे।
विद्यार्थियों की बड़ी संख्या में उपस्थित वोलियंटर ने दिए गए अपने सभी कार्यों को जिम्मेदारी से बखूबी निभाया।
फागुन के इस रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम में जुबली सभागार और वालिया हॉल तथा नीचे कॉरिडोर सभी जगह फूलों की पंखुड़ियों से धरती पट गई थी। भोजन और ठंडाई की व्यवस्था थी जिसका सभी ने आनंद उठाया। इस कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।
कोलकाता । गीतांजलि स्टेडियम में भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज के छात्र- छात्राओं ने इंट्रा एथलेटिक कॉर्निवल ‘ऊर्जा 2022’ के अंतर्गत स्पोर्ट्स और एथलीट्स के प्रदर्शन, कॉर्निवल फेस्ट और फनफेयर रहा। कॉलेज के सभी प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। सौ , दो सौ और चार सौ रेस, डिस्कस थ्रो, शार्ट पुट, रिले आदि विभिन्न स्पोर्ट्स में कई बैचों में छात्र और छात्राओं ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। खाने, पीने और स्नेक्स आदि के 16-17 स्टॉल लगाए गए जो विद्यार्थियों ने लगाए। एनसीसी के कैडटों ने मार्चपास्ट किया। एनसीसी के विद्यार्थियों का स्टॉल लगाया गया। एनसीसी केडट राज तिवारी, शशांक शेखर तिवारी, अनन्या सिंह, विपुल सिंह आदि उपस्थित रहे। एनसीसी दानिश तारपोल ने बेहतर प्रदर्शन किया। लडकियों में यश्वी ने. गांधी ने बेहतर प्रदर्शन किया। रक्तदान शिविर का भी आयोजन था जिसमें विद्यार्थियों ने ब्लड डोनेट किया। प्रथम द्वितीय और तृतीय स्थान पर आने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया। शिक्षिकाओं ने लेमन रेस और नॉन टिचिंग स्टॉफ ने रेस में हिस्सा लिया।
उद्घाटन समारोह में मशाल प्रज्वलित कर ऊर्जा 2022 का आह्वान किया गया जिसमें प्रो दिलीप शाह, प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी और उमेद ठक्कर प्रमुख रहे। प्रो दिव्या उदेशी, प्रो विवेक पटवारी, प्रो दर्शना त्रिवेदी, प्रो चंदन झा, प्रो कृपा शाह, प्रो पूजा अग्रवाल, प्रो डालिया शर्मा,प्रो अंकित पटवारी, प्रो रेखा नारिवाल, प्रो प्रीति शाह, अरित्रिका दूबे, डॉ वसुंधरा मिश्र और अन्य शिक्षकों की उपस्थिति रही। स्पोर्ट्स के प्रमुख रूपेश गांधी का प्रमुख सहयोग रहा।
कॉलेज के डायरेक्टर जनरल डॉ सुमन मुखर्जी और एयरफोर्स ग्रुप कमांडर विष्णु शर्मा ने सभी प्रथम द्वितीय और तृतीय स्थान को पुरस्कृत किया। इस अवसर पर भवानीपुर कॉलेज के विद्यार्थियों ने कॉर्निवाल फेस्ट में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया। इस कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।
कोलकाता । कामधेनु पेंट्स ने होली के रंग भरे उत्सव को और रंगारंग बनाते हुए सेल्फी प्रतियोगिता आयोजित की है। रंग खुशियों के नामक इस प्रतियोगिता की जानकारी देते हुए कामधेनु पेंट्स के निदेशक सौरभ अग्रवाल ने कहा कि प्रतियोगिता का उद्देश्य उत्सव में खुशियों के रंग भरना है जहाँ प्रतिभागी अपने उत्सव की तस्वीरें भेज सकते हैं। प्रतिभागी को उनके उत्सव की तस्वीरें कामधेनु के फेसबुक पेज एवं इंस्टाग्राम प्रोफाइल पर पोस्ट करनी होंगी। प्रविष्टि जमा करने की अंतिम तारीख 22 मार्च है। विजेताओं का नाम सोशल मीडिया माध्यमों पर 31 मार्च को घोषित किया जाएगा।
कोलकाता । बजाज हाउसिंग फाइनेंस का एसेट अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) 50,000 करोड़ रुपये के पार पहुँच गया है। कंपनी ने मार्च 2018 में एक स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करना शुरू किया था, और सिर्फ चार सालों के कारोबार के दौरान ही कंपनी ने यह उपलब्धि हासिल की। कारोबार के पहले साल, यानी वित्त-वर्ष 2019 में बजाज हाउसिंग फाइनैंस ने पहली उपलब्धि हासिल करते हुए, अपने एसेट अंडर मैनेजमेंट को 10,000 करोड़ रुपये तक पहुँचाने में सफलता प्राप्त की। अगले ही साल, कंपनी का एयूएम 25,000 करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया, जो वित्त-वर्ष 2020 के अंत तक 32,705 करोड़ रुपये गया।
वित्त-वर्ष 2021 में बजाज हाउसिंग फाइनैंस ने 38,871 करोड़ रुपये का एयूएम दर्ज किया। उसी साल, कंपनी ने बाहरी बेंचमार्क (रेपो रेट) से जुड़े होम लोन के रूप में एक नई पहल की शुरुआत की हो – और इस तरह यह ग्राहकों को अपने होम लोन को बाहरी बेंचमार्क, यानी आरबीआई के रेपो रेट से लिंक करने का विकल्प देने वाली पहली हाउसिंग फाइनैंस कंपनी (एचएफएस) बन गई। हालांकि, आरबीआई के आदेशानुसार बैंकों के लिए अपने होम लोन को रेपो रेट जैसे बाहरी बेंचमार्क से लिंक करना अनिवार्य है, लेकिन एचएफसीएस अपने होम लोन को आंतरिक बेंचमार्क से जुड़े ब्याज़ दरों के साथ लिंक करने का विकल्प चुन सकते हैं, जिसे फ़्लोटिंग रेफरेंस रेट भी कहा जाता है।