Friday, July 18, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 217

बिहार का लोकपर्व सतुआन 

ध्रुव गुप्त

आज बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक लोकपर्व सतुआन का दिन है। इसे लोग सतुआ संक्रांति या बिसुआ भी कहते हैँ ! बिहार के अंग क्षेत्र में यह पर्व ‘टटका बासी’ के नाम से जाना जाता है। कुछ लोग इस दिन के साथ पूजा-पाठ का कर्मकांड भी जोड़ देते हैं, लेकिन सतुआन वस्तुतः आम के पेड़ों पर लगे नए-नए फल और खेतों में चने एवं जौ की नई फसल के स्वागत का उत्सव है।

आज इन नई फसलों के लिए सूर्य का आभार प्रकट करने के बाद नवान्न के रूप में आम के नए-नए टिकोरों की चटनी के साथ नए चने और जौ का सत्तू खाया जाता है। सत्तू भोजपुरिया लोगों का सर्वाधिक प्रिय भोजन है। इसे देशी फ़ास्ट फ़ूड भी कहते हैं। सत्तू चने का हो सकता है, जौ का हो सकता है, मकई का हो सकता है और इन सबके मिश्रण का भी।

इसमें नमक मिलाकर, पानी में सानकर कभी भी, कहीं भी, कैसे भी खा लिया जा सकता है, लेकिन सत्तू खाने का असली मज़ा तब है जब उसके कुछ संगी-साथी भी साथ हों। भोजपुरी में कहावत है – सतुआ के चार यार / चोखा, चटनी, प्याज, अचार। एक और कहावत है – आम के चटनी, प्याज, अचार / सतुआ खाईं पलथी मार। चटनी अगर मौसम के नए टिकोरे की हो तो सत्तू के स्वाद में चार चांद लग जाते हैं।

आप सबको लोकपर्व सतुआन की बहुत बधाई ! सतुआ खाईं चटनी चाटीं / मिली सवाद भोजपुरिया खांटी।
सतुआन

’कवरिंग्स 2022’, में दिखे निट्को के मार्बल और स्टोन के खूबसूरत डिजाइन

अमेरिका के लास वेगास में 5 -8 अप्रैल तक चली यह प्रदर्शनी
कोलकाता । भारत की अग्रणी सरफेस डिजाइन कंपनी निट्को ने हाल ही में अमेरिका के लास वेगस में आयोजित ’कवरिंग्स 2022’ में भाग लिया। गत 5 अप्रैल से 8 अप्रैल 2022 तक आयोजित यह चार दिवसीय आयोजन यूएसए और उत्तर अमेरिका में टाइल्स एवं कुदरती पत्थरों की सबसे बड़ी प्रदर्शनी है। कंपनी ने इस प्रतिष्ठित प्रदर्शनी में अपने विशिष्ट उत्पाद प्रदर्शित किए जिसमें अंतर्राष्ट्रीय पैविलियन, शो फ्लोर ऐक्ज़िबिट्स, लाइव इंस्टॉलेशन डैमो, सीआईडी अवार्ड्स और कॉम्पलिमेंट्री शैक्षिक अवसर शामिल थे।
टाइल्स व कुदरती पत्थरों के क्षेत्र में कार्यरत दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां इस प्रदर्शनी में अपने उत्पाद लेकर आईं थी उनके बीच निट्को ने वॉल टाइल्स और मोज़ैक की नई रेंज पेश कीं। कंपनी ने लगातार दूसरे वर्ष यूएस में हुए इस आयोजन में हिस्सा लिया है। भारत की यह एकमात्र कंपनी है जिसके पास टाइल्स, मार्बल और मोज़ैक के इतने सारे प्रोडक्ट व डिजाइन उपलब्ध हैं।
कवरिंग्स उत्तर अमेरिका में टाइल एवं प्राकृतिक पत्थरों की सबसे बड़ी प्रदर्शनी है जिसमें 40 से ज्यादा देशों के प्रदर्शकों ने हिस्सा लिया तथा हज़ारों वितरक, रिटेलर, फैब्रिकेटर, कॉन्ट्रैक्टर, स्पेसिफायर्स, आर्किट्रैक्चरल व डिजाइन प्रोफेशनल, बिल्डर एवं रियल ऐस्टेट डैवलैपर इस आयोजन में पहुंचे। कवरिंग्स शो फ्लोर व उसके परे वास्तुशिल्पियों व डिजाइनरां को कस्टम टाइल व स्टोन सॉल्यूशन मुहैया कराती है। इसके अलावा, दुनिया भर के सिरेमिक स्पेस से अपडेटेड व नवीनतम ट्रैंड्स व डिजाइन की प्रेरणाएं भी कवरिंग्स में देखने को मिलीं।
कंपनी के इंटरनेशनल बिज़नेस हैड दिव्यांग छेड़ा ने कहा, ’’कवरिंग्स 2022 का हिस्सा बन कर हम बहुत उत्साहित हैं। हमने 8 गुणा 4 फीट के स्लैब साइज़ में खूबसूरत मार्बल व स्टोन डिजाइन की विशिष्ट रेंज का अनावरण किया। हमारा लक्ष्य था की एक बेहतर दुनिया की रचना की जाए और ऐसे उत्पाद तैयार किए जाएं जो प्रकृति से प्रेरित हों। हम अपने उत्पाद ग्राहकों को ध्यान में रखकर डिजाइन करते हैं, हम स्थानीय रुझानों को समझते हैं, अपनी वैश्विक विशेषज्ञता को अपने काम में लाते हैं और भरोसे के साथ अपने व्यापार सहयोगियों के साथ काम करते हैं।’’
’’अमेरिका ने वित्त वर्ष 2021 की तीसरी तिमाही में 1.68 बीलियन वर्ग फीट सिरेमिक टाइल्स का आयात किया, वित्त वर्ष 2020 की तीसरी तिमाही के मुकाबले यह 21.5 प्रतिशत अधिक था। वि.व.2021 की तीसरी तिमाही में अमेरिका ने टाइल की जितनी खपत की उसका 71.6 प्रतिशत आयातित था, जबकि 2020 की इसी अवधि में यह आंकड़ा 69.4 प्रतिशत था। आगामी वर्षों में यूएसए और लैटिन अमेरिका के बाजारों में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के छप्ज्ब्व् के पास बहुत अवसर हैं क्योंकि हम यहां के सबसे बड़े होम इम्प्रूवमेंट स्टोर्स को पहले से ही सप्लाई दे रहे हैं,’’ दिव्यांग छेड़ा ने बताया।

सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में छात्राओं को मिली कोविड -19 की वैक्सीन

12 से 15 वर्ष की छात्राओं को मिली पहली खुराक
कोलकाता । सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में 12 से 15 वर्ष की छात्राओं को कोविड -19 टीके की पहली खुराक दी गयी। सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल का नया सत्र 4 अप्रैल, 2022 को शुरू हुआ। महीनों की ऑनलाइन कक्षाओं के बाद स्कूल वापस आने वाले छात्राओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल ने कोलकाता नगर निगम के सहयोग से गत 7 अप्रैल, 2022 को एक मुफ्त टीकाकरण शिविर का आयोजन किया। 12 वर्ष की आयु के छात्र – 15 साल की उम्र में डॉक्टरों और नर्सों की मेडिकल टीम द्वारा कॉर्बेवैक्स की पहली खुराक पिलाई गई। एसबीजीएस के समन्वयक, शिक्षक और सहायक कर्मचारी टीकाकरण अभियान में सक्रिय रूप से शामिल थे। छात्राओं के प्रवेश और निकास के लिए अलग-अलग मार्ग बनाए गए थे। प्रतीक्षा क्षेत्र में बैठने की उचित व्यवस्था की गयी थी और टीकाकरण अभियान के दौरान सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया गया था। छात्राओं को दूसरी खुराक पिलाने के लिए निर्धारित प्रतीक्षा अवधि के बाद एक और टीकाकरण शिविर निर्धारित किया जाएगा।

एचआईटीके का विद्यार्थी प्रोग्रामिंग प्रतियोगिता में देश में दूसरे स्थान पर

कोलकाता । हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के बी.टेक के विद्यार्थी ने अखिल भारतीय प्रोग्रामिंग प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त किया। कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग, बैच -2024 के श्रृंजय राय रे ने विश्व की सबसे बड़ी प्रोग्रामिंग प्रतियोगिता टीसीएस कोड वीटा 2022 सीजन -10 राउंड -1 में अखिल भारतीय द्वितीय रैंक प्राप्त कर यह उपलब्धि हासिल की। हाल ही में परिणाम सामने आए थे और यह न केवल संस्थान के लिए बल्कि पश्चिम बंगाल राज्य के लिए भी गर्व की बात है और वह भी एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज से।
श्रृंजय ने कोडफोर्स से कैंडिडेट मास्टर की उपाधि भी अर्जित की थी और उन्हें कोडिंग करना बहुत पसंद है और इसके बारे में बहुत उत्साहित है। उसने फाइनल में जाने की उम्मीद जतायी और सभी शिक्षकों का आभार जताया।
हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के सीईओ पी.के. अग्रवाल ने कहा, ‘इसके पूर्व इस संस्थान के ही एक छात्र ने गेट 2022 में तीसरा स्थान प्राप्त किया झा और अब हमारे विद्यार्थी टीसीएस कोड वीटा में दूसरा रैंक हासिल किया। हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रिंसिपल डॉ, बासव चौधरी एवं कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. सुभाष मजूमदार ने श्रृंजय की सराहना की।

युवाओं में है देश को आगे ले जाने की क्षमता : डॉ. अशोक झुनझुनवाला

इंडियन चेम्बर ऑफ कॉमर्स में परिचर्चा
कोलकाता । इंडियन चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने हाल ही में एक परिचर्चा आयोजित की। “भारत के अगले 25 साल: एक अवसर या” पर विषयक परिचर्चा में केन्द्रीय विद्युत मंत्री, , एमएनआरई, और रेलवे के पूर्व सलाहकार पद्मश्री डॉ. अशोक झुनझुनवाला ने वक्तव्य रखा। आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर डॉ. अशोक झुनझुनवाला ने कहा कि अगले 25 वर्षों में भारत की जीडीपी 6% से बढ़कर 9% होने की उम्मीद है। देश की प्रमुख ताकत इसकी जनसंख्या है, जो क्षमता के एक जबरदस्त पूल का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने आगे कहा कि प्रमुख लाभों में से एक उचित मूल्य पर बड़ा बाजार है और बहुराष्ट्रीय फर्मों को विनिर्माण सुविधाएं स्थापित करनी चाहिए जो उद्योग के अवसरों का पता लगाने के लिए तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल बिठा सकें।
आईसीसी के अध्यक्ष और सुरेका समूह के रियल एस्टेट डिवीजन के निदेशक प्रदीप सुरेका ने कहा, “भारत को सकारात्मक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 1991 के बाद से, अर्थव्यवस्था प्रति व्यक्ति जीडीपी प्रति व्यक्ति 6.5 गुना की दर से बढ़ी है, तब से शिक्षा में सुधार हुआ है। 1980 के दशक में, 95% बच्चे स्कूलों में जा रहे थे।” इसके अलावा आईसीसी के महानिदेशक राजीव सिंह ने कहा कि “शुरुआती लाभ प्राप्त करने के लिए, हमें इंटरनेट, आईटी और स्ट्रीमुलेटर्स जैसे क्षेत्रों पर काम करना चाहिए।”
अंत में, डॉ. झुनझुनवाला ने यह उद्धृत करते हुए सत्र का समापन किया, “युवा लोगों में हमारे देश को बदलने की क्षमता है, इसलिए हमें उन्हें शिक्षित, प्रेरित, प्रेरित और सशक्त बनाने के साथ-साथ उन्हें सादा जीवन और पूजा के भारतीय आदर्शों से जोड़ना चाहिए।”

जब सुधा मूर्ति ने लिखा था जेआरडी टाटा को लिखा था एक खत, बनीं बदलाव का कारण

नयी दिल्ली । सुधा मूर्ति एक उद्यमी, एजुकेटर, लेखिका और समाज सुधारक होने के साथ-साथ इन्फोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन भी हैं। उन्हें ‘भारत की फेवरेट ग्रैनी’ भी कहा जाता है। लेकिन इस सबके अलावा सुधा मूर्ति, भारतीय परिवहन उद्योग के एक बड़े बदलाव से भी जुड़ी हैं।
सुधा मूर्ति टाटा मोटर्स की पहली महिला इंजीनियर थीं। लेकिन उन्हें यह पोजिशन हासिल होने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। यह वह वक्त था, जब भारत की सबसे बड़ी वाहन निर्माता कंपनी टेल्को महिलाओं की नियुक्ति नहीं करती थी। लेकिन सुधा मूर्ति ने तस्वीर बदल दी और कंपनी में पहली महिला इंजीनियर बन गईं।

साल 1974 का वक्त….जब सुधा, सुधा कुलकर्णी थीं। बात साल 1974 की है। उस वक्त सुधा, सुधा कुलकर्णी थीं और बेहद बोल्ड हुआ करती थीं। वह IISc बेंगलुरु से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स के अंतिम वर्ष में थीं। तब वह इंस्टीट्यूट टाटा इंस्टीट्यूट (Tata Institute) के नाम से जाना जाता था। सुधा पोस्ट ग्रेजुएट विभाग में अकेली लड़की थीं और लेडीज हॉस्टल में रहती थीं। अन्य लड़कियां विज्ञान के विभिन्न विभागों में रिसर्च कर रही थीं। सुधा को अमेरिका में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिली हुई थी और वह वहां जाने की तैयारी कर रही थीं। उन्हें भारत में नौकरी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। https://www.tata.com/ पर उपलब्ध साल 2019 में जेआरडी टाटा (JRD Tata) के लिए सुधा मूर्ति द्वारा लिखे गए एक लेख के मुताबिक, 1974 का शायद अप्रैल महीना था। एक दिन सुधा को लेक्चर-हॉल परिसर से अपने हॉस्टल के रास्ते में, नोटिस बोर्ड पर एक विज्ञापन दिखा। विज्ञापन प्रसिद्ध ऑटोमोबाइल कंपनी टेल्को [अब टाटा मोटर्स] में एक अच्छी नौकरी को लेकर था। इसमें कहा गया था कि कंपनी को युवा, होनहार, मेहनती और उत्कृष्ट शैक्षणिक पृष्ठभूमि वाले इंजीनियरों की जरूरत है। लेकिन विज्ञापन के नीचे एक लाइन भी लिखी थी- ‘महिला उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है ( लेडी कैंडिडेट्स नीड नॉट अप्लाई)।’
ठान ली कि आवाज उठानी है
सुधा को नौकरी में दिलचस्पी नहीं थी लेकिन उन्हें यह लाइन पढ़कर बेहद गुस्सा आया और उन्होंने इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने की सोची। यह पहली बार था, जब सुधा लैंगिक भेदभाव के खिलाफ खड़ी हो रही थीं। दिलचस्पी न होने के बावजूद उन्होंने इसे एक चुनौती की तरह देखा। सुधा अपनी पढ़ाई में अधिकांश पुरुष साथियों की तुलना में काफी अच्छी थीं लेकिन तब उन्हें यह पता नहीं था कि जीवन में सफल होने के लिए केवल अकादमिक योग्यता पर्याप्त नहीं है। नौकरी की वह नोटिस पढ़ने के बाद सुधा ने तय कर लिया था कि वह टेल्को के प्रबंधन के सर्वोच्च व्यक्ति को कंपनी द्वारा किए जा रहे अन्याय के बारे में सूचित करेंगी।

सीधा जेआरडी टाटा को लिख डाला खत
लेकिन उन्हें पता नहीं था कि टेल्को किसकी अगुवाई में चल रही है। लेकिन उन्होंने सोचा कि यह टाटा परिवार में से ही कोई व्यक्ति होगा। हालांकि उन्हें यह पता था कि जेआरडी टाटा, टाटा समूह के प्रमुख हैं। ये और बात है कि उस वक्त टेल्को के चेयरमैन सुमंत मूलगांवकर थे। लेकिन चूंकि सुधा को इस बारे में नहीं पता था तो उन्होंने जेआरडी टाटा को पत्र लिखने का फैसला किया। उन्होंने एक पोस्टकार्ड लिया और लिखा, ‘महान टाटा (टाटा परिवार) हमेशा अग्रणी रहे हैं। वे, वे लोग हैं जिन्होंने भारत में बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योग जैसे लोहा व इस्पात, रसायन, कपड़ा और लोकोमोटिव को शुरू किया। उन्होंने 1900 से भारत में उच्च शिक्षा की देखभाल की है और उन्होंने ही इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस को स्थापित किया। सौभाग्य से मैं वहां पढ़ती हूं, लेकिन मुझे आश्चर्य है कि टेल्को जैसी कंपनी कैसे लिंग के आधार पर भेदभाव कर रही है।’
जब 10 दिनों के अंदर ही आ गया जवाब
सुधा ने यह पत्र को पोस्ट कर दिया और इसके बारे में भूल गईं। 10 दिनों के अंदर ही, उन्हें एक टेलिग्राम मिला जिसमें कहा गया था कि उन्हें कंपनी के खर्च पर टेल्को की पुणे फैसिलिटी में एक इंटरव्यू के लिए उपस्थित होना है। यह टेलिग्राम पाकर सुधा हैरान रह गईं। उनके हॉस्टल के साथियों ने उन्हें फ्री में पुणे जाने और सस्ते में पुणे की प्रसिद्ध साड़ियां खरीदने के मौके का फायदा लेने को कहा। जिन्हें साड़ी चाहिए थी, उन सभी ने सुधा को 30 रुपये भी दिए। जैसा कि सुधा को कहा गया था, वह इंटरव्यू के लिए पिंपरी कार्यालय में पहुंचीं। पैनल में छह लोग थे और उन्हें एहसास हुआ कि यह इंटरव्यू वास्तव में गंभीरता से किया जा रहा है। जैसे ही सुधा कमरे में घुसीं, उन्होंने किसी को धीरे से यह कहते हुए सुना कि यह वही लड़की है जिसने जेआरडी को लिखा था। तब तक सुधा इस बात को मन ही मन पक्का कर चुकी थीं कि उन्हें नौकरी नहीं मिलेगी और इस एहसास ने उनके दिमाग से सारे डर को खत्म कर दिया।
फिर शुरू हुआ इंटरव्यू
इंटरव्यू शुरू होने से पहले ही सुधा यह मान चुकी थीं कि पैनल पक्षपाती है, इसलिए उन्होंने अशिष्टता से कहा, ‘मुझे आशा है कि यह केवल एक तकनीकी साक्षात्कार है।’ सुधा की इस बद्तमीजी से वे लोग हैरान रह गए। लेकिन फिर इंटरव्यू शुरू हुआ। पैनल ने तकनीकी प्रश्न पूछे और सुधा ने उन सभी का उत्तर दिया। तभी एक बुजुर्ग सज्जन ने स्नेही स्वर में सुधा से कहा, ‘क्या आप जानती हैं कि हमने क्यों कहा कि महिला उम्मीदवारों को आवेदन करने की जरूरत नहीं है? इसका कारण यह है कि हमने कभी भी शॉप फ्लोर पर किसी महिला को नियुक्त नहीं किया है। यह को-ऐड कॉलेज नहीं है, यह एक फैक्ट्री है। जहां तक अकादमिक योग्यता की बात है, तो आप पहले स्थान पर हैं। हम इसकी सराहना करते हैं, लेकिन आप जैसे लोगों को प्रयोगशालाओं में काम करना चाहिए।’

‘कहीं से तो शुरुआत करनी होगी…’
सुधा एक छोटे शहर हुबली की एक युवा लड़की थीं, लिहाजा उन्हें बड़े कारपोरेट घरानों के तरीकों और उनकी मुश्किलों के बारे में पता नहीं था। उन्होंने उस बुजुर्ग सज्जन को जवाब दिया, ‘लेकिन आपको कहीं से तो शुरुआत करनी होगी, नहीं तो कोई भी महिला कभी भी आपकी फैक्ट्रियों में काम नहीं कर पाएगी।’ आखिरकार एक लंबे इंटरव्यू के बाद सुधा को नौकरी दी गई और उनकी जिंदगी बदल गई। उन्होंने डेवलपमेंट इंजीनियर के तौर पर पुणे में कंपनी को जॉइन किया और उसके बाद मुंबई व जमशेदपुर में भी काम किया। पुणे में ही सुधा की मुलाकात नारायण मूर्ति से हुई और वह सुधा कुलकर्णी से सुधा मूर्ति बन गईं। उन्होंने 1982 में टेल्को को छोड़ा।

जेआरडी को मानती हैं महान व्यक्ति
आज इंजीनियरिंग कॉलजों में लड़के और लड़कियों की संख्या बराबर ही है। साथ ही कई इंडस्ट्री सेगमेंट्स में शॉप फ्लोर पर महिलाएं काम करती हैं। जब भी सुधा यह बदलाव देखती हैं तो उन्हें जेआरडी टाटा याद आते हैं। सुधा मूर्ति, जेआरडी टाटा को महान व्यक्तियों में रखती हैं। उनका कहना है कि बेहद व्यस्त व्यक्ति होने के बावजूद, उन्होंने न्याय की मांग करने वाली एक युवा लड़की द्वारा लिखे गए एक पोस्टकार्ड को महत्व दिया। जबकि उन्हें रोज हजारों पत्र मिलते होंगे। वह उनके भेजे पत्र को फेंक सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने एक ऐसी अनजान लड़की के इरादों का सम्मान किया, जिसके पास न तो प्रभाव था और न ही पैसा। साथ ही उसे अपनी कंपनी में मौका दिया। जेआरडी टाटा ने ओनली मेल इंप्लॉइज पॉलिसी यानी सिर्फ पुरुष कर्मचारी नीति को बदला।

झारखंड रोप वे दुर्घटना : 10 लोगों की जान बचाई पन्नालाल ने

देवघर: झारखंड में रविवार को हुई रोप-वे दुर्घटना के बाद सोमवार को बचाव अभियान के दौरान हेलीकॉप्टर से गिरने के बाद एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि केबल कारों के अंदर फंसे 15 लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए मंगलवार सुबह से ही प्रयास किए जा रहे हैं। दुर्घटना में घायल हुई एक महिला की रविवार रात मौत हो गई। अधिकारियों ने बताया कि रोपवे में दो केबल कारों के टकराने के 28 घंटे से अधिक समय बाद अब तक 32 लोगों को बचाया गया है। उन्होंने कहा कि दुर्घटना में एक महिला की मौत हो गई जबकि 12 लोग घायल हुए हैं। इस मुश्किल वक्त में देवघर का एक स्थानीय युवक पन्नालाल मसीहा साबित हुआ है।
पन्नालाल ने अकेले 10 लोगों को बचाया
झारखंड के लाल पन्नालाल ने अदमय साहस का परिचय देते हुए अकेले 10 लोगों की जान बचाई। पन्नालाल पॅजियारा अपनी टीम के साथ मेंटेंनेस रोप-वे के जरिए दो ट्रॉली तक पहुंच गए और 10 पर्यटकों को नीचे उतार लिया। पन्नालाल के साथ उनकी टीम के बसडीहा निवासी उमेश सिंह, उपेंद्र विश्वकर्मा, नरेश गुप्ता और शिलावर चौधरी नीचे से रस्सी पकड़े हुए थे और कुर्सी भेजकर एक-एक कर सभी पर्यटक को आसानी से बाहर निकाल लिया।

पन्नालाल की साहस देख जोश में आए सेना के जवान
पन्नालाल और उनकी टीम का साहस देखकर भारतीय फौज के जवान भी टावर पर चढ़ गए और सहयोग किया। पन्नालाल ने बताया कि रोप-वे में काम करने के दौरान वह रेस्क्यू करना सीखे हैं। इससे पहले पन्नाला रविवार रात में ही अंधेरे में वह रोप-वे के तार से झूलते हुए करीब 100 फीट की दूरी तय कर 18 नंबर केबिन तक पहुंचे। इसके बाद फंसे लोगों तक पानी और खाना पहुंचाया था। वह पूरी रात वह ओपन ट्राली से उपर नीचे करते रहे।
पन्नालाल इस दौरान ट्राली में फंसे लोगों का हौसला बढ़ाते रहे। सोमवार सुबह जब ट्राली केबिन में फंसे लोगों को बाहर निकालने की बात हो रही थी तभी पन्नालाल आगे आए। सेना के जवान ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए प्लानिंग करने में जुटे थे तभ पन्नालाल ने साहस का परिचय दिया। दुबले पतले कद काठी के पन्ना लाल ने अपनी जान की परवाह किए बगैर अपने कमर में रस्सा बांधा और करीब 40 फीट की उंचाई पर केबिन संख्या आठ में फंसे चार लोगों तक पहुंच गया। काफी कुशलता से सभी चार लोगों को बारी-बारी से कुर्सी के सहारे नीचे उतार दिया। पन्नालाल की साहस को देखकर सेना के जवानों में भी जोश भर आया और वे ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने में जुट गए।
कौन हैं हिम्मती पन्नालाल
झारखंड के मोहनपुर प्रखंड के बसडीहा गांव के रहने वाले हैं पन्नालाल। वह रोप-वे में काम करते हैं। उन्होंने इससे पहले गंगटोक, अरुणाचल प्रदेश इलाके के रोप-वे में रेस्क्यू का काम कर चुके हैं। इतनी हिम्मत का काम करने के बाद भी पन्नालाल में तनिक भी घमंड नहीं दिखा। वह मीडिया के कैमरे पर भी आने से कतराते रहे। उन्होंने कहा कि मानव धर्म का प्रचार करने की जरूरत नहीं होती। यह हर इंसान की ड्यूटी होती है।

सिलीगुड़ी की ट्रांसजेंडर सोनाली को मिला ‘बांग्लार गर्व सम्मान’

सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी की रहने वाली ट्रांसजेंडर सोनाली सरकार को ‘बांग्लार गर्व सम्मान’ प्रदान किया गया इस सम्मान को पाकर जहां सोनाली फूली नहीं समा रही है वही समाज से आह्वान भी कर रही है कि हमारा साथ दें तो हम बहुत कुछ कर सकते हैं। हालांकि समाज में ट्रांसजेंडरों के लिए काफी काम हो रहा है मगर अब उनकी अपनी स्वीकृति के लिए जूझना पड़ता है। वे विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं और अब सोनाली सरकार का नाम भी इसमें जुड़ गया है। सोनाली सरकार को पढ़ने लिखने का बहुत शौक था लेकिन वह कभी स्कूल नहीं गई उन्होंने घर पर ही प्राइवेट ट्यूशन रखकर पढ़ाई की और वह लिखने लगी कविताएं कहानी। लिखना उन्हें अच्छा लगता था उनकी लेखनी पर किसी लेखक की पारखी नजर पड़ी और उन्होंने उनकी कविताओं को ऊपर तक पहुंचाया।

मंजरी नामक पुस्तक में पश्चिम बंगाल के कई दिग्गज लेखकों की कविताएं प्रकाशित हुई जिनमें स्थान मिला सोनाली सरकार की कविताओं को। सिर्फ स्थान ही नहीं मिला उन्हें बांग्ला गर्व नामक सम्मान से गत शनिवार को पुरस्कृत किया गया। एक बड़े समारोह में बड़े साहित्यकार लेखकों के बीच जब उन्हें सम्मानित किया गया तो उनके लिए यह किसी सपने जैसा ही था। सिलीगुड़ी की पत्रकार लक्ष्मी शर्मा से बातचीत में उन्होंने बताया  ‘समाज अगर हमारा साथ दें तो हमारे किन्नरों में भी कई प्रतिभाएं छुपी होती हैं किसी को अभिनय आता है, किसी को नाटक करना पसंद है, कोई गाना गाना चाहता है तो कोई लिखना पसंद करता है लेकिन हमारी प्रतिभाओं को जगह नहीं मिलती या पहचान नहीं मिलती क्योंकि समाज हमें उपेक्षित समझता है। हम भी अन्य लोगों की तरह इंसान है हमारी भी इच्छाएं हैं हमारे भी सपने हमारे भी विचार हैं अगर समाज में प्यार और इज्जत दे हमें अपना है तो हम समाज के लिए जिसके लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।’

अपने काम के प्रति बहुत प्रतिबद्ध थीं सुशील गुप्ता

सुधा अरोड़ा

(दूरदर्शन की चर्चित पत्रकार एवं अनुवादक सुशील गुप्ता से जुड़ी स्मृतियों को ताजा कर रही हैं वरिष्ठ साहित्यकार सुधा अरोड़ा। यह संस्मरण पत्रकारिता और साहित्य के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज है)

सुशील में उस तरह की महिलाओं वाली नजाकत नहीं थी। वह बहुत दबंग महिला थी तो उस वजह से उसे वह सब कुछ नहीं झेलना पड़ा जो आम महिलाओं को झेलना पड़ा मतलब उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न। पुरुष भी जानते हैं कि वहाँ उनकी दाल नहीं गलेगी मगर फिर भी महिला अगर ईमानदार और काम के लिए प्रतिबद्ध है तो उसे नकारने वाले भी बढ़ जाते हैं। काम के प्रति प्रतिबद्धता और लगाव अधिक था, वे एक अविवाहित और स्वतन्त्र महिला थीं, इस प्रतिबद्धता का यह भी एक बड़ा कारण था। जब वे कॉलेज में थीं तो माता -पिता घर से अलग हो गयी थीं। माँ सौतेली थीं तो सुशील ट्यूशन वगैरह पढ़ाया करती थीं। अच्छी बात यह थी कि उनको बिड़ला परिवार से ट्यूशन मिलते और लगातार मिलते रहे इसलिए उनका खर्च चल जाता था।

जब मेरी उनसे मुलाकात 1967 में हुई तो वह ट्यूशन पढ़ाया करती थीं और मैं एम. ए. पास करके निकली थी। मैं एम. ए. में टॉपर थी और पी.एच.डी. कर रही थी। मुझसे सुशील का परिचय साहित्यकार धर्मवीर भारती की पत्नी पुष्पा भारती ने करवाया था। मैं काफी प्रभावित हुई, मैंने उस तरह की स्वतन्त्र और आत्मनिर्भर महिलाएँ देखी नहीं थी, जो बगावत करके अलग रह रही हो, अपना खर्च खुद चलाती हो। मुझसे वह बड़ी थीं। 1939 में उनका जन्म हुआ था। मैं तुरन्त पास करके निकली थी और टॉपर थी तो बतौर व्याख्याता मेरी नियुक्ति भी हो गयी थी। सुशील ने तब बी.ए. कर रखा था तो मैंने उसे आगे एम. ए. करने का सुझाव दिया जिससे उसके लिए आगे के रास्ते खुलें। उसने काफी समय पहले पढ़ाई छोड़ रखी थी और मैंने उसकी पढ़ाई में काफी सहायता की। उसने प्राइवेट से एम. ए. किया।

मैं भी काफी जुनूनी हूँ तो दो कॉलेजों में पढ़ाती थी, सुशील की पढ़ने में सहायता करती थी..फिर मेरे निजी जीवन में व्यस्तता थी। मैं सुशील को दीदी कहा करती थी, उसने मुझसे दीदी कहना छुड़वा दिया। मैंने पी.एच.डी. छोड़ दी थी पर मुझे यूजीसी की तरफ से छात्रवृत्ति मिल रही थी। सुशील ने एम. ए. किया, पास हुई और इस बीच मेरी शादी हो गयी। शादी के बाद मैं मुम्बई चली आई और सुशील ने दूरदर्शन के लिए आवेदन किया। इसके पहले वह आकाशवाणी में सहायक के तौर पर काम करती थी। उसने दीपनारायण मिठौलिया जी के साथ भी काम किया। इसके बाद दूरदर्शन में गयी तो उसे एक साल के लिए पूना फिल्म इंस्टीट्यूट में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया। वहाँ से सुशील की जिन्दगी सफलता की तरफ मुड़ गयी और उसने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा कभी।

प्रशिक्षण के बाद उसने दूरदर्शन के लिए काफी अच्छे कार्यक्रम किये मगर तब साक्षात्कार बड़े फोन पर हुआ करती थी। गलती यह हुई कि सुशील इन सबको सम्भालकर नहीं रख पायी। जैसे मैंने ही इस्मत चुगताई का एक घंटे का साक्षात्कार लिया था। वह इतना शानदार साक्षात्कार था इतनी बड़ी हस्ती का, पर कुछ भी सम्भालकर नहीं रख पायी। जब दूरदर्शन का टालीगंज से गोल्फग्रीन स्थानांतरित हुआ। तब ये सब रिकॉर्डिंग फेंक दी गयी। जब वह दूरदर्शन से जुड़ी तो तब दूरदर्शन रंगीन भी नहीं था, ब्लैक एंड व्हाइट था। उसने अनुवाद भी खूब किये। महाश्वेता देवी का भी मैंने 1 घंटे का साक्षात्कार लिया था मगर कुछ भी सम्भालकर नहीं रखा। आर्काइव में रखना चाहिए था, पर वहाँ भी नहीं रखा और अब तो कलकत्ता दूरदर्शन में हिन्दी को लेकर वह वातावरण भी नहीं रहा जैसा सुशील के समय में हुआ करता था। रीता गांगुली का साक्षात्कार लिया. गायिका रेशमा का भी साक्षात्कार लिया।

वह अपने अनुवाद कर्म में डूब गयी थी। सेवानिवृति के बाद भी अनुवाद ही करती रही। मैं जब कलकत्ता आती तो सुशील से जरूर मिलने जाती थी, यहाँ तक कि सुशील के निधन की खबर भी सबसे पहले मुझे ही मिली। मैं मुम्बई से कलकत्ता गयी था और रात को मैंने फोन किया, फिर सोचा कि रात को क्या परेशान करना, सुबह ही बात कर लूँगी। सुशील को मेरे घर का खाना पसन्द था तो मैं और मेरी बहन इन्दू खाना लेकर सुशील के घर जाते थे और साथ खाना खाते थे। 11 दिसम्बर को फोन किया कि मैं बताऊँ कि मैं खाना लेकर आ रही हूँ मगर फोन सुशील के भाई ने फोन उठाया। फोन पर पुरुष की आवाज सुनकर मुझे लगा कि कहीं गलत नम्बर तो नहीं लगा दिया। मैंने पूछा कि – ‘क्या यह सुशील का नम्बर है?’ तो वह बड़े ठंडे लहजे में बोले – हाँ, शी इज नो मोर। मुझे बड़ा धक्का लगा। मैंने पूछा – क्या तो बोले हाँ – शी इज नो मोर..शी पास्ड अवे लास्ट नाइट। मैंने कहा कि मैं आ रही हूँ तो बोले कि वह शव लेकर जा रहे हैं। मेरा मन खराब हो गया तो फिर मैं गयी नहीं।
ये तो है कि महिला पत्रकारों के योगदान का उल्लेख छूट जाता है। यह सुशील के साथ ही नहीं, बहुत सी महिलाओं के साथ थीं। कोलकाता की साहित्यकार थीं रजनी पन्नीकर। वह बहुत अच्छी कहानियाँ, उपन्यास लिखती थीं, रेडियो पर भी काफी काम किया पर उनका नाम ही रेडियो के इतिहास में नहीं मिलता। दीप नारायण मिठौलिया का नाम भी कोई याद नहीं करता। उनको मैं इसलिए याद किया करती हूँ कि मिठौलिया जी रचनाकारों को बहुत सम्मान देते थे। कार्यक्रम खत्म होने के बाद आकाशवाणी की कैंटीन में जलपान करवाते थे और बाहर तक छोड़ने जाते थे। मुम्बई में आकर तो मैंने मना कर दिया कि दूर से आना पड़ता है औऱ समय बहुत नष्ट होता है। अब काम के प्रति वह प्रतिबद्धता नहीं रही।

(सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया से बातचीत पर आधारित)

श्रीराम नवमी पर विशेष : जहाँ माता सीता के लिए श्रीराम ने अपने बाणों से प्रवाहित की जलधारा

खंडवा क्षेत्र प्राचीन मान्यताओं के अनुसार खांडव वन का हिस्सा रहा है। इस क्षेत्र पर पहले राजा खर दूषण का राज भी माना जाता है। मान्यता के अनुसार अयोध्या से वनवास के दौरान निकले श्री राम ने खंडवा के इस क्षेत्र में एक दिन रूके थे। यहां पर सीता माता को प्यास लगने पर धरती पर बाण चलाकर जलधारा निकाली थी। इसे आज रामबाण कुआं के नाम से जाना जाता है। इसी क्षेत्र में प्राचीन सीता बावड़ी है। इसके पास प्राचीन श्रीराम मंदिर भी बना हुआ है। एक घर में स्थापित इस मंदिर व अन्य मकानों के बीच दबी सीता बावड़ी के बारे में कम ही लोग जानते हैं।

यह भी पढ़ें – आयातित नहीं, मिथक नहीं, बंगाल की परम्परा और इतिहास हैं राम

रामेश्वर आम्रकुंज बीते कुछ सालों में अतिक्रमण के कारण अपना मूल स्वरूप खो चुका है। यहां पर गुप्तेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। लोक आस्था के अनुसार 14 साल के वनवास के दौरान अज्ञातवास में प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ खांडव वन (वर्तमान खंडवा) आए थे। भगवान श्रीराम ने रामेश्वर क्षेत्र सहित तुलजा भवानी माता मंदिर में आराधना की थी। यहां से अस्त्र-शस्त्र का वरदान लेकर दक्षिण की ओर प्रस्थान किया था। रामेश्वर आम्रकुंज में रामेश्वर मंदिर सहित अन्य मंदिर व प्राचीन मूर्तियां है। इतिहासकारों के अनुसार भगवान शिव के मंदिरों की बनावट से ऐसे प्रतीत होता है कि यह कई निर्माण परमारकालीन है।

जल वितरण के लिए अब होता है उपयोग –  रामबाण कुआं के संबंध में मान्यता है कि इसका पानी कभी खत्म नहीं होता। वर्तमान में इस कुआं को नगर निगम ने अपनी अधीन रखा है। इसमें नर्मदा जल का पानी छोड़ा जाता है व यहां से उसे टंकी में चढ़ाकर वितरित किया जा रहा है।

(साभार – नयी दुनिया)