Friday, July 18, 2025
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क्रिप्टो संपत्ति का विनियमन, डिजिटल मुद्रा है प्राथमिकता : आईएमएफ अधिकारी

वाशिंगटन । अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि भारत के लिए मध्यावधि की प्राथमिकताओं में क्रिप्टो संपत्ति का विनियमन और डिजिटल मुद्रा शामिल हैं। आईएमएफ के वित्तीय सलाहकार और मौद्रिक तथा पूंजी बाजार विभाग के निदेशक टोबियास एड्रियन ने मंगलवार को यह बात कही।
उन्होंने पीटीआई-भाषा को बताया कि इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र में शेष नियामक चिंताओं को दूर करने और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण जैसे संरचनात्मक मुद्दों पर भी भारत खास जोर दे रहा है।
उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर आईएमएफ भारत को ‘‘एक बेहद सकारात्मक तरीके से देख रहा है।’’
उन्होंने आईएमएफ और विश्व बैंक की वार्षिक वसंत बैठक के मौके पर कहा, ‘‘मुझे लगता है कि कई अवसर हैं। (भारत में) पुनरुद्धार हो रहा है। नए वृद्धि के अवसरों, नए विकास के बारे में बहुत उत्साह है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम हमेशा मानते हैं कि विकास समावेशी है, और सभी लोगों को प्रभावित कर रहा है, लेकिन भारत को लेकर हमारा सामान्य नजरिया काफी सकारात्मक है।’’
एड्रियन ने कहा कि मध्यावधि में संरचनात्मक मुद्दों की बात करें तो भारत के एजेंडे में क्रिप्टो करेंसी परिसंपत्तियों को विनियमित करना काफी ऊपर है। देश को आने वाले वर्षों में इसका समाधान तलाशना होगा।
उन्होंने आगे कहा कि भारत का केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं पर विचार कर रहा है, जो वित्तीय समावेशन और वित्तीय विकास के लिए काफी महत्वपूर्ण हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत क्या कर रहा है, इस पर हमारी नजर है। हम इन नीतिगत घटनाक्रमों का स्वागत करते हैं।’’

देश का पहला यूनीकॉर्न दम्पति, 74 बार खारिज हुए पर नहीं मानी हार

नयी दिल्ली । रुचि कालरा और आशीष महापात्र को अपने आप को अभिभावक कहलाना सबसे अधिक अच्छा लगता है। उनके तीन बच्चे हैं। खुशी, जो छह साल की है। ऐसा लगता है कि वह अपनी उम्र से काफी अधिक बड़ी हो गयी है। वह अभी से दुनिया भर के सपने देखती है। इसके अलावा अन्य दो भी काफी अधिक तेजी से बड़े हुए हैं। इनकी बदौलत रुचि और आशीष भारत में काफी अधिक लोकप्रिय सीईओ बन गए हैं। इन दोनों के ही पास एक-एक अरब डॉलर की कंपनियां हैं और इस तरह ये देश के पहले यूनिकॉर्न दम्पति बन गए हैं। रुचि कहती हैं, ‘ऑफबिजनेस हमारी बेटी जितनी ही उम्र की है। इसलिए, हमने 2016 में दो बच्चों को जन्म दिया और हमने काफी समझदारी से दोनों की परवरिश की है।’
ऑफबिजनेस और उसके छोटे भाई ऑक्सीजो की सफलता सिर्फ अच्छे पालन-पोषण तक ही सीमित नहीं है। इसके लिए काफी पापड़ बेलने पड़े थे। इस सफलता के पीछे 74 रिजेक्शंस छिपे हुए हैं। उनकी सीरीज बी फंडिंग पिच को 74 रिजेक्शन मिले थे, उसके बाद उन्हें सफलता हासिल हुई थी।

सुरक्षाकर्मी ने रोक लिया था गेट पर
एक बार तो आशीष को सुरक्षाकर्मी ने गेट के अंदर ही नहीं जाने दिया था। आशीष ने कहा, ‘यह छह साल पहले की बात है, जब मैं एक कंपनी के पास अपनी सेवाओं के बारे में बताने गया था। तब गार्ड ने मुझे अंदर नहीं जाने दिया था। इस हफ्ते, हम उस कंपनी को खरीद रहे हैं।’
टाटा का रास्ता और प्लान बी
ऑफबिजनेस के सीईओ ने कहा, ‘बी सीरीज फंडिंग की असफलताओं के समय मैंने “टाटा के रास्ते पर चलने” के अपने दृष्टिकोण को नहीं छोड़ा और प्लान बी पर गया- हर्षा भोगले का रास्ता.. एक स्पोर्ट्स कमेंटेटर के रूप में अपनी किस्मत आजमाने का.. हाथ में माइक लेकर पूरे जोश के साथ कहूं.. बूम बूम बुमराह। उन्होंने कहा, ‘मुझे बोलना पसंद है। खासकर कमेंट्री करना। मैं एक स्पोर्ट्स कमेंटेटर के रूप में वास्तव में अच्छा करूंगा।’
बेहद मुश्किल है स्टार्टअप को यूनिकॉर्न बनाना
यूनिकॉर्न से मतलब है कि उस स्टार्टअप की वैल्यूएशन एक अरब डॉलर हो जाए। कई बार हारने के बाद, घाटा खाने के बाद और बेहद संघर्षपूर्ण समय से गुजरकर कोई स्टार्टअप सफल बनता है। ऐसे में एक स्टार्टअप को यूनिकॉर्न बना देना बिल्कुल भी आसान नहीं होता। रुचि कालरा और आशीष देश के पहले यूनकॉर्न दम्पति हैं। रुचि कालरा ने ऑक्सीजो फाइनेंशियल सर्विसेज को यूनिकॉर्न बनाया तो आशीष ने ऑफबिजनस को एक अरब डॉलर के वैल्यूएशन तक पहुंचाया।
कैसे साथ आए दोनों
रुचि कालरा 38 साल की हैं और आशीष 41 साल के हैं। दोनों आईआईटी से पढ़ाई करने के बाद मैकिन्से एंड कंपनी में काम कर रहे थे। यहां ही दोनों की मुलाकात हुई। फिर दोस्ती गहरी हो गयी। दोनों का ही एंटरप्रेन्योरशिप में जाने का मन था। वे दोनों अपना खुद का व्यवसाय करना चाहते थे और लीक से हटकर कुछ नया करना चाहते थे। ये दोनों काफी समय तक यह सोचते रहे कि कब नौकरी छोड़ें और अपना व्यवसाय शुरू करें। आखिरकार उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया।
ऑक्सीजो को बनाने में है दोनों पति-पत्नी का योगदान
ऑक्सीजो नाम बड़ा रोचक है। यह ऑक्सीजन और ओजोन से मिलकर बना है। ऑक्सीजो को बनाने में सिर्फ कालरा ही नहीं, बल्कि उनके पति महापात्र का भी योगदान है। ऑक्सीजो की स्थापना ऑफबिजनस की एक ब्रांच के रूप में हुई थी। बता दें कि ऑक्सीजो से एक साल पहले साल 2016 में ही ऑफबिजनस की शुरुआत हुई थी। साल 2017 में रुचि कालरा, महपात्र और अन्य तीन लोगों ने मिलकर इस स्टार्टअप की स्थापना की थी।

लेफ्टिनेंट जनरल मनोज पांडे होंगे अगले थलसेना प्रमुख

जनरल नरवणे की लेंगे जगह
नयी दिल्ली । लेफ्टिनेंट जनरल मनोज पांडे थल सेना के अगले प्रमुख होंगे। वह जनरल एम. एम. नरवणे का स्थान लेंगे जिनका कार्यकाल इस महीने के अंत में पूरा हो रहा है। अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी। लेफ्टिनेंट जनरल पांडे अभी थल सेना के उप-प्रमुख हैं। थल सेना का उप-प्रमुख बनने से पहले वह थल सेना की पूर्वी कमान का नेतृत्व कर रहे थे। इस कमान पर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा की रक्षा की जिम्मेदारी है।
जनरल नरवणे का कार्यकाल 30 अप्रैल को समाप्त हो रहा है। लेफ्टिनेंट जनरल पांडे को दिसंबर 1982 में बॉम्बे सैपर्स में कमीशन मिला था। उन्होंने अपने बेहतरीन करियर में कई अहम पदों पर काम किया और विभिन्न इलाकों में आतंकवाद विरोधी अभियानों में भाग लिया।
उन्होंने जम्मू कश्मीर में ऑपरेशन पराक्रम के दौरान नियंत्रण रेखा के पास एक इंजीनियर रेजिमेंट की कमान संभाली। इसके अलावा उन्होंने पश्चिमी लद्दाख के ऊंचाई वाले इलाकों में एक पर्वतीय डिवीजन और पूर्वोत्तर में एक कोर की भी कमान संभाली। उन्होंने इथोपिया और इरिट्रिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन में मुख्य इंजीनियर के रूप में भी कार्य किया है। वह जून 2020 से मई 2021 तक अंडमान निकोबार कमांड के कमांडर-इन-चीफ थे।

कर्नाटक के स्कूलों में पढ़ाई जाएगी गीता, महाभारत और पंचतंत्र की कहानियां

बेंगलुरु । कर्नाटक सरकार अगले शैक्षणिक वर्ष से स्कूली पाठ्यक्रम में हिंदू महाकाव्य कहानियां- ‘भगवद गीता’ और ‘महाभारत’ शामिल करने के लिए पूरी तरह तैयार है। इससे संबंधित सारी तैयारियां कर ली गई हैं। पाठ्यक्रम तैयार है और अगले सत्र से इसकी पढ़ाई शुरू कर दी जाएगी। हालांकि इस संबंध में कुछ समय पहले एक प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन सत्ताधारी भाजपा सरकार ने विपक्ष को देखते हुए इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था। अब सरकार ने साफ कहा है कि स्कूलों में इन हिंदू महाकाव्यों को पढ़ाया जाएगा।
शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कहा, ‘अगले साल से, नैतिक शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा। ‘भगवद गीता’, ‘महाभारत’ और ‘पंचतंत्र कहानियां’ भी नैतिक शिक्षा का हिस्सा होंगी।’ उन्होंने कहा कि जो भी विचारधाराएं बच्चों को उच्च नैतिकता में मदद करती हैं, उन्हें नैतिक शिक्षा में अपनाया जाएगा। यह एक धर्म तक ही सीमित नहीं होगा। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के पहलुओं को अपनाया जाएगा जो बच्चों के लिए फायदेमंद हैं। हालांकि, एक विशेष धर्म के पहलुओं का पालन किया जाएगा।
मंत्री नागेश ने यह भी स्पष्ट किया कि मैसूर साम्राज्य के पूर्व शासक टीपू सुल्तान का शीर्षक ‘मैसुरु हुली’ (मैसूर का शेर) पाठ्य पुस्तकों में रखा जाएगा। भाजपा विधायक अप्पाचू रंजन ने टीपू सुल्तान पर पाठ्य पुस्तकों से सबक हटाने की मांग की है। विधायक रंजन आग्रह कर रहे हैं कि अगर टीपू सुल्तान पर सबक सिखाया जाए तो सभी पहलुओं को पढ़ाया जाना चाहिए। टीपू एक कन्नड़ विरोधी शासक था जिसने प्रशासन में फारसी भाषा थोप दी थी। कोडागु में उसके अत्याचार बच्चों को भी सिखाए जाने चाहिए।
विधायक ने कहा कि टीपू पर पाठ नहीं हटाया जाएगा लेकिन अनावश्यक विवरण हटाए जाएंगे। उन्होंने बताया कि किन पहलुओं को छोड़ दिया जाएगा, इसका विवरण बाद में बताएंगे। मंत्री नागेश ने आगे कहा कि उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता ने उनसे उन स्कूलों में समकालीन पाठ्यक्रम शुरू करने का अनुरोध किया है। उन्हें डर है कि उनके बच्चे इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में पिछड़ जाएंगे। हालांकि, मदरसों या अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की ओर से ऐसी कोई मांग नहीं है, उन्होंने कहा।

दक्षिण 24 परगना जिले के बारुईपुर तक जा सकती है मेट्रो ट्रेन परियोजना

कोलकाता । आने वाले दिनों में दक्षिण 24 परगना जिले के बारुईपुर तक मेट्रो चलाई जा सकती है। कुछ ऐसी ही संभावनाएं हैं। यह मेट्रो परियोजना होती है तो बड़े पैमाने पर लोगों को सहूलियत मिलेगी। सूत्रों की मानें तो शहर के विस्तारित मेट्रो नेटवर्क का लक्ष्य दिल्ली के रास्ते पर जाना है, जो बाहरी इलाकों को लेते हुए हजारों यात्रियों के साथ त्वरित, विश्वसनीय परिवहन की तलाश में आज भीड़भाड़ वाला इलाका बन गया है।
दरअसल पिछले दिनों राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था कि हम रेल मंत्रालय को कोलकाता और उसके आसपास मेट्रो नेटवर्क के एक माड्यूलर विस्तार का प्रस्ताव देंगे, जैसा कि दिल्ली मेट्रो ने किया है। ऐसे में सर्वेक्षण से पता चलेगा कि इसमें कहीं कोई बाधा तो नहीं है। वर्तमान में जो मेट्रो परियोजनाएं चल रही हैं, उनके क्रियान्वयन के बाद ही शहर की सूरत बदल जाएगी। मेट्रो रेलवे सूत्रों की मानें तो एयरपोर्ट-कवि सुभाष लिंक का बारुईपुर तक विस्तार किया जा सकता है। माना जा रहा है कि मेट्रो नेटवर्क का विस्तार करने का राज्य सरकार का निर्णय मूल परियोजनाओं में देरी करने वाली बाधाओं को दूर करने में धीमी, लेकिन महत्वपूर्ण सफलता के बाद आया है। दरअसल एक समस्या यह भी है कि वर्तमान मेट्रो परियोजनाओं की एजेंसियों को कई बाधाओं में जमीन अतिक्रमण सहित अन्य समस्याएं शामिल हैं। हालांकि धीरे-धीरे सभी समस्याओं को दूर किया जा सका है।
जल्द सर्वे की संभावना
सूत्रों की मानें तो बारुईपुर तक मेट्रो के विस्तारीकरण को लेकर जल्द सर्वे संबंधी टेंडर भी जारी किया जा सकता है। ऐसे में सर्वे के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी कि मेट्रो परियोजना पर काम कैसे, किस ओर व कब तक शुरू किया जा सकता है। न्यू गरिया-एयरपोटमेट्रो कॉरिडोर के तहत न्यू गरिया में एक जगह भी बारुईपुर मेट्रो परियोजना को ध्यान में रखकर छोड़ी गई है। अब देखना यह है कि किस प्रकार दिल्ली की तर्ज पर ही महानगर में भी मेट्रो परियोजना होगी।
न्यू गरिया-बारुईपुर मेट्रो विस्तार के लिए आदि गंगा के साथ ट्रैक बनाने की अस्थायी योजना है। हालांकि इस पर किसी प्रकार की अब तक सही जानकारी नहीं मिल सकी है।

अर्चना संस्था की स्वरचित कविता गोष्ठी संपन्न 

कोलकाता । अर्चना संस्था की ओर से आयोजित गोष्ठी में सदस्यों ने अपनी स्वरचित कविताएँ सुनाई। दोहा, कुंडलियां, हाइकू गीत, कविता आदि विभिन्न विधाओं पर अपनी रचनात्मक प्रतिभा का परिचय दिया। संगीता चौधरी ने हाइकु -चैत्र मास में/ नीम की निबोरी/ अमृत तुल्य रसना सुख/ अकारण उदर/ भोगता दुख और दोहे सुनाए।
विद्या भंडारी ने लोग क्या कहेंगे,इसी धुन में बिता दी सारी उम्र और क्या सुनाई देगी लुप्त हुई लोरियाँ, हिम्मत चोरडिया ने कुण्डलिया -आओ अब अवतार लो एवं गीतिका- वीर का कर लें हम गुणगान। नौरतन भंडारी ने हे धीर-वीर,हे महावीर /हे जन नायक जन लोक पीर शत-शत मेरा प्रणाम, सुशीला चनानी ने नवरात्रि के अवसर पर माँ दुर्गा की स्तुति में कुछ दोहे जैसे–देवी पूजा में करूँ माँगू ये वरदान। अपनी रक्षा कर सकूंँ शक्ति रूप प्रतिमान।और रामनवमी पर सीता की पीडा उकेरी एवं समाज की विसंगतियों पर कविता पढ़ी। इंदू चांडक ने कुंडलिया-जीवन की कठिनाइयां,सिखलाती संघर्ष, गीत- मुश्किलों तुम संगिनी बन साथ मेरे चलती जाओ सुनाई, मृदुला कोठारी ने फिर से वीर एक बार आइए/हिंसा हो रही है बचाइए /होता हाहाकार है /छाया अंधकार है /दीपशिखा कोई तो जलाइये गीत गाते हुए भगवान महावीर की जयंती पर गीत प्रस्तुति दी। डॉ वसुंधरा मिश्र ने आओ बैठो बात करें गीत सुनाया जिसे सभी ने पसंद किया। इंदू चांडक के संयोजन में संचालन डॉ वसुंधरा मिश्र और धन्यवाद ज्ञापन दिया सुशीला चनानी ने ।कार्यक्रम जूम पर आयोजित किया गया।

सामुदायिक शौचालयों की निगरानी करेंगे गंधवेध एवं वायुवेध

सेडिबुज द्वारा स्वच्छ भारत और डिजिटल इंडिया मिशन पर सरकारी निवेश के बारे में जागरूकता
विलिसो टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड की ओर से लॉन्च किया गया गंधवेध और वायुवेध
कोलकाता । देश की प्रमुख सरकारी परामर्श फर्म सेडिबुज कंसल्टिंग एलएलपी द्वारा भारत सरकार के स्वच्छ भारत और डिजिटल इंडिया मिशन पर सरकारी निवेश के बारे में जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विलिसो टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड की ओर से गंधवेध और वायुवेध उत्पाद पेश किया गया।

इस अवसर पर सेडिबुज के संस्थापक एवं सीईओ किरण एस देवलालकर ने कहा कि हमने स्वच्छ भारत और डिजिटल इंडिया मिशन पर सरकारी निवेश के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए इस कार्यक्रम का आयोजन किया। हम अपने ग्राहकों को विलिसो टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड के एक क्रांतिकारी उत्पाद- गंधवेध और वायुवेध से परिचित कराना चाहते हैं। यह एक आईआईटी आधारित इलेक्ट्रॉनिक वायरलेस हेल्थ हाइजीन मॉनिटर है जिसमें वास्तविक समय अलर्ट के साथ अप्रिय गंध गैसों और वायरस का पता लगाने की क्षमता है। कोविड, श्वसन / हृदय रोग, निमोनिया और अधिक से रक्षा कर सकता है।

सेडिबुज़ कंसल्टिंग एलएलपी की माने तो यह देश की एक प्रमुख सरकारी परामर्शदाता फर्म है, जिसमें सलाहकारों और तकनीकी पेशेवरों की मजबूत टीम है। हमारे पास सरकार के साथ व्यापार करने की मजबूत योग्यता और अनुभव है। हम नगर निगमों, स्मार्ट शहरों, सार्वजनिक उपयोगिताओं (बिजली, पानी और गैस), राज्य और केंद्र सरकारों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सार्वजनिक अवसंरचना एजेंसियों के साथ मिलकर काम करते हैं। हम प्रौद्योगिकी सेवाओं और समाधान, वित्तीय और व्यावसायिक सलाहकार, कर और नियामक, और जोखिम सलाहकार सेवाओं सहित सेवाओं की एक पूरी श्रृंखला प्रदान करते हैं। हमारा इरादा प्रौद्योगिकी की शक्ति का उपयोग करके अपने देश का समर्थन करना है।

स्वच्छ भारत और डिजिटल इंडिया मिशन पर सरकारी निवेश में कई उत्पाद शामिल हैं। उनमें से गंधवेध और वायुवेध क्रांतिकारी उत्पादों में से एक हैं। गंधवेध एक आईआईटी आधारित इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो गंध, कुल वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (टीवीओसी), तापमान और आर्द्रता की निगरानी करता है। गंधवेध शौचालयों से मुख्य रूप से मानव मूत्र और मल के कारण निकलने वाली अप्रिय गंध का पता लगाता है। आमतौर पर लोग शौचालय से निकलने वाली अप्रिय गंध के कारण शौचालय का उपयोग करने से बचते हैं। हमारा उत्पाद उपयोगकर्ताओं को अप्रिय गंध वाले शौचालयों की पहचान करने में मदद करता है। अपने अद्वितीय डैशबोर्ड, चार्ट व्यू और मोबाइल अलर्ट के माध्यम से, गंधवेध समुदाय आधारित संगठनों, गैर सरकारी संगठनों और सरकार को उनके द्वारा बनाए जा रहे शौचालयों की स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

दूसरी ओर वायुवेध भी एक आईआईटी आधारित इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो विभिन्न प्रकार की हानिकारक गैसों और हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर की निगरानी करता है। वायुवेध अदृश्य वायु घटकों के डेटा की निगरानी और भंडारण करता है जो संभावित रूप से मानव जीवन के लिए खतरा हैं और जिन्हें अक्सर मुख्य रूप से अनदेखा किया जाता है। क्योंकि हम उन्हें नहीं देख सकते हैं। मोबाइल और वेब एप्लिकेशन व्यक्तियों, सरकार, सुविधा सेवा प्रदाताओं और अस्पतालों को विभिन्न गैसों के बारे में जानकारी प्रदान करता है। यह सेट स्तरों का उल्लंघन होने पर उपयोगकर्ताओं को अलर्ट और सुरक्षा भी प्रदान करता है।

शाम रूमानी हो गई एक शाम गजलों के नाम कार्यक्रम में

कोलकाता । राजस्थान की रचनाकार इकाई ने देश के कोने कोने के ग़ज़लकारों से खूबसूरत महफ़िल सजाई । संस्थापक सुरेश चौधरी जी के उद्बोधन के पश्चात एक से बढ़कर एक गजलों का लुत्फ़ दर्शकों ने उठाया और सराहा। मुख्य अतिथि के रूप में भूपेंद्र सिंह होश ,विशिष्ट अतिथि झारखंड के कृष्ण कुमार नाज़, सुशील साहिल और शालिनी नायक सह्बा थी।वहीं आराधना प्रसाद जी ने अपने मधुर कंठ से सरस्वती वंदना कर कार्यक्रम प्रारंभ किया। रचनाकार की रचना सरन, आशा पांडे ओझा तथा ज्योत्सना सक्सेना की सक्रिय सहभागिता रही। निरुपमा चतुर्वेदी के सधे मंच संचालन ने सबको बांधे रखा।

 कोलकाता में खुला एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट 

कोलकाता । कार्यक्रम प्रबन्धन यानी इवेंट मैनेजमेंट जिसे उत्साह और रोमांच से भरपूर माना जाता है। यह एक कमाल का फील्ड है। इसमें  सृजन है, ग्लैमर है, कार्यक्रम स्थल का प्रबन्धन है और रोमांच है। यह नये समय का कार्यक्षेत्र है और सोशल मीडिया के युग में इसकी चमक और बढ़ गयी है। बड़े कार्यक्रम आयोजन प्रबन्धक यानी इवेंट मैनेजमेंट कम्पनियाँ सम्भाल रही हैं यानी तेजी से बढ़ रहे इस क्षेत्र में एक सफल पेशेवर के लिए बहुत अधिक अवसर हैं।

जब आप इवेंट मैनेजमेंट और एक्सपेरिमेंटल मार्केटिंग में अपना करियर बनाना चुनते हैं तो यह आपको रोमांचक और अविस्मरणीय घटनाओं की अवधारणा बनाने और परिभाषित करने और लागू करने का अवसर देता है। इवेंट मैनेजमेंट सेवा क्षेत्र में एक तेजी से बढ़ता उद्योग है। 2019 में भारतीय संगठित कार्यक्रम खंड में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई और अगले कुछ वर्षों में इसके पैमाने और महत्व में वृद्धि जारी रहने की उम्मीद है। एआईईएम जो इवेंट मैनेजरों द्वारा चलाया जाता है, उद्योग-प्रासंगिक, नौकरी-उन्मुख प्रशिक्षण और एक अनुभवात्मक-स्थानांतरण दृष्टिकोण के साथ मीडिया और मनोरंजन व्यवसाय की विकसित वैश्विक परिप्रेक्ष्य के साथ प्रशिक्षण प्रदान करता है। इस कड़ी में एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट महानगर कोलकाता में नयी शुरुआत के लिए तैयार है।

इस अवसर पर एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट के सह-संस्थापक विकास बजाज ने कहा कि हमारा दृष्टिकोण है कि हम पेशेवर क्षेत्र में अधिकतम उत्कृष्टता के लिए प्रयास करें। उन्होंने कहा कि हमारा संस्थान प्लेसमेंट पर बहुत जोर देता है। उद्योग में विभिन्न वर्गों के एक जटिल और विश्वसनीय नेटवर्क के कारण, एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट एक ऐसा संस्थान है जिसने बाजार में महत्वपूर्ण कंपनियों के साथ मजबूत व्यावसायिक संबंध स्थापित किए हैं। यह स्वस्थ पेशेवर संबंधों और अग्रणी कंपनियों के साथ संबंधों की ओर ले जाता है जो पूर्ण प्रदर्शन और प्रासंगिक कार्य अनुभव के साथ जीवन भर नौकरी के अवसर प्रदान करते हैं।

बारहवीं के बाद एक अच्छे कॅरियर की चाह रखने वाले युवाओं के लिए संस्थान में  स्नातक और स्नातकोत्तर इवेन्ट मैनेजमेंट में शानदार मौके हैं। आप इवेन्ट प्लानर, वेडिंग प्लानर, बर्थडे प्लानर, सरप्राइज प्लानर, प्रोडक्शन प्लानर, ले आउट प्लानर या प्रोडक्शन मैनेजर, हॉस्पिटैलिटी मैनेजर. स्पेशल इफेक्ट प्लानर, वेडिंद स्टाइलिस्ट के रूप में काम कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त कॉरपोरेट,. पेड इन्टर्नशिप, फ्रीलांसिंग कर सकते हैं और साथ ही उद्यमी भी बन सकते हैं। एक अच्छे इवेन्ट मैनजर के लिए भाषा के साथ सम्पर्क एवं परिस्थिति प्रबन्धन की क्षमता का होना आवश्यक है। संस्थान की ओर से 11 महीने, 6 महीने और 3 महीने के डिप्लोमा कोर्स उपलब्ध करवाए जा रहे हैं।

खुशहाल समाज ही खुशहाल विश्व का निर्माण कर सकता है

अंजू सेठिया

प्रकृति हर रूप में , हर ऋतु में ,अपना अद्भुत सौंदर्य बिखेरती है। जहां बारिश की बूंदों के साथ मिट्टी की खुशबू मिलकर अलग ही सोंधी महक से हर दिल दिमाग को तरोताजा करती है। वहीं सर्दी की ऋतु में खिड़कियों में से छन- छन कर आती हुई धूप सूर्य देवता के वरदान स्वरुप लगती है । गर्मी का मौसम जो लगभग सभी के द्वारा तिरस्कृत होता है कि यह कैसा मौसम है हर समय हम पसीने से लथपथ रहते हैं लेकिन उस मौसम में भी प्रकृति ने तो सफेद और पीले छोटे छोटे फूलों से वृक्षों को बड़ी ही खूबसूरती से सजाया है, लेकिन हमारा मन तो गर्मी में ही अटक कर रह जाता है और हम उस सौंदर्य का आनंद ही नहीं ले पाते जो गर्मी की ऋतु का अपना होता है। गर्मी में भले ही हम कितने ही पंखे, एसी और कूलर चला लें लेकिन जो हवा हमारे आसपास के हरे भरे वृक्षों से आती है वह ठंडी लहर अंदर एक अलग ही सुकून और शांति भरती है। वैसी शांति ,कोई भी हमारे द्वारा निर्मित उपकरण नहीं दे पाता ।

अगर हम सभी उम्र के किसी भी पड़ाव पर हों और सोचें तो हमारी स्मृतियों में गर्मी की ऋतु सबसे अधिक होगी क्योंकि वह ॠतु ही होती थी जब हम अपने स्कूल से एक लंबी छुट्टियां पाते थे और अपने मनपसंद नाना नानी और दादा-दादी के घरों में जाते थे ,और वहां सभी भाई बहनों का मिलकर रहना और भूल जाना कि कौन मम्मी है, कौन चाची है या कौन मासी है या कौन बुआ है। सबसे समान रूप से प्यार पाना, समान रूप से डांटखाना और समान रूप से उनके द्वारा बनाई हुई चीजों का आनंद लेना सचमुच अतुलनीय है ।
कोलकाता में रहते हुए मैं आज भी सबसे ज्यादा अगर किसी चीज को मिस करती हूं तो वह है श्री डूंगरगढ़ का वह खुला आसमान जहां हमने अपनी गर्मी की रातों को आसमान में तारों को निहारते हुए बिताया था और कब हम तारों को गिनते हुए नींद के आगोश में चले जाते थे, पता ही नहीं चलता था। और जब उठते थे तो तरोताजा होकर उठते थे ,तब लगता ही नहीं था कि गर्मी भी कुछ होती है क्योंकि वे दिन हमें सबसे प्यारे लगते थे। कोलकाता जैसे महानगरों की ऊंची ऊंची बिल्डिंग और अट्टालिकाओं ने उस आसमान की अनंतता और खुलेपन को पता नहीं क्यों हमसे छीन लिया है ।मैं तो तरस जाती हूं उस आसमान को देखने के लिए जहां चांद और सूरज अपनी अठखेलियां करते हैं ,और झिलमिलाते तारों से आसमान एक दुल्हन के रूप में सज जाता है ।कभी-कभी लगता है हमारा बचपन कम संसाधनों में भी कितना खुशहाल था, छोटी छोटी खुशियां हमें हर पल खुश रखती थी। फिर वह दस पैसे की कुल्फी के लिए पूरी गर्मी की दोपहर इंतजार करना हो या शाम को छत पर पानी छिड़ककर छत को इतना ठंडा कर लेना कि रात को सोते समय वहां ठंडी- ठंडी हवा चले। यह सब हमारे लिए हिल स्टेशन पर जाने जितने अनमोल पल होते थे क्योंकि हमारे उस वक्त में हमें हर पल खुश रहना सिखाया था क्योंकि हम संसाधनों के मोहताज नहीं थे ।हमारे बचपन के दोस्त हमारी सबसे बड़ी पूंजी होते थे। जिनके साथ हम लड़ना झगड़ना फिर से एक होना करते रहते थे। और मुझे तो जहां तक याद है मैंने 25 साल की उम्र के बाद जाना कि तनाव किसे कहते हैं या तनाव या डिप्रेशन भी कोई चीज होती है और आज तो हालात यह है कि छोटे-छोटे बच्चे तनाव का शिकार हो रहे हैं ।आखिर फिर हम क्या कर रहे हैं ?हम उन्हें आधुनिक संसाधन उनके हाथों में देकर खुशहाल बनाना बनाना चाहते हैं या तनाव में डालना चाहते हैं ?हम तो सोचना ही नहीं चाहते।

काश कि हम अपने बच्चों को प्रकृति के सानिध्य में खुश रहना सिखा पाते। चलती हुई ठंडी हवा को महसूस करवा पाते। आम के वृक्षों से आने वाली मीठी खुशबू का आनंद क्या होता है ,वह बता पाते ।कोयल की कूक और चिड़ियों की चहचहाहट को सुनना सिखा पाते हैं ।जो वे यह सब महानगरों के भागदौड़ भरी जिंदगी और कोलाहल में सुन ही नहीं पाते। और एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में बचपन की वह मासूमियत भूल जाते हैं, जिसमें खेल का आनंद उठाना फर्स्ट आने से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है ।काश मासूम बचपन मोबाइल मैं देखने वाले कार्टून चरित्रों या कहानियां सुनने की जगह अपनी दादी नानी या घर के बड़ों से कहानी सुनकर खुद कल्पना कर पाता उन चरित्रों की, और उस कल्पना से खुद कहानियां बनाना सीख पाता और अपने अंदर की नैसर्गिक प्रतिभा को बाहर ला पाता।

आओ हम सब एक ईमानदार कोशिश करें हमारे नौनिहालों और आने वाली पीढ़ी के लिए जिससे वे तनाव रहित और सुंदर जीवन जी सकें। जिसमें बड़ी खुशियों के लिए छोटी-छोटी खुशियों को नकारना नहीं बल्कि उन खुशियों को हर पल महसूस करते हुए आगे बढ़ते जाना सिखाएं क्योंकि एक विकसित समाज अत्याधुनिक तकनीकी के कारण विकसित नहीं कहा जाता बल्कि खुशियों के साथ जीने वाले समाज को विकसित कहा जाता है।