Friday, March 14, 2025
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जश्न ए अजहर रंग संवाद में प्रताप सहगल के नाटकों पर चर्चा

कोलकाता । कलकत्ते की सुप्रसिद्ध संस्था लिटिल थेस्पियन का 14वा राष्ट्रीय नाट्य उत्सव जश्न -ए -अज़हर का चौथा दिन ज्ञान मंच के प्रांगण में संपन्न हुआ। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से आयोजित इस नाट्य उत्सव के चौथे दिन का प्रथम सत्र, संवाद सत्र था जिसका केंद्रीय विषय था प्रताप सहगल के नाटकों में मानवीय अस्तित्व की खोज। इस संवाद सत्र में मंच पर वक्त के रूप में उपस्थित थे ,डॉ. शुभ्रा उपाध्याय (कोलकाता) ,डॉ. ईतू सिंह (कोलकाता), डॉ. रेशमी पांडा मुखर्जी (कोलकाता), डॉ. कृष्ण कृष्ण श्रीवास्तव (आसनसोल) ,श्री अशरफ अली (दिल्ली), गौरव दास (कोलकाता)।
इतू सिंह ने इस विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि मानवीय संवेदना के बिना साहित्य नहीं लिखा जा सकता।नाटक पढ़ने से अधिक देखने में समझ आता है यही रंगमंच की सबसे बड़ी उपलब्धि है । प्रताप सहगल अपने नाटकों में मानवीय मूल्यों को केंद्र में रखते है। डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने रामायण के उदाहरण से अपनी बात शुरू करते हुए बोलती है कि मानवीय अस्मिता मनुष्य होने की पहचान है। रंगबसंती पर बात करते हु कहा कि पात्र भगत सिंह के भीतर मानवीय मूल्यों को बचाने की चाह नज़र आती है। अन्वेषक और तीन गुमशुदा लोग पर भी अपनी बात रखी।
कृष्ण कुमार श्रीवास्तव अंतराल, कोई ओर रास्ता, फैसला इन नाटकों की स्त्री पात्र पर अपनी बात रखी और स्त्री के भीतर की संवेदना को मुख्य रूप से रेखांकित करते है। अशरफ़ अली ने तीन गुमशुदा नाटक पर टिप्पणी करते हुए लेखक और निर्देशक के विचारों की समन्वय पर अपनी बात रखी और रंगमंच के तथ्यों को रेखांकित करते है। डॉ गौरव दास ने कहा कि प्रताप सहगल के सभी नाटक संवेदनाओं से भरपूर है । दूसरे सत्र में खुर्शीद एकराम मन्ना को उनके नाटक में योगदान के लिए सम्मानित किया गया। तीसरे सत्र में प्रताप सहगल का नाटक ‘ तीन गुमशुदा लोग ‘ का मंचन अशरफ अली के निर्देशन में अनुरागना थिएटर ग्रुप द्वारा प्रस्तुत किया गया। नाटक ‘तीन गुमशुदा लोग’, तीन कहानियों – ‘जुगलबंदी’, ‘क्रॉस रोड्स’, और ‘मछली मछली कितना पानी’ का एक आकर्षक और विविध संग्रह है, जो प्रतिष्ठित डॉ. प्रताप सेहगल द्वारा लिखा गया है। अशरफ अली के निर्देशन में, ये तीन स्वतंत्र कथाएं एक एकीकृत, आत्मा-स्पर्शी रंगमंचीय अनुभव में मिल जाती हैं। यह मर्मस्पर्शी नाटक जीवन के अस्तित्ववादी संकटों की एक विचारोत्तेजक खोज है, जो शांत रूप से दर्शकों को अपने भीतर एक आत्म-निरीक्षण यात्रा पर निकलने के लिए प्रेरित करती है।

तीसरे दिन  प्रथम सत्र में नाटककार प्रताप सहगल के नाटक ‘ बच्चे बड़े हो रहे हैं ‘ का मंचन हुआ जिसके निर्देशक गौरव दास, नाट्य संस्था संतोषपुर अनुचिंतन के द्वारा प्रस्तुत किया गया। “बच्चे बड़े हो रहे हैं” एक ऐसा नाटक है जो प्रताप सहगल की कविता के माध्यम से कोलकाता के पेयराबागान की झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों के बच्चों के जीवन पर प्रकाश डालता है। यह नाटक पेयराबागान की झुग्गी-झोपड़ी से एक समूह के बच्चों के किशोरावस्था में प्रवेश करने की एक आउट-ऑफ-द-वर्ल्ड कहानी सुनाता है। जश्न- ए- अज़हर के तीसरे दिन रंगमंच की प्रसिद्ध रंगकर्मी, अभिनेत्री सीमा घोष को उनके नाटक में योगदान के लिए सम्मानित किया गया। दूसरे सत्र में नाटक अंतराल का मंचन गौरी देवल नाट्य संस्था यूनिकॉर्न एक्टर्स स्टूडियो, दिल्ली के निर्देशन में हुआ जिसके नाटककार प्रताप सेहगल है। अंतराल, एक ऐसा नाटक है जो मूल्यों की हमेशा बदलती प्रकृति से संबंधित है। यह नाटक एक खोजी गई मान्यता पर आधारित है, कि मूल्य, चाहे वे कितने भी उच्च या निर्दोष क्यों न हों, धीरे-धीरे अपने गौरव में एक अवधि के दौरान फीके पड़ जाते हैं। यह अवधि, यह अंतराल जो लोगों के मन और जीवन के बीच मौजूद है और यह कि प्रत्येक व्यक्तिगत जीवन एक ही तरह के मूल्यों द्वारा शासित नहीं हो सकता है। मंजू एक बुद्धिमान महिला है जो त्रासदी से आकारित हुई है।

सीढ़ियों का सहारा लीजिए..इस्तेमाल मत कीजिए

पेशेवर जीवन के दो दशक से अधिक का समय बीत चला है तो आज कई बातें उन महत्वाकांक्षी युवाओं और अवसरवादी संस्थानों से कहने का मन हो रहा है जो अपने संस्थानों के विश्वसनीय एवं निष्ठावान पुराने कर्मचारियों की भावनाओं के साथ शतरंज खेलते हैं । कर्मचारी जो रसोई में तेजपत्ते की तरह होते है, पहले उनको चढ़ाया जाता है, नींबू की तरह निचोड़ा जाता है और फिर जब वह सीनियर बनते हैं तो दूध में मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया जाता है। आजकल सबकी शिकायत रहती है कि निष्ठावान लोग नहीं मिलते। जो नये लोग मिलते हैं..वह संस्थान को प्रशिक्षण संस्थान समझकर सीखते हैं और चल देते हैं। एक बार आइने में खड़े होकर देखिए और आपको पता चल जाएगा कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है। सबसे बड़ी बात यह है कि मालिकों को अब खुद से पूछना चाहिए कि क्या वह इस लायक हैं कि उनको कोई समर्पित कर्मचारी मिले जो उनके संस्थान के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दे। कॉरपोरेट जगत वकालत कर रहा है कि कर्मचारियों को 70 घंटे काम करना चाहिए..सवाल है क्यों करना चाहिए…और सबसे बड़ी बात आखिर इसके बाद कर्मचारियों को क्या मिलना है? क्या जिन्दगी में पैसा ही सब कुछ है और चंद रुपये अगर मिल भी जाएं तो क्या आप गारंटी देते हैं कि ऐसे कर्मचारियों को कभी काम से नहीं निकाला जाएगा? अगर आप खुद वफादार नहीं हैं तो आपको वफादारी की उम्मीद क्यों होनी चाहिए। .ऐसे लोगों को कर्मचारी नहीं…वफादार कुत्तों की जरूत है..दिमागी तौर पर बीमार लोग हैं ये।
आजकल एक मुहावरा चला है कि अंधा अपनी देख पाने पर लाठी फेंक देता है…आधी बात हम पूरी करते हैं..दरअसल लाठी अंधे को बेबस समझकर तब अपना उल्लू सीधा करने लगती है…उसका सहारा नहीं रह जाती..वो उसे हांकने लगती है…अंधे की मजबूरी का फायदा उठाने लगती है..उसे लगता है कि अंधे तो हज़ार हैं..कोई न कोई मिल ही जाएगा और जब वो मिल जाए तो कल तक वो जिसका सहारा थी उसके सर पर बजने भी लगती है तो अंधे को अपनी जान बचाने के लिए मजबूर होकर लाठी छोड़नी पड़ती है…वो गिरने का जोखिम उठा रहा होता है कि ईश्वर दूसरी और कहीं बेहतर लाठी भेज देते हैं..मगर गिरने नहीं देते
इसी तरह संस्थान अपने पुराने कर्मियों के साथ गेम खेलते हैं…नए चेहरे लाकर उनको बेइज्जत किया जाता है…नए लोगों को मौका देने के नाम पर पुराने लोगों से हर चीज़ छीनी जाती है…जिसने पूरा जीवन दे दिया आपके संस्थान को चमकाने में…वो आपके लिए दूध की मक्खी हो जाता है..आप अपना वेतन और सुविधाओं के साथ समझौते नहीं चाहते मगर पुराने लोगों की पदोन्नति और वेतन आपको चुभते हैं…नए लोग आपकी शह पाकर पुराने लोगों के साथ खेलते हैं..और आप पुराने लोगों पर ईर्ष्या का टैग लगा देते हैं…फिर मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न शुरू होता है और मजबूरन आपके संस्थान की नींव की ईंट बना वो व्यक्ति आपकी बेईमानी की आग में खत्म होकर रह जाने से बेहतर आपको छोड़ना समझता है…
एक बात जो नए लोग शॉर्टकट में इस गेम का हिस्सा बन रहे हैं..वो जान लें कि पुराने तो आप भी होंगे..धक्का आपको भी दिया जाएगा..सफ़लता सीढ़ियों से चढ़कर आएगी तो गिरेंगे तो भी सीढ़ी सम्भाल लेगी..शॉर्टकट लिफ्ट है…बीच में ही रुकेगी तो दम घुट भी सकता है और गिरे तो सीधे खत्म हो जाएंगे…वो सीढ़ी…कोई और नहीं आपके वही सीनियर हैं…जिनको अपमानित कर आप खुद को विजेता समझ रहे हैं..ऊंचाई कभी किसी की नहीं होती…कितने भी बड़े हों एक दिन उतरना ही पड़ेगा और तब आपको सहारे की जरूरत पड़ेगी तब क्या करेंगे? जिनको आप पायदान समझ रहे हैं…वो तब आपके साथ क्यों रहेंगे…इतनी हड़बड़ी क्यों है? धोखेबाज आप दोनों हैं पुराने लोग नहीं।
सीनियर किसी नदी का पत्थर नहीं होते जो आपको अपनी पीठ दें कि आप उन पर चढ़कर कॅरियर की नदी पार करें, वह सीढ़ी भी नहीं होते कि आप उनकी पीठ को पायदान बनाकर चापलूसी का सहारा लेकर सफलता की सीढ़ियां चढ़ते जाएं। मत भूलिए कि आप भी एक दिन वरिष्ठ होंगे और आज आप जिनकी चापलूसी के लिए तलवे चाटने में लगे हैं, वही कल आपको धक्के मारकर निकाल देंगे और पहचानेंगे तक नहीं। एक दिन आएगा जब आपकी चालाकियां पकड़ी जाएंगी और आपको भी वैसे ही धक्के मारकर निकाला जाएगा जैसे आपने अपने सहकर्मियों को निकलवाया था, उनको अपमानित करवाया था । लालच की लिफ्ट पर चढ़कर आप इतने अंधे हो गये कि जिस मकान ने आपको आसरा दिया…आप उसी को गिराने की साजिशें रचने लगे? अगर इतना ही सामर्थ्य है तो अपनी इच्छा शक्ति से अपनी मेहनत से अपने लिए स्थान बनाइए…आप जो कर रहे हैं या आपने जो किया..उसे ही विश्वासघात कहते हैं…जब आप किसी के न हुए तो अपने लिए इतनी उम्मीदें क्यों?
अगर अगर आप पैकेज के पीछे कुत्तों की तरह भाग रहे हैं तो कॉरपोरेट में कुत्तों की तरह ट्रीटमेंट पाने के लिए तैयार रहिए क्योंकि कोई भी आपको करोड़ों का पैकेज आपका चेहरा देखने के लिए नहीं देगा। जो लोग पैकेज की वकालत करते हैं, वह भूल जाते हैं कि कार्यास्थल का परिवेश, अच्छे सहकर्मी, सीखने का माहौल..भी बहुत जरूरी है। ऐसी जगह जहां आप काम करने के साथ सांस ले सकें…खुलकर जी सकें…बहुत जरूरी है….। पैकेज पर ध्यान देना जरूरी है…मगर इसके साथ जरूरी है कि आपको एक सुरक्षित परिवेश भी मिले। बाकी राजनीति तो हर जगह है, यह आप पर है कि आप कितना सीखते हैं, और किस तरह आगे जाते हैं। जहां भी दीजिए शत -प्रतिशत दीजिए..नहीं दे सकते तो जगह खाली कीजिए..ब्रेक लीजिए और फिर आगे बढ़िए।
बहुत से युवा और वरिष्ठ भी एक कम्पनी से दूसरी कम्पनी, एक संस्थान से दूसरे संस्थान बस भागते ही रहते हैं…इससे होता क्या है कि आपकी क्षमता और आपकी जवाबदेही के साथ आपके गुडविल पर भी सवाल खड़े होते हैं । जब काम छोड़ें तो एक वाजिब कारण तो होना ही चाहिए। अपने निजी अनुभव से कह रही हूँ..जब कोई आप पर विश्वास करता है और आप उसे छोड़कर कहीं और जाते हैं और बताए बगैर जाते हैं तो बहुत तकलीफदेह होता है। इसकी पीड़ा भी किसी रिश्ते के छन से टूटने जैसी होती है । अगर आपको जाना ही है और आपका संस्थान बहुत अच्छा है, सहयोग करता है तो इसका आदर कीजिए। समय लीजिए और सबसे पहले अपना बैकअप तैयार कीजिए..अपना विकल्प तैयार कीजिए..मानसिक रूप से तैयार कीजिए और बहुत अच्छे वातावरण को बनाए रखकर आगे बढ़िए…बगैर किसी शिकायत के…और अपने रिश्ते बरकरार रखिए..यही चीजें काम आती हैं अंत में। आप देखेंगे…आपके कठिन से कठिन दौर में आपके सहकर्मी, आपके सहयोगी..आपके सीनियर आपके साथ होंगे…तब भी जब आपके अपने आपके साथ न हों..।
मेरा सुझाव यह है कि कहीं भी नौकरी से पहले यह जरूर देखें कि उस दफ्तर में सीनियर लोगों के साथ कैसा बर्ताव होता है क्योंकि सीनियर तो काम करते हुए आप भी होंगे। माना कि कॉरपोरेट में रिश्ते नहीं बनते या हमें अपने काम से काम रखना चाहिए मगर दफ्तर में हम मशीन बनकर तो काम नहीं कर सकते। मुझे तो लगता है कि कार्यस्थल पर ही कई बार अच्छे दोस्त मिल जाते हैं, अच्छे सीनियर मिल जाते हैं जो कई बार सिर पर छत की तरह बन जाते हैं । अच्छे मेंटर का मिलना, अच्छा सीनियर मिलना भाग्य की नहीं, सौभाग्य की बात है, उनका आदर कीजिए…सीखिए मगर इस्तेमाल मत कीजिए क्योंकि हम औऱ आप जो करते हैं,,,वही कर्म लौटकर आता है।

“मेरी जापान यात्रा: दुआओं का कबूलनामा” का लोकार्पण

कोलकाता । गत दो मार्च रविवार को विचार मंच के तत्वावधान में, पारसमल कांकरिया सभागार में डॉ. किरण सिपनी के यात्रा संस्मरण “मेरी जापान यात्रा: दुआओं का कबूलनामा” का लोकार्पण हुआ।  कार्यक्रम का शुभारंभ श्रीमती लीला शाह के मंगलाचरण से हुआ। पूजा मूंधड़ा ने तिलक लगाकर अतिथियों का स्वागत किया। विचार मंच के मंत्री प्रदीप पटवा जी ने संस्था का संक्षिप्त परिचय देते हुए अतिथियों का स्वागत किया। संस्था के अध्यक्ष श्री सरदार मल जी कांकरिया ने संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए किरण सिपानी को बधाई दी।
प्रमुख वक्ता प्रमोद शाह ने कहा कि यह कबूलनामा दोनों तरफ से है- जापान की ओर से भी और हमारी ओर से भी। भाई साहब के कारण जापान से यह रिश्ता बना जिसे भाभीजी ने पूरे समर्पण से निभाया। किरण जी ने संस्मरण -पुस्तक में यात्राओं का खूबसूरती से वर्णन किया है। जापान का वर्णन पूरी बारीकी से करते हुए आधिकारिक ढंग से जापान के इतिहास पर बात की है। इसमें आत्मीयता की छुअन है। अपनी बेटी और दामाद के प्रति कृतज्ञता भी है जिन्होंने इस यात्रा को सरस और सुगम बनाते में बड़ी भूमिका अदा की।
किरण बादल जी ने कहा कि किरण सिपानी जी ने बड़े सहज सरल शब्दों में सरसता से अपने अनुभवों को शब्दबद्ध किया है। इसे पढ़ते हुए आत्मकथा, संस्मरण, यात्रा वर्णन, कथा आदि कई विधाओं को पढ़ने का आनंद मिलता है।
अपने लेखकीय वक्तव्य में किरण सिपानी जी ने कहा कि हम कोई भी काम करें- दिल दिमाग और हाथों को साथ लेकर काम करें, तभी समाज का उत्थान होगा। साहित्य के पुरोधाओं ने मेरे लेखन को प्रभावित किया। समाज की विसंगतियों एवं ज्वलंत विषयों को अपनी लेखनी के माध्यम से उठाने की कोशिश की है। मैं अपने शहर कलकत्ता के प्रति बहुत आभारी हूँ। जापान के अनुशासन और देश के प्रति निभाई जाने वाली जिम्मेदारी ने मुझे प्रभावित किया । हिरोशिमा को देखने की बचपन से इच्छा थी। व्हीलचेयर पर तीन तल्लों में फैले म्यूजियम को घूमकर देखते हुए लगा कि शरीर में रक्त नहीं दर्द बह रहा है।
मंगत बादल ने कहा कि दीदी के साथ मेरा हृदय का संबंध है। आज समाज को सिर्फ कलम के माध्यम से बदला जा सकता है। हमारे यहाँ ऋषि परंपरा का लेखन रहा है और उन्हीं के निर्देशन में हमारी लेखन परंपरा आगे बढ़ी है। जापानी लोगों के ज्ञान एवं गुणों को अपनाकर भारत सिरमौर बन सकता है। यह पुस्तक नवयुवकों के लिए पुस्तक प्रेरणास्रोत है।
मंगत बादल जी, किरण बादल जी, सरदार मल कांकरिया जी एवं प्रदीप पटवा जी ने किरण सिपानी जी का सम्मान किया।
राज बिसारिया ने नारी शक्ति को समर्पित एक सुमधुर गीत का गायन किया।
धन्यवाद ज्ञापन- विचार मंच के उपाध्यक्ष प्रेम शंकर त्रिपाठी जी ने किया। उन्होंने कहा कि तमाम संघर्षों के बीच किरण दी लिखती रहती हैं, हमें प्रेरित करती रहती हैं। सफरनामा लिखना बहुत कठिन काम है। किरण दी ने इस चुनौती को स्वीकार किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन गीता दूबे ने किया। इस पूरे आयोजन को सफल बनाने में अरुण बच्छावत का विशेष योगदान रहा।

आईएएस के लिए हो प्रायोगिक  प्रशिक्षणः डॉ. राजाराम त्रिपाठी

-प्रो. एसबी राय ने दिया साहित्य के छात्रों के लिए इंटर्नशिप पर जोर

– पैरोकार पत्रिका व इबराड ने आयोजित की दो दिवसीय संगोष्ठी व प्रतियोगिता

कोलकाता । प्रख्यात जैविक कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा है कि उच्च शिक्षा के सभी छात्र-छात्राओं समेत साहित्य के विद्यराथी  के लिए प्रायोगिक प्रशिक्षण( इंटर्नशिप) जरूरी है। यहां तक कि आइएएस के लिए भी प्रायोगिक प्रशिक्षण होना चाहिए। परिश्रम से करके कुछ युवा आईएएस अधिकारी बन जाते हैं। लेकिन पहली बार कलेक्टर के पोस्ट पर आसीन होने के बाद उन्हें बहुत कुछ सीखने की जरूरत पड़ती है। पहले से प्रायोगिक प्रशिक्षण लेने के बाद आइएएस अधिकारी कहीं भी पहली बार पदासीन होने पर बेहतर काम करेंगे और सरकारी योजनाओं को दक्षता के साथ मूर्त रूप दे सकेंगे। डॉ. त्रिपाठी ने पैरोकार पत्रिका और इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल-बायो साइंस रिचर्स एंड डेवलपमेंट( इबराड) की ओऱ से नई शिक्षा नीतिः हिंदी साहित्य में प्रायोयिग प्रशिक्षण का महत्व विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में बतौर प्रधान अतिथि यह बातें कही। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य में भी प्रायोगिक प्रशिक्षण का महत्व है। वैश्वीक बाजार का व्यापक विस्तर होने के साथ हिंदी का महत्व बढ़ा है। चीन जैसे देश में हिंदी की पढ़ाई हो रही है। भाषांतर और अनुवाद के लिए कृतिम मेधा(एआई) और कंप्यूटर आधारित तकनीक का विकास हुआ है। कृतिम मेधा हमारे लिए जोखिम भी पैदा करेगा। इसलिए तकनीक के प्रयोग के साथ साहित्य के क्षेत्र में भी अब प्रायोगिक प्रशिक्षण जरूरी हो गया है। अपने अध्यक्षीय भाषण में इबराड के चेयरमैन प्रो. एसबी राय ने कहा कि साहित्य में इंटर्नशीप के महत्व को समझाने के लिए स्कूली स्तर पर शिक्षकों के लिए कार्यशालाएं आयोजित करने की जरूरत है। सेमिनार में बतौर वक्ता रेशमी पांडा मुखर्जी (एसोसिएट प्रो. गोखले मेमोरियल गर्ल्स कॉलेज) ने साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में इंटर्नशिप के हमत्व को विस्तार से रेखांकित किया। विद्यासागर कॉलेज फार वुमेन के सहायक प्राध्यापक अभिजीत सिंह ने पीपीटी के माध्यम से अनुवाद से लेकर सामग्री लेखन, फिल्म लेखन और दक्षता विकास में साहित्य में इंटर्नशिप के महत्व पर प्रकाश डाला। योगेशचंद्र चौधरी कॉलेज की सहायक प्रध्यपिका ममता त्रिवेदी ने कहा कि साहित्य में इंटर्शनशिप को सिर्फ रोजगार प्राप्त करने से जोड़कर ही नहीं देखा जाना चाहिए। इस मौके पर डिजिटल युग में सामाजिक संबंधों के नए रूप शीर्ष से हिंदी निबंध प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें 36 छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले अभिषेक कोहार, द्वितीय स्थान प्राप्त करनेवाली शालिनी पांडेय और तृतीय स्थान प्राप्त करनेवाली नंदिनी कुमारी को इबराड की ओर से प्रमाण पत्र और स्मृति चिन्ह देकर पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम का संचालन पैरोकार के प्रधान संपादक अनवर हुसैन और पत्रकार राजेश ने किया। धन्यवाद ज्ञापन बिमल शर्मा ने किया। यह सेमिनार दो दिवसीय 25-26 फरवरी को पैरोकार साहित्य महोत्सव के समापन के मौके पर किया गया। महोत्सव में छत्तीसगढ़ के डॉ. राजाराम त्रिपाठी को पैरोकार साहित्य शिखर सम्मान से, युवा नाटककार डॉ. मोहम्मद आसिफ आलम को पैरोकार नाट्य सम्मान से, शंकर जालान को पैरोकार पत्रकारिता सम्मान और सीमा गुप्ता को पैरोकार काव्य सम्मान से नवाजा गया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता ताजा टीवी व छपते छपते के प्रधान संपादक विश्वम्भर नेवर और समापन सत्र की अध्यक्षता इबराड के चेयरमैन प्रो. एसबी राय ने की। दो दिवसीय पैरोकार साहित्य महोत्सव पैरोकार के विशेषांक का लोकार्पण, आज की साहित्यिक पत्रकारिता पर संगोष्ठी, कवि सम्मेलन और राष्ट्रीय सेमिनार के सफल आयोजन के साथ संपन्न हुआ।

कालिदास के शाकुन्तलम पर नृत्य ने समां बांधा

कोलकाता ।  भारतीय भाषा परिषद की स्वर्ण जयंती आयोजन श्रृंखला में अमेरिका से आईं प्रसिद्ध नृत्यांगना लाबणी मोहन्ता के कालिदास के शाकुन्तलम पर नृत्य ने परिषद सभागार में दर्शकों का मन जीत लिया। तबला पर थे प्रसिद्ध वादक रोहेन बोस और सितार पर जयंत बैनर्जी। गायन पर अरिंदम भट्टाचार्य ने अनोखी प्रस्तुति दी। भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की संध्या पर दर्शकों की भारी उपस्थिति थी। परिषद की ओर से विमला पोद्दार, आशीष झुनझुनवाला, घनश्याम सुगला और शालीन खेमानी ने अतिथियों का स्वागत किया। विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे रामनिवास द्विवेदी, प्रियंकर पालीवाल, सुनील कुमार शर्मा और महेंद्र सिंह पूनिया। आज के आयोजन के मुख्य संयोजक थे उदीयमान तबला वादक सौरभ गुहा। स्पेनिश वीणा पर थे सचिन पटवर्धन और घटम पर सोमनाथ राय। संगीत संध्या का संचालन करते हुए प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि परिषद की स्वर्ण जयंती पर हम कोलकाता में कई राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम करने जा रहे हैं। परिषद के निदेशक डा. शंभुनाथ ने कहा कि भारतीय कलाएं हमारे मन को व्यापक बनाती हैं और संगीत एक ईश्वरीय अनुभूति है। आशीष झुनझुनवाला ने धन्यवाद दिया।

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विद्यासागर विश्वविद्यालय और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा मातृभाषा दिवस का आयोजन
कोलकाता। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा ऑनलाइन काव्य संध्या का आयोजन किया गया। मिशन के अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि भाषा माध्यम होती है और हम इसके सहयात्री होते है। मातृभाषा के साथ साहित्यिक पुनर्निर्माण का प्रश्न अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं के बीच सृजनात्मक संवाद से ही संभव है। इस अवसर पर डॉ. सुशीला ओझा, डॉ. वर्षा महेश, दिव्या शर्मा, हिमाद्री, शिप्रा मिश्रा, सिपाली गुप्ता, मनीषा गुप्ता, मधु सिंह, सूर्य देव रॉय और सुषमा कुमारी ने काव्य पाठ किया। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि भाषा परिवेश की होती है। और आम तौर पर इसी परिवेश की भाषा को मातृभाषा कहा जाता है। आज मातृभाषा की पूरी परिपाटी बदल गई है। आजादी के बाद की तीसरी पीढ़ी के पास मातृभाषा के रूप में कमोबेश अंग्रेजी ही काबिज हो गई है। कार्यक्रम का सफल संचालन रुपेश यादव ने किया। इस अवसर पर रामनिवास द्विवेदी, मंजू रानी सिंह, नागेंद्र पंडित, विकास साव, डॉ. मंटू कुमार, उत्तम कुमार, शनि सरोज, महेश कुमार सहित अन्य साहित्यप्रेमी मौजूद थे।
हिंदी विभाग, विद्यासागर विश्वविद्यालय में अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विभाग के शिक्षक, विद्यार्थी एवं शोधार्थी उपस्थित रहे। इस अवसर पर अर्जुन शर्की, बिट्टी कौर, निसार अहमद अंसारी व अन्य छात्र-छात्राओं ने मातृभाषा पर अपने विचार व्यक्त किए। विभाग के विद्यार्थियों द्वारा विभिन्न भाषाओं में गीत प्रस्तुत किए गए। माही कुमारी ने बंगला, अर्जुन शर्की ने नेपाली एवं अदिति ने हिंदी में गायन किया। अंजलि शर्मा, नेहा गुप्ता, माही कुमारी एवं अदिति शर्मा ने हिंदी गीत का सामूहिक गायन किया। नंदिनी सिंह एवं नगमा ने स्वरचित कविताओं का पाठ किया। विभाग के प्राध्यापक श्रीकांत द्विवेदी ने भी अपने विचार प्रस्तुत करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन रूथ कर ने किया।

खुदीराम बोस सेंट्रल कालेज में मातृभाषा दिवस का आयोजन

कोलकाता ।  खुदीराम बोस सेंट्रल कालेज की ओर से अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन किया गया। उद्घाटन सत्र में सभी आमंत्रित अतिथियों ने पौधे का जल सिंचन कर पर्यावरण की तरह भाषा को बचाने का संकल्प लिया। बीज वक्तव्य देते हुए कालेज के प्राचार्य डॉ अफसर अली ने कहा मातृभाषा कृत्रिमता से मुक्त सहज और स्वाभाविक होती है। उन्होंने कहा कि मैं सरकार से अपील करता हूं कि जिन भाषाओं की लिपि और व्याकरण नहीं है ऐसी भाषाओं को संरक्षित को करें।स्वागत गीत अंग्रेजी विभाग की अनुसूया मित्र ने गाया। स्वागत वक्तव्य देते हुए बांग्ला विभागाध्यक्ष सभी आमंत्रित अतिथियों का स्वागत किया। कालेज के प्रेसिडेंट शांतनु मल्लिक ने कहा कि बांग्ला को मातृभाषा का दर्जा पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा है। मुख्य अतिथि डॉ इमानुएल हक ने कहा हमें मातृभाषा के साथ दूसरी भाषाएं सीखनी चाहिए। इससे हम समृद्ध होंगे और अपनी मातृभाषा को समृद्ध कर पाएंगे। कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लक्ष्मी नारायण शतपती ने कहा कि मातृभाषा एक यंत्र की तरह है जिसके साथ आगे चलकर अस्मिता भी जुड़ गई। भाषा हमें ज्ञान तक पहुंचाती है।इस अवसर पर हिंदी विभाग की छात्रा शिवानी तिवारी ने कवि केदारनाथ सिंह की कविता का पाठ एवं बांग्ला विभाग के छात्र आबीर दास ने आवृत्ति की। अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर राजदीप मंडल ने मातृभाषा पर आधारित एकल नाटक की शानदार प्रस्तुति की। कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए हिंदी विभाग की डॉ मधु सिंह ने कहा कि हमें मातृभाषा दिवस के अवसर पर अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं का सम्मान का संकल्प लेना चाहिए। दूसरी भाषाएं सीखने से हमारी भाषा का भी विकास होता है । बांग्ला विभाग के प्रोफेसर रामकृष्ण घोष ने कहा हमें अपनी मातृभाषा के महत्व को समझते हुए इसके विकास के बारे में सोचना चाहिए। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रोफेसर सोमनाथ भट्टाचार्य ने काव्यपाठ किया।

भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज के सात एनसीसी कैडेट रिपब्लिक डे कैंप 2025 में चयनित 

कोलकाता । भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कालेज के कॉलेज के सात एनसीसी कैडेटों को रिपब्लिक डे कैंप (आरडीसी) में दो को सर्वश्रेष्ठ एनसीसी कैडेट के रूप में चुना गया था, दो ड्रिल आकस्मिक के लिएऔर दो ऑल-इंडिया गार्ड ऑफ ऑनर के लिए चुने गए थे ।सभी चयनित कैडेटों को अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने और उनके निदेशालय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इस मंच पर अवसर प्राप्त हुआ। विभिन्न कार्यक्रमों के लिए कैडेटों का चयन किया गया जिसमें मुख्य रूप से कठोर प्रशिक्षण और कई चयन स्तरों को देखना जिसमें सर्वश्रेष्ठ कैडेट, कर्तव्य पथ के लिए ड्रिल आकस्मिक, प्रधानमंत्री की रैली, गार्ड ऑफ ऑनर, विशेष नौकायन अभियान आदि शामिल रहे। सभी चयनित कैडेट्स 26 दिसंबर को दिल्ली पहुंचे जहां एनसीसी के महानिदेशक द्वारा उन सभी कैडेटों का गर्मजोशी से स्वागत किया गया । शिविर में विभिन्न कार्यक्रमों को शामिल किया गया, जिसमें प्रमुख गणमान्य लोगों के लिए घर की यात्राएं शामिल हैं, जैसे कि सेना प्रमुख, वायु प्रमुख, नौसेना प्रमुख, प्रधान मंत्री और भारत के राष्ट्रपति की गरिमामयी उपस्थिति रही। । कैडेट्स ने भारत के रक्षा मंत्री के साथ रात्रिभोज में भी भाग लिया। कैडेटों की उल्लेखनीय उपलब्धियों में सीडीटी किशन उपाध्याय और सीडीटी प्रियांशु झा ऑल-इंडिया गार्ड ऑफ ऑनर के लिए चुने गए, उन्होंने उपाध्यक्षों को सम्मानित किए गए गणमान्य लोगों को सम्मानित किया, जिसमें उपाध्यक्ष, सेना के प्रमुख/नौसेना/वायु सेना के कर्मचारी, और भारत के प्रधान मंत्री, दिल्ली के मुख्यमंत्री, रक्षा कर्मचारी प्रमुख कर्मचारी आदि शामिल थे। सीडीटी रूफिना टोपो और सीडीटी प्रिंस राज गुप्ता एलीट एनसीसी ड्रिल टुकड़ी के लिए चुने गए। उन्होंने 26 जनवरी 2025 को राजपथ पथ पर मार्च किया। सीडीटी रफिना और प्रिंस दोनों ने विभिन्न सोशल मीडिया चैनलों को अपना साक्षात्कार दिया।सीडीटी आर्यन गुप्ता और सीडीटी शागनिक मित्रा ने क्रमशः वरिष्ठ डिवीजन आर्मी बेस्ट कैडेट और सीनियर डिवीजन नेवी बेस्ट कैडेट के रूप में निदेशालय का प्रतिनिधित्व किया। दोनों निदेशालय की सांस्कृतिक टीम के हिस्सा थे। सीडीटी किशन उपाध्याय और सीडीटी आर्यन गुप्ता: एनसीसी गतिविधियों में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए एनसीसी पदक और बैटन से सम्मानित किया गया । आर्यन ने अपने असाधारण ब्रीफिंग कौशल के लिए सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ से सराहना का एक टोकन भी प्राप्त किया।सीडीटी कैप्टन एमडी शमसर खान को आरडीसी 2025 विशेष नौकायन अभियान के कमांडर के रूप में चुना गया। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज की एनसीसी टीम द्वारा दिल्ली में 26 जनवरी में भाग लिया जो कॉलेज के लिए गौरव की बात है।

भवानीपुर कॉलेज के विद्यार्थियों ने मनाई पिकनिक

कोलकाता । भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज के तीन सौ से अधिक विद्यार्थियों ने एक साथ पिकनिक मनाई। कोलकाता से 30 किमी दूर एक भव्य रिसोर्ट इबीजा में सभी विद्यार्थियों को शिक्षक और शिक्षिकाओं की निगरानी में बसों द्वारा ले जाया गया। रेक्टर और डीन प्रो दिलीप शाह, वाइस प्रिंसिपल प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी, डॉ वसुंधरा मिश्र, प्रो नीतिन चतुर्वेदी, प्रो समलीन आलम , प्रो दर्शना त्रिवेदी, प्रो राजा पॉल, प्रो इब्राहिम हुसैन, प्रो अथर जमाल, प्रो दुष्यंत चतुर्वेदी, कैप्टन आदित्य राज, डॉ अशोक बोस, प्रो वनीता शर्मा की देख रेख में छात्र छात्राओं ने पिकनिक का आनंद लिया।विद्यार्थियों के लिए बोटिंग, साइकिलिंग, आर्चरी, इनडोर गेम, टेनिस बेडमिंटन आदि अनेक खेल रहे। हाउसी भी खिलावाया गया।डी जे हॉल में इच्छुक विद्यार्थियों ने डांस किया। नाश्ता, दोपहर का भोजन और शाम की चाय और पकौड़े का भरपूर आनंद लिया गया। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि कॉलेज से छह बसों में सभी विद्यार्थी और शिक्षक शिक्षिकाएं साथ में गए।

एनआईपी एनजीओ व रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट 3291 ने मनाई ब्रेल की 200वीं वर्षगांठ

ब्रेल प्रतियोगिता का किया आयोजन

कोलकाता । ब्रेल की 200वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में एनआईपी – नेत्रहीनों और दिव्यांगों के लिए शिक्षा और सांस्कृतिक केंद्र और रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट 3291 के अधिकारियों के सहयोग से नेत्रहीनों और दिव्यांगों के लिए ब्रेल प्रतियोगिता का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम कोलकाता केंद्र में आयोजित किया गया था, जिसमें लुई ब्रेल की विरासत और उनकी परिवर्तनकारी प्रणाली का जश्न मनाया गया, जो दुनिया भर में दृष्टिहीन समुदाय को सशक्त बनाती है। इस कार्यक्रम में समाज की कई प्रतिष्ठित हस्तियों की उपस्थिति रही, जिसमें रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट 3291 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉ. कृष्णेंदु गुप्ता, अमर मित्रा, कल्याण सेन बरत, समीर ऐच, अतिन बसाक, देबप्रतिम दासगुप्ता (ताजू), शाम खापा और तापसी बावलानी प्रमुख थे एनआईपी के सचिव देबज्योति रॉय ने इस आयोजन के बारे में अपनी खुशी व्यक्त करते हुए कहा, “ब्रेल प्रतियोगिता नेत्रहीन और दिव्यांगों में मौजूद विशेष क्षमताओं का जश्न मनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह उन्हें समाज में अपने अंदर छिपी प्रतिभा को पेश करने का अवसर प्रदान करता है और सभी के लिए समानता, स्वतंत्रता और समावेश के संदेश को पुष्ट करता है। रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट 3291 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉ. कृष्णेंदु गुप्ता ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए समान अवसर बनाने में ब्रेल के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट 3291 की ओर से दिव्यांग लोगों को सशक्त बनाने वाली पहलों का समर्थन करने पर हमें बेहद गर्व हैं। ब्रेल प्रतियोगिता स्वतंत्रता और कौशल विकास को बढ़ावा देने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, हम ऐसे प्रयासों के लिए अपना समर्थन जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।” यह आयोजन और प्रतियोगिता लुई ब्रेल की विरासत को एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि थी, जिसकी प्रणाली नेत्रहीन समुदाय को शिक्षा, साहित्य और सामाजिक भागीदारी तक पहुँचने में सक्षम बनाने में सहायक रही है। कार्यक्रम के दौरान ब्रेल के इतिहास को भी सबके बीच साझा किया गया, जो 1800 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, जब इसे चार्ल्स बार्बियर की नाइट राइटिंग प्रणाली से लुई ब्रेल द्वारा संशोधित किया गया था, जो इस क्रांतिकारी कोड की अविश्वसनीय यात्रा का मार्ग प्रशस्त करता है।

महाशिवरात्रि पर बनाएं सिंघाड़े के आटे से आसान व्यंजन

सिंघाड़े के आटे का हलवा
सामग्री- 1 कप सिंघाड़े का आटा, 1/2 कप घी, 1 कप चीनी (या स्वादानुसार), 2 कप पानी, इलायची पाउडर (स्वादानुसार, बादाम और काजू (गार्निश के लिए)
विधि-एक कड़ाही में घी गर्म करें और उसमें सिंघाड़े का आटा डालें। आटे को धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए भूनें जब तक कि इसकी सुगंध न आने लगे। अलग से एक पैन में पानी और चीनी को उबालें ताकि चाशनी तैयार हो जाए। अब आटे में यह चाशनी धीरे-धीरे डालें और लगातार चलाएं ताकि गांठ न बने। इलायची पाउडर डालें और अच्छी तरह मिलाएं। हलवा गाढ़ा होने पर गैस बंद कर दें और इसे बादाम और काजू से गार्निश करके परोसें।

सिंघाड़े के आटे की पूरी
सामग्री-1 कप सिंघाड़े का आटा, 2 मध्यम आलू (उबले हुए और मसले हुए), हरी मिर्च (बारीक कटी हुई), अदरक (बारीक कटा हुआ), सेंधा नमक (स्वादानुसार), तेल (तलने के लिए)
विधि– एक बड़े कटोरे में सिंघाड़े का आटा, मसले हुए आलू, हरी मिर्च, अदरक और सेंधा नमक डालें। सभी सामग्री को अच्छी तरह मिलाएं और थोड़ा पानी डालकर नरम आटा गूंथ लें। आटे से छोटे-छोटे गोले बनाएं और उन्हें पूरी की तरह बेल लें। एक कड़ाही में तेल गर्म करें और पूरियों को सुनहरा होने तक तलें। गर्मागर्म पूरियों को धनिया चटनी या दही के साथ परोसें।