Friday, October 17, 2025
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जीएसटी सुधारों से त्योहारी सीजन में टूटा 10 साल की बिक्री का रिकॉर्ड

नयी दिल्ली । अगली पीढ़ी के जीएसटी सुधारों का अर्थव्यवस्था पर मजबूत प्रभाव दिखने लगा है और इससे चालू त्योहारी सीजन में रिकॉर्ड बिक्री देखने को मिली है। यह जानकारी एक्सपर्ट्स की ओर से रविवार को दी गई। अर्थशास्त्री विनोद रावल ने कहा कि नए जीएसटी सुधार के लाभ जमीनी स्तर पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने आईएएनएस से कहा, “त्योहारों सीजन शुरू हो चुका है। नवरात्रि के दिनों में आमतौर पर 45 प्रतिशत त्योहारी बिक्री होती है, इस बार पिछले 10 सालों का रिकॉर्ड टूट गया है।” रावल ने कहा, “मारुति ने 1,65,000 कारें डिलीवर की हैं, महिंद्रा की बिक्री पिछले साल की तुलना में 60 प्रतिशत बढ़ी है, हुंडई ने एसयूवी सेगमेंट में 72 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल की है और टाटा ने 50,000 वाहन बेचे हैं। उन्होंने आगे कहा कि जीएसटी का उद्देश्य “एक राष्ट्र, एक कर” था और नए जीएसटी सुधार ने सेस को समाप्त करके सिस्टम को सरल बना दिया है। निसान इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के पूर्व प्रबंध निदेशक अरुण मल्होत्रा ​​ने कहा कि जीएसटी सुधार ने ऑटोमोबाइल उद्योग को काफी बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा, “95 प्रतिशत वाहनों की कीमतों में 8-10 प्रतिशत की गिरावट आई है। पहली नवरात्रि पर त्योहारी सीजन की शुरुआत के बाद से, उद्योग में मांग में तेज वृद्धि देखी गई है, जो कम कीमतों और चल रहे त्योहारी ऑफर्स के कारण है।” अन्य विशेषज्ञों का मानना ​​है कि अगली पीढ़ी के जीएसटी सुधारों ने न केवल कर संरचना को सरल बनाया है, बल्कि उपभोक्ता विश्वास को भी मजबूत किया है, जिससे एक मजबूत त्योहारी सीजन का आधार तैयार हुआ है।

बिहार को मिलीं ६२ हजार करोड़ रुपये की युवा-केंद्रित योजनाएं

नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को ६२ हजार करोड़ रुपये से अधिक की विभिन्न युवा-केंद्रित योजनाओं का शुभारंभ करते हुए कहा कि एनडीए सरकार का संकल्प है कि अब बिहार का युवा अपने ही राज्य में सम्मानजनक रोजगार पाएगा और पलायन का दौर समाप्त होगा। उन्होंने कहा कि कभी शिक्षा और रोजगार के अभाव में लाखों युवाओं को बिहार छोड़कर दूसरे राज्यों की ओर जाना पड़ा था लेकिन आज राज्य विकास के नए युग में प्रवेश कर चुका है। प्रधानमंत्री ने यह बातें यहां विज्ञान भवन में आयोजित राष्ट्रीय कौशल दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहीं। इस अवसर पर उन्होंने देशभर के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) के ४६ टॉपर छात्रों को सम्मानित किया। मोदी ने कहा कि यह समारोह भारत में कौशल विकास को नई प्रतिष्ठा देने का प्रतीक है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर प्रधानमंत्री कौशल और रोजगार परिवर्तन (पीएम-सेतु) योजना की शुरुआत की, जिसके तहत ६० हजार करोड़ रुपये के निवेश से देशभर के १,००० आईटीआई को हब-एंड-स्पोक मॉडल पर अपग्रेड किया जाएगा। इस मॉडल में २०० हब आईटीआई और ८०० स्पोक आईटीआई शामिल होंगे। इनके माध्यम से आधुनिक बुनियादी ढांचा, डिजिटल लर्निंग सिस्टम और इनक्यूबेशन सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। मोदी ने कहा, च्च्पीएम-सेतु भारत के युवाओं को विश्व की स्किल डिमांड से जोड़ेगा।ज्ज् उन्होंने बताया कि वर्तमान में देश के आईटीआई में १७० ट्रेड में प्रशिक्षण दिया जा रहा है और पिछले ११ वर्षों में डेढ़ करोड़ से अधिक युवाओं को स्किल ट्रेनिंग मिल चुकी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि २०१४ तक देश में १०,००० आईटीआई थीं, जबकि पिछले एक दशक में ५,००० और स्थापित की गई हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में बिहार का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि बिहार की युवा आबादी देश की शक्ति है। प्रधानमंत्री ने बिहार के लिए कई नई योजनाओं और परियोजनाओं का शुभारंभ किया, जिनमें मुख्यमंत्री निश्चय स्वयं सहायता भत्ता योजना और बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना शामिल हैं। इन योजनाओं के तहत हर साल पांच लाख स्नातक युवाओं को दो साल तक एक हजार मासिक भत्ता और मुफ्त कौशल प्रशिक्षण मिलेगा, जबकि क्रेडिट कार्ड योजना में छात्रों को ४ लाख रुपये तक का ब्याज मुक्त शिक्षा ऋण प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने बिहार युवा आयोग और जन नायक कर्पूरी ठाकुर कौशल विश्वविद्यालय का भी उद्घाटन किया। विश्वविद्यालय उद्योग-उन्मुख पाठ्यक्रमों के माध्यम से वैश्विक स्तर का कुशल कार्यबल तैयार करेगा। उन्होंने पीएम-उषा (प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान) के तहत बिहार के चार विश्वविद्यालयों- पटना विश्वविद्यालय, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय (मधेपुरा), जयप्रकाश विश्वविद्यालय (छपरा) और नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय (पटना)- में नई शैक्षणिक और अनुसंधान सुविधाओं की आधारशिला भी रखी। प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम में बिहार सरकार के ४,००० से अधिक नवनियुक्त उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र वितरित किए, साथ ही कक्षा ९ और १० के २५ लाख छात्रों को ४५० करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति का प्रत्यक्ष लाभ भी हस्तांतरित किया।

 

 

आखिर कहां चले गये भोजपुर के 38 हजार मतदाता?

– थर्ड जेंडर के 72 मतदाता लापता
-एसआईआर के बाद 1.41 लाख कम हुए वोटर
-सबसे ज्यादा मतदाता शाहपुर और अगिआंव में घटे
आरा(भोजपुर)। भोजपुर जिले में विशेष मतदाता पुनरीक्षण अभियान का असर 30 सितंबर को की गई, अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन में साफ दिख रहा है। पिछले पांच वर्ष पहले वर्ष 2020 में हुए विधानसभा चुनाव और इस बार के लिए होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या लगभग 38 हजार कम हो गई है। यह डाटा अपने आप में बड़ा अंतर है। एक तरफ जहां पांच वर्षों में लगभग एक लाख मतदाताओं की संख्या बढ़नी चाहिए थी, वहीं दूसरी तरफ बढ़ने के बजाए लगभग 38 हजार संख्या कम हो गई है। 30 सितंबर को प्रकाशित अंतिम मतदाता सूची के अनुसार भोजपुर जिले में इस बार सभी विधानसभा को मिलाकर कूल मतदाताओं की संख्या 20,80,605 रह गई है। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान वर्ष 2020 में मतदाताओं की संख्या 21, 18, 504 थी। पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में 37,899 मतदाता कम मतदान करेंगे। सातों विधानसभा के डाटा पर नजर डाले तो सबसे ज्यादा मतदाताओं की संख्या शाहपुर विधानसभा में 12,108 उसके बाद अगिआंव विधानसभा में 5891, उसके बाद तरारी विधानसभा में 5110, उसके बाद बड़हरा विधानसभा में 4843, आरा विधानसभा में 4116, जगदीशपुर विधानसभा में 3488 और सबसे कम संदेश विधानसभा में महज 2343 मतदाता घटे हैं। जिले में विशेष मतदाता पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान शुरु होने के पहले कुल मतदाताओं की संख्या 22, 21,986 थी। 30 सितंबर को प्रकाशित मतदाता सूची के अनुसार कुल मतदाताओं की संख्या घटते हुए 20,80,605 हो गई है। इस प्रकार पूर्व के मतदाता सूची के अनुसार इस बार 1,41,381 मतदाताओं की संख्या घट गई है। इसके पहले एक अगस्त को प्रकाशित प्रारूप मतदाता सूची का प्रकाशन हुआ था उस समय लगभग 1.90 लाख मतदाताओं का नाम कटा था। अब उसमें कुछ कमी आते हुए वह संख्या 1,41,381 पर घटकर रह गई है। भोजपुर जिले में थर्ड जेंडर के 72 मतदाताओं का नाम इसबार की सूची से कट गया है। ये सभी मतदाता कहां चले गए इसका कोई अता पता नहीं है। वर्ष 2020 के चुनाव में इनकी कुल संख्या 100 थी। इस बार के चुनाव में घटते हुए मात्र इनकी संख्या 28 रह गई है। इस प्रकार 72 थर्ड जेंडर वोटर का नाम कटा है।

शुभजिता स्वदेशी : 1929 में बनी बोरोलीन, आजादी पर मुफ्त बांटी गयी 1,00,000 ट्यूब

ट्रेडमार्क के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल में बोरोलीन बनाने वाली कंपनी जीडी फार्मास्यूटिकल्स के पक्ष में फैसला सुनाया था। ‘खुशबूदार एंटीसेप्टिक क्रीम बोरोलीन…’ 90 के दशक में टीवी पर गूंजने वाली इस जिंगल को भला कौन भुला सकता है। यह एक ऐसी क्रीम है जो केवल एक ब्यूटी प्रॉडक्ट के तौर पर ही नहीं जानी जाती बल्कि अक्सर फर्स्ट एड बॉक्स में भी नजर आ जाती है। अंग्रेजी शासन में विदेशी उत्पादों को टक्कर देने के लिए स्वदेशी मूवमेंट के तहत जन्मी इस क्रीम की भारतीयों के दिल में एक अलग जगह है।बोरोलीन को अस्तित्व में लाने का श्रेय जाता है कोलकाता के गौर मोहन गुप्ता को। उन्होंने देश में चल रहे स्वदेशी आंदोलन के दौर में 1929 में लोगों के लिए एक ऐसी एंटीसेप्टिक क्रीम बनाने का फैसला किया जो हर भारतीय की पहुंच में हो। उस समय देश में महंगी विदेशी क्रीम क राज था। गौर मोहन खुद विदेशी सामान का आयात करते थे लेकिन फिर स्वदेशी मूवमेंट से जुड़ गए। उन्हें लगा कि देश की मदद करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि इसे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जाए। इसी सोच के साथ उन्होंने ऐसे प्रॉडक्ट्स बनाने का फैसला किया, जो क्वालिटी में विदेशी उत्पादों को टक्कर दें। लेकिन उनकी कीमत आम भारतीय की जेब के मुताबिक हो।मगर यह सब आसान नहीं था। कई लोगों ने उन्हें हतोत्साहित किया लेकिन गौर मोहन भी अपनी धुन के पक्के थे। उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखी। भारत को आजाद और आत्मनिर्भर बनाने का सपना दिल में रखते हुए उन्होंने अपने घर पर स्वदेशी उत्पाद बनाना शुरू किया। इन्हीं में से एक थी हरे रंग के ट्यूब और गोल काले ढक्कन वाली बोरोलीन क्रीम। उन्होंने इसे 1929 में लॉन्च किया। जल्दी ही इसने भारतीयों के दिल में जगह बना ली। बोरोलीन बनाने वाली कंपनी का नाम जीडी फार्मास्यूटिकल्स है। इसे बोरोलीन पीपुल के नाम से भी जाना जाता है। बोरोलीन दो शब्दों से मिलकर बना है। बोरो शब्द बोरिक पाउडर से लिया गया है जबकि ओलीन लैटिन शब्द ओलियन से लिया गया है।अमूमन कंपनियां अपने प्रॉडक्ट के फॉर्मूले का राज नहीं खोलती हैं लेकिन स्वदेशी आंदोलन से उपजी बोरोलीन ने कभी ऐसा नहीं किया। शायद यही वजह है कि उसे ट्रेडमार्क की समस्या का सामना करना पड़ा। जीडी फार्मास्यूटिकल्स के मुताबिक बोरोलीन एंटीसेप्टिक क्रीम में एंटीसेप्टिक बोरिक एसिड, एस्ट्रिंजेंट, सनस्क्रीन जिंक ऑक्साइड और एमोलिएंट लैनोलिन का इस्तेमाल होता है। बोरोलीन का उपयोग कटे-फटे होंठ, खुरदरी त्वचा और संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इस क्रीम ने देशभर के लोगों पर जादू कर दिया था। बोरोलीन हर तरह की त्वचा को सूट करने वाली क्रीम है।साल गुजरने का साथ ही बोरोलीन की लोकप्रियता भी बढ़ती गई। यह एक तरह से देश की आर्थिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गई थी। बोरोलीन के बारे में कई दिलचस्प किस्से भी मशहूर हैं। कहा जाता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और मशहूर अभिनेता राजकुमार भी इसे यूज करते थे। 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो जीडी फार्मास्युटिकल्स ने इस खुशी के मौके पर आम जनता को 1,00,000 से भी ज्यादा बोरोलीन ट्यूब मुफ्त में बांटी थीं। साथ ही कंपनी ने उस दिन कलकत्ता के दो अखबारों में इसका विज्ञापन भी दिया था। कई साल तक कंपनी केवल बोरोलीन के सहारे रही। लेकिन 90 के दशक के आखिर में उसने एलीन हेयर ऑयल लॉन्च किया। साल 2003 में कंपनी ने सुथॉल नाम का एंटिसेप्टिक लिक्विड लॉन्च किया। गर्मी के मौसम में सुथॉल की सेल बढ़ती है जबकि बोरोलीन की बिक्री सर्दियों में ज्यादा होती है। आज कंपनी के पोर्टफोलियो में बोरोलीन, बीओ लिप्स, हैंड वॉश, हैंड सैनेटाइजर, एलीन, सुथॉल, पेनोरब और नोप्रिक्स जैसे कई प्रॉडक्ट्स हैं। कंपनी के देश में दो प्लांट हैं। बोरोलीन ट्रेडमार्क भारत के अलावा ओमान, तुर्की, बांग्लादेश और यूएई में भी रजिस्टर्ड है।गौर मोहन दत्ता के पोते देबाशीष दत्ता ने बताया कि इसकी लोकप्रियता के पीछे का मुख्य कारण स्थिर गति के साथ दक्षता और उत्पाद की गुणवत्ता है। देबाशीष दत्ता कंपनी के वर्तमान प्रबंध निदेशक यानी मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

स्वाद में भरा हो विजयदशमी व दशहरा का आनंद

गुड़ का मालपुआ – बरतन में आटा, गुड़, इलायची पाउडर और सौंफ एक साथ मिलाएं। फिर धीरे-धीरे दूध डालते हुए बैटर के स्मूद होने तक फेंटें। कड़ाही में तेल या घी गरम करें। इसके बाद एक गहरे चम्मच से बैटर को इस गर्म तेल में डालते जाएं। मालपुआ को दोनों तरफ से सुनहरा भूरा होने तक पकाएं। ध्यान रहे अच्छे मालपुए की पहचान है कि वो बाहर से कुरकुरा और अंदर से नरम होता है। आप इसे ऐसे भी सर्व कर सकते हैं या फिर चाशनी में डालकर भी थोड़ा और टेस्टी बना सकते हैं। सर्व करने से पहले ऊपर से कटे हुए मेवे डालें।

 सेब की खीर-  सेब को छीलकर कद्दूकस कर लें। पैन में घी गरम करें। इसमें कसा हुआ सेब डालकर भून लें। दूसरे पैन में दूध उबलने के लिए रख दें। इसमें कंडेंस्ड मिल्क मिलाएं फिर इसमें फ्राई किया हुआ सेब मिलाएं। थोड़ी देर और पकाएं। आंच से उतार कर इलायची पाउडर और बादाम की कतरन मिलाएं। इसे चाहें, तो हल्का ठंडा करके परोसें या कुछ देर फ्रिज में रखने के बाद परोसें।

 मूंग व उड़द दाल की कचौड़ी – पैन में एक बड़ा चम्मच घी गरम करें। इसमें सौंफ, जीरा, हींग डालकर चटकाएं। इसमें हल्दी, मिर्च, धनिया, गरम मसाला, अमचूर, सौंठ और नमक मिलाएं। बेसन डालकर कुछ देर भूनें। अब इसमें पहले से भिगोई हुई उड्द-मूंग को पीसकर उसका पेस्ट बनाकर डालना है। दाल को अच्छी तरह भूनें जिससे इसका कच्चापन चला जाए। कचौड़ियों का आटा तैयार कर लें। इसके लिए आटे में नमक डालें और घी से मोयन लगाएं। पानी की मदद से नरम आटा गूंथ लें। अब भूनी दाल को आटे की लोइयां बनाकर इसमें भरें। हाथों से हल्का दबाएं और कड़ाही में तेल गरम करके तलते जाएं।

 

जानिए विजयदशमी व दशहरा में अन्तर

प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्रि के खत्म होते ही दशहरे का पर्व मनाया जाता है। तो वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म के ग्रंथों व शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि इस दिन श्री राम ने रावण का वध कर उस पर विजय प्राप्त की थी। जिस कारण देश के कोने-कोने में लोग रावण दहन कर बुराई पर अच्छाई की विजय का झंडा लहराते हैं। इसके अलावा बता दें चूंकि इस शारदीय नवरात्रि का पर्व समाप्त होता है, इसलिए दशहरे के दिन देवी दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। कुछ लोग इसे दशहरे के नाम से जानते हैं तो कुछ लोग दशहरा कहते हैं। मगर इस दिन को 2 नामों से क्यो जाना जाता है। और क्या इनमें कोई फर्क है, क्या इन नामों से कोई अन्य मान्यता जुड़ी है। अगर आपके मन में भी ये सवाल आ रहे हैं, तो चलिए हम आपको बताते हैं कि दशहरा और विजयदशमी में क्या कोई अंतर है या नहीं।प्राचीन काल की मान्यताओं की मानें तो प्राचीन काल से अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को विजयदशमी का उत्सव मनाया जा रहा है। तो वहीं जब श्री राम ने इसी दिन लंकापति रावण का वध कर दिया तो इस दिन को दशहरा के नाम से जाना जाने लगा। यानि इससे ये बात स्वष्ट होती है कि विजयदशमी का पर्व रावण के वध से पहले से मनाया जा रहा है। तो आइए जानते हैं इससे जुड़ी मान्यताएं-
धार्मिक मान्याताएं कि देवी दुर्गा ने इस दिन यानि विजयदशमी को माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। कथाओं के अनुसार महिषासुर रंभासुर का पुत्र था, जो अत्यंत शक्तिशाली था। जिसने कठोर तक करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर उसे कहा- ‘हे वत्स! एक मृत्यु को छोड़कर, सबकुछ मांगों। जिसके बाद महिषासुर ने बहुत सोच विचार कर कहा- ‘ठीक है प्रभो। आप मुझे ये वरदान दें कि किसी देवता, असुर और मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। केवल स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित हो। ब्रह्माजी ‘एवमस्तु’ कहकर अंतर्ध्यान हो गए। ब्रह्मा जी से ये वर प्राप्त करने के बाद महिषासुर ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया और त्रिलोकाधिपति बन गया। उसके अत्याचारों से परेशान होकर तब सभी देवताओं ने देवी भगवती महाशक्ति की आराधना की।कहा जाता है तब समस्त देवताओं के शरीर से एक दिव्य तेज निकलकर परम सुंदरी स्त्री प्रकट हुई थी।जिसके बाद हिमवान ने देवी भगवती को सवारी के लिए सिंह दिया, तथा अन्य सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किए। भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करवाने का आश्वासन दिया। कथाओं के अनुसार देवी मां ने पूरे 9 दिन तक लगातार महिषासुर से युद्ध करने के बाद 10वें दिन उसका वध कर दिया। मान्यता है कि इसी उपलक्ष्य में विजयादशमी का उत्सव मनाया जाता है। बता दें कथाओं में वर्णन मिलता है ति महिषासुर एक असुर अर्थात दैत्य था, राक्षस नहीं। इसके अलावा विजयदशमी के दिन ही प्रभु श्रीराम और रावण का युद्ध कई दिनों तक चलने के बाद समाप्त हुआ था। श्री राम ने रावण का वध करके देवी सीता को उसके चंगुल से छुड़ाया था। जिसके उपलक्ष्य में दशहरे का पर्व मनाया जाता है। बता दें रावण का वध दशमी के दिन किया गया था, रावण एक राक्षस था, असुर नहीं था। तो वहीं कुछ मान्यताएं ये भी हैं कि इसी दिन अर्जुन ने कौरव सेना के लाखों सैनिकों को मारकर कौरवों को पराजित किया था, जिसे अधर्म पर धर्म की जीत माना गया था।

(साभार – पंजाब केसरी)

बंगाल की आत्मा है दुर्गापूजा, इसके साथ खिलवाड़ स्वीकार नहीं

दुर्गापूजा ऐसा अवसर है जो हमें रिचार्ज करता है। बचपन से ही भव्य मंडप, रंग-बिरंगी रोशनी को देखकर मुग्ध होते रहे हैं हम। तब इतनी तामझाम नहीं थी। हालांकि तुष्टीकरण तब भी था मगर आज के बंगाल में जिस बेशर्मी के साथ यह चरम सीमा पर पहुंच गया है, तब ऐसा नहीं था। वामपंथी पार्टियों के स्टॉल देखे मगर किसी को काबा और मदीना को याद करते नहीं देखा। दुर्भाग्यवश सत्ता पक्ष एक वर्ग को संतुष्ट करने के चक्कर न सिर्फ डेमोग्राफी बदलने के चक्कर में है बल्कि रह -रहकर अपनी वफादारी को जिंदा रखते हुए तथाकथित वंचित व अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी वफादारी तक पहुंचाता रहता है। बंगाल ऐसे भीषण समय से गुजर रहा है जिसकी कल्पना भी हममें से किसी ने नहीं की थी। सत्ता में आते ही तृणमूल सरकार ने जिस तरह प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष तरीके से दबाया, उसने भाजपा को एक जमीन दे दी और आज न चाहते हुए भी बंगाल के लोग भाजपा की शरण में जाते दिख रहे हैं। पहले तो पितृपक्ष में माता दुर्गा के मंडप का उद्घाटन करना और जिलों में उत्सव में बाधा पहुंचाना खलता था। इसके बाद कार्निवल के नाम पर पर्यटकों को लुभाने के लिए मां दुर्गा की प्रतिमाओं का रैम्प शो सजाना हम सबकी श्रद्धा का सरासर अपमान रहा। इस राज्य में महिलाएं असुरक्षित महसूस करती रही हैं और लक्खी भंडार के लालच में लक्ष्मी जैसी कन्याओं के अपमान को लेकर भी मौन है..क्या यही सिखाती हैं मां दुर्गा ? बारिश में हिजाब पहनकर मंडप में जाना क्या साबित करता है? उस पर पंडाल में खड़े होकर तृणमूल नेत्री के विधायक मदन मित्रा का मेरे दिल में काबा और मदीना करना क्या हिन्दुओं का अपमान करनी नहीं है? मोहम्मद अली पार्क कोलकाता की प्रतिष्ठित पूजा है मगर श्रद्धालुओं को मां से दूर करने के लिए पुलिस की सहायता लेकर मार्ग ऐसा बदल दिया गया कि लोग चाहें तो भी मंडप में चलकर जाने की हिम्मत नहीं होती। पंडाल को श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया गया और उस पर काला कपड़ा लगाकर ढक दिया गया। यहां गौर करने वाली बात यह है कि इस पूजा का उद्घाटन खुद तृणमूल विधायक ने किया था, तब पुलिस को अव्यवस्था नहीं दिखायी दी, हद है। क्या हम यह समझें कि पूजा और जय बांग्ला के बहाने हिन्दीभाषिय़ों को टारगेट किया जा रहा है क्योंकि आसपास के इलाके मुस्लिम बहुल इलाके हैं तो क्या कोलकाता को मुर्शिदाबाद बनाने का प्रयास है यह ? याद रहे कि लोग परिवार के साथ चलते हैं जिनमें छोटे बच्चे होते हैं। अभी ऑपरेशन सिंदूर को लेकर गजब की ईर्ष्या है जबकि लोग संतोष मित्रा स्क्वायर में उमड़ रहे हैं और इस पूजा को कई बार नोटिस भेजी जा चुकी है। यहां तक कि लाइट और साउंड वेंडर को भी नोटिस थमा दी गयी। इसके पहले सागर में इसी थीम पर बने पंडाल को खोलने पर मजबूर किया गया तो सरकार साबित क्या करना चाहती है, उसे तय करना चाहिए। प्रतिष्ठित संतोष मित्रा स्क्वायर दुर्गा पूजा पंडाल को लेकर राजनीतिक विवाद गहराता जा रहा है। इस पंडाल के आयोजक और कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के भाजपा पार्षद सजल घोष ने कोलकाता पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि जानबूझकर यहां आने वाले दर्शकों को रोका जा रहा है। उन्होंने इसे सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का “राजनीतिक प्रतिशोध” करार दिया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को इस पंडाल का उद्घाटन किया था। घोष का दावा है कि पुलिस ने सियालदह स्टेशन परिसर और उसके चारों ओर बैरिकेडिंग कर दी है, इस वजह से श्रद्धालु और आगंतुक पंडाल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। उन्होंने कहा, “पूरे इलाके को घेर लिया गया है। न लोग आसानी से पंडाल तक आ सकते हैं और न ही गाड़ियां अंदर प्रवेश कर पा रही हैं। केवल वही लोग पंडाल तक पहुंच रहे हैं जो किसी तरह बैरिकेड तोड़कर आ रहे हैं।

संतोष मित्रा स्क्वायर पूजा समिति उन शुरुआती समितियों में रही है जिसने राज्य सरकार की ओर से दी जाने वाली दुर्गा पूजा ग्रांट को ठुकरा दिया था। इस बार समिति ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को थीम बनाया है। इस थीम में केंद्र सरकार की आतंकवाद-रोधी उपलब्धियों और पाकिस्तान को करारा जवाब देने वाले अभियानों को प्रदर्शित किया गया है। आयोजकों का कहना है कि जनता से इस थीम को व्यापक समर्थन और सराहना मिल रही है। सजल घोष ने आरोप लगाया कि यही वजह है कि तृणमूल कांग्रेस इस पूजा को टारगेट कर रही है। उन्होंने कहा, “पंडाल में जो थीम लगाई गई है, वह केंद्र सरकार की उपलब्धियों और सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख को दर्शाती है। इसे जनता की भारी सराहना मिल रही है। संतोष मित्रा स्क्वायर का इतिहास भी उल्लेखनीय है। पिछले वर्ष 2023 में इस पंडाल को राम मंदिर थीम पर सजाया गया था, जिसे उद्घाटन करने स्वयं गृह मंत्री अमित शाह पहुंचे थे। उस समय भी इस पंडाल ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं और भाजपा नेताओं ने इसे सांस्कृतिक व राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण करार दिया था। इस बार भी अमित शाह ने पंडाल का उद्घाटन करते हुए आयोजकों की सराहना की थी, लेकिन उद्घाटन के तुरंत बाद अब राजनीतिक टकराव ने इसे फिर से केंद्र बिंदु बना दिया है। आयोजकों का कहना है कि दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ रही है, लेकिन पुलिस की बैरिकेडिंग और प्रतिबंधों के चलते लोग पंडाल तक पहुंच नहीं पा रहे। इससे माहौल तनावपूर्ण हो गया है और विवाद और गहराता जा रहा है। मजे की बात यह है कि इसी थीम पर मध्य कोलकाता में एक और पंडाल बनाया गया है मगर उसे लेकर कोई दिक्कत नहीं है। यंग बॉयज क्लब दुर्गा पूजा कमेटी ने अपने 56वें ​​वर्ष में “ऑपरेशन सिंदूर” थीम पर बनाए गए भव्य मंडप का अनावरण कर भारत के सशस्त्र बलों के साहस और बलिदान को नमन करते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। इस वर्ष दुर्गोत्सव के आयोजन में भक्ति और राष्ट्रीय गौरव की गहरी भावना का अद्भुत मिश्रण किया गया है, जो हज़ारों लोगों को तारा चंद दत्ता स्ट्रीट पर जीवंत पंडाल की ओर आकर्षित कर रहा है, यह आकर्षक मंडप सेंट्रल एवेन्यू को रवींद्र सरणी से जोड़ने वाला एक ऐतिहासिक स्थल पर बनाया गया है। कलाकार देबशंकर महेश द्वारा डिज़ाइन किए गए इस मनमोहक पंडाल में कई आकर्षक कलाकृतियाँ हैं, जो थीम को जीवंत बनाती हैं। इस मंडप में दर्शकों को भारतीय सेना के टैंकों और मिसाइलों की जीवंत प्रतिकृतियाँ देखने को मिलेंगी। इस थीम का मुख्य आकर्षण भारतीय सेना का सिर गौरव से ऊंचा करनेवाली देश की वो दो वीर बेटियां, महिला अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह का सम्मान हैं। उनकी प्रतिकृतियाँ सेना में महिलाओं की शक्ति और नेतृत्व के सशक्त प्रतीक के रूप में खड़ी हैं।
सरकार कोई भी हो, उसे समझना होगा कि नवरात्रि हो या दुर्गा पूजा वह सिर्फ उत्सव नहीं, बंगाल की आत्मा है। श्रद्धालु मां के लिए बच्चों के समान होते हैं। सरकारें आती -जाती रहेंगी मगर जो शाश्वत है, वह माता आदिशक्ति हैं और जब भी अति होगी, उसका अंत होकर रहता है। भविष्य का पता नहीं मगर लग रहा है कि अति अपने अंत को खुद ही निमंत्रण दे रही है।

नवरात्रि पर बनाएं विशेष व्यंजन

सामग्री – 1 लीटर गाढ़ा दूध, 1-2 कप सीताफल की प्यूरी, 1 छोटा चम्मच इलायची पाउडर, बादाम और सूखे मेवे इच्छानुसार (कटे हुए), 1 कप शक्कर

विधि -सबसे पहले सीताफल लें। फिर इसे काटकर बीज निकालें और साफ कर लें। इसके बाद आप इससे सारा गूदा निकालकर अच्छी तरह से धो लें। फिर आप एक पैन में दूध डालकर तेज आंच पर उबाल लें।  इसके बाद जब दूध में एक उबाल आ जाए तो गैस की आंच कम कर दें।  फिर इसमें शक्कर, केसर और सीताफल डालें।  इसके बाद इसे लगातार चलाते हुए करीब 15 से 20 मिनट तक पकाएं।  फिर गैस बंद करके दूध पूरी तरह से ठंडा होने के लिए फ्रिज में रख दें। सीताफल रबड़ी बनकर तैयार है। फिर कटे हुए ड्राई फ्रूट्स से गार्निश करके ठंडी-ठंडी सर्व करें।

 

मखाना टिक्की

सामग्री – 2 कप मखाना, 2 मध्यम आकार के उबले हुए आलू , 2 टेबल स्पून सिंघाड़ा आटा या बेसन (नॉर्मल टिक्की के लिए),  2 हरी मिर्च (बारीक कटी हुई), 1 टी स्पून अदरक पेस्ट, 2 टेबल स्पून (बारीक कटी हुई) धनिया पत्ती , सेंधा नमक  स्वादानुसार (व्रत के लिए), सादा नमक – स्वादानुसार (नॉर्मल टिक्की के लिए), ½ टी स्पून काली मिर्च पाउडर, ½ टी स्पून भुना हुआ जीरा पाउडर,  1 टी स्पून नींबू का रस   टिक्की सेंकने के लिए घी या तेल

विधि – सबसे पहले एक पैन में मखाना हल्का भूनें और ठंडा होने पर मिक्सी में दरदरा पीस लें। फिर एक बड़े बर्तन में उबले आलू मैश करें। इसमें पिसा हुआ मखाना, सिंघाड़ा आटा, हरी मिर्च, अदरक पेस्ट, धनिया पत्ती, भुना जीरा पाउडर, नमक, काली मिर्च और नींबू का रस डालकर अच्छी तरह मिलाएं। तैयार मिश्रण से छोटे-छोटे गोल टिक्की आकार की लोइयां बना लें और हल्का चपटा करें।  एक तवे पर थोड़ा सा घी या तेल डालें और टिक्कियों को धीमी आंच पर सुनहरा और कुरकुरा होने तक सेकें।  मखाना टिक्की को धनिया पुदीना चटनी या दही के साथ गरमा-गरम परोसें।

भारत की वो 5 वीर हिंदू रानियां, जिनके नाम से कांपते थे मुगल और अंग्रेज

भारत की मिट्टी में ऐसी कई वीरांगनाओं ने जन्म लिया, जिन्होंने मुगल शासकों से लेकर ब्रिटिश हुकुमत तक की नींद हराम कर दी थी। जिन्हें गुलामी में जीने के बजाय मौत मंजूर थी। आज हम भारत की उन रानियों के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने पुर्तगालियों, मुगलों, ब्रिटिश शासन और फिर सामाजिक कुरीतियों का न सिर्फ डटकर सामना किया, बल्कि समय आने पर उन्हें खत्म करने का काम भी किया।

1. रानी अब्बक्का चौटा (1525–1570) –16वीं शताब्दी में रानी अब्बक्का चौटा उल्लाल (वर्तमान में कर्नाटक) की वो वीरांगना थीं, जिन्होंने पुर्तगालियों का काल कहा जाता था। तुलु नाडु की चौटा वंश की रानी अब्बक्का ने अपने छोटे से राज्य को एकजुट कर गुरिल्ला युद्ध की रणनीति बनाई थी। उस वक्त व्यापार पर पुर्तगालियों का कंट्रोल था। मनमाना कर वसूला जाता था जिसका रानी अब्बक्काटा चौटा ने जमकर विरोध किया। उन्होंने कई बार पुर्तगालियों के खिलाफ अपनी बहादुरी दिखाई। वीरता और स्वतंत्रता की भावना की वजह से उनका नाम भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानियों में गिना जाता है।

2. रानी ताराबाई भोंसले (1675-1761)-रानी ताराबाई भोंसले मराठा साम्राज्य की एक साहसी और रणनीतिक शासिका थीं। छत्रपति शिवाजी की पुत्रवधू रानी ताराबाई भोंसले को अक्सर ‘रैन्हा दोस मराठा’ या ‘मराठों की रानी’ के नाम से भी जाना जाता था। अपने पति राजाराम भोंसले की मृत्यु के बाद, उन्होंने अपने नाबालिग बेटे शिवाजी द्वितीय के नाम पर मराठा साम्राज्य का नेतृत्व किया। अपनी बुद्धिमानी और साहस से उन्होंने औरंगजेब जैसे शक्तिशाली शासक को भी परेशान कर दिया था। ताराबाई को मराठा इतिहास में एक नायिका के रूप में सम्मान दिया जाता है। उन्होंने 1700 में परिस्थितियों के कारण मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली थी, फिर भी अपने लोगों के लिए लड़ने में उन्होंने कभी ढिलाई नहीं बरती। अपने शासनकाल के दौरान, उन्होंने मुगलों की मानसिकता को गलत साबित कर दिया। एक महिला कुछ भी कर सकती थी। वह अपने दुश्मनों से लगातार सीखती रहती थी और उसकी चतुर रणनीतियों ने मराठा सेना को दक्षिणी कर्नाटक पर अपना शासन स्थापित करने में मदद की।

3. रानी अहिल्याबाई होल्कर (1725-1795)- अहिल्याबाई होल्कर का जन्म अहमदनगर के जामखेड के चोंडी गांव में हुआ था। उनके पिता ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया था, फिर भी वह हमेशा दूसरों के कल्याण की कामना करती थीं। एक राजघराने में विवाह और एक राजकुमार को जन्म देने के बावजूद, उन्होंने कुछ ही दशकों में अपने पति, ससुर और पुत्र को खो दिया था। इसलिए वे 11 दिसंबर 1767 को मराठा साम्राज्य की मालवा रियासत की रानी बनीं। अपने शासनकाल के दौरान, उन्होंने राजवंश की जमकर रक्षा की, आक्रमणों का खंडन किया और अपनी सैन्य शक्ति का विस्तार किया। अहिल्याबाई ने मंदिरों, धर्मशालाओं, कुओं और सड़कों का निर्माण करवाया, विशेष रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार। इसलिए उन्हें ‘देवी अहिल्या’ भी कहा गया।

4. रानी चेन्नम्मा (1778-1829)-कित्तूर (वर्तमान कर्नाटक) की वो वीर रानी थीं, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया। अपने पति और पुत्र के निधन के बाद, चेन्नम्मा ने वंश को आगे बढ़ाने के लिए एक उत्तराधिकारी गोद लेना था, या फिर उसे अंग्रेजों के हाथों खो देना था। उन्होंने पहला विकल्प चुना। 1824 में, उन्होंने शिवलिंगप्पा नाम के एक लड़के को गोद लिया, लेकिन इससे ईस्ट इंडिया कंपनी नाराज हो गई। ब्रिटिश हुकुमत को अस्वीकार करने पर रानी चेन्नम्मा और अंग्रेजों के बीच 1824 में युद्ध छिड़ गया। रानी चेन्नम्मा ने अपने राज्य कित्तूर का रियासत का दर्जा खोना नहीं चाहती थीं, इसलिए उन्होंने 1824 में अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठा लिए। अंग्रेजों ने 21 अक्टूबर 1824 को 20,000 सैनिकों और 400 तोपों से लैस होकर हमला कर दिया। हालांकि वह एक बार तो उनसे निपटने में कामयाब रहीं, लेकिन दूसरे प्रयास में असफल रहीं। अंग्रेजों ने उन्हें पकड़कर बैलहोंगल किले में आजीवन कारावास की सजा दी।

5. सेतु लक्ष्मी बाई (1895-1985)- सेतु लक्ष्मी बाई त्रावणकोर रियासत (वर्तमान केरल) की रानी थीं, जिन्होंने 1924 से 1931 तक नाबालिग महाराजा चिथिरा थिरुनाल के लिए रीजेंट के रूप में शासन किया। लोग उन्हें महिला अधिकारों की पैरवी करने वाली रानी मानते थे। वह महिलाओं के काम करने और आगे पढ़ाई करने को लेकर इतनी उत्साहित थीं कि उन्होंने एक प्रोत्साहन योजना बनाई थी। कॉलेज जाने वाली लड़कियां उनके महल में चाय के लिए उनके साथ शामिल हो सकती थीं। उनके शासन में खासतौर पर शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुधार हुए। उन्होंने दलितों को मंदिरों में प्रवेश का समर्थन किया, जो उस समय एक क्रांतिकारी कदम था। उन्होंने महिलाओं को आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया, उन्हें स्थानीय पदों से सरकारी पदों पर पदोन्नत किया, इस प्रकार यह सुनिश्चित किया कि सरकारी निर्णयों में उनकी समान भागीदारी हो। 1927 में, उन्होंने छात्राओं के लिए कानून की पढ़ाई खोल दी और त्रिवेंद्रम के महिला महाविद्यालय को इतिहास, प्राकृतिक विज्ञान, भाषा और गणित की कक्षाएं शुरू करने का आदेश भी दिया।

(साभार – नवभारत टाइम्स)

अगस्त्य संहिता में मिलता है विद्युत बैटरी का सूत्र

महर्षि अगस्त्य ने बिजली उत्पादन के साथ-साथ बिजली, बिजली के तार और बैटरी सेल का भी आविष्कार किया था। महर्षि अगस्त्य इतिहास में अपनी अपार क्षमताओं और मानव जाति के लिए योगदान के लिए जाने जाते हैं।  उनका सार 3,000 साल पुराने ग्रंथ ‘अगस्त्य संहिता’ में दर्ज है, जिसमें पतंग, गुब्बारे और हवाई जहाज, आयुर्वेद, ज्योतिष, मार्शल आर्ट और बिजली के कामकाज भी शामिल हैं। महर्षि अगस्त्य इतिहास में इलेक्ट्रिक सेल बनाने वाले पहले व्यक्ति हैं।अगस्त्य संहिता में बताया गया है कि विद्युत बैटरी या सेल का निर्माण कैसे किया जाता है, साथ ही बैटरी का उपयोग करके पानी को उसके घटक गैसों में कैसे ‘विभाजित’ किया जाता है। आज हम जिन आधुनिक बैटरियों का उपयोग करते हैं, वे वास्तव में अगस्त्य के विद्युत सिद्धांत का अनुसरण करती हैं।

आमतौर पर हम मानते हैं कि बिजली का आविष्कार थॉमस एडिसन ने किया था, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे ऋषियों ने दुनिया को सबसे पहले बिजली के बारे में बताया था।

बिजली का उदय सबसे पहले भारत में हुआ। बिजली पैदा करने की विधि महर्षि अगस्त्य ने दी है, और इसे आधुनिक विज्ञान ने भी स्वीकार किया है। महर्षि अगस्त्य ने ही सबसे पहले बिजली की उत्पत्ति की शुरुआत की थी, इसका विस्तृत विवरण ‘अगस्त्य संहिता’ में दिया गया है। उन्होंने बिजली पैदा करने की पूरी विधि या तकनीक बताई है, और कई लोगों ने विद्वानों के सामने इस विधि का उपयोग करके दिखाया है।

सप्त ऋषियों में से एक माने जाने वाले महर्षि अगस्त्य ऋषि एक वैदिक ऋषि थे। महर्षि अगस्त्य अयोध्या के राजा दशरथ के कुल गुरु महर्षि वशिष्ठ ऋषि के बड़े भाई थे।

उन्होंने ‘अगस्त्य संहिता’ की रचना की थी जिसकी चर्चा वेद, पुराण, वाल्मीकि रामायण, भगवद गीता आदि में की गई है। महर्षि अगस्त्य ने इस संहिता में प्रत्येक रहस्य का ज्ञान संग्रहित किया है।

रामायण में त्रेता युग में भगवान श्री राम के वनवास काल के दौरान महर्षि अगस्त्य ऋषि के आश्रम में श्री राम से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण में विस्तार से किया गया है।

महर्षि अगस्त्य द्वारा रचित ‘अगस्त्य संहिता’ नामक ग्रंथ की बहुत चर्चा होती है। इस संहिता की प्राचीनता पर शोध किया गया है और इसे सही पाया गया है। आश्चर्यजनक रूप से महर्षि अगस्त्य ने अगस्त्य संहिता में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्रों में लिखा है:

बिजली पैदा करने की विधि:

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।

छादयेच्छिखिग्रीवेन् चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥

दस्तालोष्टो निधात्वयः परदाच्छादितस्तत:।

संयोगाज्जयते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥

अर्थ:

एक साफ मिट्टी का बर्तन लें, उसमें तांबे का पत्र रखें और शिखिग्रीव यानी मोर की गर्दन जैसा पदार्थ (कॉपर सल्फेट) डालें। फिर उस बर्तन को गीले लकड़ी के चम्मच से भरें। उसके बाद ऊपर से पारा और जस्ता डालें, इस तरह तारों के माध्यम से जोड़ने पर बिजली उत्पन्न होगी।

अगस्त्य संहिता में आधुनिक बैटरी सेल महर्षि अगस्त्य की बिजली बनाने की विधि से मिलती जुलती है। उन्होंने निम्नलिखित सामग्रियों का उपयोग किया:

1. मिट्टी का बर्तन

2. गीला चूरा

3. जिंक पाउडर

4. तांबे की प्लेट

5. CuSO4

उल्लेखनीय है कि इस प्रयोग के फलस्वरूप 1.138 वोल्ट की विद्युत तथा 23 mA धारा उत्पन्न होती है। यह प्रयोग 7 अगस्त 1990 को स्वदेशी विज्ञान समन्वय संस्थान (नागपुर) में अनेक विद्वानों की उपस्थिति में किया गया था।

अगस्त्य संहिता में ऋषि अगस्त्य द्वारा विद्युत का विद्युत लेपन के लिए उपयोग करने का भी वर्णन किया गया है। महर्षि अगस्त्य ने तांबे, सोने और चांदी को बैटरी से चमकाने की विधि बताई है। इसीलिए महर्षि अगस्त्य को कुंभोद्भव (बैटरी अस्थि) भी कहा जाता है।

बिजली का उपयोग:

अन्ने जलभंगोस्ति प्राणोदनेषु वायुषु।

एवं शतानां कुंभानांससंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥

अन्ने जलभंगौस्ति प्राणोदनेषु वायुषु।

तथा शतनाम कुम्भानां संयोगं कार्यकृत्स्मृता:॥

अर्थ:

जब सौ कुंभों की शक्ति का उपयोग जल पर विद्युत लेपन के लिए किया जाता है, तो जल अपना रूप बदलकर ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में बदल लेता है।

कृत्रिमस्वर्णराजतलेप: सत्कृतिरुच्यते।

यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥

आच्छादयति तत्ताम्रंस्वर्णेन रजतेन वा।

सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं शतकुंभमिति स्मृतम्‌॥

कृत्रिम स्वर्ण लेपनः सत्कृतिरुच्यते।

यवक्षारमयोधनौ सुषटजलसन्निधो॥

अच्छादयति तत्तम्रमस्वर्णेन राजतेन वा।

सुवर्णलिप्तं तत्तमं शतकुम्भमिति स्मृतम् ॥

अर्थ:

सोने या चांदी जैसी धातु के लेप को सत्कृति कहा जाता है। जैसे ही तेज पानी (अम्लीय घोल) लोहे के बर्तन के संपर्क में आता है, क्षार (सोना या चांदी नाइट्रेट) तांबे को सोने या चांदी से ढक देता है। सोने से लेपित उस तांबे को शतकुम्भ या सोना कहा जाता है।

विद्युत तार:

इस आधुनिक युग में बिजली, संदेश आदि ले जाने के लिए विद्युत तारों की केबल बनाई जाती है, इसी प्रकार प्राचीन काल में भी केबल बनाई जाती थी जिसे रस्सी कहा जाता था।

नवभिस्तस्न्नुभिः सूत्रं सूत्रैस्तु नवभिर्गुणः।

गुर्णैस्तु नवभिपाशो रश्मिस्तैर्नवभिर्भवेत्।

नवष्टसप्तषद् संख्ये रश्मिभिर्राज्जवः स्मृताः।।

नवभिष्टसंनुभि सूत्रं सूत्रैस्तु नवभिर्गुणः।

गुर्णैस्तु नवभिपाशो रश्मिस्तरनवभिर्भवेत्।

नवष्टसप्तशाद् संख्या रश्मिभिर्राजजवः स्मृतः।

अर्थः

9 तारों का सूत्र बनता है। 9 धागों का एक गुण, 9 गुणों का एक फंदा, 9 फंदों से एक किरण और 9, 8, 7 या 6 रस्सी किरणें, ये सब मिलकर रस्सी (बिजली का तार) बनती हैं।

इस प्रकार हमारे हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में अनेक वैज्ञानिक प्रयोग दिए गए हैं, जो सिद्ध हो चुके हैं। आवश्यकता केवल इतनी है कि कोई उन पर शोध करे। लेकिन हमारे शिक्षा ने प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में हमारी आस्था को नष्ट कर दिया है।

(साभार – प्रशासक समिति)