Sunday, July 20, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 194

छत दिखती नहीं

डॉ. वसुंधरा मिश्र

मेरी छत से अब तुम्हारी छत तक भी दिखती नहीं
पास थे जब तुम कभी अब दूर से भी दिखते नहीं
आँखों से आँखों का मिलना बन चुका है अब सपना
दूर होकर भी तब हमारा सब कुछ था केवल अपना
समय की लकीरों में धुंधले उभरते प्रेम चित्र
सहसा ही उभर उभर छा जाते

प्रेम के हिंडोले में पेंग भरते रहे
सीढ़ियों पर पचासों बार उतरते और चढ़ते रहे
पैरों में असंख्य बिजलियाँ मचल हंँस खेलती रहीं
साइकिल की घंटियाँ धड़कनों को झंकृत करतीं रहीं
भावों की तरंगें गिलहरी बन मचल मचल लिपटती रहीं
हाथों को जब तुम लहराते अमलतास फूल लद जाते
ताल छंद लय के न जाने कितने ही गीत मुखर हो जाते
कागज के उन टुकड़ों को जब भी पढ़ती थी बार बार
मीठी कसक लिए युवा ऊर्जा के कर जाती कई समंदर पार
अब छत पर वह उन्मुक्त चंद्र किरणें नहीं दिखाई पड़तीं
हर श्वास-प्रश्वास अब पदचाप की आहट को नहीं ढूंँढती
समय के साथ वह दवा भी अब काम नहीं करती
तुम्हारा आना जाना मुस्कुराना महज यादों में बसी रहीं
सच में, इन प्राणों में गीत संगीत और नृत्य अब भी है जीवित
तभी तो अभी भी मन भीतर ही भीतर खिलखिलाता और मुस्कुराता रहता है
गतिशील और मूर्त बन जीवन को चलाता रहता है
प्रेम मरता नहीं है जीने की प्रेरणा बन मृत्यु के द्वार को खटखटाता है।
हर पल अमरता और प्रीत के गीत गुनगुनाता है।
छत अब टूट कर आकाश को छूने लगी है
अब तुम्हारे लहराते वे हाथ भी न जाने कब से खो चुके हैं
फुर्सत और प्रेम की वे आँखें न जाने कब से बंद हो चुकी हैं
फिर भी भावों की फुलवारी में फूल तो खिलते ही रहेंगे
छत न सही एसी के बंद कमरों में सही सिकुड़े मानस में सही
जमाने से प्रेम भले ही बदलते रहे हों, प्रेम संस्कृतियां जीतती रहेंगीं

त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद है नींबू, इस तरह करें इस्तेमाल

नींबू त्वचा संबंधित कई समस्याओं को दूर करने का काम करता है। नींबू मुंहासों और झुर्रियों को दूर करने का काम करता है। आप त्वचा की देखभाल के लिए कई तरीकों से इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। आप नींबू में कई प्राकृतिक सामग्री मिलाकर त्वचा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। नींबू से बने फेस पैक टैन को दूर करने और त्वचा पर प्राकृतिक निखार लाने का काम करते हैं। त्वचा के लिए आप नींबू का इस्तेमाल कई तरीकों से कर सकते हैं –
नींबू और शहद का इस्तेमाल करें
एक बड़े चम्मच में शहद और नींबू का रस मिलाएं। इन चीजों को मिलाकर फेस पैक तैयार करें। अब इस मिश्रण को पूरे चेहरे के साथ-साथ गर्दन पर भी लगाएं। कुछ देर के लिए उंगलियों से मसाज करें।

हल्दी और नींबू का इस्तेमाल करें
एक चुटकी हल्दी लें। इसमें नींबू का रस मिलाएं। इसमें थोड़ा सादा पानी मिलाएं। इन चीजों को अच्छे से मिलाकर पेस्ट बना लें। इस मिश्रण को पूरे चेहरे के साथ-साथ गर्दन पर लगाएं। अपनी उंगलियों से मसाज करें। इस फेस पैक को त्वचा पर 15 से 20 मिनट के लिए लगा रहने दें। इसके बाद सादे पानी से धो लें। आप हफ्ते में इस फेस पैक का इस्तेमाल 2 से 3 बार कर सकते हैं।

नींबू और दही का फेस पैक
इस फेस पैक को बनाने के लिए एक कटोरी में एक छोटा चम्मच दही डालें। इसमें नींबू के रस की कुछ बूंदे मिलाएं। इसे एक साथ मिलाएं। इस मिश्रण को पूरे चेहरे और गर्दन पर लगाएं। कुछ देर तक इससे त्वचा की मसाज करें। इसे 10 से 15 मिनट के लिए त्वचा पर लगा रहने दें। इसके बाद सादे पानी से धो लें। आप हफ्ते में 2 से 3 बार इस फेस पैक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

नींबू और ग्लिसरीन का इस्तेमाल करें

इस फेस पैक को बनाने के लिए ग्लिसरीन, नींबू का रस और पानी को बराबर मात्रा में मिलाएं। इस मिश्रण को चेहरे के साथ-साथ गर्दन पर भी लगाएं। इससे कुछ देर तक त्वचा की मसाज करें। इसे त्वचा पर 10 से 15 मिनट के लिए लगा रहने दें। इसके बाद त्वचा को सादे पानी से धो लें। ये आपकी त्वचा के टैन को दूर करने का काम करेगा। त्वचा को मुलायम और निखारने में मदद करेगा।

ताकतवर देशों से भारत वसूलेगा 7 लाख करोड़ रुपये!

कहा-आपके कारण बढ़ा हमारा खर्च, भरें हर्जाना
नयी दिल्ली । दुनिया के ​विकसित और ताकतवर देश जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज का हवाला देकर विकासशील देशों पर ये दबाव बनाते रहे हैं कि भारत और चीन जैसे देश कोयले का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इस बार भारत ने ताकतवर देशों को आईना दिखाया है। भारत ने जर्मनी के बोन शहर में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित कॉन्फ्रेंस में साफ कह दिया है कि विकसित देशों में रहने वाली दुनिया की 10% आबादी 52% कार्बन छोड़ने के लिए जिम्मेदार है।
प्राकृतिक आपदा से निपटने में हर साल लगती है बड़ी राशि
दुनिया की प्रतिष्ठित साइंस जर्नल ‘द लैंसेंट’ के मुताबिक अकेले अमेरिका 40% कार्बन छोड़ता है। इन्हीं वजहों से दुनियाभर को क्लाइमेट चेंज, हीटवेव, बाढ़ और सूखे का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे हालात से निपटने के लिए भारत में हर साल करीब 7 लाख करोड़ रुपए खर्च होते हैं। अब इस खर्च की भरपाई की मांग भारत ने रईस देशों से की है।
कार्बन उत्सर्जन के लिए विकसित देश कसूरवार
6 जून से 16 जून तक जर्मनी के बोन शहर में क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस आयोजित हुई। इसमें भारत ने अमीर देशों को आईना दिखाया है कि वे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करते हैं और कोयले के उपयोग के लिए हमें कसूरवार ठहराते हैं। दरअसल, यह सच भी है क्योंकि भारत में हर साल भीषण गर्मी की वजह से 83 हजार लोगों की मौत होती है। वहीं ठंड से हर साल 6.50 लाख लोग ठिठुरकर मर जाते हैं। वहीं बाढ़, अकाल, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह और क्लाइमेट चेंज के कारण भारत में हर साल 50 लाख लोगों को पलायन करना पड़ता है।
क्लाइमेट चेंज के लिए जिम्मेदार देश करें भरपाई
मौसम की ऐसी ही भीषण परिस्थितियों की मार झेल रहे भारत के लोगों का इसमें कोई दोष नहीं है। भारत ने जर्मनी के बोन शहर में हुई क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस में इन सबके लिए अमीर देशों को जिम्मेदार ठहराया है और इसके लिए होने वाले खर्च की भरपाई करने को कहा है। भारत का इसी बात पर जोर रहा कि विकसित देशों की वजह से दुनिया में गर्मी बढ़ी, सूखा और अकाल के मामले बढ़े। इसके लिए लिए भी ये ही देश जिम्मेदार हैं, इसलिए अब आपको इसकी भरपाई भी करनी होगी।

13 साल पहले कोपेनहेगन समिट में किया था वादा
भारत ने कहा कि कार्बन की समस्या को खत्म करने के और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए विकसित देशों का यह पैसा विकासशील देशों के लिए मददगार साबित होगा। दरअसल,विकसित देशों ने 2009 की कोपनहेगन समिट में भारत जैसे विकासशील देशों को जुर्माना के तौर पर 2020 तक सालाना 7.80 लाख करोड़ रुपए देने का वादा किया था। इस फंड का इस्तेमाल विकासशील देशों के कार्बन उत्सर्जन को कम करने में किया जाना था, लेकिन विकसित देश अपने वादे से मुकर गए, इसलिए ऐसा नहीं हो सका।

मैं आपसे कभी ये बातें नहीं कह पाया… 100वें बरस में प्रवेश कर रहीं मां के नाम बेटे नरेंद्र का पत्र

नयी दिल्‍ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन मोदी गत 18 जून को जीवन के 100वें वर्ष में प्रवेश कर गईं। हीराबा गुजरात के गांधीनगर के बाहर इलाके में रायसण गांव में मोदी के छोटे भाई पंकज के साथ रहती हैं। मोदी परिवार ने हीराबा के जन्‍मदिन पर अहमदाबाद के जगन्नाथ मंदिर में भंडारा आयोजित करने की भी योजना बना रखी है। 100वें जन्‍मदिन के मौके पर पीएम मोदी ने गांधीनगर जाकर मां का आशीर्वाद लिया। इससे पहले मोदी मार्च 2022 में अपनी मां से मिलने गए थे। पीएम मोदी ने मां के लिए अपनी आधिकारिक वेबसाइट (www.narendramodi.in) पर ‘मां’ शीर्षक से एक ब्‍लॉग भी लिखा है। इसमें मोदी ने तमाम यादें ताजा करते हुए अपने जीवन में मां के महत्‍व को समझाया है। पढ़‍िए, मां के नाम पीएम मोदी का पूरा ब्‍लॉग।
“मां, ये सिर्फ एक शब्द नहीं है। जीवन की ये वो भावना होती जिसमें स्नेह, धैर्य, विश्वास, कितना कुछ समाया होता है। दुनिया का कोई भी कोना हो, कोई भी देश हो, हर संतान के मन में सबसे अनमोल स्नेह मां के लिए होता है। मां, सिर्फ हमारा शरीर ही नहीं गढ़ती बल्कि हमारा मन, हमारा व्यक्तित्व, हमारा आत्मविश्वास भी गढ़ती है। और अपनी संतान के लिए ऐसा करते हुए वो खुद को खपा देती है, खुद को भुला देती है।
आज मैं अपनी खुशी, अपना सौभाग्य, आप सबसे साझा करना चाहता हूं। मेरी मां, हीराबा आज 18 जून को अपने सौवें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं। यानि उनका जन्म शताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है। पिताजी आज होते, तो पिछले सप्ताह वो भी 100 वर्ष के हो गए होते। यानि 2022 एक ऐसा वर्ष है जब मेरी मां का जन्मशताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है और इसी साल मेरे पिताजी का जन्मशताब्दी वर्ष पूर्ण हुआ है।

पिछले ही हफ्ते मेरे भतीजे ने गांधीनगर से मां के कुछ वीडियो भेजे हैं। घर पर सोसायटी के कुछ नौजवान लड़के आए हैं, पिताजी की तस्वीर कुर्सी पर रखी है, भजन कीर्तन चल रहा है और मां मगन होकर भजन गा रही हैं, मंजीरा बजा रही हैं। मां आज भी वैसी ही हैं। शरीर की ऊर्जा भले कम हो गई है लेकिन मन की ऊर्जा यथावत है।
वैसे हमारे यहां जन्मदिन मनाने की कोई परंपरा नहीं रही है। लेकिन परिवार में जो नई पीढ़ी के बच्चे हैं उन्होंने पिताजी के जन्मशती वर्ष में इस बार 100 पेड़ लगाए हैं। आज मेरे जीवन में जो कुछ भी अच्छा है, मेरे व्यक्तित्व में जो कुछ भी अच्छा है, वो मां और पिताजी की ही देन है। आज जब मैं यहां दिल्ली में बैठा हूं, तो कितना कुछ पुराना याद आ रहा है।
मेरी मां जितनी सामान्य हैं, उतनी ही असाधारण भी। ठीक वैसे ही, जैसे हर मां होती है। आज जब मैं अपनी मां के बारे में लिख रहा हूं, तो पढ़ते हुए आपको भी ये लग सकता है कि अरे, मेरी मां भी तो ऐसी ही हैं, मेरी मां भी तो ऐसा ही किया करती हैं। ये पढ़ते हुए आपके मन में अपनी मां की छवि उभरेगी।
मां की तपस्या, उसकी संतान को, सही इंसान बनाती है। मां की ममता, उसकी संतान को मानवीय संवेदनाओं से भरती है। मां एक व्यक्ति नहीं है, एक व्यक्तित्व नहीं है, मां एक स्वरूप है। हमारे यहां कहते हैं, जैसा भक्त वैसा भगवान। वैसे ही अपने मन के भाव के अनुसार, हम मां के स्वरूप को अनुभव कर सकते हैं।
मेरी मां का जन्म, मेहसाणा जिले के विसनगर में हुआ था। वडनगर से ये बहुत दूर नहीं है। मेरी मां को अपनी मां यानि मेरी नानी का प्यार नसीब नहीं हुआ था। एक शताब्दी पहले आई वैश्विक महामारी का प्रभाव तब बहुत वर्षों तक रहा था। उसी महामारी ने मेरी नानी को भी मेरी मां से छीन लिया था। मां तब कुछ ही दिनों की रही होंगी। उन्हें मेरी नानी का चेहरा, उनकी गोद कुछ भी याद नहीं है। आप सोचिए, मेरी मां का बचपन मां के बिना ही बीता, वो अपनी मां से जिद नहीं कर पाईं, उनके आंचल में सिर नहीं छिपा पाईं। मां को अक्षर ज्ञान भी नसीब नहीं हुआ, उन्होंने स्कूल का दरवाजा भी नहीं देखा। उन्होंने देखी तो सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव।
हम आज के समय में इन स्थितियों को जोड़कर देखें तो कल्पना कर सकते हैं कि मेरी मां का बचपन कितनी मुश्किलों भरा था। शायद ईश्वर ने उनके जीवन को इसी प्रकार से गढ़ने की सोची थी। आज उन परिस्थितियों के बारे में मां सोचती हैं, तो कहती हैं कि ये ईश्वर की ही इच्छा रही होगी। लेकिन अपनी मां को खोने का, उनका चेहरा तक ना देख पाने का दर्द उन्हें आज भी है।
बचपन के संघर्षों ने मेरी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था। वो अपने परिवार में सबसे बड़ी थीं और जब शादी हुई तो भी सबसे बड़ी बहू बनीं। बचपन में जिस तरह वो अपने घर में सभी की चिंता करती थीं, सभी का ध्यान रखती थीं, सारे कामकाज की जिम्मेदारी उठाती थीं, वैसे ही जिम्मेदारियां उन्हें ससुराल में उठानी पड़ीं। इन जिम्मेदारियों के बीच, इन परेशानियों के बीच, मां हमेशा शांत मन से, हर स्थिति में परिवार को संभाले रहीं।
वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वो बहुत ही छोटा था। उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था। कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था, उसी में मां-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे।
उस छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी। वही मचान हमारे घर की रसोई थी। मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे।
सामान्य रूप से जहां अभाव रहता है, वहां तनाव भी रहता है। मेरे माता-पिता की विशेषता रही कि अभाव के बीच भी उन्होंने घर में कभी तनाव को हावी नहीं होने दिया। दोनों ने ही अपनी-अपनी जिम्मेदारियां साझा की हुईं थीं।
कोई भी मौसम हो, गर्मी हो, बारिश हो, पिताजी चार बजे भोर में घर से निकल जाया करते थे। आसपास के लोग पिताजी के कदमों की आवाज से जान जाते थे कि 4 बज गए हैं, दामोदर काका जा रहे हैं। घर से निकलकर मंदिर जाना, प्रभु दर्शन करना और फिर चाय की दुकान पर पहुंच जाना उनका नित्य कर्म रहता था।
मां भी समय की उतनी ही पाबंद थीं। उन्हें भी सुबह 4 बजे उठने की आदत थी। सुबह-सुबह ही वो बहुत सारे काम निपटा लिया करती थीं। गेहूं पीसना हो, बाजरा पीसना हो, चावल या दाल बीनना हो, सारे काम वो खुद करती थीं। काम करते हुए मां अपने कुछ पसंदीदा भजन या प्रभातियां गुनगुनाती रहती थीं। नरसी मेहता जी का एक प्रसिद्ध भजन है “जलकमल छांडी जाने बाला, स्वामी अमारो जागशे” वो उन्हें बहुत पसंद है। एक लोरी भी है, “शिवाजी नु हालरडु”, मां ये भी बहुत गुनगुनाती थीं।
मां कभी अपेक्षा नहीं करती थीं कि हम भाई-बहन अपनी पढ़ाई छोड़कर उनकी मदद करें। वो कभी मदद के लिए, उनका हाथ बंटाने के लिए नहीं कहती थीं। मां को लगातार काम करते देखकर हम भाई-बहनों को खुद ही लगता था कि काम में उनका हाथ बंटाएं। मुझे तालाब में नहाने का, तालाब में तैरने का बड़ा शौक था इसलिए मैं भी घर के कपड़े लेकर उन्हें तालाब में धोने के लिए निकल जाता था। कपड़े भी धुल जाते थे और मेरा खेल भी हो जाता था।
घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं। समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे। कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं। उन्हें डर रहता था कि कपास के छिलकों के कांटें हमें चुभ ना जाएं।
अपने काम के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहना, अपना काम किसी दूसरे से करवाना उन्हें कभी पसंद नहीं आया। मुझे याद है, वडनगर वाले मिट्टी के घर में बारिश के मौसम से कितनी दिक्कतें होती थीं। लेकिन मां की कोशिश रहती थी कि परेशानी कम से कम हो। इसलिए जून के महीने में, कड़ी धूप में मां घर की छत की खपरैल को ठीक करने के लिए ऊपर चढ़ जाया करती थीं। वो अपनी तरफ से तो कोशिश करती ही थीं लेकिन हमारा घर इतना पुराना हो गया था कि उसकी छत, तेज बारिश सह नहीं पाती थी।
बारिश में हमारे घर में कभी पानी यहां से टकपता था, कभी वहां से। पूरे घर में पानी ना भर जाए, घर की दीवारों को नुकसान ना पहुंचे, इसलिए मां जमीन पर बर्तन रख दिया करती थीं। छत से टपकता हुआ पानी उसमें इकट्ठा होता रहता था। उन पलों में भी मैंने मां को कभी परेशान नहीं देखा, खुद को कोसते नहीं देखा। आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि बाद में उसी पानी को मां घर के काम के लिए अगले 2-3 दिन तक इस्तेमाल करती थीं। जल संरक्षण का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है।

मां को घर सजाने का, घर को सुंदर बनाने का भी बहुत शौक था। घर सुंदर दिखे, साफ दिखे, इसके लिए वो दिन भर लगी रहती थीं। वो घर के भीतर की जमीन को गोबर से लीपती थीं। आप लोगों को पता होगा कि जब उपले या गोबर के कंडे में आग लगाओ तो कई बार शुरू में बहुत धुआं होता है। मां तो बिना खिड़की वाले उस घर में उपले पर ही खाना बनाती थीं। धुआं निकल नहीं पाता था इसलिए घर के भीतर की दीवारें बहुत जल्दी काली हो जाया करती थीं। हर कुछ हफ्तों में मां उन दीवारों की भी पुताई कर दिया करती थीं। इससे घर में एक नयापन सा आ जाता था। मां मिट्टी की बहुत सुंदर कटोरियां बनाकर भी उन्हें सजाया करती थीं। पुरानी चीजों को रीसायकिल करने की हम भारतीयों में जो आदत है, मां उसकी भी चैंपियन रही हैं।

उनका एक और बड़ा ही निराला और अनोखा तरीका मुझे याद है। वो अक्सर पुराने कागजों को भिगोकर, उसके साथ इमली के बीज पीसकर एक पेस्ट जैसा बना लेती थीं, बिल्कुल गोंद की तरह। फिर इस पेस्ट की मदद से वो दीवारों पर शीशे के टुकड़े चिपकाकर बहुत सुंदर चित्र बनाया करती थीं। बाजार से कुछ-कुछ सामान लाकर वो घर के दरवाजे को भी सजाया करती थीं।

मां इस बात को लेकर हमेशा बहुत नियम से चलती थीं कि बिस्तर बिल्कुल साफ-सुथरा हो, बहुत अच्छे से बिछा हुआ हो। धूल का एक भी कण उन्हें चादर पर बर्दाश्त नहीं था। थोड़ी सी सलवट देखते ही वो पूरी चादर फिर से झाड़कर करीने से बिछाती थीं। हम लोग भी मां की इस आदत का बहुत ध्यान रखते थे। आज इतने वर्षों बाद भी मां जिस घर में रहती हैं, वहां इस बात पर बहुत जोर देती हैं कि उनका बिस्तर जरा भी सिकुड़ा हुआ ना हो।
हर काम में पर्फेक्शन का उनका भाव इस उम्र में भी वैसा का वैसा ही है। और गांधीनगर में अब तो भैया का परिवार है, मेरे भतीजों का परिवार है, वो कोशिश करती हैं कि आज भी अपना सारा काम खुद ही करें।
साफ-सफाई को लेकर वो कितनी सतर्क रहती हैं, ये तो मैं आज भी देखता हूं। दिल्ली से मैं जब भी गांधीनगर जाता हूं, उनसे मिलने पहुंचता हूं, तो मुझे अपने हाथ से मिठाई जरूर खिलाती हैं। और जैसे एक मां, किसी छोटे बच्चे को कुछ खिलाकर उसका मुंह पोंछती है, वैसे ही मेरी मां आज भी मुझे कुछ खिलाने के बाद किसी रुमाल से मेरा मुंह जरूर पोंछती हैं। वो अपनी साड़ी में हमेशा एक रुमाल या छोटा तौलिया खोंसकर रखती हैं।
मां के सफाई प्रेम के तो इतने किस्से हैं कि लिखने में बहुत वक्त बीत जाएगा। मां में एक और खास बात रही है। जो साफ-सफाई के काम करता है, उसे भी मां बहुत मान देती है। मुझे याद है, वडनगर में हमारे घर के पास जो नाली थी, जब उसकी सफाई के लिए कोई आता था, तो मां बिना चाय पिलाए, उसे जाने नहीं देती थीं। बाद में सफाई वाले भी समझ गए थे कि काम के बाद अगर चाय पीनी है, तो वो हमारे घर में ही मिल सकती है।
मेरी मां की एक और अच्छी आदत रही है जो मुझे हमेशा याद रही। जीव पर दया करना उनके संस्कारों में झलकता रहा है। गर्मी के दिनों में पक्षियों के लिए वो मिट्टी के बर्तनों में दाना और पानी जरूर रखा करती थीं। जो हमारे घर के आसपास स्ट्रीट डॉग्स रहते थे, वो भूखे ना रहें, मां इसका भी खयाल रखती थीं।
पिताजी अपनी चाय की दुकान से जो मलाई लाते थे, मां उससे बड़ा अच्छा घी बनाती थीं। और घी पर सिर्फ हम लोगों का ही अधिकार हो, ऐसा नहीं था। घी पर हमारे मोहल्ले की गायों का भी अधिकार था। मां हर रोज, नियम से गौमाता को रोटी खिलाती थी। लेकिन सूखी रोटी नहीं, हमेशा उस पर घी लगा के ही देती थीं।
भोजन को लेकर मां का हमेशा से ये भी आग्रह रहा है कि अन्न का एक भी दाना बर्बाद नहीं होना चाहिए। हमारे कस्बे में जब किसी के शादी-ब्याह में सामूहिक भोज का आयोजन होता था तो वहां जाने से पहले मां सभी को ये बात जरूर याद दिलाती थीं कि खाना खाते समय अन्न मत बर्बाद करना। घर में भी उन्होंने यही नियम बनाया हुआ था कि उतना ही खाना थाली में लो जितनी भूख हो।
मां आज भी जितना खाना हो, उतना ही भोजन अपनी थाली में लेती हैं। आज भी अपनी थाली में वो अन्न का एक दाना नहीं छोड़तीं। नियम से खाना, तय समय पर खाना, बहुत चबा-चबा के खाना इस उम्र में भी उनकी आदत में बना हुआ है।
मां हमेशा दूसरों को खुश देखकर खुश रहा करती हैं। घर में जगह भले कम हो लेकिन उनका दिल बहुत बड़ा है। हमारे घर से थोड़ी दूर पर एक गांव था जिसमें मेरे पिताजी के बहुत करीबी दोस्त रहा करते थे। उनका बेटा था अब्बास। दोस्त की असमय मृत्यु के बाद पिताजी अब्बास को हमारे घर ही ले आए थे। एक तरह से अब्बास हमारे घर में ही रहकर पढ़ा। हम सभी बच्चों की तरह मां अब्बास की भी बहुत देखभाल करती थीं। ईद पर मां, अब्बास के लिए उसकी पसंद के पकवान बनाती थीं। त्योहारों के समय आसपास के कुछ बच्चे हमारे यहां ही आकर खाना खाते थे। उन्हें भी मेरी मां के हाथ का बनाया खाना बहुत पसंद था।
हमारे घर के आसपास जब भी कोई साधु-संत आते थे तो मां उन्हें घर बुलाकर भोजन अवश्य कराती थीं। जब वो जाने लगते, तो मां अपने लिए नहीं बल्कि हम भाई-बहनों के लिए आशीर्वाद मांगती थीं। उनसे कहती थीं कि “मेरी संतानों को आशीर्वाद दीजिए कि वो दूसरों के सुख में सुख देखें और दूसरों के दुख से दुखी हों। मेरे बच्चों में भक्ति और सेवाभाव पैदा हो उन्हें ऐसा आशीर्वाद दीजिए”।
मेरी मां का मुझ पर बहुत अटूट विश्वास रहा है। उन्हें अपने दिए संस्कारों पर पूरा भरोसा रहा है। मुझे दशकों पुरानी एक घटना याद आ रही है। तब तक मैं संगठन में रहते हुए जनसेवा के काम में जुट चुका था। घरवालों से संपर्क ना के बराबर ही रह गया था। उसी दौर में एक बार मेरे बड़े भाई, मां को बद्रीनाथ जी, केदारनाथ जी के दर्शन कराने के लिए ले गए थे। बद्रीनाथ में जब मां ने दर्शन किए तो केदारनाथ में भी लोगों को खबर लग गई कि मेरी मां आ रही हैं।
उसी समय अचानक मौसम भी बहुत खराब हो गया था। ये देखकर कुछ लोग केदारघाटी से नीचे की तरफ चल पड़े। वो अपने साथ में कंबल भी ले गए। वो रास्ते में बुजुर्ग महिलाओं से पूछते जा रहे थे कि क्या आप नरेंद्र मोदी की मां हैं? ऐसे ही पूछते हुए वो लोग मां तक पहुंचे। उन्होंने मां को कंबल दिया, चाय पिलाई। फिर तो वो लोग पूरी यात्रा भर मां के साथ ही रहे। केदारनाथ पहुंचने पर उन लोगों ने मां के रहने के लिए अच्छा इंतजाम किया। इस घटना का मां के मन में बड़ा प्रभाव पड़ा। तीर्थ यात्रा से लौटकर जब मां मुझसे मिलीं तो कहा कि “कुछ तो अच्छा काम कर रहे हो तुम, लोग तुम्हें पहचानते हैं”।
अब इस घटना के इतने वर्षों बाद, जब आज लोग मां के पास जाकर पूछते हैं कि आपका बेटा पीएम है, आपको गर्व होता होगा, तो मां का जवाब बड़ा गहरा होता है। मां उन्हें कहती है कि जितना आपको गर्व होता है, उतना ही मुझे भी होता है। वैसे भी मेरा कुछ नहीं है। मैं तो निमित्त मात्र हूं। वो तो भगवान का है।
आपने भी देखा होगा, मेरी मां कभी किसी सरकारी या सार्वजनिक कार्यक्रम में मेरे साथ नहीं जाती हैं। अब तक दो बार ही ऐसा हुआ है जब वो किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में मेरे साथ आई हैं।
एक बार मैं जब एकता यात्रा के बाद श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहरा कर लौटा था, तो अमदाबाद में हुए नागरिक सम्मान कार्यक्रम में मां ने मंच पर आकर मेरा टीका किया था।
मां के लिए वो बहुत भावुक पल इसलिए भी था क्योंकि एकता यात्रा के दौरान फगवाड़ा में एक हमला हुआ था, उसमें कुछ लोग मारे भी गए थे। उस समय मां मुझे लेकर बहुत चिंता में थीं। तब मेरे पास दो लोगों का फोन आया था। एक अक्षरधाम मंदिर के श्रद्धेय प्रमुख स्वामी जी का और दूसरा फोन मेरी मां का था। मां को मेरा हाल जानकर कुछ तसल्ली हुई थी।
दूसरी बार वो सार्वजनिक तौर पर मेरे साथ तब आईं थी जब मैंने पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। 20 साल पहले का वो शपथग्रहण ही आखिरी समारोह है जब मां सार्वजनिक रूप से मेरे साथ कहीं उपस्थित रहीं हैं। इसके बाद वो कभी किसी कार्यक्रम में मेरे साथ नहीं आईं।
मुझे एक और वाकया याद आ रहा है। जब मैं सीएम बना था तो मेरे मन में इच्छा थी कि अपने सभी शिक्षकों का सार्वजनिक रूप से सम्मान करूं। मेरे मन में ये भी था कि मां तो मेरी सबसे बड़ी शिक्षक रही हैं, उनका भी सम्मान होना चाहिए। हमारे शास्त्रो में कहा भी गया है माता से बड़ा कोई गुरु नहीं है- ‘नास्ति मातृ समो गुरुः’। इसलिए मैंने मां से भी कहा था कि आप भी मंच पर आइएगा। लेकिन उन्होंने कहा कि “देख भाई, मैं तो निमित्त मात्र हूं। तुम्हारा मेरी कोख से जन्म लेना लिखा हुआ था। तुम्हें मैंने नहीं भगवान ने गढ़ा है।”। ये कहकर मां उस कार्यक्रम में नहीं आई थीं। मेरे सभी शिक्षक आए थे, लेकिन मां उस कार्यक्रम से दूर ही रहीं।
लेकिन मुझे याद है, उन्होंने उस समारोह से पहले मुझसे ये जरूर पूछा था कि हमारे कस्बे में जो शिक्षक जेठाभाई जोशी जी थे क्या उनके परिवार से कोई उस कार्यक्रम में आएगा? बचपन में मेरी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, मुझे अक्षरज्ञान गुरुजी जेठाभाई जोशी जी ने कराया था। मां को उनका ध्यान था, ये भी पता था कि अब जोशी जी हमारे बीच नहीं हैं। वो खुद नहीं आईं लेकिन जेठाभाई जोशी जी के परिवार को जरूर बुलाने को कहा।
अक्षर ज्ञान के बिना भी कोई सचमुच में शिक्षित कैसे होता है, ये मैंने हमेशा अपनी मां में देखा। उनके सोचने का दृष्टिकोण, उनकी दूरगामी दृष्टि, मुझे कई बार हैरान कर देती है। अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति मां हमेशा से बहुत सजग रही हैं। जब से चुनाव होने शुरू हुए पंचायत से पार्लियामेंट तक के इलेक्शन में उन्होंने वोट देने का दायित्व निभाया। कुछ समय पहले हुए गांधीनगर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में भी मां वोट डालने गई थीं।
कई बार मुझे वो कहती हैं कि देखो भाई, पब्लिक का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, ईश्वर का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, तुम्हें कभी कुछ नहीं होगा। वो बोलती हैं कि अपना शरीर हमेशा अच्छा रखना, खुद को स्वस्थ रखना क्योंकि शरीर अच्छा रहेगा तभी तुम अच्छा काम भी कर पाओगे।
एक समय था जब मां बहुत नियम से चतुर्मास किया करती थीं। मां को पता है कि नवरात्रि के समय मेरे नियम क्या हैं। पहले तो नहीं कहती थीं, लेकिन इधर बीच वो कहने लगी हैं कि इतने साल तो कर लिया अब नवरात्रि के समय जो कठिन व्रत-तपस्या करते हो, उसे थोड़ा आसान कर लो।
मैंने अपने जीवन में आज तक मां से कभी किसी के लिए कोई शिकायत नहीं सुनी। ना ही वो किसी की शिकायत करती हैं और ना ही किसी से कुछ अपेक्षा रखती हैं।
मां के नाम आज भी कोई संपत्ति नहीं है। मैंने उनके शरीर पर कभी सोना नहीं देखा। उन्हें सोने-गहने का कोई मोह नहीं है। वो पहले भी सादगी से रहती थीं और आज भी वैसे ही अपने छोटे से कमरे में पूरी सादगी से रहती हैं।
ईश्वर पर मां की अगाथ आस्था है, लेकिन वो अंधविश्वास से कोसो दूर रहती हैं। हमारे घर को उन्होंने हमेशा अंधविश्वास से बचाकर रखा। वो शुरु से कबीरपंथी रही हैं और आज भी उसी परंपरा से अपना पूजा-पाठ करती हैं। हां, माला जपने की आदत सी पड़ गई है उन्हें। दिन भर भजन और माला जपना इतना ज्यादा हो जाता है कि नींद भी भूल जाती हैं। घर के लोगों को माला छिपानी पड़ती है, तब जाकर वो सोती हैं, उन्हें नींद आती है।
इतने बरस की होने के बावजूद, मां की याद्दाश्त अब भी बहुत अच्छी है। उन्हें दशकों पहले की भी बातें अच्छी तरह याद हैं। आज भी कभी कोई रिश्तेदार उनसे मिलने जाता है और अपना नाम बताता है, तो वो तुरंत उनके दादा-दादी या नाना-नानी का नाम लेकर बोलती हैं कि अच्छा तुम उनके घर से हो।
दुनिया में क्या चल रहा है, आज भी इस पर मां की नजर रहती है। हाल-फिलहाल में मैंने मां से पूछा कि आजकल टीवी कितना देखती हों? मां ने कहा कि टीवी पर तो जब देखो तब सब आपस में झगड़ा कर रहे होते हैं। हां, कुछ हैं जो शांति से समझाते हैं और मैं उन्हें देखती हूं। मां इतना कुछ गौर कर रही हैं, ये देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गया।
उनकी तेज याद्दाश्त से जुड़ी एक और बात मुझे याद आ रही है। ये 2017 की बात है जब मैं यूपी चुनाव के आखिरी दिनों में, काशी में था। वहां से मैं अमदाबाद गया तो मां के लिए काशी से प्रसाद लेकर भी गया था। मां से मिला तो उन्होंने पूछा कि क्या काशी विश्वनाथ महादेव के दर्शन भी किए थे? मां पूरा ही नाम लेती हैं- काशी विश्वनाथ महादेव। फिर बातचीत में मां ने पूछा कि क्या काशी विश्वनाथ महादेव के मंदिर तक जाने का रास्ता अब भी वैसा ही है, ऐसा लगता है किसी के घर में मंदिर बना हुआ है। मैंने हैरान होकर उनसे पूछा कि आप कब गई थीं? मां ने बताया कि बहुत साल पहले गईं थीं। मां को उतने साल पहले की गई तीर्थ यात्रा भी अच्छी तरह याद है।
मां में जितनी ज्यादा संवेदनशीलता है, सेवा भाव है, उतनी ही ज्यादा उनकी नजर भी पारखी रही है। मां छोटे बच्चों के उपचार के कई देसी तरीके जानती हैं। वडनगर वाले घर में तो अक्सर हमारे यहां सुबह से ही कतार लग जाती थी। लोग अपने 6-8 महीने के बच्चों को दिखाने के लिए मां के पास लाते थे।
इलाज करने के लिए मां को कई बार बहुत बारीक पावडर की जरूरत होती थी। ये पावडर जुटाने का इंतजाम घर के हम बच्चों का था। मां हमें चूल्हे से निकली राख, एक कटोरी और एक महीन सा कपड़ा दे देती थीं। फिर हम लोग उस कटोरी के मुंह पर वो कपड़ा कस के बांधकर 5-6 चुटकी राख उस पर रख देते थे। फिर धीरे-धीरे हम कपड़े पर रखी उस राख को रगड़ते थे। ऐसा करने पर राख के जो सबसे महीन कण होते थे, वो कटोरी में नीचे जमा होते जाते थे। मां हम लोगों को हमेशा कहती थीं कि “अपना काम अच्छे से करना। राख के मोटे दानों की वजह से बच्चों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए”।
ऐसी ही मुझे एक और बात याद आ रही है, जिसमें मां की ममता भी थी और सूझबूझ भी। दरअसल एक बार पिताजी को एक धार्मिक अनुष्ठान करवाना था। इसके लिए हम सभी को नर्मदा जी के तट पर किसी स्थान पर जाना था। भीषण गर्मी के दिन थे इसलिए वहां जाने के लिए हम लोग सुबह-सुबह ही घर से निकल लिए थे। करीब तीन-साढ़े तीन घंटे का सफर रहा होगा। हम जहां बस से उतरे, वहां से आगे का रास्ता पैदल ही जाना था। लेकिन गर्मी इतनी ज्यादा थी कि जमीन से जैसे आग निकल रही हो। इसलिए हम लोग नर्मदा जी किनारे पर पानी में पैर रखकर चलने लगे थे। नदी में इस तरह चलना आसान नहीं होता। कुछ ही देर में हम बच्चे बुरी तरह थक गए। जोर की भूख भी लगी थी। मां हम सभी की स्थिति देख रही थीं, समझ रही थीं। मां ने पिताजी को कहा कि थोड़ी देर के लिए बीच में यहीं रुक जाते हैं। मां ने पिताजी को तुरंत आसपास कहीं से गुड़ खरीदकर लाने को कहा। पिताजी दौड़े हुए गए और गुड़ खरीदकर लाए। मैं तब बच्चा था लेकिन गुड़ खाने के बाद पानी पीते ही जैसे शरीर में नई ऊर्जा आ गई। हम सभी फिर चल पड़े। उस गर्मी में पूजा के लिए उस तरह निकलना, मां की वो समझदारी, पिताजी का तुरंत गुड़ खरीदकर लाना, मुझे आज भी एक-एक पल अच्छी तरह याद है।
दूसरों की इच्छा का सम्मान करने की भावना, दूसरों पर अपनी इच्छा ना थोपने की भावना, मैंने मां में बचपन से ही देखी है। खासतौर पर मुझे लेकर वो बहुत ध्यान रखती थीं कि वो मेरे और मेरे निर्णयों को बीच कभी दीवार ना बनें। उनसे मुझे हमेशा प्रोत्साहन ही मिला। बचपन से वो मेरे मन में एक अलग ही प्रकार की प्रवृत्ति पनपते हुए देख रहीं थीं। मैं अपने सभी भाई-बहनों से अलग सा रहता था।
मेरी दिनचर्या की वजह से, मेरे तरह-तरह के प्रयोगों की वजह से कई बार मां को मेरे लिए अलग से इंतजाम भी करने पड़ते थे। लेकिन उनके चेहरे पर कभी शिकन नहीं आई, मां ने कभी इसे बोझ नहीं माना। जैसे मैं महीनों-महीनों के लिए खाने में नमक छोड़ देता था। कई बार ऐसा होता था कि मैं हफ्तों-हफ्तों अन्न त्याग देता था, सिर्फ दूध ही पीया करता था। कभी तय कर लेता था कि अब 6 महीने तक मीठा नहीं खाऊंगा। सर्दी के दिनों में, मैं खुले में सोता था, नहाने के लिए मटके के ठंडे पानी से नहाया करता था। मैं अपनी परीक्षा स्वयं ही ले रहा था। मां मेरे मनोभावों को समझ रही थीं। वो कोई जिद नहीं करती थीं। वो यही कहती थीं- ठीक है भाई, जैसा तुम्हारा मन करे।
मां को आभास हो रहा था कि मैं कुछ अलग ही दिशा में जा रहा हूं। मुझे याद है, एक बार हमारे घर के पास गिरी महादेव मंदिर में एक महात्मा जी आए हुए थे। वो हाथ में ज्वार उगा कर तपस्या कर रहे थे। मैं बड़े मन से उनकी सेवा में जुटा हुआ था। उसी दौरान मेरी मौसी की शादी पड़ गई थी। परिवार में सबको वहां जाने का बहुत मन था। मामा के घर जाना था, मां की बहन की शादी थी, इसलिए मां भी बहुत उत्साह में थीं। सब अपनी तैयारी में जुटे थे लेकिन मैंने मां के पास जाकर कहा कि मैं मौसी की शादी में नहीं जाना चाहता। मां ने वजह पूछी तो मैंने उन्हें महात्मा जी वाली बात बताई।
मां को दुख जरूर हुआ कि मैं उनकी बहन की शादी में नहीं जा रहा, लेकिन उन्होंने मेरे मन का आदर किया। वो यही बोलीं कि ठीक है, जैसा तुम्हारा मन करे, वैसा ही करो। लेकिन उन्हें इस बात की चिंता थी कि मैं अकेले घर में रहूंगा कैसे? मुझे तकलीफ ना हो इसलिए वो मेरे लिए 4-5 दिन का सूखा खाना बनाकर घर में रख गई थीं।
मैंने जब घर छोड़ने का फैसला कर लिया, तो उसे भी मां कई दिन पहले ही समझ गई थीं। मैं मां-पिताजी से बात-बात में कहता ही रहता था कि मेरा मन करता है कि बाहर जाकर देखूं, दुनिया क्या है। मैं उनसे कहता था कि रामकृष्ण मिशन के मठ में जाना है। स्वामी विवेकानंद जी के बारे में भी उनसे खूब बातें करता था। मां-पिताजी ये सब सुनते रहते थे। ये सिलसिला कई दिन तक लगातार चला।
एक दिन आखिरकार मैंने मां-पिता को घर छोड़ने की इच्छा बताई और उनसे आशीर्वाद मांगा। मेरी बात सुनकर पिताजी बहुत दुखी हुए। वो थोड़ा खिन्न होकर बोले- तुम जानो, तुम्हारा काम जाने। लेकिन मैंने कहा कि मैं ऐसे बिना आशीर्वाद घर छोड़कर नहीं जाऊंगा। मां को मेरे बारे में सब कुछ पता था ही। उन्होंने फिर मेरे मन का सम्मान किया। वो बोलीं कि जो तुम्हारा मन करे, वही करो। हां, पिताजी की तसल्ली के लिए उन्होंने उनसे कहा कि वो चाहें तो मेरी जन्मपत्री किसी को दिखा लें। हमारे एक रिश्तेदार को ज्योतिष का भी ज्ञान था। पिताजी मेरी जन्मपत्री के साथ उनसे मिले। जन्मपत्री देखने के बाद उन्होंने कहा कि “उसकी तो राह ही कुछ अलग है, ईश्वर ने जहां तय किया है, वो वहीं जाएगा”।
इसके कुछ घंटों बाद ही मैंने घर छोड़ दिया था। तब तक पिताजी भी बहुत सहज हो चुके थे। पिताजी ने मुझे आशीर्वाद दिया। घर से निकलने से पहले मां ने मुझे दही और गुड़ भी खिलाया। वो जानती थीं कि अब मेरा आगे का जीवन कैसा होने जा रहा है। मां की ममता कितनी ही कठोर होने की कोशिश करे, जब उसकी संतान घर से दूर जा रही हो, तो पिघल ही जाती है। मां की आंख में आंसू थे लेकिन मेरे लिए खूब सारा आशीर्वाद भी था।
घर छोड़ने के बाद के वर्षों में, मैं जहां रहा, जिस हाल में रहा, मां के आशीर्वाद की अनुभूति हमेशा मेरे साथ रही। मां मुझसे गुजराती में ही बात करती हैं। गुजराती में तुम के लिए तू और आप के लिए तमे कहा जाता है। मैं जितने दिन घर में रहा, मां मुझसे तू कहकर ही बात करती थीं। लेकिन जब मैंने घर छोड़ा, अपनी राह बदली, उसके बाद कभी भी मां ने मुझसे तू कहकर बात नहीं की। वो आज भी मुझे आप या तमे कहकर ही बात करती हैं।
मेरी मां ने हमेशा मुझे अपने सिद्धांत पर डटे रहने, गरीब के लिए काम करते रहने के लिए प्रेरित किया है। मुझे याद है, जब मेरा मुख्यमंत्री बनना तय हुआ तो मैं गुजरात में नहीं था। एयरपोर्ट से मैं सीधे मां से मिलने गया था। खुशी से भरी हुई मां का पहला सवाल यही था कि क्या तुम अब यहीं रहा करोगे? मां मेरा उत्तर जानती थीं। फिर मुझसे बोलीं- “मुझे सरकार में तुम्हारा काम तो समझ नहीं आता लेकिन मैं बस यही चाहती हूं कि तुम कभी रिश्वत नहीं लेना।’’
यहां दिल्ली आने के बाद मां से मिलना-जुलना और भी कम हो गया है। जब गांधीनगर जाता हूं तो कभी-कभार मां के घर जाना होता है। मां से मिलना होता है, बस कुछ पलों के लिए। लेकिन मां के मन में इसे लेकर कोई नाराजगी या दुख का भाव मैंने आज तक महसूस नहीं किया। मां का स्नेह मेरे लिए वैसा ही है, मां का आशीर्वाद मेरे लिए वैसा ही है। मां अक्सर पूछती हैं- दिल्ली में अच्छा लगता है? मन लगता है?
वो मुझे बार-बार याद दिलाती हैं कि मेरी चिंता मत किया करो, तुम पर बड़ी जिम्मेदारी है। मां से जब भी फोन पर बात होती है तो यही कहती हैं कि “देख भाई, कभी कोई गलत काम मत करना, बुरा काम मत करना, गरीब के लिए काम करना”।
आज अगर मैं अपनी मां और अपने पिता के जीवन को देखूं, तो उनकी सबसे बड़ी विशेषताएं रही हैं ईमानदारी और स्वाभिमान। गरीबी से जूझते हुए परिस्थितियां कैसी भी रही हों, मेरे माता-पिता ने ना कभी ईमानदारी का रास्ता छोड़ा ना ही अपने स्वाभिमान से समझौता किया। उनके पास हर मुश्किल से निकलने का एक ही तरीका था- मेहनत, दिन रात मेहनत।
पिताजी जब तक जीवित रहे उन्होंने इस बात का पालन किया कि वो किसी पर बोझ नहीं बनें। मेरी मां आज भी इसी प्रयास में रहती हैं कि किसी पर बोझ नहीं बनें, जितना संभव हो पाए, अपने काम खुद करें।
आज भी जब मैं मां से मिलता हूं, तो वो हमेशा कहती हैं कि “मैं मरते समय तक किसी की सेवा नहीं लेना चाहती, बस ऐसे ही चलते-फिरते चले जाने की इच्छा है”।
मैं अपनी माँ की इस जीवन यात्रा में देश की समूची मातृशक्ति के तप, त्याग और योगदान के दर्शन करता हूँ। मैं जब अपनी माँ और उनके जैसी करोड़ों नारियों के सामर्थ्य को देखता हूँ, तो मुझे ऐसा कोई भी लक्ष्य नहीं दिखाई देता जो भारत की बहनों-बेटियों के लिए असंभव हो।
अभाव की हर कथा से बहुत ऊपर, एक मां की गौरव गाथा होती है।
संघर्ष के हर पल से बहुत ऊपर, एक मां की इच्छाशक्ति होती है।
मां, आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
आपका जन्म शताब्दी वर्ष शुरू होने जा रहा है।
सार्वजनिक रूप से कभी आपके लिए इतना लिखने का, इतना कहने का साहस नहीं कर पाया।
आप स्वस्थ रहें, हम सभी पर आपका आशीर्वाद बना रहे, ईश्वर से यही प्रार्थना है।
नमन।

(साभार – www.narendramodi.in)

पढ़ाई करो, सब मिलेगा… अधिकारी से प्रेरित सफाईकर्मी ने 50 की उम्र में 10वीं पास की

मुम्बई । बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) में कार्यरत 50 साल के सफाईकर्मी ने अपने पहले प्रयास में 10वीं का एग्जाम पास किया है। उन्हें 57 फीसदी नंबर मिले हैं। अब वह 12वीं भी पास करना चाहते हैं। 10वीं करने के फैसले के पीछे एक खास वजह भी है। दरअसल जब भी वह अपना वेतन बढ़ाने के लिए कहते तो बीएमसी अधिकारियों उनसे कहते कि पढ़ाई करने पर सब मिलेगा। यह कहानी है 50 साल के बीएमसी सफाईकर्मी कुंचिकोरवे माशन्ना रामप्पा की। उन्होंने बताया, ‘ज्यादा पढ़ा लिखा न होने की वजह से मेरी सैलरी कम थी, मुझे ग्रेड्स नहीं मिल पा रहे थे। जब मैंने बीएमसी अधिकारियों से कहा तो उन्होंने बोला कि पढ़ाई करने पर सब मिल जाएगा।’
नाइट स्कूल में जाकर तीन घंटे पढ़ाई
कुंचिकोरवे रामप्पा ने बताया, ‘यह मेरा पहला प्रयास था। मुझे 57 फीसदी नंबर मिले।’ रामप्पा ने नौकरी करते हुए ही पढ़ाई के लिए समय निकाला। वह नाइट स्कूल जाकर रोज तीन घंटे पढ़ते थे। उन्होंने बताया, ‘मैं रोज तीन घंटे पढ़ता था। मेरे बच्चे ग्रैजुएट हैं, उन्होंने भी पढ़ाई में मेरी मदद की। अब मैं 12 वीं पास करना चाहता हूं।’
इतने नंबर मिले
रामप्पा ने महाराष्ट्र के राज्य माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत 10वीं की परीक्षा पास की है। उन्हें मराठी में 54, हिंदी में 57, इंग्लिश में 54, गणित में 52, साइंस ऐंड टेक्नॉलजी में 63 और सामाजिक विज्ञान में 59 नंबर मिले हैं। गौरतलब है कि गत शुक्रवार को महाराष्ट्र के राज्य माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने कक्षा 10वीं के परिणाम की घोषणा हुई। रिजल्ट ऑनलाइन माध्यम से जारी किया गया। महाराष्ट्र बोर्ड ने कक्षा 10वीं के छात्रों के लिए 15 मार्च से 4 अप्रैल 2022 तक राज्य बोर्ड परीक्षा आयोजित की थी। परीक्षा में लगभग 14 लाख छात्रों ने भाग लिया था।

यूपी बोर्ड परीक्षा 2022: माता-पिता के बाद दादा ने चाय बेचकर पाला, पोता जिले में अव्वल

पंकज मिश्रा, हमीरपुर ।  उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के एक छोटे से गांव के एक गरीब छात्र ने हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा में हमीरपुर टॉप कर अपने दादा-दादी का नाम रोशन किया है। माता-पिता के निधन के बाद इसे बूढ़े दादा और दादी ने न सिर्फ परवरिश की, बल्कि चाय और गुटखा पान मसाला की दुकान चलाकर इसे बड़ा अफसर बनाने के लिए पढ़ा भी रहे हैं। पोते की कामयाबी से बूढ़े दादा और दादी का आंखें खुशी से भर आई हैं।
हमीरपुर जिले के ललपुरा थाना क्षेत्र के पौथियां गांव पूर्व मंत्री शिवचरण प्रजापति का पैतृक गांव है। यहां गरीब परिवार के उज्ज्वल गुप्ता ने गरीबी का दंश झेलते हुए आज समूचे क्षेत्र में कामयाबी का परचम फहराया है। माता-पिता के निधन के बाद उज्ज्वल और इसकी छोटी बहन श्रृद्धा की परवरिश करने से सभी रिश्तेदार एक-एक कर दूर हो गए थे, लेकिन इन दोनों अनाथ बच्चों को बूढ़े दादा और दादी ने सीने से लगाकर पालन पोषण किया। गांव में एसबी इण्टर कॉलेज में पढ़ने वाले उज्ज्वल गुप्ता ने हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा के तैयारी के लिए रोजाना दस घंटे तक पढ़ाई की है।
आज उसने हमीरपुर जिले में बोर्ड परीक्षा में टॉप किया तो उसके बूढ़े दादा और दादी के आंखें खुशी से भर आई है। उसने 94.17 फीसदी अंक हासिल किए हैं। इस कामयाबी पर बूढ़े दादा ने पोते को अपनी दुकान में ही खुशी से मुंह मीठा कराकर प्यार जताया तो पड़ोसी लोग भी द्रवित हो गए। उज्ज्वल गुप्ता ने बताया कि बीटेक करने के बाद इंजीनियर बनकर देश की सेवा करने का सपना है, जिसे साकार करने के लिए अब पढ़ाई के घंटे बढ़ाएंगे जाएंगे। उसने कहा कि यह मेरा जीवन दादा और दादी के लिए है, जिन्होंने आर्थिक तंगी के बीच हमें और छोटी बहन के लिए सहारा बने हैं। बहन भी कक्षा आठवीं में पढ़ती हैं।
माता-पिता के निधन होने से भाई बहन हुए थे अनाथ
उज्ज्वल गुप्ता के पिता रामचन्द्र गुप्ता उर्फ गरीबा कैंसर की बीमारी से 6 मई 2010 को मौत हो गई थी। वहीं, मां रामा की भी 21 नवम्बर 2013 को मौत हो गई थी। बचपन में माता-पिता का सिर से हाथ उठने के बाद उज्ज्वल व श्रृद्धा अनाथ हो गए थे। इन दोनों बच्चों को दादा तारा चन्द्र गुप्ता व दादी रामलली ने सीने से लगाते हुए पालन पोषण किया। दादा गांव में ही चाय और गुटखा पान मसाला की दुकान किए हैं। इस दुकान से पूरे घर का जैसे तैसे गुजारा होता है। इसके अलावा बूढ़ी दादी भी दुकान में समोसे बनाती हैं।

बच्चों का भविष्य बनाने को दादी बेचती हैं समोसे
उज्ज्वल के दादा जहां चाय पान मसाला और गुटखा की दुकान चलाते है तो वहीं दादी रामलली दुकान में समोसे बनाती हैं। यह पोते उज्ज्वल और श्रद्धा का भविष्य बनाने के लिए गांव में समोसे भी बेचती हैं। दादा ने बताया कि बच्चों की परवरिश के साथ उन्हें बड़ा अफसर बनाने के लिए ऐसी उम्र में भी दुकान चलानी पड़ रही है, ताकि दोनों का कल संवर जाए। बताया कि उज्ज्वल को पढ़ाई में कोई कमी न रह जाए, इसके लिए पोते को गांव में संचालित एक कोचिंग पढ़ने को भेजा गया। जहां टीचर अच्छे लाल ने बोर्ड की तैयारी में मदद की।

जानिए क्या होती है वो ओवरवेट लैंडिंग, जिससे कैप्टन मोनिका खन्ना ने बचायीं सैकड़ों जानें

स्पाइसजेट की फ्लाइट के एक इंजन में आग लगने की घटना को आपने अपनी आंखों से भी देखा होगा। जिस तरह से स्पाइसजेट की फ्लाइट के एक इंजन में आग लगी उससे एक ऐसा हादसा हो सकता था जो काफी भयावह होता। लेकिन पायलट मोनिका खन्ना की समझदारी और धैर्य से लिए गए फैसले ने 185 यात्रियों की जान बचा ली। मोनिका खन्ना ने पटना एयरपोर्ट पर स्पाइसजेट की फ्लाइट SG-723 की ओवरवेट लैंडिंग कराई। आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये ओवरवेट लैंडिंग होती क्या है। तो जानिए यहां…
क्या होती है ओवरवेट लैंडिंग
ओवरवेट लैंडिंग को आप एक तरीका या फिर एक विशेष पैटर्न दोनों ही रूप में परिभाषित कर सकते हैं। आइए आपको सिर्फ एक पॉइंट में समझाते हैं कि आखिर एक हवाई जहाज की ओवरवेट लैंडिंग होती क्या है…
जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि ओवरवेट लैंडिंग यानि तय वजन से ज्यादा वजन की लैंडिंग- यूं समझिए कि जब कोई हवाई जहाज एयरपोर्ट से टेकऑफ करता है कि तो उसके फ्यूल टैंक में काफी ईंधन यानि वजन होता है। लेकिन अपनी तय जगह पर पहुंचने के दौरान वो ईंधन खत्म होता है और लैंडिंग के वक्त फ्लाइट का वजह टेक ऑफ के मुकाबले कम हो जाता है।
इसे कहते हैं ओवरवेट लैंडिंग
ऐसे में अगर फ्लाइट उड़ती है और फौरन ही उसे टेक ऑफ वाली जगह पर लौटाकर लैंड कराना होता है (जैसा कि रविवार को पटना में स्पाइस जेट की फ्लाइट के साथ हुआ) तो जहाज का वजन करीब-करीब टेकऑफ के वक्त जितना ही होता है। ऐसे में पायलट को ये तय करना होता है कि फ्यूल को किसी तरीके से कम करके जहाज का वजन कम करके लैंड कराया जाए, या फिर उसी वजन के साथ। क्योंकि ज्यादा वजन के जहाज को टेकऑफ कराना आसान होता है लेकिन लैंडिंग कराना थोड़ा मुश्किल। इसी को ओवर वेट लैंडिंग कहते हैं।
बर्ड हिट में क्या होता है, सिर्फ एक पक्षी कितना खतरनाक
कई बार आपके दिमाग में ये सवाल आता होगा कि सिर्फ एक पक्षी इतना खतरनाक हो सकता है क्या जो प्लेन को खतरे में डाल दे? जवाब है बिल्कुल, स्पाइसजेट के जहाज से भी रविवार को पटना में एक पक्षी के टकराने का शक है, और माना जा रहा है कि पक्षी एक तरफ के इंजन में अंदर आ गया जिसकी वजह से वहां आग लग गई। हालांकि कई बार बर्ड हिट से प्लेन को काफी नुकसान नहीं भी होता है।

सरकारी कर्मचारियों की फिजूल खर्ची रोकने के लिए वित्त मंत्रालय की सख्ती

नयी दिल्ली।  गैर-जरूरी खर्च में कटौती करने की कवायद के तहत वित्त मंत्रालय ने सरकारी कर्मचारियों से कहा है कि वे जिस यात्रा श्रेणी के हकदार हैं, उसमें उन्हें ‘‘सबसे सस्ता किराया’’ चुनना चाहिए और दौरों तथा एलटीसी के लिए अपनी हवाई यात्रा की तारीख से कम से कम तीन हफ्ते पहले टिकट बुक करना चाहिए। व्यय विभाग की ओर से जारी कार्यालय पत्र में कहा गया है कि कर्मचारियों को यात्रा के प्रत्येक चरण के लिए केवल एक ही टिकट बुक करना चाहिए और यात्रा कार्यक्रम को मंजूरी मिलने की प्रक्रिया जारी रहने के दौरान भी बुकिंग की जा सकती है लेकिन ‘बेवजह टिकट रद्द’ करने से बचना चाहिए।
सरकारी कर्मचारी वर्तमान में सिर्फ तीन अधिकृत यात्रा एजेंटों से ही हवाई टिकट खरीद सकते हैं जिनमें बॉमर लॉरी एंड कंपनी, अशोक ट्रैवल एंड टूर्स और आईआरसीटीसी शामिल हैं।सरकारी खर्च पर हवाई टिकट की बुकिंग से संबंधित नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक यात्रा के 72 घंटे से भी कम समय के भीतर बुकिंग करने, यात्रा के 24 घंटे से भी कम समय में टिकट रद्द करने पर कर्मचारी को स्व-घोषित स्पष्टीकरण देना होगा।
इसमें कहा गया है, ‘‘कर्मचारियों को अपनी यात्रा श्रेणी में उपलब्ध सबसे सस्ती उड़ानें चुननी चाहिए।’’निर्देशों के मुताबिक किसी भी एक यात्रा के लिए सभी कर्मचारियों के टिकट एक ही यात्रा एजेंट के जरिए बुक करने चाहिए और इन बुकिंग एजेंट को किसी तरह का शुल्क अदा नहीं किया जाना चाहिए।इसमें कहा गया,‘‘कर्मचारियों को यात्रा से कम से कम 21 दिन पहले टिकट बुक करने चाहिए और सबसे प्रतिस्पर्धी किराये को चुनना चाहिए जिससे कि सरकारी खजाने पर कम से कम भार पड़े।’’

5जी नीलामी को मंत्रिमंडल की मंजूरी, जुलाई अंत में 72 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम बिक्री को रखेगी सरकार

नयी दिल्ली ।  केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में 5जी दूरसंचार सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम नीलामी को मंजूरी दे दी है। स्पेक्ट्रम नीलामी 26 जुलाई, 2022 को शुरू होगी। इसके साथ ही मंत्रिमंडल ने बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा अपने खुद के इस्तेमाल (कैप्टिव) के लिए 5जी नेटवर्क की स्थापना को भी मंजूरी दी है।

एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि 72 गीगाहर्ट्ज से अधिक के स्पेक्ट्रम की नीलामी जुलाई माह के अंत तक होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 14 जून को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया।

सूत्रों ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि मंत्रिमंडल ने 5जी की नीलामी आरक्षित मूल्य पर करने की मंजूरी दी है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने स्पेक्ट्रम मूल्य के बारे में सिफारिशें दी थीं।

ट्राई ने मोबाइल सेवाओं के लिए 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी को आरक्षित मूल्य में करीब 39 प्रतिशत की कटौती का सुझाव दिया था।

5जी स्पेक्ट्रम के नौ फ्रीक्वेंसी बैंड भारती एयरटेल और रिलायंस जियो जैसी दूरसंचार कंपनियों के बीच नीलाम किए जाएंगे। दूरसंचार विभाग के बोली और आवेदन आमंत्रित करने से संबंधित दस्तावेज में कहा गया है कि बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों को फिलहाल अपने ‘निजी गैर-सार्वजनिक नेटवर्क’ के लिए 5जी स्पेक्ट्रम को दूरसंचार कंपनियों से किराये पर लेने की इजाजत होगी।

गूगल जैसी बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां मशीन से मशीन संचार, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) और कृत्रिम मेधा (एआई) जैसे एप्लिकेशन के लिए स्पेक्ट्रम के सीधे आवंटन की मांग करती आ रही हैं जबकि दूरसंचार कंपनियां इसके विरोध में हैं और उनका कहा है कि 5जी स्पेक्ट्रम का सीधा आवंटन स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का माहौल बिगाड़ेगा और इससे सरकारी खजाने को राजस्व का भी नुकसान होगा।

इस दस्तावेज के मुताबिक, नीलामी 26 जुलाई 2022 से शुरू होगी। सरकार 20 वर्ष की वैधता वाले कुल 72,097.85 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की नीलामी करेगी। इसके अलावा विभिन्न निम्न, मध्यम और उच्च फ्रीक्वेंसी बैंड के लिए भी स्पेक्ट्रम की नीलामी की जाएगी।

आधिकारिक बयान में कहा गया है, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्पेक्ट्रम नीलामी का दूरसंचार विभाग का प्रस्ताव मंजूर कर लिया है। इसके तहत जनता और उद्यमों को 5जी सेवाएं उपलब्ध करवाने के लिए सफल बोलीदाताओं को स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाएगा।’’

दूरसंचार क्षेत्र में सुधारों को गति देते हुए मंत्रिमंडल ने स्पेक्ट्रम नीलामी से संबंधित कई विकासशील विकल्पों की भी घोषणा की है जो कारोबारी सुगमता को बढ़ावा देंगे।

इसमें कहा गया, ‘‘सफल बोलीदाताओं को अग्रिम भुगतान करने की कोई अनिवार्यता नहीं होगी। ऐसा पहली बार किया जा रहा है। स्पेक्ट्रम के लिए भुगतान 20 बराबर सालाना किस्तों में किया जा सकेगा और ये अग्रिम किस्तें प्रत्येक वर्ष की शुरुआत में देनी होंगी।’’

इसके अलावा बोलीदाताओं को 10 वर्ष के बाद स्पेक्ट्रम वापस करने का विकल्प भी दिया जाएगा बशर्ते उनका कोई बकाया न हो। इस नीलामी में अधिग्रहीत स्पेक्ट्रम के लिए स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (एसयूसी) भी नहीं लिया जाएगा।

फिडे उपाध्यक्ष बनने पर शतरंज के लोकप्रियता ग्राफ को और ऊपर ले जाना चाहूंगा : आनंद

(मोना पार्थसारथी)
नयी दिल्ली । उम्र के पांचवें दशक को पार कर चुके पांच बार के विश्व चैम्पियन विश्वनाथन आनंद का इरादा फिलहाल शतरंज को अलविदा कहने का नहीं है लेकिन खेल प्रशासक के तौर पर नयी पारी के जरिये वह खेल की लोकप्रियता का ग्राफ ऊपर ले जाने के लिये काम करेंगे । आनंद ने भाषा को दिये विशेष इंटरव्यू में कहा ,‘‘ पिछले कुछ साल में शतरंज ने काफी प्रगति की है खासकर कोरोना महामारी के दौर में लोग काफी शतरंज खेलने लगे । डिजिटिल, आनलाइन, इंटरनेट पर शतरंज का चलन बढा जिसे मैं आगे बढाना चाहूंगा ।’’
जुलाई अगस्त में महाबलीपुरम में होने वाले 44वें शतरंज ओलंपियाड के दौरान होने वाले चुनाव में अगर निवतृमान अध्यक्ष अर्काडी वोरकोविच फिर चुने जाते हैं तो आनंद अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ (फिडे) के उपाध्यक्ष होंगे । वोरकोविच ने अपनी टीम में आनंद को इस पद के लिये नामित किया है ।
आनंद ने कहा ,‘‘ मैं युवाओं के मामले में भारत को ध्यान में रखकर प्रयास करूंगा । कोशिश करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा युवा खिलाड़ी आगे आयें और उनको पूरा सहयोग मिल सके । मैं अपना नजरिया और सुझाव रखूंगा ।’’
उन्होंने कहा ,‘‘ फिडे उपाध्यक्ष पद के लिये मुझसे मार्च में पूछा गया तो मुझे यह दिलचस्प अवसर लगा । अब मैं काफी कम टूर्नामेंट खेल रहा हूं और अपनी अकादमी पर भी फोकस है लेकिन यह एक नयी चुनौती है और मैं सीखने की कोशिश करूंगा । अब मैं वैसे भी चुनिंदा टूर्नामेंट खेल रहा हूं मसलन शतरंज ओलंपियाड नहीं खेल रहा तो इस नयी चुनौती के लिये मैं तैयार हूं ।’’ उन्होंनें हालांकि संन्यास की संभावना से इनकार करते हुए कहा ,‘‘ मेरा खेल को अलविदा कहने का कोई इरादा नहीं है । उम्मीद है कि फिडे उपाध्यक्ष बनने के बाद भी खेलना जारी रखूंगा।’’
1987 में भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने आनंद से उनकी विरासत के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा ,‘‘ मैं इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचता । मैं उम्मीद करता हूं कि मैने खेल को बहुत कुछ वापिस दिया । इसे आगे ले जाने में मदद की और इसमें लोगों का ध्यान खींचा । यह सुनिश्चित किया कि भारत की सशक्त उपस्थिति विश्व शतरंज के मानचित्र पर हो ।’’
इतने वर्ष में शतरंज में भारत ने लंबा सफर तय किया है और हाल ही में राहुल श्रीवास्तव देश के 74वें ग्रैंडमास्टर बने । भारत के सफर के बारे में पूछने पर आनंद ने कहा ,‘‘ पहली बात मानसिक बाधा होती है कि क्या हम ग्रैंडमास्टर बन सकते हैं लेकिन जब एक खिलाड़ी बन जाता है तो दूसरों के लिये राह आसान हो जाती है । लंबे समय तक चुनिंदा ग्रैंडमास्टर ही भारत को मिले लेकिन पिछले कुछ समय से संख्या बढी है जो अच्छी बात है ।’
उन्होंने कहा ,‘‘ जब मैने कास्पोरोव के खिलाफ विश्व चैम्पियनशिप मैच खेला तो भारत के अधिकांश मौजूदा ग्रैंडमास्टर पैदा भी नहीं हुए थे । नये और युवा ग्रैंडमास्टर आ रहे हैं और अब सहयोगी स्टाफ भी अच्छा है । पूर्व ग्रैंडमास्टर उन्हें सिखा रहे हैं और महासंघ का भी पूरा सहयोग है ।’’
भारत में पहली बार 28 जुलाई से महाबलीपुरम में होने जा रहे शतरंज ओलंपियाड को देश में खेल को लोकप्रिय बनाने की दिशा में क्रांतिकारी कदम बताते हुए उन्होंने कहा ,‘‘यह सबसे बड़ा शतरंज टूर्नामेंट है । अधिकांश टूर्नामेंटों में 10 , 20 या अधिकतम 50 खिलाड़ी होते हैं लेकिन यहां 2000 के करीब खिलाड़ी होंगे तो इसकी तुलना ही नहीं हो सकती ।’’
उन्होंने कहा ,‘‘ इसका बड़ा प्रभाव होगा क्योंकि इसमें इतने सारे खिलाड़ियों को खेलते देखना शतरंजप्रेमियों को लंबे समय तक याद रहेगा । इसके साथ ही इसकी व्यापक कवरेज होगी और तीन सप्ताह तक शतरंज के खबरों में बने रहने भी खेल की लोकप्रियता ग्राफ को ऊपर ले जायेगा । आने वाले समय में लोग इसकी मिसाल देंगे ।’’
आनंद इस बार बतौर मेंटोर भारतीय टीम के साथ हैं और भारत की संभावना के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा ,‘‘ मेरी सोच ऐसी है कि अगर मैं खिताब के लिये फेवरिट भी हूं तो भी मुझे बड़बोलापन पसंद नहीं । अपने खेल पर फोकस करने पर जोर रहता हूं । पदक और जीत के बारे में लोग बात कर सकते हैं लेकिन खिलाड़ी को अच्छा खेलने पर ही ध्यान देना चाहिये ।’’