Wednesday, July 16, 2025
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ईपीएफओ की केंद्रीय प्रणाली की तैयारी, एक साथ मिलेगी 73 लाख पेंशनभोगियों को पेंशन

नयी दिल्ली । कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) अपनी 29 और 30 जुलाई को होने वाली बैठक में केंद्रीय पेंशन वितरण प्रणाली की स्थापना के प्रस्ताव पर विचार के बाद इसे मंजूरी देगा। इस प्रणाली की स्थापना से देशभर में 73 पेंशनभोगियों के खातों में पेंशन को एक बार में एक साथ स्थानांतरित किया जा सकेगा।
अभी ईपीएफओ के 138 क्षेत्रीय कार्यालय अपने क्षेत्र के लाभार्थियों के खातों में पेंशन डालते हैं। ऐसे में पेंशनभोगियों को पेंशन अलग-अलग दिन और समय पर मिलती है।
एक सूत्र ने पीटीआई-भाषा से कहा कि ईपीएफओ के निर्णय लेने वाले शीर्ष निकाय केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) की 29 और 30 जुलाई को होने वाली बैठक में केंद्रीय पेंशन वितरण प्रणाली के गठन का प्रस्ताव रखा जाएगा।
सूत्र ने कहा कि इस प्रणाली की स्थापना के बाद पेंशन का वितरण 138 क्षेत्रीय कार्यालय के डेटाबेस के आधार पर किया जाएगा। इससे 73 लाख पेंशनभोगियों को एक साथ पेंशन दी जा सकेगी।
सूत्र ने बताया कि सभी क्षेत्रीय कार्यालय अपने क्षेत्र के पेंशनभोगियों की जरूरतों को अलग-अलग देखते हैं। इससे पेंशनभोगियों को अलग-अलग दिन पेंशन का भुगतान हो पाता है।
सीबीटी की 20 नवंबर, 2021 को हुई 229वीं बैठक में न्यासियों ने सी-डीएसी द्वारा केंद्रीकृत आईटी आधारित प्रणाली के विकास के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।
श्रम मंत्रालय ने बैठक के बाद बयान में कहा था कि इसके बाद क्षेत्रीय कार्यालयों के ब्योरे को चरणबद्ध तरीके से केंद्रीय डेटाबेस में स्थानांतरित किया जाएगा। इससे सेवाओं का परिचालन और आपूर्ति सुगम हो सकेगी।

दोस्त भारत के लिए चीन से भिड़ गए थे शिंजो आबे, खोला था जापान का खजाना

नयी दिल्ली । जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की मौत हो गई है। एक हमलावर ने सुबह उन्हें गोली मार दी थी और बाद में अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। उनका जाना भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। इसकी वजह यह है कि उन्होंने दोनों देशों के रिश्तों को नई दिशा दी थी।यूं तो भारत और जापान के रिश्ते सदियों पुराने हैं लेकिन शिंजो आबे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें एक अलग मुकाम पर पहुंचाया। शिंजो आबे ने ऐसे समय भारत की मदद की जब दूसरे देशों ने भारत से मुंह मोड लिया था। आज जापान के सहयोग से भारत में कई परियोजनाओं चल रही हैं। इनका श्रेय काफी हद तक शिंजो आबे को जाता है। इनमें बुलेट ट्रेन, दिल्ली मेट्रो, दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर , शहरों में बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी परियोजनाओं और पूर्वोत्तर के विकास से जुड़ी कई परियोजनाएं अहम हैं। एक तरह से उन्होंने जापान के खजाने का मुंह भारत के लिए खोल दिया था।
भारत के प्रति शिंजो आबे के लगाव को इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री रहते उन्होंने कई बार भारत की यात्रा की थी। उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण (Padma Vibhushan) से सम्मानित किया गया है। शिंजो आबे न केवल जापान के सबसे ज्यादा लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे हैं, बल्कि वह सबसे ज्यादा बार भारत आने वाले जापानी प्रधानमंत्री रहे हैं। अपने करीब नौ साल के कार्यकाल में आबे चार बार भारत आए। आबे जापान के पहले प्रधानमंत्री थे जो गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि रहे। उन्हें 2014 में गणतंत्र दिवस के मौके पर मुख्य अतिथि रहे। उस समय भारत में मनमोहन सिंह की सरकार थी।
बुलेट ट्रेन के लिए सस्ता कर्ज
साल 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और जापान के रिश्तों में नया जोश भर गया। इस दौरान दोनों देशों के बीच कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इनमें काशी को क्योटो के तर्ज पर विकसित करने, बुलेट ट्रेन परियोजना, न्यूक्लियर एनर्जी, इंडो पेसिफिक रणनीति और एक्ट ईस्ट पॉलिसी शामिल है। 2014 में जब मोदी जापान गए तो काशी को क्योटो के तर्ज पर विकसित करने का समझौता हुआ था। इसके तहत जापान काशी को स्मार्ट सिटी बनाने में जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहरों, कला और संस्कृति को संरक्षित में भी मदद कर रहा है।
भारत में पहली बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की शुरुआत भी आबे में हुई। इसके तहत दोनों देशों के बीच 2015 में समझौता हुआ था। 2017 में मोदी और आबे ने इस अहम प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी। समझौते के तहत अहमदाबाद से मुंबई तक बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में करीब 1.1 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसके लिए 81 फीसदी राशि जापान सरकार के सहयोग से जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (JICA) देगी। जापान इसके लिए 0.1 फीसदी पर लोन दे रहा है। पीएम मोदी के इस फेवरेट प्रोजेक्ट के लिए जापान टेक्निकल सपोर्ट से लेकर बुलेट ट्रेन की आपूर्ति तक कर रहा है। हालांकि कई कारणों से यह प्रोजेक्ट देरी से चल रहा है और देश में पहली बुलेट ट्रेन 2026 से चलने की संभावना है।
ऐतिहासिक भाषण
आबे जब पहली बार प्रधानमंत्री बने तो वह अगस्त 2007 में भारत आए थे। उस समय उन्होंने भारत और जापान के संबंधों को लेकर एक अहम भाषण दिया था जिसे ‘दो सागरों का मिलन’ के रूप में याद किया जाता है। जानकारों का मानना है कि भारत-जापान के संबंधों को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में उस भाषण ने नींव रखी थी। इसके बाद दोनों देशों के बीच करीबी बढ़ी।
दिल्ली और मुंबई के बीच बन रहे 1483 किमी लंबे दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर ( डीएमआईसी) में भी जापान सहयोग कर रहा है। जनवरी 2014 में आबे के भारत आने से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामले की समिति ने इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी थी। 90 अरब डॉलर की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए पहली मदद जापान से ही मिली थी। जापान ने इसके लिए 4.5 अरब डॉलर का लोन दिया था। इसके अलावा देश के कई शहरों में जापान के सहयोग से मेट्रो प्रोजेक्ट बन रहे हैं।
चीन के विरोध को किया दरकिनार
आबे के प्रयासों से ही भारत-जापान रिश्तों में अंतिम बाधा पार हुई थी। जापान भारत को न्यूक्लियर पावर के तौर पर मान्यता नहीं देता था लेकिन आबे के प्रयासों से 2016 में दोनों देशों के बीच सिविल न्यूक्लियर पैक्ट हुआ। उन्होंने एनपीटी का सदस्य नहीं होने के बाद भी भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर समझौता किया। साथ ही विदेश और रक्षा मंत्री के साथ (2+2) मीटिंग और डिफेंस इक्विपमेंट की तकनीक ट्रांसफर पर भी दोनों देशों के बीच कई अहम समझौते हुए। इससे दुनिया के दूसरे देशों के साथ भी भारत के संबंधों को नया आयाम मिला।
जापान पूर्वोत्तर की कई परियोजनाओं में मदद दे रहा है। इसके लिए उसने चीन के विरोध को भी दरकिनार कर दिया था। 2017 में आबे के भारत दौरे में पूर्वोत्तर की कई परियोजनाओं के लिए भारत और जापान के बीच समझौता हुआ था। चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता रहा है और इस विवादित मसला मानता है। उसका कहना था कि भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर विवाद है, इसलिए किसी तीसरे देश को वहां निवेश से बचना चाहिए। लेकिन जापान ने चीन के विरोध को दरकिनार कर दिया और वह पूर्वोत्तर में कई विकास परियोजनाओं में मदद कर रहा है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

94 साल की स्प्रिंटर दादी ने जीता वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण और कांस्य

नयी दिल्ली । उम्र तो सिर्फ एक आंकड़ा है… इस कहावत को भारत की 94 वर्षीय भगवानी देवी ने साबित कर दिखाया है। जिस उम्र में अमूमन लोग ठीक ढंग से उठ-बैठ नहीं पाते उस उम्र में उन्होंने विदेश में भारत के तिरंगे का माना बढ़ाया है। उन्होंने वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सीनियर सिटीजन कैटिगरी में 100 मीटर रेस का गोल्ड जीता तो फिर शॉटपुट में कांस्य पदक हासिल किया।
फिनलैंड के टेम्परे में वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में ‘स्प्रिंटर दादी’ भगवानी ने 100 मीटर स्प्रिंट इवेंट में यह कमाल किया। उन्होंने 24.74 सेकंड के टाइम के साथ स्वर्ण पदक अपनी झोली में डाला। साथ ही शॉटपुट यानी गोला फेंक में भी ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया। तिरंगा वाली जर्सी में, जिसपर इंडिया लिखा है, वह पदक दिखाती नजर आ रही हैं।
उनकी यह तस्वीर वायरल हो रही है और हर कोई उनकी हिम्मत की दाद रहे रहा है। मिनिस्ट्री ऑफ यूथ अफेयर्स एंड स्पोर्ट्स ने ऑफिशल ट्विटर अकाउंट पर उनकी तस्वीर को पोस्ट करते हुए तारीफ की है। मिनिस्ट्री की ओर से लिखा गया- भारत की 94 वर्षीय भगवानी देवी ने एकबार फिर बतला दिया है कि उम्र तो सिर्फ संख्या है। उन्होंने गोल्ड और और ब्रॉन्ज मेडल जीता। वाकई में साहसिक प्रदर्शन।

अब डॉलर नहीं बल्कि रुपये में होगा आयात-निर्यात : आरबीआई

नयी दिल्ली । भारतीय रिजर्व बैंक ने एक ऐसा फैसला किया है, जिससे भारत को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने में सबसे बड़ी मदद मिलेगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वह भारतीय मुद्रा यानी रुपये में आयात-निर्यात के निपटारे का इंतजाम करें। केंद्रीय बैंक ने यह कदम वैश्विक कारोबारी समुदाय की बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए उठाया है। भारतीय रिजर्व बैंक के इस कदम के बाद अब लोग यह सोच रहे हैं कि इससे भारत को क्या फायदा होगा? सवाल ये भी है कि क्या इससे आम आदमी को कोई फायदा होगा? आइए जानते हैं।
डॉलर पर घटेगी भारत की निर्भरता
अभी तक आयात-निर्यात के लिए भारत समेत अधिकतर देश डॉलर पर निर्भर हैं। यानी अगर उन्हें किसी दूसरे देश से कुछ खरीदना है या बेचना है तो उन्हें डॉलर में भुगतान करना होता है। अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे ताकतवर करेंसी है। कुल वैश्विक व्यापार में इसकी हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है। इसका मतलब है कि वैश्विक कारोबार का 80 फीसदी से ज्यादा ट्रांजेक्शन डॉलर में होता है। इसीलिए इसे दुनिया की सबसे ताकतवर करेंसी माना जाता है। जब रुपये में अंतरराष्ट्रीय ट्रेड होने लगेगा तो इससे डॉलर पर हमारी निर्भरता घटेगी।
अमेरिका के दबाव में नहीं रहेगा भारत!
जब भारत की डॉलर पर निर्भरता घटेगी तो अमेरिका से किसी तनाव की स्थिति में भी भारत को अधिक डरने की जरूरत नहीं होगी। जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो सबसे पहले अमेरिका ने उस पर डॉलर में ट्रेड करने पर प्रतिबंध लगा दिया। इसकी वजह से रूस को अंतराष्ट्रीय ट्रांजेक्शन करने में थोड़ी दिक्कत हुई, लेकिन वह पहले से ही अपनी करंसी रूबल में कई अंतरराष्ट्रीय ट्रांजेक्शन करने लगा था, इसलिए उस पर अमेरिका का ज्यादा दबाव नहीं बना। भारत की भी अपनी करंसी अंतरराष्ट्रीय ट्रेड के लिए इस्तेमाल होगी तो भारत को अमेरिका से तनाव की किसी स्थिति में दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
आम आदमी को कैसे होगा फायदा?
रुपया अंतरराष्ट्रीय ट्रेडिंग में इस्तेमाल होने से आम आदमी को कई तरह से फायदा होगा। सबसे बड़ा फायदा तो यही होगा कि कई प्रोडक्ट सस्ते हो सकते हैं। जैसे कुछ ही महीनों पहले रूस ने भारत को सस्ता कच्चा तेल ऑफर किया था। यानी पेट्रोल-डीजल के दाम कम हो सकते थे। हालांकि, भारत की निजी कंपनियों ने इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया और निर्यात पर ज्यादा जोर दिया। ये तो सिर्फ एक उदाहरण था। भारत और अन्य देशों के बीच सिर्फ कच्चे तेल ही नहीं, बल्कि खाने के तेल, ड्राई फ्रूट्स, गैस, कोयला, दवाएं समेत कई चीजों का व्यापार होता है। कई बार तो प्याज भी आयात किया जाता है। रूपये में ट्रेड होने से एक्सचेंज रेट का रिस्क नहीं रहेगा और कारोबारी बेहतर बार्गेनिंग करते हुए सस्ते में डील फाइनल कर सकते हैं, जिससे आम आदमी तक वह सामान सस्ते में पहुंच सकेगा।
अपनी करंसी में अंतरराष्ट्रीय ट्रेड के फायदे
इसका एक फायदा तो ये है कि अगर किसी देश की करंसी में अंतरराष्ट्रीय ट्रेड होता है तो इससे निर्यातकों को बड़ा फायदा होता है। उन्हें एक्सचेंज रेट रिस्क कम करने में मदद मिलती है। इसका सबसे बड़ा फायदा उन प्रोडक्ट्स में होता है, जिनका भुगतान सामान का ऑर्डर मिलने के काफी समय बाद होता है। इतने दिनों में डॉलर से एक्सचेंज रेट घटने-बढ़ने का निर्यातकों पर बड़ा असर होता है। वहीं दूसरा फायदा ये है कि रुपये में अंतरराष्ट्रीय ट्रेडिंग से एक्सचेंज रेट के रिस्क के बिना ही भारतीय फर्म और वित्तीय संस्थान अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों तक पहुंच बना सकेंगे। साथ ही उन्हें सस्ती दरों पर और बड़े पैमाने पर उधार लेने की इजाजत मिलेगी।

मिजोरम जहाँ हर 100 अधिकारियों में 70 से भी अधिक महिलाएं

नयी दिल्ली । मिजोरम में वरिष्ठ अधिकारी और मैनेजर लेवल पर महिला और पुरुष का अनुपात सबसे अधिक है। यहां इन पदों पर 70.9 फीसदी महिलाएं हैं। जुलाई 2020- जून 2021 तक के पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के आंकड़ों के अनुसार नगालैंड को छोड़कर बाकी पूरे उत्तर पूर्वी राज्यों में महिलाओं का दबदबा है। इन जगहों पुरुषों की तुलना में बड़े पदों पर महिलाओं की संख्या डबल डिजिट में है।
मिजोरम के बाद नंबर आता है सिक्किम का, जहां यह अनुपात 48.2 फीसदी है। वहीं मणिपुर में अनुपात 45.1 फीसदी है। 44.8 फीसदी के साथ इस लिस्ट में मेघालय भी है। इनके बाद आंध्र प्रदेश इस लिस्ट में 43 फीसदी के अनुपात के साथ आता है। असम की बात करें तो वहां यह अनुपात 16.1 फीसदी है, जबकि नगालैंड में यह अनुपात 9.1 फीसदी है। अगर पूरे देश में लेजिस्लेटर, वरिष्ठ अधिकारी और मैनेजर लेवल के पदों पर महिलाओं की पुरुषों से तुलना करें तो यह रेश्यो 22.8 फीसदी है।
कई ऐसे भी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं जहां यह अनुपात बहुत अधिक कम है। बड़े राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कम अनुपात वाले राज्यों में उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, बिहार, पंजाब और अंडमान-निकोबार शामिल हैं। दादरा नागर हवेली, दमन दीव में यह अनुपात सिर्फ 1.8 फीसदी है, जो सबसे कम है।
वरिष्ठ मैनेजर वाली नौकरियों के मामले में भी मिजोरम 40.8 फीसदी के अनुपात के साथ सबसे ऊपर है। वहीं सिक्किम इस लिस्ट में 32.5 फीसदी के साथ दूसरे नंबर पर। 31 फीसदी के साथ मेघालय तीसरे नंबर पर है। परंपरागत तौर पर ही उत्तर-पूर्वी राज्यों में वरिष्ठ मैनेजर वाली नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी काफी अधिक रहती है। हालांकि, हैरान करने वाले आंकड़े पंजाब से आए हैं, जो कभी इस कैटेगरी में टॉप के राज्यों में शामिल था, लेकिन अब वहां यह अनुपात सिर्फ 7.5 फीसदी रह गया है।

सुनील देवड़े : जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स का गोल्ड मेडलिस्ट जिसने बनाया 21 फुट ऊंचा अशोक स्तंभ

नयी दिल्ली । राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी ने सोमवार को नए संसद भवन की छत पर बने राष्ट्रीय प्रतीक या कहें अशोक स्तंभ की प्रतिमा का अनावरण किया। इसे बनाने में 100 से अधिक कामगारों की मेहनत और 9 महीने से अधिक का समय लगा। उच्च शुद्धता वाले कांस्य से बने भारत के राष्ट्रीय प्रतीक को स्थापित करना अपने आप में एक चुनौती थी क्योंकि यह जमीन से 33 मीटर ऊपर है। इन सबके बीच क्या आप यह जानते हैं कि इस राष्ट्रीय प्रतीक को डिजाइन करने के पीछे किसका हाथ है। लोगों के बीच इस प्रतिमा के सामने आने के बाद एख सवाल तेजी से उठ रहा है कि आखिर इतनी खूबसूरत प्रतिमा को बनाने के पीछे कौन है। तो आपको बता दें कि इसे महाराष्ट्र के औरंगाबाद के सुनील देवड़े और जयपुर के लक्ष्मण ने डिजाइन किया है।
कौन हैं सुनील देवड़े
राष्ट्रीय प्रतिमा को बनाने वाले 49 वर्षीय मूर्तिकार सुनील देवड़े जेजे स्कूल ऑफ ऑर्ट्स से गोल्ड मेडल की उपाधि पा चुके हैं। उनके पिता ने भी इसी कॉलेज से पढ़ाई की थी। इतना ही नहीं सुनील ने इसके अलावा अंजता एलोरा विजिटर सेंटर में अजंता एलोरा गुफाओं की रेप्लिकाएं भी बनाई हैं जिसका मूल्य 125 करोड़ बताया जाता है। इस रेप्लिकाओं को बनाने के पीछे का मकसद मूल अजंता एलोरा गुफाओं पर से दवाब कम करना था।
सुनील देवड़े और अशोक स्तंभ बनाने की कहानी
बकौल सुनील देवड़े कहते हैं कि इस बहुमूल्य कार्य को करने के लिए पूरे देश से मुझे चुना गया, इससे बडे़ सम्मान की बात और क्या हो सकती है। देवड़े ने हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत के दौरान कहा कि उन्हें यह प्रेरणा अपने पिता से मिली है जो खुद पुरात्तव विभाग के रिस्टोरेशन डिपार्टमेंट में काम करते हैं। देवड़े ने अशोक स्तंभ बनाने के पीछे की कहानी बताते हुए कहा कि अशोक स्तंभ को बनाने के लिए हमें टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड का साथ मिला। टाटा प्रोजेक्ट्स ने इस बाबत पिछले साल एक सर्वे भी किया था। सर्वे के आधार पर उन्होंने मेरे अनुभवों के आधार पर मेरा चुनाव किया।
मूर्तिकार सुनील देवड़े ने कहा कि उन्हें राष्ट्रीय प्रतीक का क्ले बनाने में लगभग 5 महीने लग गए। इसके बाद सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट्स से संबंधित एक्सपर्ट्स ने इसका मूल्यांकन किया जिसके बाद यह आगे के लिए पास किया गया। देवड़े ने आगे कहा कि एक बार पास पास हो जाने के बाद मैंने इस स्तंभ का फाइबर मॉडल बनाया। इस मॉडल को लेकर मैं जयपुर गया जहां इसे कांस्य से कास्ट किया गया।
कितना विशाल है अशोक स्तंभ
अशोक स्तंभ की हाइट 21 फुट है जिसे 5 फुट के पेडेस्टल पर रखा गया है। केंद्रीय आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कांस्य से बने इस प्रतीक की ऊंचाई 6.5 मीटर हैं और इसे सहारा देने वाले ढांचे समेत इसका वजन 16,000 किलोग्राम (9,500 किलोग्राम वजन का राष्ट्रीय प्रतीक और इसे सहारा देने वाला 6,500 किलोग्राम वजनी ढांचा) है। उन्होंने बताया कि यह प्रतीक उच्च गुणवत्ता वाले कांस्य से बनाया गया है और यह भारतीय कारीगरों द्वारा पूर्णतय: हस्तनिर्मित है। उन्होंने कहा, ‘सामग्री और शिल्प कौशल के दृष्टिकोण से भारत में कहीं और प्रतीक का इस प्रकार के चित्रण नहीं किया गया है।’

सर्विकल कैंसर : पहली स्वदेशी एचपीवी वैक्सीन को मिली मंजूरी

पुणे । भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने मंगलवार को सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) को ऐंटी सर्विकल कैंसर और देश में विकसित भारत के पहले क्वाड्रिवेलेंट ह्यूमन पैपिलोमावायरस टीके (क्यूएचपीवी) के मैन्युफैक्चरिंग के लिए मार्केटिंग क्लीयरेंस मिल गई है। यह भारत में सर्विकल कैंसर के खिलाफ विकसित पहली स्वदेशी वैक्सीन है जिसे इसी साल के अंत तक लॉन्च किया जा सकता है। गौरतलब है कि सर्विकल कैंसर 15-44 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं में दूसरा सबसे अधिक बार होने वाला कैंसर है।
सीरम इंस्टिट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने ट्वीट कर इसके बारे में जानकारी दी। उन्होंने लिखा, ‘पहली बार महिलाओं में सर्विकल कैंसर के इलाज के लिए एक भारतीय एचवीपी वैक्सीन होगी जो सस्ती और सुलभ दोनों हैं। हम इस साल के अंत इसे लॉन्च करने के लिए उत्सुक हैं। हम इसे मंजूरी देने के लिए डीसीजीआई को धन्यवाद देते हैं।’
दो तिहाई क्लीनिकल ट्रायल पूरा
डीसीजीआई की मंजूरी इस पर 15 जून को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की कोविड-19 पर विषय विशेषज्ञ समिति की सिफारिश के बाद आई है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से चरण 2/3 क्लिनिकल ट्रायल पूरा होने के बाद इसकी शीघ्र उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सीरम इंस्टिट्यूट में निदेशक (सरकारी और नियामक मामलों) प्रकाश कुमार सिंह ने डीसीजीआई को आवेदन कर क्यूएचपीवी के लिए मार्केटिंग क्लीयरेंस की मंजूरी मांगी थी।
हजार गुना अधिक असरदार है वैक्सीन
टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) ने भी टीके के क्लिनिकल परीक्षण से संबंधित डेटा की समीक्षा करने के बाद हाल में क्यूएचपीवी को स्वीकृति प्रदान कर दी थी। समझा जाता है कि डीसीजीआई को दिए गए आवेदन में प्रकाश कुमार सिंह ने कहा है कि क्यूएचपीवी टीके सेरवावैक ने मजबूत एंटीबॉडी प्रतिक्रिया का प्रदर्शन किया है जो सभी लक्षित एचपीवी प्रकारों और सभी खुराक और आयु समूहों के आधार पर लगभग 1,000 गुना अधिक प्रभावी है।
आवेदन में, प्रकाश कुमार सिंह ने उल्लेख किया था कि हर साल लाखों महिलाओं को सर्विकल कैंसर के साथ-साथ कुछ अन्य कैंसर का पता चलता है और मृत्यु दर भी बहुत अधिक है। भारत में सर्विकल कैंसर 15 से 44 वर्ष आयु समूह की महिलाओं में दूसरा सर्वाधिक होने वाला कैंसर है।

भारत जैन महामंडल लेडिज विंग कोलकाता ने मनाया सुरंगों सावन

 कोलकाता । भारत जैन महामंडल लेडिज विंग कोलकाता ने भारतीय भाषा परिषद के सभागार में सत्तर महिला सदस्याओं के साथ सुरंगों सावन कार्यक्रम का आयोजन किया। इस अवसर पर प्रमुख अतिथियों में भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज की व्याख्याता डॉ वसुंधरा मिश्र,जेडी बिरला की प्रिंसिपल दीपाली सिंघी और ताजा टीवी की डायरेक्टर अमृता नेवर, गायिका जस्मिन उपस्थित रहीं। सावन की फुहार में सभी सदस्याओं ने अपने-अपने अनुभवों को अभिव्यक्ति दी। कविता, गीत और राजस्थान के सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य पर प्रस्तुतियां भी दी गईं। ताजा टीवी की डायरेक्टर अमृता नेवर ने बचपन की बातों को याद करते हुए कविता सुनाई और कहा कि बदलते वक्त में बच्चों को अपने बचपन से रूबरू कराएं और मिट्टी की सोंधी खुशबू का अहसास दिलाएं। वहीं डॉ वसुंधरा मिश्र ने सावन पर कालिदास के श्लोक’ आषाढ़स्य प्रथम दिवसे’ के साथ आरंभ करते हुए सावन महीने में होने वाले विभिन्न तीज-त्यौहारों के लिए महिलाओं के दायित्व के विषय में विस्तार से जानकारी दी। जे डी बिरला की प्रिंसिपल
दीपाली सिंघी ने राजस्थानी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बच्चों में संस्कार डालने की बात पर जोर दिया और राजस्थान में उनके अनुभूत बचपन के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि आज हम सावन भूल चुके हैं, झूले भूल चुके हैं फिल्मों में भी नहीं है। पेड़ खेत नहीं देखे। । रेत पर पड़ती वारिश की बूंदों का अनुभव बच्चों को सिखाना चाहिए और सावन का महीना पवन करे शोर गीत भी गाया। सुमधुर स्वरों की गायिका जस्मिन ने राजस्थानी गीत ‘पलका में बंद कर राखूंली’ , ‘पधारो म्हारे देश’ और ‘रिमझिम रिमझिम’ गीत गाकर सबका मन मोह लिया।
सुमित्रा सेठिया और सुप्यार पुगलिया ने सावन की विशेषता बताते हुए कविता सुनाई। इन दोनों के सहयोग से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कंचन वैद, ममता पिंचा,इंद्रा बागरेचा, स्नेहलता पुगलिया, शशि सेठिया, कविता दूगड़, सुशीला पुगलिया ने सावन की कविताओं की प्रस्तुति दी।
संस्था की उपाध्यक्ष अंजू सेठिया ने संचालन किया और उपाध्यक्ष सरोज भंसाली ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए अतिथियों और सदस्याओं को साड़ी उपहार में दी।नेहा रामपुरिया और राजश्री भंसाली का विशेष सहयोग रहा। अंत में, विनोद बिनानी सूरत द्वारा भेजी गई सभी साड़ियों का वितरण किया गया।

एनएच नारायणा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, हावड़ा ने साल भर में की 100 रोबोटिक सर्जरी

कोलकाता। एनएच नारायणा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, हावड़ा ने चिकित्सा के क्षेत्र में एक नया इतिहास कायम किया है। दरअसल अस्पताल ने केवल एक साल के भीतर चौथी पीढ़ी के दा विंची की तकनीकी की सहायता से सफलतापूर्वक 100 रोबोटिक सर्जरी पूरी कर उन्नत चिकित्सा उपचार के क्षेत्र में एक बड़ा मुकाम हासिल किया है। खास बात यह है कि इस तकनीक की सहायता से सर्जरी करने पर कम रक्त हानि, कम दर्द और तेजी से ठीक होने के लिए उन्नत प्रक्रिया मानी जाती है। अस्पताल की तरफ से आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में इस बाबत जानकारी दी गई। डॉ. सुमन मल्लिक ने बताया कि यह हमारे लिए केवल एक कदम है क्योंकि हम बेहतर और अधिक लाभकारी स्वास्थ्य तकनीकों को लाने के लिए खुद को समर्पित करेंगे। कैंसर के लिए उपलब्ध पारंपरिक उपचारों के अनुसार, कई मामलों में ट्यूमर को हटाने के लिए सर्जिकल इनवैशन की आवश्यकता होती है। हालांकि सर्जरी को दर्दनाक प्रक्रियाओं में से एक माना जाता है लेकिन हाल के दशक में 3डी विज़ुअलाइज़ेशन के साथ, न्यूनतम इनवेसिव तकनीक और तेजी से रिकवरी रोबोटिक सर्जरी ने इस विचार को बदल दिया है। इस दृष्टि को आगे बढ़ाने के प्रयास में हाल ही में नारायणा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, हावड़ा ने कैंसर देखभाल में उन्नत उपचार के लिए चौथी पीढ़ी के दा विंची की तकनीकी रोबोटिक सर्जरी की शुरुआत की। टीम में डॉ कौस्तव बसु, डॉ तरुण जिंदल, डॉ सुमित सान्याल, डॉ सुमन मलिक शामिल हैं। नारायणा हेल्थ के उत्तर और दक्षिण के क्षेत्रीय सीओओ आर.वेंकटेश के ने कहा कि हम अपने वचन के अनुसार आगे बढ़े जा रहे हैं। कैंसर देखभाल में रोबोटिक सर्जरी टीम के सभी अनुभवी और कुशल सर्जनों ने रोबोटिक सर्जरी के साथ कैंसर के उन्नत और केंद्रित उपचार के बारे में चर्चा की। इसके साथ ही लोगों में अधिक से अधिक जागरूकता पैदा करने के लिए उन्नत रोबोटिक सर्जरी के साथ गाइनी कैंसर, यूरो कैंसर, जीआई कैंसर आदि के लक्षित अंग विशिष्ट उपचार पर एक अन्य चर्चा भी आयोजित की गई।

बेकार पड़ी चीजों से सजाएं अपना आशियाना

घर में ऐसी बहुत सी पुरानी चीजें होती हैं, जिन्हें महिलाएं बेकार समझकर फेंक देती हैं। जरुरी नहीं कि आप घर को नया लुक देने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करें। आप घर में इस्तेमाल न होने वाली चीजों से भी घर को सजा सकते हैं।
बेकार पड़े सामान से घर को नया लुक दे सकते हैं। बढ़ती महंगाई में होम डेकोर की चीजें खरीदने के लिए आप घर में पड़ी बेकार चीजों से घर सजा सकती हैं। तो चलिए आपको कुछ ऐसी चीजें बताते हैं जिनसे आप घर डेकोरेट कर सकते हैं।
पुराने बैग का करें दोबारा उपयोग
पुराने पड़े बैग महिलाएं अक्सर फेंक देती हैं। लेकिन आप इन बैग्स को एक नई लुक देकर घर डेकोरेट कर सकते हैं। आर्टिफिशयल फूलों का इस्तेमाल करके आप बैग का रियूज कर सकते हैं।
कांच की बोतलें
आप कांच की बोतलें भी घर सजाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। आप इन बोतलों का कैंडल स्टैंड के रुप में प्रयोग कर सकते हैं। पुराने ऊन के ऊपर फेवीकोल लगाकर आप बोतलों को डेकोरेट कर सकते हैं। आप इसका इस्तेमाल फ्लावर पॉट इस्तेमाल कर सकते हैं।
पुरानी दराज
अक्सर कमरों की दराज खराब हो जाती है, जिसे महिलाएं ऐसे ही फेंक देती हैं। आप इस दराज का इस्तेमाल एक कॉर्नर के रुप में कर सकती हैं। इसमें आप फूलदान और एंटीक पीसेज रखकर इसे डेकोरेट कर सकती हैं।
टायर
आप पुराने पड़े टायरों से भी घर सजाने की सुंदर चीजें बना सकती हैं। इनका इस्तेमाल आप गार्डन को सुंदर बनाने के लिए कर सकते हैं। टायरों को गाढ़े और चटक रंगों के साथ रंग लें। फिर इनमे मिट्टी भरकर आप इसमें सुंदर फूल और पौधे लगा सकते हैं। आप इन्हें कवर करके लॉबी या फिर बालकनी में रख सकते हैं।
पुराने बक्से
आजकल भले ही इन पुराने बक्सों को कोई इस्तेमाल नहीं करता। लेकिन आप इनका इस्तेमाल अपने घर को सजाने के लिए कर सकती हैं। पुराने बक्सों पर पेंटिंग करके आप उन्हें अपने घर के किसी कोने में रख सकती हैं। इसके अलावा आप मैटल वर्क के साथ भी इन्हें आकर्षक लुक दे सकते हैं।