मॉनसून अपने साथ कई बीमारियों को लेकर आता है। इन बीमारियों से बचाव के लिए हम अच्छी डाइट लेते हैं, साथ ही बीमारियों के लक्षण नजर आने पर दवाईयों को सेवन भी करने लगते हैं। लगातार दवाईयों के सेवन से हमारी इम्युनिटी कमजोर हो सकती है। अगर मॉनसून में आपको भी सर्दी, खांसी और सिरदर्द ज्यादा परेशान करता है, तो आप अपने साथ अजवाइन की पोटली रख सकते हैं। इस मौसम में अजवाइन आपको काफी फायदा पहुंचाएगी। इसके लगातार इस्तेमाल से गले और कफ की परेशानी आपको ज्यादा परेशान नहीं करेगी।
मॉनसून में अजवाइन की पोटली के फायदे
अजवाइन पोषक तत्वों से भरपूर होती है। अजवाइन में एंटीसेप्टिक और एंटीइन्फ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो आपको रोगों से बचाने में मदद करते हैं। अजवाइन में भरपूर मात्रा में फाइबर, मिनरल्स और विटामिन्स मौजूद होते हैं, जो शरीर के लिए काफी फायदेमंद होते हैं।
मॉनसून के मौसम में अधिकतर लोगों को सर्दी, खांसी और जुकाम का सामना करना पड़ता है। ऐसे में आप घर में अजवाइन की पोटली बनाकर इन रोगों से छुटकारा पा सकते हैं।
आप अजवाइन की पोटली से गले की सिकाई कर सकते हैं, इससे आपको गले के दर्द में आराम मिलेगा।
अगर आपको बुखार है, तो भी अजवाइन की पोटली का इस्तेमाल किया जा सकता है। बुखार या सिरदर्द होने पर आप इस पोटली को फोरहेड के पास या फिर दोनों आईब्रो के बीज सिकाई कर सकते हैं।
नाक बंद होने की स्थिति में भी अजवाइन की पोटली का उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए आप इस पोटली को नाक पर लगाएं।
अजवाइन की पोटली कैसे बनाएं?
अजवाइन की पोटली बनाने के लिए एक तवा को अच्छे से गर्म कर लें।
गर्म होने पर इस तवे पर एक चम्मच अजवाइन डालें।
अजवाइन को चारों तरफ से सेकें। जैसे ही अजवाइन सिकने लगे, इसकी खूशबू चारों तरफ फैल जाएगी।
अब एक कॉटन के कपड़े में इस अजवाइन को रखें और कपड़े पर गांठ लगा लें। आपकी अजवाइन की पोटली तैयार है। ध्यान रखें पोटली बनाने के लिए कॉटन के कपड़े का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
मॉनसून में अजवाइन के फायदे
अजवाइन अनिद्रा की समस्या को दूर करने में मदद कर सकती है। इसके लिए आप रात को सोने से पहले अजवाइन को गर्म पानी में ले सकते हैं।
कब्ज की समस्या के लिए एक गिलास गर्म पानी के साथ अजवाइन खाएं। कुछ दिनों तक इसे लेने से कब्ज की समस्या दूर हो जाएगी।
कई बार सर्दी की शुरूआत होने पर जोड़ो में दर्द शुरू हो जाता है, इस समस्या से निपटने के लिए 1 चम्मच अजवाइन लें और इसे गर्म पानी पी लें।
अजवाइन में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंटस पाए जाते हैं, जो छाती में जमे कफ से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकते हैं।
सिरदर्द में आप अजवाइन को चबाकर खा सकते हैं, इससे आपको सिरदर्द में काफी आराम मिलेगा
ध्यान रखें, अजवाइन के ढ़ेरों फायदे होते हैं। लेकिन अजवाइन का सेवन अधिक मात्रा नहीं करना चाहिए। किसी समस्या बढ़ने पर डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें। अपनी कोई भी बीमारी नजरअंदाज न करें।
सर्दी-खांसी और जुकाम में इस्तेमाल करें अजवाइन की पोटली
प्रेरक आईएएस : 10वीं में 44 प्रतिशत लेकिन यूपीएसी दूसरी बार में ही निकाली
पीसीएस प्री में 10 से ज्यादा बार फेल
नयी दिल्ली । लगातार फेल होने और बोर्ड परीक्षाओं में खराब प्रदर्शन से मायूस छात्रों को एक आईएएस ऑफिसर की सफलता की कहानी काफी प्ररेणा देने वाली है। आईएएस ऑफिसर अवनीश शरण ने शुक्रवार को ऐसे वक्त पर अपनी संघर्ष यात्रा सोशल मीडिया पर शेयर की जब बहुत से बच्चे अपना सीबीएसई रिजल्ट खराब आने से निराश थे। अवनीश शरण ने लिखा, ’12 वीं में आपके कितने प्रतिशत अंक आए थे ?’ इसके बाद उन्होंने अपनी संघर्ष की यात्रा के बारे में लिखा – मेरी यात्रा: 10वीं में 44.7 प्रतिशत, 12वीं में 65 प्रतिशत, ग्रेजुएशन में 60 प्रतिशत। सीडीएस और सीपीएफ भर्ती परीक्षा दोनों में फेल हुआ। राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 10 से अधिक बार प्रारंभिक परीक्षा में फेल हुआ। यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में प्रथम प्रयास में साक्षात्कार तक पहुंचा। दूसरे प्रयास में ऑल इंडिया 77वीं रैंक आई।
आईएएस ऑफिसर अवनीश शरण की सफलता की कहानी बताती है कि असलता में भी सफलता छिपी होती है। असफलता से हासिल होने वाला अनुभव आपको आगे काम आएगा। प्रयास करते रहें, सफलता आपको जरूरी मिलेगी। लक्ष्य के प्रति आगे बढ़ते रहे। लगन के साथ मेहनत करते रहें। नाकामी से न घबराएं।
अवनीश के इस ट्वीट को महज एक दिन में 63 हजार से ज्यादा लाइक मिल चुके हैं। 9 हजार लोग रीट्वीट कर चुके हैं। सोशल मीडिया यूजर्स इस कहानी को बेहद प्रेरणादायी बता रहे हैं। एक यूजर ने लिखा- गिरने के बाद ही जो मजा उठने मे है वो कही नही। एक अन्य ने लिखा, – सर, आजकल 1-2 प्रतियोगी परीक्षा देने के बाद लोग ऐसे निराश हो जाते हैं जैसे निराशा का पहाड़ टूट पड़ा है और तैयारी बीच में छोड़ने का फैसला कर लेते हैं। आप की कहानी आपका संघर्ष प्रेरणादायक है। एक यूजर ने लिखा- प्रयास करने वालों की कभी हार नहीं होती। हम सभों को आपसे कुछ सीख लेनी चाहिए।
अवनीश अकसर अपने ट्वीट से भर्ती परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं को प्रेरित करते रहते हैं। सोशल मीडिया पर अभ्यर्थी उनसे तैयारी के टिप्स लेते नजर आते हैं। 2009 बैच के छत्तीसगड़ कैडर के अधिकारी ने हाल में अपनी सक्सेस स्टोरी के बारे में बताया गया था। पोस्ट में लिखा था, ‘एक लड़के के 10वीं में 44.5 फीसदी, 12वीं में 65 फीसदी और ग्रेजुएशन में 60.7 फीसदी मार्क्स आए।
कुछ दिनों पहले आईएएस अधिकारी अवनीश ने ट्विटर पर अपनी पसंदीदा किताब की एक झलक शेयर की थी। यह वही किताब है जिससे उन्होंने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की थी। इस ट्विटर पोस्ट में एएल बाशम द्वारा लिखित पुस्तक ‘द वंडर दैट वाज इंडिया’ के कुछ पेजों की फोटो देखी जा सकती है।
इससे पहले उन्होंने 10वीं की मार्कशीट शेयर की थी जो स्टूडेंट्स को मार्क्स और सफलता के बीच अंतर बता रही थी। बिहार बोर्ड मैट्रिक की 26 साल पहले की इस मार्कशीट में देखा जा सकता है कि अवनीश को 700 में से केवल 314 मार्क्स (44.5 फीसदी) मिले थे। मैथ्स में तो वह फेल होते होते बचे थे। 10वीं में थर्ड डिविजन से पास होने के बावजूद अवनीश यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास कर आईएएस ऑफिसर बने।
द्रौपदी मुर्मू : दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की पहली आदिवासी राष्ट्रपति
नयी दिल्ली । भारत के 75 साल के इतिहास में पिछले डेढ़ दशक को महिलाओं के लिए खास तौर से विशिष्ट माना जा सकता है। जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने वाली महिलाएं इस दौरान देश के शीर्ष संवैधानिक पद तक पहुंचने में कामयाब रहीं और 2007 में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल करने के बाद अब द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना देश की लोकतांत्रिक परंपरा की एक सुंदर मिसाल है।
क्या कभी किसी ने सोचा था कि दिल्ली से दो हजार किलोमीटर के फासले पर स्थित ओडिशा के मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के छोटे से गांव उपरबेड़ा के एक बेहद साधारण स्कूल से शिक्षा ग्रहण करने वाली द्रौपदी मुर्मू एक दिन असाधारण उपलब्धि हासिल करके देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजमान होंगी और देश ही नहीं दुनिया की बेहतरीन इमारतों में शुमार किया जाने वाला राष्ट्रपति भवन उनका सरकारी आवास होगा।
यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी। महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के साथ साथ वह देश की कुल आबादी के साढ़े आठ फीसदी से कुछ ज्यादा आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं, लेकिन जनजाति की बात करें तो वह संथाल जनजाति से ताल्लुक रखती हैं। भील और गोंड के बाद संथाल जनजाति की आबादी आदिवासियों में सबसे ज़्यादा है।
द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु है। उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गाँव के प्रधान रहे।
मुर्मू मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के गांव उपरबेड़ा में स्थित एक स्कूल से पढ़ी हैं। यह गांव दिल्ली से लगभग 2000 किमी और ओडिशा के भुवनेश्वर से 313 किमी दूर है। उन्होंने श्याम चरण मुर्मू से विवाह किया था। अपने पति और दो बेटों के निधन के बाद द्रौपदी मुर्मू ने अपने घर में ही स्कूल खोल दिया, जहां वह बच्चों को पढ़ाती थीं। उस बोर्डिंग स्कूल में आज भी बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहती हैं।
द्रौपदी मुर्मू ने एक अध्यापिका के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन शुरू किया और उसके बाद धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति में कदम रखा। साल 1997 में उन्होंने रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की।
उनके राष्ट्रपति बनने पर दुनियाभर के नेताओं ने इसे भारतीय लोकतंत्र की जीत करार दिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने संदेश में कहा कि एक आदिवासी महिला का राष्ट्रपति जैसे पद पर पहुंचना भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि मुर्मू का निर्वाचन इस बात का प्रमाण है कि जन्म नहीं, व्यक्ति के प्रयास उसकी नियति तय करते हैं। वहीं, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्र प्रमुख पद पर पहुंचना उनकी ऊंची शख्सियत का ही परिणाम है। फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने मुर्मू को राष्ट्रपति बनने पर बधाई दी। वहीं, हाल ही में श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव हारने वाले डलास अल्फापेरुमा ने कहा कि आजादी के बाद जन्म लेने वाली एवं जातीय और सांस्कृतिक रूप से दुनिया के सबसे अनोखे देश की राष्ट्रपति को बधाई। नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर वह द्रौपदी मुर्मू को बधाई देते हैं। द्रौपदी मुर्मू के भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने के भले कितने भी राजनीतिक अर्थ लगाए जाएं लेकिन इस बात में दो राय नहीं कि यह जातीय और सांस्कृतिक रूप से दुनिया के सबसे अनोखे देश के लोकतांत्रिक सफर में एक खूबसूरत पड़ाव है।
मंकीपॉक्स को लेकर जनस्वास्थ्य से जुड़े कदम, सतर्कता बढ़ाएं: डब्ल्यूएचओ
नयी दिल्ली । दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की क्षेत्रीय निदेशक ने सदस्य देशों से मंकीपॉक्स से निपटने के लिए सतर्कता बढ़ाने और जन स्वास्थ्य से जुड़े कदमों को मजबूत करने का रविवार को आह्वान किया।
क्षेत्रीय निदेशक डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा कि मंकीपॉक्स तेजी से और कई ऐसे देशों में फैल रहा है, जहां पहले इसके मामले सामने नहीं आए थे, जो बड़ी चिंता का कारण है।
उन्होंने कहा, ‘‘संक्रमण के मामले ज्यादातर उन पुरुषों में पाए गए हैं, जिन्होंने पुरुषों के साथ संबंध बनाए। ऐसे में उस आबादी पर केंद्रित प्रयास करके बीमारी को और फैलने से रोका जा सकता है, जिनमें संक्रमण का खतरा अधिक है।’’
वैश्विक स्तर पर, 75 देशों में मंकीपॉक्स के 16,000 से अधिक मामले सामने आए हैं। डब्ल्यूएचओ दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में, मंकीपॉक्स के चार मामले सामने आए हैं, जिनमें से तीन भारत में और एक थाईलैंड में पाया गया है।
क्षेत्रीय निदेशक ने कहा, ‘‘महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे प्रयास और कदम संवेदनशील तथा भेदभाव रहित होने चाहिए।’’
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस ए. घेब्रेयसस ने शनिवार को कहा कि 70 से अधिक देशों में मंकीपॉक्स का प्रसार होना एक ‘‘असाधारण’’ हालात है और यह अब वैश्विक आपात स्थिति है।
डॉ सिंह ने कहा, ‘‘हालांकि वैश्विक स्तर पर और क्षेत्र में मंकीपॉक्स का जोखिम मध्यम है, लेकिन इसके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलने का खतरा वास्तविक है। इसके अलावा, वायरस के बारे में अब भी कई बातों का पता नहीं चल पाया है। हमें मंकीपॉक्स को और फैलने से रोकने के लिए सतर्क रहने और तेजी से कदम उठाने को तैयार रहने की जरूरत है।’’
मंकीपॉक्स संक्रमित जानवर के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क में आने से मनुष्यों में फैलता हैं। एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में यह संक्रमण संक्रमित की त्वचा और श्वास छोड़ते समय नाक या मुंह से निकलने वाली छोटी बूंदों के संपर्क में आने से फैलता है।
नीरज चोपड़ा ने विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में जीता रजत
19 वर्ष बाद भारत को टूर्नामेंट में पदक मिला है
नयी दिल्ली । ओलिंपिक चैंपियन नीरज चोपड़ा ने विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के जैवलिन थ्रो इवेंट का रजत पदक जीतते हुए इतिहास रच दिया। वह इस इवेंट में मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बने। उन्होंने 88.13 मीटर के अपने सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ रजत पदक अपनी झोली में डाला। इस तरह 19 वर्ष बाद भारत को टूर्नामेंट में पदक मिला है। इससे पहले 2003 में लॉन्ग जंपर अंजू बॉबी जॉर्ज ने विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था।
नीरज चोपड़ा का पहला प्रयास फाउल रहा, जबकि दूसरे अटेम्प्ट में उनहोंने 82.39 मीटर का थ्रो किया। यह उनके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से काफी दूर था। दूसरी ओर, ग्रेनाडा के एंडरसन पीटर्स ने पहले ही अटेम्प्ट में 90 मीटर को पार कर लिया। उन्होंने लगातार दो अटेम्प्ट में 90.21 और 90.46 मीटर का थ्रो करते हुए अपना मेडल पक्का कर लिया था।नीरज ने तीसरे प्रयास में अपने प्रदर्शन में सुधार किया। उन्होंने 86.37 मीटर का थ्रो करते हुए चौथे नंबर पर पहुंच गए। भारतीय स्टार ने चौथे राउंड में 88.13 मीटर का थ्रो करते हुए दूसरा नंबर पा लिया। नीरज का यह ओलिंपिक से भी बेहतर प्रदर्शन था। उन्होंने ओलिंपिक में 87.58 मीटर का जैवलिन थ्रो करते हए गोल्ड मेडल जीता था। अब चेक रिपब्लिक के याकूब वालडेश तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे। छठे राउंड में वह फाउल कर गए।
वह 5वें राउंड में वह फाउल कर बैठे, लेकिन अच्छी बात यह रही कि याकूब वालडेश 81.31 मीटर ही फेंक सके। दूसरी ओर, ग्रेनाडा के एंडरसन पीटर्स को स्वर्ण पदक मिला।
वाहन विनिर्माण क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा दिखा रही हैं महिलाएं
कई कम्पनियां दे रही हैं प्रोत्साहन
नयी दिल्ली । पुरुषों के वर्चस्व वाले वाहन विनिर्माण के क्षेत्र में अब महिलाएं भी अपनी प्रतिभा दिखा रही हैं और इसमें उनकी मदद कर रही हैं देश की प्रमुख वाहन कंपनियां। दरअसल टाटा मोटर्स, एमजी मोटर, हीरो मोटोकॉर्प और बजाज ऑटो अपने विनिर्माण संयंत्रों में लैंगिक विविधता की ओर तेजी से बढ़ रही हैं।
भारत में टाटा मोटर्स के छह संयंत्रों में शॉप फ्लोर में 3,000 से अधिक महिलाएं उत्पादन के क्षेत्र में विभिन्न भूमिकाओं में काम कर रही हैं। वे छोटे यात्री वाहनों से लेकर भारी वाणिज्यिक वाहनों तक के उत्पादन के लिए काम कर रही हैं। कंपनी की अपने कारखानों में और महिलाओं को शामिल करने की योजना है।
वहीं, एमजी मोटर इंडिया की दिसंबर, 2023 तक लैंगिक रूप से संतुलित कार्यबल बनाने की योजना है जहां उसके कुल कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत हो। कम्पनी के गुजरात के हलोल संयंत्र में कारखाने में काम करने वाले 2,000 लोगों में से 34 फीसदी महिलाएं हैं।
हीरो मोटोकॉर्प में 2021-22 के अंत तक 1,500 महिला कर्मचारी काम कर रही थीं और निकट भविष्य में इनकी संख्या और बढ़ाने की योजना है।
बजाज ऑटो के पुणे स्थित चाकन संयंत्र में डोमिनार 400 और पल्सर आरएस 200 जैसी महंगी बाइकों का विनिर्माण का जिम्मा पूरी तरह से महिलाओं के हाथों में है। यहां 2013-14 की तुलना में 2021-22 में महिला कर्मियों की संख्या 148 से चार गुना बढ़कर 667 हो गई है।
कम्पनी की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि विनिर्माण संयंत्रों और इंजीनियरिंग में काम करने वाले कर्मियों में करीब 64 महिलाएं हैं। टाटा मोटर्स के अध्यक्ष एवं मुख्य मानव संसाधन अधिकारी रवींद्र कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘कंपनियों ने महिलाओं को अहम पदों पर लाने के लिए व्यापक रूपरेखा बनाई है लेकिन आंकड़े बताते हैं कि आदर्श स्थिति और वास्तविकता में बड़ा अंतर है। इसी अंतर को पाटने के लिए टाटा मोटर्स अपने तरीके से प्रयास कर रही है।’’
बीते दो साल में कम्पनी के पुणे में यात्री वाहन संयंत्र में महिलाओं की संख्या करीब 10 गुना बढ़ी है। इस कारखाने में अप्रैल, 2020 में 178 महिला कर्मी थीं जो अब बढ़कर 1,600 हो गई है। एमजी मोटर इंडिया में निदेशक-एचआर यशविंदर पटियाल ने कहा, ‘‘हमारा प्रयास है 50:50 का अनुपात हासिल करना।’’
65 की उम्र में डिग्री कोर्स पूरा करने के लिए परीक्षा देंगे उद्योगपति सुब्रत बागची
माइंड ट्री के मालिक हैं बागची, दिल्ली विश्वविद्यालय दे रहा है पुराने विद्यार्थियों को मौका
नयी दिल्ली । लोग क्यों पढ़ाई करते हैं…बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेते हैं, जिससे एक अच्छी नौकरी मिल सके। अगर आप दिग्गज आईटी कंपनी के मालिक हों, तो किसी यूनिवर्सिटी से डिग्री लेने के बारे में सोचोगे? शायद नहीं। लेकिन माइंडट्री के मालिक सुब्रत बागची ऐसा कर रहे हैं। वे दिल्ली विश्वविद्यालय से अपना डिग्री कोर्स पूरा करने के लिए परीक्षा में बैठेंगे। दरअसल इस तरह वे अपनी जवानी के सपने को पूरा करना चाहते हैं। बागची को डीयू में दाखिला लेने के बाद अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी। वे हमेशा डीयू के लॉ सेंटर में अपना डिग्री कोर्स पूरा नहीं कर पाने को लेकर चिंतित रहे। लेकिन अब उन्हें 65 साल की उम्र में जाकर अपने अधूरे सपने को पूरा करने का मौका मिल गया है।
नौकरी तलाशने के लिए छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई
उड़ीसा कौशल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष और माइंडट्री के को-फाउंडर बागची इस समय 65 वर्ष के हैं। उन्होंने साल 1978 में डीयू में दाखिला लिया था। लेकिन उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़कर नौकरी की तलाश करनी पड़ी। अपनी डिग्री पूरी ना कर पाने को लेकर बागची हमेशा चिंतित रहे। लेकिन अब उन्हें अपनी डिग्री पूरी करने का मौका मिल गया है। दरअसल, डीयू अपने शताब्दी कार्यक्रम के हिस्से के रूप में अपने पुराने विद्यार्थियों को डिग्री पूरा करने का अवसर दे रहा है। बागची इस मौके का फायदा उठा रहे हैं और दशकों बाद अपने अधूरे सपने को पूरा करना चाहते हैं।
अधूरा रह गया छठां सेमेस्टर
टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए बागची ने कहा, “मुझे डीयू के लॉ सेंटर में दाखिला मिला था, जो 1978 में मंदिर मार्ग पर हुआ करता था। उस समय भारतीय आईटी उद्योग नवजात स्थिति में था और मुझे नौकरी के लिए शहर बदलना पड़ा। पहले मैं कोलकाता गया, फिर बेंगलुरु गया और फिर अमेरिका में सिलिकॉन वैली गया। देखते ही देखते छह साल बीत चुके थे और मेरा छठा सेमेस्टर अधूरा रह गया था। मुझे परीक्षा में बैठने से रोक दिया गया था। उसके बाद दशकों बीच गए, लेकिन में अपनी डिग्री पूरी नहीं कर पाया। यह कुछ ऐसा था, जैसे किसी ने मेरी मेहनत को कालकोठरी में डाल दिया हो और चाबियां फेंक दी हों। ”
हजारों लोग उठा रहे मौके का फायदा
बागची अकेले नहीं है, जो डिग्री कोर्स पूरा करने के इस मौके का लाभ उठा रहे हैं। अपने शताब्दी समारोह के एक हिस्से के रूप में, डीयू उन लोगों को अनुमति दे रहा है, जिन्होंने अपना कोर्सवर्क तो पूरा कर लिया , लेकिन डिग्री अधूरी रह गई। ऐसे लोग इस साल अक्टूबर और अगले साल मार्च में होने वाली “शताब्दी मौका” परीक्षाओं में शामिल होने सकते हैं। डीयू द्वारा उपलब्ध कराए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 8,500 से अधिक उम्मीदवारों ने परीक्षा के लिए आवेदन किया है। दिल्ली विश्वविद्यालय प्रत्येक उम्मीदवार की टाइमलाइन और उस समय प्रचलित पाठ्यक्रम के आधार पर पेपर तैयार करेगा।
मार्कशीट देखकर दुखता था बागची का दिल
एक सफल आईटी उद्यमी के रूप में इतने वर्षों के बाद उन्होंने अपनी कानून की डिग्री हासिल करने का फैसला क्यों किया, इस बारे में बागची ने टीओआई को बताया है। उन्होंने कहा, “मेरे जीवन और काम को देखते हुए, कोई यह नहीं सोचेगा कि मुझे डिग्री अधूरी होने का पछतावा होगा। यह काफी हद तक सच है। फिर भी, जब भी मैंने लॉ सेंटर में पूरे किए गए पांच सेमेस्टर की मार्कशीट देखी, तो मेरा दिल दुखा। मैं अपनी जवानी के अधूरे सपने को पूरा करना चाहता था। अब परीक्षा देकर में अपने जीवन के एकमात्र अधूरे काम को पूरा करना चाहता हूं। मुझे उम्मीद है कि मेरे जैसे हजारों लोग फिर से अपना अधूरा सपना पूरा करना चाहेंगे। डीयू द्वारा अपने पूर्व छात्रों को प्रदान किए जा रहे इस अनूठे अवसर पर बागची ने कहा, “यह कहना गलत नहीं होगा कि विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 की पूरी भावना को जीवंत कर दिया है।”
(साभार – नवभारत टाइम्स)
सुन्दरवन हिंगलगंज में स्वर्णपुरो शिक्षा निकेतन में खुला फलक पुस्तकालय
कोलकाता । सुन्दरवन हिंगलगंज में फलक पुस्तकालय का उद्घाटन समारोह संपन्न हुआ जो वहाँ के विद्यालय स्वर्णपुरो शिक्षा निकेतन के विद्यार्थियों के लिए खोला जा रहा है। यह पुस्तकालय सुन्दरवन के सभी स्थानीय लोगों के लिए भी है जहाँ वे भी अपनी मनपसंद पुस्तकों को पढ़ने का लाभ उठाएंगे। सीबीएसई बोर्ड के लिए प्रस्तावित स्वर्णपुरों शिक्षा निकेतन के बच्चों के लिए फलक पुस्तकालय का विशेष महत्व है क्योंकि उस इलाके में यह पहला अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय है।
चौबीस जुलाई को फलक पुस्तकालय का उद्घाटन समारोह मुख्य अतिथि विधायक देब्स मंडल द्वारा किया गया।अन्य गणमान्य अतिथियों में भारतीय फिल्म निर्देशक सुदेशना रॉय, केटलबॉल स्पोर्ट्स सीए शिवानी शाह जो चार बार विश्व चैंपियन रहीं और युवा शिक्षाविद् हर्षित चोखानी की उपस्थिति रही । ।उद्घाटन के बाद विद्यार्थियों द्वारा एक सुंदर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके बाद पौधरोपण कार्यक्रम हुआ।
‘फलक स्प्रेडिंग स्माइल्स फाउंडेशन’ द्वारा बनाए गए इस पुस्तकालय का उद्देश्य स्वप्नोपुरन वेलफेयर सोसाइटी की संस्थापक सतरूपा मजूमदार के सद्प्रयास को सुन्दरवन के अंतर्गत सभी आंतरिक क्षेत्र के लोगों तक पुस्तकों की पहुँच और ज्ञान देना है।
‘फलक’ फाउंडेशन के संस्थापक तरंग कनोदिया, और अन्य सदस्य विवेक गोयल, हर्ष भुवलका, आयुष अग्रवाल, हिमांशु अग्रवाल, मिहिर सेठ, ऋतिक केडिया, माधव मनिहार, अंकित रस्तोगी, हितेश गुप्त, अनिकेत खेतान, आदर्श कठोटिया, तुषार सुरेका, उमंग कनोदिया, पूनम कनोदिया, वर्षा कनोदिया और गुरु सुशील जी कनोदिया उपस्थित थे।’फलक’ का मुख्य उद्देश्य है विद्यार्थियों में मुस्कान बिखेरना।
सुंदरबन में शिक्षा की अलख जगाने का मुख्य श्रेय सतरूपा मजूमदार को जाता है जो गत तीन – चार वर्षों से विद्यालय के विकास में अपना योगदान दे रही हैं। यह जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।
भवानीपुर 75 पल्ली में खूंटी पूजा के साथ ही पूजा की तैयारियाँ आरम्भ
कोलकाता । दुर्गापूजा अब आने ही वाली है। भवानीपुर 75 पल्ली ने खूंटी पूजा के साथ ही दुर्गा पूजा की तैयारी आरम्भ कर दी है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में कोलकाता के मेयर सह राज्य के परिवहन, शहरी विकास, निगम मामलों एवं आवास मंत्री फिरहाद हकीम, कृषि मंत्री शोभनदेव चट्टोपाध्याय, विधायक देवाशीष कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता कार्तिक बनर्जी, पार्षद पापिया सिंह, पार्षद संदीप रंजन बक्सी समेत अन्य लोग उपस्थित थे। यह पूजा कमेटी का 58वां वर्ष है। क्लब के सचिव सुबीर दास ने कहा कि इस साल यूनेस्को से दुर्गा पूजा को मिली मान्यता और स्वीकृति का उत्सव मनाया जाएगा। कोविड से जुड़ी सावधानियों को देखते हुए इस बार भी बहुत अधिक लोगों को मंडप में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी। हर साल की तरह इस बार भी सामाजिक सेवा से जुड़े कार्य जैसे -रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य परीक्षण, कम्बल वितरण जैसे कार्य किये जाएंगे।
द्रौपदी मूर्मू को राष्ट्रपति पद बनने पर बधाई
कोलकाता । देश की 15वीं नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बनने वाली द्रौपदी मूर्मु को हर ओर से शुभकामनाएं मिल रही हैं। मर्चेन्ट्स चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष ऋषभ सी. कोठारी ने भारत की प्रथम आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने पर बधाई दी है। चेम्बर ने कहा है कि आदिवासी समुदाय को शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र के साथ सर्वोच्च पदों पर भी लाये जाने की जरूरत है। देश ने सपनों के लिए परिवेश तैयार किया है और राष्ट्रपति के रूप द्रौपदी मुर्मू का निर्वाचन परिवर्तन और गर्व का क्षण है।
वहीं एसोचेम ने कहा है कि यह निर्वाचन देश के आम आदमी को मजबूत करेगा। द्रौपदी मुर्मू ने अपनी साधारण जीवन शैली, राष्ट्रसेवा और सादगी से यह सफलता प्राप्त की है। यह करोड़ों भारतवासियों को विश्वास दिलाता है कि असम्भव कुछ भी नहीं। एसोचेम के अध्यक्ष सुमन्त सिन्हा ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को बधाई देते हुए कहा कि यह देश के लोकतंत्र के लिए गर्व का विषय है। बधाई सन्देश में एसोचेम के महासचिव दीपक सूद ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू का निर्वाचन भारतीय लोकतंत्र की शक्ति को प्रदर्शित करता है। उन्होंने असंख्य भारतीयों को प्रेरित किया है। एसोचेम उनके मार्गदर्शन में कार्य करने के लिए तत्पर है।