हांगकांग में एक अति दुर्लभ खूबसूरत गुलाबी हीरा 413 करोड़ रुपये में नीलाम हुआ है। हीरे के लिए जो बोली लगाई गई वह इसके अनुमान से दोगुना है। यह किसी नीलामी में प्रति कैरेट हीरे के लिए लगी बोली के मामले में विश्व रिकॉर्ड है। इस हीरे का नाम विलिम्सन पिंक स्टार है और यह 11.15 कैरेट का है। इसका नाम क्वीन एलिजाबेथ को शादी के गिफ्ट के रूप में दिए गए हीरे के नाम पर ही इसका नाम रखा गया है।
इस हीरे को हांगकांग में सूदबे ने एक अज्ञात खरीदार को बेचा है। लंदन के एक जूलरी शॉप के एमडी तोबिआस कोरमिंड ने बताया कि इस हीरे का संबंध दिवंगत रानी एलिजाबेथ से होने की वजह से इसको इतने ज्यादा पैसे मिले। उन्होंने कहा, ‘यह बहुत ही हैरान करने वाला परिणाम है।’ कोरमिंड ने कहा कि जब आप क्वीन एलिजाबेथ से इसका रिश्ता जोड़ते हैं तो इस दाम बढ़ जाता है और ऊपर से यह बहुत ही दुर्लभ है। उन्होंने बताया कि पिछले 10 साल में दुनिया के सबसे अच्छी क्वालिटी के हीरों के दाम दोगुना हो गए हैं।
तंजानिया की मवादुई खान में मिला यह हीरा
तकिये के आकार के इस हीरे का नाम दो अन्य विशाल पिंक डायमंड के नाम पर रख गया है। इसमें पहला हीरा 59.60 कैरेट का है जिसे पिंक स्टार डायमंड कहा जाता है। इस हीरे को साल 2017 में 71 मिलियन डॉलर में नीलाम किया गया था। वहीं दूसरा हीरा विलिम्सन है जो 23.60 कैरेट का है। इस हीरे को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ को कनाडा के भूगर्भशास्त्री जॉन विलिम्सन ने साल 1947 में गिफ्ट किया था। यह महारानी के पसंदीदा हीरों में शामिल था। उन्होंने इस हीरे को कई मौकों पर पहना था।
विलिम्सन हीरे का स्वामित्व तंजानिया के मवादुई खान के पास था जहां इस विलिम्सन और पिंक स्टार डायमंड को खुदाई में निकाला गया था। सूदबे के एक एशिया के अधिकारी वेनहाओ यू ने कहा, ‘गुलाबी हीरे की कोई भी खोज अपने आप में दुर्लभ होती है।’ पिंक डायमंड रंगीन हीरों में खासतौर पर बहुत खास होते हैं। यह कोई भी अभी पता नहीं लगा पाया है कि इनका रंग गुलाबी कैसे हो जाता है। इसका रंग ही इस हीरे को बहुत ही खास बनाता है।
413 करोड़ रुपये में नीलाम हुआ दुर्लभ गुलाबी हीरा
नए श्रम कानून पर 31 से अधिक राज्य एवं केन्द्रशासित राज्य सहमत
एक साल नौकरी पर ग्रेच्युटी, 15 मिनट बढ़े तो ओवरटाइम
नयी दिल्ली । देश में जल्द लागू होने वाले श्रम कानून में संगठित और गैर संगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। ये कामगारों के लिए फायदेमंद साबित होंगे। कानून लागू होने पर एक साल काम करने पर ही कर्मचारी ग्रेच्युटी का हकदार होगा। अभी ग्रेच्युटी के लिए कम से कम 5 साल की नौकरी जरूरी है। तय समय से 15 मिनट भी ज्यादा काम लेने पर कर्मचारियों को ओवरटाइम मिलेगा। श्रम मंत्रालय के मुताबिक, 31 से ज्यादा राज्यों ने इसे स्वीकार लिया है। नए प्रावधान जल्द लागू किए जाएंगे।
नए नियम के तहत अब हफ्ते में 48 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकेगा। इम्प्लोयर और इम्प्लोई की सहमति से कर्मचारी हफ्ते में 48 घंटे का काम चार दिन में भी पूरा कर सकेगा। बाकी दिन वह छुट्टी मना सकेगा। नए कर्मचारियों को लंबी छुट्टी लेने के लिए अब 180 दिन काम करना होगा। अभी 240 दिन तक काम करने के बाद ही लंबी छुट्टी का हक मिलता था।
कर्मचारी की मूल तनख्वाह हर माह की सीटीसी से 50 प्रतिशत या अधिक होगी
महिला कर्मचारियों की सहमति के बिना उन पर रात की पाली में काम का दबाव नहीं डाला जा सकेगा। नए नियम लागू होने के बाद कर्मचारी के हाथ में सैलरी तो कम आएगी, लेकिन प्रॉविडेंट फंड और ग्रेच्युटी ज्यादा मिलेगी। कर्मचारी की बेसिक सैलरी हर माह की CTC से 50% या अधिक होगी। नए कानून पर इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियंस का कहना है कि नए कानून से श्रमिकों का बड़ा वर्ग कानून के दायरे से बाहर हो जाएगा। पहले जिस संस्थान में 20 लोग काम करते थे, उन्हें भी संरक्षण था। अब यह संख्या 50 करने का प्रावधान है।
ट्रिब्यूनल के फैसले तक हड़ताल नहीं
यदि किसी मुद्दे पर यूनियन और नियोक्ता के बीच बातचीत फेल हो जाती है तो जानकारी सरकार को दी जाएगी। इसके बाद मामला ट्रिब्यूनल भेज दिया जाएगा। जब तक वहां अंतिम फैसला नहीं हो जाता, तब तक कर्मचारियों को हड़ताल की इजाजत नहीं होगी। हड़ताल अवैध मानी जाएगी। यही नहीं, सामूहिक छुट्टी को भी हड़ताल की श्रेणी में रखा गया है।
कुछ बिंदुओं पर आपत्ति, चर्चा जारी
नए लेबर कोड (श्रम कानून) को सैद्धांतिक तौर पर 31 से ज्यादा राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों ने स्वीकार कर लिया है। ज्यादातर ने नियम भी बना लिए हैं। सूत्रों की माने तो कुछ राज्यों ने कुछ बिंदुओं पर आपत्ति जताई है। इसके लिए बातचीत जारी है। नया लेबर कोड कब से लागू होगा, इसकी तारीख तो तय नहीं है, लेकिन मंत्रालय का कहना है जल्द लागू किया जाएगा।
कम डिटर्जेंट में वॉशिंग मशीन में चमकाएं कपड़े
कपड़े धोना पहले जितना मुश्किल काम नहीं रहा। कपड़े धोने के लिए आजकल ज्यादातर लोगों के पास वाशिंग मशीन होती है जिससे ये काम बस कुछ ही समय में आसानी से हो जाता है लेकिन बाजार में ऐसी कई ऑटोमेटिक मशीनें हैं। वॉशिंग मशीन चाहे ऑटोमैटिक हो या सेमी-ऑटो, इनके इस्तेमाल करने के कुछ नियम होते हैं । इनका ध्यान नहीं रखने पर कई बार वॉशिंग मशीन में कपड़े फट जाते हैं और कई अच्छे कपड़ो की रंगत भी गायब हो जाती है। सही जानकारी नहीं होने की वजह से हमें लगता है कि वॉशिंग मशीन में कपड़े अच्छे साफ नहीं होते हैं। यहां दिए गए कुछ आसान टिप्स की मदद से आप कपड़ों को अच्छे से साफ कर लेंगे –
1. कपड़े धोने से पहले उनको अलग-अलग श्रेणियों में बांट लें। ज्यादा गंदे कपड़ों को अगल कर लें और कम गंदे कपड़ों को अलग कर लें।
2. इसी तरह नए कपड़ों को अलग रखें और पुराने कपड़ों को अलग कर लें। इनमें कुछ भारी कपड़े होते हैं उनको अलग रख लें और हल्के कपड़ों को अलग कर लें।
3. कभी भी कपड़ों में सीधा सर्फ नहीं डालना चाहिए। पहले मशीन में पानी और सर्फ डालकर थोड़ी देर छोड़ दें फिर उसमें कपड़े डालें। कपड़े धोते समय ध्यान रखें कि कपड़ों की जिप और हुक बंद हो।
4. कपड़े धोते वक्त पानी और डिटर्जेंट पाउडर की मात्रा का ख्याल रखें। कम पानी में ज्यादा डिटर्जेंट पाउडर से कपड़े खराब हो जाते हैं।
5. ड्रायर का इस्तेमाल हमें कम से कम करना चाहिए और कोशिश करें कि कपड़ों को धूप में ही सुखाएं. इससे कपड़े चमकदार बने रहते हैं।
6. वॉशिंग मशीन में नए कपड़े डालते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि कहीं वो रंग तो नहीं छोड़ रहा है। अगर कोई कपड़ा रंग छोड़ रहा है तो उसे वॉशिंग मशीन में नहीं डालना चाहिए।
एलेस बियालियात्स्की एवं सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज को शांति का नोबेल
2022 के नोबेल पुरस्कारों की घोषणा नार्वे नोबेल कमेटी की प्रमुख बेरिट रीज एंडर्सन ने ओस्लो में की। इस साल शांति का नोबेल पुरस्कार बेलारूस के मानवाधिकार कार्यकर्ता एलेस बियालियात्स्की के साथ-साथ रूसी मानवाधिकार संगठन मेमोरियल और यूक्रेन के मानवाधिकार संगठन सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज को दिया गया। नोबेल प्राइज की ओर से कहा गया, ‘नोबेल शांति पुरस्कार विजेता अपने देश में नागरिक समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने कई वर्षों तक नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और बढ़ावा देने के लिए सत्ता की आलोचना की है। उन्होंने युद्ध अपराधों, मानवाधिकारों के हनन और सत्ता के दुरुपयोग का दस्तावेजीकरण करने के लिए एक उत्कृष्ट प्रयास किया है। इसके साथ ही वे शांति और लोकतंत्र के लिए नागरिक समाज के महत्व को प्रदर्शित करते हैं’। एलेस बियालियात्स्की को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने की वजह रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष के दौरान बेलारूस, यूक्रेन और रूस से पुरस्कार विजेताओं के होने से एक स्पष्ट संदेश जाता है. समिति की ओर से कहा गया कि, “नार्वे की नोबेल समिति पड़ोसी देश बेलारूस, रूस और यूक्रेन में मानवाधिकार , लोकतंत्र और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के तीन उत्कृष्ट चैंपियनों को सम्मानित करना चाहती है.” वेबसाइट के अनुसार, “एलेस बियालियात्स्की 1980 के दशक के मध्य में बेलारूस में उभरे लोकतंत्र आंदोलन की शुरुआत करने वाले लोगों में शामिल थे. 1991 से पहले, जब पूर्व सोवियत संघ (Soviet Union) का पतन हुआ और स्वतंत्र देशों का उदय हुआ, मध्य एशिया और यूरोप के साथ कई देशों ने स्वतंत्रता-समर्थक आंदोलनों को देखे हैं। 1996 में राष्ट्रपति को तानाशाही शक्तियां देने वाले विवादास्पद संवैधानिक संशोधनों के जवाब में वियास्ना (स्प्रिंग) संगठन की स्थापना का श्रेय भी एलेस बियालियात्स्की को दिया जाता है।
‘मुक्तांचल’ पत्रिका के 35वें अंक का लोकार्पण
हावड़ा । विद्यार्थी मंच द्वारा गत 7 अक्टूबर को ‘मुक्तांचल’ पत्रिका के 35वे अंक के लोकार्पण के उपलक्ष्य में हिन्दी साहित्य में निराला के योगदान पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका मुख्य विषय निराला की लंबी कविता *’राम की शक्ति पूजा’* थी। कार्यक्रम के आरंभ में हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक शेखर जोशी के निधन पर एक मिनट का मौन धारण किया गया। इसके पश्चात सुषमा कुमारी ने सरस्वती वंदना का पाठ कर विधिवत रूप से कार्यक्रम का आरंभ किया। कार्यक्रम में उपस्थित प्रिया श्रीवास्तव, सरिता खोवाला, स्वराज पांडे, रवींद्र श्रीवास्तव, रिया मिश्रा, युवराज राय द्वारा निराला की कविताओं का पाठ प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में उपस्थित राम नारायण झा, ‘शब्दकार’ के संस्थापक प्रदीप धानुक, प्रिंस कुमार ने अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ प्रस्तुत किया। विवेक कुमार लाल ने *’राम की शक्ति पूजा’* का भावपूर्ण पाठ प्रस्तुत कर श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। अपने संबोधन में उन्होंने यह भी बताया कि *’मुक्तांचल’* पत्रिका के इस 35वें अंक के आवरण पृष्ठ पर बना चित्र पत्रिका की संपादक मीरा सिन्हा के द्वारा बनाया गया है। वह एक सफल शिक्षिका, समृद्ध लेखिका के साथ- साथ एक कुशल चित्रकार भी हैं। युवा कवयित्री श्रद्धा गुप्ता ने अपनी स्वरचित कविता के माध्यम से निराला के जीवनी को प्रस्तुत किया। सभी ने उनके इस प्रयास की सराहना की।
कार्यक्रम में उपस्थित सुरेन्द्र नाथ इवनिंग कॉलेज की युवा प्रवक्ता दिव्या प्रसाद ने अपने वक्तव्य में कहा कि साहित्य एक सुखद पहल है। किताबें खामोश रहकर हमें बोलना सिखाती हैं, पढ़ना सिखाती हैं और भीड़ में हमारा हाथ थाम हमें चलना सिखाती हैं। मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ. विनय मिश्र ने अपने वक्तव्य में निराला के साहित्य सृजन में उनकी पत्नी मनोहरा देवी के योगदानों को रखा। निराला के विभिन्न रचनाओं पर बात करते हुए उन्होंने निराला की बात रखी – ‘जो योग्य होगा वह जीतेगा’। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. ऋषिकेश राय ने अपने वक्तव्य में छायावाद एवं निराला तथा अन्य छायावादी कवियों पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कवि अपनी कविताओं में जितनी बार मरता है कविता उतनी ज्यादा निखरती है और निराला अपनी कविताओं में बार-बार मरते रहे हैं। इसके साथ उन्होंने ‘राम की शक्ति पूजा’ के प्राम्भिक अंश का पाठ प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन श्रीप्रकाश गुप्ता ने किया। पत्रिका की संपादक मीरा सिन्हा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यक्रम को विराम दिया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में बलराम साव, सुशील पांडेय आदि ने सक्रिय भूमिका निभाई।
शुभजिता दीपोत्सव 2022 : गोकुलश्री के बकलावा बॉक्स, केसर खजूर एवं पटाखा बॉक्स की माँग बढ़ी
कोलकाता । महानगर के अग्रणी मिष्ठान एवं नमकीन प्रतिष्ठान ने दिवाली पर केन्द्रित थीम और डिजाइन के साथ मिठाइयों को नये अन्दाज में पेश किया है। आकर्षक और थीम आधारित भव्य पैकेजिंग में उपलब्ध यह मिठाइयाँ पसन्द भी खूब की जा रही हैं। पिछले 30 वर्ष से व्यवसाय में सक्रिय गोकुल श्री आज एक प्रतिष्ठित ब्रांड है। गोकुल श्री स्वीट एंड स्नैक्स के श्री लक्ष्मीकांत बालासरिया ने बताया कि इस बार दिवाली पर गोकुल श्री ने कुछ खास मिठाइयाँ पेश की हैं। जगदीश चंद्र बोस रोड स्थित गोकुल श्री के शो रूम से ग्राहक केसर मिठाइयाँ, नमकीन, सूखे मेवे से लेकर चॉकलेट एवं आयातित फल (इम्पोर्टेड फ्रूट्स) खरीद सकते हैं। मिठाइयों को चांदी एवं सुनहरे वर्क से सजाया गया है और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी गोकुल श्री की मिठाइयाँ काफी अच्छी हैं। इस बार बकलावा प्लैटर पेश किया गया है जो तुर्की की मिठाई है।

लक्ष्मीकांत ने कहा चॉकलेट फ्लेवर की मिठाइयाँ लोग परन्द कर रहे हैं और गोकुल श्री का प्रयास रहता है कि ग्राहकों को उच्च गुणवत्ता वाली मिठाइयाँ उपलब्ध करवायी जाये और उनके लिए वह पैसा वसूल हो। दिवाली की शुभकामनाएं देते हुए बालासरिया ने कहा कि इस साल की दिवाली में हमारे ग्राहक बकलवा बॉक्स, केसर खजूर और पटाखा बॉक्स समेत कई नए बॉक्स देखने वाले हैं। पटाखा स्वीट बॉक्स के लोग दीवाने हैं। गोकुल श्री मिठाइयों में नवीनता के लिए जाना जाता है और यह हमेशा रहेगा ।
‘हिंदी नाटक और रंगमंच चुनौतियाँ एवं संभावनाएं’ दो दिवसीय राष्ट्रीय रंग संगोष्ठी
कोलकाता । पश्चिम बंगाल हिंदी अकादमी सूचना एवं संस्कृति विभाग, पश्चिम बंग सरकार द्वारा आयोजित द्वितीय दो दिवसीय राष्ट्रीय रंग संगोष्ठी का आयोजन रवींद्र सदन के बंगला अकादमी में आयोजित की गयी। चार सत्रों में विभाजित संगोष्ठी का विषय “हिंदी नाटक और रंगमंच चुनौतियाँ एवं संभावनाएं ” था। इस कार्यक्रम का उद्घाटन रंग निर्देशिका और अभिनेत्री अनुभा फतेहपुरिया ने किया। विशिष्ठ अतिथि के रुप में प्रसिद्ध फिल्म निर्माता, निर्देशक व अभिनेता प्रेम मोदी ने सिनेमा और रंगमंच पर अपनी बात रखते हुए कहा, ‘थियेटर ही अच्छे कलाकार को बनाता है अच्छे कलाकार की जन्मभूमि थियेटर ही है। संगोष्ठी में बीज वक्तव्य सुमन कुमार ने दिया। उन्होने कहा, ‘बहुत कुछ है बोने के लिए धरती पर क्या बोना है, यह हमें ही देखना है। अगर प्रेम बोयेंगे तो प्रेम और घृणा बोयेंगे तो घृणा ही मिलेगी। हमें कल्पनाओं में देखा हुआ बड़ा सपना हमें ,यथार्थ में बदलने की कोशिश करनी चहिए। हमारे समाज में रंगमंच का होना बहुत जरूरी है । वक्ता के रुप में कोलकाता से डॉ. अरुण होता ने कहा कि भाषा कभी भी हमारे सामने रुकावट बन कर नहीं आती विरोध करना हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है हमारी रचना में प्रतिरोध का होना अनिवार्य है वरना हमारे लेखन का कोई उद्देश्य नहीं रह जाता।रंगकर्मी एवं लिटिल थेस्पियन की निदेशक अभिनेत्री उमा झुनझुनवाला ने कहा कि कलाकार ,निर्देशक, नाट्यकर्ता और रंगमंच से जुड़ी हर एक चीज की जानकारी होनी चाहिए। नाटक में जितनी जरूरत अभिनेता ,निर्देशक ,मंच, लाइट और बाकी सब चीजों की होती है,उतनी ही जरूरत दर्शकों की भी होती है। प्रथम सत्र का सफल संचालन डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने किया ।
दूसरे सत्र की अध्यक्षता डॉ. प्रताप सहगल ने की। मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ. गीता दूबे ने नाटक के अनुवाद पर अपनी बात रखते हुए कहा कि अनुवाद की समीक्षा करना कठिन है अनुवाद करना ऐसा होता है जैसे इतर एक शीशी से दूसरे शीशी में करने पर भी उसकी सुगंध पहले वाली शीशी में रह जाती है। जितेंद्र पात्र ने प्रकाशन पर अपनी बात रखते हुए कहा कि नाटक का रूपांतरण हर बार अलग-अलग तरीके से होता रहा है लेकिन इसे कहीं ना कहीं से व्यापारिक क्षेत्र की दृष्टि से भी देखा जा सकता है। इस सत्र के अध्यक्ष प्रताप सहगल ने अनुवाद रूपांतरण प्रकाशक और मौलिक नाटकों पर बात करते हुए कहा कि काव्य ही काव्य का मूल है जो मंच पर नाटक करते हैं और जो पाठकों है उनके अंदर भी गतिशीलता होनी चाहिए। रस की अवधारणा भरत मुनि में थी। धीरे-धीरे रस की अवधारणा खत्म होने के कगार पर है पर पाठक अभी भी पढ़ते समय रस खोजते हैं। नाटक की पहली शर्त यह होनी चाहिए कि कि जब एक अभिनेता मंच पर जाए तो वह भावनाओं से परिपूर्ण होकर जाए ना कि अपने अंदर अहिंसा लेकर जाए। दूसरे सत्र का संचालन प्रो. अल्पना नायक ने किया।
तीसरे सत्र की अध्यक्षता महेश जायसवाल ने की। वक्ता राजेश कुमार ने नुक्कड़ नाटकों पर बात करते हुए कहा कि व्यक्तिगत शैली की तरह नुक्कड़ नाटक होना चाहिए। डॉ प्रज्ञा ने नुक्कड़ नाटक की राजनीतिक और सामाजिक चेतना पर अपनी बात रखी तथा। इस सत्र के अध्यक्ष महेश जायसवाल ने कहा कि नाटक साहित्य का एक मुख्य अंग है और हम साहित्य से अलग नाटक को नहीं देख सकते है। तीसरे सत्र का संचालन इतु सिंह ने किया। अंत में इस तीनों सत्र का धन्यवाद ज्ञापन पश्चिम बंगाल हिंदी अकादमी, कला विभाग की संयोजिका उमा झुनझुनवाला ने किया।
चतुर्थ सत्र में ‘ शोधर्थियों द्वारा रंगमंच पर शोध – पत्र का पाठ ‘ विषय के अंतर्गत पार्वती कुमारी शॉ ने ‘ अज़हर आलम के मौलिक नाटकों का विश्लेषण ‘पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया और सुलगते चिनार, नमक की गुड़िया, रूहें और चाक की समीक्षा पेश की । शोधार्थी सोनम सिंह ने अपने शोध पत्र ‘ भीष्म साहनी के नाटक पर में रंगमंचीयता ‘ पर बात रखी और ,माधवी ,हनुस, मुआविजा और कबिरा खड़ा बाजार में नाटकों के संबंध पर विचार रखे। इसी क्रम में आगे डॉ इबरार खान अपने शोध पत्र ‘समकालीन हिंदी उर्दू नाटकों में स्थित भ्रष्टाचार और बेरोजगारी ‘ को प्रस्तुत किया। उन्होंने भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से जुड़ी रचना सीढ़ियां ,ताजमहल का उद्घाटन, कानून के ताज़िर , मुआव़जे, जैसे रचनाओं पर अपनी बात रखी। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए रंगकर्मी जितेंद्र सिंह ने कहा कि शोध आगे की और पीछे की इतिहास को एकत्र करता है। संचालन मधु सिंह ने किया।
पंचम सत्र में ‘ आधुनिक रंगमंच के विकास में स्त्रियों का अवदान ‘ विषय के संबंध में संगम पांडेय ने कहा कि नाट्य शास्त्र के परिमार्जन से लेकर आज के आधुनिक रंगमंच में चाहे वह लेखन के क्षेत्र में हो, अभिनय के क्षेत्र में हो या फिर किसी नाट्य संस्था के विकास में स्त्रियों ने आगे बढ़कर काम किया है। प्रवीण शेखर ने कहा कि नाट्य लेखन के क्षेत्र में स्त्रियों ने मौलिक नाटक से लेकर अनुदित और रूपांतरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है- जैसे मन्नू भंडारी, मीरा कांत ,उमा झुनझुनवाला, गुंजन अज़हर , वहीं नाटकों की समीक्षा के क्षेत्र में गिरीश रस्तोगी की मुख्य भूमिका के संबंध में अपना वक्तव्य रखें। अध्यक्षता करते हुए डॉ. सत्या उपाध्याय ने कहा कि आधुनिक रंगमंच के विकास में स्त्रियों ने व्यक्तिगत तौर पर रंगमंच के विकास में लगी हुई हैं। पश्चिम बंगाल में ही प्रतिभा अग्रवाल, उषा गांगुली, चेतना जलान, उमा झुनझुनवाला, कल्पना झा ,अनुभवा फतेपुरिया जैसे रंगकर्मी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संचालन करते हुए वसुंधरा मिश्रा ने कहा कि बंगाल की धरती में रंगकर्म को समृद्ध करने में स्त्रियों ने अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है।
षष्ट सत्र में भारतीय ‘ आधुनिक हिंदी रंगमंच के पड़ाव और चुनौतियाँ ‘ विषय के संबंध में जे पी सिंह ने कहा कि भारतेंदु युग ,प्रसाद युग और प्रसादोत्तर युग के बाद आधुनिक हिंदी रंगमंच को हम किस नाम से पुकारे, यह प्रश्न अब तक बना है यही भारतीय हिंदी रंगमंच की सबसे बड़ी चुनौती है। वहीं डॉ मृत्युंजय प्रभाकर ने कहा कि भारतीय हिंदी रंगमंच के पड़ाव का विकास तब होगा, जब रंगमंच से कमाने वाले रंगमंच के लिए ख़र्च करेंगे। अध्यक्षता करते हुए प्रताप जायसवाल ने कहा कि नाटक करना आज स्वयं में एक चुनौती है,सच की जुबान है नाटक ,नाटक का मंचित होकर अर्थ का विस्तार होते जाना रंगमंच का एक पड़ाव है। भारतीय रंगमंच में भाषा कभी भी बाध्यता नहीं बनी । दर्शकों का विस्तार को बढ़ाना सबसे बड़ी माँग है आज के रंगमंच की । इस सत्र का संचालन डॉ सुफिया यास्मीन ने किया। अंत में उमा झुनझुनवाला ने कोलकाता के सभी कॉलेज के प्रोफ़ेसरों के प्रति आभार व्यक्त किया और विद्यार्थियों को प्रेरित किया।
कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में पहली बार हुई परिसर नियुक्तियाँ
कोलकाता । हिन्दी भाषा में एम ए करने पर भी रोज़गार के अनेक अवसर प्राप्त हो सकते हैं ,इस तथ्य को और अधिक प्रमाणित करते हुए अभी कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के तीन विद्यार्थियों – अदिति साव, अंकिता पाण्डेय और संदीप पासवान की आईडीबीआई बैंक में अधिकारी के रूप में नियुक्ति हुई । विश्वविद्यालय के कैम्पस प्लेस्मेंट कार्यालय और हिन्दी विभागाध्यक्ष के माध्यम से बैंक ने चतुर्थ सत्र के विद्यार्थियों के बीच परिसर नियुक्ति के लिए चयन की पूरी प्रक्रिया पूर्ण की । हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो राजश्री शुक्ला ने इन नियुक्तियों के लिए विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार एवं कैम्पस प्लेस्मेंट ऑफ़िस के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए इसे एक ऐतिहासिक घटना माना । उन्होंने कहा कि चतुर्थ सत्र में पढ़ते हुए ही इस प्रकार एक प्रतिष्ठित बैंक में अधिकारी होने का अवसर इन तीनों विद्यार्थियों और विभाग के लिए भी आश्वस्ति दायक है । साथ साथ इससे हिन्दी विषय लेकर पढ़ने वाले विद्यार्थियों का भी उत्साह बढ़ेगा । प्रो राम प्रवेश रजक और प्रो बिजय कुमार साव ने इस ऐतिहासिक मौक़े को उपलब्ध कराने के लिए विभागाध्यक्ष के प्रयासों की सराहना की । उन्होंने इन विद्यार्थियों को बधाई और शुभकामना देते हुए कहा कि यह रोज़गार की दिशा में हिन्दी के बढ़ते हुए क्षेत्र का एक और प्रमाण है ।आज प्रतियोगिता के इस युग में जब अधिकतर एम ए करने के बाद सालों साल इंतज़ार करना पड़ता है ऐसे समय में यह परिसर नियुक्तियाँ हिन्दी के विद्यार्थियों का आत्म विश्वास बढ़ाएँगी ।
शुभजिता पड़ताल : मंडपों में जब खोजने निकले उत्सव की आत्मा
शुभजिता फीचर डेस्क
दुर्गा पूजा बीत चुकी है और दिवाली आ रही है। त्योहार कोई भी हो, उसके केन्द्र में स्त्री रहती है। नवरात्रि के केन्द्र में माँ दुर्गा हैं। बंगाल में तो दुर्गा को बेटी मानकर ही आराधना की जाती है और बेटियों को माँ ही कहा जाता है मगर पीछे मुड़कर आज पूजा का स्वरूप देखती हूँ तो अन्तर दिखता है। अगर आज से 8 -10 साल पहले की बात की जाये तो जाए तो शायद इतनी भव्यता नहीं थी मगर उत्सव की आत्मा अवश्य थी। तब उत्सव में आडम्बर नहीं था मगर उत्साह था। हर साल की तरह इस बार भी पूजा देखने गयी। कुछ पूजा मंडपों की परिक्रमा का विवरण भी दिया मगर शुभजिता की विशेषता यही है कि वह भीड़ में से कुछ अलग खोजती है। करोड़ों के मंडप और हजार टन की प्रतिमाओं के बीच सादगी में जो बात होती है, वह इतनी महत्वपूर्ण है कि उसे बचाये रखना बहुत आवश्यक है। हमारी परिक्रमा का मापदण्ड यह कभी नहीं रहा कि किस पूजा कमेटी के सिर पर किस बड़े नेता का हाथ है या उसने किस प्रतिमा पर कितना अधिक खर्च किया है। महत्वपूर्ण यह है कि उसमें ऐसा क्या है जो हमें अपनी जड़ों चक ले जाता है और सबसे बड़ी बात वह मंडप संदेश क्या दे रहा है।
तो अपनी इस परिक्रमा के पड़ताल में अपने साधनों की सीमा के बीच हमने जो ऐसे मंडप देखे…आज उन पर आपसे बात करेंगे। हम यहाँ यह अवश्य कहना चाहेंगे कि हम जो देख पाए…वह हमारे साधनों की सीमा थी, इसका तात्पर्य यह कतई नहीं है कि दूसरे अन्य मंडप सुन्दर नहीं थे…हम उनकी बात कर रहे हैं जिनको हम देख पाये।
बात दुर्गा पूजा की हो बंगाल के हर मंडप में काम में जुटा कारीगर और कलाकार अपनी पूरी श्रद्धा से काम करता है इसलिए हर एक पूजा मंडप अपने -आप में सुन्दर है मगर जीवन के रंग से सजे मंडप जब सामने आते हैं तो एक वास्तविक अनुभूति होती है, एक सुकून मिलता है, बस हमारे चयन का आधार यही है और यह भी सीमित संसाधन और बजट के रहते हुए भी आप क्या संदेश और सृजनात्मकता ला सकते हैं। भव्यता और बजट हमारे चयन का आधार नहीं था इसलिए बड़े पूजा मंडप इस सूची में आपको नहीं मिलेंगे। इसका अर्थ यह नहीं कि वे सुन्दर नहीं मगर मौलिकता और उत्सव का सुकून…जो बच्चों के चेहरे पर भी मुस्कान ला दे…आपको अपनी जड़ों से मिला दे.वह अवश्य विशेष होता है। हमारे साथ आप भी चलिए देखते हैं –
47 पल्ली युवक वृन्द
इस पूजा मंडप में जाते ही श्यामल सुन्दर धरती की परिकल्पना साकार हो उठी। पूरा मंडप मिट्टी के कुल्हड़ों, बाँस की टोकरियों से सजाया गया था। इस पूजा की थीम थी सृष्टि और माँ की प्रतिमा इतनी मनोहर और भव्य रही कि उशे देखना ही एक अलग अनुभव दे गया।
मध्य कोलकाता सार्वजनीन
यह मंडप अक्सर बच्चों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। यहाँ प्रवेश द्वार पर खड़े गणेश जी आपके चेहरे पर मुस्कान ले आए। अन्दर जाने पर विक्रम – बेताल की जोड़ी के साथ रामकृष्ण परमहंस और मां शारदा दिखे। साथ ही साक्षरता का संदेश देते जानवर भी दिए। प्रतिमा परम्परागत थी और जरी साज इसे सुन्दर बना रहे थे।
संतोष मित्रा स्क्वायर
दिल्ली का लाल किला की प्रतिकृति बना यह मंडप खूब प्रशंसा पा गया। प्रतिमा पारम्परिक मगर आजादी के महोत्सव की थीम से सजा यह मंडप निश्चित रूप से एक प्रेरणा देने वाला था।
कॉलेज स्क्वायर
जब आप वृन्दावन के प्रेम मंदिर को तिरंगे की रोशनी से नहाया देखते हैं तो एक अद्भुत अनुभूति होती है। मंडप को विष्णुवतार की लीलाओं और राधा – कृष्ण की झांकियों से सजाया गया है। तरणताल के निकट बने इस मंडप को इसकी प्रकाश सज्जा के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
जोड़ासांको 73 पल्ली सार्वजनीन दुर्गा पूजा
आधुनिक जीवन की कंक्रीट की इमारतों में फंसा शहरी मानव थोड़ी शांति चाहता है। किसी आधुनिक आवासीय परिसर की प्रतिकृति इस मंडप के बाहर बना पिंजरा कहीं न कहीं पराधीनता की गाथा कह रहा था और पक्षियों की चहचटाहट अपनी आवाज मुखर रही थी। मंडप को चिड़ियों से ही सजाया गया था।
श्री बांसतल्ला सार्वजनीन दुर्गोत्सव समिति
मंडप लेटर बॉक्स से सजाया गया था और वंदे मातरम् के चित्रण ने इसे और सुन्दर बना दिया। देवी के पीछे तिरंगे की पृष्ठभूमि और शहीदों की तस्वीरों ने देशभक्ति की भावना तरंगित कर दी। यहाँ माँ को भगवा वस्त्रों में दिखाया गया जो कि वंदे मातरम् की थीम के अनुरूप ही था।
गंगाधर बाबू लेन का एथलेटिक क्लब
मंडप की थीम शांति थी। पंडाल के सामने गौतम बुद्ध मुस्कुरा रहे थे और माँ के हाथों में त्रिशूल था और शेष सभी हाथों में कमल सजा था। प्रतिमा छोटी और संदेश बड़ा था।
इसके अतिरिक्त मढुआ, प्रेमचंद बड़ाल स्ट्रीट जैसी जगहों पर भी आकर्षक मंडप देखने को मिले। ऐसे ही दिखा शतदल संघ दुर्गोत्सव का पंडाल जिसे रंग – बिरंगी छतरियों से सजाया गया था।
महानगर में 50 फीट लंबे रावण का दहन, सौरभ दिखे अलग अंदाज में
कोलकाता । सिटी ऑफ जॉय कोलकाता के सॉल्टलेक में दशहरे के मौके पर सबसे ऊंचे रावण के पुतले को जलाने की परंपरा को कायम रखते हुए साल्टलेक सांस्कृतिक संसद कमेटी और सन्मार्ग की ओर से सॉल्टलेक के सेंट्रल पार्क में 50 फीट लंबे रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के 40 फीट के पुतले को जलाया गया। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने के साथ इस राज्य के नागरिकों को यहां की समृद्ध संस्कृति और परंपरा का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करना था। इस कार्यक्रम में बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरभ गांगुली, कोलकाता नगर निगम के मेयर फिरहाद हाकिम, अग्निशमन राज्य मंत्री सुजीत बोस, विधायक विवेक गुप्त, साल्टलेक सांस्कृतिक संसद के अध्यक्ष प्रदीप तोदी, साल्टलेक सांस्कृतिक संसद के मार्गदर्शक ललित बेरीवाला, साल्टलेक सांस्कृतिक संसद के सचिव नितिन सिंघी, लक्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अशोक तोदी के साथ इस मौके पर समाज की कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां मौजूद थें।
इस आयोजन में बड़ी संख्या में मौजूद रहकर लोगों ने लंका के राजा राक्षस रावण के पुतले को जलाने के दृश्य का आनंद उठाया। हिंदू धर्म के लोग इस पावन दिन में देशभर में अपने घरों या फिर मंदिरों में विशेष प्रार्थना सभाओं का आयोजन कर देवी देवताओं को प्रसाद अर्पित कर दशहरा उत्सव मनाते हैं। वे राक्षस राजा रावण के पुतलों के साथ मेले का आयोजन कर शाम को रावण के पुतले को जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का आनंद मनाते हैं। इसके साथ विजया दशमी के दिन से देवी दुर्गा की मुर्तियों को गंगा या तालाब में विसर्जित करने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
इस मौके पर साल्टलेक सांस्कृतिक संसद के अध्यक्ष प्रदीप तोदी ने कहा, बंगाल के गौरव सौरभ गांगुली का इस वर्ष हमारे कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहना हमारे लिए गर्व की बात है। हमने रावण दहन के जरिये रावण का पुतला जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न के तौर पर सेंट्रल पार्क मैदान में कई खास इंतजाम किए थे। रावण के 50 फीट ऊंचे पुतले को जलाने के अलावा इस कार्यक्रम में अलग-अलग तरीके के फायर शो का भी आयोजिन किया गया था। साल्टलेक सांस्कृतिक संसद के मार्गदर्शक ललित बेरीवाला ने कहा, इस वर्ष 10वें वर्ष में हम पूर्वी भारत के सबसे बड़े उत्सव दशहरा कार्यक्रम को मना रहे हैं। वार्षिक दुर्गापूजा उत्सव में विजया दशमी, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं। हमारे इस कार्यक्रम की सफलता के पीछे विभिन्न राज्यों के कलाकारों की मेहनत शामिल है, जिन्होंने दिन-रात कड़ी मेहनत कर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण का पुतला बनाया। इन पुतलों को जलाने से पहले संस्था की तरफ से विधिवत तरीके से कई रस्में भी निभाई गईं, जिसे देखने के लिए 25,000 से अधिक लोगों की भीड़ उमड़ी थी।