Thursday, March 20, 2025
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दीया और मोमबत्ती एक दूसरे की जरूरत हैं, बोझ नहीं

दीपावली बीत चली मगर दीयों का नाता किसी एक दिन से तो नहीं होता तो बात कही जा सकती है । दीया चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, वह प्रकाश है, दीया विश्वास है, दीया संघर्ष है, दीया परिवर्तन है। घनघोर अन्धेरे में बस एक दीया जलाकर रख दीजिए और उसे मोमबत्ती का सहारा दीजिए…वह अपनी क्षमता भर अन्धेरे से लड़ेगा । दीया जब अन्धेरे से जूझ रहा होता है तो बदले में कालिमा के कुछ भी तो नहीं मिलता। उसकी सज -धज तभी तक रहती है जब तक उसे जलाया नहीं गया । यही बात मोमबत्ती के साथ भी है..वह तभी तक सुन्दर दिखती है, जब तक कि उसे जलाया नहीं जाता । मोमबत्ती को जलाइए तो मोम गलने लगती है मगर मोमबत्ती की लौ से दीये को जलाया जाए तो मोमबत्ती असंख्य दीयों का प्रकाश बन जाती है। सोचिए क्या होगा अगर मोमबत्ती को अन्धेरे से प्रेम हो जाए और वह दीये को प्रकाश देना बंद कर दे और वह इस अहंकार में उसके बगैर तो दीये का अस्तित्व नहीं है । वृक्ष का अस्तित्व जड़ से है मगर उसकी शोभा पत्तों, तनों, फूल और फलों से है क्योंकि वह उसके होने का प्रमाण हैं, उसकी योग्यता का प्रतीक हैं। याद रहे कि दीया और मोमबत्ती तभी तक जलते हैं जब तक वे एक दूसरे को प्रकाशित करते रहें । अकेले न तो दीया जल सकता है और न ही मोमबत्ती की लौ की कोई उपयोगिता रह जाती है इसलिए अन्धेरा चाहता ही नहीं कि दोनों एक दूसरे के साथ आएं । कुरीतियों, रूढ़ियों और सामन्तवाद का अन्धेरा भी परिवर्तन के प्रकाश से डरता है इसलिए वह तोड़ना चाहता है, कभी दीये को तो कभी मोमबत्ती को। ज्ञान का प्रकाश, सृजनात्मकता का प्रकाश बिखेरना दीये का दायित्व है तो दीये को अपने ज्ञान से समृद्ध करना मोमबत्ती की जिम्मेदारी…इसलिए दोनों अपना काम कर रहे हैं..कोई किसी पर उपकार नहीं कर रहा । पारिवारिक परिदृश्य में इस सन्दर्भ को नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी से जोड़िए, सामाजिक सन्दर्भ में गुरू और शिष्य से और कॉरपोरेट क्षेत्र में अधिकारी व कर्मचारियों से…सन्देश स्पष्ट है। आप दूसरों को प्रकाशित होंगे तो उसके प्रकाश के माध्यम से आपका अस्तित्व व्यापक होगा मगर अहंकार के अन्धेरे में दबाना चाहेंगे तो खुद भी समाप्त हो जाएंगे…इसलिए आप दोनों एक दूसरे की जरूरत हैं, बोझ नहीं।

दिवाली पर खाएं स्वास्थ्य से भरी मिठाइयां

सादा नारियल मावा बर्फी
सामग्री – 1 कप कद्दूकस किया हुआ नारियल , आधा कप मावा- , 3 चम्मच घी
विधि – सबसे पहले ऊपर बताई गई सामग्रियों को तैयार करके रख लें। फिर एक पैन में घी गर्म करें और जब गर्म हो जाए तो मावा डाल दें। फिर हल्का भूरा होने तक भूनें, ताकि उसका कच्चापन दूर हो जाए। इसके बाद कद्दूकस किया हुआ नारियल डालें और मिश्रण को अच्छे से मिलाएं। हल्की आंच पर 5-7 मिनट तक भूनें, ताकि नारियल और मावा का मिश्रण गाढ़ा हो जाए। इसके बाद गैस बंद कर दें और मिश्रण को ठंडा होने दें। ठंडा होने पर इस मिश्रण को प्लेट में फैला लें और मनपसंद आकार में काटें। आप बर्फी बना सकते हैं या लड्डू बनाकर स्टोर कर सकते हैं। इस बर्फी को 5-7 दिनों तक फ्रिज में स्टोर किया जा सकता है। अगर ताजा नारियल नहीं मिल रहा, तो सूखा नारियल भी इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन ताजा नारियल का स्वाद बेहतर होता है।

बेसन की पिन्नी
सामग्री – 1 कप बेसन, आधा कप घी, थोड़े कटे बादाम
विधि – सबसे पहले ऊपर बताई गई सामग्रियों को तैयार करके रख लें। फिर इसमें एक पैन में घी गर्म करने के लिए रख दें। जब घी गर्म हो जाए तो इसमें बेसन डालें और हल्की आंच पर सुनहरा होने तक भून लें। फिर बेसन की खुशबू आने लगेगी और उसका रंग सुनहरा हो जाएगा। इसे भूनने में करीब 10-12 मिनट का समय लगेगा। फिर गैस बंद कर दें और बेसन को ठंडा होने दें। ठंडा होने पर इसमें कटे हुए बादाम डालें और मिश्रण से छोटे-छोटे लड्डू बनाएं। बस हो गया आपका काम, जिसे स्टोर करके रख सकते हैं। बेसन को हल्की आंच पर ही भूनें, ताकि जलने से बचे और इसमें अच्छा स्वाद और खुशबू आ सके। इसमें बादाम के अलावा, आप अपनी पसंद के मेवे जैसे अखरोट, पिस्ता आदि भी मिला सकते हैं।

रोशनी के पर्व पर बेसन से दमकाएं चेहरा

दिवाली पर हर कोई सबसे खूबसूरत और अट्रैक्टिव नजर आना चाहता है। इसके लिए अक्सर कई लोग पार्लर जाकर फेशियल करवाते हैं। लेकिन अगर आप अपने बिजी शेड्यूल की वजह से पार्लर नहीं जा सकते, तो घर पर ही बेसन की मदद से फेशियल कर सकते हैं। जी हां, बेसन त्वचा को एक्सफोलिएट करता है और डेड स्किन को हटाने का भी काम करता है। इसे लगाने से चेहरे के दाग-धब्बे दूर होते हैं और त्वचा चमकदार बनती है। अगर आप भी इस दिवाली अपने चेहरे पर नैचुरल ग्लो लाना चाहते हैं, तो बेसन से फेशियल कर सकते हैं। आज इस लेख में हम आपको बेसन से फेशियल करने के तरीके के बारे में बता रहे हैं। तो आइए, जानते हैं इसके बारे में विस्तार से –
क्लींजिंग – सबसे पहले आप एक कटोरी में 2 चम्मच बेसन लें। इसमें एक चम्मच दूध डालकर अच्छे से मिला लें। अब इसे चेहरे पर लगाएं और हल्के हाथों से चेहरे को 2-3 मिनट तक रगड़े। उसके बाद पानी से चेहरे को धो लें। क्लींजिंग से चेहरे पर जमा गंदगी और एक्स्ट्रा ऑयल हट जाता है।
स्क्रबिंग – क्लींजिंग के बाद चेहरे की स्क्रबिंग की जाती है। इससे डेड स्किन, ब्लैकहेड्स और वाइटहेड्स को हटाने में मदद मिलती है। इसके लिए आप एक कटोरी में 2 चम्मच बेसन और 1 चम्मच चावल का आटा लें। इसमें 2 चम्मच कच्चा दूध डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लें। अब इस पेस्ट को अपने चेहरे पर लगाएं और हाथों को सर्कुलर मोशन में घुमाते हुए मसाज करें। करीब 5 मिनट बाद चेहरे को पानी से धो लें।
मसाज – फेशियल का तीसरा स्टेप मसाज करना होता है। इससे त्वचा को हाइड्रेटेड रखने और निखार लाने में मदद मिलती है। इसके लिए आप एक बाउल में 2 चम्मच बेसन लें। इसमें 2 चम्मच एलोवेरा जेल डालकर अच्छी तरह मिला लें। अब इस मिश्रण को अपने चेहरे पर लगाएं और 5 से 10 मिनट तक हल्के हाथों से मसाज करें। इसके बाद पानी से चेहरे को धो लें।
फेस पैक – फेशियल का आखिरी स्टेप चेहरे पर फेस पैक लगाना होता है। इसके लिए आप एक कटोरी में एक चम्मच बेसन लें। इसमें एक चम्मच दूध और चुटकी भर हल्दी डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लें। अब इस पेस्ट को अपने चेहरे पर लगाएं और सूखने के लिए छोड़ दें। करीब 15-20 मिनट बाद चेहरे को पानी से धो लें।

दीयों के त्योहार पर बढ़े घर की सजधज

दीवाली के मौके पर हर कोई अपने घर को एक खूबसूरत और आकर्षक लुक देना चाहता है। इंटीरियर डिजाइनिंग का चलन तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन महंगे इंटीरियर डिजाइनर से सलाह लेना हर किसी के लिए मुमकिन नहीं होता है। ऐसे में, इस दीवाली क्या आप भी अपने घर को एक नया लुक देना चाहते हैं लेकिन बजट या समय की कमी के कारण परेशान हैं? अगर हां, तो घबराइए मत! हम आपको कुछ आसान और किफायती तरीके बताएंगे जिनकी मदद से आप कम खर्च और कम समय में अपने घर को खूबसूरत बना सकते हैं। आइए जानें। घर की खूबसूरती बढ़ाने के लिए मेन गेट को सजाना बेहद जरूरी है। आप फूलों से बनी रंगोली, मिट्टी के बर्तन या लकड़ी की नक्काशी से बने अट्रैक्टिव पीस का इस्तेमाल कर सकते हैं। अपनी क्रिएटिविटी का इस्तेमाल करके आप अपने घर के एंट्री गेट को एक शानदार लुक दे सकते हैं।
अगर आपको सिलाई, बुनाई या पेंटिंग का थोड़ा बहुत भी अनुभव है, तो आप अपने पुराने पर्दों को एक नया रूप देकर अपने घर को सजा सकते हैं। इंटरनेट पर ढेर सारे आकर्षक डिजाइन उपलब्ध हैं, जिन्हें आप अपनी पसंद के अनुसार पर्दों पर उतार सकते हैं। आप पर्दों पर हाथ से पेंटिंग कर सकते हैं, या फिर उन पर कढ़ाई या बुनाई कर सकते हैं। ये हाथ से बने पर्दे आपके घर को एक अनोखा और खूबसूरत लुक देंगे।
 घर के दरवाजे और खिड़कियां किसी भी घर की शोभा बढ़ा सकते हैं। इन्हें नए रंगों में पेंट करके आप अपने घर को एक नया रूप दे सकते हैं। आप मुख्य रंग के साथ-साथ किनारों पर एक अलग रंग का इस्तेमाल करके एक आकर्षक कॉन्ट्रास्ट बना सकते हैं। इससे आपके घर का लुक और भी खूबसूरत हो जाएगा।
घर की सजावट में मोमबत्तियां एक किफायती और बढ़िया तरीका हैं। एक तिकोनी टेबल पर अलग-अलग रंगों और आकारों की मोमबत्तियां रखकर आप अपने घर के किसी भी कोने को एक अट्रैक्टिव कॉर्नर में बदल सकते हैं। मोमबत्तियों की चमक आपके घर को एक शांत और आरामदायक माहौल देने का काम करेगी।
अपने घर को नेचुरल टच देने के लिए बाज़ार में मौजूद खूबसूरत पौधों को चुनें। इन पौधों को खूबसूरत गमलों या कांच के बर्तनों में सजाकर आप अपने घर की रौनक बढ़ा सकते हैं। ये पौधे न केवल आपके घर की सुंदरता में चार चांद लगाएंगे, बल्कि आपके जीवन में भी सकारात्मक ऊर्जा भरेंगे।

स्वास्थ्य के प्रति सजग रहकर मनाएं दिवाली

दीपावली हम हिन्दुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। हम में ज्यादातर लोग इस त्योहार का सालभर इंतजार करते हैं। यह लोगों के जीवन में आनंद और खुशियों का त्योहार है। देशभर में यह दिवाली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं, इस त्योहार पर लोगों के घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और खूब मिठाइयों का सेवन किया जाता है। तला-भुना, नमकीन, मीठा, मसालेदार चीजों का अधिक सेवन स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा, दिवाली का त्योहार जिस समय पड़ता है, इस दौरान देश में प्रदूषण काफी अधिक होता है। त्योहार के दिन भी खूब बम-पटाखे फूटते हैं, जिसकी वजह से प्रदूषण का स्तर काफी अधिक बढ़ सकता है। यह स्वास्थ्य के लिए और भी खतरनाक साबित हो सकते हैं। ऐसे में अगर आप त्योहार के समय अगर अपने स्वास्थ्य की सही तरीके से देखभाल नहीं करते हैं, तो इससे आपके स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर दिवाली पर सेहतमंद कैसे रह सकते हैं और स्वस्थ तरीके से किस तरह हम यह त्योहार मना सकते हैं। आपको बता दें कि कुछ सरल टिप्स को फॉलो और जरूरी बातों को ध्यान में रखकर आप आसानी से सेहतमंद तरीके से खुशियों का त्योहार मना सकते हैं। इस लेख में हम आपको इसके बारे में विस्तार से बता रहे हैं.
सीमित मात्रा में खाएं – भले ही दिवाली खुशियों, मिठाईयों और खाने-पीने का त्योहार है। लेकिन इस दौरान कोशिश करनी चाहिए, आप कुछ भी अधिक मात्रा में न खाएं। अपनी सामान्य डाइट पर ही रहें। ज्यादा मीठा और पकवान खाने से बचें। यह आपके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
मधुमेह के मरीज मीठा खाने से बचें – जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या है ऐसे लोगों को त्योहार पर भूलकर भी मिठाइयों का सेवन नहीं करना चाहिए। सिर्फ डॉक्टर की सलाह से ही कम मात्रा में खाना चाहिए। अपनी दवाओं का भी खास ध्यान रखें।
अस्थमा के मरीज बरतें सावधानी – अस्थमा के मरीजों के लिए दीपावली का त्योहार और भी खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए क्योंकि प्रदूषण की वजह सांस लेने में परेशानी हो सकती है। कोशिश करें कि अपने घर के भीतर ही रहें। घर में एयर प्यूरीफायर का प्रयोग करें।
मास्क लगाकर रहें – त्योहार पर होने वाला प्रदूषण सिर्फ अस्थमा के मरीजों के लिए ही नहीं, सामान्य लोगों के लिए भी घातक हो सकता है। यह आंखों को भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए मांस्क पहनें और आंखों पर चश्मा लगाकर रखें।
पौष्टिक आहार लें – अपने खानपान का खास ध्यान रखें। थोड़ा बहुत मीठा और पकवान भले ही खाएं, लेकिन अपने नियमित आहार को न छोड़ें। स्वस्थ और पोषक तत्वों से भरपूर आहार लें। फल-सब्जियों का सेवन अधिक करें। साबुत अनाज खाएं, प्रोटीन और फाइबर से भरपूर आहार लें।
भरपूर पानी पिएं – आपको दिनभर पानी जरूर पीना चाहिए। पानी स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है। आपको हमेशा यह कोशिश करनी चाहिए कि आप दिनभर खूब पानी पिएं। यह शरीर की आंतरिक रूप से साफ-सफाई करने में मदद करता है। इससे शरीर हाइड्रेट रहता है।

दिवाली पर अगर न मिल रही हो छुट्टी तो इस तरह मनाएं उत्सव

दिवाली साल भर का त्योहार होता है और भारत में पर्व व त्योहार लोग अपने परिवार के साथ मनाना पसंद करते हैं। जो लोग घर से दूर किसी दूसरे शहर में नौकरी या पढ़ाई करते हैं, वो भी दिवाली की छुट्टी पर घर वापसी करते हैं और घरवालों के साथ ही ये त्योहार सेलिब्रेट करते हैं। वैसे तो दिवाली के मौके पर लगभग देशभर में छुट्टी होती है, लेकिन पुलिस और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों के अलावा कई ऐसी कंपनियां या नौकरी हैं, जिसमें छुट्टी नहीं मिल पाती। वहीं एक या दो दिन की छुट्टी में दूसरे शहर स्थित अपने घर जा पाना कई लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है।
ऐसे लोग चाहकर भी दिवाली पर अपने घर, गांव व परिवार के साथ त्योहार नहीं मना पाते हैं। अगर आप भी ऐसे लोगों में शामिल हैं, जो किसी कारणवश दिवाली पर घर नहीं जा पा रहे हैं या त्योहार के दिन उन्हें दफ्तर जाकर काम करना पड़ रहा है तो उदास न हों। त्योहार का मौका है, ऐसे समय को भी खुलकर एंजॉय करें और कुछ मजेदार तरीकों से दफ्तर में दिवाली का पर्व मनाएं, ताकि परिवार की कमी को कम किया जा सके और दिवाली की रौनक को महसूस किया जा सके।
कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां 24*7 काम होता है। इसलिए जरूरी नहीं कि दिवाली पर हर शख्स को छुट्टी मिल सके। ऐसे में किसी ना किसी को तो अपनी छुट्टी के साथ समझौता करना ही पड़ता है। अगर इस बार आपको दिवाली पर दफ्तर जाना पड़ रहा है तो इन आसान टिप्स के साथ अपनी ऑफिस वाली दिवाली का आनंद उठा सकते हैं। जानिए, इन टिप्स के बारे में…
उत्सव के लिए पारंपरिक कपड़े पहनकर दफ्तर जाएं, ताकि और दिनों की तुलना में आपको अलग महसूस हो।
तैयार होकर गए हैं तो सेल्फी और फोटो तो बनती हैं। अपने सहकर्मियों के साथ तस्वीरें लें और दिवाली को यादगार बनाने की कोशिश करें।
टीम के सदस्यों के लिए मिठाइयां लेकर जाएं और सबके साथ मिलकर इस त्योहार को एंजॉय करें।
काम से समय निकालकर अपने घरवालों को और दोस्तों को कॉल या वीडियो कॉल करें और घरवाली दिवाली का भी हिस्सा बनें।
वक्त मिले तो दफ्तर को सजाएं, दीये जलाएं और रंगोली भी बना सकते हैं।
दफ्तर में हुई फेस्टिव डेकोरेशन के साथ अपनी तस्वीर लें और इन्हें अपने घरवालों के साथ शेयर करें।
सहकर्मियों के साथ कुछ गेम्स भी खेल सकते हैं, जिससे सभी का मन फ्रेश हो जाएगा और घर से दूर होने के बाद भी किसी को अकेलापन महसूस न हो।
– घरवालों और दोस्तों को ऑनलाइन दिवाली के गिफ्ट और मिठाइयां भेज सकते हैं।

जानकी जीवन, विजयदशमी तुम्हारी आज है

मैथिली शरण गुप्त
जानकी जीवन, विजयदशमी तुम्हारी आज है,
दीख पड़ता देश में कुछ दूसरा ही साज है।
राघवेंद्र! हमें तुम्हारा आज भी कुछ ज्ञान है,
क्या तुम्हें भी अब कभी आता हमारा ध्यान है?
वह शुभ स्मृति आज भी मन को बनाती है हरा,
देव! तुम तो आज भी भूली नहीं है यह धरा।
स्वच्छ जल रखती तथा उत्पन्न करती अन्न है,
दीन भी कुछ भेंट लेकर दीखती संपन्न है॥
व्योम को भी याद है प्रभुवर तुम्हारी वह प्रभा!
कीर्ति करने बैठती है चंद्र-तारों की सभा।
भानु भी नव-दीप्ति से करता प्रताप प्रकाश है,
जगमगा उठता स्वयं जल, थल तथा आकाश है॥
दुःख में ही है! तुम्हारा ध्यान आया है हमें,
जान पड़ता किंतु अब तुमने भुलाया है हमें।
सदय होकर भी सदा तुमने विभो! यह क्या किया,
कठिन बनकर निज जनों को इस प्रकार भुला दिया॥
है हमारी क्या दशा सुध भी न ली तुमने हरे?
और देखा तक नहीं जन जी रहे हैं या मरे।
बन सकी हमसे न कुछ भी किंतु तुमसे क्या बनी?
वचन देकर ही रहे, हो बात के ऐसे धनी!
आप आने को कहा था, किंतु तुम आए कहाँ?
प्रश्न है जीवन-मरण का हो चुका प्रकटित यहाँ।
क्या तुम्हारा आगमन का समय अब भी दूर है?
हाय तब तो देश का दुर्भाग्य ही भरपूर है!
आग लगने पर उचित है क्या प्रतीक्षा वृष्टि की,
यह धरा अधिकारिणी है पूर्ण करुणा दृष्टि की।
नाथ इसकी ओर देखो और तुम रक्खो इसे,
देर करने पर बताओ फिर बचाओगे किसे?
बस तुम्हारे ही भरोसे आज भी यह जी रही,
पाप पीड़ित ताप से चुपचाप आँसू पी रही।
ज्ञान, गौरव, मान, धन, गुण, शील सब कुछ खो गया,
अंत होना शेष है बस और सब कुछ हो गया॥
यह दशा है इस तुम्हारी कर्मलीला भूमि की,
हाय! कैसी गति हुई इस धर्म-शीला भूमि की।
जा घिरी सौभाग्य-सीता दैन्य-सागर-पार है,
राम-रावण-वध बिना संभव कहाँ उद्धार है?
शक्ति दो भगवान् हमें कर्तव्य का पालन करे,
मनुज होकर हम न परवश पशु-समान जिएँ-मरें।
विदित विजय-स्मृति तुम्हारी यह महामंगलमयी,
जटिल जीवन-युद्ध में कर दे हमें सत्वर जयी॥

महाराजा ळक्ष्मीश्वर सिंह की दो कहानियां

पं. भवतोष झा
बचपन में मैंने दो कहानियाँ सुनीं थी। एक  कहानी तो बिट्ठो गाँव से जुड़ी है, जहाँ मेरा ननिहाल है। चूँकि इस कहानी का स्रोत मेरा ननिहाल ही है और केवल तीन-चार पीढ़ी की बात है, इसलिए हो सकता है कि वह इतिहास ही  हो। आप न मानें, तो फिर उसे ‘एनेक्डोट’ रहने दीजिएगा।
ऐतिहासिक पुरुष की कहानियाँ होतीं हैं, कुछ अतिरंजित भी होतीं है, कुछ में काफी हद तक सच्चाई होती है, कोई-न-कोई इतिहास अवश्य जुड़ा होता है; उन्हें हम इतिहास में स्थान नहीं दे पाते। महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह के बारे में भी बहुत सारी कहानियाँ बूढ़े-बुजुर्ग सुनाया करते थे। अब तो वह परम्परा खतम हो गयी है। मेरे बचपन तक कहानियाँ सुनाने की बात जिन्दा थी। दरभंगा के महाराज 2,400 वर्ग मील से अधिक क्षेत्र तथा 750,000 से अधिक जनता के शासक थे। 1888ई.मे उनकी आमदनी 2,00,000 रुपये प्रति वर्ष थी। वे अक्सर कलकत्ता में रहा करते थे और अंग्रेजी सरकार पर इस बात के लिए जोर डालते रहते थे कि वह ब्रिटेन की जनता की तरह समान नागरिकता नियम भारतीय उपनिवेश के लिए भी लागू करे। वे अंगरेजों के द्वारा फैलाये गये भेद-भाव की नीति का विरोध करते थे। जब एक ही शासन के अंतर्गत भारत भी है, इंग्लैंड भी है तो जो जनाधिकार इंग्लैंड की जनता को मिली है वह भारत की जनता को क्यों न मिले। इसके लिए उन्होंने अनेक कानूनों में संशोधन भी कराया था। उन्ही की दो कहानियाँ मैंने बचपन में सुनी थी।
कहानी सं. 1- कलकत्ता में बिट्ठो का ऐसा ताशा बजबाया कि न्यूसेंस का कानून एक ही दिन में सुधर गया
बात यह हुई कि महाराज कलकत्ता में रहा करते थे। उनके पड़ोस में एक गबैयाजी का मकान था। रात में जब महाराज के सोने का समय होता तो गबैयाजी अपना सितार लेकर बैठ जाते और राग अलापने लगते। जोरों की आवाज मुहल्ले में गूँज जाती!महाराज की नींद में खलल पड़ जाती तो वे बेचैन हो उठते। भला कब तक बर्दास्त करते। उन्होंने गबैयाजी के पास अगले दिन खबर भिजबायी; आग्रह किया कि रात को ऐसा न करें। गबैयाजी नहीं माने।
फिर महाराज ने मुकदमा दायर किया। कोर्ट ने भी फैसला सुना दिया कि कोई व्यक्ति अपने मकान में कुछ भी कर सकता है। ऐसा कोई कानून नहीं है, जिससे हम उसे रोक सकें।
महाराज ऐसे ही मानवाधिकार के नियमों में सुधार लाने के लिए दिन-रात सोचते रहते थे। लंदन का कानून देखा तो उसमें एक था- न्यूसेंस लॉ। कोई व्यक्ति अपने घर में ऐसा ही काम कर सकता है ताकि उसके पड़ोसी को कोई कष्ट न हो। ‘यह कानून तो भारत में भी होना चाहिएʼ– महाराज ने ठान लिया।
सरसो-पाही के पास बिट्ठो गाँव से कलकत्ता बुलाये गये ताशा बजाने वाले
बस यहाँ से बिट्ठो गाँव की कथा आरम्भ होती है। महाराज का ननिहाल लोहना गाँव था। उससे कुछ पश्चिम बिट्ठो गाँव का ताशा बाजा बहुत नामी था। यह गाँव वर्तमान में मधुबनी जिला के पंडौल प्रखण्ड में सरसो पाही से उत्तर आधा कि.मी. पर है। छोटा गाँव है पर पुराना है। करमहे बेहट मूल के लोग यहाँ बसते हैं। महाराज राघव सिंह ने भी इस गाँव में विवाह किया था। राज परिवार से जुड़ा गाँव है। हलाँकि लक्ष्मीश्वर सिंह के समय तक इस गाँव में गरीबी बहुत थी। गाँव में बुधेश पोखरा है, जहाँ शायद कभी बौद्ध मन्दिर रहा हो, अब केवल नाम बचा है।
सारुख खाकर शास्त्रार्थ करने वाले पंडित
इसी गाँव की कहानी है कि यहाँ दो भाई विद्वान् रहा करते थे। दोनों एक से एक विद्वान्। हमेशा शास्त्रार्थ होता रहता था। यहाँ तक कि जब वे दोनो भाई चौर-चाँचर से सारुख उखाड़ने जाते थे। वही सारुख उनका और उनके परिवार का भोजन था। एक दिन राजा उस चौर के पास से गुजर रहे थे तो उन्होंने दोनों भाइयों का शास्त्रार्थ सुना। राजा ठमक गये। दोनों भाइयों को बुलाया और कहा कि हम आपको जमीन देते हैं, आप खाइए-पीजिए और शास्त्र-चिन्तन कीजिए। इन्होंने कहा कि धन आते ही विद्या लुप्त हो जाती है। सरस्वती सारुख खाकर गुजारा करने वाले को पसंद करती है। अतः हमे आपका दिया धन नहीं चाहिए। हम पर बहुत कृपा हो तो इतना भर आश्वासन दीजिए कि इस चौर-चाँचर में आपके दल का हाथी न पैठे। उसके पैठने से सारुख नष्ट हो जाता है और हमें भोजन करने में दिक्कत होती है।
तो ऐसा है वह गाँव। उस गाँव के विद्वान् ही नामी नहीं थे, ताशा बाजा भी नामी था। बल्कि आज भी उस परोपट्टा में ताशा के लिए लोग बिट्ठो गाँव को ही दौड़ लगाते हैं। ताशा एक प्रकार का मारू बाजा है- लड़ाई में सैनिकों का मनोबल बढ़ाने वाला। जब हँसेड़ी चलती थी तो यही ताशा बजाया जाता था।
यह मुगलकाल का यह वाद्ययंत्र है। मिट्टी का कस्तरा (छाँछ) बनाया जाता है लगभग एक हाथ व्यास का। यह कस्तरा ठीक वैसा ही, जैसा दही जमाने के लिए बनाते हैं। इसी कस्तरे को चमड़ा से मढ़ दिया जाता है और बाँस की दो पतली कपचियों से इसे बजाया जाता है। बजानेवाले इसे गले में लटका लेते हैं और काफी तेजी से हाथ चलाते  हुए बजाते रहते हैं। एक भी ताशा बजने लगे तो भीड़ में कान फटने लगता है। आपस में कुछ बात करना सम्भव नहीं पाता।
मिथिला में इसे बजाने वालों का दल बारात के साथ चलता है। कोई भी मांगलिक अवसर हो तो इसकी आबाज होनी चाहिए। कहा जाता है कि यात्रा के समय कोई छींक दे या अशुभ बोल तो इसकी आवाज में सब कुछ खो जाता है। यदि चार लोग भी एक साथ ताशा बजाने लगे तो दो किलमीटर तक तो आवाज जरूर गूँज जायेगी।
ताशा वाले पहुँच गये कलकत्ता
हाँ, तो महाराज ने बिट्ठो गाँव खबर भिजबायी कि ताशा बजानेवालों का एक दल कलकत्ता भेजिए। सरकार का आदेश था तो भला देर क्यों हो!। चुने हुए कुछ ताशा बजाने वाले कलकत्ता पहुँचे। महाराज के आवास पर ठहरे।कहते हैं कि जाड़े का मौसम था। जाड़े में ताशा को गरम किया जाता है, तब वह जोरों से बजता है, नहीं तो ‘मेहाएलʼ (moisturized) होता है तो आबाज फुस्स हो जाती है। बजाने वालों ने ताशा को इसे सेंकने में अपनी पूरी कला दिखायी तथा ठीक जिस समय गबैयाजी का राग-तान शुरू हुआ, उसी समय महाराज के बंगले की छत पर ताशा तड़तड़ना शुरू हुआ।
दो किलोमीटर तक खलबली मच गयी। कई अंगरेज अधिकारी के भी घर थे। वे जज साहब भी उसी आसपास रहते थे, जिन्होंने गबैयाजी के पक्ष में फैसला दिया था। सबलोग अपने-अपने घर से बाहर निकल पड़े। अनुमान है कि वे ऐसे ही निकल पड़े होंगे, जैसे भूकम्प होने पर लोग मैदान की ओर भागते हैं। पता लगाना शुरू किया कि कहाँ से आबाज आ रही है; फिर महाराज के घर पर इसे बंद कराने के लिए आदेश आने लगे; कुछ ने मनुहार की; तो कुछ ने प्रार्थना का संदेश भिजबाया।
महाराज ने कहा कि हम अपने घर पर कुछ भी करें, तो दूसरे को भला उससे क्या मतलब? यह देखिए कोर्ट का फैसला!
कहा जाता है कि वे जज साहब खुद इनके पास आये। हो सकता है कि इस बात में कुछ बढ़ा-चढाकर कहा जा रहा हो! बिट्ठो गाँव के स्रोत से मेरे पास तक यह कहानी आयी है, तो कुछ तो काव्यात्मकता होगी ही। आजकल जिसे ‘नमक-मिर्च लगानाʼ कहते हैं, उसे शिष्ट शब्दों में काव्यात्मकता कहते हैं, अतिशयोक्ति कहते हैं, अतिरंजना कहते हैं, जो एक अलंकार है।
जो हो, जज साहब खुद आये हों अथवा उनके कोई आदमी आया हो, उन्होंने मनुहार किया- अभी बंद कराइए महाराज! कल इस पर फैसला करते हैं।
आखिरकार ताशा बंद हुआ; सबने चैन पायी। दूसरे दिन जज साहब ने खुद अपना फैसला बदला और लिखा कि कोई व्यक्ति तभी तक अपने घर में मनमाना काम कर सकता है कि तक कि उस काम से पड़ोसी को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
महाराज यही तो चाहते थे। अगले ही दिन बिट्ठो के ताशा वालों को इनाम देकर गाँव भेज दिया। इधर उस समय के देश की राजधानी कलकत्ता में इस बात की चर्चा चलने लगी। सबको यह बात पसंद आयी और तब से कानून मे ही सुधार कर लिया गया जो आज न्यूसेंस लॉ के रूप में हम देखते हैं।
कहानी संख्या 2- हम धोती-कुरता वालों की भी औकात होती है!
बात यह हुई कि महाराज कलकत्ता में रहते थे। राजा होते हुए भी कभी-कभार पंडित वेश में घूमने निकल जाते थे। आखिर थे तो ब्राह्मण पंडित घराने के ही न! सो कलकत्ता की गलियों में सैर करने निकल जाते थे। बस, साथ में एक मैनेजर टाइप का कोई आदमी वैसे ही धोती-कुरता में रहता होगा!
एक दिन इसी रूप में एक गहने की दुकान पर पहुँच गये। दुकानदार से हीरे की एक अंगूठी दिखाने को कहा। दुकानदार को विश्वास नहीं हुआ कि यह अदना-सा आदमी कुछ खरीदेगा भी; नाहक परेशान करेगा। दुकानदार ने मुँह बिजुकाकर हँस दिया। बोला तो कुछ भी नहीं, पर भाव था कि – ‘अबे! चल फूट यहाँ से! बड़ा आया है गहना देखने वाला। नाहक परेशान न कर।ʼ
फिर भी महाराज ने आग्रह किया तो उसने अनमने ढंगे से एक अंगूठी दिखाई। ये देख ही रहे थे कि उसने हाथ से झपट लिया और कहा कि क्या देख रहे हो, मोशाय! तुमि की देखछो! आपनार शक्ति देखून!
महाराज हँस पड़े। बोले कि आपकी दुकान की कितनी कीमत है- आपनार पूरो दूकानेर मूल्य कत?
दुकानदार ने मजाक में ही कुछ बोल दिया। ये तो कुछ लेने वाला है नहीं, तब तो कुछ भी बोल दो, क्या फर्क पड़ता है! फिर भी उसने दो-तीन गुना बढ़ाकर तो जरूर कहा होगा।
महाराज लौट गये और उसी मैनेजर को सरकारी वेश में भेजा- पूरे रुपये लेकर। उसने दुकानदार को थैली थमा दी और उसे दुकान से खींचकर बाहर कर दुकान में ताला जड़ दिया। इसके बाद की कोई कहानी कहने लायक नहीं है। दुकानदार दौड़ा आया महाराज के पास। माफी माँगी। महाराज थे तो बड़े दयालु वे भला किसी की पेट पर लात क्यों मारते। उन्होंने माफ कर दिया पर हिदायत दी कि आइन्दा किसी का वेश देखकर उसका मजाक मत उड़ाया करो। हम धोती-कुरता वालों की भी औकात होती है।

विजयादशमी पर खाएं पारम्परिक व्यंजन

जलेबी
सामग्री : 1/2 कप मैदा, 1 चम्मच कॉर्न फ्लोर/कॉर्न स्टार्च या अरारोट पाउडर, 1/4 कप दही, पीला रंग पाने के लिए 1 चुटकी  पाउडर, 1/4 कप पानी, 1/4 चम्मच बेकिंग पाउडर। चाशनी हेतु सामग्री : 1/2 कप शकर, 1/4 कप पानी, 1 चम्मच नींबू का रस, कुछेक केसर के लच्छे, चुटकीभर इलायची पाउडर।
विधि – लाजवाब जलेबी बनाने के लिए सबसे पहले एक बाउल में मैदा छान लें। फिर उसमें 1 चम्मच अरारोट, 1/4 चम्मच बेकिंग पाउडर, चुटकीभर हल्दी पाउडर और 1/4 कप दही डाल दें। अब आवश्‍यकतानुसार पानी डालें और इडली के घोल से थोड़ा गाढ़ा घोल तैयार कर लें। फिर इस घोल को 1 ढक्कन से 24 घंटे के लिए कमरे के तापमान पर खमीर उठाने के लिए ढंक कर रख दें। अब 1 पतीले में शकर, पानी और केसर डालकर धीमी आंच पर पकने के लिए रख दें। जब 1 तार की चाशनी बन हो जाए तो उसमें नींबू का रस और इलायची पाउडर डालें। लीजिए आपकी चाशनी तैयार है। फिर जलेबी बनाने से पूर्व घोल को 1 चम्मच से अच्छी तरह से फैंट लें। और 1 जिपलॉक बेग या कपड़े में बीचोंबीच छोटासा होल करके घोल उसमें भर लें। एक कढ़ाई में मध्यम आंच पर घी और थोड़ासा तेल मिलाकर गरम करके जिपलॉक बैग या कपड़े के घोल को दबाते हुए गोल-गोल घुमाते हुए जलेबी बना लें और उन्हें हल्का सुनहरी तथा क्रंची होने तक तल लें। अब तैयार जलेबी को गर्म चाशनी में डुबाएं और थोड़ी देर उसी में रहने दें। जब जलेबी में चाशनी भर जाएं, तब उसे एक परात निकाल लें और गरमा गरम लाजवाब जलेबी परोसें।
आलू कचोरी
सामग्री –  3 कप बारीक सूजी, 1 कप मैदा, 2 बड़ा चम्मच तेल, चुटकीभर मीठा पीला रंग, दूध अंदाज से, 1/2 चम्मच नमक, तलने के लिए तेल कवर बनाने हेतु लगने वाली सामग्री।
विधि – भरावन हेतु 250 ग्राम उबले व मैश किए हुए आलू, 2 छोटे चम्मच दरदरी सौंफ, 2 हरी मिर्च कद्दूकस की हुई, लाल मिर्च पाउडर, अमचूर पाउडर, चाट मसाला, अदरक 1 टुकड़ा कद्दूकस, नमक स्वादानुसार। इसे बनाने के लिए सबसे पहले सूजी और मैदा छानकर उसमें नमक, मीठा रंग व तेल मिलाकर दूध की सहायता से सख्त गूंथ लें। तत्पश्चात आलू में सभी मसाले मिलाएं और मिश्रण को एकसार कर लें। अब गूंथे हुए आटे की छोटी-छोटी लोई बनाकर उसे बेले और आलू मसाला भरकर सभी कचोरियां तैयार कर लें। एक कढ़ाई में तेल गर्म करके धीमी आंच पर सुनहरी और कुरकुरी होने तक कचोरियों को तल लें। अब गरमा-गरम तथा कुरकुरी आलू की कचोरी को चटनी तथा सेंव के साथ पेश करें।

देश भर में मनाए जाने वाले प्रख्यात दशहरा उत्सव

दशहरा भारत के बड़े त्योहारों में से एक है । दशहरे के दिन अधिकतर जगहों पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है. लेकिन, कुछ स्थान ऐसे हैं, जो इस पर्व की भव्यता व आकर्षण के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं –
मैसूर में होता है राज्य त्योहार का आयोजन – मैसूर में इस पर्व को स्टेट फेस्टिवल यानी राज्य त्योहार के रूप में मनाया जाता है। दशहरे के दिन मैसूर का राज दरबार सभी लोगों के लिए खोल दिया जाता है। नृत्य, संगीत और प्रदर्शनी के साथ दस दिनों तक यहां दशहरा मेला लगता है। दसवें दिन जम्बू की सवारी नामक भव्य जुलूस निकाला जाता है। 21 तोपों की सलामी के साथ महल से हाथियों के जुलूस की शुरुआत होती है। इस जुलूस का नेतृत्व सजे-धजे हाथी करते हैं। इसमें से एक हाथी पर 750 किलो सोने का हौदा लगा होता है, जिस पर देवी चामुंडेश्वरी की प्रतिमा रखी होती है। इस जुलूस में ड्रम बजानेवाले, विशाल कठपुतलियां, एनसीसी कैडेट स्काउट और गाइड, लोक नर्तक और संगीतज्ञ और झांकी शामिल होती है। मैसूर का दशहरा देखने के लिए देश-विदेश के लोग आते हैं।
बस्तर में 75 दिनों तक चलता है यह पर्व – छत्तीसगढ़ के बस्तर में दशहरा पूरे 75 दिनों तक मनाया जाता है। बस्तर के दशहरे का संबंध रावण वध से नहीं, बल्कि महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा से जुड़ा है। यहां दशहरे के पर्व में मां दंतेश्वरी का रथ खींचा जाता है। बड़े पैमानै पर आदिवासी इस आयोजन में शामिल होते हैं। प्रत्येक वर्ष हरियाली अमावस को इस पर्व की पहली रस्म के तौर पर पाट जात्रा का विधान पूरा किया जाता है। पाट जात्रा अनुष्ठान के अंतर्गत स्थानीय निवासियों द्वारा जंगल से लकड़ियां एकत्रित की जाती हैं जिसका उपयोग विशालकाय रथ बनाने में होता है। बस्तर के तहसीलदार द्वारा समस्त ग्रामों के देवी देवताओं को दशहरा में शामिल होने के लिए आमंत्रण भेजा जाता है जिसमें 6166 ग्रामीण प्रतिनिधि बस्तर दशहरे की पूजा विधान को संपन्न कराने के लिए विशेष तौर पर शामिल होते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है कुल्लू का दशहरा – हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है। जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है, उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव की रौनक बढ़नी शुरू होती है। इस पर्व की शुरुआत मनाली के हिडिंबा मंदिर की आराधना से होती है, फिर पूरे कुल्लू में रथ यात्रा आयोजित की जाती है। रथ यात्रा में रघुनाथ, सीता और हिडिंबा मां की प्रतिमाओं को मुख्य स्थान दिया जाता है। इस रथ को एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाते हैं और छह दिनों तक रथ को यहां रोक कर रखा जाता है। उत्सव के 7वें दिन रथ को ब्यास नदी के किनारे ले जाया जाता है, जहां लंकादहन का आयोजन होता है। सात दिनों तक चलनेवाले इस पर्व में नाच-गाने के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
कृष्णा नदी में स्नान का है विशेष महत्व – आंध्र प्रदेश, विजयवाड़ा में कृष्णा नदी के किनारे बने श्री कनका दुर्गा मंदिर से दशहरा के आयोजन की शुरूआत होती है। यहां कनक दुर्गा देवी को दस दिनों तक अलग-अलग अवतारों में सजाया जाता है। वहीं विजयवाड़ा कनक दुर्गा मंदिर की भी खास आभा देखते ही बनती है। यहां दशहरा के समय कई तरह की पूजा होती है, जिसमें सरस्वती पूजा की खास मान्यता है। इस पर्व पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु कृष्णा नदी में स्नान करते हैं।
कोटा में लगता है दर्शकों का तांता – राजस्थान के कोटा शहर मे भी दशहरा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। कोटा में मेले का आयोजन महाराव भीमसिंह द्वितीय ने किया था। तब से यह परंपरा आज तक निभायी जा रही है। इस दिन यहां पर मेले का आयोजन होता है। भजन कीर्तन के साथ-साथ कई प्रकार की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है. इसलिए यह मेला प्रसिद्ध मेलों में से एक माना जाता है।
(साभार – प्रभात खबर)