Tuesday, July 29, 2025
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देवी का का अद्भुत रूप, दक्षिण का कन्याकुमारी

यह नारा नहीं वास्तविकता है, जिसका तीव्रता से आभास तब होता है जब हम भारत के दक्षिणी छोर पर देवी कन्या कुमारी के दर्शन करते हैं। अनायास ही उत्तर में हिमालय की पर्वत शृंखलाओं में बसी वैष्णो माता का ध्यान आता है। दोनों मां पार्वती के रूप हैं। एक ओर समुद्र तटवासिनी मां, तो दूसरी ओर बर्फीली पहाड़ियों पर बसी मां। कन्या कुमारी में देवी कुंवारी अर्थात अविवाहिता कन्या रूप में है और उधर वैष्णो माता के मंदिर में प्रतिदिन कन्याओं का पूजन होता है। एक अदृश्य बंधन उत्तर से दक्षिण तक बांधता है- देश को, संस्कृति को और हम सबको।
कन्या कुमारी तमिलनाडु का एक जिला है जो भारत के दक्षिणी छोर पर है। यहां की लुभावनी खासियत तीन समुद्रों का संगम है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिंद महासागर और पश्चिम की ओर अरब सागर। यह संगम इसे तीर्थ स्थान की संज्ञा देता है। प्रकृति की दृष्टि से देखा जाए तो संगम के स्थान पर चट्टानों से टकराती लहरें और पानी का उफान मन में श्रद्धायुक्त भय पैदा करता है और इंसान नतमस्तक हो जाता है।
धार्मिक दृष्टि से माता का मंदिर और विवेकानंद स्मारक तीर्थस्थल हैं, तो तिरुवल्लावुर की प्रतिमा तमिल साहित्य के महान संत कवि की याद दिलाती है। भौगोलिक दृष्टि से यह जिला पश्चिमी घाट की पहाड़ियों और समुद्र के बीच भिंचा हुआ है। भू-वैज्ञानिकों के मतानुसार, भौगोलिक उथल-पुथल से बने इस भू-भाग की चट्टानें 25 लाख वर्षों से अधिक पुरानी नहीं हैं।
माना जाता है कि देवी कन्या कुमारी की मूर्ति की स्थापना ऋषि परशुराम ने की थी और यह मंदिर लगभग 3000 वर्ष पुराना है। परंतु इतिहास के अनुसार, शहर में स्थित वर्तमान मंदिर 8वीं शताब्दी में पांडया सम्राटों ने बनवाया था। चोल, चेरी, वेनाह और नायक राजवंशों के शासन के दौरान समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण हुआ।


यहां की मंदिर स्थापत्य कला इन्हीं शासकों की देन है। मंदिर समुद्र तट से कुछ ऊंचाई पर है तथा इसके चारों ओर लगभग 18-20 फुट ऊंची दीवार है। राजा मार्तंड वर्मा (1729 से 1758) के राज्य काल में कन्या कुमारी का इलाका त्रावणकोर राज्य का हिस्सा बन गया, जिसकी राजधानी पद्मनाभपुरम थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद त्रावणकोर राज्य का भारतीय संघ में विलय होने पर वर्ष 1956 में यह तलिमनाडु का एक जिला बन गया।
कन्या कुमारी मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली की है, जिसमें काले पत्थर के खम्भों पर गूढ़ और पेचीदा नक्काशी है। मंदिर में एक छोटा गुम्बद है जिसके चारों ओर अन्य गुम्बद हैं, जिनमें देवी- देवताओं की मूर्तियां हैं, जैसे गणेश, सूर्यदेव, अय्यपा स्वामी, काल भैरव, विजय सुंदरी और बाला सुंदरी मंदिर परिसर में मूल गंगा तीर्थ नामक कुआं है, जहां से देवी के अभिषेक का जल लाया जाता है।
वास्तव में मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है परंतु यह वर्ष में पांच बार विशेष त्यौहारों के समय ही खुलता है, अन्य समय बंद रहता है तथा प्रवेश उत्तरी द्वार से किया जाता है। पूर्व द्वार बंद होने के पीछे एक कारण है। कहते हैं कि देवी की नथ का हीरा इतना तेजस्वी है कि उसकी चमक दूर तक जाती थी और इस प्रकाश को दीपस्तंभ समझ कर जहाज इस दिशा में आ जाते और चट्टानों से टकरा जाते थे।
मंदिर से जुड़े 11 तीर्थस्थल, इसके भीतर के तीन गर्भ गृह, गलियारे और मुख्य नवरात्रि मंडप गहन हैं और यह कहना न होगा कि इन्हें एकदम से समझना किसी भूल-भुलैयां से कम नहीं। अन्य दर्शनीय स्थलों में पद्मनाभपुरम महल, थोलावलाई मंदिर, सुचिंद्रम मंदिर, देवी भगवती मंदिर और ओलाकावुरी जलप्रपात विशेष रूप से शामिल हैं।

रसोई – पनीर बटर मसाला

सामग्री – 2 कप पनीर के टुकड़े, 2 प्याज, 3-4 टमाटर, 3-4 कलियां लहसुन, 2 टेबलस्पून काजू, 1/2 कप दूध , 1 तेजपत्ता, 2 हरी मिर्च, 1/2 इंच टुकड़ा अदरक, 2 टी स्पून कसूरी मेथी , 2 टेबलस्पून क्रीम/मलाई,1 टेबलस्पून धनिया पाउडर, 1/2 टी स्पून गरम मसाला ,2 टेबलस्पून मक्खन, 1 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर ,2 टेबलस्पून तेल , स्वादानुसार नमक
विधि – पनीर बटर मसाला बनाने के लिए सबसे पहले पनीर लेकर उसके एक-एक इंच के टुकड़े काट लें। इसके बाद प्याज, अदरक और लहसुन को मिक्सर जार में डालकर पीसकर पेस्ट तैयार कर लें। इस बीच काजू को पानी में भिगोकर 15 मिनट के लिए रख दें। तय समय के बाद काजू को मिक्सी में डालें और ऊपर से थोड़ा सा पानी डालकर पीस लें। इसके बाद टमाटर को उबालें और फिर उसे पीसकर प्यूरी तैयार कर लें।
अब एक कड़ाही में तेल और मक्खन डालकर दोनों को साथ में मीडियम आंच पर गर्म करें। जब मक्खन पिघल जाए और गर्म हो जाए तो उसमें तेजपत्ता और प्याज का पेस्ट डालकर मिलाएं और तब तक भूनें जब तक कि प्याज का रंग हल्का भूरा न हो जाए। ऐसा होने में 3-4 मिनट का वक्त लग सकता है। इसके बाद इसमें लंबी कटी हुई हरी मिर्च डाल दें। कुछ सेकंड तक पकाने के बाद इसमें काजू का पेस्ट डालकर मिलाएं और अच्छे से भूनें। काजू के पेस्ट को चम्मच से मिलाने के बाद 2 मिनट तक भून लें। इसके बाद इसमें टमाटर की प्यूरी डालें और ग्रेवी को तब तक भूनें जब तक कि ये तेल न छोड़ने लग जाए। ग्रेवी के तेल छोड़ने में 4-5 मिनट का वक्त लगेगा। फिर धनिया पाउडर और गरम मसाला डालकर मिश्रण में अच्छे से मिक्स करें। अब आधा कप दूध और आधा कप पानी मिलाएं। इसे चम्मच से चलाते हुए तेल सतह पर आने तक पकाएं। जब ग्रेवी के ऊपर तेल दिखाई देने लगे तो पनीर के टुकड़े डालकर चम्मच की मदद से उन्हें ग्रेवी के साथ अच्छी तरह से मिक्स कर दें। इसके बाद कसूरी मेथी लें और उसे हाथों से पीसकर सब्जी में डालकर मिला दें। अब कड़ाही को ढककर सब्जी को तब तक पकाएं जब तक कि ग्रेवी गाढ़ी न हो जाए। इसके बाद गैस बंद कर दें। ऊपर से ताजी क्रीम डाल दें। टेस्टी पनीर बटर मसाला बनकर तैयार है। इसे पराठा, नान के साथ सर्व करें।

ये है एशिया का सबसे पढ़ा लिखा गांव, हर घर से निकलते हैं डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर

नयी दिल्ली । प्रमोद सुबह-सुबह अपने गांव में घूम रहे थे। तभी उन्हें यूनिफॉर्म पहने स्कूल जाते हुए कुछ बच्चे दिखे। प्रमोद ने बच्चों से पूछा तुम कहां जा रहे हो। सभी बच्चों ने बताया कि वो गांव के स्कूल में पढ़ने जा रहे हैं। इसके बाद प्रमोद ने पूछा कि पढ़ लिखकर क्या बनना है? स्कूल जा रहे बच्चों ने अलग अंदाज में अपने सपनों को प्रमोद के सामने रख दिया। किसी ने कहा कि उन्हें बड़े होकर डॉक्टर बनना है, तो किसी ने प्रोफेसर और आईएएस बताया। ये तो गांव के कुछ ही बच्चे थे, लेकिन इस गांव के लगभग हर बच्चे ने बड़े ख्वाब सजा रखें हैं। ऐसा इसलिए क्यों कि गांव के सैकड़ों लोग बड़े पदों पर तैनात भी हैं। आखिर ये गांव एशिया का सबसे पढ़ा लिखा गांव माना जाता है। हम बात कर रहे हैं, उत्तर प्रदेश के धोर्रा माफी गांव की। पढ़ाई-लिखाई के मामले में ये छोटा सा गांव दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुका है नाम
अलीगढ़ जिले के जवां ब्लॉक में आने वाला धोर्रा माफी गांव का नाम 75 फीसदी से ज्यादा की साक्षरता दर के लिए साल 2002 में ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में दर्ज हुआ। इतना ही नहीं इस गांव का नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए होने वाले सर्वे के लिए भी चुना गया। धोर्रा माफी गांव में पक्के मकान, 24 घंटे बिजली-पानी और कई इंग्लिश मीडियम स्कूल और कॉलेज हैं। इस गांव की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां के लोगों की आमदनी का मुख्य स्रोत खेती नहीं बल्कि नौकरियां हैं। इस गांव को भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में सबसे अधिक साक्षर होने का गौरव प्राप्त है।
गांव में नहीं होती खेती
गांव के निवासी प्रमोद कुमार राजपूत ने बताया कि धोर्रा माफी गांव की आबादी करीब 10 से 11 हजार है। उनका कहना है कि गांव में करीब 90 फीसदी से ज्यादा लोग साक्षर हैं। गांव के करीब 80 फीसदी लोग देशभर में बड़े पदों पर तैनात हैं। गांव के कई लोग डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, प्रोफेसर और आईएएस अफसर हैं। ये गांव अलीगढ़ शहर से सटा हुआ है। गांव में 5 साल पहले खेती बंद हो गई है। अब गांव के ज्यादातर लोग नौकरियां कर रहे हैं।
गांव में हैं कई स्कूल
धोर्रा माफी गांव अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से सटा हुआ है। इसके साथ ही गांव में कई स्कूल हैं। प्रमोद ने बताया कि गांव में सरकारी प्राइमरी स्कूल, इकरा पब्लिक स्कूल, एमयू कॉलेज, मून लाइट स्कूल जैसे कई नामी शिक्षण केंद्र हैं। गांव के कॉन्वेंट स्कूलों की तरह ही सरकारी स्कूलों में भी अच्छी पढ़ाई होती है। दरअसल, ये गांव एएमयू से सटा हुआ है। इसलिए वहां के प्रोफेसर और डॉक्टर्स ने गांव में अपना घर बनाया। धीरे-धीरे इस गांव का माहौल बदला। गांव के लोगों का पढ़ाई की तरफ रुझान बढ़ा। इस गांव के ज्यादातर लोग एएमयू में काम करते हैं।
गांव की महिलाएं भी आगे
गांव के प्रधान डॉ नूरुल अमीन ने बताया कि पहले ये गांव ग्राम पंचायत था। लेकिन 2018 में नई व्यवस्था के अनुसार ये गांव अलीगढ़ नगर निगम में आ गया है। इसी साल होने वाले नगर निगम चुनाव में यहां वोटिंग होगी। उन्होंने बताया कि ये धोर्रा माफी गांव आत्मनिर्भर और शिक्षित है। साक्षरता के मामले में यहां की महिलाएं भी पुरुषों के समान ही हैं। इस गांव के डॉ सिराज आईएएस अधिकारी हैं। इसके अलावा गांव के फैज मुस्तफा एक यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर रह चुके हैं। गांव की रहने वाली डॉ शादाब बानो एएमयू में प्रोफेसर हैं। इसके अलावा डॉ नाइमा गुर्रेज भी एएमयू में पढ़ाती हैं। ये तो केवल कुछ ही नाम हैं। लेकिन गांव के सैकड़ों लोग बड़े पदों पर काम कर रहे हैं।
गांव का बड़ा तबका है एनआरआई
डॉ नूरुल अमीन ने आगे बताया कि इस गांव की सबसे बड़ी खासियत यहां का भाईचारा है। गांव में बड़ी आबादी मुस्लिम है। वहीं, गांव में कई हिंदू भी रहते हैं। बिना किसी भेदभाव के गांव के लोग कई सालों से रह रहे हैं। गांव का बड़ा तबका विदेशों में भी रह रहा है। उनका कहना है कि प्रशासन ने गांव को नगर निगम में शामिल कर दिया है। लेकिन हमारी मांग थी कि इसे आदर्श गांव बनाया जाए। अगर आप कभी अलीगढ़ जाएं तो एक बार धोर्रा माफी गांव भी घूमकर आइए। वहां का माहौल आपको जरूर पसंद आएगा।

(साभार – नवभारत टाइम्स)

केरल के इस इस्लामिक संस्थान में पढ़ाई जाती है गीता, वेद, उपनिषद

संस्कृत में ही होती है बात
कोच्चि । पूरे देश में मदरसों की पढ़ाई को लेकर सवाल किए जा रहे हैं। मदरसों में आधुनिक शिक्षा की पढ़ाई कराए जाने को कहा जा रहा है। असम सरकार ने कई मदरसों को बंद कर दिया तो यूपी में भी मदरसों का सर्वे चल रहा है। मदरसों में इस्लामिक पढ़ाई ही कराई जाती है। इस्लामिक संस्थानों की पढ़ाई को लेकर सवाल खड़े होते हैं, लेकिन केरल में एक ऐसा इस्लामिक संस्थान है जहां संस्कृत पढ़ाई जा रही है। त्रिशूर जिले में एक इस्लामी संस्थान ने मिसाल कायम की है। यहां मदरसे में लंबे सफेद वस्त्र पहने और सिर पर जाली वाली टोपी लगाए छात्र अपने हिंदू गुरुओं की निगरानी में धाराप्रवाह संस्कृत के श्लोक और मंत्र पढ़ते हैं।
संस्थान में एक शिक्षक छात्र को ‘गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम:’ पढ़ने के लिए कहते हैं और छात्र ऐसा ही करते हैं। छात्र धाराप्रवाह इस श्लोक को बिना अटके और रुके पढ़ते हैं। छात्र जब विभिन्न श्लोक का पाठ पूरा कर लेते हैं तो उसके शिक्षक संस्कृत में उससे कहते हैं, उत्तमम।
अन्य धर्मों के बारे में ज्ञान देना मकसद
खास बात है कि इस्लामिक संस्थान की कक्षा में छात्रों और शिक्षकों के बीच संस्कृत में ही सारी बातचीत होती है। मलिक दीनार इस्लामिक कॉम्प्लेक्स (एमआईसी) संचालित एकेडमी ऑफ शरिया एंड एडवांस्ड स्टडीज (एएसएएस) के प्राचार्य ओनाम्पिल्ली मुहम्मद फैजी ने कहा कि संस्कृत, उपनिषद, पुराण आदि पढ़ाने का उद्देश्य छात्रों में अन्य धर्मों के बारे में ज्ञान और जागरूकता पैदा करना है।
शंकर दर्शन का अध्ययन कर चुके हैं फैजी
एमआईसी एएसएएस में छात्रों को संस्कृत पढ़ाने का एक और कारण फैजी की अपनी शैक्षणिक पृष्ठभूमि हैं। फैजी ने कहा कि उन्होंने शंकर दर्शन का अध्ययन किया है। उन्होंने बताया, ‘मैंने महसूस किया कि छात्रों को अन्य धर्मों और उनके रीति-रिवाजों व प्रथाओं के बारे में पता होना चाहिए। लेकिन आठ साल की अध्ययन अवधि के दौरान संस्कृत के साथ-साथ ‘उपनिषद’, ‘शास्त्र’, ‘वेदों’ का गहन अध्ययन संभव नहीं होगा।’
फैजी ने कहा कि इसका मकसद इन छात्रों को बुनियादी ज्ञान प्रदान करने और इनमें दूसरे धर्म के बारे में जागरूकता पैदा करना है। उन्होंने कहा कि दसवीं कक्षा पास करने के बाद आठ साल की अवधि में छात्रों को भगवद गीता, उपनिषद, महाभारत, रामायण के महत्वपूर्ण अंश छात्रों को संस्कृत में पढ़ाए जाते हैं।
इन ग्रंथों का चयनात्मक शिक्षण इसलिए प्रदान किया जा रहा है क्योंकि संस्था मुख्य रूप से एक शरिया कॉलेज है। यह संस्थान कालीकट विश्वविद्यालय से संबद्ध है और यहां उर्दू और हिंदी भी पढ़ाई जाती है।

(साभार – नवभारत टाइम्स)

अलीगढ़ लोक अदालत में एक दिन में रिकॉर्ड साढ़े 56 हजार केस निस्तारित

साढ़े 23 करोड़ जुर्माना भी वसूला

अलीगढ़ । अलीगढ़ में कुछ ऐसा हुआ है, जिसने हर किसी को प्रभावित किया है। मुकदमों में लगने वाले लंबे वक्त की जगह इस कोर्ट में एक ही दिन में 56 हजार 494 केस का डिस्पोजल कर दिया गया। मतलब, इन केसों में न्याय दे दिया गया। वादी और प्रतिवादी पक्ष ने न्याय को स्वीकार भी किया। दरअसल, अलीगढ़ में लोक अदालत का आयोजन किया गया। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तहत लोक अदालत का आयोजन किया गया। एक दिन के इस आयोजन में न केवल साढ़े 56 हजार केसों का निस्तारण किया, बल्कि 23 करोड़ 56 लाख 3 हजार 257 रुपए बतौर जुर्माना भी वसूल किए गए।
अलीगढ़ में लोक अदालत का हुआ आयोजन
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देश पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वाधान में अलीगढ़ दीवानी न्यायालय परिसर में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया। इसका शुभारंभ जिला जज डॉ. बब्बू सारंग ने किया। इसमें वैवाहिक, पारिवारिक विवाद, मोटर वाहन दुर्घटना क्लेम, सभी दीवानी मामले, श्रम एवं औद्योगिक विवाद, पेंशन मामले, वसूली, सभी राजीनामा योग्य फौजदारी और विवाद के मामले निपटाए गए।
लोक अदालत में 23 करोड़ रुपए से अधिक की वसूली
अलीगढ़ में पिछली लोक अदालत में 32 हजार मामले निस्तारित किए गए थे। इस बार 56,494 मामलों पर का फैसला आया। सचिव विधिक सेवा प्राधिकरण महेन्द्र कुमार ने बताया कि 9, 10 और 11 नवंबर को 3500 लघु वादों का निस्तारण कराया गया। राष्ट्रीय लोक अदालत में राष्ट्रीय लोक अदालत में न्यायालयों में लम्बित विभिन्न प्रकृति के कुल 11,264 मामलों का निस्तारण आपसी सुलह समझौता के आधार पर किया गया। विभिन्न विभागों एवं बैंक लोन रिकवरी, वित्तीय संस्थाओं, दूरभाष, मोबाइल कंपनी आदि के स्तर के कुल 45,230 मामलों का निस्तारण आपसी सुलह समझौता के आधार पर किया गया।

(रिपोर्ट: लकी शर्मा)
(साभार – नवभारत टाइम्स)

अचंत शरत कमल को मिलेगा खेल रत्न, रोहित शर्मा के कोच को भी अवॉर्ड

नयी दिल्ली । टेबल टेनिस खिलाड़ी अचंत शरत कमल को 30 नवंबर को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू वर्ष 2022 के लिये मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार प्रदान करेंगी। शरत इस साल खेलरत्न पाने वाले अकेले खिलाड़ी हैं जबकि 25 खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार दिया जायेगा, जिनमें बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन, एच एस प्रणय, महिला मुक्केबाज निकहत जरीन, एथलीट एल्डौस पॉल, अविनाश साबले शामिल हैं।
रोहित शर्मा को कोच को भी अवॉर्ड
विजेताओं को राष्ट्रपति भवन में आयोजित विशेष समारोह में पुरस्कार दिये जायेंगे। जीवनजोत सिंह तेजा (तीरंदाजी), मोहम्मद अली कमर (मुक्केबाजी), सुमा शिरूर (पैरा निशानेबाजी) और सुजीत मान (कुश्ती) को द्रोणाचार्य पुरस्कार दिया जायेगा। भारतीय कप्तान रोहित शर्मा के बचपन के कोच दिनेश लाड (क्रिकेट), बिमल घोष (फुटबॉल) और राज सिंह (कुश्ती) को आजीवन योगदान वर्ग में यह पुरस्कार मिलेगा। अश्विनी अकुंजी (एथलेटिक्स), धरमवीर सिंह (हॉकी), बी सी सुरेश (कबड्डी) और नीर महादुर गुरंग (पैरा एथलेटिक्स) को ध्यानचंद आजीवन योगदान पुरस्कार मिलेगा।
विजेताओं की सूची:
मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार: अचंता शरत कमल
अर्जुन पुरस्कार: सीमा पूनिया (एथलेटिक्स), एल्डौस पॉल (एथलेटिक्स), अविनाश साबले (एथलेटिक्स), लक्ष्य सेन (बैडमिंटन), एच एस प्रणय (बैडमिंटन), अमित (मुक्केबाजी), निकहत जरीन (मुक्केबाजी), भक्ति कुलकर्णी (शतरंज), आर प्रज्ञानानंदा (शतरंज), दीप ग्रेस इक्का (हॉकी), सुशीला देवी (जूडो), साक्षी कुमारी (कबड्डी), नयन मोनी सैकिया (लॉनबॉल), सागर ओव्हालकर (मलखम्ब), इलावेनिल वालारिवान (निशानेबाजी), ओमप्रकाश मिठारवाल (निशानेबाजी), श्रीजा अकुला (टेबल टेनिस), विकास ठाकुर (भारोत्तोलन), अंशु (कुश्ती), सरिता (कुश्ती), परवीन (वुशू), मानसी जोशी (पैरा बैडमिंटन), तरूण ढिल्लो (पैरा बैडमिंटन), स्वप्निल पाटिल (पैरा तैराकी), जर्लिन अनिका जे (बधिर बैडमिंटन)
द्रोणाचार्य पुरस्कार (नियमित श्रेणी में कोचों के लिये): जीवनजोत सिंह तेजा (तीरंदाजी), मोहम्मद अली कमर (मुक्केबाजी), सुमा शिरूर (पैरा निशानेबाजी) और सुजीत मान (कुश्ती)
द्रोणाचार्य पुरस्कार लाइफटाइम श्रेणी: दिनेश लाड (क्रिकेट), बिमल घोष (फुटबॉल), राज सिंह (कुश्ती)
ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार: अश्विनी अकुंजी (एथलेटिक्स), धरमवीर सिंह (हॉकी), बी सी सुरेश (कबड्डी), नीर बहादुर गुरंग (पैरा एथलेटिक्स)
राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार: ट्रांस स्टेडिया इंटरप्राइजेस प्राइवेट लिमिटेड, कलिंगा सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लद्दाख स्की और स्नोबोर्ड संघ
मौलाना अबुल कलाम आजाद ट्रॉफी: गुरूनानक देव यूनिवर्सिटी , अमृतसर ।

अच्छी किताबें नहीं मिली तो आईएएस नहीं बन सके, अब बने लाइब्रेरीमैन

रांची । 2002 में चाईबासा में रहने वाले 20 वर्षीय संजय कच्छप ने स्नातक की पढ़ाई के वक्त आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखा। इसके लिए इन्होंने अपने स्तर से हरसंभव कोशिश की, लेकिन गरीबी के कारण महंगी पुस्तकें खरीद पाने में वे असमर्थ थे। वहीं अच्छी पुस्तकें नहीं मिल पाने के कारण उनका यह सपना अधूरा हो गया। हालांकि बाद में उन्हें रेलवे और कृषि विभााग में नौकरी मिल गई। सरकारी नौकरी मिलने के बाद इन्होंने निर्धन बच्चों की परेशानियों को समझते हुए पुस्तकालय स्थापित करने का अभियान शुरू किया। अपने पैतृक गांव से लेकर जहां भी नौकरी के दौरान पदस्थापित रहे , वहां बच्चों के लिए पुस्तकालय स्थापित करने का काम किया। जिसके कारण इन्हें अब सभी ‘लाइब्रेरी मैन’ के नाम से जानने लगे। अब तक इन्होंने कोल्हान क्षेत्र में 40 पुस्तकालय की स्थापना करने में सफलता हासिल की है।
पैतृक स्थान में पहले ‘मोहल्ला पुस्तकालय’ की स्थापना
सरकारी नौकरी में आने के बाद सबसे पहले संजय कच्छप ने पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय चाईबासा में वार्ड नंबर-1 के पुलहातू स्थित अपने पैतृक स्थान पर पहले ‘मोहल्ला पुस्ताकलय’ की स्थापना की। इस सराहनीय काम में उन्हें कई समान विचारधारा वाले लोगों ने मदद की। तब से लेकर अब तक उन्होंने कोल्हान प्रमंडल के तीन जिलों पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां और पूर्वी सिंहभूम जिले में लगभग 40 पुस्तकालयों की स्थापना की है। इन पुस्तकालयों की मदद से दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले गरीब और आदिवासी छात्रों को बड़ी मिली है।
बाल दिवस पर दुमका स्थित सरकारी आवास में भी पुस्तकालय स्थापित
कृषि विभाग में कार्यरत संजय का तबादला पिछले दिनों दुमका में हो गया। 14 नवंबर बाल दिवस पर इन्होंने दुमका स्थित अपने आधिकारिक आवास के एक हिस्से में ही बच्चों के लिए पुस्तकालय की स्थापना की। संजय बताते है कि 2002 में जब वे स्नातक की पढ़ाई के दौरान संघर्ष कर रहे थे, तो उन्होंने महसूस किया कि चाईबासा जैसे दूरदराज के इलाकों में किताबों तक पहुंच पाने की कमी के कारण सिविल सेवाओं में प्रवेश करने का उनके बचपन का सपना मुश्किल था। गरीबी एक और बाधा थी। 2004 में चाईबासा में कॉलेज में स्नातक करने में कामयाबी मिलने के बाद रेलवे में कुछ दिनों के लिए नौकरी की। उसी दौरान उन्होंने यह फैसला कर लिया कि उन्हें जिस तरह से अच्छी पुस्तकों की कमी महसूस हुई है, वे अन्य गरीब और आदिवासी बच्चों को किताबों की मुश्किल नहीं होने देंगे।
पुस्तकालय स्थापना से युवाओं ने छोड़ा नशा
संजय ने अपने वेतन और कुछ दोस्तों की मदद से पुलहातू के सामुदायिक भवन में पहला पुस्ताकलय स्थापित करने में कामयाबी हासिल की। वर्ष 2008 तक इस क्षेत्र के लिए पुस्तकालय एक विदेशी शब्द था, लेकिन धीरे-धीरे जब स्थानीय युवाओं और छात्रों ने पुस्ताकलय का उपयोग करना शुरू किया,तो उन्हें एहसास हुआ कि पढ़ाई में व्यस्त रहने के कारण क्षेत्र के युवाओं में जागरूकता आई है, नशा की लत भी छूटने लगी है। इससे उत्साहित होकर और भी पुस्तकालय स्थापित करने का निर्णय लिया। इस बीच झारखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करने के बाद वे कृषि विभाग की नौकरी में आ गए और रेलवे की नौकरी छोड़ दी। मोहल्ला पुस्तकालय में पढ़ाई कर कई ने सिविल सेवा, रेलवे और बैंक समेत अन्य संस्थानों में नौकरी हासिल की
पुस्तकालय स्थापित करने के इस अभियान से कई युवाओं को सफलता मिली। इसी पुस्तकालय में बैठकर घंटों पढ़ाई करने वाले अजय कच्छप अभी डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्यरत है जबकि 29वर्षीय विकास टोप्पो पिछले 6 वर्षों से चाईबासा पुस्तकालय में पढ़ाई कर प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे है। इस क्षेत्र के कई गरीब आदिवासी बच्चों ने इसी निःशुल्क पुस्तकालय में पढ़ाई कर रेलवे और बैंक समेत अन्य परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की।
500 पंचायतों में पुस्तकालय खोलने के लिए 22 करोड़ मंजूर
इधर,राज्य सरकार भी सामुदायिक और मोहल्ला पुस्तकालय खोलने की योजना पर काम कर रही है। योजना के तहत अगले कुछ वर्षाें में सभी पंचायतों में पुस्तकालय स्थापित करने की योजना है। इस साल 30 सितंबर को राज्य सरकार के पंचायती राज विभाग ने पंचायत भवनों में 500 पुस्तकालय स्थापित करने की योजना के लिए 22 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।

भारतीय सेना में पहली बार स्टाफ कॉलेज के लिए चयनित हुईं महिला अधिकारी

नयी दिल्ली । पहली बार भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को वह एग्जाम देने का मौका मिला जो अब तक सिर्फ पुरुष अधिकारियों के लिए सीमित ही था। यह डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज की परीक्षा है। 15 महिलाओं ने यह परीक्षा दी जिसमें छह महिला अधिकारी सफल हुईं। अब ये अगले साल मई से इस कोर्स का हिस्सा बनेंगी।
दरअसल स्टाफ कॉलेज कोर्स सेना में महिला अधिकारियों के आगे बढ़ने की राह भी खोलेगा। सफल छह महिला अधिकारी अब बाकी सफल पुरुष अधिकारियों के साथ तमिलनाडु के वेलिंगटन में स्टाफ कॉलेज में एक साल का कोर्स करेंगी और इससे सेना में उनके प्रमोशन के मौके बढ़ेंगे। अब तक स्टाफ कॉलेज में विदेशों की सेना की महिला अधिकारी तो आती रही हैं, लेकिन भारतीय सेना की महिला अधिकारी यहां पहली बार पहुंचेंगी।

अब तक क्यों नहीं आ सकीं महिलाएं?
दरअसल सेना में स्टाफ कॉलेज की परीक्षा वही दे सकता है जिनकी सात साल की नौकरी हो गई हो और जिसने जूनियर कमांड कोर्स या इसके बराबर का कोर्स किया हो। पहले सेना में सिर्फ मेडिकल कोर, लीगल और एजुकेशन कोर में ही महिला अधिकारियों के लिए परमानेंट कमिशन था और इनमें प्रमोशन के लिए स्टाफ कॉलेज करना कोई अतिरिक्त योग्यता नहीं थी। लेकिन अब सेना में आर्मी एयर डिफेंस, सिगनल्स, इंजीनियर्स, आर्मी एविएशन, इलैक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स, आर्मी सर्विस कोर, आर्मी ऑर्डिनेंस कोर और इंटेलिजेंस कोर में परमानेंट कमिशन की हकदार हैं।
इसका मतलब है कि वह इन सब ब्रांच में कर्नल और इससे ऊपर के किसी भी रैंक तक पहुंच सकती हैं। जब लेफ्टिनेंट कर्नल से कर्नल बनाने के लिए सिलेक्शन होता है और कर्नल से ब्रिगेडियर बनने के लिए तो इसमें स्टाफ कॉलेज वालों को एक्स्ट्रा मार्क्स मिलते हैं। यानी उनके प्रमोशन की संभावना बढ़ जाती है। जिन नई ब्रांच में महिलाओं को परमानेंट कमिशन मिला है, उनमें भी स्टाफ कॉलेज करने के बाद प्रमोशन के मौके बढ़ेंगे। इसीलिए सेना के इतिहास में पहली बार महिला अधिकारी स्टाफ कॉलेज कोर्स करेंगी।
पुरुष अधिकारियों से बेहतर
स्टाफ कॉलेज में सेना की 260 सीटें हैं। यहां अपनी जगह बनाने के लिए महिला अधिकारियों ने पुरुष अधिकारियों से मुकाबला किया। इस 260 सीटों के लिए करीब 1,500 पुरुष अधिकारियों ने अप्लाई किया था तो महिला अधिकारियों की संख्या 15 थी। 15 में से 6 महिला अधिकारी इसमें अपनी जगह बनाने में सफल रहीं। बाकी सीटों पर पुरुष अधिकारी कोर्स की पढ़ाई करेंगे।
अकेला कोर्स जिसमें पहुंचते हैं प्रतियोगिता के जरिए
भारतीय सेना में कमिशन होने से लेकर जनरल बनने तक स्टाफ कॉलेज कोर्स ही इकलौता ऐसा कोर्स है जिसके लिए सिलेक्शन प्रतियोगिता के जरिए होता है। बाकी सभी कोर्स चाहे वह हायर कमांड कोर्स हो, जूनियर कमांड कोर्स, सीनियर कमांड कोर्स या फिर एनडीसी हो, इन सभी में अधिकारियों को उनकी प्रोफाइल के आधार पर नॉमिनेट किया जाता है। एक साल का स्टाफ कॉलेज कोर्स अधिकारियों को हायर स्टाफ अपॉइंटमेंट के लिए तैयार करता है।

एमएमयूटी के प्रोफेसर ने विकसित किया अनोखा सोलर सिस्टम

न धूप की जरूरत, न पैनल की, बनाएगी बिजली
लखनऊ । उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में सोलर एनर्जी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव होने वाला है। मदन मोहन मालवीय टेक्निकल यूनिवर्सिटी, गोरखपुर ने नए खोज के जरिए ऊर्जा के क्षेत्र को एक अलग स्तर पर ले जाने की कोशिश की है। दावा यह किया जा रहा है कि सौर ऊर्जा से बिजली बनाने के लिए अब सूरज को बादलों से बाहर आने की जरूरत नहीं होगी। सोलर पैनल की आवश्यकता भी नहीं होगी। दिन की गर्मी को ही ऊर्जा में बदलकर प्रयोग किया जा सकता है। इस नए प्रयोग को अमली जामा पहनाने की तैयारी कर ली गई है। अगर ऐसा संभव हुआ तो फिर फिर यह बड़े ऊर्जा प्लांटों से कम खर्चीला साबित होगा। इससे लोगों को ऊर्जा की भरपूर उपलब्धता कराने में भी सफलता मिल सकेगी।
मदन मोहन मालवीय टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, गोरखपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर प्रशांत सैनी ने इस नए सोलर प्लांट का कॉन्सेप्ट तैयार किया है। आधुनिक सोलर प्लांट में बादलों के पीछे छिपे सूरह को भी ऊर्जा प्राप्त कर लेने की क्षमता होगी। यह प्लांट 10 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी को भी सौर ऊर्जा में बदल देगा। इस सोलर प्लांट का प्रयोग ऐसे स्थानों पर किया जा सकेगा, जहां कई दिनों तक धूप नहीं निकलती है। संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग अध्यक्ष प्रो. जीऊत सिंह के मार्गदर्शन में इस शोध कार्य को पूरा कराया गया है। डॉ. प्रशांत की ओर से तैयार किए गए सोलर प्लांट के प्रारूप से संबंधित शोध पत्र को यूनाइटेड किंगडम के अंतरराष्ट्रीय जर्नल एनर्जी कन्वर्जन एंड मैनेजमेंट ने भी प्रकाशित किया है।
सोलर प्लेट भी जरूरी नहीं
सोलर एनर्जी के लिए छतों पर या फिर खाली स्थानों में आप सोलर प्लेट लगा जरूर देखे होंगे। लेकिन, डॉ. प्रशांत के शोध में इसकी जरूरत नहीं होती है। कंबाइंड कूलिंग, हीटिंग, पावर एंड डिसैलिनेशन नामक यह सोलर प्लांट सौर ऊर्जा की जगह वातावरण की गर्मी से खुद को चार्ज कर सकता है। दरअसल, इस नए इनोवेशन के तहत थर्मल आयल से भरी इनक्यूबेटेड ट्यूब से बना सोलर क्लेक्टर सौर ऊर्जा को एकत्र कर सकता है। फेज चेंज मटेरियल टैंक में उसे सुरक्षित करके बिजली से चलने वाले यंत्रों को संचालित किया जा सकता है। इस नई तकनीक के जरिए दूषित पानी को भी पेयजल में परिवर्तित किया जा सकेगा।
डॉ. प्रशांत को इस शोध में आईआईटी बीएचयू के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. जे. सरकार का भी सहयोग मिला है। डॉ. प्रशांत अब साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्रालय की ओर से मिलने वाली आर्थिक सहायता के माध्यम से प्लांट को भौतिक रूप देने में जुटे हुए हैं।
ऐसे तैयार होगी बिजली
डॉक्टर जीऊत सिंह का कहना है कि 600 डिग्री सेल्सियस तक बॉयलिंग पॉइंट वाले थर्मल आयल से इन्क्यूबेटेड ट्यूब से बने सोलर क्लेक्टर सूर्य की ऊर्जा एकत्र होगी। यहां से उसे फेज चेंज मटेरियल टैंक में भेजा जाएगा। उसमें अपेक्षाकृत कम बॉयलिंग पॉइंट कार्बोनेटेड लिक्विड को यह वाष्पीकृत करना शुरू कर देंगी। कार्बोनेटे मटेरियल में एन ब्यूटेन, एन पेंटेन आदि मुख्य रूप से रहेगा। वाष्पीकरण की पक्रिया से मिली ऊर्जा टरबाइन को चलाएगी। इससे बिजली का निर्माण शुरू हो जाएगा। बिजली बनाने की प्रक्रिया दिन में होगी। दिन ढलने के बाद भी बिजली बनने की प्रक्रिया लगातार जारी रहेगी।
गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत को बढ़ावा देना उद्देश्य
सौर ऊर्जा के क्षेत्र में नए इनोवेशन को लेकर एमएमयूटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रशांत सैनी का कहना है कि इस सोलर प्लांट का उद्देश्य गैर परंपरागत ऊर्जा को बढ़ावा देना है। अभी तक हुए शोध कार्य के आधार पर अनुमान है कि इस प्लांट से प्रति यूनिट बिजली बनाने में 8.50 रुपये का खर्च आएगा। इसमें किसी प्रकार की बैटरी का उपयोग नहीं किया जा रहा है। इससे यह प्लांट पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी मील का पत्थर साबित होगा।

108 साल पुराने हिंदुजा समूह का होगा बंटवारा!

38 देशों में कारोबार, 150,000 से अधिक कर्मचारी

नयी दिल्ली । ब्रिटेन के सबसे अमीर परिवार हिंदुजा परिवार का बंटवारा होने जा रहा है। 108 साल पुराने हिंदुजा ग्रुप की कुल संपत्ति 14 अरब डॉलर की है। हिंदुजा भाइयों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। हिंदुजा बंधुओं में सबसे बड़े 86 साल के श्रीचंद हिंदुजा के वकीलों ने हाल ही में लंदन की एक अदालत को बताया था कि परिवार 2014 के एग्रीमेंट को खत्म करने पर सहमत हो गया है। परिवार के बीच यह समझौता 30 जून 2022 को हुआ था। सूत्रों की मानें तो इसी महीने परिवार का बंटवारा हो सकता है। समझौते के मुताबिक अगर परिवार के बीच नवंबर में बंटवारा नहीं हुआ तो यह मामला एक बार फिर अदालत में पहुंच सकता है। इस ग्रुप की दर्जनों कंपनियां हैं जिनमें से छह लिस्टेड हैं। इनमें इंडसइंड बैंक भी शामिल है।
हिंदुजा परिवार के बीच झगड़े की जड़ दो जुलाई 2014 में हुआ एक समझौता है। इस पर चारों भाइयों ने हस्ताक्षर किए थे। इसमें कहा गया था कि परिवार का सबकुछ प्रत्येक व्यक्ति से संबंधित है और कुछ भी किसी से भी संबंधित नहीं है। श्रीचंद हिंदुजा ने अपने भाइयों जी पी हिंदुजा, पी पी हिंदुजा और ए पी हिंदुजा के खिलाफ केस किया था। यह 2014 के समझौते की वैधता संबंधित था। इस पर कानूनी विवाद नवंबर, 2019 से चल रहा था। श्रीचंद हिंदुजा के तीन छोटे भाइयों की दलील थी कि यह चिट्ठी 100 साल से अधिक पुराने हिंदुजा ग्रुप की उत्तराधिकार योजना थी। लेकिन श्रीचंद हिंदुजा की बेटियों शानू और वीनू ने इसे चुनौती दी थी। ब्रिटेन ही नहीं यूरोप के कई देशों में हिंदुजा ब्रदर्स के बीच कानूनी जंग चल रही है। इससे परिवार को नुकसान पहुंच रहा है।
हिंदुजा समूह का कारोबार
हिंदुजा ग्रुप का कारोबार ट्रक बनाने से लेकर, बैंकिंग, केमिकल्स, पावर, मीडिया और हेल्थकेयर तक फैला है। ग्रुप की कंपनियों में ऑटो कंपनी अशोक लीलेंड और इंडसइंड बैंक शामिल हैं। 14 अरब डॉलर की नेटवर्थ के साथ हिंदुजा परिवार ब्रिटेन का सबसे अमीर परिवार है। इस ग्रुप की कंपनियों का कारोबार 38 देशों तक फैला है और उनमें 150,000 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। हिंदुजा ग्रुप की स्थापना 1914 में श्रीचंद परमानंद ने ब्रिटिश इंडिया में सिंध इलाके से की थी। हिंदुजा समूह कभी कमोडिटी-ट्रेडिंग फर्म हुआ करता था लेकिन श्रीचंद और उनके भाइयों ने लगातार अपने कारोबार को दूसरे क्षेत्रों में फैलाया।
हिंदुजा परिवार में दरार की पहली खबर तब आई थी, जब श्रीचंद की बेटियों ने स्विट्जरलैंड में स्थित एसपी हिन्दुजा बैंक्यू प्री वी एस ए पर नियंत्रण को लेकर कोर्ट में मुकदमा दायर किया। श्रीचंद की बेटी शानू इस बैंक की चेयरमैन हैं और उनके बेटे करम इसके सीईओ हैं। हालांकि परिवार के दूसरे सदस्य भी इस बैंक पर अपना नियंत्रण चाहते थे, जिसके बाद से यह विवाद शुरू हुआ। इस विवाद ने 100 साल से भी पुराने इस कॉरपोरेट साम्राज्य को टूटने के कगार पर पहुंचा दिया।
किसे मिलेगा स्विस बैंक
एक सूत्र ने बताया कि स्विट्जरलैंड में हिंदुजा ग्रुप का बैंक एसपी हिंदुजा ग्रुप के पास ही रह सकता है। हालांकि स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है कि हिंदुजा परिवार इस बैंक को एसपी ग्रुप को देने पर सहमत है या नहीं। एसपी हिंदुजा ग्रुप ने 2013 में बैंका कमर्शियल लुगानो को खरीदा था और इसका हिंदुजा बैंक (स्विट्जरलैंड) में विलय कर दिया था। बाद में इसका नाम बदल दिया गया था। श्रीचंद हिंदुजा इसके फाउंडिंग चेयरमैन बने थे। उनके भाइयों का आरोप है कि श्रीचंद का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और इसका फायदा उठाकर उनकी बेटियां उनकी इच्छा के उलट काम कर रही हैं। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीचंद हिंदुजा डिमेंशिया (यादाश्त भूलने की बीमारी) से ग्रसित हैं।

स्विस बैंक हिंदुजा ग्रुप की बाकी कंपनियों के मुकाबले बहुत छोटा है लेकिन इसमें अहम क्रॉस होल्डिंग्स है। अशोक लीलैंड में इसकी 4.98 फीसदी हिस्सेदारी है। मौजूदा मार्केट कैप के हिसाब से इसकी वैल्यू 2195 करोड़ रुपये है। इसके अलावा मॉरीशस के इंडसइंड इंटरनेशनल होल्डिंग्स के एमेरिटस चेयरमैन एसपी हिंदुजा हैं। इसकी इंडसडइंड बैंक में 12.58 फीसदी हिस्सेदारी है। इस बैंक का मार्केट कैप 89 हजार करोड़ रुपये के करीब है। इस हिसाब से इसमें आईआईएच की हिस्सेदारी की कीमत 11205 करोड़ रुपये है।
साथ ही आईआईएच की हिंदुजा लीलैंड फाइनेंस और इंडसइंड मीडिया एंड कम्युनिकेशनंस लिमिटेड में भी हिस्सेदारी है। अभी इसके चेयरमैन अशोक हिंदुजा हैं। शानू और वीनू हिंदुजा के पास लिस्टेड कंपनी हिंदुजा ग्लोबल सॉल्यूशंस के भी शेयर हैं। यह प्रमोटर ग्रुप का हिस्सा है। हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि क्रॉस-होल्डिंग का समाधान कैसे होगा। दोनों पक्ष इस सेटलमेंट के विवरण का खुलासा नहीं करना चाहते हैं।
अलग-अलग जिम्मेदारी
हर भाई के पास कारोबार की अलग-अलग जिम्मेदारी है। श्रीचंद हिंदुजा पूरे ग्रुप के चेयरमैन है। उन्होंने ही इंडसइंड बैंक को शुरू किया था, जो भारत के प्रमुख प्राइवेट बैंकों में से एक है। गोपीचंद हिंदुजा इस ग्रुप के को-चेयरमैन है। ये हिंदुजा ऑटोमोटिव लिमिटेड, यूके के चेयरमैन भी हैं। तीसरे भाई प्रकाश इस समय यूरोप में हिंदुजा ग्रुप के चेयरमैन हैं, जबकि अशोक भारत में हिंदुजा ग्रुप के चेयरमैन है। श्रीचंद और गोपीचंद लंदन में रहते हैं। प्रकाश मोनैको में रहते हैं जबकि अशोक भारत में रहते हैं। फोर्ब्स रियल टाइम नेट वर्थ सूची के मुताबिक हिंदुजा बंधु दुनिया के अमीरों की सूची में 110वें नंबर पर हैं।