कोलकाता । नेफ्रोकेयर इंडिया ने गत 15 दिसंबर को एक साल सफलतापूर्वक पूरा किया। नियमित रूप से 30 मिनट तेज चलने से किडनी स्वस्थ रहती है और इसे ध्यान में रखते हुए नेफ्रोकेयर की और से ‘ए वॉक फॉर योर किडनी’ का संदेश देते हुए वॉकथॉन का आयोजन किया। इसमें लगभग 200 प्रतिभागियों के साथ-साथ समाज के मशहूर हस्तियां इस स्वस्थ अभ्यास के विचार को फैलाने के लिए अपने कदमों मिलाए। यह वॉकथॉन नेफ्रोकेयर से शुरू होकर होटल गोल्डन ट्यूलिप पर खत्म हुई।
कार्यक्रम के बाद नेफ्रोकेयर के संस्थापक और निदेशक डॉ. प्रतिम सेनगुप्ता ने स्वस्थ समाज गढ़ने का आह्वान किया । उन्होंने कहा, हम अपने संस्थान में रोगियों का इलाज एक अनोखे तरीके से करते हैं, हमारा मिशन सस्ती कीमत पर बेहतरीन सुविधा के साथ इन मरीजों का देखभाल करना है । इस कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित हस्तियों में डॉ. प्रतिम सेनगुप्ता (नेफ्रो केयर के संस्थापक और निदेशक); दिब्येंदु बरुआ (शतरंज ग्रैंडमास्टर); आईएलएस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल की सीईओ डॉ. निबेदिता चटर्जी; राम कृष्ण जायसवाल (मालदीव के महावाणिज्य दूतावास); जॉयदीप दास (उप सचिव, खेल मंत्रालय); देवाशीष दत्ता, (मोहन बागान क्लब के सचिव और अभिभाषक); सैकत बिस्वास (चेम्बर ऑफ कॉमर्स बंगाल चैप्टर के साथ समाज की कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां इस आयोजन में शामिल हुए। इस कार्यक्रम का सफल प्रबंधन मैप 5 इवेंट्स द्वारा किया गया।
नेफ्रोकेयर इंडिया के वॉकथॉन में ‘वॉक फॉर योर किडनी’ का संदेश
स्मिता पाटिल – स्थापित मानकों को ध्वस्त करने वाली नायिका, जिनको हो जाता था पूर्वाभास
अपनी मौत को लेकर स्मिता पाटिल ने कर दी थी यह भविष्यवाणी
बॉलीवुड में सौंदर्य के स्थापित मानकों को तोड़कर अपनी प्रतिभा का सौन्दर्य बिखेरने वाली नायिका स्मिता पाटिल किसी परिचय की मोहताज नहीं है। सांवली – सलोनी सूरत वाली स्मिता ने सिर्फ फिल्मों में हिरोइनों की गोरी-चिट्टी होने वाली स्टिरियोटाइप को तोड़ा था, बल्कि कई ऐसी फिल्में भी की जो महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा प्रकाश डालती हैं। 16 साल की उम्र में स्मिता पाटिल ने अपना कॅरियर दूरदर्शन पर एक टीवी न्यूजरिडर के तौर पर किया था, लेकिन बाद में उन्होंने कई लाजवाब फिल्मों में भी काम किया। अपने 10-12 सालों के छोटे से कॅरियर में ही स्मिता पाटिल ने 2 राष्ट्रीय, 3 फिल्म फेयर और पद्मश्री पुरस्कार विजेता रहीं । स्मिता पाटिल के पेशेवर एवं निजी जीवन से जुड़ी कई बातें लोगों को पता है लेकिन काफी कम लोगों को ही स्मिता पाटिल के सिक्स्थ सेंस के बारे में पता है। जी हां, सिक्स्थ सेंस यानी वह शक्ति जो किसी घटना के घटने से पहले ही लोगों को उसका आभास करा देती है। स्मिता पाटिल के पास भी कमाल का सिक्स्थ सेंस थी, जिसके उदाहरण एक नहीं बल्कि कई बार मिले हैं।
हादसे से ठीक पहली रात अमिताभ बच्चन का पूछा था हाल : स्मिता पाटिल की सिक्स्थ सेंस का नमूना अमिताभ बच्चन को भी मिल गया था। जिस दिन फिल्म ‘कुली’ के सेट पर अमिताभ बच्चन के साथ हादसा हुआ था और उन्हें अगले कुछ महीनों तक आईसीयू में बिताने पड़े थे, उससे ठीक एक रात पहले अचानक स्मिता पाटिल का अमिताभ बच्चन को कॉल आया था और उन्होंने फोन पर पूछा था कि क्या वह ठीक हैं ? इस बात का खुलासा अमिताभ बच्चन ने एक इंटरव्यू के दौरान किया था। बकौल अमिताभ बच्चन, सेट पर उनकी स्मति पाटिल से ज्यादा बातचीत नहीं होती थी। अमिताभ बच्चन ने कहा, “मैं वेस्ट एंड होटल में रुका हुआ था। एक रात को करीब 1 बजे मुझे मेरे कमरे में एक कॉल मिला। जब ऑपरेटर ने कहा कि स्मिता पाटिल मुझसे बात करना चाहती तो पहले मुझे लगा कि कोई मुझसे प्रैंक कर रहा है। जब फोन पर स्मिता पाटिल की आवाज तब यकीन हुआ कि वहीं हैं।” अमिताभ ने आगे बताया, “स्मिता पाटिल ने मुझसे कहा, अमित जी! इतनी रात को परेशान करने के लिए माफी चाहती हूं लेकिन क्या आप ठीक हैं? मैं एक बहुत बुरा सपना देखकर जाग गयी थी।” इसके ठीक अगले दिन सुबह ही अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म ‘कुली’ के सेट पर हादसा हो गया जिसमें उनकी जान जाते-जाते बची।
नियमित तौर पर जाती थी अस्पताल : फिल्म ‘कुली’ के सेट पर चोट लगने के बाद जब अमिताभ बच्चन अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झुल रहे थे, उस समय स्मिता पाटिल नियमित तौर पर अस्पताल में उनका हालचाल पूछने जाती थी। अमिताभ बच्चन को 2-3 महीने तक आईसीयू में बिताने पड़े थे। सिर्फ इतना ही नहीं अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद जब अमिताभ बच्चन घर आ गये थे, उस समय भी स्मिता पाटिल हर रोज उनके घर जाकर उनका हालचाल पूछती थी। अमिताभ बच्चन ने कहा, “मैं उस बात को कभी नहीं भूल सकता हूं।”
अपनी मौत से जुड़ी इस बात की कर दी थी भविष्यवाणी : स्मिता पाटिल की मौत के बाद उनकी को-स्टार पूनम ढिल्लो ने बताया, “स्मिता पाटिल ने अपनी मौत की भविष्यवाणी कर दी थी।” बकौल पूनम, “स्मिता ने कहा था मैं 31 साल की उम्र में मरुंगी।” आश्चर्यजनक रूप से 13 दिसंबर 1986 को जब स्मिता पाटिल की मौत हुई, उस समय उनकी उम्र 31 साल ही थी। स्मिता पाटिल ने अपने बेटे प्रतीक बब्बर को जन्म देने के 15 दिनों बाद डिलीवरी से संबंधित कुछ जटिलताओं के कारण दुनिया को अलविदा कह दिया था।
साहित्य मधुशाला, मैसूर का द्वितीय वार्षिकोत्सव सम्पन्न
कोलकाता । देश – विदेश के जाने माने रचनाकारों से युक्त साहित्य मधुशाला संस्था का द्वितीय वार्षिकोत्सव ऑनलाइन 10 दिसम्बर को अनेक सदस्यों की उपस्थिति में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
इस अवसर पर काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें अनेक कवि कवयित्रियों ने अपनी सुंदर स्वरचित रचनाओं को प्रस्तुत कर कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता बैंगलोर के जैन राजेंद्र गुलेच्छा ने की। मुख्य अतिथि कोलकाता के जानेमाने उद्योगपति एवं अग्रवाल समाज के अध्यक्ष श्री राजकुमार मित्तल ने दीप-प्रज्वलन कर गोष्ठी का शुभारम्भ किया।
कार्यक्रम का सुंदर संचालन संस्थापक अध्यक्ष श्रीमती उषा जैन केडिया ने अपने चिर-परिचित अन्दाज़ में चार पंक्तियों के माध्यम से सबको बारी बारी से रचना प्रस्तुत करने हेतु आमंत्रित करके किया।
संगीता चौधरी द्वारा सरस्वती वन्दना के बाद काठमाण्डू नेपाल के वरिष्ठ कवि जयप्रकाश अग्रवाल ने ‘किसी को आमद की किसी को ज़रिया की फिकर’, कोलकाता से उषा जैन ने ‘मैली हो गयी म्होरि चुनरियाँ’ टाटानगर के कवि प्रमोद खीरवाल ने ‘आज हवाएँ हँस रही हैं’ जयपुर की अनुपमा अग्रवाल ने ‘धूप का एक नर्म सा टुकड़ा’, बैंगलोर के युवा कवि आनंद दाधीच ने ‘रुतबों क़स्बों की बातें होती रहेगी’, बैंगलोर की कवयित्री दीपिका मिश्र ने ‘ऊँगली पकड़ चलना सिखाता है पिता’ कोलकाता की संगीता चौधरी ने ‘मैंने किया नहीं या कर नहीं पाया’ साथ ही नेपाल के कवि सुरेश अग्रवाल ‘कविता को कविता का उपहार’ एवम् बैंगलोर के प्रतिष्ठित कवि नंद सारस्वत स्वदेशी ने पंचतत्व की बनी हवेली प्रस्तुत कर गोष्ठी को बहुत ही यादगार एवम् खूबसूरत बना दिया।
संस्था अध्यक्ष उषा केडिया ने संस्था की गतिविधियों की विस्तृत जानकारी देने के साथ ही तरन्नुम में अपनी रचना ‘बता मैं इश्क किस तरह करूँ’ प्रस्तुत की, साथ ही बैंगलोर के कवि जैन राजेंद्र गुलेच्छा राज ने सब प्रस्तुतियों पर सुंदर समीक्षा करने के साथ ही अपनी रचना ‘बना है वो काबिल अपने बलबूते पर उसे आसमाँ पर देख तू क्यूँ जलता है’ सुनाकर सबकी भरपूर तालियाँ बटोरी। अंत में संगीता चौधरी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के पश्चात गोष्ठी का विधिवत समापन हुआ।
ज्ञातव्य है कि इस साहित्य संस्था से अनेक जाने माने कवि रचनाकार जुड़े हुए हैं। इस संस्था में प्रति सप्ताह विषयोत्सव प्रतियोगिता होती है एवं प्रति मास काव्य गोष्ठी का सुंदर आयोजन होता रहता है।
चार वर्ष का होगा स्नातक पाठ्यक्रम, दो श्रेणियों में होगी ऑनर्स की डिग्री
एफवाईयूपी के लिए पाठ्यक्रम और क्रेडिट फ्रेमवर्क की घोषणा
नयी दिल्ली । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने अब चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रमों ( एफवाईयूपी) के लिए पाठ्यक्रम और क्रेडिट फ्रेमवर्क) की घोषणा की है । नए एफवाईयूपी ढांचे के तहत, यूजीसी पाठ्यक्रम और क्रेडिट फ्रेमवर्क ने कहा कि छात्रों को मल्टिपल ऑप्शन के साथ बाहर निकलने के विकल्प, फ्लेक्सिबल ऑप्शन, सिंगल या डबल डिग्री जैसे विकल्प भी दिए जाएंगे। सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को अपने अंडरग्रेजुएट कार्यक्रमों के लिए क्रेडिट ढांचे को अपनाने के लिए ज़रूरी कदम उठाने के लिए कहा गया है ।
नए पाठ्यक्रम के ढांचे में ये विशेषताएं होंगी
नए पाठ्यक्रम में बदलाव के तहत एक अध्ययन या कार्यक्रम से दूसरे कोर्स में जाना अब आसान हो जाएगा । सभी कार्यक्रमों में अपनी रुचि का कार्यक्रम या पाठ्यक्रम चुनने का अवसर दिया जाएगा । इसके अलावा क्रेडिट स्कोर के आधार पर यूजी सर्टिफिकेट/यूजी डिप्लोमा/या डिग्री के साथ कई प्रवेश और निकास विकल्पों की सुविधा दी जाएगी । अब छात्रों के पास ऑप्शन होगा कि वे शिक्षा ऑफ़लाइन, ओडीएल और ऑनलाइन सीखने के हाइब्रिड मोड पर कब और कैसे स्विच करना चाहते हैं ।
ऑनर्स डिग्रियां अब दो श्रेणी में
नए कार्यक्रम के अनुसार, छात्र मौजूद सिस्टम की तरह तीन साल के पाठ्यक्रम के बजाय केवल चार साल की ऑनर्स डिग्री हासिल कर सकेंगे। ऑनर्स डिग्रियां भी दो श्रेणियों में की जाएंगी – पहली ऑनर्स और दूसरी ऑनर्स विद रिसर्च । यूजीसी द्वारा जारी नए आदेश में कहा गया है कि चार साल की यूजी ऑनर्स डिग्री उन छात्रों को दी जाएगी जो 160 क्रेडिट स्कोर के साथ चार साल का डिग्री प्रोग्राम पूरा करते हैं और क्रेडिट आवश्यकता को पूरा करते हैं।
शोध और डिसर्टेशन मेजर सब्जेक्ट
पहले छह सेमेस्टर में 75 प्रतिशत और उससे ज्यादा प्रतिशत हासिल करने वाले छात्र अगर अंडरग्रेजुएट में शोध करना चाहते हैं तो उन्हें चौथे वर्ष में एक शोध ऑप्शन चुनने का अवसर दिया जाएगा । ऑनर्स विद रिसर्च करने वाले छात्रों को विश्वविद्यालय या कॉलेज के एक फैकल्टी मेंबर के मार्गदर्शन में शोध करना होगा । शोध और डिसर्टेशन मेजर सब्जेक्ट में होना चाहिए जिसमे 12 क्रेडिट स्कोर कुल अनिवार्य 160 क्रेडिट स्कोर में से हासिल करने पर ही छात्रों को यूजी डिग्री (रिसर्च के साथ ऑनर्स) से सम्मानित किया जाएगा ।
क्रिसमस से पहले खुलेगा सांतरागाछी पुल
मेडिक्लेम: न अटकेगा, न लटकेगा, बस इन बातों का रखना होगा ध्यान
मेडिक्लेम लेते समय इन बातों का ध्यान रखें –
डॉक्यूमेंट सेट हमेशा तैयार रखें
मैक्स हॉस्पिटल के प्रवक्ता के मुताबिक हेल्थ इंश्योरेंस लिया है तो सबसे पहले इसके बारे में घर के सभी सदस्यों को बताएं। चाहे आपका अकेले का हेल्थ इंश्योरेंस हो या फैमिली फ्लोटर या परिवार के सभी सदस्यों का अलग-अलग, सभी को एक-दूसरे के हेल्थ इंश्योरेंस के बारे में बता दें। इसके बाद जिन-जिन के नाम हेल्थ इंश्योरेंस है या इंश्योरेंस में शामिल हैं, उन सभी के इन डॉक्यूमेंट्स की फोटो काॅपी के अलग-अलग सेट बना लें:
हेल्थ इंश्योरेंस (अगर पिछले साल के इंश्योरेंस हैं तो अधिकतम 3 साल के पेपर)
आधार कार्ड
पैन कार्ड
पासपोर्ट साइज का एक फोटो
इन डॉक्यूमेंट्स के सेट को घर में एक जगह रख दें जिसे इमरजेंसी में परिवार के सदस्य जरूरत पड़ने पर निकालकर अस्पताल को दे सके। भर्ती के दौरान ये सारे डॉक्यूमेंट्स अस्पताल में जमा कराने पड़ते हैं।
इन स्थितियों में मिलता है क्लेम
1. तय सर्जरी आदि में भर्ती होने पर
मान लीजिए, किसी शख्स का किडनी ट्रांसप्लांट या कोई सर्जरी पहले से तय है। ऐसे में मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ता। अस्पताल उसे भर्ती होने के लिए एक तय तारीख बताता है। उस तारीख से 2 दिन पहले जरूरी डॉक्यूमेंट्स अस्पताल के TPA विभाग को देने होते हैं। दरअसल, हेल्थ इंश्योरेंस देने वाली हर कंपनी की ओर से TPA नियुक्त किया जाता है। TPA हेल्थ इंश्योरेंस देनेवाली कंपनी और इंश्योरेंस लेनेवाले शख्स के बीच एक बिचौलिए के रूप में काम करता है। इसका मुख्य काम दावे और सेटलमेंट की प्रक्रिया में मदद करना है। डॉक्यूमेंट्स के आधार पर इंश्योरेंस कंपनी की तरफ से इलाज के लिए रकम अप्रूव की जाती है। तय तारीख पर मरीज आता है और उसका इलाज शुरू हो जाता है।
2. अस्पताल में अचानक भर्ती होने पर
अचानक बीमार होने या ऐक्सिडेंट होने जैसी स्थिति में मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है। ऐसे में हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़े उसके डॉक्यूमेंट परिजन अस्पताल में जमा करा देते हैं। डॉक्टर मरीज को देखकर इलाज का प्रोसेस तय करता है, अस्पताल प्रशासन अनुमानित खर्च बताता है। TPA की तरफ से इलाज के लिए रकम अप्रूव की जाती है। अप्रूवल मिलने में 4 घंटे तक लग जाते हैं। ऐसे में अस्पताल परिजन से छोटी-सी रकम (5 से 10 हजार रुपये) जमा करवाता है और मरीज का इलाज शुरू हो जाता है। अस्पताल की हेल्प डेस्क से यह जानकारी ले सकते हैं कि मरीज के इलाज में रोजाना कितनी रकम खर्च हो रही है। अस्पताल प्रोविजनल बिल देते हैं कि इलाज की रकम किन-किन चीजों पर खर्च हुई।
कैश और कैशलेस का चक्कर
यह स्थिति छोटे शहरों या उन अस्पतालों में आती है जहां हेल्थ इंश्योरेंस के जरिए इलाज नहीं किया जाता यानी ऐसे अस्पताल TPA पैनल में नहीं होते। इलाज की पूरी रकम चुकानी पड़ती है। हालांकि इलाज के बाद TPA को इलाज से जुड़े कागज देने पर इलाज में खर्च रकम मिल जाती है। यह रकम जितने का हेल्थ इंश्योरेंस है, उससे ज्यादा नहीं मिलेगी। इसे रीइम्बर्स्मन्ट भी कहते हैं। रीइम्बर्स्मन्ट के लिए अस्पताल से ये डॉक्यूमेंट जरूर लें:
मरीज की डिस्चार्ज समरी की मूल जानकारी
इलाज में खर्चे का ऑरिजनल बिल। बिल ब्रेकअप के साथ होना चाहिए यानी कमरे का रोजाना का किराया कितना रहा, डॉक्टर की रोजाना की फीस, दवाइयों का बिल जिसमें यह भी लिखा हो कि कौन-कौन सी दवाएं दी गईं आदि।
अगर कोई टेस्ट हुआ है तो नेगेटिव फिल्म (एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, MR आदि) सहित उसकी रिपोर्ट।
मरीज को भर्ती कराते समय शुरू में जो रकम जमा की है, उसकी और डिस्चार्ज के बाद बिल भुगतान की ऑरिजनल रसीद।
मरीज के भर्ती के बाद के केस पेपर और वाइटल चार्ट भी मांगें। वाइटल चार्ट वह होता है जो इलाज के दौरान मरीज के बेड से बंधा होता है। इस पर मरीज की पल-पल की रिपोर्ट जैसे ब्लड प्रेशर आदि की जानकारी होती है।
इनके अलावा अस्पताल से ये डॉक्यूमेंट भी मांगें
राज्य सरकार या स्थानीय निगम की ओर से जारी अस्पताल के रजिस्ट्रेशन का सर्टिफिकेट
अगर अस्पताल ने नए रजिस्ट्रेशन या रजिस्ट्रेशन रिन्यू के लिए अप्लाई किया है और उसके पास रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट नहीं है तो अस्पताल को Inpatient Certificate देना होगा। इस सर्टिफिकेट में अस्पताल का रजिस्ट्रेशन नंबर लिखा होता है। इसमें अस्पताल को जानकारी देनी होती है कि क्या उसके पास राउंड द क्लॉक डॉक्टर (मरीज को समय-समय पर देखने के लिए आने वाले डॉक्टर) हैं? कुशल नर्सिंग स्टाफ है? ऑपरेशन थिएटर है या नहीं? अस्पताल में मरीजों के लिए कितने बेड हैं आदि।
नोट: रीइम्बर्स्मन्ट के लिए अस्पताल से डिस्चार्ज होने के 7 से 15 दिनों के भीतर क्लेम फाइल कर देना चाहिए। इसमें देरी होने पर क्लेम मिलने में परेशानी हो सकती है।
क्लेम में देरी तो क्या करें: क्लेम मिलने में 45 दिन से ज्यादा लगते हैं तो उस रकम पर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को बैंक रेट से 2 फीसदी ज्यादा का ब्याज उसे देना होगा जिसके नाम से इंश्योरेंस है। कुल ब्याज कितना देना होगा, यह RBI की गाइडलाइंस के अनुसार कोर्ट या बीमा कंपनी तय करती है। क्लेम में देरी पर इंश्योरेंस कंपनी को उसकी ऑफिशल ई-मेल आईडी पर ईमेल करें।
क्लेम की रकम कम होने के कारण
जब अस्पताल का फाइनल बिल बनता है तो कई बार बिल काफी ज्यादा हो जाता है। इसमें उन खर्चों की भी रकम शामिल होती है जिनका क्लेम इंश्योरेंस कंपनी नहीं देतीं। ऐसे में क्लेम की रकम कम हो जाती है। इसलिए इलाज के दौरान ये बातें ध्यान रखें:
अस्पताल में भर्ती होने से पहले: अस्पताल का कमरा उसी रेंज में लें, जितने की लिमिट हेल्थ इंश्योरेंस में दी गई है। लिमिट से ज्यादा कीमत वाला कमरा लेने पर डॉक्टर की फीस से लेकर कमरे में मौजूद टीवी, फोन आदि का भी खर्च बढ़ जाता है। अस्पताल में भर्ती होने के दौरान: मरीज के साथ मौजूद परिवार के सदस्य के खाने-पीने की चीजों पर भी क्लेम नहीं मिलता है। इसलिए ऐसी चीजों से बचें। अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद: अस्पताल से डिस्चार्ज होने पर दवा का खर्च भी हेल्थ इंश्योरेंस में शामिल होता है लेकिन वह खर्च वाजिब होना चाहिए यानी कोई भी दवाई अपनी तरफ से या किसी दूसरे डॉक्टर की सलाह से न ली गई हो।
इन परिस्थितियों में रिजेक्ट हो सकता है क्लेम
पुरानी बीमारी न बताने पर
अगर मरीज प्री-एग्जिस्टिंग (पहले से हुई) बीमारी जैसे- डायबीटीज, अस्थमा, थॉयराइड आदि या पुरानी बीमारी की वजह से अस्पताल में भर्ती हो जाए जिसके बारे में एजेंट को बताया नहीं था तो क्लेम रिजेक्ट हो जाएगा और इलाज का पूरा बिल अपनी जेब से भरना पड़ेगा। वहीं अगर कोई शख्स प्री-एग्जिस्टिंग बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती होता है तो 3 साल तक (अलग-अलग कंपनियों के मुताबिक अलग-अलग) क्लेम नहीं मिलता। फिर चाहे उस शख्स ने उस बीमारी के बारे में पहले से ही क्यों न बता दिया हो। हालांकि अब कंपनियां प्रीमियम की कुछ रकम ज्यादा लेकर पहले दिन से ही सभी प्रकार की बीमारियों पर क्लेम दे देती हैं।
क्या करें?
इंश्योरेंस लेते समय कंपनी के एजेंट को अपनी बीमारियों, स्मोकिंग, शराब आदि से जुड़ी आदतों के बारे में पूरी जानकारी दें।
अगर शराब पीते हैं या स्मोकिंग करते हैं तो इसकी भी जानकारी दें।
कोई सर्जरी हुई है या कोई दवाई खाते हैं तो यह भी एजेंट को बताएं।
इंश्योरेंस लेने के बाद भी अगर कोई बीमारी जैसे डायबीटीज, बीपी आदि होता है तो इसके बारे में भी इंश्योरेंस कंपनी को ई-मेल के जरिए बताएं।
वेटिंग या ग्रेस पीरियड में इलाज
जब भी हेल्थ इंश्योरेंस लेते हैं तो कंपनियां शुरू के 15 या 30 दिन का वेटिंग पीरियड (लुक आउट पीरियड) देती हैं। वेटिंग पीरियड से मतलब है कि इंश्योरेंस लेने वाला शख्स पॉलिसी को अच्छी तरह से पढ़ ले और सभी नियमों को जान ले। अगर पॉलिसी पसंद न आए तो कस्टमर उसे वेटिंग पीरियड में वापस भी कर सकता है। वेटिंग पीरियड में ऐक्सिडेंट के अलावा अगर किसी दूसरी बीमारी का इलाज कराते हैं तो क्लेम रिजेक्ट कर दिया जाता है।
वहीं अगर इंश्योरेंस की तारीख निकल चुकी है और उसे रिन्यू नहीं कराया है तो कंपनी 30 दिनों तक का ग्रेस पीरियड देती है। इन 30 दिनों में प्रीमियम भरकर इंश्योरेंस को रिन्यू करा सकते हैं। अगर ग्रेस पीरियड में इंश्योरेंस लेने वाले शख्स को मेडिकल इमरजेंसी आती है तो उसे क्लेम नहीं मिलता, फिर चाहे मरीज को अस्पताल में भर्ती करते ही तुरंत इंश्योरेंस का प्रीमियम क्यों न भर दें।
क्या करें?
वेटिंग पीरियड में तो कुछ नहीं कर सकते लेकिन ग्रेस पीरियड अपने हाथ में होता है। हेल्थ इंश्योरेंस को रिन्यू कराने के लिए ग्रेस पीरियड या आखिरी तारीख का इंतजार न करें। जिस दिन इंश्योरेंस खत्म होने वाला होता है, उसके 15 दिन पहले ही इसका प्रीमियम भर दें ताकि इसका फायदा मिलता रहे।
कम से कम 24 घंटे भर्ती न रहना
अगर कोई शख्स अस्पताल में 24 घंटे से कम समय तक भर्ती रहता है या किसी चेकअप के लिए भर्ती हुआ है तो क्लेम नहीं मिलेगा। कई बार मरीज को सिर्फ सामान्य जांच या ऑब्जर्वेशन के लिए भर्ती किया जाता है। भर्ती के दौरान कोई दवा दी गई और जानबूझकर 24 घंटे बाद छुट्टी दे दी गई हो। अगर ऐसा होता है तो क्लेम रिजेक्ट कर दिया जाएगा। हालांकि डे प्रसीजर के कुछ मामलों में क्लेम मिल जाता है। कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जिनमें मरीज को 24 घंटे के अंदर अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है। इन बीमारियों के बारे में हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी से जानकारी ले लें।
क्या करें?
मरीज अस्पताल में कम से कम 24 घंटे के लिए वाजिब बीमारी और उसके इलाज के लिए ही भर्ती हो। किसी भी तरह के फर्जी इलाज से बचें। अगर डे प्रसीजर का मामला है तो इसके बारे में TPA को बताएं।
अस्पताल का रजिस्टर्ड न होना
कई अस्पताल ऐसे होते हैं जो TPA पैनल में नहीं होते। ऐसे में इलाज के दौरान ध्यान रखें कि अस्पताल उस राज्य सरकार की तरफ से या स्थानीय निगम की ओर से रजिस्टर्ड होना चाहिए, जिस राज्य में यह है। अगर रजिस्टर्ड नहीं हैं तो इलाज में खर्च रकम का रीइम्बर्स्मन्ट भी नहीं मिलेगा।
…तो क्या करें?
बड़े शहरों में या बड़े-बड़े ग्रुप जैसे मैक्स, अपोलो, फोर्टिस आदि में पैनल होता है यानी यहां कैशलेस इलाज करा सकते हैं। इसके उलट छोटे शहरों या दूर-दराज के इलाकों में ऐसे काफी अस्पताल हैं जो रजिस्टर्ड नहीं हैं। कई बार इमरजेंसी की स्थिति में मरीज को ऐसे ही अस्पताल में भर्ती कराना मजबूरी हो जाती है। बेहतर होगा कि मरीज को ऐसे किसी भी अस्पताल में भर्ती कराते समय अस्पताल के हेल्प डेस्क पर पूछ लें कि क्या यह अस्पताल स्थानीय राज्य सरकार या स्थानीय निगम की ओर से रजिस्टर्ड है? अगर रजिस्टर्ड नहीं है तो बेहतर होगा कि मरीज को वहां फर्स्ट ऐड (प्राथमिक उपचार) दिलवाएं और किसी ऐसे अस्पताल में ले जाएं जहां कैशलेस इलाज की सुविधा हो। जरूरत पड़े तो एंबुलेंस में भी लेकर जा सकते हैं।
अस्पताल पहुंचने पर इन बातों का रखें ध्यान
कई बार अस्पताल पहुंचने पर TPA के बारे में पता चलता है। मरीज या मरीज के परिवार की ओर से जो क्लेम फॉर्म भरा जाता है, उसे TPA कंपनी को भेजते हैं और प्री-अथॉराइजेशन (इलाज के लिए रकम का अप्रूवल) दिलवाते हैं। यह सुविधा 24 घंटे चालू है। प्री-अथॉराइजेशन में मिली रकम कुल इंश्योरेंस का 10 फीसदी भी हो सकती है। जैसेे- किसी का 5 लाख रुपये का हेल्थ इंश्योरेंस है और उसे पहले दिन 40 या 50 हजार रुपये का अप्रूवल मिल सकता है। इसे देखकर घबराएं नहीं। अगर मरीज का इलाज 24 घंटे से ज्यादा चलता है तो हर दिन अप्रूव हुई रकम बढ़ती जाती है। हालांकि कुल कितना क्लेम मिलेगा, यह मरीज के डिस्चार्ज होने पर ही पता चलता है।
अप्रूवल मिलने में कम से कम 30 मिनट और अधिकतम 4 घंटे मिलते हैं। इस दौरान अस्पताल 5 से 10 हजार रुपये जमा करवाता है और मरीज का इलाज शुरू हो जाता है। अगर TPA अप्रूवल में देरी करे या 1 दिन या 2 दिन का वक्त लगने की बात कहे तो उससे कहें कि इसमें इतने दिन नहीं लगते। यह आपकी ड्यूटी है और 4 घंटे में अप्रूवल दिलवाइए।
ये बातें कभी न भूलें
नॉमिनी का नाम जरूर जुड़वाएं: हेल्थ इंश्योरेंस में नॉमिनी का नाम जरूर जुड़वाएं और नॉमिनी को भी इसके बारे में बताएं। अगर किसी शख्स का इलाज अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी चल रहा है तो दवाई समेत इलाज से जुड़े खर्च हेल्थ इंश्योरेंस में कवर होते हैं। इस दौरान अगर उस शख्स की मृत्यु हो जाए तो नियमानुसार उसका बैंक अकाउंट भी तुरंत बंद हो जाता है यानी उसमें लेन-देन नहीं हो सकता। ऐसे में नॉमिनी उस शख्स के इलाज में खर्च हुई रकम को उसकी मृत्यु के 45 दिनों बाद तक क्लेम कर सकता है और रकम अपने बैंक अकाउंट में लेने का हकदार होता है। नॉमिनी की जिम्मेदारी है कि वह उस रकम को उस शख्स के कानूनी वारिसों में बांट दें। बेहतर होगा की रकम को वारिसों में चेक के जरिए दिया जाए।
हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ी गाइडलाइंस जानें: आईआरडीएआई की आधिकारिक वेबसाइट irdai.gov.in पर जाएं। पेज पर ही सामने लिखे What’s New पर क्लिक करें। अब आपको एक नीले रंग की पट्टी दिखाई देगी। इसमें लिखे Select Year and Month में 2020 और महीने में June सेलेक्ट करके इसके बराबर में लिख Go पर क्लिक करें। इसमें 11-06-2020 के तीन ऑप्शन मिलेंगे। पहले वाले ऑप्शन ( गाइडलाइन्स ऑन स्टैंडर्डाइजेशन ऑफ जनरल टर्म्स एंड क्लॉजेज इन हेल्थ इन्श्योरेंस) पर क्लिक करके आप मेडिक्लेम से जुड़ी IRDAI की नई गाइडलाइंस पढ़ सकते हैं।
जेब को भी दे सकते हैं राहत: ऐसा नहीं है कि हेल्थ इंश्योरेंस लेने के बाद भी मरीज को इलाज के बाद अपनी जेब से कुछ न कुछ चुकाना ही होगा। कुछ कंपनियां हेल्थ इंश्योरेंस का प्रीमियम थोड़ा-सा (2% से 5%) बढ़ा देती हैं। इसके बाद मरीज को इलाज के दौरान अलग से रकम नहीं चुकानी पड़ती। यहां तक कि ग्लव्स, मास्क, फाइल चार्ज आदि भी नहीं।
पॉलिसी लेने से पहले जरूर पूछें ये सवाल
पॉलिसी में क्या कवर होगा, क्या नहीं?
हेल्थ इंश्योरेंस लेते समय कंपनी के एजेंट से यह जरूर पूछें कि इंश्योरेंस में क्या-क्या चीजें कवर नहीं होतीं या वे कौन-सी बीमारियां हैं जो एक खास समय सीमा के बाद कवर होती हैं। वे कौन-सी बीमारियां हैं, जो कभी कवर नहीं होंगी।
पॉलिसी के साथ आप कौन-से एडिशनल कवर ले सकते हैं?
पॉलिसी के साथ कंपनियां कुछ एडिशनल कवर भी ऑफर करती हैं। उनके बारे में भी पूछें। थोड़ा-सा प्रीमियम बढ़ाने पर ये कवर मिल जाते हैं। ध्यान रखें, टॉप-अप लेने के बाद हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी वेटिंग पीरियड देती है। टॉप-अप का मतलब है कि आपके पास जितने का हेल्थ इंश्योरेंस है, उससे ज्यादा का लेना। मान लीजिए, आपके पास 5 लाख रुपये का हेल्थ इंश्योरेंस है और आपको लगता है कि जरूरत पड़ने पर यह काफी कम रह सकता है और आप चाहते हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस 8 लाख रुपये का हो तो आप 3 लाख रुपये का टाॅप-अप ले सकते हैं। टॉप-अप लेने पर प्रीमियम भी बढ़ जाता है।
क्या किसी खास इलाज के लिए कोई खास लिमिट है?
कुछ इलाज ऐसे होते हैं, जिनके लिए इंश्योरेंस कंपनियां एक खास लिमिट तय कर देती हैं। सम इंश्योर्ड कितना भी बड़ा क्यों न हो, आपको उस इलाज पर तय रकम से ज्यादा नहीं दी जाएगी। इनके बारे में पता करें।
पोर्टेबिलिटी के नियम पूछें?
एजेंट से पूछें कि अगर कभी पॉलिसी को पोर्ट (एक कंपनी से दूसरी कंपनी में जाना। सिम कार्ड की तरह) कराना पड़े तो क्या नियम होंगे? पोर्टेबिलिटी की कुछ शर्तें हैं तो उनके बारे में भी पता करें।
कंपनी का क्लेम सेटलमेंट कैसा है?
जिस कंपनी की पॉलिसी ले रहे हैं, उसके क्लेम सेटलमेंट रेश्यो को देखें और दूसरी कंपनियों से उसकी तुलना करें। क्लेम सेटलमेंट में बेहतर कुछ कंपनियां:
हेल्पलाइन – अगर किसी शख्स को लगता है कि हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी ने गलत वजह बताकर मेडिक्लेम रिजेक्ट किया है तो बीमा देने वाली कंपनी को शिकायत करें। कंपनी की ई-मेल आईडी कंपनी की वेबसाइट पर होती है। अगर बीमा कंपनी 15 दिनों में शिकायत का निपटरा न करे तो भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के पास शिकायत करें:
वेबसाइट: irda.gov.in
टोल-फ्री नंबर: 1800-4254-732
(सोमवार से शनिवार सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक)
ईमेल आईडी: [email protected]
अगर कहीं से कोई सुनवाई न हो या फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो उपभोक्ता अदालत का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं।
(साभार – नवभारत टाइम्स)
कालाजार के खिलाफ जागरूकता फैला रही है पिंकी की पाठशाला
देवरिया । बीमारियां लोगों के जीवन को प्रभावित करती है। कई बार जीवन के साथ ही जाती है। कई लोग बीमारी को हराने के बाद उसको याद नहीं करना चाहते। उस दर्द भरे पल को भूल जाना चाहते हैं। लेकिन, कुछ लोग उस प्रकार के दर्द से लोगों को निजात दिलाने की मुहिम पर जुट जाते हैं। बताते हैं अगर छोटी-छोटी सावधानियां बरती जाए तो संक्रामक रोगों से बचा जा सकता है। जागरूकता कई प्रकार की बीमारियों के लिए काफी जरूरी होती है। कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी के काल में हमने जागरूकता का प्रभाव देखा है। कालाजार भी ऐसी ही बामारी है। संक्रमण लोगों को तोड़ती है। दर्द देती है। कालाजार से पीड़ित पिंकी ने जिस दर्द को सहा था, अब उसे लोगों के बीच ले जा रही हैं। उन्हें एहतियात बरतने की सलाह देती हैं। देवरिया की पिंकी चौहान की पाठशाला हर जगह चलती है। लोगों के बीच जागरूकता फैला रही पिंकी अब साइकिल वाली दीदी के रूप में भी जानी जाने लगी है। कालाजार आज के समय में देश में एक बड़े वर्ग को अपनी चपेट में लेती है, लेकिन पिंकी इस रोग को हराने की मुहिम में जुटी हैं।
क्या है पिंकी की पाठशाला?
कॉलेज में पढ़ाई करने वाली पिंकी चौहान 19 वर्ष की हैं। वे अपने साथ कलरफुल पिक्चर बुक लेकर चलती हैं। यूपी के देवरिया जिले के घरों में उनके बैग में पड़ी इस किताब को पिंकी की पाठशाला के नाम से जाना जाता है। पिंकी अपनी पाठशाला में कालाजार रोग से निपटने की जानकारी देती हैं। राज्य सरकार के स्कूलों में भी वह इस रोग के बारे में बताती हैं। पिंकी कालाजार सर्वाइवर हैं। वर्ष 2015 में जब वह 12 साल की थी, तब उन्हें कालाजार हुआ था। वह अभी तक उस दर्द को भुला नहीं पाई हैं। पिंकी को जब कालाजार हुआ तो वह इस रोग को मात देने में सफल रही। लेकिन एक साल बाद कालाजार का दोबारा अटैक हुआ। पोस्ट कालाजार इंफेक्शन ने उनकी त्वचा को प्रभावित किया। उन दिनों को याद कर आज भी पिंकी सिहर उठती है। उनके अभियान को उनके माता-पिता का भी सहयोग मिला हुआ है।
पिंकी उन दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि दोनों बार बीमारी में मुझे परेशान किया। पोस्ट ट्रीटमेंट के दौरान दिक्कतों का सामना करना पड़ा। साथ ही, पैसे भी काफी खर्च हो गए। जब मैंने इस रोग को मात दी, तब मुझे लगा कि कुछ चीजों को नजरअंदाज किए जाने के कारण इस प्रकार की स्थिति का मुझे सामना करना पड़ा। कालाजार का मुख्य कारण सैंड फ्लाई होता है। वैश्विक स्तर पर संक्रमण इसी मच्छर से फैलता है। इसका ट्रीटमेंट भी काफी सामान्य है। पिंकी कहती हैं कि कालाजार के रोग ने मेरे ऊपर काफी असर डाला और इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए मुझे दिमागी तौर पर मजबूत किया। पिंकी ने जब इस प्रकार की मुहिम शुरू की तो उनके माता-पिता जनार्दन चौहान और प्रभावती ने इसके लिए अनुमति दे दी। पिंकी अभी 12वीं कक्षा में पढ़ाई करती हैं और लोगों को जागरूक कर रही हैं।
यूपी सरकार की मुहिम से जुड़ी पिंकी
नवंबर 2021 में पिंकी उत्तर प्रदेश सरकार के सामुदायिक जागरूकता अभियानों से जुड़ीं। कालाजार के रोग को लेकर उन्होंने जागरूकता फैलानी शुरू की। पिंकी कहती है कि इस प्लेटफार्म के जरिए मुझे मौका मिला है। मैं इस रोग के बारे में लोगों को बता सकती हूं। मेरे दिमाग में जो इस रोग को लेकर समझ है। इस विषय के बारे में जानकारी है। उसे लोगों को समझा सकती हूं। यह मेरे उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक साबित हुआ है। अप्रैल 2022 में पिंकी ने अपने संस्थान बबन सिंह इंटरमीडिएट कॉलेज रतसरैया से अभियान की शुरुआत की। देवरिया जिले के ही बुद्ध महाविद्यालय रतसरैया में उनका अगला कार्यक्रम हुआ। इसके बाद जुलाई से वह स्कूलों और सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू किया। पिंकी की साइकिल जिले के विभिन्न इलाकों तक पहुंचती है। हर रोज वह 20 लोगों से संपर्क करती हैं।
पिंकी मुख्य रूप से महिलाओं और परिवार के साथ बातचीत करती हैं। कालाजार के रोग को लेकर वह परिवार के साथ बैठकर उन्हें इस रोग के बारे में जानकारी देती है एक प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी की तरह वे रोग के बारे में बात करती दिखाई देती है। रोग के संकेतों और सिम्पटम के बारे में बताती हैं। रोग के संकतों की उपेक्षा न करने की सलाह देती हैं। अगर लोगों के तमाम सवालों का जवाब देती हैं।
छोटे मच्छर से होती है बड़ी बीमारी
कालाजार रोग के बारे में बात करते हुए पिंकी कहती हैं कि मच्छरों के बारे में कौन नहीं जानता है? लेकिन, कालाजार का कारण सैंडफ्लाई, सामान्य मच्छरों से 50 से 60 गुना तक छोटी होती है। सामान्य आंखों से इसे देख पाना संभव नहीं होता है। यह छोटा मच्छर आदमी के स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है। सैंडफ्लाई पर रोक लगाने के लिए वह कुछ एहतियात बरतने की सलाह देती हैं। कहती है कि सैंडफ्लाई मुख्य रूप से छोटे-छोटे छेदों, नाम दीवार और गौशालाओं में पनपते हैं। इन स्थानों पर मच्छररोधी का प्रयोग कर इस पर रोक लग सकती है। साथ ही, वे लोगों को मच्छरों से बचाव के लिए पूरे बांह के शर्ट और फुल पैंट या पजामा पहनने की सलाह देती है।
10 हजार बच्चों को कर चुकी हैं जागरूक
पिंकी ने अब तक देवरिया जिले के करीब 10 हजार बच्चों के बीच कालाजार रोग के बारे में जागरूकता फैलाई है। स्कूल स्तर पर कार्यक्रमों के दौरान इस रोग के बारे में वे बच्चों को जागरूक करती हैं और संदेश परिवार तक पहुंचाने की बात करती हैं। दरअसल, देवरिया उत्तर प्रदेश के उन चार जिलों में शामिल है, जहां पर कालाजार रोग के सबसे अधिक रोगी पाए जाते हैं। पिंकी ने बनघटा ब्लाक के करीब 1200 घरों तक भी पहुंच कर उन्हें इस रोग के बारे में जानकारी दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि रोग को लेकर पिंकी का व्यक्तिगत और सामुदायिक जागरूकता का प्रयास स्वास्थ्य अधिकारियों और सरकारी मशीनरी को बड़ा सहयोग दे रहा है। राष्ट्रीय वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के अतिरिक्त निदेशक डॉ. बीपी सिंह कहते हैं कि हर छोटा प्रयास महत्वपूर्ण होता है। कालाजार पर 2023 के अंत तक पूरी तरह से रोक लगाने की योजना है। ऐसे में पिंकी का प्रयास काफी महत्वपूर्ण है। लोगों को इस रोग के प्रति जागरूकता अभियान में जुड़ना चाहिए। व्यक्तिगत और सामुदायिक प्रयासों से लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
कालाजार के प्रभाव में 16.5 करोड़ की आबादी
कालाजार एक जटिल वेक्टर जनित रोग है। वर्तमान समय में इस रोग के प्रभाव वाले इलाकों में करीब 16.5 करोड़ लोग आते हैं। देश के 54 जिलों में इस रोग का प्रभाव दिखता है। उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में इस रोग का प्रभाव है। 19वीं शताब्दी में प्रोटोजोआन स्पेसीज लीजमेनिया डोनावानी ने इस कालाजार रोग को जन्म दिया। काला मतलब ब्लैक और अजार मतलब डिजीज कह जाता है। इस रोग के रोगी के चमड़े पर काले धब्बे बन जाते हैं। इस कारण यह नाम पड़ा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कालाबाजार को पूरी तरह से 2030 तक समाप्त करने की योजना पर काम शुरू किया है। वहीं, भारत सरकार 2023 का रोड मैप तैयार कर काम कर रही है।
वायु सेना में अब महिलाएं भी बन सकेंगी गरुड़ कमांडो
नयी दिल्ली । भारतीय वायु सेना (आईएएफ) ने महिला अधिकारियों को अपनी स्पेशल फोर्स यूनिट गरुड़ कमांडो बल में शामिल होने की अनुमति दे दी है। वायु सेना के इस फैसले के पीछे का मुख्य उद्देश्य एयरफोर्स में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना है।
बल में शामिल होने के लिए महिलाओं को एयरफोर्स के चयन मानदंडों को पूरा करना होगा। इस मुद्दे से परिचित एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर यह जानकारी दी। एक अधिकारी ने बताया कि एलीट विंग में महिलाओं को शामिल करने का फैसला पिछले साल लिया गया था लेकिन जानकारी अब सामने आई है। दूसरी ओर भारतीय नौसेना ने भी महिलाओं के लिए अपने दरवाजे को खोलने का फैसला किया है। नौसेना अपने स्पेशल कमांडो फोर्स (मार्कोस) में सेवा देने के लिए महिलाओं की भर्ती की अनुमति देगा।
जरूरी मानदंडों को पूरा करना होगा
इसके बाद अब यह साफ हो गया है कि अगर महिलाएं इसके लिए सभी जरूरी मानदंडों को पूरा करती हैं, तो वे अब समुद्री कमांडो (मार्कोस) बन सकती हैं। दोनों सेवाओं के अधिकारियों ने कहा है कि उन्होंने स्पेशल फोर्स में महिलाओं को शामिल करने की अनुमति दे दी है। यह बात भी है कि इसके लिए चयन या प्रशिक्षण मानकों में कोई कमी नहीं होगी।
तीनों सेनाओं के जवानों में कुछ का होता है चयन
सेना, नौसेना और वायु सेना के कुछ सबसे मजबूत सैनिकों को शामिल करके उनकी स्पेशल फोर्स बनाई जाती है। इन स्पेशल फोर्स का इस्तेमाल किसी बड़े ऑपरेशन में ही किया जाता है। इनकी ट्रेनिंग काफी कठिन मानी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान इनको हर चीज से वाकिफ कराया जाता है। दुश्मन को कैसे मात देना है, जिसकी सुरक्षा में लगे हैं उसको कैसे सुरक्षित रखना है आदि के बारे में पूरी ट्रेनिंग दी जाती है। इनको खतरनाक मिशनों को अंजाम देने के लिए ही तैयार किया जाता है। ये कमांडो हर तरह की परिस्थितियों में ऑपरेशन का अंजाम देने में सक्षम रहते हैं।
एयर इंडिया खरीद सकती है 500 नए एयरक्राफ्ट्स
नयी दिल्ली । एयर इंडिया 500 नए एयरक्राफ्ट्स खरीदने को लेकर जल्द ही एक बड़ा ऑर्डर दे सकती है। इसे एयर इंडिया के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी डील बताया जा रहा है । मीडिया रिपोट्स में सूत्रों के हवाले से यह दावा किया गया है । कंपनी 400 छोटे जहाज और 100 बड़े जिनमें एयरबस ए350 एस, बोइंग 787एस और बोइंग 777एस का ऑर्डर दे सकती है।
मीडिया रिपोट्स के मुताबिक अभी तक एयरबस और बोइंग इस डील को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है । वहीं टाटा ग्रुप की तरफ से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है । इस बीच एयर इंडिया ने आचार नीति (एथिक्स) संचालन ढांचा स्थापित किया है । एयरलाइन में आचार-संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए वह शीर्ष स्तर के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तरों पर भी समितियां बना रही है । एक आंतरिक दस्तावेज से यह जानकारी मिली ।
आचार नीति संचालन ढांचा
शीर्ष आचार समिति की स्थापना वरिष्ठ नेतृत्व स्तर पर की गई है। एयर इंडिया के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी कैंपबेल विल्सन इसके प्रमुख हैं तथा एयरलाइन के मुख्य आचारनीति सलाहकार, मुख्य मानव मानव संसाधन अधिकारी, मुख्य वित्त अधिकारी एवं मुख्य परिचालन अधिकारी इस समिति के सदस्य हैं ।
यह समिति आचार संबंधी दिशानिर्देश तैयार करेगी, आचार से जुड़ी नीति एवं प्रक्रियाओं को मंजूरी देगी और क्षेत्रीय आचार समितियों के लिए अंतिम केंद्र के तौर पर काम करेगी । एयर इंडिया ने आंतरिक दस्तावेज में कर्मचारियों को यह भी सूचित किया कि विस्तारा के गुरजोत माल्ही को कंपनी का मुख्य आचारनीति परामर्शक नियुक्त किया गया है ।