Monday, August 4, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 143

शिक्षा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी से आ सकता है परिवर्तन – वी एन राजशेखरन पिल्लई

कोलकाता । हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने बी.टेक, एम.टेक और एमसीए बैच-2022 के छात्रों के लिए गत 7 जनवरी 2022 को अपना छठा दीक्षांत समारोह आयोजित किया । इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष एवं सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय, मुंबई के वीसी प्रो. वीएन राजशेखरन पिल्लई, रेव. सेंट जेवियर्स यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. जॉन फेलिक्स राज और इमामी समूह के संस्थापक एवं सह चेयरमैन मि. आर.एस. गोयनका उपस्थित थे ।
उद्घाटन भाषण के दौरान प्रो. पिल्लई ने जोर देकर कहा कि प्रौद्योगिकी ने भारत के शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन किया है। “शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य न केवल मानव जाति के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाना है। कोविड के वर्षों के दौरान, भारत ने शिक्षा क्षेत्र में सबसे अधिक साझीदारी देखी और उन वर्षों के दौरान, नई शिक्षा नीति की शुरुआत से लेकर इस क्षेत्र में विभिन्न विकास हुए। इसके अलावा, तकनीकी विकास ने शिक्षा के परिवर्तन में अत्याधिक सहायता की । “यह एक प्रतियोगिता नहीं बल्कि एक सहभागिता है जो आज शिक्षा में सबसे ज्यादा मायने रखती है। रेव डॉ. फेलिक्स राज ने स्नातकों को बधाई दी और जीवन के नए चरण पर बात की और कहा, “आपको इस समाज में दूसरों के लिए रोशनी दिखाने वाली मोमबत्ती की तरह चमकना चाहिए,” रेव डॉ। फेलिक्स राज युवा स्नातकों को अपने संबोधन के दौरान। उद्योगपति आर. एस. गोयनका ने युवाओं से राष्ट्र निर्माण में योगदान देने का आह्वान किया ।
दीक्षांत समारोह का उद्घाटन एमएकेएयूटी के वीसी सैकत मैत्र ने किया और सभी विद्यार्थियों को बधाई दी ।
संस्थान से बी.टेक में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशंस स्ट्रीम की सुष्मिता गांगुली अव्वल रही जिसने 9.76 सीजीपीए स्कोर किया । एम.टेक में एप्लाइड इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग स्ट्रीम से स्वागता बारिक सबसे आगे रही जिसने 10 में से 10 सीजीपीए स्कोर किया ।
इस अवसर पर हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन एच.के. चौधरी , हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के सीईओ प्रदीप अग्रवाल, हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रिंसिपल प्रो. बासव चौधरी, वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग, एडुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (डब्ल्यूबीयूटीटीईपीए) की वीसी प्रो. सोमा बंद्योपाध्याय, एचआईटीके के संस्थापक निदेशक प्रो. बी. बी. पैरा, एचआईटीके के पूर्व प्रिंसिपल प्रो. डी.सी. राय, केबीटी के निदेशक प्रबीर राय समेत अन्य अतिथि उपस्थित थे । समारोह में 600 से अधिक स्नातकों ने अपने माता-पिता के साथ भाग लिया। हेरिटेज के शिक्षकों एवं प्रशासनिक कर्मियों ने पूरे कार्यक्रम को सफल बनाया ।

विद्यासागर विश्वविद्यालय में विश्व हिन्दी दिवस’ का आयोजन

मिदनापुर । विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर काव्यपाठ, कविता-कोलाज एवं विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ विभाग की छात्रा श्रेया सरकार ने ‘ बीती विभावरी जाग री’ स्वागत गीत के साथ किया। स्वागत वक्तव्य देते हुए विभागाध्यक्ष डॉ प्रमोद कुमार प्रसाद ने कहा कि विश्व हिन्दी दिवस की पृष्ठभूमि में हिंदी के वैश्विक प्रसार की भावना है।इस अवसर पर राया सरकार, श्रेया सरकार, नेहा शर्मा, प्रगति दूबे, प्रिंसू कुमारी और लक्ष्मी यादव ने कविता कोलाज और सुषमा कुमारी, संजीत कुमार ,नाजिया सरवर, लक्ष्मी यादव, सत्यम पटेल, मुस्कान अग्रवाल, पूजा कुमारी ने काव्यपाठ किया। विभाग के शोधार्थी मिथुन नोनिया, उष्मिता गौड़, मदन शाह एवं सोनम सिंह ने विश्व मंच पर हिंदी की उपस्थिति और उसके प्रसार पर अपना विचार रखा। बतौर वक्ता डॉ संजय जायसवाल ने कहा हिंदी का चरित्र समावेशी है।यह भाषा-विरोध की जगह भाषायी-संवाद और सृजन के संस्कार से आगे बढ़ी है।इसमें ज्ञान-विज्ञान, तकनीक और वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप विकास करने की क्षमता है।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. दामोदर मिश्र ने हिन्दी भाषा एवं विश्व हिन्दी दिवस की एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में बताते हुए कहा हिन्दी को जब राजभाषा का दर्जा मिला उसके साथ अंग्रेजी विकल्प के रुप में उपस्थित थी। अब उस विकल्प की जरूरत नहीं है। आज हिन्दी सक्षम हो गई है। हिन्दी के बिना भारतवर्ष नहीं चल सकता। वर्तमान समय में हिन्दी का प्रयोजन है इसलिए हम चाहे न चाहे हिन्दी का विस्तार होता रहेगा। धन्यवाद ज्ञापन देते डॉ श्रीकांत द्विवेदी ने कहा कि हिंदी का यह सफर हमारी प्रतिबद्धता और रचनाधर्मिता से और अधिक व्यापक और अर्थपूर्ण होगा। कार्यक्रम का सफल संचालन रिया श्रीवास्तव ने किया।

भवानीपुर कॉलेज के शिक्षकों ने विवेकानंद जयंती पर बेलूर मठ का अवलोकन 

जल मार्ग से पहुँचे बेलूर मठ

कोलकाता । भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज के शिक्षक और शिक्षिकाओं ने विवेकानंद जयंती पर बेलूर मठ का अवलोकन किया। मिलेनियम पार्क से एम वी मत्स्य कन्या वेसल द्वारा भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज के प्रातःकालीन सत्र के शिक्षकों ने जल मार्ग द्वारा बेलूर मठ तक की यात्रा की। विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। हर साल भारत सरकार की ओर से सन् 1984 से ही राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। कॉलेज ने भी युवा दिवस मनाया जिसमें विद्यार्थियों को योग अभ्यास करवाया गया।
बेलूर मठ में रामकृष्ण मिशन द्वारा आयोजित विवेकानंद जयंती पर स्थानीय स्कूल की छात्राओं द्वारा कई कार्यक्रमों को देखने तथा स्वामी विवेकानंद के मार्ग का अनुशरण करने वाले स्वामी जी के चरित्र निर्माण के निमित्त वक्तव्य सुनने के अवसर मिले ।स्वामी विवेकानंद एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे।उनका देशप्रेम किसी से छिपा नहीं है। वह लोगों की मदद करने से कभी भी पीछे नहीं हटते थे, बल्कि लोगों की सेवा करने को वह ईश्वर की पूजा करने के बराबर मानते थे।स्वामी विवेकानंद आज भी करोड़ों युवाओं को प्रेरणा देते हैं।
डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि हुगली नदी के दोनों तटों के मध्य से गुजरते हुए लगभग 36 शिक्षकों ने क्रूज़ पर सुबह का नाश्ता किया और गेम खेले। मत्स्य कन्या क्रूज़ ने सभी को आकर्षित किया। हावड़ा स्टेशन, नया शिव मंदिर, भूतनाथ मंदिर आदि विभिन्न स्थानों को दूर से देखते हुए हावड़ा ब्रिज के नीचे से गुजरते हुए सभी ने जल मार्ग का आनंद लिया। इस यात्रा का संयोजन किया डीन प्रो दिलीप शाह, प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी, प्रो दिव्या उदेशी, समीक्षा खंडूरी ने । शिक्षक और शिक्षिकाओं ने विवेकानंद जयंती पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी का निधन


प्रयागराज: बंगाल के पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ भाजपा नेता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के पूर्व अध्यक्ष पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी का आज सुबह पांच बजे यहां निधन हो गया। वह 88 साल के थे। कुछ दिन पहले ही उन्हें सांस में दिक्कत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। स्वास्थ्य में सुधार होने पर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी। स्वजन उन्हें घर ले गए थे। केशरीनाथ त्रिपाठी के निधन पर राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने शोक प्रकट करते हुए परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की है।  पंडित केसरी नाथ त्रिपाठी अपने पीछे पुत्र अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी और दो बेटियों को छोड़ गए हैं। पूर्व राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी के निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भी शोक जताया है। लगभग 11.30 बजे राष्ट्रपति ने पूर्व राज्यपाल के पुत्र नीरज त्रिपाठी को फोन पर सांत्वना दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहुंचने वाले हैं। उनके साथ पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह भी आ रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने निवास पर पहुंचकर सांत्वना दी। राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी , स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती भी निवास पर संवेदना व्यक्त करने पहुंचे। श्रद्धांजलि व्यक्त करने वालों का पहुंचना लगातार जारी है। पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी का जन्म 10 नवंबर 1934 को हुआ था। उनकी गिनती बीजेपी के सीनियर नेताओं में होती थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ ही साथ वह कई सालों तक यूपी विधानसभा अध्यक्ष के पद पर भी काबिज रहे। वह तीन बार यूपी विधानसभा अध्यक्ष रहे। इसके अलावा वह भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश ईकाई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी 2014 से 2019 तक पश्चिम बंगाल के गवर्नर रहे इस बीच उन्हें बिहार, मेघालय और मिजोरम राज्यों का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया था।

सौजन्य एवं सामंजस्य – जब साहित्यकार के सामने झुके एक सीएम

नयी दिल्‍ली । यह तस्‍वीर खास है। सिर्फ इसलिए नहीं कि इसमें दो जानी-मानी शख्‍सीयतें हैं। अलबत्‍ता इसलिए भी कि यही हमारे संस्‍कार हैं। हमारी संस्‍कृति है। यह उस दौर की तस्‍वीर है जब साहित्‍य के सम्‍मान में सत्‍ता नतमस्‍तक होती थी। जब किसी और चीज के बयाज व्‍यक्तित्‍व और मूल्‍यों को सर्वोपरि रखा जाता था। अब एक सवाल आपके मन में जरूर उठ रहा होगा कि आखिर ये दोनों कौन हैं? यह कब की तस्‍वीर है? इस तस्‍वीर में झुककर आशीर्वाद लेने वाले हैं मध्‍य प्रदेश के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र। काला चश्‍मा पहने जिन बुजुर्ग के द्वारका प्रसाद मिश्र पैर छू रहे हैं वह कोई और नहीं बल्कि जाने-माने कवि और लेखक माखनलाल चतुर्वेदी हैं। यह तस्‍वीर 1965 की बताई जाती है।

कव‍ि, लेखक और स्‍वतंत्रता सेनानी थे माखनलाल चतुर्वेदी
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम जिले के बाबई गांव में 4 अप्रैल 1889 को हुआ था। उनके पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी था। 16 साल की उम्र में ही माखनलाल स्‍कूलटीचर बन गए थे। बाद में प्रभा, प्रताप और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठित पत्रों का उन्‍होंने संपादन किया। इनके जरिये उन्‍होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार धावा बोला। वह कवि, लेखक, संपादक के साथ सच्‍चे क्रांतिकारी भी थे। हिंदी साहित्‍य के छायावाद में उन्‍होंने बड़ा योगदान दिया। 1955 में हिमतरंगिनी के लिए उन्‍हें पहला साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार मिला। 1963 में उन्‍हें पद्म भूषण से नवाजा गया। 30 जनवरी 1968 में उनका निधन हो गया था।

मध्‍यप्रदेश के चौथे सीएम थे द्वारका प्रसाद मिश्र
द्वारका प्रसाद मिश्र मध्‍यप्रदेश के चौथे सीएम थे। राजनीतिज्ञ होने के साथ ही वह लेखक, स्‍वतंत्रता सेनानी और पत्रकार भी थे। 30 सितंबर 1963 से 29 जुलाई 1967 तक उन्‍होंने एमपी का सीएम पद संभाला। वह कांग्रेस के सदस्‍य थे। द्वारका प्रसाद मिश्र का जन्‍म 1901 में उन्‍नाव के पड़री गांव में हुआ था। चंद्रभानु गुप्‍ता के साथ उन्‍होंने 1967 के चुनाव के बाद इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई के बीच पावर शेयरिंग फॉर्मूला में बड़ी भूमिका निभाई थी। इसकी वजह से देसाई को उपप्रधानमंत्री का पद मिला था। लेकिन, यह समझौता 1969 में टूट गया था। इसके बाद कांग्रेस विभाजित हुई थी। 87 साल की उम्र में 1988 में द्वारका प्रसाद मिश्रा का निधन हो गया था।
यह तस्‍वीर कई लिहाज से महत्‍वपूर्ण है। इससे उस समय के मूल्‍यों का पता चलता है। इसमें सत्‍ता और साहित्‍य के बीच अनूठा रिश्‍ता दिखता है। इसमें देखा जा सकता है कि राज्‍य का मुखिया होते हुए भी मिश्र बिना संकोच अपने से बड़े और ख्‍यातिप्राप्‍त कवि को सम्‍मान देने के लिए किस सहज भाव से झुक रहे हैं। यही हमारे संस्‍कार और संस्‍कृति रही है।
(स्त्रोत – नवभारत टाइम्स)

ब्रिटेन में छाया कोलकाता का स्वाद, लंदन की सड़कों पर झालमूढ़ी बेच रहा शख्स

लंदन । अपनी संस्कृति की दुनियाभर में लोकप्रियता जानने का सबसे अच्छा तरीका विदेशों की सड़कों पर अपने स्थानीय खाने को बिकते देखना है। ब्रिटेन की सड़कों पर झालमुड़ी (भेलपूरी) बिकते देखना इस बात का सबूत है कि भारत की संस्कृति पूरी दुनिया में फैली हुई है। ब्रिटेन की गलियों में भेलपूरी बेचते हुए एक बूढ़े व्यक्ति के वीडियो में कुछ लोगों को चौंका दिया है। भेलपूरी भारत का एक लोकप्रिय स्नैक है जिसे देश के अधिकांश हिस्सों में लोग खाना पसंद करते हैं। यह वीडियो दुनिया के अलग-अलग देशों में बसे प्रवासी भारतीयों के मुंह में पानी ला सकता है। यह वीडियो अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तेजी से शेयर हो रहा है। कहा जा रहा है कि ब्रिटिश शख्स को अपनी भारत यात्रा के दौरान भेलपूरी से ‘प्यार’ हो गया था। भेल बेच रहे शख्स की पहचान एंगस डेनून के रूप में हुई है जो एक शेफ हैं। वीडियो लंदन के ओवल का है जिसमें वह भेलपूरी बेचते देखे जा सकते हैं। भारत के पूर्वी हिस्से में भेलपूरी को ‘झालमूढ़ी’ कहते हैं। डेनून एक पूर्व ब्रिटिश शेफ हैं। 2019 वर्ल्ड कप के दौरान ओवल के बाहर कागर के कोन में ‘झालमुड़ी’ बेचते हुए उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। इसके बाद वह इंटरनेट सेंसेशन बन गए थे। डेनून को 2005 में अपनी भारत यात्रा के दौरान कोलकाता में उन्हें लोकप्रिय स्ट्रीट फूड झालमुड़ी से प्यार हो गया था। अपने देश ब्रिटेन वापस लौटने पर उन्होंने फुल-टाइम जॉब से इस्तीफा दे दिया और झालमुड़ी बेचने लगे। आज वह झालमुड़ी और अन्य भारतीय स्ट्रीट फूड जैसे पानीपुरी, लस्सी और चाय आदि बेचने का एक बेहद सफल बिजनेस चलाते हैं। सड़क किनारे उनके साथ उनकी रोडसाइड वैन को भी देखा जा सकता है जिस पर लिखा है- एवरीबडी लव,  लव झालमूढ़ी एक्सप्रेस  लंदन में अपने देश के स्वाद को याद करने वाले भारतीयों के लिए डेनून एक अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं।

युवाओं को भा रहा है स्टार्टअप्स में काम करना – सर्वे

नयी दिल्ली । देश में युवाओं को स्टार्टअप में नौकरी करना ज्यादा पसंद आ रहा है। जॉब की तलाश करने वाले ज्यादातर लोग स्टार्टअप में नौकरी करना पसंद कर रहे हैं। यह बात मिंट और शाइन टैलेंट इनसाइटस की एक रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक, नौकरी की तलाश करने वाले 79 फीसदी लोग स्टार्टअप में नौकरी करने को पहले नंबर पर रखते हैं। इस सर्वे में विभिन्न सेक्टरों के 820 सीनियर ह्यूमन रिसोर्स एक्जिक्‍यूटिव्‍स को शामिल किया गया था। चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले साल स्टार्टअप के क्षेत्र में 17 हजार से ज्यादा लोगों की छंटनी हुई थी। आईटी कंपनियां जिस तरह से बड़े पैमाने पर ज्वाइनिंग करती हैं, उसे देखते हुए यह जूनियर और मिडिल क्लास मैनेजमेंट के लिए एक महत्वपूर्ण सेक्टर बना हुआ है। देश में स्टार्टअप बड़े पैमाने पर इंजीनियरों की भर्ती कर रहे हैं।सर्वे के मुताबिक, 79 फीसदी लोगों को लगता है कि स्टार्टअप में ज्यादा सैलरी, स्टॉक ऑप्शन, कॅरियर में तेजी से बढ़ने और नया सीखने का मौका मिलता है। सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि स्टार्टअप में फाउंडर और कर्मचारी अक्सर एक साथ काम करते हैं। ऐसे में इंफार्मेशन, आइडिया और आने वाली मुश्किलों को किस तरह से सुलझाना है इसपर सब मिलकर काम करते हैं। यह किसी बड़े आर्गेनाइजेशन की तुलना में ज्यादा तेज होता है। स्टार्टअप में काम तेजी से होता है। इसके अलावा कॅरियर में भी तेजी से आगे बढ़ने का मौका मिलता है। स्टार्टअप में नौकरी की एक वजह यह भी है कि यहां पर बड़ी कंपनियों की तुलना में सैलरी ज्यादा मिलती है। इसी के साथ लोगों को यह भी लगता है कि स्टार्टअप में काम करके वो दो से तीन साल में खुद का स्टार्टअप भी शुरू कर सकते हैं। अक्टूबर से दिसंबर तिमाही के दौरान किए गए इस सर्वे में पता चला है कि अधिकारी नई दौर की फर्मों में तुरंत निर्णय लेने वालों को प्राथमिकता देते हैं। इस सर्वे में यह भी सामने आया है कि फंड में कमी और ग्लोबल मंदी के बावजूद स्टार्टअप पसंदीदा इंडस्ट्री बने हुए हैं। वहीं पिछली दो तिमाहियों में बड़ी टेक फर्मों ने छंटनी के साथ नियुक्तियां बंद करने की घोषणा की है। इससे स्टार्टअप सॉफ्टवेयर डेवलपर्स, कोडर और एआई व मशीन लर्निंग विशेषज्ञों के लिए एक व्यवहारिक विकल्प बन गए हैं।

अब घरेलू प्रवासी कहीं भी दे पाएंगे वोट, चुनाव आयोग विकसित किया रिमोट वोटिंग सिस्टम

नयी दिल्ली । पिछले साल 29 दिसबंर को चुनाव आयोग ने वोट प्रतिशत बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम आगे बढ़ाया, जब आयोग ने रिमोट ईवीएम या आरवीएम सिस्टम को डेवलेप किया। इसकी मदद से प्रवासी नागरिक बिना गृह राज्य आए वोट डाल पाएंगे। चार साल पहले टीओआई ने ‘लॉस्ट वोट्स’ मुहिम के जरिए उन लाखों प्रवासी भारतीयों की परेशानी को उजागर किया था, जो वोट देना चाहते थे लेकिन इसके लिए भारत आना उनके लिए मुश्किल था। इस सिस्टम के सामने आने के बाद ऐसे लोग भी वोट डाल पाएंगे। चुनाव आयोग ने देश की सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को रिमोट वोटिंग सिस्टम की लीगल, प्रशासनिक और तकनीकी पहलुओं की जानकारी देने के लिए पत्र लिखा है। आयोग ने 31 जनवरी तक इन पार्टियों से इस पर फीडबैक भी मांगा है। लेकिन आखिर ये रिमोट वोटिंग सिस्टम है क्या और ये कैसे काम करेगा? आइए बताते हैं।

रिमोट वोटिंग की जरूरत
भारत में करीब एक तिहाई आबादी वोट नहीं देते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 30 करोड़ लोगों ने वोट ही नहीं दिया। ये संख्या अमेरिका की कुल आबादी के बराबर है। चुनाव आयोग ने लोगों के वोट न देने के तीन कारण बताए। इसमें शहरों में चुनाव के प्रति उदासीनता, युवाओं की कम भागीदारी और प्रवासी नागरिकों का दूर रहना शामिल है। रिमोट वोटिंग सिस्टम इन्हीं प्रवासी लोगों के लिए काम करेगा।

क्या कहते हैं नियम?
फिलहाल समस्या यह है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 19 के तहत मतदाता केवल उसी निवार्चन क्षेत्र में वोट डाल सकता है, जहां को वो निवासी है। अगर आप नौकरी या पढ़ाई की वजह से किसी दूसरी शहर या राज्य में शिफ्ट हो गए हैं, तो आपको उस जगह का नया वोट बनवाना होगा और पुरानी वोटर लिस्ट से अपना नाम भी हटवाना पड़ेगा। लेकिन ये प्रक्रिया काफी जटिल है इसलिए कई लोग नए सिरे से वोट बनवाने की जहमत नहीं उठाते। इसकी सबसे बड़ी ये है कि वो ये नहीं जानते कि नई जगह पर वो कितने वक्त तक रहेंगे।

नियम यह भी है कि वोटर्स को मतदान केंद्र पर जाकर ही वोट देना होता है। पोस्टल बैलेट का ऑप्शन केवल चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारी, आवश्यक सेवाओं में लगे सरकारी कर्मचारी, 80 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग, दिव्यांग और कोविड पॉजिटिव वोटर्स के लिए है। 2015 में घरेलू प्रवासियों को मतदान के अधिकार से वंचित करने के एक मामले की सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से रिमोट वोटिंग के ऑप्शन पर विचार करने के लिए भी कहा था।

चुनाव आयोग ने क्या कदम उठाए?
सुप्रीम कोर्ट के विचार के बाद 29 अगस्त 2016 को चुनाव आयोग के पैनल के प्रतिनिधियों और राजनीतिक पार्टियों के बीच इसे लेकर चर्चा शुरू हुई। आयोग के पैनल ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) की एक स्टडी को देखा, जिसमें घरेलू प्रवासन से मतदान पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया था। इस स्टडी में सरकारी मंत्रालय, संगठनों और एक्सपर्ट्स के साथ चर्चा करके एक रिपोर्ट तैयार की गई थी।

प्रवासी मतदाताओं के लिए इंटरनेट वोटिंग, प्रॉक्सी वोटिंग, तय तारीख से पहले मतदान और पोस्टल बैलेट जैसे समाधानों पर विचार किया गया, लेकिन चुनाव आयोग ने इनमें से किसी की सिफारिश करने से परहेज किया। इसके बजाय आयोग ने मतदाता सूची की तरफ फोकस किया ताकि किसी भी व्यक्ति के दो वोट न बन पाएं।

बाद में चुनाव आयोग ने आईआईटी मद्रास और अन्य संस्थानों के प्रतिष्ठित तकनीकी एक्सपर्ट्स के परामर्श से रिमोट वोटिंग पर एक रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू किया। इस प्रोजेक्ट में मतदाताओं को उनके निवास स्थान से दूर मतदान केंद्रों पर टू-वे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करके बायोमेट्रिक डिवाइस और वेब कैमरे की मदद से वोट डालने की अनुमति दी।

आरवीएम के लिए अब जोर क्यों?
पिछले साल मई में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने उत्तराखंड के सुदूर मतदान केंद्रों का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने 18 किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने पहली बार जाना कि कम मतदान होने के पीछे घरेलू प्रवासन कितना बड़ा कारण है। इसके साथ ही प्रवासी मतदाता केवल इसलिए वोट नहीं दे पाते क्योंकि वो वोटिंग वाले दिन अपने क्षेत्र में नहीं पहुंच पाते। इसके बाद चुनाव आयोग ने रिमोट वोटिंग सिस्टम को अंतिम रूप देने के लिए एक समिति का गठन किया और 29 दिसंबर को सभी राजनीतिक पार्टियों के सामने ड्राफ्ट पेश किया, जिसमें इस सिस्टम के तमाम पहलुओं का जिक्र है।

चुनाव आयोग ने ईवीएम की आपूर्ति करने वाले दो पीएसयू भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) के साथ काम किया। आयोग ने ईवीएम के मौजूदा ‘एम3’ मॉडल पर आधारित रिमोट वोटिंग सिस्टम को मजबूत और फुलप्रूफ बनाने के लिए इन संस्थाओं के साथ काम किया। ईसीआईएल ने अब आरवीएम का एक प्रोटोटाइप विकसित किया है जो एक रिमोट पोलिंग बूथ से 72 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए मतदान करा सकता है। आरवीएम ईवीएम की तरह ही नॉन नेटवर्क डिवाइस है। चुनाव आयोग का दावा है कि बिल्कुल सुरक्षित है।

कैसे काम करता है आरवीएम?
इसे समझने के लिए मान लीजिए कि आप उत्तर प्रदेश में पैदा हुए हैं और वहीं आपका वोट है। लेकिन नौकरी के सिलसिले में आपको महाराष्ट्र में रहना पड़ रहा है। अब वोटिंग वाले दिन महाराष्ट्र में ही एक खास वोटिंग स्टेशन होगा, जहां से आप उत्तर प्रदेश में अपने नेता को चुन पाएंगे। इस वोटिंग स्टेशन से आप तो वोट डाल ही पाएंगे साथ में उत्तर प्रदेश के अन्य विधानसभा के लोग भी वोट दे पाएंगे। शुरुआत में ये रिमोट वोटिंग सिस्टम इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लगाए जा सकते हैं। आरवीएम वोटिंग स्टेशन पर कई निवार्चन क्षेत्र की जानकारी होगी। जैसे ही निर्वाचन क्षेत्र को चुनेंगे सभी उम्मीदवारों की सूची सामने आ जाएगी। इसे देखकर प्रवासी लोग वोट दे पाएंगे।

क्या चुनौतियां बाकी हैं?

1. कानूनी चुनौतियां
रिमोट वोटिंग सिस्टम के सामने पहली चुनौती तो कानूनी नियम में संसोधन की जरूरत होगी। इसके लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 में संशोधन करना पड़ेगा। इसके साथ ही रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल-1960 में भी बदलाव करना होगा। इसमें प्रवासी नागरिकों की दूसरे राज्य में रहने की अवधि और वजह को भी लिखना होगा। साथ ही रिमोट वोटिंग को भी परिभाषित करना होगा।

2. प्रशासनिक चुनौतियां
इसके साथ रिमोट वोटर्स की गणना, रिमोट लोकेशन पर मतदान की गोपनियता, रिमोट वोटिंग स्टेशन की संख्या और स्थान तय करना, दूर-दराज के मतदान केंद्रों के लिए मतदान कर्मियों की नियुक्ति, और मतदान वाले राज्य के बाहर के स्थानों में मॉडल कोड लागू करना।

3. तकनीकी चुनौतियां
रिमोट वोटिंग की प्रक्रिया, मतदाताओं को आरवीएम सिस्टम की समझ,दूर-दराज के बूथों पर डाले गए वोटों की गिनती करना और मतदान वाले राज्य में रिटर्निंग अधिकारियों को नतीजे भेजना।

कैसे होगी रिमोट वोटिंग?
1 रिमोट मतदाताओं को एक तय समय में ऑनलाइन या ऑफलाइन आवेदन के लिए रजिस्ट्रेशन करना होगा।
2 रिमोट मतदाताओं द्वारा दी गई जानकारी को उनके गृह निर्वाचन क्षेत्र में वेरिफाई किया जाएगा।
3 बहु निर्वाचन क्षेत्रों के दूरस्थ मतदान बूथ चुनाव स्थल के बाहर स्थापित किए जाएंगे।
4 मतदान केंद्र पर वोट डालने वाले के वोटर आईडीकार्ड को आरवीएम पर मतपत्र प्रदर्शित करने के लिए स्कैन किया जाएगा।
5 मतदाता आरवीएम पर अपनी पसंद के प्रत्याशी का बटन दबाएंगे।
6 वोट रिमोट कंट्रोल यूनिट में राज्य कोड, निर्वाचन क्षेत्र संख्या और उम्मीदवार संख्या के साथ दर्ज किया जाएगा।
7 वीवीपीएटी राज्य और निर्वाचन क्षेत्र कोड के अलावा उम्मीदवार का नाम, प्रतीक और क्रम संख्या जैसे विवरण के साथ पर्ची प्रिंट करेगा।
8 मतगणना के दौरान आरवीएम की रिमोट कंट्रोल यूनिट उम्मीदवारों के क्रम में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के कुल मतों को पेश करेगी।
9 मतगणना के लिए नतीजे गृह राज्य में रिटर्निंग अधिकारियों के साथ शेयर किए जाएंगे।

अब होवित्जर और रॉकेट सिस्टम भी संभालेंगी महिलाएं

आर्टिलरी रेजिमेंट्स में तैनाती की तैयारी कर रही सेना

नयी दिल्‍ली । वे राफेल जैसा फाइटर जेट उड़ाती हैं, युद्धपोतों का जिम्‍मा संभालती हैं। जल्‍द ही आप महिलाओं को बोफोर्स होवित्जर, के-9 वज्र जैसी तोपें चलाते देखेंगे। भारतीय सेना एक अहम बदलाव की तैयारी में है। महिला अधिकारियों को सेना में परमानेंट कमिशन पहले ही मिल चुका है। अब उन्‍हें आर्टिलरी रेजिमेंट में शामिल करने की तैयारी है। 12 लाख सैनिकों वाली भारतीय सेना में आर्टिलरी की भूमिका ‘कॉम्‍बेट सपोर्ट आर्म’ की है। फिर भी चीन और पाकिस्‍तान से लगती सीमाओं पर आर्टिलरी यूनिट्स तैनात हैं। एक वरिष्‍ठ सै‍न्‍य अधिकारी के अनुसार, यह कवायद सेना को जितना हो सके, जेंडर न्‍यूट्रल बनाने की दिशा में है। हालांकि, अभी महिला अधिकारियों को इन्‍फैंट्री की ‘कॉम्‍बेट आर्म्‍स’, आर्मर्ड रेड कॉर्प्‍स (टैंक) और मेकेनाइज्‍ड इन्‍फैंट्री में रखने की योजना नहीं है। इसी तरह, नौसेना ने भी अभी पनडुब्बियों से महिलाओं को दूर रखा है।

भारतीय सेना में 280 से ज्‍यादा आर्टिलरी रेजिमेंट्स हैं। इनके पास 105 एमएम फील्‍ड गन्‍स, बोफोर्स होवित्‍जर, धनुष, सारंग से लेकर नई एम-777 अल्‍ट्रा-लाइट होवित्‍जर और K-9 वज्र जैसी सेल्‍फ-प्रोपेल्‍ड गन्‍स का जिम्‍मा है। स्‍वदेशी पिनाका मल्‍टी-लॉन्‍च रॉकेट सिस्‍टम और रूसी स्‍मर्च एंड ग्रैड यूनिट्स भी आर्टिलरी का हिस्‍सा हैं।

सेना में अभी खासी कम है महिलाओं की भागीदारी
आर्म्‍ड फोर्सेज में महिला अधिकारियों की भर्ती 1990s से होती आई है। इसके बावजूद, तीनों सेनाओं के कुल 65,000 अधिकरियों में महिलाओं की संख्‍या 3,900 से थोड़ी ही ज्‍यादा है। सेना में 1,710 महिला अधिकारी हैं तो वायुसेना में 1,650 और नौसेना में 600 महिला ऑफिसर्स हैं। इसके अलावा, मिलिट्री मेडिकल स्‍ट्रीम में करीब 1,670 महिला डॉक्‍टर्स, 190 डेंटिस्‍ट्स और 4,750 नर्सेज हैं। बहुत वक्‍त तक अड़ंगा रहा, अब हर बंधन तोड़ रहीं महिलाएं
लंबे वक्‍त तक सैन्‍य नेतृत्‍व बड़े पैमानें पर महिलाओं की भर्ती का विरोध करता रहा। उन्‍हें ‘ऑपरेशन, प्रैक्टिकल या कल्‍चरल प्रॉब्‍लम्‍स’ के आधार पर कॉम्‍बेट रोल असाइन करने या परमानेंट कमिशन देने में आनाकानी हुई। लेकिन महिलाओं ने हार नहीं मानी। अक्‍सर सुप्रीम कोर्ट की मदद मिली, अब वे एक-एक करके रुकावटें दूर कर रही हैं। उदाहरण के लिए, पिछले साल अगस्‍त से खड़कवासला स्थित नैशनल डिफेंस एकेडमी में 19 महिला कैडेट्स (आर्मी से 10, आईएएफ से 6 और नेवी की 3) तीन साल का कोर्स कर रही हैं।

महिला सैन्‍य अधिकारी अब लीगल और एजुकेशन विंग से इतर आठ नई शाखाओं में परमानेंट कमिशन पा सकती हैं। इनमें आर्मी एयर डिफेंस, सिग्‍नल्‍स, इंजिनियर्स, आर्मी एविएशन, ईएमई, आर्मी सर्विस कॉर्प्‍स, आर्मी ऑर्डनेंस कॉर्प्‍स और इंटेलिजेंस कॉर्प्‍स शामिल हैं।

जब पीएम बनने पर भी तीन मूर्ति भवन में रहने से लाल बहादुर शास्त्री ने किया इनकार

नयी दिल्ली । भारत के दूसरे प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की आज पुण्यतिथि है। छोटा कद, साफ-सुथरी छवि और सादगी भरा व्यक्तित्व। लाल बहादुर शास्त्री को जब भी हम याद करते हैं हमारे जहन में यह तस्वीर सहसा ही सामने आ जाती है। शास्त्री डेढ़ साल तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। इस छोटे से कार्यकाल में लाल बहादुर शास्त्री ने जो शोहरत और सम्मान हासिल किया वह अपने-आप में काबिले तारीफ था। उनसे जुड़े किस्से आज भी मशहूर हैं। चाहे वह पीएम बनने के बाद तीन मूर्ति भवन में न रहने का फैसला हो, पीएम रहने के बावजूद दुकानदार से सस्ती साड़ी की मांग या ट्रेन के कूलर को निकलवाने का आदेश। आज हम उनकी जिंदगी से जुड़े किस्सों को आपके सामने लेकर आए हैं।

प्रधानमंत्री कैसे बने शास्त्री
यह तो सब जानते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे। लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर किन हालात में शास्त्री जी को पीएम बनाया गया था। हम आपको बताते हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद पीएम की रेस में दो लोगों का नाम सबसे आगे चल रहा था। एक थे मोरारजी देसाई और दूसरे थे लाल बहादुर शास्त्री। यहां गौर करने वाली बात यह है कि नेहरू अपने अंतिम दिनों में बहुत हद तक लाल बहादुर शास्त्री पर निर्भर थे। उनपर नेहरू खुलकर भरोसा करते थे। वहीं दूसरी ओर मोरारजी देसाई पीएम की दौड़ में आगे तो थे लेकिन ज्यादातर नेता सहमत नहीं थे। बातचीत के बाद नेताओं का मानना था कि मोरारजी देसाई एक विवादास्पद पसंद हो सकते हैं। देसाई की आक्रामक छवि और मनमर्जी से फैसले लेने की आदत पर नेताओं को आपत्ति थी। जिसके बाद जिस नाम सबकी आम सहमति बनी वो थे लाल बहादुर शास्त्री। नेहरू के निधन के बाद इस पद पर बैठना शास्त्री के लिए आसान नहीं था। नेहरू का कद हर कोई मैच नहीं कर सकता था। लेकिन शास्त्री ने पीएम रहते हुए इस खालीपन को भरने में कोई कमी नहीं आने दी।

तीन मूर्ति में क्यों नहीं रहे शास्त्री जी
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री किसी भी सूरत में तीन मूर्ति भवन में रहने के पक्ष में नहीं थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद तीन मूर्ति भवन लालबहादुर शास्त्री को आवंटित हुआ, लेकिन उन्होंने वहां शिफ्ट करने से मना कर दिया था। शास्त्रीजी तीन मूर्ति में मोटे तौर पर दो कारणों के चलते जाने के लिए तैयार नहीं थे। पहला, शास्त्री जी का तर्क था कि वे जिस पृष्ठभूमि से आते हैं, उसे देखते हुए उनका तीन मूर्ति में रहना ठीक नहीं रहेगा। दूसरा, वे तीन मूर्ति भवन में इस आधार पर भी जाने के लिए राज़ी नहीं हुए क्योंकि वे मानते थे कि देश तीन मूर्ति भवन को नेहरू जी से भावनात्मक रूप से जोड़कर देखता है। इसलिए वहां पर उनका कोई स्मारक बने। यह जानकारी शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री ने खुद इस बात का जिक्र 1988 में अपने जनपथ स्थित आवास में किया था। मैं जिस पृष्ठभूमि से आता हूं उसे देखते हुए मेरा तीन मूर्ति में रहना ठीक नहीं होगा। तीन मूर्ति भवन को देश नेहरू जी से भावनात्मक रूप से जोड़कर देखता है। इसलिए वहां उनका कोई स्मारक बनना चाहिए।

दुकानदार से सस्ती साड़ी की मांग
एक बार लाल बहादुर शास्त्री जी अपनी पत्नी के लिए साड़ी खरीदने एक दुकान में गए। प्रधानमंत्री के पद पर थे सो दुकानदार भी अपने पीएम को देखकर काफी खुश हुआ। शास्त्री जी ने कहा कि उन्हें 5-6 साड़ियां चाहिए। दुकानदार तुरंत एक से बढ़कर एक साड़ियां दिखाने लगा। साड़ियां काफी महंगी थी। शास्त्री जी ने दुकानदार से सस्ती साड़ियां दिखाने को कहा। साड़ीवाले ने कहा कि आप पधारे यह तो मेरा सौभाग्य है। लेकिन शास्त्री जी ने कहा कि मैं दाम देकर साड़ियां ले जाउंगा। सो जितना कह रहा हूं उसपर ध्यान दो और सस्ती साड़ियां दिखाओ। दुकानदार ने प्रधानमंत्री की बात मानते हुए सस्ती साड़ियां दिखाईं और शास्त्री जी कीमत अदा कर वहां से चले गए।

ट्रेन से निकलवा दिया कूलर
यह उस समय की बात है जब शास्त्री जी रेल मंत्री के पद पर थे। एक दिन अचानक उन्हें किसी काम से मुंबई जाना पड़ा। ट्रेन में उनकी टिकट फर्स्ट क्लास में बुक की गई थी। पहले तो शास्त्री जी बैठ गए लेकिन उन्हें सफर के दौरान ठंडी लगने लगी। जबकि बाहर गर्म हवाएं और लू चल रही थी। शास्त्री जी बोले कि अंदर ठंडक है लेकिन बाहर काफी गर्मी है। उनके पीए कैलाश बाबू ने कहा कि आपकी सुविधा के लिए कूलर लगवाया है। इतना सुनते ही शास्त्री जी ने अपने पीएम की तरफ देखकर पूछा कि तुमने कूलर लगवाया और मुझे बताया भी नहीं। और लोगों को गर्मी नहीं लगती क्या? पीएम शास्त्री जी ने कहा कि आगे गाड़ी रुकने पर कूलर निकलवा देना। तब मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही सबसे पहले कूलर निकलवा दिया गया।

56 किलो सोने की कहानी शास्त्री जी को तौलने के लिए
यह घटना 16 दिसंबर 1965 की है। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के छोटी सादड़ी में पीएम की यात्रा होनी थी। उस समय गणपत लाल अंजना ने शास्त्री जी को तौलने के लिए 56.863 किलो सोना इकट्ठा किया था मगर लाल बहादुर शास्त्री की यात्रा नहीं हो पाई। ताशकंद समझौते के बाद उनका निधन हो गया था। इसके बाद अगले साल 26 जनवरी 1966 को गणपत लाल आंजना ने उस वक्त की सरकार के गोल्ड बॉन्ड स्कीम के तहत सोना जमा कराकर रसीद ले ली थी। इसके बाद इस सोने के कई दावेदार पैदा हो गए। मामला कोर्ट तक गया। 55 साल इसकी कानूनी लड़ाई चली जिसके बाद राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के पक्ष में मामला गया।