




वरिष्ठ साहित्यकार कपिल आर्य हमारे बीच नहीं रहे । प्रो. गीता दूबे उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए अपनी स्मृतियाँ साझा कर रही हैं । शुभजिता की ओर से दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि..
कथाकार -संस्मरण लेखक और संगठन कर्ता कपिल आर्य को सादर नमन। वह साहित्य जगत को सूना करके चले गए लेकिन अपने पीछे किस्से- कहानियों और संस्मरणों का असीम खजाना छोड़ गये हैं। प्रगतिशील लेखक संघ की जिम्मेदारी लंबे समय तक उन्होंने सहर्ष संभाल रखी थी। संगोष्ठियों का आयोजन प्रसन्नता से करते थे और नये लेखकों और लोगों को संगठन से जोड़ने में लगे रहते थे।
कोलकाता की प्रलेस इकाई की गतिविधियों और इतिहास के दस्तावेजीकरण के लिए भी उन्होंने प्रयास किया था। कथाकार विनय बिहारी सिंह ने एक पुस्तिका ( प्रगतिशील आंदोलन की बंगीय भूमिका) लिख कर इस इतिहास को समेटने की कोशिश की थी।
वर्षों पहले बांग्ला अकादमी के सभाकक्ष में “कथाकार की पहली कहानी” पर उन्होंने एक संगोष्ठी का आयोजन किया था जो अपने ढंग का अद्भुत आयोजन था। उनके कुछ संस्मरण और कहानियां विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। एक कहानी संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है। बेहद जीवंत और ऊर्जावान व्यक्ति थे। गाहे-बगाहे फोन करते थे तब उनकी उत्साह से भरी आवाज़ की खनक आश्वस्त करती थी। इन दिनों अपने संस्मरणों को शब्दबद्ध कर रहे थे और उनके प्रकाशन की चर्चा बड़े उत्साह से करते थे। कोलकाता के साहित्य जगत को उनकी कमी खलेगी।
शुभांगी उपाध्याय
मुर्दों में भी जान फूंक दें, ऐसी ओजस्वी वाणी थी।
फिरंगियों की ऐसी की तैसी, करने की मन में ठानी थी।
जो इंकलाब की अलख जगाने, भारतवर्ष में जन्में थे,
थर्रा उठते थे शत्रु जिनसे, वह शस्त्रधारी सन्यासी थे।
थे आजादी के मतवाले, भारत माता के रखवाले।
आज़ाद हिन्द के निर्माता, बेजोड़ धरा पर इनकी गाथा।
हैं हिंद धरा के स्वाभिमान, हे नेताजी! लोहो प्रणाम ।।
देश की ओर आँखें दिखाने वालों की आँखें निकाल ही लेना
ओ मेरे युवा साथी! अपना देश बस अपना ही होता है
परायों के गलत इरादों को लहूलुहान कर देना ही अच्छा होता है
हर घर बंगाल का करता नमन महानायक वीर सुभाष को
कुछ कर गुजरने की इच्छा ही देती जन्म कई सुभाषों को
आजादी की लौ जब – जब जलती तन – मन सुलग – सुलग जाता है
अपनी जन्मभूमि की मिट्टी को माथे पर सदा लगाना
वीर शहीदों की शहादत पर उनको शीश नवाना
अपना देश अपना होता है
प्रकृति भी अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ती
तो मनुष्य क्यों हुआ प्रकृति से दूर
घर की संपत्ति के लिए हम भाई भाई से लड़ते
माता-पिता घर परिवार से लड़ जाते
सुरक्षा कर हम रक्षक बन घर की सुरक्षा करते रहते
कभी कम तो कभी ज्यादा सब कुछ सहते रहते
भारत का हर कोना भी अपनी ही संपत्ति का हिस्सा है
इसे संभालना और देखना अपने ही कर्तव्यों का विस्तार है
बूंद बूंद सागर बन जाता है मिलकर हाथ बढ़ाने से
मुट्ठी में भी आसमान भर आता है
आओ हम सभी संकल्प लें मिलकर, देश की रंगत को कभी न फीका होने देगें
कुछ भी हो जाए तिरंगे की शान को हर पल हर क्षण विकास की ओर ले जाएंगें।
वसंत पंचमी पर बनाएं
1. मीठा चावल
बसंत पंचमी पर आप मीठा चावल बना सकते हैं। इस चावल की खास बात यह है कि इसमें केसर और गुड़ का इस्तेमाल होता है जो कि इसे एक केसरिया रंग देता है। इसे बनाने के लिए पहले चावल को सीटी लगा लें। फिर एक कढ़ाई में गुड़, पानी और केसर डाल कर मीठा घोल तैयार करें। फिर इसमें ये चावल मिला लें।
2. केसर खीर
केसरिया खीर बसंत पंचमी पर कई जगह खाई जाती है। इसमें केरस डाल कर मखाना, चावल और ड्राई फ्रूट्स से खीर तैयार की जाती है। ये खीर पीले रंग की होती है और इसे आप पूजा के भोग में भी चढ़ा सकते हैं।
3. मालपुआ
मालपुआ, आटा, केसर, सूजी, मैदा, ड्राई फ्रूट्स और केला को मिला कर बनाया जाता है। इसमें आप गुड़ या चीनी दोनों में से किसी भी चीज का इस्तेमाल कर सकते हैं। बस, ध्यान रखें कि इसमें हाई कैलोरी होती है जो कि शरीर को कई प्रकार से एनर्जी देने में मददगार है।
4. रवा केसरी
रवा केसरी, सूजी, चीनी, घी, ड्राई फ्रूट्स और चुटकी भर केसर से बनती है। ये एक प्रकार का हलवा ही है। इसे आप भोग में भी इस्तेमाल कर सकते हैं और घर में बना कर भी खा सकते हैं। ये खाने में जितना टेस्टी होता है, उतना ही शरीर के लिए फायदेमंद भी है। तो, इस बंसत पंचमी आप इन 4 रेसिपी ट्राई कर सकते हैं।
गणतंत्र दिवस पर बनाएं
तिरंगा सैंडविच
सबसे पहले पैन में तेल गरम करें और फिर इसमें कद्दूकस की हुई गाजर और नमक डालकर दो मिनट तक पकाकर अलग रख दें।अब दूसरे पैन में मक्खन गरम करके उसमें उबला आलू मैश करके नमक डालकर पकाएं।अब ब्रेड की एक स्लाइज पर हरी चटनी लगाकर उसमें खीरा की स्लाइज रखकर ब्रेड से ढक दें। अब फिर इसके ऊपर आलू वाला मिश्रण लगाएं और फिर से ब्रेड रखकर गाजर वाला मिश्रण लगाकर ब्रेड की स्लाइस से ढक दें।
तिरंगा पोहा
सबसे पहले पोहा को पानी में धोकर अलग रख लें।अब एक पैन में गरम तेल में हींग, जीरा, राई, करी पत्ता, प्याज और हरी मिर्च डालें।अब इसमें पोहा, नमक, नींबू का रस और मूंगफली डालें। पकने के बाद इसे तीन भाग में बांटे।एक भाग में थोड़ा सा हरा रंग और दूसरे भाग में थोड़ा सा केसरिया रंग डालकर अलग-अलग थोड़ा और पकाएं।अब प्लेट में तीनों रंग के पोहा की लेयरिंग करके सर्व करें।
तिरंगा लस्सी
सबसे पहले दही में चीनी और इलायची पाउडर डालकर अच्छे से फेंट लें और इसे अलग रख दें।अब केसरिया रंग के लिए केसर के शरबत को अलग दही और चीनी के साथ ब्लेंड करें। इसके बाद हरे रंग के लिए खस शरबत को दही और चीनी के साथ ब्लेंड करें।अब एक गिलास में पहले खस वाली दही और फिर सफेद दही और अंत में केसरिया रंग वाली दही को डालें। इसके ऊपर कटे पिस्ता डालकर सर्व करें।
भारत में संविधान 26 जनवरी 1950 में लागु हुआ था जिसके बाद से अभी तक कई बार इसमें संशोधन किए जा चुके है। हमारे देश के संविधान में किसी भी तरह के संशोधन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई सदस्य की सहमति के बाद ही संशोधन किया जा सकता है। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है और इसके साथ ही भारत का संविधान दुनिया का सबसे ज्यादा बार संशोधन किया जाने वाला संविधान भी है। हमारे देश के संविधान में राज्य सरकार केंद्र सरकार और लोकल बॉडीज के काम करने के तरीके साथ ही तीनों के बीच शक्तियों का विभाजन विस्तार से किया गया है –
संविधान संशोधन सूची
प्रथम संशोधन, 1951 : यह संविधान का प्रथम संशोधन था। इसमें नवीन अनुच्छेद अर्थात् 31 क और 31ख को संविधान में अंतः स्थापित किया गया है। इसके द्वारा संविधान में एक नवीन अर्थात् नौवीं अनुसूची जोड़ी गई। इसे संसद में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 10 मई 1951 को पेश किया गया जिसे 18 जून 1951 को संसद में पास कर दिया गया। संविधान के पहले संशोधन के तहत मौलिक अधिकारों में कुछ परिवर्तन किए गए और भाषण तथा अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार आम आदमी को दिया गया।
दूसरा संशोधन अधिनियम, 1952 : संविधान का दूसरा संशोधन, 1952: इस संशोधन के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 81 में संशोधन किया गया। यह संशोधन विधेयक संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व में परिवर्तन से संबंधित था।
अतः इस विधेयक के अनुच्छेद 368 की अपेक्षाओं के अनुरूप भाग क और भाग ख में निर्दिष्ट राज्यों में से आधे राज्यों के विधान मंडल का समर्थन प्राप्त किया गया है।
तीसरा संशोधन अधिनियम, 1954 : इस संशोधन द्वारा संविधान को सातवीं अनुसूची की सूची 3 (अर्थात समवर्ती सूची की प्रविष्ट 33 में संशोधन किया गया। चूंकि यह संशोधन अधिनियम केंद्र राज्य विधायी संबंधों को शासित करने वाली सातवीं अनुसूची की एक सूची में संशोधन के लिए था, अतः इस अधिनियम के संबंध में भी अनुच्छेद 368 की अपेक्षाओं के अनुरूप भाग क और भाग ख में निर्दिष्ट राज्यों में से आधे से अधिक राज्यों के विधानमंडलों का समर्थन प्राप्त किया गया।
चौथा संशोधन अधिनियम, 1955 : इस संशोधन अधिनियम के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 31 ए, 31 क और 305 तथा संविधान की नौवीं अनुसूची में संशोधन किया गया।
7वां संविधान संशोधन, 1956 : यह संविधान संशोधन राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और परिणामिक परिवर्तनों को शामिल करने के उद्देश्य से किया गया था। मोटे तौर पर तत्कालीन राज्यों और राज्य क्षेत्रों का राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के रूप में वर्गीकरण किया गया। इस संशोधन में लोकसभा का गठन, प्रत्येक जन गणना के पश्चात पुनः समायोजन, नए उच्च न्यायालयों की स्थापना और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों आदि के बारे में उपबंधो की व्यवस्था की गई है।
9वां संशोधन अधिनियम, 1960 : भारत और पाकिस्तान के मध्य हुए समझौते के क्रियान्वयन हेतु असोम, पंजाब, प. बंगाल और त्रिपुरा के संघ राज्य क्षेत्र से पाकिस्तान को कुछ राज्य क्षेत्र प्रदान करने के लिए इस अधिनियम द्वारा प्रथम अनुसूची में संशोधन किया गया। यह संशोधन इसलिए आवश्यक हुआ कि बेरुवाडी क्षेत्र में हस्तांतरण के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि किसी राज्य क्षेत्र में हस्तांतरण के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया गया था कि किसी राज्य क्षेत्र को किसी दूसरे देश में देने के करार अनुच्छेद 3 द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा क्रियान्वित नहीं किया जा सकता, अपितु इसे संविधान में संशोधन करके ही क्रियान्वित किया जा सकता है।
10वां संविधान संशोधन, 1960: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत भूतपूर्व पुर्तगाली अंतः क्षत्रों – दादर एवं नगर हवेली को भारत में शामिल कर उन्हें केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया।
11वां संविधान संशोधन, 1961: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत उपराष्ट्रपति के निर्वाचन की विधि मान्यता को प्रश्नगत करने के अधिकार को संकुचित बना दिया गया।
12वां संविधान संशोधन,1962: इसके अंतर्गत संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन कर गोवा, दमन और दीव को भारत में केंद्र शासित प्रदेश के रूप में शामिल कर लिया गया।
13वां संविधान संशोधन, 1962: इस संविधान संशोधन के द्वारा एक नवीन अधिनियम अर्थात् 371 क संविधान में स्थापित किया गया। इसके द्वारा नागालैंड के संबंध में विशेष प्रावधान अपना कर उसे एक राज्य का दर्जा दे दिया गया ।
14 वां संविधान संशोधन 1963: इस संविधान संशोधन के द्वारा केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुदुचेरी को भारत में शामिल किया गया तथा संघ राज्य क्षेत्रों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व 20 से बढ़ाकर 25 कर दिया गया।
15वाँ संविधान संशोधन, 1963: इस संशिधान अंतर्गत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवामुक्ती की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दिया गया।
16वाँ संविधान संशोधन, 1963: इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 19 में संशोधन करके संसद को यह शक्ति दी गई कि वह देश की संप्रभुता और अखंडता के हित मे प्रश्नगत करने वाली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विधि द्वार प्रतिबंध लगाए।
18वां संविधान संशोधन,1966: इस अधिनियम द्वारा भाषा के आधार पर पंजाब का विभाजन करके पंजाब का विभाजन करके पंजाब और हरियाणा नमक। दो प्रथक राज्य बनाने का उपबंध किया गया।
19वां संविधान संशोधन, 1966: इसके अंतर्गत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन किया गया तथा उच्च न्यायालयों को चुनाव याचिकाएं सुनने का अधिकार दिया गया।
20वां संविधान संशोधन, 1966: इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 233 क संविधान में स्थापित कर के जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति विधिमान्य घोषित किया गया।
21वां संविधान संशोधन, 1967: इस संविधान संशोधन के द्वारा सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत 15वीं भाषा के रूप में शामिल किया गया।
22वां संविधान संशोधन, 1969: इसके द्वारा असम राज्य को छठी अनुसूची के भाग 2 क में विनिर्दिष्ट कुछ क्षेत्र को मिलाकर एक अलग नया राज्य मेघालय बनाया गया।
24वां संविधान संशोधन 1971: इस संशोधन के अंतर्गत संसद की इस शक्ति को स्पष्ट किया गया की वह संशोधन के किसी भी भाग को, जिसमें भाग तीन के अंतर्गत आने वाले मूल अधिकार भी हैं संशोधन कर सकती है, साथ ही यह भी निर्धारित किया गया कि संशोधन संबंधी विधेयक जब दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति के समक्ष जाएगा तो इस पर राष्ट्रपति द्वारा संपत्ति दिया जाना बाध्यकारी होगा।
26वां संविधान संशोधन 1971: इसके अंतर्गत भूतपूर्व देशी राज्यों के शासकों की मान्यता को समाप्त करके उनकी पेंशन भी समाप्त कर दी गई है।
29वां संविधान संशोधन 1972: इस अधिनियम द्वारा केरल राज्य के भूमि सुधार से संबंधित दो विधायकों की नौवीं अनुसूची में रखा गया।
31वां संविधान संशोधन 1973: इस अधिनियम के द्वारा अनुच्छेद 81 ए, 330 और 332 में संशोधन किया गया और लोक सभा में निर्वाचित सदस्य की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 कर दी गई।
32वां संविधान संशोधन 1974: संसद एवं विधान पालिकाओं के सदस्य द्वारा दबाव में या जबरदस्ती किए जाने पर इस्तीफा देना अवैध घोषित किया गया एवं अध्यक्ष को यह अधिकार है कि वह सिर्फ स्वेच्छा से दिए गए एवं उचित त्यागपत्र को ही स्वीकार करे।
33वां संविधान संशोधन, 1974: इस संशोधन के अंतर्गत संसद के सदस्यों और राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाए गए 20 और काश्तकारी व भूमि सुधार कानूनों को नवम अनुसूची में शामिल किया गया।
34वां संविधान संशोधन, 1974: इसके अंतर्गत विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 20 भू सुधार अधिनियम को 9वी अनुसूची में प्रवेश देते हुए उन्हें न्यायालय द्वारा संवैधानिक वैधता के परीक्षण से मुक्त कर दिया गया ।
35वां संविधान संशोधन, 1974: इस संविधान संशोधन के तहत सिक्किम का संक्षिप्त राज्य का दर्जा समाप्त कर उससे संबद्ध राज्य के रूप में भारत में प्रवेश दिया गया।
36वां संविधान संशोधन, 1975: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत सिक्किम को भारत का 22 वा राज्य बनाया गया।
37वां संविधान संशोधन, 1975: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत आपात स्थिति की घोषणा और राष्ट्रपति, राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनिक प्रधानों द्वारा अध्यादेश जारी किए जाने को अविवादित बनाते हुए न्यायिक पुनर्विचार से उन्हें मुक्त रखा गया।
39वां संविधान संशोधन,1975: इसके संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों के न्यायिक परीक्षण से मुक्त कर दिया गया।
40वां संविधान संशोधन, 1976: इस अधिनियम के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई कि भारत के राज्यक्षेत्र सागर खंड अथवा महाद्वीपीय मग्न तट भूमि अथवा अनन्य आर्थिक संघ समुद्र के नीचे की समस्त भूमि, खनिज आदि निहित होंगे। संसद को यह अधिकार होगा कि वह राज्यक्षेत्रीय सागर खंड या महाद्वीपीय मग्न तट आदि भूमि को निश्चित या नियत करे।
41वां संविधान संशोधन, 1976: इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद- 316 का संशोधन करके संयुक्त आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई।
44वां संविधान संशोधन, 1978: इसके तहत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागू करने के लिए “आंतरिक अशांति” के स्थान पर “सैन्य विद्रोह” का आधार रखा गया और आपात स्थिति संबंधी अन्य प्रावधानों में परिवर्तन लाया गया , जिससे उनका दुरुपयोग ना हो। इसके द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के भाग से हटाकर विधिक ( कानूनी ) अधिकारों की श्रेणी में रख दिया गया।लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दी गई। उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद को हल कने की अधिकारिता प्रदान की गई ।
45वां संविधान संशोधन, 1980: इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 334 में उपबंधित आरक्षणों की अवधि को 30 वर्ष से बढ़ाकर 40 वर्ष कर दिया गया। इस अधिनियम पर भी आधे से अधिक राज्य विधानमंडलों का अनुमोदन प्राप्त किया गया।
52वां संविधान संशोधन,1985: इसके द्वारा राजनीतिक दल – बदल पर अंकुश लगाने का लक्ष्य रखा गया । इसके अंतर्गत संसद या विधानमंडलों के उन सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा , जो उस दल को छोड़ते हैं जिसके चुनाव चिन्ह पर उन्होंने चुनाव लड़ा था । लेकिन यदि किसी दल की संसदीय पार्टी की एक तिहाई सदस्य अलग दल बनाना चाहते हैं तो उन पर अयोग्यता लागू नहीं होगी । दल बदल विरोधी इन प्रावधानों की संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया ।
55वां संविधान संशोधन, 1986: इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 371 ज को अंतःस्थापित करके अरुणाचल प्रदेश को राज्य बनाया गया ।
56वां संविधान संशोधन, 1987: इसके अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 371 झ अंतःस्थापीत किया गया। इसके द्वारा गोवा को एक राज्य का दर्जा दिया गया और दमन और दीव को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में ही रहने दिया गया ।
57वां संविधान संशोधन, 1987: इसके अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के संबंध में मिजोरम , मेघालय , अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड की विधानसभा सीटों का परिसीमन इस शताब्दी के अंत तक के लिए किया गया।
58वां संविधान संशोधन, 1987: इसके द्वारा संविधान में अनुच्छेद 394 क अंतःस्थापित किया गया। इसके अलावा संविधान का हिंदी संस्करण प्रकाशित करने के लिए अधिकृत किया गया ।
60वां संविधान संशोधन, 1988: इसके अंतर्गत व्यवसाय कर की सीमा ₹250 से बढ़ाकर ₹2500 प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष कर दी गई।
61वां संविधान संशोधन, 1989: इसके संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 376 में संशोधन करके मतदान के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष लाने का प्रस्ताव था।
65वां संविधान संशोधन,1990: इसके द्वारा अनुच्छेद 338 में संशोधन करके अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है।
69वां संविधान संशोधन, 1990: इसके तहत अनुच्छेद 54 और 368 का संशोधन करके दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बनाया गया एवं दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद का उपबंध किया गया।
70वां संविधान संशोधन 1962: इसके तहत और पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के लिए निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किया गया।
71वां संविधान संशोधन, 1992: इस संविधान संशोधन में आठवीं अनुसूची में कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी भाषा को सम्मिलित किया गया ।
73वां संविधान संशोधन, 1992: इसके अंतर्गत संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गई । इसके पंचायती राज संबंधी प्रावधानों को सम्मिलित किया गया । इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग 9 जोड़ा गया। इसमें अनुच्छेद 243 और अनुच्छेद 243 क से 243 ण तक अनुच्छेद हैं।
74वें संविधान संशोधन, 1993: इस संशोधन के अंतर्गत संविधान में 12वीं अनुसूची शामिल की गई । जिसमें नगर पालिका, नगर निगम और नगर परिषदों से संबंधित प्रावधान किए गए हैं । इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग 9 क जोड़ा गया । इसमें अनुच्छेद 243 से अनुच्छेद 243 यद तक के अनुच्छेद हैं ।
76वां संविधान संशोधन, 1994: इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की नौवीं अनुसूची में संशोधन किया गया और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69% आरक्षण का उपबंध करने वाली अधिनियम को 9वी अनुसूची में शामिल कर दिया गया है।
77वां संविधान संशोधन, 1995: सरकारी सेवाओं में प्रोन्नतियों में अनुसूचित जातियों वा अनुसूचित जनजातियों का कोटा सुरक्षित किया गया।
78वां संविधान संशोधन, 1995: संविधान का अनुच्छेद 31वीं नौवीं अनुसूची में शामिल उन कानूनों को इस आधार पर चुनौती देने से संवैधानिक छूट प्रदान करता है कि इससे संविधान के खंड 3 में सुरक्षित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। इस अनुसूची में विभिन्न राज्यों की सरकारें और केंद्रीय सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों की सूची हैं।
79वां संविधान संशोधन, 1999: इस संशोधन के अंतर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2010 तक के लिए बढ़ा दी गई है । इसके माध्यम से व्यवस्था की गई कि अब राज्यों को प्रत्यक्ष केंद्रीय करों से प्राप्त कुल धनराशि का 29% हिस्सा मिलेगा।
80वां संविधान संशोधन, 2000: केंद्रीय करों की निबल प्राप्तियों का 26% भाग राज्यों को हस्तांतरित किए जाने का प्रावधान।
81 वां संविधान संशोधन, 2000: इस संशोधन के द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की 50% की सीमा, जो उच्चतम न्यायलय द्वारा निर्धारित की गई थी, को समाप्त कर दिया गया। इस प्रकार अब एक वर्ष में न भरी जाने वाली बकाया रिक्तियों को एक प्रथक वर्ग मना जाएगा और अगले वर्ष में भरा जाएगा, भले ही उसकी सीमा 50% से अधिक हो इसके लिए अनुच्छेद 16 खंड 4(क) के बाद एक नया खाद 4(ख) जोड़ा गया।
82वां संविधान संशोधन,2000: इस संशोधन के द्वारा राज्यों को सरकारी नौकरियों में आरक्षित रिक्त स्थानों की भर्ती हेतु प्रोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्तांक को में छूट प्रदान करने की अनुमति प्रदान की गई है। इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के परिणामस्वरूप 1997 में इस छूट को वापिस ले लिया गया था।
83वां संविधान संशोधन, 2000: इस संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान न करने की छूट प्रदान की गई है । अरुणाचल प्रदेश में कोई भी अनुसूचित जाति ना होने के कारण उसे यह छूट प्रदान की गई है।
84वां संविधान संशोधन, 2001: इसके द्वारा लोकसभा और विधानसभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 तक कोई परिवर्तन ना करने का प्रावधान किया गया है।
85वां संविधान संशोधन, 2001: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था की गई है ।
86वां संविधान संशोधन, 2002: इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है । इसे अनुच्छेद 21(क) के अंतर्गत संविधान में जोड़ा गया है । इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 51(क) में संशोधन किए जाने का प्रावधान है।
87वां संविधान संशोधन, 2003: इसके परिसीमन में जनसंख्या का आधार 1991की जनगणना के स्थान पर 2001 तक कर दी गई।
88वां संविधान संशोधन, 2003: इसमें सेवाओं पर कर का प्रावधान किया गया।
89वां संविधान संशोधन, 2003: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के लिए पृथक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था की गई।
90वां संविधान संशोधन, 2003: इस संशोधन के अंतर्गत असम विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बरकरार रखते हुए बोडोलैंड, टेरिटोरियल कौंसिल क्षेत्र, गैर जनजाति के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा का प्रावधान है।
91वां संविधान संशोधन, 2003: इसके तहत दलबदल व्यवस्था में संशोधन, केवल संपूर्ण दल के विलय को मान्यता, केंद्र तथा राज्य में मंत्री परिषद के सदस्य संख्या क्रमशः लोकसभा एवं विधानसभा की सदस्य संख्या का 15% होगा।
92वां संविधान संशोधन, 2003: इस संविधान संशोधन में संविधान की आठवीं अनुसूची में डोगरी, बोडो, संथाली, मैथिली भाषाओं का समावेश
93वां संविधान संशोधन, 2006: इसमें शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति / जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के नागरिकों के दाखिले के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गई और संविधान के अनुच्छेद 15 की धारा 4 के प्रावधानों के तहत की गई।
94वां संविधान संशोधन, 2006: इस संशोधन के द्वारा बिहार राज्य को एक जनजाति कल्याण मंत्री नियुक्त करने के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया और इस प्रावधान को झारखंड एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में लागू करने की व्यवस्था की गई साथ ही, मध्य प्रदेश और ओडिशा राज्य में यह प्रावधान पहले से ही लागू है।
95वां संविधान संशोधन,2009: इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 334 में संशोधन कर लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण तथा आंग्ल भारतीयों को मनोनीत करने संबंधी प्रावधान को 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
96वां संविधान संशोधन, 2011: इसमें संविधान की आठवीं अनुसूची में “उड़िया” के स्थान पर “ओड़िया” लिखा गया।
97 वां संविधान संशोधन, 2011: इस संशोधन के द्वारा सहकारी समितियों को एक संवैधानिक स्थान तथा सरंक्षण प्रदान किया गया। इस संशोधन द्वारा संविधान में निम्न तीन बदलाव किए गए
(a) सहकारी समिति बनाने का अधिकार एक मौलिक अधिकार बन गया| [ अनुच्छेद-19 (1)(c)
(b)”सहकारी समितियां” नाम से एक नया भाग – IX-ख संविधान में जोड़ा गया। [ अनुच्छेद 243 ZH से 223ZT]
(c) राज्य की नीति में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने का एक नया नीति निदेशक सिद्धांत का समावेश [ अनुच्छेद 43 ख]
98वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2012: इस संविधान संशोधन में अनुच्छेद 371(J) शामिल किया गया । इसका उद्देश्य कर्नाटक के राज्यपाल को हैदराबाद – कर्नाटक क्षेत्र के विकास हेतु कदम उठाने के लिए सशक्त करना था।
101 संविधान संशोधन (2016):बिल बिल का प्रावधान (जीएसटी बिल प्रावधान)
102 संविधान संशोधन (2018): ओबीसी आयोग को मिला संविधान का ढांचा।
103 संविधान संशोधन (2019): ईडब्ल्यूएस सेक्शन के लिए 10% का आरक्षण (EWS सेक्शन में 10% का आरक्षण)
104 संविधान संशोधन (2019): अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति का समय 10 साल के लिए (एससी/एसटी आरक्षण में वृद्धि)
108वां संविधान संशोधन (2021): महिलाओं के लिए लोकसभा व विधान सभा में 33% आरक्षण।
109वां संविधान संशोधन: पंचायती राज्य में महिला आरक्षण 33% से 50%.
110वां संविधान संशोधन: स्थानीय निकाय में महिला आरक्षण 33% से 50% .
114वां संविधान संशोधन: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु 62 बर्ष से 65 बर्ष।
115वां संविधान संशोधन: GST (वस्तु एवं सेवा कर)
117वां संविधान संशोधन: SC व ST को सरकारी सेवाओं में पदोन्नति आरक्षण।
विश्लेषण
नागरिकता संशोधन विधेयक 2019
साल 2019 में संसद ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को पारित किया, जो राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद अधिनियम बन गया है। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करने के लिये लाया गया था। नागरिकता अधिनियम, 1955 नागरिकता प्राप्त करने के लिये विभिन्न आधार प्रदान करता है।
भाषिक आधार पर राज्यों का पुनर्गठन
भारतीय संविधान में सांतवा संशोधन 1956 को लागू किया गया था। इस संशोधन द्वारा भाषीय आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया, जिसमें अगली तीन श्रेणियों में राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करते हुए राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में उन्हें विभाजित किया गया। इसके साथ ही, इनके अनुरूप केंद्र एवं राज्य की विधान पालिकाओं में सीटों को पुनर्व्यवस्थित किया गया।
दल बदल कानून
1985 में 52वें संविधान संशोध नके जरिए संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई, जिसे दल-बदल विरोधी कानून कहा जाता है। इसमें दल बदलने वालों की सदस्यता समाप्त करने का प्रावधान किया गया।
99वां संविधान संशोधन-राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम (2015)
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के गठन के संबंधित 99वें संविधान संशोधन को असंवैधानिक करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को जजों द्वारा जजों की नियुक्ति की 22 साल पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने वाले एनजेएसी कानून, 2014 को निरस्त कर दिया था। पांच जजों की संविधान पीठ ने चार-एक के बहुमत से फैसला लिया था। यह अधिनियम, 2014 को 13 अप्रैल 2015 को अधिसूचित किया। संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की संरचना एवं कामकाज का जिक्र है। अधिनियम में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ की ओर से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के चयन के लिए एक पारदर्शी एवं व्यापक आधार वाली प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।
-100वां संशोधन भारत-बांग्लादेश के बीच भू-सीमा संधि (2015)
भारत और बांग्लादेश के बीच हुई भू-सीमा संधि के लिए संविधान में 100वां संशोधन किया गया। एक अगस्त 2015 को लागू इस कानून से न केवल 41 सालों से पड़ोसी देश बांग्लादेश के साथ चल आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने में मदद मिलेगी, बल्कि अधिनियम बनने के बाद दोनों देशों ने आपसी सहमति से कुछ भू-भागों का आदान-प्रदान किया। समझौते के तहत बांग्लादेश से भारत में शामिल लोगों को भारतीय नागरिकता भी दी गई।
101वां संशोधन- वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी अधिनियम (2016)
देश में वस्तु एवं सेवा कर लागू करने के लिए भारतीय संविधान में 101वां संशोधन किया गया। इस संशोधन अधिनियम का संबंध जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) से है। वस्तु एवं सेवा कर 1 जुलाई, 2017 को लागू हुआ था। 1 जुलाई, 2018 को जीएसटी लागू किये जाने के एक वर्ष पूरा होने पर भारत सरकार द्वारा इस दिन को जीएसटी दिवस के रूप में मनाया गया था। जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर है जिसे भारत को एकीकृत साझा बाज़ार बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया है। यह संपूर्ण भारत में वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाने वाला एकल राष्ट्रीय एकसमान कर है।
102वां संशोधन- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा (2018)
2018 में संसद ने संविधान में 102वां संशोधन पारित किया था जिसमें संविधान में तीन नए अनुच्छेद शामिल किए गए थे। नए अनुच्छेद 338-बी के तहत राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया। इसी तरह एक और नया अनुच्छेद 342ए जोड़ा गया जो अन्य पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची से संबंधित है। तीसरा नया अनुच्छेद 366(26सी) सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करता है। इस संशोधन के माध्यम से पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिला।
103वां संशोधन- ईडब्ल्यूएस को शिक्षण संस्थाओं, नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण (2019)
केंद्र सरकार ने 2019 में संसद में 103वां संविधान संशोधन प्रस्ताव पारित कर आर्थिक रूप से कमज़ोर सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की थी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट नेआर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रखने पर अपनी मुहर लगा दी है। ईडब्ल्यूएस का मतलब है आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण। यह आरक्षण सिर्फ जनरल कैटेगरी यानी सामान्य वर्ग के लोगों के लिए है। इस आरक्षण से एससी, एसटी, ओबीसी को बाहर किया गया है। सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को 10 फीसद आरक्षण देने से संबंधित 124वां संविधान संशोधन बिल पास हुआ। राज्यसभा में इस बिल के समर्थन में कुल 165 मत पड़े जबकि सात लोगों ने इसका विरोध किया। वहीं लोकसभा में इसके समर्थन में 323 मत पड़े जबकि विरोध में केवल 3 मत डाले गए।
104वां संशोधन- लोकसभा, विधानसभाओं में एससी और एसटी आरक्षण 10 साल बढ़ा (2019)
इस संशोधन के तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया और लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि को 10 साल के लिए और बढ़ा दिया गया था। दरअसल लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और एंग्लो-इंडियन समुदाय को पिछले 70 वर्ष से मिल रहा आरक्षण 25 जनवरी, 2020 को समाप्त हो रहा था। इस विधेयक में एससी और एसटी के संदर्भ में इसे 10 वर्ष बढ़ाने का प्रावधान किया गया।
105वां संशोधन- सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान (2021)
यह अधिनियम सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान उल्लेखित करने के लिए राज्य सरकारों की शक्ति को बहाल करता है। पिछले साल मानसून सत्र में संसद ने 11 अगस्त को 127वां संविधान संशोधन विधेयक 2021 पारित किया था। लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कहा था कि फिर से संख्या अंकित करने के बाद यह विधेयक 105वां संविधान संशोधन विधेयक माना जाएगा।
संविधान में अंतिम 126वां संशोधन
126वां संविधान संशोधन विधेयक 2 दिसंबर 2019 को संसद में लाया गया था। यह भारतीय संविधान का 104वां संसोधन था। इसके तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया और लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जानतयों एवं जनजानतयों के लिए आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष के लिए और बढा दिया गया था। इससे पहले इस आरक्षण की सीमा 25 जनवरी 2020 थी।
विचार – संविधान में जो संशोधन होते रहे हैं, उनमें प्रशासनिक कारण तो हैं मगर इसके साथ ही उद्देश्य कई बार चुनावी गणित को साधना भी रहता है। संविधान में अधिकार हमें बहुत मिले हैं पर सवाल यह है कि पुस्तकों से निकलकर यह उस आम जनता तक कितना और कहाँ तक पहुँचा, जिसका नाम लेकर यह सब किया गया । सबसे बड़ी बात आम आदमी संविधान के बारे में कितना और कहाँ तक जानता है, जमीनी स्तर पर इसे कहाँ तक लागू किया गया और क्या वंचितों और शोषितों में अब तक इतना साहस आ सका है कि वि संविधान की बात करके अपने अधिकार माँगें और उनको मिल जाए । आम आदमी के पास इतनी शक्ति और सामर्थ्य हो, इसके लिए जरूरी है कि केन्द्र एवं राज्य सरकारों की नीतियों और नीयत में पारदर्शिता हो और उससे भी जुड़ा बुनियादी प्रश्न..क्या हमारे और आपके घरों में गणतंत्र है ? क्या हम अपने बच्चों की सुनते हैं…क्या परिवार का अधिक शक्तिशाली सदस्य अपने से छोटों के अधिकारों को स्वेच्छा से देता है और क्या भाई – बहनों के बीच सम्पत्ति के बंटवारे की बात को लेकर हम सामान्य हैं…न्यायालय अधिकार देते हैं पर उनको लागू करने के लिए जो जागरुकता चाहिए..वह क्या हमारे बीच है…सबसे जरूरी है कि अधिकार के साथ हम अपने कर्त्तव्य और सीमाएं भी जानें..इसके प्रति ईमानदार रहें…भारतीय नागरिक होने को लेकर गर्व करें और कर्तव्य निभाएं । आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।
(साभार – सफलता. दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स)
गणंतत्र दिवस के इतिहास में ऐसे कई रोचक तथ्य मौजूद हैं। पहली परेड जहां एकदम सादगी भरी और छोटी थी, वहीं बाद में देश के राजे−रजवाड़ों की शैली में हाथी−घोड़ों और गाजे−बाजे को इसमें शामिल किया गया। बाद के वर्षों में देश की सांस्कृतिक विविधता की झलक इसका एक प्रमुख आकर्षण बन गयी। राष्ट्रीय संग्रहालय के पूर्व संग्रहलयाध्यक्ष आईडी माथुर से जब हमने परेड के अतीत के बारे में जानने की कोशिश की, तो उन्होंने बताया, ”जब देश संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित हुआ तो यहां भी दूसरे देशों की तरह परेड निकालने का सिलसिला शुरू करने की बात सोची गयी। दिलचस्प यह था कि पहली परेड में तत्कालीन नवनियुक्त प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद बग्घी में बैठकर आये और राजपथ से गुजरे।”
माथुर ने कहा, ”लेकिन पहली परेड से लोगों को कुछ निराशा हुई। हालांकि, देश के गणतंत्र बनने के जश्न में नागरिकों को शामिल करने के सरकार के इरादे में कुछ गलत नहीं था। असल में लोगों को यह उम्मीद थी कि आजादी के समय तक देश में मौजूद रही रियासतों की राजे−रजवाड़े वाली शान (ओ) शौकत और शाही लवाजमा परेड में नजर आयेगा। पहली परेड देखने इकट्ठा हुई जनता हाथी−घोड़े और सैन्य शक्ति के प्रदर्शन को देखना चाहती थी।”
उन्होंने कहा, ”लेकिन सरकार ने जनता का मिजाज़ भांप लिया। अगले वर्ष से परेड में हाथी, घोड़ों और शाही अंदाज वाली पलटनों को शामिल कर लिया गया। सरकार ने यह घोषित किया कि परेड राजपथ से निकल कर लाल किले तक जायेगी और इसमें दिल्ली के आसपास के स्कूली बच्चे भाग लेंगे। इस पर भी सरकार की कुछ आलोचना हुई क्योंकि स्कूली बच्चों के लिये सेना के जवानों की तरह इतनी लंबी दूरी तय करना आसान नहीं था।”
माथुर ने कहा, ”बाद में सरकार ने इसमें संशोधन किया और बच्चों की परेड इंडिया गेट तक खत्म कर दी। बाद के वर्षों में परेड में कई तरह के बदलाव हुए और झांकियां जोड़ी जाने लगीं। राष्ट्रीय पर्व को एक जलसे में तब्दील करना इसका मकसद बन गया।” गणतंत्र दिवस परेड के लिये लगातार 47 बार हिंदी कमेंट्री कर चुके जसदेव सिंह बताते हैं, ”पहले के दौर में जनता में जोश ज्यादा नजर आता था। लोग अलसुबह पांच बजे से ही कड़ाके की ठंड और घने कोहरे में इंडिया गेट के आसपास इकट्ठा होने लगते थे। परेड के शुरूआती वर्षों में सुरक्षा कड़ी नहीं हुआ करती थी, इसलिये लोग बड़ी तादाद में जुटते थे।”
सिंह ने बताया, ”चीन युद्ध के बाद राष्ट्र भावना प्रबल थी। 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में दिलचस्प यह हुआ कि सैन्य टुकड़ियों के मार्च के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू भी सांसदों के एक दल की अगुवाई करते हुए राजपथ पर चलते नजर आये। इस दृश्य ने लोगों को जोश से भर दिया।” वह बताते हैं, ”लोगों में लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी जैसे तत्कालीन प्रधानमंत्रियों को परेड में एक नजर देखने का काफी उत्साह रहता था।
दूरदर्शन शुरू होने के बाद भी गणतंत्र दिवस की परेड देखने के प्रति लोगों के जोश में कमी नहीं आयी। सांस्कृतिक झलक पेश करती झांकियों और वायुसेना के मार्च ने परेड के प्रति खासकर बच्चों का उत्साह बढ़ा दिया।” बारह सैन्य पदक प्राप्त मेजर (सेवानिवृत्त) केएस सक्सेना बताते हैं, ”परेड के मामले में यह स्वीकार करना होगा कि शुरूआती वर्षों में इसका अंदाज कुछ ‘गरीबाना’ था। बहरहाल, यह भी काबिले गौर और काबिले तारीफ है कि बाद के सालों में इसमें काफी चमक आयी।”
वर्ष 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के बाद के दौर को याद करते हुए उन्होंने कहा, ”इस युद्ध के बाद हुई परेड में हमने खास तौर पर आम लोगों में काफी उत्साह देखा था। सेना ने जब परेड में मार्च किया तो लोगों ने जवानों की काफी हौसला अफजाई की थी।” उन्होंने कहा कि यह देश के लगातार तीन युद्ध का सामना करने का ही नतीजा था कि सरकार ने 1971 के बाद गणतंत्र दिवस परेड में सैन्य शक्ति के प्रदर्शन को और तेज किया तथा एनसीसी कैडेट्स की भागीदारी को बढ़ा दिया।
(साभार – प्रभा साक्षी)
इस बार ’26 जनवरी, 2023′ को 74वां गणतंत्र दिवस समारोह बेहद खास रहने वाला है क्योंकि परेड में कई नई पहल की जाएंगी। इसलिए 2023 के आगामी गणतंत्र दिवस से जुड़ी जानकारी प्रत्येक भारतीय के लिए बेहद दिलचस्प रहेगी। इस वर्ष गणतंत्र दिवस परेड में नारी शक्ति, आत्मनिर्भरता और आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत ‘मेक इन इंडिया’ योजना को प्रदर्शित किया जा रहा है। आइए विस्तार से जानते हैं इसके बारे में…
‘आत्मनिर्भर भारत’ की परेड के होंगे दर्शन
गौरतलब हो इस बार परेड के दौरान दर्शकों को कई चीजें पहली बार देखने को मिलेंगी जिनमें सबसे महत्वपूर्ण होगी सेना की सभी हथियार प्रणालियां जो ‘मेड इन इंडिया’ हैं। यानि इस बार कर्तव्य पथ पर ‘आत्मनिर्भर भारत’ की परेड के दर्शन होंगे।
ब्रिटिश-युग की 25-पाउंडर तोपों की जगह लेगी इंडियन फील्ड गन्स
वहीं इस बार, 21 तोपों की सलामी देशी 105 एमएम इंडियन फील्ड गन्स से दी जाएगी, जो द्वितीय विश्व युद्ध में इस्तेमाल की जाने वाली ब्रिटिश-युग की 25-पाउंडर तोपों की जगह लेगी। हालांकि इन देशी बंदूकों का इस्तेमाल पिछले साल के स्वतंत्रता दिवस के दौरान किया गया था, लेकिन यह पहली बार है जब गणतंत्र दिवस पर इनका इस्तेमाल किया जाएगा।
नवनियुक्त अग्निवीर पहली बार परेड का हिस्सा होंगे
इस बार नवनियुक्त अग्निवीर भी पहली बार परेड का हिस्सा होंगे। ये अग्निवीर पिछले वर्ष अग्निवीर योजना के तहत देश के रक्षा के लिए सेना में भर्ती हुए थे। इस संबंध में भारतीय नौसेना का यह जानकारी साझा कर चुकी है कि इतिहास में पहली बार कर्तव्य पथ में मार्चिंग दस्ते में तीन महिला और पांच पुरुष अग्निवीर भी परेड में भाग लेंगे।
समारोह में अनेक नए कार्यक्रम
इसके अलावा गणतंत्र दिवस समारोह को बेहद अनोखा बनाने के लिए इस बार अनेक नए कार्यक्रम भी जोड़े गए हैं। इनमें सैन्य टैटू और जनजातीय नृत्य उत्सव, वीर गाथा 2.0, वंदे भारतम नृत्य प्रतियोगिता का दूसरा संस्करण, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर सैन्य और तटरक्षक बैंड का प्रदर्शन; राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में अखिल भारतीय स्कूल बैंड प्रतियोगिता, बीटिंग द रिट्रीट समारोह के दौरान एक ड्रोन शो और प्रोजेक्शन मैपिंग इत्यादि शामिल है। कार्यक्रमों में देश की सांस्कृतिक विविधता और स्टार्टअप इकोसिस्टम और डिजिटल इंडिया के उदय को प्रदर्शित करने के लिए सैन्य टैटू और आदिवासी नृत्य उत्सव, वीर गाथा और वंदे भारतम 2.0, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर अखिल भारतीय स्कूल बैंड प्रतियोगिता और बीटिंग द रिट्रीट के दौरान अब तक का सबसे बड़ा ड्रोन शो और एनामॉर्फिक प्रोजेक्शन मैंपिंक कार्यक्रम तय किया गया है।
मिस्र की एक सैन्य टुकड़ी और
मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी 26 जनवरी को नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि होंगे। 2022-23 में भारत की G-20 की अध्यक्षता के दौरान मिस्र को भी ‘अतिथि देश’ के रूप में आमंत्रित किया गया है। वहीं समारोह में मिस्र की सैन्य टुकड़ी भी भाग ले रही है। मिस्र के राष्ट्रपति समेत उनके देश का मार्चिंग दल भी परेड में भाग लेगा।
देश की रक्षा में तैनात महिला सैनिकों का दस्ता आएगा नजर
वहीं पाकिस्तान के साथ रेगिस्तानी सीमा की रक्षा करने वाली महिला सैनिक, बीएसएफ ऊंट दल का हिस्सा होंगी और रणनीतिक आधार पर तैनात एक महिला अधिकारी ‘नारी शक्ति’ का प्रदर्शन करने वाले नौसेना के 144 नाविकों के दल का नेतृत्व करेंगी।
नौसेना का आईएल -38 परेड के लिए भरेगा अपनी आखिरी उड़ान
नौसेना का जासूसी विमान आईएल-38 विमान, जिसने चार दशकों से अधिक समय तक समुद्री सेना की सेवा की, परेड के लिए अपनी आखिरी उड़ान भरने के साथ ही इतिहास की किताबों में दर्ज हो जाएगा। समुद्री टोही विमान IL-38 ने लगभग 42 वर्षों तक नौसेना की सेवा की है। इसके अलावा परेड के फ्लाई पास्ट में भाग लेने वाले 44 विमानों में नौ राफेल जेट, स्वदेश निर्मित प्रचंड, एक बहु-भूमिका, लाइट कॉम्बेट हेलीकॉप्टर भी शामिल होंगे।
लाल किले तक परेड के पारंपरिक मार्ग को पुन: किया जाएगा शुरू
दिल्ली क्षेत्र के चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल भवानीश कुमार ने बताया है कि परेड सुबह 10.30 बजे विजय चौक से शुरू होगी और टुकड़ी सीधे लाल किले तक मार्च करेगी। महामारी के दौरान, लाल किले तक परेड के पारंपरिक मार्ग को कोविड प्रतिबंधों के कारण बंद कर दिया गया था।
कुल 23 झांकियां परेड का बनेंगी हिस्सा
भारत की जीवंत सांस्कृतिक विरासत, आर्थिक और सामाजिक प्रगति को दर्शाने वाली कुल 23 झांकियां- राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से 17 और विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से छह झांकियां राजसी परेड का हिस्सा होंगी। इनके इतर इस बार नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो भी पहली बार झांकी में शामिल होने जा रहा है।
कर्तव्य पथ पर पहली परेड
उल्लेखनीय है कि पिछले साल राजपथ का नाम बदलने के बाद कर्तव्य पथ पहले गणतंत्र दिवस समारोह की मेजबानी करेगा। याद हो, पीएम मोदी ने 8 सितंबर 2022 को इंडिया गेट पर ‘कर्तव्य पथ’ का उद्घाटन किया था जिसके बाद ये पहला मौका होगा जब कर्तव्य पथ पर गणतंत्र दिवस की परेड होने जा रही है। कर्तव्य पथ बेहतर सार्वजनिक स्थानों और सुविधाओं को प्रदर्शित करेगा, जिसमें पैदल रास्ते के साथ लॉन, हरे-भरे स्थान, नवीनीकृत नहरें, मार्गों के पास लगे बेहतर बोर्ड, नई सुख-सुविधाओं वाले ब्लॉक और बिक्री स्टॉल शामिल हैं। इसके अलावा इसमें पैदल यात्रियों के लिए नए अंडरपास, बेहतर पार्किंग स्थल, नए प्रदर्शनी पैनल और रात्रि के समय जलने वाली आधुनिक लाइटों से दर्शकों को पहले से बेहतर अनुभव मिलने वाला है। इसमें ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, भारी वर्षा के कारण एकत्र जल का प्रबंधन, उपयोग किए गए पानी का पुनर्चक्रण, वर्षा जल संचयन और ऊर्जा कुशल प्रकाश व्यवस्था जैसी अनेक दीर्घकालिक सुविधाएं भी शामिल हैं।
ई-आमंत्रण
इस वर्ष, मेहमानों और दर्शकों को निमंत्रण कार्डों के स्थान पर ई-निमंत्रण दिए गए हैं। इस उद्देश्य के लिए, एक समर्पित पोर्टल www.amantran.mod.gov.in शुरू किया गया है। इस पोर्टल के माध्यम से टिकटों की बिक्री, प्रवेश पत्र, निमंत्रण पत्र और कार पार्किंग लेबल ऑनलाइन जारी किए जा रहे हैं। यह पूरी प्रक्रिया को अधिक सुरक्षित और कागज रहित बनाना सुनिश्चित करेगा और देश के सभी हिस्सों के लोग इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में भाग लेने में सक्षम हो सकेंगे।
कर्तव्य पथ श्रम योगी को दी जाएगी प्रमुखता
इस वर्ष समाज के सभी वर्गों के आम लोगों को निमंत्रण भेजा गया है जैसे कि सेंट्रल विस्टा, कर्तव्य पथ, नए संसद भवन के निर्माण में शामिल श्रमयोगी, दूध, सब्जी विक्रेता, स्ट्रीट वेंडर आदि। इन विशेष आमंत्रितों को कर्तव्य पथ पर प्रमुखता से बैठाया जाएगा।
ड्रोन शो
भारत में सबसे बड़ा ड्रोन शो, जिसमें 3,500 स्वदेशी ड्रोन शामिल हैं, रायसीना की पहाड़ियों पर शाम के आसमान को रोशन करेगा, सहज तालमेल के माध्यम से राष्ट्रीय आकृतियों/कार्यक्रमों के असंख्य रूपों को गूंथेगा। यह स्टार्टअप इकोसिस्टम की सफलता, देश के युवाओं तकनीकी कौशल को दर्शाता है और भविष्य के पथ-प्रदर्शक रुझानों के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। इस कार्यक्रम का आयोजन मैसर्स बोटलैब्स डायनेमिक्स द्वारा किया जाएगा।
एनामॉर्फिक प्रोजेक्शन
बीटिंग रिट्रीट समारोह 2023 के दौरान नॉर्थ और साउथ ब्लॉक के अग्रभाग पर पहली बार 3-डी एनामॉर्फिक प्रोजेक्शन का आयोजन किया जाएगा। ये कुछ खास कार्यक्रम हैं जो इस बार गणतंत्र दिवस समारोह को और भी खास बनाने जा रहे हैं।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को देवी मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। 26 जनवरी, गुरुवार को ये तिथि पड़ रही है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माघ मास के गुप्त नवरात्र के दौरान इस दिन देवी सरस्वती प्रकट हुईं। तब देवताओं ने उनकी स्तुति की। स्तुति से वेदों की ऋचाएं बनीं और उनसे वसंत राग बना। फिर सृष्टि में पेड़-पौधे और जीव बनें। इसके बाद उत्सव शुरू हुआ। इसलिए इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
सरस्वती पूजा का महत्व
नवरात्रि में जिस तरह देवी पूजा होती है ठीक उसी तरह इस दिन सभी शिक्षण संस्थानों में सरस्वती पूजा एवं अर्चना की जाती है। सरस्वती माता, कला की भी देवी मानी जाती हैं अत: कला क्षेत्र से जुड़े लोग व विद्यार्थी सरस्वती माता के साथ-साथ पुस्तक, कलम की पूजा करते हैं। संगीतकार इस दिन वाद्य यंत्रों की, चित्रकार अपनी तूलिका और रंगों की पूजा करते हैं।
पृथ्वी पर ऐसे प्रकट हुईं ज्ञान की देवी
मान्यता है कि सृष्टि की रचना के समय ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे पृथ्वी पर छह भुजाओं वाली शक्ति रूप स्त्री प्रकट हुईं, जिनके हाथों में पुस्तक, पुष्प, कमंडल, वीणा और माला थी। जैसे ही देवी ने वीणा वादन किया, चारों ओर वेद मंत्र गूंज उठे। ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे और वसंत पंचमी उत्सव शुरू हुआ।
वसंत राग से है इस पर्व का संबंध
संगीत दामोदर ग्रंथ के अनुसार वसंत राग श्री पंचमी से प्रारंभ होकर हरिशयनी एकादशी तक गाया जाता है। श्री पंचमी से वसंत राग के गायन की शुरुआत होती थी। इस कारण लोक में धीरे-धीरे यह तिथि वसंत पंचमी के नाम से विख्यात हो गई। एक माह बाद आने वाली वसंत ऋतु में फसलें पकने लगती हैं, फूलों का सौंदर्य पृथ्वी की सुंदरता बढ़ाता है इसलिए ऊर्जा के परिचायक पीले रंग की प्रधानता वसंत पंचमी पर्व से शुरू हो जाती है।
श्री पंचमी और वागीश्वरी जयंती भी कहते हैं
शास्त्रों में इस पर्व का उल्लेख श्री पंचमी एवं वागीश्वरी जयंती के रूप में भी प्राप्त होता है। जनमानस में धारणा व्याप्त है कि वसंत पंचमी से वसंत ऋतु की शुरुआत होती है, जबकि जब मीन एवं मेष राशि में सूर्य रहते हैं तब वसंत पंचमी के एक माह बाद वसंत ऋतु आती है। वसंत पंचमी पर्व पर पीले रंग के कपड़े पहनने और पीला भोजन करने का महत्व होता है।
पीले फूलों से होती है देवी की पूजा
1. सबसे पहले सरस्वती माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर, पूजा घर में रखें। इसके बाद कलश स्थापित करके गणेश जी तथा नवग्रह की विधिवत पूजा कर माता सरस्वती की पूजा करें।
2. पूजा करते समय उन्हें सबसे पहले आचमन एवं स्नान कराएं। सरस्वती पूजन के अवसर पर माता सरस्वती को पीले रंग का फल चढ़ाएं। इस दिन सरस्वती माता को केसरिया भात एवं खीर का भी भोग लगाया जाता है।
3. देवी सरस्वती सफेद कपड़े धारण करती हैं अतः उनकी प्रतिमा को श्वेत वस्त्र पहनाएं।
4. मां शारदा के साथ कन्याओं का पूजन भी इस दिन करें। पीले रंग के वस्त्र आदि जरूरतमंदों को दान करने से परिवार में ज्ञान, कला व सुख -शांति की वृद्धि होती है।
5. इस दिन पीले फूलों से शिवलिंग की पूजा करना भी विशेष शुभ माना जाता है।
(साभार – दैनिक भास्कर)