Wednesday, August 20, 2025
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बंगाल की शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने वाला हथौड़ा शिक्षक नियुक्ति घोटाला

शुभजिता फीचर डेस्क

बंगाल की शिक्षा व्यवस्था इन दिनों बेपटरी हो गयी है। पढ़ाने वाले सड़कों पर हैं और पढ़ने वाले संशय में दो पाटन के बीच पिस रहे हैं । बतौर पत्रकार शिक्षा बीट की ही खबरें की हैं और खूब की हैं। उन दिनों संवाददाता सम्मेलन होते थे तो वहां भी जाती थी और बहुत कुछ ऐसा था जिसका कारण तब समझ नहीं सकी मगर अब बात समझ रही है। 2011 के पहले भी आन्दोलन होते रहे हैं। शिक्षक सड़कों पर उतरे हैं। ऐसा नहीं है कि वाममोर्चा सरकार दूध की धुली थी मगर भ्रष्टाचार का जो घिनौना रूप अब देखने को मिल रहा है तब शायद सामने नहीं आ सका था। जो भी हो..भ्रष्टाचार की चक्की में पिसना तो निरपराधों को है। एक तरफ देश की संसद है जहां दागी भी जेल से चुनाव लड़ रहे हैं, एक बार में ही माननीयों की तनख्वाह लाखों रुपये हो जा रही है और दूसरी तरफ हमारे देश के भविष्य का निर्माण करने वाले असंख्य युवा हैं जिनके मुंह से वह रोटी भी छीनी जा रही है जिसे उन्होंने अपनी मेहनत से अर्जित किया है। 26 हजार नौकरियां मतलब 26 हजार परिवारों का भविष्य दांव पर लग जाना और हजारों स्कूलों की व्यवस्था का बेपटरी हो जाना..यह खेल नहीं है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 3 अप्रैल 2025 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए लगभग 25,000 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति को रद्द कर दिया। ये नियुक्तियां 2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल सर्विस कमीशन के माध्यम से की गई थीं, जिनके चयन में धोखाधड़ी पाई गई। कोर्ट ने कहा कि जिन उम्मीदवारों को गलत तरीके से नौकरी मिली उन्हें अब तक का वेतन भी लौटाना होगा। फैसले में कहा गया कि योग्य और अयोग्य के बीच अंतर करना संभव नहीं है। जिन लोगों को 2016 में नौकरी मिली थी, वे नई भर्ती प्रक्रिया के लिए आवेदन कर सकेंगे। जो लोग अन्य सरकारी नौकरियां छोड़कर 2016 एसएससी के माध्यम से स्कूल की नौकरियों में शामिल हुए थे, वे अपनी पुरानी नौकरियों में वापस आ सकेंगे। जिन लोगों को अयोग्य घोषित किया गया है, वे अब परीक्षा में नहीं बैठ सकेंगे। उन्हें 12 प्रतिशत की दर से ब्याज सहित अपना वेतन लौटाने को कहा गया है। अभी भी इस बात को लेकर कुछ स्पष्ट समझ नहीं है कि चयन प्रक्रिया किस प्रकार संचालित की जाएगी तथा कौन परीक्षा में बैठ सकेगा। स्कूल नियुक्ति घोटाले की सुनवाई कर चुके पूर्व न्यायाधीश व भाजपा सांसद अभिजीत गांगुली का मानना है कि योग्य व अयोग्य उम्मीदवारों को अलग करना सम्भव है। अब जब कि एसएससी ने शिक्षा विभाग को योग्य व अयोग्य की सूची भेज दी है तो सवाल वहीं का वहीं है, यह पहले ही क्यों नहीं किया गया? आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि सुप्रीम कोर्ट को यह सूची पहले नहीं सौंप दी गयी? अगर ऐसा होता तो सम्भवतः हजारों युवाओं की रोजी – रोटी पर लात न पड़ती। दरअसल सत्य तो यह है कि कुछ नेताओं को बचाने के लिए जबरन योग्य व अयोग्य का खेल खेला जा रहा है। आखिर कौन सी परेशानी है कि योग्य के साथ आप अयोग्य शिक्षकों को लेकर चलने को इतनी आतुर हैं। आखिर 5 हजार अयोग्य उम्मीदवारों की इतनी चिंता क्यों है कि आप 20 हजार योग्य शिक्षकों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही हैं। कारण है और कारण यह है कि सत्तारूढ़ दल के सिपहसालारों ने नौकरियां बेची हैं। एक – एक नौकरी 5 लाख से 15 लाख तक में बेची गयी है और निश्चित रूप से मलाई सबने खायी है। इस बात का खुलासा सीबीआई की चार्जशीट में हुआ है और अप्रत्यक्ष रूप से ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का नाम भी सामने आया है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा, “हमारी राय में, पूरी चयन प्रक्रिया धोखाधड़ी से दूषित हो चुकी है और इसे ठीक नहीं किया जा सकता।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन उम्मीदवारों को नियुक्ति मिली थी, उन्हें अब तक प्राप्त वेतन वापस नहीं करना होगा, लेकिन उनकी सेवा समाप्त कर दी जाएगी। इस फैसले से न केवल नियुक्ति प्राप्त करने वाले शिक्षकों के भविष्य पर संकट गहरा हो गया है, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था को भी गंभीर धक्का लगा है। कोर्ट ने नए चयन के लिए तीन महीने के भीतर भर्ती प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया है। अब इस बात की गारंटी कौन लेगा कि नयी नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी होगी? इस मामले में सीबीआई जांच का महत्वपूर्ण रोल रहा है। सीबीआई ने खुलासा किया कि ओएमआर शीट्स में भारी हेरफेर किया गया था, जिससे कई अयोग्य उम्मीदवारों को भर्ती में शामिल किया गया। इन असमानताओं ने इस चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। सीबीआई ने पाया कि एसएससी के सर्वर और एनवाईएसए के पूर्व कर्मचारी पंकज बंसल के सर्वर के डेटा में असमानताएं थीं, जिससे चयन में गड़बड़ी का पता चला।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बंगाल में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को दोषपूर्ण और भ्रष्ट करार देने के फैसले के बाद नौकरी गंवाने वाले 25,753 शिक्षकों में से कुछ ने गुरुवार को कोलकाता के साल्टलेक में राज्य स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) कार्यालय के बाहर भूख हड़ताल शुरू कर दी थी और पुलिस पर असहयोग का आरोप लगाते हुए शिक्षक भूख हड़ताल समाप्त कर चुके हैं। प्रदर्शनकारी शिक्षकों को समर्थन देने के लिए भाजपा सांसद और कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय भी धरनास्थल पर पहुंचे। मालूम हो कि कसबा में डीआई कार्यालय के बाहर बुधवार को विरोध प्रदर्शन के दौरान शिक्षकों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हो गई थी। इसमें कई शिक्षकों के साथ छह पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। भाजपा सांसद ने बताया कि वह पूर्व राज्यसभा सदस्य रूपा गांगुली के साथ धरनास्थल पर आए थे ताकि प्रभावित शिक्षकों और कर्मचारियों के प्रति एकजुटता जताई जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस कार्रवाई के विरोध में वह शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु से मिलने नहीं गए। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने 8 अप्रैल को 25 हजार 753 टीचर्स और नॉन टीचिंग स्टाफ की नियुक्ति रद्द करने के मामले में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को चिट्ठी लिखी। इसमें उन्होंने राष्ट्रपति से मांग की है कि जो लोग निर्दोष हैं, उन्हें नौकरी में बने रहने देना चाहिए।
घोटाले की बात करें तो शिक्षक नियुक्ति घोटाले में 5 से 15 लाख रुपये तक की घूस लेने का आरोप है। मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट को कई शिकायतें मिली थीं। भर्ती में अनियमितताओं के मामले में सीबीआई ने राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी, उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी और एसएससी के कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार किया था। पार्थ की गिरफ्तारी के 5 दिन बाद ममता बनर्जी ने उन्हें कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया था। पार्थ पर आरोप है कि मंत्री रहते हुए उन्होंने नौकरी देने के बदले गलत तरीके से पैसे लिए। इस मामले में 16 फरवरी 2024 तक पार्थ चटर्जी के करीबियों के ठिकानों पर ईडी ने छापेमारी की थी। अर्पिता पेशे से मॉडल थीं। पश्चिम बंगाल के 2016 एसएससी घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद 25752 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नौकरी चली गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नौकरी गंवाने वाले शिक्षकों के साथ मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने कहा कि बोलने पर उन्हें जेल भी हो सकती है, लेकिन वह बोल रही हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी साथ देने से इंकार नहीं कर सकता। ममता ने कहा की सर्वोच्च न्यायालय हमें यह नहीं बता सका कि कौन योग्य है और कौन अयोग्य है। विपक्षी दलों पर आरोप लगाते हुए ममता ने कहा कि खेल 2022 में शुरू हुआ। जिनके पास नौकरी देने की ताकत नहीं है, उन्होंने नौकरियां छीन ली हैं। चेहरा और मास्क अलग-अलग होने चाहिए। किसी भी योग्य व्यक्ति को अपनी नौकरी नहीं खोनी चाहिए। वे कहते हैं कि वे आपको 2026 में नौकरी देंगे। इधर दीदी का माकपा व भाजपा का खेल जारी है। ममता ने आरोप लगाया कि नौकरी छीनने का काम भाजपा के लोगों ने किया है। भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बंगाल सरकार को घेर रही है। एजेंसी ने आरोपपत्र में 2017 में रिकॉर्ड एक बातचीत की ऑडियो फाइल का हवाला दिया और किसी अभिषेक बनर्जी का नाम लिया, जिन्होंने अवैध नियुक्तियों के लिए 15 करोड़ रुपये मांगे थे। एजेंसी ने आरोपपत्र में अभिषेक बनर्जी की पहचान स्पष्ट नहीं की, हालांकि यह नाम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के नाम से मिलता है। अतीत में विपक्ष ने उनके खिलाफ घोटाले में शामिल होने का बार-बार आरोप लगाया है।
सीबीआई ने 28 पृष्ठों के इस आरोप पत्र को 21 फरवरी को दायर किया था, जिसकी प्रमाणित प्रति पीटीआई के पास है। इस आरोपपत्र में सुजय कृष्ण भद्र उर्फ ​​‘कालीघाटर काकू’ और दो अन्य को शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी), 2014 की चयन प्रक्रिया के माध्यम से राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की अनियमित नियुक्तियों का दोषी बताया गया है। दीदी और उनकी पार्टी के साथ समस्या यह है कि वक्फ के नाम पर वह धार्मिक उन्माद फैला सकती हैं मगर नौकरी का मामला धर्म से आगे है। यहां हिन्दू या मुस्लिम का खेल नहीं खेला जा सकता क्योंकि भूख धर्म नहीं देखती। नौकरी दोनों ही धर्मों के लोगों की गयी है। युवाओं में काफी नाराजगी है, आक्रोश है और विपक्ष ने अगर इसे साध लिया तो 2026 के चुनाव में मानकर चलना चाहिए कि दीदी की विदाई पक्की है । यहां यह बता दें कि बंगाल की दुर्दशा की जिम्मेदार यहां की मुफ्तखोर जनता है जो एक प्लेट बिरयानी और लक्खी भंडार के एक हजार रुपये के लिए चुनाव के दौरान बिकने को तैयार हो जाती है। वह भूल जाती है सन्देशखाली, कामदुनी, आर जी कर, सारधा, नारदा, राशन घोटाला, नियुक्ति घोटाला..सब कुछ..वह मुर्शिदाबाद की हिंसा भी भूल जाएगी। मुफ्तखोरी ने यहां के युवाओं और गृहणियों को इतना अंधा व काहिल बना दिया है कि वे पंगु हो चले हैं, काम करना भूल चुके हैं और बढ़ते अपराध व गुंडागर्दी इसी का साइड इफेक्ट है। बंगाल और बंगाल के भविष्य की रक्षा अब ईश्वर ही कर सकते हैं।

साहित्यकार डॉ. कमल किशोर गोयनका का निधन

नयी दिल्ली । हिन्दी के प्रख्यात लेखक और उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के साहित्य के सर्वोत्तम विद्वान शोधकर्ता डॉ. कमल किशोर गोयनका का मंगलवार को निधन हो गया। उनके बेटे संजय ने बताया कि उन्होंने 87 वर्ष की उम्र में दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में सुबह लगभग 7:30 अंतिम सांस ली। उनके छोटे पुत्र राहुल विदेश में हैं। इसलिए उनका अंतिम संस्कार कल किया जाएगा। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में 11 अक्टूबर 1938 को जन्मे कमल किशोर गोयनका को वर्ष 2014 के लिए 24वें व्यास सम्मान से अलंकृत किया गया था। यह पुरस्कार उन्हें उनकी पुस्तक ‘प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन’ के लिए दिया गया था। उन्हें व्यास सम्मान के साथ-साथ उदय राज स्मृति सम्मान भी प्राप्त था। उन्हें प्रेमचंद साहित्य का अप्रतिम मर्मज्ञ माना जाता है। उनका योगदान केवल प्रेमचंद तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने हिंदी साहित्य के गम्भीर शोध, आलोचना और प्रवासी हिंदी साहित्य के क्षेत्र में भी असाधारण कार्य किया।

डॉ. गोयनका चार दशक तक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के शिक्षक रहे और रीडर पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने पांच दशक से अधिक समय तक प्रेमचंद और अन्य लेखकों पर शोध किया। उनकी 62 पुस्तकों में से 36 प्रेमचंद पर केंद्रित हैं। वे ‘प्रेमचंद के बॉसवेल’ के रूप में विख्यात हुए। उनकी खोजी दृष्टि ने प्रेमचंद साहित्य की दशकों पुरानी धारणाओं को चुनौती दी और भारतीयता के व्यापक परिप्रेक्ष्य में प्रेमचंद की पुनर्व्याख्या की। उन्होंने हिंदी साहित्य में ऐतिहासिक खोज का कार्य किया और लगभग एक हजार पृष्ठों के अज्ञात एवं दुर्लभ साहित्य, सैकड़ों मूल दस्तावेज, पत्र, पांडुलिपियां आदि को खोजकर प्रेमचंद के साहित्यिक स्वरूप को अधिक प्रामाणिकता प्रदान की।

उन्होंने प्रेमचंद को मार्क्सवादी विचारधारा के संकुचित दायरे से बाहर निकालकर उन्हें भारतीय आत्मा का साहित्यिक शिल्पी सिद्ध किया। यह हिंदी आलोचना के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन था। वे प्रेमचंद पर पीएचडी और डी-लिट करनेवाले पहले शोधार्थी थे। उनके शोध ग्रंथों ने प्रेमचंद के शिल्प और जीवन-दर्शन को नये दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। उन्होंने प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों का कालक्रम स्थापित किया और उनकी अज्ञात रचनाओं को खोजकर प्रकाशित किया। साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित ‘प्रेमचंद कहानी रचनावली’ (छह खंड) और ‘नया मानसरोवर’ (आठ खंड) उनके श्रमसाध्य शोध का प्रमाण हैं। उन्होंने ‘गोदान’ के दुर्लभ प्रथम संस्करण को पुनः प्रकाशित कराकर प्रेमचंद के मूल पाठ को सुरक्षित रखने का प्रयास किया। आलोचकों ने यहां तक कहा कि प्रेमचंद के पुत्र भी जो कार्य न कर सके, वह गोयनका ने कर दिखाया। डॉ. गोयनका ने प्रेमचंद जन्मशताब्दी पर राष्ट्रीय समिति बनाई और देश-विदेश में कार्यक्रम आयोजित किए। 1980 में वे मॉरीशस गए, जहां उनकी ‘प्रेमचंद प्रदर्शनी’ का उद्घाटन वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम ने किया। उन्होंने दूरदर्शन के लिए प्रेमचंद पर वृत्तचित्र बनवाया और साहित्य अकादमी में ‘प्रेमचंद प्रदर्शनी’ का आयोजन किया।उनके शोध और निष्कर्षों का प्रगतिशील लेखकों ने प्रारंभ में विरोध किया, क्योंकि उन्होंने प्रेमचंद पर प्रचलित अनेक धारणाओं को गलत सिद्ध किया था। लेकिन हिंदी के दिग्गज लेखक जैनेन्द्र कुमार, विष्णुकांत शास्त्री, प्रभाकर माचवे, विष्णु प्रभाकर, गोपालराय, शिवदानसिंह चौहान, विवेकीराय और सर्वेश्वरदयाल सक्सेना आदि ने उनके कार्य को ऐतिहासिक और मौलिक उपलब्धि माना।प्रवासी हिन्दी साहित्य पर डॉ. गोयनका का योगदान महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में उनकी 12 पुस्तकें प्रकाशित हुईं और उन्होंने 40 से अधिक प्रवासी लेखकों की पुस्तकों की भूमिका लिखी। उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर पहली पुस्तक लिखी, जिसे बाद में नेशनल बुक ट्रस्ट ने पुनः प्रकाशित किया। वे कई साल केंद्रीय हिंदी संस्थान और मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उपाध्यक्ष रहे।

केंद्र सरकार ने लॉन्च किया नया आधार ऐप

नयी दिल्ली । डिजिटल सुविधा और गोपनीयता की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने एक नया आधार ऐप लॉन्च किया। यह ऐप उपयोगकर्ताओं को अपने आधार विवरण को डिजिटल रूप से सत्यापित और साझा करने की सुविधा देगा। इससे आधार कार्ड ले जाने या फोटोकॉपी जमा करने की आवश्यकता खत्म हो जाएगी। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस ऐप को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी में लॉन्च किया। डिजिटल नवाचार के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, केंद्रीय मंत्री ने ऐप को आधार सत्यापन को आसान, तेज और अधिक सुरक्षित बनाने के लिए एक कदम बताया। अश्विनी वैष्णव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किए गए एक वीडियो संदेश में कहा, “नया आधार ऐप, मोबाइल ऐप के जरिए फेस आईडी प्रमाणीकरण। कोई भौतिक कार्ड नहीं, कोई फोटोकॉपी नहीं।”

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ऐप उपयोगकर्ताओं को सुरक्षित डिजिटल माध्यमों से केवल आवश्यक डेटा साझा करने का अधिकार उनकी सहमत‍ि से देता है। उन्होंने कहा, “अब केवल एक टैप से, उपयोगकर्ता केवल आवश्यक डेटा साझा कर सकते हैं, जिससे उन्हें अपनी व्यक्तिगत जानकारी पर पूरा नियंत्रण मिलता है।”ऐप की एक खास विशेषता फेस आईडी प्रमाणीकरण है, जो सुरक्षा को बढ़ाता है और सत्यापन को सहज बनाता है। आधार सत्यापन अब केवल एक क्यूआर कोड को स्कैन करके किया जा सकता है, बिल्कुल यूपीआई भुगतान की तरह।केंद्रीय मंत्री ने एक्स पर लिखा, “आधार सत्यापन यूपीआई भुगतान करने जितना ही सरल हो गया है। उपयोगकर्ता अब अपनी गोपनीयता सुनिश्चित करते हुए अपने आधार विवरण को डिजिटल रूप से सत्यापित और साझा कर सकते हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा, “होटल के रिसेप्शन, दुकानों या यात्रा के दौरान आधार की फोटोकॉपी सौंपने की कोई आवश्यकता नहीं है।” इस नई प्रणाली के साथ, लोगों को अब होटलों, दुकानों, हवाई अड्डों या किसी अन्य सत्यापन बिंदु पर अपने आधार कार्ड की मुद्रित प्रतियां सौंपने की आवश्यकता नहीं होगी। यह ऐप वर्तमान में अपने बीटा परीक्षण चरण में है। इसे मजबूत गोपनीयता सुरक्षा उपायों के साथ डिजाइन किया गया है।
यह सुनिश्चित करता है कि आधार विवरण में जालसाजी, संपादन या दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है। जानकारी सुरक्षित रूप से और केवल उपयोगकर्ता की अनुमति से साझा की जाती है।आधार को कई सरकारी पहलों का “आधार” (नींव) बताते हुए, अश्विनी वैष्णव ने भारत के डिजिटल भविष्य को आकार देने में एआई और डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) की भूमिका पर भी जोर दिया। उन्होंने हितधारकों को आगे के विकास को गति देने के लिए डीपीआई के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को एकीकृत करने के तरीके सुझाने के लिए आमंत्रित किया, जबकि गोपनीयता को केंद्र में रखा गया।

आरबीआई ने जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान घटाकर किया 6.5 प्रतिशत

नयी दिल्ली । टैरिफ चुनौतियों के बीच भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्त वर्ष 25-26 में जीडीपी वृद्धि की उम्मीद को 6.7% से संशोधित कर 6.5% कर दिया है। जी हां, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को नीतिगत दरों की घोषणा के दौरान कहा कि भारत की वास्तविक जीडीपी को चालू वित्त वर्ष 2025-26 में 6.5 प्रतिशत की दर से संशोधित किया गया है, जबकि पहले यह 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान था। साथ ही गवर्नर ने इस बात पर रोशनी डाली कि सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले वित्त वर्ष 2024-25 में दर्ज 9.2 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि के बाद यह वृद्धि अनुमान लगाया गया है।उन्होंने कहा, “जैसा कि आप सभी जानते हैं, इस वर्ष एमओएसपीआई के आंकड़ों के अनुसार वास्तविक जीडीपी 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। यह पिछले वर्ष 2024-2025 में देखी गई 9.2 प्रतिशत की वृद्धि दर के अतिरिक्त है।” अर्थव्यवस्था के परिदृश्य पर बोलते हुए मल्होत्रा ने कहा कि इस साल कृषि क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है, क्योंकि जलाशयों का स्तर अच्छा है और फसल उत्पादन भी अच्छा है।  उन्होंने कहा कि विनिर्माण गतिविधि भी गति पकड़ रही है, और कारोबारी उम्मीदें सकारात्मक बनी हुई हैं। इस बीच, सेवा क्षेत्र में लचीलापन जारी है, जो आर्थिक विकास में लगातार योगदान दे रहा है। उन्होंने माना कि पिछले वित्त वर्ष की पहली छमाही में कमजोर प्रदर्शन के बाद विकास में सुधार हो रहा है, हालांकि यह अभी भी उस स्तर से नीचे है जिसे देश हासिल करना चाहता है। मांग पक्ष पर, गवर्नर ने कहा कि कृषि के लिए सकारात्मक परिदृश्य से ग्रामीण मांग को समर्थन मिलने की संभावना है, जो मजबूत बनी हुई है। विवेकाधीन खर्च में वृद्धि से शहरी खपत भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि निवेश गतिविधि ने गति पकड़ी है और इसमें और सुधार होने की उम्मीद है। यह सुधार निरंतर और उच्च-क्षमता उपयोग, बुनियादी ढांचे पर निरंतर सरकारी खर्च, बैंकों और कॉरपोरेट्स की मजबूत बैलेंस शीट और आसान वित्तीय स्थितियों से प्रेरित है। उन्होंने यह भी कहा कि “निवेश गतिविधि में तेजी आई है और निरंतर, उच्च-क्षमता उपयोग, बुनियादी ढांचे के खर्च पर सरकार के निरंतर भरोसे, बैंकों और कॉरपोरेट्स की स्वस्थ बैलेंस शीट और वित्तीय स्थितियों में आसानी के कारण इसमें और सुधार होने की उम्मीद है।” हालांकि, आरबीआई गवर्नर मल्होत्रा ने आगाह किया कि वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण व्यापारिक निर्यात पर दबाव पड़ सकता है। दूसरी ओर, सेवाओं के निर्यात में लचीलापन रहने और समग्र विकास गति को समर्थन मिलने की उम्मीद है

50 रुपये महंगा हो गया सिलिंडर

नयी दिल्ली । केंद्र सरकार ने घरेलू रसोई गैस (एलपीजी) सिलेंडर की कीमत में 50 रुपये की बढ़ोतरी का ऐलान किया है। यह नया दाम 8 अप्रैल से लागू होगा। यह बढ़ोतरी 14.2 किलो के सब्सिडी और नॉन-सब्सिडी दोनों तरह के सिलेंडरों पर लागू होगी, जिसमें प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थी भी शामिल हैं। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर की कीमत अब 500 रुपये से बढ़कर 550 रुपये हो जाएगी। वहीं अन्य घरेलू उपभोक्ताओं को अब 803 रुपये की जगह 853 रुपये चुकाने होंगे। पुरी ने बताया कि एलपीजी की कीमतों की समीक्षा हर 2 से 3 हफ्ते में होती है, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार की दरों पर निर्भर करती है। यह बढ़ोतरी ऐसे समय में आई है जब ठीक एक हफ्ते पहले 1 अप्रैल को 19 किलो के कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर के दाम में 41 रुपये की कटौती की गई थी। अब दिल्ली में कमर्शियल सिलेंडर की कीमत 1,762 रुपये है।गौरतलब है कि भारत अपनी 60% एलपीजी जरूरतें आयात करता है, जिससे इसकी कीमतें वैश्विक बाजार पर काफी निर्भर करती हैं। जुलाई 2023 में एलपीजी की अंतरराष्ट्रीय कीमत 385 डॉलर प्रति मीट्रिक टन थी, जो फरवरी 2025 में 63% बढ़कर 629 डॉलर प्रति मीट्रिक टन हो गई। लोकसभा में पेश सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 1 मार्च 2025 तक प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत 10.33 करोड़ लाभार्थी पंजीकृत हैं। वहीं देश में कुल घरेलू एलपीजी उपभोक्ताओं की संख्या 32.94 करोड़ है। गौरतलब है कि अगस्त 2024 के बाद से घरेलू एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में पहली बार बढ़ोतरी हुई है।

14 की उम्र में शादी, 34 में तलाक… आज 13 बसों की मालकिन

नयी दिल्ली । नीता की कहानी एक ऐसी साहसी महिला की है, जिन्‍होंने भाग्य के आगे हार मानने से इनकार कर दिया। उन्‍होंने अपनी तकदीर खुद लिखने का फैसला किया। 14 साल की उम्र में शादी, 15 साल की उम्र में मां, फिर 34 साल की उम्र में तलाक के बाद नीता आज 13 बसों वाली कंपनी ‘श्री नीता ट्रैवल्स’ की मालकिन हैं। उन्होंने समाज के तानों और मुश्किलों का सामना करते हुए यह मुकाम हासिल किया है। आइए, यहां नीता की सफलता के सफर के बारे में जानते हैं।अक्सर समाज में शादी को महिलाओं का अंतिम लक्ष्य माना जाता है। लेकिन, कई महिलाओं के लिए यह बंधन बन जाता है। वे चुपचाप दुख सहती हैं। हिंसा झेलती हैं। समाज के डर से दबी रहती हैं। दुख की बात है कि इस बंधन को तोड़ना आसान नहीं होता। सामाजिक बदनामी का डर, आर्थिक असुरक्षा और बच्चों के भविष्य की चिंता के कारण कई महिलाएं असफल और दर्दनाक रिश्तों में बंधी रहती हैं। हालांकि, कुछ महिलाएं हिम्मत जुटाती हैं। इन परिस्थितियों से बाहर निकलकर अपने लिए एक नया रास्ता बनाती हैं।
नीता की कहानी ऐसी ही एक महिला की है। वह महाराष्‍ट्र की रहने वाली हैं। उनकी शादी सिर्फ 14 साल की उम्र में हो गई थी। 15 साल की उम्र तक वह मां बन गई थीं। उनकी जिंदगी संघर्षों से भरी थी। अपने तीन बच्चों के लिए उन्होंने सालों तक एक हिंसक रिश्ता सहा। हर बार जब उनके पति ताना मारते थे तो नीता के अंदर एक आग जल उठती थी। यह आग उन्हें खुद को साबित करने की प्रेरणा देती थी। इसी प्रेरणा ने उन्हें अपना रास्ता चुनने के लिए प्रोत्साहित किया। नीता ने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। उन्होंने अपने स्कूटर चलाने के कौशल को व्यवसाय में बदलने का फैसला किया। उन्होंने स्कूली बच्चों को लाना ले जाना शुरू कर दिया। हालांकि, सफलता की राह आसान नहीं थी। उद्योग में उनके पुरुष सहयोगियों ने उन्हें एक खतरे के रूप में देखा। उन्होंने उनके खिलाफ साजिश रची। पति को उनके खिलाफ उकसाया। जब पति ने कहा, ‘मैं तुम्हें जान से मार दूंगा’ तो नीता ने हिम्मत दिखाई और अपने तीन बच्चों के साथ उस जीवन से नाता तोड़ने का फैसला किया। तब उनकी उम्र 34 साल की थी। इसके बाद उन्होंने पढ़ाई भी शुरू कर दी। अपने बच्चों के साथ खुद को शिक्षित किया। आठ साल बाद नीता की मेहनत रंग लाई। आज वह ‘श्री नीता ट्रैवल्स’ के तहत 13 बसों की मालकिन हैं। उनकी बेटियां आत्मनिर्भर हो गई हैं। उनका बेटा कनाडा में एक सफल जीवन जी रहा है।

बिहार का एक अनोखा आरोग्य मंदिर, जो बन गया है अस्पताल

-विपिन कुमार पाठक ने की थी इस मंदिर की स्थापना

-वैदिक चिकित्सा से इलाज

मुजफ्फरपुर । बिहार के मुजफ्फरपुर में एक अनोखा मंदिर है, जो वैदिक चिकित्सा के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का नाम आरोग्य मंदिर है। यहां बिना दवा के, सिर्फ नस के एक पॉइंट को दबाकर असाध्य रोगों का इलाज किया जाता है। लोग यहां दमा, कब्जियत, मधुमेह और कई अन्य बीमारियों से छुटकारा पा रहे हैं। यह मंदिर देश ही नहीं, दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुका है। इसकी स्थापना विपिन कुमार पाठक ने की थी। उनका लक्ष्य था लोगों को स्वस्थ करना। आरोग्य मंदिर, मुजफ्फरपुर के अखाड़ाघाट में स्थित है। यह गायत्री मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। अब यह वैदिक चिकित्सा के कारण आरोग्य मंदिर के नाम से मशहूर हो गया है। यहां उत्तर प्रदेश, झारखंड, मुंबई, और कई अन्य राज्यों से लोग इलाज कराने आते हैं। नेपाल, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया और जापान से भी लोग यहां गंभीर बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए आते हैं। इस केंद्र में मरीजों को बिना दवा के बीमारियों से छुटकारा मिलता है। आरोग्य मंदिर में कई बीमारियों का इलाज किया जाता है। इनमें दमा, कब्जियत, मधुमेह, कोलाइटिस, अल्सर, अम्ल पित्त, ब्लड प्रेशर, अर्थराइटिस, एग्जिमा, थायराइड, मोटापा और एलर्जी जैसी बीमारियां शामिल हैं। तनाव, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, घबराहट, जोड़ों के दर्द और चर्म रोगों के इलाज में भी यहां सफलता मिलती है। यहां का प्राकृतिक वातावरण लोगों को रोगों से मुक्ति दिलाता है। इससे लोग बहुत खुश होते हैं और मंदिर की प्रशंसा करते हैं।
आरोग्य मंदिर की स्थापना विपिन कुमार पाठक ने की थी। उन्होंने बताया कि बचपन में उनके छोटे भाई और दादी की असाध्य रोग से मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उन्होंने लोगों को स्वस्थ करने का संकल्प लिया। उन्होंने मेडिकल की तैयारी शुरू की, लेकिन आर्थिक समस्या के कारण एमबीबीएस में दाखिला नहीं ले पाए। विपिन पाठक ने कहा कि अंग्रेजी इलाज सिर्फ महंगा नहीं होता उसकी पढ़ाई भी काफी महंगी होती है जो एक आम इंसान की पहुंच से बाहर है। फिर उन्होंने महाराष्ट्र से न्यूरोथैरेपी की ट्रेनिंग ली। इसके बाद वे अपने घर में ही लोगों का इलाज करने लगे। शुरू में लोग उनका मजाक उड़ाते थे। लोगों को लगता था कि बिना दवा के सिर्फ हाथों से कोई ठीक नहीं हो सकता। लेकिन जब बीमार लोगों में सुधार होने लगा, तो आसपास के जिलों से भी लोग आने लगे। अब तो दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। विपिन पाठक कहते हैं कि वैदिक चिकित्सा एक प्राचीन और पारंपरिक उपचार पद्धति है। इसमें शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर ध्यान दिया जाता है। यह प्राकृतिक और सुरक्षित उपचार पद्धति है। यह शरीर की प्राकृतिक उपचार क्षमता को बढ़ावा देती है। इससे विभिन्न प्रकार के रोगों के इलाज में रोगियों को लाभ मिलता है। विपिन पाठक के अनुसार, वैदिक चिकित्सा में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें दवाइयों का उपयोग नहीं होता। बल्कि, शरीर की ऊर्जा को संतुलित करके रोगों को ठीक किया जाता है।

लागू हो गया नया वक्फ कानून, केंद्र ने जारी की अधिसूचना

नयी दिल्ली । वक्फ संशोधन अधिनियम पूरे देश में 8 अप्रैल से लागू हो गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से इसकी अधिसूचना जारी कर दी गई है। इस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल किया है। इसमें कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले केंद्र सरकार को भी सुना जाए। भारत सरकार के कानूनी दस्तावेजों में से एक, भारत का राजपत्र है। इसमें सरकार के सभी आदेश और सूचनाएं प्रकाशित होती हैं।केंद्र सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है, ‘केंद्र सरकार, वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 (2025 का 14) की उप-धारा (2) की धारा 1 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, 8 अप्रैल, 2025 को वह तारीख नियुक्त करती है जिस दिन उक्त अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे।’केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दाखिल किया है। कैविएट एक तरह की अर्जी होती है। इसे कोई भी पक्ष हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर सकता है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी आदेश बिना उसे सुने पारित न किया जाए। केंद्र सरकार ने यह कैविएट वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के खिलाफ दाखिल किया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को मंजूरी दी थी। इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में बहस के बाद पारित किया गया था। राज्यसभा में 128 सदस्यों ने वक्फ विधेयक के पक्ष में और 95 सदस्यों ने विरोध में वोट दिया। वहीं लोकसभा में 288 सदस्यों ने इसे समर्थन दिया जबकि 232 ने विरोध में मतदान किया।

नहीं रहे ‘राई’ के राजा रामसहाय पांडे 

-कमर में मृदंग, पैरों में घुंघरू बांध जापान-फ्रांस तक को नचाया
सागर। बुंदेलखंड के प्रसिद्ध राई नर्तक रामसहाय पांडे का 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उन्होंने राई नृत्य को 24 देशों में पहचान दिलाई। उनका निधन सागर के एक निजी अस्पताल में हुआ। वे लंबे समय से बीमार थे। उनके निधन पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने दुख जताया है। रामसहाय पांडे ने 12 साल की उम्र से ही राई नृत्य करना शुरू कर दिया था। उन्होंने इस नृत्य को दुनिया भर में पहचान दिलाई। उन्होंने 24 देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। भारत सरकार ने उन्हें 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उनके निधन पर दुख जताते हुए कहा कि यह मध्य प्रदेश के लिए एक बड़ी क्षति है। रामसहाय पांडे ने 12 साल की छोटी उम्र से ही राई नृत्य करना शुरू कर दिया था। बुंदेलखंड को पिछड़ा इलाका माना जाता था। इसलिए शुरुआत में इस नृत्य को ज्यादा पहचान नहीं मिली लेकिन रामसहाय पांडे ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी मेहनत से राई नृत्य को पूरी दुनिया में पहुंचाया। उनका जन्म 11 मार्च 1933 को सागर जिले के मड़धार पठा गांव में हुआ था। बाद में वे कनेरादेव गांव में बस गए। यहीं से उन्होंने राई नृत्य की शुरुआत की। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा, ‘बुंदेलखंड के गौरव, लोकनृत्य राई को वैश्विक पहचान दिलाने वाले लोक कलाकार पद्मश्री श्री रामसहाय पांडे जी का निधन मध्यप्रदेश और कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। लोक कला एवं संस्कृति को समर्पित आपका सम्पूर्ण जीवन हमें सदैव प्रेरित करता रहेगा। परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत की पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान और परिजनों को यह गहन दुःख सहन करने की शक्ति दें।’ रामसहाय पांडे कद में छोटे थे, लेकिन राई नृत्य में उनका कोई मुकाबला नहीं था। जब वे कमर में मृदंग बांधकर नाचते थे, तो लोग हैरान रह जाते थे। उन्होंने जापान, हंगरी, फ्रांस, मॉरिसस जैसे कई बड़े देशों में राई नृत्य का प्रदर्शन किया। रामसहाय पांडे ब्राह्मण परिवार से थे। उनके परिवार में राई नृत्य को अच्छा नहीं माना जाता था। क्योंकि इसमें महिलाओं के साथ नाचना होता है। जब रामसहाय पांडे ने राई नृत्य किया, तो उन्हें समाज से बाहर कर दिया गया था। लेकिन जब उन्होंने इस लोकनृत्य को गांव से निकालकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया, तो सभी ने उन्हें अपना लिया। सरकार ने भी उनकी कला को सराहा और उन्हें मध्य प्रदेश लोककला विभाग में जगह दी।रामसहाय पांडे जब 6 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। उनकी मां अपने बच्चों को लेकर कनेरादेव गांव आ गईं। 6 साल बाद उनकी मां भी चल बसीं। उनका बचपन बहुत मुश्किलों में बीता था। राई नृत्य बुंदेलखंड का सबसे प्रसिद्ध नृत्य है। यह साल भर हर बड़े आयोजन में होता है। इसमें पुरुष और महिलाएं दोनों नाचते हैं। राई नृत्य करने वाली महिलाओं को बेड़नियां और पुरुषों को मृदंगधारी कहते हैं। महिलाएं पैरों में घुंघरू बांधकर और सज-धज कर मृदंग की थाप पर नाचती हैं। इस दौरान पुरुष और महिलाएं देशी स्वांग भी गाते हैं। बुंदेलखंड में शादी और बच्चों के जन्म पर राई नृत्य सबसे ज्यादा होता है।

पत्नी के गहने बेचकर बनाया था चलता-फिरता बिस्तर, सीज हो गयी

-सोशल मीडिया पर नवाब का वीडियो हुआ वायरल
-डेढ़ साल का लगा समय और सवा लाख किए खर्च

मुर्शिदाबाद । मुर्शिदाबाद में एक 27 साल के युवक ने कमाल कर दिया। नवाब शेख नाम के इस युवक ने एक चलता-फिरता बिस्तर बनाया है। यह बिस्तर गाड़ी की तरह चलता है। लेकिन, नवाब की खुशी ज्यादा दिन नहीं टिक पाई। डोमकल पुलिस ने उनकी गाड़ी को जब्त कर लिया है। पुलिस का कहना है कि नवाब ने मोटर व्हिकल्स एक्ट के नियमों का उल्लंघन किया है। अब नवाब पुलिसवालों के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं क्योंकि उन्होंने अपना यह बेड ऑन व्हील अपनी पत्नी के गहने बेचकर बनवाया था। नवाब शेख पेशे से पूल कार ड्राइवर हैं। उन्होंने एक ऐसा बिस्तर बनाया है जो गाड़ी की तरह चल सकता है। इस अनोखे बिस्तर में 5×7 फीट का गद्दा, तकिए और चादरें हैं। बिस्तर के पास ही ड्राइवर के बैठने की जगह है। यहां स्टीयरिंग व्हील, रियर-व्यू मिरर और ब्रेक भी लगे हैं। यह ‘बिस्तर गाड़ी’ रानीनगर और डोमकल के बीच चल रही थी। इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो गई। इससे ट्रैफिक जाम होने लगा। नवाब के फेसबुक पेज पर इस गाड़ी के वीडियो को 2.4 करोड़ से ज्यादा बार देखा गया। बांग्लादेश के एक चैनल पर इसे 20 करोड़ बार देखा गया। नवाब ने बताया कि इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में उन्हें 1.5 साल से ज्यादा का समय लगा। उन्होंने कहा कि मेरा बस एक सपना था कि मैं वायरल हो जाऊं। उन्होंने आगे कहा कि इस प्रोजेक्ट पर उन्होंने लगभग 2.15 लाख रुपये खर्च किए। एक स्थानीय वर्कशॉप से इंजन, स्टीयरिंग, फ्यूल टैंक और एक छोटी कार का बॉडी खरीदा। उन्होंने एक बढ़ई को लकड़ी का बिस्तर बनाने के लिए भी बुलाया था। नवाब महीने में सिर्फ 9,000 रुपये कमाते हैं। फिर भी उन्होंने अपनी पत्नी के गहने बेचकर इस प्रोजेक्ट के लिए पैसे जुटाए। ईद से एक हफ्ते पहले बिस्तर गाड़ी बनकर तैयार हो गई थी। नवाब ने ईद के दिन इसे पहली बार चलाया। पुलिस ने उनसे व्यस्त राजमार्ग पर गाड़ी चलाने से मना किया था, लेकिन उन्होंने पुलिस की बात नहीं मानी।