Tuesday, August 5, 2025
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12 साल से अंधेरे में था स्कूल… हर तरफ मिली हार, फिर शिक्षक लाए उजाला

बांदा । अगर किसी गांव में, मोहल्ले में या सरकारी स्कूल में बिजली न हो तो इसके लिए जनप्रतिनिधि या प्रशासनिक अधिकारी अपनी ओर से कदम उठाते हैं। वहीं बांदा में एक पूर्व मंत्री के गांव में स्थित सरकारी स्कूल में पिछले 12 सालों से बिजली नहीं थी। इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों व जिले के जनप्रतिनिधियों ने कोई ध्यान नहीं दिया। मजबूर होकर इसी स्कूल के अध्यापकों ने मिलकर चंदा किया और डेढ़ लाख रुपए जमा करके स्कूल तक बिजली लाकर एक मिसाल कायम की।
12 साल पहले शुरू हुआ था स्कूल
जिले की बबेरू तहसील अंतर्गत पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा का पखरौली पैतृक गांव है। इसी गांव में 12 साल पहले राजकीय विद्यालय 2010 में शुरू हुआ। स्कूल के पास बिजली सबस्टेशन है। इसके बाद ही स्कूल में कनेक्शन नहीं था।
गर्मी में परेशान हो जाते थे बच्चे
इसके कारण गर्मी में बच्चे पसीने से तरबतर हो जाते थे। जिससे पढ़ाई भी उनकी बाधित होती थी। इसके लिए विद्यालय के अध्यापकों ने कई बार जनप्रतिनिधियों के दरवाजे में दस्तक देकर स्कूल में बिजली चालू कराने की मांग की। इसके बाद विभागीय अधिकारियों व प्रशासनिक अधिकारियों के भी चक्कर काटे लेकिन किसी ने इस समस्या का निदान नहीं किया।
शिक्षकों ने किया बड़ा फैसला
शिक्षकों को विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों की दशा देखी नहीं गई। उन्होंने इस संबंध में आपस में मिलकर फैसला किया। इस फैसले के तहत प्रधानाचार्य के अलावा अध्यापक गौरी शंकर, शिक्षिका पिंकी सिंह, सोनल सागर, चंद्रावती और प्रतिभा ने 25-25 हजार रुपए आपस में चंदा करके डेढ़ लाख रुपए जमा कर ट्रांसफार्मर व खंभा आदि के लिए विद्युत विभाग में पैसा जमा किया। इसके बाद स्कूल में बिजली आ गई।

शिक्षा विभाग ने भी नहीं दिया साथ
इस बारे में प्रधानाचार्य डॉ रवि करण सिंह ने बताया कि विद्युत विभाग के अफसरों को कनेक्शन के लिए पत्र लिखा। इस पर स्टीमेट में लगभग डेढ़ लाख रुपए खर्च होना बताया गया। इसके बाद जनप्रतिनिधि व शिक्षा विभाग के अफसरों को इस बारे में पत्र लिखा गया फिर भी इस पर कुछ नहीं हुआ।
और फिर रंग लाई शिक्षकों की मेहनत
तब मैंने स्कूल के स्टॉफ से बातचीत कर अपने वेतन से स्टीमेट की राशि चंदा कर जमा करने का निर्णय लिया। सभी शिक्षक व शिक्षकों शिक्षिकाओं ने 25 -25 हजार की धनराशि जमा की। तब जाकर ट्रांसफार्मर और खंभा लगाकर बिजली विभाग ने बिजली का कनेक्शन कर दिया।
कायम की मिसाल
प्रधानाचार्य डॉ रवि करण सिंह ने एमसीबी पर फूल माला चढ़ाकर एमसीबी की बटन दबाकर विद्युत सप्लाई शुरू कर दी। स्कूल में विद्युत आपूर्ति शुरू होते ही छात्र-छात्राओं व अभिभावकों में खुशी की लहर छा गई। सभी ने इसके लिए विद्यालय के अध्यापकों की सराहना की। उनका कहना है कि जो काम जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को करना चाहिए वह कार्य इन अध्यापकों ने अपने वेतन से सहयोग कर कर दिखाया, यह एक मिसाल है।

(साभार – नवभारत टाइम्स)

महिला प्रीमियर लीग : गुजरात जायंट्स से जुड़ी मिताली राज

नयी दिल्ली । मार्च-अप्रैल 2023 में होने वाले महिला प्रीमियर लीग के शुरूआती सीजन से पहले मिताली राज को गुजरात जाइंट्स के मेंटर और सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया। अडानी स्पोर्ट्सलाइन ने 1289 करोड़ रुपये की उच्चतम बोली के साथ डब्ल्यूपीएल में अहमदाबाद टीम को संचालित करने के अधिकार जीते थे। उन्होंने एक आधिकारिक बयान में कहा कि जायंट्स की मेंटर और सलाहकार होने के अलावा, मिताली महिला क्रिकेट को भी बढ़ावा देगीं और गुजरात में जमीनी स्तर पर खेल को विकसित करने में मदद करेंगी।
भारतीय महिला टीम की पूर्व कप्तान मिताली राज महिला इंटरनेशनल क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाली बल्लेबाज हैं। फ्रेंचाइजी ने कहा, ‘महिला प्रीमियर लीग का उद्घाटन सत्र महिला क्रिकेट के लिए एक शानदार कदम है और अडानी समूह की भागीदारी खेल के लिए भी एक बड़ा बढ़ावा है। महिला क्रिकेट लगातार बढ़ रहा है, और इस तरह की प्रेरणा निस्संदेह युवा महिलाओं को प्रोत्साहित करेगी कि क्रिकेट को पेशेवर रूप से लेने पर विचार करें।’’
मिताली ने भारत के लिए 89 टी20 मैच खेले हैं और 37.52 के औसत से 2,364 रन बनाए हैं, जिसमें 17 अर्धशतक शामिल हैं। उन्होंने प्रारूप से अपनी संन्यास की घोषणा करने से पहले घर में इंग्लैंड के खिलाफ 2019 में आखिरी बार भारत के लिए एक टी20 मैच खेला था। उन्होंने जून 2022 में अपनी संन्यास की घोषणा करने से पहले वनडे और टेस्ट खेलना जारी रखा। मिताली ने 2005 और 2017 महिला वनडे विश्व कप में उपविजेता रहने के लिए भारत की कप्तानी भी की।
फ्रेंचाइजी ने आगे कहा, ‘मिताली राज युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श हैं और हम अपनी महिला क्रिकेट टीम को सलाह देने के लिए इस तरह के एक प्रेरणादायक एथलीट के साथ खुश हैं।’ अडानी एंटरप्राइजेज के निदेशक प्रणव अडानी ने कहा, ‘हम मानते हैं कि मिताली जैसी अंतरराष्ट्रीय खेल हीरो की उपस्थिति न केवल क्रिकेट में बल्कि हर दूसरे खेल में भी नई प्रतिभाओं को आकर्षित करेगी और पेशेवर खेल पारिस्थितिकी तंत्र को बदल देगी।’

आ गयी देश की पहली कोरोना नेजल वैक्सीन 

नयी दिल्ली । केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया और विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने भारत बायोटेक के नेजल कोविड टीके इनकोवैक को लांच किया। नाक के जरिये दिये जा सकने वाले दुनिया के पहले भारत निर्मित टीके को यहां मांडविया के आवास पर लांच किया गया। नेजल टीके बीबीवी154 को हीट्रोलोगस बूस्टर खुराक के रूप में वयस्कों में सीमित उपयोग के लिए नवंबर में भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) की मंजूरी मिली थी।
भारत बायोटेक के पहले जारी एक बयान के अनुसार इनकोवैक की कीमत निजी क्षेत्र के लिए 800 रुपये और भारत सरकार और राज्य सरकारों को आपूर्ति के लिए 325 रुपये है। हीट्रोलोगस बूस्टर खुराक में प्राथमिक खुराक से अलग बूस्टर खुराक दी जा सकती है। हैदराबाद से संचालित कंपनी ने एक बयान में कहा था कि तीन चरणों में क्लीनिकल परीक्षणों में इस टीके के सफल परिणाम आये।
खास बात है कि इस वैक्सीन को वैक्सीन को डिलीवर करना और बनाना मस्कुलर वैक्सीन की तुलना में ज्यादा आसान है। नेजल वैक्सीन को 2 से 8 डिग्री सेल्सियस के तापमान में स्टोर करके रखा जा सकता है। वैक्सीन गेमचेंजर साबित हो सकती है। इससे वैक्सीनेशन की रफ्तार में और अधिक तेजी आएगी।

उज्जैन के प्राचीन वाग्देवी मंदिर में स्याही से होता है ‘नील सरस्वती’ का अभिषेक

उज्जैन । मध्य प्रदेश की प्राचीन नगरी उज्जैन में ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती का प्राचीन मंदिर है। वाग्देवी मंदिर में देवी नील सरस्वती के रूप में विराजमान हैं। वसंत पंचमी पर पढ़ाई करने वाले बच्चे स्याही से उनका अभिषेक करते हैं। सरस्वती पूजा के दिन मंदिर में मां सरस्वती का विशेष पूजन भी होता है।
नील सरस्वती के नाम से मशहूर इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां वाग्देवी का स्याही से अभिषेक पूजन करने से पढ़ाई में मन लगता है। पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करने का संकल्प मजबूत होता है और सफलता मिलती है। छात्र अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होते हैं। इसी मान्यता के चलते स्थानीय के साथ दूरदराज से भी स्वजन बच्चों को लेकर माता के दरबार में आते हैं।


यहां वसंत पंचमी का त्योहार धूमधाम से मनता है। विद्धार्थियों के अलावा देवी का दर्शन-पूजन करने भारी भीड़ जुटती है। सिंहपुरी के समीप बिजासन पीठ के सामने स्थित इस मंदिर में परीक्षा के दिनों में भी बड़ी संख्या में विद्यार्थी नील सरस्वती के दर्शन करने आते हैं। वसंत पंचमी पर भीड़ बढ़ जाती है क्योंकि कुछ दिनों बाद ही परीक्षाएं भी शुरू होने वाली होती हैं। छात्र देवी का स्याही से अभिषेक कर परीक्षा में सफलता की प्रार्थना करते हैं।
उज्जैन के इस प्राचीन मंदिर में वसंत पंचमी पर वाग्देवी को वासंती फूलों के साथ नील कमल व अष्टर के फूल अर्पित करने का विधान है। शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है। हालांकि, फूलों के अर्क का स्थान अब नीली स्याही ने ले लिया है। शास्त्रों में कहीं-कहीं माता सरस्वती को नीलवर्णी कहा गया है। माना जाता है कि भगवान विष्णु से आदेशित होकर नील सरस्वती भगवान ब्रम्हा के साथ सृष्टि के ज्ञान कल्प को बढ़ाने का दायित्व संभाले हुए हैं।

(साभार – नवभारत टाइम्स)

 फूलों की महक से गुलजार हो रहे चित्रकूट के किसानों के खेत

चित्रकूट । सूखा, ओलावृष्टि जैसी दैवीय आपदाओं और दस्यु समस्या के लिए सुर्खियों में रहने वाले बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले के किसानों की अब तस्वीर बदल रही है। ये किसान परम्परागत खेती को छोड़कर गुलाब और गेंदा जैसे फूलों की खेती कर रहे हैं और इस तरह ये किसान अपनी आय दोगुनी कर रहे हैं। खेती में हुए इस बदलाव से बदहाली का रोना रोने वाले किसान अब आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं।
भगवान श्रीराम की तपोभूमि होने के कारण धार्मिक और आध्‍यात्मिक दृष्टि से समृद्ध होने के बावजूद बुंदेलखंड के अति पिछड़े जिले चित्रकूट का नाम आते ही लोगों के दिमाग में भुखमरी, बेरोजगारी, पेयजल संकट और दस्यु समस्या की तस्वीर उभरने लगती है। सूखा, अतिवृष्टि, ओलावृष्टि और आगजनी जैसी दैवीय आपदाओं से परेशान होकर बुंदेलखंड के किसानों की आत्महत्या की घटनाएं भी काफी समय तक राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनती रही हैं।
दुर्दांत डकैतों के आतंक के चलते कई दशकों तक पाठा के बीहड़ों से सटे सैकड़ों गांव में विकास की किरण नहीं पहुंच सकी थी। रोजगार की तलाश में क्षेत्र के हजारों युवाओं को गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली आदि प्रदेशों को पलायन करना पड़ता रहा है। सिंचाई वगैरह का पर्याप्त इंतजाम न होने के कारण चित्रकूट में खेती हमेशा घाटे का सौदा मानी जाती रही है। भगवान भरासे हो रही खेती में किसानों को लागत के बराबर भी आमदनी नहीं हो पा रही थी।
लेकिन इधर पिछले कुछ वर्षों से चित्रकूट जिले की तस्वीर बदलने लगी है। क्षेत्र के किसानों ने परम्परागत गेंहू, चना और धान आदि फसलों की खेत को छोड़कर उद्यानीकरण को अपना कर गुलाब, गेंदा वगैरह फूलों की खेती शुरू कर अपनी आय को दोगुना कर खुशहाल जीवन बिता रहे हैं। ऐसे लोगों से प्रेरणा लेकर बुंदेलखंड के अन्य जिलों में बड़ी संख्या में किसानों का रुझान फूलों और सब्जियों की खेती की ओर बढ़ रहा है।
चित्रकूट जिले के तरौंहा, डिलौरा, सीतापुर, गढ़वा, पूरबपताई, हनुवा, घुरेहटा, हटवा और मनोहरगंज आदि गांवों के दर्जनों किसानों ने परम्परागत गेंहू, चना, धान आदि की खेती को छोड़ दिया है। उन्‍होंने अब गुलाब, गेंदा आदि फूलों की खेती कर आत्मनिर्भता की ओर मजबूत कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है। किसानों के घर में आर्थिक समृद्धि ने बसेरा बना लिया है। डिलौरा-तरौंहा, रामबाग, सीतापुर, पहाड़ी के किसान महज उदाहरण हैं। इनसे सीख लेकर बुंदेलखंड के कई जिलों के अन्नदाताओं की जिंदगी भी फूल की खेती ने महका दी है।
चित्रकूट जिले के कर्वी ब्लॉक के डिलौरा गांव निवासी विनोद कुशवाहा, जगन्नाथ कुशवाहा, गोबरिया के हरी, मनोहरगंज के सत्येंद्र पटेल हनुवां के हेमराज और घुरेहटा केवेट आदि ने परंपरागत गेहूं-धान से इतर गुलाब के फूलों की खेती शुरू की है। पहले जहां फसल उगाने के लिए तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता था वहीं अब चार से पांच सौ रुपये प्रतिदिन की आमदनी करते हैं।
तरौंहा गांव निवासी छोटेलाल पिछले चार सालों से गेंदा के फूल की खेती कर रहे हैं। खाद-बीज के लिए धनराशि को लेकर दिक्कत में फंसे रहने वाले छोटेलाल अब हर दिन दो से पांच सौ रुपये तक कमाई कर लेते हैं। उनकी आर्थिक हालत सुधर गई है। उनके फूलों की खासी डिमांड रहती है। शादी-विवाह के सीजन में पड़ोसी जिले सतना, प्रयागराज, बांदा आदि तक के लोग उनके फूल खरीदने आते हैं।
जिला उद्यान अधिकारी आशीष कटियार ने बताया कि फूलों की फसल महज दो-तीन माह में तैयार हो जाती है। इसके बाद पांच माह तक कमाई का जरिया बनती है। एक एकड़ में साल भर में डेढ़ से दो लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं, जबकि सामान्य परम्परागत फसल में महज 50 से 70 हजार रुपये तक की आय हो पाती है क्‍योंकि उसमें खर्चे अधिक होते हैं।
वर्तमान में करीब 90 एकड़ जमीन पर फूलों की खेती हो रही है।आशीष कटियार ने बताया कि फूल बिक्री का प्रमुख बाजार कर्वी, सीतापुर, चित्रकूट में लगता है। सुप्रसिद्ध कामतानाथ मंदिर, मंदाकिनी के रामघाट से लेकर प्राचीन मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों में प्रतिदिन हजारों क्विंटल फूल की खपत से बिक्री में आसानी रहती है। दुकानदार सुदामा प्रसाद कहते हैं कि आसपास के किसान सीधे फूल लाकर बिक्री करते हैं। मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को भी चढाने के लिए ताजे फूल मिल जाते हैं।
जिलाधिकारी अभिषेक आनंद का कहना है कि उद्यान विभाग लगातार परंपरागत खेती से हटकर फूलों और सब्जियों की खेती के लिए प्रोत्साहन दे रहा है। इसका खासा असर जिले के किसानों पर दिखाई पड़ रहा है। कई ब्लॉकों में किसान फूलों की खेती से आय बढ़ाने में कामयाब हुए हैं। धीरे-धीरे दूसरे किसानों को भी उद्यान विभाग प्रोत्साहन दे रहा है।

साभार – नवभारत टाइम्स

बिहार से आनंद कुमार, सुभद्रा और कपिल देव प्रसाद को पद्मश्री

पटना । भारत सरकार ने पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी है। देश के विभिन्न हिस्सों की महान विभूतियों को 6 पद्म विभूषण, 9 पद्म भूषण और 91 पद्मश्री जैसे पुरस्कार से नवाजा गया है। बिहार के तीन लोगों को पद्म श्री पुरस्कार मिला है। जिसमें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में सुपर थर्टी के मेंटॉर आनंद कुमार को पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा गया है। वहीं ओर कला के क्षेत्र में सुभद्रा देवी को पुरस्कार दिया गया है। उसके अलावा कपड़ा कला के मामले में नालंदा के कपिल देव प्रसाद को पद्म श्री से सम्मानित किया गया है।
कपिल देव प्रसाद को पद्मश्री
68 वर्षीय कपिल देप प्रसाद नालंदा जिले के रहने वाले हैं। उन्होंने कपड़ा कला में बेहतरीन काम किया है। जिसकी वजह से उन्हें ये पुरस्कार दिया गया है। बिहार को गौरव दिलाने वाले कपिल देव प्रसाद बवन बूटी कला के मर्मज्ञ हैं। इन्होंने अपने अब तक कई बड़े और लंबे कपड़ों पर अपनी कला उकेरी है। कपिल देप प्रसाद ने बसवनबिगहा की बुनकरी को 20 साल बाद राष्ट्रीय स्तर की कला के रूप में पहचान दिला चुके हैं।
आनंद कुमार को पद्मश्री
उसके अलावा आनंद कुमार को शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में पद्मश्री का पुरस्कार मिला है। 1 जनवरी 1973 को जन्म आनंद बिहार के शिक्षाविद् और विद्वान माने जाते हैं। इन्होंने सुपर थर्टी के माध्यम से गरीब बच्चों का दाखिला आईआईटी जैसे संस्थानों में कराने की जिम्मेदारी ली। इन पर विश्व की कई बड़ी नामी कंपनियों ने फिल्म बनाई है। डिस्कवरी इंडिया के साथ मुंबई के फिल्म निर्माताओं ने भी आनंद के जीवन पर फिल्म बनाई है। आनंद के पिता डाक विभाग में एक लिपिक रहे। आनंद ने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की है और सुपर थर्टी चलाते हैं। सरकार ने उनके योगदान को देखते हुए उन्हें पुरस्कार दिया है।

पेपरमैसे कला के लिए सम्मानित सुभद्रा देवी

सुभद्रा देवी को पेपरमेसी के लिए पद्मश्री मिला है। पेपरमेसी मूल रूप से जम्मू-कश्मीर की कला के रूप में प्रसिद्ध है, लेकिन सुभद्रा देवी ने बचपन में इस कला से खेला करती थीं। सबसे पहले यह जानना रोचक है कि पेपरमेसी होता क्या है? दरअसल, कागज को पानी में गलाकर उसे रेशे के लुगदी के रूप में तैयार करना और फिर नीना थोथा व गोंद मिलाकर उसे पेस्ट की तरह बनाते हुए उससे कलाकृतियां तैयार करना पेपरमेसी कला है। सुभद्रा देवी दरभंगा के मनीगाछी से ब्याह कर मधुबनी के सलेमपुर पहुंचीं तो भी इस कला से खेलना नहीं छोड़ा। आज जब पद्मश्री की घोषणा हुईं तो करीब 90 साल की सुभद्रा देवी दिल्ली में बेटे-पतोहू के पास हैं। घर से इतनी दूरी के बावजूद वह पेपरमेसी से दूर नहीं गई हैं। वहां से भी इस कला के विस्तार की हर संभावना देखती हैं। बड़े मंचों तक इसे पहुंचाने की जद्दोजहद में रहती हैं। भोली-भाली सूरत और सरल स्वभाव की मालकिन सुभद्रा देवी को वर्ष 1980 में राज्य पुरस्कार और 1991 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पेपरमेसी से मुखौटे, खिलौने, मूर्तियां, की-रिंग, पशु-पक्षी, ज्वेलरी और मॉडर्न आर्ट की कलाकृतियां बनाई जाती हैं। इसके अलावा अब प्लेट, कटोरी, ट्रे समेत काम का आइटम भी पेपरमेसी से बनता है। पेपरमेसी कलाकृतियों को आकर्षक रूप के कारण लोग महंगे दामों पर भी खरीदने को तैयार रहते हैं।

ओआरएस के जनक दिलीप महालनोबिस को पद्म विभूषण सम्मान

इस घोल ने बांग्लादेश युद्ध में बचाई थी लाखों की जान

कोलकाता । ओआरएस के जनक दिलीप महालनोबिस को मेडिसिन (बाल रोग) के क्षेत्र में पद्म विभूषण (मरणोपरांत) पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। पिछले साल अक्टूबर में ही मशहूर बाल चिकित्सक डॉ. दिलीप महालनोबिस का 88 साल की उम्र में निधन हो गया था। उनका जन्म अविभाजित बांग्लादेश के किशोरगंज जिले में हुआ था। उन्होंने बांग्लादेश युद्ध के दौरान लाइफ सेविंग सॉल्यूशन को विकसित किया था जिसने कई लोगों की जान बचाई थी।
दरअसल 1971 में जब पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) पर हमला बोल दिया था। युद्ध के चलते करीब 1 करोड़ लोग जान बचाकर बंगाल के बॉर्डर जिलों में भाग आए थे। उस वक्त बोनगांव स्थित रिफ्यूजी कैंप में हैजा महामारी फैल गई थी और अंत: स्रावी द्रव का स्टॉक भी खत्म हो गया था। इसके बाद डॉ. महालनोबिस ने कैंप में ओआरएस भिजवाए। ओआरएस के चलते रिफ्यूजी कैंप में मरीजों की मृत्युदर 30 फीसदी से घटकर 3 फीसदी तक हो गई।
थाईलैंड सरकार ने किया था सम्मानित
ओआरएस को मेडिसिन में 20वीं शताब्दी की महान खोज करार दिया गया। डॉ. महालनोबिस को 2002 में यूनिवर्सिटी ऑफ कोलंबिया ऐंड कॉरनेल में पोलिन पुरस्कार और 2006 में थाईलैंड सरकार ने उन्हें प्रिंस महिडोल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। डॉ. महालनोबिस ने कोलकाता स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ को अपनी एक करोड़ की सेविंग दान की थी। यहीं से उन्होंने बाल चिकित्सक के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी।
डॉ. महालनोबिस ने 1966 में जनस्वास्थ्य में कदम रखने के साथ ओरल रीहाइड्रेशन थेरपी (ओआरटी) पर काम करना शुडॉ. महालनोबिस का योगदान अभूतपूर्वरू किया था। डॉ. महालनोबिस ने डॉक्टर डेविड आर नलिन और रिचर्ड ए कैश के साथ कोलकाता के जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी इंटरनैशनल सेंटर फॉर मेडिसिन रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग में इसे लेकर रिसर्च की थी।
डॉ. महालनोबिस का योगदान अभूतपूर्व
इसी टीम ने ओआरएस बनाया जिसकी प्रभावशीलता 1971 के युद्ध तक केवल नियंत्रित परिस्थितियों में ही आजमाई गई थी। आईसीएमआर-एनआईसीईडी के डायरेक्टर शांता दत्त ने ओआरएस को एक महान खोज बताया था जिसके लिए डॉ. महालनोबिस का योगदान अभूतपूर्व है। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान कोलेरा (हैजा) से संक्रमित मरीजों की मृत्युदर कम करने में कारगार साबित होने के बाद ओआरएस को वैश्विक रूप से स्वीकार्यता मिली।

106 को पद्म सम्मान,6 हस्तियों को पद्म विभूषण, 9 को पद्म भूषण और 91 को पद्मश्री पुरस्कार

नयी दिल्ली । गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित पद्म पुरस्कारों में कई चर्चित और नये नाम हैं । यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया है। 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में रक्षामंत्री रहे मुलायम सिंह का पिछले साल 10 अक्टूबर को निधन हो गया था। इसके साथ ही पश्चिम बंगाल के डॉ. दिलीप महालनोबिस को पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। ओआरएस के जनक और मशहूर बाल चिकित्सक डॉ. दिलीप महालनोबिस का 88 साल की उम्र में पिछले साल निधन हो गया। डॉ. दिलीप महालनोबिस को बांग्लादेश युद्ध के दौरान लाइफ सेविंग सॉल्यूशन को विकसित करने और ओरल रीहाइड्रेशन थेरपी को प्रचलित करने का श्रेय दिया जाता है। ओआरएस को मेडिसिन में 20वीं शताब्दी की महान खोज करार दिया गया। इस बार 6 हस्तियों को पद्म विभूषण सम्मान दिया गया है। पद्म भूषण सम्मान 9 और पद्मश्री पुरस्कार 91 लोगों को दिया गया है।
चिकित्सा (बाल रोग) के क्षेत्र में ओआरएस के जनक दिलीप महालनोबिस को पद्म विभूषण (मरणोपरांत) दिया जाएगा। तेलंगाना के 80 वर्षीय भाषा विज्ञान प्रोफेसर बी. रामकृष्ण रेड्डी को साहित्य और शिक्षा (भाषाविज्ञान) के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। कांकेर के गोंड ट्राइबल वुड कार्वर अजय कुमार मंडावी को कला (लकड़ी पर नक्काशी) के क्षेत्र में पद्मश्री से नवाजा जाएगा।
3 दशकों से अधिक समय से मिज़ो सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने वाले आइज़वाल के मिज़ो लोक गायक के.सी. रनरेमसंगी को पद्म श्री से सम्मानित किया जाएगा। जलपाईगुड़ी के 102 वर्षीय सरिंदा वादक मंगला कांति रॉय को कला (लोक संगीत) के क्षेत्र में पद्म श्री से सम्मानित किया जाएगा।
प्रख्यात नागा संगीतकार और नवप्रवर्तक मोआ सुबोंग को कला (लोक संगीत) के क्षेत्र में पद्म श्री से नवाजा जाएगा। चिक्काबल्लापुर के वयोवृद्ध थमाटे प्रतिपादक मुनिवेंकटप्पा को कला (लोक संगीत) के क्षेत्र में पद्म श्री से सम्मानित किया जाएगा। छत्तीसगढ़ी नाट्य नाच कलाकार डोमार सिंह कुंवर को कला (नृत्य) के क्षेत्र में पद्म श्री से सम्मानित किया जाएगा।

पद्म विभूषण सम्मान इन्हें मिलेगा-

1. बालकृष्ण दोषी (मरणोपरांत)
2. जाकिर हुसैन
3. एसएम कृष्णा
4. दिलीप महालनबीस (मरणोपरांत)
5. श्रीनिवास वराधन
6. मुलायम सिंह यादव (मरणोपरांत)

पद्म भूषण सम्मान-

1. एसएल भैरप्पा
2. कुमार मंगलम बिड़ला
3. दीपक धार
4. वानी जयराम
5. स्वामी चिन्ना जियार
6. सुमन कल्याणपुर
7. कपिल कपूर
8. सुधा मूर्ति
9. कमलेश डी पटेल

पद्म श्री सम्मान

1. डॉ. सुकमा आचार्य, अध्यात्मवाद, हरियाणा
2. जोधैयाबाई बैगा, कला, मध्य प्रदेश
3. प्रेमजीत बारिया, कला, दादरा-नगर हवेली
4. उषा बारले, कला, छत्तीसगढ़
5. मुनीश्वर चंदावर, चिकित्सा, मध्य प्रदेश
6. हेमंत चौहान, कला, गुजरात
7. भानुभाई, चित्र कला, गुजरात
8. हेमोप्रोवा, कला, असम
9. नरेंद्र चंद्र देबबर्मा (मरणोपरांत), पब्लिक अफेयर्स, त्रिपुरा
10. सुभद्रा देवी, कला, बिहार
11. खादर वल्ली डुडेकुला, साइंस एंड इंजीनियरिंग, कर्नाटक
12. हेम चंद्र गोस्वामी, कला, असम
13. प्रितिकाना गोस्वामी, कला, पश्चिम बंगाल
14. राधा चरण गुप्त, साहित्य एवं शिक्षा, उत्तर प्रदेश
15. मोदाडुगु विजय गुप्ता, विज्ञान एवं इंजीनियरिंग, तेलंगाना
16. अहमद हुसैन और मो हुसैन, कला, राजस्थान
17. दिलशाद हुसैन, कला, उत्तर प्रदेश
18. भीकू रामजी इदाते, सामाजिक कार्य, महाराष्ट्र
19. सी आई इस्साक, साहित्य और शिक्षा, केरल
20. रतन सिंह जग्गी, साहित्य और शिक्षा, पंजाब
21. बिक्रम बहादुर जमातिया, सामाजिक कार्य, त्रिपुरा
22. रामकुईवांगबे जेने, सामाजिक कार्य, असम
23. राकेश राधेश्याम झुनझुनवाला (मरणोपरांत), व्यापार एवं उद्योग, महाराष्ट्र
24. रतन चंद्र, चिकित्सा, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
25. महीपत कवि, कला, गुजरात
26. एम एम कीरावनी, कला, आंध्र प्रदेश
27. आरिज खंबाटा (मरणोपरांत), व्यापार और उद्योग, गुजरात
28. परशुराम, कला, महाराष्ट्र
29. गणेश नागप्पा, विज्ञान और इंजीनियरिंग, आंध्र प्रदेश
30. मगुनी चरण, कला, ओडिशा
31. आनंद कुमार, साहित्य एवं शिक्षा, बिहार
32. अरविन्द कुमार, विज्ञान एवं अभियांत्रिकी, उत्तर प्रदेश
33. डोमर सिंह कुंवर, कला, छत्तीसगढ़
34. रिशिंगबोर कुर्कलांग, कला, मेघालय
35. हीराबाई लोबी, सामाजिक कार्य, गुजरात
36. मूलचंद लोढ़ा, सामाजिक कार्य, राजस्थान
37. रानी मचैया, कला, कर्नाटक
38. अजय कुमार मंडावी, कला, छत्तीसगढ़
39. प्रभाकर भानुदास मंडे, साहित्य एवं शिक्षा, महाराष्ट्र
40. गजानन जगन्नाथ माने, सामाजिक कार्य, महाराष्ट्र
41. अंतर्यामी मिश्रा, साहित्य और शिक्षा, ओडिशा
42. नादोजा पिंडीपापनहल्ली मुनिवेंकटप्पा, कला, कर्नाटक
43. प्रो. (डॉ.) महेंद्र पाल, साइंस एंड इंजीनियरिंग, गुजरात
44. उमा शंकर पाण्डेय, सामाजिक कार्य, उत्तर प्रदेश
45. रमेश परमार और शांति परमार, कला, मध्य प्रदेश
46. डॉ. नलिनी पार्थसारथी, चिकित्सा, पुडुचेरी
47. हनुमंत राव, मेडिसिन, तेलंगाना
48. रमेश पतंगे, साहित्य और शिक्षा, महाराष्ट्र
49. कृष्णा पटेल, कला, ओडिशा
50. के कल्याणसुंदरम पिल्लई, कला, तमिलनाडु
51. वी पी अप्पुकुट्टन पोडुवल, सामाजिक कार्य, केरल
52. कपिल देव प्रसाद, कला, बिहार
53. एस आर डी प्रसाद, स्पोर्ट्स, केरल
54. शाह रशीद अहमद कादरी, कला, कर्नाटक
55. सी वी राजू, कला, आंध्र प्रदेश
56. बख्शी राम, साइंस एंड इंजीनियरिंग, हरियाणा
57. चेरुवायल के रमन, कृषि, केरल
58. सुजाता रामदोराई, साइंस एंड इंजीनियरिंग, कनाडा
59. अब्बारेड्डी नागेश्वर राव, विज्ञान और इंजीनियरिंग, आंध्र प्रदेश
60. परेशभाई राठवा, कला, गुजरात
61. बी रामकृष्ण रेड्डी, साहित्य और शिक्षा, तेलंगाना
62. मंगला कांति रॉय, कला, पश्चिम बंगाल
63. के सी रनरेमसंगी, कला, मिजोरम
64. वडिवेल गोपाल और श्री मासी सदइयां, सामाजिक कार्य, तमिलनाडु
65. मनोरंजन साहू, चिकित्सा, उत्तर प्रदेश
66. पतायत साहू, कृषि, ओडिशा
67. ऋत्विक सान्याल, कला, उत्तर प्रदेश
68. कोटा सच्चिदानंद शास्त्री, कला, आंध्र प्रदेश
69. संकुरथ्री चंद्रशेखर, सामाजिक कार्य, आंध्र प्रदेश
70. के शानाथोइबा शर्मा, खेल, मणिपुर
71. नेकराम शर्मा, कृषि, हिमाचल प्रदेश
72. गुरचरण सिंह, स्पोर्ट्स, दिल्ली
73. लक्ष्मण सिंह, सामाजिक कार्य, राजस्थान
74. मोहन सिंह, साहित्य और शिक्षा, जम्मू और कश्मीर
75. थौनाओजम चाओबा सिंह, पब्लिक अफेयर्स, मणिपुर
76. प्रकाश चंद्र सूद, साहित्य और शिक्षा, आंध्र प्रदेश
77. नेहुनुओ सोरही, कला, नागालैंड
78. जनम सिंह सोय, साहित्य एवं शिक्षा, झारखंड
79. कुशोक थिकसे नवांग चंबा स्टैनज़िन, अध्यात्मवाद, लद्दाख
80. एस सुब्बारमन, पुरातत्व, कर्नाटक
81. मो. सुबोंग, कला, नागालैंड
82. पालम कल्याण सुंदरम, सामाजिक कार्य, तमिलनाडु
83. रवीना रवि टंडन, कला, महाराष्ट्र
84. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, साहित्य एवं शिक्षा, उत्तर प्रदेश
85. धनीराम टोटो, साहित्य और शिक्षा, पश्चिम बंगाल
86. तुला राम उप्रेती, कृषि, सिक्किम
87. डॉ. गोपालसामी वेलुचामी, मेडिसिन, तमिलनाडु
88. डॉ. ईश्वर चंद वर्मा, मेडिसिन, दिल्ली
89. कूमी नरीमन वाडिया, कला, महाराष्ट्र
90. कर्मा वांगचू (मरणोपरांत), सामाजिक कार्य, अरुणाचल प्रदेश
91. गुलाम मुहम्मद जाज, कला, जम्मू और कश्मीर

पद्म पुरस्कारों का इतिहास-

पद्म पुरस्कार कला, साहित्य और शिक्षा, खेल, मेडिसिन, सामाजिक कार्य, विज्ञान समेत कई क्षेत्रों में असाधारण उपलब्धियां हासिल करने वाले और विशिष्ट काम करने वालों को दिए जाते हैं। सरकार साल 1954 से भारत रत्न और पद्म विभूषण पुरस्कार दे रही है। पद्म विभूषण में पहले तीन वर्ग थे- पहला वर्ग, दूसरा वर्ग और तीसरा वर्ग। इन वर्गों के नाम को बाद में बदल दिया गया। 8 जनवरी 1955 को एक नोटिफिकेशन जारी किया गया जिसके बाद इन वर्गों का नाम पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री कर दिया गया।

हर वर्ष राष्ट्रपति भवन में पुरस्कार समारोह का आयोजन होता है। इस दौरान पद्म पुरस्कार से सम्मानित हस्तियों को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और सील वाला सर्टिफिकेट और मेडल दिया जाता है। पुरस्कार से सम्मानित हस्तियों को उनके मेडल की एक प्रतिकृति भी दी जाती है।

पद्म पुरस्कारों की घोषणा हर वर्ष गणतंत्र दिवस के मौके पर की जाती है। हालांकि, 1978, 1979 और 1993 से 1997 तक इनकी घोषणा किन्हीं कारणों की वजह से गणतंत्र दिवस के मौके पर घोषित नहीं हुए थे।

एक वर्ष में दिए जाने वाले पद्म पुरस्कारों की संख्या 120 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। हालांकि, अगर मरणोपरांत और विदेशियों को दिए जाने वाले पुरस्कार शामिल हैं तो ये संख्या 120से ज्यादा भी हो सकती है। पद्म पुरस्कार आमतौर पर मरणोपरांत नहीं दिए जाते हैं लेकिन कुछ मामलों में सरकार मरणोपरांत पुरस्कार देने पर विचार कर सकती है।

(इनपुट – तक्षक पोस्ट डॉट कॉम)

 

भारत में चुनाव का इतिहास….कोरे कागज से डाले गए वोट, बैलगाड़ी से चुनाव प्रचार…

भारत में हर साल 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है। इस साल मतदाता दिवस की थीम ‘वोट जैसा कुछ नहीं, वोट जरूर डालेंगे हम’रखी गई है। चुनाव आयोग की ओर से ये कार्यक्रम देशभर में आयोजित किया जाएगा। देश में मतदाता दिवस की शुरुआत 2011 से हुई। इसका उद्देश्य नागरिकों में चुनावी जागरुकता पैदा करना और उन्हें चुनाव में मतदान करने के लिए प्रोत्साहित करना है। अब तक देशभर में वोटिंग ईवीएम से होती है, और काफी कम वक्त में उसके नतीजे भी सामने आ जाते हैं। वहीं चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग सिस्टम को भी शुरू करने जा रहा है। लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में पहली बार वोटिंग कोरे कागज पर हुई। कोरे कागज से रिमोट वोटिंग तक का इतिहास आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

बैलगाड़ी से होता था चुनाव प्रचार
देश में पहला चुनाव साल 1952 में हुआ। उस समय आज की तरह संसाधन नहीं थी। अब निकाय चुनावों में भी प्रत्याशी गाड़ियों की कतारों से पर्चा भरने जाते हैं और सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक में उनकी चर्चा होती है। लेकिन पहले चुनाव के वक्त न तो महंगी कारें थीं और न ही सोशल मीडिया। ऐसे में प्रत्याशी बैलगाड़ी से जनता के बीच जाते थे और प्रचार करते थे। इतना ही नहीं जिस गांव में रात हो जाती थी, नेताजी वहीं रुकते थे और दूसरे दिन समर्थकों के साथ आगे बढ़ जाते थे। कई पुराने नेताओं ने इस बात का जिक्र किया है।

कोरे कागज से किस्मत का फैसला
आपको जानकर हैरानी होगी कि देश के पहले चुनावों में आज की तरह न तो ईवीएम थी और व ही वैलेट पेपर। पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ ही होते थे। इन्हें कराना बहुत बड़ा टास्क होता था। पहले चुनावों में हर पार्टी के लिए अलग-अलग रंग की मतपेटी बनाई गई। मतदाता अपनी मर्जी के हिसाब से अपने प्रत्याशी को चुनते थे। वोट डालने के लिए उन्हें एक कोरा कागज दिया जाता था, जिसे वो इन मतपेटी में डालते थे। यानी आज जिस तरह बैलेट पेपर पर कई प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह होते हैं और एक मतपेटी, वैसा तब नहीं था। पहले चुनावों में जितने प्रत्याशी उतनी ही मतपेटी बनाई गईं। आंकड़े बताते हैं कि इसके लिए लोहे की 2 करोड़ 12 लाख मतपेटियां बनाईं गईं और करीब 62 करोड़ मतपत्र छापे गए।

दूसरे चुनाव में हुआ थोड़ा बदलाव
आजाद भारत में दूसरे आम चुनाव 1957 में हुए। इस समय लोग पहले से ज्यादा जागरुक हो चुके थे। साथ ही चुनाव आयोग ने भी चुनावी प्रक्रिया में कई बदलाव किए। इस चुनाव में लकड़ी के डिब्बों पर उम्मीदवारों का नाम और चुनाव चिन्ह लिखा जाने लगा। लेकिन मतपत्र अभी भी कोरा कागज हुआ करता था। मतदाता अपने पसंदीदा प्रत्याशी के डिब्बे में कोरा कागज डालकर मतदान करते थे। बाद में इन कोरे कागज को गिनकर चुनाव के नतीजे आते थे।

1962 से शुरू हुआ बैलेट पेपर
चुनाव आयोग को ये समझ में आ गया था कि ये प्रत्याशियों की नाम की मतपेटी बनाने की प्रक्रिया ज्यादा दिन नहीं चलेगी। इसे देखते हुए चुनाव आयोग ने इसमें बड़ा बदलाव किया और पहली बार 1962 के विधानसभा चुनावों में प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह के बैलेट पेपर छापे गए। अब मतदाताओं को अपने पसंदीदा प्रत्याशी के नाम के सामने मुहर लगाकर मतपेटी में डालना होता था। चुनाव की ये प्रक्रिया लंबे वक्त तक चली। आज भी कई जगहों पर पंचायत चुनाव में इसका इस्तेमाल होता है।

ऐसे शुरू हुई ईवीएम से वोटिंग
इसके बाद धीरे-धीरे चुनाव प्रक्रिया में और बदलाव हुए और ईवीएम का दौर शुरू हुआ। देश में पहली बार 1982 में केरल के परावुर विधानसभा के 50 वोटिंग बूथ पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। हालांकि यहां हारे हुए प्रत्याशी ने हारने का कारण ईवीएम बताया और कोर्ट में इसके खिलाफ अपील की। कोर्ट ने फिर से चुनाव का आदेश दिया। इसके बाद कई सालों तक ईवीएम का इस्तेमाल नहीं हुआ। लेकिन दिसंबर 1988 में संसद में संसोधन करके रेप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल ऐक्ट, 1951 में सेक्शन 61ए जोड़ा गया और चुनाव आयोग को ईवीएम का इस्तेमाल करने का अधिकार मिल गया। इसके बाद 1998 में मध्य प्रदेश के 5, राजस्थान के 6 और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के 6 विधानसभा क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल हुआ। वहीं 2004 से देशभर में इसका चलन शुरू हो गया।

अब रिमोट वोटिंग सिस्टम लाने की तैयारी
ईवीएम शुरू होने के बाद इसमें भी बदलाव हुए। ईवीएम के साथ अब वीवीपैड भी जोड़ा गया है। इसमें जब आप चुनाव में ईवीएम में किसी कैंडिडेट के सामने बटन दबाकर उसे वोट करते हैं तो वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है। यह बताती है कि आपका वोट किस कैंडिडेट को डाला है। हाल ही में चुनाव आयोग ने रिमोट वोटिंग सिस्टम का प्रोटोटाइप भी जारी किया। उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले चुनावों में रिमोट वोटिंग सिस्टम से वोट डाले जाएंगे।

शुभजिता वाणी प्रवाह वसंतोत्सव 2023 – वसंत पर दो स्वरचित कविताएं

-कृतिऋचा सिंह

1.

भयो मन सरस, आयो बसंत 

फाग भी मेरे दहकते रह गये,
रंगरेज जब से रूठा मेरा,
खुदरंग मेरे चुनर के हो गये,
म्लान विरह के नयन नीर से ,,
बेसुर हो गये संगीत के सूर,,
क्षीण गये संगम के साध से ,
श्रृंगार गीत मेरे,
पूनम का चांद हो गये निस्तेज ,
जैसे काली विपदा अमावस की रात ,
टूटी मेरी हर सांस की आंस ,
पिया जबसे पकड़ें राह सिंन्धु पार ,,
लाऊं कहां से धीर पीर हुई सहचरी ,
मनमीत बनी मैं तबसे वियोगिनी,,
हो गयी हुं अधीर संताप की हुलस से ,,
तीक्ष्ण मेरे वियोग के विरह ,
भेद न पाये कोई अशस्र ,,
भुवंगन सा आसक्ति लेकर ,
लिपटा रहता जैसे मलयज का योग ।।

 

2.

फाग के रंग 
तुम आओ प्रिय ,
तो रंग खेलूं,
मेरे ऊपर बस,
एक ही रंग चढ़ा,,
प्रियतम प्रेम को
अंग किया,,
जब -जब स्पर्श
प्रेम से हुआ
तन -मन से
पुलकित लाल
रोम-रोम हुआं,
जब निकटता लिए
कपोलों पर रखा
होंठ प्रिये ,
शर्म से सिमटती
केसरिया मेरी चुनर
की सलवटें हो गयी,
सतरंगी इन्द्रधनुष प्रिये,
आलिंगन कर मुझे
प्रेम से भर दिया,,
प्रसन्नता के *पीत रंग प्रिये,,
जीवन राह में हो
साथ हमारा हर्ष-विषाद में
जैसा अवनी का अम्बर से
श्वेत -नील का प्रकाश प्रिये,,
हर्षित हो जाऊं मैं
सोच तेरी सादगी श्वेत के सार प्रिये,
सब है अब स्वीकार प्रिये,
बस संग तेरे चलने का आस प्रिये,
कैसे सोच लिया तुम बीन होगा ,,
मेरा त्योहार प्रिये,
तुम्हीं तो मेरे बेरंग दुनिया का
हो गुलाल प्रिये।।

*पीत(पीला)