नयी दिल्ली । प्रमोद सुसरे की जिंदगी एक आइडिया ने बदल दी। उन्होंने कबाड़ में कमाने का जुगाड़ निकाल लिया। बाइक, गाड़ी के टायर, घर की पुरानी टूटी-फूटी चीजें… जिन्हें हम फेंक देते हैं, प्रमोद के लिए वही रॉ मटीरियल है। वह इन चीजों से रीसाइकल्ड फर्नीचर बना देते हैं। बाजार में यह फर्नीचर अच्छी खासी कीमत में बिकता है। यह ‘हर लगे न फिटकरी रंग चोखा’ वाला व्यवसाय है। उन्होंने इस आइडिया के बूते अपनी स्टार्टअप कंपनी शुरू कर दी। इसके जरिये वह लाखों की कमाई कर रहे हैं। इस युवा इंजीनियर ने आज कइयों को अपने यहां रोजगार दे रखा है। प्रमोद ने वह समय भी देखा है जब उनके पास इंजीनियरिंग की फीस भरने तक का पैसा नहीं था। शुरुआत में लोगों ने उनका मजाक तक बनाया। कभी दोस्त उन्हें कबाड़ी वाला तक बुलाते थे। प्रमोद सुसरे महाराष्ट्र के अहमदनगर के रहने वाले हैं। बचपन से ही उनका इंजीनियर बनने का सपना था। 12वीं पास करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग प्रवेशिका परीक्षा पास की। उन्हें अच्छा कॉलेज भी मिल रहा था। लेकिन, सालाना फीस बहुत ज्यादा थी। ऐसे में उन्होंने इंजीनियरिंग डिप्लोमा किया। डिप्लोमा पूरा करने के बाद उन्होंने नौकरी शुरू कर दी। लेकिन, इंजीनियरिंग करने की इच्छा बनी रही। फिर उन्होंने पुणे के एक कॉलेज में आवेदन किया। इसमें वह चयनित हो गए। लेकिन, वहां भी फीस भरना समस्या थी। इसे देखकर उन्होंने अपने एचओडी से बात की। उन्होंने भरोसा दिया कि प्रमोद अपनी नौकरी करते रहें। बाकी चीजें वह संभाल लेंगे। इस तरह प्रमोद ने अपनी इंजीनियरिंग पूरी की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक दूसरी नौकरी पकड़ ली। वहां उन्होंने दो साल काम किया। इसके बाद उन्होंने पुणे में एक मल्टीनेशनल कंपनी ज्वाइन कर ली। इस एमएनसी में उन्होंने मेनटिनेंस इंजीनियर के तौर पर काम किया।
चीन की बिजनस ट्रिप से आया आइडिया
सुसरे को महीने में 12,000 रुपये मिलते थे। मासिक खर्चों को पूरा करना उनके लिए मुश्किल होता था। 5,000 रुपये वह घर भेज देते थे। उनके पास पैसे बचाने की कोई गुंजाइश नहीं बचती थी। हालांकि, 2017 में चीन की बिजनस ट्रिप ने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। चीन में उन्होंने इस्तेमाल की गई पुरानी चीजों को रीसाइकिल करते हुए देखा। वहां ऐसे बिजनस की भरमार थी। ये ड्रम और टायर से आकर्षक फर्नीचर बना रहे थे।
प्रमोद को लगा कि भारत में भी इस बिजनस मॉडल को रेप्लीकेट किया जा सकता है। इसके लिए मार्केट भी है। चीन से लौटने पर उन्होंने रिसर्च शुरू कर दी। उन्होंने पाया कि इस सेक्टर में कोई बड़ा प्लेयर नहीं है। 28 साल के प्रमोद ने 2018 में P2S इंटरनेशनल नाम की स्टार्टअप फर्म शुरू कर दी। आज यह कंपनी उन्हें लाखों कमा के दे रही है।
बहुत दमदार नहीं थी शुरुआत
शुरुआत में बिजनेस का रेस्पॉन्स फीका था। लेकिन, धीरे-धीरे इसने रफ्तार पकड़नी शुरू की। जनवरी 2019 में प्रमोद को पुणे के एक कैफे से ऑर्डर मिला। इससे उन्हें 50,000 रुपये की कमाई हुई। कैफे मालिक ने सड़क किनारे गन्ने के जूस और फूड ज्वाइंट्स पर लगे डिस्प्ले देखकर प्रमोद से संपर्क किया था। दरअसल, एक दिन प्रमोद की बाइक पंक्चर हो गई थी। इसे ठीक करवाने वह टायर की दुकान पर गए थे। वे लोग 7 रुपये किलो की कीमत में टायर को कबाड़ में देते थे। प्रमोद ने कुछ टायर और ड्रम्स सस्ते दामों पर खरीदे। फिर उन पर काम शुरू किया। वह ऑफिस से आकर रोजाना चार-पांच घंटे फर्नीचर बनाते। उनके पास फर्नीचर बनकर तैयार थे। लेकिन, लिवाल कोई नहीं था। फिर उन्होंने आसपास के जूस सेंटर और फूड ज्वाइंट में उन्हें रख दिया। उनके मालिकों को अपना नंबर भी दिया ताकि जरूरत हो तो फोन करके पूछ सकें।
नौकरी छोड़कर पूरा ध्यान व्यवसाय में लगाया
सौभाग्य से इस कैफे का शुभारंभ कुछ जानी-मानी हस्तियों ने किया था। उन्होंने कैफे के फर्नीचर की काफी प्रशंसा की। इसके बाद उसी साल उन्हें ठाणे में एक और प्रोजेक्ट मिला। इससे उन्हें 5.5 लाख रुपये की कमाई हुई। यह प्रोजेक्ट उनके करियर में टर्निंग पॉइंट था। इस दौरान वह साथ-साथ नौकरी भी कर रहे थे। उनकी सालाना सैलरी तब कंपनी में करीब 2.5 लाख रुपये थी। कंपनी में एक नया प्रोजेक्ट आया था। इसके बाद उनकी सैलरी बढ़ाकर दोगुनी करने का वादा किया गया था। लेकिन, जल्द ही उन्होंने नौकरी छोड़कर पूरी तरह से अपने कारोबार पर फोकस करने का फैसला किया था।
इसके बाद प्रमोद ने पलटकर नहीं देखा। उनका कारोबार दिन दोगुना रात चौगुना बढ़ने लगा। कारोबार का टर्नओवर 1 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। उनके नेतृत्व में 14 कारीगरों की टीम काम करने लगी। उन्हें हरियाणा, पंजाब, बेंगलुरु, गोवा और चेन्नई से ऑर्डर मिले। प्रमोद युवाओं से अपील करते हैं कि वे नौकरी करने के बजाय खुद का कारोबार शुरू करने पर फोकस करें। इससे उन्हें अलग तरह की संतुष्टि होगी।
टूटी-फूटी चीजों से फर्नीचर बनाकर लाखों कमा रहा है यह इंजीनियर
अब ग्रोसरी बिजनस चलाएंगे आरएस सोढ़ी
मुम्बई । गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के पूर्व प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी को रिलायंस ने अपने साथ जोड़ा है। सोढ़ी साल 1982 में जीसीएमएमएफ में शामिल हुए थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आरएस सोढ़ी ईशा अंबानी के रिटेल बिजनेस को आगे बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। सोढ़ी के अनुभव का रिलायंस को फायदा मिल सकता है।
रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड ने डेयरी उद्योग के दिग्गज और गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के पूर्व मैनेजिंग डाइरेक्टर आर एस सोढ़ी को अपने साथ जोड़ा है। गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन के पास भारत का सबसे बड़ा डेयरी ब्रांड अमूल है।
अमूल से इस्तीफा दे दिया था सोढ़ी ने
जीसीएफएमएफ के प्रबंध निदेशक रहे आरएस सोढ़ी ने फेडरेशन में शामिल होने के चार दशक बाद बीते दिनों अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। सोढ़ी ने साल 1982 में जीसीएमएमएफ के साथ अपना सफर शुरू किया था। हालांकि सोढ़ी और रिलायंस ने इस बारे में अभी कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन सूत्रों ने टीओआई को बताया कि सोढ़ी ईशा अंबानी के रिटेल बिजनेस को अपने ग्रोसरी वर्टिकल के विकास में मदद कर सकते हैं। खासकर फलों और सब्जियों के क्षेत्र में फर्म को उपभोक्ता ब्रांडों में अपनी उपस्थिति को मजबूत कर सकते हैं।
आक्रामक रूप से हो रहा है विस्तार
आरआरवीएल की फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) शाखा रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स (आरसीपीएल) हाल ही में आक्रामक रूप से सेगमेंट में अपनी उपस्थिति बना रही है। कंपनी कई प्रोडक्ट को लॉन्च कर रही है। इसमें प्रतिष्ठित ब्रांड कैंपा के तहत पेय पदार्थों से लेकर होम और पर्सनल केयर के प्रोडक्ट भी शामिल हैं। सोढ़ी रिलायंस में शामिल होने वाले उद्योग जगत के पहले दिग्गज नहीं हैं। समूह ने इससे पहले कोका-कोला इंडिया के पूर्व अध्यक्ष टी कृष्णकुमार को भी अपने साथ जोड़ा है। सूत्रों के मुताबिक, डेयरी क्षेत्र में सोढ़ी के अनुभव को देखते हुए, डेयरी और वैल्यू एडड डेयरी सेगमेंट में प्रोडक्ट्स को लॉन्च करने के लिए उनका फायदा लिया जा सकता है।
बता दें कि जनवरी में जीसीएमएमएफ में करीब 41 साल बिताने के बाद सोढ़ी ने इस्तीफा दे दिया था। यह कदम रिलायंस की अपने एफएमसीजी के विस्तार और उसे मजबूत करने की दिशा में है। रिलायंस इससे अमूल और मदर डेयरी के खिलाफ कांप्टीशन करने के लिए एक मंच तैयार कर सकता है।
बदलेगी वर्तमान शिक्षा प्रणाली, दो चरणों में बोर्ड परीक्षाओं का प्रस्ताव
नयी दिल्ली । क्या 12 वीं की बोर्ड परीक्षा दो टर्म में कराई जाएगी? राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफ) के मसौदे के अनुसार, कक्षा 12वीं के लिए बोर्ड परीक्षाएं दो चरणों (टर्म) में कराई जा सकती हैं। साथ ही 10वीं और 12वीं के अंतिम परिणाम पिछले क्लास के अंकों को ध्यान में रख कर तय किये जा सकते हैं। एनसीएफ जिसे नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुसार तैयार किया जा रहा है। कक्षा 11वीं और 12वीं के लिए साइंस, आर्ट और कॉमर्स स्ट्रीम में विभाजित करने की मौजूदा पैटर्न को दूर करने का भी प्रस्ताव किया गया है।
साल 2009 में कक्षा 10वीं के लिए सतत और व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) की शुरुआत की गई थी, लेकिन 2017 में इसे रद्द कर दिया गया और बोर्ड साल के अंत में परीक्षा के पुराने मॉडल को फिर बहाल कर दिया था। कोविड महामारी के दौरान कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को भी दो सत्रों में विभाजित किया गया था, लेकिन इस वर्ष महत्वपूर्ण परीक्षाओं के लिए साल के अंत में परीक्षा के पुराने प्रारूप को फिर से शुरू किया गया था।
एनसीएफ के मसौदे में 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए दो सत्रों में परीक्षाओं को कराने का प्रस्ताव है। शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, जो मसौदा अंतिम चरण में है, उसे प्रतिक्रिया के लिए जल्द ही सार्वजनिक किया जायेगा और नई व्यवस्था 2024 शैक्षणिक सत्र से लागू की जाएगी।
कक्षा नौंवी और 10वीं के लिए संरचना के बारे में बताते हुए एनसीएफ के मसौदे में कहा गया है कि कक्षा 10वीं को पूरा करने के लिए छात्रों को कक्षा नौंवी और 10वीं के दो वर्षों में कुल आठ-आठ पाठ्यचर्या क्षेत्रों में से प्रत्येक से दो आवश्यक पाठ्यक्रम पूरे करने होंगे। एनसीएफ को चार बार 1975, 1988, 2000 और 2005 में संशोधित किया गया है।
कुमार गंधर्व : सुरों से मोहित करने वाला जादूगर जो कबीर और भिंडी पर फिदा था
नमिता देवीदयाल
बात 1980 के दशक है। मुंबई के दादर में कुमार गंधर्व का एक कार्यक्रम था। जब वह वहां पहुंचे तो उनके साथ एक अजीब वाकया हुई। कार्यक्रम के चीफ गेस्ट कोई नेताजी थे। उनके आने का भी वक्त हो रहा था। चीफ गेस्ट महोदय का रास्ता बनाने के लिए आयोजकों ने कुमार गंधर्व से बदसलूकी करते हुए साइड हटने को कह दिया। गंधर्व के दोस्त, जो उनको कार्यक्रम में लेकर आए थे, ने इसका विरोध किया। उन्होंने आयोजकों को बताया कि यह वही कलाकार हैं, जिनको परफॉर्मेंस देनी है। लेकिन किसी को फर्क नहीं पड़ा।
कुमार गंधर्व यह सब देख रहे थे। उन्होंने एक शब्द नहीं बोला। उन्होंने अपना तानपुरा उठाया और ऑडिटोरियम के दूसरे फ्लोर पर जाकर बैठ गए। दोस्त भी दूसरा तानपुरा लेकर उनके साथ हो लिया। इसके बाद गंधर्व ने मंच पर जाकर ‘उड़ जाएगा हंस अकेला’ की ऐसी तान छेड़ी कि हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया।
बाद में जब कुमार गंधर्व से पूछा गया कि क्या आयोजकों के खराब व्यवहार से उनको बुरा नहीं लगा, तो उनका जवाब था- ‘हां जरूर लगा, लेकिन 500 लोग जो यहां जमा हुए थे, इसमें उनका क्या दोष था।’ भारतीय संगीत की दुनिया का यह सुनहला हंस उड़ चुका है, लेकिन कुमार गंधर्व की तान अभी भी मोहित कर रही है।
कुमार गंधर्व भले ही अब हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनकी आवाज का जादू चलता रहेगा, टूटे दिल की पीर को ये जादू हरता रहेगा, आनंद का सुख देता रहेगा। ये वो आवाज है जिसके सामने सरहदें बेमानी हैं। ये वो आवाज है जो हर बंधन को तोड़कर वहां पहुंचता है जहां लोग सन्नाटे के शोर में लीन हो जाते हैं। जब वह शून्यता या खालीपन को गाते हैं तो उसका क्या मतलब होता था? उनका संगीत शास्त्रीय था या लोकसंगीत? वह क्यों रहस्यमय कवि कबीर की आवाज बने? शिवपुत्र सिद्धारमैया कोमकली का जन्म 100 वर्ष पहले कर्नाटक के बेलगाम में सुलभावी नाम के गांव में एक शिव मंदिर के पास गायकों के परिवार में हुआ था। उस बच्चे को जैसे विलक्षण प्रतिभा का वरदान मिला था। बचपन में ही वह किसी भी तरह के संगीत को पूरी तरह याद और उसकी नकल कर सकते थे। इस विलक्षण बालक को पास के एक मठ के स्वामी जी ने कुमार गंधर्व नाम दिया। 10 साल की उम्र में वह बीआर देवधर से संगीत की शिक्षा लेने लगे जिन्होंने मुंबई के ओपेरा हाउस में म्यूजिक स्कूल खोला था।
जिस साल भारत को आजादी मिली, उसी साल कुमार गंधर्व की शादी हुई और उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के लिए जो रिकॉर्डिंग की, उसे लंबे समय तक उनकी आखिरी रिकॉर्डिंग की तरह समझा जाता रहा। पता चला कि उन्हें तपेदिक यानी टीबी है और उन्हें गाने से मना कर दिया गया। लेकिन संगीत के इस उपासक की श्रद्धा तो ऐसी थी जो एक खंजर को भी जादूई छड़ी में तब्दील कर सके। वह मध्य प्रदेश के देवास नाम के शहर में शिफ्ट हो गए जो अपने साफ और शुष्क हवा के साथ-साथ लोकसंगीत के लिए जाना जाता है।
देवास में गांववालों और घूमक्कड़ संन्यासियों या सुफी गायकों के गीत हमेशा जैसे उनकी जिंदगी में पार्श्व संगीत की तरह बजते रहे, नैपथ्य में। अब संगीत उनके अंतस में बजा करता था। उन्होंने लोकसंगीत के तत्वों को राग में तब्दील किया, बिना उनकी शुद्धता से कोई समझौता किए। उनका रहस्यवादी कवि कबीर की निर्गुण कविता से तारूफ बढ़ा। ऐसी कविता जो निराकार परम सत्य के एकत्व की बखान करती है, जो याद दिलाती है कि वह महान कुंभकार ने सभी को एक ही मिट्टी से बनाया है।
लिंडा हेस ने अपनी किताब ‘सिंगिंग एम्पटीनेस’ में लिखा है, ‘जो लोग कुमार जी को जानते थे वे बताते थे कि कैसे वह सब्जियों को प्यार करते थे। फूलों, पक्षियों, किताबों और बारिश से प्यार करते थे। वह कैसे हर वक्त, हर क्षण चीजों को लेकर सचेत रहा करते थे।’ हेस ने लिखा है, ‘उन्हें बागवानी और खरीदारी पसंद थी। वह कंधे से लटकाने वाले कई झोले लेकर बाजार जाते थे ताकि ताजी सब्जियां एक दूसरे दबकर पिचके नहीं, खराब न हों। इस दौरान हो सकता है कि वह किसी मित्र से भिंडी की खूबसूरती पर लंबी चर्चा कर लें। वह सुबह-सुबह दो पक्षियों की चहचहाहट और उनकी आपसी बातचीत को रिकॉर्ड करने के लिए बगीचे में टेप रिकॉर्डर लगा दिया करते थे।’
टीबी का पता चलने के 6 वर्ष बाद जब उन्हें फिर से गाने की इजाजत मिली तो उन्होंने स्टार सिंगिंग की शूटिंग की, एक ऐसा म्यूजिक जिसे पहले कभी नहीं सुना गया हो। उनका संगीत इतिहास और भूगोल से परे पहुंचा। यहां तक कि यह संगीत से भी परे पहुंच गया क्योंकि ये एक ऐसा विशुद्ध तान छेड़ता है जो सभी को जोड़ता है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)
पिता की परचून की दुकान, परिवार में 30 लोग, यूपीपीएससी टॉपर बनी छात्रा
लखनऊ । यूपीपीएससी 2022 के फाइनल रिजल्ट में टॉप टेन में लड़कियों का परचम रहा है। पहली बार सबसे ज्यादा लड़कियां यूपीपीएससी में पास हुई हैं। वहीं, टॉप करने वाली छात्राओं ने इस परीक्षा का श्रेय परिवार और लगातार मेहनत को दिया है। आइए जानते हैं टॉपर छात्राओं ने क्या कहा।
ग्रामीण लड़कियों के लिए काम करूंगी- दिव्या
यूपीपीएससी में प्रथम स्थान पाने वाली आगरा की दिव्या ने कहा कि मैं महिलाओं और लड़कियों के उत्थान के लिए काम करना चाहती हूं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, क्योंकि उनके पास बढ़ने के कम अवसर रहते हैं। दिव्या ने अपनी सफलता का श्रेय अपनी मां को दिया और कहा कि मां ही उनकी प्रेरणा है। दिव्या ने इससे पहले दो बार प्रयास किया, लेकिन एक बार मेंस नहीं निकला तो दूसरी बार इंरव्यू नहीं निकला। मां सरोज देवी ने कहा कि मैं अपनी बेटी की उपलब्धि से खुश हूं। वह घंटों पढ़ाई करती थी और घर का कामकाज भी संभालती थी। वह एक अच्छी अधिकारी बनेगी।
लगातार प्रयास से मिली सफलता: प्रतीक्षा
गोतीनगर निवासी प्रतिक्षा पांडेय को सफलता पांचवें प्रयास में मिली। उन्होंने लखनऊ के राम स्वरूप मेमोरियल कॉलेज से बीटेक किया है। प्रतीक्षा ने बताया कि उनके घर पर उनके पिता, भाई, भाभी इंजिनियर हैं। प्रतीक्षा के अनुसार सिविल सेवा में सफलता के लिए विषय को समझना बेहद जरूरी है। उन्होंने बताया कि इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बावजूद वैकल्पिक विषय के लिए समाजशास्त्र का चयन किया था। प्रतीक्षा का कहना है कि कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। लगातार प्रयास करने से सफलता अवश्य मिलती है। प्रतीक्षा पांडेय ने दूसरा स्थान पाया है।
अलीगंज की रहने वाली सल्तनत परवीन संयुक्त परिवार से हैं। उन्होंने बताया कि परिवार में 30 लोग हैं। सभी साथ रहते हैं। सल्तनत को सफलता चौथी बार में मिली। वह कहती हैं कि मैं जब भी असफल होती तो संयुक्त परिवार उनका मनोबल टूटने नहीं देता। कभी अकेलापन महसूस नहीं होने नहीं दिया। हर बार हिम्मत बढ़ाने को कोई न कोई साथ होता था। उनके पिता मुंशी पुलिया पर परचून की दुकान चलाते हैं। सल्तनत राष्ट्रीय स्तर पर बॉलीबॉल की खिलाड़ी रही हैं। सल्तनत ने छठवें स्थान पर रही हैं।
सौर मंडल में एक ऐसा ग्रह जिसके हैं 27 चंद्रमा
वॉशिंगटन । नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने बर्फीले ग्रह यूरेनस की पहली फोटो शेयर की है। इसमें यूरेनस की अदृश्य रिंग एकदम साफ दिख रही है। इसके अलावा उसके अब तक ज्ञात 27 चंद्रमा में से भी कई नजर आ रहे हैं। 10 अरब डॉलर की लागत से बना यह टेलीस्कोप उन चीजों को देखे में भी सक्षम हैं, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखते। ग्रह के 13 में से 11 छल्ले भी दिख रहे हैं। यूरेनस के 9 छल्लों को पहली बार 1986 में नासा के वॉयजर-2 ने खोजा था। वहीं बाकी 4 को 2003 में हबल टेलीस्कोप के जरिए खोजा गया था।
यह धूल भरे छल्ले हैं। इस ग्रह के प्रमुख छल्ले बर्फ के टुकड़ों से बने हैं जो कई फीट के बराबर होते हैं। शनि की तुलना में इस ग्रह की रिंग पतली, संकडी और डार्क है। जेम्स वेब ने यूरेनस के 27 ज्ञात चंद्रमाओं में से भी कई की तस्वीर खींची है। कई इतने हल्के हैं, जिन्हें यहां से देखना भी संभव नहीं है। हालांकि 12 मिनट के एक्सपोजर में जेम्स वेब ने छह चमकदार चंद्रमाओं को खोज लिया है। यूरेनस अपने मोटे वातावरण के कारण नीला दिखाई देता है।
यूरेनस पर दिखती है हल्की सफेद परत
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के नेतृत्व वाले शोधकर्ताओं ने इसे एरोसोल-2 परत नाम दिया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह कुछ हद तक सफेद दिखाई देता है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के नियर इनफ्रारेड कैमरा के जरिए इस तस्वीर को खींचा गया था। यह बेहद हल्की रोशनी को भी पकड़ लेता है। जेम्स वेब ने हमारे सामने उन तस्वीरों को भी रखा है, जो पहले सौरमंडल में कभी नहीं देखी गईं। पिछले साल जुलाई से ही काम कर रहे जेम्स वेब ने अंतरिक्ष की सबसे दूर की फोटो खींची थी।
2030 तक भेजा जाएगा स्पेसक्राफ्ट
यूरोपीय स्पेस एजेंसी के मुताबिक जब वॉयजर 2 स्पेसक्राफ्ट यूरेनस के करीब से गुजरा था तो यह हल्का नीली गेंद जैसा दिखा था। लेकिन अब इन्फ्रारेड के जरिए जेम्स वेब बेहद संवेदनशील चीजों को भी देख पा रहा है। नासा वैज्ञानिकों ने हाल ही में 2030 के दशक तक यूरेनस और नेप्च्यून की जांच शुरू करने का लक्ष्य रखा है। इन दोनों ही ग्रहों के बारे में हमें बेहद कम जानकारी पता है।
किरायेदार के अधिकार पर कोर्ट ने खींची ‘लक्ष्मण रेखा’ नहीं दे सकते मकान मालिक को निर्देश
नयी दिल्ली/मुंबई । बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान किरायेदारों के अधिकार को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा कि किरायेदारों पास सीमित अधिकार हैं। ऐसे में वह मकान मालिक को प्रॉपर्टी में रिडेवलपमेंट कराने को लेकर निर्देश नहीं दे सकते हैं। मामला मुंबई के खार (पश्चिम) बिल्डिंग से जुड़ा था। यहां एक ‘अड़ियल किरायेदार’ (हाईकोर्ट के शब्दों में) बिल्डिंग के मरम्मत के काम को रोक रहा था। कोर्ट ने बीएमसी को रिडेवलपमेंट के जुड़ा कमेंसमेंट सर्टिफिकेट जारी करने का निर्देश दिया। इस मामले में लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप फर्म जीएम हाइट्स के मालिक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और आर एन लड्डा की बेंच ने कहा कि किरायेदार के अधिकारों को इस हद तक नहीं बढ़ाया जा सकता है कि प्रॉपर्टी के रिवडेवलपमेंट का काम किरायेदार की मर्जी से हो। ऐसा नहीं होना चाहिए कि संपत्ति के मालिक का अपनी संपत्ति में पसंद के हिसाब से बदलाव कराने का बुनियादी भौतिक अधिकारों ही छीन लिए जाएं। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किरायेदारों का एकमात्र अधिकार इमारत के ध्वस्त होने से पहले उनके कब्जे वाले समकक्ष क्षेत्र के वैकल्पिक आवास के साथ प्रदान करना था। मामले से जुड़े वकील के अनुसार, हाई कोर्ट के इस फैसले से भविष्य के रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स का रास्ता खुलने की उम्मीद है।
क्या है पूरा मामला
दरअसल जिस बिल्डिंग को लेकर केस चल रहा है उसे मूल रूप से रामी राजा चॉल के नाम से जाना जाता है। इसमें 21 किराएदार रहते थे। अगस्त 2021 में इस बिल्डिंग को जीर्ण-शीर्ण घोषित होने के बाद इसे ध्वस्त कर दिया गया था। इसके बाद बिल्डिंग मालिक ने एक कमर्शियल बिल्डिंग बनाने का प्रस्ताव रखा था। बिल्डिंग मालिक की तरफ से पैरवी करने वाले सीनियर एडवोकेट जीएस गोडबोले के अनुसार एमसी ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। इसमें एक को छोड़कर, अन्य 20 किरायेदारों को रिडेवलपमेंट प्लान में एक कमर्शियल बिल्डिंग बनाने पर कोई आपत्ति नहीं थी। इस किरायेदार ने एनओसी देने से इनकार कर दिया। साथ ही स्थायी वैकल्पिक आवास समझौते पर साइन भी नहीं किया। 2021 में बीएमसी की शर्त थी कि सभी किराएदारों की सहमति के बाद ही वास्तविक निर्माण या प्रारंभ प्रमाणपत्र के लिए मंजूरी जारी की जानी थी। मालिक ने अपनी याचिका में बीएमसी की शर्तों को यह तर्क देते हुए चुनौती दी कि वे मनमानी और असंवैधानिक हैं।
किरायेदारों के अधिकार क्या हैं
भारत सरकार ने साल 1948 में एक केंद्रीय किराया नियंत्रण अधिनियम पारित किया था। समय-समय पर इसमें बदलाव हुए हैं। कुछ समय पहले ही केंद्र सरकार ने दो साल पहले ही नए किराया कानून को मंजूरी दी थी। इसका उद्देश्य संपत्ति मालिक और किरायेदार दोनों के अधिकारों की रक्षा के साथ ही शोषण से बचाव करना था। इस अधिनियम में संपत्ति को किराए पर देने की नियमों का वर्णन किया गया था। ध्यान देने वाली बात है कि हर राज्य का अपना किराया नियंत्रण कानून होता है। इसके बावजूद इसमें कोई खास अंतर नहीं होता है। ऐसे में किराये पर मकान लेने से पहले लिखित समझौता करना जरूरी होता है। ऐसे में आप भविष्य में होने वाले किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में उचित फोरम पर शिकायत करने के योग्य होते हैं।
रेंट एग्रीमेंट है जरूरी
मॉडल टेनेंसी एक्ट के तहत मकान मालिक और किरायेदार के बीच रेंट एग्रीमेंट होना जरूरी है। एक्ट के सेक्शन 5 के तहत प्रत्येक किरायेदार एक अवधि के लिए वैध है। इस अवधि का जिक्र रेंट एग्रीमेंट में किया जाता है। एंग्रीमेंट में किरायेदार कब तक रहेगा, कितना किराया देगा, सिक्योरिटी राशि समेत अन्य बातों का जिक्र होगा। रहने का टाइम पीरियड खत्म होने से पहले एंग्रीमेंट को रिन्यू किया जा सकता है। यदि एक निश्चित समय के बाद जब एंग्रीमेंट खत्म होने के बाद रिन्यू नहीं होता है और किरायेदार कमरा या बिल्डिंग खाली नहीं करता है तो उसे मकानमालिक को बढ़ा हुआ किराया देना होता है। यदि वह मकान पर कब्जा जारी रखता है तो बढ़ा हुआ किराया पहले दो महीनों के लिए मासिक किराए का दुगना और फिर चार गुना होगा।
रेंट एग्रीमेंट में सिक्योरिटी राशि दो महीने के किराये से अधिक नहीं हो सकती है। कर्मशल बिल्डिंग के मामले में यह राशि 6 महीने के किराये के बराबर रखी गई है। यदि किरायेदार कमरा खाली करता है तो मकान मालिक को यह राशि एक महीने के भीतर लौटानी होगी।
यदि मकान मालिक किराया बढ़ाना चाहता है तो उसे तीन महीने पहले किरायेदार को नोटिस देना होगा।
बिजली, पानी किरायेदार का मूलभूत अधिकार है, मकान मालिक किसी भी तरह का विवाद होने पर किराये र का बिजली-पानी या पार्किंग बंद नहीं कर सकता है।
यदि मकान मालिक को किराया बढ़ाना है तो उसे 3 महीने पहले किरायेदार को इसकी जानकारी देनी होगी। इसके अलावा वह बाजार मूल्य से अधिक किराया नहीं ले सकता है।
किराएदार को हर महीने किराया देने की एवज में रसीद लेने का अधिकार है। अगर मकान मालिक एंग्रीमेंट में लिखित समय से पहले किराएदार को घर खाली करवाता है तो वह कोर्ट में रसीद को सबूत के तौर पर पेश कर सकता है।
यदि किरायेदार घर में नहीं है तो मकान मालिक उसके घर का ताला नहीं तोड़ सकता है। इसके अलावा मकान मालिक घर से किरायेदार का समान बाहर नहीं फेंक सकता है।
मकान मालिक घर या बिल्डिंग को गंदा रखने पर किरायेदार को टोक सकता है।
घर खाली करने से एक महीने पहले किरायेदार को इसकी जानकारी मकान मालिक को देनी होगी। यदि मकान मालिक किरायेदार को निकालना चाहता है तो उसे 15 दिन का नोटिस देना होगा।
नए कानून के तहत मकान के ढांचे के देखभाल की जिम्मेदारी मकान मालिक की है।
अगर किरायेदार की मौत हो जाती है और उसका परिवार उसके साथ रहता है तो मकान मालिक अचानक उसे कमरा खाली करने के लिए नहीं कह सकता है।
एंग्रीमेंट होने के बाद मकान मालिक बिना अनुमति के किरायेदार के घर में नहीं घुस सकता है। अगर मकान मालिक को कमरे में आना है तो इसके लिए पहले किरायेदार की अनुमति लेनी होगी।
मकान मालिक किरायेदार के घर के पास, खासकर महिला किरायेदार के घर के पास या घर में बिना उसकी अनुमति के कैमरा नहीं लगा सकता है। ऐसा करने से किरायेदार की प्रिवेसी का हनन होता है यह कानूनन अपराधा है। इसके लिए 3 से 7 साल की सजा और आर्थिक जुर्माने का भी प्रावधान है।
मकान मालिक किरायेदारों को पालतू जानवर रखने से नहीं रोक सकता है। ऐसा करना पशुओं के प्रति क्रूरता अधिनियम के तहत आता है। यदि पालतू जानवर के रखने पर रोक लगाई जाती है तो यह संविधान के अनुच्छेद 51जी का उल्लंघन होगा।
(साभार – नवभारत टाइम्स)
बैसाखी पर विशेष जिथे रूत बैसाखी दी लै के आऊंदी मस्त बहारां,
जिथे रूत बैसाखी दी लै के आऊंदी मस्त बहारां, पा भंगड़े नचदे ने थां-थां गबरू ते मुटियारां..कनकां दी मुक गई राखी, ओ जट्टा आई बैसाखी। लो जी, एक बार फिर धमाल मचाने को आ गया है बैसाखी का त्यौहार। कल ढ़ोल-नगाड़ों की थाप पर जश्न मनाने का दिन है तो आप भी हो जाईए तैयार। बैसाखी का त्योहार हर वर्ष अप्रैल के 13 या 14 तारीख को पंजाब के साथ-साथ पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है। बैसाखी मुख्यत: कृषि पर्व है जिसे दूसरे नाम से ‘खेती का पर्व’ भी कहा जाता है। यह पर्व किसान फसल काटने के बाद नए साल की खुशियां के रूप में मनाते हैं। खेतों में रबी की फसल लहलहाती है तो किसानों का मन खुशी से झूम उठता है। केरल में इस त्योहार को ‘विशु’ तो बंगाल में इसे नब बर्ष के नाम से जाना जाता है। असम में इसे रोंगाली बिहू, तमिलनाडू में पुथंडू और बिहार में इसे वैषाख के नाम से पुकारा जाता है। यह दिन किसानों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिन राबी फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है। इसी दिन गेहूं की पक्की फसल को काटने की शुरूआत होती है। इस दिन किसान सुबह उठकर नहा धोकर भगवान का शुक्रिया अदा करते हंै। यही नहीं बैसाखी को मौसम के बदलाव का पर्व भी कहा जाता है। इस समय सर्दियों की समाप्ति और गर्मियों का आरंभ होता है। वहीं व्यापारियों के लिए भी यह अहम दिन है। इस दिन देवी दुर्गा और भगवान शंकर की पूजा होती है। इस दिन व्यापारी नये कपड़े धारण कर अपने नए कामों का आरम्भ करते हैं।
बैसाखी, समझो आ गई गर्मी
बैसाखी त्यौहार अप्रैल माह में तब मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यह घटना हर साल 13 या 14 अप्रैल को ही होती है। सूर्य की स्थिति परिवर्तन के कारण इस दिन के बाद धूप तेज होने लगती है और गर्मी शुरू हो जाती है। इन गर्म किरणों से रबी की फसल पक जाती है। इसलिए किसानों के लिए ये एक उत्सव की तरह है। इसके साथ ही यह दिन मौसम में बदलाव का प्रतीक माना जाता है। अप्रैल के महीने में सर्दी पूरी तरह से खत्म हो जाती है और गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है। मौसम के कुदरती बदलाव के कारण भी इस त्योहार को मनाया जाता है।
इसी दिन हुई थी खालसा पंथ की स्थापना
वर्ष 1699 में सिखों के 10 वें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ (Baisakhi) की नींव रखी थी। ‘खालसा’ खालिस शब्द से बना है जिसका अर्थ शुद्ध, पावन या पवित्र होता है। खालसा पंथ की स्थापना के पीछे श्री गुरुगोविन्द सिंह जी का मुख्य लक्ष्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त कर उनके धार्मिक, नैतिक और व्यावहारिक जीवन को श्रेष्ठ बनाना था। इस पंथ के द्वारा गुरु गोविन्दसिंह ने लोगों को धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव छोड़कर इसके स्थान पर मानवीय भावनाओं को आपसी संबंधों में महत्व देने की भी दृष्टि दी। बैसाखी कृषि पर्व की आध्यात्मिक पर्व के रूप में भी काफी मान्यता है।
ढोल-नगाड़ों की थाप पर मचता है धमाल
उत्तर भारत में विशेषकर पंजाब में बैसाखी पर्व को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। ढोल-नगाड़ों की थाप पर युवक-युवतियां प्रकृति के इस उत्सव का स्वागत करते हुए गीत गाते हैं, एक-दूसरे को बधाइयां देकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं और झूम-झूमकर नाच उठते हैं। अत: बैसाखी आकर पंजाब के युवा वर्ग को याद दिलाती है, साथ ही वह याद दिलाती है उस भाईचारे की जहां माता अपने 10 गुरुओं के ऋण को उतारने के लिए अपने पुत्र को गुरु के चरणों में समर्पित करके सिख बनाती थी।
कैसे पड़ा बैसाखी नाम
वैशाख माह के पहले दिन को बैसाखी कहा गया है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है।
‘एमएसएमई के लिए भुगतान में विलंब एवं वसूली’ पर चर्चा
कोलकाता । एमएसएमई डेवलपमेंट फोरम-पश्चिम बंगाल चैप्टर ने एमएसएमई डेवलपमेंट फोरम-पश्चिम बंगाल चैप्टर और आईसीएआई के ईआईआरसी के साथ संयुक्त तत्वाधान में मंगलवार को कोलकाता के आईसीएआई भवन में ‘एमएसएमई के लिए विलंबित भुगतान और वसूली पर एक चर्चा सत्र’ का आयोजन किया।
इस मौके पर विधायक विवेक गुप्ता, पश्चिम बंगाल राज्य एमएसई फैसिलिटेशन काउंसिल के सदस्य सीए आलोक टिब्रेवाल, एमएसएमई डेवलपमेंट फोरम, पश्चिम बंगाल की अध्यक्ष एवं अधिवक्ता सीएस डॉ. ममता बिनानी, आईसीएआई के ईआईआरसी के अध्यक्ष सीए देबायन पात्रा , आईसीएआई के ईआईआरसी के उपाध्यक्ष सीए संजीब सांघी , एमएसएमई, पश्चिम बंगाल सरकार के उपनिदेशक (मुख्यालय) अशोक घोष , ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ टैक्स प्रैक्टिशनर्स के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अधिवक्ता नारायण जैन के अलावा समाज की कई विशिष्ट हस्तियां इसमें मौजूद थें।
इस मौके पर सीएस डॉ. एवं अधिवक्ता ममता बिनानी (पूर्व अध्यक्ष, आईसीएसआई और एमएसएमई डेवलपमेंट फोरम डब्ल्यूबी चैप्टर की अध्यक्ष) ने कहा, एमएसएमई एक ऐसा क्षेत्र है, जो न केवल सकल घरेलू उत्पाद को धारण करता है और इसे बढ़ाता है, बल्कि राष्ट्र के सामाजिक और समान विकास के लिए यह एक बड़े रोजगार प्रदान करने का क्षेत्र भी है। इसमें 6 करोड़ से अधिक इकाइयों के साथ 11 करोड़ से अधिक श्रमिक इससे जुड़े हैं। एमएसएमई क्षेत्र कृषि के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता क्षेत्र है। देश के आर्थिक क्षेत्र में विकास और पर्याप्त योगदान में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 30% और सभी भारतीय निर्यातों का 45% से अधिक का श्रेय इसी क्षेत्र में जाता है। सरकार हमेशा वैश्विक मूल्य की श्रृंखला में एमएसएमई की प्रतिस्पर्धा में सुधार करने की हर संभव तरीके से कोशिश कर रही है। इसका एक बहुत महत्वपूर्ण कारक कार्यशील पूंजी के तौर पर सस्ते पैसे की उपलब्धता है। जब उनका भुगतान अटक जाता है, तो व्यवसाय की गति खतरे में पड़ जाती है। क्योंकि इस एक व्यवसाय से कईयों का जीवन जुड़ा होता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य एमएसई की सुविधा परिषद को प्रदर्शित करना है। यह कैसे व्यवसायों के संकट को कम करने में काम कर रहा है । एमएसएमई के बारे में: वैश्विक रैंकिंग इंडेक्स पर भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में एमएसएमई काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह दर्शाता है कि क्षेत्र कितनी तेजी से विकास कर रहा है।
अन्तरराष्ट्रीय बाजार में धूम मचाएगी पुरुलिया के छऊ मुखौटा कारीगरों की कला
साथ आए जीनियस फाउंडेशन एवं एसेंसिव एडु स्किल फाउंडेश
कोलकाता । जीनियस फाउंडेशन,जीनियस कंसल्टेंट लिमिटेड और एसेंसिव एडु स्किल फाउंडेशन पारम्परिक छऊ मुखौटा कलाकारों की सहायता के लिए आगे आए हैं। पुरुलिया के चरिदा में छाऊ मास्क कारीगरों का उद्यमिता विकास और बाजार लिंकेज बनाने के लिए एसेंसिव एडू स्किल फाउंडेशन के बीच समझौता हुआ है । यह परियोजना कारीगरों के लिए जमीनी स्तर से उद्यमियों को विकसित करने और एक सामूहिक व्यवसाय के रूप में काम करने के विचार को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय बाजार से जोड़ने और उनके विकास पर केंद्रित होगी। कारीगरों को आधुनिक पैकेजिंग तकनीक के बारे में शिक्षित करने पर विशेष जोर दिया जाएगा।
जीनियस फाउंडेशन समझौता ज्ञापन के प्रावधानों के अनुसार एसेंसिव एडू स्किल फाउंडेशन को फंड प्रदान करेगा और एसेंसिव एडू स्किल फाउंडेशन कार्यक्रम को लागू करेगा। समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर जीनियस कंसल्टेंट्स लिमिटेड के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक आर.पी. यादव और एसेंसिव ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ के अध्यक्ष अभिजीत चटर्जी, राज्य के श्रम विभाग की अतिरिक्त सचिव शॉन सेन, भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के बीओपीटीआर के निदेशक एसएम एजाज अहमद, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के एनएसडीसी के एसईओ बिक्रम दास, कपड़ा मंत्रालय के डीसी हस्तशिल्प कार्यालय की सहायक निदेशक मौमिता देब, सहायक निदेशक (एच), सहायक निदेशक (एच) सुदर्शन दास, आरोहण फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रशांत राय, शाकंभरी ग्रुप के जीएम-ब्रांड एंड कम्युनिकेशन सुबोध बिहानी की उपस्थिति में हुआ । सभी प्रतिनिधियों और विशेष अतिथियों ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह के अभिनव कार्यक्रमों को कारीगरों की बेहतरी के लिए और दुनिया भर में स्थानीय विरासत को बढ़ावा देने के लिए लाया जाना चाहिए।