Monday, August 18, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 116

पिता जेल में, भाई नशेड़ी, प्रदेश में टॉप कर आगे बढ़ गयी बेटी

दुर्ग । कहते हैं जिनके हौसले बुलंद होते हैं वो दुनिया की किसी थी परिस्थिति से लड़कर लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की सानिया मरकाम ने ऐसा ही करके दिखाया है। सानिया मरकाम ने 10वीं क्लास में टॉप किया है। मेरिट लिस्ट में उसका 7वां स्थान है। उसे 97.33 फीसदी मार्क्स मिले हैं। सानिया ने इस मुकाम को हासिल करने के लिए कड़ा संघर्ष किया है। उसके पिता और भाई जेल में हैं। घर की आर्थिक स्थिति भी खराब है। लेकिन इसके बाद भी सानिया ने हार नहीं मानी। कठिनाई और समस्याओं से लड़कर उसने सफलता पाई है। बुधवार को दुर्ग जिले के एसपी अभिषेक पल्लव, टॉपर छात्रा से मिलने उसके घर पहुंचे। सानिया ने एसपी से कहा कि तीन सालों से उसने अपने पिता को नहीं देखा है। मैं अपने पिता से मिलना चाहती हूं।
एसपी अभिषेक पल्लव गुरुवार को टॉपर्स सानिया मरकाम को लेकर जेल पहुंचे। बेटी और पिता की मुलाकात करवाई। तीन साल बाद बेटी ने जब पिता को देखा तो भावुक हो गई। पिता को भी जब बेटी के सफलता की कहानी पता चली तो वो भी रो पड़े। एसपी अभिषेक पल्लव ने कहा- बेटे ने घर पर कलंक लगाया और बेटी ने उस कलंक को धो दिया। परिवार का लड़का नशा करता है और चाकूबाजी करता है, लेकिन बेटी ने पढ़ाई को ही अपना हथियार बना लिया।
पिता से मिलने की जाहिर की थी इच्छा
सानिया, दुर्ग शहर के पोलसाय पारा में रहती है। दसवीं की परीक्षा में प्रदेश में 7वां स्थान मिलने पर उसके परिवार में खुशी थी। इसी दौरान जिले के एसपी अभिषेक पल्लव भी टॉपर बच्ची को शुभकामनाएं देने के लिए उसके घर पहुंचे। इस दौरान सानिया ने जेल में बंद अपने पिता से मिलने की इच्छा जताई। उसके बाद एसपी ने फौरन जेल अधीक्षक से चर्चा की। इसके बाद गत गुरुवार को जेल प्रबंधन ने छात्रा की मुलाकात उसके पिता से कराने की व्यवस्था की।

विडम्बना ! यौन उत्पीड़न की जांच के लिए आंतरिक समिति ही नहीं!

मानवाधिकार आयोग का डब्ल्यूएफआई, बीसीसीआई समेत 15 खेल संगठनों को नोटिस
नयी दिल्ली । भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) और चार अन्य खेल संगठनों में यौन उत्पीड़न के आरोपों से निपटने के लिए आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) नहीं होने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने संज्ञान लिया है। उसने युवा मामलों और खेल मंत्रालय को नोटिस जारी की। एनएचआरसी ने भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ), भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई), भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) और कई अन्य राष्ट्रीय खेल संघों को उन रिपोर्टों पर नोटिस भेजी है, जिनमें कहा गया है कि उनके पास कानून के मुताबिक शिकायत की कोई आंतरिक समिति नहीं है।
यही नहीं, नोटिस में यहां तक कहा गया है कि कुछ के पास समिति हैं तो वह उचित तरीके से काम नहीं कर रही है। ये नोटिस ऐसे समय में आया हैं जब कई पहलवान महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे है। पहलवान उन्हें बर्खास्त और गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं।
एनएचआरसी ने एक मीडिया रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लिया है कि भारतीय कुश्ती महासंघ में कोई आंतरिक शिकायत समिति नहीं है, जैसा कि यौन उत्पीड़न रोकथाम (पीओएसएच) अधिनियम, 2013 के तहत अनिवार्य है। एनएचआरसी के बयान के मुताबिक, ‘डब्ल्यूएफआई कथित तौर पर इकलौता खेल निकाय नहीं है जिसके पास विधिवत गठित आईसीसी नहीं है। देश के 30 राष्ट्रीय खेल संघों में से 15 ऐसे हैं जो इस अनिवार्य आवश्यकता को पूरा नहीं करते हैं।’
आयोग ने पाया कि अगर मीडिया रिपोर्ट सही है तो यह कानून का उल्लंघन है और इससे खिलाड़ियों के वैधानिक अधिकार और गरिमा पर असर पड़ सकता है। आयोग ने युवा मामलों और खेल मंत्रालय के सचिव, साइ, बीसीसीआई , डब्ल्यूएफआई और 15 अन्य राष्ट्रीय खेल महासंघों (हैंडबॉल, वॉलीबॉल, बास्केटबॉल, भारोत्तोलन, याचिंग, जिम्नास्टिक, टेबल टेनिस, बिलियडर्स और स्नूकर, कयाकिंग और केनोइंग, जूडो, स्क्वाश, ट्रायथलन, कबड्डी, बैडमिंटन, तीरंदाजी) को नोटिस जारी किया है। इन्हें चार सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट जमा कराने के लिये कहा गया है।

गर्मियों में पौधों का रखें खास ख्याल

गर्मी के मौसम में पौधों का खास ख्याल रखना पड़ता है नहीं तो वो मुरझा जाते हैं । एक बार पौधे की सेहत खराब हो जाती है तो दोबारा उसको सुधारने में मेहनत लगती है इसलिए ऐसी नौबत आए पहले से ही सजग रहें ।आप गर्मी के मौसम में कुछ खास तरीके से इनकी देखभाल करें । आइए जानते हैं ऐसे कुछ तरीके –
पौधों का ख्याल कैसे रखें
– अगर आप चाहती हैं कि पेड़ पौधे गर्मी के मौसम में मुरझाएं नहीं तो फिर उन्हें धूप से बचाकर रखें । पानी नियमित देते रहें उन्हें । इससे सूखने का डर नहीं रहता है । वहीं आप चाहें तो उनमें नमी बनाए रखने के लिए गिले कपड़े से ढ़क सकती हैं ।
– गर्मी के मौसम में आप सुबह और शाम में पौधों को पानी जरूर दीजिए । लेकिन दोपहर के समय बिल्कुल पानी देने की गलती न करें । इससे मुरझा सकते हैं पौधे ।
– वहीं, पौधों को पर्याप्त खाद देते रहें ताकि उनके न्यूट्रिशन यानी पोषण में कमी न आए ।आप पौधों के लिए ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का उपयोग भी कर सकते हैं ।
– इसके अलावा आप सारे पौधों को छांव में नहीं रख सकते हैं तो फिर आप हरे रंग का शेड डाल दें जहां पौधे रखे हैं आपने । इससे पौधे की हरियाली बनी रहेगी । तो अब से आप इन नुस्खों से अपने पौधों को गर्मी की मार से बचा सकती हैं ।

एक बहन बनी दरोगा, दूसरी ने पास की नीट परीक्षा

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की दो बहनों ने कामयाबी की नई इबारत लिखी है । एक बहन का चयन यूपी पुलिस दरोगा (एसआई) के पद पर हुआ तो दूसरी ने नीट परीक्षा पास कर ली है । इस उपलब्धि के बाद उनके घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है । सफलता की यह कहानी हाथरस जिले के सहपऊ कस्बा के मोहल्ला बनियाना का है। मोहल्ले में रहने वाले रिटायर्ड पुलिस निरीक्षक वेद प्रकाश वार्ष्णेय की दो बेटियों ने यह उपलब्धि हासिल की है । एक बेटी प्राची वार्ष्णेय का पुलिस उपनिरीक्षक के पद पर सेलेक्शन हुआ है जबकि दूसरी आयुषी नीट परीक्षा पास करके एमबीबीएस कर रही हैं । वेद प्रकाश वार्ष्णेय का कहना है कि उन्होंने कभी बेटे और बेटियों ने भेद नहीं किया । उनकी तीन बेटियां बड़ी हैं और बेटा सबसे छोटा है जो अभी 12वीं में पढ़ता है ।

बड़ी बहन ने भी किया है गणित में पीजी

पुलिस उपनिरीक्षक (एसआई) प्राची और नीट परीक्षा पास करने वाली आयुषी ने ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन बदायूं से किया है । प्राची का सपना अभी पुलिस में अधिकारी बनने का है । वहीं आयुषी डॉक्टर बनकर गरीबों की सेवा करना चाहती हैं । सबसे बड़ी बहन उमा ने गणित में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। वह शिक्षिका बनना चाहती हैं ।

वन स्टेशन-वन प्रोडक्ट योजना : स्थानीय कारीगरों और छोटे उद्यमियों को होगा लाभ

कोलकाता। रेल मंत्रालय ने भारत सरकार के लोकल के लिए वोकल विजन को बढ़ावा देने, स्थानीय/स्वदेशी उत्पादों के लिए एक बाजार प्रदान करने और वंचितों के लिए अतिरिक्त आय अवसर पैदा करने के उद्देश्य से वन स्टेशन वन प्रोडक्ट योजना शुरू की है। योजना के तहत, रेलवे स्टेशनों पर ओएसओपी आउटलेट्स को स्वदेशी/स्थानीय उत्पादों को प्रदर्शित करने, बेचने और उच्च दृश्यता देने के लिए आवंटित किया जाएगा। पूर्व रेलवे के सीपीआरओ कौशिक मित्रा ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि ओएसओपी योजना स्थानीय कारीगरों, कुम्हारों, हथकरघा बुनकरों, आदिवासियों को आजीविका और कौशल विकास के अवसर प्रदान करने और स्थानीय व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला में मदद करने में सफल रही है। योजना का पायलट 25 मार्च को शुरू किया गया था और 1 मई तक देश के 21 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में 785 ओएसओपी आउटलेट्स के साथ 728 स्टेशनों को कवर किया गया है।
पूर्व रेलवे में विभिन्न स्टेशनों पर 57 स्टॉल
पूर्व रेलवे में अब 4 मंडलों में विभिन्न स्टेशनों पर 57 स्टॉल संचालित हो रहे हैं। हावड़ा, सियालदह, आसनसोल, मालदा। जिनमें से हावड़ा मंडल में 21, मालदा मंडल में 7, आसनसोल मंडल में 7 और सियालदह मंडल में 22 स्टॉल हैं। पूर्व रेलवे ने ओएसओपी स्टालों की स्थापना के लिए पहले से ही 380 स्टेशनों की पहचान की है। वन स्टेशन वन प्रोडक्ट उस स्थान के लिए विशिष्ट हैं और इसमें स्वदेशी जनजातियों द्वारा बनाई गई कलाकृतियां, स्थानीय बुनकरों द्वारा हथकरघा, विश्व प्रसिद्ध लकड़ी की नक्काशी जैसे हस्तशिल्प, कपड़े पर चिकनकारी और जरी-जरदोजी का काम, या मसाले चाय, कॉफी और अन्य संसाधित/अर्द्ध शामिल हैं। बंगाल की तांत साड़ी, भागलपुर सिल्क साड़ी, टेराकोटा उत्पाद, बांस उत्पाद और जूट उत्पाद इस योजना के तहत उत्पाद श्रेणियों में शामिल हैं।

नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल में अब मेडिकल ऑन्कोलॉजी सेवा

कोलकाता । अपने मरीजों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए नारायणा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल, जेस्सोर रोड, कोलकाता ने अपनी मेडिकल ऑन्कोलॉजी सेवा शुरू की और अत्याधुनिक कीमोथेरेपी यूनिट के उद्घाटन की घोषणा की। इससे उत्तर 24 परगना और इसके आस-पास के जिलों में अपनी सेवाओं का विस्तार करने और रोगियों को उन्नत कैंसर इलाज मिलेगा । अस्पताल के अनुसार मेडिकल ऑन्कोलॉजी सेवाओं और कीमोथेरेपी की शुरुआत समग्र और रोगी-केंद्रित देखभाल प्रदान करने की दिशा में एक कदम है। कीमोथेरेपी यूनिट उस क्षेत्र में सेवाओं की उपलब्धता प्रदान करेगी जो अब तक उच्च स्तर की कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी तक सीमित पहुंच रखती थी। रोगी की सुरक्षा, आराम और दक्षता पर ध्यान देने के साथ, अस्पताल का उद्देश्य कीमोथेरेपी अनुभव को अनुकूलित करना, संभावित दुष्प्रभावों को कम करना और चिकित्सीय प्रभाव को अधिकतम करना है। मेडिकल ऑन्कोलॉजी सेवाएं टाटा मेमोरियल अस्पताल, मुंबई के डॉ. विवेक अग्रवाल के नेतृत्व में मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट की एक अनुभवी टीम की देखरेख में सुनिश्चित करेगी। नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जेस्सोर रोड में मेडिकल एंड हेमेटो ऑन्कोलॉजी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार और निदेशक डॉ विवेक अग्रवाल ने कहा कि हम अपनी मेडिकल ऑन्कोलॉजी सेवाओं को शुरू करने से प्रसन्न हैं।
डॉ. चंद्रकांत एमवी, कंसल्टेंट, डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल ऑन्कोलॉजी एंड हेमेटो ऑन्कोलॉजी ने कहा कि हम मरीजों को कैंसर की पूरी उपचार यात्रा के दौरान उन्नत उपचार विकल्प और अनुकंपा सहायता प्रदान करने के लिए तैयार हैं। आर वेंकटेश, ग्रुप सीओओ ने कहा कि नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी अस्पताल, जेस्सोर रोड में मेडिकल ऑन्कोलॉजी सर्विसेज और कीमोथेरेपी यूनिट का आरम्भ होना असाधारण स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए अस्पताल की प्रतिबद्धता में एक महत्वपूर्ण प्रगति है। अस्पताल रोगी परिणामों में सुधार लाने और कैंसर की चुनौतियों का सामना करने वाले व्यक्तियों के लिए देखभाल के उच्चतम मानकों को सुनिश्चित करने के लिए समर्पित है।

मॉरीशस के राष्ट्रपति पृथ्वीराजसिंह रूपन पहुँचे दक्षिणेश्वर एवं बेलूर मठ

कोलकाता । मॉरीशस के सातवें राष्ट्रपति पृथ्वीराजसिंह रूपन अपनी पत्नी के साथ तीन दिवसीय दौरे पर कोलकाता पहुँचे हैं । वे कोलकाता में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल दक्षिणेश्वर मंदिर और बेलूर मठ पहुँचे। उन्होंने कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के श्रमिक स्मारक का भी दौरा किया ।
इस दौरान डॉ. स्वपन दासगुप्ता (इंडिया फाउंडेशन की गवर्निंग काउंसिल और खोला हवा के अध्यक्ष), सुशील मोदी (बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और गवर्निंग काउंसिल, इंडिया फाउंडेशन के सदस्य), महामहिम पृथ्वीराजसिंह रूपन जीसीएसके (मॉरीशस के राष्ट्रपति) के स्वागत समारोह और रात्रिभोज की मेजबानी की। इस मौके पर राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस (पश्चिम बंगाल के राज्यपाल) और राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह भी मौजूद रहे ।
मॉरीशस के राष्ट्रपति पृथ्वीराजसिंह रूपन मॉरीशस गणराज्य के राज्य प्रमुख हैं। यह देश एक संसदीय गणतंत्र है। जिसके वर्तमान कार्यालय धारक पृथ्वीराजसिंह रूपन हैं। उन्होंने 2 दिसंबर 2019 को पदभार ग्रहण किया। डॉ. स्वपन दासगुप्ता (गवर्निंग काउंसिल, इंडिया फाउंडेशन और खोला हवा के अध्यक्ष) ने कहा, भारतीयों में से एक के वंशज का स्वागत करना मेरा सौभाग्य है, जिनकी मातृभूमि कोलकाता है।
पृथ्वीराजसिंह रूपन एक अधिवक्ता हैं, जो पहली बार 2000 में नेशनल असेंबली के लिए चुने गए थे। वह कला संस्कृति, सामाजिक एकीकरण और क्षेत्रीय प्रशासन मंत्री भी रहे हैं। 1968 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से मॉरीशस अफ्रीका में सबसे स्थिर लोकतंत्रों में से एक है।

माताओं से प्रेम करना अच्छी बात है मगर उनकी जवाबदेही भी तय हो

जीवन में क्या सब कुछ पूरी तरह सकारात्मक हो सकता है…क्या कोई भी चीज परफेक्ट हो सकती है ? हमारी समझ से कोई भी चीज, कोई भी रिश्ता परफेक्ट नहीं होता…अच्छे और बुरे पक्ष हर बात के होते हैं मगर हम अपनी संवेदना को चोट नहीं पहुँचाना चाहते इसलिए बुरे पक्ष को नकारात्मक कहकर हवा में उड़ा देना चाहते हैं । मई और जून का महीना पाश्चात्य कैलेंडर के अनुसार माता और पिता को समर्पित है..एक दिन इनके नाम ही होता है । सन्दूकों से पुरानी तस्वीरें निकलती हैं और स्टेटस पर सज जाती हैं, व्यवहार में भले ही आचरण अलग हो । बाजार का जादू ऐसा है कि हर कोई इस रिश्ते पर जमकर खर्च करना चाहता है..आज इस तरह के दिवस फैशन स्टेटमेंट की तरह हैं और एक जैसी नीरस चर्चा हमारी जिन्दगी का हिस्सा बन गयी है ।
कहा गया है कि माता कुमाता नहीं हो सकती मगर गहराई में जाकर देखेंगे तो पता चलेगा कि सन्तान मोह विशेषकर पुत्र मोह की आड़ में माताएं खेल खेलती हैं । पुराने जमाने में जब रनिवास और हरम हुआ करते थे, बहुपत्नीवाद था तो अपने बच्चों को सिंहासन पर बैठाने के लिए दूसरी रानी के बच्चों की हत्या से भी उनको हिचक नहीं होती थी…रामायण में भी भरत के लिए कैकयी ने राम का वनवास माँगा था । माँ की ममता ठीक है मगर ममता की पराकाष्ठा क्या किसी और के अधिकारों पर चलकर सन्तान की इच्छा पूर्ति करना भर है । शादी के पहले बेटों के लिए बेटियों को दबाना, देवरानियों और जेठानियों से लेकर ननद के बच्चों को दबाना, अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ बताने के लिए तंज कसना यह महिलाओं की आदत है । बच्चा किसी से लड़कर आए, किसी को पीटकर आए, चोरी करके आए या लड़की छेड़कर आए..माताएं उनकी गलतियों को नजरअन्दाज ही नहीं करती बल्कि कवर अप करने के लिए खड़ी हो जाती हैं । क्या यही ममता है..जो माताएं अपने बच्चों की गलतियों को छुपाती हैं, वह आगे चलकर अपराधी ही बनते हैं…किसी और को पीटने वाले बच्चों का गुस्सा जब नियंत्रित नहीं किया जाता तो वह हिंसक ही बनता है और फिर उसे अपनी ताकत का ऐसा नशा हो जाता है कि वह हर किसी से मारपीट करता है, छोटे या बड़े भाई -बहनों को मारता है, फिर पत्नी और बच्चों को मारता है और एक दिन हत्यारा भी बन जाता है तो यह गलती किसकी है कि उस बच्चे को पहली बार ही नियंत्रित नहीं किया गया..निश्चित रूप से वह अधिकतर मामलों में कोई स्त्री ही होती है । जब लड़की किसी लड़की का पीछा करते हैं…उनको घूरते हैं, छेड़ते हैं तो वह भी एक दिन में नहीं होता, ऐसे लड़कों पर नजर रखने वाला, उनको समझाने वाला कोई नहीं होता…जिस अनुशासन से लड़कियों को पराया धन कहकर आत्मनिर्भर बनाया जाता है, लड़कों की परवरिश में वह अनुशासन नहीं होता । लज्जा लड़कियों का गहना है तो क्या लड़कों को बेशर्म होना चाहिए ?
मेरे मित्र अक्सर कहते हैं कि मैं नकारात्मक होकर सोचती हूँ मगर मैं वही सोचती हूँ जो मुझे दिखता है । जिस मानसिक, शारीरिक और आर्थिक दबाव के साथ लड़कियाँ बड़ी होती हैं…लाख दबावों के बाद भी लड़कों पर वह दबाव नहीं होता । लड़कों की समस्याएं होती हैं, वे सैंडविच भी बनते हैं मगर उनको दुलार भी खूब मिलता है । उनको धमकियाँ नहीं मिलतीं कि सास – ससुर क्या कहेंगे या करेंगे..माँ और पत्नी की लड़ाई में अधमरे होते भी हैं तो अन्ततः केन्द्र में वही रहते हैं और जो होता है, उनकी भलाई के लिए होता है । भावनात्मक ब्लैकमेलिंग का खेल माताएं ही अधिक खेलती हैं…और तंज भी उनके तैयार रहते हैं । बहनों को कई तरीके पराया बताया जाता है …यहीं राज है ..ससुराल जाओगी तो पता चलेगा…बैग उठाकर चल देती हो…हम तो यहाँ नौकर बैठे हैं ।
घी मत खाओ, तुम्हारे भाई के लिए रखा है…कमजोर हो गया है …बहनों को भाई का अटेंडेंट माताएं ही बनाती हैं…घर में भोजन से लेकर कमरे और मानसिक और आर्थिक स्तर पर अपनी ही बेटियों के साथ भेदभाव माताएं ही करती हैं…आखिर मातृत्व के नाम पर किस तरह की माताओं को सेलिब्रेट किया जा रहा है ?
क्या यह सही समय नहीं है कि माताओं की जवाबदेही तय की जाए क्योंकि सन्तान को तो अन्ततः देश का नागरिक ही बनना है । कहाँ से आते हैं ऐसे अपराधी जो सीरियल किलर बनते हैं, ठग बनते हैं…हत्यारे बनते हैं…यह एक दिन में तो होता नहीं है…क्या बचपन से ही इनको रोका जाता तो यह अपराधी बनते?
माताओं से प्रेम करना, उनकी सराहना करना, ऐसी माताओं को पूजना..जो बच्चों के जीवन संघर्ष में साथ खड़ी रहती हैं…सही है मगर क्या हम उन माताओं की भी इज्जत करें जो सन्तान मोह के कारण किसी और बच्चे का भोजन छीन लें…किसी और का जीवन नष्ट कर दें..?
अतिरेक को पीछे छोड़कर यह तय करना जरूरी है कि सम्बन्धों के किस रूप को हम प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि सम्बन्ध किसी भी रूप में आगे चलकर समाज और देश के विकास को प्रभावित करते हैं और इसलिए किसी भी सम्बन्ध को मानवता और समानता के आधार पर आगे जाना होगा ।

नयी तकनीक से अपोलो हॉस्पिटल ने बचाई मरीज की जान

कोलकाता । आए दिन लोग हृदय संबंधी विभिन्न प्रकार के रोगों की चपेट में आ रहे हैं। ऐसे में हृदय संबंधी रोगों का समय पर इलाज ना करवाना जोखिम भरा होता है। इसी कड़ी में अपोलो हॉस्पिटल चेन्नई ने हृदय रोग से पीड़ित एक मरीज की जान बचाई है। दरअसल 64 वर्षीय एक महिला रोगी को एट्रियल फिब्रिलेशन की समस्या थी। बता दें कि एट्रियल फिब्रिलेशन को आमतौर पर अनियमित दिल की धड़कन के रूप में जाना जाता है जो रक्त के थक्के, स्ट्रोक, हार्ट फेलियर और अन्य हृदय जटिलताओं को जन्म दे सकता है। सामान्य रूप में यह जीवन के लिए कोई खतरा नहीं है। लेकिन ध्यान ना देने या वक़्त पर उपचार न लेने से जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में हॉस्पिटल में मरीज को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए क्रायो बैलून एब्लेशन तकनीक का उपयोग किया और मरीज की जान बचाई। खास बात यह है कि अस्पताल ने चेन्नई में पहली बार इस तकनीक का उपयोग किया। अपोलो मेन हॉस्पिटल्स के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट और इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिस्ट डॉ ए.एम. कार्तिगेसन क्रायो बैलून एब्लेशन तकनीक का उपयोग ट्रायल के तौर पर 15 रोगियों पर कर चुके हैं। एट्रियल फिब्रिलेशन (एएफ) एक सामान्य हृदय ताल विकार है जो 90 लाख से अधिक भारतीयों को प्रभावित करता है, जिससे स्ट्रोक, दिल की विफलता और मृत्यु का खतरा बढ़जाता है। क्रायो बैलून एब्लेशन टेक्नोलॉजी के कार्यों के बारे में बताते हुए डॉ  कार्तिगेसन ने कहा, क्रायो बैलून एब्लेशन एकनई इंटरवेंशनल प्रक्रिया है जो दिल की लय को नियंत्रित करने के लिए नियोजित कीजाती है। डॉक्टर कार्तिगेसन ने कहा कि दशकों से अपोलो हॉस्पिटल्स लोगों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए नई जीवन रक्षक सेवाएं और प्रक्रियाएं ला रहा है। यह नयी प्रक्रिया उस प्रतिबद्धता का ही एक रूप है ।

सीयू : “हिंदी और भारतीय साहित्य” विषय पर ‘एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी’

कोलकाता । ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग और कोल इंडिया लिमिटेड के संयुक्त तत्वावधान में गत  9 मई को रवीन्द्र जयंती पर राजाबाजार साइंस कॉलेज के मेघनाद साहा सभागार में “हिंदी और भारतीय साहित्य” विषय पर ‘एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी । संगोष्ठी में देश के कई अन्य प्रमुख विश्वविद्यालयों से आमंत्रित विद्वानों ने विचार रखे ।
कार्यक्रम के उदघाटन सत्र में कोल इंडिया लिमिटेड के निदेशक विनय रंजन, प्रोफेसर सुरेंद्रनाथ सांध्य कॉलेज के सेवानिवृत्त प्राध्यापक एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी , कोल इंडिया के कार्यकारी निदेशक अजय चौधरी, राजभाषा विभाग के सहायक निदेशक निर्मल कुमार दूबे, कोल इंडिया के उप प्रबंधक राजेश कुमार साव एवं उप प्रबंधक प्रियांशु प्रकाश, अनुवादक संदीप सोनी  सहित कई अतिथि उपस्थित थे । वक्ताओं ने कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के साहित्यिक योगदानों पर चर्चा करते हुए फ़िजी, मॉरिशस, त्रिनिदाद आदि देशों में हिन्दी के उपयोग पर चर्चा की। कार्यक्रम के प्रथम सत्र का संचालन विभागाध्यक्ष डॉ. रामप्रवेश रजक ने किया। इस सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका प्रो.कुमुद शर्मा, कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका प्रो. राजश्री शुक्ला, उत्तर बंग विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका प्रोफेसर मनीषा झा, पश्चिम बंगाल राज्य विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रोफेसर अरुण होता मंच पर उपस्थित थे। वहीं कार्यक्रम की समन्वयक और कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका प्रोफेसर राजश्री शुक्ला ने कहा कि भारतीय साहित्य को हम एक भाषा का साहित्य नहीं मान सकते, भारत की समस्त भाषाओं का साहित्य ‘भारतीय साहित्य’ है। उन्होंने विदेशी साहित्य के विभिन्न रूपों की चर्चा करते हुए भारतीय साहित्य की सृजनात्मक कल्पनाओं को बचाए रखने के लिए हिंदी को बचाए रखने को प्रेरित किया। उन्होंने स्वीकारा कि भारतीय साहित्य की पहचान भाषिक नहीं बल्कि भारत के सभी भाषाओं के विचारों की अभिव्यक्ति का साधन है।
प्रो. कुमुद शर्मा ने कहा कि “भारतीय भाषाएँ रुप दृष्टि से अलग हो सकती है लेकिन संरचनात्मक दृष्टि से वें एक ही हैं। इसके निर्माण में वेदों,उपनिषदों और पुराणों का महत्वपूर्ण योगदान हैं। साहित्य के मूल में किसान हैं, गांधी जी को हम स्वाधीनता का नायक मानते हैं लेकिन गांधी जी ने वास्तविक नायक किसानों को बताया हैं। उन्होंने कहा कि हमारे तमाम भारतीय रचनाकारों के बीच एक सांस्कृतिक साझेदारी है।” प्रो. मनीषा झा ने हिन्दी और वर्तमान विमर्शों के अखिल भारतीय स्वरूप पर चर्चा की और ‘प्रकृति विमर्श’ की बात सामने रखी। उन्होंने कहा कि “पर्यावरण भी साहित्य का हिस्सा है। पर्यावरण की मुक्ति सभी साहित्यों का एक प्रमुख अंश है। मनुष्य का जीवन पर्यावरण को छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकता इसलिए पर्यावरण के प्रति सच्ची संवेदना जरूरी है।” प्रोफेसर अरुण होता ने कहा कि “वर्तमान समय में जहाँ अलगाव की बात हो रही है वहाँ भारतीय साहित्य की बात अत्यंत जरूरी है। भारतीय साहित्य कहने का अधिकार उस साहित्य को है जिसमें भारत के जीवन मूल्यों एवं संस्कृति की चर्चा हो।” डॉ. नगेन्द्र की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि “भारतीय साहित्य हिमालय से भी ऊँचा और प्रशांत महासागर से भी गहरा है।”
कार्यक्रम के दूसरे सत्र का संचालन प्रो. राजश्री शुक्ला ने किया। इस सत्र में मंच पर वक्ता के रूप में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. सुधीर प्रताप सिंह और पूर्व प्रो. डॉ. आनन्द कुमार सिंह उपस्थित थें। डॉ.आनन्द कुमार सिंह ने कहा कि “विश्व साहित्य और भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक रचनाओं में कोई अंतर नहीं, अन्तर समाधान प्रक्रिया में हैं। उन्होंने जॉन कीट्स और शैली की रचनाओं से लिए गए उद्धरणों द्वारा अपने पक्ष को स्थापित किया, साथ ही उन्होंने मायावाद, अवतारवाद आदि मतों पर भी चर्चा की। वहीं डॉ. सुधीर प्रताप सिंह ने भारत की सांस्कृतिक चेतना को भारतीय साहित्य का दर्पण मानते हुए कहा कि “भारतीय जीवन दर्शन में ही सम्पूर्ण चर-चराचर जगत की सम्पूर्णता है।”
कार्यक्रम के अंतिम सत्र (तृतीय सत्र) का संचालन विजय कुमार साव ने किया। इस सत्र में त्रिपुरा विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार मिश्र , विद्यासागर विश्वविद्यालय के प्रो. डॉक्टर संजय जायसवाल और स्कॉटिश चर्च कॉलेज की प्राध्यापिका डॉ. गीता दूबे उपस्थित थीं।
डॉ. विनोद कुमार मिश्र ने असमिया स्त्री विमर्श, बहु पत्नी विवाह, भारतीय भाषा का महत्व एवं पुरानी और नयी पीढ़ी के बीच के संघर्षों के आधार पर अपना वक्तव्य रखा। उन्होंने हिन्दी को भारतीय साहित्य के बीच एक सेतु के रूप में स्वीकार किया। डॉ संजय जायसवाल ने भारतीय साहित्य को देखने की दृष्टि, भारतीय संस्कृति के मूल चरित्र, वर्तमान में भारतीय साहित्य के समक्ष वैश्विक चुनौतियों, भारतीय साहित्य की अवधारणा आदि विषयों पर विचार रखे तथा अनुवाद का महत्व समझाया । डॉ. गीता दूबे ने कहा कि निराला और टैगोर हिन्दी और बांग्ला साहित्य को पढ़ने के दो सूत्र हैं। उन्होंने विमर्शों की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए आत्मकथाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को सबके समक्ष रखा। आत्मकथाओं को उन्होंने अपने समय का इतिहास कहा और माना कि इसमें कहानी स्व जीवन की ना होकर पूरे समाज की होती है, इस क्रम में उन्होंने ‘वे नायाब औरतें’, ‘एक अनपढ़ कहानी’ आदि आत्मकथाओं पर चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य के संपूर्ण विवेचन के लिए ऐसी कई संगोष्ठियों की आवश्यकता है। कार्यक्रम का आरम्भ सरस्वती वन्दना से हुआ । धन्यवाद ज्ञापन देते हुए डॉ. रामप्रवेश रजक ने कोल इंडिया लिमिटेड के राजेश कुमार साव, उप प्रबंधक (राजभाषा) और प्रियांशु प्रकाश (उप प्रबंधक) का आभार व्यक्त किया ।  कार्यक्रम के आयोजन में संकल्प हिन्दी साहित्य सभा और वाद- विवाद समिति से जुड़े द्वितीय और चतुर्थ सत्र के विद्यार्थियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कार्यक्रम में कलकत्ता विश्वविद्यालय के साथ-साथ राज्य के कई अन्य शैक्षणिक संस्थानों से भी विद्यार्थी जुड़े। साथ ही सोशल मीडिया पर कार्यक्रम का लाइव प्रसारण भी किया गया।