लेबनान को फाइनल में 2-0 से हराया
नयी दिल्ली । कप्तान सुनील छेत्री और लल्लिंजुआला छांगते के गोल के दम पर भारत ने इंटरकांटिनेंटल कप के फाइनल में गत रविवार को लेबनान को 2-0 से शिकस्त दी। मैच का पहला हाफ में कोई गोल ना पड़ने के बाद अपने करियर के अंतिम दौर से गुजर रहे 38 वर्षीय छेत्री ने 46वें मिनट में गोल कर भारत को बढ़त दिलाई। यह उनका 87वां अंतरराष्ट्रीय गोल है और एक्टिव खिलाड़ियों में सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय गोल करने के मामले में वह तीसरे स्थान पर हैं।
इस गोल में मददगार की भूमिका निभाने वाले छांगते ने 66वें मिनट में टीम की बढ़त को दोगुना कर मैदान में भरे दर्शकों को झूमने का मौका दिया तो वहीं विश्व रैंकिंग में 99वें स्थान पर काबिज टीम को सन्न कर दिया। विश्व रैंकिंग में 101वें स्थान पर काबिज भारत ने दूसरी बार इस टूर्नामेंट को अपने नाम किया है। टीम ने 2018 में इसके शुरुआती सत्र के फाइनल में कीनिया को हराकर चैम्पियन बनीं थी जबकि 2019 उत्तर कोरिया ने खिताब जीता था और भारत चौथे और आखिरी स्थान पर रहा था। उमस भरी गर्मी में दोनों टीमों के पास शुरुआती हाफ में बढ़त बनाने का मौका था लेकिन वे इसका फायदा उठाने में नाकाम रहे। यह हाफ उसी तरह था जैसा की दोनों टीमों ने दो दिन पहले राउंड रोबिन चरण के आखिरी मैच को बिना कोई गोल दागे ड्रॉ खेला था। इस दौरान भारत ने गेंद को अधिक समय तक अपने पास रखने पर ध्यान दिया तो वही लेबनान का जोर आक्रमण करने पर था। लेबनान ने भारतीय गोल पोस्ट की तरफ सात बार हमले किए तो वही गेंद को 58 प्रतिशत समय तब अपने नियंत्रण में रखने वाली भारतीय टीम तीन बार ही लेबनान के गोल पोस्ट की ओर आक्रमण कर पाई।
छेत्री और छांगते ने दूसरे हाफ में किया कमाल
हाफ टाइम के बाद सबसे पहले छांगते ने बॉक्स के पास से गेंद को अपने नियंत्रण में लेकर छेत्री को दिया और भारतीय कप्तान ने लेबनान के गोलकीपर अली सबेह को छकाने में कोई गलती नहीं की। टीम ने खिलाड़ियों के शानदार सामंजस्य से इस मौके को बनाया । निखिल पुजारी ने बेहद कम जगह में से लेबनान के खिलाड़ियों के बीच से गेंद को छांगते की ओर धकेला और इस खिलाड़ी ने अपने प्रेरणादायी कप्तान के लिए मौका बनाने में कोई गलती नहीं की।
एक गोल की बढ़त लेने के बाद भारतीय खिलाड़ियों ने घरेलू परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए छांगते के प्रयास से इस बढ़त को दोगुना कर दिया। सब्स्टीट्यूट नाओरेम महेश सिंह ने छेत्री के पास पर गोल करने का प्रयास किया लेकिन लेबनान के गोलकीपर ने गेंद को गोल में जाने से रोक दिया। हालांकि गोलकीपर गेंद को नियंत्रण में नहीं रख सके जो छिटक कर छांगते के पास गई और खिलाड़ी ने गेंद को गोल पोस्ट में डाल दिया।
भारत ने दूसरी बार जीता इंटरकांटिनेंटल कप
नारियल के खोल से कप बनाते हैं भोपाल के ज्ञानेश्वर शुक्ला
भोपाल । नारियल के कई इस्तेमाल आपने देखे होंगे, लेकिन भोपाल के ज्ञानेश्वर शुक्ला ने वेस्ट टू बेस्ट का अनोखा उदाहरण पेश किया है। ज्ञानेश्वर नारियल के खोल से कप बनाते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस कप में चाय पीना सेहत के लिए अच्छा है। दूसरा यह कि वे मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले कप को रिसाइकिल करते हैं। तीसरी, वे इससे होने वाली आमदनी स्वयंसेवी संस्था को देते हैं।
भोपाल के अवधपुरी इलाके में रहने वाले ज्ञानेश्वर यूं तो कंस्ट्रक्शन सेक्टर से जुड़े हैं, लेकिन मंदिरों में नारियलों की हालत देखकर उन्हें इसे रीसाइकिल करने का ख्याल आया। मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले हजारों नारियलों का कोई इस्तेमाल नहीं होता। खराब होने के बाद उन्हें पानी में विसर्जित कर दिया जाता है। यह देखकर ज्ञानेश्वर के मन में इसे रीसाइकिल करने का ख्याल आया। उन्हें पता चला कि नारियल के खोल में कई विटामिन और मिनरल्स होते हैं जो सेहत के लिए फायदेमंद हैं। तब उन्होंने इससे कप बनाने का फैसला किया।
ज्ञानेश्वर अपने पेशेवर काम को निपटाने के बाद वे कप बनाने का काम करते हैं। उन्होंने अपने घर में ही एक छोटा सा कारखाना बनाया है। वे रोजाना तीन-चार घंटे यह काम करते हैं। एक कप को बनाने में उन्हें तीन दिन का समय लगता है। पहले वे यह कप इपने दोस्तों को गिफ्ट करते थे। अब वे सोशल मीडिया और मार्केटिंग वेबसाइट्स के जरिये इसे बेचते हैं।
ज्ञानेश्वर का कहना है कि वे युवा पीढ़ी को यह कला सिखाना चाहते हैं। इसके लिए वो जल्द ही वर्कशॉप आयोजित करने वाले हैं। इससे युवा हेल्थ और वेल्थ दोनों बना सकते हैं। युवा अतिरिक्त आमदनी के लिए भी यह काम कर सकते हैं।
गीता प्रेस,गोरखपुर को मिलेगा गांधी शांति पुरस्कार
पुरस्कार राशि नहीं लेगा, एक करोड़ की राशि ठुकराई
गोरखपुर । सनातन धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में जुटी विश्व प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने का ऐलान किया गया है। पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने इस संबंध में फैसला लिया। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की ओर से इसका ऐलान किया गया। इसके बाद से ही सवाल उठने लगा था कि क्या इस पुरस्कार को गीता प्रेस संस्था स्वीकार करेगी। दरअसल, अब तक गीता प्रेस ने कभी भी कोई पुरस्कार स्वीकार नहीं किया था। संस्कृति मंत्रालय की ओर से हुए ऐलान के बाद संस्था का पक्ष सामने आया है। संस्था की ओर से साफ किया गया है कि उनकी ओर से गांधी शांति पुरस्कार को स्वीकार किया जाएगा।
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हालांकि, संस्था ने इसके साथ मिलने वाली धनराशि को लेने से इनकार कर दिया है। गांधी शांति पुरस्कार विजेता को पुरस्कार के साथ एक करोड़ की राशि भी दी जाती है। गीता प्रेस, गोरखपुर 100 सालों से सनातन संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर रहा है। वैश्विक स्तर पर संस्था को सनातन संस्कृति और पुस्तकों के तीर्थ के रूप में माना जाता है। गीता प्रेस में सम्मान स्वीकार करने की परंपरा नहीं रही है। हालांकि, पुरस्कार की घोषणा के बाद गीता प्रेस बोर्ड की बैठक हुई। इस बैठक में पुरस्कार को प्रबंधन से जुड़े पक्ष ने सनातन संस्कृति का सम्मान बताया। बोर्ड की बैठक में परंपरा को तोड़ते हुए सम्मान को स्वीकार करने का फैसला लिया गया है।
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हालांकि, बोर्ड से जुड़े सदस्यों ने कहा कि पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की राशि को स्वीकार नहीं करने का निर्णय लिया है। गीता प्रेस बोर्ड की बैठक में केंद्र सरकार के फैसले पर गंभीर चर्चा हुई। दरअसल, गांधी शांति पुरस्कार के तहत विजेता को एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका, एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला, हथकरघा की कलाकृति के साथ एक करोड़ रुपये दिए जाते हैं। बोर्ड ने तय किया है कि पुरस्कार में मिलने वाले पैसे को छोड़कर प्रशस्ति पत्र, पट्टिका और हस्तकला, हथकरघा की कलाकृति आदि को स्वीकार किया जाएगा।
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इस संबंध में गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने कहा कि अभी तक कोई सम्मान स्वीकार न करने की परंपरा रही है। इस बार निर्णय लिया गया है कि हम सम्मान स्वीकार करेंगे। लालमणि तिवारी ने साफ किया कि पुरस्कार के साथ मिलने वाली राशि स्वीकार नहीं की जाएगी। गीता प्रेस की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर पुरस्कार मिलने पर उन्होंने खुशी जताई। प्रबंधक ने कहा कि सनातन संस्कृति का सम्मान हुआ है। इस सम्मान के लिए भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय, पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ का बोर्ड की बैठक में आभार भी जताया गया। उन्होंने कहा कि यह सम्मान हमें अभिभूत कर रहा है। हम निरंतर ही इस प्रकार का काम करते रहेंगे।
रवि सिन्हा ने सम्भाली रॉ की कमान
नयी दिल्ली । आईपीएस के वरिष्ठ अधिकारी रवि सिन्हा को आज खुफिया एजेंसी रॉ का नया चीफ बनाया गया है। रवि सिन्हा छत्तीसगढ़ कैडर के 1998 आईपीएस बैच के अधिकारी हैं। सिन्हा बिहार के भोजपुर के रहने वाले हैं। रवि सिन्हा इस समय सचिवालय में विशेष सचिव के रूप में काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार के आदेश के अनुसार, रॉ के नए चीफ के रूप में रवि सिन्हा का कार्यकाल 2 साल का होगा। देश की खुफिया एजेंसी रॉ के नए प्रमुख रवि सिन्हा के बारे में जानते हैं।
रवि सिन्हा मूल रूप से बिहार के भोजपुर के रहने वाले हैं। रवि सिन्हा की शिक्षा दिल्ली से ही हुई है। राजधानी दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से रवि सिन्हा ने पढ़ाई की है। कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर उन्होंने आईपीएस की तैयारी की जिसके बाद साल 1998 में यूपीएसएससी परीक्षा पास की थी। रवि सिन्हा को सबसे पहले मध्य प्रदेश कैडर मिला था। बाद में जब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ अलग हुए तो रवि सिन्हा को छत्तीसगढ़ कैडर मिला। रवि सिन्हा मौजूदा समय में सचिवालय में प्रिंसिपल स्टाफ ऑफिसर के पद पर हैं।
रवि सिन्हा को लो प्रोफाइल रहना है पसंद
रवि सिन्हा के बारे में कहा जाता है कि उन्हें लो प्रोफाइल रहकर काम करना पसंद है। रवि सिन्हा के बारे में कहा जाता है कि वह खुफियाजानकारी जुटाने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि जब वह रॉ की कमान संभालेंगे तब इंटिग्रेटेड टेक्नोलॉजी और ह्यूमन इंटिलिजेंस को साथ लेकर काम करने में मदद मिलेगी। रवि सिन्हा ने इससे पहले जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्व और वामपंथी चरमपंथी डोमेन के अलावा कई जगह अपनी सेवाएं दी हैं।
सामंत गोयल की जगह लेंगे सिन्हा
इस समय रॉ के चीफ के रूप में सामंत गोयल कमान संभाल रहे हैं। उनका कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो रहा है। सामंत गोयल ने साल 2019 में रॉ चीफ का पद संभाला था। दो बार के विस्तार के बाद कुल 4 साल तक वह इस पद पर बने रहे थे। सामंत गोयल के बारे में खास बात यह है कि 2019 के पुलवामा हमले का बदला लेने के लिए भारत की ओर से बनाए गए प्लान का श्रेय भी इन्हें ही जाता है।
पत्थर की कुल्हाड़ी, शैलचित्र… अरावली में मिले हजारों साल पुराने चिह्न
फरीदाबाद । अरावली पर्वत शृंखला में बसे फरीदाबाद के कोट गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम ने मानव सभ्यता के कई साल पुराने चिह्न देखे। एएसआई हरियाणा सर्कल की सुप्रिटेंडिंग आर्किलॉजिस्ट कामीसा अथॉयेलूकाबुई ने इसकी पुष्टि की है। पिछले दिनों टीम ने कोट गांव में डेरा डाला था और पुरानी सभ्यता के कई चिह्न, शैलचित्र और पुराने हथियार देखे। हालांकि गांव में रहने वाले तेजवीर मावी ने 2021 में ये चिह्न देखे थे। इसके बाद टीम वहां पहुंची थी। ASI की टीम ने इसकी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को दे दी है, ताकि पुरानी मानव सभ्यता के चिह्नों पर रिसर्च की जा सके।
कोट गांव के रहने वाले तेजवीर ने बताया कि वह अपनी गाय व भैंस को चरने के लिए पहाड़ों में छोड़ देते थे। उसके बाद उन्हें पहाड़ों के अंदर से लेकर आते थे। एक दिन ऐसे ही घने जंगल और पहाड़ों की तरफ गाय चली गई। उसका पीछा करते हुए जब पहाड़ पर पहुंचे तो वहां पर हाथों के चिह्न दिखे, जो काफी पुराने लग रहे थे। जब इसके बारे में किताबों में पढ़ा तो पता चला कि ये कई वर्ष पुराने हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि उस समय वहां पत्थर की कुल्हाड़ी भी मिली थी। इसका प्रयोग लोग खाल उतारने, शिकार करने के लिए होता होगा।
उन्होंने कहा कि कोट गांव की पहाड़ियों पर शैलचित्र भी दिखे। इसमें हाथ के निशान, पैर के निशान के अलावा अलग-अलग चित्र बने थे। इसके बाद इस बारे में एक जून 2021 को हरियाणा पुरातत्व विभाग को इसकी सूचना दी। विभाग की टीम आई, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। अब कुछ दिन पहले भारत सरकार की टीम ने कोट गांव का दौरा किया और सभी चिह्नों के फोटो खींच कर अपने साथ ले गए। उम्मीद है कि कोट गांव को पुरातत्व विभाग भारत सरकार के लोग अपने अंडर लेकर कुछ रिसर्च करें।
हज़ारों साल हो सकते हैं पुराने
तेजवीर ने बताया कि जो चिह्न मिले हैं वे हजारों साल पुराने हो सकते हैं, जब लोग अलग-अलग तरह से रहते थे। वैसे भी अरावली रेंज 3.5 मिलियन साल पुरानी है। इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि ये देश की पुरानी रेंज है। अगर इस रेंज में इस तरह से मानव जाति से जुड़ी कुछ चीजें मिली हैं तो इसे सहेजने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अगर रिसर्च किया जाए तो अरावली में पुरापाषाण काल तक की चीजें मिल सकती हैं।
अब बच सकती है अरावली
अरावली जहां शुद्ध हवा और पानी उपलब्ध कराती है, वहीं कई पौराणिक इतिहास भी संजोए हुए हैं। अरावली के लिए काम करने वाले यश भड़ाना ने बताया कि अगर अरावली के अंदर इस तरह से मानव जाति के चिह्न मिल रहे हैं तो ये काफी अच्छी बात है। इसे तो संग्रहित करना चाहिए। आज के समय में तो अरावली को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, अगर इस तरह की चीजें मिल रही हैं तो उसपर शोध होना चाहिए और पूरी अरावली श्रृंखला को बचाना चाहिए।
मुज्जफरनगर के तुषार ने 4 हजार स्टिक से बनाया पुरी का भगवान जगन्नाथ मंदिर
मुजफ्फरनगर । मुजफ्फरनगर के तुषार शर्मा ने एक बार फिर अपने जनपद का नाम रोशन किया है। तुषार ने उड़ीसा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर का मॉडल 4 हजार स्टिक से तैयार किया है। 3 महीने में मॉडल तैयार करने के लिए तुषार को अखबार की रद्दी और फेवीकोल का प्रयोग करना पड़ा। तुषार इससे पूर्व अयोध्या के भव्य राम मंदिर का मॉडल भी 8 हजार स्टिक की मदद से तैयार कर चुका है। अब तक बनाए गए विभिन्न भव्य मॉडल पर तुषार को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड सहित कई सम्मान मिल चुके हैं।
तुषार का सपना है कि वह एक दिन अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराएं। बताया कि टॉप हंड्रेड रिकॉर्ड होल्डर एक्सीलेंट ऑन वर्ल्ड स्टेज 2022 में भी उसका नाम आ चुका है। तुषार ने बताया कि वह 4 साल में कई मॉडल बना चुका है। इनमें इंडिया गेट, लाल किला, गांधीजी का चरखा, व्हाइट हाउस, गोल्डन टेंपल, बद्रीनाथ धाम, स्वर्ण मंदिर, केदारनाथ धाम, क्रिसमस ट्री, शिवलिंग आदि शामिल है। तुषार ने कई महापुरुषों के छायाचित्र भी बनाए हैं।तुषार के परविार में खुशी का माहौल है। गांधी कॉलोनी निवासी जितेन्द्र शर्मा का बेटा तुषार देश के विभिन्न भव्य मंदिरों के मॉडल स्टिक से तैयार कर उनकी एक प्रदर्शनी दिल्ली में लगाना चाहता है। तुषार ने बताया कि उनके पिता का कपड़े का कारोबार है, लेकिन वह अपने शौक को ही अपना व्यवसाय बनाना चाहता है। बताया कि इसी वर्ष उसने बीकॉम किया है। तुषार के पिता जितेन्द्र शर्मा का कहना है कि यदि उनका बेटा चाहेगा तो वह अपने शोक को ही व्यवसाय बना सकता है। उन्होंने बताया कि तुषार की उपलब्धियों पर वे लोग काफी खुश हैं।
88 साल की महिला ने योग से दे दी कैंसर को मात
25 साल पहले डॉक्टरों ने खड़े कर दिए थे हाथ
हमीरपुर । उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में 70 फीसदी लोगों ने अब फिट रहने के लिए योग और प्राणायाम से नाता जोड़ लिया है। यहां सुबह और शाम यमुना और बेतवा नदियों के तट पर कई स्थानों पर योग की पाठशाला लोगों से गुलजार रहती है। हमीरपुर में एक 88 साल की बुजुर्ग महिला ने योग और प्राणायाम से कैंसर जैसी घातक बीमारी को भी मात दे दी है। ये अपना काम बिना किसी के सहारे खुद करती हैं।
हमीरपुर शहर के पटकाना मुहाल निवासी कैलासवती 88 बसंत देख चुकी हैं। इनके तीन पुत्र और तीन पुत्रियां है। सभी की शादी हो चुकी है। बुजुर्ग महिला के तीनों बेटे अपने परिवार के साथ अलग रहते हैं। मौजूदा वक्त में ये अपने छोटे पुत्र जगत प्रसाद मिश्रा के घर में रहती है लेकिन इतनी उम्र होने के बावजूद ये खुद ही अपना सारा काम करती हैं। इनकी छोटी बेटी रानी शुक्ला ने बताया कि 25 साल पहले मां बिल्कुल ठीक थी। अचानक पेट में तकलीफ बढ़ने पर उन्हें अस्पताल ले जाया गया। आराम न मिलने पर कानपुर ले जाया गया जहां कैंसर अस्पताल में तमाम जांचें की गईं। बताया कि कैंसर अस्पताल के डॉ. ईश्वर चन्द्र खरे ने जांच के बाद मां के पेट में कैंसर के लक्षण होने की बात कही।
कैंसर बीमारी होने पर घर के सभी लोग घबरा गए लेकिन मां जरा भी नहीं घबराई। बताया कि बाद में किसी की सलाह पर होम्योपैथिक इलाज कराया गया। साथ ही मां नियमित रूप से योग करने लगी। बुजुर्ग कैलासवती ने बताया कि वाकई योग ने उन्हें नया जीवन दिया है इसलिए सभी लोगों को सुबह की शुरुआत योग से ही करनी चाहिए। बताया कि वह खुद ही योग और कुछ प्राणायाम कई सालों से कर रही है। इसके अलावा नियमित रूप से शिवमंदिर में भोलेनाथ को एक लोटा जल चढ़ाने से भी बड़ा लाभ मिला है।
कैंसर हास्पिटल ने भी इलाज करने से खड़े किए थे हाथ
करीब ढाई दशक पहले 88 वर्षीय कैलासवती को पेट में दर्द होने पर कानपुर जेके अस्पताल ले जाया गया था। वहां कैंसर रोग विशेषज्ञ ईश्वर चन्द्र खरे ने ब्लड और अन्य जांच की। जांच में कैंसर के लक्षण पाए जाने पर उन्होंने इनका इलाज शुरू किया था। कई महीने तक दवाएं खाती रहीं। कई महीने बाद फिर अस्पताल ले जाया गया लेकिन बुजुर्ग महिला की हालत देख डॉक्टर ने यह कहकर हाथ जोड़ लिए थे कि अब इनकी सेवा घर पर करें। डॉक्टर के जवाब देने के बाद परिजन और रिश्तेदार मायूस हो गए थे।
नियमित योग से कैंसर बीमारी से लड़ रही बुजुर्ग महिला
योग और प्राणायाम के जरिए कैंसर पीड़ित वृद्धा ने बीमारी को जहां मात दी, वहीं अब पड़ोसी भी दंग हैं। उम्र के आखिरी पड़ाव में आने के बाद भी ये वृद्धा आज भी घर में खुद का सारा काम कर रही है। और तो और रोज तड़के बिस्तर छोड़ने के बाद स्नान और ध्यान करने के बाद सीधे मंदिर जाकर पूजा करती है। इसके बाद फिर ये योग और प्राणायाम करती है। उसने बताया कि कैंसर अस्पताल के डॉक्टर कह रहे थे कि ये तीन साल तक ही चल सकती हैं लेकिन भगवान की कृपा से वह अभी भी पूरी तरह से ठीक है।
सब्जी की खेती के लिए कचरे से बना रहे जैविक खाद
तीन माह में कमाए डेढ़ लाख रुपये
मैनाटांड़, (पश्चिम चंपारण)। स्थानीय पंचायत के बभनौली गांव निवासी मोटर साह भूमिहीन मजदूर हैं। जमीन के नाम पर इनके पास सिर्फ घराड़ी है। एक वर्ष पहले इनका मुख्य पेशा मजदूरी था। मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करते थे। परिवार की आजीविका के लिए अन्य प्रदेशों में जाकर भी मजदूरी करते थे। तीन बेटियों के पिता मोटर साह मेहनत मजदूरी कर एक बेटी की शादी कर चुके हैं। इनकी जिंदगी में परिवर्तन की कहानी एक वर्ष पूर्व लिखी गई। वे गोपालपुर थाने के घोघा गांव में अपने रिश्तेदार नथुनी साह के यहां गए थे। नथुनी साह मिश्रित सब्जी की खेती करते हैं। उनकी खेती और आमदनी देखकर मोटर साह ने भी सब्जी की खेती करने का निर्णय लिया।
हालांकि, खेती के लिए जमीन नहीं होने के कारण परेशान थे। पंचायत के उप मुखिया धनंजय कुमार ने अपनी चार कट्ठा भूमि इन्हें सब्जी की खेती करने के लिए दी। चूंकि उप मुखिया की वह भूमि बेकार पड़ी हुई थी।
मोटर साह और उनकी पत्नी छठिया देवी का परिश्रम रंग लाया। सिर्फ कद्दू की खेती कर महज चार माह में मोटर साह ने करीब 50 हजार रुपये कमाए। इनके परिश्रम और उन्नतशील खेती को देखकर एसएसबी के तत्कालीन इंस्पेक्टर सुमित कुमार ने सब्जी में दवा के छिड़काव के लिए एक स्प्रे मशीन भी पुरस्कार स्वरूप दी थी।
मोटर साह ने बताया कि सब्जी की खेती की प्रेरणा उनके गोपालपुर थाने के घोघा गांव निवासी रिश्ते में साढ़ू नथुनी साह से मिली। पहले वर्ष में बीज एवं खेती करने की विधि भी नथुनी साह ने ही बताई।
मोहन साह ने बताया कि उप मुखिया धनंजय कुमार ने अगर जमीन नहीं दी होती तो सब्जी की खेती मैं आरंभ नहीं कर पाता। चार कट्ठे खेत में कद्दू और नेनुआ की खेती करने में 18 से 20 हजार की लागत आई है। महज तीन महीने में एक से डेढ़ लाख रुपये की कमाई हुई है, जिससे पांच कट्ठा जमीन रेहन लिया है। अगले वर्ष उस भूमि में भी सब्जी की खेती करने की योजना है। चार कट्ठा भूमि में लगे कद्दू में प्रतिदिन 90 से 100 कद्दू निकलता है।
गांव और आसपास के लोग ही खेत में आकर खरीदकर ले जाते हैं। बेचने के लिए भी कोई टेंशन नहीं रहता। बता दें कि मोटर साह पंचायत में स्वच्छता कर्मी का काम भी करते हैं। सुबह छह से आठ बजे तक गांव में डोर टू डोर जाकर कचरा उठाने का काम करते हैं। लोगों के घरों से निकले कचरे की छंटनी कर लेते हैं।
उसमें से खाद के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले कचरे को अलग कर अपने खेत में लाकर रख लेते हैं, जिससे सब्जी की पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है। मोटर साह ने बताया कि गांव के नाले के पानी का उपयोग सिंचाई के लिए करते हैं। नाले के पानी व कचरे से बने जैविक खाद की वजह से उत्पादन अधिक हो रहा है। उप मुखिया धनंजय कुमार ने बताया कि इनको कृषि विभाग की ओर से आर्थिक सहयोग दिलाने का प्रयास किया जा रहा है।
बाहर जा रहे हैं तो ऐसे रखें पौधों का ख्याल
गर्मियों में अक्सर ऐसा होता है कि पेड़-पौधे मुरझा जाते हैं और खासकर तब जब लोग घर से बाहर होते हैं । ऐसे में या तो घर की चाबी पड़ोसियों को देकर जाते हैं कि वो गमले में पानी डाल दें या फिर पेड़ों को ऐसे ही छोड़ कर चले जाते हैं, जिससे पेड़-पौधे बहुत जल्दी मुरझा जाते हैं । अगर आप गर्मियों में अपने पेड़ों को हेल्दी और हरा भरा रखना चाहते हैं, तो इन 3 टिप्स को आजमा कर देखें । इससे आपके पेड़ पौधे बिना पानी के भी हफ्ते 10 दिन तक ताजे रह सकते हैं । बस इस तरह से अपने गमलों में पानी डालने की ट्रिक अपनाएं –
इंस्टाग्राम पर _theleafgarden नाम से बने पेज पर गमलों की मिट्टी को नम रखने के कुछ आसान तरीके बताए गए हैं जिसमें एक महिला बताती हैं कि जब आप घर से बाहर जाएं तो पेड़ों को हेल्दी रखने के लिए आप क्या कर सकते हैं-
पहला तरीका- पौधों को हरा भरा रखने के लिए आप नारियल के छिलकों को फेंके नहीं बल्कि इसे पानी में भिगोकर रख दें और जब कभी आप बाहर जाएं तो इसे गमले की ऊपरी सतह पर लगा दें । गीले नारियल से मिट्टी सूखेगी नहीं और इसमें धीरे-धीरे पानी भी जाता रहेगा ।
दूसरा तरीका- अगर आप बाहर जा रहे हैं, तो खुद का एक वॉटर सिस्टम बनाएं । आप एक बोतल में छेद करके एक रस्सी डालें और इसे पौधे पर उल्टा लटका दें । इस बोतल में पानी भर दें. रस्सी की मदद से धीरे-धीरे पानी गमले में जाएगा और पौधा सूखेगा नहीं ।
तीसरा तरीका- अगर आप बाहर जा रहे हैं, तो पौधे को पानी दें और इसके ऊपर एक गीला कपड़ा रख दें । ऐसा करने से मिट्टी में नमी बनी रहेगी और पौधे लंबे समय तक सुखेंगे नहीं
भारत ए महिला टीम ने जीता एशिया कप
भारत ए महिला क्रिकेट टीम ने एशिया कप 2023 जीत लिया है । फाइनल मुकाबले में भारत ए की टीम ने बांग्लादेश ए को मात दे दी है। टीम इंडिया ने इस मैच को 31 रनों से जीतकर खिताबी मुकाबले में बाजी मारी। इस मैच में पहले बल्लेबाजी करते हुए टीम इंडिया ने बोर्ड पर 7 विकेट खोकर 127 रन लगाए थे। जवाब में बांग्लादेश की टीम 96 रन पर ही ऑलआउट हो गई।
इस मैच में टॉस जीतकर भारतीय महिला टीम बल्लेबाजी के लिए उतरी। पारी की शुरुआत करने उतरीं कप्तान श्वेता सहरावत और उमा चेत्री की जोड़ी ने मिलकर 28 रन ही जोड़े। लेकिन इसके बाद कनिका अहूजा के 30 रन और वृंदा दिनेश के 36 रनों की बदौलत टीम 20 ओवरों में 127 रन बनाने में कामयाब रही। बांग्लादेश की ओर से सुल्ताना खातून और नाहिदा अख्तर ने 2-2 विकेट हासिल किए।
जवाब में बल्लेबाजी करने उतरी बांग्लादेश की टीम 19.2 ओवरों में 96 रन बनाकर ऑलआउट हो गई। बांग्लादेश की पारी के दौरान सिर्फ 3 ही बल्लेबाज ऐसे थे जो दहाई का आंकड़ा क्रॉस कर पाए। टीम इंडिया की जीत की हीरो श्रेयंका पाटिल रहीं। श्रेयंका ने अपने 4 ओवर के कोटे में सिर्फ 13 रन देकर 4 विकेट नाम किए। वहीं मन्नत कश्यप ने भी 3 और कनिका अहूजा ने 2 विकेट अपने नाम कर लिए।
बता दें कि सेमीफाइनल में भारतीय टीम का सामना श्रीलंका से होना था। हालांकि ये मुकाबला बारिश के चलते धुल गया और लीग टेबल में टॉप करने के चलते महिला टीम फाइनल में पहुंच गई। वहीं बांग्लादेश की टीम पाकिस्तान को सेमीफाइनल में 6 रन से हराकर फाइनल तक पहुंची थी।