Sunday, November 16, 2025
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हाईकोर्ट ने रद्द की मुकुल राय की विधायकी

कोलकाता। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर उत्तर सीट से निर्वाचित विधायक मुकुल राय की विधायकी रद्द कर दी है। न्यायमूर्ति देबांशु बसाक और न्यायमूर्ति शब्बर राशिदी की खंडपीठ ने गुरुवार को यह अहम फैसला सुनाया। मुकुल राय वर्ष 2021 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने थे, लेकिन 2022 में वे पुनः तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। इस कदम के बाद उनके विधायक पद को लेकर विवाद खड़ा हो गया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 10 के तहत, यदि कोई निर्वाचित जनप्रतिनिधि दल बदलता है तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। इसी प्रावधान के तहत नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष मुकुल राय की सदस्यता रद्द करने की मांग की थी। हालांकि, विधानसभा अध्यक्ष ने शुभेंदु अधिकारी की याचिका खारिज करते हुए मुकुल राय की विधायकी बरकरार रखी थी। इस निर्णय को चुनौती देते हुए शुभेंदु अधिकारी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। अब उच्च न्यायालय ने अध्यक्ष के निर्णय को पलटते हुए मुकुल राय की विधायकी को अमान्य करार दे दिया है। फैसले के बाद शुभेंदु अधिकारी ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा कि यह न सिर्फ राज्य बल्कि संभवतः देश के इतिहास में भी पहली बार हुआ है जब इस तरह का निर्णय सामने आया है। गौरतलब है कि, मुकुल राय तृणमूल कांग्रेस के शुरुआती दिनों से ही पार्टी के रणनीतिकार माने जाते थे। उन्हें कभी पार्टी का ‘चाणक्य’ कहा जाता था। वर्ष 2017 के नवंबर में उन्होंने तृणमूल छोड़कर भाजपा का दामन थामा था और 2021 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते थे। तृणमूल ने उस चुनाव में अभिनेत्री कौशानी मुखोपाध्याय को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद सितंबर 2022 में मुकुल राय दोबारा तृणमूल कांग्रेस में लौट आए, जिसके बाद भाजपा ने उनके खिलाफ दल-बदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई की मांग उठाई थी। अंततः अब कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले से मुकुल राय की विधायक सदस्यता समाप्त हो गई है। उनके खिलाफ याचिका नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने हीं लगाई थी।

बंगाल में निकले 34 लाख भूतिया आधारकार्ड

कोलकाता । पश्चिम बंगाल में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान के बीच एक बड़ा खुलासा सामने आया है। यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) ने चुनाव आयोग को सूचित किया है कि राज्य के लगभग 34 लाख आधार कार्ड धारक अब ‘मृत’ पाए गए हैं, जबकि करीब 13 लाख ऐसे लोग भी गुजर चुके हैं, जिन्होंने कभी आधार कार्ड बनवाया ही नहीं था। यह जानकारी यूआईडीएआई अधिकारियों और राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) मनोज कुमार अग्रवाल के बीच हुई बैठक में साझा की गई। एक अधिकारी ने गुरुवार सुबह बताया कि बैठक का उद्देश्य मतदाता सूची के आंकड़ों के सत्यापन और उसमें संभावित त्रुटियों की पहचान करना था। सीईओ कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चुनाव आयोग को मृत, काल्पनिक (घोस्ट), अनुपस्थित और डुप्लीकेट मतदाताओं को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही थीं। ऐसे में यूआईडीएआई से प्राप्त मृत नागरिकों का डेटा मतदाता सूची से इन प्रविष्टियों को हटाने में अहम भूमिका निभाएगा। अधिकारी ने बताया कि नौ दिसम्बर को मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित होने के बाद, यदि किसी आवेदक का नाम ऐसे आधारधारकों में पाया गया, जो अब जीवित नहीं हैं, तो संबंधित निर्वाचन निबंधक अधिकारी (ईआरओ) उन्हें सत्यापन के लिए तलब कर सकता है। इसके अलावा, अधिकारियों ने बताया कि बैंक खातों से भी सूचना एकत्र की जा रही है, क्योंकि अधिकांश खातों से आधार जुड़ा हुआ है। बैंकों ने ऐसे खातों का विवरण दिया है जिनकी केवाईसी वर्षों से अपडेट नहीं की गई, जिससे उन मृत व्यक्तियों की पहचान आसान हो रही है जिनके नाम अब भी मतदाता सूची में मौजूद हैं। राज्य में इस समय एसआईआर अभियान के तहत घर-घर जाकर बूथ स्तर अधिकारी (बीएलओ) नामांकन प्रपत्र वितरित कर रहे हैं। यह प्रक्रिया वर्ष 2025 की मतदाता सूची के आधार पर चल रही है और इसमें वर्ष 2002 की सूची से प्राप्त आंकड़ों का मिलान भी किया जा रहा है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के अनुसार, बुधवार रात आठ बजे तक राज्य में कुल 6.98 करोड़ यानी 91.19 प्रतिशत नामांकन प्रपत्र वितरित किए जा चुके थे।

दिल्ली विस्फोट से चेती सरकार, खाद कालाबाजारी पर लगा ब्रेक

-अब तक 3.17 लाख छापेमारी, 3,645 लाइसेंस रद्द और 418 एफआईआर

नयी दिल्ली। केंद्र सरकार ने खरीफ और चल रहे रबी सीजन के दौरान किसानों को समय पर उर्वरक उपलब्ध कराने तथा काला बाजार, जमाखोरी और डाइवर्जन पर रोक लगाने के लिए देशभर में अबतक तीन लाख से अधिक छापेमारी की गईं, हजारों लाइसेंस रद्द किए गए और सैकड़ों प्राथमिकी दर्ज हुईं। खाद्य एवं उर्वरक विभाग ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सहयोग से गए इस अभियान से पहले दोनों विभागों के सचिवों ने राज्यों के साथ कई संयुक्त बैठकें कीं, जिसके बाद जिला स्तर पर बड़े पैमाने पर छापेमारी और कानूनी कार्रवाई शुरू की गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अब तक कुल 3,17,054 निरीक्षण और छापेमार कार्यवाइयां की गईं। इनमें 5,119 कारण बताओ नोटिस जारी किए गए, 3,645 लाइसेंस रद्द या निलंबित किए गए और 418 प्राथमिकी दर्ज की गईं। जमाखोरी के विरुद्ध 667 नोटिस, 202 लाइसेंस रद्द या निलंबन तथा 37 प्राथमिकी, जबकि डाइवर्जन के मामलों में 2,991 नोटिस, 451 लाइसेंस रद्द या निलंबन और 92 प्राथमिकी दर्ज की गईं। सभी कार्रवाई आवश्यक वस्तु अधिनियम और उर्वरक नियंत्रण आदेश, 1985 के तहत की गईं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, हरियाणा, पंजाब, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और गुजरात जैसे राज्यों में अभियान सबसे प्रभावी रहा। उत्तर प्रदेश में 28,273 निरीक्षण, 1,957 नोटिस और 2,730 लाइसेंस रद्द या निलंबित किए गए। महाराष्ट्र में 42,566 निरीक्षणों के साथ 1,000 से अधिक लाइसेंस रद्द, जबकि बिहार में लगभग 14,000 निरीक्षण और 500 से अधिक लाइसेंस निलंबित किए गए। इन कार्रवाइयों से कृत्रिम कमी और मूल्य हेराफेरी पर रोक लगी। गुणवत्ता पर निगरानी के तहत 3,544 नोटिस संदिग्ध निम्न गुणवत्ता वाले उर्वरकों पर जारी किए गए, जिनमें 1,316 लाइसेंस रद्द या निलंबन और 60 प्राथमिकी दर्ज की गईं। नियमित नमूना परीक्षण और गुणवत्ता जांच के माध्यम से घटिया उर्वरकों को आपूर्ति श्रृंखला से हटाया गया ताकि किसानों तक केवल मानक गुणवत्ता के उर्वरक ही पहुंचें। राज्य सरकारों ने डिजिटल डैशबोर्ड और तत्काल निगरानी प्रणाली के माध्यम से भंडार की आवाजाही पर निगरानी रखी और जब्त किए गए उर्वरकों को सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों तक शीघ्र पहुंचाया। किसानों की शिकायतों पर भी त्वरित कार्रवाई की गई।

प्रेमकथा नहीं, भारतीय इतिहास व राजनीति की अनकही दास्तान है एडविना और नेहरू

सुषमा त्रिपाठी

कैथरीन क्लेमां का नाम गूगल पर आपको मिल जाएगा पर विस्तृत जानकारी नहीं मिलेगी। जब कैथरीन की किताब एडविना और नेहरू को दूसरी बार पढ़ा था। आम तौर पर इस पुस्तक को दुर्लभ प्रेम कथाओं में जाना जाता है पर यह किताब मेरी नजर में बतौर पाठक प्रेमकथा से कहीं आगे है। भारत -पाकिस्तान के विभाजन के दौरान मचा तांडव, भारतीय नेताओं की मनोदशा…यह किताब सबके नकाब खोलती है। पुस्तक का अनुवाद निर्मला जैन ने किया है और यह एक शानदार अनुवाद है। प्राक्कथन में कैथरीना मानती हैं कि प्रेम की इस परम्परा का जन्म 12वीं शताब्दी के यूरोप में धर्मयुद्धों के समय हुआ था। (पेज -1) …आगे वह लिखती हैं कि मैंने नेहरू और एडविना पर इसी परिप्रेक्ष्य में ऐतिहासिक उपन्यास लिखा है। मुक्त भाव से मैंने कुछ ऐसी कुछ स्थितियों जोड़ दी हैं, जो संभवतः घटित नहीं हुईं, लेकिन कुछ संकेतों के आधार पर उनका घटित होना संभव जान पड़ता है। दूसरी ओर कुछ और स्थितियां जो असंभव प्रतीत होती हैं, वास्तव में एकदम सच्ची है। (पेज -2)
नेहरू और एडविना दोनों इंसान थे। दोनों में नेतृत्व का गुण था। दोनों रोमांटिक थे, उनमें भावावेश था और अपने ढंग से दोनों भारत के लिए समर्पित थे।(पेज -2) उपन्यास चौरी चौरा कांड से शुरू होता है। यहां अहिंसा के नाम पर गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस लिया जाता है। पूरे उपन्यास में गांधी के सन्दर्भ में एक बात स्पष्ट है कि गांधी को अहिंसा की उम्मीद केवल हिन्दुओं से थी मगर मुसलमानों के सन्दर्भ में उनका यह प्रेम नहीं दिखता। कृति में ऐसे कई स्थल हैं जहां स्पष्ट होता है कि गांधी की दृष्टि में मुसलमान प्राथमिकता थे..जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे। आमतौर पर जब यह बात कही जाती है तो कहने वाले को संघी कह दिया जाता है, भाजपाई या हिन्दू आतंकवादी तक कह दिया जाता है मगर यह ध्यान में रखना जरूरी है कि यह पुस्तक फ्रांस की लेखिका ने लिखी है जिसका संघ से या हिन्दू मत से दूर – दूर तक कोई संबंध नहीं था। इस उपन्यास में एडविना के कई प्रेम संबंधों का जिक्र मिलता है और इसमें बनी और बिलपाले का नाम शामिल है। यह भी एडविना माउंडबेटन के साथ अपने संबंधों को लेकर बहुत निश्चित नहीं थी, माउंटबेटन को उनके जवाब का इंतजार करना पड़ा था । एक पात्र कहता है -पहली बात तो यह कि अभी तक सगाई की घोषणा नहीं की गयी है, ज्यादा से ज्यादा यही हो सकता है कि युवा माउंटबेटन अभी कुमारी एडविना एशले के जवाब का इंतजार कर रहे हैं…(पेज -8) ।
उपन्यास में कस्तूरबा गांधी के निधन का प्रसंग मार्मिक है और कहीं न कहीं महात्मा कहे जाने वाले गांधी की मानवता पर भी सवाल उठते हैं। क्या कोई पति इतना क्रूर हो सकता है कि स्वदेशी के नाम पर डॉक्टरों के कहने के बावजूद अपनी पत्नी को इस स्थिति में ला दे की कि वह दवा ही न ले। – डॉक्टर ने कस्तूरबा को चटाई पर सीधा करके उनके चेहरे की परीक्षा की। उसे उनके हृदय और फेफड़ों आदि की गति को आले (स्टैथेस्कोप) से सुनने की जरूरत नहीं पड़ी। बिना कुछ बोले, गंभीर मुद्रा में उसने अपना बैग खोलकर एक सिरिज और शीशी निकाली।
यह क्या है? गांधी ने तीखे स्वर में पूछा।
सिर्फ पेन्सिलीन, मिस्टर गांधी। परेशान न हों : दो या तीन शीशियां बस और हम इन्हें ठीक कर लेंगे।
गाँझी ने धीरे से कहा- क्या मैं यह समझूँ कि आप इनको इंजेक्शन देंगे?
डॉक्टर ने अपनी सिरिज की तरफ देखा, और कुछ मुस्कुराते हुए कहा – उन्हें सुई का चुभना पता भी नहीं लगेगा।
सवाल यह नहीं है कि , गांधी ने जवाब दिया। मैं इंजेक्शन लगाकर इलाज करने के एकदम खिलाफ हूँ, यह प्राकृतिक नहीं है। और जो प्राकृतिक नहीं है वह मानवता के लिए हितकर नहीं है।
क्या? डॉक्टर चिल्लाया -आप इंजेक्शन के लिए मना नहीं करेंगे, क्या आप ऐसा करेंगे? (पेज -25)
इसी पेज पर आगे वर्णन है – गाँधी जी उठे और रात के अंधियारे में डॉक्टर के पीछे बाहर चले गए। मेरे लिए आपको आगाह करना जरूरी है मिस्टर गाँधी, पेन्सिलिन के बिना वे नहीं बचेंगी। डॉक्टर फुसफुसाया। इसके अलावा आपके बेटे, देवदास इस इलाज पर जोर दे रहे हैं।….बात आगे बढ़ती है पर गाँधी नहीं मानते। अपनी मरणासन्न पत्नी के पास जाकर कहते हैं – बा ..सुनो। अगर तुम जीना चाहती हो तो तुम्हें सिरिंज से पेन्सिलिन का एक इंजेक्शन लगवाना होगा। क्या तुम्हें मंजूर है?
सिंरिज से? वे बुदबुदाईं, आपको तो यह पसंद नहीं है, या है?
इसका फैसला सिर्फ तुम्हें करना है, बा, महात्मा ने उनकी भौहों को चूमते हुए फुसफुसाकर कहा, सिर्फ तुम्हें प्यारी बा…….. (पेज – 26) और बा ने गांधी के कारण इंजेक्शन नहीं लिया। पुणे के यरवदा आश्रम में फरवरी के महीने में उन्होंने दम तोड़ दिया। इसके बाद भी गांधी को रक्ती भर भी दया नहीं आती। कस्तूरबा के निधन के अगले दिन वे डॉक्टर से कहते हैं – अगर मैंने पेन्सिलिन लगाने की अनुमति दे भी दी होती, तो भी वह उन्हें नहीं बचा सकती थी।
डॉक्टर चुप रहा।
हम लोग बासठ साल इक्कठे रहे और उन्होंने मेरी गोदी में दम तोड़ दिया। इससे बेहतर और क्या हो सकता था? महात्मा ने ऐसे पूछा जैसे वे डॉ़क्टर से अपनी बात का समर्थन चाहते थे। अब पाठक स्थिति को पलट दें और सोचें कि अगर गांधी के साथ ऐसी स्थिति होती तो क्या कस्तूरबा वही करतीं जो गांधी ने किया? मुझे लगता है नहीं करतीं…आगे मैं फिर सोचती हूँ और फिर मन में सवाल उठता है कि क्या बह्मचर्य और सत्य के नाम के प्रयोग के नाम पर गांधी द्वारा किये गये कृत्यों को जिस तरह आदर्श स्वीकृति मिली है, वह प्रयोग क्या कस्तूरबा करतीं या ऐसे ही पुरुषों के कंधे पर हाथ रखकर घूमतीं तो क्या यह समाज उनको स्वीकार करता? गाँधी के प्रण के लिए कस्तूरबा ने बलिदान दिया और प्रैक्टिकल होकर कहूँ तो गाँधी ने स्वदेशी के नाम पर और परम्परा ने पतिव्रता के नाम पर जिस तरह स्त्रियों का ब्रेन वॉश किया, यह उसकी ही परिणति थी।
कई जगहों पर उल्लेख मिलता है महात्मा गांधी को तीन बार मलेरिया हुआ था। वे कई दिन तक बिस्तर पर रहे। इसी दौरान वे एक जिद कर बैठे, बोले मैं दवा नहीं लूंगा। प्राकृतिक तरीके से जो इलाज होता है, उसी से ठीक होकर दिखाऊंगा। खैर, महात्मा गांधी की मच्छरों के सामने एक न चली। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक, अंत में गांधी जी को ‘कुनेन’ लेनी पड़ी। वे दवा लेने के विरोध में थे। दूसरे तरीकों से खुद को ठीक करने में उनकी ज्यादा रुचि थी। आईसीएमआर में मलेरिया पर पेश की गई एक रिपोर्ट के दौरान यह बात सामने आई है। मतभेदों के बावजूद कस्तूरबा गांधी से अधिक समर्पित महिला थीं।
कैथरीन क्लेमा ने भारतीय राजनीति में नेहरू की भूमिका पर विस्तार से बात की है। 18 मार्च 1946 को नेहरू और एडविना की पहली मुलाकात होती है। आरम्भ में एडविना को नेहरू में कोई दिलचस्पी नहीं होती और न ही वे उनको महत्व देती हैं मगर लुई माउंटबेटन को पता था कि नेहरू भविष्य में उनके लिए कितने उपयोगी हो सकते हैं। माउंटबेटन एडविना से नेहरू का परिचय देते हुए कहते हैं – और वे एशियन रिलेशंस कांफ्रेंस के अध्यक्ष हैं। लॉर्ड लुई ने उत्तेजित होकर कहा, तुम्हें मालूम है कि भारत का भविष्य बहुत दूर तक नेहरू पर निर्भर है? उनके बगैर मुसलमानों के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता, भारत में नागरिक शांति नहीं हो सकती। (पेज -32)
जलियावाला बाग हत्याकांड के आरोपाी जनरल डायर को लंदन में सम्मान मिल रहा था। माउंटबेटन जब कहते हैं कि डायर को सैनिक अदालत में पेश किया गया था तो नेहरू कटुता के साथ कहते हैं, –और, उसका हुआ क्या? वह मजे से दिन गुजार रहा है; भारत में रहने वाले अंग्रेजों के चंदे से बँधी पेंशन के सहारे। (पेज -46) ..यहां पर एडविना नेहरू का समर्थन करती हैं। नेहरू कहते हैं – जिस समय हम लोग जेल में थे उस समय जिन्ना और मुस्लिम लीग की साजिशों को खुली छूट देकर इस खतरे को इंग्लैंड ने ही बढ़ाया है। एक बात तो तय है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंग्रेज सरकार को खटकते थे। एक प्रसंग है जहां नेहरू कहते हैं – लेकिन मैं उस भारतीय देशभक्त सुभाषचंद्र बोस के बारे में बात करना चाहता हूँ। उनकी सेना के मुस्लिम सैनिकों को अपराधी ठहराने के कारण ही कलकत्ता उत्तेजित हो गया है। और वे दंगे…………..
इस पर लॉर्ड माउंटबेटन कहते हैं – आप जानते हैं कि सिवा इस राजद्रोही के उल्लेख के सिवा जिसे आप देशभक्त कहते हैं, मैंने सिंगापुर के आपके कार्यक्रम पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया। उस समय भारतीय मामलों के अवर सचिव ऑर्थर हेंडसन थे। इस किताब में कलकत्ता के दंगों का उल्लेख है यानी डायरेक्ट ऐक्शन डे जो 16 अगस्त 1946 को हुआ था और यह नृशंसता भारतीय इतिहास में दबा दी गयी। स्पष्ट है कि एक विदेशी लेखिका इस बात को मानती है कि कलकत्ता दंगों की आग में जला था और जिन्ना इसके जिम्मेदार थे – यह सीधे कार्रवाई का दिन है, हमारे जिन्ना ने कहा था। मुसलमानों की ताकत दिखाने का दिन। लूटमार की बात अलग है, उसे हमें सिर्फ अपने महान नेता से तय करना है। (पेज -54) इसके बाद भीषण रक्तपात और बर्बरता के दिल दहला देने वाले दृश्य हैं जो कि तीन दिन तक चलते रहे मगर हमारे राजनेता तब भी अपनी सियासी रोटियां सेंकने में व्यस्त थे। इन दंगों में सोहरावर्दी की भूमिका रही है मगर किताब में जिक्र नहीं मिलता । 16 अगस्त के बाद 17 दिसम्बर 1946 को भी कोलकाता में दंगे हुए मगर इनका जिक्र बहुत कम मिलता है। मजे की बात यह है कि जो जिन्ना पाकिस्तान के लिए लड़ रहे थे, उनको उर्दू नहीं भाती थी। सरोजनी ने ठंडी सांस लेकर कहा, यह सच है, जो पाकिस्तान के लिए लड़ रहा है, वह मुसलमानों की भाषा नहीं बोलता। नेहरू उर्दू बोलते हैं मगर जिन्ना नहीं । (पेज – 63)
31 मार्च 1947 को एडविना, माउंटबेटन और गाँधी की मुलाकात होती है और गाँधी जिन्ना को भारत का प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार हैं और जब यह कहा जाता है कि नेहरू नहीं मानेंगे तो वह नेहरू को मना लेने की बात कहते हैं। याद रहे कि यह वह समय था जब मुसमान हिन्दुओं का कत्लेआम कर रहे थे। गाँधी कहते हैं – मिस्टर जिन्ना का अपना अहंकार है, योर हाईनेस ! लेकिन मैं जानता हूँ उन्हें कैसे राजी किया जा सकता है। उन्हें भारत सरकार में प्रधानमंत्री का पद चाहिए।
आगे वह कहते हैं – उन्हें (नेहरू को) स्वीकार करना होगा वरना भारत नष्ट हो जाएगा। (पेज -93)
लेकिन, मैडम मिस्टर जिन्ना और वो बहुत दोनों बहुत अभिमानी हैं। नेहरू वायसराय की मदद नहीं मांगेंगे। मैंने मांग ली। मैं अपने को सिर्फ हिन्दू नहीं महसूस करता । सारे हिन्दुस्तानी, मुस्लिम, पारसी, सिख, जैन, ईसाई, यहूदी- सब मेरे बच्चे हैं….खासकर मुसलमान । (पेज -94)
महात्मा गांधी अपने विषय में कहते हैं – महिलाओं से बात करना मेरे जीवन का प्रिय शगल है। (पेज -113) । जिन्ना को लेकर सरोजिनी नायडू और एडविना की बातचीत का एक प्रसंग है –सरोजिनी ने गंभीरता से बात शुरू की, जिस जिन्ना को एक जमाने में मैं जानती थी वह कांग्रेस का स्वाधीनता सेनानी था, एक ऐसा युवक जिसका उत्साह और चुम्बकीय आकर्षण सामान्य लोगों जैसा नहीं था। वह हिन्दु और मुसलमानों के बीच एकता का कट्टर समर्थक था। और मुझे यकीन नहीं आता कि उस महान ज्वाला का लेशमात्र भी उसके हृदय में बाकी नहीं रहा है। (पेज -133)
बंटवारे के समय गाँधी और जिन्ना की असहमति साफ झलकती है। जिन्ना कहते हैं – नहीं मोहनदास, मैंने सिर्फ उनकी बातें सुनी हैं, जिन्ना ने धीरे से जवाब दिया। अल्लाह के नाम पर, जिसका आह्वान तुम भी करते हो, बातों को सीधे देखो। जिम्मेदारी न मेरी है न नेहरू की। इस स्थिति में दो ऐसे समुदायों के साथ जो एक साथ रहने से नफरत करते हैं, जबरदस्ती करके, तुम जहर ही खोल सकते हो। (पेज -140)
लार्ड माउंटबेटन की बाल्कन योजना में बंगाल को अलग कर दिया गया था, उसके पास विकल्प था – भारत या पाकिस्तान में से किसी के साथ मिलने या स्वतंत्र हो जाने का । बंगाल नेहरू की तिजोरी में नहीं आने वाला था। जाहिर था कि नेहरू और कृष्ण मेनन में से किसी को- क्षेत्रीय बंटवारे की व्यवस्था की जानकारी नहीं थी। (पेज -147) यह जाहिर तौर पर किया गया धोखा था और यह लार्ड लुई जानते थे। वह जानते थे कि नेहरू इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। उपन्यास पढ़ने पर एक बात लगी और वह यह कि लार्ड लुई माउंटबेटन ने एडविना को आगे बढ़ाया और नेहरू के करीब जाने दिया, जो एक तरह से हनी ट्रैप जैसा ही है।
उसने सोचा -कितने आराम से लुई ने कह दिया कि नेहरू मुझे पसंद करते हैं।
नहीं, वह जोर से बोली। डिकी मैं उनकी नजरों में मेमसाहब हूँ। वे मुझे कैसे चाह सकते हैं?
मैं यह नहीं कह रही हूं स्वीटहार्ट कि वे तुमसे प्रेम करते हैं, मैं सिर्फ कह रहा हूँ कि वे तुम्हें पसंद करते हैं, ये दोनों बातें एक नहीं हैं। हमारा दोस्त एक लाइलाज रोमांटिक व्यक्ति है। आखिर जेल में इतने साल……………………।
आगे माउंटबेटन कहते हैं – अगर यह सिर्फ अच्छी दोस्ती है तो इससे मुझे भी फायदा होगा। (पेज -156। )वह नेहरू को मनाने के लिए एडविना से मदद मांगते हैं। एक तरह से लार्ड साहब ने एडविना को रिश्ता आगे बढ़ाने के लिए विवश किया था और एडविना आरम्भ में मदद ही कर रही थी। गाँधी कुरान में आयतें पढ़ने की बात ही नहीं करते बल्कि एक हद तक प्रचार भी करते हैं। (पेज -188)। सोहरावर्दी ने मुसलमानों की सुरक्षा के लिेए महात्मा गांधी से मदद माँगी थी। पुस्तक में एक जगह उस भविष्यवाणी का उल्लेख है जहाँ माउंटबेटन अपनी ही मौत की भविष्यवाणी पर बात करते हैं…वह मूर्ख ज्योतिषी मुझसे क्या कह रहा था ? कि मेरी जिंदगी का खात्मा एक विस्फोट के कारण होगा? (पेज -207) । 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और उस दिन महात्मा गाँधी ने उपवास शुरू किया। इस किताब के मुताबिक लाहौर में सिख मुसलमान औरतों के साथ अभद्रता करते हैं। मुसलमान भी यही करते हैं, दंगा शुरू हो चुका होता है मतलब 1947 में दंगे की आग पहले पाकिस्तान में ही भड़की थी, भारत में नहीं। पाकिस्तान से जब लाशों से भरी ट्रेन अमृतसर पहुंचती है तो यह आग भारत में फैल जाती है। एडविना डिकी (माउंटबेटन को एडविना इसी नाम से बुलाती थीं) से कहती हैं – अभी – अभी एक ट्रेन अमृतसर पहुंची है। सारी गाड़ी ऐसे यात्रियों से भरी है जिनके गले काट दिये गये हैं। कुछ के सिर उतार दिये गये हैं। (पेज -232)। हैरत की बात यह है कि रक्तपात की इस विभीषिका के बीच भी मुसलमानों के प्रति हर नेता के मन में सॉफ्ट कॉर्नर है, फिर चाहे वह गांधी हों या नेहरू हों मगर हिन्दुओ के लिए और सिखों के लिए यह दर्द न के बराबर है। मारकाट दिल्ली में भी होती है और दंगों में मुसलमान मारे जाते हैं। नेहरू बेचैन हैं – ईमानदारी से मिस्टर गवर्नर जनरल, मेरी तरफ देखिए। मैं, जिस दिन से स्वतंत्रता मिली है, उसी दिन से सोया नहीं हूँ।……………..पुराने किले में पांव रखने की जगह नहीं है, हुमायूं के मकबरे में शरणार्थी बगीचों में पटे पडे हैं। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि इन हजारों लोगों के खाने की व्यवस्था कहां से करूँ? (पेज -255) । धर्मांतरण तेजी से हो रहा था, हिन्दुओं और सिखों को तलवार की नोंक मांस खिलाया जा रहा था, मुसलमान बनाया जा रहा था। (पेज -259) । हैरत की बात है कि मारकाट दोनों तरफ से हो रही थी मगर सरकार हो या कांग्रेस के नेता, गांधी हों या नेहरू, सब के सब हिन्दुओं को ही हिंसा का दोषी बता रहे थे और मुसलमानों की रक्षा खुलकर कर रहे थे। किताब में हिंसा की घटनाएं इतनी वीभत्स हैं कि आप सिहर उठेंगे। (पेज -265) । गांधी कहते हैं – मैं हिन्दुस्तानी हूँ, गाँधी ने एक -एक शब्द पर जोर देते हुए कहा. सिर्फ हिन्दू नहीं हूँ। जब तक मेरे देश का एक -एक मुसलमान अपने घर लौटकर शांति से नहीं रहने लगता, तब तक मैं चैन से नहीं बैठूंगा। ( पेज- 278)
बेचारे मुसलमान ! उन्हें कब्र का पत्थर तक नसीब नहीं होता। गांधी जी ने रोष से कहा -उन्हें तसल्ली देनी होगी, बताना होगा कि हम उनके मृतकों की व्यवस्था कर रहे हैं । (पेज -292)
अपनी लंबी छड़ी लेकर नेहरू चिल्लाए- मैं तुम लोगों को चेतावनी देता हूँ। अगर कभी भी किसी ने इस मस्जिद पर हमला किया चो मैं तुम्हें सजा दूंगा। (पेज -284) । बात यहीं नहीं थमती, गाँधी हिन्दुओं को ही दोषी मानते हैं – महात्मा बुदबुदाए । नेहरू नहीं जानता, पर दोष भारत का है। दोष हिन्दुओं का है। यही कहने मैं जाऊंगा..और अगर मरने से पहले मुझे सिर्फ एक काम करना हो, तो वह होगा, अपने देश की तरफ से मुसलमानो और सिखों को क्षमायाचना। (पेज -293)
यह भाषा हम कहीं भी हम हिन्दुओं के लिए उनके मुंह से नहीं सुनते तो क्या हिन्दू गांधी की नजर में हिन्दुस्तानी नहीं थे या भारत के नागरिक नहीं थे? जितनी चिन्ता गांधी और नेहरू मुसलमानों की करते हैं, हिन्दुओं की इतनी चिन्ता न जिन्ना को होती है और सोहरावर्दी जैसे नेताओं को होती है तो पूछने वाली बात यह है कि क्य मानवता बोध एकतरफा होने पर बच सकता है ? एकमात्र सरदार पटेल दिखते हैं जो खुलकर निष्पक्षता से बात रखते हैं।
इस हिंसा और त्रासदी के बीच भी नेहरू और एडविना का प्रेम बदस्तूर जारी रहता है और उनकी अतरंगता के किस्से किताब में दर्ज हैं। (पेज -286) वहीं दूसरी तरफ पूर्व प्रेमी माल्कम को लेकर उनमें अपराधबोध है और एडविना अपनी ही जटिलताओं में घिरी रहती हैं। (पेज -303) वहीं गांधी ने सत्ता में न होते हुए भी भारत सरकार पर अपना प्रभाव बरकरार रखा और भारत सरकार पर उन्होंने पाकिस्तान के पक्ष में दबाव बनाए रखा और इसके लिए उनका हथियार था उपवास और अनशन। -उपवास के दूसरे दिन ही भारत सरकार ने पाकिस्तान का देना चुका दिया था। पर महात्मा जी के लिए इतना ही काफी नहीं था। वे मुसलमानों की सुरक्षा के लिए एक घोषणापत्र भी जारी करवाना चाहते थे। नींद के दो दौरों के बीच गाँधी जी ने अपने सचिव प्यारेलाल को उस घोषणापत्र की शर्तें बोलकर लिखवाई थीं। कोई भी बात उनकी नजर से छूटी नहीं थी : वह मलबे का ढेर बना दी गयीं मस्जिदों का पुनर्निर्माण हो; या रेलों में मुसलमानों की सुरक्षा हो; या चाँदनी चौक में मुसलमानों की दुकानों के बायकॉट पर रोक हो। तमाम धार्मिक तथा राजनैतिक नेताओं ने हस्ताक्षर कर दिये थे। (पेज – 331) बस हिन्दू संगठनों ने हस्ताक्षर नहीं किये थे। 30 जनवरी 1948 को गाँधी की हत्या होती है और 14 फरवरी 1948 तक तीन हजार लोगों की गिरफ्तारी हुई। हिन्दू संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
समय बीतता है, एडविना और नेहरू अपनी -अपनी दुनिया में रहते हुए भी एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। मिलते हैं और रिश्ते बने रहते हैं। जवाहर के सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा से भी रिश्ते रहे। 21 जून 1948 को एडविना पति माउंटबेटन के साथ लंदन लौटती हैं मगर हमेशा नेहरू के सम्पर्क में रहती हैं, पत्राचार जारी रहता है, निजी बातचीत होती है और वह भी फोन पर ऑपरेटरों के माध्यम से। (पेज -412) 11 सितम्बर 1948 को जिन्ना की मौत फेफड़ों के कैंसर के सात तपेदिक की बीमारी के कारण होती है। जिस पाकिस्तान को जन्म देने के लिेए जिन्ना ने भारत के दो टुकड़े किये, उसी पाकिस्तान की सरजमीं पर वे एम्बुलेंस में पानी के लिेए तड़पते हुए दम तोड़ते हैं। 1951 में सरदार पटेल का निधन होता है। 1960 में कई बीमारियों से ग्रस्त एडविना गुजरती हैं और 27 मई 1964 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का निधन होता है। इसके बाद 27 अगस्त 1979 को नौका पर आयरिश विद्रोहियों के विस्फोट में लार्ड माउंटबेटन की मृत्यु होती है। कितनी अजीब बात है, एडविना के जाने के बाद नेहरू 4 साल से ज्यादा नहीं जी सके और नेहरू और माउंटबेटन में 27 की संख्या अनायास मेल खाती है।
इस किताब में लेखिका ने सन्दर्भ दिये हैं, जहां कल्पना की है, वह बातें कही हैं और प्रामाणिकता के लिए पुस्तकों की सूची भी दी है। निर्मला जैन का अनुवाद भाषा और भाव, दोनों का प्रवाह बनाए रखता है। पुस्तक पढ़कर एक बात तो समझ में आई कि हिन्दुओं के साथ भेदभाव हमेशा से होता आया है और इसकी शुरुआती कहानी महात्मा गाँधी से शुरू होती है, इसी राह पर नेहरू चलते हैं। जब परिस्थितयों को देखती और समझती हूँ तो समझ में आता है कि नाथूराम गोडसे ने अपनी परवाह न करते हुए गाँधी को मारने का निश्चय क्यों किया होगा। हमारी राजनीति आज तक तुष्टीकरण की इसी जमीन पर चलती आ रही है जहाँ धर्मनिरपेक्षता का मतलब हिन्दू आतंक और मुसलमानों का तुष्टीकरण हैं तो अगर आप गाँधी और नेहरू के प्रशंसक हैं तो यह पुस्तक न पढ़ें क्योंकि आप निष्पक्ष होकर पढ़ नहीं सकेंगे और पढ़ लिया तो स्वीकार नहीं कर सकेंगे। यह किताब सिर्फ प्रेम कहानी नहीं बल्कि इतिहास के कुछ निर्मम अध्याय को खोलने का माध्यम है। मैंने एडविना और नेहरू से अधिक भारतीय इतिहास को समीक्षा के केंद्र में रखा है क्योंकि मेरी समझ में वही जरूरी था।
पुस्तक – एडविना और नेहरू
लेखिका – कैथरीन क्लैमां
अनुवाद – निर्मला जैन
प्रकाशक – राजकमल पेपरबैक्स
पहला संस्करण -2007

 

सम्पन्न हुआ संगीतमय दीपावली प्रीति सम्मेलन

कोलकाता। राजस्थान ब्राह्मण संघ द्वारा गत 1 नवम्बर को संस्था के मुख्यालय सप्तर्षि भवन में संस्था के पूर्व अध्यक्ष मोहनलाल पारीक की अध्यक्षता में संगीतमय दीपावली प्रीति सम्मेलन मनाया गया।कार्यक्रम में उपस्थित कोलकाता नगर निगम की पार्षद मीना पुरोहित ने सभी सदस्यों को दीपावली त्यौहार की मंगलकामना देते हुए सभी से समाज के कार्यो में अग्रणी भूमिका अदा करने की अपील की।पार्षद विजय ओझा ने कहा हम सभी दीवाली त्यौहार की तरह जीवन में जगमगाते रहें।वरिष्ठ साहित्यकार बंशीधर शर्मा एवम वसुंधरा मिश्र ने स्वलिखित रचनाओं का वाचन कर सभी को एकता का संदेश दिया।सुप्रसिद्ध गायक सत्यनारायण तिवाड़ी एवम युवा गायक दीपक पारीक की अगुवाई में रेखा नारीवाल, संगीता नांगला,रेणु मिश्रा,सुलेखा शर्मा,संपत जोशी ने भी शानदार प्रस्तुति देकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।संस्था की अध्यक्ष दुर्गा व्यास का शुभकामना संदेश वाचन किया गया।सुशील ओझा,विष्णु शर्मा,महेंद्र पुरोहित,डॉ उषा आसोपा,विद्याधर चोटिया,वीरेंद्र शर्मा,शिवकिशन किराडू,श्यामसुंदर व्यास आदि की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही। संचालन राजकुमार व्यास ने किया।संस्था के उपमंत्री पवन शर्मा एवम सुशीला जोशी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज में एचआईवी जागरूकता अभियान रैली

-संस्थान की एन एस एस इकाई ने निकाली 

कोलकाता । भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज की राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) इकाई ने एचआईवी जागरूकता पर एक गहन अभियान का आयोजन किया जिसमें एक रैली और एक फ्लैशमॉब प्रदर्शन शामिल था, जिसका उद्देश्य एचआईवी/एड्स की रोकथाम, उपचार और कलंक उन्मूलन के विषय में समुदाय को संवेदनशील बनाना है। इस रैली में पोस्टर्स, बैनरों संदेश देने के लिए लिफलेट्स आदि से लैस रही। इस कार्यक्रम में गतिविधियों के उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक आउटरीच सह स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम का गठन किया गया , जिसका उद्देश्य एचआईवी/एड्स पर सटीक जानकारी का प्रसार करना और बीमारी से प्रभावित व्यक्तियों के प्रति समावेशी और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण को बढ़ावा देना था।पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल राज्य एड्स रोकथाम एवं नियंत्रण सोसायटी, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभागों का सहयोग प्राप्त हुआ।
यह आयोजन शनिवार, 1 नवंबर 2025 को दोपहर दो बजे से अपराह्न 4:00 बजे तक आयोजित किया गया था।
इस कार्यक्रम रैली में 1 कार्यक्रम अधिकारी के साथ 50 एनएसएस स्वयंसेवकों और प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
एचआईवी/एड्स के कारणों, संचरण के तरीकों और निवारक उपायों के बारे में आम जनता में जागरूकता पैदा करना औरसार्वजनिक जागरूकता के माध्यम से एचआईवी/एड्स से पीड़ित लोगों से जुड़ी गलत धारणाओं और सामाजिक कलंक को कम करना। के लिए रैली का आयोजन किया गया ।
साथ ही रचनात्मक और इंटरैक्टिव तरीकों के माध्यम से स्वास्थ्य-उन्मुख सामुदायिक आउटरीच पहल में युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करना प्रमुख उद्देश्य था ।
कार्यक्रम की शुरुआत एक रैली से हुई जो भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज परिसर से शुरू हुई और आसपास की सड़कों से होते हुए फोरम मॉल तक पहुंची। स्वयंसेवकों ने जागरूकता पोस्टर और बैनर लिए और पैदल चलने वालों और यात्रियों को पत्रक वितरित किए जिनमें एचआईवी की रोकथाम, परीक्षण और उपलब्ध स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों पर सत्यापित जानकारी थी। रैली का उद्देश्य जनता का ध्यान आकर्षित करना और जागरूकता, करुणा और सामाजिक जिम्मेदारी के संदेश देना था।
रैली के बाद, फोरम मॉल के सामने एक फ्लैशमोब का प्रदर्शन किया गया, जो जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए एक अभिनव और आकर्षक मंच के रूप में अपनी उद्देश्य परक सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन किया। प्रदर्शन में विषयगत नाटक, नृत्य खंड और सुरक्षित स्वास्थ्य प्रथाओं, सहानुभूति और समावेशन पर जोर देने वाले प्रभावशाली नारे शामिल थे।
एचआईवी जागरूकता अभियान ने अपने इच्छित उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया। इसने एचआईवी/एड्स की गहरी सार्वजनिक समझ को बढ़ावा दिया और निवारक स्वास्थ्य व्यवहार को प्रोत्साहित किया और प्रचलित सामाजिक कलंक को कम करने में मदद की। स्वयंसेवकों के लिए यह कार्यक्रम एक मूल्यवान अनुभवात्मक शिक्षा रही और जिसने नागरिक भावना, सहानुभूति और सामुदायिक जुड़ाव को मजबूत किया। भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज की एन एस एस की प्रमुख प्रो गार्गी ने कार्यक्रम को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डाॅ वसुंधरा मिश्र ने जानकारी देते हुए बताया कि एनएसएस इकाई, संकाय सदस्यों और छात्रों के बीच इस प्रकार का सहयोग सामाजिक जिम्मेदारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता के प्रति संस्थान की निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र जी का मूल्यबोध और उनके निबंध

-डॉ वसुंधरा मिश्र, भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज, कोलकाता

डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र ने अपनी संस्कृति, अपने मूल्यों को रचनाधर्मिता में परिणत किया है और उनका संरक्षण किया है। यही मनुष्य की पूर्णता है। डाॅ राधाकृष्णन ने कहा था कि प्रत्येक मनुष्य में एक ही आत्मा का वास होता है। आत्मा के सत्य को पाकर वह जीवन के सत्य को भी पा सकता है।
‘मकान उठ रहे हैं’ (पृष्ठ 55)के संदर्भ में ‘इक्कीसवीं सदी की अगुवानी में एक पाती’ जिसमें हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की यह टिप्पणी बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसमें वे मानते हैं कि यदि सभ्यताओं के प्रसार के साथ मानवीय चिन्मय मूल्यों का आधिकारिक सामाजिकीकरण होता है, तो समझना चाहिए कि सभ्यता का विकास सही रास्ते पर हो रहा है, लेकिन यदि चिन्मय मानवीय मूल्य अधिकाधिक संकुचित क्षेत्र में ही सिमटने लगे, ईमानदारी और सच्चाई ‘कम्पार्टमेंटल’ होती चली जाए और जड़ वस्तुओं का महत्व ही समाज में प्रतिष्ठित होता जाए तो समझना चाहिए कि सभ्यता गलत रास्ते पर जा रही है। ये पत्र कृष्ण बिहारी मिश्र जी अपने मित्र शंकर माहेश्वरी जी को लिखा था ।
आज मानवीय मूल्यों पर निर्मम तरीके से प्रहार हो रहा है और इक्कीसवीं सदी की अगुवाई करने वाला मनुष्य क्या मूल्यों से पूर्णतः रिक्त होगा? यह विश्वयुद्ध की विनाशलीला से कम भयावह नहीं है कि मनुष्य का मूल्य मर जाए! मूल्यबोध गंवाकर जीने का मूल्य क्या है?
आज विश्व धर्म के प्रति अविश्वास और नैतिक मूल्यों के प्रति विद्रोह की भावना से सुलग रहा है ।विज्ञान और औद्योगिकी की जबर्दस्त और चामत्कारिक उपलब्धियों के बावजूद मनुष्य का मन एक गहरे शून्य से भर गया है। वह नहीं जानता कि इन शून्य को कैसे भरा जाए। हर चीज की छानबीन और पूछताछ की जाती है, सब कुछ वैज्ञानिक ढंग से, तार्किक ढंग से समझाना पड़ता है।
बौद्धिक और नैतिक दोनों दृष्टियों से क्या आश्वस्त किया जा सकता है? संभवतः यह बड़ा प्रश्न है। मनुष्य धर्म के विषय में कौन सा धर्म युक्तिसंगत धर्म है? हर व्यक्ति अपने धर्म को अभीष्ट मानता है। प्रश्न उठता है कि क्या धर्म का लक्ष्य तर्क और चेतना के मार्ग से प्राप्त किया जा सकता है?
जहाँ तक हमारे देश का संबंध है हम युक्तिमूलक धर्म ब्रह्म विद्या के विषय में जिज्ञासा कर सकते हैं। ‘ब्रह्म विद्यायां योगशास्त्रे श्री कृष्णार्जुन संवादे’ में युक्तिसंगत खोजबीन है ।हम सबसे पहले प्रश्न करते हैं कि दुनिया क्या है। यदि ब्रह्मविद्या को जान लिया जाए तो कई प्रश्नों का समाधान मिल जाता है। व्यवहारिक अनुशासन को जो बौद्धिक विचार को जीवन के विश्वास में परिणत कर देता है, उसे ही सरल रूप में ‘योगशास्त्र’ कह सकते हैं ।आत्मा और परमात्मा का मिलन कृष्णार्जुन संवाद है ।यही अंत है, यही लक्ष्य, यही पूर्णता है।
इसके लिए हमें तप की ओर जाना ही होगा तभी हम जान पाएंगे कि वह क्या है?
महान वैयाकरण पाणिनी कहते हैं कि किसी भी वस्तु को पहली बार देखने पर संतुष्ट न होने पर पुनर्विचार करना ही तपस्या है। ऐसा करने से एक के बाद एक मूल्यों का निरंतर उद्घाटन होता जाएगा। पदार्थ से जीवन, जीवन से मन और मन से बुद्धि का एक निश्चित क्रम है। इसके बाद ही आत्मशांति और परमानन्द की प्राप्ति होती है। इस तपस्या की अनुभूति किसी दूसरे के कहने से नहीं होती बल्कि अपनी आंखों से देखते हैं, हृदय से महसूस करते हैं। एक ऐसा दर्शन जो अपनी खोज करता है और अपने आप को अनुशासित करता है और धर्म का लक्ष्य प्राप्त करता है। यही ईश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन है, यही वह धर्म है जो इसके बाद विश्व में प्रचलित होगा।
डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र की बौद्धिक और नैतिक तपस्या ने लेखन के माध्यम से मनुष्य धर्म के गुणों को उभारने का महत् कार्य किया है।
भोजपुरी अंचल की राग चेतना और मूल्य चेतना और मूल्य चेतना के मणिकांचन योग हैं कृष्ण बिहारी मिश्र। यही ब्रह्म विद्या और परम आनंद चेतना से पूर्ण उनका संवाद है, बतकही है, बतरस है जो प्रकृति को, मनुष्य वृत्ति को, प्रेम को, लोकराग को मनुष्य की मूल चेतना से योग कराता है। रामकृष्ण परमहंस, माँ शारदा, विवेकानंद, रवीन्द्रनाथ ठाकुर की पुण्य भूमि बंगाल की माटी से उनका जुड़ाव अंत तक बना रहा।
एक ओर डाॅ मिश्र आस्थावान हैं, विनम्र हैं, आस्तिक हैं, आध्यात्मिक हैं, पर दुःखकातर हैं, दूसरे की विवशताओं को समझने वाले आत्मीय हैं तो दूसरी ओर मूल्य चेतना की अवहेलना करने वाले के प्रति कठोर भी हैं। किसी का आच
आचरण, विचार या सर्जना सामाजिक मूल्य, मानवीय गरिमा, भारतीय मनीषा की क्षति करने वालों से उन्हें परहेज है और ऐसे लोगों का वे व्यक्तिगत स्तर पर प्रतिकार करते हैं साथ ही सार्वजनिक रूप से भी उसकी बखिया उधेड़ने से भी नहीं चूकते।
हिंदी पत्रकारिता उनके अनुशीलन का महत्वपूर्ण विषय है जिसमें उन्होंने अपने को एक साधक की तरह तपाया है ।पत्रकारिता पर डॉ मिश्र के ग्रंथ हिंदी की धरोहर हैं। उनके ललित निबंधों में गहरी संवेदनशीलता है जो इन्हें भारतीय दर्शन और अध्यात्म के उच्चतम सोपान पर प्रतिष्ठित करता है। ‘नेह के नाते अनेक ‘, ‘आँगन की तलाश ‘, ‘बेहया का जंगल ‘, ‘मकान उठ रहे हैं ‘(1990),आदि ललित निबंध संग्रह हैं जिनके शीर्षक ही अपनी कहानी कहने में सक्षम है। उपभोक्ता संस्कृति के बढ़ते प्रकोप और आधुनिकता की आंँधी के कारण मानवीय गुणों का ह्रास होता चला जा रहा है ।
डॉ मिश्र की यही प्रमुख बैचैनी, उदासी थी जिससे वे सदैव चिंतित भी रहते थे। वे अपने को निरंतर जांचते और परखते रहते थे, उनके लिए भारतीयता के मूल्य, आदर्श और संस्कृति विरासत के लिए एक अलग दृष्टि थी।
उनकी सर्जनात्मक चिंताएं अपने पाठक को न्योता देती हुई दिखाई पडतीं हैं कि वह स्वयं अपनी समृद्धि, सांस्कृतिक विरासत को परखने और इसको पहचानने के लिए उत्सुक हों। यही रचनात्मक प्रक्रिया व्यष्टि से समष्टि की ऊंचाई तक पहुंचती है। यही तो धर्म की सर्वश्रेष्ठ सीढ़ी है जहांँ मूल्य और आदर्श की पराकाष्ठा दिखाई देती है। यही योग है। यही धर्म है।

बेहया का जंगल, निबंध संग्रह में 11 निबंधों का संकलन है इसकी भूमिका अज्ञेय जी ने लिखी है। ललित निबंध में जिसमें ललित निबंध के विषय में सारगर्भित निबंध है। डॉक्टर शिव प्रसाद सिंह ने पुरोवाक् लिखा है जो निबंधों पर प्रकाश डालता है। डॉक्टर मिश्र जी ने स्वयं स्वीकार किया है कि मूलतः वे ग्रामीण होने के कारण उनकी संवेदना देहाती चेहरे- चरित्रों और परिदृश्यों से जुड़ी हुई है। अपने गांव -जजार की व्यथा- कथा के माध्यम से पूरे भारत के गांवों की समस्या को देश के आधारभूता शक्ति को स्पर्श करने की इन निबंधों में कोशिश की है।
ये ललित निबंध सामाजिक समस्याओं पर भी प्रकाश डालते हैं। ललित निबंध पाठक के साथ घुलमिल जाता है और बातकही करता है। निबंधकार या ललित गद्य रचने वाला बहुश्रुत ,बहुपठित, शैलीकार तथा लोक चेतना से संपृक्त होता है। तभी वह श्रेष्ठ रचना देता है।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, डॉक्टर विद्या निवास मिश्र, डॉक्टर कुबेरनाथ राय के बाद डॉक्टर कृष्ण बिहारी मिश्र जी का नाम उभर कर आता है। इन निबंधों में पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोक संस्कृति ,बिरहा ,चैता, फाग, कजली, रीति -रिवाज, पर्व -त्यौहार तो हैं ही साथ ही कलकत्ते के जनजीवन के सामंजस्य से उत्पन्न आधुनिकता भी झांकती है। लेखक का मन बार-बार अपने गांव की ओर भागता है।

‘बेहया का जंगल’ पहला निबंध है और ‘नयी-नयी घेरान’ के आधार पर ही पुस्तक का शीर्षक रखा गया है। यह ‘कल्पना’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। जब आदमी बेहया बन जाता है ,कोई भी बड़ा से बड़ा काम करते हुए भी संकोच नहीं करता तब उसमें ढीठ संस्कार का जन्म होता है। और वह जंगली कानून के राज्य में ले जाता है जहां कई प्रकार के अंधकार और संकीर्णताएं फलती फूलती हैं( पृष्ठ 8)। डॉ कृष्ण बिहारी की यही चिंता और उदासी का कारण रहा है। ये लेख आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के निबंधों की भी याद दिलाते हैं जहां वे मानवीय वृत्तियां जैसे लोभ ,क्रोध आदि के उद्भव और उसके व्यैक्तिक, सामाजिक और वैश्विक दुष्प्रभावों पर भी चिंता करते हैं। डॉ मिश्र संसार में व्यक्ति के मूल्यों में ह्रास का प्रमुख कारण लालच- प्रलोभन ही बताते हैं। उनका मानना है कि गंवार गोपियों की तरह होना चाहिए जो प्रलोभनों से दूर रहीं और कृष्ण ही उनका प्राप्य रहा।
‘ निर्गुण कौन देश को वासी’ में समाज में बढ़ती अंध श्रद्धा के प्रति चिंतित हैं, दुखी हैं। जिनमें बौद्धिक साहस नहीं है, उन्हें बुद्धिजीवी या स्वार्थी लोगों को समाज सुधारक या ठाठ बाट वालों को राजनेता का दर्जा दिया जा रहा है। समाज में हो रही बौद्धिक ह्रास के प्रति उदासी है।
‘टूटती तस्वीर’ निबंध में कहते हैं -‘राजनीति जनता की छाती पर नारे धुनने लगी है। ‘लोकतंत्र की हिफाजत के प्रति लेखक चिंतित और बेचैन है।
लोक संस्कृति के बात ‘फगुआ की तलाश गोइंछा गमकत जाइ’ आदि निबंध है जिनमें मनुष्य के रस लोक की रक्षा में पर्व मनाए जाते हैं। आज ‘शहरी आत्मीयता के फंदे में गांव भी फंसता जा रहा है।वे कहते हैं कि सच यह है कि हम गांव के रूढ़ रिवाज जी रहे हैं। गांव का चरित्र नहीं जी रहे हैं ।(पृष्ठ 64, बेहया के जंगल )। अज्ञेय जी ने कहा है की मिश्र जी के निबंध कुम्हार के मिट्टी के बर्तन की तरह है जिन्हें ऊपर से चिकनी मिट्टी से होप देते हैं। गांव के सौंधें मुहावरे ओप देते हैं जिसे पकने पर चमक आ जाती है। निबंधों में वही तेज और चमक है जिससे मन अगरा उठता है ।

‘मकान उठ रहे हैं’- इस निबंध संग्रह में तेरह निबंध हैं जिसमें लेखक महानगर में रहते हुए भी उसके ‘बीते युग का आदमी ‘जिंदा है ।(पृष्ठ 21 )अपने राग और अपने भाग की चिंता से आज दुनिया परेशान है जो आधुनिक सभ्यता का सबसे बड़ा अभिशाप है। लेखक का सांस्कृतिक गंवई मन छटपटाता है लेकिन उदासी की गांठों को भी खोलता है।

इसका सबसे बड़ा समाधान लेखक बताते हैं कि वर्तमान समय में बतरस से बढ़कर शायद कोई दूसरा रस नहीं है।

अज्ञेय ,विद्या निवास मिश्र, राहुल सांकृत्यायन, प्रेमचंद, पंत आदि से लेखक ने अपने ग । गंवई मन को पूरी तरह खोलकर लिखा है।

‘बहुत दिन हुए घर से निकले’ निबंध में अपनी रचनात्मक विशिष्टता से गांव की नीम छांव, हरसिंगार की महमह वर्षा, हमराई की कोयल, खेती का समहुत , पड़ोसी गांव का खोंइछा आदि की याद लेखक को पागल बना भाव रस में डूबो देती है। ‘बनारस मर रहा है ‘निबंध उनके व्यक्तिगत रस की याद दिलाता है।बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र रहे डॉक्टर मिश्र ने बनारस के उसे रस को चखा है जहां जीवन दर्शन ,अध्यात्म, मस्ती और संवेदना के सूत्र मित्रों, शिक्षक, गुरुजनों को जोड़े रहते थे। आज की घोर व्यावसायिकता, फैशनेबल उपभोक्ता संस्कृति से लेखक दुखी है ।किसी भी देश की संस्कृति की मौत बहुत ही भयंकर होती है ।

‘धुआं और प्रसन्न हरीतिमा की संघर्ष भूमि’ निबंध में महानगर में बनने वाले कंक्रीट ,लोहे और सीमेंट के जंगल से निकलकर अपने आसपास से उठकर अपने आंचलिक राग की भूमि पर आता है और आम, जामुन, महुआ, कदंब ,सेमल की हरीतिमा से खुश है। लेखक को विश्वास है कि जहरीली धुएं को प्रसन्न हरीतिमा अवश्य ही निगल जाएगी(पृष्ठ 36) । यह दृढ़ विश्वास है। अपने अंदर के गंवई संवेदना को लेखक कभी नहीं भूला। वह महानगर के चकाचौंध से भयभीत है। लेखक अपने मित्रों, पड़ोसियों, सहधर्मियों को संबोधित करके ये निबंध लिखते हैं।

गंवई मन की पीड़ा के साक्षी हैं यह लंबे-लंबे पत्र।

पृष्ठ 41 पर लिखा है कि पापचार करने वाले जो छाती उतान कर घूमते हैं, फूल-अच्छत से अभिषेक करते हैं, जो समाज को कहां ले जाएगा , यह चिंता है लेकिन उम्मीद भी है कि यह एक दिन अवश्य सही राह पर आएगा। वे कहते हैं-‘ रास्ते से ठगों की भीड़ छटें और मुसाफिर को उसकी राह मिले ।’

वह युगीन विसंगतियों को देखकर दुखी है और वह देख रहा है कि गांव वालों का मन गांव से उचट रहा है। पुराने माटी के मकानों को, झोपड़ों को गिराया जा रहा है और गांव- जवार में धृतराष्ट्रों की अंधी पलटन खड़ी हो गई है। आज की स्थिति से लेखक को निराशा भी है क्योंकि उससे होने वाले विध्वंस से सशंकित है।

‘ भोजपुरी धरती और लोकराग ‘लंबा निबंध है जिसमें डेढ़ दर्जन भोजपुरी लोकगीतों के माध्यम से लोक रस, मनुष्य की स्वाभाविक जीवंतता को बताया है जहां लाग लपेट नहीं है।

शब्द बतियाना, अंखफोर, अगराकर, सोगहक, खोंइछा, अगवाह,ढाही,मरुआया ,जोहता, मुंह बिराते, मनसायन, सीवन- ज्वार आदि सैंकड़ों लोक शब्द हैं जिनसे लेखक की आत्मा जुड़ी हुई है।

वैचारिक संघात से सुसज्जित ये निबंध अपने आप में विशिष्ट हैं। भाषा ,शिल्प ,संवेदना आदि समस्त स्तरों पर ललित निबंध लेखन के संपूर्ण निज गुणों के साथ निखर कर आते हैं। बतकही —चलती रहती है।

उदासी संक्रामक रोग होता है। आज महानगर और गांव भी इसके शिकार होते जा रहे हैं। मिश्र जी की चिंता बढ़ती अमानवीयता के प्रति है। और वे एक वृहत्तर समाज को अपनी रचनाओं से जोड़ना चाहते हैं।

‘नेह के नाते अनेक’ निबंध ‘ में बहुत ही आत्मीय संस्मरण हैं। केवल ध्यान से काम नहीं चलता है ,ध्यान रस में मग्न होना पड़ता है। वे राम कृष्ण परमहंस के ध्यान में रहे और उससे प्राप्त लाभ को पूरी दुनिया के सामने रखा।

पत्रकारिता के लेखक ,साहित्यकार, ललित निबंधकार ऐसे ही नहीं बने हैं। पाषाण जी ने उनके लिए सही लिखा है (पृष्ठ 293 गांव की कलम में)-हिंदी के प्रति अक्षम प्रेम का ही परिणाम है कि साहित्य साधना के व्रती डॉक्टर कृष्ण बिहारी मिश्र सारस्वत यज्ञ कुंड की समिधा बार-बार बनते हैं और हर बार पहले से अधिक प्रदीप्त बनकर हमें मिलते हैं। पाषाण जी ने ताजा टीवी द्वारा दी गई उनकी उपाधि ‘फकीर’ को ही अपनी बात रखने के लिए आलंबन बनाया है – ‘ हिंदी के एक फकीर की अनुशीलन साधना’। यह साधना है, तप है, योग है ,प्रेम है ।अज्ञेय जी की पंक्तियां डॉक्टर कृष्ण बिहारी जी पर सटीक बैठती हैं-

‘मैंने विदग्ध हो जान लिया

अंतिम रहस्य पहचान लिया

मैंने आहुति बनकर देखा

यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है।’

लेखक सचेत है ,प्रज्ञा आर्षवाणी को समझना और जीवन भी स्थाई नहीं है ,इसे ही सत्य और सनातन माना जा सकता है ,आंगन की तलाश पृष्ठ 10 में लेखक ने मानुष का संधान किया है। लालन फकीर ,अंजना, राम बचन ब,टोरमल , युगल किशोर घोष जैसे चरित्रों में लेखक को संवेदना दिखाई देती है। ‘सबार ऊपरे मानुष सत्य’ की प्रतिष्ठा की है। उनका साहित्य और व्यक्तित्व दोनों एकमेक होकर ही ऐसा साहित्य संसार रचा है। यह ऐसा ही है जैसे रामकृष्ण परमहंस के आसपास जो उनके सहयोगी थे, जिन्होंने उनके कार्य को सफल और सत्य सनातन बनाने में सहयोगी वातावरण बनाया।पूरा वातावरण एक रहस्य की तरह मानो डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र के इर्द-गिर्द बुना हुआ था और वे साहित्य तप की साधना के चरम उत्कर्ष पर पहुंचे हों ऐसा प्रतीत होता है।

यह दैवीय कृपा नहीं तो और क्या है?

अमीश त्रिपाठी द्वारा न्यूज़लेटर कॉमर्स क्रॉनिकल का लोकार्पण 

कोलकाता । भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज, के जुबली सभागार में आयोजित कार्यक्रम में ‘न्यूज़लेटर – कॉमर्स क्रॉनिकल’ – के प्रथम अंक का प्रसिद्ध लेखक और उपन्यासकार अमीश त्रिपाठी द्वारा लोकार्पण किया गया।

शिवानी शाह, पत्नी मिराज शाह; प्रोदिलीप शाह, रेक्टर; मीनाक्षी चतुर्वेदी, वाइस प्रिंसिपल (मॉर्निंग, कॉमर्स); सीए विवेक पटवारी, समन्वयक (सुबह); डॉ. (सीएस) मोहित शॉ, संपादक; और स्नेहा बसु मलिक, न्यूज़लैटर की प्रमुख डिजाइनर उपस्थित रहे। इस अवसर पर साक्षात्कार में अमीश त्रिपाठी ने अपनी नए उपन्यास ‘दी चोला टाइगर्स ‘पर अपने विचारों को व्यक्त किया।कोलकाता लिटरेरी फेस्टिवल की प्रमुख मालविका बनर्जी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। यह जानकारी डॉ वसुंधरा मिश्र ने दी।

सीएए आवेदन रसीद एसआईआर दस्तावेज के रूप में मान्य नहीं : हाईकोर्ट

कोलकाता। कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के तहत आवेदनकर्ताओं की रसीद को विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने की मांग की गई थी। न्यायालय ने कहा कि यह मामला सामूहिक निर्देश देने योग्य नहीं है, क्योंकि प्रत्येक आवेदन का स्वरूप और आधार अलग-अलग है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजॉय पाल और न्यायमूर्ति चैताली चट्टोपाध्याय की खंडपीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति को नागरिकता मिलेगी या नहीं, यह पहले केंद्र द्वारा तय किया जाएगा। हर आवेदक की परिस्थिति भिन्न है, इसलिए इस विषय में कोई सामान्य आदेश पारित नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि नागरिकता से संबंधित निर्णय केंद्र के अधिकार क्षेत्र में है, न कि निर्वाचन आयोग के। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक चक्रवर्ती ने अदालत को बताया कि पश्चिम बंगाल से सीएए के नियमों के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों के मामलों पर केंद्रीय गृह मंत्रालय अगले 10 दिनों के भीतर विचार करेगा और निर्णय देगा। राज्य ने बताया कि आयोग (निर्वाचन आयोग) एसआईआर प्रक्रिया का कार्य स्वतंत्र रूप से कर रहा है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में कहा कि देशभर में लगभग 50 हजार लोगों ने सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन किया है, लेकिन अब तक एक भी आवेदन का निस्तारण नहीं हुआ है। जबकि कानून के अनुसार प्रत्येक आवेदन पर अधिकतम 90 दिनों के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए। इस पर अदालत में केंद्र ने आश्वासन दिया कि नियमों के अनुसार 10 दिनों में सभी लंबित आवेदनों की समीक्षा की जाएगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि निर्वाचन आयोग का इस प्रक्रिया में कोई दायित्व नहीं है, क्योंकि नागरिकता का निर्धारण पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधीन है। इसलिए जब तक केंद्र किसी व्यक्ति की नागरिकता की पुष्टि नहीं करता, तब तक एसआईआर प्रक्रिया में उसके दस्तावेज को स्वीकार या अस्वीकार करने का निर्णय नहीं लिया जा सकता।

सात आतंकी गिरफ्तार, 2900 किलो से अधिक विस्फोटक बरामद

-फरीदाबाद के इमाम के घर से विस्फोटक बरामद
फरीदाबाद । दिल्ली, हरियाणा एवं जम्मू-कश्मीर पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन में सात आतंकवादियों को गिरफ्तार कर बड़े हमलों की साजिश को विफल कर दिया गया। पकड़े गए आतंकवादी अलग-अलग स्थानों पर सक्रिय थे। पकड़े गए आतंकियों से अब तक 2900 किलोग्राम से अधिक विस्फोटक सामग्री बरामद हो चुकी है। फरीदाबाद जिले के धौज गांव के रहने वाले इमाम से किराये पर कमरा लेकर आतंकी ने हथियारों तथा विस्फोटक का स्टोर बनाया था। पुलिस आयुक्त सत्येंद्र कुमार गुप्ता ने सोमवार को पत्रकार वार्ता में बताया कि गिरफ्तार आरोपितों की शिनाख्त आरिफ निसार उर्फ साहिल निवासी नौगाम, श्रीनगर, यासिर-उल-अशरफ निवासी नौगाम श्रीनगर, मकसूद अहमद डार उर्फ शाहिद निवासी नौगाम श्रीनगर, मौलवी इरफान अहमद निवासी शोपियां, जमीर अहमद अहंगर उर्फ मुतलाशा, निवासी वाकुरा गांदरबल, डा. मुजम्मिल शकील गणाई उर्फ मुसैब निवासी कोइल पुलवामा, डा. आदिल अहमद, निवासी वानपोरा कुलगाम के रुप में हुई है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर पुलिस ने लखनऊ से भी एक महिला डॉक्टर शाहीन शाहिद को हिरासत में लिया है। पुलिस प्रवक्ता के अनुसार, आरोपित मुजामिल की पूछताछ व तकनीकी सहायता से फरीदाबाद व जम्मू कश्मीर पुलिस की टीम ने संयुक्त कार्रवाई करते हुए 8 नवम्बर को एक क्रिनकॉव असाल्ट राइफल, 3 मैग्जीन, 83 जिंदा कारतूस, एक पिस्टल, 8 जिंदा कारतूस व दो मैग्जीन बरामद किये। इसके बाद नौ नवंबर को गांव धौज से फतेहपुर तगा रोड पर बने एक कमरे से आईईडी बनाने के लिए विस्फोटक/ ज्वलनशील पदार्थ लगभग 358 किलोग्राम (अमोनिया+नाइट्रेट) व अन्य सामग्री कैमिकल, ज्वलनशील पदार्थ, बिजली के सर्किट, बैटरी, वायर, रिमोट कंट्रोल, टाइमर, मेटल सीट आदि बरामद किये। उन्होंने आगे बताया कि सोमवार को फरीदाबाद व जम्मू कश्मीर पुलिस की टीम ने संयुक्त कार्रवाई करते हुए गांव फतेहपुर तगा स्थित डहर कॉलोनी से लगभग 2563 किलोग्राम विस्फोटक/ज्वलनशील पदार्थ बरामद किया है। इस प्रकार टीम द्वारा अब तक लगभग 2900 से अधिक किलोग्राम से अधिक विस्फोटक/ज्वलनशील पदार्थ बरामद किया गया है। बताया गया कि जिस घर से ये सामान बरामद हुआ है, वो घर हरियाणा के फरीदाबाद जिले के धौज गांव के ही रहने वाले इमाम का है। यह बरामदगी राठेर नाम के एक कश्मीरी डॉक्टर की ओर से दी गई खुफिया जानकारी के आधार पर की गई, जिसे श्रीनगर में एक अन्य पाक-आधारित आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद के समर्थन में पोस्टर चिपकाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। राठेर पिछले साल तक जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज में काम करता था। पुलिस ने बताया कि कॉलेज में उसके लॉकर से एक असॉल्ट राइफल बरामद हुई।