Saturday, August 16, 2025
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18 साल से कम उम्र वाले यूजर्स पर लगाम लगाएगा गूगल

गूगल ने अमेरिका में अपने नए एज एश्योरेंस टेक्नोलॉजी की सीमित शुरुआत कर दी है। जिससे अब 18 साल से कम उम्र वाले यूजर्स को ऑनलाइन अनुचित कंटेंट और विज्ञापनों से बचाना होगा। कंपनी ने साल की शुरुआत में इस योजना का ऐलान किया था जिसे अब सीमित यूजर्स के बीच परीक्षण के तौर पर लागू किया गया है। सफल परीक्षण के बाद इसे व्यापक स्तर पर लॉन्च किया जाएगा। इस लिस्टमें सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसकी एआई आधारित उम्र अनुमान सिस्टम जो यूजर की उम्र का अंदाजा उनके खोज इतिहायूट्यूब देखने की आदतों और दूसरे संकेतों के आधार पर लगाती है। अगर यूजर 18 से कम उम्र का पाया गया तो उसके लिए अपने आप कई डिजिटल सुरक्षा फीचर्स सक्रिय हो जाएंगे।

  • यूट्यूब पर ब्रेक और बेडटाइम रिमाइंडर
  • रिपिटिटिव और संभावित हानिकारक कंटेंट पर रोक
  • गूगल मैप्स में लोकेशन हिस्ट्री और टाइमलाइन जैसे फीचर्स को डिसेबल करना।
  • प्ले स्टोर में एडल्ट-ओनली ऐप्स की पहुंच पर पाबंदी
  • सीमित और अधिक उपयुक्त विज्ञापन अनुभव।

वहीं अगर किसी यूजर को किसी से नाबालिग मान लिया जाता है तो वह अपनी पहचान साबित करने के लिए पहचान पत्र या सेल्फी के जरिए मैन्युअल वेरिफिकेशन करवा सकता है। गूगल का दावा है कि ये पूरी प्रक्रिया नई जानकारी एकत्र किए बिना काम करती है और किसी भी डेटा को थर्ड पार्टी ऐप्स या वेबसाइट्स के साथ शेयर नहीं किया जाता। 

8 साल बाद सीएम उमर अब्दुल्ला ने फहराया तिरंगा

श्रीनगर । जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार को कहा कि स्वतंत्रता दिवस पर क्षेत्र का राज्य का दर्जा बहाल करने की उम्मीदें प्रबल हैं, लेकिन आशावाद कम होने के बावजूद संघर्ष जारी रहेगा। राज्य का दर्जा बहाल करने पर उन्होंने कहा, “मेरे शुभचिंतकों ने मुझे बताया था कि स्वतंत्रता दिवस पर जम्मू-कश्मीर के लिए कुछ बड़ी घोषणा की जाएगी। उम्मीद की किरण धुंधली पड़ रही है, लेकिन हम हार नहीं मानेंगे।” उन्होंने आगे कहा, “हमें बताया गया था कि जम्मू-कश्मीर को देश के अन्य हिस्सों के बराबर लाया जाएगा। आज मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या हम ऐसा कर पा रहे हैं?” जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला आठ साल बाद ध्वजारोहण और श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में स्वतंत्रता दिवस समारोह की अध्यक्षता करने वाले पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने 2017 में आखिरी बार यहां स्वतंत्रता दिवस समारोह की अध्यक्षता की थी। जून 2018 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पीडीपी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद तत्कालीन राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो गया था। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में पुनर्गठित किए जाने तक वहां कोई निर्वाचित सरकार नहीं थी। अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान के तहत जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देता था। राज्य का पुनर्गठन कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद 2018 और 2019 में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर राज्यपाल ने ध्वजारोहण किया, जबकि 2020 से 2024 तक यह जिम्मेदारी उपराज्यपाल ने निभाई।

जन्माष्टमी विशेष : श्रीकृष्ण हैं शाश्वत एवं प्रभावी सृष्टि संचालक

भगवान श्रीकृष्ण भारतीय संस्कृति के ऐसे अद्वितीय हैं, जिनके व्यक्तित्व में आध्यात्मिक ऊँचाई, लोकनायकत्व, व्यावहारिक बुद्धिमत्ता और कुशल प्रबंधन का अद्भुत संगम दिखाई देता है। वे केवल एक धार्मिक देवता नहीं, बल्कि सृष्टि के महाप्रबंधक, समय के श्रेष्ठ रणनीतिकार और जीवन के महान शिक्षक-संचालक भी हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन इस बात का प्रमाण है कि सही प्रबंधन के बिना न तो राष्ट्र का संचालन संभव है, न ही व्यक्ति का उत्थान। उन्होंने यह सिखाया कि प्रबंधन केवल योजनाओं और नीतियों का नाम नहीं, बल्कि भावनाओं, विवेक, नीति और समय के सामंजस्य का विज्ञान है। वे प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों की संयोजना में सचेतन बने रहे। श्रीकृष्ण के आदर्शों से ही देश एवं दुनिया में शांति स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त होगा। श्रीकृष्ण के प्रबंधन रहस्य को समझना होगा कि उन्होंने किस प्रकार आदर्श राजनीति, व्यावहारिक लोकतंत्र, सामाजिक समरसता, एकात्म मानववाद और अनुशासित सैन्य एवं युद्ध संचालन किया। राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए किस तरह की नीति और नियत चाहिए- इन सब प्रश्नों के उत्तर श्रीकृष्ण के प्रभावी प्रबंधन सूत्रों से मिलते हैं, आधुनिक शासक-नायक यदि श्रीकृष्ण के मैनेजमेंट को प्रेरणा का माध्यम बनाये तो दुनिया में युद्ध, आतंक एवं अराजकता की स्थितियां समाप्त हो जाये एवं एक आदर्श समाज-निर्माण को आकार दिया जा सके। श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व एवं कृतित्व नेतृत्व एवं प्रबंधन की समस्त विशेषताओं को समेटे बहुआयामी एवं बहुरंगी है, यानी राजनीतिक कौशल, बुद्धिमत्ता, चातुर्य, युद्धनीति, आकर्षण, प्रेमभाव, गुरुत्व, सुख, दुख और न जाने और क्या? एक देश-भक्त के लिए श्रीकृष्ण भगवान तो हैं ही, साथ में वे जीवन जीने की कला एवं सफल नागरिकता भी सिखाते है। उन्होंने अपने व्यक्तित्व की विविध विशेषताओं से भारतीय-संस्कृति में उच्च महाप्रबंधक का पद प्राप्त किया। एक ओर वे राजनीति के ज्ञाता, तो दूसरी ओर दर्शन के प्रकांड पंडित थे। धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जगत् में भी नेतृत्व करते हुए ज्ञान-कर्म-भक्ति का समन्वयवादी धर्म उन्होंने प्रवर्तित किया। अपनी योग्यताओं के आधार पर वे युगपुरुष थे, जो आगे चलकर युवावतार के रूप में स्वीकृत हुए। उन्हें हम एक महान् क्रांतिकारी नायक के रूप में स्मरण करते हैं। वे दार्शनिक, चिंतक, गीता के माध्यम से कर्म और सांख्य योग के संदेशवाहक और महाभारत युद्ध के नीति निर्देशक थे। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में भी हम इन्हीं प्रबंधकीय विशेषताओं का दर्शन करते है, क्योंकि श्रीकृष्ण के जीवन-आदर्शों को आत्मसात करते हुए वे एक कुुशल प्रबंधक के रूप में सशक्त भारत-नया भारत निर्मित कर रहे हैं।

श्रीकृष्ण ने द्वारका के शासक होते हुए भी कभी अपने को ‘राजा’ कहलाने में रुचि नहीं दिखाई। वे ब्रज के नंदलाल थे, ग्वालों के सखा, गोपियों के प्रियतम, और साथ ही धर्म के रक्षक भी। उनका जीवन दर्शाता है कि एक सच्चा नेता पद और सत्ता से नहीं, अपने कर्म और दृष्टिकोण से पहचाना जाता है। उन्होंने प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों के बीच अद्भुत संतुलन साधा-एक ओर वे महाभारत जैसे महायुद्ध के नीति निर्देशक थे, तो दूसरी ओर रास की मधुर लीलाओं में प्रेम और आनंद के स्वर बिखेरते थे। उनका प्रबंधन कौशल इस बात में स्पष्ट झलकता है कि अत्याचारी कंस को पराजित करने से पहले उन्होंने उसकी आर्थिक शक्ति को कमजोर किया। यह आधुनिक रणनीति की दृष्टि से भी सर्वाेत्तम तरीका था, पहले प्रतिद्वंद्वी की संसाधन शक्ति को समाप्त करो, फिर निर्णायक प्रहार करो। यही व्यावहारिक सोच उन्हें आदर्श मैनेजमेंट गुरु बनाती है। महाभारत के युद्ध में वे स्वयं अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाते, लेकिन रथसारथी बनकर अर्जुन के मानसिक संकट को दूर करते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि एक श्रेष्ठ प्रबंधक स्वयं अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर मार्गदर्शन देता है, लेकिन अपनी टीम को ही सफलता का श्रेय देता है। गीता का उपदेश वास्तव में प्रबंधन का अमरसूक्त है, कर्तव्य के साथ कर्म में निष्ठा, परिणाम से अनासक्ति, समय पर निर्णय लेने की क्षमता और परिस्थितियों के अनुरूप रणनीति बदलने की लचीलापन। उन्होंने सिखाया कि असफलता का भय और परिणाम की चिंता व्यक्ति को कमजोर करती है, जबकि कर्तव्यपरायणता और आत्मसंयम सफलता की गारंटी है। श्रीकृष्ण की दृष्टि में इच्छाओं का त्याग, मन की स्थिरता, और विवेकपूर्ण कार्य-ये जीवन प्रबंधन के मूल सूत्र हैं। उनके व्यक्तित्व में असंख्य भूमिकाएं समाहित थीं, एक ओर वे सुदामा के लिए अद्वितीय मित्र हैं, तो दूसरी ओर दुष्ट शिशुपाल के वध में धर्म के कठोर संरक्षक। वे नंदगांव में माखन चुराने वाले नटखट बालक हैं, लेकिन वही आगे चलकर कुरुक्षेत्र में धर्मयुद्ध के नीति निर्माता भी हैं। यही विरोधाभासों का संतुलन उन्हें अद्वितीय बनाता है। उन्होंने दिखाया कि कब करुणामय होना है और कब कठोर, कब प्रेम करना है और कब दुष्टता का दमन करना है, यह निर्णय केवल वही कर सकता है जो परिस्थितियों को भलीभांति समझता हो और समय का सदुपयोग जानता हो। श्रीकृष्ण एक आदर्श चरित्र है जो अर्जुन की मानसिक व्यथा का निदान करते समय एक मनोवैज्ञानिक, कंस जैसे असुर का संहार करते हुए एक धर्मावतार, स्वार्थ पोषित राजनीति का प्रतिकार करते हुए एक आदर्श राजनीतिज्ञ, विश्व मोहिनी बंसी बजैया के रूप में सर्वश्रेष्ठ संगीतज्ञ, बृजवासियों के समक्ष प्रेमावतार, सुदामा के समक्ष एक आदर्श मित्र, सुदर्शन चक्रधारी के रूप में एक योद्धा व सामाजिक क्रान्ति के प्रणेता हैं। उनके जीवन की छोटी से छोटी घटना से यह सिद्ध होता है कि वे सर्वैश्वर्य सम्पन्न थे। धर्म की साक्षात् मूर्ति थे। कुशल राजनीतिज्ञ थे। सृष्टि संचालक के रूप में एक महाप्रबंधक थे।  श्रीकृष्ण की समय-नियोजन क्षमता अद्भुत थी। 64 दिन में 64 कलाओं का ज्ञान प्राप्त करना इस बात का प्रमाण है कि जीवन में सीखने की गति और बहुआयामी दक्षता ही नेतृत्व की असली पहचान है। वे संगीत, नृत्य, युद्धकला, राजनीति, कूटनीति और दर्शन-हर क्षेत्र में पारंगत थे। एक श्रेष्ठ प्रबंधक की तरह उन्होंने न केवल अपनी क्षमताओं का विकास किया, बल्कि अपने समय और संसाधनों का सर्वाेत्तम उपयोग भी किया। श्रीकृष्ण की राजनीतिक दृष्टि इतनी सूक्ष्म थी कि वे राजसत्ता को धर्मसत्ता के अधीन रखना चाहते थे। उनके जीवन में राष्ट्रहित सर्वाेपरि था। उन्होंने विषमताओं को समाप्त करने, शत्रुता मिटाने और समाज में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास किया। उनके लिए सत्ता कोई व्यक्तिगत लाभ का साधन नहीं, बल्कि लोककल्याण का माध्यम थी। आवश्यकता पड़ने पर उन्होंने सत्ता का त्याग करने में भी संकोच नहीं किया। उनका ग्रामीण संस्कृति के प्रति प्रेम भी उल्लेखनीय है। माखनचोर की उनकी छवि केवल बाललीला नहीं, बल्कि उस समय की निरंकुश कर-व्यवस्था का प्रतिकार और ग्रामीण स्वावलंबन का समर्थन भी थी।

(साभार – प्रभासाक्षी)

संन्यास को स्त्री के दृष्टिकोण से देखती है नरगिस की जोगन

दिलीप कुमार और नरगिस की फ़िल्म ‘जोगन’ पचहत्तर साल पहले आई थी (24 फ़रवरी 1950)। फ़िल्म की शैली उस समय बनाए जाने वाले नाटकीय सिनेमा के अनुरूप ही थी, किंतु उसकी कथावस्तु अनूठी थी- एक युवा स्त्री का संन्यास लेना और उस संन्यासिनी से एक अनीश्वरवादी युवक (दिलीप कुमार) को आसक्ति हो जाना। इसमें पहला प्रश्न तो यही है कि क्या एक युवा स्त्री में वैसा वैराग्य जग सकता है? या और बेहतर शब्दों में पूछें तो क्या वह स्वभाव-संन्यासिनी हो सकती है, अभाव-संन्यासिनी नहीं? क्योंकि जिस तृष्णा से वैरागी का मन काँप जाता है, उसे स्त्री अडोल चित्त से अंगीकार करती है, संसार में ही उसे मुक्ति मालूम होती है। क्योंकि स्त्री की चेतना की निर्मिति आकाशीय या वायवी के बजाय धरातल वाली अधिक मालूम होती है। उसका चित्त धरणी का है, धारण करने और जीवन को जन्म देने का। फिर संसार, समाज और परिवार की वह धुरी भी है, तो प्रकृति ने ही यह व्यवस्था दी है कि स्त्री के चित्त में विराट वैराग्य नहीं उत्पन्न होता- छोटी-बड़ी विरक्तियाँ, विक्षोभ और विषाद फिर भले लाख उत्पन्न होते रहें।
इससे उलट दृश्य अधिक सम्भव लगता है कि संन्यासी कोई युवा पुरुष हो और कोई युवती उस पर रीझ जाए। जैसे कि कुमारयोगी और चित्रलेखा का द्वैत है, जिसमें यह उलाहना कि ‘संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे?’ (प्रसंगवश, ‘जोगन’ बनाने वाले किदार शर्मा ने ही कालान्तर में ‘चित्रलेखा’ बनाई थी, मानो कहानी के एक आयाम को छू लेने के बाद दूसरा पहलू टोह लेना चाहते हों)। किंतु यहाँ तो यह युवा और सुंदर स्त्री जोगन के वेश में है। वह मीरा के भजन गाती है, इसलिए सब उसे मीराबाई ही कहने लगे हैं। उसका वास्तविक नाम तो अब बिसरा गया। गाँव का एक युवक उससे आकृष्ट होकर चला आया है। वह नास्तिक है और मंदिर में प्रवेश नहीं करता, किंतु देहरी पर खड़ा ताकता रहता है। जोगन भी उसे देखते ही भाँप लेती है कि उसके मन में अनुराग जागा है। स्त्री की नज़र से यह बात कभी छुपती नहीं।
किंतु वह संन्यासिनी है तो प्रेम का प्रत्युत्तर कैसे देगी? दूसरी तरफ़ जो नौजवान है, वह भी संन्यासिनी से मन जोड़कर सुख की कल्पना क्यों कर करेगा? किंतु हिंदुस्तानी चित्रपट पर दिलीप कुमार ने जाने-अजाने जिस नायक को उस ज़माने में रचा था, वह सुख का टोही यों भी नहीं था, वह तो सदैव त्रासदी की त्वरा से आत्मनाश की ओर खिंचता चला जाता था। संन्यासिनी के प्रति उसके प्रेम में बड़ी गरिमा है, लगभग प्रार्थनामयी आवेग है। वह रोज़ जोगन के दर्शन करने जाता है, किंतु पुरुष होने के नाते उसके धुले हुए वस्त्र भी वह छू नहीं सकता। एक दिन जोगन उसे टोक देती है कि वह यहाँ ना आया करे, तो बाहर खड़ा भजन सुनता रहता है। जब सब लौट जाते हैं तो संन्यासिनी की देहरी पर एक फूल रख जाता है। संन्यासिनी के चित्त में इससे ज्वार उत्पन्न होता है। वह मन को बाँधती है।
बाद में यह कहानी खुल ही जाती है कि जोगन स्वभाव-संन्यासिनी नहीं थी। वह तो अतीत में चित्रों, गीतों और कविताओं में रमने वाली युवती हुआ करती थी। उसका नाम सुरभि था। उसने मन में एक साथी की कल्पना संजोई थी और उसी की बाट जोहती थी। फिर कोई वैसी विपदा होती है कि उसके स्वप्न पूरे नहीं होते और वो निराश होकर संन्यास ले लेती है। इच्छाओं को मार देती है। प्रश्न यह है कि क्या संकल्प और तपश्चर्या से मन को वैसे बाँधा जा सकता है? अवचेतन की थाह लेने वाला मनोविज्ञान तो यही कहेगा कि ऐसा सम्भव नहीं, चित्त की वृत्तियाँ बड़ी भरमाने वाली होती हैं। फ़िल्म में भी सम्वाद है कि आँच पर राख जम जाने से उसकी तपिश मर नहीं जाती। किंतु दूसरा पहलू यह है कि तृष्णा से सींचने पर मन अमरबेल बन जाता है। उस पर अंकुश रखो तो सम्भव है वह रथ में जुते अश्व की तरह सध जाए, आत्मा के रथी का उस पर नियंत्रण हो जाए। किंतु पहली शर्त वही है कि वैरागी स्वभाव से संन्यासी हो, अभाव-संन्यासी ना हो।
ऐसा नहीं कि भारत में स्त्री संन्यासिनी नहीं हुईं। बुद्ध ने यशोधरा और आम्रपाली को दीक्षा दी ही थी। वैदिक काल में मैत्रेयी थीं जो ब्रह्मवादिनी थीं, याज्ञवल्क्य से संवाद करने वाली गार्गी थीं, लोपामुद्रा थीं, जो विदुषियाँ थीं। संत परम्परा में सहजो बाई, दयाबाई, ललदद्य, मुक्ताबाई हुईं। मीरा तो हैं ही। वो ज्ञानमार्गी नहीं प्रेममार्गी हैं। कह लीजिये कि उनके यहाँ दिव्योन्माद है, यानी दिव्य ही सही किंतु उन्माद है। संसार से विरक्ति है, किंतु श्रीकृष्ण पर आलम्बन है। मीराबाई ही कहलाने वाली ‘जोगन’ फ़िल्म की नरगिस भी गिरधर का ही नामजप करती हैं, किंतु जिस प्रेयस की कल्पना में वह कविताएँ लिखा करती थी, उसे अब इतने विलम्ब से सामने पाकर विचलित है। वो गाँव त्यागने का निर्णय लेती है। ग्रामसीमा पर वह युवक उसकी प्रतीक्षा करता मिलता है। उसके पाँव में फूल रख देता है। क्या ही सुंदर दृश्य है वह!
मालूम होता है ईश्वर ने दिलीप कुमार को इसीलिए सिरजा था कि वह विषादयोग के नानारूपों को अपनी देहभाषा से रजतपट पर साकार कर दे। परदे पर वह चिर भग्नहृदय प्रेमी है। सुख उसके गले का हार नहीं, वह दु:खों को ही दिल से लगाए फिरता है। जब जोगन गाँव त्यागकर लौट जाती है तो वह उस स्थान पर जाता है, जहाँ वो विराजी थीं। काठ के किवाड़ को बड़े अनुराग से बाँहों में भर लेता है। जिस फ़र्श पर संन्यासिनी सोती थी, वहीं भावना से बैठ रहता है। यह वैसा प्रेम है, जो अब उपासना बन गया है। मानो, संन्यासिनी ने ही संसार नहीं त्यागा था, उससे प्रेम करने वाले ने भी संसार त्याग दिया है (एकबारगी वह संन्यासिनी से कह भी चुका था कि मुझे भी दीक्षा दो, अगर इसी विधि से साथ रहना सम्भव हो तो)। जैसे मन में राग का होना पर्याप्त नहीं था तो उसका साथ देने विराग चला आया है। बात वही है कि संसार से विरक्ति है, किंतु कोई एक है, जिसमें मन लगा हुआ है। आख़िर में वह भी छूटे तो बेड़ा पार लगे।
फ़िल्म का अंतिम दृश्य यह है कि जोगन ने उपवास-तपस्या करके देह त्याग दी है। विदा से पूर्व अपनी कविताओं की पोथी उस युवक तक पहुँचा दी है। ये कविताएँ उसने तब लिखी थीं, जब वो चिड़ियाओं की तरह चहकने वाली युवती थी और अपने प्रेम की बाट जोहती थी, किंतु साथी तब जाकर मिला था जब उसके होने के तमाम संदर्भ चुक गए थे। जोगन की आख़िरी भेंट लेकर युवक उसकी समाधि पर जाता है और गीली आँखों से उसे निहारता रहता है।
यह फ़िल्म 1940 के दशक के आख़िरी सालों में बनाई गई। वह एक दूसरा ही भारत था। उसमें ऐसे विषय पर इतनी परिनिष्ठित भावना के साथ फ़िल्म बनाई जा सकती थी। यह फ़िल्म दर्शकों के द्वारा सराही गई थी। अचरज है कि उस समय के लोकप्रिय सितारों ने इसमें अभिनय करना स्वीकार किया, जिसमें उनके कोई प्रेम-दृश्य नहीं हो सकते थे। नरगिस और दिलीप की ‘मेला’ और ‘अंदाज़’ जैसी फ़िल्में आकर सफल हो चुकी थीं और ‘बाबुल’ और ‘दीदार’ इसके बाद एक-एक कर आने को थीं। एक और बात ग़ौर करने जैसी है कि नरगिस के व्यक्तित्व में ही कुछ वैसी निस्संगता थी, जो दिलीप कुमार के साथ और निखर जाती थी। राज कपूर उनके भीतर की प्रेयसी को जगाते थे, दिलीप कुमार उनके भीतर की जोगन को। इससे दिलीप और न​रगिस की फिल्मों में एक विचित्र-सा भाव उत्पन्न हो गया है- त्रासद-कथाओं के अनुरूप, दो विरक्त-वैरागी आत्माओं का, अभिशप्त प्रेम। ये तमाम बातें अब किंवदंतियों का विषय हैं, किंतु फ़िल्म ‘जोगन’ में नरगिस और दिलीप के संवाद सुनने जैसे हैं। उनकी मर्यादाएँ, उनकी सीमाएँ, उनके मन का अकथ आवेग, आसन्न त्रासदी के भावरूप : यह सब उनके अभिनय में व्यंजित होता है। परदे पर उनके मौन में गूँजते संकेतों को सुनना भी एक ही सुख है।
साल 1950 के दिलीप और नरगिस में कुछ तो ऐसा अपरिभाषेय था, जिसे उसके बाद फिर कभी छुआ भी नहीं जा सकता था। रूखे मन और उचटे दिल वाली इस जोड़ी से मेरा जी कभी नहीं भरता!

अब यूनेस्को की सूची में शामिल होंगी छठी मइया

-छठी मइया फाउंडेशन की पहल को मिला केंद्र का साथ
नयी दिल्ली। देश की आस्था, पर्यावरण और सांस्कृतिक गौरव का अद्वितीय प्रतीक छठ महापर्व अब अंतरराष्ट्रीय पहचान की ओर अग्रसर है। केंद्र सरकार ने छठी मइया फाउंडेशन की ऐतिहासिक मांग को स्वीकार करते हुए संगीत नाटक अकादमी (एसएनए) को निर्देश जारी कर दिए हैं कि इस पर्व को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल करने की प्रक्रिया तुरंत प्रारंभ की जाए।
संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने एक पत्र के माध्यम से औपचारिक आदेश जारी किया। इस पहल में केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का मार्गदर्शन और सहयोग अहम रहा। पत्र में लिखा गया, “संदीप कुमार दुबे (अध्यक्ष, छठी मैया फाउंडेशन) द्वारा दिनांक 24.07.2025 को भेजा गया एक पत्र है, जिसमें “छठ महापर्व” को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (आईसीएच) की प्रतिनिधि सूची में शामिल करने हेतु प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है। इस संबंध में, एसएनए को नोडल एजेंसी होने के नाते, उक्त प्रस्ताव की जांच करने और उचित कार्रवाई करने का अनुरोध किया जाता है।” फाउंडेशन के चेयरमैन संदीप कुमार दुबे ने इस निर्णय को ऐतिहासिक बताते हुए कहा, “यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संस्कृति मंत्रालय की संवेदनशीलता व भारत की सांस्कृतिक धरोहर के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। छठ केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण की अद्वितीय परंपरा है। यूनेस्को की सूची में इसका शामिल होना भारत और प्रवासी भारतीय समुदाय, दोनों के लिए गर्व का विषय होगा।” भोजपुरी में अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए उन्होंने आगे कहा, “आज हमनी सबके खुशी के दिन बा । छठ पर्व के यूनेस्को कल्चरल हेरिटेज में शामिल करे खातिर भारत सरकार आपन पहल कर देले बा। हम सबसे बड़ा बधाई गजेंद्र सिंह शेखावत जी के देतानी , जे संस्कृति मंत्री बन के तुरत कार्रवाई कईले बानी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के भी बहुत-बहुत धन्यवाद, जे बिहार, झारखंड, यूपी, दिल्ली, नेपाल आ दुनियाभर के छठ मानइयां खातिर गर्व के पल ले आवलन (आज हम सबके लिए खुशी का दिन है। छठ पर्व के यूनेस्को कल्चरल हेरिटेज में शामिल करने के लिए भारत सरकार ने पहल कर दी है। मैं संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने इस पर तुरंत कार्रवाई की। पीएम मोदी को भी धन्यवाद जिन्होंने बिहार, झारखंड, यूपी, दिल्ली, नेपाल और दुनियाभर में छठ मनाने वालों को गर्व की अनूभुति कराई है)।”

सुप्रीम कोर्ट ने किया चुनाव आयोग का समर्थन

– कहा -आधार पहचान का प्रमाण नहीं
नयी दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस रुख को बरकरार रखा है कि आधार कार्ड को भारतीय नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता और इसका उचित सत्यापन आवश्यक है। सर्वोच्च न्यायालय ने ज़ोर देकर कहा कि आधार विभिन्न सेवाओं का लाभ उठाने के लिए एक महत्वपूर्ण पहचान दस्तावेज़ है, लेकिन यह अपने आप में धारक की राष्ट्रीयता स्थापित नहीं करता। शीर्ष न्यायालय का यह फैसला बिहार के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर उठे विवाद के बीच आया है। मामले की सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि चुनाव आयोग का यह कहना सही है कि आधार को निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इसे वैध साक्ष्य मानने से पहले उचित सत्यापन आवश्यक है। न्यायमूर्ति कांत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा कि चुनाव आयोग का यह कहना सही है कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसे सत्यापित किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि निर्णय लेने योग्य प्राथमिक मुद्दा यह है कि क्या भारत के चुनाव आयोग के पास मतदाता सत्यापन प्रक्रिया करने का अधिकार है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि यदि चुनाव आयोग के पास ऐसी शक्ति नहीं है, तो मामला यहीं समाप्त हो जाता, लेकिन यदि उसके पास यह अधिकार है, तो इस प्रक्रिया पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि 1950 के बाद भारत में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति नागरिक है, लेकिन उन्होंने दावा किया कि वर्तमान प्रक्रिया में गंभीर प्रक्रियागत खामियाँ हैं। एक उदाहरण देते हुए, उन्होंने कहा कि एक छोटे से विधानसभा क्षेत्र में, 12 जीवित व्यक्तियों को मृत घोषित कर दिया गया था, और बूथ स्तर के अधिकारियों (बीएलओ) ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया था। सिब्बल ने आगे तर्क दिया कि चुनाव आयोग द्वारा अपनाई जा रही प्रक्रिया के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर मतदाता बहिष्कृत हो सकते हैं, विशेष रूप से उन लोगों पर जो आवश्यक प्रपत्र जमा नहीं कर पाए। उन्होंने बताया कि 2003 की मतदाता सूची में पहले से सूचीबद्ध मतदाताओं से भी नए प्रपत्र भरने के लिए कहा जा रहा है और ऐसा न करने पर उनके निवास में कोई बदलाव न होने के बावजूद उनके नाम हटा दिए जाएँगे।

 

अंधेरे में रोशनी की तलाश है विद्या भंडारी का कविता संग्रह ‘स्त्री स्लेट पर लिखा शब्द नहीं’

कोलकाता । साहित्यिकी संस्था की वर्चुअल गोष्ठी में संस्था की अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार विद्या भंडारी के काव्य संग्रह ‘स्त्री स्लेट पर लिखा शब्द नहीं ‘ पर परिचर्चा की गई जिसमें अतिथि वक्ता के रूप में गज़लकार अभिनेता उपन्यासकार और कवि डॉक्टर हृदय नारायण अभिज्ञात ने कहा कि विद्या भंडारी का कविता संग्रह ‘स्त्री स्लेट पर लिखा शब्द नहीं’बहुत ही सार्थक और यथार्थ धरातल पर लिखी गई कविताओं का संग्रह है। उन्होंने कहा कि शांत मन से रची गई इन कविताओं में विचारों भावों की सुभास है ,अंधेरे में रोशनी की तलाश है, कविता के शब्दों में मरुस्थल की शीतल फुहार है जो कुरीतियों पर भी प्रहार करती है, वाद्य यंत्र की झंकार है तो धनुष की टंकार भी। वर्तमान समय में संवेदना को महसूस करना है तो विद्या जी को पढ़ना चाहिए क्योंकि इन कविताओं में उनके अस्सी वर्ष के अनुभव हैं। ‘कामकाजी स्त्री’कविता से मैं बहुत प्रभावित हुआ था।
सशक्त वक्ता साहित्यकार और कवयित्री स्त्री समीक्षक डॉक्टर गीता दुबे जो सशक्त वक्ता के रूप में जानी जाती है । विद्या जी के काव्यसंग्रह में संकलित तमाम कविताओं में उनके जीवनानुभवों का निचोड़ दिखाई देता है। स्त्री जीवन की चुनौतियां और संघर्ष बहुत बारीकी से उनकी कविताओं में अंकित हुआ है। उसके अलावा प्रकृति और प्रेम की सुंदर छवियां भी अंकित हुई हैं। समकालीन जीवन की विसंगतियों पर भी वह बेबाकी से अपने विचार रखती हैं। आधुनिकता और पारंपारिक विचारों का संतुलन उनकी कविताओं को खास बना देता है।
अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉक्टर सुषमा हंस ने विद्या जी को उनके काव्य संग्रह ‘स्त्री स्लेट पर लिखा शब्द नहीं’ के लिए बधाई दी। कहा कि ईमानदारी से लिखी गई इन कविताओं में नारी मन के विभिन्न परतों को खोला गया है और उससे जुड़े विभिन्न सामाजिक पहलुओं को भी उद्घाटित किया गया है ।नारी की संवेदना और उसकी सोच को उजागर करती हुई सत्ता ,भिन्न स्त्रियां, स्त्री, मैं तुमसे कम नहीं ,वजूद स्त्री, माँ, छाता आदि बहुत सी कविताएं हैं जो स्त्री चेतना को दर्शाती हैं।लिव इन, डिजिटल आंधी जैसी कविताओं में मूल्यपरक चिंता व्यक्त की गई है। मैं भारत हूं, बापू, हिंदी दिवस, हिन्दुस्तानी आदि कविताओं में देश प्रेम के विविध रूप मिलते हैं ।काम पर जाती हुई स्त्री में आधुनिक कामकाजी स्त्री के मनोसंघर्ष को गहरी संवेदना के साथ प्रस्तुत किया गया है। सुषमा हंस ने कार्यक्रम के लिए सभी वक्ताओं और श्रोताओं सदस्यों को धन्यवाद भी दिया।कवि और साहित्यकार सुरेश चौधरी , पत्रकार सोनू कुमार , डॉ मंजूरानी गुप्ता कविता कोठारी, कुसुम जैन को धन्यवाद दिया। कवयित्री उर्मिला प्रसाद ने कार्यक्रम का संचालन किया।इस अवसर पर डॉ वसुंधरा मिश्र ने विद्या भंडारी के कविता संग्रह से एक कविता ‘ये कैसे सात फेरे’ का पाठ किया।
विद्या भंडारी ने अपना वक्तव्य रखते हुए वक्ताओं का आभार प्रकट करते हुए कहा कि मेरी लेखनी में कल्पना कम एवं यथार्थ अधिक है। जो कुछ भी आसपास देखा,स्त्री का संघर्ष , समाज की विसंगतियां,भ्रष्टाचार आदि में कल्पना का स्थान नहीं है।जब जो अनुभूत हुआ वही लिखा।
संचालन उर्मिला प्रसाद द्वारा किया गया यह कार्यक्रम 29 जुलाई 2025 4:30 शाम गूगल मीट पर किया गया जिसमें श्रोता बिहार और इंदौर से भी जुड़े । साहित्यिक के सभी सदस्यों ने इसमें भाग लिया। विद्या भंडारी,कुसुम जैन, डॉ अभिज्ञात , उर्मिला प्रसाद , डॉ गीता दूबे और सभी वक्ताओं और श्रोताओं को डॉक्टर सुषमा हंस ने धन्यवाद दिया।सुंदर और सुचारू रूप से कार्यक्रम का संचालन किया हिंदी और बांग्ला साहित्य सेवी उर्मिला प्रसाद ने । कुसुम जैन,डॉ मंजूरानी गुप्ता, कविता कोठारी ने भी कविता संग्रह ‘स्त्री स्लेट पर लिखा शब्द नहीं’ कविता संग्रह पर परिचर्चा करते हुए कवयित्री को शुभकामनाएं दी। डॉ वसुंधरा मिश्र ने इस कार्यक्रम की जानकारी दी।

भवानीपुर कॉलेज का चार दिवसीय ओरिएंटेशन – 25 Ctrl+N संपन्न

कोलकाता । भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज में नए दाखिला लिए विद्यार्थियों को ओरिएंटेशन 25 Ctrl +N में कॉलेज की विभिन्न गतिविधियों और कलेक्टिव्स विषयों की जानकारी दी गई। सीनियर विद्यार्थियों ने अपने जूनियर विद्यार्थियों का स्वागत करते हुए उन्हें अपने परिवार में शामिल किया। रेक्टर और डीन प्रोफेसर दिलीप शाह ने स्वागत भाषण दिया और कॉलेज में होने वाले विभिन्न विषयों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि साथ ही पाठ्यक्रम से इतर विषयों द्वारा विद्यार्थी अपनी रुचि और प्रतिभा को पहचान दे सकते हैं। इस बार 17 कलेक्टिव्स , 35 कलेक्टिव्स विद्यार्थियों द्वारा और अनगिनत पाठ्यक्रमों को सीखने की सुविधा उपलब्ध है , खेल में 30 से अधिक खेल की सुविधा के साथ और भी बहुत कुछ है जिसे विद्यार्थी कैरियर के रूप में ले सकते हैं। पढ़ना और लिखना – ड्रेस, डिसिप्लिन , बिजनेस यात्रा के साथ पिकनिक आदि के बारे में प्रातःकालीन कॉमर्स विभाग की वाइस प्रिंसिपल प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी ने विस्तार से बताया कहा कि भवानीपुर कॉलेज एंटी रैगिंग कैम्पस है यहाँ 635 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं जो कॉलेज के बाहर एल्गिन रोड को भी कवर करते हैं इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही ज्यादा ध्यान दिया गया है ।विद्यार्थियों को आई डी कार्ड से ही डिजिटल प्रवेश मिलेगा। विद्यार्थियों की अनिवार्य आवश्यकता डिजिटल लाइब्रेरी और विषय से संबंधित शिक्षक भी उपलब्ध हैं।
विद्यार्थियों के लिए यह अद्वितीय सफलता और खोज का समय है। कॉलेज में अवसरों, दोस्ती, सीखने, विकास, चुनौतियों, यादों, विविधता, मनोरंजन, आत्म-खोज, अनुभव, रोमांच और व्यक्तिगत विकास की दुनिया का अन्वेषण करने का समय है।
हम ऐसी यादें बनाते हैं जो जीवन भर याद रहेंगी।
अट्ठारह से अधिक कलेक्टिव विषय हैं जो किसी विशिष्ट प्रतिभा संपन्न विद्यार्थी को उसके चयनित विषय को आगे बढ़ाने में सहायक बनते हैं।
इस ओरिएंटेशन प्रोग्राम की थीम कन्ट्रोल प्लस एन( Cl+N) ओरिएंटेशन 2025 रखा गया। ओरिएंटेशन 25 सिर्फ कक्षा तक की शिक्षा पर्याप्त नहीं होती बल्कि समय की मांग के अनुसार कोर्सेज सीखने का मौका है । डिजिटल से एआई की ओर जाने का समय है जो शिक्षा में कई विंडों खोल सकते हैं, आगे बढ़ने के प्रतीक हैं जिन्हें आप स्वयं प्राप्त कर सकते हैं।नये दाखिला लिए विद्यार्थियों के स्वागत में फ्लेम, क्रिसेंडो, एन एक्ट, एक्सप्रेशन, बुक रिडिंग क्लब, रील, फोटोग्राफी, फैशनिस्टा आदि कलेक्टिव ने अपने-अपने विषयों के प्रति आकर्षित करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए गए और कॉलेज का भ्रमण करवाया गया। कॉलेज की परंपराओं से रूबरू करवाया गया। प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी ने प्लेसमेंट के विषय में विस्तार से जानकारी दी। क्यू आर से किस प्रकार अपने विषयों का चयन करना है,वोलेंटियर्स ने विस्तार से बताया। सभी कलेक्टिव के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने कलेक्टिव के उद्देश्य और गतिविधियों को समझाया।क्यू आर से अॉन-लाइन पर सभी विद्यार्थियों ने फार्म भरा और कॉलेज को ईमेल किया।
कैरियर कनेक्ट जिसमें ए सी सी ए( एसोसिएशन अॉफ चार्टर्ड सर्टिफाइड एसोसिएशंस), डायनामिक अॉफ कैपिटल मार्केट, डिजिटल मार्केटिंग , वर्किंग विद जीएसटी , एमएस ऑफिस , गूगल वर्क , टैली प्राइम , पब्लिक स्पीकिंग , कॉरपोरेट कम्युनिकेशन 3 महीने, कैम्पस में खेल के लिए एथलेटिक मीट बॉयज और गर्ल्स के साथ बैडमिंटन, बास्केटबॉल, बॉक्सिंग, चेस, क्रिकेट, जिमनास्टिक, हैंडबॉल, दोनों के लिए है। प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी ने करियर कनेक्ट और प्लेसमेंट के विषय पर अपनी बात रखी।कक्षाओं में नियमित रूप से कक्षाएं होती हैं लेकिन कुछ अलग से करने के लिए एक पद्धति है जो कलेक्टिव में काम करती हैं।
डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि भवानीपुर एजुकेशन सोसायटी कॉलेज में ओरिएंटेशन 25 का कार्यक्रम चौदह चरणों में किया गया जिसमें बीए बीकॉम बीएससी के विभिन्न विभागों के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। ओरिएंटेशन 25 कार्यक्रम विद्यार्थियों द्वारा आयोजित किया गया जिसमें संचालन, संयोजन, रिपोर्ट, फोटोग्राफी ,व्यवस्था, सभागार सज्जा आदि विभिन्न स्तरों की गतिविधियां शामिल रहीं।ओरिएंटेशन 25 चार दिनों 28- 29 – 30- 31.7.25 तक चौदह सत्रों में चलने वाले इस कार्यक्रम में भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज के सभी नए विद्यार्थियों ने भाग लिया।

भवानीपुर कॉलेज में स्पोर्ट्स फेलिसिटेशन सेरेमनी 2025

कोलकाता । रिंग्स ऑफ होप 25 कार्यक्रम में भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को सम्मानित किया गया। जुबली हॉल में आयोजित स्पोर्ट्स फेलिसिटेशन सेरेमनी में दो सौ पचास खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम तीन अगस्त को दस बजे से दो बजे दोपहर तक चला। हुआ। रिंग्स ऑफ होप कार्यक्रम का का प्राथमिक उद्देश्य उन छात्र छात्राओं को सम्मानित करना है जिन्होंने विभिन्न खेल विषयों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किए हैं ।खेल के क्षेत्र में युवा एथलीटों को प्रेरित करने के लिए इस कार्यक्रम में उन खिलाड़ियों को सम्मानित किया जिन्होंने राज्य, राष्ट्रीय और विश्वविद्यालय स्तर पर अपने संचालन, खेल कौशल और उपलब्धियों के माध्यम से शिक्षा संस्थान के लिए लगातार असाधारण स्तरों पर प्रदर्शन किया है । 30 से अधिक खेलों के एथलीटों को उनकी उपलब्धियों के लिए मान्यता प्रदान की गई । कई विद्यार्थियों ने राज्य और राष्ट्रीय टूर्नामेंट में हमारे कॉलेज का प्रतिनिधित्व किया है, और हमारी संस्था की खेल प्रतिष्ठा में योगदान दिया । मुख्य अतिथि, पूर्व क्रिकेटर और स्पोर्ट्सेन्थसिअस्ट, लक्ष्मी रतन शुक्ला ने प्रेरणादायक शब्दों द्वारा अपने वक्तव्य द्वारा छात्रों को और भी अधिक ऊंचाइयां प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। हमारे प्रबंधन के सदस्य उमेश खट्टर और जितेंद्र भाई शाह, उपस्थित थे, पुरस्कार विजेताओं को प्रोत्साहित और बधाई दे रहे थे। भवानीपुर कॉलेज के छात्र मामलों के रेक्टर और डीन प्रो दिलीप शाह की उपस्थिति में सभी खिलाड़ियों को सम्मानित किया गया, जिनका समर्थन खेल प्रतिभा के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त सभी विशेष खेल के प्रमुख कोच बास्केटबॉल – मनप्रीत सिंह ग्रेवाल; कबड्डी – स्वरुप घोष; क्रिकेट – सुनील पांडे; फुटबॉल – प्रताप सेनापती और चेस बॉक्सिंग – अशुतोष कुमार झा और कॉलेज के खेल अधिकारियों भाविन परमार और रूपेश गांधी ने खिलाड़ियों को सम्मानित किया । रिंग्स ऑफ होप पुरस्कार समारोह कड़ी मेहनत, लचीलापन और स्पोर्ट्समैनशिप की भावना का उत्सव रहा। इस कार्यक्रम ने पूरे छात्र छात्राओं के समुदाय को ही नहीं बल्कि शिक्षाविदों को भी एक्स्ट्रा करिकुलर और को-करिकुलर में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। इस कार्यक्रम का समापन जितेंद्र भाई शाह और उमेश खट्टर द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उमेश खट्टर ने सभी प्रतिभागियों, आयोजकों, मेहमानों, स्वयंसेवकों के प्रति आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस सम्मान समारोह को संभव बनाया। इस कार्यक्रम की जानकारी हिंदी मीडिया प्रभारी डॉ वसुंधरा मिश्र ने दी।

1 सितंबर से दिल्ली-वॉशिंगटन डीसी के लिए एयर इंडिया की उड़ान सेवाएं बंद

नयी दिल्ली । एयर इंडिया ने सोमवार को घोषणा की है कि वह 1 सितंबर से दिल्ली और वॉशिंगटन डीसी के बीच सीधी उड़ानें अस्थायी रूप से बंद कर रहा है। यह फैसला कुछ संचालन से जुड़ी वजहों के चलते लिया गया है ताकि एयर इंडिया अपने पूरे रूट नेटवर्क की विश्वसनीयता बनाए रख सके। यह सेवा रोकने का मुख्य कारण एयर इंडिया के बेड़े में विमान की अस्थायी कमी है। एयर इंडिया ने पिछले महीने 26 बोइंग 787-8 विमानों का रीफिटिंग (नई सजावट और सुविधाएं) कार्यक्रम शुरू किया है। इस बड़े बदलाव का मकसद यात्रियों को बेहतर अनुभव देना है, लेकिन इसके कारण कई विमान लंबे समय तक सेवा से बाहर रहेंगे। यह प्रक्रिया 2026 के अंत तक जारी रहेगी।
इसके अलावा, पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र के अब भी बंद होने से लंबी दूरी की उड़ानों का रूट लंबा और जटिल हो गया है, जिससे संचालन में और दिक्कतें आ रही हैं। जिन यात्रियों ने 1 सितंबर 2025 के बाद वॉशिंगटन डीसी के लिए एयर इंडिया से टिकट बुक किए हैं, उन्हें एयर इंडिया की तरफ से संपर्क किया जाएगा। उन्हें अन्य विकल्प दिए जाएंगे, जिसमें दूसरी उड़ानों पर बुकिंग या पूरा रिफंड जैसा ऑप्शन शामिल है।
एयर इंडिया वॉशिंगटन डीसी के लिए सीधी उड़ान बंद कर रही है, लेकिन यात्री अब भी एयर इंडिया के चार अमेरिकी गेटवे (न्यूयॉर्क, नेवार्क, शिकागो और सैन फ्रांसिस्को) से एक स्टॉप के साथ यात्रा कर सकते हैं। इन रूट्स पर एयर इंडिया की साझेदारी अलास्का एयरलाइंस, यूनाइटेड एयरलाइंस और डेल्टा एयर लाइंस के साथ है, जिससे यात्रियों को एक ही टिकट और सीधे गंतव्य तक चेक-इन बैगेज की सुविधा मिलेगी।
एयर इंडिया अब भी भारत और उत्तरी अमेरिका के छह शहरों के बीच सीधी उड़ानें जारी रखेगी, जिनमें कनाडा के टोरंटो और वैंकूवर भी शामिल हैं। एयर इंडिया ग्रुप में एयर इंडिया (फुल-सर्विस इंटरनेशनल एयरलाइन) और एयर इंडिया एक्सप्रेस (लो-कॉस्ट रीजनल एयरलाइन) शामिल हैं। इसकी शुरुआत 1932 में जेआरडी टाटा ने की थी।