-लगा शहरों में शराब-मांस की बिक्री पर प्रतिबंध
श्री आनंदपुर साहिब। मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसले में अमृतसर शहर के आंतरिक हिस्से (वॉल्ड सिटी), तलवंडी साबो और श्री अनंदपुर साहिब, जहां तख्त साहिबान स्थित हैं, को पवित्र शहर का दर्जा देने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने कहा कि दशकों से श्रद्धालु लोग इन शहरों को पवित्र शहर का दर्जा देने की मांग कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सिखों के पांच तख्त साहिबान हैं, जिनमें से तीन तख्त – श्री अकाल तख्त साहिब (अमृतसर), तख्त श्री दमदमा साहिब (तलवंडी साबो, बठिंडा) और तख्त श्री केसगढ़ साहिब (श्री आनंदपुर साहिब) पंजाब में स्थित हैं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस को समर्पित समारोहों के दौरान श्री आनंदपुर साहिब की पवित्र धरती पर पंजाब विधानसभा का यह विशेष सत्र आयोजित किया जा रहा है। मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और आप के राष्ट्रीय संयोजक ने कहा कि महान सिख गुरुओं ने हमेशा सर्व कल्याण के आदर्श को कायम रखा है। उन्होंने कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर जी ने मानव अधिकारों की रक्षा के लिए महान बलिदान दिया।भगवंत सिंह मान ने कहा कि लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांग को ध्यान में रखते हुए और पंजाब विधानसभा के इस सत्र को इतिहास में स्थायी रूप से यादगार बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने इन शहरों को पंजाब के पवित्र शहर घोषित किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि श्रद्धालुओं की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करते हुए इन शहरों में मांस, शराब, तंबाकू और अन्य नशीले पदार्थों की बिक्री एवं उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। उन्होंने कहा कि ये शहर केवल धार्मिक आस्था के केंद्र ही नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक भी हैं। इसलिए यह मांग किसी एक राजनीतिक पार्टी, समुदाय या धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत की संरक्षा और इसके वैश्विक प्रसार की दिशा में आवश्यक कदम है।
पंजाब के तीन तख्त साहिब वाले स्थान पवित्र शहर घोषित
संकल्प सिद्धि : अयोध्या में राम मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण
अयोध्या । अयोध्या में राम मंदिर के शिखर पर भगवा ध्वज फहराकर पीएम मोदी ने सदियों पुराने सपने के साकार होने और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का उद्घोष किया, इसे संघर्ष से विजय और सामूहिक भागीदारी का प्रतीक बताया। यह ध्वज भारतीय सभ्यता के पुनरुत्थान और रामराज्य के आदर्शों को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का संदेश देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के 191 फुट ऊँचे शिखर पर औपचारिक रूप से भगवा ध्वज फहराया, जो मंदिर निर्माण के पूरा होने का प्रतीक है। इस समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज अयोध्या नगरी भारत की सांस्कृतिक चेतना के एक और उत्कर्ष बिंदु की साक्षी बन रही है। आज संपूर्ण भारत, संपूर्ण विश्व राममय है। हर रामभक्त के हृदय में अद्वितीय संतोष है, असीम कृतज्ञता है, अपार, अलौकिक आनंद है।
मोदी ने कहा कि सदियों के घाव भर रहे हैं। सदियों की वेदना आज विराम पा रही है। सदियों का संकल्प आज सिद्धि को प्राप्त हो रहा है। आज उस यज्ञ की पूर्णाहुति है, जिसकी अग्नि 500 वर्ष तक प्रज्वलित रही। जो यज्ञ एक पल भी आस्था से डिगा नहीं, एक पल भी विश्वास से टूटा नहीं। उन्होंने कहा कि आज भगवान श्रीराम के गृभगृह की अनंत ऊर्जा, श्रीराम परिवार का दिव्य प्रताप, इस धर्मध्वजा के रूप में इस दिव्यतम, भव्यतम मंदिर में प्रतिष्ठापित हुआ है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह धर्म ध्वज संकल्प का प्रतीक है। यह धर्म ध्वज संघर्ष से उत्पन्न विजय की गाथा है। यह धर्म ध्वज सदियों से संजोए गए स्वप्न का साकार रूप है। यह संतों की भक्ति और समाज की सामूहिक भागीदारी का पावन परिणाम है। आने वाली सदियों और सहस्राब्दियों तक, यह धर्म ध्वज भगवान राम के आदर्शों और सिद्धांतों का उद्घोष करता रहेगा। ये धर्मध्वजा केवल एक ध्वजा नहीं, ये भारतीय सभ्यता के पुनर्जागरण का ध्वज है। इसका भगवा रंग, इसपर रचित सूर्यवंश की ख्याति, वर्णित ॐ शब्द और अंकित कोविदार वृक्ष रामराज्य की कीर्ति को प्रतिरूपित करता है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि ये ध्वज…संकल्प है, सफलता है! ये ध्वज…संघर्ष से सृजन की गाथा है, सदियों से चले आ रहे स्वप्नों का साकार स्वरूप है। ये ध्वज…संतों की साधना और समाज की सहभागिता की सार्थक परिणीति है। उन्होंने कहा कि ये धर्मध्वज प्रेरणा बनेगा कि प्राण जाए, पर वचन न जाए अर्थात जो कहा जाए, वही किया जाए। ये धर्मध्वज संदेश देगा – कर्मप्रधान विश्व रचि राखा अर्थात विश्व में कर्म और कर्तव्य की प्रधानता हो। ये धर्मध्वज कामना करेगा – बैर न बिग्रह आस न त्रासा, सुखमय ताहि सदा सब आसा यानी भेदभाव, पीड़ा, परेशानी से मुक्ति और समाज में शांति एवं सुख हो।
भारत को सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक बनाने वाले श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन
भारत को श्वेत क्रांति के जरिए दुनिया में दुग्ध उत्पादन में पहले पायदान पर पहुंचाने वाले और अमूल के संस्थापक डॉ.वर्गीज कुरियन जन्मदिन ‘नेशनल मिल्क डे’ के रूप में मनाया जाता है। ‘मिल्कमैन ऑफ इंडिया’ नाम से प्रसिद्ध कुरियन ने ‘ऑपरेशन फ्लड’ के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाया और लाखों किसानों को आत्मनिर्भरता का मार्ग दिखाया। डॉ. वर्गीज कुरियन का जन्म 26 नवंबर 1921 को केरल के कोझिकोड में एक समृद्ध सिरियन ईसाई परिवार में हुआ था। उनके पिता सरकारी सर्जन थे। उन्होंने 1940 में चेन्नई के लोयोला कॉलेज से स्नातक और 1943 में गिंडी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। 1948 में मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी, अमेरिका से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया, जहां उन्होंने डेयरी इंजीनियरिंग को सहायक विषय के रूप में पढ़ा।
1949 में भारत लौटने पर सरकार के साथ हुए बांड की अवधि को पूरा करने के लिए उन्हें गुजरात के आनंद में डेयरी डिवीजन में भेजा। यहीं उनकी मुलाकात त्रिभुवनदास पटेल से हुई, जो किसानों को एकजुट कर दूध सहकारी समितियों की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे थे।
कुरियन ने त्रिभुवनदास के साथ मिलकर 1946 में कैरा डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड (केडीसीएमपीयूएल) की स्थापना की, जो बाद में ‘अमूल’ बना।
उनके मित्र एच.एम. दयाला ने भैंस के दूध से मिल्क पाउडर और कंडेंस्ड मिल्क बनाने की तकनीक विकसित की, जिसने भारतीय डेयरी उद्योग को क्रांतिकारी बदलाव दिया। पहले केवल गाय के दूध से ये उत्पाद बनाए जाते थे। इस इनोवेशन ने भारत को दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कुरियन के आनंद मॉडल को देखते हुए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की स्थापना की और कुरियन को इसका पहला अध्यक्ष नियुक्त किया। 1970 में शुरू हुए ‘ऑपरेशन फ्लड’ ने भारत के दूध उत्पादन को 1968-69 में 23.3 मिलियन टन से 2006-07 में 100.9 मिलियन टन तक बढ़ाया। 25 वर्षों में 1700 करोड़ रुपए के निवेश से यह कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा डेयरी विकास कार्यक्रम बना। 1998 में भारत ने अमेरिका को पीछे छोड़कर विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बनने का गौरव हासिल किया।
कुरियन ने सहकारी मॉडल के जरिए किसानों को सशक्त किया, उन्हें प्रोडक्शन, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग का नियंत्रण दिया। इससे ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा मिला और विशेष रूप से महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई। 75 मिलियन से अधिक महिलाएं डेयरी कार्य से जुड़ीं। कुरियन ने नेशनल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन और इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आनंद जैसे संस्थानों की स्थापना की। उनकी पुस्तक ‘आई टू हैड अ ड्रीम’ और श्याम बेनेगल की फिल्म ‘मंथन’, जिसे 5 लाख किसानों ने 2 रुपए दान देकर फंड किया, उनकी उपलब्धियों को दर्शाती है।
कुरियन को 1963 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, 1989 में वर्ल्ड फूड प्राइज और 1999 में पद्म विभूषण सहित कई सम्मान मिले। उन्होंने 9 सितंबर 2012 को 90 वर्ष की आयु में गुजरात के नडियाद में अपनी अंतिम सांस ली।
हेरिटेज लॉ कॉलेज में कॉनकर्ड 2025 में पहुंचे कानून क्षेत्र के दिग्गज
कोलकाता | हेरिटेज लॉ कॉलेज ने शुक्रवार, 21 नवंबर, 2025 को स्वामी विवेकानंद ऑडिटोरियम में बी.ए. एलएलबी.प्रोग्राम (2025–2030) के 11वें बैच के लिए स्टूडेंट्स इंडक्शन प्रोग्राम, कॉनकर्ड 2025 का उद्घाटन सेशन सफलतापूर्वक आयोजित किया। इस कार्यक्रम में भारत के सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज, माननीय जस्टिस इंदिरा बनर्जी चीफ गेस्ट के तौर पर शामिल हुईं। अपने प्रेरणा देने वाले भाषण में, उन्होंने कानूनी पेशे की महानता पर ज़ोर दिया और भविष्य के वकीलों से अपने आगे के सफर में संवैधानिक मूल्यों, तर्क और नैतिक व्यवहार को बनाए रखने का आग्रह किया। मुख्य भाषण राज्य के एडवोकेट जनरल जयंत मित्रा ने दिया। उन्होंने स्टूडेंट्स को कानूनी सेवा में ज़िंदगी भर सीखने, एनालिटिकल सोच और बिना किसी समझौते के ईमानदारी के लिए खुद को समर्पित करने के लिए प्रेरित किया। प्रोग्राम में खास प्रधान अतिथि मिस्टर अमिताभ मित्रा (पार्टनर, सिन्हा एंड कंपनी) और मिस्टर शुभोजीत रॉय (पार्टनर, विक्टर मोसेस एंड कंपनी) भी मौजूद थे, जिन्होंने बदलते लीगल इकोसिस्टम, कोर्टरूम एक्सपीरियंस और स्टूडेंट्स के लिए इंतज़ार कर रहे प्रोफेशनल मौकों पर कीमती बातें शेयर कीं। 11वें आने वाले बैच का स्वागत करते हुए, इंस्टीट्यूशन के प्रिंसिपल, प्रो. एस.एस. चटर्जी ने हेरिटेज लॉ कॉलेज के एकेडमिक एक्सीलेंस, इंडस्ट्री रेडीनेस और कैरेक्टर बिल्डिंग के लिए कमिटमेंट पर ज़ोर दिया। सेशन को हेरिटेज के डायरेक्टर मिस्टर प्रोबीर रॉय, हेरिटेज के सीईओ पी.के. अग्रवाल और हेरिटेज के सीनियर डायरेक्टर-एजुकेशन प्रो. बासब चौधरी ने भी एड्रेस किया। हेरिटेज ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशंस के सीईओ पी.के. अग्रवाल ने कहा, ” कॉनकर्ड 2025 का मकसद विद्यार्थियों को गाइडेंस, एकेडमिक ओरिएंटेशन और लीगल फ्रेटरनिटी के जाने-माने सदस्यों के साथ इंटरेक्शन देना है, क्योंकि वे लीगल एजुकेशन में अपनी यात्रा शुरू कर रहे हैं।” उद्घाटन सत्र एक परिचर्चा व समापन धन्यवाद ज्ञापन से हुआ जिससे नए अकादमिक वर्ष की यादगार शुरुआत हुई।
एचआईटीके के पूर्व विद्यार्थी ने जीता एजुकेशन स्टार्टअप अवार्ड
कोलकाता । हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, कोलकाता गर्व से अनाउंस करता है कि उसके पुराने स्टूडेंट सौविक घोष, जो डिपार्टमेंट ऑफ़ एप्लाइड इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग से हैं, ने एक शानदार ग्लोबल माइलस्टोन हासिल किया है। उनके स्टार्टअप, कॉग्निटी, जिसे गुरुग्राम की इनोवेटर्स झिलिका त्रिसाल (शूलिनी यूनिवर्सिटी की पुरानी स्टूडेंट) और रायपुर की फाल्गुनी श्रीवास्तव (शूलिनी यूनिवर्सिटी की पुरानी स्टूडेंट) के साथ मिलकर शुरू किया गया था, ने द बिसेस्टर कलेक्शन द्वारा दिया जाने वाला मशहूर $100,000 का अनलॉक हर फ्यूचर प्राइज़ 2025 जीता है।
40 से ज्यादा देशों में 2,900 से ज़्यादा एप्लीकेशन में से चुने गए, कॉग्निटी को पब्लिक स्पेशल एजुकेशन सिस्टम को मज़बूत करने के मकसद से एआई से चलने वाला प्लेटफॉर्म डेवलप करने के लिए छह इंटरनेशनल विनर्स में से एक चुना गया। यह प्लेटफ़ॉर्म शुरुआती स्क्रीनिंग टूल, लर्निंग सिस्टम, एजुकेटर को-पायलट और पॉलिसी डैशबोर्ड को जोड़ता है—जो भारत के डिसेबिलिटी आइडेंटिफिकेशन और इनक्लूजन फ्रेमवर्क में ज़रूरी कमियों को पूरा करता है। कॉगनीटि शुरू करने से पहले, सौविक ने कई असरदार एआई एप्लिकेशन डेवलप किए, जिनमें महिलाओं की सुरक्षा और दिल की बीमारी का अनुमान लगाने के टूल शामिल हैं, जो टेक्नोलॉजी के ज़रिए समाज की भलाई के लिए लगातार कमिटमेंट दिखाते हैं। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और केरल में पहले से ही पायलट चल रहे हैं, कॉगनीटि डिसेबिलिटी प्रिवेलेंस ट्रैकिंग, इनक्लूजन आउटकम और बजट के इस्तेमाल को बेहतर बनाने के लिए राज्य सिस्टम के साथ मिलकर काम कर रहा है। $100 के का अवॉर्ड गहरी सरकारी पार्टनरशिप को सपोर्ट करेगा और भारत की पहली नेशनल डिसेबिलिटी डेटा लेयर बनाने में तेज़ी लाएगा।
शौभिक ने कहा, “यह पहचान न सिर्फ़ कॉगनीटि के लिए बल्कि उन लाखों बच्चों के लिए भी एक बहुत बड़ा पल है जो मेनस्ट्रीम सिस्टम में नज़र नहीं आते।” हेरिटेज ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशंस, कोलकाता के सीईओ प्रदीप अग्रवाल ने कहा कि “शौभिक घोष की यह कामयाबी हेरिटेज की असली भावना को दिखाती है — जहाँ इनोवेशन मकसद से मिलता है। ऐसे समय में जब भारत एआई और डिजिटल एजुकेशन में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, कॉग्निटी की ग्लोबल पहचान दिखाती है कि टेक्नोलॉजी कैसे ज़मीनी स्तर पर लोगों की ज़िंदगी बदल सकती है। हमें सौविक के सफ़र, सोशल इम्पैक्ट के लिए उनके कमिटमेंट और सबको साथ लेकर चलने वाली एजुकेशन के उनके विज़न पर बहुत गर्व है। यह ग्लोबल जीत सिर्फ़ उनके लिए ही एक मील का पत्थर नहीं है, बल्कि हमारे देश के हर युवा इंजीनियर और इनोवेटर के लिए एक प्रेरणा है।” ।
देविका, वह बहादुर बच्ची जिसकी गवाही पर हुई थी कसाब को फांसी
मुंबई में 18 जवानों और 166 निर्दोष लोगों की जान लेने वाले पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब तो फांसी पर टंग गया, मगर जाते-जाते उसने बांद्रा के गर्वमेंट कॉलोनी में रहने वाली 19 वर्षीय देविका रोटवानी की जिंदगी को बदल कर रख दी। देविका ही वह मुख्य गवाह हैं, जिनकी गवाही को अदालत ने मान्य किया और कसाब को फांसी की सजा सुनाई।2006 में मां को खो चुकी देविका तब मात्र नौ साल की थी, जब उसने कसाब को आंखों के सामने सीएसटी स्टेशन पर खून की होली खेलते हुए देखा था। देविका बताती हैं, ‘आंतकी कसाब ने मेरी जिंदगी बदल कर रख दी है। दुनिया हमें कसाब की बेटी तक कहने लगी, जो मुझे बहुत बुरा लगता है।’देविका बताती हैं, ‘उस शाम मैं अपने पिता नटवरलाल रोटवानी और छोटे भाई जयेश के साथ बड़े भाई भरत से पुणे मिलने जा रही थी। हमलोग सीएसटी के प्लैटफॉर्म 12 पर खड़े होकर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। अचानक लोगों के चीखने, चिल्लाने और भागो-भागो की आवाजें आने लगीं। बीच-बीच में गोलियों की तेज आवाजें और धमाके सुनाई देने लगे। पिता ने मेरा हाथ पकड़ा और भीड़ के साथ भागने की कोशिश करने लगे। मगर अचानक मुझे गोली लगी और मैं वहीं गिर पड़ी।’वह कहती हैं, ‘जब आंखें खुलीं, सामने एक व्यक्ति को हंसते हुए लोगों पर गोलियां चलाते हुए देखा। वह कसाब था, जो अंधाधुंध गोलियां बरसा रहा था। कुछ देर बाद मैं फिर बेहोश हो गई और होश आने पर खुद को पहले कामा और बाद में जेजे अस्पताल में पाया। सौभाग्य से पिता और भाई को गोली नहीं लगी थी। मगर, जेजे अस्पताल में ढाई महीने तक चले इलाज के दौरान मेरे साथ-साथ दूसरे जख्मियों के ड्रेसिंग बदलने के चक्कर में भाई बीमार हो गया। उसके गले में संक्रमण हो गया, जबकि मेरे पैरों की छह बार सर्जरी करानी पड़ी। थोड़ा सामान्य होने पर हमलोग मुंबई से राजस्थान चले गए।’

बकौल देविका, ‘अचानक एक दिन मुंबई पुलिस का फोन आया कि आप कसाब के खिलाफ अदालत में गवाही देंगी? पहले तो उस आतंकी का खौफनाक चेहरा आंखों के सामने आते ही मैं सहम गई, मगर उसकी बर्बरता और खूंखार हंसी से लबरेज गोलीबारी ने हौसला बढ़ा दिया। मैंने गवाही देने के लिए हामी भर दीं। वैसाखी के सहारे में अदालत में पहुंची, जहां मेरे सामने तीन लोगों को पहचान के लिए लाया गया। उनमें से एक कसाब भी था। मैं जज के सामने उसको पहचान गई। दिल तो किया की वैसाखी उठाकर उस पर हमला कर दूं, मगर चाहकर भी कर नहीं पाई।’कसाब पर गवाही देने के बाद देविका का जीवन बदल गया। वह कहती हैं, ‘कसाब की पहचान लिए जाने की बातें जब मीडिया से होते हुए रिश्तेदारों और पड़ोसियों तक पहुंचीं, तो सब का रवैया बदल गया। मेवे के कारोबारी पिता को होलसेलरों ने माल (मेवा) देना बंद कर दिया। स्कूल वालों में मेरा नाम काट दिया। पड़ोसियों ने दूरी बना ली। कर्जा देने को कोई तैयार नहीं था। लोगों को डर था कि कहीं आंतकवादी उनके घरों, दुकानों या रिश्तेदारों पर हमला न कर दें। मेरी हालत गुनहगार जैसी हो गई, मगर पिता और भाई ने मेरा हौसला बढ़ाए रखा, क्योंकि मैं देश के लिए काम कर रही थीं। एक एनजीओ की मदद से सातवीं में दाखिला मिल गया।’मुंबई आतंकवादी हमले की एक चश्मदीद गवाह, देविका रोटवान, को 17 साल बाद आवास मिल गया है. देविका को 2008 के हमले में आतंकवादी अजमल कसाब ने गोली मारी थी. उन्होंने कसाब की अदालत में पहचान की थी जिससे उसे फांसी की सजा हुई थी लेकिन देविका को अपना घर पाने के लिए 17 साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। 2011 में उन्हें शुरुआती तौर पर घर आवंटित किया गया था, लेकिन बाद में यह जानकारी गलत पाई गई। 2020 में उन्होंने सरकार के खिलाफ याचिका दायर की और 2024 में आखिरकार उन्हें अंधेरी वेस्ट, मुंबई में एक घर आवंटित किया गया। यह घर आवंटन उनके लिए एक बड़ी जीत है और वर्षों के संघर्ष का फल है।
एक ही मतदाता के दस -दस पिता, चुनावी गड़बड़ी से परेशान बीएलओ
कोलकाता । पश्चिम बंगाल में चल रहे वोटर लिस्ट के विशेष सघन पुनरीक्षण यानी एसआईआर मुहिम के दौरान एक बेहद चौंकाने वाला विवाद सामने आया है। ब्लॉक लेवल ऑफिसर (बीएलओ) एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि कई लोग वोटर लिस्ट में शामिल होने के लिए ऐसे दस्तावेज़ जमा कर रहे हैं, जिनसे वे अंजान लोगों को अपना पिता या परिवार के सदस्य साबित कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि इस प्रक्रिया में एक ही व्यक्ति के नाम को 10–10 लोगों का पिता दिखाया जा रहा है। संगठन का कहना है कि यह सीधा चुनावी हेरफेर का मामला है और इससे भविष्य में वोटर लिस्ट की विश्वसनीयता पर गहरा खतरा पैदा हो सकता है।
इस मामले को लेकर बीएलओ एसोसिएशन ने पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को एक विस्तृत पत्र भेजा है। पत्र में बताया गया है कि खास तौर से बॉर्डर के ज़िलों में यह गड़बड़ी ज़्यादा देखने को मिल रही है। जिन लोगों का 2002 के रिकॉर्ड से कोई संबंध नहीं है, वे किसी ऐसे वरिष्ठ नागरिक के दस्तावेजों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो पहले से सूची में मौजूद हैं। सिर्फ समान सरनेम और रिकॉर्ड नंबर के आधार पर खुद को उनका बेटा या रिश्तेदार दिखाकर लिंकिंग करा ली जा रही है। इस तरह एक व्यक्ति के नाम के साथ 10 तक लोगों को उसका बेटा बनाया जा रहा है, जिससे पहचान सत्यापन पूरी तरह संदेह के घेरे में आ गया है। बीएलओ एक्या मंच के महासचिव स्वपन मंडल ने कहा कि संगठन ने इसे लेकर चुनाव आयोग को पत्र लिखकर जानकारी दी है। आयोग ने कहा है कि वह इस मामले को एआई की मदद से जांचेगा। लेकिन मंडल का कहना है कि असली समस्या सिर्फ सिस्टम की नहीं, डराने-धमकाने की भी है। उनके अनुसार कई बीएलओ को काम के दौरान धमकियों का सामना करना पड़ रहा है और इस कारण वे शिकायतें दर्ज करने से भी कतरा रहे हैं। पत्र में यह भी लिखा गया है कि एसआईआर के दौरान बीएलओ लगातार भारी दबाव में काम कर रहे है। बीएलओ ऐप में एडिट ऑप्शन हटाए जाने के कारण सुधार करना मुश्किल हो गया है। सर्वर दिनभर बेहद धीमा चलता है और सिर्फ आधी रात के बाद तेज होता है, जिससे कर्मचारियों पर मानसिक दबाव बढ़ रहा है। इसके अलावा अलग-अलग ईआरओ से अलग निर्देश आने के कारण भ्रम की स्थिति बनी रहती है। डिजिटाइजेशन अपडेट दिखाई नहीं दे रहे, मैपिंग में उम्र नहीं मिलने के कारण समस्या हो रही है। संगठन ने इसके साथ मृत और बीमार बीएलओ के लिए मुआवज़े की मांग भी की है। बीएलओ संगठन ने चुनाव आयोग से अपील की है कि इन सभी समस्याओं पर तुरंत कार्रवाई की जाए, क्योंकि अगर फर्जी लिंकिंग और तकनीकी गड़बड़ियों को नहीं रोका गया तो आने वाले चुनावों की पारदर्शिता पर बड़ा असर पड़ सकता है। संगठन का कहना है कि एसआईआर एक संवेदनशील प्रक्रिया है और इसके दौरान सिस्टम तथा मैदान दोनों स्तर पर ज़्यादा जवाबदेही ज़रूरी है। चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया और निर्देशों का इंतज़ार अब पूरे राज्य के बीएलओ कर रहे हैं।
दुनिया को अलविदा कह गये ही मैन धर्मेंद्र
मुंबई । बॉलीवुड से एक बेहद दुखद और मन को झकझोर देने वाली खबर सामने आई है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज अभिनेता और ‘ही-मैन’ के नाम से मशहूर धर्मेंद्र का 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उनकी इस दुनिया से विदाई ने न सिर्फ उनके परिवार, बल्कि पूरे देश और भारतीय सिनेमा को गहरे शोक में डुबो दिया है। बीते कुछ समय से धर्मेंद्र की सेहत लगातार गिर रही थी और वह बढ़ती उम्र से जुड़ी कई समस्याओं से जूझ रहे थे। कुछ दिन पहले उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी हालत बिगड़ने पर परिवार लगातार उनके साथ था। बाद में उन्हें घर ले जाया गया, जहां उनका इलाज चल रहा था। धर्मेंद्र का अंतिम संस्कार पवन हंस श्मशान घाट पर किया गया। उनका पूरा नाम धर्मेंद्र केवल कृष्ण देओल था और उनका जन्म 8 दिसंबर, 1935 को पंजाब के नसरानी गांव में हुआ था। एक छोटे-से गांव से निकलकर भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सितारों में शामिल होने तक का उनका सफर किसी किंवदंती से कम नहीं रहा। धर्मेंद्र के निधन की खबर फैलते ही फिल्म इंडस्ट्री में मातम छा गया। उनके चाहने वाले, साथी कलाकार और दोस्त इस खबर पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। सोशल मीडिया पर हजारों पोस्ट उनके नाम से भरे पड़े हैं, फैंस, सेलेब्रिटीज और फिल्मकार उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। सभी के संदेशों में एक ही बात है, धर्मेंद्र का जाना एक युग का अंत है। उनकी मुस्कुराती तस्वीरें, उनकी भारी-भरकम आवाज, उनका करिश्मा और सादगी, सब अब केवल यादों में रह जाएंगे। कई लोग मानने को तैयार ही नहीं कि बॉलीवुड का ‘ही-मैन’ अब इस दुनिया में नहीं है।धर्मेंद्र का फिल्मी सफर किसी सपने जैसा रहा, एक ऐसा सफर, जिसकी शुरुआत 1960 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ से हुई थी। एक नौजवान, जो सिर्फ कैमरे से नहीं बल्कि दिलों से बात करने के लिए पैदा हुआ था। अगले ही साल वह ‘बॉय फ्रेंड’ में सपोर्टिंग रोल में नजर आए, और वहीं से उनके अंदर का असली सितारा चमकने लगा। उनकी आंखों की मासूमियत, उनकी मुस्कान की सादगी और उनकी भारी आवाज़ का जादू धीरे-धीरे भारतीय सिनेमा पर पूरी तरह छा गया। कुछ ही सालों में धर्मेंद्र ऐसे मुकाम पर पहुंच गए, जहां पहुंचना सिर्फ एक्टरों के बस की बात नहीं, वह सिर्फ मेहनत, जुनून और ईमानदार लगन का नतीजा होता है। लगभग 65 वर्षों तक धर्मेंद्र ने लगातार बड़े पर्दे पर अपनी मौजूदगी का जादू चलाया। यह वह दौर था जब हर साल उनकी किसी न किसी फिल्म का इंतज़ार होता था, और थिएटरों में भीड़ सिर्फ एक नाम की वजह से उमड़ती थी, धर्मेंद्र। उन्होंने रोमांस भी किया तो दिल जीत लिया, कॉमेडी की तो हर डायलॉग पर हंसी गूंज उठी, और जब एक्शन किया तो लोग सीटियां बजाना नहीं रोक पाए। उनकी बहुमुखी प्रतिभा की मिसाल आज भी दी जाती है। धर्मेंद्र की सुपरहिट फिल्मों की सूची इतनी लंबी है कि उसे गिनते-गिनते वक्त लग जाए, लेकिन कुछ फिल्में ऐसी हैं जो भारतीय सिनेमा की रीढ़ बन चुकी हैं। ‘शोले’ (1975) में वीरू बनकर उन्होंने दोस्ती और मस्ती दोनों को एक नए रूप में पेश किया। ‘चुपके-चुपके’ में प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी के किरदार में उनकी कॉमिक टाइमिंग आज भी लोग मिसाल के तौर पर याद करते हैं। ‘सीता और गीता’ (1972), ‘धरमवीर’ (1977), ‘फूल और पत्थर’ (1966), ‘जुगनू’ (1973) और ‘यादों की बारात’ (1973) इन फिल्मों का ज़िक्र किए बिना हिंदी सिनेमा का इतिहास अधूरा है। धर्मेंद्र सिर्फ एक सुपरस्टार नहीं थे, वह दर्शकों की भावनाओं के बेहद करीब थे। उनकी रोमांटिक इमेज ने लड़कियों का दिल जीत लिया, उनकी एक्शन हीरो की छवि ने उन्हें ‘ही-मैन’ बनाया, और उनकी कॉमिक टाइमिंग ने उन्हें हर घर का चेहरा बना दिया। लोग सिर्फ उनकी फिल्में नहीं देखते थे, बल्कि उन्हें अपना मानते थे। स्क्रीन पर धर्मेंद्र का आना मतलब पूरा हॉल तालियों और सीटियों से गूंज उठना और यही स्टारडम की असली परिभाषा है। धर्मेंद्र के चाहने वालों के लिए एक और भावनात्मक पल हाल ही में आया, जब फिल्म ‘इक्कीस’ से उनका नया मोशन पोस्टर जारी किया गया। इस पोस्टर में धर्मेंद्र की आवाज भी सुनाई देती है, जिसने फैंस को भावुक कर दिया है। अगस्त्य नंदा स्टारर यह फिल्म 25 दिसंबर को रिलीज़ होगी और यही धर्मेंद्र की आखिरी फिल्म मानी जा रही है। उनकी आवाज और उनकी मौजूदगी इस फिल्म के ज़रिए फैंस को एक बार फिर उनसे जोड़ देगी।
दैत्य सुदान मंदिर : लोहे से बनी है भगवान विष्णु की मूर्ति
देशभर में भगवान विष्णु के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए जाते हैं। भगवान विष्णु के मंदिरों को आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है, लेकिन महाराष्ट्र के लोणार में भगवान विष्णु का ऐसा रहस्यमयी मंदिर है, जहां अनोखे रूप में भगवान विष्णु विराजमान हैं। ये मंदिर अपने रहस्य और वास्तुकला के लिए जाना जाता है। महाराष्ट्र के लोणार में भगवान विष्णु का दैत्य सुदान मंदिर है। इस मंदिर के निर्माण को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण इसलिए पूरा नहीं हो पाया क्योंकि आक्रमणकारियों ने हमला कर दिया था और मंदिर को ध्वस्त करने की कोशिश की थी, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि मंदिर की संरचना ही ऐसी है कि मंदिर देखने में किसी रहस्य की तरह ही लगता है। हर मंदिर में गुंबद या गोपुरम होता है, लेकिन इस मंदिर के गर्भगृह में छत ही नहीं है। मंदिर के गर्भगृह पर एक गोल बड़ा छेद है। इस छेद से आने वाली सूरज की रोशनी पूरे मंदिर को रोशन करती है और मंदिर में किसी तरह का अंधेरा नहीं रहता है। कुछ खास मौके पर सूरज की रोशनी सीधा भगवान विष्णु के मुख और चरणों पर पड़ती है। जब भी ऐसा मौका आता है, तब मंदिर सूरज की किरणों से जमगमा उठता है। मंदिर में भगवान विष्णु अनोखे रूप में विराजमान हैं। उन्हें किसी दैत्य के ऊपर खड़ा दिखाया गया है। मूर्ति काफी पुरानी है। हालांकि, देखरेख के आभाव में मंदिर और मूर्ति दोनों की हालत जर्जर हो चुकी है।
खास बात ये भी है कि भगवान विष्णु की मूर्ति लोहे से बनाई गई है, लेकिन देखने पर इस बात का पता नहीं लगाया जा सकता है, जब तक मूर्ति को छुआ न जाए। दैत्य सुदान मंदिर की वास्तुकला भी अनोखी है, जहां दीवारों और खंभों पर महाभारत और रामायण के पात्र देखने को मिलते हैं। इसके अलावा, मंदिर के कुछ हिस्सों में कामसूत्र की प्रतिमाएं भी दिख जाती हैं। यह मंदिर चालुक्य वंश के शासनकाल का है, जिसने छठी से बारहवीं शताब्दी के बीच मध्य और दक्षिण भारत पर शासन किया था। बताया जाता है कि मंदिर की मूल मूर्ति विलुप्त हो गई थी, जिसके बाद नागपुर के भोलसे शासकों ने भगवान विष्णु की मूर्ति का निर्माण कराया था।
सर्दियों में इस तरह करें शिशु की देखभाल
नयी दिल्ली। शीत ऋतु का मौसम मां और शिशु दोनों के लिए सावधानी वाला समय होता है। खासकर मां को अपने शिशु के लिए खास देखभाल की आवश्यकता होती है। शीत ऋतु में सिर्फ गर्म कपड़े पहनाकर ही शिशु का ध्यान नहीं रखा जाता, बल्कि कुछ अन्य आयुर्वेदिक तरीकों से शिशु को पोषण भी दिया जा सकता है। आयुर्वेद में माना गया है कि शीत ऋतु के समय बच्चे के स्वभाव में भी परिवर्तन आता है। शिशु थोड़ा चिड़चिड़ा हो जाता है, त्वचा में बहुत रूखापन आ जाता है, बालों में रूसी हो जाती है और नींद भी प्रभावित होती है। ऐसे में शिशु को स्नेह के साथ-साथ गर्माहट और तेल मालिश की जरूरत होती है। आयुर्वेद में शिशु अभ्यंग को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इसके लिए एक दिन छोड़कर बादाम (जो कड़वा न हो) के तेल से बच्चे की मालिश करनी चाहिए। पहले सिर, फिर हाथ, उसके बाद पैर, छाती और पीठ की मालिश करनी चाहिए। ये मालिश करने का एक सही तरीका है। ऐसा करने से शिशु के शरीर में रक्त संचार बढ़ता है, हड्डियों को पोषण मिलता है, और शरीर को गर्माहट भी मिलती है। मालिश करने के बाद शिशु को सूती कपड़े में या तौलिये में लपेटें और धूप दिखाना न भूलें। शीत ऋतु में शिशुओं के सिर पर रूखापन जम जाता है जो स्कैल्प से बुरी तरीके से चिपक जाता है। ऐसे में हफ्ते में दो बार शिशु के सिर पर गुनगुने तेल से मालिश जरूर करें और हल्के हाथ से रूसी को हटाने की कोशिश करें। ऐसा करने से शिशु को आराम मिलेगा और उसे अच्छे से नींद भी आएगी। अभ्यंग के तुरंत बाद शिशु को कभी नहीं नहलाना चाहिए।
तकरीबन आधे घंटे बाद शिशु को हमेशा हल्के गुनगुने पानी से सौम्यता के साथ नहलाना चाहिए, जिसके बाद शिशु को पहले सूती कपड़े पहनाएं और फिर बाद में सर्दी के ऊनी कपड़े पहनाएं। शिशु की त्वचा बहुत कोमल होती है। ऊनी या गर्म कपड़े उनकी त्वचा पर खुजली की समस्या कर सकते हैं। शिशु की मानसिक और शारीरिक वृद्धि के लिए नींद बहुत जरूरी है। मालिश और नहाने के बाद शिशु को अच्छी नींद आती है। ऐसे में मालिश के बाद माताएं बच्चों को स्तनपान जरूर कराएं। साथ ही जब शिशु सो जाए तो उसके तलवों पर गुनगुना घी जरूर लगाएं, इससे शिशु के शरीर में गर्माहट बनी रहेगी और तलवे भी कोमल रहेंगे।





