नयी दिल्ली। केंद्र सरकार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) की विश्वसनीयता, सटीकता और गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार लाने के उद्देश्य से खुदरा महंगाई की गणना में ऑनलाइन स्रोतों के साथ-साथ ई-कॉमर्स मंच को भी शामिल करेगी। सीपीआई की नई श्रृंखला के आंकड़े 12 फरवरी को जारी किए जाने की संभावना है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) ने मंगलवार को नई दिल्ली के भारत मंडपम में सीपीआई, जीडीपी और आईआईपी के आधार में वर्ष संशोधन पर दूसरी परामर्श कार्यशाला का आयोजन किया। इसमें मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. वी. अनंत नागेश्वरन, नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन के. बेरी और मंत्रालय के सचिव डॉ. सौरभ गर्ग, सचिव, एन. के. संतोषी, महानिदेशक (केंद्रीय सांख्यिकी), उद्योग, शिक्षा जगत, अनुसंधान संस्थानों और नीति निर्माण निकायों के अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए। मंत्रालय ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में नए आंकड़ा स्रोतों को शामिल करने के संबंध में कहा कि वर्तमान श्रृंखला में भौतिक दुकानों से एकत्र किए जा रहे आंकड़ों के अतिरिक्त 25 लाख से अधिक आबादी वाले 12 चयनित शहरों में ई-कॉमर्स मंच से भी कीमत आंकड़े प्राप्त की जाएंगी। रेल किराया के लिए रेलवे, ईंधन की कीमतों के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय और डाक शुल्क के लिए डाक विभाग के साथ समन्वय में प्रशासनिक आंकड़े प्राप्त करने के भी प्रयास किए जाएंगे। एमओएसपीआई ने बताया कि हवाई किराये, दूरसंचार सेवाओं और ओटीटी (ओवर द टॉप) मंच के लिए, वेब-आधारित तरीकों का उपयोग करके ऑनलाइन स्रोतों से मूल्य आंकड़े संकलित करने का प्रस्ताव है। मंत्रालय के अनुसार इन वैकल्पिक और डिजिटल डेटा स्रोतों को अपनाने से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की प्रतिनिधित्व क्षमता, विश्वसनीयता, सटीकता और समग्र गुणवत्ता में काफी सुधार होने की उम्मीद है। जीडीपी आधार वर्ष संशोधन से नए आंकड़ों के स्रोतों को शामिल करने और संकलन प्रक्रिया कार्यप्रणालीगत सुधारों, मानकों और वर्गीकरणों के अनुरूप बनाने में भी सुविधा होगी। सीपीआई, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणना के लिए आधार वर्षों को संशोधित करने की प्रक्रिया में है। केंद्र सरकार वित्त वर्ष 2022-23 को आधार वर्ष मानकर राष्ट्रीय लेखा संबंधी आंकड़े 27 फरवरी को जारी करेगी, जबकि 2022-23 को आधार वर्ष मानते हुए आईआईपी की नई श्रृंखला के आंकड़े 28 मई को जारी होंगे।
नहीं रहे कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल
रायपुर । हिन्दी के शीर्ष कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया है। वे पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे और इसी अस्पताल में भर्ती थे। वह 88 साल के थे और पिछले कुछ दिनों से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। उन्हें सांस की समस्या के चलते एम्स, रायपुर के क्रिटिकल केयर यूनिट (सीसीयू) में भर्ती कराया गया था। विनोद कुमार शुक्ल के निधन (23 दिसंबर 2025) के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके सम्मान में रायपुर में होने वाले अपने सभी आधिकारिक कार्यक्रमों को रद्द (निरस्त) कर दिया है। बताया गया कि यह फैसला उनकी साहित्यिक विरासत और प्रदेश के लिए उनके योगदान को श्रद्धांजलि देने का एक महत्वपूर्ण कदम है। पिछले ही महीने उन्हें हिन्दी साहित्य के सर्वोच्च सम्मान, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में 1 जनवरी 1937 को जन्मे विनोद कुमार शुक्ल हिन्दी साहित्य में ऐसे लेखक के रूप में प्रतिष्ठित थे जिनकी साहित्यिक आवाज़ दूर-दूर तक सुनाई देती थी। निराशा में आशा का संचार करने वाले कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल साहित्य के इस युग में काव्य धारा को नई दिशा देने वाले हैं। उनकी कविताएं सीधे परेशानियों की जड़ों पर कुठाराघात करती हैं। उन्हें कुरेदती हैं। उनकी कल्पना शक्ति का सीमांकन समीक्षकों के लिए हमेशा एक चुनौती रहा है। उनका पहला कविता-संग्रह ‘लगभग जय हिन्द’ 1971 में प्रकाशित हुआ, जिसके साथ ही उनकी अपने तरह की भाषिक बनावट, चुप्पी और भीतर तक उतरती संवेदनाएँ हिन्दी कविता के परिदृश्य में दर्ज होने लगीं। इसके बाद ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’, ‘अतिरिक्त नहीं’, ‘कविता से लंबी कविता’, ‘आकाश धरती को खटखटाता है’, ‘पचास कविताएँ’, ‘कभी के बाद अभी’, ‘कवि ने कहा’, ‘चुनी हुई कविताएँ’ और ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ जैसे संग्रहों ने उन्हें समकालीन हिन्दी कविता के एक अलग तरह के स्वरों में शामिल कर दिया, जो अपने आप में नयापन और मौलिकता लिए हुए था। कथा-साहित्य में उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज़’ ने 1979 में हिन्दी कहानी और उपन्यास की धारा को एक अलग मोड़ दिया। इस उपन्यास मणि कौल ने फ़िल्म भी बनाई है। आगे चलकर ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’, ‘यासि रासा त’ और ‘एक चुप्पी जगह’ के माध्यम से उन्होंने लोकआख्यान, स्वप्न, स्मृति, मध्यवर्गीय जीवन और मनुष्य की जटिल आकांक्षाओं को एक विशिष्ट कथा-शिल्प में रूपांतरित किया। उनके कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’, ‘महाविद्यालय’, ‘एक कहानी’ और ‘घोड़ा और अन्य कहानियाँ’ जैसे संग्रहों में दर्ज हैं, हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्टता के लिए जाने जाते हैं। उनकी अनेक रचनाएँ भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनूदित हुई हैं। अपनी लंबी रचनात्मक यात्रा में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, हिन्दी गौरव सम्मान, मातृभूमि पुरस्कार, साहित्य अकादमी का महत्तर सदस्य सम्मान और 2023 का पैन-नाबोकोव पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज ने कैंपस फ्रांस सेमिनार का आयोजन
कोलकाता । आप एक भाषा तब तक नहीं समझ सकते जब तक आप कम से कम दो भाषाएँ न समझ लें। यह उक्ति भाषा को सीखने की है जानने की है शिक्षित होने के लिए है। किसी देश से संपर्क करना है तो भाषाई आदान-प्रदान ही संस्कृति को बढ़ावा देना ही होगा। इन्हें मद्देनजर रखते हुए भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज ने कैंपस फ्रांस के द्वारा फ्रांस की भाषा फ्रेंच के विषय में विशेष जानकारी दी ।
फ्रांस में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक छात्रों का मार्गदर्शन करने के लिए, भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज ने कैंपस फ्रांस के सहयोग से 17 दिसंबर 2025 को सोसाइटी हॉल में “एन रूट टू फ्रांस” शीर्षक से एक सेमिनार का आयोजन किया। कॉलेज के वाणिज्य विभाग (मॉर्निंग) के संकाय सदस्य प्रो अतहर जमाल इस कार्यक्रम की पहल थी और माननीय रेक्टर और डीन प्रो दिलीप शाह की अनुमति और समर्थन से फ्रेंच भाषा के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया गया।
सेमिनार का उद्देश्य छात्रों को फ्रांस में अध्ययन के लिए एक स्पष्ट रोडमैप प्रदान करना और भारतीय छात्रों और फ्रांसीसी शैक्षणिक अवसरों के बीच अंतर को पाटना था। सत्र का नेतृत्व फ्रांसीसी भाषा में सहयोग के लिए सुश्री अताशे जूलिया लेग्रोस मार्टिन और सुश्री अनिंदिता मजूमदार ने किया जो
कैंपस फ्रांस मैनेजर, कोलकाता, भारत में फ्रांस के दूतावास के तहत फ्रेंच इंस्टीट्यूट इन इंडिया (आईएफआई) का प्रतिनिधित्व करती हैं।
80 से अधिक छात्रों की भागीदारी के साथ, सेमिनार में अकादमिक पहलुओं , फ्रेंच भाषा सीखने, छात्रवृत्ति, वित्त पोषण के अवसरों को शामिल किया गया और प्रवेश, भाषा बाधाओं और जीवनयापन की लागत से संबंधित आम गलतफहमियों को संबोधित किया गया। फ्रेंच भाषा की वैश्विक प्रासंगिकता और फ्रांस की मजबूत अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया।
डॉ वसुंधरा मिश्र ने जानकारी देते हुए बताया कि कार्यक्रम का समापन एक इंटरैक्टिव प्रश्नोत्तर सत्र के साथ हुआ, जिसके बाद सम्मानित अतिथियों के लिए एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया। कुल मिलाकर, सेमिनार जानकारीपूर्ण और प्रेरक साबित हुआ, जिसने छात्रों को फ्रांस में उच्च शिक्षा की दिशा में अपनी यात्रा शुरू करने के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान की।रिपोर्ट नीलेशा नाथ ने दी।
बंगाल में पिछड़े वर्गों तक सीमित है संस्थागत कर्ज
कोलकाता । बैंकरों की एक संस्था की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग, जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी ) के लोग शामिल हैं, को संस्थागत लोन तक सीमित पहुंच मिल रही है। मौजूदा वित्तीय वर्ष 2025-26 के पहले छह महीनों में, पश्चिम बंगाल में कुल 48,08,752.02 करोड़ रुपये का संस्थागत लोन दिया गया, जिसमें से सिर्फ 29,654.03 करोड़ रुपये सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को दिए गए। आंकड़ों के हिसाब से, इसका मतलब है कि समीक्षाधीन अवधि के दौरान राज्य में दिए गए कुल लोन का सिर्फ छह प्रतिशत ही सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों को मिला। इसी अवधि में ऐसे लोन पाने वालों की संख्या के मामले में, सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व कुल लोन पाने वालों की संख्या के मुकाबले न के बराबर था। समीक्षाधीन अवधि के दौरान, सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के संस्थागत लोन पाने वालों की कुल संख्या 15,12,216 थी, जबकि कुल लोन पाने वालों की संख्या 64,07,678 थी। इसका मतलब है कि सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को मिले संस्थागत लोन की संख्या कुल लोन पाने वालों की संख्या का सिर्फ 23 प्रतिशत थी। यह आंकड़ा पश्चिम बंगाल की स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी (SLBC) की हालिया बैठक में दिया गया, इस कमेटी में राज्य में काम करने वाले बैंकों के साथ-साथ राज्य सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। बैठक का विवरण IANS के पास उपलब्ध है। हालांकि, अच्छी बात यह थी कि 30 सितंबर, 2025 तक पश्चिम बंगाल में क्रेडिट टू डिपॉजिट (CD) अनुपात पिछले वित्तीय वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले काफी बेहतर हुआ। 30 सितंबर, 2025 तक सीडी अनुपात 70.59 प्रतिशत था, जबकि 30 सितंबर, 2024 तक यह 69.88 प्रतिशत था। हालांकि, इसी अवधि में बीरभूम, कोलकाता, मालदा और पुरुलिया जैसे जिलों में सीडी अनुपात में नकारात्मक रुझान देखा गया। पश्चिम बंगाल के पूर्व वित्त मंत्री और राज्य सरकार के मौजूदा मुख्य आर्थिक सलाहकार, अमित मित्रा ने इन जिलों के लीड डिस्ट्रिक्ट मैनेजरों से तुरंत सुधारात्मक उपाय शुरू करने का आग्रह किया।
एसआईआर की मसौदा सूची में 1.4 करोड़ मामले संदिग्ध, बीएलओ को देना होगा जवाब
कोलकाता । भारत निर्वाचन आयोग पश्चिम बंगाल में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआऱ) में लगे बूथ-लेवल अधिकारियों से 16 दिसंबर को जारी हुई ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में संदिग्ध मामलों पर लिखित स्पष्टीकरण लेगा। पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) के ऑफिस के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि निर्वाचन आयोग ने ऐसे लगभग 1.4 करोड़ संदिग्ध मामलों की पहचान की है, जिनमें बीएलओ से लिखित स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। इस मामले पर लिखित बयान में, संबंधित बीएलओ को पहले ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में और बाद में अगले साल 14 फरवरी को पब्लिश होने वाली फाइनल वोटर लिस्ट में उनके नाम शामिल करने की सिफारिश के पीछे का कारण बताना होगा। बीएलओ द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण के आधार पर, ECI तय करेगा कि इनमें से किन संदिग्ध मामलों को दावों और आपत्तियों पर सुनवाई के लिए भेजा जाएगा। दावों और आपत्तियों पर सुनवाई सत्र 27 दिसंबर तक शुरू होने की उम्मीद है। इन संदिग्ध मामलों में ऐसे वोटर शामिल हैं जो 2002 की वोटर लिस्ट में लिस्टेड नहीं थे, जबकि उनकी मौजूदा उम्र 45 या उससे ज़्यादा है, और इसलिए उन्होंने प्रोजेनी मैपिंग के ज़रिए ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल होने के लिए अप्लाई किया था। सीईओ ऑफिस के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा, “पिछली बार पश्चिम बंगाल में एसआईआर 2002 में हुआ था। एक वोटर, जो अभी 45 साल या उससे ज़्यादा उम्र का है, उसका नाम 2002 की लिस्ट में होना चाहिए था, यह देखते हुए कि उस समय वे 18 साल या उससे ज़्यादा उम्र के थे। सवाल यह उठता है कि वे तब वोटर के तौर पर एनरोल क्यों नहीं हुए और इसलिए मौजूदा एसआईआर के दौरान उन्हें प्रोजेनी मैपिंग पर निर्भर रहना पड़ा।”ऐसे संदिग्ध मामलों की दूसरी कैटेगरी उन वोटरों के बारे में है जो 15 साल की उम्र में या उससे भी कम उम्र में पिता बन गए थे। एक ऐसा मामला सामने आया है जहां एक खास वोटर सिर्फ पांच साल की उम्र में पिता बन गया था। ऐसे संदिग्ध मामलों की तीसरी कैटेगरी उन लोगों की है जो सिर्फ 40 साल की उम्र में या उससे भी कम उम्र में दादा बन गए थे। ऐसे संदिग्ध मामलों की चौथी और आखिरी कैटेगरी उन वोटरों की है जिनके मामलों में पिता और माता के नाम एक जैसे हैं। वोटरों की फाइनल लिस्ट 14 फरवरी, 2026 को जारी की जाएगी। इसके तुरंत बाद, निर्वाचन अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान करेगा।
26 दिसम्बर से बढेगा रेलवे का यात्री किराया
नयी दिल्ली । रेलवे ने 26 दिसंबर से अपने यात्री किराए में मामूली बढ़ोतरी की है। नई बढ़ोतरी के तहत 500 किलोमीटर तक नॉन एसी यात्रा के लिए महज 10 रूपये अतिरिक्त देने होंगे। रेलवे का कहना है कि उसकी ऑपरेशन लागत में पिछले 1 साल में ढाई लाख करोड़ से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। इस कमी को पूरा करने के लिए रेलवे एक तरफ माल ढुलाई बढ़ा रहा है और दूसरी ओर यात्री किरायों को बेहतर करने में लगा है। रेल मंत्रालय ने रविवार को इस संबंध में जानकारी साझा की। रेलवे का कहना है कि बढ़ाया गया 26 दिसंबर से प्रभावी होगा। इससे रेलवे को चालू वर्ष में लगभग 600 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय होने की संभावना है। साधारण श्रेणी में 215 किलोमीटर से अधिक दूरी पर यात्रा करने पर 1 पैसा प्रति किलोमीटर की वृद्धि होगी। मेल/एक्सप्रेस नॉन-एसी श्रेणी में 2 पैसे प्रति किलोमीटर की वृद्धि की गई है। एसी श्रेणी में भी 2 पैसे प्रति किलोमीटर की वृद्धि की गई है। नॉन-एसी कोच में 500 किलोमीटर की यात्रा पर यात्रियों को केवल 10 रुपये अतिरिक्त देने होंगे। उपनगरीय सेवाओं और मासिक सीजन टिकट के किराए में कोई वृद्धि नहीं की गई है। साधारण श्रेणी में 215 किलोमीटर तक की यात्रा पर कोई किराया वृद्धि नहीं होगी। मंत्रालय ने कहा है कि पिछले एक दशक में रेलवे ने अपने नेटवर्क और परिचालन का उल्लेखनीय विस्तार किया है। बढ़े हुए परिचालन स्तर और सुरक्षा में सुधार के लिए रेलवे जनशक्ति (मैनपावर) बढ़ा रहा है। इसके परिणामस्वरूप जनशक्ति पर होने वाला खर्च बढ़कर 1,15,000 करोड़ रुपये हो गया है। पेंशन व्यय बढ़कर 60,000 करोड़ रुपये हो गया है। वर्ष 2024-25 में कुल परिचालन लागत बढ़कर 2,63,000 करोड़ रुपये हो गई है। मंत्रालय के मुताबिक जनशक्ति की बढ़ी हुई लागत को पूरा करने के लिए रेलवे अधिक कार्गो लोडिंग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है तथा यात्री किराए में सीमित युक्तिकरण किया गया है। सुरक्षा और परिचालन में सुधार के इन प्रयासों के चलते रेलवे सुरक्षा में उल्लेखनीय सुधार करने में सफल रहा है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा माल परिवहन करने वाला रेलवे नेटवर्क बन गया है। हाल ही में त्योहारी सीजन के दौरान 12,000 से अधिक ट्रेनों का सफल संचालन भी बेहतर परिचालन दक्षता का उदाहरण है। रेलवे अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा करने के लिए आगे भी दक्षता बढ़ाने और लागत को नियंत्रित करने के प्रयास जारी रखेगा।
बंगाल के जंगलमहल में मिला सोने का भंडार
-बहुरेंगे आदिवासी बहुल इलाकों के दिन
कोलकाता। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (जीएसआई) के सर्वे में पश्चिम बंगाल के कई जिलों में संभावित सोने और ज़रूरी मिनरल भंडार की पहचान की गई है। राज्यसभा सांसद शमिक भट्टाचार्य को एक लिखित जवाब में केंद्रीय खनन मंत्रालय ने राज्य में नौ जगहों पर सोने के भंडार की संभावना की पुष्टि की है। पिछले पांच सालों में राज्य के दक्षिणी और पश्चिमी इलाकों में मैपिंग के तहत कीमती मेटल और रेयर अर्थ एलिमेंट पाये जाने के संकेत मिले हैं। पहचानी गई ज़्यादातर सोने की जगहें अभी शुरुआती स्टेज में हैं।
खोज ज़्यादातर पुरुलिया-बांकुड़ा क्षेत्र पर रही है, जो जंगलमहल इलाके का हिस्सा है। यहाँ शुरुआती जांच में सोने वाली चट्टानें मिली हैं। अधिकारियों का कहना है कि ये नतीजे झारखंड के साथ इलाके की जियोलॉजिकल नज़दीकी से मेल खाते हैं, जो अपने मिनरल से भरपूर पठार के लिए जाना जाता है।
सोने के अलावा सर्वे ने राज्य में ज़रूरी मिनरल रिज़र्व की ओर इशारा किया है। पुरुलिया में 17 रेयर अर्थ मिनरल की पहचान हुई है। अकेले ज़िले के कालापत्थर-रघुडीह ब्लॉक में लगभग 0.67 मिलियन टन रेयर अर्थ एलिमेंट्स का रिज़र्व है जो ईवी बैटरी, डिफ़ेंस मैन्युफ़ैक्चरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए ज़रूरी रिसोर्स हैं।
ज्ञात रहे कि 2019 और 2024 के बीच केंद्र ने पश्चिम बंगाल में कम से कम 28 मिनरल तलाश प्रोजेक्ट शुरू किए, जिनके तहत झाड़ग्राम, पश्चिम मिदनापुर, बांकुड़ा और पुरुलिया के अलावा दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के कुछ हिस्सों में मैंगनीज़, टंगस्टन, कॉपर और ग्रेफ़ाइट जैसी चीज़ों को खोजना था। पुरुलिया में चार एपेटाइट ब्लॉक — पंकरीडीह, पुरदाहा, चिरुगोड़ा और मेदनीटांड़ — की पहचान की गई है और उन्हें संभावित नीलामी के लिए तैयार किया जा रहा है।
सूत्र बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में लगभग 12.83 मिलियन टन प्राइमरी गोल्ड ओर है, जो ज़्यादातर पुरुलिया में है। इसमें, अनुमानित गोल्ड मेटल कंटेंट लगभग 0.65 टन (650 kg) है। कर्नाटक की तुलना में इसे लो-ग्रेड माना जाता है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि सोने की मौजूदा कीमतों को देखते हुए यह कमर्शियली महत्वपूर्ण बना हुआ है।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी : ऐसो को उदार हिन्दी जग माहीं..
-गौरव अवस्थी
बोलियों में बंटी हिंदी भाषा को परिमार्जित करके भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा प्रारंभ किए आधुनिक खड़ी बोली हिंदी आंदोलन को सफलता के शिखर पर स्थापित करने में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। अपनी अथक मेहनत के बल पर उन्होंने हिंदी खड़ी बोली में कई संपादक लेखक कवि तैयार किए। आचार्य द्विवेदी को भाषा और व्याकरण में किसी भी तरह की भाषाई अशुद्धि और व्याकरण की अराजकता अस्वीकार थी। हिंदी की इस प्रतिष्ठा के लिए ही अपने समय के प्रतिष्ठित साहित्यकारों से आचार्य द्विवेदी का वाद-विवाद और प्रतिवाद होता रहा। कुछ विवाद तो आधुनिक हिंदी साहित्य में आज भी अमिट हैं। बालमुकुंद गुप्त से अस्थिरता और अनस्थिरता शब्द पर वर्षों चला विवाद हो या नागरी प्रचारिणी सभा की खोजपूर्ण रिपोर्ट को लेकर बाबू श्यामसुंदर दास से हुआ मतभेद या सरस्वती में लेख न छपने पर बीएन शर्मा से हुई लट्ठमलट्ठ। आमतौर पर उनकी छवि कलहप्रिय, क्रोधी, घमंडी और तुनक मिजाज के तौर पर स्थापित करने की समय- समय पर कोशिशें की गईं लेकिन इन विवादों के अंत सौहार्दपूर्ण एवं सौजन्यता के साथ ही हुए। बालमुकुंद गुप्त से चले विवाद का अंत आचार्य के चरणों में सिर रखने से हुआ। आचार्य द्विवेदी ने भी उन्हें गले लगा कर सहृदयता दिखाई।
नागरी प्रचारिणी सभा के काम की आलोचना खोजपूर्ण रिपोर्ट छपने पर बाबू श्यामसुंदर दास से पैदा हुए मतभेद के बाद सभा ने सरस्वती से अपने संबंध समाप्त कर लिए। आचार्य द्विवेदी ने ‘अनुमोदन का अंत’ शीर्षक से लेख लिखा तो सभा के कार्य से बाहर गए पं. केदारनाथ पाठक बहुत नाराज हुए और लौटने पर सीधे कानपुर आचार्य द्विवेदी के पास पहुंचकर अपनी नाराजगी प्रकट की। कोमल हृदय आचार्य द्विवेदी ने उन्हें ससम्मान आसन दिया और घर के अंदर से मिठाई-जल लेकर आए और साथ में एक लाठी भी। शिष्टाचार के बाद उन्होंने पं. पाठक को प्रतिवाद पूरा करने के लिए लाठी देते हुए कहा-‘आपकी लाठी और मेरा सर..’। इस पर पं. पाठक बहुत लज्जित हुए और वह हमेशा के लिए आचार्य जी के भक्त हो गए। इस विवाद का अंत भी श्यामसुंदर दास द्वारा ‘भारत मित्र’ में द्विवेदी जी की उदारता पर लिखे गए लेख के साथ हुआ। सौजन्यता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि बाबू श्याम सुंदर दास द्वारा स्थापित नागरी प्रचारिणी सभा ने आचार्य द्विवेदी के सम्मान में 1933 में ‘अभिनंदन ग्रंथ’ प्रस्तुत किया और आचार्य द्विवेदी ने अपने संपादन से जुड़ी महत्वपूर्ण सामग्री और लाइब्रेरी की हजारों पुस्तकें सभा को ही दान में दीं।
भाषा एवं व्याकरण सुधार के आंदोलन में ऐसे अनेक विवादों के दृष्टांत आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में दर्ज हैं, जिनका पटाक्षेप सौहार्दपूर्ण वातावरण में हुआ। यह इसलिए संभव हुआ कि आचार्य द्विवेदी और संबंधित पक्ष के बीच विवाद के कारण हिंदी भाषा की शुद्धता थी न कि व्यक्तिगत। अपना लेख सरस्वती में न छपने पर बीएन शर्मा ने अवश्य आलोचनापूर्ण लेख में आचार्य द्विवेदी पर व्यक्तिगत आक्षेप किए लेकिन क्षमा प्रार्थना के बाद आचार्य द्विवेदी ने इस विवाद का भी अंत सौजन्यता के साथ कर दिया। ऐसा ही एक प्रकरण महामना पं. मदन मोहन मालवीय के अनुज कृष्णकांत मालवीय के साथ भी हिंदी साहित्य में दर्ज है।
रेलवे की 200 रुपये प्रतिमाह की नौकरी छोड़कर 50 रुपये प्रतिमाह में ‘सरस्वती’ का संपादन स्वीकार करने वाले आचार्य द्विवेदी का इंडियन प्रेस के संस्थापक बाबू चिंतामणि घोष से प्रथम परिचय उनके ही प्रेस से प्रकाशित हिंदी रीडर की कड़ी आलोचना के साथ हुआ था लेकिन फिर भी घोष बाबू ने आचार्य द्विवेदी को सरस्वती का संपादक नियुक्त करना तय किया। उनके संपादक नियुक्त होने पर कुछ साहित्यकारों ने घोष बाबू से कहा कि यह मनुष्य बहुत घमंडी है। तुनुक मिजाज है। इसे संपादक बनाकर बड़ी भूल कर रहे हो। उससे एक दिन भी नहीं पटेगी लेकिन उन्होंने किसी भी आलोचना को कान न देकर आचार्य द्विवेदी को संपादन का दायित्व सौंपा। 18 वर्षों तक सरस्वती के संपादन कार्यकाल में आचार्य द्विवेदी और घोष बाबू में घड़ी भर की अनबन नहीं हुई। सरस्वती के प्रकाशक और सेवक संपादक के बीच के सरस संबंध आज भी मुद्रक-प्रकाशक एवं संपादक के बीच सरस संबंधों का आदर्श उदाहरण है।
बात नवंबर 1905 की है। छतरपुर के राजा ने आचार्य द्विवेदी जी से कहा कि आप प्रतिवर्ष एक अच्छे अंग्रेजी ग्रंथ का अनुवाद किया कीजिए। पारिश्रमिक के रूप में मैं आपको 500 रुपये दिया करूंगा। उन्होंने 1907 में हर्बर्ट स्पेंसर की ‘एजुकेशन’ पुस्तक का अनुवाद ‘शिक्षा’ के नाम से किया और राजा को पत्र लिखा। अपनी बात से मुकरते हुए राजा ने पारिश्रमिक के रूप में केवल 25 रुपये ही देने की बात कही। इस पर नाराज हुए आचार्य द्विवेदी ने राजा को कड़ा पत्र लिखकर अपनी आपत्ति प्रकट करने से परहेज नहीं किया।
जन्म ग्राम दौलतपुर (रायबरेली) की पाठशाला के एक शिक्षक एक पद का गलत अर्थ बता रहे थे। बालक द्विवेदी ने शिक्षक को टोका और सही अर्थ बताया लेकिन शिक्षक अपनी गलती स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। द्विवेदी जी के प्रतिवाद करने पर वह पंडितराज संजीवन के अर्थ को प्रमाणिक मानने को तैयार हुए। तब द्विवेदी जी पंडितराज के घर गए और सही अर्थ लिखाकर लाए। उन्होंने भी द्विवेदी जी के ही अर्थ का समर्थन किया। फिर शिक्षक को बालक द्विवेदी के सामने अपनी गलती स्वीकार ही करनी पड़ी।
दरअसल, बचपन से ही स्वाध्यायी आचार्य द्विवेदी का गलत को गलत कहने का स्वभाव था। गलत को गलत कहने में तनिक भी हिचक न होने का यह स्वभाव आचार्य द्विवेदी में अंतिम समय तक विद्यमान रहा। किसी के आगे झुकना उन्होंने स्वीकार नहीं किया। सामने वाला कोई भी हो या कितना भी बड़ा हो। इसी स्वभाव के बल पर वह आधुनिक हिंदी खड़ी बोली को गद्य और पद्य दोनों की भाषा बनाने में सफल हो सके।
(साभार – हिन्दुस्तान समाचार)
दक्षिण दिनाजपुर से प्राचीन मूर्ति बरामद, पाल युग की होने की संभावना
दक्षिण दिनाजपुर। जिले के तपन ब्लॉक अंतर्गत घाटुल गांव में एक प्राचीन शैल मूर्ति मिली है। मिट्टी के नीचे से बरामद इस मूर्ति को इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से एक अमूल्य धरोहर माना जा रहा है। रविवार को वन विभाग के बालुरघाट रेंज के रेंजर तापस कुंडू ने मौके का निरीक्षण किया। उन्होंने न केवल उस स्थान का जायजा लिया, जहां से मूर्ति बरामद हुई, बल्कि मूर्ति की वर्तमान सुरक्षा व्यवस्था और वनभूमि संरक्षण को लेकर ग्रामीणों के साथ विस्तृत चर्चा भी की। इतिहासकारों की प्रारंभिक जांच के अनुसार, यह मूर्ति 11वीं शताब्दी के पाल वंश काल की कलाशैली का एक अनूठा उदाहरण है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह हिंदू देवता शिव के अत्यंत उग्र और शक्तिशाली स्वरूप ‘कालभैरव’ अथवा ‘अघोर’ देव की एक दुर्लभ प्रतिमा हो सकती है। सरकारी स्तर पर मूर्ति के संरक्षण की प्रक्रिया को लेकर प्रशासन की गतिविधियां तेज हो गई हैं। मूर्ति के मिलने की खबर फैलते ही स्थानीय लोगों में उत्साह और उमंग का माहौल है। ग्रामीणों की मांग है कि जिस स्थान पर मूर्ति मिली है, वहीं एक मंदिर का निर्माण किया जाए। हालांकि, पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का इस मांग को लेकर अलग मत है। प्रख्यात प्रोफेसर एवं शोधकर्ता डॉ. अनिरुद्ध मैत्र ने कहा कि उचित संरक्षण और वैज्ञानिक शोध के हित में इस मूर्ति को तत्काल हेरिटेज सोसाइटी के अंतर्गत लाना आवश्यक है।
श्री शिक्षायतन महाविद्यालय में तृतीय सीताराम जी सेकसरिया स्मृति व्याख्यान
कोलकाता । श्री शिक्षायतन महाविद्यालय द्वारा गत 18 दिसंबर को तृतीय सीताराम जी सेकसरिया स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ परंपरानुसार गणेश वंदना से हुआ जिसे कॉलेज की छात्राओं, एमिलिया बरुआ, अन्वेषा घोष, संपूर्णा घोष ,मोहोना मुख़र्जी, रूपकथा बोस तथा श्रीतमा बोस द्वारा प्रस्तुत किया किया गया l इसके पश्चात महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. तानिया चक्रवर्ती ने सचिव पी. के. शर्मा, हिंदी विभाग की प्राध्यापिकाओं, भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर एकल व्याख्यान हेतु आमंत्रित विशेषज्ञ वक्ता प्रो. हितेंद्र पटेल (अध्यक्ष, पर्यावरण अध्ययन विभाग, रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता ) के साथ दीप प्रज्ज्वलित कर समारोह का विधिवत उद्घाटन किया । स्वागत वक्तव्य में प्राचार्या डॉ. तानिया चक्रवर्ती ने सीताराम जी सेकसरिया के योगदान का स्मरण करते हुए स्मृति व्याख्यानमाला के उद्देश्य एवं उसकी शैक्षणिक प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के अगले चरण में डॉ. रचना पाण्डेय ने सीताराम जी सेकसरिया के जीवन, आदर्शों और मूल्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उनके वक्तव्य से उपस्थित श्रोताओं को यह समझने का अवसर मिला कि किस प्रकार सेकसरिया जी की विरासत आज भी इस शिक्षण संस्था की चेतना और कार्य-दिशा का आधार बनी हुई है। इसके पश्चात हिंदी विभाग की अध्यक्ष अल्पना नायक द्वारा मुख्य वक्ता प्रोफेसर हितेंद्र पटेल का औपचारिक परिचय प्रस्तुत किया गया। प्रोफेसर हितेंद्र पटेल ने भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर गहन विमर्श प्रस्तुत किया। व्याख्यान में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि भारतीय ज्ञान परंपरा पर संवाद इस प्रकार होना चाहिए, जिससे प्राचीन और आधुनिक ज्ञान के बीच लोक-प्रयोजन की दृष्टि से उपयोगी तत्त्वों की पहचान की जा सके। वक्ता ने व्याख्यान के उपरान्त सहमति – असहमति परक टिप्पणियों को बौद्धिक संवाद का स्वाभाविक हिस्सा मानते हुए स्वस्थ विमर्श की आवश्यकता पर बल दिया l कार्यक्रम के अंत में विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापिका, सिंधु मेहता ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए समारोह के समापन की घोषणा की । कार्यक्रम का संचालन कॉलेज की छात्राओं , जयोस्मिता चक्रवर्ती एवं मानसी छेत्री ने कुशलतापूर्वक किया।





