Tuesday, December 30, 2025
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उत्तर बंगाल के चार जिलों में बांग्लादेशी नागरिकों के लिए होटल बंद

सिलीगुड़ी। उत्तर बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में बांग्लादेश के नागरिकों को लेकर नाराजगी अब खुलकर सामने आने लगी है। सिलीगुड़ी, मालदा और कूचबिहार के बाद अब दक्षिण दिनाजपुर के बालुरघाट में भी होटल मालिकों ने बांग्लादेश के नागरिकों को कमरा देने से साफ इनकार कर दिया है। चारों जिलों में होटल के बाहर पोस्टर और फ्लेक्स लगाकर यह संदेश दिया जा रहा है कि देश का अपमान करने वालों के लिए यहां कोई जगह नहीं है।
होटल कारोबारियों का कहना है कि यह फैसला किसी दबाव में नहीं बल्कि देश के सम्मान के लिए लिया गया है। बालुरघाट में कई होटलों के बाहर साफ लिखा गया है कि बांग्लादेशी नागरिकों को यहां कमरा नहीं दिया जाएगा। होटल मालिकों का तर्क है कि अगर कारोबार का नुकसान भी होता है तो वह मंजूर है, लेकिन देश की गरिमा से समझौता नहीं किया जा सकता। इस फैसले से बांग्लादेश के नागरिकों की परेशानी काफी बढ़ गई है। इलाज और अन्य जरूरतों के लिए भारत आने वाले कई लोग सिलीगुड़ी और मालदा में होटल नहीं मिलने के कारण भटकने को मजबूर हैं। बीते तीन दिनों में 10 से ज्यादा बांग्लादेश के नागरिक भारत में दाखिल हुए हैं, लेकिन सिलीगुड़ी में होटल नहीं मिलने पर वे किराये के घर या अन्य अस्थायी ठिकाने तलाश रहे हैं। इस स्थिति को लेकर सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। सिलीगुड़ी पुलिस कमिश्नरेट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि जो लोग वैध तरीके से भारत आए हैं, उन्हें कहीं न कहीं ठहरना ही होगा। मामला संवेदनशील है और पुलिस पूरे हालात पर नजर बनाए हुए है। कूचबिहार में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। जिले के लगभग सभी होटलों के रिसेप्शन पर नोटिस और फ्लेक्स टांग दिए गए हैं, जिनमें बांग्लादेशी नागरिकों को कमरा न देने की बात लिखी है। सीमा क्षेत्र चांगड़ाबांधा के होटलों में भी यही स्थिति है। होटल मालिकों का कहना है कि देश के खिलाफ माहौल बनाने वालों के साथ किसी तरह का व्यवसाय नहीं किया जाएगा। दक्षिण दिनाजपुर के बालुरघाट में इस फैसले को आम लोगों का समर्थन भी मिल रहा है। बताया जा रहा है कि हिली अंतरराष्ट्रीय थल बंदरगाह से आवाजाही भी अब काफी कम हो गई है और रोजाना करीब 100 लोग ही सीमा पार कर रहे हैं। बालुरघाट शहर और आसपास करीब 22 छोटे-बड़े होटल हैं और सभी होटल मालिक इस फैसले पर एकजुट नजर आ रहे हैं। मालदा में स्थिति और भी गंभीर है। वहां बांग्लादेश से आने वाले कई लोग होटल न मिलने के कारण रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर समय काटने को मजबूर हैं। मालदा होटल ओनर्स एसोसिएशन का कहना है कि पहले बांग्लादेश में भारत विरोधी नारेबाजी बंद होनी चाहिए और शांतिपूर्ण माहौल बहाल होना चाहिए, तभी होटल दोबारा खोले जाने पर विचार होगा। वहीं, सीमा पर पहुंचे कुछ बांग्लादेशी पर्यटकों का कहना है कि उनके देश में जो हालात बने हैं, उसके लिए आम नागरिक जिम्मेदार नहीं हैं। इसके बावजूद भारत आकर होटल न मिलने से उन्हें परेशानी हो रही है।

79 हजार करोड़ के रक्षा प्रस्तावों को केंद्र की मंजूरी

नयी दिल्ली। केंद्र सरकार ने तीनों सेनाओं की जरूरतों को देखते हुए हथियार और गोला-बारूद खरीदने के लिए 79 हजार करोड़ रुपये को मंजूरी दी है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में सोमवार को हुई रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की बैठक में लिए गए इन फैसलों से सशस्त्र बलों की परिचालन क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा। जरूरी मंजूरियों में टी-90 मुख्य युद्धक टैंक की मरम्मत करने और एमआई-17 हेलीकॉप्टर के मिड-लाइफ अपग्रेड के प्रस्ताव शामिल हैं, जिनका मकसद ऑपरेशनल तैयारी को बढ़ाने के लिए युद्ध संपत्तियों की सर्विस लाइफ बढ़ाना है। बैठक में आर्टिलरी रेजिमेंट के लिए लॉइटर म्यूनिशन सिस्टम, लो लेवल लाइट वेट रडार, पिनाका मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम के लिए लॉन्ग रेंज गाइडेड रॉकेट एम्युनिशन और ​भारतीय सेना के लिए इंटीग्रेटेड ड्रोन डिटेक्शन एंड इंटरडिक्शन सिस्टम ​एमके-II की खरीद को ​मंजूरी दी गई।​ लॉइटर म्यूनिशन का इस्तेमाल टैक्टिकल टारगेट पर सटीक हमला करने के लिए किया जाएगा, जबकि लो लेवल लाइट वेट रडार छोटे साइज के, कम ऊंचाई पर उड़ने वाले अनमैन्ड एरियल सिस्टम का पता लगा​कर उन्हें ट्रैक करेंगे। लॉन्ग रेंज गाइडेड रॉकेट, हाई वैल्यू टारगेट पर असरदार तरीके से हमला करने के लिए पिनाका रॉकेट सिस्टम की रेंज को बढ़ाएंगे। इंटीग्रेटेड ड्रोन डिटेक्शन एंड इंटरडिक्शन सिस्टम ​एमके-II​ की रेंज​ ज्यादा है, ​जो सेना की जरूरी संपत्तियों की सुरक्षा करेगा। नौसेना के लिए बोलार्ड पुल टग्स, हाई फ्रीक्वेंसी सॉफ़्टवेयर डिफ़ाइंड रेडियो मैनपैक खरीदने और हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग रेंज रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट सिस्टम​ को लीज पर लेने के लिए आवश्यकता की स्वीकृति​ (एओएन) दी गई। बोलार्ड पुल टग्स के शामिल होने से ​नौसेना के ​जहाजों और​ पनडुब्बियों बंदरगाह में पैंतरेबाज़ी​ में मदद मिलेगी।​ यह प्रणाली बोर्डिंग और लैंडिंग ऑपरेशन के दौरान लंबी दूरी के सुरक्षित​ संचार सुविधा को बढ़ाए​गी, जबकि हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग रेंज रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट सिस्टम हिंद महासागर क्षेत्र​ में लगातार खुफिया, निगरानी, टोही और भरोसेमंद समुद्री डोमेन जाग​रुकता​ पक्का करेगा। बैठक ​में वायु सेना के लिए ऑटोमैटिक टेक-ऑफ लैंडिंग रिकॉर्डिंग सिस्टम, एस्ट्रा ​एमके-II मिसाइल, फ़ुल मिशन सिम्युलेटर और स्पाइस-1000 लॉन्ग रेंज गाइडेंस किट वगैरह खरीदने की मंजूरी दी गई। ऑटोमेटिक टेक-ऑफ लैंडिंग रिकॉर्डिंग सिस्टम के आने से एयरोस्पेस सेफ्टी के माहौल में कमी पूरी होगी, क्योंकि इससे लैंडिंग और टेक-ऑफ़ की हाई डेफ़िनिशन ऑल-वेदर ऑटोमैटिक रिकॉर्डिंग मिलेगी। ज़्यादा रेंज वाली एस्ट्रा ​एमके-II मिसाइलें ​लड़ाकू विमानों की मारक क्षमता बढ़ाकर दुश्मन के ​विमानों को बेअसर करने की क्षमता​ बढ़ाएंगी। लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट ​(एलसीए) तेजस के लिए फ़ुल मिशन सिम्युलेटर पायलटों की ट्रेनिंग को किफायती और सुरक्षित तरीके से बढ़ाएगा, जबकि ​स्पाइस-1000 ​भारतीय वायु सेना की ​लंबी दूरी की सटीक स्ट्राइक क्षमता को बढ़ाएगा। ​

अरावली मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले पर रोक लगाई

– केंद्र व संबंधित राज्यों को दी नोटिस
नयी दिल्ली । अरावली खनन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी सोमवार को अपने पुराने फैसले पर रोक लगा दी। ऐसे में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। भूपेंद्र यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले और मुद्दों का अध्ययन करने के लिए एक नई कमेटी बनाने के निर्देशों का स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) सुप्रीम कोर्ट के इस नई समिति को हर जरूरी सहयोग देगा। अपने पोस्ट में मंत्री ने साफ किया कि अभी भी अरावली क्षेत्र में नई खनन लीज देने या पुरानी लीज को नवीनीकरण करने पर पूरी तरह रोक जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि सरकार अरावली पहाड़ियों की सुरक्षा और दोबारा सुधार के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
उधर, कांग्रेस ने भी सोमवार को अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। पार्टी ने केंद्र सरकार और खास तौर पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव पर हमला बोलते हुए उनसे इस्तीफे की मांग की है। कांग्रेस पहले से ही इस नई परिभाषा का विरोध कर रही थी। ऐसे में पार्टी का कहना है कि अगर यह परिभाषा लागू होती, तो अरावली पहाड़ियों को खनन, रियल एस्टेट और अन्य परियोजनाओं के लिए खोल दिया जाता, जिससे पहाड़ों को भारी नुकसान होता। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ‘उम्मीद की एक किरण है। उन्होंने कहा कि अब इस मुद्दे पर और विस्तार से अध्ययन होगा। जयराम रमेश ने यह भी कहा कि इस नई परिभाषा का विरोध पहले ही फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया, सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी भी कर चुकी है। बता दें कि इस अत्यंत संवेदनशील मुद्दे पर विगत 24 दिसंबर को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने नए निर्देश जारी किए थे। इनमें केंद्र सरकार ने कहा है कि नए खनन के लिए मंजूरी देने पर रोक संपूर्ण अरावली क्षेत्र पर लागू रहेगी। इसका उद्देश्य अरावली रेंज की अखंडता को बचाए रखना है। इन निर्देशों का लक्ष्य गुजरात से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक फैली एक सतत भूवैज्ञानिक शृंखला के रूप में अरावली का संरक्षण करना और सभी अनियमित खनन गतिविधियों को रोकना है।

अर्चना संस्था की काव्य गोष्ठी संपन्न

 कोलकाता ।  नए वर्ष 2026 का स्वागत करते हुए अर्चना संस्था ने काव्य गोष्ठी की। आज सारा विश्व तुम्हारा स्वागत कर रहा है/वैसे हर कोई यह भी जानता है कि/ पूर्वजों की तरह /तुम भी पल- पल दिन- दिन /सप्ताह – महीनों के रूप में बीत ही जाओगे-संजू कोठारी और जीवन जीने की कला, नहीं जानते लोग।त्याग और संयम बिना,लग जाते हैं रोग। मानव जीवन श्रेष्ठ है, कहते गुरु श्रुति संत।पाकर तू पहचान ले, जिसका आदि न अंत। ।एवं गीत -कोई गीत गायें चलो गुनगुनायेंं-इंदू चांडक ने सुना कर अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय दिया। कवि रच़ो मात्र रचना तेरी जीवित होगी । सर्वस्व यहां नशवर है सत्य यही साथी इस लिये सत्य की ही‌ धारा में बहना है। बस सृजन कऱो अविराम‌ नही गति को रोको तुमको हीं कालजयी बन करके रहना है।-कवि चिराग ने अपनी रचना द्वारा यह संदेश दिया।
कामना कम हो रही /और कम हो जाएगी
प्रज्ञा, विवेक,जागृति वही काम आएगी ।-प्रसन्न चोपड़ा ने अपनी रचना सुनाई ।कुण्डलिया छंद-1.दुश्मन सुन ले ध्यान से, 2.आगत सुखकर तब बनें, 3..रचना पर लाईक करें, 4.शादी को कहिए जुआ। हिम्मत चोरड़िया ने सुना कर सबका मन मोह लिया।
जीत लेने गई थी, हार लेकर लौटी /रोशन होने गई थी
खुद जलकर लौटी l/लेने से ज्यादा बलवती हुई
देने की चाह /राजा बन गई थी /रंक होकर लौटी l
– भारती मेहता ने सुना कर वाहवाही लूटी ।, झांक रहे हैं खिड़की से सूर्य देव भगवान, हर साल खूबसूरत कैलेंडर कामयाबी की तलाश में आते हैं, राजस्थानी गीत*महानै धोरा रे मेवे री महक प्यारी लागे, इण मोरां रे पैरां री ठुमक प्यारी लागे – – मृदुला कोठारी ने नए वर्ष का स्वागत किया ।सर्द पूस की रात, आज चली पी के द्वार–संगीता चौधरी ने बहुत सुंदर रचना पेश की।
दिसम्बर जा रहा है इस वर्ष की होगी विदाई, नूतन वर्ष के स्वागत में सबने हैं पलकें बिछाई – सुशीला चनानी ने अपने भावों को शब्दों की माला में पिरोया और आने वाले वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं दी।
वसुंधरा मिश्र ने अपनी रचना बावरा मन में आने वाले भविष्य को रेखांकित करते हुए कहा कि मायावी और रहस्यमयी छत /बादलों के बीच कोई घर /भला कोई कैसे टिक सका है?।.. मन बड़ा ही बावरा हुआ जाता है ।
धन्यवाद और कार्यक्रम का संचालन अर्चना संस्था की सक्रिय सदस्या इंदू चांडक ने किया। वसुंधरा मिश्र ने जानकारी दी ।

भवानीपुर कॉलेज में समकालीन शिक्षा में शिक्षा की भूमिका” पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी

कोलकाता । भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज और आई क्यू ए सी सेमिनार का शुभारंभ एक भव्य उद्घाटन सत्र के साथ हुआ जिसमें औपचारिक दीप प्रज्ज्वलन स्वरूप , “वैष्णव जन तो तैने कहिए” की भक्ति धुन और शास्त्रीय नृत्य द्वारा देवी सरस्वती को प्रसाद अर्पित किया गया, ज्ञान और शिक्षा के लिए आशीर्वाद का आह्वान किया गया।
उद्घाटन सत्र प्रतिष्ठित वक्ताओं के ज्ञानवर्धक संबोधनों से समृद्ध हुआ।छात्र मामलों के रेक्टर और डीन, प्रोफेसर दिलीप शाह ने आज दुनिया को आकार देने वाले तेजी से बदलाव और इसके परिणामस्वरूप पद्धतिगत परिवर्तन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।उन्होंने पारंपरिक बाधाओं से परे सीखने को बढ़ावा देने में संस्थान के प्रयासों पर जोर दिया और शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने में एमओयू और एमओआई के माध्यम से अकादमिक सहयोग के महत्व को रेखांकित किया।
कार्यक्रम का आरंभ बीज भाषण तेगा इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष श्री मदन मोहनका द्वारा दिया गया। उन्होंने समानता, समावेशिता और दीर्घकालिक राष्ट्रीय दृष्टि के महत्व पर जोर दिया। 2047 की ओर भारत की यात्रा का जिक्र करते हुए, उन्होंने विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को रखा जो जीडीपी जैसे पारंपरिक आर्थिक संकेतकों से परे हो, जिसमें खुशी और कल्याण जैसे उपाय शामिल हों। उन्होंने राष्ट्र निर्माण में शिक्षा जगत की भूमिका को मजबूत करते हुए नौकरी चाहने वालों के बजाय नौकरी पैदा करने वालों को तैयार करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
सम्मानित अतिथि, इस्कॉन न्यू टाउन के अध्यक्ष एच.जी. आचार्य रत्न दास ने प्रार्थना के साथ अपना संबोधन शुरू किया और वेदों की शिक्षाओं पर विचार किया। उन्होंने स्पष्टता से परिवर्तन और निरंतरता के विरोधाभास पर चर्चा की और कहा कि परिस्थितियाँ विकसित होती हैं, लेकिन मूल मूल्य स्थिर रहते हैं। पारंपरिक शिक्षा से जुड़े बढ़ते तनाव और चिंता पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने ऐसे ज्ञान को “अविद्या” बताया और सच्चे ज्ञान की खोज की वकालत की जो ज्ञान, संतुलन और चरित्र का पोषण करता है।
इस अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का एक महत्वपूर्ण आकर्षण था छह शैक्षणिक संस्थानों के साथ एमओयू की प्रक्रिया करना। एमओयू हस्ताक्षर समारोह सेमिनार का एक ऐतिहासिक कार्यक्रम रहा। छह प्रतिष्ठित संस्थानों, अर्थात् उमेश चंद्र कॉलेज, शिवनाथ शास्त्री कॉलेज, सेठ आनंदराम जयपुरिया कॉलेज, कलकत्ता बिजनेस स्कूल, एनएसएचएम नॉलेज कैंपस और सिटी कॉलेज ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करना था।सभी कॉलेज के प्राचार्य गणों की एकसाथ उपस्थिति शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए एक पहल थी। इन सहयोगों का उद्देश्य अकादमिक आदान-प्रदान, अनुसंधान सहयोग और संस्थागत विकास को बढ़ावा देना है, जो अंतर-संस्थागत साझेदारी को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सेमिनार पहला तकनीकी सत्र, जिसका विषय था “एआई के युग में नवीनतम शिक्षण तकनीक”, एक पैनल चर्चा के रूप में आयोजित किया गया था। सत्र का संचालन सीए अश्विनी बजाज ने किया, जिसमें पैनलिस्ट सीए विवेक अग्रवाल, प्रोफेसर जयदीप सेन, श्री प्रमोद मालू और श्री माइक बीट्टी शामिल रहे।
टाइम्स” का उद्देश्य तेजी से बदलते वैश्विक परिवेश में शैक्षणिक संस्थानों की उभरती जिम्मेदारियों पर विचार-विमर्श करना है ।सेमिनार ने शिक्षाविदों, उद्योग जगत के नेताओं और विचारकों को शिक्षा, प्रौद्योगिकी, संस्कृति और संस्थागत सहयोग पर सार्थक चर्चा में शामिल होने के लिए एक साथ लाया।चर्चा कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में अनुकूलन क्षमता, जिज्ञासा और आलोचनात्मक सोच के महत्व पर केंद्रित थी। पैनलिस्टों ने शिक्षण, सीखने और भर्ती में एआई की भूमिका की जांच की, इसके संभावित लाभों और संभावित सीमाओं दोनों पर प्रकाश डाला। व्यावहारिक कक्षा रणनीतियों, एआई के नैतिक उपयोग और अति-निर्भरता के जोखिमों पर विचार-विमर्श किया गया। फ़ुटबॉल सादृश्य का उपयोग करते हुए, एआई को एक “टीम साथी” के रूप में वर्णित किया गया था जिसे मानवीय निर्णय को प्रतिस्थापित करने के बजाय सहायता करनी चाहिए। सत्र का समापन विभिन्न व्यावसायिक और शैक्षणिक संदर्भों के लिए प्रासंगिक प्रभावी एआई उपकरणों की अंतर्दृष्टि के साथ हुआ।
विभागीय पत्रिका इंकस्पायर”का अनावरण भी किया गया।
तकनीकी सत्रों के बीच, वाणिज्य (प्रभात) विभाग की विभागीय पत्रिका “इंकस्पायर” का औपचारिक रूप से अनावरण किया गया, जो छात्रों और शिक्षकों की शैक्षणिक रचनात्मकता और बौद्धिक योगदान को प्रदर्शित करती है।
तकनीकी सत्र II
प्रोफेसर दिलीप शाह द्वारा संचालित “सांस्कृतिक चुनौतियाँ जैसे-जैसे हम उभरते जा रहे हैं, हम और अधिक वैश्विक होते जा रहे हैं” विषय पर दूसरा तकनीकी सत्र भी एक पैनल चर्चा के रूप में आयोजित किया गया। पैनल में श्री फ़िरोज़ सैत, श्री बिश्वंभर नेवर, डॉ. रीता भट्टाचार्य और यू एस से ऑनलाइन डॉ.प्रसून चतुवेर्दी शामिल थे।
मूल भारतीय डॉ प्रसून चतुवेर्दी पैंतीस वर्षों से अमेरिका में रह रहे हैं। उन्होंने वहाँ तथा भारत के सांस्कृतिक बदलावों की विशद चर्चा की ।वहीं विश्वंभर नेवर ने कल्चर को जीवन जीने की कला से जोड़ा। कहा कि धर्म जाति और रंग की दिवारों पर अब विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है, प्रतिभा और शैक्षणिक योग्यता चर्चा डिजिटल मीडिया के माध्यम से विदेशी संस्कृतियों के तेजी से आगमन, संस्थानों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की बढ़ती प्रासंगिकता और वैश्वीकृत दुनिया में सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने की चुनौतियों के इर्द-गिर्द घूमती रही। पैनलिस्टों ने सांस्कृतिक प्रभावों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने, स्वदेशी और वैश्विक दोनों संस्कृतियों के सर्वोत्तम पहलुओं को अपनाने और भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक नींव को पहचानने के महत्व पर जोर दिया। सत्र में संस्कृति को एक गतिशील और विकासशील घटना के रूप में उजागर किया गया, जिसके लिए जागरूक अनुकूलनशीलता और जागरूकता की आवश्यकता है।
डॉ वसुंधरा मिश्र ने जानकारी देते हुए बताया कि सेमिनार में दोपहर के भोजन के पश्चात कई शिक्षा संबधित शोधपूर्ण विषयों पर पेपर पढे़ गए जिसमें निर्णायक डॉ रेखा नारिवाल, श्री आलोक मजूमदार रहीं।
सभी अतिथियों का स्वागत, उत्तरीय सम्मान में वाणिज्य विभाग की प्रातःकालीन वाइस प्रिंसिपल प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी और संकाय प्रोफेसरों, टीआईसी डॉ शुभव्रत गांगुली और कॉलेज के अध्यक्ष श्री रजनीकांत दानी ने प्रमुखता से किया।
सेमिनार के अंतिम सत्र में संध्या कालीन नाश्ता और चाय का अच्छा प्रबंध रहा। कार्यक्रम का संचालन किया प्रो उर्वी शुक्ला ने ।

वीर बाल दिवसः दो मासूम साहिबजादों की अद्वितीय शहादत

-रावेल पुष्प
सिख इतिहास ही न्याय और धार्मिक स्वतंत्रता एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए बलिदानों से भरा पड़ा है लेकिन जिस बलिदान की बात यहां हो रही है वो शायद दुनिया के इतिहास में लासानी ही कहा जाएगा। आठ साल और पांच साल के बच्चों ने निडरता के साथ जुल्मी शासक के समक्ष अपने पूर्वजों की शहादत की गरिमा को बरकरार रखते हुए अपने आपको प्रस्तुत किया और शहादत दी।गुरु नानक देव ने बाबर के आक्रमण के समय देश के नागरिकों पर हुए जुल्मों-सितम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए निडरता से कहा था- बाबर तूं जाबर है।
सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव को जहांगीर के शासनकाल में गर्म तवे पर बिठाकर और सिर पर गर्म रेत डालते हुए शहीद कर दिया गया था। इसके बाद सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों पर हो रहे जुल्मों के प्रतिवाद और व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता को बरकरार रखने की खातिर औरंगजेब के आदेश से दिल्ली के चांदनी चौक में शहादत दी। अब हम बात करें सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह की, जिन्होंने ऐसे जुल्मी शासकों से टक्कर लेने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों और जातियों से लेकर पांच प्यारों की शुरुआत की और वीर खालसा पंथ स्थापना की। उसके बाद मुगल सेना और कई पहाड़ी राजाओं के साथ गुरुजी की सेना के कई बार युद्ध हुए और हर बार गुरुजी बेहद कम सैनिक होने के बावजूद विजयी रहे। इसीलिए गुरुजी का ये उद्घोष सार्थक नजर आता है-
सवा लाख से एक लड़ाऊं, तबै गोबिन्द सिंह नाम कहाऊं
यानि एक-एक सिख सवा-सवा लाख से लड़ने की क्षमता रखता है।
पंजाब का आनंदपुर साहिब, जो गुरु गोविंद सिंह जी की मुख्य कर्मस्थली रही है, वहीं उन्होंने सुरक्षा के लिहाज से पांच किलों का निर्माण कराया था। सन् 1700 के समय वहां हुई पहली जंग में मुगल सेना ने जीत न पाने के कारण गुरुजी के साथ संधि कर ली थी लेकिन फिर 1702 में एक बड़ी फौज के साथ हमला कर दिया और यह भी लंबा चला। उसके बाद मुगल सेना ने फिर एक संधि की और कसम खाई कि आप यह किला छोड़ कर यहां से चले जाएं और कोई हमला नहीं किया जाएगा।

आनंदपुर साहिब का किला छोड़ते समय जो वादा मुगलों और पहाड़ी राजाओं के साथ हुआ था कि अब किसी पर कोई हमला नहीं करेगा, लेकिन जब गुरु गोबिंद सिंह अपने परिवार और सिख योद्धाओं को लेकर सिरसा नदी के किनारे तक पहुंचे ही थे, तभी सारी कसमें भुलाकर पीछे से उन लोगों ने इनके काफ़िले पर हमला कर दिया। वहां गुरुजी ने शत्रुओं को ललकारा, जिसे सूफी शायर हकीम अल्ला यार खां जोगी ने बड़े ख़ूबसूरत अंदाज से बयान किया है-
देखा ज्योंही हुजूर ने, दुश्मन सिमट गए,
बढ़ने की जगह खौफ से, नामर्द हट गए,
घोड़े को एड़ी दे के गुरु रण में डट गए,
फ़रमाए बुजदिलों से कि तुम क्यों पलट गए,
अब आओ रण में, जंग के अरमां निकाल लो
तुम, कर चुके हो वार, हमारा संभाल लो।
जब सारा काफ़िला सिरसा नदी के पास था तब उस नदी में भीषण बाढ़ आई हुई थी और आंधी-तूफान भी था। इसी में गुरुजी की माता गुजरी और उनके साथ दो छोटे बेटे जोरावर और फतेह सिंह बिछड़ गए। उसके बाद लाख तलाश करने के बाद भी नहीं मिले।
इस दौरान दो बड़े बेटों और दूसरे साथियों के साथ गुरुजी को तो चमकौर में युद्ध करना पड़ा, जहां दोनों बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और जुझार सिंह बड़ी बहादुरी से युद्ध करते हुए शहीद हो गए। इधर परेशान छोटे बच्चे बार-बार अपनी दादी से माता-पिता और भाइयों के बारे में पूछ रहे थे। इस बीच उनका घरेलू रसोईया गंगू जो ताउम्र उनके यहां ही पलता रहा, वो भी साथ था लेकिन उसने दगा किया और करीब ही अपने घर सहेड़ी गांव ले गया और फिर सरहिंद के सूबेदार वजीर खान को इनाम के लालच में पकड़वा दिया। उसके बाद उन बच्चों तथा उनकी दादी को एक खंडहर किस्म के ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया गया। फिर उन दोनों बच्चों को वजीर खान की अदालत में पेश करने के‌ लिए ले जाया गया। उन बच्चों को अदालत ले जाने से पहले उनकी दादी ने उन्हें उनके पूर्वजों और दादा गुरु तेग बहादुर की शहादत के बारे में बताते हुए ये ताकीद की थी कि आततायियों के सामने कभी सिर नहीं झुकाना और अपने गौरवशाली इतिहास को धूमिल मत होने देना।
उन छोटे साहिबजादों को जब कचहरी ले जाया जा रहा था तो वहां का बड़ा दरवाजा बंद कर दिया गया था और बिल्कुल छोटा खिड़कीनुमा दरवाजा खुला रखा गया था ताकि वहां जाते हुए छोटे साहबजादे झुक कर ही अंदर प्रवेश करें। लेकिन साहबजादों ने सबसे पहले अपने पैर अंदर किए और फिर तन कर खड़े हो गए और उन्होंने जोर से जयकारा लगाया-
वाहे गुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तेह।
उनकी बुलंद आवाज सुनकर मानो कचहरी की दरो-दीवार कांप उठे। वजीर खान की आंखों में लहू उतर आया। उसने छोटे साहबजादों को कई तरह के लालच दिये और अपना धर्म त्याग कर इस्लाम स्वीकार करने को कहा। छोटे साहबजादों ने साफ़ मना कर दिया। वजीर खान ने तब काजी से फतवा सुनाने के लिए कहा। काजी ने फतवा दिया कि इनकी उम्र बहुत छोटी है और कुरान मजीद के अनुसार इन बच्चों को नहीं मारा जा सकता।
फिर वजीर खान ने उन दोनों को दरबार में उपस्थित मलेरकोटला के नवाब शेर मोहम्मद खान को सुपुर्द करते हुए कहा कि तुम्हारे लिए ये बड़ा अच्छा मौका है, अपने भाई और भतीजे की मौत का बदला ले सकते हो। शेर मोहम्मद खान ने साफ़ कहा कि मेरी लड़ाई गुरु गोविंद सिंह जी के साथ अवश्य है लेकिन मैं इन मासूम बच्चों पर जुल्म नहीं ढा सकता। ये कोई बहादुरी की बात नहीं। मलेरकोटला के नवाब की यह बात सुनने के बाद वहां उपस्थित वजीर खान भयंकर गुस्से में आ गया और उसने क्रोधित होकर काजी को कहा- मैंने तुम्हें फतवा देने को कहा है ये दोषी हैं। तब काजी ने नया फतवा दिया कि इन बच्चों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया जाए! उसी आदेश के अनुसार उस ठंडे बुर्ज से जब सैनिक लेकर जाने लगे थे, उससे पहले दादी माता गुजरी का दर्द शायर ने कुछ यूं बयान किया है –
“जाने से पहले आओ, गले से लगा तो लूं
केशों को कंघी कर दूं, जरा मुंह धुला तो लूं
प्यारे, सिरों पे नन्ही-सी कलगी सजा तो लूं,
मरने से पहले तुमको दूल्हा बना तो लूं।”
क्रूर जल्लादों ने उन दो मासूम असहाय निर्दोष बच्चों को दीवार में जिंदा चिनना शुरू कर दिया। जब दीवार छोटे साहबजादे को पूरा ढंकने लगी तो बड़े साहेबजादे की आंखों में आंसू आ गए। ये देखकर छोटे ने कहा- वीर जी, आपकी आंखों में आंसू? क्या आप डर गये हो? तो उसने जवाब दिया कि बड़ा मैं हूं और मुझसे पहले शहीद तुम हो रहे हो। यह सुनकर छोटे साहबजादे ने अपना एक हाथ ऊंचा कर दिया और कहा कि लो वीर जी, पहले शहादत का हक तुम्हारा ही बनता है। और फिर उन दोनों साहिबजादों की शहादत हो गई। यह समाचार सुनकर बुजुर्ग दादी ने भी अपना शरीर त्याग दिया।
अल्ला यार खां योगी इस सरहिंद की दर्दनाक घटना को सिख राज्य की नींव के रूप में भी देखता है और छोटे साहिबजादों की ओर से कुछ यूं बयान करता है-                                                                                               “हम जान दे के औरों की जानें बचा चले,
सिक्खी की नींव हम हैं सिरों पर उठा चले,
गुरुआई का है किस्सा जहां में बना चले,
सिंघो की सल्तनत का है पौधा, लगा चले
गुरु गोबिंद सिंह के।”
इतिहास में हमेशा मोतीराम मेहरा तथा दीवान टोडरमल जी को याद किया जाएगा। मोतीराम मेहरा जी द्वारा जब माता गुजरी वा छोटे साहिबजादे ठंडे बुर्ज में कैद होते है तो उनको गर्म दूध पिलाया जाता है और ये दूध मुफ्त में नहीं पिलाया पहरे पर खड़े सैनिकों को पैसे देकर पिलाया अगले दिन जब पैसे खत्म हो गए तो अपना घर बेचकर दूध की सेवा की जाती है । बाद में जब वजीर खान को ये पता लगा तो उसके द्वारा मोतीराम के पूरे परिवार को कोल्हू में पीर दिया गया। 27 दिसंबर 1704 को दोनों साहिबजादों को जिंदा निहो में चुकवा दिया जाता है पूरी दुनिया में सबसे छोटे शहीद बाबा जोरावर सिंह जी तथा बाबा फतेह सिंह जी है दीवान टोडरमल जी को जब ये पता लगा कि गुरु जी की माता और छोटे साहिबजादों को वजीर खान द्वारा शहीद कर दिया गया है तथा उनके लाशे बाहर फेक दी है तो वह वजीर खान से उनके अंतिम संस्कार के लिए आग्रह करता है वजीर खान द्वारा कहा जाता है कि जितनी जगह आपको अंतिम संस्कार के लिए चाहिए उतनी ही सोने की मोहरे मुझे चाहिए दीवान टोडरमल जी अपनी सारी संपत्ति बेच के सोने की मोहरे ले कर आते है तथा जमीन पर सोने की मोहरे बिछाते है।
इतिहास कहता है कि वजीर खान द्वारा बोला जाता है कि आपको जमीन चाहिए तो सारी मोहरे खड़ी करो फिर दीवान टोडरमल जी द्वारा सारी सोने की मोहरे खड़ी करके जमीन खरीदी जाती है और ये दुनिया के इतिहास में आज तक की सबसे महंगी जमीन है-
धन है गुरु के शिष्य मोतीराम मेहरा जी तथा
दीवान टोडरमल जी
पहला मरण कबूल है, जीवन की शढ आस !!
हो सबना कि रेन का, तो आओ हमारे पास !!….
उन दोनों मासूम लेकिन दृढ़ निश्चयी, अपने निश्चय पर अटल रहने वाले महज नौ साल के साहिबजादे जोरावर सिंह और छह साल के फ़तेह सिंह की 26 दिसंबर 1705 को दी गई लासानी शहादत दुनिया के इतिहास में अद्वितीय है।
( मूल लेख -हिंदुस्थान समाचार से साभार। इनपुट -मोतीराम मेहरा तथा दीवान टोडरमल जी की गाथा फेसबुक पर एक पोस्ट से)

 

अन्याय के समक्ष खड़ी मजबूत दीवार गुरू गोविंद सिंह

इतिहास में कुछ संघर्ष ऐसे होते हैं जो केवल युद्ध नहीं होते, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए चेतावनी और प्रेरणा बन जाते हैं। गुरु गोविंद सिंह जी और मुगल बादशाह औरंगज़ेब के बीच हुआ टकराव भी ऐसा ही था। यह जंग सिर्फ़ तलवारों, तीरों और सेनाओं की नहीं थी, बल्कि विचारों की थी। एक तरफ़ धार्मिक स्वतंत्रता, मानवीय गरिमा और न्याय का पक्ष था, तो दूसरी ओर सत्ता का अहंकार, ज़बरदस्ती का धर्मांतरण और भय के ज़रिये शासन करने की नीति। गुरु गोविंद सिंह जी की कहानी सिर्फ़ अतीत को देखने का मौका नहीं देती, बल्कि यह भी बताती है कि अन्याय के सामने झुकने से इनकार कैसे इतिहास रचता है।
टकराव की पृष्ठभूमि: ज़ुल्म की नींव और विरोध की चिंगारी
सिखों और मुग़लों के बीच टकराव की जड़ें औरंगज़ेब के शासन से पहले ही पड़ चुकी थीं। पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी की शहादत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि सत्ता सिख परंपरा की स्वतंत्र चेतना से असहज है। लेकिन औरंगज़ेब के दौर में यह असहजता खुली दुश्मनी में बदल गई। उसने अपने शासन को धार्मिक कठोरता के ज़रिये मज़बूत करने की कोशिश की। मंदिरों का विध्वंस, जज़िया कर की पुनः शुरुआत और गैर-मुस्लिमों पर बढ़ता दबाव उसकी नीति का हिस्सा बन गया। यह वही दौर था जब आस्था को व्यक्तिगत अधिकार नहीं, बल्कि सत्ता के नियंत्रण का साधन बनाया जा रहा था। ऐसे माहौल में सिख परंपरा का न्याय, समानता और धार्मिक स्वतंत्रता पर आधारित दर्शन सीधे टकराव में आ गया।
गुरु तेग़ बहादुर की शहादत: जिसने इतिहास की दिशा मोड़ दी
गुरु गोविंद सिंह जी के पिता, नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी, केवल सिखों के नहीं, बल्कि हर उस इंसान के अधिकारों के लिए खड़े हुए जिनकी आस्था खतरे में थी। कश्मीरी पंडितों की व्यथा लेकर आए प्रतिनिधि जब आनंदपुर साहिब पहुँचे, तो गुरु तेग़ बहादुर जी ने यह संघर्ष केवल उनका नहीं, बल्कि पूरे मानव धर्म का मानकर स्वीकार किया। दिल्ली जाकर मुगल दरबार में विरोध दर्ज कराना उनके लिए सत्ता को सीधी चुनौती देना था। इसका परिणाम भयानक था। 1675 में चांदनी चौक में उनकी शहादत ने यह साफ़ कर दिया कि औरंगज़ेब संवाद नहीं, दमन चाहता है। यही वह क्षण था जिसने बालक गुरु गोविंद सिंह के भीतर यह दृढ़ संकल्प पैदा किया कि ज़ुल्म के विरुद्ध संघर्ष अब केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सशस्त्र भी होगा।
ख़ालसा पंथ की स्थापना: भय के सामने निर्भयता का जन्म
1699 की बैसाखी केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं थी, बल्कि इतिहास का निर्णायक मोड़ थी। आनंदपुर साहिब में गुरु गोविंद सिंह जी ने ख़ालसा पंथ की स्थापना कर दी। यह एक ऐसा समुदाय था जो अन्याय के सामने सिर झुकाने के लिए नहीं, बल्कि उसका सामना करने के लिए खड़ा किया गया था। पाँच ककार और समान पहचान ने यह संदेश दिया कि अब सिख किसी जाति, वर्ग या सामाजिक हैसियत से नहीं, बल्कि अपने कर्म, साहस और चरित्र से पहचाने जाएंगे। ख़ालसा का जन्म औरंगज़ेब के लिए सीधी चुनौती था। अब उसके सामने केवल साधु-संत नहीं, बल्कि संगठित, अनुशासित और आत्मसम्मान से भरा समुदाय था, जो सत्ता के अन्याय को स्वीकार करने को तैयार नहीं था।

संघर्ष का विस्तार: एक जंग नहीं, कई मोर्चे
गुरु गोविंद सिंह जी और औरंगज़ेब का टकराव किसी एक युद्ध तक सीमित नहीं रहा। यह संघर्ष वर्षों तक चला और अलग-अलग रूपों में सामने आया। पहाड़ी राजा गुरु गोविंद सिंह की बढ़ती शक्ति से भयभीत थे। उनकी राजनीतिक ईर्ष्या और मुगल सत्ता की नीतियाँ एक-दूसरे से मिल गईं। आनंदपुर साहिब को बार-बार घेरा गया। 1704-1705 की घेराबंदी विशेष रूप से कुख्यात रही, जब महीनों तक रसद काट दी गई और झूठी क़समों के सहारे सिखों को बाहर निकलने पर मजबूर किया गया। यह केवल सैन्य चाल नहीं थी, बल्कि विश्वासघात का प्रतीक बन गई।
चमकौर और मुक्तसर: वीरता की अमर गाथाएँ
चमकौर की गढ़ी में हुआ युद्ध इतिहास की सबसे मार्मिक कहानियों में से एक है। संख्या में अत्यंत कम होते हुए भी गुरु गोविंद सिंह जी और उनके सिखों ने हज़ारों की सेना का सामना किया। यहीं उनके दो साहिबज़ादे शहीद हुए। यह युद्ध केवल बलिदान नहीं, बल्कि यह दिखाने का प्रमाण था कि साहस संख्या का मोहताज नहीं होता। इसके बाद मुक्तसर की लड़ाई ने यह सिखाया कि पश्चाताप और कर्तव्यबोध से भी मोक्ष मिलता है। चालीस सिखों की शहादत और उन्हें “मुक्त” घोषित किया जाना इस संघर्ष को आध्यात्मिक ऊँचाई पर ले जाता है।
मुग़ल साम्राज्य को लगी असली चोट
मुग़लों को हुआ नुकसान केवल सैनिक हताहतों तक सीमित नहीं था। गुरु गोविंद सिंह जी के नेतृत्व ने उनकी नैतिक और वैचारिक नींव को हिला दिया। औरंगज़ेब स्वयं को धार्मिक न्याय का प्रतीक मानता था, लेकिन बार-बार किए गए विश्वासघातों और गुरु तेग़ बहादुर की शहादत ने उसकी छवि को धूमिल कर दिया। एक छोटे से समुदाय से निर्णायक विजय न पा सकना मुग़ल सत्ता की कमजोरी को उजागर करता रहा। ख़ालसा की यह घोषणा कि अन्याय के सामने लड़ना ईश्वरीय कर्तव्य है, साम्राज्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई।
ज़फ़रनामा: शब्दों से दिया गया सबसे तीखा उत्तर
औरंगज़ेब के अंतिम वर्षों में गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा लिखा गया ज़फ़रनामा केवल एक पत्र नहीं था, बल्कि नैतिक साहस का दस्तावेज़ था। फ़ारसी में लिखे इस पत्र में बादशाह को उसके झूठ, क़समतोड़ने और अन्याय का आईना दिखाया गया। तलवारों से जो बात अधूरी रह गई थी, वह शब्दों ने पूरी कर दी। यही वैचारिक चोट आगे चलकर बंदा सिंह बहादुर के नेतृत्व में मुग़ल सत्ता के वास्तविक पतन का कारण बनी।

खुदरा महंगाई की गणना में ई-कॉमर्स, ऑनलाइन स्रोत होंगे शामिल

नयी दिल्‍ली। केंद्र सरकार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) की विश्वसनीयता, सटीकता और गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार लाने के उद्देश्य से खुदरा महंगाई की गणना में ऑनलाइन स्रोतों के साथ-साथ ई-कॉमर्स मंच को भी शामिल करेगी। सीपीआई की नई श्रृंखला के आंकड़े 12 फरवरी को जारी किए जाने की संभावना है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) ने मंगलवार को नई दिल्‍ली के भारत मंडपम में सीपीआई, जीडीपी और आईआईपी के आधार में वर्ष संशोधन पर दूसरी परामर्श कार्यशाला का आयोजन किया। इसमें मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. वी. अनंत नागेश्वरन, नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन के. बेरी और मंत्रालय के सचिव डॉ. सौरभ गर्ग, सचिव, एन. के. संतोषी, महानिदेशक (केंद्रीय सांख्यिकी), उद्योग, शिक्षा जगत, अनुसंधान संस्थानों और नीति निर्माण निकायों के अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए। मंत्रालय ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में नए आंकड़ा स्रोतों को शामिल करने के संबंध में कहा कि वर्तमान श्रृंखला में भौतिक दुकानों से एकत्र किए जा रहे आंकड़ों के अतिरिक्त 25 लाख से अधिक आबादी वाले 12 चयनित शहरों में ई-कॉमर्स मंच से भी कीमत आंकड़े प्राप्त की जाएंगी। रेल किराया के लिए रेलवे, ईंधन की कीमतों के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय और डाक शुल्क के लिए डाक विभाग के साथ समन्वय में प्रशासनिक आंकड़े प्राप्त करने के भी प्रयास किए जाएंगे। एमओएसपीआई ने बताया कि हवाई किराये, दूरसंचार सेवाओं और ओटीटी (ओवर द टॉप) मंच के लिए, वेब-आधारित तरीकों का उपयोग करके ऑनलाइन स्रोतों से मूल्य आंकड़े संकलित करने का प्रस्ताव है। मंत्रालय के अनुसार इन वैकल्पिक और डिजिटल डेटा स्रोतों को अपनाने से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की प्रतिनिधित्व क्षमता, विश्वसनीयता, सटीकता और समग्र गुणवत्ता में काफी सुधार होने की उम्मीद है। जीडीपी आधार वर्ष संशोधन से नए आंकड़ों के स्रोतों को शामिल करने और संकलन प्रक्रिया कार्यप्रणालीगत सुधारों, मानकों और वर्गीकरणों के अनुरूप बनाने में भी सुविधा होगी। सीपीआई, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणना के लिए आधार वर्षों को संशोधित करने की प्रक्रिया में है। केंद्र सरकार वित्त वर्ष 2022-23 को आधार वर्ष मानकर राष्ट्रीय लेखा संबंधी आंकड़े 27 फरवरी को जारी करेगी, जबकि 2022-23 को आधार वर्ष मानते हुए आईआईपी की नई श्रृंखला के आंकड़े 28 मई को जारी होंगे।

नहीं रहे कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल

रायपुर । हिन्दी के शीर्ष कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया है। वे पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे और इसी अस्पताल में भर्ती थे। वह 88 साल के थे और पिछले कुछ दिनों से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। उन्हें सांस की समस्या के चलते एम्स, रायपुर के क्रिटिकल केयर यूनिट (सीसीयू) में भर्ती कराया गया था। विनोद कुमार शुक्ल के निधन (23 दिसंबर 2025) के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके सम्मान में रायपुर में होने वाले अपने सभी आधिकारिक कार्यक्रमों को रद्द (निरस्त) कर दिया है। बताया गया कि यह फैसला उनकी साहित्यिक विरासत और प्रदेश के लिए उनके योगदान को श्रद्धांजलि देने का एक महत्वपूर्ण कदम है। पिछले ही महीने उन्हें हिन्दी साहित्य के सर्वोच्च सम्मान, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में 1 जनवरी 1937 को जन्मे विनोद कुमार शुक्ल हिन्दी साहित्य में ऐसे लेखक के रूप में प्रतिष्ठित थे जिनकी साहित्यिक आवाज़ दूर-दूर तक सुनाई देती थी। निराशा में आशा का संचार करने वाले कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल साहित्य के इस युग में काव्य धारा को नई दिशा देने वाले हैं। उनकी कविताएं सीधे परेशानियों की जड़ों पर कुठाराघात करती हैं। उन्हें कुरेदती हैं। उनकी कल्पना शक्ति का सीमांकन समीक्षकों के लिए हमेशा एक चुनौती रहा है। उनका पहला कविता-संग्रह ‘लगभग जय हिन्द’ 1971 में प्रकाशित हुआ, जिसके साथ ही उनकी अपने तरह की भाषिक बनावट, चुप्पी और भीतर तक उतरती संवेदनाएँ हिन्दी कविता के परिदृश्य में दर्ज होने लगीं। इसके बाद ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’, ‘अतिरिक्त नहीं’, ‘कविता से लंबी कविता’, ‘आकाश धरती को खटखटाता है’, ‘पचास कविताएँ’, ‘कभी के बाद अभी’, ‘कवि ने कहा’, ‘चुनी हुई कविताएँ’ और ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ जैसे संग्रहों ने उन्हें समकालीन हिन्दी कविता के एक अलग तरह के स्वरों में शामिल कर दिया, जो अपने आप में नयापन और मौलिकता लिए हुए था। कथा-साहित्य में उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज़’ ने 1979 में हिन्दी कहानी और उपन्यास की धारा को एक अलग मोड़ दिया। इस उपन्यास मणि कौल ने फ़िल्म भी बनाई है। आगे चलकर ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’, ‘यासि रासा त’ और ‘एक चुप्पी जगह’ के माध्यम से उन्होंने लोकआख्यान, स्वप्न, स्मृति, मध्यवर्गीय जीवन और मनुष्य की जटिल आकांक्षाओं को एक विशिष्ट कथा-शिल्प में रूपांतरित किया। उनके कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’, ‘महाविद्यालय’, ‘एक कहानी’ और ‘घोड़ा और अन्य कहानियाँ’ जैसे संग्रहों में दर्ज हैं, हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्टता के लिए जाने जाते हैं। उनकी अनेक रचनाएँ भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनूदित हुई हैं। अपनी लंबी रचनात्मक यात्रा में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, हिन्दी गौरव सम्मान, मातृभूमि पुरस्कार, साहित्य अकादमी का महत्तर सदस्य सम्मान और 2023 का पैन-नाबोकोव पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज ने कैंपस फ्रांस सेमिनार का आयोजन

कोलकाता । आप एक भाषा तब तक नहीं समझ सकते जब तक आप कम से कम दो भाषाएँ न समझ लें। यह उक्ति भाषा को सीखने की है जानने की है शिक्षित होने के लिए है। किसी देश से संपर्क करना है तो भाषाई आदान-प्रदान ही संस्कृति को बढ़ावा देना ही होगा। इन्हें मद्देनजर रखते हुए भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज ने कैंपस फ्रांस के द्वारा फ्रांस की भाषा फ्रेंच के विषय में विशेष जानकारी दी ।
फ्रांस में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक छात्रों का मार्गदर्शन करने के लिए, भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज ने कैंपस फ्रांस के सहयोग से 17 दिसंबर 2025 को सोसाइटी हॉल में “एन रूट टू फ्रांस” शीर्षक से एक सेमिनार का आयोजन किया। कॉलेज के वाणिज्य विभाग (मॉर्निंग) के संकाय सदस्य प्रो अतहर जमाल इस कार्यक्रम की पहल थी और माननीय रेक्टर और डीन प्रो दिलीप शाह की अनुमति और समर्थन से फ्रेंच भाषा के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया गया।
सेमिनार का उद्देश्य छात्रों को फ्रांस में अध्ययन के लिए एक स्पष्ट रोडमैप प्रदान करना और भारतीय छात्रों और फ्रांसीसी शैक्षणिक अवसरों के बीच अंतर को पाटना था। सत्र का नेतृत्व फ्रांसीसी भाषा में सहयोग के लिए सुश्री अताशे जूलिया लेग्रोस मार्टिन और सुश्री अनिंदिता मजूमदार ने किया जो
कैंपस फ्रांस मैनेजर, कोलकाता, भारत में फ्रांस के दूतावास के तहत फ्रेंच इंस्टीट्यूट इन इंडिया (आईएफआई) का प्रतिनिधित्व करती हैं।
80 से अधिक छात्रों की भागीदारी के साथ, सेमिनार में अकादमिक पहलुओं , फ्रेंच भाषा सीखने, छात्रवृत्ति, वित्त पोषण के अवसरों को शामिल किया गया और प्रवेश, भाषा बाधाओं और जीवनयापन की लागत से संबंधित आम गलतफहमियों को संबोधित किया गया। फ्रेंच भाषा की वैश्विक प्रासंगिकता और फ्रांस की मजबूत अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया।
डॉ वसुंधरा मिश्र ने जानकारी देते हुए बताया कि कार्यक्रम का समापन एक इंटरैक्टिव प्रश्नोत्तर सत्र के साथ हुआ, जिसके बाद सम्मानित अतिथियों के लिए एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया। कुल मिलाकर, सेमिनार जानकारीपूर्ण और प्रेरक साबित हुआ, जिसने छात्रों को फ्रांस में उच्च शिक्षा की दिशा में अपनी यात्रा शुरू करने के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान की।रिपोर्ट नीलेशा नाथ ने दी।