Monday, December 22, 2025
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बंगाल में पिछड़े वर्गों तक सीमित है संस्थागत कर्ज

कोलकाता । बैंकरों की एक संस्था की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग, जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी ) के लोग शामिल हैं, को संस्थागत लोन तक सीमित पहुंच मिल रही है। मौजूदा वित्तीय वर्ष 2025-26 के पहले छह महीनों में, पश्चिम बंगाल में कुल 48,08,752.02 करोड़ रुपये का संस्थागत लोन दिया गया, जिसमें से सिर्फ 29,654.03 करोड़ रुपये सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को दिए गए। आंकड़ों के हिसाब से, इसका मतलब है कि समीक्षाधीन अवधि के दौरान राज्य में दिए गए कुल लोन का सिर्फ छह प्रतिशत ही सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों को मिला। इसी अवधि में ऐसे लोन पाने वालों की संख्या के मामले में, सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व कुल लोन पाने वालों की संख्या के मुकाबले न के बराबर था। समीक्षाधीन अवधि के दौरान, सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के संस्थागत लोन पाने वालों की कुल संख्या 15,12,216 थी, जबकि कुल लोन पाने वालों की संख्या 64,07,678 थी। इसका मतलब है कि सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को मिले संस्थागत लोन की संख्या कुल लोन पाने वालों की संख्या का सिर्फ 23 प्रतिशत थी। यह आंकड़ा पश्चिम बंगाल की स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी (SLBC) की हालिया बैठक में दिया गया, इस कमेटी में राज्य में काम करने वाले बैंकों के साथ-साथ राज्य सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। बैठक का विवरण IANS के पास उपलब्ध है। हालांकि, अच्छी बात यह थी कि 30 सितंबर, 2025 तक पश्चिम बंगाल में क्रेडिट टू डिपॉजिट (CD) अनुपात पिछले वित्तीय वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले काफी बेहतर हुआ। 30 सितंबर, 2025 तक सीडी अनुपात 70.59 प्रतिशत था, जबकि 30 सितंबर, 2024 तक यह 69.88 प्रतिशत था। हालांकि, इसी अवधि में बीरभूम, कोलकाता, मालदा और पुरुलिया जैसे जिलों में सीडी अनुपात में नकारात्मक रुझान देखा गया। पश्चिम बंगाल के पूर्व वित्त मंत्री और राज्य सरकार के मौजूदा मुख्य आर्थिक सलाहकार, अमित मित्रा ने इन जिलों के लीड डिस्ट्रिक्ट मैनेजरों से तुरंत सुधारात्मक उपाय शुरू करने का आग्रह किया।

 

एसआईआर की मसौदा सूची में 1.4 करोड़ मामले संदिग्ध, बीएलओ को देना होगा जवाब

कोलकाता । भारत निर्वाचन आयोग पश्चिम बंगाल में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआऱ) में लगे बूथ-लेवल अधिकारियों से 16 दिसंबर को जारी हुई ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में संदिग्ध मामलों पर लिखित स्पष्टीकरण लेगा। पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) के ऑफिस के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि निर्वाचन आयोग ने ऐसे लगभग 1.4 करोड़ संदिग्ध मामलों की पहचान की है, जिनमें बीएलओ से लिखित स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। इस मामले पर लिखित बयान में, संबंधित बीएलओ को पहले ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में और बाद में अगले साल 14 फरवरी को पब्लिश होने वाली फाइनल वोटर लिस्ट में उनके नाम शामिल करने की सिफारिश के पीछे का कारण बताना होगा। बीएलओ द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण के आधार पर, ECI तय करेगा कि इनमें से किन संदिग्ध मामलों को दावों और आपत्तियों पर सुनवाई के लिए भेजा जाएगा। दावों और आपत्तियों पर सुनवाई सत्र 27 दिसंबर तक शुरू होने की उम्मीद है। इन संदिग्ध मामलों में ऐसे वोटर शामिल हैं जो 2002 की वोटर लिस्ट में लिस्टेड नहीं थे, जबकि उनकी मौजूदा उम्र 45 या उससे ज़्यादा है, और इसलिए उन्होंने प्रोजेनी मैपिंग के ज़रिए ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल होने के लिए अप्लाई किया था। सीईओ ऑफिस के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा, “पिछली बार पश्चिम बंगाल में एसआईआर 2002 में हुआ था। एक वोटर, जो अभी 45 साल या उससे ज़्यादा उम्र का है, उसका नाम 2002 की लिस्ट में होना चाहिए था, यह देखते हुए कि उस समय वे 18 साल या उससे ज़्यादा उम्र के थे। सवाल यह उठता है कि वे तब वोटर के तौर पर एनरोल क्यों नहीं हुए और इसलिए मौजूदा एसआईआर के दौरान उन्हें प्रोजेनी मैपिंग पर निर्भर रहना पड़ा।”ऐसे संदिग्ध मामलों की दूसरी कैटेगरी उन वोटरों के बारे में है जो 15 साल की उम्र में या उससे भी कम उम्र में पिता बन गए थे। एक ऐसा मामला सामने आया है जहां एक खास वोटर सिर्फ पांच साल की उम्र में पिता बन गया था। ऐसे संदिग्ध मामलों की तीसरी कैटेगरी उन लोगों की है जो सिर्फ 40 साल की उम्र में या उससे भी कम उम्र में दादा बन गए थे। ऐसे संदिग्ध मामलों की चौथी और आखिरी कैटेगरी उन वोटरों की है जिनके मामलों में पिता और माता के नाम एक जैसे हैं। वोटरों की फाइनल लिस्ट 14 फरवरी, 2026 को जारी की जाएगी। इसके तुरंत बाद, निर्वाचन अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान करेगा।

26 दिसम्बर से बढेगा रेलवे का यात्री किराया

नयी दिल्ली । रेलवे ने 26 दिसंबर से अपने यात्री किराए में मामूली बढ़ोतरी की है। नई बढ़ोतरी के तहत 500 किलोमीटर तक नॉन एसी यात्रा के लिए महज 10 रूपये अतिरिक्त देने होंगे। रेलवे का कहना है कि उसकी ऑपरेशन लागत में पिछले 1 साल में ढाई लाख करोड़ से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। इस कमी को पूरा करने के लिए रेलवे एक तरफ माल ढुलाई बढ़ा रहा है और दूसरी ओर यात्री किरायों को बेहतर करने में लगा है। रेल मंत्रालय ने रविवार को इस संबंध में जानकारी साझा की। रेलवे का कहना है कि बढ़ाया गया 26 दिसंबर से प्रभावी होगा। इससे रेलवे को चालू वर्ष में लगभग 600 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय होने की संभावना है। साधारण श्रेणी में 215 किलोमीटर से अधिक दूरी पर यात्रा करने पर 1 पैसा प्रति किलोमीटर की वृद्धि होगी। मेल/एक्सप्रेस नॉन-एसी श्रेणी में 2 पैसे प्रति किलोमीटर की वृद्धि की गई है। एसी श्रेणी में भी 2 पैसे प्रति किलोमीटर की वृद्धि की गई है। नॉन-एसी कोच में 500 किलोमीटर की यात्रा पर यात्रियों को केवल 10 रुपये अतिरिक्त देने होंगे। उपनगरीय सेवाओं और मासिक सीजन टिकट के किराए में कोई वृद्धि नहीं की गई है। साधारण श्रेणी में 215 किलोमीटर तक की यात्रा पर कोई किराया वृद्धि नहीं होगी। मंत्रालय ने कहा है कि पिछले एक दशक में रेलवे ने अपने नेटवर्क और परिचालन का उल्लेखनीय विस्तार किया है। बढ़े हुए परिचालन स्तर और सुरक्षा में सुधार के लिए रेलवे जनशक्ति (मैनपावर) बढ़ा रहा है। इसके परिणामस्वरूप जनशक्ति पर होने वाला खर्च बढ़कर 1,15,000 करोड़ रुपये हो गया है। पेंशन व्यय बढ़कर 60,000 करोड़ रुपये हो गया है। वर्ष 2024-25 में कुल परिचालन लागत बढ़कर 2,63,000 करोड़ रुपये हो गई है। मंत्रालय के मुताबिक जनशक्ति की बढ़ी हुई लागत को पूरा करने के लिए रेलवे अधिक कार्गो लोडिंग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है तथा यात्री किराए में सीमित युक्तिकरण किया गया है। सुरक्षा और परिचालन में सुधार के इन प्रयासों के चलते रेलवे सुरक्षा में उल्लेखनीय सुधार करने में सफल रहा है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा माल परिवहन करने वाला रेलवे नेटवर्क बन गया है। हाल ही में त्योहारी सीजन के दौरान 12,000 से अधिक ट्रेनों का सफल संचालन भी बेहतर परिचालन दक्षता का उदाहरण है। रेलवे अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा करने के लिए आगे भी दक्षता बढ़ाने और लागत को नियंत्रित करने के प्रयास जारी रखेगा।

बंगाल के जंगलमहल में मिला सोने का भंडार

-बहुरेंगे आदिवासी बहुल इलाकों के दिन

कोलकाता। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (जीएसआई) के सर्वे में पश्चिम बंगाल के कई जिलों में संभावित सोने और ज़रूरी मिनरल भंडार की पहचान की गई है। राज्यसभा सांसद शमिक भट्टाचार्य को एक लिखित जवाब में केंद्रीय खनन मंत्रालय ने राज्य में नौ जगहों पर सोने के भंडार की संभावना की पुष्टि की है। पिछले पांच सालों में राज्य के दक्षिणी और पश्चिमी इलाकों में मैपिंग के तहत कीमती मेटल और रेयर अर्थ एलिमेंट पाये जाने के संकेत मिले हैं। पहचानी गई ज़्यादातर सोने की जगहें अभी शुरुआती स्टेज में हैं।
खोज ज़्यादातर पुरुलिया-बांकुड़ा क्षेत्र पर रही है, जो जंगलमहल इलाके का हिस्सा है। यहाँ शुरुआती जांच में सोने वाली चट्टानें मिली हैं। अधिकारियों का कहना है कि ये नतीजे झारखंड के साथ इलाके की जियोलॉजिकल नज़दीकी से मेल खाते हैं, जो अपने मिनरल से भरपूर पठार के लिए जाना जाता है।
सोने के अलावा सर्वे ने राज्य में ज़रूरी मिनरल रिज़र्व की ओर इशारा किया है। पुरुलिया में 17 रेयर अर्थ मिनरल की पहचान हुई है। अकेले ज़िले के कालापत्थर-रघुडीह ब्लॉक में लगभग 0.67 मिलियन टन रेयर अर्थ एलिमेंट्स का रिज़र्व है जो ईवी बैटरी, डिफ़ेंस मैन्युफ़ैक्चरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए ज़रूरी रिसोर्स हैं।
ज्ञात रहे कि 2019 और 2024 के बीच केंद्र ने पश्चिम बंगाल में कम से कम 28 मिनरल तलाश प्रोजेक्ट शुरू किए, जिनके तहत झाड़ग्राम, पश्चिम मिदनापुर, बांकुड़ा और पुरुलिया के अलावा दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के कुछ हिस्सों में मैंगनीज़, टंगस्टन, कॉपर और ग्रेफ़ाइट जैसी चीज़ों को खोजना था। पुरुलिया में चार एपेटाइट ब्लॉक — पंकरीडीह, पुरदाहा, चिरुगोड़ा और मेदनीटांड़ — की पहचान की गई है और उन्हें संभावित नीलामी के लिए तैयार किया जा रहा है।

सूत्र बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में लगभग 12.83 मिलियन टन प्राइमरी गोल्ड ओर है, जो ज़्यादातर पुरुलिया में है। इसमें, अनुमानित गोल्ड मेटल कंटेंट लगभग 0.65 टन (650 kg) है। कर्नाटक की तुलना में इसे लो-ग्रेड माना जाता है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि सोने की मौजूदा कीमतों को देखते हुए यह कमर्शियली महत्वपूर्ण बना हुआ है।

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी : ऐसो को उदार हिन्दी जग माहीं..

-गौरव अवस्थी

बोलियों में बंटी हिंदी भाषा को परिमार्जित करके भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा प्रारंभ किए आधुनिक खड़ी बोली हिंदी आंदोलन को सफलता के शिखर पर स्थापित करने में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। अपनी अथक मेहनत के बल पर उन्होंने हिंदी खड़ी बोली में कई संपादक लेखक कवि तैयार किए। आचार्य द्विवेदी को भाषा और व्याकरण में किसी भी तरह की भाषाई अशुद्धि और व्याकरण की अराजकता अस्वीकार थी। हिंदी की इस प्रतिष्ठा के लिए ही अपने समय के प्रतिष्ठित साहित्यकारों से आचार्य द्विवेदी का वाद-विवाद और प्रतिवाद होता रहा। कुछ विवाद तो आधुनिक हिंदी साहित्य में आज भी अमिट हैं। बालमुकुंद गुप्त से अस्थिरता और अनस्थिरता शब्द पर वर्षों चला विवाद हो या नागरी प्रचारिणी सभा की खोजपूर्ण रिपोर्ट को लेकर बाबू श्यामसुंदर दास से हुआ मतभेद या सरस्वती में लेख न छपने पर बीएन शर्मा से हुई लट्ठमलट्ठ। आमतौर पर उनकी छवि कलहप्रिय, क्रोधी, घमंडी और तुनक मिजाज के तौर पर स्थापित करने की समय- समय पर कोशिशें की गईं लेकिन इन विवादों के अंत सौहार्दपूर्ण एवं सौजन्यता के साथ ही हुए। बालमुकुंद गुप्त से चले विवाद का अंत आचार्य के चरणों में सिर रखने से हुआ। आचार्य द्विवेदी ने भी उन्हें गले लगा कर सहृदयता दिखाई।

नागरी प्रचारिणी सभा के काम की आलोचना खोजपूर्ण रिपोर्ट छपने पर बाबू श्यामसुंदर दास से पैदा हुए मतभेद के बाद सभा ने सरस्वती से अपने संबंध समाप्त कर लिए। आचार्य द्विवेदी ने ‘अनुमोदन का अंत’ शीर्षक से लेख लिखा तो सभा के कार्य से बाहर गए पं. केदारनाथ पाठक बहुत नाराज हुए और लौटने पर सीधे कानपुर आचार्य द्विवेदी के पास पहुंचकर अपनी नाराजगी प्रकट की। कोमल हृदय आचार्य द्विवेदी ने उन्हें ससम्मान आसन दिया और घर के अंदर से मिठाई-जल लेकर आए और साथ में एक लाठी भी। शिष्टाचार के बाद उन्होंने पं. पाठक को प्रतिवाद पूरा करने के लिए लाठी देते हुए कहा-‘आपकी लाठी और मेरा सर..’। इस पर पं. पाठक बहुत लज्जित हुए और वह हमेशा के लिए आचार्य जी के भक्त हो गए। इस विवाद का अंत भी श्यामसुंदर दास द्वारा ‘भारत मित्र’ में द्विवेदी जी की उदारता पर लिखे गए लेख के साथ हुआ। सौजन्यता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि बाबू श्याम सुंदर दास द्वारा स्थापित नागरी प्रचारिणी सभा ने आचार्य द्विवेदी के सम्मान में 1933 में ‘अभिनंदन ग्रंथ’ प्रस्तुत किया और आचार्य द्विवेदी ने अपने संपादन से जुड़ी महत्वपूर्ण सामग्री और लाइब्रेरी की हजारों पुस्तकें सभा को ही दान में दीं।

भाषा एवं व्याकरण सुधार के आंदोलन में ऐसे अनेक विवादों के दृष्टांत आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में दर्ज हैं, जिनका पटाक्षेप सौहार्दपूर्ण वातावरण में हुआ। यह इसलिए संभव हुआ कि आचार्य द्विवेदी और संबंधित पक्ष के बीच विवाद के कारण हिंदी भाषा की शुद्धता थी न कि व्यक्तिगत। अपना लेख सरस्वती में न छपने पर बीएन शर्मा ने अवश्य आलोचनापूर्ण लेख में आचार्य द्विवेदी पर व्यक्तिगत आक्षेप किए लेकिन क्षमा प्रार्थना के बाद आचार्य द्विवेदी ने इस विवाद का भी अंत सौजन्यता के साथ कर दिया। ऐसा ही एक प्रकरण महामना पं. मदन मोहन मालवीय के अनुज कृष्णकांत मालवीय के साथ भी हिंदी साहित्य में दर्ज है।

रेलवे की 200 रुपये प्रतिमाह की नौकरी छोड़कर 50 रुपये प्रतिमाह में ‘सरस्वती’ का संपादन स्वीकार करने वाले आचार्य द्विवेदी का इंडियन प्रेस के संस्थापक बाबू चिंतामणि घोष से प्रथम परिचय उनके ही प्रेस से प्रकाशित हिंदी रीडर की कड़ी आलोचना के साथ हुआ था लेकिन फिर भी घोष बाबू ने आचार्य द्विवेदी को सरस्वती का संपादक नियुक्त करना तय किया। उनके संपादक नियुक्त होने पर कुछ साहित्यकारों ने घोष बाबू से कहा कि यह मनुष्य बहुत घमंडी है। तुनुक मिजाज है। इसे संपादक बनाकर बड़ी भूल कर रहे हो। उससे एक दिन भी नहीं पटेगी लेकिन उन्होंने किसी भी आलोचना को कान न देकर आचार्य द्विवेदी को संपादन का दायित्व सौंपा। 18 वर्षों तक सरस्वती के संपादन कार्यकाल में आचार्य द्विवेदी और घोष बाबू में घड़ी भर की अनबन नहीं हुई। सरस्वती के प्रकाशक और सेवक संपादक के बीच के सरस संबंध आज भी मुद्रक-प्रकाशक एवं संपादक के बीच सरस संबंधों का आदर्श उदाहरण है।

बात नवंबर 1905 की है। छतरपुर के राजा ने आचार्य द्विवेदी जी से कहा कि आप प्रतिवर्ष एक अच्छे अंग्रेजी ग्रंथ का अनुवाद किया कीजिए। पारिश्रमिक के रूप में मैं आपको 500 रुपये दिया करूंगा। उन्होंने 1907 में हर्बर्ट स्पेंसर की ‘एजुकेशन’ पुस्तक का अनुवाद ‘शिक्षा’ के नाम से किया और राजा को पत्र लिखा। अपनी बात से मुकरते हुए राजा ने पारिश्रमिक के रूप में केवल 25 रुपये ही देने की बात कही। इस पर नाराज हुए आचार्य द्विवेदी ने राजा को कड़ा पत्र लिखकर अपनी आपत्ति प्रकट करने से परहेज नहीं किया।

जन्म ग्राम दौलतपुर (रायबरेली) की पाठशाला के एक शिक्षक एक पद का गलत अर्थ बता रहे थे। बालक द्विवेदी ने शिक्षक को टोका और सही अर्थ बताया लेकिन शिक्षक अपनी गलती स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। द्विवेदी जी के प्रतिवाद करने पर वह पंडितराज संजीवन के अर्थ को प्रमाणिक मानने को तैयार हुए। तब द्विवेदी जी पंडितराज के घर गए और सही अर्थ लिखाकर लाए। उन्होंने भी द्विवेदी जी के ही अर्थ का समर्थन किया। फिर शिक्षक को बालक द्विवेदी के सामने अपनी गलती स्वीकार ही करनी पड़ी।

दरअसल, बचपन से ही स्वाध्यायी आचार्य द्विवेदी का गलत को गलत कहने का स्वभाव था। गलत को गलत कहने में तनिक भी हिचक न होने का यह स्वभाव आचार्य द्विवेदी में अंतिम समय तक विद्यमान रहा। किसी के आगे झुकना उन्होंने स्वीकार नहीं किया। सामने वाला कोई भी हो या कितना भी बड़ा हो। इसी स्वभाव के बल पर वह आधुनिक हिंदी खड़ी बोली को गद्य और पद्य दोनों की भाषा बनाने में सफल हो सके।

(साभार – हिन्दुस्तान समाचार)

 

दक्षिण दिनाजपुर से प्राचीन मूर्ति बरामद, पाल युग की होने की संभावना

दक्षिण दिनाजपुर। जिले के तपन ब्लॉक अंतर्गत घाटुल गांव में एक प्राचीन शैल मूर्ति मिली है। मिट्टी के नीचे से बरामद इस मूर्ति को इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से एक अमूल्य धरोहर माना जा रहा है। रविवार को वन विभाग के बालुरघाट रेंज के रेंजर तापस कुंडू ने मौके का निरीक्षण किया। उन्होंने न केवल उस स्थान का जायजा लिया, जहां से मूर्ति बरामद हुई, बल्कि मूर्ति की वर्तमान सुरक्षा व्यवस्था और वनभूमि संरक्षण को लेकर ग्रामीणों के साथ विस्तृत चर्चा भी की। इतिहासकारों की प्रारंभिक जांच के अनुसार, यह मूर्ति 11वीं शताब्दी के पाल वंश काल की कलाशैली का एक अनूठा उदाहरण है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह हिंदू देवता शिव के अत्यंत उग्र और शक्तिशाली स्वरूप ‘कालभैरव’ अथवा ‘अघोर’ देव की एक दुर्लभ प्रतिमा हो सकती है। सरकारी स्तर पर मूर्ति के संरक्षण की प्रक्रिया को लेकर प्रशासन की गतिविधियां तेज हो गई हैं। मूर्ति के मिलने की खबर फैलते ही स्थानीय लोगों में उत्साह और उमंग का माहौल है। ग्रामीणों की मांग है कि जिस स्थान पर मूर्ति मिली है, वहीं एक मंदिर का निर्माण किया जाए। हालांकि, पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का इस मांग को लेकर अलग मत है। प्रख्यात प्रोफेसर एवं शोधकर्ता डॉ. अनिरुद्ध मैत्र ने कहा कि उचित संरक्षण और वैज्ञानिक शोध के हित में इस मूर्ति को तत्काल हेरिटेज सोसाइटी के अंतर्गत लाना आवश्यक है।

श्री शिक्षायतन महाविद्यालय में तृतीय सीताराम जी सेकसरिया स्मृति व्याख्यान

कोलकाता । श्री शिक्षायतन महाविद्यालय द्वारा गत 18 दिसंबर को तृतीय सीताराम जी सेकसरिया स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ परंपरानुसार गणेश वंदना से हुआ जिसे कॉलेज की छात्राओं, एमिलिया बरुआ, अन्वेषा घोष, संपूर्णा घोष ,मोहोना मुख़र्जी, रूपकथा बोस तथा श्रीतमा बोस द्वारा प्रस्तुत किया किया गया l इसके पश्चात महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. तानिया चक्रवर्ती ने सचिव पी. के. शर्मा, हिंदी विभाग की प्राध्यापिकाओं, भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर एकल व्याख्यान हेतु आमंत्रित विशेषज्ञ वक्ता प्रो. हितेंद्र पटेल (अध्यक्ष, पर्यावरण अध्ययन विभाग, रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता ) के साथ दीप प्रज्ज्वलित कर समारोह का विधिवत उद्घाटन किया । स्वागत वक्तव्य में प्राचार्या डॉ. तानिया चक्रवर्ती ने सीताराम जी सेकसरिया के योगदान का स्मरण करते हुए स्मृति व्याख्यानमाला के उद्देश्य एवं उसकी शैक्षणिक प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के अगले चरण में डॉ. रचना पाण्डेय ने सीताराम जी सेकसरिया के जीवन, आदर्शों और मूल्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उनके वक्तव्य से उपस्थित श्रोताओं को यह समझने का अवसर मिला कि किस प्रकार सेकसरिया जी की विरासत आज भी इस शिक्षण संस्था की चेतना और कार्य-दिशा का आधार बनी हुई है। इसके पश्चात हिंदी विभाग की अध्यक्ष अल्पना नायक द्वारा मुख्य वक्ता प्रोफेसर हितेंद्र पटेल का औपचारिक परिचय प्रस्तुत किया गया। प्रोफेसर हितेंद्र पटेल ने भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर गहन विमर्श प्रस्तुत किया। व्याख्यान में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि भारतीय ज्ञान परंपरा पर संवाद इस प्रकार होना चाहिए, जिससे प्राचीन और आधुनिक ज्ञान के बीच लोक-प्रयोजन की दृष्टि से उपयोगी तत्त्वों की पहचान की जा सके। वक्ता ने व्याख्यान के उपरान्त  सहमति – असहमति परक टिप्पणियों को बौद्धिक संवाद का स्वाभाविक हिस्सा मानते हुए स्वस्थ विमर्श की आवश्यकता पर बल दिया l कार्यक्रम के अंत में विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापिका, सिंधु मेहता ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए समारोह के समापन की घोषणा की । कार्यक्रम का संचालन कॉलेज की छात्राओं , जयोस्मिता चक्रवर्ती एवं मानसी छेत्री ने कुशलतापूर्वक किया।

राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ‘वीबी-जी राम जी’ विधेयक बना कानून

– ग्रामीण परिवारों को अब 125 दिनों का रोजगार

नयी दिल्ली । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने ‘विकसित भारत-रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) गारंटी विधेयक, 2025’ (वीबी-जी राम जी) को मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ यह विधेयक क़ानून बन गया। इससे पहले संसद के दोनों सदन इस विधेयक को पास कर चुके हैं। अब ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में बड़ा बदलाव लागू हो गया है। नए कानून के तहत अब ग्रामीण परिवारों को प्रति वित्त वर्ष 125 दिन का वैधानिक मजदूरी रोजगार सुनिश्चित किया जाएगा, जो पहले 100 दिन था। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार, यह अधिनियम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 का स्थान लेगा और इसे विकसित भारत 2047 के विजन के अनुरूप तैयार किया गया है। सरकार का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आय सुरक्षा को मजबूत करने के साथ टिकाऊ और उत्पादक परिसंपत्तियों का निर्माण करना है, ताकि समावेशी और संतुलित विकास को बढ़ावा मिल सके। कानून के प्रावधानों के तहत इच्छुक ग्रामीण परिवारों को न्यूनतम 125 दिन का रोजगार देना सरकार की वैधानिक जिम्मेदारी होगी। मजदूरी का भुगतान साप्ताहिक या अधिकतम 15 दिनों के भीतर करना अनिवार्य किया गया है। तय समयसीमा के भीतर भुगतान नहीं होने पर देरी का मुआवजा देने का भी प्रावधान रखा गया है। कृषि कार्यों के दौरान श्रमिकों की उपलब्धता बनाए रखने के लिए राज्यों को एक वित्त वर्ष में कुल 60 दिन तक का समेकित विराम काल घोषित करने का अधिकार दिया गया है। हालांकि, इससे कुल 125 दिन के रोजगार के अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा और शेष अवधि में पूरा रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा। मंत्रालय ने बताया कि योजना को केंद्र प्रायोजित रखा गया है। सामान्य राज्यों के लिए केंद्र और राज्य के बीच लागत हिस्सेदारी 60:40 होगी, जबकि पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए 90:10 का प्रावधान किया गया है। विधानसभा रहित केंद्रशासित प्रदेशों में पूरा खर्च केंद्र सरकार वहन करेगी। प्रशासनिक खर्च की सीमा को भी 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत कर दिया गया है।

बंगाल में कटे 58 लाख से अधिक नाम

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया के बाद मतदाता सूची का मसौदा प्रकाशित कर दिया गया है। राज्य में कुल सात करोड़ 66 लाख 37 हजार 529 पंजीकृत मतदाताओं में से सात करोड़ आठ लाख 16 हजार 630 मतदाताओं ने अपने गणना प्रपत्र जमा किए हैं, जो कुल मतदाताओं का 92.40 प्रतिशत है। मृत्यु, पलायन और गणना प्रपत्र जमा नहीं करने सहित अन्य कारणों से 58 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय की ओर से जारी बयान के अनुसार यह चरण चार नवंबर 2025 से 11 दिसंबर 2025 तक चला। इस दौरान पारदर्शिता और समावेशन को प्राथमिकता देते हुए व्यापक स्तर पर मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित की गई। अधिकारियों के अनुसार यह भागीदारी विशेष गहन पुनरीक्षण के पहले चरण की बड़ी सफलता मानी जा रही है। इस प्रक्रिया में 24 जिलों के जिला निर्वाचन अधिकारियों, 294 निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों, 3059 सहायक निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों और 80 हजार 681 मतदान केंद्रों पर तैनात बूथ लेवल अधिकारियों की सक्रिय भूमिका रही। इसके साथ ही राज्य के सभी आठ मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों और एक लाख 81 लाख 454 बूथ लेवल एजेंटों ने भी सहयोग किया। बयान में आगे बताया गया कि एसआईआर के दौरान जिन मतदाताओं के फॉर्म नहीं मिले, उनमें वे लोग शामिल हैं जो अन्य राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता बन चुके हैं, जिनका अस्तित्व नहीं पाया गया या जो 11 दिसंबर तक फॉर्म जमा नहीं कर सके या जिन्होंने किसी कारण से मतदाता के रूप में पंजीकरण की इच्छा नहीं जताई। इसके बावजूद आयोग ने स्पष्ट किया है कि कोई भी वास्तविक और पात्र मतदाता छूट न जाए, इसके लिए मंगलवार (16 दिसंबर) से 15 जनवरी 2026 तक दावा और आपत्ति की अवधि रखी गई है। आंकड़ों के मुताबिक जिन मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, उनमें 24.16 लाख मतदाता मृत पाए गए हैं, 32.65 लाख मतदाता स्थानांतरित या अनुपस्थित पाए गए हैं और 1.38 लाख मतदाताओं के नाम एक से अधिक स्थानों पर दर्ज पाए गए हैं। नियमों के अनुसार ऐसे मामलों में मतदाता का नाम केवल एक ही स्थान पर रखा जाएगा। मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के बयान में बताया गया है कि 16 दिसंबर से 15 जनवरी 2026 तक दावा और आपत्ति की प्रक्रिया चलेगी, जबकि सुनवाई और सत्यापन का चरण 7 फरवरी 2026 तक जारी रहेगा। अंतिम मतदाता सूची 14 फरवरी 2026 को प्रकाशित की जाएगी। यदि किसी मतदाता का नाम ड्राफ्ट सूची में नहीं है, तो वह निर्धारित प्रक्रिया के तहत नया आवेदन कर सकता है। निर्वाचन आयोग ने दोहराया है कि ड्राफ्ट मतदाता सूची से किसी भी नाम को बिना नोटिस और लिखित आदेश के हटाया नहीं जाएगा। यदि किसी मतदाता को आपत्ति होती है तो वह नियमानुसार अपील कर सकता है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि पूरी प्रक्रिया सहभागी, पारदर्शी और निष्पक्ष है, ताकि कोई भी पात्र मतदाता वंचित न हो और कोई भी अपात्र नाम सूची में न बना रहे।

तीन साल में सीएपीएफ में 438 आत्महत्याएं, 7 सहकर्मियों की हत्या

– 2014 से अब तक 23 हजार से अधिक जवानों का इस्तीफा
नयी दिल्ली। पिछले तीन वर्षों में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ), असम राइफल्स (एआर) और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) में 438 आत्महत्याओं और सात सहकर्मियों की हत्या की घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह जानकारी मंगलवार को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर के माध्यम से दी। केन्द्र सरकार के अनुसार आत्महत्या के मामलों में 2023 में 157, 2024 में 148 और 2025 में 133 घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि सहकर्मियों की हत्या के दो मामले 2023 में, एक मामला 2024 में और चार मामले 2025 में सामने आए। बलवार आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन वर्षों की अवधि में सबसे अधिक 159 आत्महत्याएं केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में दर्ज की गईं। इसके बाद सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में 120 और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में 60 मामलों की रिपोर्ट हुई। वहीं, असम राइफल्स में 28, सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में 35, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) में 32 और एनएसजी में चार आत्महत्याएं दर्ज की गईं।
सहकर्मियों की हत्या की घटनाओं में असम राइफल्स और सीआरपीएफ में दो-दो, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी में एक-एक मामला दर्ज हुआ, जबकि सीआईएसएफ और एनएसजी में ऐसी कोई घटना नहीं हुई। सरकार ने यह भी बताया कि वर्ष 2014 से अब तक सीएपीएफ, असम राइफल्स और एनएसजी के कुल 23,360 कर्मियों ने सेवा से इस्तीफा दिया है। इनमें सर्वाधिक 7,493 जवान बीएसएफ से, 7,456 सीआरपीएफ से और 4,137 सीआईएसएफ से शामिल हैं। कार्य घंटों और अवकाश से जुड़े सवालों के जवाब में गृह राज्य मंत्री ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में सीएपीएफ में आठ घंटे की शिफ्ट में कार्य होता है, हालांकि परिचालन आवश्यकताओं के अनुसार इसमें बदलाव हो सकता है। उन्होंने बताया कि फील्ड में तैनात कर्मियों के लिए सालाना 75 दिन के अवकाश का प्रावधान है, जिसमें 60 दिन का अर्जित अवकाश और 15 दिन का आकस्मिक अवकाश शामिल है। जबकि अन्य सरकारी कर्मचारियों के लिए 30 दिन के अर्जित अवकाश और 8 दिन के आकस्मिक अवकाश का प्रावधान है। मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर सरकार ने कहा कि सीएपीएफ कर्मियों को बलों के अस्पतालों, समेकित अस्पतालों और विशेष मनोरोग सेवाओं के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। साथ ही तनाव प्रबंधन, योग और ध्यान जैसे कार्यक्रम भी नियमित रूप से आयोजित किए जा रहे हैं।