नयी दिल्ली । केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ ) की सब-इंस्पेक्टर गीता समोटा दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली बल की पहली अधिकारी बन गई हैं, जिसकी ऊंचाई 8,849 मीटर (29,032 फीट) है। गीता 19 मई, 2025 की सुबह शिखर पर पहुँची, जो न केवल उसकी यात्रा में बल्कि भारतीय महिलाओं और CISF के लिए भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। राजस्थान के सीकर जिले के चक गांव की रहने वाली गीता की ग्रामीण परिवेश से लेकर उनकी ये यात्रा, साहस और दृढ़ संकल्प की एक सशक्त कहानी है। ग्रामीण जड़ों से राष्ट्रीय गौरव तक चार बेटियों वाले एक साधारण परिवार में जन्मी गीता समोता का पालन-पोषण पारंपरिक ग्रामीण परिवेश में हुआ। उन्होंने स्थानीय संस्थानों में अपनी स्कूली और कॉलेज की शिक्षा प्राप्त की और अपने कॉलेज के वर्षों के दौरान एक कुशल हॉकी खिलाड़ी थीं, लेकिन एक चोट ने उनके खेल करियर को समाप्त कर दिया। हालाँकि, यह झटका उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया, जिसने उन्हें बड़े उद्देश्य के मार्ग पर आगे बढ़ाया। 2011 में गीता सीआईएसएफ में शामिल हुईं और पर्वतारोहण में गहरी रुचि दिखाई – एक ऐसा क्षेत्र जो उस समय बल के भीतर काफी हद तक अज्ञात था। अवसर का लाभ उठाते हुए उन्हें 2015 में औली में आईटीबीपी प्रशिक्षण संस्थान में छह सप्ताह के बुनियादी पर्वतारोहण पाठ्यक्रम के लिए चुना गया, जहाँ वे अपने बैच की एकमात्र महिला के रूप में उभरीं। उनके असाधारण प्रदर्शन ने 2017 में उनके उन्नत प्रशिक्षण का मार्ग प्रशस्त किया, जिससे वे इस तरह के कठोर कार्यक्रम को पूरा करने वाली पहली सीआईएसएफ अधिकारी बन गईं। गीता की पर्वतारोहण यात्रा ने 2019 में गति पकड़ी, जब वह उत्तराखंड में माउंट सतोपंथ (7,075 मीटर) और नेपाल में माउंट लोबुचे (6,119 मीटर) दोनों पर चढ़ने वाली केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) की पहली महिला बनीं। हालाँकि तकनीकी कारणों से 2021 CAPF एवरेस्ट अभियान रद्द कर दिया गया था, लेकिन उन्होंने इस असफलता को प्रेरणा के रूप में इस्तेमाल किया और सात शिखरों पर अपनी नज़रें टिकाईं – हर महाद्वीप की सबसे ऊँची चोटी पर चढ़ने का लक्ष्य। 2021 और 2022 की शुरुआत के बीच, उन्होंने सेवन समिट्स चैलेंज के हिस्से के रूप में चार प्रमुख चोटियों पर चढ़ाई की: ऑस्ट्रेलिया में माउंट कोसियस्ज़को (2,228 मीटर), रूस में माउंट एल्ब्रस (5,642 मीटर), तंजानिया में माउंट किलिमंजारो (5,895 मीटर), और अर्जेंटीना में माउंट एकॉनकागुआ (6,961 मीटर) केवल 6 महीने और 27 दिनों के रिकॉर्ड समय में यह उपलब्धि हासिल करते हुए, वह ऐसा करने वाली सबसे तेज भारतीय महिला बन गईं।
76 साल में पहली बार, राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे कड़े सवाल
नयी दिल्ली । तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में राज्य विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति पर समय सीमा तय करने वाले सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले का कड़ा खंडन करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस तरह के फैसले की वैधता पर सवाल उठाया है और इस बात पर जोर दिया है कि संविधान में ऐसी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। राष्ट्रपति के जवाब में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 में राज्यपाल की शक्तियों और विधेयकों को स्वीकृति देने या न देने की प्रक्रियाओं के साथ-साथ राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को सुरक्षित रखने का विवरण दिया गया है। हालाँकि, अनुच्छेद 200 में राज्यपाल द्वारा इन संवैधानिक विकल्पों का प्रयोग करने के लिए कोई समय-सीमा निर्दिष्ट नहीं की गई है। इसी प्रकार, अनुच्छेद 201 विधेयकों पर सहमति देने या सहमति न देने के लिए राष्ट्रपति के प्राधिकार और प्रक्रिया को रेखांकित करता है, लेकिन यह इन संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग के लिए कोई समय सीमा या प्रक्रिया निर्धारित नहीं करता है। इसके अलावा, भारत के संविधान में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ किसी कानून को राज्य में लागू होने से पहले राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता होती है। अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियाँ संघवाद, कानूनी एकरूपता, राष्ट्रीय अखंडता और सुरक्षा, और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत सहित कई विचारों द्वारा आकार लेती हैं। जटिलता को और बढ़ाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर विरोधाभासी निर्णय दिए हैं कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति की सहमति न्यायिक समीक्षा के अधीन है या नहीं। राष्ट्रपति के जवाब में कहा गया है कि राज्य अक्सर अनुच्छेद 131 के बजाय अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हैं, जिससे संघीय सवाल उठते हैं, जिन्हें स्वाभाविक रूप से संवैधानिक व्याख्या की आवश्यकता होती है। अनुच्छेद 142 का दायरा, खास तौर पर संवैधानिक या वैधानिक प्रावधानों द्वारा शासित मामलों में, सर्वोच्च न्यायालय की राय की भी मांग करता है। राज्यपाल या राष्ट्रपति के लिए “मान्य सहमति” की अवधारणा संवैधानिक ढांचे का खंडन करती है, जो मूल रूप से उनके विवेकाधीन अधिकार को प्रतिबंधित करती है।
इन सवालों के जवाब मांगे
राष्ट्रपति मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) का हवाला देते हुए महत्वपूर्ण प्रश्नों को सर्वोच्च न्यायालय को उसकी राय के लिए भेजा है। इनमें शामिल हैं:
1. अनुच्छेद 200 के अंतर्गत विधेयक प्रस्तुत किए जाने पर राज्यपाल के पास क्या संवैधानिक विकल्प उपलब्ध हैं?
2. क्या राज्यपाल इन विकल्पों का प्रयोग करने में मंत्रिपरिषद की सलाह से बाध्य हैं?
3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के विवेक का प्रयोग न्यायिक समीक्षा के अधीन है?
4. क्या अनुच्छेद 361, अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के कार्यों की न्यायिक जांच पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है?
5. क्या न्यायालय संवैधानिक समयसीमा के अभाव के बावजूद अनुच्छेद 200 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय राज्यपालों के लिए समयसीमा निर्धारित कर सकते हैं और प्रक्रियाएं निर्धारित कर सकते हैं?
6. क्या अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राष्ट्रपति का विवेक न्यायिक समीक्षा के अधीन है?
7. क्या न्यायालय अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राष्ट्रपति के विवेकाधिकार के प्रयोग के लिए समयसीमा और प्रक्रियागत आवश्यकताएं निर्धारित कर सकते हैं?
8. क्या राज्यपाल द्वारा आरक्षित विधेयकों पर निर्णय लेते समय राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय की राय लेनी चाहिए?
9. क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 200 और 201 के तहत लिए गए निर्णय, किसी कानून के आधिकारिक रूप से लागू होने से पहले न्यायोचित हैं?
10. क्या न्यायपालिका अनुच्छेद 142 के माध्यम से राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा प्रयोग की जाने वाली संवैधानिक शक्तियों को संशोधित या रद्द कर सकती है?
11. क्या अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल की स्वीकृति के बिना कोई राज्य कानून लागू हो जाता है?
12. क्या सर्वोच्च न्यायालय की किसी पीठ को पहले यह निर्धारित करना होगा कि क्या किसी मामले में पर्याप्त संवैधानिक व्याख्या शामिल है और उसे अनुच्छेद 145(3) के तहत पाँच न्यायाधीशों की पीठ को भेजना होगा?
13. क्या अनुच्छेद 142 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां प्रक्रियात्मक मामलों से आगे बढ़कर ऐसे निर्देश जारी करने तक विस्तारित हैं जो मौजूदा संवैधानिक या वैधानिक प्रावधानों का खंडन करते हैं?
14. क्या संविधान सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 131 के अंतर्गत मुकदमे के अलावा किसी अन्य माध्यम से संघ और राज्य सरकारों के बीच विवादों को हल करने की अनुमति देता है?
इन प्रश्नों को उठाकर राष्ट्रपति कार्यपालिका और न्यायिक प्राधिकार की संवैधानिक सीमाओं पर स्पष्टता चाहते हैं, तथा राष्ट्रीय महत्व के मामलों में न्यायिक व्याख्या की आवश्यकता पर बल देते हैं।
आतंकियों को अब नमाज-ए-जनाजा व कब्र नहीं
-ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन ने जारी किया फतवा
नयी दिल्ली । कश्मीर के पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों से धर्म पूछकर की गई उनकी निर्मम हत्या करने की आतंकी घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस आतंकी घटना पर देश के सभी वर्गों और धर्मों के लोगों आतंकियों को बदला लेने के लिए एकमत नजर आए। ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से आतंकवाद के खिलाफ इस निर्णायक जंग में एक अलम फतवा निकाला गया है। जिसमें लोगों से आतंकियों दो गज जमीन भी नहीं देने के लिए कहा गया है। यह फतवा आतंकियों के खिलाफ देश की एकजुटता को दिखाता है। ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन (एआईआईओ) की तरफ से यह फतवा जारी किया गया है। इस फतवे में आतंकियों की मौत पर नमाज-ए-जनाजा ( दफनाने से पहले पढ़ी जाने वाली नमाज) और कब्र की जगह देने को प्रतिबंधित किया गया है।एआईआईओ प्रमुख के चीफ इमाम डॉ. उमेर अहमद इलियासी की ओर से जारी फतवे में कहा गया है कि आतंकियों की मौत पर नमाज-ए-जनाजा और उन्हें कब्र में जगह देना इस्लाम के विरूद्ध है, क्योंकि इस्लाम हिंसा का नहीं शांति का मार्ग दिखाता है और आतंकी इस्लाम को अपने कृत्यों से विश्वभर में बदनाम कर रहे हैं। चीफ इमाम डॉ. उमेर अहमद इलियासी ने बताया कि फतवे में कहा गया है यदि कोई आतंकी देश में मारा जाता है तो उसके जनाजे की नमाज कोई इमाम या काजी नहीं पढ़ाएगा। आतंकियों को भारत की जमीन पर कब्र में भी जगह नहीं दी जाएगी। एक अन्य फतवे में पाकिस्तान परस्त प्रतिबंधित आतंकी संगठन जैश-ए-मोम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के नाम को इस्लाम विरूद्ध बताते हुए कहा गया है कि ये दोनों आतंकी संगठन अल्लाह का नाम रखे हुए हैं। यह गैर इस्लामिक है।
भारत में 76 प्रतिशत लोगों को एआई पर भरोसा : रिपोर्ट
वैश्विक औसत 46 प्रतिशत से काफी अधिक
नयी दिल्ली । भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) को लेकर लोगों का भरोसा बाकी दुनिया से कहीं ज्यादा है। केपीएमजी द्वारा तैयार की गई एक नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 76 प्रतिशत लोग एआई का उपयोग करने को लेकर आत्मविश्वास से भरे हैं, जबकि वैश्विक औसत सिर्फ 46 प्रतिशत है। यह रिपोर्ट 47 देशों के 48,000 लोगों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत न केवल एआई को अपनाने के मामले में आगे है, बल्कि इसकी उपयोगिता और संभावनाओं को लेकर भी सबसे अधिक आशावादी है। सर्वे में भाग लेने वाले 90 प्रतिशत भारतीयों ने माना कि एआई ने अलग-अलग क्षेत्रों में काम की पहुंच और प्रभावशीलता को बेहतर बनाया है। इससे साफ होता है कि भारत में एआई एक बदलाव लाने वाली ताकत बन चुकी है। इतना ही नहीं, 97 प्रतिशत भारतीय कर्मचारी काम में एआई का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा सिर्फ 58 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 67 प्रतिशत लोगों ने माना कि वे एआई के बिना अपने रोज़ के टास्क पूरे नहीं कर सकते। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि भारत में एआई को लेकर समझ और प्रशिक्षण भी बाकी देशों से बेहतर है। लगभग 64 प्रतिशत भारतीयों ने किसी न किसी रूप में एआई से जुड़ा प्रशिक्षण प्राप्त किया है और 83 प्रतिशत लोगों को लगता है कि वे एआई टूल्स का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा, 78 प्रतिशत भारतीयों को अपनी एआई उपयोग करने की क्षमता पर भरोसा है। इस रिपोर्ट को मेलबर्न बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर निकोल गिलेस्पी और डॉ स्टीव लॉकी ने केपीएमजी के सहयोग से तैयार किया है। केपीएमजी इंडिया के अखिलेश टुटेजा ने कहा, “भारत नैतिक और नवाचारी एआई के इस्तेमाल में वैश्विक नेतृत्व के लिए एक मजबूत स्थिति में है।”-
‘ऑपरेशन सिंदूर’ : असम के उद्यमी ने भारतीय सेना के लिए तैयार की विशेष चाय
गुवाहाटी । पाकिस्तान में भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के एक्शन से देशभर में गर्व और उत्साह की लहर है। इसी जज़्बे को शब्दों और कार्यों में बदलते हुए असम के गुवाहाटी स्थित एक उद्यमी ने अनोखे तरीके से भारतीय सेना को सलाम किया है। भारतीय सेना की वीरता को सलाम करते हुए एक विशेष चाय ‘सिंदूर: द प्राइड’ लॉन्च की गई।
शहर के प्रमुख चाय उद्यमी और एरोमिका टी के निदेशक रंजीत बरुआ ने भारतीय सेना की वीरता को सलाम करते हुए एक विशेष चाय “सिंदूर द प्राइड” लॉन्च की है। यह चाय 7 मई को भारतीय सेना के पाकिस्तान और पीओके स्थित आतंकियों के ठिकाने पर की गई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की स्मृति में तैयार की गई है। भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए पाकिस्तान को पहलगाम हमले के बाद करारा जवाब दिया है।
सिंदूर भारतीय समाज में सम्मान और गौरव का प्रतीक है । रंजीत बरुआ ने बताया कि “सिंदूर भारतीय समाज में सम्मान और गौरव का प्रतीक है। मैंने इसी भावना को समर्पित करते हुए यह विशेष चाय पैकेट तैयार किया है। यह किसी व्यावसायिक मंशा से नहीं, बल्कि भारतीय सेना को सलाम करने के उद्देश्य से किया गया है।” इस चाय में हलमारी गोल्डन ऑर्थोडॉक्स और सीटीसी चाय का मिश्रण किया गया है
इस चाय में हलमारी गोल्डन ऑर्थोडॉक्स और सीटीसी चाय का मिश्रण किया गया है। इसका रंग सिंदूर जैसा लाल होता है, जो परंपरा और बलिदान का प्रतीक है। साथ ही, यह पैकेट विशेष रूप से भारतीय सेना को उपहार स्वरूप भेंट किए जाएंगे।
बरुआ यह चाय पैकेट सेना को सौंपने की योजना बना रहे हैं। बरुआ ने बताया कि वह अगले सप्ताह यह चाय पैकेट सेना को सौंपने की योजना बना रहे हैं। उनका मानना है कि जैसे हर खुशी के मौके पर हम चाय के साथ जश्न मनाते हैं, वैसे ही देश की इस बड़ी सैन्य सफलता को भी एक कप विशेष चाय के साथ याद किया जाना चाहिए।
भार्गवस्त्र स्वदेशी ड्रोन रोधी प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण
नयी दिल्ली । भारत ने स्वदेशी रूप से विकसित की गई नई ड्रोन रोधी प्रणाली भार्गवस्त्र का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है। यह कम लागत वाली ‘हार्ड किल मोड’ में काम करने वाली प्रणाली है, जिसे सोलर डिफेंस एंड एयरोस्पेस लिमिटेड (एसडीएएल) ने डिजाइन और विकसित किया है। इसका उद्देश्य ड्रोन झुंडों (स्वार्म ड्रोन) से उत्पन्न बढ़ते खतरे को कुशलता से समाप्त करना है। 13 मई को ओडिशा के गोपालपुर स्थित सीवर्ड फायरिंग रेंज में इसका परीक्षण किया गया, जिसमें भारतीय थल सेना की वायु रक्षा (एएडी) शाखा के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे। तीन परीक्षणों के दौरान कुल चार माइक्रो रॉकेट दागे गए- पहले दो परीक्षणों में एक-एक रॉकेट और तीसरे में दो रॉकेटों को मात्र दो सेकंड में सल्वो मोड में दागा गया। सभी रॉकेटों ने अपने लक्ष्य हासिल किए और अपेक्षित प्रदर्शन किया।भार्गवस्त्र में दो परतों वाली सुरक्षा प्रणाली है, पहले में अनगाइडेड माइक्रो रॉकेट होते हैं जो 20 मीटर के घातक दायरे में झुंड रूपी ड्रोन को समाप्त कर सकते हैं और दूसरे में पहले से परीक्षण किए गए गाइडेड माइक्रो-मिसाइल हैं जो सटीक हमले में सक्षम हैं। यह प्रणाली छोटे ड्रोन को 2.5 किलोमीटर दूर से पहचान और समाप्त कर सकती है। इसकी खास बात यह है कि इसे उच्च पर्वतीय क्षेत्रों (5000 मीटर से अधिक ऊंचाई) समेत किसी भी इलाके में आसानी से तैनात किया जा सकता है। यह प्रणाली मॉड्यूलर है, यानी इसमें अतिरिक्त सॉफ्ट किल तकनीक जैसे जैमिंग और स्पूफिंग को भी जोड़ा जा सकता है। इसका रडार, ईओ ( इलेक्ट्रो ऑप्टिकल ) और आरएफ रिसीवर सेंसर उपयोगकर्ता की जरूरत के अनुसार कॉन्फिगर किए जा सकते हैं। यह प्रणाली मौजूदा नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर ढांचे में भी आसानी से एकीकृत की जा सकती है। इसमें एक अत्याधुनिक कमांड एंड कंट्रोल सेंटर भी है, जो सी 4I (कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशन, कंप्यूटर और इंटेलिजेंस) तकनीक से लैस है। खास बात यह है कि इसका रडार 6 से 10 किलोमीटर दूर तक के सूक्ष्म हवाई खतरों को पहचान सकता है और ईओ /आईआर सेंसर के माध्यम से कम रडार क्रॉस-सेक्शन (एलआरसीएस) वाले लक्ष्यों को सटीकता से ट्रैक किया जा सकता है। इससे ऑपरेटर को झुंड या व्यक्तिगत ड्रोन को पहचानने और नष्ट करने में आसानी होगी। भार्गवस्त्र वैश्विक स्तर पर एक उल्लेखनीय नवाचार है। इसकी ओपन-सोर्स आर्किटेक्चर इसे अद्वितीय बनाती है क्योंकि दुनिया के कई विकसित देश इस प्रकार की माइक्रो-मिसाइल तकनीक पर काम कर रहे हैं, लेकिन अब तक ऐसा कोई भी बहु-स्तरीय और लागत-प्रभावी प्रणाली, जो ड्रोन झुंड को नष्ट कर सके, तैनात नहीं की गई है। यह “मेक इन इंडिया” मिशन के लिए एक और बड़ी उपलब्धि है और भारत की वायु रक्षा क्षमताओं को और अधिक सुदृढ़ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सिविल जज भर्ती के लिए 3 साल की प्रैक्टिस का नियम बहाल
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा 23 साल का नियम
नयी दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सिविल जज की भर्ती के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम तीन साल की वकालत की शर्त को बहाल कर दिया, और कहा कि अदालतों और न्याय प्रशासन के प्रत्यक्ष अनुभव का कोई विकल्प नहीं है। 2002 में, न्यायालय ने सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए तीन साल की शर्त को समाप्त कर दिया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) भूषण आर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने 2002 के आदेश के बाद से उच्च न्यायालयों के 20 वर्षों के अनुभव का हवाला दिया और कहा कि सिर्फ़ विधि स्नातकों की भर्ती सफल नहीं रही है। इससे कई समस्याएं पैदा हुई। पीठ ने उच्च न्यायालयों से प्राप्त फीडबैक का विश्लेषण किया, जिसमें पता चला कि न्यायाधीश के रूप में भर्ती किए गए नए विधि स्नातक न्यायालयों और मुकदमेबाजी प्रक्रिया को नहीं जानते हैं। पीठ ने कहा कि यदि मुकदमेबाजी से परिचित वकीलों को अवसर दिया जाता है, तो इससे मानवीय समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता आएगी और बार में अनुभव बढ़ेगा।” राज्यों और उच्च न्यायालयों से प्रतिक्रिया मांगने के बाद यह आदेश पारित किया गया। अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ ने न्यायालय में याचिका दायर कर पूछा कि क्या न्यायिक सेवा में प्रवेश के लिए न्यूनतम तीन वर्ष की विधि प्रैक्टिस को बहाल किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि केवल एक प्रैक्टिसिंग वकील ही मुकदमेबाजी और न्याय प्रशासन की पेचीदगियों को समझ सकता है। इसने राज्यों और उच्च न्यायालयों को तीन महीने के भीतर भर्ती प्रक्रिया में संशोधन करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने मंगलवार के फैसले के लंबित रहने के दौरान कुछ राज्यों में भर्ती प्रक्रिया को स्थगित रखा था। इसने कहा कि भर्ती विज्ञापन की तिथि पर लागू नियमों के अनुसार होगी। पीठ ने स्पष्ट किया कि मंगलवार का फैसला उन राज्यों पर लागू नहीं होगा जहां सिविल जजों (जूनियर डिवीजन) की भर्ती शुरू हो चुकी है या अधिसूचना जारी हो चुकी है।पीठ ने कहा कि केवल एक प्रैक्टिसिंग वकील ही मुकदमेबाजी और न्याय प्रशासन की पेचीदगियों को समझ सकता है। इसने राज्यों और उच्च न्यायालयों को तीन महीने के भीतर भर्ती प्रक्रिया में संशोधन करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने मंगलवार के फैसले के लंबित रहने के दौरान कुछ राज्यों में भर्ती प्रक्रिया को स्थगित रखा था। इसने कहा कि भर्ती विज्ञापन की तिथि पर लागू नियमों के अनुसार होगी। पीठ ने स्पष्ट किया कि मंगलवार का फैसला उन राज्यों पर लागू नहीं होगा जहां सिविल जजों (जूनियर डिवीजन) की भर्ती शुरू हो चुकी है या अधिसूचना जारी हो चुकी है।
नहीं रहे परमाणु वैज्ञानिक एमआर श्रीनिवासन
चेन्नई । परमाणु वैज्ञानिक और परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एम.आर. श्रीनिवासन का मंगलवार को तमिलनाडु के उधगमंडलम में निधन हो गया। वे 95 वर्ष के थे। भारत के सिविल न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम के प्रमुख वास्तुकार, डॉ. श्रीनिवासन ने परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) में करियर सितंबर 1955 से शुरू किया, जो पांच दशकों से भी ज्यादा चला।
उन्होंने डॉ. होमी भाभा के साथ मिलकर भारत के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर अप्सरा के निर्माण में काम किया, जो अगस्त 1956 में शुरू हुआ था। 1959 में उन्हें देश के पहले परमाणु ऊर्जा स्टेशन के लिए प्रधान परियोजना इंजीनियर नियुक्त किया गया। 1967 में, उन्होंने मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन के मुख्य परियोजना इंजीनियर के रूप में जिम्मेदारी संभाली, जिसने भारत की आत्मनिर्भर परमाणु ऊर्जा क्षमताओं की नींव रखी। 1974 में वे डीएई के पावर प्रोजेक्ट्स इंजीनियरिंग डिवीजन के निदेशक बने और एक दशक बाद न्यूक्लियर पावर बोर्ड के अध्यक्ष का पद संभाला।
उनके नेतृत्व में देश ने अपने परमाणु बुनियादी ढांचे में तेजी से विकास देखा, जिसमें श्रीनिवासन ने भारत भर में प्रमुख बिजली संयंत्रों की योजना, निर्माण और कमीशनिंग की देखरेख की। 1987 में उन्हें परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग का सचिव नियुक्त किया गया। उसी साल वे न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) के संस्थापक अध्यक्ष भी बने। उनके कार्यकाल में उल्लेखनीय विस्तार हुआ और उनके मार्गदर्शन में 18 परमाणु ऊर्जा इकाइयां विकसित की गईं, जिनमें सात चालू हो गई थीं और सात निर्माणाधीन थीं। इसके अलावा, चार योजना चरण में थीं।
परमाणु विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनके अनुकरणीय योगदान के लिए डॉ. श्रीनिवासन को भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उनकी बेटी शारदा श्रीनिवासन ने परिवार की ओर से जारी एक बयान में कहा, “दूरदर्शी नेतृत्व, तकनीकी प्रतिभा और राष्ट्र के प्रति अथक सेवा की उनकी विरासत भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।”
डॉ. श्रीनिवासन की मृत्यु भारत के वैज्ञानिक और तकनीकी इतिहास में एक युग का अंत है। वे अपने पीछे एक ऐसी स्थायी विरासत छोड़ गए हैं, जिसने देश की प्रगति और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने में मदद की।
तुलसीदास का काव्य प्रेम का आख्यान है : प्रो.हरिश्चंद्र मिश्र
मिदनापुर । राजा नरेंद्र लाल खान महिला महाविद्यालय (स्वायत्त), मेदिनीपुर, के हिन्दी विभाग की ओर से भक्ति के विकास में तुलसीदास की भूमिका विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विषय विशेषज्ञ के तौर पर उपस्थित थे विश्व भारती, शांतिनिकेतन के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर हरिश्चंद्र मिश्र । बांग्ला विभाग की प्रोफेसर अनिता साहा ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम विद्यार्थियों की शिक्षा को गति देने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।प्रो. मिश्र ने कहा प्रेम के बिना भक्ति का मार्ग नहीं तय किया जा सकता।राम की प्रसिद्धि का संदर्भ सीता के बिना संभव नहीं है।।विभागाध्यक्ष डॉ. रेणु गुप्ता ने अतिथियों एवं विद्यार्थियों का स्वागत किया।इस अवसर पर विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कुमार प्रसाद, डॉ. संजय जायसवाल, डॉ. श्रीकांत द्विवेदी उपस्थित थे। कॉलेज की छात्रा अयंतिका दास की मनमोहक संगीत और बरनाली महाता के नृत्य से कार्यक्रम आरंभ किया गया। इस संगोष्ठी में मिदनापुर कॉलेज, खड़गपुर कॉलेज और विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं शिक्षकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम का सफल संचालन सुश्री रूथ कर ने किया । धन्यवाद ज्ञापित करते हुए शिक्षिका सुमिता भकत ने कहा कि तुलसी का साहित्य राम के बनने की कथा भी है। कार्यक्रम को सफल बनाने में काॅलेज के सभी अधिकारियों का सहयोग मिला।
सेठ सूरजमल जालान गर्ल्स कॉलेज में पहली बार कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव का आयोजन
कोलकाता । सेठ सूरजमल जालान गर्ल्स कॉलेज में 14 मई 2025 में पहली बार प्लेसमेंट ड्राइव आयोजित की गयी। कॉलेज ने अपने अंतिम वर्ष के बी.कॉम और बी.ए. की छात्राओं के लिए पहली बार कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव का आयोजन किया। यह कार्यक्रम सुबह 9:30 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक आयोजित किया गया और यह युवा महिलाओं को करियर के अवसरों और आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस पहल का नेतृत्व सीएस आयुषी खेतान ने किया, जो एक कंपनी सेक्रेटरी (सी.एस.), वाणिज्य में स्नातकोत्तर (एम.कॉम) और कॉलेज की पूर्व छात्रा भी हैं। प्राचार्या प्रज्ञा मोहंती और प्रोफेसर लुत्फुन निशा के सहयोग से आयुषी खेतान ने इस पूरी प्लेसमेंट प्रक्रिया को डिज़ाइन और संगठित किया। इस कार्यक्रम की सफलता में प्रोफेसर लुत्फुन निशा के सक्रिय मार्गदर्शन और समन्वय के लिए विशेष सराहना की गई।
इस प्लेसमेंट ड्राइव में निम्नलिखित सात प्रतिष्ठित कंपनियों और फर्मों ने भाग लिया:वी. खंडेलवाल एंड एसोसिएट्स (सी.ए. फर्म), पी.के. शाह एंड एसोसिएट्स (सी.ए. फर्म, शिखा गुप्ता एंड एसोसिएट्स (सी.ए. फर्म), आर्या मेटल्स प्राइवेट लिमिटेड, वेस्टॉक, बीटाफाइन पार्टनर्स, यूनिचॉइस एलएलपी
छात्राओं को पेशेवरों से बातचीत करने, साक्षात्कार में भाग लेने और स्नातक के बाद करियर की संभावनाओं को समझने का अवसर मिला। इस ड्राइव ने न केवल रोजगार के अवसर प्रदान किए बल्कि छात्राओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता और करियर योजना के महत्व को भी समझाया। कॉलेज की पूर्व छात्रा होने के नाते आयुषी का परिश्रम और समर्पण इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम रहा, और यह महिलाओं के सशक्तिकरण तथा करियर विकास की दिशा में एक मिसाल कायम करता है। उनके योगदान ने यह दर्शाया कि कैसे एक पूर्व छात्रा अपने संस्थान को वापस कुछ देने और नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करने के लिए प्रतिबद्ध हो सकती है।