जब स्वामी विवेकानंद ने भूखे रहकर बच्चों को दे दी रोटियाँ

स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी घटनाएं प्रेरक प्रसंगों के रूप में भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पढ़ी-सुनी जाती हैं। ऐसा ही एक प्रेरक वाकया है, जिसमें उन्होंने स्वयं भूखे होने के बावजूद अपनी सारी रोटियां बच्चों में बांट दी।

किस्सा कुछ यूं है कि एक बार स्वामी जी अमेरिका गए। वहां वे अक्सर लंबी यात्राएं करते और अलग-अलग शहरों में भारत की महान संस्कृति और सनातन धर्म के बारे में व्याख्यान देते। लोग दूर-दूर से उन्हें सुनने आते और जब

लौटते तो धर्म और अध्यात्म के नजरिए से तृप्त होकर लौटते। ऐसे ही एक बार व्याख्यान के बाद स्वामी जी घर लौटे। तब वे अमेरिका में एक महिला के घर पर ठहरे थे। वे अपना भोजन खुद बनाते थे।

उस दिन सुबह से शाम तक भूखे ही व्याख्यान देकर स्वामी जी ने घर लौटकर बहुत यत्नपूर्वक भोजन बनाया। उस दिन उन्होंने अपनी रोजाना की मात्रा से कुछ ज्यादा ही रोटियां बनाईं। भोजन बनाकर, भगवान को भोग लगाकर, जैसे ही वे भोजन करने बैठे, कुछ बच्चों का झुंड उनके पास आ गया। वैसे भी अक्सर बच्चे उनके पास आ जाया करते थे। भोजन देखकर बच्चों के मुंह

में पानी आ गया और उन्होंने स्वामी जी से रोटियां मांग लीं। स्वामी जी ने भी झट से एक-एक करके रोटी सब बच्चों को दे दी। रोटियां खत्म हो गईं और स्वामी जी भूखे रह गए।

यह सारा दृश्य उस महिला ने देख लिया, जिसके घर में स्वामी जी रहते थे। उसने पूछा कि आप सुबह से भूखे हैं, फिर भी अपनी रोटियां बच्चों को क्यों दे दीं ? तब स्वामी जी ने कहा – ‘मां, ये रोटियां तो मेरे पेट की क्षुधा ही शांत कर सकती हैं, मेरे अंतर्मन की क्षुधा तो मेरे शास्त्रों और धर्म ग्रंथों ने पहले ही शांत कर दी। पेट की क्षुधा उतनी महत्वपूर्ण नहीं, जितनी अंतर्मन की!

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जब स्वामी विवेकानंद ने भूखे रहकर बच्चों को दे दी रोटियाँ

स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी घटनाएं प्रेरक प्रसंगों के रूप में भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पढ़ी-सुनी जाती हैं। ऐसा ही एक प्रेरक वाकया है, जिसमें उन्होंने स्वयं भूखे होने के बावजूद अपनी सारी रोटियां बच्चों में बांट दी।

किस्सा कुछ यूं है कि एक बार स्वामी जी अमेरिका गए। वहां वे अक्सर लंबी यात्राएं करते और अलग-अलग शहरों में भारत की महान संस्कृति और सनातन धर्म के बारे में व्याख्यान देते। लोग दूर-दूर से उन्हें सुनने आते और जब

लौटते तो धर्म और अध्यात्म के नजरिए से तृप्त होकर लौटते। ऐसे ही एक बार व्याख्यान के बाद स्वामी जी घर लौटे। तब वे अमेरिका में एक महिला के घर पर ठहरे थे। वे अपना भोजन खुद बनाते थे।

उस दिन सुबह से शाम तक भूखे ही व्याख्यान देकर स्वामी जी ने घर लौटकर बहुत यत्नपूर्वक भोजन बनाया। उस दिन उन्होंने अपनी रोजाना की मात्रा से कुछ ज्यादा ही रोटियां बनाईं। भोजन बनाकर, भगवान को भोग लगाकर, जैसे ही वे भोजन करने बैठे, कुछ बच्चों का झुंड उनके पास आ गया। वैसे भी अक्सर बच्चे उनके पास आ जाया करते थे। भोजन देखकर बच्चों के मुंह

में पानी आ गया और उन्होंने स्वामी जी से रोटियां मांग लीं। स्वामी जी ने भी झट से एक-एक करके रोटी सब बच्चों को दे दी। रोटियां खत्म हो गईं और स्वामी जी भूखे रह गए।

यह सारा दृश्य उस महिला ने देख लिया, जिसके घर में स्वामी जी रहते थे। उसने पूछा कि आप सुबह से भूखे हैं, फिर भी अपनी रोटियां बच्चों को क्यों दे दीं ? तब स्वामी जी ने कहा – ‘मां, ये रोटियां तो मेरे पेट की क्षुधा ही शांत कर सकती हैं, मेरे अंतर्मन की क्षुधा तो मेरे शास्त्रों और धर्म ग्रंथों ने पहले ही शांत कर दी। पेट की क्षुधा उतनी महत्वपूर्ण नहीं, जितनी अंतर्मन की!’

 

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