प्रोफेसर प्रणय के संग्रहालय में साहित्य के पुरखे!

जयराम-शुक्ल

ऐसी विलक्षण सर्जना पर यदि किसी गुन के गाहक की दृष्टि पड़ती तो ये भी मैडम तुसाद या मकबूल फिदा हुसैन की पंक्ति में खड़े मिलते, लेकिन हिन्दी की कीर्ति पताका थामे धुन के पक्के प्रोफेसर प्रणय यश, वैभव की परवाह किए बगैर हिन्दी साहित्य के पुरखों को गढ़े जा रहे हैं।

उनके अनूठे संग्रहालय में अमीर खुसरो से लेकर दुष्यंत कुमार तक की पीढ़ी के साहित्यकारों की मूर्तियां विराजमान हैं।..यह वृस्तित सूची हिन्दी 170 साहित्यकारों की है।

खास बात यह कि इसमें जहाँ नीरज,किशन सरोज जैसे गीतकार हैं वहीं राजेन्द्र माथुर और प्रभाष जोशी भी शान से बिराजे हैं।

पहले जाने ये प्रोफेसर प्रणय कौन हैं और कहाँ रहते हैं..? प्रोफेसर प्रणय का ठिकाना फिलहाल मानिकपुर(चित्रकूट) है, पर कोई गारंटी नहीं कि वे कल भी यहीं रहेंगे। पाँच बरस पहले तक वे रीवा जिले के छोटे से कस्बे लालगाँव में थे।

वे यहाँ एक डिग्री कालेज में हिन्दी के प्रोफेसर थे। हिन्दी के साहित्यिक पुरखों को गढने का जुनून यहीं सवार हुआ। रिटायर होने के बाद वे डेरे-डकूले के साथ मूर्तियां भी बाँधकर ले गए अपने गृहग्राम मानिकपुर।

“खुसरो से लेकर दुष्यंत कुमार,सभी मिलेंगे प्रभाष जोशी राजेन्द्र माथुर के साथ।”

अब वे उस जगह की तलाश में हैं जहाँ एक ऐसा संग्रहालय बना सकें जिसमें अमीर खुसरो से लेकर नई पीढ़ी तक के यशस्वी साहित्यकारों की मूर्ति उनके कृतित्व-व्यक्तित्व के लेखांकन के साथ सजा सजा सकें।

वह जगह रीवा-सतना भी हो सकती है और भोपाल भी बशर्ते कोई संस्था या सरकार उनके गुन की गाहक बन सके।

फिलहाल रंगेय राघव की मूर्ति तराश रहे प्रणय बताते हैं कि कोई सौ साहित्यकारों की मूर्तियां वे गढ़ चुके हैं। उनकी सूची फिलहाल 170 की है पर मित्रों के सुझाव पर रोज जुड़ती जाती है।

जैसे आज ही मैंने तीन नाम सुझा दिए, हिन्दी आंदोलन खड़ा करने वाले डा.लोहिया, यशस्वी पत्रिका कल्पना के प्रकाशक बद्रीविशाल पित्ती और हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की लड़ाई लड़ने वाले अनथक योद्धा श्यामरुद्र पाठक का। ये भी अब प्रणय की सूची में शामिल हैं।

फौरी याददाश्त के हिसाब से प्रणय जिन साहित्यकारों की मूर्तियां गढ़ चुके हैं उनमें ये सब हैं साथ ही वे कैफियत देते हैं कि हाँ इन्हें वरिष्ठता के क्रम से मत लीजियेगा। इन मूर्तिमान साहित्यकारों में हैं-
●सुनीति कुमार चटर्जी(भाषा वै.)
●भोलानाथ तिवारी ( भाषा वै.)
● कामता प्रसाद गुरु(व्याकरण )
●किशोरीदास बाजपेयी (व्याक)
● रामचंद्र शुक्ल ( आलोचक )
●नामवर सिंह (आलोचक)
● रामविलास शर्मा ( आलो .)
●माखनलाल चतुर्वेदी ( पत्रकार)
● प्रभाष जोशी
● राजेन्द्र माथुर
●चंदवरदायी
● जगनिक
●विद्यापति
●सुरदास
●मीरां
●कबीर
●तुलसी
● जायसी
● रसखान
●केशव
● रहीम
●भूषण
● भारतेन्दु
●प्रसाद ,
●निराला
●महादेवी
●राहुल सांकृत्यायन
● देवकी नंदन खत्री
● प्रेमचंद
● नागार्जुन
●त्रिलोचन
● मुकुटधर पाण्डेय
● अदम गोंडवी
●देवेन्द्र सत्यार्थी
● मुक्तिबोध
● यशपाल
●रेणु
● दिनकर
●अज्ञेय
● बालकृष्ण शर्मा नवीन
● श्रीलाल शुक्ल
● गोविन्द व्यास
●मन्नू भंडारी
●कृष्णा सोबती
●मृदुला गर्ग
● चित्रा मुद्गल
● नीरज
●दुष्यंत कुमार
● गोविन्द मिश्र
● किशन सरोज आदि हैं

प्रणय बताते हैं कि हिन्दी को खड़ी बोली का मान देने वाले अमीर खुसरो की मूर्ति अभी पिछले हफ्ते गढ़ी। चंदबरदाई को फिर से गढ़ना है क्योंकि उनकी मूर्ति में वे भाव अभी नहीं आ रहे हैं।

प्रोफेसर प्रणय स्वयं हिन्दी के यशस्वी साहित्यकार हैं। नागार्जुन के रचनाकर्म पर शोधकर डाक्टरी की उपाधि पाई। कविता, और कहानियों के कई संग्रह आ चुके हैं।

प्रणय सिद्धहस्त रेखाचित्रकार हैं। उनके रेखांकन देश की प्रसिद्ध पत्रिकाओं में प्रायः छपते रहते हैं। पेंटिंग्स का उनका अपना कलेक्शन है..उन्होंने वुडकार्विंग पर भी हाथ आजमाया।

प्रणय ने मूर्ति बनाने की निहायत नई शैली अपनाई। वे मूर्तियों को सीमेंट से तराशते हैं। प्रणय बताते हैं कि पहले छेनी- हथौड़ी के साथ शिल्प का काम करता था, उसमें दिक्कत यह थी कि भावभंगिमा में वह बारीकी नहीं आ पाती थी। फिर ऐसे पत्थरों का टोटा है जिसकी मूर्ति गढ़ी जा सके। तीसरे मूर्तियां बनाने का लक्ष्य बड़ा है और शिल्प का काम समय बहुत लेता है।

सीमेंट में आकृति कैसे सेट कर लेते हैं..? प्रणय बताते हैं कि पहले मिट्टी की मूर्तियां बनाते हैं, फिर उसे प्लास्टर आफ पेरिस में उतारकर फर्मा बना लेते हैं। उसी को सीमेंट में सेट कर लेते हैं। सीमेंट के काम में सफाई बहुत रहती है। मसलन झुर्रियाँ दर्शाना है या विशिष्ट भावभंगिमा देनी है तो इसमें आसान पड़ता है।

इनपर लागत का खर्चा कैसे जुटाते हैं? प्रणय का सीधा जवाब था- अपनी पेंशन से। यदि कलाकार का मेहनताना जोड़ दिया जाए तो अमूमन एक मूर्ति पर पच्चीस से तीस हजार की लागत आती है। चूँकि सामग्री का खर्चा डेढ़ दो हजार ही लगता है सो सब सध जाता है मेरा अपना मेहनताना मैं खुद ही हूँ।

प्रणय ने मूर्ति कला को व्यवसाय नहीं बनाया। प्रायः लोग मूर्तियां बनवाना चाहते हैं अच्छी खासी रकम देकर लेकिन यदि उस लोभ में फँस गया तो ये साहित्यिक पुरखे कल्पनाओं में ही धरे के धरे रह जाएंगे।

ऐसा कुछ विलक्षण काम करें यह ख्याल कहाँ से आया..? प्रणय बताते हैं कि नगर के चौराहों में नेताओं की मूर्तियां देखता हूँ तो लगता है कि यहाँ साहित्यकारों की होनी चाहिए.. बस यहीं से काम शुरू किया।

लेकिन अब मुश्किल इन सभी मूर्तियों के लिए संग्रहालय बनाने का है। जमापूंजी तो बची नहीं..। सतना के समीप दो एकड़ की जमीन ली है पर इस दृष्टि से वह जमी नहीं। देखता हूँ..कोई गुन का गाहक मिले तो उसी को ये सब सौंपकर मुक्त हो जाऊँ। इच्छा तो यह है कि राजधानी भोपाल में कहीं इन मूर्तियों के लिए जगह मिले।

प्रणय मजाक करते हुए कहते हैं कि आखिर इन पुरखों का भी तो कोई फर्ज बनता है किसी को यह सम्मति दें..कोई सेठ बद्रीविशाल पित्ती बनकर सामने आए..या भारतभवन पर अपनी पीठ ठोकने वाली सरकार ही कुछ सुने।

प्रणय स्वाभिमानी हैं, अपनी गढ़ी मूर्तियों में वे स्वयं को कबीर के निकट पाते हैं। कबीर माने निर्भय, अपना घर फूँककर मसाल दिखाने वाला। आज नहीं तो कल कोई न कोई गुन का गाहक मिलेगा और नहीं भी मिलेगा तो फिकर किस बात की..वे कहते हैं कि ये जिन्दगी तो मगहर में ही पल रही है न।

पुनश्च:

प्रो. प्रणय फिलहाल मानिकपुर(चित्रकूट) उप्र. में रहते हैं उनका मोबाइल नंबर है-
9451435245
कोई दाता-धर्मी, भामाशाह आपको मिले तो उसे इस लेख को जरूर पढ़ाइएगा..संभव है.. हिन्दी वांग्मय रचने वाले ये पुरोधा एक संग्रहालय में मूर्तिमान हो सकें.. और नई पीढी गर्वानुभूति कर सके।

शुभजिता

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