भारतीय भाषा परिषद द्वारा गाँधी जयंती पर आयोजन
कोलकाता : गांधी ने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान आध्यात्मिक प्रश्नों के साथ स्वराज और स्वतंत्रता के प्रश्न उठाए थे। गांधी के जीवन और विचारों से सिर्फ भारत नहीं सम्पूर्ण मानव जाति के उत्थान की भावना मजबूत होती है। गांधी जयंती के अवसर पर भारतीय भाषा परिषद में आयोजित वेब संगोष्ठी में ये विचार व्यक्त किए गए। भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ कुसुम खेमानी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि वर्तमान युग में गांधी के विचारों की बड़ी जरूरत है। गांधी का विश्व भर में इधर पहले से ज्यादा आदर बढ़ा है। देश में भी उनके प्रति आदर का कोई अर्थ तभी है जब उनके विचारों के प्रति आदर बढ़ेगा। दिल्ली के विकासशील अध्ययन पीठ के प्रो. निशिकांत कोलगे ने कहा कि गांधी वेदांत और टालस्टाय से प्रभावित थे। उन्होंने अपने युग धर्म पर चिंतन करते हुए पाया कि राजनीति को मूल्यों से जोड़ने की जरूरत है। उन्होंने धर्म को सम्प्रदाय के रूप में नहीं मूल्यों के रूप में पहचानना उनके विचारों का बीज रूप ‘हिन्द स्वराज’ (1909) में है। वे चाहते थे कि भारत के लोग समानता, एकता और सद्भावना के आधार पर स्वराज की समझ बनाएं। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर और चिंतक अपूर्वानंद ने गांधी के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि गांधी का केंद्रीय प्रश्न यह था कि वैष्णव जन कौन है, उसके गुण क्या हो सकते हैं। उन्होंने बतलाया कि राजनीति का अर्थ पंक्ति में खड़े अंतिम मनुष्य के हित में सोचना है। उन्होंने सावधान किया कि बहुसंख्यकता को बहुमत का पर्याय नहीं मानना चाहिए। मुक्ति सभी को साथ लेकर ही सम्भव है। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ आलोचक और भारतीय भाषा परिषद के निदेशक शम्भुनाथ ने कहा कि यह वस्तुतः गांधी-विरोधी समय है। गांधी का व्यक्तित्व एक महान भारत का सामंजस्य है। उन्होंने गोखले और तिलक के बीच सामंजस्य स्थापित किया। कबीर से ‘चरखा’ लिया तो तुलसी से ‘रामराज्य’ लिया। गांधी ने भारत को एक उदार और मानवीय राष्ट्र दिया है। उन्होंने ईमानदारी, सहिष्णुता और सामंजस्य को बड़े मूल्य के रूप में स्थापित किया। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने उदारवादी और मानवतावादी देश के बुनियादी स्वभाव की रक्षा करें। विद्वेष, घृणा और हिंसा से बचें। सभा का संचालन करते हुए प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि गांधी जी ने सिर्फ अपने समय को ही नहीं बाद में आनेवाली पीढ़ियों को दिशा देने का काम किया है। गांधी धार्मिक कट्टरवाद और आतंकवाद के युग में फिर से प्रासंगिक हो उठे हैं। परिषद के मंत्री डॉ. केयुर मजूमदार ने गांधी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया।