हिन्दी के गौरव पुरुष थे डॉ.नामवर सिंह

कोलकाता : वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह के निधन पर भारतीय भाषा परिषद में आयोजित शोक सभा में उनके अवदान पर चर्चा करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। आलोचक श्रीनिवास शर्मा ने कहा, प्रगतिशील साहित्य के वैचारिक सरोकारों के इतिहास से नामवर सिंह की साहित्यिक यात्रा जुड़ी हैं। प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन से लेकर आधुनिकतम साहित्य को उन्होंने आलोचना का विषय बनाया। ऐसे आलोचक किसी भाषा में जल्दी नहीं पैदा होते।
नामवर जी के शिष्य बृजमोहन सिंह ने कहा कि उन्होंने एक ओर वैचारिक संकीर्णता पर प्रहार की तो दूसरी तरफ सामाजिक चेतना से दूर साहित्य की भी आलोचना की। प्रेसिडेंसी विश्‍वविद्यालय के प्रो.वेदरमण ने कहा कि नमावर बहुत सहज थे। उन्होंने आलोचना को जो ऊँचाई दी, वह हमेशा बनी रहेगी।
परिषद की अध्यक्ष कुसुम खेमानी ने कहा कि उन्होंने बड़े मन से उन्होंने परिषद को हमेशा अपना सहयोग दिया। अरुण माहेश्‍वरी ने कहा कि उनके विचार एक वैकल्पिक विश्‍वदृष्टि के महान अंग हैं। सरला माहेश्‍वरी ने कहा कि वे हिंदी जगत की ऐसी शख्सियत थी जिनसे हिंदी जगत का कोई व्यक्ति अछूता नहीं रह सका है। मृत्युंजय ने कहा कि नामवर जी की इतनी ख्याति थी कि लेखक प्रतीक्षा में रहते थे कि वे उनका नाम ले लें। सेराज खान बातिश ने कहा कि नामवर सिंह की आलोचना के पाठक हमेश बने रहेंगे।
राकेश श्रीमाल ने कहा कि साहित्य में रुचि रखने वाला हर व्यक्ति नामवर जी को मन से अप्रत्यक्ष तौर पर स्मरण में रखता है। वागर्थ के सम्पादक डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि आचार्य शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी और रामविलास शर्मा ने यदि परंपरा के मूल्यांकन को समृद्ध बनाया तो नामवर सिंह ने समकालीन रचनाशीलता की उत्तम व्याख्या की। उनकी नई वैचारिक सूझ और ताजगी हमेशा पे्ररणा देती रहेगी। उन्होंने मौखिक परंपरा को आलोचना के स्तर पर प्रसिद्ध किया। पीयूषकांत, बालेश्‍वराय, सुशील कान्ति, पंकज सिंह आदि ने नामवर के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। परिषद की सचिव बिमला पोद्दार ने संचालन किया।
प्रस्तुति : सुशील कान्ति

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