हिंदी साहित्य का संबंध सांस्कृतिक जागरण से है

कोलकाता : सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा ‘साहित्य संवाद’ के तहत आयोजित सभा में भक्ति साहित्य और आधुनिक बोध पर चर्चा करते हुए कहा गया कि हिंदी साहित्य की परम्परा को अखंडता में देखने की जरूरत है। अंग्रेजी राज का मध्यकाल और आधुनिक काल का विभाजन अब स्वीकार नहीं किया जा सकता। हिंदी साहित्य आम लोगों के सांस्कृतिक जागरण का साहित्य है। शोधछात्रा पूजा गुप्ता ने शोध आलेख पाठ में कहा कि भक्ति काव्य का प्रभाव राष्ट्रीय स्वाधीनता पर था, लेकिन वर्तमान युग में नहीं है। गांधी पर नरसी मेहता और तुलसी का असर था। स्वाधीनता संग्रामी भक्त कवियों के भजन गाकर अंग्रेजी राज में लोगों को इकट्ठा करते थे। गुरुनानक और चैतन्य देव ने सामाजिक भेदभाव का विरोध कर राष्ट्रीय चेतना का मार्ग प्रशस्त कर रहे थे। पविंद कुमार ने हिंदी के विशिष्ट कथाकार काशीनाथ सिंह पर आलेख पाठ करते हुए कहा कि काशीनाथ सिंह की कृतियां जीवन को अर्थ देने और जनांदोलन की चेतना को व्यक्त करने के लिए सामने आईं। उनमें बनारस की संस्कृति अपनी समस्याओं के साथ उभरती है। उन्होंने युवाओं के बदलते मन को भी समझने का प्रयत्न किया है। कथाकार सेराज खान बातिश. ने कहा कि इस समय अपने विचारों में कमी आ गई है और अंधानुकरण बढ़ा है। कवि राज्यवर्द्धन ने कहा कि लेखन को अब वाचिक निपुणता से जोड़ना जरूरी है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शंभुनाथ ने कहा कि साहित्य संवाद का यह मंच शोधार्थियों के चिंतन और लेखन को समृद्ध करने का अवसर प्रदान करता है। इस अवसर पर प्रकाश त्रिपाठी, राजेश साह, नवोनीता दास, जूही करन, सुषमा त्रिपाठी, पंकज सिंह, मिथिलेश साव, कालीप्रसाद जायसवाल ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन संजय जायसवाल और धन्यवाद ज्ञापन राजेश मिश्र ने दिया।

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