सुनो स्त्रियों

उमा झुनझुनवाला
मेरा नाम उमा है
या सीता गीता
सलमा नफ़ीसा मैरी
कमली, मराठी, बंगाली
मलयाली, जम्मुई, असमी
जो चाहे नाम रख लो
जहाँ की चाहे समझ लो
उम्र की भी कोई बंदिश नहीं
जिस उम्र की पसंद आए
वही मान लो, चुन लो
किसी बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता
लिंग बस स्त्री का ही होना चाहिए
इतना मात्र ही काफ़ी है बलात्कार के लिए
बलात्कार इन दिनों केवल एक शब्द है
जो अलग अलग अर्थो में ध्वनित हो रहा है
नेता के लिए अलग अर्थ
जाति और धर्म के लिए अलग अर्थ
शासक के लिए अलग अर्थ
आम आदमी के लिए बिल्कुल अलग अर्थ
स्त्रियों के पास उनका कोई अर्थ नहीं
ओ स्त्रियों
खुश रहो कि अब तक तुम्हारा बलात्कार नहीं हुआ
तुम्हारे घर की लड़कियाँ बची हुई हैं अब तक
पड़ोस में शायद न घटी कोई घटना अब तक
शायद रिश्तेदार भी सुरक्षित हों अब तक
मगर कब तक…
कब तक…
कब तक…
सोचना ज़रूर…
अगर अब भी न सोचा
तो फिर कब
देखो स्त्रियों
पुरुषों पर इल्ज़ाम लगाना बन्द करो
ये पुरुष तुम्हारे गर्भ से ही पैदा हुए हैं
बलात्कार की ज़िम्मेदार इसलिए तुम ही हो
अब या तो पुरुषों का जन्म बन्द हो
या स्त्रियाँ वजूद में ही न आए
जहाँ दोनों होंगे
बलात्कार होना ही है
बलात्कार करके पुरुष आज़ाद ही रहेगा
मरेगी तो स्त्री
ज़लील होगी तो स्त्री
छाती पिटेगी तो स्त्री
तार तार होगी तो स्त्री
सुनो स्त्रियों
बच्चे पैदा करना बंद कर दो अब
ना लड़का
ना लड़की
याद रखना
बलात्कारी की कोई सज़ा नहीं
कोई रोक भी नहीं
इसलिए आँसू नहीं
आँखों से पत्थर बरसा
अब यही ज़रूरी है
कि इन पत्थरों से ईश्वर नहीं
आग का जन्म होगा
जिसमें बलात्कारी ख़ाक होंगे
निश्चित ही…

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