शुभारंभ का दिन है वसंत पंचमी

वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी और इसी कारण इस दिन लोग ज्ञान की प्राप्ति के लिए उनकी शरण जाते हैं। यह दिन हर तरह की नई शुरुआत के लिए शुभ माना गया है।

समूची सृष्टि ऋतु वसंत की राह तकती है। वसंत के आगमन के माघ माह के पांचवे दिन वसंत पंचमी मनाई जाती है। कहते हैं ब्रह्मा जी ने सृष्टि की उत्पत्ति तो कर दी थी लेकिन चारों तरफ मौन छाया रहता था।

जीवन था लेकिन उसका संगीत नहीं था। तब ब्रह्मा जी ने विष्णु जी की अनुमति प्राप्त करके अपने कंमडल के जल से सरस्वती की उत्पत्ति की। उनसे ही इस सृष्टि को स्वर मिले। जीवन को संगीत मिला। यही वजह है कि वसंत पंचमी को मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं।

मां सरस्वती परम चेतना हैं। वे हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती हैं। पुराणों में आए वर्णन के अनुसार श्रीकृष्ण ने मां सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया था कि वसंत पंचमी के दिन उनकी आराधना की जाएगी।

वसंत को ऋतुओं का राजा माना गया है क्योंकि इस दिन पांचों तत्व अपने सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। इस समय आकाश स्वच्छ रहता है, हवा सुहावनी बहती है, अग्नि रुचिकर लगती है, जल आत्मा को तृप्ति देता लगता है और धरती फसल से लहलहाती है।

वसंत के आगमन के साथ ही हम सर्दियों के कष्टों को पीछे छोड़कर सुहावने दिनों में प्रवेश करते हैं। यह सर्दी और गर्मी का संधिकाल वसंत बहुत ही सुहावना होता है। इसी समय प्रकृति का सौंदर्य भी उत्कर्ष पर होता है।

वसंत पंचमी को सभी तरह के कार्यों के आरंभ के लिए शुभ मुहूर्त माना गया है। इसका कारण यह है कि यह माघ मास में आती है। माघ माह आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व का महीना है। इस समय तीर्थों के जल में स्नान का विशेष महत्व है। दूसरा इस समय सूर्य देव उत्तरायण होते हैं। वसंत पंचमी ऐसे शुभ समय आती है और उससे कई संयोग जुड़ते हैं इसलिए उस दिन को शुभ मुहूर्त माना जाता है।

प्रकृति का काममय होना

वसंत के आगमन के साथ ही रति-काम महोत्सव आरंभ हो जाता है। इस समय पेड़-पौधे अपनी पुरानी पत्तियों को त्यागकर नई कोपलों से सुसज्जित होते हैं। समूचा वातावरण पुष्पों की सुगंध और भौंरों की गूंज से भरा होता है। मधुमक्खियां पराग इकट्ठा करती हैं और इसलिए इसे मधुमास भी कहा जाता है।

पूरी प्रकृति काममय हो जाती है। इस मौसम पर ग्रहों में सर्वाधिक विद्वान ‘शुक्र” का प्रभाव रहता है। शुक्र काम और सौंदर्य के कारक हैं, इसलिए रति-काम महोत्सव की यह अविध कामोद्दीपक है। अधिकतर महिलाएं इन्हीं दिनों गर्भधारण करती हैं।

जन्मकुंडली का पंचम भाव विद्या का नैसर्गिक भाव है। इसी भाव की ग्रह -स्थितियों पर व्यक्ति का अध्ययन निर्भर करता है। यह भाव दूषित या पापाक्रांत हो तो व्यक्ति की शिक्षा अधूरी रह जाती है। इस भाव से प्रभावित लोगों को वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करना चाहिए। नए संकल्प के साथ प्रयास करने में जुट जाना चाहिए। वसंत पंचमी का यह पर्व नई शुरुआत का पर्व भी कहा गया है।

पीले परिधान का महत्व

पीला रंग हिंदुओं में शुभ रंग माना जाता है। यह परिपक्वता का प्रतीक है। यह उल्लास और आनंद की अनुभूति को बढ़ाता है और इसलिए यह वसंत के साथ गूंथ दिया गया है। इस दिन न केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं बल्कि खाद्य पदार्थों में भी पीले रंग का उपयोग किया जाता है। चूंकि इस समय प्रकृति में भी चारों ओर पीले पुष्प खिले रहते हैं तो ऐसा लगता है मानो खेतों ने पीली चुनर ओढ़ ली हो।

बसंत पंचमी से जुड़े शुभ कर्म

– इस दिन बच्चों का विधारंभ संस्कार होता है। उन्हें पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है।

– पितृ तर्पण किया जाता है।

– कामदेव का पूजन किया जाता है।

– विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।

– वसंत पंचमी के दिन ही भगवान राम शबरी के आश्रम पहुंचे थे।

– वसंत पंचमी महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला” का जन्मदिवस भी है।

वाद्य यंत्रों का पूजन

जिस तरह विजयादशमी पर सैनिक अपने शस्त्रों का पूजन करते हैं और दीपावली पर व्यापारी अपने बहीखातों को पूजते हैं उसी तरह वसंत पंचमी पर कलाकार अपने वाद्य यंत्रों का पूजन करते हैं। कवि, गायक, लेखक, नाटककार या नृत्यकार सभी इस दिन अपने यंत्रों और सामग्री का पूजन करते हैं।

 

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