ये खुदकुशी सवाल खड़े करती है हमारी व्यवस्था और समाज पर

इस देश को कॉफी का चस्का लगाने वाले वी.जी. सिद्धार्थ ने जिन्दगी से हार मान ली। यह एक हृदय विदारक दिल तोड़ने वाली घटना है। कर्ज के बोझ और साझेदारों के दबाव ने एक होनहार उद्यमी इस देश से छीन लिया। उन्होंने जाते – जाते जो पत्र लिखा है, वह एक भयानक हकीकत से रूबरू करवाता है। आयकर विभाग के दबाव का भी जिक्र है। सिद्धार्थ की खुदकुशी ने एक साथ बहुत से सवाल खड़े कर दिये हैं…आर्थिक, सामाजिक और मानसिक हैं ये प्रश्न। ये घटना हमारी पूरी व्यवस्था और समाज पर प्रश्न चिह्न है। एक तरफ विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे कारोबारी हैं जो रातोंरात हजारों करोड़ रुपये की ठगी कर के देश से फरार होते हैं और दूसरी तरफ सिद्धार्थ जैसे लोग हैं जो एक – एक पैसा जोड़ते हैं, हजारों लोगों को रोजगार देते हैं, जीने की उमंग जगाते हैं और खुद व्यवस्था के आगे हार मान लेते हैं…यह दोष किसका है? क्या इस तरह हम आर्थिक प्रगति कर पाएँगे…अगर उद्यमी ही मजबूत न हुए तो इस देश की गाड़ी कैसे मजबूत होगी..यह सवाल तो खड़ा होता है। इस देश में श्रमिकों के प्रति सहानुभूति रहती है, होनी चाहिए मगर सवाल यह भी है कि अगर पूँजीपति ही नहीं होंगे तो आप काम कहाँ करेंगे? क्या इसके बाद आयकर के लिए बेवजह दबाव डालने वाले अधिकारियों पर नकेल कसी जायेगी? अगर यही स्थिति रही तो कोई भी युवा कैसे किसी व्यवसाय के लिए आगे बढ़ेगा? बात सिर्फ इतनी सी नहीं है, बात उस मानसिक व सामाजिक दबाव की है जो पुरुषों को विरासत से मिलती आ रही है। खुद को मजबूत रखने का दबाव, हमेशा जिम्मेदारी लेने का दबाव और सारा बोझ अपने कन्धे पर रखने का दबाव उनको इस परम्परा से मिलता है। इस समाज ने रोने को कमजोरी की निशानी बताया है मगर हमें यह याद रखना होगा कि हम सब इन्सान हैं…हमारी क्षमताएँ हैं, सीमाएँ हैं, हम सफल हो सकते हैं और असफल भी हो सकते हैं। अपना गम, अपनी तकलीफें बाँटना सीखिए… जितनी काउंसिलिंग स्त्रियों की होती है, उतनी ही काउंसिलिंग की जरूरत पुरुषों को भी है..। हमें स्त्री विमर्श के साथ आज पुरुष विमर्श की भी जरूरत है। एक के बाद एक ऐसी परिस्थितियाँ बन रही हैं कि दूर तक सिर्फ संशय है। राजनीतिक दबाव एक बड़ा फैक्टर है। वी.जी. सिद्धार्थ कर्नाटक के पूर्व सीएम एमएस कृष्णा के दामाद थे…जाहिर है कि उन पर विरोधियों की नजर रही होगी और कृष्णा के दुश्मनों की भी…मगर राजनीतिक मुकाबलेबाजी का यह बेहद घिनौना रंग है। राजनीति का यह घिनौना रंग उन्नाव में भी दिख रहा है जहाँ लड़कियों की रक्षा का दम भरने वाली योगी सरकार फिलहाल अपने विधायक को बचाती नजर आ रही है…मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है..व्यवस्था की इस गड़बड़ी के बीच तीन तलाक बिल का पारित होना एक नयी उम्मीद लेकर आया है मगर सवाल तो अब भी वहीं है….ये कैसा देश बना रहे हैं हम…। आज मैथिलीशरण गुप्त याद आ रहे हैं..
इस देश को हे दीनबन्धो, आप फिर अपनाइए
भगवान भारतवर्ष को फिर, पुण्यभूमि बनाइए।।

शुभजिता

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