15 अगस्त यानि की स्वतंत्रता दिवस पर हम अक्सर उन लोगों को याद करते है जिन्होंने देश को आजाद करवाने में मुख्य भूमिका अदा की है। हर जगह पर हमारे देश के गर्व यानि की हमारे तिरंगे को फहराया जाता है। वहीं हमारे देश की कुछ महिलाएं महीनों पहले ही इन झंड़ों को बनाना शुरु कर देती है। भारत में कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ (फेडरेशन) (KKGSS) खादी व विलेज इंडस्ट्रीज कमीशन ही कंपनी है जो कि तिरंगा झंडा बनाती है। इसमें खास बात यह है कि इस कम्पनी में पुरुषों से अधिक महिलाएं काम करती है, जो कि पूरे सम्मान के साथ यहां पर हर साल तिरंगे बनाती है। कम्पनी की शुरुआत 1957 में हुई थी। 1982 में इन्होंने खादी बनाना शुरु किया था। 2005-06 में इसे ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडडर्स की ओर से सर्टीफिकेशन मिला था जिसके बाद इन्होंने झंडा बनाना शुरु किया था। यहां से भारत ही नही विदेश में मौजूद इंडियन एम्बेसी के लिए झंडे भेजे जाते है। यहां पर ऑर्डर व कुरियर बुक करके भी झंडे खरीदे जा सकते हैं।
कर्नाटक के तुलसीगरी देश में स्थित भारत की एकमात्र तिरंगा बनाने वाली कंपनी में 400 के करीब महिलाएं काम करती हैं। कम्पनी की सुपरवाइजर अन्नपूर्णा कोटी के अनुसार महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले धैर्य अधिक होता है। वहीं पुरुषों में धैर्य की कमी होने के कारण वह माप लेने में कमी करते है जिससे गलती हो जाती है। कम्पनी में कर्मचारी सारा साल ही झंडे बनाते है। इतना ही नही गणतंत्रता व स्वतंत्रता दिवस के लिए लाल किले पर फहराए जाने झंडे का ऑडर दो महीने पहले ही आ जाता है। कर्नाटका के तुलसीगरी देश में स्थित भारत की एकमात्र तिरंगा बनाने वाली कम्पनी में 400 के करीब महिलाएं काम करती हैं। कंपनी की सुपरवाइजर अन्नपूर्णा कोटी के अनुसार महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले धैर्य अधिक होता है। वहीं पुरुषों में धैर्य की कमी होने के कारण वह माप लेने में कमी करते है जिससे गलती हो जाती है। कंपनी में कर्मचारी सारा साल ही झंडे बनाते है। इतना ही नही गणतंत्रता व स्वतंत्रता दिवस के लिए लाल किले पर फहराए जाने झंडे का ऑडर दो महीने पहले ही आ जाता है।
लाल किले पर फहराए जाने वाला तिरंगा 12*8 फीट का होता है, जिसकी कीमत लगभग 6500 रुपए होती है। इस तिरंगे को छह हिस्सों में बनाया जाता है। सबसे पहले कपड़े के लिए कताई कर उसकी बुनाई की जाती है। उसके बना इसे तीन रंगों में रंगा जाता है। इसके बाद इस पर अशोक चक्र की छपाई की जाती है। छपाई होने के बाद सिलाई व बंधाई का काम इसके बाद पूरा किया जाता है। इन झंडो को ध्वज संहिता व भारतीय मानक ब्यूरो के दिशानिर्देश अनुसार बनाया जाता है। इसमें गलती की बिल्कूल भी गुंजाइश नही होती है, अगर गलती हो जाए तो उसकी सजा हो सकती है। इतना ही इसमें इस्तेमाल किए जाने वाली कपड़ा जींस से भी मजबूत होता है।
कम्पनी से बाहर निकलने से पहले झंडे को कई बार जाँचा जाता है। हर सेक्शन में 18 बाल क्वालिटी चेक होता है। जिसमें रंग के शेड, कपड़े की लंबाई चौड़ाई, अशोक चक्र की छपाई, फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 2002. साइज व धागे में किसी तरह का डिफेक्ट हर चीज को चेक किया जाता है। इसमें किसी तरह का डिफेक्ट निकलना अपराध माना जाता है।
(साभार – पंजाब केसरी)