थेथर होती हैं औरतें!

आज के समय में सोशल मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। यह सही है कि सोशल मीडिया यूनिर्वसिर्टी बहुत सा कचरा परोसती है मगर इसी पर कुछ ऐसी बातें भी होती हैं, जो हमें अन्दर से छूती भी हैं और झकझोरती भी हैं। यही बातें कई बार विमर्श का रूप भी ले लेती हैं और कई बार नया जानने को भी मिलता है तो सोशल मीडिया से चुनी हुई कुछ पोस्ट हम आपके लिए ला रहे हैं जो कभी फेसबुक, कभी व्हाट्सएप से दिखती हैं। शुरुआत मृदुला शुक्ला जी की एक जरूरी पोस्ट से उन सबके लिए जो स्त्रियों पर चुटकुले बनाते हैं…इसे पढ़ा जाना चाहिए

मृदुला शुक्ला

सर्दियों में शादियों में स्त्रियों के स्वेटर न पहनने पर खूब बात होती है चुटकुले बनते हैं वजह तो पता होगी! न पता हो तो मैं बता देती हूँ । थेथर होती हैं औरतें। कभी सर्दी की ठण्ड सुबह जब आप रजाई में  दुबके होते हो तब नहा कर चौके में जाकर आपके लिए नाश्ता बनाती माँ या पत्नी की बात कर पूछते हैं क्या स्त्रियाँ किस मिट्टी की बनी होती हैं उन्हें ठण्ड क्यों नहीं लगती । उस वक्त आप उन्हें ममतामई ,महान, देवी और जाने क्या कह कर बेवकूफ बना ले जाते हैं । तब चुटकुले आपकी हलक में फंस जाते हैं।
मई जून की गर्मी में जब चौका तप रहा होता है आप एयर कंडिशनर, कूलर पंखा( जो भी आपकी हैसियत में हो) में बैठे होते है आपके लिए गरमागरम फुल्के उतारे जा रहे होते हैं । कभी उनके साथ उस गर्मी में जाकर काम करके देखिये शहरी औरतें तो सुविधाजनक कपड़ों में होती हैं ग्रामीण स्त्रियाँ सिंथेटिक साड़ियों में सिर ढंके आधा जीवन चौके में बिता देती हैं । उनकी पीठ पेट गर्दन पर घमौरियों की परतें चढ़ती जाती है ।
घर का वह हिस्सा जो सबसे गर्म होता है वहां ए सी पंखा कूलर क्यों नहीं लगता सोचियेगा कभी । अधिकाँश पुराने घरों में रसोई में खिड़की तक नहीं होती थी ।और कभी कभी तो रौशनदान भी नहीं ।
कभी किसी स्त्री को रसोई में काम करते देखिये अधिकांश समय वो चिमटे की मदद के बिना काम करती है उसकी कोमल उंगलिओं के पोर अधिक उष्म सहिष्णु होते ।हमारी भाषा में इसे कहते है थेथर होना ।हाँ औरतें थेथर होती हैं परिवार को ताजा गर्म और स्वास्थ्यवर्धक खाना मिले इसके लिए उन्हें गर्मी सर्दी की परवाह करना अलाउड नहीं है ।
औरतें कैसे कर पाती हैं यह सब ,कभी आप सबके दिमाग में ये प्रश्न क्यों नहीं उठते ? चुटकुले यहां बनने चाहिए थे मगर तब आपकी सुविधाओं में खलल पड़ेगा ।उसे दस बीस पीढ़ी तक सर्दी गर्मी का एह्साह होने दीजिये ।
सामान्य मध्य वर्ग और निम्न वर्ग की महिलाओं को शादी में मायके ससुराल से साड़ियां मिलती हैं महंगी भारी भरकम काम वाली (औकात के अनुसार)उनके पास शादी ब्याह के अतिरिक्त कोई जगह नही होती उन्हें पहनने की। और ज्यादातर घरों में साड़ी के अतिरिक्त कोई परिधान अलाउड भी नही होता । ससुर जेठ के सामने पल्ला करना होता है मगर उन साड़ियों के साथ स्वेटर शाल बनाने की जरूरत बाजार ने भी नही महसूस की। बाज़ार भी अब तक समाज के इस उपेक्षित वर्ग की जरूरत को कैश करने के मूड में नही दिखता । बाज़ार जानता है अभी भी इस क्षेत्र में कोई स्कोप नही है । यदि बहुत कम संख्या में उपलब्ध है तो परिवार और स्वयम स्त्रियां भी उसे खरीदने में हिचकती हैं । एक ही रात की तो बात है बिना स्वेटर के भी चला लेंगी काम । उन्हें तो वैसे ही कम लगती है ठंड ।
उन्हें कुछ दिनों का चैन दीजिये उनकी देह को मौसम बदलने को महसूस करने दीजिए तब जाकर उनका थर्मोस्टेट सही होगा फिर वो शादियों में आपके साथ सूट कोट जूता मोजा पहन कर शामिल होगी |

बाकी बड़ी मेहनत से तैयार किये गए डिजायनर, ब्लाउज गहने दिखाना एक वजह तो है ही मगर ध्यान रहे इस क्लास के लोगों की शादियां वातानुकूलित जगहों पर होती हैं जिनके घर गाड़ी भी होते हैं वातानुकूलित। इन पर न तो चुटकुले गढे जाते हैं न ही इन पर फर्क पड़ता है ऐसी बातों का ।
इस बार ठंड की सुबह की चाय आप खुद बनाइये । देखिए बहुत से चुटकुलों और सवालों के जवाब मिल जाएंगे ।।
किसी भी अव्यावहारिक सामूहिक क्रिया के आर्थिक सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक समाजशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक पक्ष होते हैं । हो सकता है मुझसे कुछ पक्ष छूट गए हों मगर चुटकुले बनाना सबसे क्रूर प्रतिक्रिया और समाज का गड़बड़ाया हास्यबोध है ।

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